उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
एक समय की कथा है कि एक भूखा चांडाल एक ब्राह्मण के साथ आया। वह बहुत भूखा था। ब्राह्मण ने, उनकी पत्नी तथा सभी बच्चों ने अपने-अपने हिस्से की रोटी उस चांडाल को दे दी। चाण्डाल रोटी खाकर संतुष्ट हो गया। उसने रोटी खाई, पानी पिया और उसके बाद एक स्थान पर कुल्ला किया, अपना हाथ धोया। उसके हाथ धोने के बाद एक नेवला आया। कहते हैं कि वह वहाँ पर लोटने लगा और लोटते ही उसके काले बाल सुनहरे हो गये। उस नेवले से लोगों ने पूछा कि तू तो काला था, सुनहरा कैसे हो गया? उसने कहा—एक स्थान पर यज्ञ हुआ है। वहाँ मैं गया था और लोट लगाई तो मेरे बाल सुनहरे हो गये।
मित्रो, यज्ञ महान चीज है जो बड़े आदमी ही नहीं, छोटे आदमी भी कर सकते हैं। आप समझते नहीं। लोग हवन करें तथा पैसे खर्च करें, यह कोई हवन आवश्यक नहीं है। आप अगर किसी बुढ़िया के, किसी बहिन या भाई के आँखों के मोतियाबिन्द का आपरेशन करा देते हैं तो वह भी यज्ञ है। आप यदि इस प्रकार का यज्ञ करने वाले हैं या करते हैं तो आपको हम एक श्रेष्ठ यजमान, श्रेष्ठ होता कहेंगे तथा आपका स्वागत करेंगे। आपने उस बुढ़िया के जिसे आँखों से नहीं दिखता था, अगर आपने ढाई सौ रुपये खर्च करके उसकी आँखों में नई ज्योति ला दी है तो हम आपको होता कहेंगे, यजमान कहेंगे और यह कहेंगे कि आप सच्चे हवनकर्ता है। यह हमारी संस्कृति है तथा हर इनसान का कर्तव्य है कि वह दूसरों की मुसीबतों के समय पर सहयोग करें। आदमी दूसरों के दुःखों, मुसीबतों एवं तकलीफों का ध्यान रखें।
अगर इस प्रकार का हमारा दृष्टिकोण होगा तो क्या हमारे समाज में समस्याएँ रहेंगी? क्या यहाँ कोई चोरी करेगा? क्यों कोई कहीं डकैती डालेगा? नहीं मित्रो, कोई नहीं करेगा। इनसान के सामने कोई समस्या नहीं रहेगी। उसके भावनाओं में परिवर्तन आयेगा। वह यह सोचेगा कि वह जंगलों में नहीं चल रहा है, वरन् ट्रेन में चल रहा है। चोरी करने से पूर्व व्यक्ति सोचेगा कि जिसे वह नुकसान पहुँचाने जा रहा है तो क्या आवश्यकता के पैसे उसके पास हैं जिसकी हम जेब काटकर उसे परेशान करने जा रहे हैं। वह बेचारा कहाँ भीख माँगेगा, कहाँ मारा-मारा फिरेगा। आज अगर हमारी स्थिति में ऐसा ही परिवर्तन हो जाए तो फिर इस प्रकार की समस्याएँ कहाँ रहेंगी? कहाँ बर्बादी रह जाएगी? मित्रो! अपराध कैसे रह पायेगा? अगर मनुष्य अपने दिल के अन्दर भावना को जोड़ लें। अभी हमारे शरीर तो इनसान के हैं परन्तु दिल हैवान के हैं। अगर दिल इनसान के होते तो कोई समस्या नहीं होती। अगर रामायण की एक चौपाई आपको याद हो जाए तो हम यह समझेंगे कि आपने पूरी रामायण पढ़ ली। वह है ‘‘सियाराम मय सब जग जानी। करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी’’। यदि यह दृष्टिकोण आ जाए तो कोई कैसे किसी के स्वास्थ्य को चौपट कर देगा? तब व्यापारी यह सोचेगा कि धनिया खरीदने आया है राम—उसे गधे की लीद मिला हुआ धनिया कैसे दे दूँ? अरे हम अगर गायत्री के सिद्धान्तों पर, आध्यात्मिक के सिद्धान्तों पर चलने वाले हों तो क्या हम पाप कर सकते हैं? नहीं, कभी नहीं कर सकते और न ही अपराध कर सकते हैं। तब पाप और अपराध समाज से मिट जाएगा। आज अगर इस प्रकार के सिद्धान्त लोगों में आ जाते तो गायत्री और यज्ञ की फिलॉसफी लोगों की समझ में आ जाती। इनसान महान बन जाते।
आपने नाच क्या सीख लिया है, यह बेकार की चीज है। आज मित्रो, नृत्यांगना आपके देश एवं समाज की तबाही कर रही हैं। अगर नृत्यांगना आपके जीवन में न आती तो मजा आ जाता तथा उसके स्थान पर मोहब्बत आ जाती तो हम यह समझते कि आपके जीवन में यज्ञ का सिद्धान्त आ गया। अगर आप मोहब्बत अपनी धर्मपत्नी से कर लेते तो मजा आ जाता। आप तथा आपकी धर्मपत्नी एक-दूसरे के लिए जान देकर जिया करते तो मजा आ जाता। तब आपके परिवार में एक नया उत्साह एवं उमंग पैदा हो जाएगा। मित्रो, यह भी यज्ञ का ही सिद्धान्त है। अभी तो आपकी धर्मपत्नी यदि आपके भोजन में थोड़ा कम या ज्यादा नमक डाल देती है, बर्तन साफ करने में थोड़ी-सी कमी होती है, तो आप उसे भला-बुरा कहते हैं और उसे मारने तक उतारू हो जाते हैं। यह कैसी विडम्बना है? आपने यह कभी नहीं सोचा कि वह अपने माँ-बाप को छोड़कर आयी है। वह आपसे न पेमेण्ट माँगती है न पेन्शन माँगती है, न सण्डे की छुट्टी माँगती है। कितनी महान है यह नारी जाति? ऐसी देवी को आपने नहीं देखा होगा। आपने पत्थर की देवी देखी होगी जो बकरे तक खा जाती है। अगर आप इस देवी की आरती नहीं उतार सकते हैं, पूजा नहीं करते हैं तो कम से कम भाव-संवेदना भरी आँखों से देख तो लिया करें। अगर इस प्रकार जीवन जीना सीख लें, प्यार भरा जीवन जीना सीख लें तो मजा आ जाएगा।
अगर आपने अपने घर, परिवार, बीबी, बच्चों को संस्कारवान नहीं बनाया, अपनी भाव-संवेदना प्रगट नहीं की तो आपके लिये तबाही आयेगी। आप जब बुड्ढे हो जाएँगे तो आपको कोई नहीं पूछेगा। याद रखिये आप में से अधिकांश व्यक्ति अब बुड्ढे होने वाले हैं। आपके बाल भी हमारे जैसे सफेद होने वाले हैं। आपकी आँखों में भी चश्मा अब लगने वाला है। आपका बच्चा भी जब बड़ा हो जाएगा तो आपको मजा चखायेगा कि आपने उसकी माँ को भला-बुरा कहा है। माँ जब गुस्से में अपने बच्चे को दूध पिलाती है, उस बच्चे को भी माँ-बाप के प्रति क्रोध आता है। आपका व्यवहार जो इस समय हुआ है—आप देखना कि बुढ़ापे में आपकी बहू और आपकी पत्नी कैसे गुस्सा निकालती हैं? अगर घर में लोग आपस में प्रेम करना सीखते, मोहब्बत करना सीखते तो मजा आ जाता तथा उनका जीवन धन्य हो जाता। आध्यात्मिकता हमारे घर में भर जाती। सारे घर में आनन्द-उल्लास का वातावरण रहता। आपस में प्रेमभाव होते। घर-परिवार ही स्वर्ग बन जाता।
अध्यात्म का मतलब होता है प्रेम, आत्मीयता। एक समय की बात है—स्वामी रामतीर्थ जापान गये। वे एक फैक्टरी देखने गये। सभी अपने-अपने कामों में लगे थे। एक बार बाबाजी को देख लिया तथा अगले ही क्षण पूरे तत्परता के साथ हर आदमी अपने-अपने कामों लग गया। किसी के पास इतना समय नहीं था कि उन्हें देखे। जापान के लोग बड़े परिश्रमी होते हैं। सप्ताह में 5 दिन काम करते हैं, परन्तु उससे ही जापान नित्य प्रगति पर बढ़ता जा रहा है। वे पूरे मनोयोग के साथ काम करते हैं। वे राष्ट्र का महत्त्व समझते हैं। उनका कहना है कि हम मजदूर हैं तो क्या? हमें अपने देश को आगे बढ़ाना है। हम सप्ताह में 5 दिन परिश्रम करेंगे तथा देशहित में उत्पादन बढ़ायेंगे। दो दिन अपने परिवार के साथ हँसी-खुशी का जीवन जियेंगे। कारखाने से आने के बाद सब हँसी-खुशी का जीवन जीते रहते हैं। कोई चाय बनाता है, कोई गीत गाता है। सब आनन्द से विभोर हो जाते हैं। रामतीर्थ बहुत ही प्रभावित हुए। आपको प्यार आता है? कभी नहीं। आप तो अपनी बीबी की हमेशा शिकायत करते हैं। वह काली है, मोटी है। शादी के समय भी दहेज लेकर नहीं आयी। आप कभी खुश नहीं रहते हैं।
रामतीर्थ का वहाँ व्याख्यान हुआ। उन्होंने कहा—हम संस्कृत के श्लोकों को पढ़कर आपको वेदान्त का—अध्यात्म का शिक्षण क्या दें? आपको देखकर हम नतमस्तक हैं। आप सब सच्चे अर्थों में अध्यात्मवादी हैं। आप में से हर आदमी काम के प्रति इतना ईमानदारी है कि उसका क्या कहना? आप कार्य को भगवान की पूजा समझते हैं। आपका क्या कहना? आपको हम कहना चाहते हैं कि आपसे हमें शिकायत नहीं हैं। आप शंकर जी के मंदिर में जाते हैं या नहीं, यह हम नहीं कह सकते हैं, परन्तु आप पक्के अध्यात्मवादी हैं। आपके काम करने के ढंग, फर्ज तथा जिम्मेदारी सराहनीय एवं अनुकरणीय है। आपको भगवान ने जो चीज दी है, उसका उपयोग जानते हैं। भगवान ने मनुष्य को हँसने की कला दी है। आपका त्याग सराहनीय है, जो आपस में प्रेम, मोहब्बत का जीवन जीते हैं।
अपने देश में आप 350 रुपये पाते हैं। उसमें से 50 रुपये आप सिनेमा में खर्च कर देते हैं। 20 रुपये आप सिगरेट में फूँक देते हैं। आपको तो बजट बनाना भी नहीं आता है। अगर आप पूरे 350 रुपये बच्चों के विकास के लिये, प्रगति के लिये खर्च कर देते तो आपके परिवार की स्थिति कुछ और ही होती। अगर किसी को हँसना आता है, हँसाना आता है, प्यार करना आता है, बजट बनाकर खर्च करना आता है, तो वह हमारे शब्दों में सच्चा अध्यात्मवादी है। गायत्री का उपासक है, यज्ञकर्ता है।
सारे विश्व की समस्या का हल यज्ञीय दर्शन से संभव है। इसके द्वारा ही युद्ध की समस्या, चीन, पाकिस्तान की समस्या हल हो सकती है तथा विश्व में शांति आ सकती है। दुनिया के अन्तर्राष्ट्रीय समस्या का हल इस यज्ञीय दर्शन द्वारा हो सकता है। आज विश्व के सामने जो प्रमुख समस्याएँ हैं वे हैं—(1) युद्ध (2) दुश्मन (3) पराजय। अगर आपस में मिल-बैठकर विचार करें—जैसे पंचायत में होता है तो दुनिया की हर समस्या का हल हो सकता है। दुनिया में खून-खराबा समाप्त हो सकता है। समुद्र के खारे जल को मीठा बनाया जा सकता है। उसमें एक प्रकार की ‘काई’ उगाई जा सकती है जिससे खाद्य समस्या का हल हो सकता है। बंजर एवं बेकार पड़ी जमीन को रहने योग्य बनाकर जनसंख्या अभिवृद्धि की समस्या का हल हो सकता है। आदमी अगर मेहनत तथा मसक्कत करे तो पहाड़ों पर भी खेती की जा सकती है। अगर हम पानी की व्यवस्था पूरी कर लें तथा प्यासों को नया जीवन दे दें। हम युद्ध के लिये जो खर्च करते हैं उसे मनुष्य के विकास में खर्च कर दें तो इनसान के अन्दर खुशी आ सकती है। मित्रो! यही है यज्ञीय फिलॉसफी। इससे रेगिस्तान को हरा-भरा बना सकते हैं। अभी जो गोला-बारूद बनाया जा रहा है, अस्त्र-शस्त्र बनाये जा रहे हैं उसके स्थान पर अगर ट्यूबवेल बनायी जाए तो मनुष्य को कितना फायदा होगा? इस प्रकार हर गाँव में खुशहाली आ सकती है। अगर हम युद्ध के खर्चे को बन्द कर दें तो अभी जितनी अकल और पैसा मिसाइल और रॉकेट बनाने में खर्च होता है, अगर वह खेती के विकास में, अन्न उगाने में, बच्चों की शिक्षा एवं गरीबी के विकास में खर्च हो जाए तो मजा आ जाए।
हम सारी समस्याओं का हल अक्ल, पैसा तथा राजनीति के द्वारा नहीं कर सकते हैं। अगर कर सकते हैं तो केवल इनसानियत से। इसके द्वारा ही राष्ट्रीयता के झगड़े, युद्ध के झगड़े, भाषा, प्रान्तवाद, जातिवाद, सीमा विवाद आदि सारी समस्याओं का हल हो सकता है। आप महात्मा गाँधी की जय बोलते हैं, परन्तु उनके आदर्शों को धारण नहीं करते हैं। आप कुर्सी के लिये उस तरह से लड़ते हैं जैसे कुत्ते रोटी के लिए लड़ते हैं। अगर भले आदमी आप भारतीय संस्कृति के संरक्षकों को याद करते, उनके कार्य, त्याग, सेवा को याद करते तो मजा आ जाता। अगर आप यह कहते कि आप कुर्सी पर बैठें हम इधर ही रहकर सेवा करेंगे जैसा कि राम को भरत ने कहा था, वैसा आदर्श प्रस्तुत करते तो मजा आ जाता। आदमी के छोटे दिल और व्यवहार के कारण न जाने कितनी समस्याएँ खड़ी हो गई हैं? राजनीति पैदा करके नेताओं ने प्रान्त को, देश को बर्बाद कर दिया। काहे का प्रान्त, काहे का विवाद—एक ही भूमि में—भारत में लोग पैदा हुए। अगर ये विचार आ जाते तो मजा आ जाता।
जरा-सी दीवाल की समस्या ने एक ही देश के निवासियों को हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी बना दिया और वे एक-दूसरे को अपने-अपने क्षेत्र से निकालने लगे। एक ओर पाकिस्तानी तो दूसरी ओर हिन्दुस्तानी हैं। कमोबेश अब वही प्रान्तीयता के नाम पर हो रहा है। यदि मध्य प्रदेश का पानी महाराष्ट्र में चला गया तो क्या हुआ? अरे! भले आदमियो, छोटी-छोटी समस्याओं के लिये अपने जीवन का सर्वनाश क्यों कर रहे हो? आपस में एक-दूसरे का गला क्यों काट रहे हो? धिक्कार है तुम्हारी इनसानियत को। मित्रो! थोड़ी-सी अकल हमारे अन्दर आ जाती तो हम सारी समस्याओं का हल कर लिया करते।
मित्रो! इन समस्याओं का हल किसी असेम्बली से नहीं होने वाला है। इसका हल मनुष्यों के बड़े दिल तथा उदारता से ही सम्भव है। इसके लिये यज्ञीय दर्शन को समझना होगा। उसे आचरण में लाना होगा।
आज समूची मानव जाति सारे देश विश्वयुद्ध के शिकंजे में इस तरह फँसे हुए हैं कि उसका क्या कहना? आज हर जगह तलवार लटकी हुई है। न जाने कब तलवार गिर जाए और गला कट जाए। कोई भी देश किसी समय भी इसका भुक्तभोगी बन सकता है।
मित्रो! आज चौबीस घंटे मानवता त्राहि-त्राहि कर रही है। उसे शांति तथा चैन की नींद हराम हो गयी है। सभी मछलियों की तरह तड़प रहे हैं। मित्रो इस मानवता को त्राहि से बचाने के लिए कौन काम करेगा? इसमें काम करेगा बड़े दिल वाला तथा उदारता बढ़ती चली जाएगी तो ‘एटम बम’ भागते हुए चले जाएँगे छिपकली की तरह से। उस समय मनुष्य के त्याग की सराहना होगी। आदमी मौत को घृणा की दृष्टि से देखेगा। लोगों की निगाह, दृष्टिकोण बाप, भाई, भतीजे की तरह होगी। उस परिस्थिति में मित्रो कौन बरसायेगा मौत? किसी के लिये आप बतलाएँ न। मित्रो, इसे ही कहते हैं त्याग, सद्भावना, यज्ञ। यह त्याग ही दुनिया का कायाकल्प होगा। मित्रो! यह आज नहीं तो कल आयेगा ही। कल नहीं तो परसों अवश्य आयेगा। परसों नहीं तो 1000 वर्ष बाद आयेगा, परन्तु वह दिन जब भी आयेगा सभी लोग भारतीय संस्कृति के अनुयायी होंगे तथा बड़ा दिल तथा उदारता उनके अस्त्र-शस्त्र होंगे। उसी दिन विश्व की मानवता शांति पा सकेंगी तथा लोग अमन-चैन की जिन्दगी जी सकेंगे। उस समय इस धरती पर स्वर्ग होगा। मानवता के विकास उनके आदर्श सिद्धान्त होंगे। मित्रो जब कभी भी दुनिया में शांति आयेगी वह दिन भारतीय संस्कृति के विकास का दिन होगा तथा लोग भारतीय संस्कृति के आधार पर यज्ञ के दर्शन का झंडा फहरायेंगे। हर आदमी के दिल एवं दिमाग में यज्ञीय भावना जाग्रत हो रही होगी। हमारे समाज एवं परिवार का निर्माण यज्ञीय आधार पर हुआ है, अतः उसका विकास तदनुरूप ही होना चाहिए। मैं आपको बतला देना चाहता हूँ कि जिस दिन लोगों के मन में यज्ञीय भावना जाग्रत हो जाएगी उस दिन से ही शांति आयेगी। लोग अमन-चैन का जीवन जी सकेंगे। समाज और देश का वातावरण बदल जाएगा। हम उसी दिन का ख्वाब देखते रहेंगे। आप से भी मेरा अनुरोध है कि आप भी उसी दिन का ख्वाब देखें। हम चाहते हैं कि यह भारतीय अध्यात्म, भारतीय विचारधारा दुनिया में फैले, विश्व में फैले तथा दुनिया में शांति आवे तथा खुशी आवे।
यह दिन अवश्य आयेगा, ऐसा हमारा विश्वास है। आपका हमने थोड़ा-सा कीमती समय लिया, भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की थोड़ी-सी मोटी बातों को समझाने का प्रयास किया। भारतीय परम्पराओं के आधार पर गायत्री एवं यज्ञ की वास्तविकता एवं परम्पराओं का थोड़ा-बहुत समझने में शायद आपको यह काम आये, शायद यह कि यह विचार पसंद आये, शायद आप ऊँचे आदर्शों पर चलने की कोशिश करें।
हमें विश्वास है कि सारी दुनिया में जब भी खुशी आयेगी, सारी दुनिया में जब भी शांति आयेगी, जब भी सारी दुनिया की समस्याओं का हल होगा, तो लोगों को इसी सिद्धान्त को अपनाना होगा जो हमारे ऋषियों ने हजारों वर्ष पूर्व गायत्री मंत्र एवं यज्ञ के सिद्धान्त में बतलाया था। हमारे ऋषियों ने इस सिद्धान्त को सारे विश्व को दिया था तथा सारे विश्व के लोग इस गायत्री एवं यज्ञ के सिद्धान्त को, जिसे हम सद्विचार एवं सत्कर्म के सिद्धान्त, सद्भावना एवं सद्विवेक का सिद्धान्त कहते हैं, लोगों ने इस खुशी के साथ अपनाया था तथा इसे सर्वसम्मति से माना था। इस प्रकार की भावनाओं के कारण ही हमारे पूर्वज सब जगह वंदनीय तथा पूजनीय थे। उनका सब जगह आदर-सत्कार था। उनकी बातों को सब माना करते थे। ‘‘धियो यो नः प्रचोदयात्’’ एवं ‘‘इदं न मम’’ का नारा सारे विश्व में गूँजता रहता था। आज भी यह सिद्धान्त ज्यों का त्यों है। युग बदल गया हो, कलियुग आ गया हो, सतयुग चला गया हो, परन्तु आसमान जहाँ का तहाँ है। तारे जहाँ के तहाँ हैं। सूर्य, चन्द्र जहाँ के तहाँ हैं। उसी प्रकार गायत्री एवं यज्ञ के सिद्धान्त जिसे हम आदर्श या मानवता के विकास का सिद्धान्त कह सकते हैं, वह भी जहाँ के तहाँ हैं। दुनिया को संदेश देने के लिये यह दोनों झंडे फहरा रहे हैं तथा फहराते रहेंगे विश्व के प्रत्येक लोगों को अंततः इसी झंडे के नीचे आना होगा तभी वे स्थायी शांति प्राप्त कर सकते हैं ऐसा हमें विश्वास है। आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्तिः॥