आज के व्यक्ति और समाज के सामने अगणित समस्याएँ, उलझनें और जिज्ञासाएँ उपस्थित हैं। पिछले अज्ञानान्धकार युग की विकृत परिपाटियाँ आज की यथार्थवादिता की अपेक्षा कराने वाले बुद्धिवादी युग में निरर्थक और अवांछनीय सिद्ध हो रही हैं। वस्तुस्थिति को समझने और उसका सही समाधान ढूँढ़ने के लिए मनुष्य व्याकुल एवं आतुर हो रहा है।
इन परिस्थितियों में ज्वलन्त प्रश्नों का उचित समाधान प्रस्तुत करने वाले प्रशिक्षण की नितान्त आवश्यकता थी। युग-निर्माण योजना के अन्तर्गत इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए एक परिष्कृत विचारधारा प्रस्तुत की है और उसका प्रकाश सर्वसाधारण तक पहुँचाने का निश्चय किया है।
इस विचार पद्धति को पुरुषों को रात्रि पाठशालाओं और महिलाओं के लिये अपराह्न शालाओं के रूप में लोक-शिक्षण के लिए प्रस्तुत किया है। १०० पाठ इसके लिए प्रस्तुत किये गये हैं और उनको छः मास में सिखाने का कार्यक्रम बनाया है।
प्रस्तुत पुस्तक उन अध्यापकों के लिए लिखी गई है जो उपरोक्त पाठशालाएँ चलायेंगे। सौ पाठों में से प्रतिदिन एक पाठ पढ़ाया जाएगा। अध्यापक या कोई छात्र इस पाठ को पढ़कर सुनाएँगे। छात्र उसे मनोयोग पूर्वक सुनेंगे एवं पढ़ेंगे। अध्यापकों को यह देखना है कि पढ़ाये पाठ को छात्र ठीक तरह हृदयंगम कर सके या नहीं? इसके लिए हर पाठ के साथ दस प्रश्न जोड़े गये हैं। उन्हें छात्रों से पूछने पर पता चल जाता है कि शिक्षण का किस छात्र ने कितना हृदयंगम किया? जो पूरी बात न समझ सके हों उन्हें बार-बार पूछने और बताने का क्रम तब तक चलाना चाहिए जब तक कि छात्र वस्तुस्थिति को ठीक तरह समझ न लें।
इसके अतिरिक्त हर पाठ को और भी अच्छी तरह समझाने के लिये उसके साथ जुड़ी हुई कथा, कहानियों, घटनाओं को मनोरंजक ढंग से समझाना चाहिए। इस प्रकार की कथाएँ हर पाठ के साथ इसी प्रयोजन के लिए जोड़ी गई हैं। यदि इन्हें अध्यापक अच्छे ढंग से कह सकें और छात्र मनोयोग पूर्वक सुन समझ सकें तो निश्चय ही पाठ को ठीक तरह समझाया जा सकेगा।
एक छः माही में इन १०० पाठों को पढ़ाकर उनकी परीक्षा व्यवस्था, प्रमाण पत्र देने का दीक्षान्त संस्कार किस प्रकार किया जाय इसका विवरण पूर्व, पुस्तकों के भूमिका भाग में बताया जा चुका है।
नव निर्माण की विचारधाराओं के जन-मानस में प्रतिष्ठापित करने से ही भावनात्मक नव निर्माण का लक्ष्य पूरा होगा। विचार क्रान्ति, नैतिक क्रान्ति और सामाजिक क्रान्ति के लिये यह शिक्षा-पद्धति कितनी अधिक महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावशाली सिद्ध होगी यह समय ही बतायेगा। संक्षेप में इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि मनुष्य में देवत्व और धरती पर स्वर्ग का अवतरण कर सकने में प्रस्तुत विचार पद्धति अनुपम भूमिका प्रस्तुत कर सकने में समर्थ होगी।
विश्व-मानव के उज्ज्वल भविष्य-निर्माण में योगदान देने के इच्छुक प्रबुद्ध व्यक्तियों को ऐसी रात्रि -पाठशालाएँ और अपराह्न-शालाएँ सर्वत्र स्थापित करनी चाहिए, जिनमें यह नव निर्माण की शिक्षा-पद्धति सिखाई-पढ़ाई जाती रहे। संसार की यह एक अनुपम सेवा-साधना होगी।
-श्रीराम शर्मा आचार्य
(१) आस्तिकता एवं उपासना का प्रयोजन-प्रतिफल
प्रश्न ——
१. ऋषि मुनियों द्वारा धर्म की रचना क्यों की गई? २. धर्म का प्रथम आधार क्या है? उसकी पृष्ठभूमि बतायें? ३. ईश्वर के सामने हमारी चतुरता क्यों नहीं चल सकती? ४. आस्तिकता को ही धर्म का प्रथम आधार क्यों माना गया है? ५. आज के युग में आस्तिकता किस तरह विकृत हो गई है? ६. भगवान की उपासना व्यक्ति किस कारण करते हैं? ७. आस्तिकता की आस्था को परिपक्व करने के लिए किन-किन बातों का आश्रय लिया जाता है? ८. उपासना का क्या अर्थ होता है। तथा उस समय हमें मन में क्या अनुभव करना चाहिए। ९. उपासना करते समय हम भगवान से क्या माँगा करें? १०. सर्वत्र श्री, समृद्धि, प्रगति एवं शान्ति की परिस्थितियाँ उत्पन्न करते रहने के लिए हमें क्या करते रहना चाहिए।
कथाएँ ——
(१) संसार बुराई में जल रहा है और आप राम नाम का उपदेश दे रहे हैं एक नास्तिक ने गाँधी से कहा। गाँधी जी ने उत्तर दिया-सोचो जब थोड़ी आस्तिकता शेष है तब तो लोगों का यह हाल है। जब आस्तिकता बिलकुल न रहेगी तब क्या होगा।
(२) एक व्यक्ति बड़ा नास्तिक था, कहता था, कि यह सारा संसार संयोग मात्र है, प्रकृति अपने आप सब कुछ रचती है। एक दिन उसका लड़का सुन्दर चित्र बनाकर लाया और उसे दिखाते हुए बोला पिताजी यह तस्वीर कैसी है? नास्तिक बोला बहुत अच्छी। मगर यह शक्ल खींची किसने? लड़का बोला-मेरे स्कूल में स्याही, कागज, रंगीन पेंसिलें सब कुछ रखा है आप तो जानते हैं प्रकृति में हलचल होती सब चीजें उठीं, चलीं और झट तस्वीर बन गई। यह सुनकर वह नास्तिक बोल पड़ा-यह भी कभी हो सकता है? लड़के ने तुरन्त उत्तर दिया-यदि यह तस्वीर बिना बनाये नहीं बन सकती तो इतना बड़ा संसार बिना कर्ता के कैसे बन सकता है?
(३) अपने साथी को मेंड़ पर खड़ा लड़का चिल्लाया-भागो खेत का मालिक खड़ा है। दोनों भागे दूर जाकर रुके तब पहले लड़के ने पूछा-कहाँ था खेत का मालिक? दूसरे लड़के ने कहा भाई भगवान सारे संसार का मालिक है वह तो हर जगह है, उस खेत में हम लोगों को चोरी करते क्या वह न देख रहा होगा।
(४) एक व्यक्ति एक दिन एक साधु के पास जाकर बोला भगवन् मुझे भगवान की अनुभूति क्यों नहीं होती? साधु ने कुछ उत्तर नहीं दिया बोला-बेटा यह पाँच सात पत्थर लेकर मेरे साथ ऊपर पहाड़ों पर आओ, वहीं तुम्हारी बात का उत्तर देंगे। वह आदमी सिर पर पत्थर रखकर साधु के साथ चल पड़ा पर थोड़ी ही दूर चढ़कर हाँफने लगा। साधु ने एक पत्थर फेंक दिया। वजन कुछ हलका हो जाने से वह थोड़ा और चढ़ गया पर फिर थकान के मारे उसका चढ़ना मुश्किल हो गया। एक पत्थर और निकाल देने से वह कुछ और चढ़ सकने योग्य हो गया। इसी तरह करते-करते ऊपर तक पहुँचने में सारे पत्थर फेंकने पड़े। ऊपर जाकर साधु बोला-बेटा जिस तरह पत्थरों के भार के कारण तुम ऊपर नहीं चढ़ सके उसी तरह काम, क्रोध, लोभ, मोह, आदि सांसारिक आकर्षणों के रहते कोई ईश्वर अनुभूति नहीं कर सकता।
(५) सन्त एकनाथ दो घड़ों में गंगाजल लिये रामेश्वरम् जा रहे थे। मार्ग में बीमारी और प्यास से तड़पता एक गधा पड़ा उनने एक नाथ की ओर देखकर कहा-महाराज प्यास के मारे मर रहा हूँ पानी पिला दो एक नाथ ने एक-एक कर दोनों घड़े गंगाजल, पीड़ा से छटपटाते गधे को पिला दिये। गंगाजी पीकर गधा बोला-एक नाथ आओ हम तुम गले मिलें। एक नाथ बोले-गधे दयावश मुझे गंगाजल पिला दिया इसका यह अर्थ नहीं कि तेरे शरीर से अपने शरीर का स्पर्श भी करूँ। गधा हँसा और बोला-एक नाथ में गधा नहीं रामेश्वरम् हूँ। यहाँ पड़ा-पड़ा लोगों की परीक्षा कर रहा था कि लोग मेरे पत्थर के शरीर पर ही पानी चढ़ाते हैं या प्राणिमात्र की चेतना में समाये मुझ चेतना आत्मा के प्रति भी आस्था रखते हैं।
वाल्मीकि डाकू थे प्रतिदिन पाँच व्यक्तियों का वधकर लूटना उनके लिए आवश्यक था। एक दिन महर्षि नारद वहाँ आये उन्होंने कहा-तुम्हारी पाप की कमाई सभी खाते है पर वे पाप के भागीदार भी होंगे या नहीं। वाल्मीकि पूछने गये तो परिवार वालों ने मना कर दिया इससे उन्हें संसार की असारता का पता चल गया। वे सन्त हो गये और रामायण जैसे आस्तिकता के प्रताप ग्रन्थ के प्रणेता बने।
(७) एक बार कबीर से किसी ने पूछा आप स्कूल तक नहीं गये, कलम तक नहीं छुई फिर इस असाधारण बौद्धिक प्रतिभा का कारण क्या है? कबीर बोले-आस्तिकता ईश्वर में विश्वास का, मनुष्य में आत्मिक क्षमता के साथ बौद्धिक प्रतिभा का भी विकास अनिवार्य है।
(२) देववाद और पूजा अर्चा का महत्त्व
प्रश्न ——
प्रश्न १. विभिन्न देवता क्या हैं? उनकी अलंकारिक कल्पना क्यों की गई? २. ‘एक सद् विप्रः बहुधा वदन्ति’ से क्या समझते हो। ४. शंकर जी की गंगा, चन्द्रमा, विष, सर्प, मुण्डमाला, सिंह चर्म, वृषभ, का मर्म समझाइए। ५. दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुईं? ६. पूजा में प्रयुक्त होने वाले ‘पुष्प’ क्या शिक्षा देते हैं। ७. चन्दन एवं प्रसाद का क्या महत्त्व है? ८. सिद्ध कीजिये कि पूजा उपासना का प्रयोजन भावनात्मक परिष्कार है। ९. किस आधार पर मनुष्य देव शक्तियों के अनुकूल बनता है और कैसे?
एक बन्दर और सियार में दोस्ती थी एक दिन वे दोनों जा रहे थे तब रास्ते में एक कब्रिस्तान मिला। बन्दर एक कब्र के पास जाकर खड़ा हो गया और आँख मूँदकर कुछ स्तुति सी करने लगा। उसका ख्याल था इससे सियार प्रभावित होकर उसकी विद्वता का लोहा मानेगा। पर सियार ने समझा इसे बीमारी हो गई है। सो उसने पूछा-क्यों भाई क्या पेट में दर्द हो गया है? बन्दर झुँझला कर बोला-नहीं यार यह मेरे पूर्वजों की समाधि है मैं उनके ज्ञान, बल, पौरुष की महानता का गुणानुवाद गा रहा था ताकि में भी वैसा ही बनूँ।
सियार बोला-महोदय गुण गाने से ही नहीं आचरण में लाने से ही तुम महान बन सकते हो।
यहूदियों का ‘‘प्रायश्चित पर्व’’ आया किसी ने एक अनपढ़ युवक को झुठला दिया कि उस दिन खूब शराब पीनी चाहिये। युवक ने ऐसा ही किया शराब पीकर नशे में धुत्त हो गया। जब नशा उतरा तो देखा दूसरे लोग पूजा जप ध्यान कर रहे हैं। युवक बड़ा दुःखी हुआ। उसे मन्त्र भी याद नहीं था सो वह वर्णमाला के अक्षर ही दोहराने लगा और मन ही मन अपनी भूल की क्षमा माँगते हुए भगवान् से कहने लगा प्रभु इन अक्षरों को जोड़कर तुम्हीं कोई अच्छा सा मन्त्र बना लेना।
धर्म गुरु रबी उस युवक के पास पहुँचे तो युवक ने अपनी भूल स्वीकार करते हुए क्षमा माँगी। रबी ने उसे हृदय से लगाते हुए कहा तात! उपासना तो तुम्हारी ही फलित हुई।
सभी इन्द्रियाँ झगड़ रही थी और अपनी-अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर रही थीं तब आत्मा बोली तुम सब मेरे ही शरीर के अंग हो लड़ने की अपेक्षा परस्पर हित की बात सोचो तो मंगल होगा। शरीर की यह कहानी सुन कर गुरु ने कहा-सभी देवता परमात्मा की ही शक्तियाँ हैं उनके छोटे बड़े के झगड़े में न पड़कर जो उनके आदर्श अपने जीवन में धारण करते हैं उन्हीं का देवाराधन सार्थक होता है।
मूर्ति को अहंकार हो गया लोग कितनी दूर से आ आकर मुझे शीश झुकाते हैं। अभी वह अहंकार में फूल ही रही थी कि आकाश बोला-बावरी मनुष्य तुझे शीश नहीं झुकाते इन्हें तो अपनी श्रद्धा को दूर जाकर प्रणाम करने की आदत है।
सोमनाथ लुटा तब भी शंकर भगवान कुछ न कर सके। फिर भी आप मूर्ति पूजा को महत्त्व देते हैं? एक आदमी ने मदन मोहन मालवीय से प्रश्न किया-मालवीय जी बोले ‘क’ माने कबूतर और ‘ख’ माने खरगोश भी तो नहीं होता फिर भी छोटे बच्चों को यही क्यों पढ़ाया जाता है। यह तो प्रारम्भिक शिक्षण की विधि है अल्प बुद्धि बच्चे इसी से शिक्षा की ओर आकर्षित होते हैं। उस व्यक्ति ने बताया। मालवीय जी बोले-उपासना और ध्यान की उच्चस्तरीय साधना के लिये इसी प्रकार मूर्ति पूजा भी प्रारम्भिक अनिवार्य आवश्यकता है।
हिन्दुओं के देवता विचित्र क्यों होते हैं, एक अँगरेज पादरी लोक मान्य तिलक से पूछ बैठे-तिलक बोले-क्योंकि हर देवता एक शक्ति होता है शक्ति के रहस्यों को अलंकारिक रूप से न प्रस्तुत किया जाता तो लोगों को उनकी उपयोगिता नहीं भयंकरता ही याद रहती।
(३) जीवन का लक्ष्य समझें और उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करें
प्रश्न ——
(१) मनुष्य अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ क्यों है? उसे अधिक सुविधाएँ क्यों दी गई हैं। (२) मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य क्या है। (३) आत्म बोध किसे कहते हैं। (४) यह कब समझा जाना चाहिए कि ईश्वर का प्रकाश चमकने लगा है। (५) समर्पित जीवन से क्या समझते हो। (६) ईश्वर दर्शन किसे कहते हैं? वह किन्हें होता है (७) अधिकांश लोग किस प्रकार के कर्मकाण्डों से आत्म-संतोष किये बैठें? क्या उनसे कुछ लाभ है। (८) पूजा उपासना का सच्चा मतलब क्या है। (९) ईश्वर की प्रसन्नता के कौन-कौन केन्द्र बिन्दु हैं। (१०) भगवान की इच्छापूर्ति का साहस कैसे किया जाता है?
(१) एक मनुष्य को पढ़ लिख कर अपनी शिक्षा का घमंड हो गया। वह घर वालों पर रौब जमाया करता मैं बड़ा ज्ञानी हूँ। नन्ही सी बालिका एक नन्हा सा कीड़ा लेकर आई बोली-पिताजी इसका क्या नाम है? उन सज्जन को उस मकोड़े के नाम का ही नहीं पता था। उसे अपने शिक्षा के अहंकार पर बड़ी ग्लानि हुई।
(२) एक डॉक्टर धर्म, कर्म को नहीं मानता था पर स्त्री बड़ी साधना शील और धर्म परायण थी। डॉक्टर कहता मैं हजारों लोगों को बचा लेता हूँ भगवान क्यों आकर नहीं बचा लेता। स्त्री तब तो कुछ न बोली पर कुछ दिन पीछे जब डॉक्टर के बाल सफेद हुए, दाँत टूटे नये दाँत, नई मूँछें कब तक निकलेंगी? डॉक्टर साहब कुछ उत्तर न दे सके-जो ज्ञान जीवन का अर्थ न समझा सके निरर्थक है।
(३) वासना के उपक्रम में पड़कर महाराज ययाति असमय ही वृद्ध हो गये उनकी इन्द्रियाँ शिथिल पड़ गई पर मन में वासना का भूत नहीं उतरा अतएव वे अपने पुत्रों से यौवन की याचना करने लगे। तीन पुत्रों ने तो इनकार कर दिया पर चौथे पुत्र ने कहा-पिताजी मनुष्य संसार में इन्द्रिय सुख व भोगों के लिए नहीं आत्मोत्थान के लिए आया है आप मेरा यौवन लेकर अपनी जरा मुझे सहर्ष दे दें। मैं थोड़े से सुख लेकर क्या करूँगा मुझे जीवन लक्ष्य अभीष्ट है सो उसके लिये वृद्ध शरीर से भी काम चल जायेगा। पुत्र की इस अनासक्ति ने केवल अन्य भाइयों की ही नहीं वरन् ययाति की भी आँखें खोल दीं।
(४) मनुष्य बन गया तो उसे विदा करते हुए विधाता ने कहा-तात जाओ और संसार के प्राणियों का हित करते हुए स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग करो पर ऐसा कुछ न करना जिससे तुम्हें मृत्यु के समय पछतावा हो। आदमी ने विनय कि भगवन् आप एक कृपा और करना मुझे मरने से पहले चेतावनी अवश्य दे देना। ताकि यदि मैं मार्ग भ्रष्ट हो रहा होऊँ तो सँभल जाऊँ? तथास्तु कह कर विधि ने मनुष्य को धरती पर भेज दिया। पर यहाँ आकर मनुष्य इन्द्रिय भोगों में पड़ कर अपने लक्ष्य को भूल गया। जैसे-तैसे आयु समाप्त हुई कर्मों के अनुसार यमदूत उसे नरक ले जाने लगे तो उसने विधाता से शिकायत की आपने मुझे मृत्यु के पूर्व चेतावनी क्यों नहीं दी। विधाता हँसे और बोले (१) तेरे हाथ काँपे , (२) दाँत टूट गये, (३) आँखों से कम दिखने लगा, (४) बाल पक गये चार संकेत देने पर भी तू न सम्भला तो इसमें मेरा क्या दोष?
(५) दो पड़ोसी -एक ईमानदार और ईश्वर भक्त दूसरा छल कपट से धन कमाता और सांसारिक सुख भोगता। पहला आदमी यह देखकर दिन भर ईर्ष्या से कुढ़ता रहता। एक दिन वह भगवान् से जाकर बोला-प्रभु आपसे जो कुछ माँगा धन, सम्पत्ति, स्त्री, पुत्र सब कुछ मिला फिर भी सुखी नहीं हो पाया सो क्यों? भगवान् हँसे और बोले इसलिए कि तू भी वही चाहता है जो कोई भी सांसारिक सुखों में आसक्त चाहता है। अब तू आत्म सुख, आत्म-शान्ति की कामना कर उसी से सुख मिलेगा। धन सम्पत्ति से नहीं।
(६) मीठे फल खाने की इच्छा से दो मित्र एक बगीचे में गये। माली ने कहा इस बगीचे के मालिक की आज्ञानुसार यहाँ एक ही दिन ठहर सकते हो सो शाम तक जितने खा सको फल खा लो। दोनों अपनी रुचि के आम खाने चल दिये। एक तो उछल कर पेड़ों पर चढ़ा और पेट भर फल खा लिये दूसरा देखता रहा पौधों के लिए कैसी मिट्टी चाहिए। थाले कैसे बनाये जाते हैं, पानी कैसे लगाया जाता है। शाम तक उसने एक नया बाग लगाने की सारी बातें जान लीं अलबत्ता फल नहीं खा पाया पर घर जाकर उसने दूसरा बाग लगा लिया-इतनी कथा कहने के बाद दरवेश ने अपने शागिर्दों से कहा-यह संसार भी ऐसा ही है मनुष्य एक निश्चित अवधि के लिये आता है जो सांसारिक आकर्षणों में पड़े हैं वे तो पहले युवक की भाँति है, समझदार वो हैं जो दूसरे की तरह परिस्थितियों का अध्ययन कर जीवन का सच्च लक्ष्य प्राप्त करते हैं।
(७) पत्थर गुस्से से बोला-फूल जानता नहीं तुझे अभी पीस कर रख दूँगा।
फूल मुस्कराया और बोला-तब तो आप बड़े उपकारी हैं मुझे कुचल कर आप मेरी सुगन्ध और भी दूर-दूर तक फैलाने में ही सहायक होंगे। पत्थर अपनी अकड़ पर बड़ा लज्जित हुआ और अनुभव किया कि फूल का जीवन ही सच्चा और सार्थक है।
(८) बूँद सागर में घुलने लगी तो उसे अपना अस्तित्व समाप्त होने का बड़ा दुःख हुआ। सागर ने समझाया-बेटी तुम्हारी जैसी असंख्य बूँदों का ही तो मैं सम्मिलित रूप हूँ यहाँ तो तुम लघुतम में विराटतम की अनुभूति करोगी। बूँद को यह सब अच्छा नहीं लगा बूँद फिर जमीन में नदी में होती हुई सागर पहुँची तो बड़ी पछतायी और समझ गई कि अपने उद्गम में लीन होना ही सच्ची शान्ति सच्चा जीवन लक्ष्य है।
(४) स्वर्ग और मुक्ति का आनन्द इसी जीवन में सम्भव है
प्रश्न ——
(१) स्वर्ग क्या है? उसका वास्तविक अर्थ बताओ। (२) मुक्ति क्या है? वह कितने प्रकार की होती है? (३) क्या स्वर्ग एवं नरक की मान्यतायें सही है? (४) सूक्ष्म व स्थूल शरीर में क्या भेद है। (५) क्या मुक्ति आत्मा नाश का ही दूसरा नाम नहीं है? (६) चिरस्थाई आनन्द किसे कहते हैं? वह कैसे मिलता है। (७) आत्मा का अवतरण धरती पर किस कारण हुआ है? (८) आत्म शांति एवं सन्तोष किन्हें मिलता है? (९) नरक क्या है? क्या वह इसी लोक में नहीं है? (१०) ‘भवबंधन’ की मान्यता कहाँ तक सही है? (११) जन्म-मरण क्या है? (१२) सबसे बड़ी दुर्बलता कौन-सी है?
कथाएँ ——
(१) साधु कह रहे थे यह संसार मिथ्या है, स्त्री, पुत्री छोड़ कर आत्म कल्याण की बात सोचनी चाहिए। एक बालक ने पूछा-महात्मन् मैं कौन हूँ-साधु बोले-आत्मा अच्छा तो अब यह बताइये लड़के ने पूछा-मेरी माँ मेरी सेवा सहायता करती है, मेरे हित की बात सोचती है क्या वह आत्म-कल्याण न हुआ।
साधु को कोई उत्तर देते न बना। उन्होंने समझा संसार खराब नहीं अपना दृष्टिकोण खराब होता है। उसे ठीक कर लिया जाये तो समाज में रहकर ही मुक्ति का आनन्द लिया जा सकता है।
(२) मनुष्यों के व्यवहार में क्रुद्ध होकर देवताओं ने दुर्भिक्ष को भेजा। दुर्भिक्ष धरती में आकर एक स्थान पर छुपकर देखने लगा यहाँ के लोग आखिर किस तरह खराब हैं। तभी वहाँ एक परिवार आकर रुका। खाने के लिये उन्होंने रोटियाँ निकाली। रोटी एक ही थी। पत्नी ने रोटी पति को देते हुए कहा-आप खा लीजिए मुझे तो भूख नहीं है। पति ने पुत्री को देते हुए कहा-बेटी तू खा ले मैंने तो पानी पीकर पेट भर लिया। तभी वहाँ एक अपंग दिखाई दिया लड़की ने रोटी उसे देते हुए कहा-भाई तुम बहुत भूखे दिखाई देते हो लो रोटी खा लो। दुर्भिक्ष यह देखकर चुपचाप लौटकर देवताओं के पास जाकर बोला आप लोगों ने मुझे भूल से स्वर्ग भेज दिया था। देवता कहने जा रहे थे कि वही मृत्युलोक है पर तभी विधाता बोल पड़े-सचमुच तात! जहाँ लोग प्रेम पूर्वक रहें स्वर्ग वहीं रहता है।
(३) एक सम्पन्न व्यक्ति बड़ा दुःखी रहता था पर उसे अपने दुःख का कोई कारण समझ में न आ रहा था। एक रात एक संत ग्रामवासियों में बैठे बात-चीत कर रहे थे। पास ही दीपक जल रहा था, आकाश में चन्द्रमा खिला हुआ था। उस व्यक्ति ने प्रश्न किया-महाराज दीपक के नीचे अँधेरा और चन्द्रमा के कालिख क्यों है? संत ने हँसकर कहा-वत्स अँधेरा पक्ष तो दुनियाँ की हर वस्तु में है क्या ही अच्छा होता यदि तुम दीपक और चन्द्रमा में कालिमा और अन्धकार न देखकर प्रकाश देखते। मनुष्य अपने दुःख का कारण समझ गया उस दिन से वह हर वस्तु का उजला पक्ष देखने लगा।
(४) पं० जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिन पर आयोजित एक बाल सभा में एक छोटी सी बच्ची ने पूछा-आपका वजन सबसे ज्यादा कब था और सबसे कम कब था। जवाहरलाल जी ने उत्तर दिया। सबसे अधिक तब जब में जेल में था और कम तब जिस दिन में पैदा हुआ था। लड़की ने आश्चर्य से पूछा-अरे जेल में तो वजन कम होना चाहिये। पंडित जी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा-उस समय मेरा वजन देश-सेवा में कष्ट सहन करने की खुशी में बढ़ गया था।
(५) संत अनाम एक गाँव से जा रहा था। एक स्त्री और पति में झगड़ा हो रहा था। उन्होंने झगड़े के कारण का पता लगाया तो मालूम हुआ पति देव काम नहीं करते वैराग्य की आड़ लेकर स्वर्ग के चक्कर में पड़े हैं। संत अनाम बोले जिसको इस जीवन में स्वर्ग न मिला वह पर-लोक में क्या स्वर्ग प्राप्त होगा।
(६) विधाता ने घोषणा कर दी-एक सप्ताह के लिये कर्मों का प्रतिबन्ध नहीं रहेगा जो भी चाहे स्वर्ग आ सकता है चित्रगुप्त छुट्टी पर चले गये हैं। अब क्या था स्वर्ग के इच्छुक लाखों व्यक्ति स्वर्गलोक की ओर दौड़ पड़े। एक व्यक्ति सिर पर लकड़ियाँ लिये घर जा रहा था उसे ऐसी कोई आतुरता न देखकर विधाता विमान से नीचे उतरे और उससे पूछा क्यों भाई-तुमने स्वर्ग के समाचार नहीं सुने क्या? सुने हैं महाराज! वृद्ध ने कहा-पर मुझे तो अपने हँसते हुए बच्चों, प्यार देती हुई पत्नी, मिलकर काम करते भाइयों और परस्पर सहयोग और मैत्री का व्यवहार करने वाले पड़ोसियों में ही स्वर्ग दिखाई देता है। इस स्वर्ग को छोड़कर कहाँ आकाश में मारा-मारा फिरूँ?
(७) अन्धे भिखारी के हाथ में किसी ने पाँच का नोट रख दिया, भिखारी ने समझा किसी ने मजाक में कागज थमा दिया है सो उसने नोट वहीं फेंक दिया। पास ही खड़े अन्य व्यक्ति ने नोट वापस देते हुए कहा-श्रीमान् यह कागज नहीं नोट है। ज्ञान चक्षुओं के अभाव में अन्धे भिखारी के समान ही लोग इस संसार में भ्रमपूर्ण स्थिति में पड़े रहते हैं जबकि स्वर्ग-सूख ज्ञान रूप में हमारे चारों ओर बिखरा पड़ा है।
(८) एक अमीर तमाम सम्पत्ति इकट्ठा कर इस प्रयत्न में था कि वह सारी सम्पत्ति कब्र में गाड़ लेगा और स्वर्ग में आनन्द से रहेगा महापुरुष ईसा ने कहा-मूर्ख अपनी सम्पत्ति अपने साधन इसी दुनियाँ में दीन और दुखियों के लिये खर्च कर देख तुझे यही स्वर्ग मिलता है या नहीं।
(५) कर्मफल आज नहीं तो कल भोगना ही पड़ेगा
प्रश्न ——
(१) सज्जनता की परीक्षा कैसे की जाती है? (२) कर्मफल के परिणाम में विलम्ब क्यों होता है? (३) मानवीय अन्तःकरण की विकसित चेतना का अनुभव कैसे किया जाता है? (४) मनुष्य का आत्मिक स्तर विकसित होने की कौन सी दो कसौटियाँ है? (५) दुष्कर्म करने से हानि अपार है लाभ कुछ भी नहीं सिद्ध करें। (६) कानून में ऐसी कौन सी कमी है कि सही अपराधी पकड़ में ही नहीं आते? (७) उन्नतिशील बनने का रहस्य क्या है? (८) अनैतिक व्यक्ति को लोग प्यार क्यों नहीं करते? (९) सामाजिक तिरस्कार एवं असहयोग भी क्षण के लिये भी शान्ति का अनुभव क्यों नहीं करता है।
कथाएँ ——
(१) किसी ओझा ने एक बाँझ स्त्री को बहका दिया यदि किसी पड़ोसी के घर आग लगा दे तो तू शीघ्र सन्तानवती हो सकती है। उसके पति ने समझाया भी मुझे ऐसे पुत्र नहीं चाहिए जो दूसरों को यातना देकर मिलें पर मूर्ख स्त्री मानी नहीं एक घर को आग लगा दी। उस मकान के ५ जानवर आग में जल मरे।
दैव योग से उसे पाँच पुत्र हुए। स्त्री बड़ी खुश हुई पर जैसे-जैसे वे बड़े हुए और विवाह के दिन पास आते गये एक-एक कर सबकी मृत्यु हो गयी स्त्री निःसंतान की निःसंतान रह गई।
पति ने कहा-देख लिया कर्मफल इसे कहते हैं-यह पाँचों पुत्र वह पाँच जीव थे जिन्हें तूने आग लगाकर जला दिया था।
(२) भगवान् कृष्ण एक पैर पर दूसरा पैर चढ़ाये हुए बहेलिये ने उसे किसी हिरण की आँख समझ कर ‘बाण’ चला दिया पर पास जाकर देखा तो भगवान् कृष्ण थे, उनके प्राण निकलते देखकर बहेलिया अपने दुष्कर्म के लिये रोने लगा-भगवान् कृष्ण ने समझाया-तात् दुःख मत करो-भगवान् हुआ तो क्या, कर्मफल से मैं भी नहीं बच सकता। पिछले जन्म में मैं राम था तुम थे बलि, तुम्हें मैंने छिपकर मारा था उसी कर्म का फल मुझे अब मिल रहा है। कोई भी कर्मफल से कभी बच नहीं सकता।
(३) रावण की मृत्यु देह में छेद ही छेद देखकर हनुमान जी ने लक्ष्मण से पूछा-तात रावण के शरीर में यह असंख्य छिद्र कहाँ से आ गये। लक्ष्मण कहने जा रहे थे कि यह सब भगवान् राम के बाणों का प्रताप है। तब तक राम स्वयं बोल पड़े-पवनसुत यह असंख्य छिद्र रावण की असंख्य बुराइयाँ है। रावण उन्हें स्वयं नहीं निकाल सकता तो ये स्वतः निकल भागी निकलते-निकलते रावण को भी नष्ट कर गईं।
(४) नहुष ने अपने पुरुषार्थ से इन्द्र पद प्राप्त कर लिया पर इससे उनका अहंकार इतना बढ़ गया कि इन्द्र की धर्मपत्नी शची को ही अपने रानी बनाने और उनका सतीत्व नष्ट करने की बात सोचने लगे। काम वासना की आग ने उनकी सारी बुद्धि भ्रष्ट कर दी उन्होंने सप्तऋषियों को ही पालकी में जोत दिया और शची के महल की ओर चल पड़े। ऋषियों को पालकी उठाने का अभ्यास था नहीं-जबकि कामातुर नहुष चिल्ला रहा था और तेज चलो, और तेज चलो।
(५) महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या का सौन्दर्य देख कर इन्द्र और चन्द्रमा दोनों का काम विकार जाग उठा। महर्षि प्रतिदिन मुर्गे की आवाज सुनकर स्नान करने जाते थे उस दिन इन दोनों ने छल किया। स्वयं मुर्गे की बाँग दे दी। और जब गौतम आश्रम से चले गये तो अहिल्या का सतीत्व नष्ट किया।
गौतम यह बात जान गये। उन्होंने इन्द्र और चन्द्रमा दोनों को शाप दे दिया। कामुकता का ही फल है कि देवता होकर इन्द्र और चन्द्रमा दोनों आज तक कलंकित हैं।
(६) कल्याण पाद की तनिक सी भूल पर ऋषि पुत्र प्रचेता ने शाप दे दिया ‘‘तू राक्षस हो जा’’ प्रचेता में साधना की शक्ति तो थी ही। वाणी सिद्ध हुई।
(७) वसु अपने पत्नियों के साथ धरती पर विचरण के लिये आये। महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में नंदी गाय बँधी थी उसे देखकर छोटे बसु की पत्नी का मन उसे लेने का हो गया उसके लिये वसु को चोरी करनी पड़ी। उसी का दण्ड था कि उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा। भीष्म पितामह वह वसु ही थे।
(८) एक बुढ़िया ने बड़े धर्म कर्म किये। अन्त समय विष्णु के दूत उसे लेने आये बुढ़िया उन्हें देखकर डर गई और बोली-देखो मुझे अभी कई आवश्यक काम करने हैं मुझे एक वर्ष के लिये छोड़ जाओ। विष्णु के दूत ‘‘तथास्तु’’ कह कर लौट गये। बुढ़िया ने एक वर्ष धन कमाने में लगाया अनुचित लोभ के कारण उसने नीति अनीति कुछ भी न देखी एक वर्ष पीछे यमदूत वहाँ पहुँचे तो बुढ़िया बोली-पहले तो विष्णु दूत आये थे अब तुम लोग कैसे आ गये? इस पर उन्होंने कहा-बुढ़िया पहले तूने अच्छे कर्म किये थे सो विष्णु दूत भेजे गये। भगवान् के यहाँ तो कर्मों का हिसाब है एक वर्ष में तूने पाप ही पाप किये हैं। सो उठ और नरक की तैयारी कर।
(६) दुष्कर्मों के दंड से प्रायश्चित हो छुड़ा सकेगा
प्रश्न ——
१-कौन सी वस्तु मनुष्य को महत्त्वपूर्ण काम नहीं करने देती? २-पाप और आन्तरिक दुर्बलताएँ किस तरह पतित करती हैं? ३-कष्ट साध्य रोगों का कारण क्या है? ४-दुष्कर्म और कुविचार किस प्रकार प्रभाव डालते हैं? ५-पाप से छुटकारा कैसे मिल सकता है? ६-आत्मा को बल किस प्रकार मिलता है? ७-प्रायश्चित के नाम फैली विकृतियाँ बताओ? ८-आत्म शोधन का शुद्ध स्वरूप क्या है? ९-क्या सस्ते कर्मकाण्ड प्रायश्चित की आवश्यकता पूरी करते हैं? १०-आत्म की ईश्वरीय व्यवस्था की जानकारी दो।
कथाएँ ——
(१) वृद्धावस्था के कारण एक बूढ़े के हाथ पाँव काँपा करते। इससे खाने को दी गई चीजें बिखर जाती, फर्श खराब हो जाता, बर्तन टूट जाते। उसका लड़का और बहू दोनों बड़े नाराज होते! आखिर उनने बूढ़े के लिये घर के बाहर लकड़ी के बर्तनों में खाने का प्रबन्ध कर दिया। एक दिन उनका लड़का लकड़ी का टुकड़ा काट छाँट रहा था। उसके माता-पिता उसके पास आये और बोले-यह क्या कर रहा है? लड़का बोला-पिताजी आप लोग बूढ़े हो जायेंगे तब बाहर खाना देना पड़ेगा उसी के लिये लकड़ी के बर्तन बना रहा हूँ। यह सुनकर दोनों बहुत शर्मिन्दा हुए और अपने बूढ़े पिता के साथ दुर्व्यवहार करना बन्द कर दिया।
(२) अब्राहम लिंकन को बचपन में महापुरुषों की जीवनियाँ पढ़ने का शौक था। गरीबी के कारण वे पुस्तकें खरीद नहीं पाते थे माँग कर पढ़ते थे एक दिन वह पड़ोस के एक सम्भ्रान्त व्यक्ति से एक पुस्तक माँगने गये। पुस्तक कीमती थी। उन्होंने दे तो दी पर यह स्पष्ट कह दिया कि पुस्तक खराब हुई तो उसकी कीमत वसूल कर लूँगा। लिंकन पुस्तक ले आये रात बहुत देर तक पढ़ते रहे। हवा के शीतल झोंकों के कारण नींद आ गई पुस्तक जमीन में गिर गई। रात में मेह आया उसमें पुस्तक खराब हो गई। लिंकन बहुत दुःखी हुए। कीमत चुकाने को पैसे थे नहीं अतएव उन्होंने उन सज्जन के खेतों पर तीन दिन तक धान काट कर पुस्तक का मूल्य चुकाया।
(३) बहादुर शाह जफर रंगून में निर्वासित जीवन जी रहे थे। अँगरेज उनके साथ बड़ा बुरा व्यवहार कर रहे थे। एक दिन उनके एक सम्बन्धी ने सुझाया आपको इतनी तंगी में रखा जा रहा है आप विरोध क्यों नहीं करते-जफर हँसे और बोले-अभी तो मुझे और कठोर दण्ड मिलना चाहिए ताकि देशवासियों की रक्षा के कर्तव्य से गिर जाने का पाई-पाई दण्ड इसी जीवन में भुगत लूँ।
(४) ‘‘माँ यह कौवा काला क्यों है’’ एक बच्चे ने छत पर बैठे कौवे की ओर इशारा करके अपनी माँ से पूछा-माँ बोली-बेटा जो भक्ष्य-अभक्ष्य का ध्यान दिये बिना चाहे जो खा जाये, चाहे जिसकी छीन कर खा जाये, कोई न हो तो चोरी कर ले इन सब कारनामों को तुम क्या कहोगे? ‘‘काली करतूत’’ बच्चे ने कहा। बस तो बेटा इसकी काली करतूतों के कारण ही भगवान ने इसे काला बनाया।
(५) बुद्ध धर्म की नास्तिकतावादी विचार धारा का खंडन करने के लिये बुद्ध धर्म का ज्ञान आवश्यक था इसलिये कुमारिल भट्ट ने तक्षशिला में प्रवेश तो ले लिया पर वहाँ के नियम के अनुसार उन्हें पहले बुद्ध धर्म में निष्ठा की सौगन्ध लेनी पड़ी। वहाँ का अध्ययन समाप्त करने के बाद कुमारिल भट्ट ने बुद्ध धर्म को नया जीवन देने में सफल भी रहे पर झूठ के प्रति उनकी आत्मा में अन्तर्द्वन्द्व उठ खड़ा हुआ यद्यपि उन्होंने सत्य की प्रतिष्ठा के लिये झूठ बोला था तथापि झूठ लोगों के जीवन का ध्येय न बन जाये इसके लिये उन्होंने अग्नि में जलकर अपने पाप का प्रायश्चित किया।
(६) पाण्डवों ने एक नियम बना लिया था कि जब एक भाई द्रौपदी के साथ सहवास कर रहा होगा तब दूसरा भाई उधर नहीं जायेगा यदि गया तो उसे एक वर्ष का अज्ञातवास करना पड़ेगा। एक बार हस्तिनापुर में शेर घुस आया। उसे मारने के लिये अस्त्रों की आवश्यकता पड़ी। अस्त्र वहाँ रखे थे जहाँ धर्मराज युधिष्ठिर द्रौपदी के साथ एकान्तवास में थे। इधर गायों की रक्षा का प्रश्न उधर मर्यादा की बात आखिर अर्जुन अन्दर चले गये और अस्त्र उठा लाये। शेर को मारकर वे अज्ञातवास के लिये चल पड़े। घर वालों ने बहुतेरा समझाया कि यह तो आपत्ति धर्म की बात थी आपको जंगल नहीं जाना चाहिए। इस पर अर्जुन ने कहा भूल कैसी भी क्यों न हो उसका दण्ड भुगतना ही चाहिये कहकर वे जंगल चले गये।
(७) श्रावस्ती ने नागर सेठ ने तथागत से प्रश्न किया-भगवान् बिना तप किये क्या भगवान् नहीं मिल सकता। तथागत चुप रहे एक दिन वह सेठ के घर आमन्त्रित हुए। सेठ ने बढ़िया खीर बनाई। भोजन के लिये उपस्थित तथागत ने अपना कमण्डल आगे कर दिया बोले खीर इसी में डाल दो। ‘‘लेकिन’’ इसमें गोबर है-सेठ बोला-इससे खीर खराब नहीं हो जायेगी? तथागत हँसे बोले वत्स! अपने को शुद्ध न करो तो ईश्वर प्रकाश मनुष्य में आकर भी उसे आनन्द नहीं दे सकता।
(७) हम कामना ग्रस्त न हों प्रगतिशील बनें
प्रश्न ——
१. प्रगति किसे कहते हैं? २. प्रगति का मूल तथ्य क्या है? ३. सच्ची प्रगति क्या है? ४. भारत विदेशी शासकों से क्यों परास्त हुआ। ५. कामनाग्रस्त व्यक्ति अशक्त क्यों रहते हैं? ६. एषणाएँ कितनी प्रकार की होती हैं? ये अवांछनीय एवं खतरनाक क्यों कही जाती हैं। ७. वाहवाही के लोभी किस प्रकार के ढोंग रचते हैं? ८. बुद्धि व्यभिचारिणी कैसे हो जाती है? ९. आनन्द किस में है? १०. यशस्वी बनने का सच्चा उपाय कौन सा है? ११. समर्थता कैसे प्राप्त होती है?
कथाएँ ——
(१) भोज ने सारे राज्य को दावत दी। चारों ओर से नर-नारी आ-आकर दावत का आनन्द लेने लगे। कोई रह तो नहीं गया यह देखने के लिये भोज वेष बदल कर राज पथ पर जा रहे थे तभी सामने से आता हुआ एक वृद्ध लकड़हारा दिखाई दिया। भोज ने पूछा-भाई भोज ने दावत दी है तुम क्यों नहीं गये। बूढ़े लकड़हारे ने उत्तर दिया-मुफ्त का खाना खाकर मैं अपने बच्चों को निकम्मा नहीं बनाना चाहता। भोज यह सुनकर अवाक् रह गये।
(२) पुरुष अपनी पत्नी को पतिव्रत की शिक्षा दे रहा था-इस तरह वह अपने कर्तव्य से हटना चाहता था। स्त्री बोली-जाओ देश पर दुश्मन चढ़ते आ रहे हैं। पहले उन्हें मारकर कर्तव्य पालन करो फिर मुझसे पूछना पतिव्रत किसे कहते हैं।
(३) सरदार भगत सिंह ने अपने देश को देश सेवा में सौंप दिया। अपने भरण पोषण के लिए उन्होंने अपने परिवार का आश्रय भी त्याग किया। उनको इस त्यागवृत्ति को देखकर काँग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य श्री शार्दूल सिंह ने उन्हें १५०) लेने से मना करते हुए कहा-जीवन निर्वाह के लिये ३०) काफी हैं मुझे कमाई नहीं देश की सेवा करना है।
(४) धीमर की कन्या योजनगंधा को देखकर महाराज शान्तनु उस पर आसक्त हो गये उन्होंने निषादराज से कन्या उन्हें विवाह देने का आग्रह किया। निषाद ने कहा यदि आप वचन दें कि इस कन्या के गर्भ से उत्पन्न बालक की राज्य का उत्तराधिकारी होगा तो मुझे विवाह करने में कोई आपत्ति न होगी। शान्तनु यह सुनकर बड़े असमंजस में पड़ गये पर जैसे ही उनके पुत्र भीष्म ने यह सुना उन्होंने राज गद्दी का मोह त्याग कर प्रतिज्ञा की वे आजीवन अविवाहित रहेंगे। इस तरह पुत्र की प्रगति शीलता से एक कठिन समस्या सुलझ गई और समाज को भीष्म की शक्तियों का लाभ जन उत्थान के लिये मिल गया।
(५) स्वामी रामतीर्थ के भाषणों से अमेरिका इतना प्रभावित हुआ कि जिन्हें एक ही साथ १२ यूनिवर्सिटियों ने डाक्ट्रेट की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव को अमान्य करते हुए स्वामी जी ने कहा-सेवा का मूल्य आत्मानुभूति, आत्म सुख है उपाधि लेकर मैं अपना अहंकार बढ़ाना नहीं चाहता। मेरे साथ लगी स्वामी जी और एम० ए० यह दो उपाधियों ही बहुत हैं।
(६) स्वामी रामतीर्थ तब पढ़ते थे। अध्यापक ने एक लकीर खींच कर कहा इसे बिना काटे छोटा कर दो। सब लड़के हैरान थे तब रामतीर्थ ने जाकर बगल में उससे बड़ी लकीर खींचकर कहा लो पहली लकीर छोटी हो गई। असामान्य कार्य करने से मनुष्य बड़ा बनता है।
(७) महाराज संजय ने पुत्र प्राप्ति हेतु तप किया। तप से प्रसन्न हुए नारद जी ने पूछा-तात आपको कैसा पुत्र चाहिए। संजय बोले-स्वर्णबिष्टी भगवन् जिसका मलमूत्र भी सोना हो, थूक, लार निकले वह भी सोना हो। नारद संजय के इस लोभ पर मुस्कराये और एवमस्तु कहकर चले गये।
कुछ दिन पीछे संजय को सचमुच ऐसा ही पुत्र पैदा हुआ। इस विचित्र बालक की खबर दूर-दूर तक फैली। कुछ डाकुओं ने यह बात सुनी तो वे बच्चे का अपहरण कर ले गये। स्वर्ग का बटवारा कैसे हो इस बात पर डाकुओं में परस्पर कहा सुनी हो गई। तय हुआ कि उसे मारकर एक बार में ही सारा सोना निकालकर बाँट लिया जाये। लड़का काट डाला गया, पेट में सोना नहीं निकला इस पर डाकू हैरान थे तभी राजा के सिपाही वहाँ पहुँच गए और उन्होंने डाकुओं को मार डाला। सारी खबर महाराज संजय ने सुनी तो उनके मुँह से सहसा यही निकला-पाप और सर्वनाश की जड़ लोभ ही है।
(८) पारसी धर्मगुरु रबि मेर्हर के तीनों पुत्र बीमार होकर मर गए। शाम को मेर्हर घर लौटे तो पत्नी ने पानी दिया और हाथ मुँह धुलाकर खाना परोसा। भोजन करते समय मेर्हर ने पूछा-भद्रे बच्चे नहीं दिखाई दे रहे? इस पर पत्नी ने कहा-स्वामी कल हम लोग जिस स्त्री से जेवर लाए थे वह आज माँगने आई थी? रवि मेर्हर बोले-दे क्यों नहीं दिए पराई वस्तु की कामना क्यों की जाए? ठीक है कहकर वह उन्हें शयनागार में ले गई जहाँ तीनों बच्चों के शव पड़े थे। मेर्हर फूट-फूट कर रोने लगे तो पत्नी ने कहा-स्वामी आप अभी-अभी तो कह रहे थे कोई अपनी वस्तु लेते तो उसका दुःख नहीं करना चाहिए। पुत्र भगवान् के थे उसने ले लिए तो दुःख क्यों कर रहे हैं। मेर्हर का चित्त यह सुनकर हलका हो गया।
(९) कौशाम्बी का विश्वकर्मा चम्पक अपनी ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध था उसकी पत्नी हव्या भी बड़ी ईमानदारी थी। एक बार कौशाम्बी में अकाल पड़ा। एक दिन चम्पक अपनी पत्नी के साथ कहीं जा रहा था। रास्ते में एक सोने का कंगन पड़ा दीखा। चम्पक ने सोचा कहीं हव्या को उसका लोभ न आ जाए, वह उस पर धूल डालकर उसे ढकने लगा। हव्या पति का अभिप्राय समझ गई उसने कहा-स्वामी नाहक धूल पर धूल डाल रहे हैं। उनकी यह ईमानदारी देखकर इन्द्र का हृदय द्रवित हो गया उन्हें वृष्टि के लिए विवश होना पड़ा।
(१०) भगवान् बुद्ध उपदेश देकर उठे तो एक परिव्राजक ने पूछा-भगवन् आपके उपदेशों पर थोड़े लोग चलते है फिर भी आप कभी निराश क्यों नहीं होते? तथागत ने उत्तर दिया-सफलता और यश की कामना करने वाला कभी महान कार्य नहीं कर सकता। महान कार्य सदैव निष्काम भाव से किए जाते हैं।
(८) भाग्यवाद हमें नपुंसक और निर्जीव बनाता है।
प्रश्न ——
(१) भाग्यवाद और पुरुषार्थ में जिस प्रकार अन्तर है उसी तरह किन्हीं और दो भिन्न उदाहरणों को बतायें? (२) पुरुषार्थ के असफल होने पर क्या हानि है तथा तब भाग्यवाद से क्या लाभ है? (३) भाग्यवाद किस प्रकार व्यक्ति को अकर्मण्य बना देता है? (४) भाग्यवाद का प्रचारक कौन था तथा उसका कारण क्या था? (५) विदेशी शासक भारतीय जनता पर किस प्रकार शासन किया करते थे? (६) भाग्यवाद से हमें विदेशी शासकों के राज्य के समय क्या हानियाँ उठानी पड़ी? (७) यह आप कैसे कह सकते हैं कि भाग्यवाद ने हमें नपुंसक बना दिया है? (८) विदेशी शासकों के जाने के बाद भी २३ वर्ष बीत जाने पर भी हम उन्नति क्यों नहीं कर सके? (९) भाग्यवाद उपयोगी भी है। कब? कैसे? (१०) कर्म भाग्य कब बनता है?
कथाएँ ——
(१) एक युवक को नौकरी के लिए इण्टरव्यू देने २५ तारीख को बुलाया गया। युवक २१ तारीख को चलने को हुआ तो घर वालों ने कहा आज शनिवार है अच्छा दिन नहीं कल जाना, दूसरे दिन पंडित जी बोले रवि, शुक्र पश्चिम की यात्रा वर्जित है सो वह दिन भी गया। तेईस तारीख को योगिनी बाएँ पड़ेगी’’ कहकर ज्योतिषी ने चक्कर में डाल दिया। चौबीस को कपड़े पहन कर वह चलने को हुआ कि एक बच्ची ने छींक दिया, यद्यपि लड़की को जुकाम था पर घर वालों ने नहीं जाने दिया। पच्चीस को घर से बाहर निकलते ही बिल्ली रास्ता काट गई। अपशकुन टालने के लिए जब तक लड़के को रोक कर रखा गया रेलगाड़ी निकल गई। युवक २६ को ऑफिस पहुँचा तो दरवाजे पर लिखा पाया- नो वैकेन्सी ‘‘अब कोई खाली स्थान नहीं।’’
(२) स्वामी सत्यदेव परिव्राजक ने सिमेटल शहर घूमते हुए एक आठ वर्षीय बच्चे को अख़बार बेचते देखा। स्वामी जी ने पूछा-तुम तो किसी सम्पन्न घर के लगते हो अख़बार क्यों बेचते हो? लड़के ने उत्तर दिया-हाँ श्रीमान् जी मेरे घर वाले सचमुच सम्पन्न हैं पर हम किसी के आश्रित नहीं रहना चाहते अपना भाग्य अपनी मुट्ठी में रखते हैं। स्वामी जी के मुँह से इतना ही निकला-तभी तो तुम सब इतने सम्पन्न हो।
(३) नारद जी पृथ्वी पर लोगों की कुशल देखने आये। वे जिससे भी मिले सबने दुःखों का ही रोना रोया। कोई अन्न के लिए कोई वस्त्र के लिए कोई स्त्री, पुत्र और मकान के लिए। एक स्थान पर साधुओं की जमात लगी थी उन्होंने नारद जी को फटकारा भगवान् हमारे लिये मिष्ठान्न भोग क्यों नहीं देते? नारद जी हैरान होकर लौटे और भगवान् से कहा-भगवन् आपने इन लोगों को अभावग्रस्त क्यों बनाया। भगवान् ने हँसकर कहा नारद! मैं कर्म करने वाले को ही कुछ दे सकता हूँ जो दीनता और दरिद्रता से खुद नहीं लड़ सकता उसका तो मैं भी भला नहीं कर सकता।
(४) पाँच अपंग खड़े भगवान् को दोष दे रहे थे अन्धा कह रहा था-मेरी आँखें होतीं तो जहाँ भी पाप ताप देखता उसे ठीक करता, लँगड़ा बोलो-मैं दौड़ --दौड़ कर दुखियों की सेवा करता। बहरा बोला-किसी दुःखी की आवाज मेरे कानों तक पहुँचती तो मैं उसके दुःख दूर करने तक चैन न लेता। पास ही खड़े वरुणदेव ने उनकी बातें सुनीं तो बड़े प्रसन्न हुए और सबकी शारीरिक त्रुटियाँ दूर कर दीं। फिर क्या था-आँखों वाला सिनेमा देखने, बहरा लाउडस्पीकर के गाने सुनने, लँगड़ा शहर घूमने के लिए निकल पड़े लोक कल्याण दूर आत्म कल्याण तक भूल गये। वरुण यह देखकर पछताए और अनायास कृपा का यही फल होता है कहकर अपनी दी वस्तुएँ वापस कर लीं।
(५) लक्ष्मी जी कृपा अनायास ही हुई थी सो लोगों ने सोने चाँदी से अपने घर भर लिये तो उद्यम उद्योग, कृषि आदि सभी छूट गये सब लोग सोना चाँदी लिये घूम रहे थे पर किसी को पेट भरने के लिए एक मुट्ठी अन्न भी नहीं मिल रहा था। धरती माता ने लक्ष्मी से कहा-बहन अपनी माया समेटो, मेरे बच्चों को परिश्रम और पुरुषार्थ पर विश्वास करने दो। ये उसी से जिन्दा रहेंगे।
(६) पहाड़ की चोटी पर खड़े तीन व्यक्ति प्यास से पीड़ित हुए। एक ने कहा घाटी उतरने का ही तो श्रम है चलो नीचे उतर कर पी आते हैं। शेष दो इस परिश्रम में नहीं पड़ना चाहते थे अतएव वे कभी इन्द्र कभी वरुण तो कभी भगवान् की स्तुति कर कह रहे थे भगवन् पानी बरसाओ अन्यथा जान जाती है। जब तक ये दोनों खड़े स्तुति करते रहे तीसरा नीचे उतर कर झरने के शीतल जल से अपनी प्यास बुझा आया।
(७) टालस्टाय के पास खड़ा एक युवक बड़ा दुःख व्यक्त कर रहा था-कह रहा था-मेरी नौकरी नहीं लग रही, घर में कुछ नहीं भगवान् ने मेरे साथ बड़ा अन्याय किया मुझे कुछ नहीं दिया। टालस्टाय बोले चाहो तो एक-एक हजार रुपये में अपने पैर, पाँच हजार में हाथ, दस हजार में नाक और २० हजार में आँखें मैं बिकवा सकता हूँ युवक भौचक्का सा खड़ा बोला यह आप क्या कह रहे हैं क्या मैं अपना शरीर कटवाऊँ। टालस्टाय हँसे और बोले-नहीं जी शरीर कटवाने की बात नहीं कह रहा मैं तो यह कह रहा हूँ ५० हजार के तुम्हारे इतने ही अंग है कुल शरीर तो लाखों का है। इतना मूल्यवान शरीर पाकर भी तुम भगवान् को, भाग्य को दोष देते हो?
(९) बौद्धिक परावलम्बन का जुआ उतार फेंके।
प्रश्न ——
(१) ज्योतिष कितने प्रकार का होता है। उसमें कौन सा श्रेष्ठ है। (२) फलित ज्योतिष की हानियों पर प्रकाश डालते। (३) विवाह के पूर्व कुंडली मिलाने से लाभ है या हानि? (४) ग्रह दशा में डरा कर जनता को गुमराह करना वहाँ तक उचित है। क्यों? (५) दो हजार वर्ष की गुलामी का भयंकर दुष्परिणाम क्या हुआ? (६) सिद्ध कीजिये ‘‘भाग्यवाद निरर्थक है?’’ (७) उन्नति या प्रगति का आधार स्वतन्त्र चेतना है या भाग्य? (८) स्वतन्त्र चिंतन एवं पुरुषार्थ पूर्ण कर्तृत्व ही सुख के सारे द्वार खोलता है सिद्ध कीजिये। (९) सिद्ध कीजिये शकुन, मुहूर्त कुंडली, राशिफल मनुष्य को भयभीत व कमजोर बनाते हैं? (१०) असफलता का मूल कारण क्या है?
कथाएँ ——
(१) गधे तब जंगल में खूब मौज से रहते थे एक लोमड़ी ने उन्हें बहका दिया-कहा ने सेना बनाली है और तुम पर शीघ्र ही आक्रमण करने वाले हैं। गधे घबड़ा गये और बिना सोचे विचारे जंगल छोड़कर गाँव में धोबियों की शरण चले आये। सीधा सादा जीव बौद्धिक परावलम्बन के कारण धोबी का गुलाम बना और भारवाहक भी, उसी दिन से उसका नाम गधा पड़ा।
(२) बच्चा दिन भर चारपाई पर पड़ा सोता रहा-पिता ने पूछा-क्यों बेटा क्या बात है-बेटे ने उत्तर दिया पिता जी गाँव के उपदेशक कह रहे हैं-मनुष्य को शान्ति का जीवन बिताना चाहिये सो शान्ति चित्त पड़ा रहा। पिता ने कहा बेटे उपदेश के अर्थ को न समझने से यही होता है।
(३) साहूकार ने अपने सिक्कों में से खोटों को निकाल डालने के लिए उनकी जाँच शुरू की। खोटे सिक्के जोर से चमक रहे थे साहूकार पहचान नहीं पाया। उसकी पुत्री बोली-बाबा खरे खोटे की पहचान देखने से नहीं पटकने से होती है। साहूकार ने सिक्कों को पटकना शुरू किया-जो खरी आवाज करता था वह खरा और जिसमें आवाज ही नहीं खोटे सिक्के निकाल दिये और समझ लिया कोई भी बात हो उसकी परख बाहर से नहीं भीतर से करनी चाहिये।
(४) एक पहाड़ पर दो चींटियाँ रहती थीं एक चीनी की खान में दूसरी नमक की खान में। चीनी की खान वाली चींटी ने नमक वाली को भोज दिया। दूसरे दिन नमक की खान व ली चींटी आई और दिन भर चीनी की खान में रही पर उसे चीनी का एक कण भी न मिला। चलते समय उसने शिकायत की बहन तुमने नाहक तंग किया। चीनी का एक टुकड़ा भी तो नहीं है तुम्हारे यहाँ। पास में ही चीनी की खान वाली चींटी का लड़का खड़ा था। नमक वाली चींटी के मुँह में ऊँगली डालते हुए उसने कहा-मौसी जी पहले यह जो मुँह नमक का टुकड़ा लिये हो इसे तो निकालो वह टुकड़ा निकालते ही उसने भर पेट चीनी खाई। जो लोग पूर्वाग्रह में पड़े हैं वे नमक वाली चींटी के समान हैं।
(५) लोकमान्य तिलक समुद्री यात्रा पर जाने वाले थे पंडितों ने टोका-समुद्र यात्रा धर्म विरुद्ध है। तिलक काशी जी गये और महो-महापाध्याय से कहा-कोई उपाय निकालिये जिससे समुद्री यात्रा में धर्महानि न हो। महो-महापाध्याय ने कहा-उपाय है पर पाँच हजार रुपये लगेंगे। तिलक हँसे और बोले जो इतना स्वार्थी और संकीर्ण हो वह धर्म नहीं हो सकता। वे वहाँ से लौट आया और बिना व्यवस्था के काम चलाया।
(६) दिल्ली सार्वजनिक निर्माण विभाग से पूछा गया कि बस स्टैण्डों पर बने प्रतीक्षा घरों में छाया क्यों नहीं की गई तो अधिकारी बोले-ऐसा इंग्लैण्ड में कहीं नहीं होता। इस तरह की बौद्धिक पराधीनता ही मनुष्य को गुलाम बनाती है।
(७) एक थे पंडित जी, प्रतिदिन पूजा के बाद शंख बजाते। शंखध्वनि सुनते ही पड़ोसी धोबी का गधा जोर-जोर से रेंकने लगता। पंडित जी बड़े खुश होते और कहते-गधा पूर्व जन्म का योगी है उसका नाम भी उन्होंने शंखराज रख लिया था। एक दिन शंखराज नहीं बोले, पता चला गधा मर गया है। पंडित जी ने इस दुःख में अपने बाल मुड़ा डाले। शंखराज मर गया है यह खबर और पंडित जी के सिर मुड़ाने की खबर पाकर उनके यजमानों को भी सिर मुड़ाना पड़ा। उसी दिन गाँव में एक सिपाही आया था, उसने शंखराज के मरने की बात सुनी तो खुद भी बाल मुड़ाए धीरे-धीरे पूरी फौज घुट-मुंड हो गई। हैरान अफसरों ने पता लगाया तो मालूम हुआ शंखराज कोई व्यक्ति नहीं गधा था लोगों ने तो अंध विश्वास वश सिर मुड़ाए किसी ने वस्तु स्थिति जानने का प्रयत्न नहीं किया। अन्धविश्वास ऐसे ही फैलता है।
(१०) ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग की महान् साधना
प्रश्न ——
(१) योग की परिभाषा बताओ। (२) शारीरिक योग कितने हैं उनसे क्या लाभ मिलता है? (३) मानसिक योग कितने प्रकार के होते हैं? (४) योग का प्रयोजन और सदुपयोग क्या हैं? (५) ज्ञान योग किस प्रकार बन्धन खोलता है? (६) कर्मयोग की व्याख्या करो। (७) सादगी श्रेष्ठता का कैसे निर्माण करती है? (८) भक्ति योग का क्या अर्थ है? (९) वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना कैसे जागती है? (१०) आत्मा परमात्मा में किस प्रकार मिलता है?
कथाएँ ——
(१) इंग्लैण्ड की कामन्स सभी में वाद-विवाद चल रहा था। एक सदस्य ने दूसरे से कहा-महोदय वह दिन याद करिये जब आप जूतों पर पालिश किया करते थे। माननीय सदस्य ने उत्तर दिया-बन्धु मैंने पालिश भी पूरी ईमानदारी और भगवान का काम समझ कर की है।
(२) भक्त कवि पोतना ने भागवत् का संस्कृत अनुवाद किया। लोगों ने सलाह दी इसे आन्ध्र महाराज को समर्पित कीजिये वो बहुत सा धन मिलेगा। पोतना उस समय तो मुस्करा भर दिये। पीछे ग्रन्थ छपा तो लिखा था-प्राणियों की भलाई की इच्छा से लिखी गई यह भगवान् की प्रेरणा भगवान को ही अर्पण करता हूँ।
(३) सूफी सन्त बीबी राबिया जिन दिनों अपनी ईश्वर भक्ति के लिये विख्यात थीं उन्हीं दिनों इबलीस नामक प्रबल नास्तिक भी हुआ जो दिन-रात राबिया की बुराई किया करता। एक दिन बीबी राबिया से एक व्यक्ति ने कहा-इबलीस तो आपकी दिन-रात बुराई करता है आप क्यों नहीं करतीं? इस पर राबिया ने उत्तर दिया वह भी तो उसी भगवान् का पुत्र है जिसकी मैं हूँ अपने भाई की बुराई मैं कैसे करूँ। इबलीस को इसका पता चला तो वह राबिया के चरणों में नत मस्तक हो गया।
(४) संत शुकदेव ने अपने पिता वेद व्यास के समस्त ग्रन्थों का अध्ययन अनुशीलन प्रारम्भ कर दिया उससे वे मुक्ति के अधिकारी बन गये। एक दिन व्यास देव से एक शिष्य ने पूछा-आपने पुत्र को कौन सी साधना सिखाई तो उन्होंने कहा-कोई नहीं शुक अपनी ज्ञान साधना से मुक्ति हुए।
(५) स्वामी विवेकानन्द ने अपनी साधना, उपासना छोड़ दी और कलकत्ता में फैले प्लेग के प्रकोप से लोगों को बचाने में जुट गये। एक भाई ने पूछा-महाराज आपकी उपासना, साधना का क्या हुआ? स्वामी जी ने कहा-भगवान् के पुत्र दुःखी हों और मैं उनका नाम-जप रहा होऊँ क्या तुम इसे ही उपासना समझते हो?
पैसे की कमी के कारण जब वे रामकृष्ण आश्रम की जमीन बेचने को तैयार हो गये तो फिर एक शिष्य ने पूछा-महाराज आप गुरु-स्मारक बेचेंगे क्या? विवेकानन्द ने उत्तर दिया मठ-मंदिरों की स्थापना संसार की भलाई के लिये होती है। यदि उसका उपयोग भले काम में होता है तो इसमें हानि क्या है?
(६) कहीं राग, कहीं द्वेष, कहीं रोष, कहीं क्लेश देख कर पिप्पल का मन सामाजिक जीवन से विरक्त हो गया। वे वन में जाकर योगाभ्यास करने लगे। एक दिन वे अत्यन्त-अशांत चित्त बैठे थे तभी उधर से सारसों का एक जोड़ा निकला। मादा सारस ने नर से पूछा-स्वामी महर्षि पिप्पल और सुकर्मा की साधना में किसकी साधना श्रेष्ठ है? नर ने उत्तर दिया-सुकर्मा की क्योंकि वह विरक्त होकर भी संसार की सेवा में जुटा हुआ है, भगवान् भक्ति से ही नहीं कर्तव्य पालन से कहीं अधिक प्रसन्न होते हैं।
पिप्पलाद पक्षियों की भाषा जानते थे वे उठकर सुकर्मा के पास गये तो देखा वह अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा में तल्लीन है। पिप्पल ने सुकर्मा के मन में अद्भुत शान्ति देखी उस दिन से उन्होंने भी सामाजिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करना प्रारम्भ कर दिया।
(७) अपने साथ वहाँ के राजा को भी पाकर एक संत के हजारों शिष्य बड़े प्रसन्न हुए उन्होंने राजा से कहा अब तो आप हमारे गुरु भाई हो गये गुरु भाई होकर भी हम से माल गुजारी लेंगे क्या?
राजा ने द्विविधा में आकर सबका टैक्स माफ कर दिया पर उसके शासन के प्रबन्ध के लिये आर्थिक व्यवस्था में दबाव पड़ने लगा। संत ने यह सुना तो राजा को पास बुलाया और कहा-राजन् जो शिष्य दीक्षा लेकर कर्म न करें, आलसी हो जायें उन्हें तू नकली शिष्य जान। राजा ने भूल समझी और फिर से कर लगा दिया। तब कहीं शिष्यों का आलस्य छूटा और शासन व्यवस्था सँभली।
(८) सिक्खों के चौथे गुरु रामदास के अनेक शिष्य थे वे सब एक से एक बुद्धिमान और तार्किक थे। अर्जुन देव नाम का एक दूसरा लड़का भी था जो केवल गुरु के आदेश पालन और उनके प्रति श्रद्धा को ही अपनी सच्ची शिक्षा व सम्पत्ति मानता था। उसे आश्रम के बर्तन माँजने का काम दिया गया था इसलिये दूसरे लड़के उसे सदैव ही उपेक्षा की दृष्टि से देखते। पर जब एक दिन उत्तराधिकार की बात आई तो गुरु ने यह कहते हुए-लोक सेवक की सबसे बड़ी योग्यता श्रद्धा और अनुशासन है—’’ उन्होंने अर्जुन देव को ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। अन्य शिष्य यह देखकर आश्चर्य चकित रह गये।
(९) स्वर्ग में तरह-तरह के सुखोपभोग मिलने पर भी विद्रूप प्रसन्न नहीं थे। इन्द्र उनके पास गये और पूछा-महाराज यहाँ आपको कुछ त्रुटि दिखाई दे रही है क्या? हाँ देवराज-विद्रूप ने कहा-यहाँ और सब कुछ तो है पर यहाँ कर्म का अभाव है बिना कर्म के मुझे स्वर्ग भी पसन्द नहीं इसलिए मुझे तो कर्म लोक धरती में पहुँचा दो जहाँ लोगों की सेवा का फिर से आनन्द ले सकूँ।
इन्द्र बोले-सच है महाराज जिसे कर्म से स्वर्ग मिलता है उसे स्वर्ग से भी महान् होना ही चाहिए।
(१०) जिस व्यक्ति को स्वयं भगवान् ने ही कहा था कि इसे पुत्र नहीं हो सकता उसे एक साधारण साधु के आशीर्वाद से पुत्र हो गया-यह देखकर देवर्षि नारद के विस्मय का ठिकाना न रहा वे सीधे स्वर्ग लोक पहुँचे और भगवान् से उसका रहस्य पूछा ——
भगवान् विष्णु ने उनका समाधान करते हुए कहा-नारद जो मेरे दिये आदेशों को पूरा करते और लोक-कल्याण में तत्पर रहते हैं। वही मेरे सच्चे भक्त हैं। उन्हें मेरी व्यवस्था में परिवर्तन का भी अधिकार हो तो इसमें आश्चर्य की क्या बात?
(११) खलीफा उमर नमाज पढ़कर खड़े हुए तो उन्हें एक फरिश्ता दिखाई दिया उसके हाथ में एक छोटी सी पुस्तक थी। खलीफा ने पूछा-इस पुस्तक में क्या लिखा है? फरिश्ते ने जवाब दिया-उनके नाम जो भगवान् की भक्ति किया करते हैं। उमर ने पूछा इसमें मेरा भी नाम है क्या? फरिश्ते ने सारी पुस्तक पलट डाली पर उसमें उमर का नाम न निकला। उमर दुःखी खड़े थे तभी दूसरा फरिश्ता आया। उसके हाथ में भी एक पुस्तक थी-उमर ने पूछा इसमें क्या लिखा है-फरिश्ता बोला-उनके नाम जिनका जप खुदा स्वयं करता है। उमर ने आश्चर्य चकित होकर पूछा क्या दुनियाँ में ऐसे भी लोग हैं जिनकी खुद भगवान् उपासना करते हैं? फरिश्ते ने कहा-हाँ जो संसार की सेवा में लगे हैं उनकी इबादत भगवान् खुद करता है यह कहकर फरिश्ता अपनी किताब वहीं छोड़ कर गायब हो गया। उमर ने पुस्तक उठाकर देखी तो उसमें पहला नाम उन्हीं का था।
(११) आध्यात्मिक जीवन के ५ कदम ——
प्रश्न ——
१ —अध्यात्मवादी की आकांक्षाओं एवं प्रेरणाओं का मूल स्रोत क्या होता है। २ —अध्यात्मवादी या देव जीवन किसे कहते हैं? ३ —भौतिकवादी जीवन को पशु जीवन क्यों कहते हैं? ४ —अध्यात्मवादी जीवन क्यों महत्त्वपूर्ण है? ५-जीवन में सदाचार, नम्रता, सादगी एवं साधना की क्यों आवश्यकता है? ६ —आध्यात्मिक जीवन के ५ प्रमुख तत्त्वों पर प्रकाश डालिये। ७ —दृष्टि दोष दूर करने के लिये क्या करना चाहिए? ८ —दृष्टि शोधन से क्या समझते हो? ९-मितव्ययिता एवं ईमानदारी क्यों आवश्यक है? १० —आत्मा को परमात्मा के रूप में परिणित करने का प्रत्यक्ष आनन्द कब व कैसे मिलता है?
कथाएँ ——
(१) आइजन हावर के राष्ट्रपति चुने जाने पर उन्हें बहुत से मित्रों प्रशंसकों ने उपहार दिये। उन उपहारों की प्रदर्शनी लगाई गई। उपस्थित मेहमानों को सम्बोधित कर उन्होंने उपहार में मिले एक झाड़ू को हाथ मे उठाते हुए कहा-यह है मेरा सर्वोत्तम उपहार जो मुझे सदैव सेवा और कर्तव्य पालन की याद दिलाता रहेगा।
(२) चम्पारन के किसानों के साथ ब्रिटिश सरकार ने बहुत अत्याचार किये गाँधी जी उसकी जाँच कर रहे थे तब उनके कैम्प सेक्रेटरी का काम आचार्य कृपलानी कर रहे थे। कैम्प से बहुत सी डाक कलेक्टर के पास जाती थी। वह डाक श्री कृपलानी स्वयं लेकर जाते थे ताकि सरकारी कर्मचारी कोई गोलमाल न कर सके। कलेक्टर को पता चला कि डाक लाने वाले आचार्य कृपलानी हैं तो उसने पूछा-आप सेक्रेटरी होकर डाक लाते हैं? इस पर कृपलानी ने कहा-मैं सेक्रेटरी नहीं मैं तो बापू का चपरासी हूँ। कलेक्टर यह सुनकर स्तब्ध रह गया।
(३) आचार्य रामानुज उपदेश दे रहे थे-भगवान् प्राणिमात्र में समाये हुये हैं सबमें अपना ही आत्मा देखना चाहिये। उपदेश एक चाण्डाल भी सुन रहा था। जैसे ही प्रवचन समाप्त हुआ, वह आचार्य प्रवर के पैर छूने को बढ़ा। आचार्य ने उसे देख क्रुद्ध हो उठे और डाँटा-मुझे छुएगा क्या? चाण्डाल ठिठक गया और बोला-महाराज तो फिर बताइये मैं अपने भगवान् को कहाँ ले जाऊँ? आचार्य की आँखें खुल गईं। चाण्डाल को अंक में अंक में भरते हुए उन्होंने कहा-तात क्षमा करो। आज तुमने मेरी आँखें खोल दी।
(४) रामकृष्ण परमहंस युवक थे, माता शारदामणि साथ रहती थीं तथापि वे पूर्ण ब्रह्मचर्य से रहते थे। रानी रासमणि के जमाई मथुरादास को उनकी परीक्षा लेने की बात सूझी। एक दिन परमहंस देव को ले जाकर उन्होंने एक सुन्दर वेश्या के कोठे पर छोड़ दिया, खुद छुप कर बैठ गये। सुन्दरियाँ उन्हें कुत्सित हाव-भाव द्वारा आकर्षित करने का प्रयत्न करने लगीं तो रामकृष्ण माँ-माँ कह कर भाव विभोर हो गये। कामनियाँ यह देखकर अत्यधिक लज्जित हो गई। मथुरादास जी अपने इस कृत्य पर बहुत पछताए।
(५) मुगलों के साथ हुए युद्ध में मराठों की विजय हुई उन्होंने मुगलों के खजाने के साथ उनकी बहुत सी वस्तुएँ भी लूट लीं। सैनिक मुगल खानदान की एक रूपवती कन्या को भी पकड़ लाये। उसे शिवाजी के सामने इस ख्याल से उपहार स्वरूप प्रस्तुत किया गया कि उससे शिवाजी बहुत प्रसन्न होंगे और बहुत सा इनाम देंगे पर बात उल्टी निकली। शिवाजी ने कहा-मुगल है तो क्या नारी सर्वत्र पवित्र है। फिर उन्होंने उस युवती की ओर देखकर कहा-तुम्हारी जितनी सुन्दर मेरी माता होती तो मैं कितना सुन्दर होता यह कहकर उन्होंने युवती को सादर मुगलों के डेरे तक पहुँचा दिया।
(६) अर्जुन तब इन्द्रलोक में शस्त्र विद्या सीख रहे थे। उनके सौन्दर्य पर इन्द्र की अप्सरा उर्वशी मोहित हो गई वह एक रात चुपचाप अर्जुन के पास गई और बोले-मुझे आपकी तरह का एक सुन्दर बालक चाहिये। अर्जुन उसके काम-विकार को ताड़ गये। एक क्षण चुप रहकर बोले-भद्रे संभोग से तो संभव नहीं पुत्र ही हो पुत्री भी हो सकती है फिर तुम्हें तो पुत्र अभी चाहिए सो यह लो अब से मैं ही तुम्हारा पुत्र हूँ।
(७) एक व्यक्ति तीर्थ यात्रा पर जा रहा था सुरक्षा की दृष्टि से उसने अपने पाँच हजार के सिक्के संत रैदास सौंप दिये। रैदास ने रुपयों की पोटली वहीं छप्पर में खोंस दी। कुछ ऐसा हुआ कि वह आदमी तीर्थ यात्रा से ५ वर्ष बाद लौटा। उसने जाकर रैदास से कहा-मेरे रुपये कहाँ हैं। रैदास ने छप्पर की ओर इशारा करते हुए कहा-जहाँ तुमने रखे थे वहीं से उठा लो। पराये धन को मिट्टी की तरह देखने वाले संत की इस सच्चाई को देखकर वह व्यक्ति दंग रह गया।
(८) बाजीराव पेशवा और नवाब हैदराबाद के बीच युद्ध छिड़ गया। नवाबी सेना हार गई। और बचाव कर किले के अन्दर चली गई मराठों ने उस पर घेरा बन्दी डाल दी। नवाब की सेनाएँ भूख से मरने लगीं। मंत्रियों ने खबर बाजीराव पेशवा को दी और कहा यह उपयुक्त समय है हमें उन पर आक्रमण कर देना चाहिए तो पेशवा ने उत्तर दिया-भूखों पर आक्रमण करना वीरता नहीं कायरता है। अभी तो उन्हें अन्न की जरूरत है कह कर उन्होंने अपने भण्डार से बहुत सी रसद नवाब के किले में भिजवा दी। नवाब इस आत्मीयता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने युद्ध का इरादा छोड़ कर पेशवा से संधि कर ली।
(९) इधर परीक्षाएँ चल रही थीं उधर विद्यार्थी का पड़ोसियों की चिट्ठी पत्री लिखने का काम जारी था। एक दिन उनकी माता ने कहा-पढ़ाई का भी कुछ ध्यान है या यूँ ही बेकार में समय बर्बाद करते रहोगे। बच्चे ने विनम्र उत्तर दिया-माँ यदि पढ़ाई से दूसरों का कुछ हित न हुआ तो ऐसी पढ़ाई लिखाई से क्या लाभ? यह उत्तर देने वाला छात्र ही आगे चल कर महात्मा हंसराज के नाम से प्रख्यात हुआ।
(१०) गेरुआ वस्त्र पहने स्वामी विवेकानन्द की ओर इशारा करके एक अमेरिकन स्त्री ने एक अमेरिकन से कहा-जरा इन महोदय की पोशाक तो देखो? विवेकानन्द ने अँगरेजी में कहा-देवी आपके देश में सभ्यता के उत्पादक दर्जी और सज्जनता की कसौटी कपड़े माने जाते हैं पर मैं जिस देश से आया हूँ वहाँ के लोगों के पहचान सरलता और चारित्रिक उत्कृष्टता से की जाती है।
(१२) हर दिन को एक नया जन्म समझें ——
प्रश्न ——
(१) जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या क्या है? (२) जीवन लक्ष्य की प्राप्ति में प्रमुख बाधा क्या है। (३) जीवन को क्या माना जाना चाहिए? विवेक शीलता का तकाजा क्या है? (४) किस जीवन को सार्थक माना जा सकेगा? (५) आध्यात्मिक प्रगति के कौन-कौन से पक्ष हैं? (६) दिनचर्या बनाने व डायरी लिखने की आवश्यकता क्यों हैं? (७) ऋद्धि-सिद्धियों एवं सफलतायें पाने का रहस्य क्या है? (८) प्रगति का सोपान क्या है। (९) स्वयं को सुधारने में किस-किस प्रकार के प्रयोग करने चाहिये? (१०) जीवन की सार्थकता कैसे अनुभव की जा सकती है।
कथाएँ ——
(१) आलिवार क्रामदेव की वीरता में मुग्ध होकर एक चित्रकार ने उसका सुन्दर तैल चित्र बनाया। चित्र देखकर क्रामवेल बड़ा प्रसन्न हुआ पर बोला-अभी इसमें थोड़ी कमी रह गई। क्रामवेल के मुँह पर एक मस्सा था। जिसके कारण उसका मुँह असुन्दर लगता था। इसी कारण चित्रकार ने उस पर मसा नहीं काढ़ा था पर जब क्रामवेल ने ही कमी बताई तो उसने कहा-सच है जो अपनी बुराइयों को देखने का अभ्यासी है वही सच्चा वीर हो सकता है-यह कहकर उसने चित्र में मस्सा भी काढ़ दिया। क्रामवेल बड़ा प्रसन्न हुआ और चित्रकार को बहुत सा पुरस्कार देकर विदा किया।
(२) नौशेखाँ ने एक वृद्ध से पूछा-आपकी आयु क्या होगी? ‘‘पाँच वर्ष’’ वृद्ध ने उत्तर दिया। नौशेखाँ ने समझा बूढ़े को मजाक सुझ रही है सो उसने थोड़ा नाराज होकर कहा-बाल पक गये, शरीर हिल रहा है और अपने को पाँच वर्ष का बता रहे हैं। वृद्ध ने कहा-महाराज पिछली जिन्दगी तो मैंने यों ही बेसमझी में बिता दी पिछले ५ वर्ष से ही जीवन में नियमित आई है इसलिये मैं पाँच वर्ष का ही तो हुआ। नौशेखाँ इस उत्तर से बहुत प्रसन्न हुआ और उस दिन से युक्ति पूर्वक जीवन जीने लगा।
(३) गरुड ने हंस से पूछा-बन्धु राजा परीक्षित ने एक बार भागवत् सुनी और स्वर्ग चले गये पर आज तो लोग हजार बार भागवत् सुनकर भी नरक में पड़े हैं। हंस ने हँसकर कहा-भाई गरुड परीक्षित ने कथा सुनी ही नहीं थी मन में बिठायी आत्मा में उतार भी ली थी इसलिये वे मुक्त हो गये पर आज तो लोग मनोरंजन के लिये कथा सुनते हैं आत्म-कल्याण की इच्छा से नहीं।
(४) अब्राहम लिंकन ने एक बार उनके जन्म दिन पर एक पत्रकार ने पूछा आप साधारण मनुष्य से राष्ट्रपति बने इस सफलता का रहस्य क्या है? लिंकन बोले मैं अपने जीवन की पग-पग पर परीक्षा की हर असफलता से कुछ सीखा, सँभला और नये नाश्ते बनाता चला गया।
(५) ७० वर्ष की आयु का आदमी अपनी अवस्था के औसत २४ वर्ष सोने, ११ वर्ष नौकरी करने उद्योग करने, ८ वर्ष खेल, कूद, मनोरंजन, ६ वर्ष खाने, ६ वर्ष भ्रमण, ६ वर्ष ३ वर्ष शिक्षा ३ वर्ष बातचीत और कुल ६ महीने ईश्वरीय प्रयोजन व आत्म कल्याण में लगाता है इसी से समझा जा सकता है कि आज लोग कितना बे समझदारी का जीवन जी रहे हैं।
(६) एक मनुष्य ने अरस्तू से पूछा सबसे मूर्ख मनुष्य कौन है-अरस्तू ने कहा-जो पिछले अनुभवों के आधार पर अपना जीवन नहीं सुधारता?
(१३) स्वाध्याय दैनिक जीवन की अनिवार्य आवश्यकता
प्रश्न ——
(१) सिद्ध कीजिये कि मनुष्य संवेदनशील प्राणी है। (२) मनुष्य में विचारों एवं आकांक्षाओं का सृजन कैसे होता है? (३) मानवीय विकास की आधारभूत आवश्यकता क्या है? (४) प्राचीनकाल में छात्रों को ऋषिकुल में क्यों भेजा जाता था? (५) व्यक्तित्व की उत्कृष्टता किन-किन तत्त्वों पर निर्भर हैं? (६) स्वाध्याय क्यों आवश्यक है? (७) प्रेरक साहित्य के अध्ययन से क्या लाभ है? (८) स्वाध्याय के लिए कैसा साहित्य होना चाहिए? (९) युग निर्माण योजना के साहित्य पर प्रकाश डालें। (१०) स्वाध्याय को नित्य कर्म क्यों मानना चाहिए?
कथाएँ ——
(१) एक बच्चे को देश का बड़ा भारी नेता बनने की इच्छा थी पर कैसे बना जाये? यह बात समझ में नहीं आती थी। एक दिन फ्रेंकलिन की जीवनी पढ़ते समय उसने ज्ञानार्जन की महत्ता पढ़ी बच्चा उस दिन से स्वाध्याय में एक मन जुट गया और अपने मस्तिष्क में ज्ञान का भाण्डागार भर लिया। यही लड़का एक दिन अर्जेण्टाइना का राष्ट्रपति बना नाम था-डोमिंगो फास्टिनो सारमिन्टो।
(२) बालजक एक वकील के क्लर्क थे। एक दिन उन्होंने एक मित्र से थोड़े पैसे उधार माँगे तो मित्र ने इनकार कर दिया। बालजक को बड़ा दुःख हुआ। सोचने लगे मेरी आर्थिक स्थिति खराब क्यों है-निःसन्देह मेरे पास ज्ञान का अभाव है यह सोचते ही वे पढ़ने में लग गये और एक मूर्धन्य साहित्य कार के रूप में नाम भी कमाया और नामा भी ।।
(३) भारतीयों का ज्ञान कमजोर होता है जब सरदार वल्लभ पटेल को अंग्रेजी की इस आलोचना का पता चला तो उन्होंने अपने जीवन की दिशा बदल दी। प्रातः काल नहा धोकर इनर टैम्पुल लाइब्रेरी निकल जाते और लगातार १७ घन्टे तक स्वाध्याय कर घर लौटते। परीक्षा में वे उत्तीर्ण हुए तो अंग्रेज दंग रह गये।
(४) स्वामी रामतीर्थ रास्ते में एक पुस्तक पढ़ते जा रहे थे। एक दिन एक व्यक्ति ने टोका महाराज यह कोई पाठशाला थोड़े ही है कम से कम चलते समय तो पुस्तक रख दिया करें। तो स्वामी जी बोले-बन्धु यह सारा संसार ही मेरी पाठशाला है बताइये इसमें कहाँ पुस्तक रखूँ ?? कहाँ पढूँ?
(५) क्लंग-क्लंग घाटी पर एक सौ अंग्रेजों का मुकाबला आजाद हिंद सेना के कुल ३ जवान कर रहे थे। खबर आई क्या सैनिक पीछे हटा लिए जायें? सुभाष बोस को समझ में नहीं आया क्या किया जाये? जब भी कोई ऐसा अवसर आता वे पुस्तकों की शरण जाते। विवेकानन्द की पुस्तक खोली, पढ़ने लगे एक स्थान पर लिखा था-सिर पर संकटों के बादल मँडरा रहे हों तब भी धैर्य नहीं खोना चाहिए’’ बस सुभाष को परामर्श मिल गया। उन्होंने तीनों सैनिकों को आदेश दिया डटे रहो। अंग्रेजों की टुकड़ी ने समझा यहाँ आजाद हिंद सेना का भारी जमाव है अतएव ने चौकी छोड़कर भाग गये।
(६) सन्त इमर्सन से उनके एक मित्र ने पूछा-आपको अभी स्वर्ग जाने को कहा जाये तो आप क्या तैयारी करेंगे? सबसे पहले अपनी सारी पुस्तकें बाँध लेंगे इमर्सन बोले-ताकि स्वर्ग में हमारा समय बेकार न जाये।
(७) लोकमान्य तिलक से एक मित्र ने पूछा-आपको नरक जाना पड़े तो क्या करेंगे-अपने साथ पुस्तकें लेता जाऊँगा, ताकि स्वाध्याय द्वारा नरक को भी स्वर्ग में बदलने वाले विचार इकट्ठा कर सकूँ।
(१४) अपना महान महत्त्व समझें और और अपने को सुधारें।
प्रश्न ——
(१) हमारा सीखा जाना और सिखाया जाना किस तरह निरर्थक है? (२) हमको अपना महत्त्व समझना था पर हमने किस चीजों का महत्त्व समझा? (३) हम किन चीजों के प्राप्त होने से सुविधा अनुभव करते हैं? (४) हम हमारे में ही उपस्थित किन चीजों का महत्त्व भूल गये हैं। (५) सिद्ध कीजिये अपना आप सबसे महत्त्वपूर्ण है। (६) जो कुछ संसार में है उसकी अनुभूति हम अपने ही माप दंड से करते हैं? उदाहरण से समझाइए? (७) बीमारियाँ कैसे आती हैं? तथा उनसे निपटने का क्या रास्ता है? (८) विद्वानों की पंक्ति में किस तरह बैठा जा सकता है? (१०) हमें अपना महत्त्व ज्ञात करने के लिए क्या करना चाहिए।
कथाएँ ——
(१) वैद्य जी ने रोगी को दवा दी और कहा बेटा इन्हें खाने से दो दिन में खाँसी अच्छी हो जावेगी। अभी वे अपनी बात पूरी तरह कह नहीं पाए थे कि उन्हें जोर की खाँसी आ गई। रोगी न देखा वापस लौटाते हुए कहा-वैद्य जी पहले अपनी खाँसी अच्छी कर लो पीछे हमें बता देना।
(२) बुरी संग में पड़ कर एक लड़के ने किसी से कर्ज ले लिया। कर्ज चुकाने के लिए उसने घर से सोना चुराया पर इससे उसका हृदय पश्चाताप से झुलसने लगा। सीधे कहने की तो हिम्मत नहीं हुई पर उसने पत्र में लिखकर अपने पिता को सारी बातें लिखकर क्षमा माँगी। पिता ने समझ लिया लड़के का हृदय शुद्ध है तो उन्होंने क्षमा कर दिया। यही लड़का आगे चलकर गाँधी जी के नाम से विश्व विख्यात हुआ।
(३) बगल में खड़े दो गुलामों की ओर इशारा करते हुए तैमूर लग ने कवि अहमदी से प्रश्न किया-बता सकते हैं इन गुलामों की कीमत क्या होगी? पाँच टके अहमदी मुस्करा कर बोले-तैमूर गुस्सा होकर बोला-मैंने इन्हें चार हजार अशर्फियों में खरीदा है। अहमदी बोले-खरीदा होगा पर संसार में जो साँसारिक बुराइयों का सामना नहीं कर सकता उस आदमी का मूल्य पाँच टका से ज्यादा नहीं हो सकता? तैमूर अभिमान में आकर बोला-अच्छा बताओ मेरी कीमत क्या होगी? इस पर अहमदी हँसे और बोले-दो टके! तैमूर आग बबूला हो उठा तो अहमदी ने स्पष्ट किया-जो अपनी ही बुराइयों का सामना नहीं कर सकता वह इन गुलामों से गया बीता ही होगा।
(४) जो खुद को जीत लेता है वह सारे संसार को जीत लेता है, ‘‘संत सुकरात अरस्तू को उपदेश कर रहे थे। पास ही एक गुफा में घुसे सिकन्दर ने यह सुना तो उसके हर्ष का ठिकाना न रहा। अरस्तू इस उपदेश से जहाँ विश्व के महान दार्शनिक बने वहाँ सिकन्दर को इस संक्षिप्त उपदेश ने ही विश्व विजयी बना दिया।
(५) श्रावस्ती के दो गिरहकट वहाँ पहुँचे जहाँ भगवान बुद्ध के उपदेश सुनने के लिये भीड़ एकत्र थी। एक गिरहकट तो लोगों की जेबें काटता रहा दूसरा बुद्ध के उपदेश सुनने लगा। भगवान् बुद्ध कह रह थे-जो अपनी बुराइयों को ढूँढ़ना और उन्हें निकालने का साहस करता है वही सच्चा पंडित है। बात हृदय में उतर गई गिरहकट ने अपनी बुराइयाँ निकालनी प्रारम्भ की और सचमुच एक दिन भगवान् बुद्ध का परम प्रिय शिष्य बना।
(६) शेखशादी नमाज पढ़ने जा रहे थे, पाँव में जूते न होने के कारण पाँव बुरी तरह जल गये तभी उन्हें एक साहूकार दिखा जिसके पैर में चमकती जूतियाँ थी। शेखशादी ने कहा-वाह अल्लाह! तू भी कितना पक्ष-पाती है एक को तो चमकाते जूते और मुझे फटे पुराने भी नहीं। शेख अभी यह सोच ही रहे थे कि पीछे खटखट की आवाज सुनाई दी मुड़कर देखा तो एक अपंग बैसाखी के सहारे चला आ रहा था। शेख ने अपने को तमाचा मारा और कहा-भगवान् यह क्या कम है कि तूने मुझे पैर तो दिये?
(७) ब्रह्मा जी ने कुत्ता, बिल्ली, बैल भेड़, हाथी, साँप एक-एक कर अनेक जीव बनाये और सबसे पूछते गये तुम्हारा जीवन कैसा है सबने यही कहा-पितामह कष्ट और अभावों के अतिरिक्त हमारे जीवन में और कुछ भी तो नहीं है इस पर पितामह ने एक सर्वांगपूर्ण मनुष्य शरीर की रचना की। कुछ दिन बाद मनुष्य को बुलाकर पूछा-कहो तुम्हें तो कोई अभाव नहीं हैं पर मनुष्य ने भी वही कष्ट कह सुनाये जो अन्य प्राणियों ने कहे थे। पितामह बहुत दुःखी हुआ और बोले तात! मनुष्य शरीर, मनुष्य का हृदय, मनुष्य की आत्मा देने के बाद मेरे पास कुल एक उपदेश बचा है-जाओ और अपनी सब बुराइयों ठीक करो तो तुम्हारे सब कष्ट दूर होंगे, और कोई उपाय नहीं।
(१५) कर्तव्य परायणता मानव जीव की आधारशिला
प्रश्न ——
(१) आकाश में अधर में लटके हुए ग्रह नक्षत्र किस कारण गिर नहीं पाते? (२) मनुष्य जीवन की स्थिरता एवं प्रगति का आधार क्या है? तथा उसको भुला देने से क्या हानियाँ हो सकती हैं। (३) अपने ही शरीर के प्रति हमारी कर्तव्य परायणता को हमें किस प्रकार निबाहना चाहिए? (४) परिवार के प्रत्येक सदस्य की क्या-क्या जिम्मेदारियाँ परिवार के प्रमुख पर होती है। (५) परिवार के आनंद को कौन ले सकता है। (६) धन का उपार्जन किन गुणों के होने पर मनुष्य कर सकता है? (७) सार्थक सम्पन्नता का लाभ किस व्यक्ति को प्राप्त होता है? (८) गैर जिम्मेदार व्यक्ति किस प्रकार हानि कारक है? (९) शासन तन्त्र की गैर जिम्मेदारी ने भारत देश को किस तरह हानि पहुँचाई है? (१०) समाज के सदस्य किस प्रकार समाज के लिए हानि पहुँचाते हैं?
कथाएँ ——
(१) तब रतलाम के शासक श्री सज्जन सिंह थे। किसी अपराध में श्री श्रीनिवास शास्त्री को सिपाहियों ने पकड़ लिया। संयोग से मुकदमा जिस अदालत में गया उसके न्यायाधीश श्री शास्त्री के ही पुत्र थे। कानून के अनुसार पुत्र ने श्री शास्त्री को अपराधी पाया अतएव उन्हें ६ माह की सजा और ५००) रुपये आर्थिक दण्ड की सजा सुना दी। उनकी माँ इस पर पुत्र से बिगड़ी तो उन्होंने कहा-माँ जब सत्ताधिकारी ही न्याय न करेंगे तो सामान्य प्रजा का क्या होगा। महाराज ने सारा समाचार सुना तो बड़े प्रसन्न हुए उन्होंने पिता को कैद मुक्त करा दिया और पुत्र को बड़ा स्थान दिया।
(२) उदयसिंह तब छोटे थे इसलिये उनके बड़े न होने तक के लिए बनवीर को राज्य का उत्तराधिकारी सौंप दिया गया पर उसके मन में लोभ आ गया उसने उदयसिंह और विक्रमसिंह और मार डालने का निश्चय किया।
उदयसिंह की माँ का देहान्त हो चुका था उनका पालन-पोषण पन्नाधाय ने किया था। पन्ना का अपना पुत्र भी था जो उदयसिंह के साथ ही रहता था। एक दिन बनवीर ने विक्रम सिंह की हत्या कर दी पन्ना को इसका पता चला तो उसने उदयसिंह को वहाँ से सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया। क्रोध से भरा बनवीर उसके पास पहुँचा तो उसने अपने बच्चे को ही उदयसिंह बताकर उसका शीश कटा दिया पर कर्तव्य पर आँच नहीं आने दी।
(३) पृथ्वीराज युद्ध क्षेत्र में मूर्छित पड़े थे उनके समीप ही उनके प्रधान सेनापति संयमराय भी घायल अवस्था में पड़े थे। रात हो चली थी। संयमराय ने देखा कुछ भेड़िये और सियार सम्राट पृथ्वीराज की ओर लपक रहे हैं। वे सम्राट को शिकार बनायें इससे पूर्व ही संयमराय ने अपने शरीर का माँस काटकर गीदड़ों की ओर फेंका। गीदड़ उसी माँस को खाने लगे। जब तक एक टुकड़ा समाप्त होता तब तक संयमराय शरीर काट कर दूसरा टुकड़ा फेंक देते इस तरह उन्होंने गीदड़ों को महाराज के शरीर से तब तक दूर ही रखा जब तक सैनिक वहाँ आकर मूर्छित पड़े महाराज को उठा नहीं लें गये। आज पृथ्वीराज अमर हैं पर उनकी नीति के साथ अपने अद्वितीय त्याग के कारण संयमराय का यश भी जुड़ा हुआ है और युगों तक जुड़ा रहेगा।
(४) पाण्डव तक अज्ञातवास में थे। एक दिन एक ब्राह्मणी के घर रुके उसे दुःखी देखकर भीम ने दुःख का कारण पूछा। ब्राह्मणी ने बताया इस नगर में एक भयंकर दैत्य रहता है। उसे प्रतिदिन नगर का एक व्यक्ति आहार के लिये भेजा जाता है। आज तो मेरे पुत्र की बारी है यह सोचकर दुःखी हो रहा हूँ कि आज वह मेरे इकलौते बेटे को ही खा जायेगा।
भीम जानते थे कि दैत्य को मारने से कौरवों को पता चल जायेगा कि यह कृत्य केवल भीम का है उसके फलस्वरूप फिर से १४ वर्ष वन में रहना पड़ सकता है तो भी वे न डरे और न कर्तव्य विमुख हुए। अपने को खतरे में डालकर भी उन्होंने उस दैत्य का वध कर डाला।
(५) एक सुअर के शिकार पर महाराणा प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह में झगड़ा हो गया दोनों ने तलवारें म्यान से निकाल लीं। राज पुरोहित ने देखा राजवंश का अन्त हुआ चाहता है फलतः वे दौड़ कर दोनों के बीच खड़े हो गये तलवारें दोनों ओर से चल चुकी थीं राजपुरोहित का शीश धड़ से अलग हो गया पर वे मरते-मरते भी सिखा गये कि परस्पर संघर्ष में अपनी ही हानि है।
(६) इधर सरदार चूड़ावत विवाह करके लौटा उधर औरंगजेब ने मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी। जब सारे राजपूत युद्ध के लिए चल पड़े तब चूड़ावत इस मोह में पड़ा था कि वह अपनी नव-विवाहिता को छोड़ कर युद्ध में जाये या नहीं। हाड़ा रानी को पता चला कि मेरे आकर्षण के कारण सरदार कर्तव्यच्युत हो रहे हैं तो उसने अपना सिर काटकर एक सिपाही के हाथ सरदार के पास भेज दिया। सरदार ने रानी का कटा सिर देखा तो उसके शरीर मे बिजली कड़क उठी। सारी द्विविधा मिट गई और ऐसा घोर युद्ध किया कि मुगलों को लेने के देने पड़ गये।
(७) रात के बारह बजे एक सेनापति ने सैनिक को सोते से जगाकर पूछा तुम्हें इसी समय शत्रु के मोर्चे पर भेजा जाये तो-तो मैं इसे अपना परम सौभाग्य मानूँगा ‘‘सैनिक ने उत्तर दिया।’’ सेनापति बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला तुम कहीं भी पराजित नहीं हो सकते। यह सैनिक और कोई नहीं नेपोलियन बोनापार्ट था जो नियम कर्तव्यों का भली-भाँति पालन करने के कारण २३ वर्ष की आयु में ही ब्रिगेडियर जनरल बना दिया गया था।
(१६) असत्य व्यवहार-सद्भाव व सामाजिकता पर आघात
प्रश्न ——
(१) मनुष्य का सर्वप्रथम गुण कौन सा है? २. सज्जनता की परख क्या है? ३. मिथ्या बोलने से क्या हानि है असत्य कितने प्रकार का होता है। ४. प्रतिष्ठा किसकी स्थिर रहती है? ५. धन क्यों निन्दनीय है? ६. कायर किसे कहा जाना चाहिये? ७. ठगने वाला अधिक घाटे में कैसे रहता है? (८) सिद्ध कीजिये ‘‘दूसरों को धोखा देना अपने आपको धोखा देना है।’’ ९. बहादुरी कहाँ से प्रारम्भ होती है? १०. झूठ को सबसे बड़ा पातक क्यों माना गया है?
कथाएँ ——
(१) एक अंग्रेज युवती ने इटली में घड़ी खरीदी। इंग्लैण्ड आने पर मालूम हुआ उसे ठग लिया गया उसने इस बात का उल्लेख करते हुए इटली के अधिनायक मुसोलिनी को एक पत्र लिखा! मुसोलिनी ने अपने देशवासी द्वारा धोखा देही की क्षमा याचना की, क्षतिपूर्ति के पैसे भी भेज दिये। कुछ दिन पीछे दूसरा पत्र दुकानदार का मिला जिसमें क्षमा याचना के साथ लिखा था-मुझे अपने कृत्य पर बड़ी लज्जा है। मेरी दुकान सील बंद कर दी गई है जब तक आप सिफारिश नहीं करेंगी दुकान नहीं खुल पायेगी। युवती ने अनुभव किया राष्ट्रों के चरित्र ऐसे ही सुरक्षित रखे जा सकते हैं उसने सिफारिशी पत्र लिख दिया।
(२) बम्बई के एक डॉक्टर ने एक मरीज को आम का अचार खाने की सलाह दी और कहा जब अचार लाना तो मुझे दिखाकर जाना। मरीज थोड़ी देर में एक शीशी लेकर लौटा और डॉक्टर को दिखाया डॉक्टर ने सारा अचार फिंकवा दिया और कहा-अच्छा होना है तो विलायती अचार खाओ, हिन्दुस्तानी कंपनियाँ तो अचार में भी मिलावट करने से नहीं चूकतीं। पास ही खड़े एक अचार वाले ने यह सुना तो उसका दिन धक से रह गया। हिन्दुस्तान में विदेशी माल की साख? उसने उस दिन से शुद्ध और उम्दा अचार बनाकर बेचने का निर्णय किया। उस अब्दुल हुमेन की ईमानदारी ऐसी फली कि आज उसके अचार की धूम सारी दुनियाँ में है।
(३) तीन चारों ने चोरी में बहुत सा धन प्राप्त किया। घर लौट रहे थे तब मार्ग में उन्हें भूख लगी। एक भोजन लेने गया, दूसरा पानी, तीसरा अकेला धन के पास रहा। तीनों के मन में पाप आ गया कि क्यों न दोनों को मारकर धन हड़प कर लिया जाये। फलतः खाना लेने गया था वह खाने में विष मिला लिया, पानी वाला पानी में, इधर जो धन के पास बैठा था उसने एक-एक कर दोनों को तलवार से काट कर फेंक दिया। अकेला रह गया तो सोचो पहले खाना खा लूँ, तब चलूँ यह सोचकर वह खाना खाने बैठा और विषाक्त होने के कारण खुद भी वहीं ढेर हो गया।
(४) गाँधीजी स्कूल देर से पहुँचे अध्यापक ने कारण पूछा तो उन्होंने बताया बादल होने के कारण समय का पता नहीं चल पाया। इस उत्तर से अध्यापक सन्तुष्ट न हुआ उसने उन पर एक आना जुर्माना कर दिया। इस पर गाँधीजी रोने लगे। लड़कों ने कहा-अरे तुम एक आने के लिये रो रहे हो। गाँधीजी थे तो बालक पर बोले-मैं एक आने के लिये नहीं रो रहा इसलिये रो रहा हूँ कि मुझे झूठा समझा गया।
(५) दो भाई थे बँटवारा हुआ तो एक ने सट्टेबाजी में अपार धन कमाया, दूसरा खेती करके गुजारा करने लगा। एक दिन गरीब भाई के स्त्री ने कहा-देखो तुम्हारे भैया ने कितनी सम्पत्ति कमाई है और तुम कुछ न कर सके। उन दिन पाँसा कुछ ऐसा पलटा कि वह सट्टे में सब कुछ हार कर भिखारी बन गया जब कि पहले वाले के पास अब भी अपनी सम्पत्ति सुरक्षित थी। बेईमानी की कमाई देर तक नहीं टिकती।
(६) श्री चिमनलाल सोतलवाड़ बम्बई की किसी फर्म में काम करते थे। एक मामले में बेचने के लिये एक आदमी उनके पास आया और एक लाख रुपये की रिश्वत देने लगा। पर श्री सीतलवाड़ ने उसे अस्वीकार कर दिया। उस व्यक्ति ने कहा-समझ लीजिये इतनी बड़ी रकम कोई देगा नहीं। श्री सीतलवाड़ हँसे और बोले-देने वाले तो बहुत होंगे पर इनकार करने वाला तुम्हें कोई मुझ जैसा ही मिलेगा। यही सीतलवाड़ एक दिन बम्बई विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए।
(१८) हँसती और हँसाती जिन्दगी ही सार्थक है।
प्रश्न ——
(१) वह क्या वस्तु है जो धन दौलत की जगह दूसरे को दे सकते है? जिससे सन्तोष व पुण्य दोनों प्राप्त हों? (२ )) प्रसन्न रहने के दो आधार है? (३) क्या साधन सम्पन्न और अमीर ही केवल प्रसन्न रहते हैं? यदि नहीं तो समझायें? (४) व्यक्ति अपने को यदि अप्रसन्न समझता है तो क्यों? (५) प्रसन्नता किस प्रकार प्राप्त किया जा सकती है? (६) किस प्रकार की मनःस्थिति वाला व्यक्ति प्रसन्न रह सकता है? (७) किस प्रकार की मनःस्थिति वाला व्यक्ति अप्रसन्न रहते है? (८) हमेशा हँसते-हँसाते रहने वाले व्यक्ति खुद को तथा परिवार को किस प्रकार लाभ पहुँचाते हैं? (९) हँसना किस प्रकार अमीरों की दौलत से भी बढ़कर हैं?
कथाएँ ——
(१) एक बार गाँधीजी से एक लड़का मिलने आया। गाँधीजी नियमित रूप से प्रतिदिन घूमने जाया करते थे, बातचीत के लिये लड़के को साथ ले लिया। उन्होंने पूछा-तुम कौन लोग हो-अग्रवाल उत्तर मिला तो वे हँस कर बोले-अग्रवाल तो मैं हूँ आगे-आगे चल रहा हूँ तुम तो पीछे चलने वाले ‘‘पिछवाल’’ हो। यह सुनते ही साथ में चलने वाले सभी लोग हँस पड़े।
(२) एक बार पत्रकारों की घिरी भीड़ में गाँधीजी से एक विदेशी पत्रकार ने पूछा-आपको विश्वास है कि मृत्यु के बाद आप स्वर्ग जायेंगे? गाँधीजी मुस्कराए और बोले-मालूम नहीं स्वर्ग जाऊँगा या नरक, पर जहाँ भी जाऊँगा आप लोग वहाँ अवश्य होंगे।
(३) संत सुकरात की पत्नी बड़े कर्कश स्वभाव की थी। एक दिन सुकरात अपनी बैठक में सम्भ्रान्त लोगों से आवश्यक मंत्रणा कर रहे थे उधर उनकी स्त्री को उन्हें निठल्ले बैठना अखर रहा था। पहले तो वे सभी को गालियाँ देती रहीं पर किसी न उधर ध्यान नहीं दिया इस पर वे और भी क्रुद्ध हो उठीं और जिस गन्दे पानी से बर्तन धो रही थीं वहीं उठ कर सभी लोगों पर पटक दिया। जब तक दूसरे लोग कुछ कहें, सुकरात ने पत्नी की ओर देखा-थोड़ा मुस्कराये और बोले-भाइयों मैंने तो सुना था जो बादल गरजते हैं वे बरसते नहीं पर आज तो बादल गरज भी रहे हैं और बरस भी। यह सुनते ही ऐसे कह कहे छूटे कि लोग हँसी के मारे लोट-पोट हो गये।
केरल के भूतपूर्व मुख्य मंत्री श्री नम्बदरीपाद से एक पत्रकार ने पूछा-आप हमेशा हकलाते हैं नम्बूदरीपाद बोले-जी नहीं केवल बोलते समय हकलाता हूँ।
(४) एक बार एक अमेरिकन दम्पत्ति बापू से मिलने आये बोले-बापू जी आप अमेरिका कब चल रहे हैं वहाँ के लोग आप के लिये पागल हो रहे हैं। बापू मुस्कराये और बोले-अरे तुम क्या मुझे पागल खाने ले चलने आये हो। चारों ओर हँसी फूट पड़ी।
(५) एक बार एक स्त्री आई और बर्नार्ड शा के सामने ही उनकी आलोचना करती हुई बोली-आपकी यह रचना बहुत खराब है मुझे बिलकुल पसन्द नहीं आई। उसी तेजी में बोलते हुए बर्नार्ड शा ने कहा-बहन जी आप बिलकुल ठीक कहती हैं पर मुसीबत यह है कि लोग न तो आपकी बात मानते हैं और न ही मेरी।
(६) तुकाराम की पत्नी बड़े कर्कश स्वभाव की थीं। एक दिन तुकाराम को किसी मित्र ने गन्ने दिये। तुकाराम गन्ने लेकर चले तो रास्ते भर लड़के गन्ने माँगते और वे गन्ने बाँटते रहे। रह गया गन्ने १ तुकाराम उसे ही लेकर घर पहुँच। उनकी पत्नी ने एक गन्ना देखा तो आग बबूला हो उठीं वह गन्ना उठा कर तुकाराम पर दे मारा। गन्ना बीच से दो टुकड़े हो गये। तुकाराम ने दोनों टुकड़े उठाये और हँस कर बोले-जो एक टुकड़ा तुम खाओ एक मैं, इस गजब की सहिष्णुता और प्रेम भाव पर पत्नी पानी-पानी हो गई और अपना कटु स्वभाव छोड़ दिया।
(७) आइन्स्टीन के पास तीन चश्मे देखकर एक सज्जन ने पूछा-आप तीन चश्मा क्यों रखते हैं। आइन्स्टीन बोले-एक दूर की वस्तुएँ देखने के लिये दूसरे से पास और तीसरा इन दोनों को ढूँढ़ने के लिये।
(८) प्रसिद्ध शायर शौकत थानवी एक मुशायरे में भाग ले रहे थे। भारी दाढ़ी वाले अनवर शाबरी जब शेर पढ़ने लगे तो फोटोग्राफर फोटो खींचने लगे। उन्होंने गज़ल पढ़ना रोककर पूछा-भाई मेरी फोटो खींचकर क्या करोगे। फोटोग्राफर कुछ कहे इससे पूर्व ही थानवी बोले-बच्चों को डराया करेंगे? फिर क्या था खूब कह-कहे लगे।
(९) सेट जमनालाल भारी भरकम शरीर के थे एक दिन बोले बापू-आप मुझे गोद ले लीजिये गाँधीजी बोले-ठीक है, तुम मुझे गोद में लेकर खिलाया करना।
(१९) अपना ही नहीं, कुछ समाज का भी हित साधना करें।
प्रश्न ——
(१) अन्य पशुओं से मनुष्य आर्थिक, निवास, एवं आहार के आधारों पर अलग है। (२) मनुष्य किस तरह सामाजिक प्राणी है? (३) सामाजिक जीवन जीने के लिये मनुष्य को क्या करना चाहिये? (४) समाज के कई ऋण हमारे पर हैं इसे चुकाने के लिये हमें क्या करना चाहिये? (५) क्या हम अपना सारा समय, सारी सम्पत्ति देकर समाज का भला कर सकते हैं? (६) सामाजिक जीवन के उत्कर्ष के लिये हमें क्या करना होगा? (७) आज के सामाजिक जीवन की सबसे बड़ी सेवा क्या है? (८) विचार क्रान्ति के आदर्श वारी विचारधारा का प्रतिपादन करने के लिए किस प्रकार से कार्य-किया जाना चाहिये? (९) समय की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता शिक्षा के प्रचार के लिये हमें किस तरह अपना कर्तव्य पूरा करना होगा? (१०) समाज के हित में हित में विचार गोष्ठियों का आयोजन किस हद तक अपना महत्त्व रखता है।
कथाएँ ——
(१) एक शिष्य दाँया पैर दबाता दूसरा बाँया। संयोग वश गुरु ने करवट ली तो दाहिना पैर बायें पैर के ऊपर चढ़ गया। बायें पैर वाले शिष्य ने गुस्से में आकर डंडा उठाया और दाहिने पैर को पीटना प्रारम्भ कर दिया। दूसरा शिष्य भला इसे कैसे सहन करता उससे बायें पैर की पिटाई शुरू कर दी। मना करते-करते दोनों पैरों की अच्छी खासी धुनाई हो गई गुरु ने कहा-मूर्खों देखते नहीं पैर दायें-बायें हैं तो क्या? हैं तो वह मेरे ही शरीर के अंग। पास ही खड़े अन्य संत ने अपने शिष्यों से कहा-तात मनुष्य शरीर की भाँति संसार के सभी लोग ईश्वरीय सत्ता के अभिन्न अंग हैं सब के हित का ध्यान रखना ही सच्ची आस्तिकता है।
(२) अमेरिकन विद्वान वैंजामिन फैंकलिन को अख़बार निकालने के लिये बीस डालर कम पड़ रहे थे। उन्होंने २० डालर एक मित्र से उधार लिये। अख़बार अच्छी तरह चल निकला तो वे २० डालर वापस करने मित्र के पास पहुँचे। मित्र ने कहा फैंकलिन जरूरतमन्दों की सहायता पर समाज टिका हुआ है। मैंने तुम्हें कर्ज नहीं दिया यदि देना ही है तो आप यह २० डालर किसी निर्धन को दे दीजिये। वैज्ञानिक ने ऐसे ही किया। कहते हैं यह २० डालर अभी भी अमेरिकन में एक से दूसरे जरूरत मन्द के पास पहुँच कर सहायता करते रहते हैं इस धन को कोई पास नहीं रखता।
(३) अणु वैज्ञानिक नील्स बोहर ने प्रतिज्ञा की कि वे अपनी बौद्धिक सामर्थ्य का उपयोग केवल मानव कल्याण में ही करेंगे। अभी प्रतिज्ञा किये कुछ ही दिन बीते थे कि उन्हें नाजी पकड़ ले गये और अणु अस्त्र बनाने का दबाव डालने लगे। उन्होंने पहले तो प्रलोभन दिये पर जब नीलस बोहर नहीं झुके तो उन्हें भूखा रखा, मारा, पीटा और मशीनों में बाँधकर खिंचवाया तक पर वे अपने प्रण से जरा भी विचलित न हुए। अन्त में मछुआरों ने उन्हें कोपेन्हेगेन से अमरीका पहुँचाया। वहाँ वे आजीवन मानव की भलाई के काम में लगे रहे।
(४) बेंजबुड बन नेताओं से समझौते के लिए भारत पधारे। गाँधीजी से भेंट के दौरान उन्होंने व्यंग किया आप तो धार्मिक व्यक्ति हैं राजनीति में क्यों फँस गये? गाँधीजी बोले-धार्मिक व्यक्ति का अर्थ होता है अधर्म से लड़ने वाला फिर वह अधर्म चाहे रहन-सहन का हो या विचारों का अथवा राजनीति का। आज राजनीति अधर्म पर है पहले उसे ठीक करेंगे पीछे अपनी अन्य सामाजिक बुराइयाँ भी? बेंजबुड बन इस कथन से बहुत प्रभावित हुए।
(५) श्रावस्ती में भयंकर अकाल पड़ा। निर्धन लोग भूख से मरने लगे। भगवान बुद्ध ने सम्पन्न व्यक्तियों को बुलाकर कहा भूख-पीड़ितों को बचाने के लिये कुछ उपाय करना चाहिये। सम्पन्न व्यक्तियों की कमी न थी पर कोई कह रहा था मेरा तो सब खर्च हो गया कोई कह रहा था मुझे घाटा हो गया फसल ही पैदा नहीं हुई आदि। उस समय सुप्रिया नामक लड़की खड़ी हुई और बोली मैं दूँगी सबको अन्न। लोगों ने कहा-लड़की तू तो भीख माँगकर खाती है दूसरों को क्या खिलाएगी। सुप्रिया ने कहा-हाँ मैं आज से इन पीड़ितों के लिये घर-घर जाकर भीख माँग-कर लाऊँगी पर किसी को मरने न दूँगी। उसकी बात सुनकर दर्शक स्तब्ध रह गये और सबने ही धन देना प्रारम्भ कर दिया।
(६) बम्बई में एक व्यापारी ने प्रसिद्ध जौहरी राम-चन्द्र से सौदा किया। पेशगी देकर माल सातवें दिन उठाने का वादा किया। लिखा पढ़ी हो गई पर सातवें दिन तक भाव इतने बढ़ गये कि उसकी कीमत चुका सकना व्यापारी के लिये सारी सम्पत्ति बेचकर भी संभव न था। वह दुःखी जेल जाने की तैयारी में बैठा था तभी रामचन्द्र को इसका पता चला वे खुद व्यापारी के घर गये और लिखा पढ़ी का कागज फाड़ते हुए कहा-मेरी माँ ने मुझे दूध पीना सिखाया है खून पीना नहीं।
(७) ईश्वर चन्द्र विद्यासागर को शिक्षा विभाग में ५००) मासिक की सर्विस मिल गई। पर पहले ही महीने ५०) खर्च करके जब उनने ४५०) बचाकर उन्हें शिक्षा प्रसार कार्यों के लिये दे दिया तो एक अँगरेज ने पूछा वेतन आपकी सुख-सुविधा के लिये मिलता है फिर अपने लिये इतना कम खर्च क्यों? ईश्वरचंद्र विद्यासागर बोले महाशय! यह सारा समाज ही मेरा घर है। मुझे यार है मैंने कितने कष्ट उठाकर विद्या पाई है अब मेरा यह कर्तव्य है कि मेरे जो भाई इस अभाव में पिछड़ रहे हैं। उनके लिये कुछ करूँ। वे अपनी कमाई आगे भी शिक्षा प्रसार में खर्च करते रहे।
(८) वैज्ञानिकों का अनुमान था कि रेडियम कैंसर का इलाज हो सकता है पर इसके लिये प्रयोग की आवश्यकता थी पर इस प्राण-घातक प्रयोग के लिये कोई तैयार नहीं हुआ। एना रावर्ट्स ने सुना तो वे वैज्ञानिकों के पास गई और बोलीं-एक मेरे मर जाने से यदि संसार का भला हो सकता है तो मैं सहर्ष प्रस्तुत हूँ। उनके ही त्याग का फल है कि आज संसार के लाखों कैन्सर रोगी इस इलाज से बच जाते हैं।
(९) महर्षि दधीचि की पैनी दृष्टि से इन्द्र छिप न सके फिर भी उन्होंने कहा-ब्राह्मण यह देवत्व की रक्षा का सवाल है इसलिये मैं आत्मोत्सर्ग के लिये प्रस्तुत हूँ यह कहकर उन्होंने देह से अपने प्राण निकाल लिये और अपनी हड्डियाँ वज्र बनाने हेतु दान कर दीं।
(२०) सज्जनता व मधुर व्यवहार-मनुष्यता की पहली शर्त
प्रश्न ——
(१) मित्रों की संख्या बढ़ाने का सर्वोत्तम उपाय कौन सा है? (२) मनुष्य का वास्तविक बड़प्पन किसमें है? (३) कटु व्यवहार की कैसी प्रतिक्रिया होती है? (४) मनुष्यता का सच्चा स्वरूप किसमें है? (५) संभाषण में शिष्टाचार के नियम बताइये। (६) अपरिचित व्यक्ति से मिलने पर कैसा व्यवहार करना चाहिये? (७) बच्चों को शिष्टाचारी बनाने का उपाय क्या है? (८) जीवन की प्रथम परीक्षा में उत्तीर्ण होने का उपाय क्या है? (९) सज्जनता की सामान्य परिभाषा क्या है? (१०) आदर्श जीवन के कौन-कौन से गुण अपनाना अनिवार्य है?
कथाएँ ——
(१) महाराज अम्बरीष पर क्रुद्ध दुर्वासा उन्हें शाप देने की तैयारी करने लगे। क्रोध किसी को भी अच्छा नहीं लगता फिर भगवान् ही को क्यों अच्छा लगता। उन्होंने अम्बरीष की रक्षा और दुर्वासा को अनुचित क्रोध करने का दंड देने के लिये अपना सुदर्शन चक्र भेजा। दुर्वासा बड़े-बड़े देवताओं की शरण गये पर सबने यही कहा क्रोधी व्यक्ति को पास रखना अपना अहित करना है। अन्ततः दुर्वासा ने अम्बरीष से क्षमा माँगी और तब कहीं सुदर्शन के कोप से बचे। दुर्वासा ऋषि थे पर आवेश ग्रस्तता के दुर्गुण ने उनकी भी यह दुर्गति करा दी।
(२) एक जंगल में एक शेर रहता था। उसे अपनी शक्ति का बड़ा घमंड था। उसके त्रास से तंग आकर एक खरगोश ने उसे मार डालने का निश्चय किया। खरगोश ने जिस रास्ते से सिंह आया जाया करता वहीं एक छोटी सी गुफा बनाई जिनमें दो दरवाजे रखे एक दरवाजा तो पास ही था दूसरा बहुत दूर जाकर निकलता था।
शेर उधर से निकला तो खरगोश ने भीतर से गाली दी। अहंकारी शेर तड़पा पर उस नन्ही सी माँद में घुसना उसके बस की बात नहीं थी। खरगोश उसे बार-बार गाली देता शेर गुस्से में भरा उसे मार डालने को बैठा रहा। उधर खरगोश दूसरे रास्ते से निकल कर खाना खा आता और फिर माँद में आकर शेर को गाली देने लगता। अहंकारी शेर बदले की भावना से वहाँ सो हटा नहीं और तड़प-तड़प कर वहीं मर गया।
(३) डॉ० महेन्द्रनाथ सरकार अपनी कार से कहीं जा रहे थे। मार्ग में परमहंस स्वामी रामकृष्ण का आश्रम पड़ता था। जब वे पास से निकले तो एक व्यक्ति को शान्त चित्त बैठे देखा उन्होंने समझा माली है सो उससे फूल तोड़कर लाने को कहा उस व्यक्ति ने बड़ी प्रसन्नता के साथ फूल तोड़कर दे दिये। डॉ० महेन्द्रनाथ चले गये। दूसरे दिन वे परमहंस से मिलने गये तो यह देखकर अवाक् रह गये कि जिस व्यक्ति ने उन्हें बिना किसी अभिमान के आदर पूर्वक फूल दिये थे वह माली नहीं स्वयं रामकृष्ण परमहंस ही थे।
(४) सुप्रसिद्ध साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र बड़े उदार थे यहाँ तक कि दूसरों की सेवा में ही वे कंगाल हो गये एक दिन तो उनके पास आवश्यक पत्र भेजने को भी पैसे न बचे तब एक मित्र ने पाँच रुपये दिये। कुछ दिन पीछे भारतेन्दुजी की आर्थिक स्थिति फिर सँभल गई। वे उन मित्र को जब भी आते जेब में पाँच रुपये रख देते। एक दिन मित्र महोदय बहुत नाराज हुए तो भारतेन्दुजी भरे हृदय से बोले-आपने गाढ़े समय मेरी सहायता की थी उस ऋण से तो मैं कभी भी उऋण नहीं हो सकता।
(५) आश्चर्य है द्रौपदी! सत्यभामा ने एक दिन पूछा-तुम पाँच पतियों को एक साथ वश में रखती हो और मैं कृष्ण अकेले को ही सन्तुष्ट नहीं कर पाती। दौपद्री बोली-बहन पति तो निःस्वार्थ और अहंकार रहित प्रेम से सन्तुष्ट होते हैं मेरे जीवन का इतना ही रहस्य हैं मैं अपने सभी पतियों को हृदय से प्रेम करती हूँ अहंकार दर्शन नहीं। सत्यभामा को अपनी भूल का पता चल गया। उस दिन के बाद फिर उन्होंने कभी भी घमण्ड नहीं किया।
(६) महाभारत युद्ध का पहला दिन दोनों सेनाएँ संग्राम के लिये आमने-सामने आ डटीं। युद्ध शुरू होने को ही था कि युधिष्ठिर रथ से उतर कर कौरवों की सेना में घुस गये और जाकर गुरु द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म आदि को प्रणाम किया और उनका आशीर्वाद लिया। इधर चिन्तित अर्जुन ने कृष्ण से पूछा-भगवन् महाराज युधिष्ठिर ने गुरुजनों के प्रति हार्दिक सम्मान व्यक्त कर आधा महाभारत जीत लिया। आधा शेष रहा उसे जीतने के लिये अब तुम सब युद्ध प्रारम्भ करो।
(७) ऋषि कुमार सहस्रपाद से दूसरों को उपहास करने में बड़ा आनन्द आता। लोगों ने समझाया भी विनोद जब तक निर्दोष हो तभी तक ठीक रहता है किसी को बुरा लगे ऐसा उपहास नहीं करना चाहिये। सहस्रपाद ने सुनी अनसुनी कर दी। आश्रम में एक और ऋषि बालक कदर्भ रहते थे वह बड़े तपस्वी, नेक और सुशील थे पर उन्हें सर्प से बड़ा डर लगता था। एक दिन सहस्रपाद ने घास का सर्प बनाकर उन्हें डरा दिया। कदर्भ इतने डर गये कि मूर्च्छित होकर गिर पड़े। होश आने पर उन्होंने सहस्रपाद को शाप दे दिया जिससे उन्हें सर्प की योनि में जाना पड़ा।
(८) जापान के सम्राट हिरोहितों के १९ वर्षीय पौत्र हिमा शिकुनी ने ओलम्पिक खेलों के दौरान अपना नाम खिलाड़ियों को खाना खिलाने वाले बैरों में लिखाया। राज्य-परिवार के लोगों ने उन्हें ऐसा करने से रोका तो राजकुमार ने उत्तर दिया-सेवा और सज्जनता द्वारा दूसरों को जो प्रेरणा दी जा सकती है वह पद और प्रतिष्ठा द्वारा नहीं दी जा सकती।
(२१) साहस जुटायें-औचित्य अपनाएँ
प्रश्न ——
(१) भय हमारी प्रगति में किस प्रकार बाधक है? (२) क्या भय की निरर्थक कल्पना करके मनुष्य अपना अहित कर रहा है? (३) अवरोध हमें किस प्रकार सज्जन बनाते हैं (४) प्रतिकूलता को अनुकूलता, निर्धनता को सम्पन्नता में बदलने के लिए कौन से प्रयत्न करने पड़ते हैं। (५) हिम्मत वाले की सभी कोई सहायता करते हैं किस तरह? (६) मनुष्य क्या प्रयत्न न करे तो ओछा का ओछा बना रहेगा? (७) अनुचित कही जाने वाली क्या दुष्प्रथाएँ हमारे पीछे लगी हैं? (८) अवांछनीय स्थितियाँ किस तरह बदली जा सकती हैं? (९) हिम्मत क्या है? इसे अपनाने से क्या लाभ होते हैं? (१०) किस दुश्मन ने हमारी मनोभूमि का ढाँचा ही बदल दिया है?
कथाएँ ——
(१) अकबर के सामने एक मुकदमा आया। एक पक्ष कहता था, जो ईश्वर की शरण में आता है ईश्वर उसी की सहायता करता है दूसरा पक्ष कहता था-जो अपनी सहायता आप करते है ईश्वर भी उसी की सहायता करता है। बीरबल से उत्तर माँगा गया इस पर उन्होंने कहा ——
आपु न रक्षा कर से ताको राखन हार।
जो आपनि रक्षा करे सो राखै करता॥
अकबर की समझ में बात नहीं आईं। कुछ दिन पीछे मराठों से युद्ध हुआ। उसमें एक सेना की कमान एक ऐसे सेनापति को दी गई जो ईश्वर पर विश्वास करता था उसे कोई अस्त्र नहीं दिया गया पर दूसरे को अस्त्र देकर भेजा गया। पहली टुकड़ा तो हार कर वापस लौटी जब कि अपनी सहायता आप करने वाला सेनापति विजयी होकर लौटा।
(२) श्रावस्ती का मृगारी श्रेष्ठ धन की एषणा में ही डूबा रहता। एक दिन भोजन परोस कर उसकी पुत्र वधू ने पूछा-तात भोजन कैसा है कोई त्रुटि तो नहीं? मृगारी श्रेष्ठ ने कहा-आयुष्यमती तुमने मुझे सदैव ताजा और स्वादिष्ट भोजन दिया है। इस पर पुत्र वधू ने हँसकर कहा-तात यही तो आपकी भूल है मैं तो तुम्हें सदैव बासी भोजन देती रही। इस पर मृगारी श्रेष्ठ चौंके और बोले धन की कमाई के कारण मैंने तो इधर कभी ध्यान ही नहीं दिया। पुत्र वधू ने कहा-आर्य इसी तरह मनुष्य का जीवन निरर्थक कार्यों में बीत जाता है और सच्चाई का पता नहीं चल पाता। मृगारी श्रेष्ठ ने भूलमानी और उस दिन से धर्म-कर्म में रुचि लेने लगा।
(३) गोपाल कृष्ण गोखले को गणित में सबसे अधिक नम्बर पाने के लिए इनाम दिया गया। इनाम पाकर उन्हें प्रसन्न होना चाहिए था पर वे रोने लगे और इनाम वापस करने लगे तो अध्यापक ने पूछा गोखले रो क्यों रहे हो? गोखले ने एक लड़के की ओर इशारा करते हुए कहा-यह इनाम इन्हें मिलना चाहिए मैंने तो सवाल इनसे नकल किये। अध्यापक ने इनाम उन्हीं को सौंपते हुए कहा अब यही इनाम तुम्हारी सच्चाई के लिये दिया जा रहा है।
(४) जो भी शिष्य आता यही विश्वास दिलाता-भगवन् धर्म की स्थापना और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष से हम कहीं भी पीछे नहीं हटेंगे।
शिवजी को उतने से सन्तोष नहीं हुआ। परीक्षा के लिये वे शिष्यों के सामने ही अकारण पार्वती जी को भला-बुरा कहने लगे। पर शिष्यों में से एक ने भी उनका प्रतिरोध नहीं किया। तब शिष्यों के मध्य खड़े परशुराम जी आगे बढ़े और शिवजी के सिर पर फरसा चला ही तो दिया।
अन्य शिष्य परशुराम जी को बुरा भला कहने लगे तो शिवजी बोले-बस करो! देख ली तुम्हारी निष्ठा, जो हिम्मत और सच्चाई परशुराम ने दिखाई तुममें से उसका एक को भी तो साहस नहीं हुआ।
(५) रवीन्द्रनाथ टैगोर एक परीक्षा में कम नंबरों से पास हुए। दूसरी परीक्षा के लिये उन्होंने जो तोड़ श्रम किया और परीक्षा में अच्छे नम्बर पाये। शिक्षक को सन्देह हुआ कि श्री टैगोर ने कहीं नकल तो नहीं की इस पर टैगोर ने कहा-श्रीमान् मेरी योग्यता अविश्वस्त रह जाये यह में हरगिज नहीं चाहता। उन्होंने फिर से परीक्षा दी और अपनी योग्यता प्रमाणित कर दिखाई।
(२२) आलस्य त्यागें और सुसम्पन्न बनें
प्रश्न ——
(१) मानव-जीवन की महान संभावनाएँ किसमें छिपी हैं! (२) विजय लक्ष्मी प्राप्ति के उपाय बताइये? (३) सफलता की कुँजी क्या है? (४) उज्ज्वल भविष्य कैसे बन सकता है? (५) मानव का सबसे बड़ा शत्रु कौन है? उनसे कैसे बचा जाय? (६) महान बनने का सर्वश्रेष्ठ साधना क्या है? (७) प्रगति का रहस्य क्या है? (८) निरन्तर प्रगति एवं उन्नति का ‘गुरु मन्त्र क्या है?’ (९) सिद्ध कीजिये कि आलसी हरामखोर या परिश्रमी प्रतिष्ठावान होता है। (१०) समृद्ध एवं समुन्नत बनने का रहस्य क्या है?
कथाएँ ——
(१) स्वामी सत्यदेव परिव्राजक अमरीका के सिपेटेल नगर में घूम रहे थे। एक लड़का अख़बार बेच रहा था। स्वामी जी ने अख़बार खरीदते समय उसकी वेशभूषा देखकर कहा तुम तो किसी सम्पन्न घर के से लगते हो फिर अख़बार क्यों बेचते हो। लड़के ने कहा-श्रीमान जी मेरे घर वाले सम्पन्न हैं क्या इसका मतलब यह है मुझे परिश्रम नहीं करना चाहिए। मैंने अपने ही-हाथों से कमा कर ५० डालर बैंक में जमा किये हैं स्वामी जी को कहते ही बना कि ऐसे न होते तो तुम लोग इतने समृद्ध कैसे हो जाते?
(२) तितली हँसकर बोली-मधुमक्खी बहन तुम्हारा जीवन भी व्यर्थ है दिनभर-काम से ही फुरसत नहीं। मेरी ओर तो देखो कैसे दुनिया का आनन्द ले रही हूँ। मधुमक्खी कुछ न बोली दिनभर काम में लगी रही। शाम को दोनों घर लौटी तो मधुमक्खी के पास मधु का ढेर जमा था पर तितली खाली हाथ थी।
(३) दक्षिण अफ्रीका में एक आन्दोलन के सिलसिल में एक सत्यग्राही को जोहान्स वर्ग की जेल में बंद कर दिया गया। जेल में जो काम दिया जाता अन्य साथी तो धींगा-मुश्ती करते पर वह वहाँ भी पूरा परिश्रम करते। कोई काम न मिलता तो वे पुस्तकें ही पढ़ा करते एक बार गवर्नर का मुआइना हुआ उसने पूछा-आपको कोई कष्ट तो नहीं है। वे बोले-और तो सब ठीक है पर यहाँ पूरी तरह काम नहीं मिलता-हैरान गवर्नर ने पूछा-यहाँ दूसरे लोग काम से जी-चुराते हैं तब भी आप काम क्यों करना चाहते हैं? उन्होंने उत्तर दिया-इसलिये कि कहीं मेरी जीवनी शक्ति नष्ट न हो जाये? गवर्नर बड़ा प्रभावित हुआ। यह व्यक्ति गाँधी जी थे।
(४) यूनान के महापुरुष डायोजनीज़ का नौकर बिना सूचना दिये कहीं भाग गया। तब वे अपने घर की झाडू-बुहारी से लेकर कपड़े धोने का काम स्वयं करने लगे। एक दिन एक मित्र ने कहा-आप इतना कष्ट क्यों उठा रहे हैं नौकर को ढूँढ़ मँगाइए। डायोजिनीज हँसकर बोले-भाई मेरा नौकर मेरे बिना रहता है और मैं उसके बिना न रह पाऊँ यह शर्म की बात है न? मुझे दासानुदास बनना स्वीकार नहीं।
(५) शैतान का संन्यास लेना सबको आश्चर्यजनक लग रहा था उधर शैतान जी अपनी नशेबाजी चुगली ईर्ष्या, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि सम्पत्तियों का दान कर रहे थे। एक डिबिया बची शैतान ने कुछ सोचकर उसे जेब में रख लिया।
इसमें क्या है? एक मनुष्य के यह पूछने पर शैतान ने बताया इसमें वह वस्तु है जिससे मैं अपनी सारी सम्पत्ति और विशेषताएँ पुनः प्राप्त कर सकता हूँ। ‘‘लेकिन बहुत आग्रह करने पर भी वह उसे दिखा नहीं रहा था तभी डिबिया जेब से खिसक गई और गिरकर खुल गई-लोगों ने देखा उसके भीतर आलस्य’’ बैठा हुआ था।
(६) जापान की एक अमरीकी फर्म के मालिक ने जापानियों को खुश करने के लिये सप्ताह में एक दिन की छुट्टी बढ़ा दी। इस पर जापानियों ने सत्याग्रह कर दिया। मालिक बड़ा हैरान हुआ-उसने सत्याग्रह-प्रमुखों से पूछा-भाई बात क्या है। क्यों सत्य ग्रह कर रहे हो-एक युवक बोला-एक दिन की छुट्टी बढ़ाकर आप हमारी परिश्रम की आदत बिगाड़ना चाहते हैं और हम पर अपव्यय, मटरगस्ती की बुराइयाँ लादना चाहते हैं। आखिर एक दिन की छुट्टी का आदेश फर्म मालिक को वापस ही लेना पड़ा।
(२३) समय का सदुपयोग-सफलता के लिये अमोघ साधन
प्रश्न ——
(१) मनुष्य जीवन की सर्वाधिक मूल्यवान वस्तु क्या है? (२) हर क्षेत्र में सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचने का रहस्य क्या है? (३) जीवन में एकीकरण एवं केन्द्रीय करण की आवश्यकता क्यों है? (४) थोड़े समय में अभीष्ट प्रगति करने का मूल मन्त्र क्या है? (५) एण्डरसन ने संसार की सभी भाषा कैसे सीखी? (६) क्या कारण है कि कुछ लोग जीवन में महान बन जाते हैं जब कि उन्हीं परिस्थितियों में अन्य व्यक्ति सामान्य बने रहते हैं? (७) नियमित एवं निरन्तर काम करने से क्या लाभ है? (८) आदर्श दिनचर्या बनाइये? (९) लगन एवं मनोयोग से ही बड़े काम होते हैं? सिद्ध करें। (१०) फुरसत न मिलने का बहाना बे बुनियाद कैसे है? सिद्ध करें।
कथाएँ ——
(१) त्रिचनापल्ली के एक विद्यालय में प्रवेश के लिये छात्रों की परीक्षा ली गई। एक छात्र के प्रश्न पत्र देखकर परीक्षक ने उसे इकट्ठे दो कक्षाओं में पदोन्नति की सिफारिश की। पर उससे इनकार करते हुए लड़के ने कहा-श्रीमान् जी! मैं छलाँग नहीं लगाना चाहता क्रमवार उन्नति ही करना चाहता हूँ स्वल्प श्रम से मिलने वाली सफलता को ठुकराने वाला यह बालक ही भारत का महान् वैज्ञानिक श्री चन्द्रशेखर वैंकट रमन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(२) एक लड़के ने एक धनी व्यक्ति को देखकर धनवान बनने का निश्चय किया और उद्योग करने लगा। तभी एक दिन उसने एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ का गीत सुना। अब एक कुशल संगीतज्ञ बनने के लिए उसने उद्योग छोड़कर संगीत का अभ्यास प्रारम्भ कर दिया। फिर एक लेखक से भट हुई तो उसे पत्रकारिता में सबसे अधिक यश और सम्मान मानकर लेखन शुरू कर दिया। २४ वर्ष तक २४ धंधे बदले और वह युवक कुछ भी न सीख सका हाँ वानप्रस्थ का समय अवश्य आ गया पर उससे आत्म-कल्याण की साधना भी न करते बनी।
(३) एक राजा एक साधु के पास जाकर बोला-महाराज किसी काम के लिये उपयुक्त समय कौन सा है? यह कैसे जाना जाये। साधु क्यारी गोड़ते रहे बोले कुछ नहीं। राजा दूसरे दिन भी और वही प्रश्न किया। साधु फिर भी कुछ न बोलकर पौधे लगाते रहे। शाम को राजा फिर साधु के पास जाकर बोले-महाराज आपने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। पौधों को पानी लगाते हुए साधु बोले-पहले भी उत्तर दिया अभी भी दे रहा हूँ तुम समझते नहीं तो क्या करूँ। राजा ने समझा जो काम सामने है उसे अभी पूरा करना सबसे अच्छा अवसर है।
(४) चार्ल्स डिकन्स को निबंध लिखने का शौक था। वे उन्हें लिखते और फाड़ देते इसी बीच उन्हें कर्ज न चुका सकने के कारण जेल हो गई। जेल में सब सो जाते तब वे चुपचाप खिलते-लिखने का अभ्यास उन्होंने नहीं छोड़ा। एक दिन किसी ने इनका निबन्ध पढ़ा तो वह बहुत अच्छा लगा उसे एक पत्रिका में छपने भेज दिया। सम्पादक ने लेखक का नाम अज्ञात होने पर भी उस कलम की भूरि-भूरि प्रशंसा की फलतः डिकन्स का हौसला बढ़ गया अब वे प्रकाश में आ गये और विपुल धन तथा यश अर्जित कर दिखा दिया। समय का सदुपयोग कितनी कीमती वस्तु है।
(५) एक लड़के को पढ़ने को बहुत कहा जाता पर वह ध्यान ही नहीं देता किन्तु एक दिन अकस्मात् दुर्घटना हो गई उसमें एक टाँग टूट गई। अब इस लड़के के प्रति कोई सहानुभूति व्यक्त करने आता तो वह उससे जल्दी ही छुटकारा लेकर पढ़ने में लगा रहता। फिर उसने लेखनी उठाई तो विश्व-विख्यात साहित्यकार एच. जी. वेल्स के नाम से विख्यात हुआ।
व्यापार में हानि, उद्योग में घाटा, मुकदमें में हार, और लगातार चार-पाँच चुनावों के बाद भी जब अब्राहम लिंकन फिर सीनेट के चुनाव में खड़े हुए तो एक व्यक्ति ने पूछा-जब आपको कोई सफलता नहीं मिलती तो क्यों परेशान होते हैं लिंकन बोले-जब समय नहीं थकता तो हम अपने प्रयत्न से क्यों थके। लिंकन चुनाव तो वह भी हार गये पर एक दिन उन्हें अमरीका का राष्ट्रपति बनने का सौभाग्य मिला।
(६) एक व्यक्ति सुकरात के पास आता और कभी कहता कल से दुकान शुरू कर रहा हूँ कभी कहता, खेती करूँगा, कभी समुद्री व्यापार की बात कहता और सफलता का आशीर्वाद माँगता। सुकरात हँस देते कुछ कहते नहीं। एक दिन वह मनुष्य सामने से फलों की टोकरी लिये आता दिखाई दिया, सुकरात दौड़कर गये और आशीर्वाद देकर बोले-भाई तुम खूब उन्नति करोगे। उस आदमी ने पूछा-मैं जिस आशीर्वाद के लिये पहले कई बार आपके पास गया उसे आज आप खुद देने आये, सुकरात बोले-हाँ भाई आज तुमने समय की पहचान जो कर ली।
(७) क्यूबा के एक गाँव में केवल एक ही युवक साक्षर था उसे भी प्रतिदिन शहर जाना पड़ता था पर लगन के धनी इस युवक ने शहर से लौटकर प्रतिदिन एक घंटा प्रौढ़ शिक्षण का क्रम बनाया और १० वर्ष में ५०० आबादी वाले सारे गाँव को साक्षर ही नहीं विचारशील लोगों का गाँव बना दिया।
(२४) ‘‘अवरोध हमें अधीर न बनाने पाएँ’’
प्रश्न ——
(१) क्या आप बता सकते हैं कि क्यों ईश्वर ने सुविधा के साथ असुविधा और संतोष के साथ असंतोष को बनाया है। (२) केवल सुविधा संतोष अनुकूलता ही यदि बनाये गये होते तो उससे हमारी क्या हानि होती। (३) प्रगति का मार्ग संघर्ष होता है सिद्ध कीजिये। (४) यह हम किसी महान कार्य को कर रहे हैं और यदि कार्य में कोई रुकावटें आ जायें तो हमें क्या करना चाहिये। (५) जिन्हें केवल सफलता, केवल लाभ अनुकूलता ही चाहिये क्या वे इस संघर्ष शील संसार में अपने को दृढ़ बनाये नहीं रख सकते। (६) चिन्तित व्यक्ति और साहसी व्यक्ति में क्या अन्तर है स्पष्ट कीजिये? (७) क्या आप ऐसे कोई उदाहरण बता सकते हैं किसी व्यक्ति के सामने कई बार अवरोध आये पर वह आखिर में बराबर जीता हो। (८) इस संसार में संतोष और आनन्द का जीवन कौन व्यतीत कर सकते हैं। (९) ‘‘सफलता की बड़ी आशाएँ रखना’’ किस प्रकार हमारे लिये लाभदायक सिद्ध होगा।
कथाएँ ——
(१) श्री रफी अहमद किदवई का अपने एक मित्र से राजनीतिक विरोध हो गया। उन्हीं दिनों उन सज्जन की पुत्री का विवाह था। उन्होंने सबको निमंत्रण दिया पर किदवई जी को जान बूझकर निमंत्रण न दिया फिर भी किदवई जी विवाह में पहुँचे और कन्या को आशीर्वाद दिया। यह देखकर वह सज्जन आत्म ग्लानि और पश्चाताप से भर गये उन्होंने किदवई जी से निमंत्रण न देने की भूल पर क्षमा माँगी तो किदवई जी बोले-अपनी बेटी के विवाह पर भी कहीं निमन्त्रण की जरूरत होती हैं। इस पर तो उन सज्जन का हृदय पानी-पानी हो गया इस घटन से आपसी मनमुटाव भी दूर हो गया।
बिहार का एक किसान गाँधी जी के दर्शन करना चाहता था। तभी उसने सुना कि गाँधीजी बेतिया आ रहे हैं। वह रेलगाड़ी से बेतिया चल पड़ा। जिस डिब्बे में वह घुसा दुबला-पतला व्यक्ति सीट पर लेटा हुआ था। यद्यपि डिब्बे में बहुत जगह खाली पड़ी थी उठाते हुए बोला-ऐसे लेटे हो जैसे गाड़ी तुम्हारे बाप की हो’’ साथ से इशारा करके सबको चुप कर दिया। वह व्यक्ति वहीं से बगल में बैठकर गाने लगा-धन गाँधीजी महाराज दुखियों के दुःख मिटाने वाले’’ सब लोग मुस्करा रहे थे गाड़ी चल रही थी। बेतिया आया तो सब लोग गाँधीजी की जय कहकर उसी डिब्बे में घुस पड़े और उन सज्जन को फूल माला पहनाने लगे, किसान हक्का-बक्का रह गया और गाँधीजी के पैरों में गिरकर क्षमा माँगने लगा, गाँधीजी बोले-तुम्हारा कोई दोष नहीं मुझे ही नहीं लेटना चाहिये था।
(३) श्री विश्वनाथ शास्त्री कुछ प्रतिक्रियावादी ब्राह्मणों की आशंकाओं व तर्कों का उत्तर दे रहे थे। उनके अकाट्य प्रमाणों के आगे ब्राह्मण टिक नहीं पा रहे थे तभी प्रतिपक्षी दल के एक सदस्य ने शास्त्री जी की नाक में सुँघनी घुसेड़ दी। शास्त्री जी तनिक भी बिना उत्तेजित न हुए, नाक रगड़ी और बोले-थोड़ी देर के लिए यह प्रहसन भी खूब अच्छा रहा अब हमें फिर मूल विषय पर आ जाना चाहिए। शास्त्री जी की इस सहनशीलता के कारण ब्राह्मणों ने अपनी हार मान ली।
(४) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग ले रहे थे। घर के प्रबंधक श्री महेन्द्र प्रसाद का देहान्त हो जाने पर घर की देख रेख करने वाला न रह गया। कर्ज इतना बढ़ गया कि घर के शाल-दुशाले बिक जाने पर भी सारा ऋण १४ वर्ष में भर पाई हो पाया तब भी वे देश सेवा के कार्य से विमुख नहीं हुए।
(५) एक दिन क्रोध गुस्सा होकर बोला-यह संसार बहुत खराब हो गया है इसका नाश करके छोड़ूँगा। धीरे से शान्ति बोली-तुम्हें जल्दबाजी हैं इसलिए ऐसा सोचते हो-जो लोग मानते हैं कि भगवान् की सृष्टि हमेशा बनी रहेगी वे न तो ऐसा क्रोध करते हैं न ऐसी जल्दबाजी।
(६) पाण्डव अज्ञातवास कर रहे थे एक दिन उन्हें बेहद प्यास लगी, पानी के लिये नकुल को भेजा गया। नकुल एक सरोवर के पास पहुँचे जिसमें एक यक्ष रहता था। यक्ष वहाँ जो भी पहुँचता उसी से कुछ प्रश्न पूछता। जो प्रश्नों का उत्तर नहीं देता वह पानी नहीं पी सकता था।
यक्ष ने नकुल से भी प्रश्न किया पर नकुल बेहद प्यासे थे वे अधीर हो उठे और जैसे ही पानी पीने के लिये झुके शापवश अचेत होकर गिर पड़े। यही दशा सहदेव, भीम और अर्जुन की भी हुई अन्त में युधिष्ठिर गये और शान्तिपूर्वक यक्ष के प्रश्नों का उत्तर दिया, स्वयं पानी पिया, भाइयों को जिलाया और द्रौपदी के लिये भी जल ले आये।
(७) गड़रिये ने सभी भेड़ों को तो बाड़े में बन्द कर दिया पर जिस बच्ची भेड़ को वह कंधे पर उठा कर लाया था उसे नहलाया, धुलाया, हरी घास खाने को दी। पास की चौपाल में शिष्यों सहित ईसामसीह बैठे थे। उन्होंने पूछा-तात तुमने और भेड़ों को तो बन्द कर दिया इसी बच्चे से इतना प्यार क्यों? गड़रिया बोला-महाराज यह रोज भटक जाता है, इसे इसलिये इतना प्यार देता हूँ ताकि वह फिर न भटक जाये।
ईसामसीह ने शिष्यों की ओर मुड़कर कहा-तात प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर आते हैं यह तुम इस गड़रिये से सीखो।
(२५) आवेशग्रस्त न हों-शान्ति और विवेक से काम लें।
प्रश्न ——
(१) शरीर में बुखार आने पर क्या-क्या लक्षण उत्पन्न होते हैं? तथा उससे क्या हानियाँ होती हैं? (२) मस्तिष्क को बुखार आ गया ऐसा हम कब कह सकते हैं। (३) आवेशित होने के कारण क्या हैं? (४) आवेशित होने से हम में क्या परिवर्तन हो जाते हैं? तथा इससे क्या हानियाँ होती हैं? (५) क्या आवेशित व्यक्ति अपने स्वतः को भी पहुँचाता है? यरि हाँ तो किस तरह? (६) हमें अपना स्वभाव सन्तुलित बनाये रखने के लिये क्या-क्या उपाय करने चाहिये? (७) दूरदर्शी और विवेकवान व्यक्ति की पहचान क्या है? (८) सामने वाले व्यक्ति से हमें क्रोध न करके किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये? (९) क्रोध करने से हमें शारीरिक कठिनाइयाँ क्यों होती हैं!
कथाएँ ——
(१) भगवान् बुद्ध एक ऐसे गाँव में पहुँचे जहाँ अधिकाँश प्रतिक्रियावादी ब्राह्मण रहते थे। एक आदमी को पता चला तो वह बुद्ध के पास पहुँचा और उन्हें गालियाँ बकने लगा। बुद्ध दूसरे लोगों से बात करते रहे। बड़ी देर तक गाली बककर वह ब्राह्मण चुप हो गया तो बुद्ध ने पूछा-महोदय आप किसी को कुछ देना चाहें और वह न ले तो क्या आप हर वस्तु फेंक देंगे। ब्राह्मण बोला नहीं-तब बुद्ध भगवान शान्ति और निश्चिन्तता से बोले-तो फिर मैं आपकी गालियाँ स्वीकार नहीं करता।
(२) बंगाल में कृष्ण नगर राज्य के महाराज ने श्री ताराकान्त की योग्यता व ईमानदारी से प्रभावित होकर उन्हें अपना सचिव नियुक्त किया। एक दिन राजा साहब किसी आवश्यक काम से बड़े सवेरे स्वयं ही राय साहब के घर पहुँचे। उन्होंने जाकर देखा कि उनका नौकर तो पलंग पर सोया है खुद रायसाहब नीचे जमीन में बिछी चटाई पर। धृष्टता के लिये वे नौकर को जगाकर डाँटने लगे तो रायसाहब की नींद टूट गई उन्होंने कहा-महाराज देर तक काम करने से थक कर यह गरीब मेरे बिस्तर पर सो गया तो क्या हुआ-राजा साहब राय साहब की शान्तचित्तता से प्रभावित हुए बिना न रह सके।
(३) आग बोली मूर्ख पानी, यहाँ से हट नहीं तो जलाकर नष्ट कर दूँगी। पानी कुछ नहीं बोला शान्त-चित्त अपने काम से लगा रहा। इस पर अग्नि और भी आग बबूला होकर झपटी पानी से टकरा कर आप ही नष्ट हो गई। यह है आवेशग्रस्त होने का परिणाम।
(४) एक व्यक्ति आया और शेख शादी से कहने लगा-श्रीमान् जी अमुक व्यक्ति आपको गाली दे रहा था। इस पर शेख शादी बिना किसी उत्तेजना या आवेश के बोले-श्रीमान् जी शत्रु बुरा न कहेगा तो क्या अच्छा कहेगा, पर आप तो मित्र होकर मेरे सामने ही मेरी बुराई कर रहे हैं। अपने दोष-दर्शन पर वह व्यक्ति बड़ा लज्जित हुआ।
(५) एक व्यक्ति महावीर स्वामी के पास आया और परीक्षा के तौर पर उन्हें अपशब्द कहने लगा ताकि उनको क्रोध आ जाये। जितनी देर वह अपशब्द कहता रहा-जिनेन्द्र चुप रहे, जैसे ही चुप हुआ उन्होंने कहा-अबुस आओ पहले भोजन कर लें ताकि आपका चित्त हलका हो जाये।
(६) रावण दुर्वचन बोल रहा था तब तक राम चुप-चाप खड़े रहे। विभीषण ने कहा-भगवन् आप शस्त्र प्रहार क्यों नहीं करते। राम बोले-क्षत्रिय मृतकों पर शस्त्र प्रहार नहीं करते। लेकिन रावण तो जीवित है भगवन् विभीषण बोले। इस पर राम ने हँसकर उत्तर दिया-आवेश ग्रस्त मनुष्य और मृतक में कोई अन्तर नहीं क्योंकि उस समय भी मनुष्य मृत्यु के समान ही ज्ञान शून्य हो जाता है।
(७) मोहम्मद साहब युद्ध में एक योद्धा से भिड़े थे उसे पटक कर वे उसका सिर काटना ही चाहते थे कि उसने गाली दे दी मोहम्मद साहब तलवार को मियान में कर खड़े हो गये। उनके एक सिपाही ने पूछा-आपने उसे मारा क्यों नहीं इस पर मोहम्मद साहब बोले-इसने गाली दी तब मुझे क्रोध आ गया उस समय अपने आवेश को ही मारना आवश्यक हो गया क्योंकि वह अपना घोर शत्रु है।
(२६) विचार शक्ति का महत्त्व समझें और सदुपयोग करें।
प्रश्न ——
(१) मनुष्य का विकास किस बात पर निर्भर है? (२) विचार धन से भी बड़ी शक्ति है-सिद्ध करो। (३) कर्तृत्व की प्रेरणा कहाँ से आती है? (४) मनुष्य शरीर का जादू किसे कहते हैं, क्यों? (५) ‘‘विचार’’ शक्ति का आध्यात्मिकता से क्या सम्बन्ध है? (६) विचारों की परख किस तरह की जाये और उन्हें कैसे सुधारा जाए? (७) आत्मलोचन क्यों आवश्यक है? (८) बुरे विचारों से किस तरह बचा जा सकता है? विचारों के उत्पादन का स्रोत क्या है? (९) विचारों की भूल का प्रायश्चित परिमार्जन कैसे किया जाये।
कथाएँ ——
(१) एक तहसीलदार देखने में तो बदसूरत था पर उसकी बौद्धिक क्षमता, असाधारण थी, एक दिन एक कलेक्टर ने व्यंग करते हुए कहा-जिस समय भगवान् के यहाँ सुन्दरता बँट रही थी। उस समय आप कहते थे? तहसीलदार ने कहा-जहाँ बुद्धि बँट रही थी वहाँ? कलेक्टर इस उत्तर से बहुत लज्जित हो गया।
(२) एक संत के पास जाकर एक जिज्ञासु ने कहा-महात्मन् बुरे विचार मेरा पीछा ही नहीं छोड़ते? कोई उपाय बताइए? साधु बोला-अपनी स्त्री से जाकर पूछो। वह मनुष्य घर लौटा तो देखा स्त्री गोबर से घर की लिपाई कर रही है। आदमी ने पूछा-गन्दगी दूर करने के लिये। मनुष्य यह उत्तर सुनकर समझ गया विचारों की गन्दगी दूर करने के लिये स्वस्थ विचारों को मस्तिष्क में भरना आवश्यक है।
(३) अति ज्वर से तप रहे शरीर वाले एक बीमार मनुष्य ने देखा आग का एक टुकड़ा पानी में गिरकर बुझ गया। हाथ डालकर देखा तो आग बुझ गई थी। कोयला ठंडा पड़ गया था। उसने स्त्री से कहकर एक टब भरवाया और जाकर खुद उसी में बैठ गया। ठण्ड के कारण सन्निपात हो गया। वैद्य ने आकर देखा और सारी बात मालूम हुई तो कहा-गुण कर्म और स्वभाव की परख किये बिना जो निर्णय लिये जाते हैं वह ऐसे ही संकट पूर्ण होते हैं।
(४) बन्दर नदी में तैर रहा था तभी मगर ने उसकी टाँग पकड़ ली। बन्दर हँसा और बोला-बहुत खूब मगर जी लकड़ी का ढूँठ पकड़ कर सोच रहे हो मैंने बन्दर पकड़ लिया। मगर ने अपनी बेवकूफी समझ कर पाँव छोड़ गया। जो विपत्ति में धैर्य रखकर विचार करते हैं वह कि संकटों से भी पार पा लेते हैं।
(५) एक घर में चोर घुसे और गृहपति को मार-मार कर पूछने लगे, तुम्हारा खजाना कहाँ है। घर का मालिक पिट रहा था और तरह-तरह की अनुनय विनय कर रहा था। यह देखकर उसकी बुद्धिमान स्त्री बोली-आओ तुम्हें मैं खजाना दिखाती हूँ यह कहकर वह उन्हें तहखाने में लग गई। वहाँ पहुँच कर बोली-अरे चाबी तो ऊपर ही रह गई। पुलिस को बुलाकर उसने चोरों को पकड़वा दिया। पुलिस वालों ने संकट में भी धैर्य और बुद्धि से काम लेने से स्त्री के गुण की बड़ी प्रशंसा सा की।
(६) एक बन्दर पकड़ में नहीं आ रहा था। अन्त में एक मदारी ने एक युक्ति निकाली, उसने एक संकरे मुँह का घड़ा लिया और उसमें बन्दर को दिखा-दिखाकर तमाम रोटियाँ भर दीं और घड़े को खुला छोड़कर आप छिपकर बैठ गया। बन्दर ने आकर घड़े में हाथ डाला और मुट्ठी भर रोटी पकड़ कर हाथ निकालना चाहा तो हाथ घड़े के मुँह से बाहर न निकला। बन्दर इसी तरह खीझ-खीझ कर हाथ निकालने का प्रयत्न करता न निकलने पर अपने ही हाथ को चबाता रहा। थक गया तो मदारी ने आकर पकड़ लिया। यह था विचार शीलता और अबुद्धिमत्ता का अन्तर।
(२७) आरोग्य रक्षा के लिये सन्तुलन आवश्यक है?
प्रश्न ——
(१) स्वास्थ्य की सुरक्षा के सम्बन्ध में हमें सावधानी बरतना चाहिये? (२) बीमारी और कमजोरी से अपनी रक्षा कौन कर पाता हैं? (३) आराम तलबी एक अभिशाप है सिद्ध कीजिये? (४) सार्वजनिक स्वास्थ्य रोज-रोज गिरते जाने के कारण क्या हैं? (५) स्वास्थ्य रक्षा का नितान्त आवश्यकता क्यों है? (६) जिस दिन से शारीरिक श्रम का महत्त्व हमारी समझ में आ जावेगी हमें क्या लाभ होगा? (७) मेहनत न करने का दण्ड मनुष्य किस प्रकार से चुकाता है? (८) स्वास्थ्य रक्षा के लिये मनुष्य और स्त्रियों को क्या-क्या शारीरिक श्रम करना चाहिये? (९) हमारे मनोविकारों का हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? (१०) स्वास्थ्य रक्षा के लिये हमें मानसिक रूप से क्या प्रयत्न करना चाहिए?
कथाएँ ——
(१) बापू ने अपनी सारी सम्पत्ति सार्वजनिक उपयोग के लिये दान कर दी। इन्हीं दिनों गोर्की की बहन की एक मात्र पुत्री भी विधवा हो गई। वे खुद भी विधवा थीं और गाँधीजी की आश्रिता थीं। उन्होंने गाँधीजी को पत्र लिखा-अब तो उदर पोषण के लिये पड़ोसियों का अनाज पीसना पड़ता है। कोई उपाय बताइये जिससे हम अपना और अपनी पुत्री का पेट पाल सकें। गाँधीजी ने उत्तर में लिखा-किसी पड़ोसी की चक्की मत पीसो, यहीं आ जाओ मैं भी आजकल चक्की पीसता हूँ। अब दोनों साथ-साथ पीसा करेंगे तो मन भी लगेगा और मेरे साथ तुम भी स्वस्थ और निरोग रहोगी।
(२) वाशिंगटन कार्यालय से लौटकर प्रतिदिन दो घंटे खराद का काम करते और कुर्सी मेजें बनाया करते एक दिन वे खराद चला रहे थे कि उनके एक मित्र वहाँ पहुँचे और बोले-बाजार में बहुत अच्छा फर्नीचर मिल सकता है फिर इस छोटे से काम में समय गँवाने से क्या फायदा। वाशिंगटन ने उत्तर दिया-भाई अच्छे सामान की बात नहीं, मैं आफिर की सुस्ती दूर किया करता हूँ देखो न इसीलिये तो मैं स्वस्थ और निरोग हूँ।
(३) इंग्लैण्ड की विश्व सुन्दरी से पूछा गया। आपकी सुन्दरता और सुगठित शरीर का रहस्य क्या है? उन्होंने बताया-दिन में कई वार शुद्ध जल पीना और परिश्रम से जी न चुराना।
(४) एक किसान के चार बेटे थे पर थे चारों आलसी और काम चोर। पिता मरने लगा तो उसे एक ही चिन्ता थी कि इन आलसी बेटों का पालन कौन करेगा? आखिर उसे एक उपाय सूझा। उसने चारों लड़कों को बुला कर कहा-उस खेत में मैंने धन गाड़ रखा है। खोदकर निकाल लेना। यह कहते हुए उसके प्राण पखेरू उड़ गये।
दूसरे दिन लड़कों ने सारा खेत गोड़ डाला पर कहीं धन न निकला, तभी एक माली उधर से गुजरा उसने कहा-धन नहीं निकला तो क्या हुआ इस खेत में बीज बोकर तो देखो, लड़कों ने शाक-भाजी के पौधे लगा दिये उससे इतनी शाक-भाजी हुई कि उनका वर्ष भर का खर्च निकल आया। लड़के बाप के मन्तव्य को समझ कर उस दिन से परिश्रमशील बन गये।
(५) तब बीमारियाँ एक पहाड़ पर रहा करती थी। उन दिनों की बात है एक किसान को जमीन की कमी महसूस हुई अतएव उसने पहाड़ काटना शुरू कर दिया। पहाड़ बड़ा घबराया। उसने बीमारियों को आज्ञा दी-बेटियों टूट पड़ो इस किसान पर और इसे नष्ट भ्रष्ट कर डालो। बीमारियाँ दण्ड बैठक लगाकर आगे बढ़ी और किसान पर चढ़ बैठी, किसान ने किसी की परवाह नहीं की डटा रहा अपने काम में। शरीर से पसीने की धारा निकली और उसी में लिपटी हुई बीमारियाँ भी बह गईं। पहाड़ ने क्रुद्ध होकर शाप दे दिया-मेरी बेटी होकर तुमने हमारा इतना काम नहीं किया अब जहाँ हो वहीं पड़ी रहो। तब से बीमारियाँ परिश्रमी लोगों पर असर नहीं कर पातीं गन्दे लोग ही उनके शिकार होते हैं।
(२८) स्वास्थ्य रक्षा के लिये प्रकृति का अनुसरण आवश्यक है?
प्रश्न ——
(१) वन्य जीव स्वस्थ न निरोग क्यों रहते हैं? (२) निरोग रहने के उपाय लिखो-३ उपयुक्त भोजन की परीक्षा कैसे की जाय? (४) हमारा सर्वोत्तम भोजन क्या है? (५) आहार में सबसे हानिकारक वस्तु क्या होती है? (६) तले व भुने पदार्थ स्वास्थ्य के लिये अहित कर क्यों होते हैं? (७) स्वास्थ्य के लिये कैसा वातावरण जरूरी है? (८) परिश्रम के क्या लाभ हैं, शारीरिक श्रम कितना किया जाए? (९) ब्रह्मचर्य जीवन के लिये क्यों आवश्यक है? (१०) हमारा जीवन किस प्रकार का हो?
कथाएँ ——
(१) प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सक डॉ० जैफर्सन से एक आदमी ने पूछा-तमाम रोगों की एक औषधि क्या हो सकती है। जैफर्सन का उत्तर था-कुछ दिन जंगल में किसी नदी के किनारे का एकान्तवास और कच्चे फल-फूल अन्न का आहार।
(२) महाराज अजातशत्रु एक बार एक यात्रा के समय बीमार पड़ गये। वह बीमार पड़ गये पर वहाँ कोई वैद्य नहीं था। महाराज ने एक वैद्य बुलाकर ग्रामवासियों के लिए औषधि की व्यवस्था कर दी-पर लम्बे समय तक वैद्य के पास एक भी रोगी न आया-आखिर वैद्यराज को दिन काटना कठिन पड़ गया तब उन्हें वापस बुला लिया गया।
(३) सर्वेक्षण से पता चला कि रूप से अजरबेजान क्षेत्र के लोग दुनियाँ में सबसे अधिक दीर्घ जीवी होते हैं इस पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने उसके कारणों की खोज की तो पता चला कि-वहाँ के लोग अधिकांश समय खुले खेतों में काम करते, पहाड़ों पर चढ़ते, झरनों का पानी पीते और आहार में भी शाक और दूध आदि प्राकृतिक तत्त्वों को ही प्रमुखता देते हैं इसी कारण वे दीर्घ जीवी होती हैं। ये लोग इन्द्रिय निग्रह का भी पालन करते हैं।
(४) गुरुवर! एक शिष्य ने पूछा-मनुष्य इतनी सुविधा में रहता है अच्छी-अच्छी चीजें खाता है फिर भी उसे हमेशा बीमारी लगी रहती हैं। हमेशा दवा खाता रहता है पर जिन्हें घर मकान औषधि उपलब्ध नहीं वह जंगल के जीव हमेशा नीरोग रहते हैं सो क्यों? आचार्य ने बताया वे प्राकृतिक जीवन जीते हैं इसलिए-कपड़े पहनना, प्रकृति के विपरीत आचरण करना, परिश्रम से जी-चुराना चाहे जो कुछ चाहें जैसे तल भूनकर खाना यह अप्राकृतिक आचरण ही-मनुष्य को रोगी और प्राकृतिक आचरण ही अन्य जीवधारियों को स्वस्थ रखते हैं।
(५) अमरीकी दार्शनिक थोरी शराब व सिगरेट नहीं पीते थे। एक बार एक भोजन में मित्रों ने शराब पीने का बहुत आग्रह किया-बोले आप पीकर तो देखें इसमें कितनी मस्ती है। थोरी ने कहा-जो मस्ती जो शक्ति पानी में है वह बेचारी शराब में कहाँ-आप तो हमें एक गिलास जल दे दीजिए-उन्होंने जल को ही सर्वोत्तम पेय माना और उसकी अतिरिक्त कभी कुछ नहीं पिया।
(२९) आहार और विहार का असंयम न बरतें।
प्रश्न ——
(१) ‘शारीरिक सामर्थ्य’ बनाये रखना हमें क्यों आवश्यक है? (२) अस्वस्थ रहने के कारण हमें क्या हानियाँ हैं? (३) शारीरिक स्वास्थ्य रक्षा के लिये कौन-कौन से कार्य हमें करना चाहिए? (४) आहार के क्या नियम हमें पालन करना चाहिए? (५) आहार हमें किस दृष्टि से ग्रहण करना चाहिए? (६) किस तरह की वस्तुएँ खानी चाहिये, किस तरह की नहीं। तथा हमारी मनः-स्थिति उस समय किस तरह की होनी चाहिये? (७) एक बार भोजन करने के बाद फिर भोजन कब और कैसे करना चाहिए? (८) भोजन किस तरह से किया जाना चाहिये? (९) आहार के सिवा और किस पर नियंत्रण रखा जाना चाहिये? किस तरह? (१०) नियमित दिनचर्या किस प्रकार श्रेष्ठ, शक्तिशाली बनाती है?
कथाएँ ——
(१) प्रसिद्ध अमरीकी-उद्योगपति हेनरी फोर्ड जिनके कारखाने में ५ सेकेण्ड में एक फोर्ड कार बनती है। एक बार फैक्टरी घूमने आये वहाँ मजदूरों को मोटी-मोटी रोटियाँ खाते देखकर बोले-मेरी मृत्यु होगी तब भगवान् से एक ही वरदान मागूँगा कि वह मुझे भी मजदूर बनाये? साथी ने साश्चर्य पूछा ऐसा क्यों तो उन्होंने बताया-स्वाद के असंयम के कारण मेरा पेट इतना खराब गया है कि चाय और सिगरेट के अतिरिक्त कुछ पचा ही नहीं पाता-मुझे सिगरेट के अतिरिक्त कुछ पचा ही नहीं पाता-मुझे मजदूरों को इस तरह खाते देख ईर्ष्या होती है।
(२) कण्व ऋषि के पुत्र सौभरि-ऋषिपद प्राप्त करने के समीप ही थे तब की बात है एक दिन वे एक नदी के किनारे गये और एक मच्छ राज की काम क्रीड़ा देखने लगे उस दृश्य की उपेक्षा करने चाहिये थी कुचेष्टा में रस लेने का परिणाम यह हुआ कि उनकी वासना जग गई। तप छोड़कर उन्होंने प्रसदस्यु की कन्या से विवाह कर पुत्रैषणा में डूब गये और एक साधारण गृहस्थ मात्र रह गये। काम वासना ने उनका सारा ओज, तेज, और ब्रह्मवर्चस नष्ट कर दिया।
(३) सुन्द और उपसुन्द सगे भाई थे दोनों के पराक्रम का कोई ठिकाना न था। पर सबसे बड़ी बात थी-दोनों का प्रेम और संगठन’’ इसी बूते पर दोनों ने बड़े-बड़े देवताओं तक को जीत लिया था।
पर तिलोत्तमा नामक-सुन्दरी को देखते ही दोनों की कामवासना भड़क उठी। दोनों ही उसे प्राप्त करने के प्रयत्न में आपस में ही लड़ मरे और जो किसी के द्वारा नष्ट नहीं ही सके थे वह अपने आप नष्ट हो गये।
(४) दमयंती अकेली वन में भटक रही थीं तब एक दुष्ट बहेलिया उन पर झपटा और बलपूर्वक उनका शील अपहरण करने पर तुल गया।
दमयंती न डरी न भयभीत हुईं। क्षत्राणी ने मुकाबला किया और बहेलिये को धर पटका। व्याध सती की झटक सह नहीं सका उसकी वहीं मृत्यु हो गई।
(५) महर्षि गौतम अभी सोये थे कि मुर्गे ने बाँग दी वे उठकर स्नान के लिए चल पड़े। स्नान व संध्या हो चुकी फिर भी सूर्य न निकला तो वे समझ गये कोई छल हुआ। घर आये तो देखा कि इन्द्र और चन्द्रमा ने उनकी पत्नी अहिल्या का सतीत्व नष्ट कर दिया है। उन्होंने ही मुर्गे की बाँग दी थी महर्षि ने तीनों को शाप दे दिया। इन्द्रियसक्ति रोक न सकने के कारण इन्द्र को हजार-भग चन्द्रमा को कलंकी और अहिल्या को पत्थर हो जाना पड़ा। आज भी उनके इस कुकृत्य पर लोग उन्हें अश्रद्धा से देखते हैं।
(६) भस्मासुर ने शिव को प्रसन्न कर यह वरदान पाया कि जिसके ऊपर हाथ रख देगा वही भस्म हो जायेगा। वरदान पाकर वह बड़ा शक्तिशाली हो गया किंतु कामुकता के कारण अपने इष्टदेव की ही अहित की बात सोच बैठा। भगवान विष्णु स्त्री वेश बनाकर पहुँचे और बोले एक हाथ कमर और दूसरा हाथ सिर पर रखकर नाचो तो विवाह कर लूँ। कामुक ने अपने विवेक बुद्धि खो दी। वैसे ही नाचने के उपक्रम में खुद ही जलकर भस्म हो गया।
(३०) संयम बरतें सुखी रहें।
प्रश्न ——
(१) संयम का अर्थ समझाते हुए उसके महत्त्व पर प्रकाश डालिये? (२) संयम कितने प्रकार का होता है? (३) किसी संयम के प्रकार एवं लाभ बताओ। (४) अपच का मूल कारण क्या है? ब्रह्मचर्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिये। (६) दृष्टि संयम से क्या लाभ है? (७) श्रवण संयम का तात्पर्य क्या है? (८) नासिका संयम का ध्यान कैसे रखा जाय? (९) समृद्धि का सदुपयोग क्या है? (१०) सबसे कल्याण का राज मन्त्र क्या है?
कथाएँ ——
(१) पड़ोस की एक स्त्री नैपोलियन से बहुत छेड़-छाड़ करती, पर नेपोलियन उसकी ओर ध्यान न देकर अपनी पढ़ाई में जुटा रहता। कुछ दिन पीछे नैपोलियन अपने देश का सेनापति बन गया। वह अपने सम्बन्धियों से मिलने घर गया तो उस स्त्री से भी मिला और पूछा-यहाँ कोई नैपोलियन नामक लड़का पढ़ता था, आप उसे जानती है? इस पर स्त्री बोली-हाँ था एक नीरस किताबी कीड़ा। नैपोलियन हँसकर बोला-श्रीमती जी! यदि वह उन दिनों नीरस न रहा होता तो आज देश का प्रधान सेनापति बनकर आपके सामने न खड़ा होता।
(२) सप्तर्षियों की बैठक होने वाली थी उससे पूर्व ही वेदव्यास को महाभारत लिखकर देना था समय कम था तो भी उन्होंने गणेश जी की मदद ली और महाभारत लिखना प्रारम्भ कर दिया। महाभारत समय से ही पूर्व लिखा गया। अंतिम श्लोक लिखाते हुए हुए व्यास जी ने कहा-गणेश आश्चर्य है कि पूरा महाभारत लिख गया और बीच आप एक शब्द भी नहीं बोले। गणेशजी ने कहा-भगवन् इस संयम के कारण ही हम लोग वर्षों का कार्य कुछ ही दिन में सम्पन्न करने में समर्थ हुए हैं।
(३) कौम्स ने मार्ग में पड़ी एक घायल स्त्री को देखा, एक क्षण ठहरे फिर कुछ सोच कर आगे चल पड़े। पीछे उनके गुरु कण्व आये उन्होंने उस स्त्री को देखा तो करुणा उभर आई। कर आश्रम में उपचार किया। कौत्स को बुलाकर उन्होंने पूछा-तात क्या तुमने इस घायल स्त्री को नहीं देखा था? देखा था गुरुवर, सिर नीवा किए, कौत्स ने कहा-किन्तु स्त्री का सौन्दर्य मुझे विचलित न कर दे इसी भय से इसे उठाया नहीं। महर्षि कण्व ने कहा-तात जिस प्रकार पानी से बाहर तैरना नहीं सीखा जा सकता उसी प्रकार सामाजिक कर्तव्यों से बाहर रहकर संयम का भी अभ्यास नहीं हो सकता।
(४) स्वामी विवेकानन्द उन दिनों साधक जीवन यापन कर रहे थे। एक दिन एक सुन्दरी युवती उनके कमरे में आई उत्तेजक हाव-भाव प्रदर्शित करने लगी। विवेकानन्द को लगा जैसे उन्हें मन पर वश करना कठिन हो तो उन्होंने धोती खोली और जलते तवे पर बैठ गए। युवती यह देखते ही भाग गई पर स्वामी जी का चूतड़ बुरी तरह जल गया। एक महीना अस्पताल में इलाज कराना पड़ा पर स्वामी जी ने मन की वासना स्वीकार न की।
(५) शर शैया पर पड़े भीष्म पितामह कौरवों पाण्डवों को धर्मोपदेश दे रहे थे। तभी द्रौपदी को हँसी आ गई। द्रौपदी हो हँसते देख पितामह ने पूछा-तात असमय हँसने का कारण क्या है?
द्रौपदी बोली-पितामह क्षमा करें आज तो आप इतने ज्ञान की बातें कर रहे हैं एक दिन कौरवों की सभा में मेरा अपमान हो रहा था-वस्त्र खींचे जा रहे थे, तब आपका ज्ञान कहाँ चला गया था। भीष्म पितामह बोले-बेटी तब मेरे मन पर कुधान्य का प्रभाव था जो कई दिन के उपवास के कारण अब दूर हो गया है।
(३१) ‘‘हम अस्वच्छ न रहें-घृणित न बनें’’
प्रश्न ——
(१) गन्दा आदमी किस कारण घृणित माना जाता है? (२) बीमारी किस जगह में अधिक होती है? (३) हमें भारतवर्ष में स्नान किस प्रकार करते रहना चाहिए? (४) अपने दाँतों को अधिक टिकाने तथा मुँह में बदबू न आने देने के लिए हमें क्या करना चाहिए? (५) अपने कपड़े जो कि हम रोज व्यवहार में लाते हैं किस प्रकार स्वच्छ किये जाना चाहिए? (६) अपने घरों को अपने कमरों को किस प्रकार जमाना चाहिये? (७) मलमूत्र से सफाई रखने के लिए क्या उपाय किये जाना चाहिए? (८) स्वच्छ रहने का प्रतिफल हमें क्या मिलेगा?
कथाएँ ——
(१) धूल धूसरित वेश और अस्त-व्यस्त केश एक व्यक्ति संत सुकरात के पास जाकर बोला-महाराज धर्म दीक्षा दीजिये। सुकरात बोले-जाओ और साबुन लेकर कपड़े साफ करो-यही तुम्हारी दीक्षा है।
(२) साधु ने मल्लाह के लड़के को देखा सारे शरीर में फोड़े, दाद फुंसी हो रही थीं। बोले-क्यों स्नान नहीं करता क्या? उसका पिता बोला-महाराज हम लोग मल्लाह हैं हम तो पानी में काम काम करते हैं कई बार स्नान होता है साधु बोले-एक बार स्नान करो पर मैल छुटाकर करो तो वही सौ स्नान के बराबर है।
(३) आइजन हावर अमरीका के राष्ट्रपति चुने गये तो उन्हें बहुत से लोगों ने उपहार दिये। एक महिला ने झाड़ू दी। आइजन हावर ने एक भोज में वह झाड़ू दिखाते हुए कहा-यह है मेरा शरीर और मन की सफाई सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है मैं इसका पूरा ध्यान रखूँगा।
(४) वर्धा गाँधीजी के आश्रम में दो साधु आये और बोले-हमें सेवा का काम दीजिये। गाँधीजी ने उस समय तो उन्हें खिला पिला कर सुला दिया पर सवेरे ही झाड़ू लेकर पहुँचे और बोले-आज आश्रम की सफाई आपको करनी है। साधु मौन-मेख निकालने लगे तो बापू बोले-जो सफाई नहीं कर सकता वह सेवा क्या करेगा।
(५) एक गाँव का युवक ऋषि दयानंद के पास जाकर बोला-महाराज मुझे स्वर्ग जाने से कोई नहीं रोक सकता, मैंने १०८ बार गंगाजी का स्नान किया है मेरे सभी पाप धुल गये। महर्षि हँसकर बोले-तेरे शरीर का मैल छूटा नहीं मन का मैल क्या छूटेगा-बेटा जा और पहले स्नान का ही स्वरूप सीख कर आ।
(६) गाँधीजी अपने कार्यकर्ताओं के साथ गाँव वालों को सफाई का महत्त्व समझा रहे थे और उन्हें मूत्रालयों तथा संडासों की सफाई की योजना बता रहे थे तभी एक आदमी ने कहा-महाराज यह काम आप भंगियों को सिखाइए हमें क्यों सिखाते हैं। गाँधीजी बोले-गन्दगी आप करें और सफाई भंगी करें यह अनीति अधिक दिन च चलेगी। अपनी सफाई की व्यवस्था सबको आप करनी पड़ेगी।
(३२) ढलती आयु का उपयोग इस तरह करें
प्रश्न ——
(१) पुरानी भारतीय परम्परा के अनुसार मानव-जीवन कितने भागों में विभक्त है तथा उनमें उन्हें क्या-क्या कार्य करना होता हे? (२) जब तक हम पुरानी भारतीय परम्परा के अनुसार जीवन निर्वाह करते रहे हमें क्या लाभ होता रहा। (३) जीवन का प्रारम्भिक चौथाई भाग क्या कहलाता है? इसका क्या महत्त्व है। (४) गृहस्थाश्रम के बारे में लिखिये? (५) वानप्रस्थाश्रम में मनुष्य घर के लिये क्या काम करता रहता था? (६) वानप्रस्थाश्रम में मनुष्य समाज के लिए किस प्रकार लाभ दायक होता था? (७) अन्तिम आश्रम क्या है तथा इसके कार्य क्या हैं? (८) वानप्रस्थ आश्रम परम्परा के लोप हो जाने से हमारे भारतीय समाज को क्या हानियाँ उठानी पड़ी हैं? (९) आपके विचार में इन चारों आश्रमों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण आश्रम (समाज के लिये) कौन सा है? तथा क्यों?
कथाएँ ——
(१) ५५ वर्ष की आयु में अध्यापक से रिटायर एक व्यक्ति ने विद्या की साधना प्रारम्भ की। लोगों ने कहा-यह भी कोई पढ़ने की आयु है इस पर उन्होंने कहा-यदि मनुष्य घर गृहस्थी के मोह का परित्याग कर सकें तो इस आयु जैसा बौद्धिक और आत्मिक विकास किसी आयु में भी नहीं हो सकता। उन्होंने अपनी साधना प्रारम्भ की सारी दुनियाँ में वेदों का पहला विद्वान होने का गौरव पाया। यह और कोई नहीं शतजीवी पं० दामोदर सातवलेकर थे।
(२) महर्षि याज्ञवल्क्य की आयु ढलने लगी। एक दिन उन्होंने अपनी धन सम्पत्ति का अपनी दोनों पत्नियों मैत्रेयी और कात्यायनी में बँटवारा शुरू कर दिया। मैत्रेयी ने पूछा-स्वामी आज यह बँटवारा क्यों आवश्यक हो गया। याज्ञवल्क्य बोले-भद्रे अब मेरी आयु ढल रही है, इस अवस्था में साँसारिक मोह कम करके लोक सेवा और आत्म-कल्याण की बात सोचनी चाहिए। चतुर मैत्रेयी ने पति की आकांक्षा की गहराई को ताड़ लिया और अपने हिस्से की सारी सम्पत्ति कात्यायनी को सौंप कर स्वयं भी आत्म कल्याण की साधना में जुट गई।
(३) राचरण अपनी वृद्धावस्था में गुरु बालानन्द जी के साथ वैद्यनाथ धाम में रहकर साधना करने लगे। रामचरण को एक दुशाला दे दिया। एक दिन रामचरण ने ठण्ड से सिकुड़ते एक गरीब को देखा। उन्होंने दुशाला उस व्यक्ति को दे दिया। बालानन्दी जी को इसका पता चला तो उन्होंने-जो लोग लोभ, मोह त्याग देते हैं, रामचरण की तरह वही मोक्ष के अधिकारी होते हैं।
(४) शव अड़ गया बोला-यह तो मेरा घर मैं यहाँ से नहीं हटूँगा, घर चाहे तो मुझे छोड़कर हट जाए। दो दिन तक शव पड़ा रहा बन्दूक उठ खड़ी हुई तो बच्चों ने जबरन उठाकर शव को श्मशान घाट पर जा पटका। शरीर के साथ आत्मा भी चली गई पर अनावश्यक मोह का पश्चाताप लेकर गई।
(५) एक साधु ने एक सद् गृहस्थ को समझाया-तात यही अवस्था है जब तुम्हें आत्मोत्थान की साधना में जुट जाना चाहिये घर का मोह त्याग कर समाज को अपने अनुभवों का लाभ श्रद्धा का आनन्द लेना चाहिये लेकिन बुड्ढे के मन में नाती, पोतों का मोह समाया था। बोला-महात्मन् मेरी बिना बच्चे कैसे रहेंगे। वृद्ध घर लौटा, वृद्धावस्था का शरीर रात नींद जल्दी टूट गई उसे लगा बगल के कमरे में कोई बात कर रहा है। ध्यान देकर सुना तो पता चला उसी का लड़का और बहू बात कर रहे हैं, कह रहे हैं बुड्ढा दिन-रात खाँसता है मरता भी नहीं, अपनी टाँग अड़ाता रहता है। अपमान सहकर बुड्ढे को समझ आई और तब उसने घर त्यागा।
(३३) अनीति से सतर्क रहें-अन्याय को रोकें?
प्रश्न ——
(१) अच्छाई हो अथवा बुराई हो वे किस कारण अधिक बढ़ती हैं? (२) हम वस्त्र क्यों पहनते हैं? हम सारा कमाया हुआ पैसा बैंकों में क्यों रखते हैं? हम सारा कमाया हुआ पैसा बैंकों में क्यों रखते हैं? यदि हम ऐसा न करें तो क्या होगा? (३) अन्याय और पुण्य दोनों ही किस प्रकार मानवीय प्रगति में सहायक हैं? (४) यह ठीक है कि हमें किसी को ठगना नहीं चाहिये पर क्या यह यह ठीक है कि हम किसी से ठगे जाएँ। नहीं तो इसके लिये क्या किया जाय? (५) क्या यह ठीक है कि हमें सब कोई पर विश्वास करना ही चाहिये? नहीं तो क्यों? (६) इस समय देवत्व से असुरता का, सज्जनता से दुर्जनता का पलड़ा क्यों भारी है? (७) मित्रों के रूप में शत्रुता करना इस युग का नया फैशन है। किस तरह? सिद्ध कीजिये? (८) हमारी किन दुर्बलताओं के कारण अनीति करने वाले हमें ठग जाते हैं? (९) अनीति से ठगे जाने से बचने के लिये हमें क्या-क्या सावधानियाँ रखना चाहिये? (१०) क्या अनीति का प्रतिरोध करने से जो हानि होती है उसके डर से हमें अनीति का प्रतिरोध नहीं करना चाहिए?
कथाएँ ——
(१) चार्ल्स डार्विन बीमार थे तो घर वालों ने एक पादरी को बुलाया और उनसे धर्म संस्कार करा देने का आग्रह किया। पादरी बोला-जो व्यक्ति जीवन भर धर्म का विरोध करता रहा उसका धर्म संस्कार तभी कराया जा सकता है जब वह ईश्वर में आस्था व्यक्त करे। डार्विन की पुत्री मार्था ने कहा-मेरे पिता जो आजीवन संत की तरह रहे क्या उसमें उन्हें बिना धर्म संस्कार ही स्वर्ग में स्थान नहीं मिल जाएगा। इस पर पादरी बोला-स्वर्ग तो ईश्वर का घर है वह अपने विरोधियों को कैसे प्रवेश देगा-कहकर वहाँ से चल दिया।
(२) काला काँकर के राजा रामपाल सिंह ने ‘‘हिन्दुस्तान’’ नामक पत्र निकालना प्रारम्भ किया। उसके लिये २५०) जो उस समय २०००) के बराबर थे वेतन देकर राजा साहब ने मालवीय जी को नियुक्त किया। राजा साहब शराब पीते थे इस कारण पहले तो श्री मालवीय जी तैयार नहीं हो रहे थे पर जब राजा साहब ने वचन दिये कि वे उनसे कभी भी मिलेंगे बिना शराब पिये ही मिलेंगे। एक दिन भूल से राजा साहब शराब पिये ही उनके पास जा पहुँचे। मालवीय जी-ने उसी दिन इस्तीफा दे दिया और हजार आग्रह करने पर भी दुबारा काम नहीं किया।
(३) समुद्र टिटहरी के अंडे बहा ले गया। इससे उन्हें बड़ा दुःख हुआ दोनों पति-पत्नी रेत भर-भर कर समुद्र में डालने लगे। महर्षि अगत्स्य ने पूछा-टिटहरी तुम रेत से समुद्र तो नहीं पाट सकतीं? टिटहरी बोलीं-न पटे न सही पर अन्याय के प्रतिकार ही परम्परा को नष्ट नहीं होने दूँगी। अगत्स्य का मन भर आया और वे सहायता के लिये उद्यत हो गये और अपने तपोबल से समुद्र के तीन चुल्लू में पी गये। अनीति के विरुद्ध छोटे लोग खड़े हो जाते हैं तो उन्हें चमत्कारी शक्तियों का सहयोग मिले बिना नहीं रहता।
(४) शिवाजी के पिता शाह वीजापुर नवाब के दरबार में कर्मचारी थे। एक बार पिता-बच्चे को लेकर दरबार में गये और शाह को सलाम करने को कहा-शिवाजी ने कहा में आततायी को सलाम नहीं करता। उन्होंने पिता के रोष का भी-ख्याल नहीं किया। उनकी इस दृढ़ता का ही फल था कि समर्थ रामदास ने उन्हें चुना और अन्यायी शासकों के विरुद्ध एक शक्ति के रूप में खड़ा कर दिया।
(५) लोकमान्य तिलक विदेश जाना चाहते थे उन्होंने पंडितों को बुलाकर राय ली सबने उसे धर्म विरुद्ध बताया। तभी-काशी के महोमहापाध्याय ने कहा कहा-पाँच हजार रुपये दें तो कोई व्यवस्था निकाली जा सकती है तिलक ने कहा पैसों से जो व्यवस्था निकाली जा सकती है तिलक ने कहा पैसों से जो व्यवस्था बदल सकती है उन्हें उसकी कोई खास जरूरत नहीं है।
(६) एक स्त्री अपने बच्चे को पीट रही थी। पड़ोस के एक आदमी ने जाकर रोका तो स्त्री बोली इसने मंदिर में चढ़ौती के पैसे चुराये हैं। लड़का रोते-रोते बोला-मैंने तो एक ही दिन पैसे चुराये यह तो रोज दूध में पानी मिलाकर बेचती हैं। आदमी हँसा और बोला स्वयं अनीति पर चलकर दूसरों सदाचारी बनाने की बात सोचने से यही-होता है।
(७) कबूतर को देखकर बाज़ गुर्राया बोला भाग जा नहीं तो नोचकर टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा कबूतर हँसकर बोला-महोदय इसमें क्या बड़ी-बात शक्ति और सत्ता पाकर तो कोई अनीति कर सकता है। जानूँ तो तब जब अपनी शक्ति से दुनिया की अनीति रोक सकें। बाज़ का कोई उत्तर न देते बना।
(८) श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर की विद्वता से प्रभावित होकर अँगरेज ने उन्हें ‘‘सर’’ की उपाधि दी। उन दिनों स्वतंत्रता आन्दोलन की हवा चल रही थी अतएव अँगरेज सरकार एक प्रभाव-शील व्यक्ति को अपने पक्ष में करना चाहती थी। किन्तु श्री टैगोर ने यह कर कि जब हमारे देश के साथ अनीति बरती जा रही हो मेरा यह उपाधि ग्रहण कर सकना असंभव है-उन्होंने उस सम्मान को ठुकरा दिया जिसे हजारों लोग पैसा देकर प्राप्त करने को लालायित थे।
(९) गुरु गोविन्द सिंह का १५ वर्षीय पुत्र अजीत युद्ध करते समय काम आया तो गुरु गोविन्द सिंह ने द्वितीय पुत्र जुझार सिंह को बुलाकर युद्ध की आज्ञा दी। पुत्र ने कहा-प्यास लगी है पानी पी लूँ तब युद्ध में जाऊँगा इस पर गुरुगोविन्द सिंह बोले अनीति और अत्याचार की आग सुलग रही हो तो उसे बुझाने की आवश्यकता सर्वोपरि होती है। पुत्र ने पानी नहीं पिया युद्ध के लिए चल पड़ा और भाई का बदला लेते हुये मारा गया।
(१०) एक आततायी एक स्त्री के साथ छेड़खानी कर रहा था तो उस पर मुक्का जमाने के लिये एक युवक आगे बढ़ा उसके पिता ने रोका-बेटा तुझे क्या पड़ी है घर चल। युवक ने पिता को डाँटते हुए कहा तुम्हारी जैसी खुदगर्जी ने ही अन्याय बढ़ाया उसने बढ़कर गुण्डे को धक्का दिया और जमीन पर पटक दिया।
(३४) जो अनुचित है उससे सहमत न हों
प्रश्न ——
(१) आपके अनीति के पोषण करते रहने से क्या हानियाँ होती हैं? (२) आज के समाज में हम क्यों देख रहे हैं कि अत्याचार अनीति आदि करने वाले काफी साहस से यह कार्य करते जा रहे हैं? (३) जो मनुष्य अनीति का प्रतिरोध नहीं कर सकता क्या वह मनुष्य कहलाने के काबिल है? (४) हमें मनुष्यता के उत्तरदायित्व का मूल्य किस प्रकार चुकाना चाहिए? (५) लोक श्रद्धा के अधिकारी कौन-कौन हैं? (६) सन्त, सुधारक, शहीद, हम किस प्रकार के व्यक्तियों को कह सकते हैं? (७) अनीति का प्रतिकार करो। यह भावना मनुष्यों में जाग्रत करने के लिये हमें क्या प्रयत्न करना चाहिए? (८) यह कभी आपको पिता-माता या परिवार वालों की तरफ से अनीति को मानने का आग्रह किया जाय तो क्या आप आग्रह मान लेंगे? यदि नहीं तो आपको उस समय क्या आवश्यक है। (९) क्या आप कुछ पुराने समय के ऐसे उदाहरण दे सकते हैं कि परिवार वालों की अनीति पूर्ण बातें मानने की अपेक्षा उन व्यक्तियों ने उनसे विद्रोह ही ठीक समझा। (१०) अनीति और अविवेक का सामना करने के लिये हमें किन अस्त्रों का उपयोग करना चाहिए।
कथाएँ ——
(१) अलाउद्दीन ने देगिरि के राजा रामदेव पर चढ़ाई करने से पहले उनके सरदार कृष्णराव को अपनी ओर मिला लिया और आक्रमण कर दिया। जब सारी सेना लड़ रही थी तब देशद्रोही कृष्णराव अलाउद्दीन के लिये जासूसी कर रहा था इसका पता कृष्णराव की धर्म-पत्नी वीरमती को चला तो उसने अपने पति की ही हत्या कर दी। मरते हुए पति ने कहा-यह क्या किया वीरमती तुमने? भारतीय स्त्रियाँ ऐसा तो कभी नहीं करतीं।
हाँ तुम ठीक कहते हो पर भारतीय पुरुष भी तो कभी देश द्रोही नहीं करते। इस समय राष्ट्र की रक्षा ही मेरा धर्म है रही पतिव्रत की बात सो वह अब लो-यह कह कर उसने खुद को भी कटार भोंक ली और पति के साथ ही सती हो गई।
(२) हड्डियों का ढेर लगा देखकर राजकुमार जीमूत वाहन ने मित्रावसु से पूछा-तात इतनी हड्डियों का ढेर कहाँ से आ गया इस पर मित्रवसु ने बताया यहाँ प्रतिदिन गरुड नाग का भक्षण करता है आज वह नागराज शंखचूड़ का वध करेगा। जीमूतवाहन यह सुनकर बहुत दुःखी हुए। वे स्वयं शंखचूड़ का रूप बनाकर वहाँ उपस्थित हो गये। गरुड आया और उन्हें बुरी तरह क्षत-विक्षत करने लगा तभी उधर से शंखचूड़ आ गया उसने कहा अरे गरुड तुमने राजकुमार जीमूतवाहन को ही घायल कर दिया। गरुड सारी बात समझ कर बड़ा दुःखी हुआ उस दिन से उसने नागों को मारना बन्द कर दिया।
(३) राज वेन राज्य मद के कारण अत्यन्त दुराचारी हो गये। वह चाहे किसी को कष्ट देने से न चूकते यहाँ तक कि उनने ऋषियों को भी सताना न छोड़ा। इस तरह असुरता बढ़ी तो ऋषियों ने प्रजा से कहा तुम लोग संगठित होकर ही अन्याय का मुकाबला कर सकते हो। प्रजा ने संगठित होकर बगावत कर दी और राजा वेन को काट कर अत्याचारों से मुक्ति पाई।
(४) शंकराचार्य साधना द्वारा आत्मिक शक्तियों का जागरण और धर्म एवं संस्कृति की सेवा करना चाहते थे जब कि उनकी माँ उन्हें गृहस्थ देखना चाहती थीं। उस समय सनातन धर्म मृत प्रायः हो चला था। दोनों परिस्थितियों की तुलना करने पर शंकराचार्य को धर्म-सेवा की ही सर्वोपरिता जान पड़ी सो एक दिन नदी में स्नान करते समय वे झूठ-मूठ चिल्ला उठे माँ मुझे शंकर को सौंप दो तभी बचूँगा नहीं तो मगर खाये जा रहा है माँ ने बेटे की बात मान ली। शंकराचार्य बाहर आ गये और समाज की तत्कालीन आवश्यकता की पूर्ति के लिये चल पड़े।
(५) दीनबन्धु ऐंड्रूज स्टीफेन्स कॉलेज में पढ़ाते थे। तब प्रत्येक विद्यार्थी के लिये बाइबिल पढ़ना अनिवार्य था यह श्री ऐंड्रूज जो अच्छा न लगा इसलिये वे स्वयं ही हिन्दू दर्शन का अध्ययन करने लगे। इन्हीं दिनों एक हिन्दू लड़का भी आया जो इस कॉलेज में पढ़ना तो चाहता था पर वह अपने धर्म की पुस्तक पढ़ने के अतिरिक्त बाइबिल पढ़ने को राजी नहीं था। उसे प्रवेश नहीं मिल रहा था। इस पर ऐंड्रूज ने सरकार से लिखा पढ़ी प्रारम्भ की और तब तक नहीं माने जब तक बाइबिल-पढ़ने की अनिवार्यता समाप्त नहीं करा दी।
(६) पिता ने कुछ पैसे दिये और कहा सौदा ले आ दुकान करेंगे। बच्चा गया और धन, परमार्थ में लगा आया। पिता ने डाँटा तो उसने कहा-पिता जी मनुष्य जिस उद्देश्य को लेकर संसार में आया है उसे पूरा करना पहला कर्तव्य है यही बालक आगे नानक के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(७) हिरण्य कश्यपु ने प्रह्लाद से कहा तुम भी मेरी तरह धन सम्पत्ति अर्जित करो-मैं तुम्हारा पिता हूँ मेरी हर बात तुममें माननी चाहिए। प्रह्लाद ने उत्तर दिया-पिता के नाते आप मुझसे शारीरिक सेवा ले सकते हैं पर आपकी अनुचित बातों का समर्थन करूँ यह मुझसे नहीं होगा। उन्होंने अपार संकट सहे पर अनौचित्य से कभी सहमत नहीं हुए।
(३५) औचित्य की प्रशंसा और अनौचित्य की भर्त्सना की जाए
प्रश्न ——
(१) मनुष्य की स्वाभाविक इच्छा क्या होती है। (२) प्रशंसा द्वारा किस प्रकार लोगों को अच्छे या गलत मार्ग पर चलाया जा सकता है? (३) बुरे लोगों की प्रशंसा से क्या होता है? (४) समाज सुधार के लिये क्या किया जाये (५) बुरे लोगों की प्रशंसा से आज क्या बुराइयाँ फैली हैं (६) अच्छाई को किस तरह प्रोत्साहित किया जाये (७) सम्पत्ति को प्रतिष्ठा मिलने से क्या हुआ? (८) दुष्टता के प्रतिरोध में क्या किया जाए?
कथाएँ ——
(१) तुर्की क्र प्रसिद्ध फकीर जकीर नदी के किनारे रहते थे। एक दिन एक सेव बहा चला आ रहा था। जकीर ने उसे पकड़ लिया पर खाने को ही थे कि आत्मा से आवाज आई-जो वस्तु तेरी नहीं है, तैने कमाई नहीं उसका उपयोग करना क्या पाप नहीं? जकीर सेव लेकर उसके मालिक का पता लगाने चल पड़े। सेव बुखारा की राजकुमारी के बाग का था। राजकुमारी को पता चला तो उन्हें बुलाकर कहा-अरे बाबा! इसको वहीं रख लेते एक सेव यहाँ क्यों लाये। फकीर ने उत्तर दिया-आपके लिये इस सेव का कोई मूल्य नहीं पर इसने मेरा तो धन और ईमान ही नष्ट कर दिया होता।
(२) शास्त्री जो रेलवे मन्त्री थे तब उनके लिये एक विशेष बोगी तैयार की गई जिसमें खाना बनाने खाने से लेकर स्नान तक की सारी सुविधाएँ थीं। शास्त्री जी को उसका पता-चला तो वह बोगी अस्वीकार कर दी और यह कहकर कि मैं मन्त्री हूँ तो क्या मुझे विलासी जीवन जीना चाहिए कह कर उन्होंने एक साधारण बोगी ही से अपना काम चलाया।
(३) छोटी बहन इलाइज के साथ एक लड़का घूमने निकला। मार्ग में नटखट बहन ने एक अमरूद वाले को धक्का दे दिया उसके सारे अमरूद कीचड़ में फैल कर बेकार हो गये। लड़का अमरूद वाले को लेकर घर आया और माँ से बोला-इस अमरूद वाले को उसके अमरूद के पैसे दे दो। माँ बहुत झल्लाई पैसे दिये नहीं तो उस युवक ने अपने नाश्ते के पैसे देकर दण्ड की भरपाई की और खुद ने डेढ़ महीने तक नाश्ता नहीं किया यही बालक आगे चलकर नैपोलियन बोनापार्ट बना।
(४) सबेरे-सबेरे एक १४ वर्षीय बच्चे ने ‘‘माचिस चाहिए माचिस’’ की आवाज लगाई! एक सम्पादक ने उसे बुलाकर माचिस लेकर सिगरेट जला ली पर जेब में देखा तो पैसे फूटे नहीं थे बच्चे पर हिम्मत से विश्वास करके सौ का नोट देते हुए कहा-९९ रुपये और शेष पैसे शीघ्र लाना। बच्चा वहाँ से गया तो सम्पादक जी शाम तक प्रतीक्षा करते रहे लड़का आया ही नहीं। सम्पादक जी कहते जा रहे थे बच्चे भी धोखे बाज़ होने लगे तभी पीछे से एक लड़के ने पुकारा क्या अमुक बाबू का मकान यही है। हाँ-हाँ आओ क्या बात है-सम्पादक जी बोले। लड़का ऊपर आया ९९) रुपये और पैसे वापस करते हुए बोला-बाबूजी मेरा बड़ा भाई आप को प्रातः काल माचिस बचे गया था पर जैसे ही नोट तुड़वाने वह बाजार गया एक मोटर से उसका ऐक्सीडेंट हो गया। उसे अभी-अभी होश आया है। होश आते ही आपका पता बताकर यह पैसे भेजे हैं। सम्पादक बहुत प्रभावित हुआ और ऐसे बच्चों के दर्शनों के लिये अस्पताल चल पड़ा पर वहाँ पहुँचने तक वेदमूर्ति बालक के प्राण पखेरू उड़ चुके थे। उसका छोटा भाई रोने लगा। सम्पादक को पता चला इनके माँ-बाप तो क्या परिवार में भी कोई नहीं है। उन्होंने छोटे बच्चे को घर चलने को कहा तो उसने घर जाने से इनकार कर कहा-मेरे भैया ने जो आदर्श रखा मैं उसे कायम रखूँगा। सम्पादक बच्चों की सत्यता से बड़े प्रभावित हुए। उस दिन से समाचार पत्रों में ऐसे समाचार उभार पाने लगे उसी का फल है कि आज जापान दुनिया का सबसे बड़ा ईमानदार देश माना जाता है।
(५) रावण, राम की बुराई कर रहा था। और सब सभासद उसकी हाँ में हाँ मिला रहे थे तब विभीषण ने कहा-भैया आप राम की बुराई करें इससे पहले आपको यह भी देखना चाहिए कि आपने उनके साथ कितनी बुराइयाँ बरती हैं। रावण ने क्रुद्ध होकर विभीषण को घर से निकाल दिया पर विभीषण ने जो बात उचित थी वही कही।
(३६) सुव्यवस्था ही परिवारों को सुविकसित करेगी।
प्रश्न ——
(१) परिवारों को विघटन से क्या हानियाँ हैं? (२) भारतवर्ष में संयुक्त कुटुम्ब प्रणाली क्यों आवश्यक है? (३) बड़े परिवारों में सुव्यवस्था कैसी रखी जाये? (४) छोटों के बड़ों के प्रति तथा बड़ों के छोटों के प्रति कर्तव्य लिखो? (५) उपार्जन करने वाले लोग कौन से दायित्व अनिवार्य रूप से निबाहें ?? (६) बच्चों में पारिवारिक व्यवस्था के कौन से संस्कार डाले जायें? (७) घरेलू व्यवस्था में क्या सावधानियाँ आवश्यक हैं? (८) संतान सीमित हो क्यों आवश्यक है? (९) कुरीतियों और अन्ध-परम्पराओं की हानियाँ बताओ? (१०) परिवार के भावनात्मक विकास तथा अनुभव में वृद्धि के लिए क्या करें?
कथाएँ ——
(१) एक गृहस्थ एक साधु के पास गया और बोला-महात्मन् मैं दिन रात कमाई करता हूँ धन की कमी नहीं, परिवार भरा पूरा है तो भी शान्ति नहीं है? साधु ने पूछा-तात यह तो बताओ घर में सब लोगों में परस्पर एकता, अनुशासन और प्रेम भाव तो है? गृहस्थ बोला-महाराज यही तो कमी है उसी से तो अशान्ति फैल रही है। साधु ने कहा-तो जाओ और कल से दो घण्टा समय परिवार की व्यवस्था में भी लगाना, धन कमाने में ही मत जुटे रहना।
(२) माली ने देखा काफी उग गई तो भी उसने उपेक्षा की दूसरे दिन घास बड़ी हो गई पर फिर भी उसने ध्यान नहीं दिया। फूलों के पौधों की बाढ़ मारी गई बगीचे में काँटेदार झार-झंखाड़ का अम्बार लग गया। माली बड़ा पछताया और सोचने लगा पहले से ही सावधानी रखता, काँटा छाँट करता रहता तो ऐसा बढ़िया बगीचा नष्ट क्यों होता।
(३) एक आदमी ने एक महात्मा से शिकायत की-भगवन् यह लड़का गुड़ बहुत खाता है कहने से मानता ही नहीं। साधु ने धीरे से उसकी पत्नी से पूछा-क्यों जी! आपके पति तो गुड़ न खाते होंगे। पत्नी बोली-महाराज ये तो लड़के से भी ज्यादा खाते हैं। साधु अब उन सज्जन की ओर देखकर बोले-बन्धु कहने से नहीं अब पहले तुम ही गुड़ खाना छोड़ो, तुम्हारे न खाने से ही लड़का गुड़ खाना छोड़ेगा।
(४) सन्त दादू के पास स्त्री आई और अपने पति को वश में करने का कवच माँगने लगी। दादू ने कवच देते हुए कहा-देख कवच तो बाँधना पर आज से प्रतिदिन पति के पैर भी छूना और उसे प्यार भी करना। पत्नी ने वैसा ही किया। एक दिन स्त्री दादू के पास आई और कवज की प्रशंसा करने लगी तो दादू ने कहा-बेटी यह सब कवच का नहीं तेरी शिष्टता और सज्जनता का फल था। उन्होंने वहीं पर कवच खोलकर दिखाया उसमें लिखा था ——
दोष देखि मति क्रोध कर, मन की शंका खोय।
प्रेम भरी सेवा लगन, से पति वश में होय॥
(५) जंगल में कुछ लकड़हारे कुल्हाड़ी लिये बैठे थे। एक वृक्ष ने दूसरे से कहा-बन्धु अब अपनी खैर नहीं, इस पर दूसरा वृक्ष बोला-बन्धु मस्त रहो कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। थोड़ी देर में कुल्हाड़े उठे और बेंट काटकर कुल्हाड़ी ठीक करने लगे। अब की बार दूसरे वृक्ष ने ही कहा-बन्धु सावधान हो जाओ अब अपनी खैर नहीं। पहले वृक्ष ने पूछा-अब क्या बात हो गई? इस पर दूसरा वृक्ष बोला-फूट पड़ गई देखते नहीं अपने ही शरीर का अंग इन कुल्हाड़ियों का बेंट बन गया। फूट से तो रावण का अन्त हो गया था।
(६) श्री जगदीशचंद्र बोस कलकत्ता यूनीवर्सिटी में विज्ञान पढ़ाते थे। अँगरेज अध्यापक जो उनके समकक्ष थे उन्हें अधिक वेतन मिलता था यह देखकर उन्होंने कहा-जब तक मेरा वेतन भी उतना नहीं होगा? तब तक वेतन ही नहीं लूँगा। इसी से उन्हें आर्थिक तंगी हुई। वे प्रतिदिन हुगली नदी पार करके यूनीवर्सिटी जाते थे। अब तो नाव के पैसे भी चुकाना मुश्किल था। इनकी पत्नी अवला बसु ने अपनी अँगूठी बेचकर एक छोटी किश्ती खरीद ली और जब तक अँगरेजों ने उनकी बात न मान ली, अवला वसु खुद ही पति को हुगली के पार नाव से कर, ले जाती और लाती रहीं।
(७) एक आदमी शाम को बैठता और घर के सभी सदस्यों को पास बैठाकर दिन भर की बातों का लेखा-जोखा लिया करता फिर कहानियाँ सुनी-सुनाई जातीं बड़ा मनोरंजन होता, यह देखकर एक धनी पड़ोसी सदा हँसा करते पर कुछ ही दिन में धनी महोदय के घर सब सदस्यों में परस्पर झगड़े फसाद हो गये मार पीट हो गई और कई जेल चले गये। तब उस धनी आदमी ने समझा कि परिवारों को सुव्यवस्था रखना कितना आवश्यक होता है।
(३७) दाम्पत्य जीवन एक आध्यात्मिक योग साधना
प्रश्नर ——
(१) आध्यात्मिक प्रगति का आधार क्या है? (२) सिद्ध कीजिये कि दाम्पत्य जीवन आध्यात्मिकता की प्रयोग-शाला है। (३) अपनी त्रुटियों को सहज ही कौन सुधार लेता है? (४) योग का अर्थ क्या है? योग कितने प्रकार के होते हैं? (५) क्लेश एवं कलह मिटाने का क्या उपाय है? (६) संतानें किन लोगों की कुपात्र नहीं होतीं? (७) विवाह की सफलता का आधार क्या है? (८) पाणिग्रहण की महत्ता क्या है? (९) दाम्पत्य जीवन में स्वर्ग उतारने की व्यवहारिक योजना बनाइये।
कथाएँ ——
(१) च्यवन समाधि में लीन था उनकी आँखें किसी कीड़े की तरह चमक रही थीं शरीर में दीमकों ने बाँबी लगा ली थी। सुकन्या अपने पिता के साथ वन बिहार के लिये आई हुई थी। उसने खेलवश ऋषि की आँखें फोड़ दीं। पीछे पता चलने पर उसे बड़ा पश्चाताप हुआ। उसने प्रायश्चित स्वरूप वृद्ध ऋषि से विवाह का निश्चय किया यह बात महाराज को मालूम पड़ी तो उन्होंने सुकन्या का विरोध किया। इस विरोध के बावजूद सुकन्या ने च्यवन से ही शादी की और यह दिखा दिया कि विवाहों का उद्देश्य शारीरिक सुख नहीं आत्माओं के विकास में सहयोग देना है। उसकी इस साधना से अश्विनी कुमार बहुत प्रभावित हुए उन्होंने च्यवन की आँखें भी अच्छी कर दीं और बुढ़ापा भी दूर कर दिया।
(२) सावित्री ने सत्यवान को निश्चित रूप से वरण कर लिया। यह समाचार सुनते ही देवर्षि नारद सावित्री के पिता अश्वपति के पास पहुँचे और बताया कि सत्यवान की जन्म कुंडली के अनुसार उसकी आयु अब एक वर्ष ही शेष रही है। अश्वपति ने सावित्री को बुलाकर यह संबंध ठुकरा देने को कहा इस पर सावित्री ने कहा-नेकी और ईमानदारी का जीवन एक वर्ष ही हो तो काफी है पर मैं किसी अयोग्य व्यक्ति से विवाह नहीं करूँगी।
सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह किया और कठोर पतिव्रत धर्म के प्रभाव से यमराज को भी अपने पति की आयु बढ़ाने को बाध्य कर दिया।
(३) विवाह-दिवस मनाने का निश्चय हुआ पत्नी मेरी ने सोचा पति की घड़ी की चैन खराब हो गई है उस दिन उपहार में चैन दूँगी और पति ने निश्चय किया पत्नी के बालों को सँवारने के लिए बढ़िया कंघा नहीं है कंघा लाने चाहिए। पर पास में पैसे दोनों में से किसी के नहीं थे अब क्या हो? पति बाजार गया और घड़ी बेचकर हाथी दाँत का कंघा खरीद लिया। मेरी पत्नी गई तो उसने अपने बाल कटवा दिये और पति की घड़ी के लिए चैन खरीद ली। दोनों घर आये और अपना-अपनापन उपहार देने लगे तो चैन के लिये घड़ी थी न कंघे के लिये बाल। एक क्षण दोनों चुप रहे पर परस्पर प्रगाढ़ प्रेम की बात स्मरण करते ही दोनों मुस्करा उठे।
(४) कबीर अपने दरवाजे पर बैठे ग्राम-वासियों को उपदेश दे रहे थे। तभी एक युवक ने पूछा-महाराज यह तो बताइये कि विवाह करना ठीक होता है या नहीं। कबीर एक क्षण चुप रहे फिर अपनी पत्नी को आवाज देकर बुलाया और कहा-देख यहाँ बड़ा अन्धकार फैला है दीपक तो जलाकर ले आ। धर्मपत्नी घर गई और दीपक जलाकर ले आई। युवक हँसकर बोला-महाराज आप तो विलक्षण हैं ही आपकी पत्नी भी खूब हैं। आप दिन को रात बताते हैं तो पत्नी ने दीपक लाकर आपकी बात का समर्थन भी कर दिया। क्या खूब नाटक रहा।
कबीर हँसे बोले नाटक नहीं तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर था यदि युवक-युवती एक-दूसरे पर इतना प्रगाढ़ विश्वास रख सकें उन्हें ही विवाह करना चाहिए।
(५) स्वामी श्रद्धानन्द तब युवक थे। दुर्भाग्य वश उन दिनों उन्हें शराब और वैश्या वृत्ति की लत लग गई। इन्हीं दिनों इनका विवाह हुआ। पत्नी असाधारण पतिव्रता और सेवा भामिनी निकली। श्रद्धानन्द (तब मुंशीराम नाम था) उसे तरह-तरह के कष्ट देते तो भी वह अपने कर्तव्य से एक इंच भी न डिगी।
एक दिन श्रद्धानन्द रात दो बजे शराब पिये हुये लौटे। पत्नी उनकी प्रतीक्षा में ही बैठी थी दरवाजा जैसे ही खोला श्रद्धानन्द ने उसी पर उल्टी कर दी। तो भी उसको जरा भी घृणा नहीं हुई रात भर श्रद्धानन्द की सेवा करती रही। प्रातःकाल होश आने पर श्रद्धानन्द को पता चला कि उनकी पत्नी रात भर न सोई, न कुछ खाया तो उसका मन अपने आपसे घृणा कर उठा। उन्होंने सारी बुराइयाँ उतार फेंकी और आत्म-विकास में जुट गये। वही एक दिन आर्य समाज के सुप्रसिद्ध नेता हुए।
(६) माण्टुंगा के एक फैक्ट्री के मजदूर को उसकी पत्नी प्रतिदिन ताजा भोजन पहुँचाती। पति की सेवा में एक दिन भी न चूक पड़ी। किन्तु एक दिन मजदूर मध्याह्न में बाहर आया तो पत्नी को न पाकर मशीन चलती छोड़कर घर चला आया। पत्नी तेज बुखार के कारण अचेत पड़ी थी। पति ने उसकी दवादारू की। बिना बताये ऑफिस छोड़ देने पर उसे नौकरी से निकाल दिया गया पर मालिक को पति-पत्नी के अदम्य प्रेम की बात का पता चला तो उसे वेतन बड़ा कर फिर सर्विस में रख लिया गया।
(३८) पतिव्रत ही नहीं पत्नीव्रत भी निभाया जाय
प्रश्न ——
(१) मानवत्व की सबसे उत्कृष्ट विभूति क्या है? (२) दाम्पत्य सुख का सच्चा आधार क्या है? (३) धन्य एवं सफल रहस्य किसे कहा जा सकता है? (४) विवाह योग साधना कैसे है? (५) सन्तान का सद्गुणी होना किन तत्त्वों पर निर्भर है? (६) छोटे घरों में स्वर्ग का वातावरण कैसे बनाया जा सकता है! (७) पत्नीव्रत की आवश्यकता पतिव्रत से अधिक क्यों हैं? (८) पतिव्रत का महान आदर्श क्या है? (९) गृहस्थी को सुखी बनाने में पति का दायित्व अधिक क्यों है। (१०) गृहस्थ जीवन का मूल आधार क्या है?
कथाएँ ——
(१) गान्धारी ब्याह कर-आई तब पता चला कि पति धृतराष्ट्र अन्धे हैं। एक बार वरण कर लिया तो फिर पति की अनुकूलता ही श्रेयष्कर है-गान्धारी ने प्रतिज्ञा करके अपनी आँखों में पट्टी बाँध ली और आजीवन कभी-भी पट्टी नहीं खोली। उनकी इस पतिव्रत-तपश्चर्या का ही फल था कि एक बार युधिष्ठिर के कहने पर जब इन्होंने अपने पुत्र दुर्योधन को पट्टी खोलकर देखा तो उसका सारा शरीर वज्र का हो गया।
(२) बुंदेल सम्राट छत्रसाल वेश बदलकर अपनी प्रजा की भलाई देखने जाया करते थे। एक दिन उन्हें एक रूप सी युवती ने रोकर कहा-मुझे आप जैसा ही सुन्दर व स्वस्थ पुत्र चाहिए। छत्रसाल-युवती का काम विकार ताड़ गये। एक क्षण चुप रह कर बोले-आज से मैं ही तुम्हारा पुत्र हूँ।
(३) पूर्वजन्म के किसी कुकृत्य के कारण, कौशिकी को जो पति मिला वह कुष्ठ का रोगी हो गया। कौशिकी ने फिर भी उसकी सेवा में रत्ती भर अन्तर न आने दिया। एक दिन वह अपने पति को कंधे पर बिठाये अँधेरे में गंगा स्नान के लिए ले जा रही थी उनका पैर साधना लीन ऋषि माण्डव्य के शरीर से टकरा गया। ऋषि ने कुपित होकर शाप दे दिया-इसकी सूर्योदय होते ही मृत्यु हो जायेगी। किन्तु कौशिकी ने अपने पतिव्रत के बल से सूर्य को भी रोक कर जग में यश पाया। बाद में अनुसूया के आग्रह पर उसने तब सूर्योदय होने दिया जब उसके पति को जराजीर्ण देह समाप्त होकर दिव्य देह पाने का वरदान मिल गया।
(४) किसी साधारण बात पर रुष्ट होकर महाराज प्रसिचेत ने अपनी पत्नी को परित्याग कर दिया। उनके इस अहंकार पूर्ण कृत्य से दुःखी होकर राजप्रोहित ने उनका साथ छोड़ दिया। धीरे-धीरे बात प्रजा के कानों में पहुँची। लोग स्पष्ट कहने लगे जो व्यक्ति अपने स्वजन सम्बन्धी की रक्षा नहीं कर सकता वह प्रजा की क्या रक्षा करेगा। लोग राजाज्ञाओं का उल्लंघन करने लगे। इस स्थिति में पड़ौसी राजा ने प्रसिचेत पर आक्रमण कर दिया।
प्रसिचेत सेना लेकर मुकाबले के लिए चल पड़े। मार्ग में महर्षि उद्दालक का आश्रम पड़ता था वे महर्षि से मिलने को रुके पहले तो महर्षि ने शासकोचित स्वागत की तैयारी की पर तभी उन्हें पता चला कि महाराज ने अपनी पत्नी का परित्याग कर दिया है तो उन्होंने स्वागत की सारी तैयारी स्थगित कर दी और उनसे एक साधारण नागरिक की तरह मिले।
राजा ने इसका कारण पूछा तो महर्षि ने कहा राजन् पत्नी का परित्याग करना अधर्म है और धर्म से पतित कोई भी क्यों न उसकी मान मर्यादा वैसे ही नष्ट हो जाती है जैसे आपकी। राजा ने भूल समझी और पत्नी को फिर बुला लिया उससे उनकी शासन व्यवस्था भी संभल गई।
(५) अर्जुन इन्द्र के पास युद्ध विद्या का अभ्यास कर रहे थे। इन्द्र की अप्सरा उर्वशी उन पर मोहित हो गई। एक दिन सामने काम-प्रस्ताव भी-प्रस्तुत कर दिया। अर्जुन ने उसे ठुकराते हुए कहा-भद्रे जिस प्रकार पति पत्नी से एक निष्ठा की अपेक्षा रखता है उसी प्रकार मेरी द्रौपदी भी मुझसे पत्नी व्रत की अपेक्षा रखती होगी। उर्वशी ने शाप दे दिया पर अर्जुन अपने व्रत से विचलित न हुये।
(६) छोटी आयु में बच्चे के विवाह पर पीछे माता-पिता बहुत पछताए लड़की में कुछ बौद्धिक कमी थी वह बाद में समझ में आई तो माता-पिता दूसरी शादी की बात सोचने लगे। युवक को पता चला तो उसने माँ-बाप को फटकारते हुए कहा-इसका मतलब यह है कि यदि मुझ में कुछ नुक्शा आ जाये तो मेरी पत्नी भी मुझे छोड़ दे। अभिभावकों को जबाब देना मुश्किल पड़ गया। यह लड़का और कोई नहीं दादाभाई नौरोजी थे।
(३९) संयुक्त परिवार प्रणाली एक श्रेयस्कर परम्परा
प्रश्न ——
(१) संयुक्त परिवार प्रणाली समाप्त क्यों होती जा रही है। (२) संयुक्त परिवार प्रणाली की उपादेयता पर प्रकाश डालें। (३) संयुक्त परिवार प्रणाली सहकारी व्यवस्था है? सिद्ध कीजिए? (४) कृषि पशुपालन एवं उद्योग धन्धों में संयुक्त परिवार को अधिक लाभ क्यों होता है। (५) वृद्ध का मान सम्मान एवं गौरव संयुक्त परिवार में सुरक्षित है प्रमाणित कीजिये। (६) वसुधैव कुटुम्बकम् से क्या समझते हो? (७) संयुक्त कुटुम्ब के कतिपय दोष बताइये? (८) संयुक्त परिवार की आचार संहिता का आधार क्या हो? (९) संयुक्त परिवार की परम्परा को कैसे जीवित रखा जाय।
कथाएँ—
(१) एक किसान के चारों बेटों में झगड़ा हो गया चारों बँटवारे की जिद करने लगे। पिता ने एक लकड़ी को इशारा करते हुए कहा-तुम लोग इसे उठाओ। सभी लड़कों ने उसे उठा लिया। फिर उसने लकड़ी का बोझ रखकर कहा अब इसे एक-एक करके उठाओ तो कोई लड़का नहीं उठा पाया। फिर उसने कहा सब मिलकर उठाओ इस बार पहले की तरह ही लकड़ी का गट्ठा तत्काल उठ गया साथ ही लड़कों को संयुक्त शक्ति का पता चल गया अतएव उन्होंने बँटवारे का आग्रह छोड़ दिया।
(२) एक नन्हा सा गड्ढा आकाश से आ रही एक बूँद को देखकर हँसा बोला तुम्हारे आघात से डरता थोड़े ही हूँ आओ मैं तुम्हें अभी उदरस्थ कर दिखाता हूँ। बूँद निडर चली आई और उसका सारा परिवार उतरता ही चला आया। बरसात समाप्त हुई तब वह गड्ढा मिट चुका था वहाँ एक तालाब बन चुका था। शक्ति का केन्द्रीय करण जहाँ भी होता है वहीं ऐसा उपलब्धियाँ देखी जा सकती है।
(३) गोपाल कृष्ण गोखले बाल्यावस्था में बहुत गरीब थे पर उनकी पढ़ने की इच्छा थी अतः उनकी एक भाभी (गोविन्द राव की पत्नी) ने अपने आभूषण बेच दिये और फीस भर दी। गोपाल कृष्ण बोले-भाभी जी आपने यह क्या किया? वे बोली-यदि हम एक दूसरे के प्रति त्याग का भाव न रखें तो संयुक्त कुटुम्ब का क्या अर्थ। घर के सब खर्चों में कमी करके भी गोपाल कृष्ण गोखले को पढ़ाया गया। गोखले अपने भाई साहब व भाभी के प्रति देव तुल्य श्रद्धा रखते थे।
(४) स्कूल के दरवाजे से लौटते देखकर साथी ने पूछा क्यों लौटे जा रहे हो। किशोर ने उत्तर दिया अरे भाई। आज मैं अपने माता-पिता के पैर छूना भूल गया। कहकर वह तेजी से घर की ओर बढ़ा। साथी ने याद दिलाई-देर हो जाने से स्कूल बंद मिलेगा। उस बच्चे का उत्तर था-अपने माता-पिता के आशीर्वाद की तुलना में स्कूल का दण्ड बिलकुल नगण्य है।
(५) एक लड़का रूठकर माँ बाप से अलग हो गया। जब उसके सन्तान हुई तो बेचारी पत्नी को बच्चे की भी देख रेख करनी पड़ती, खाना भी बनाना पड़ता पति की सेवा भी करनी पड़ती, जब कि दूसरा लड़का अपने माता-पिता के ही पास रहा। बच्चा होने पर उसे माँ-बाप खिलाते और स्त्री तब भी घर वालों की सेवा में आनन्दित रहती। यह देखकर पड़ोसी ने बच्चों को समझाया देख लो बँटवारा करने की हानियाँ और संयुक्त कुटुम्ब के लाभ तुम्हारे सामने है।
(४०) संतान कितनी व क्यों पैदा करें
प्रश्न ——
(१) प्राचीनकाल में सन्तान की संख्या वृद्धि पर जोर क्यों दिया जाता था? (२) आजकल परिवार नियोजन कर सन्तान की संख्या कम करने की क्यों आवश्यकता है? (३) आज के बालक समाज के लिए समस्या क्यों बनते जा रहे हैं? (४) अपने देश में स्त्रियों के निरन्तर गिरने वाले स्वास्थ्य का मूल कारण क्या है? (५) विवाह की आयु में वृद्धि क्यों आवश्यक है? (६) वानप्रस्थ आश्रम का पुनः प्रारम्भ किस लिये जरूरी है? (७) जनसंख्या कम करने के व्यावहारिक उपाय क्या हैं? (८) सिद्ध कीजिये कि आधुनिक युग में सन्तान वृद्धि की कामना एक मूढ़ मान्यता है।
कथाएँ ——
(१) एक जंगल में चींटियों का झुण्ड रहता था। उनके पास ही चींटियों का भेड़िया रहता था। चींटियाँ, भेड़िया को हमेशा धमकाया करतीं अब भेड़िये ने एक गोल-गोल दुर्ग बना लिया। उधर से जो भी चींटी निकलती दुर्ग में गिर जाती भेड़िया उसे भीतर ही भीतर खा जाता। देखते-देखते चींटियों का कुनबा समाप्त हो गया।
जंगल में एक सियार रहता था उसे अपने सौ पुत्र होने का बड़ा घमण्ड था। एक दिन सबके सब सियार के बच्चे पड़ोसियों को गाली बक रहे थे उधर से निकला सिंह, उसने समझा यह सब मुझे गाली दे रहे हैं, एक ही झपटे में उसने बीसियों को पाँव से, दसियों को हाथ से कुचल कर मार डाला जो बचे भी वह अपाहिज और जख्मी।
दोनों कथाएँ सुनाने के बाद साधु ने गृहस्थ को समझाया-सो हे तात! बुद्धिमान और समर्थ एक संतान हो वह काफी है मूर्ख और कमजोर सौ नहीं।
(२) गान्धारी ने कहा-मुझे संक्रान्ति पर पूजन के लिये हाथी चाहिये। कौरव महीनों इधर-उधर घूमे जो भी हाथी मिला किसी को छोटा, किसी को कमजोर, किसी के पूँछ न होने का दोष लगाते रहे। मकर संक्रान्ति आ गई पर एक भी हाथी वे न ढूँढ़ पाये।
कुन्ती ने अर्जुन को बुलाया और कहा-बेटा पूजन के लिये हाथी चाहिये और अभी चाहिये। अर्जुन ने बाणों की बौछार लगाकर धरती और इन्द्रलोक को एक कर दिया। इन्द्र ने देखा आज मकर संक्रान्ति है तो उन्होंने ऐरावत हाथी भेज दिया। गान्धारी और कुन्ती दोनों ने ही उसका पूजन किया। पूजन करते हुए गान्धारी ने कुन्ती से पूछा-बहन मैंने तो अपने सौ बेटों से एक महा पूर्व ही हाथी लाने को कहा पर आपने अर्जुन से आज ही क्या कहा कुन्ती हँसी और बोली-बहन संख्या में वे पाँच हैं तो क्यों? मुझे अपने बच्चों की समर्थता पर पूरा भरोसा है।
(३) आस्ट्रेलिया में कोई हिंसक जानवर नहीं पाया जाता तो भी वहाँ खरगोशों की संख्या अधिक नहीं है। ऐसा क्यों एक जीव शास्त्री से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वहाँ के खरगोश पानी के छोटे-छोटे गड्ढों के पास पानी के लिये, खाने, पीने के लिए लड़ते रहते हैं और लड़ मर कर अपनी संख्या आप घटाते रहते हैं।
(४) अमेरिका का बिल्ली की सी शक्ल का ओपोसम जन्तु बहुत बच्चे पैदा करता है। अपना पूरा कुनबा लेकर वे समुद्र की ओर चल पड़ते हैं दिन में कौवे, चील आक्रमण करके उन्हें नष्ट करते हैं इसलिये वे रात में छिपते हुए चलते हैं तो भी शिकार होने से नहीं बच पाते जो किसी तरह बच जाते हैं वे मारे प्यास के समुद्र में कूद पड़ते हैं और डूब कर मर जाते हैं।
(५) आचार्य काहोड़ अपनी धर्मपत्नी सुजाता को जितने दिन वे गर्भवती रहीं प्रतिदिन वेद-उपनिषद् सुनाया करते थे। काहोड़ एक दिन भूल से अशुद्ध उच्चारण कर गये इस पर गर्भस्थ शिशु ने टोक दिया। काहौड़ ने नाराज होकर बच्चे को टेढ़ा-मेढ़ा कुरूप होने का शाप दे दिया। वाचालता के कारण शाप भले ही भुगतना पड़ा हो पर माता-पिता के इन संस्कारों ने बच्चे को महान विद्वान बनाया। यही बालक अष्टावक्र नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(६) एक साधु के पास बैठे एक जिज्ञासु ने पूछा-महात्मन् शास्त्रों में बहु सन्तान का आशीर्वाद दिया जाता हैं आप क्यों कहते हैं कि सन्तान कम होनी चाहिए। साधु ने आकाश की ओर देखा चन्द्रमा निकलने में थोड़ी देर थी। उन्होंने पूछा-आकाश में क्या है? असंख्य तारे वह सज्जन बोले-अभी चन्द्रमा निकलेगा तब? तब तो महाराज चन्द्रमा के सामने सभी नक्षत्र प्रभाव हीन हो जायेंगे। बस यही उत्तर है तुम्हारी बात का, समर्थ हो तो एक ही सन्तान हजार के बराबर होती है।
(४१) सुसंस्कृत सन्तान के लिए पूर्व तैयारी आवश्यक
प्रश्न ——
(१) सिद्ध करो सन्तानोत्पादन इन्द्रिय लिप्सा नहीं एक महान उत्तरदायित्व है। (२) सन्तानोत्पादन के साथ-साथ पिता के दायित्व क्या हैं? (३) बच्चे समस्या कब बनते हैं? (४) बच्चों को सुसंस्कारी बनाना क्यों आवश्यक है। (५) अभिभावक को शान्ति व प्रसन्नता कैसे मिल सकती है। (६) बच्चों को सुसंस्कृत बनाने के लिये माता-पिता क्या करें। (७) कहते हैं कुसंस्कारी बालक देना राष्ट्रीय अपराध है क्यों? (८) राष्ट्र समृद्ध और यशस्वी कैसे बनता है। (९) प्रजनन की जिम्मेदारी के निर्वाह के लिये कौन सी तैयारियाँ आवश्यक हैं।
कथाएँ ——
(१) एक स्त्री ने सन्त सुकरात के पास जाकर पूछा-महाराज अपने पुत्र को पढ़ाना कब से प्रारम्भ करूँ? सुकरात ने पूछा-कितने वर्ष का हुआ है वह बालक! स्त्री बोली-पाँच वर्ष का। तब तो आपने ६ वर्ष की देर कर दी बच्चे की पढ़ाई तो उसके गर्भ में आने से पहले ही करनी चाहिए।
(२) महाराज दुष्यंत ने शकुन्तला को शाप वश घर से निकाल दिया। शकुन्तला गर्भवती थीं अतएव कण्व ने कहा-बेटी तुम मेरे आश्रम में रहो। पितामह के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए शकुन्तला ने कहा-तात मेरा पुत्र परीक्षित और उपेक्षित समझा जाये मैं यह स्वप्न में भी नहीं चाहती यह कहकर वे अकेले ही जंगल में रहकर तप करने लगीं और ऐसे बच्चे को जन्म दिया जिसके नाम पर ही हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।
(३) मदालसा की कोख में पुत्र आता और वे नियम-संयम पूर्वक रहतीं। पुत्र के उत्पन्न होते ही वे कहतीं-शुद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरंजनोऽसि संसार माया परिवर्जनोऽसि। संसार स्वप्नं मोहनिद्रां मदालसा वाक्य-मुवाच पुत्र॥
यह संसार माया मोह का घर है वत्स! तू तो शुद्ध, बुद्ध निरंजन आत्मा है अपने आप का कल्याण कर। सभी बच्चे सन्त, संन्यासी होते गये यह देखकर राजा बड़े दुःखी हुये उन्होंने कहा-एक पुत्र तो ऐसा दो जो राज-काज कर सके। उस दिन से मदालसा ने राजनीति पढ़ना, राजनीति का चिंतन करना, राज काज में भाग लेकर राजनैतिक संस्कारों का अभिवर्द्धन किया। और उसी का फल था कि अगला पुत्र राज्य का उत्तराधिकारी बना।
(४) रुक्मिणी को सन्तान की इच्छा हुई। अपनी इच्छा उन्होंने भगवान् कृष्ण से व्यक्त की तो उन्होंने कहा-यदि ऐसी बात है तो चलो हम कल ही हिमालय तपश्चर्या के लिए चलेंगे। तप की बात सुनकर रुक्मिणी ठिठकी तो कृष्ण ने कहा-प्रिये किसी आत्मा को संसार में लाने का अधिकार तभी मिल सकता है जब उसे संस्कारवान बनाने की क्षमता भी हो। रुक्मिणी ने वस्तुस्थिति को समझ लिया और तप के लिए हिमालय चल दीं। तप के प्रभाव से उन्हें प्रद्युम्न जैसे वीर बालक की माता होने का सौभाग्य मिला।
(५) एक महात्मा के पास एक सती गई और बोली-महाराज चरणोदक दें तो मेरे गर्भ का बालक भी महान् बने। सन्त ने कहा-बेटी चरणोदक और आशीर्वाद से नहीं तुम्हारे रहन-सहन आहार-बिहार और आत्मिक शुद्धता से सन्तान महान् बनेगी।
(६) कपिल मुनि जिस रास्ते से गुरुकुल जाते, उसमें एक विधवा का घर पड़ता, विधवा की निर्धनता से दुःखी होकर वे एक दिन उसके पास जाकर बोले तुम चाहो तो आर्थिक सहायता का प्रबन्ध करा दूँ। विधवा ने कहा-मुनिवर आपने भूल की, मेरे तो एक अत्यन्त अमूल रत्न है? मुनि ने चारों तरफ दृष्टि दौड़ाई, कुछ दिखा नहीं। वे पूछ बैठे क्या वह रत्न मुझे भी दिखायेगी। अभी यह बात हो ही रही थी कि उसका पुत्र पढ़कर लौटा उसने माँ के पैर छूकर कहा-माँ आज भी मैंने अपना पाठ ठीक तरह पढ़ा लाओ कुल्हाड़ी अब लकड़ियाँ ले आऊँ? कपिल बच्चे के संस्कारों से बड़े प्रभावित हुए उन्होंने कहा-सचमुच संस्कारवान् पुत्र और रत्न में कोई अन्तर नहीं।
(४२) बालकों को जन्म ही न दें-उनका निर्माण भी करें?
प्रश्न ——
(१) अभिभावकों के प्रमुख कर्तव्य क्या हैं? (२) बच्चों का विकास किन बातों पर निर्भर रहता है? (३) शिशु निर्माण के सम्बन्ध में रहस्य की बात क्या है? (४) व्यक्ति की सुख शान्ति के लिए किन तत्त्वों की आवश्यकता है? (५) बच्चों को संस्कारवान् बनाने के लिये माता-पिता को क्या करना चाहिये। (६) गर्भवती के आस-पास कैसा वातावरण रखना चाहिये। (७) शिशु जन्म के बाद माता-पिता को अपना आचरण कैसा रखना चाहिये? (८) बच्चों का सच्चा शिक्षण कहाँ होता है-वह किस पर निर्भर है? (९) विवाह प्रचलन की सार्थकता किसमें हैं? (१०) प्रयत्न पूर्वक कैसी चेष्टा की जानी चाहिये।
कथाएँ ——
(१) बेटी-बेटे ने शरारत की, एक फल वाले के फल कीचड़ में गिरा दिये। माँ ने फल वाले के पैसे तो चुका दिये पर लड़के को ३ माह तक नाश्ते के पैसे न मिले। इस कढ़ाई का ही फल था कि यही बच्चा आगे चल कर नैपोलियन बोनापार्ट बना।
(२) एक स्त्री अपने बच्चे को पीटे जा रही थी लोगों के पूछने पर उसने बताया इसने मंदिर से पैसे चुराये हैं। अभी स्त्री यह बता भी नहीं पाई थी कि लड़का बोला-तू तो रोज ही आधा पानी मिला कर दूध बेचती है मैंने एक दिन पैसे चुरा लिये तो क्या हुआ। भीड़ में खड़ा एक वृद्ध बोला-जैसे जिसके माँ-बाप तैसा उनका बेटा।
(३) दार्शनिक इम्पानुएल काँट एक मोची परिवार में जन्मे पर उनकी माँ तथा पिता ने उनमें ईश्वर निष्ठा, सदाचार, संकल्प शक्ति के तीव्र विचार भरे। एक दिन कान्ट चर्च गये वहाँ जाकर देखा कि पादरी कहते तो कुछ हैं पर करते कुछ हैं। बालक का मन झूठे अध्यात्म के प्रति घृणा से भर गया तब उन्होंने माँ की प्रेरणा से ‘‘क्रिटिक आफ फोर रीजन’’ और ‘क्रिटिक आफ प्रैक्टिकल रीजन’ लिखे उन्होंने सारी दुनियाँ में तहलका मचा दिया।
(४) गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका में थे। अन्य लोगों की तरह पुत्र देवदास को भी आश्रम के नियमों का कड़ाई से पालन करना पड़ता। एक दिन कढ़ी बनी। कुछ लोगों का उस दिन व्रत था उनमें देवदास भी थे। उन सबका कढ़ी खाने को मन कर आया। उन्होंने देवदास को आगे कर दिया। देवदास पिता से जिद्द कर बैठे। बापू ने अपने गाल पर दो तमाचे मारकर कहा-बेटा बचपन में मेरी आदत ऐसी न रही होती तो तू आज व्रत तोड़ने की हिम्मत न करता। बापू की दृढ़ता के आगे परास्त बच्चे ने व्रत का पालन किया और कभी वचन भंग नहीं किया।
(५) रामकृष्ण परमहंस की माता जी वृद्धावस्था में गंगाजी के किनारे रह कर भगवान् की उपासना करने लगीं। उनके दामाद ने एक बार बहुतेरा पूछा-आपकी कुछ आवश्यकता हो तो लाऊँ। पर वे मना ही करती रहीं। बहुत आग्रह करने पर उन्होंने कहा-बेटा नहीं मानते तो एक पैसे का पान ले आ। दामाद अवाक् रह गये। बोले-इतना त्याग न होता तो तुम्हारी कोख से रामकृष्ण कैसे जन्म लेते?
(६) पाण्डव मन मारे बैठे थे। कौरवों ने चक्रव्यूह का निमन्त्रण भेजा था। उसे भेदन करना केवल अर्जुन ही जानते थे जो उस समय उपस्थित न थे तब अभिमन्यु ने आगे बढ़कर कहा-मेरे पिता ने मुझे गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदन बता दिया था पर जब वे बाहर निकलने की विधि बताने लगे तो माँ को नींद आ गई इसलिये निकलने की विधि नहीं जानता। इतिहास प्रसिद्ध घटना है कि बड़े-बड़े महारथियों को परास्त कर १४ वर्षीय अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदन करने में सफलता पाई।
(४३) सन्तान को स्वावलम्बी भर बनाना ही पर्याप्त है
प्रश्न ——
(१) मनुष्य की अपनी सन्तान के प्रति क्या जिम्मेदारियाँ हैं? (२) अभिभावक अपनी सन्तान का पालन-पोषण किस प्रकार करें कि वह विलासी, चटोरी, एवं अहंकारी न बने? (३) अपने देश में विदेशों की अपेक्षा दो जिम्मेदारियाँ और क्या बढ़ जाती हैं? (४) संतान के पालन-पोषण के अलावा मनुष्य के और क्या कर्तव्य हैं? (५) मनुष्य को सन्तान के स्वावलम्बी होने के बाद अन्य क्या कर्तव्य करते रहना चाहिए? (६) स्वावलम्बी सन्तान को अपनी बची खुची सम्पत्ति किस प्रकार अपराध है? (७) प्राचीनकाल में सन्तान किस प्रकार अपना कर्तव्य पूरा करती थी? (८) आज का मानव किस प्रकार का व्यवहार कर रहा है?
कथाएँ ——
(१) राजा महेन्द्रप्रताप के कोई संतान नहीं थी। उनकी धर्मपत्नी ने लड़का गोद लेने की इच्छा की। राजा साहब ने कुछ दिन पीछे सब जगह घोषणा करा दी कि उन्हें पुत्र हुआ है नामकरण के लिये उन्होंने मालवीय जी को बुलाया। सबने पूछा-लड़के को लाओ, राजा साहब ने एक कागज निकाल कर दिया जिसमें एक विद्यालय की रूपरेखा थी और सारी सम्पत्ति उसी में लगाने का प्राविधान। प्रेम महाविद्यालय लव वृन्दावन के नाम से इसी विद्यालय ने अनेक राष्ट्रीय नेता दिये।
(२) श्रावस्ती के नगर सेठ चेट्ठियार ने अपने पुत्रों के लिये अपार सम्पत्ति इकट्ठा करने के उद्देश्य से अपना उद्योग खूब बढ़ाया, अनुचित तरीके से धन कमाने के कारण अपयश का भागी बना। एक दिन उसके एक वेश्यागामी पुत्र ने उसकी चुपचाप हत्या कर दी। सभी भाइयों में सम्पत्ति के बँटवारे पर झगड़ा। हो गया। बन्दी बनाकर उन्हें जेल भेज दिया गया और सारी सम्पत्ति राज्य कोष में जमा कर दी गई।
(३) एक बच्चे ने पिता से शिकायत की पिताजी मेरे सभी मित्रों को उनके पिता अभी भी पैसा देते हैं आप तो उनके लिये भविष्य के लिये इकट्ठा करते हैं और भविष्य के लिये कुछ करना तो दूर अभी भी मुझसे मेहनत कराते हैं। पिता बोला ——
बेटा मैं यह नहीं चाहता कि तू भी दूसरे लोगों की तरह मुफ्त धन पाकर शराबी, जुआरी और व्यभिचारी बने, बिना परिश्रम की कमाई ऐसे ही पाप कराती है। पिता की इस कड़ाई का ही फल था कि यह लड़का इंग्लैण्ड का धन कुबेर एलियस स्टो बना। (४) एक सद्गृहस्थ के तीन लड़के थे। गृहस्थ यह नहीं चाहता था कि लड़कों को अनावश्यक धन देकर उनका भविष्य चौपट कर और उन्हें परावलम्बी बनाये अतएव उसने सबसे बड़े लड़के को एक हजार बतौर ऋण देकर बी. ए. तक पढ़ाया, सर्विस में लग जाने पर उसे किश्तवार लेकर दूसरे को पढ़ाया, और उससे भी एक हजार का ऋण पत्र लिखा लिया जो तीसरे लड़के के काम आया। तीसरा लड़का भी पढ़कर नौकरी से लग गया तो उसको दिया एक हजार का ऋण लेकर अपनी वृद्धावस्था सुख पूर्वक काटी। लड़के भी बुराइयों से बच गये।
(५) संदीपन के शिष्य सुदामा गुरुकुल चलाते थे पर आर्थिक अभाव के कारण उनको बड़ा कष्ट उठाना पड़ता था। विद्यार्थियों को बैठने की समुचित जगह भी नहीं थी। यह बात भगवान् श्री कृष्ण ने सुनी तो उन्होंने अपने पुत्र को मिलने वाली अधिकांश सम्पत्ति उस विद्यालय को यह कहते हुये-कुछ लोग अपने पुत्रों के लिये धन संचय करके रखे और कुछ निर्धन पढ़ भी न सकें —दान कर दिया।
(६) इटली की विशाल अब्रोशियन लाइब्रेरी के अध्यक्ष एचिले ने तीन विषयों में डाक्ट्रेट प्राप्त की, आजीविका के लिये नौकरी कर ली। लोगों ने कहा-तुम्हारा धन किसके काम आयेगा विवाह कर लो तो उन्होंने कहा-कमाई पुत्रों को ही मिले यह क्या बात? उन्होंने कहा-समाज का हर बच्चा मेरा बच्चा है। यह कहकर उन्होंने एक अनाथ विद्यालय खोल दिया और अपना सारा धन उसी में लगा दिया।
(४४) पर्दाप्रथा-नारी के साथ बरते जाने वाली नृशंस अनीति
प्रश्न ——
(१) नर और नारी किस तरह एक दूसरे के सहयोगी हैं? (२) अपने समाज में नारी जाति की स्थिति कैसी है? तथा इससे क्या हानियाँ हैं? (३) पर्दा प्रथा कहाँ से प्रारम्भ हुई? तथा उसके प्रचलित होने के कारण क्या हैं? (४) अपने यहाँ पर्दा प्रथा प्रचलन के कारणों पर प्रकाश डालिये? (५) नासमझ वर्ग के लोगों के दिमाग में क्या बात घर कर गई है? (६) अमीरी न होते हुए भी अमीरी वे किस तरह व्यक्त करते हैं? (७) विवाहों के अवसर पर अमीरी दिखने की उत्कंठा चरम सीमा पर पहुँच जाती है? कैसे? (८) अमीरी प्रदर्शित करने वाले स्त्री और पुरुष का समझदार वर्ग पर क्या असर पड़ता है? (९) ठाठ-बाट और अपव्यय के बजाय बचत का पैसा हमें कहाँ खर्च करना चाहिये? (१०) सादगी सज्जनता का प्रतिनिधित्व करती है सिद्ध कीजिये?
कथाएँ ——
(१) श्री लाल बहादुर शास्त्री उन दिनों उत्तर प्रदेश में गृह मंत्री थे। एक दिन वे ऑफिस में थे तब सार्वजनिक निर्माण विभाग वाले उनके घर कूलर लगा गये। शास्त्री जी लौटकर घर आये तो बोले-मंत्री होने का यह अर्थ नहीं कि मैं देश की सम्पत्ति को विलासिता में उपयोग करूँ-यह कहकर उन्होंने कूलर हटवा दिया।
(२) कौशल नरेश वेतन के अतिरिक्त अपने पाँच सौ कर्मचारियों को कीमती वस्त्र भी बाँटा करते एक दिन भिक्षु आनन्द का उपदेश हुआ उन्होंने बताया मनुष्य को वस्तुओं का सीमित-उपयोग करना चाहिये। अधिकार है तो भी विलासिता पूर्ण वस्तुओं का संग्रह न करे। यह सुनकर सभी कर्मचारियों ने अपने राज्य प्रदत्त वस्त्र न लेने का निश्चय किया। कौशल नरेश आनन्द से मिले और पूछा-महात्मन् आप शास्त्र के ज्ञाता हैं फिर आपने-अपने भिक्षुओं के लिये ५-५ चीवरों का संग्रह क्यों कर लिया। आनन्द बोले तात! कोई भी भिक्षु अधिक वस्त्र नहीं रखता। उन्हें एक चीवर पहनने के लिये एक उत्तरीय वस्त्र एक अन्तर वासक और बिछौने के लिये एक बचती है वह इनमें से कोई फटे उसकी स्थानापित्त कर सकता है। यह सीमित उपयोग ही जीवन की सच्ची नीति है।
(३) गाँधी जी का भाषण समाप्त हुआ। लोग तो उठ-उठ कर चल दिये पर गाँधी जी स्टेज से नीचे कुछ ढूँढ़ने लगे। पूछने पर पता लगा दो पैसे का सिक्का नीचे गिर गया है। उन्हें पैसा ढूँढ़ने में परेशान देखकर एक सज्जन बोले-छोड़िये बापू। दो पैसे के लिये यदि सम्हाल न पाऊँ तो यह मेरे लिये पाप होगा यह कर कर वे फिर पैसा ढूँढ़ने लगे, सिक्का मिल गया तभी वहाँ से हटे।
(४) रोजन्द्रबाबू काँग्रेस के अध्यक्ष चुने जा चुके थे इलाहाबाद में उनका भाषण थे वहाँ गये तो ‘‘लीडर—’’ के लिये सम्पादक श्री सी. बाई. चिन्तामणि से मिलने चले गये। चपरासी को परिचय कार्ड देकर वे बाहर बैठ गये। चपरासी ने बिना कुछ कहे कार्ड टेबल पर जाकर रख दिया। श्री चिन्तामणि की दृष्टि कार्ड पर देर से गई। जैसे ही देखा दरवाजे की ओर भगे आये और राजेन्द्र बाबू से क्षमा याचना करने लगे। राजेन्द्र बाबू बोले और इसमें क्षमा याचना की क्या बात? इतनी देर में अपने कपड़े सुखा लिए। क्योंकि बदलने के लिए दूसरे कपड़े न थे।
(५) जेल में गाँधीजी के साथ-साथ शंकरलाल जी बैैंकर भी थे। उन्होंने किसी तरह गाँधीजी से उनके कपड़े धोने की अनुमति ले ली और कपड़ों में कई बार साबुन लगाकर उन्हें चमकाने लगे। गाँधीजी ने यह देखा तो बड़े दुःखी हुए और दूसरे दिन से कपड़े स्वयं धोते हुए कहा-तुम दो कपड़ों में उतना साबुन मसल देते हो जितने से चार कपड़े धोए जा सकते हैं।
(६) घड़े में पानी भर कर नीचे एक छेद कर दिया गया। पानी बूँद-बूँद कर दिन भर में हौज में टपक गया। एक बूढ़े सद्गृहस्थ ने बच्चों को समझाया बच्चों जिस प्रकार एक-एक बूँद रिसने से यह घड़ा खाली हो गया। न समझ में आने वाला अपव्यय परिवार की अर्थ व्यवस्था को खोखला कर देता है।
(४६) धन का उपार्जन ही नहीं सदुपयोग का भी ध्यान रहे।
प्रश्न ——
(१) आजीविका प्राप्त करने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण क्या है? (२) पैसा खर्च करने में किन-किन गुणों का होना अनिवार्य है? (३) उन गुणों के न होने से क्या हानियाँ होती हैं? (४) किसी व्यक्ति की बुद्धिमत्ता किस बात पर परखी जा सकती है? (५) व्यक्ति धनवान किस प्रकार बन सकता है? (६) सामान्य आजीविका से भी अपना खर्च किस प्रकार चलाया जा सकता है? (७) अपना बजट हमें किस प्रकार का बनाना चाहिये? (८) हम किन-किन अनावश्यक खर्चों को कम करके बचत कर सकते हैं? (९) जेब में रुपया रख के घूमना और उधार लेना किस प्रकार हानि कारक है? (१०) अमीरों के रहन-सहन की नकल करना किस प्रकार हानिकारक है?
कथाएँ ——
(१) सरदार वल्लभभाई पटेल विलायत पढ़ने जाना चाहते थे पर तभी उनके भाई की भी इच्छा हो आई कि हम भी विलायत जायें जब कि पैसा बहुत ही थोड़ा था। आखिर वल्लभभाई पटेल ने अपने बड़े भाई को विलायत भेज दिया और खुद किफायत शारी का जीवन जीने लगे। कुछ दिन में भाई पढ़कर आ गये तब भाई साहब किफायत शारी का जीवन जीने लगे और वल्लभभाई पटेल विलायत पढ़ आये। धन का सदुपयोग ऐसे ही सत्परिणाम देता है।
(२) एक दिन एक मनुष्य आकर साधु को अपना दुखड़ा सुनाते हुए बोला-महात्मन् मेरे पास धन की अथाह राशि है फिर भी मैं सुखी नहीं हूँ। मुझे हमेशा यही डर बना रहता है कहीं ऐसा न हो मैं भिखारी हो जाऊँ। साधु ने पूछा-यह तो बताओ तुम्हारे खर्च के क्या तरीके हैं। उन मनुष्य ने बताया-जितना लड़का चाहते हैं लड़के ले जाते हैं स्त्रियाँ चाहती हैं स्त्रियाँ लें जाती हैं फिर मुझे भी हजार खर्च लगे हैं अपनी शान शौकत वर-करार रखने के लिये। साधु बोला-बस अभी तक तुमने धन कमाने की कला सीखी अब जाकर खर्च करना भी सीखो तो सुखी रहेंगे।
(३) चिड़िया दिन भर के खाने भर को इकट्ठा कर लेती और दिन भर खेलती रहती। चींटी उसे समझाती देख बहन! कभी अकाल पड़ जाए। कुछ और हो जाए इसलिये कुछ भविष्य के लिये भी बचाकर रखा करो। चिड़िया ने चींटी का मजाक उड़ाकर कहा-बहन भविष्य की चिन्ता तुम्हीं करो। चींटी तो चुपचाप अपने काम में लगी रही। चिड़िया खेलती रही। आ गई बरसात खेतों में दाना बचा नहीं तब भी चींटी के पास अन्न था। पर चिड़िया भूख न सह सकी और मर गई।
(४) सेठ के पास अपार सम्पत्ति थी तो भी वह दुःखी था पर एक मजबूर थोड़ा पाता था उसी में सारा परिवार मस्त रहता था। सेठ ने एक दिन एक प्रसिद्ध महात्मा से जाकर यही बातें कहीं और पूछा, मैं दुःखी और मजबूर सुखी क्यों है। महात्मा ने उससे ९९ रुपये लेकर रात में चुपचाप मजदूर के आँगन में टपका दिये। दूसरे दिन मजदूर ने ९९) की पोटली देखी तो सोचा १००) करना चाहिये फलस्वरूप उन्होंने इस दिन उपवास रखा घर के बच्चे कुड़-मुड़ाते रहे। एक दिन में ही खींचतान मच गई। साधु ने समझाया-देख सेठ! पैसा पैदा करना समझदारी नहीं समझदारी उसका उपयोग है। मजदूर कल तक इसी पैसे से कितना सुखी था पर आज पैसे पाकर भी दुःखी है।
(५) बसरा का एक व्यापारी रेगिस्तान में भटक गया। कई दिन तक मारा-मारा घूमा तब तक नखलिस्तान दिखाई दिया। भूख से प्राण निकल रहे थे। तभी उसे एक पोटली दिखाई दी। उसने लपक कर पोटली खोली आशा थी उसमें चने होंगे पर खोलने पर निकले मोती। व्यापारी भूख से तड़प-तड़प कर मर गया और अपने पीछे एक शिक्षा छोड़ गया कि धन जीवन की मूल आवश्यकता नहीं है। ठीक प्रकार चले तो मनुष्य थोड़े धन में ही सुखी रह सकता है।
(६) एक सेठ धन जमा करते गये खर्च के नाम पर कानी कौड़ी भी मुश्किल से निकालते एक दिन तिजोरी में बैठे रुपया गिन रहे थे कि उधर झटके के कारण खटका गिर जाने से तिजोरी अपने आप बन्द हो गई। सेठ चिल्लाते रहे पर बन्द होने के कारण किसी ने उनकी आवाज न सुनी। सातवें दिन लड़के ने तिजोरी खोली तो सेठ की सड़ी लाश निकली, जिसने भी सुना कहा-अति संचय का यही फल होता है।
(४७) अपव्यय एक पाई का भी न करें?
प्रश्न ——
(१) धन का उपार्जन किन-किन बातों पर निर्भर करता है? (२) क्या आर्थिक क्षेत्र के अनुसार वह व्यक्ति बुद्धिमान कहला सकता है जो अधिक धन उपार्जन करे? नहीं तो कौन व्यक्ति बुद्धिमान कहला सकता है? (३) जिस प्रकार हम उस व्यक्ति को जो काफी अधिक धन उपार्जन करता है तथा काफी अधिक खर्च करता है मूर्ख कह सकते हैं? (४) लोग फिजूल खर्ची किस धारणा के आधार पर करते हैं? (५) कैसे हम किसी व्यक्ति की बुद्धिमत्ता का स्तर परख सकते हैं? (६) वे कौन से आवश्यक कार्य हैं जिन पर हमें खर्च करना अनिवार्य ही होता है? (७) परिवार के प्रति हमारे क्या आर्थिक कर्तव्य हैं? (८) धन का व्यय करने से पहले हमें क्या सोचना चाहिए? (९) आज के युग में अपव्यय के क्या साधना हैं? (१०) पारिवारिक उत्तरदायित्व के अतिरिक्त और हमारे ऐसे कौन से कार्य हैं जिन पर हमें पैसे व्यय करना अनिवार्य है?
कथाएँ ——
(१) हजरत मोहम्मद अपनी पुत्री फातिमा से मिलने गये। पुत्री वेश कीमती वस्त्र और आभूषण पहने उनसे मिलने द्वार पर आई तो हजरत मोहम्मद दुःखी हुए और वहाँ से लौट कर चल दिये। फातिमा पिता के हृदय की बात समझ गई। उसने अपने सारे बहुमूल्य वस्त्राभूषण बाँधकर पिता के पास पहुँचा दिये। पिता ने उस धन को गरीबों में बाँट दिया और अपनी पुत्री से मिलने उसके घर की ओर चल दिये।
(२) अमेरिका दार्शनिक थोरो को एक महिला ने चटाई भेंट की चटाई बहुत सुन्दर थी पर थोरो ने उसे अस्वीकार करते हुए कहा-बहन अपने घर को संग्रहालय बनाऊँ इससे अच्छा है आप इसे किसी जरूरतमन्द को दे दें ताकि इसका उपयोग तो हो जाए।
(३) स्व० राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्रप्रसाद राँची प्रवास पर थे। पैर में जूते की कील गड़ रही थी अतएव उन्होंने अपने सक्रेटरी से गौ रक्षक जूता मँगाया। सचिव उन्नीस रुपये का जूता लेकर आया तो राजेन्द्र बाबू चिन्ता में पड़ गये बोले-दस रुपये के जूते से काम चल सकता है तब फिर इतना मँहगा जूता क्यों लाये? सचिव उसे लौटाने चल पड़े तो उन्होंने कहा-अब वहाँ जाने में मोटर का पेट्रोल और खर्च करोगे अब ऐसा करो जब गाड़ी उधर से निकले तभी इन्हें बदल लेना। राष्ट्रपति की इस किफायत शारी पर उपस्थित सभी लोग बहुत प्रभावित हुए।
(४) गाँधीजी ने रेल में सफर कर रही एक स्त्री से कहा-बहन अच्छे कपड़े नहीं पहन सकतीं तो कम से कम इन्हें साफ तो कर लिया करें। स्त्री बोली-क्या करूँ बापू! धोती एक ही है इसी को आधी धोकर निचोड़ लेते हैं फिर स्नान करके आधी सुखा लेते हैं आप ही बताइये इसे धोये कैसे? गाँधीजी की आँखों में आँसू आ गये। वे बोले-जिस देश में इतनी निर्धनता हो वहाँ फैशन परस्ती नहीं चल सकती। यह कहकर उन्होंने आधी धोती पहन कर कम्बल ओढ़ने की प्रतिज्ञा की और मरते दम तक उसी सरलता से जीवन बिताया।
(५) बड़ी देर से कुछ ढूँढ़ रहे गाँधीजी से काका कालेलकर ने पूछा-बापू किस बात के लिये परेशान हैं। पेन्सिल के टुकड़े के लिये। काका कालेलकर बड़ी पेन्सिल देते हुये बोले-छोड़िये उसे यह लीजिये। गाँधीजी ने कहा-अपव्यय किसी भी वस्तु का नहीं करना चाहिये। वही पेन्सिल ढूँढ़कर उन्होंने काम किया।
(६) करनाल में नादिरशाह से हारने के बाद मुहम्मद शाह ने संधि कर ली। बादिरशाह दिल्ली आया। किसी परामर्श के बीच नादिरशाह ने पीने का पानी माँगा इस पर मुहम्मद शाह ने शादी अदा के साथ नगाड़ा बजवाया दस-बारह नौकर एक कटोरे में जल लेकर कोई उसे पकड़े, कोई मखमली कपड़े से ढके, कोई हवा करते हुए वहाँ पहुँचे। नादिरशाह ने घबराकर पूछा-यह क्या नाटक है। मुहम्मद शाह ने कहा-हुजूर आला आपके स्वागत में जल लाया जा रहा है। नादिरशाह ने कहा-इस तरह पानी पीते तो ईरान से भारत नहीं आ पाते। कहकर उसने अपने भिश्ती को बुलाया और लोहे के टोप में भरकर भर पेट पानी पिया।
(४८) जेवरों का भोंडा फैशन हर दृष्टि से हानिकारक
प्रश्न ——
(१) पिछले समय में जेवरों के बनवाने के कारणों पर प्रकाश डालिये? (२) अब पैसे को जेवरों के रूप में बदलना हानिकारक क्यों है? (३) वर्तमान समय में भी यदि जेवरों का प्रचलन रहा तो हमारे देश को किस तरह हानि उठानी पड़ेगी? (४) स्वास्थ्य की दृष्टि से भी जेवरों का पहनना हानिकारक है सिद्ध कीजिये? (५) जेवरों के बनवाने के कारण हमारे परिवारों को क्या हानियाँ होती हैं। (६) क्या ऐसे कोई कारण हैं कि जिनके आधार पर हमें यह जेवरों को भोंडा फैशन छोड़ना चाहिये? (७) जेवरों से खुद हमें क्या हानियाँ होती है? (८) जेवर प्रथा बन्द होने से विवाहों की अवस्था में क्या सुधार हो सकता है?
कथाएँ ——
(१) रामलाल और श्यामलाल का बँटवारा हुआ रामलाल स्त्री के कहने में आ गया और सारी पूँजी जेवरों में फँसा दी श्यामलाल भी वैसा ही करना चाहता था पर स्त्री ने समझाया मुझे जेवर बनवाकर बच्चों का भविष्य नष्ट न करो, इन पैसों से कोई उद्योग करो। श्यामलाल ने दुकान खोल ली उसके लड़के भी पढ़ गये मकान भी बन गया, उद्योग भी चलता रहा जब कि रामलाल अपनी स्त्री के जेवर ही लिये बैठा था।
(२) स्त्री के कहने पर एक आदमी ने उसे एक तोले की जंजीर बनवा दी, कुछ दिन पीछे स्त्री बोली इस जंजीर की बिंदिया बनवा दो, दुबारा तुड़ाने में १ आना सोना जल गया और बिंदिया भी कुछ ही दिन पहनी गई अब स्त्री ने अँगूठी का आग्रह किया बिंदिया तुड़वाई गई तब फिर एक आना सोना बेकार गया तब स्त्री ने कानों के कुंडल की बात रखी, एक तोले सोने का बाहर आना रह गया तब कुंडल बने एक दिन स्त्री कहीं जा रही थी कि एक कुंडल खिसक कर गिर गया और शेष पूँजी ६ आने बची आदमी ने माथा ठोका और कहा-जेवर ने हमारा विवेक ही नष्ट कर दिया।
(३) श्री रामानुज शास्त्री मैसूर महाराज के दीवान होकर भी अत्यन्त सादगी से रहते। अपनी आय वे पिछले लोगों की शिक्षा आदि में लगा देते। एक दिन महाराज के घर की स्त्रियाँ उनके घर आईं। श्री शास्त्रीजी की धर्मपत्नी को सादी वेषभूषा में देखकर उन्हें दुःख हुआ। वे उन्हें अपने साथ ले गईं और अपने घर से कीमती आभूषण पहना कर पालकी में बैठाकर भेजा। श्री शास्त्री ने देखा तो घर के दरवाजे बन्द कर लिये बहुत आग्रह पर भी उन्होंने दरवाजा न खोला बोले-विचारशील होकर भी हम जेवर-जकड़े को महत्त्व देंगे तो सामान्य प्रजा का क्या होगा। धर्मपत्नी वापस जाकर गहने लौटा आईं तभी शास्त्रीजी ने दरवाजा खोला।
(४) एक व्यक्ति के पास पूँजी थोड़ी थी पर पति-पत्नी खूब प्रसन्न रहते थे। पड़ोसी को देखकर उन्हें भी जेवर बनवाने की सूझी। जेवर के लिए जा रहे थे तब निगाह एक चोर की पड़ गई उसने समझा यह धनी आदमी हैं रात सेंध काटी तो जेवर के साथ यह भी ले गये। वह आदमी बोला जेवर न बनवाते तो चोरी की नौबत क्यों आती।
(५) हरिजन-फंड के लिये कुछ पैसों की आवश्यकता थी बापू चिन्ता में थे कि पैसा कहाँ से लायें तथा कस्तूरबा ने अपने मंगल-आभूषण उन्हें सौंपते हुए कहा-जेवर की प्रथा कभी इसलिये बनी थी कि वह पूँजी समय पर काम आये सो आप इन्हें ले जाइये और अपना काम चलाइये।
(४९) माँस मनुष्यता को त्याग कर ही खाया जा सकता है
प्रश्न ——
(१) आमिष आहार की हानियों पर प्रकाश डालिये? (२) जार्ज बर्नाड शा के शब्दों में माँस खाना अपराध क्यों है? (३) मानव प्राणी की सबसे बड़ी विशेषता क्या है? (४) सिद्ध कीजिये माँसाहार मानव की प्रकृति के विरुद्ध है? (५) माँसाहार के विरुद्ध विदेशी डॉक्टरों के कथन देते हुए सिद्ध कीजिए कि असाध्य रोगों का कारण माँसाहार है। (६) क्या यह सत्य है ‘‘जैसा खाये अन्न वैसा बने मन।’’ सप्रमाण सिद्ध कीजिये। (७) विभिन्न धर्मों-उपदेशकों के मतों को उद्धृत करते हुए सिद्ध कीजिये कि माँसाहार पाप है। (८) ‘‘ने केवल शरीर अपितु मन की पवित्रता के लिए भी माँसाहार नहीं करना चाहिए—’’ इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिये। (९) माँसाहार निष्ठुरता एवं क्रूरता का प्रतीक है, विवेचन कीजिये। (१०) शाकाहारी दीर्घजीवी होते हैं-सिद्ध कीजिये।
कथाएँ ——
(१) इंग्लैण्ड में दोस्तों के बहुत दबाव के कारण गाँधीजी ने एक दिन बकरी का माँस खा लिया। उस दिन रात भर उन्हें दुःस्वप्न दिखाई देते रहे और यह लगा कि पेट में बकरी बोल रही है उन्होंने अनुभव किया-माँस खाना अनैतिकता और जीव हिंसा का पाप है फिर कभी उन्होंने माँस को हाथ न लगाया।
(२) वसई कलाँ आगरे के भिश्ती सुन्नूखाँ ने एक दिन एक बकरे को कटते देखा तो उनकी आत्मा काँप उठी और लगा कि माँस खाना दुनिया का सबसे बड़ा पाप है उस दिन से सुन्नूखाँ से चाहे हिन्दू हो या मुसलमान सभी को माँस खाना छुड़ाना प्रारम्भ कर दिया। जिन घरों में वह पानी भरते थे कोई भी माँस नहीं खा सकता था। दसे की बीमारी से ५८ वर्ष की आयु में मरे तब तक सुन्नूखँ ने सारे गाँव को निरामिष भोजी बना दिया।
(३) जार्ज वर्नार्डशा एक भोज में सम्मिलित हुए। वे शाकाहार करते थे पर परोसा गया माँस। सब लोग खाने लगे तब वे चुपचाप बैठे रहे। परोसने वाले ने पूछा-आप क्यों नहीं खाते? इस उप उन्होंने उत्तर दिया-मेरा पेट कोई कब्रिस्तान नहीं है। आखिर उन्हें दूध फल और सब्जी दी, तब उन्होंने वही खाया।
(४) गुजरात के प्रतिष्ठित कवि झबेर भाई के पिता ने पुलिस वालों को खीर की दावत दी। गाँव वालों ने सारा दूध ले लिया गया बछड़ों के लिए भी दूध न बचा। सब लोग खीर खाने बैठे, खीर झबेर को भी पड़ोसी गई पर उन्होंने उसकी उँगली तक नहीं लगाई। पिता ने पूछा क्यों बेटा खीर नहीं खा रहे। झबेर भाई ने कहा-पिताजी गाँव के सारे बछड़े इस समय भूख से तड़प रहे होंगे और हम सब खीर खा रहे हैं ऐसी खीर गले से नीचे नहीं उतरती यह भी तो एक प्रकार का माँसाहार ही है। सब लोग लड़के की करुणा से द्रवित हो उठे। उसी समय ग्रामवासियों को दूध का पूरा पैसा चुकाया गया और फिर किसी दिन उस तरह का दूध वसूल नहीं किया गया।
(५) सन्त राघवदास एक घर में गये तो देखा एक महिला एक स्तन में अपने बच्चे को दूध पिला रही है दूसरे में एक बकरी के बच्चे को। पूछने पर पता चला कि बकरी बाढ़ के कारण बह कर मर गई है और बच्चा ऊपर से दिया दूध पीता ही नहीं। महिला की करुणा से राघवदास बहुत प्रभावित हुये उस दिन से उन्होंने घूम-घूम कर जीव दया का प्रचार कराना शुरू कर दिया।
(६) एक पौण्ड माँस में यूरिक एसिड विष ——
काँर्ड मछली में-४ ग्रेन
सुअर में-६ ग्रेन
भेड़ व बकरी में-६ ग्रेन
बछड़े में-८ ग्रेन
चूजे में-९ ग्रेन
गाय विभिन्न अंगों के माँस में-९ से १९ ग्रेन तक
माँस के शोरबे में-५० ग्रेन
यह विष दिल की जलन, टी. बी., जिगर की खराबी, साँस रोग, गठिया, हिस्टीरिया, अधिक नींद, अजीर्ण, जुकाम आदि रोग पैदा करता है।
डॉ० अलेक्जर हेग-लंदन की रिपोर्ट
(५०) तंबाकू का दुर्व्यसन छोड़ा ही जाना चाहिए!
प्रश्न ——
(१) बुद्धिमानों एवं शिक्षकों के व्यसनों में प्रमुख कौन-सा व्यसन है? इसे मिटाना क्यों आवश्यक है? (२) तंबाकू में कौन २ से विष होते हैं? (३) तंबाकू के सेवन से कौन-कौन से रोग होते हैं? (४) तंबाकू स्वास्थ्य के लिए हानि क्या करता है? (५) तंबाकू खाने वाला अल्प जीवी क्यों होता है? (६) तंबाकू पीने वाले के आर्थिक व्यय पर प्रकाश डालिये? (७) तंबाकू के व्यसन से राष्ट्रीय क्षति कितनी होती है? (८) विनाश के उत्पादन से क्या समझते हो? इस व्यय को अन्य उद्योगों में कैसे लगाया जा सकता है? (९) तंबाकू से अपराध वृत्ति कैसे पनपती है? (१०) ‘‘सभी धर्मों ने नशेबाजी की निन्दा की है’’ सिद्ध कीजिये? तंबाकू का सेवन अप्राकृतिक है?
कथाएँ ——
(१) एक महात्मा ने जागीरदार को शराब न पीने का उपदेश दिया। जागीरदार बोला-शराब पीता हूँ किसी की बहू बेटी तो नहीं ताकता, किसी की हत्या तो नहीं करता। साधु ने कोई उत्तर नहीं दिया, सोचा नशेबाजी तो अपने आप ठिकाने लगता है। जागीरदार एक दिन शहर गया और एक धर्मशाला में टिक गया साथ में उसकी स्त्री और एक बुड्ढा यात्री भी था। धर्मशाला में उसने शराब पी। शराब पीते ही उसे माँस खाने की इच्छा हुई उसने होटल से मँगाकर माँस खाया अब विषय भोग की इच्छा हुई पर स्त्री ने कहा-साथ में बुड्ढा है मुझे लज्जा आती है। शराबी ने तलवार से बुड्ढे को काट डाला और अपनी इन्द्रिय लिप्सा शान्त की। सबेरे सिपाहियों ने पकड़ कर उसे जेल में बन्द कर दिया तब पता चला नशा सारे पापों की जड़ है।
(२) दो शराबी ताश खेल रहे थे। एक मक्खी आकर एक ही नाक पर बैठ गई। दूसरे शराबी ने चाकू से उसकी नाक काट ली। पहला शराबी बोला-अरे यह क्या कर दिया, दूसरा बोला-मक्खी का अड्डा साफ कर दिया। तब तक मक्खी दूसरे के कान पर बैठ गई। अब पहले शराबी ने अपने छुरी निकाल कर दूसरे का कान काट लिया। इस पर उसने पूछा, क्या किया? पहले शराबी का उत्तर था वह दूसरा अड्डा जमा रही थी।
(३) एक सेठ अफीम खाते थे उन्होंने अपने नौकर को भी यह लत लगा दी। एक बार दोनों शहर चले। रास्ते में एक स्थान पर दोनों ने खाना खाया, अफीम के नशे में याद नहीं रहा घोड़ा वहीं छोड़कर चलते बने शहर पहुँचे नशा कम हुआ एक स्थान पर बैठे को पता चला कि घोड़ा रास्ते में ही छूट गया। फिर दोनों घोड़े की तलाश में लौटे पसर इस बार अपनी पोटली कहीं भूल गये उसी में उनके रुपये थे। वापस जाकर देखा तो वहाँ घोड़ा न पाया, तब पोटली की याद आई। दोनों रोने लगे एक ग्रामीण स्त्री बोली-तुम्हारी ही नहीं हर नशेबाज की यह हालत होती है।
(४) एडवर्ड नामक एक ४० वर्षीय इटैलिन मजदूर को खाँसी हो गई। उसने डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने बताया-तुम्हें कैंसर होने को है यदि तुमने तंबाकू पीना न छोड़ा तो कुछ दिन में ही मर जाओगे। एडवर्ड ने कैंसर का नाम सुनते ही बीड़ी पीना छोड़ दिया। वह चालीस वर्ष और जिया इस बीच उसने एक हजार मजदूरों की बीड़ी पीने की आदत छुड़ाई।
(५) स्वामी दयानन्द ने एक ठाकुर साहब को शराब न पीने का उपदेश दिया। ठाकुर साहब बोले-स्वामीजी क्या करूँ शराब छोड़ती ही नहीं, आप ही कोई उपाय बतायें। स्वामी जी बोले-कल डेरे पर आना वहीं उपाय बताऊँगा। दूसरे दिन ठाकुर साहब स्वामी जी के पास गये तो देखा स्वामी जी एक खम्भे में चिपके खड़े हैं। बहुत देर तक वैसे ही खड़े देखकर ठाकुर साहब बोले-स्वामी जी यह क्या कर रहे हैं। स्वामी जी बोले-क्या करूँ भाई यह खम्भा छोड़ता ही नहीं। ठाकुर साहब हँसकर बोले-यह आप क्या कहते हैं। निर्जीव खम्भा भी पकड़ सकता है। स्वामी जी बोले-शराब पकड़ सकती है तो खम्भा क्यों नहीं पकड़ सकता। ठाकुर साहब सारी बात समझ गये और शराब पीना छोड़ दिया।
(५१) देश भक्त नव-निर्माण के कार्य में जुट जाय
प्रश्न ——
(१) प्रजातंत्र में देश भक्तों के कर्तव्य क्या हैं? (२) युग निर्माण योजना द्वारा प्रसारित १० रचनात्मक नवनिर्माण के कार्यों का उल्लेख करते हुए युग की आवश्यकता पर लघु निबन्ध लिखिये। (३) लोकसेवक अपना सारा समय किन दो कामों में खर्च करते थे। (४) हमारे देश के उस प्रकार उन्नति न कर सकने के क्या कारण है जिस प्रकार एक स्वतंत्र राष्ट्र के नाते हमारी उन्नति हो सकती थी? (५) राष्ट्रीय प्रगति और सामाजिक उन्नति के लिये नवयुवकों को क्या करना चाहिये? (६) राजनैतिक पार्टियों के कार्यकर्ता किस प्रकार अपना समय व्यय कर देते हैं? (७) ऐसे कौन से १० सूत्री कार्यक्रम हैं जिनके अन्तर्गत हम नवयुवक भी देश की प्रगति में सहायक बन सकते हैं? (८) एक-एक कार्यक्रम का अलग-अलग वर्णन करो ——
कथाएँ ——
(१) पं० जवाहरलाल ने एक दिन शास्त्री जी को जंगल का फूल कह दिया। इस पर शास्त्रीजी बोले-पंडित जी जंगल में जो आजादी है, स्वच्छता है वह बाग में कहाँ? नेहरू जी बोले-लेकिन देवताओं के सिर पर चढ़ते हैं बगीचे के ही फूल। स्वाभाविक हास परिहास में शास्त्री ने कहा-फूल देवताओं के लिये ही क्यों खिले क्या संसार में अन्य जीव तुच्छ हैं जो उन्हें सौन्दर्य और सुगंध से वंचित किया जाय? और पं० नेहरू को इसका कोई उत्तर न देते बना।
(२) सरदार वल्लभ भाई ने अपनी माँ से देश सेवा की आज्ञा माँगी। माँ ने कहा-बहुत कठिन काम है बेटा, देश-सेवा गद्दी पर बैठना और हुकूमत चलाना नहीं उसमें झाड़ू-बुहारी से लेकर दुष्टों से संघर्ष तक के कठिन काम करने पड़ते हैं जिस दिन मुझे यह विश्वास हो जायेगा कि तू कठिन से कठिन कार्य भी कर सकता है, उसी दिन आज्ञा दे दूँगी। सामने दीपक जल रहा था, सरदार पटेल ने उसकी लौ पर हथेली रख दी, हाथ जल गया, घाव पड़ गया पर पटेल ने सी तक न की। उनकी माँ ने हाथ हटाया और उन्हें छाती से लगाते हुए कहा-बेटा तू देश सेवा के लिये सहर्ष जा सकता है।
(३) एक बार ईसा ने देशवासियों से धन माँगा लोग मुक्त हस्त धन देने लगे। उन धन देने वालों की लिस्ट बन रही थी वहाँ बैठे हर आने वाले को देखते रहे। एक स्त्री आती, खुद आधा पेट रहकर एक पैसा दान पात्र में डाल आती। आखिरी दिन लोग सुनने आये सबसे बड़ा देश-भक्त कौन है तो ईसा ने कहा-जो तंगी में भी दे सकता है वही देश भक्त है।
(४) आजाद हिन्द सेना के लिए धन की आवश्यकता थी उसके लिये सुभाष बाबू की माला नीलाम की जाने लगी। तीसरा बोली, में एक व्यक्ति ने अपने घर का सारा सोना देते हुए कहा-नेताजी क्या हमारी पात्रता की परीक्षा धन से ही होगी। नेताजी चौंके और बोले-तुम सच कहते हो सबसे बड़ी शक्ति मनुष्य है इसलिए उन्होंने धन माँगने की अपेक्षा जवान माँगे। वह व्यक्ति पहला था जिसने आजाद हिन्द सेना में अपना नाम लिखाया।
(५) यहूदी समझते थे ईसा जादू से समुद्र के दो टुकड़े कर देंगे पर ऐसा नहीं हुआ ईसा बोले-तुम सब मेरे पीछे कूदो। यहूदी एक के पीछे एक कूदते गये और एक पंक्ति और साहस की यही भावना आज तक यहूदियों को विजयी बना रही है।
(६) शिवाजी से आत्म समर्पण कराने के बाद समर्थ गुरु रामदास ने कहा-ले यह तलवार राजगद्दी पर बैठ और शत्रु से संघर्ष कर आज से मैं महाराष्ट्र भर में घूमेगा व्यायामशालाएँ चलाऊँगा ताकि लोग स्वस्थ और बलिष्ठ बनें और तेरी फौज कम न हो। शिवाजी खड़े रामदास का मुँह ताकने लगे तो वे हँसकर बोले-अरे खड़ा क्या देखता है तू समझता है मेरा काम छोटा है? अपने देश और जाति के उत्थान की भावना से किया गया हर काम महान् होता है।
(७) सार्वजनिक चिकित्सालय के लिए लोग जमशेद जी टाटा के पास दान के लिये गये तो पर लोग हिचकिचा रहे थे कि वे सौ पचास रुपये दे दें तो ही बहुत है। पर जब जमशेदजी ने दस हजार दिया तो लोग बड़े आश्चर्य चकित हुए। उनका आश्चर्य दूर करते हुए टाटा जी ने कहा-कंजूस तो मैं व्यर्थ के कामों के लिये हूँ लोक-सेवा के लिये कंजूसी करूँ तो फिर मेरी देश भक्ति का क्या होगा।
(८) गाँधीजी ने सबको काम बाँट दिया सब लोग चले गये तो खुद ने झाड़ू उठाई और पड़ोस के गाँव की सफाई के लिए चल पड़े। उन्हें हाथ में झाड़ू लेकर जाते देखकर महादेव भाई के मुँह से अनायास ही निकल गया तुम सबसे बड़े ‘‘देश भक्त हो बापू’’।
(९) मुर्गे ने बाँग दी तो पड़ोसी मुर्गा भी बोल उठा, पहले मुर्गे ने डाँटकर कहा-मेरी नकल करता है दुष्ट, मार डालूँगा। पास बैठे बूढ़े मुर्गे ने कहा-तात संसार को जगाने को दायित्व अकेले तुम पर ही नहीं जो भी आगे आता है उसका स्वागत करो, उसे धिक्कारो मत, पहला मुर्गा बड़ा लज्जित हुआ।
(१०) वर्षा की बात है। गीली मिट्टी टिक नहीं रही थी एक बाँध का छेद बढ़ता जा रहा था, उससे देश के डूब जाने की आशंका थी। क्या किया जाए? एक आदमी आगे बढ़ा और जहाँ बाँध टूट रहा था वहाँ लेट गया। थोड़ी देर में ठंड में उसका शरीर अकड़ गया तो उसे लोगों ने उठाकर आग के पास पहुँचाया और दूसरा लेट गया। सारा-गाँव इसी तरह पानी को तब तक रोके रहा जब तक सरकारी कर्मचारी नहीं आ गये। इंजीनियर ने ग्रामीण भाइयों का त्याग देखकर कहा-जहाँ तुम्हारे जैसे त्यागी व साहसी हों उस देश का भी अहित नहीं हो सकता।
(५२) सच्चे नागरिक बनें और समाज में स्वस्थ परम्परा डालें
प्रश्न ——
(१) अपने देश के प्रति नागरिक का कर्तव्य क्या है? (२) दूसरों की सुविधा का ध्यान रखने से क्या लाभ होता है? (३) घर मुहल्ले एवं नगर में सफाई रखने के लिये क्या किया जाय? (४) नागरिकता किसे कहते हैं? सार्वजनिक स्थानों पर लोग किस प्रकार गन्दगी फैलाते हैं? (५) मनुष्यता की आरम्भिक शिक्षा क्या है? (६) ईश्वर भक्त से भी पहले नागरिक मर्यादाओं एवं जिम्मेदारियों को क्यों निभाना चाहिये? (७) मनुष्य का प्रामाणिक एवं नैतिक कर्तव्य क्या है? (८) समय की बरबादी धन की बरबादी से भी अधिक अहित कर है-सिद्ध करें? (९) व्यायाम में सफलता का रहस्य क्या है? (१०) मिलावट से क्या हानि है?
कथाएँ ——
(१) बात बंगाल के कुमिल्ला जिले की है। एक अतिथि के स्वागत में मेजबानों ने तरह-तरह के मिष्ठान्न व पकवान बनवाये, माननीय अतिथि भोजन के लिये बैठे और उतना सारा तरह-तरह का भोजन परोसा गया तो वह देखते ही उठ खड़े हुए और बोले-जिस देश में हजारों लोगों एक को समय भोजन मिलता हों वहाँ ऐसा भोजन करने का अधिकार नहीं। यह अतिथि सीमान्त गाँधी खान अब्दुलफ्फारखाँ थे।
(२) सतारा जिले का दौरा करने न्याय मूर्ति महादेव रानाडे तो पैदल गये पर अपने पत्नी को बैलगाड़ी कर दी। गाड़ी रवाना हुई तब उन्होंने हिदायत दे दी तुम अपने को जज की पत्नी नहीं, साधारण नागरिक मानकर चलना। श्रीमती रानाडे ने एक जगह पके आम देखे तो उनका खाने का मन कर आया। गाड़ी खड़ी कराकर, जैसे ही वे आम तोड़ने को हुई कि आम ऊपर से टूटा और उनके सोने के कंगन पर गिरा। कंगन चूर-चूर होकर छितर गया तभी वहाँ रानाडे पहुँच गये। धर्मपत्नी ने दुःखपूर्वक सारी बात कही तो उन्होंने इतना कही कहा-यह दूसरे के आम बिना पूछे तोड़ने का फल है।
(३) रेलगाड़ी आने का समय हो गया है इधर पुल टूटा पड़ा है। भेड़ चरा रहे बालक ने यह देखा तो उसका हृदय आशंका से भर गया। भेड़ों को छोड़कर वह रेल की पटरी के सहारे उधर ही भागा जिधर से रेल आनी थी। थोड़ी देर में रेल आती दिखाई दी उसने अपना कुर्ता उतार कर हिलाता और खतरे की सूचना देना शुरू किया। ड्राइवर कुछ समझा नहीं पर युवक को पटरी से हटाने के लिये वे बराबर सीटी देते रहे। युवक पीछे हटता भी जाता था और कपड़ा भी हिलाता जा रहा था। रेलगाड़ी रुकते-रुकते उसकी छाती पर चढ़ गई। ड्राइवर और अन्य सवारियों ने उतर कर देखा तो १० गज की दूरी पर पुल टूट पड़ा था। लोगों में उस नागरिक के प्रति श्रद्धा उमड़ पड़ी।
(४) एक दिन तुलाधार वैश्य के पास एक साधु जाकर बोले-बेटा जा कुछ दिन तीर्थयात्रा भी करके आ उससे शान्ति मिलेगी। तुलाधार ने उत्तर दिया-मेरे गाँव में कितने ही लोग भूख से पीड़ित हैं कितनों को दवा-दारू की आवश्यकता है। चार पैसे कमाकर इन्हें रोटी-कपड़े और दवा-दारू की व्यवस्था करता हूँ यही मेरी तीर्थयात्रा है इसी में मुझे शान्ति मिलती है। साधु को अपनी मिथ्या आस्तिकता का अहंकार दूर हो गया और उस दिन से तुलाधार को अपना गुरु मान लिया।
(५) बच्चा तालाब में डूब रहा था और उसका पिता किनारे पर खड़ा उपदेश दे रहा था-ले मेरा कहना न मानने का फल भुगत तभी एक सज्जन उधर से आये और कूदकर बच्चे के प्राण बचाये। बाहर निकले तो पिता से बोले महोदय-उपदेश हमेशा अच्छा नहीं होता। कर्तव्य भी निबाहना चाहिए।
(६) एक अँगरेज ने सड़क पर बैठे एक मोची के लड़के से जूते गँठवाये। पैसे पूछने पर लड़के ने बताये १० पैसे। अँगरेज ने अपनी शान दिखाते हुए एक रुपया फेंका और चल पड़े तभी पीछे लड़का भागा और ९० पैसे वापस करता हुआ बोला श्रीमान् जी यह पैसे? अँगरेज बोला-हमने खुशी से दिये हैं पर बच्चे ने अधिक पैसे लेने से इनकार करते हुए कहा-महोदय अपने हक से अधिक लेना मेरे लिए पाप है-अँगरेज भारतीय बच्चे का मुँह ताकता रह गया।
(५३) व्यक्तिगत स्वार्थ भी सामाजिक सुव्यवस्था पर निर्भर है
प्रश्न ——
(१) मानव धर्म का मूल आधार क्या है? (२) मनुष्य को व्यक्तिगत स्वार्थ की अनेक सामाजिक सुव्यवस्थाओं पर ध्यान क्यों देना चाहिए (३) आधुनिक युग में एकाकी एवं अति सीमित जीवन जीना क्यों कठिन है। (४) सिद्ध कीजिये कि-सुरक्षा और व्यवस्था का सारा ढाँचा समाज की ही देन है। (५) व्यक्तिगत प्रगति एवं शान्ति के लिए क्या किया जाना चाहिए। (६) समाज के विकृत होने से मानव भी विकृत कैसे हो जाता है। (७) स्वार्थ एवं परमार्थ का समन्वय किसमें है। (८) सुविकसित समाज में क्या विशेषताएँ होती हैं। (९) व्यक्तिगत स्वार्थपरता, मानसिक ओछापन एवं बौद्धिक संकीर्णता क्यों है।
कथाएँ ——
(१) धारा नगरी में आग लग गई। दो सुकुमार बच्चे आग की लपट में घिर गये। महाराज भोज चिल्लाए जो इन बच्चों को बजाएगा उसे पुरस्कार दिया जायेगा। भीड़ में से कोई आगे नहीं बढ़ रहा था तभी एक ओर से एक व्यक्ति आया और आग में घुस गया। दोनों बच्चों को निकाल तो लाया पर स्वयं बुरी तरह जल गया। उपचार के बाद पहचान में आया कि वह तो महान् उदार और दयालु कवि माघ थे। भोज ने उन्हें शीघ्र शीश झुकाते हुए कहा-कविवर आज तो तुमने काव्य से भी अधिक अपनी कर्तव्य परायणता से सबको जीत लिया।
(२) ताना जी के पुत्र का विवाह था तभी कोंडण दुर्ग के लिए युद्ध की सूचना आ पहुँची ताना जी ने कहा-अपने देश और समाज के आगे व्यक्तिगत स्वार्थ तुच्छ हैं वह युद्ध के लिए चल पड़े। युद्ध में जीत उन्हीं की हुई पर उनका शरीर काम आ गया। उनकी स्मृति में ही इस दुर्ग का नाम सिंह गढ़ रखा गया।
(३) एक बार भीषण अकाल पड़ा मनुष्य और जीव-जन्तु भूख और प्यास से तड़प-तड़प कर मरने लगे। तब नरमेध यज्ञ की व्यवस्था की गई लेकिन अपने शरीर की बलि कौन दे यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ? तभी एक युवक सामने आया और बोला लाखों लोग की रक्षा के लिये मुझे प्राण गँवाने पड़े तो इसे मैं अपने शरीर की सार्थकता ही मानूँगा। युवक के त्याग देखकर भगवान् इन्द्र मुग्ध हो गये उन्होंने बिना बलि लिये ही जब बरसाया यह युवक शतमन्यु के नाम से परोपकारी आकाश का जगमगाता नक्षत्र बन गया।
(४) एक रोगी व्यक्ति एक गड्ढे को भर रहा था। एक आदमी ने पूछा-गड्ढा क्यों भर रहे हो? उसने बताया-मैंने सुना है यहाँ देश के सैनिक गुजरेंगे इसलिये भर रहा हूँ कहीं वे लोग अँधेरे में इस गड्ढे में न गिर जायें। उस आगन्तुक ने कहा-लेकिन तुम तो रोगी हो? इस पर उसने उत्तर दिया हाँ सम्भव है मैं मर जाऊँ पर सैकड़ों लोग मरे उससे तो मेरा अकेले का ही मर जाना अच्छा है।
(५) इटावा के एक अध्यापक पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखा चुके तो थानेदार ने उनके मुँह की ओर ताकते हुए कहा-चोरी करने वाला तो आपका ही लड़का है। तो क्या हुआ आपका मतलब यह है कि मैं अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए सामाजिक हित का परित्याग कर दूँ? उन अध्यापक ने कहा। थानेदार ने कहा-यदि हमारे देश में सभी ऐसे हो जायें तो यह अपराध ही क्यों हों?
(५४) प्रौढ़ शिक्षा युग की अनुपेक्षणीय माँग
प्रश्न ——
(१) साहित्य द्वारा होने वाले लोगों पर प्रकाश डालिये? (२) अशिक्षितों को अर्ध मनुष्य क्यों कहते हैं? (३) क्यूबा ने अपनी अशिक्षा की समस्या कैसे हल की! (४) सिद्ध कीजिये कि ‘‘भारत में साक्षरता की प्रगति बहुत ही धीमी है।’’ (५) निरक्षरता की समस्या को हल करने के लिए अशासकीय स्तर पर कौन से कदम उठाने चाहिये। (६) ‘‘ज्ञानऋण’’ से क्या समझते हो? प्रत्येक शिक्षित का इस युग में क्या कर्तव्य है? (७) साक्षरता प्रसार आन्दोलन कैसे चलाया जाय? (८) जनसाधारण में शिक्षा का महत्त्व प्रतिष्ठापित करने हेतु क्या किया जाना चाहिये? (९) देश में शत प्रतिशत साक्षरता कैसे लाई जा सकती है?
कथाएँ ——
(१) ‘‘तार’’ को किसी की मृत्यु की सूचना समझकर एक घर के अशिक्षित लोग रोने लगे इसी बीच पड़ोसी आ गये वे भी अशिक्षित थे जो भी आता रोने लगता। देखते-देखते आधा गाँव जा पहुँचा कोई किससे बिना कुछ रोने लगता मानो रोना कोई पुण्य हो। आखिर एक पढ़ा-लिखा लड़का आया उसने पूछा, बात क्या है। घर वालों ने तार हाथ में थमा दिया उसे पढ़ते ही लड़के को हँसी आ गई उसने कहा-मूर्खों पढ़े लिखे होते तो यह हँसी क्यों होती, यह तो खुशी का तार है मृत्यु का नहीं।
(२) एक जर्मन पर्यटक ने भारत से लौटकर एक लेख में लिखा कि कर्ज में पैदा होने, जीवन भर कर्ज चुकाने और कर्ज में ही मर जाने का उदाहरण देखना हो तो भारतवर्ष जायें जहाँ के अशिक्षित लोगों से अँगूठा निशान लेकर साहूकार लोग ५० रुपये का ऋण-पत्र ५ हजार का बना लेते हैं और उसी की ब्याज में जीवन भर उससे कीमत लेती हैं। मर जाने पर कर्ज का भुगतान उसके लड़के करते है।
(३) सेंट पिरये अफ्रीका गये उस समय के लोग अच्छी तरह बोलना भी नहीं जानते थे। वे लोग गुलाम बनाकर दूसरे देशों को ले जाये जाते जहाँ उन पर मनमाने अत्याचार होते। संत पियरे ने अनुभव किया कि यह सब अशिक्षा के कारण है उन्होंने लोगों को पढ़ाना शुरू किया इसमें उन्हें कठिनाई तो बहुत हुई पर अफ्रीकनों में बौद्धिक चेतना विकास हुआ उसी का फल है कि आज अफ्रीकी देश भी स्वतंत्रता का आनन्द ले रहे हैं।
(४) गाँधीजी से एक व्यक्ति ने पूछा-देश स्वतंत्र हो गया अब आपका अगला कार्यक्रम क्या होगा। प्रौढ़ शिक्षा का विस्तार गाँधीजी बोले-जब तक इस देश की अशिक्षित जनता को विचार करना नहीं आता तब तक आजादी निरर्थक है विचार ही कुसंस्कार काटते हैं पर वे बिना शिक्षा पैदा नहीं होते इसलिए हर प्रौढ़ को पढ़ाना आज की पहली आवश्यकता है।
(५) चालीस वर्ष तक निरक्षर रहने वाली अमेरिका की एक स्त्री मेरी एन को पढ़ने की रुचि जागृत हुई तो लगातार पढ़ती ही चली गई ६७ वर्ष की आयु में जब वे मरी तब ५ विषयों में एम. ए. थीं उन्होंने यह कहावत झूठी कर दी कि बूढ़े तोते पढ़ नहीं सकते।
(६) जवाहरलाल जी ने एक दिन श्री लालबहादुर शास्त्री से कहा-देश में शिक्षा बढ़ रही है क्या यह प्रसन्नता की बात नहीं-नहीं श्री शास्त्रीजी बोले-जब तक यहाँ के बुजुर्ग अशिक्षित हैं कुछ लड़कों के पढ़ जाने से भी तरक्की नहीं होगी क्योंकि शिक्षा की अपेक्षा जीवन में संस्कारों का महत्त्व अधिक है जो संस्कार अशिक्षित व्यक्तियों द्वारा दिये गये होंगे वह देश की कहाँ तक उन्नति कर सकते हैं? आप सोच सकते हैं।
जवाहरलाल जी ने कहा-तुम्हारा कहना सच है। प्रौढ़ शिक्षा, शिक्षा से भी बढ़कर है।
(५५) स्वास्थ्य शिक्षा की एक महती आवश्यकता
प्रश्न ——
(१) मनुष्य की अल्पायु एवं अस्वस्थता का मूल कारण क्या है? (२) सम्पदायें एवं विभूतियाँ कैसे उपलब्ध होती हैं? (३) श्रम की प्रतिष्ठा प्रतिपादित करने के लिए क्या किया जाना चाहिए? (४) हिन्दू जाति के घटते जाने का मूल कारण क्या है?
(५) व्यायामशालाओं की आवश्यकता क्यों है? (६) दिन भर लोहा पीटने वाले लुहार की अपेक्षा दो घण्टे कसरत करने वाला पहलवान अधिक ताकतवर क्यों होता है? (७) खेलकूद के लाभ बताओ? (८) व्यायाम आन्दोलन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए?
कथाएँ ——
(१) एक व्यक्ति कई-कई दिन तक बाहर रहता, लौट कर आता तो पड़ोसी पूछता आज कल आप क्या कर रहे हैं। बहुत कम दिखाई देते हैं। वह व्यक्ति बोला-भाई अब शरीर तीसरी अवस्था में है। भगवान् की सेवा और पूजा, परमार्थ भी तो करना चाहिए। एक दिन उस व्यक्ति ने छिपकर तलाश की तो पता चला कि वह सज्जन तो गाँव-गाँव जाकर व्यायामशालाएँ खुलवाते हैं लौटने पर पूछा-आप तो कहते थे आप पूजा पाठ करते हैं जबकि तथ्य यह है कि आप लोगों को व्यायाम की शिक्षा देते हैं। वह व्यक्ति बोला-कोई भी समाज सेवा ईश्वर का ही भजन है। आज इसी भजन की उपयोगिता भी हैं।
(२) सेक्रेटरी ने कहा-सर आप इस देश के मालिक हैं अपनी कुर्सी मेज़ अपने हाथ से बनायें यह अच्छा नहीं लगता। इस पर उन्होंने उत्तर दिया प्रश्न फर्नीचर का नहीं स्वस्थ रहने के लिये कोई भी हो श्रम आवश्यक हे। यह व्यक्ति था तुर्की का निर्माता कमाल पाशा।
(३) समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी से कहा-तू अत्याचारियों के खिलाफ सुदृढ़ सेना खड़ी कर इस पर शिवाजी बोले-ऐसे बलवान् सिपाही मिलेंगे कहाँ-देश तो विलासिता में डूबा पड़ा है, नवयुवक निष्क्रिय हो रहे हैं। समर्थ गुरु रामदास ने कहा-उसके लिये गाँव-गाँव व्यायामशालाएँ चलानी पड़ेंगी। यह कार्य स्वयं उन्होंने किया। महाराष्ट्र में छः हजार अखाड़े (व्यायामशालाएँ) खोलकर लोगों में स्वास्थ्य-संवर्धन की रुचि पैदा की साथ ही सेवा और राष्ट्रीयता के भाव भी।
(४) गाँधी व्यायाम की उपयोगिता समझा रहे थे तभी एक बूढ़ा व्यक्ति बोल पड़ा-बापू आप तो कहते हैं व्यायाम आबाल वृद्ध सबको करना चाहिए पर मैं कैसे कर सकता हूँ-गाँधी जी बोले-व्यायाम का अर्थ केवल दंड बैठक से नहीं स्त्रियाँ चक्की पीसती हैं उनके लिए यही सर्वोत्तम व्यायाम है, बच्चे दिनभर खेलते हैं उससे बढ़िया व्यायाम क्या हो सकता है। आप तो प्रतिदिन टहलने जाया कीजिये, बूढ़ों के लिए टहलना ही व्यायाम है। देखो मैं भी टहलने जाता हूँ उस पर लोग खूब हँस चुके तो बोले देखो! यह भी (हँसना) भी एक व्यायाम हो गया।
(५) समर्थ गणराज्य के लिए अपनी दृष्टि में कौन सी वस्तुएँ आवश्यक हैं एक व्यक्ति ने मदनमोहन मालवीय से प्रश्न किया। श्री मालवीयजी का उत्तर था-हर गाँव मैं पंचायत और पाठशाला के साथ मल्लशाला (व्यायामशाला) होना अनिवार्य है जहाँ युवक आएँ और नियमित व्यायाम का अभ्यास भी कर सकें।
(६) जेलर ने देखा कैदी को कल फाँसी होने वाली है आज कसरत कर रहा है उसने पूछा-महाशय आपको तो कल फाँसी लगने वाली है। कसरत करने से क्या लाभ? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया-क्या आपका यह मतलब है जिस परमात्मा ने हमें स्वस्थ पैदा किया उसके पास अस्वस्थ होकर जाऊँ और अपना जीवन भर का क्रम बिगाड़ूँ। जेलर को स्तम्भित करने वाले-रामप्रसाद बिस्मिल थे।
(७) एक दुर्बल और रोगी लड़का अपने पिता से बोला-पिताजी मैं एक दिन पहलवान ही नहीं दुनियाँ के सबसे बड़े पहलवान बनोगे। पासवर्ती लोग हँस पड़े पर लड़का उपहास सहकर भी निराश न हुआ। नियमित व्यायाम प्रारम्भ किया और एक दिन सचमुच ही ने केवल अच्छा पहलवान ही बना वरन कसरत की अनेक विद्याएँ पी० टी० के अभ्यास बनाने के कारण सैंडो के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(५६) अध्यापक अपने मद न पद, का उत्तरदायित्व निबाहें
प्रश्न ——
(१) ‘‘अध्यापक दायित्व केवल शिक्षा देना ही नहीं है’’ इस कथन की पुष्टि करते हुए दर्शाइए कि अध्यापक के प्रमुख कर्तव्य क्या हैं? (२) छात्रों के गुण, कर्म, स्वभाव पर विद्यालय का प्रभाव सर्वाधिक क्यों होता है? (३) प्राचीनकाल में शिक्षा पद्धति किन लोगों के हाथ में थी उससे क्या लाभ हुआ? (४) शिक्षक को राष्ट्र निर्माता क्यों कहा जाता है? (५) अध्यापकों के प्रमुख कर्तव्य बताइये? (६) अध्यापक में क्या २ गुण होना चाहिये? (७) अध्यापक का रहन-सहन ‘‘सादा जीवन-उच्च विचार’’ पर आधारित क्यों होना चाहिये? (८) उपदेश नहीं चरित्र का क्या प्रभाव पड़ता है सिद्ध करें? (९) ‘‘आत्म चिंतन’’ आत्म-सुधार एवं ‘‘आत्म निर्माण’’ से क्या समझते हो? (१०) अध्यापन कला के आवश्यक तत्त्व बताइए?
कथाएँ ——
(१) महर्षि अश्वलायन को इस बात का बड़ा गौरव था कि उनका पढ़ाया हुआ हर छात्र राष्ट्र का प्रतिभाशाली और यशस्वी व्यक्ति है प्रधानमंत्री, सेनापति से लेकर कुरुपद का कृषि-पंडित भी उन्हीं का छात्र था। तभी एक दिन उन्होंने सुना उन्हीं का एक छात्र देवदत्त दस्यु हो गया है। उसके क्रूर कर्मों के कारण समस्त कुरुपद में त्राहि-त्राहि मच गई है कोई भी सेना और सेनापति उसे वश में नहीं कर सका। महर्षि के लिये यह संदेश वज्र, घात के समान था। भीषण रात, आकाश में बादल घिरे हुए, महर्षि को रोका भी गया पर वे नहीं रुके सीधे वहाँ पहुँचे जहाँ देवदत्त दस्यु कर्म किया करता था। अँधेरे में एक छाया देखते ही देवदत्त ने ललकारा रुक जाओ नहीं तो खड्ग प्रहार करता हूँ किन्तु आगन्तुक रुका नहीं। देवदत्त का खड्ग छूटा और आगन्तुक में माथे पर जा घुसा। रक्त के फौवारे के साथ आकाश में बिजली चमकी और देवदत्त महर्षि के चरणों में गिर गया। गुरुदेव यह क्या हुआ तीव्र वेदना में देवदत्त चिल्लाया। महर्षि ने कहा-वत्स मेरे शिक्षण में कुछ कमी रह गई थी उस का दण्ड मुझे मिलना ही था। देवदत्त गुरु का आशय समझ गया फिर उसने कभी भी डकैती नहीं डाली।
(२) कर्नवाल परगने का ग्राम पेन्जान्स, एक लड़का पढ़ना चाहता था पर उसे डॉक्टर की नौकरी करनी पड़ी। उसके पिता ने कहा-बेटा आदमी पढ़ना चाहे तो हर घर स्कूल है। लड़का वहीं पढ़ने लगा। बचे समय का सदुपयोग वह स्कूल की किताबों के अतिरिक्त डॉक्टरी पढ़ने लगा और १८ वर्ष की आयु में उसने वनस्पति, भूगर्भ, सर्जरी तथा रसायन शास्त्र के एम. ए् से अधिक ज्ञान प्राप्त कर लिया। बाद में सर हम्फीडैवी के नाम से यही अध्यवसायी बालक महान् वैज्ञानिक के रूप में विख्यात हुआ।
(३) पिता इतना गरीब था कि बच्चे की फीस चुकाना भी मुश्किल और लड़का इतना लगनशील और परिश्रमी कि स्कूल में पढ़ने के साथ उसने क्लर्क की नौकरी भी कर ली। स्टेनोग्राफ़र और मुनीम का भी काम उसने किया, कामर्स पढ़ी और प्रति माह ७) बचाया भी। टोरंटो (कनाडा) के नाई परिवार में जन्मा टाक्सन नामक यही लड़का अपनी इस लगन दृढ़ निश्चय और परिश्रम के कारण एक सौ अट्ठाईस समाचार पत्रों व पत्रिकाओं, १५ रेडियो वे टेलीविजन स्टेशनों, १५० व्यापारिक व तकनीकी पत्रिकाओं, दो प्रकाशन संस्थाओं, दो यात्रा एजेन्सियों का मालिक है।
(४) एक लड़का कामर्स पढ़ रहा था, अभी कुछ ही दिन बीते थे कि उसे संगीत अच्छा जान पड़ा, अब वह संगीत सीखने लगा किन्तु इसी बीच उसकी रुचि दर्शन की ओर मुड़ गई इसलिये संगीत छोड़कर वह दर्शन पढ़ने लगा। दस वर्ष में वह दस विषय बदल चुका और एक भी नहीं सीख सका। एक साधु ने उसे समझाया-बेटा एक निश्चय कर फिर साँसारिक आकर्षण छोड़कर उसी में जुट जाओ तभी सफलता मिलेगी।
(५) रतलाम के महाविद्यालय में एम. ए. कक्षा खुलवाने की बात आई। पैसा कौन दे। सभी छात्रों ने निश्चय कर ‘‘बूट पालिश’ का काम प्रारम्भ किया और कुछ ही दिन में एम. ए. की कक्षा खुलने योग्य धन की प्राप्ति हो गई।
(६) एरिट्रायस की धार्मिक विषयों में रुचि थी अतएव उसके आग्रह पर पिता ने उसे जीनों की पाठशाला भेज दिया। एरिट्रायस बहुत दिन में घर लौटे तो पिता ने पूछा-बेटा वहाँ से क्या सीखकर आये हो? पुत्र ने उत्तर दिया-बाद में ज्ञात हो जायेगा। एक दिन पिता किसी बात पर रुष्ट हो गया उसने युवा पुत्र की बुरी तरह पिटाई की फिर भी पुत्र ने कुछ प्रतिवाद न किया और न उत्तर दिया। पिटने के बाद वह फिर शान्त चित्त अपने काम से लग गया न आत्म हत्या की धमकी दी, न घर से भागा। यह देखकर पिता का हृदय भर आया वह पुत्र से माफी माँगने लगा तो पुत्र ने कहा-पिताजी यह तो मेरी परीक्षा थी कि मुझे मेरे गुरु ने जो नैतिकता, सदाचार, सहिष्णुता और ध्येयनिष्ठा सिखाई उसका पालन भी कर सकता हूँ या नहीं। पिता का हृदय ऐसे शिक्षण के प्रति कृतज्ञता से भर गया।
(७) संस्कृत का उद्भट विद्वान् वरदराज कभी विद्यालय का सबसे बुद्धू लड़का था। बहुत पढ़ने पर भी उसे कुछ याद न होता। दुःखी होकर वह घर से भाग गया। रात एक सराय में बिताई। वहाँ उसने देखा एक टूटे पंखों वाला पतिंगा दीवार पर चढ़ता और गिर जाता है। बीस बार असफल रहने के बाद इक्कीसवीं बार वह दीवार पर चढ़ गया। इस दृश्य से वरदराज को एक नई हिम्मत मिली। वह घर लौटा और फिर पढ़ने में जुट गया इस बार उसकी असफलता सफलता में बदल गई।
(५८) नवयुवक सज्जनता और शालीनता सीखें
प्रश्न ——
(१) निकट भविष्य में यदि हमें अपने समाज को समुन्नत देखना है तो हमें क्या करना चाहिये? किस तरह करना चाहिये? (२) मनुष्य की प्रगति किन गुणों पर अवलम्बित है? दुर्गुणी व्यक्ति तथा सद्गुणी व्यक्ति किस प्रकार भिन्न कहे जा सकते हैं? (३) उठती आयु में हमें सद्गुणों के साथ-साथ और किन-किन गुणों को हस्तगत करना चाहिये? (४) सद्गुणों और अन्य गुणों में कौन-सा गुण श्रेष्ठ है? व क्यों? (५) दुर्गुणी व्यक्ति अपने स्वतः के लिये किस प्रकार हानिकारक है? (६) सच्चे अध्यापक और सच्चे अभिभावक कौन कहे जा सकते हैं? किस आधार पर? (७) क्या आप बता सकते हैं कि आज के होनहार बालकों में कौन से दुर्गुण अधिक पाये जाते हैं? (८) मर्यादा के उल्लंघन से क्या हानियाँ है? (९) आज के युवकों में अनुशासन हीनता क्यों है उन्हें कैसे सभ्य-नागरिक बनाया जा सकते है?
कथाएँ ——
(१) पिता ने पुत्र को कुछ फल लाने को पैसे दिये। लड़का वहाँ से चल पड़ा तो उसे एक कन्या दिखाई दी जिसकी धोती फटी हुई थी उसे अपने शरीर को ढके रखने में कष्ट हो रहा था। पुत्र ने पिता के दिए पैसे से एक धोती खरीदी और उस कन्या को देकर खाली हाथ घर लौटा। पिता ने पूछा-फल कहाँ है? लड़के ने सारी बात सच-सच बता दी। पिता बोला-बेटा तूने तो अमरफल ला दिया। यही लड़का संत रंगदास के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(२) भिक्षु कश्यप ने श्रावस्ती में योग के कई चमत्कार दिखाये तो उनका यश दूर-दूर तक फैल गया पर अब कश्यप को आत्म-कल्याण की साधनाओं के लिए समय ही न मिलता प्रशंसकों से घिरे रहते। यह देखकर भगवान बुद्ध वहाँ पहुँचे और बोले बेटा मनुष्य ने सदाचार का ध्यान न दिया लोगों को प्रभावित करने में ही लग गया तो उसकी उन्नति का द्वार ऐसे ही घिर जाता है जैसे तू अपने प्रशंसकों से घिर गया है।
(३) कलकत्ता में वेट लिफ्टिंग दल के खिलाड़ियों का चयन करने के लिये प्रतियोगिता हो रही थी। निर्णायकों ने रोजेरियों को प्रथम घोषित किया। तभी रोजेरिया दौड़ता हुआ पास पहुँच कर बोला महोदय मुझे प्रथम मान कर आपने भूल की यह अधिकार मुझसे पहले मित्र का है देखिये वजन उठाते समय मेरे घुटने जमीन से टिक गये थे उसकी मिट्टी मेरे पैरों पर अभी तक लगी है। रोजेरियों की इस सज्जनता और सत्यता पर सभी लोग मुग्ध हो गये।
(४) रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा में केशवचंद्र सेन ने एक लेख छपाया। रामकृष्ण परमहंस ने उसे पढ़ा तो बड़े नाराज हुए बोले हमें यश की नहीं अपने चरित्र को उज्ज्वल बनाने की बात सोचनी चाहिये। चरित्रवान् का यश तो अपने आप उसी प्रकार फैलता है जिस प्रकार फूलों की सुगन्ध।
(५) युवक विल्वमंगल को देखकर एक कामनासक्त तरुणी ने कहा तुम्हारी आँखों ने तो मेरा मन चुरा लिया है। युवक चुपचाप चला गया दूसरे दिन एक डंडे के सहारे उसी दरवाजे पर पहुँच कर बोला-माता जी यह लो जो आँखें तुम्हें प्रिय थी। वह अपने पास रख लो। युवक को अन्धा देखकर युवती की कामुकता दूर हो गई और वह भी ईश्वर भक्ति में लग गई। यह विल्वमंगल ही आगे चलकर सूरदास के नाम से प्रकाशित हुए।
(६) शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी कच को प्यार करने लगी। एक दिन उन्होंने कच से विवाह का प्रस्ताव किया तो कच ने कहा बहन तुम मेरे गुरु की पुत्री हो मेरी बहन के समान हो तुम से विवाह कैसे करूँ? देवयानी ने कहा-तुम मुझसे शादी नहीं करते तो शाप देती हूँ कि मेरे पिता की दी हुई सारी विद्या भूल जाओ। कच बोले बहन आदर्श रक्षा व चरित्र की रक्षा के लिये मुझे तुम्हारा शाप सहर्ष स्वीकार है।
(५९) उदार सहकारिता से हमारी उलझनें सुलझेंगी भी
प्रश्न ——
(१) पशु और मानव दोनों की प्रगति में इतना अधिक अन्तर क्यों है? सामाजिक आधार पर समझाइए? (२) सहकारितायुक्त की प्रवृत्ति में आध्यात्मिक आदर्श किस प्रकार जुड़े हुये हैं? (३) स्वार्थी व्यक्ति की परिभाषा कीजिये? (४) किस प्रकार इकाई-इकाई मिलकर एक विशाल समूह का निर्माण करते हैं? उदाहरणों के द्वारा समझाइए? (५) प्रजातंत्र युग में सहकारिता का महत्त्व किस तरह है। प्रतिपादित कीजिये? (६) कृषि, व्यवसाय, उत्पादन, उद्योग आदि में भी सहकारिता का महत्त्व कहाँ तक है। (७) युग निर्माण योजना इस समय सहकारिता का युग स्थापित करने के लिए प्रयत्न कर रही है? (८) सामाजिक शोषण, अशिक्षा आदि सहकारिता के द्वारा किस प्रकार हल हो सकेंगे।
कथाएँ ——
(१) किसान को मृत्यु समीप होने का दुःख नहीं था, उनकी वेदना का कारण यह था कि उसके चारों बच्चों में परस्पर वेदना का कारण यह था कि उसके चारों बच्चों में परस्पर बनती नहीं थी। एक दिन किसान ने उन सबको बुलाया और न कहा सूत का धागा लेकर आओ। उसने इकट्ठे कई धागे दिये और एक-एक लड़के को देकर तोड़ने को कहा पर उन धागों को कोई नहीं तोड़ सका।
इसके बाद उसने एक-एक धागा दिया और तोड़ने को कहा तो सबने ही तोड़ दिया। किसान बोला-बच्चों इन धागों की तरह जो लोग मिल-जुलकर रहते हैं उनका बड़ी-बड़ी ताकते भी मुकाबला नहीं कर सकतीं पर बिखरे और विसंगठित लोग तो इन अकेले धागों की तरह कभी भी नष्ट कर दिये जा सकते हैं। लड़के एकता का अर्थ समझ गये और मिल-जुलकर रहने लगे।
(२) सेठ जी ने बहुत अनुनय-विनय की पर लक्ष्मी जी रुकी नहीं, घर छोड़कर चली गईं। कल तक घर वाले धन के पीछे झगड़ते रहते थे आज जब धन न रहा और हाथ तंगी में आ गया तब सारी भूल का पता लगा। फिर से लोग प्रेमपूर्वक रहने और मिल-जुलकर काम करने लगे।
एक दिन सेठ ने स्वप्न में देखा, भगवती लक्ष्मी आई हैं और घर में प्रवेश कर रही है सेठ ने पूछा-अम्बे एक दिन आपकी इनकी प्रार्थना की थी फिर भी आप रुकी नहीं थीं आज स्वयं आने की कृपा की। सो क्यों? लक्ष्मी जी बोलीं-वत्स जहाँ लोग परस्पर मिल-जुलकर नहीं रहते वहाँ मैं भी नहीं रह सकती पर जहाँ सुमति होती है वहाँ तो मैं अपने आप पहुँचती हूँ।
(३) एक लड़का पढ़ने के उद्देश्य से बम्बई गया पर पास में कुल बीस रुपये उसी में खाना खर्च उसी में पुस्तकें और मकान किराया सब कैसे चले। बड़ी देर सोचने के बाद एक युक्ति ध्यान में आई। रहने के लिए एक किराये का मकान ढूँढ़ा और साथ-साथ ४ साथी भी खाने के लिए एक ऐसा ढाबा ढूँढ़ा जहाँ कई लोगों का सामूहिक खाना बन जाता था। पढ़ने के लिए १ रुपया देकर पीटर पुस्तकालय की सदस्यता स्वीकार की इस सहकारिता के फल-स्वरूप ही उसने बम्बई की पढ़ाई पास की यह बालक एक दिन उत्तर प्रदेश का गवर्नर तक बना नाम था के. एम. मुंशी।
(४) लड़का मचल रहा था मैं तो अपनी गृहस्थी लेकर अलग रहूँगा अपने उन्नति आप करूँगा। पिता ने कहा-ठीक है कल व्यवस्था कर दूँगा आज इस घर की सफाई तो कर डालो कहकर एक सींक हाथ में थमा दी। लड़का खीझकर बोला-कहीं एक सींक से सफाई होती है? बुहारी हो तो लाओ? पिता बोला-बेटा जिस तरह एक सींक अकेली सफाई नहीं कर सकती एक व्यक्ति अकेला उन्नति नहीं कर सकता सबको मिल-जुलकर ही काम करना चाहिए।
(५) सांसारिक दुःखों के अभावों से ग्रस्त देवता और राक्षस ब्रह्माजी के पास गये और दुःख निवारण का उपाय पूछा, ब्रह्माजी बोले-परस्पर संघर्ष ही तुम्हारे दुःख का कारण है मिल-जुलकर प्रयत्न करो तो सुख-शान्ति से भर जाओगे। देव-दनुजों ने मिलकर समुद्र मन्थन किया और १ रत्न ढूँढ़ निकाले।
(६०) प्रगति के लिये श्रम एवं गृह उद्योगों की आवश्यकता
प्रश्न ——
(१) आर्थिक कठिनाई हम क्यों उठा रहे हैं? (२) आर्थिक कठिनाई की समस्या को हल करने के लिये क्या करना होगा। (३) ‘जापान’ के आधार पर समझायें कि उन्नति किस तरह की जा सकती है? (४) तथा ‘जापान’ की तरह ही नीति अपनाने पर हमें क्या लाभ हो सकते हैं? (५) हमारे देश में ‘बेकारी हराम है’ यह युक्ति हमें किस प्रकार आर्थिक दुर्दशा में से उसे उबरने के लिए पतवार का काम कर सकती है? (७) शिक्षित नारी भी किस विधि से आर्थिक स्थिति सुधारने में मदद दे सकती है? (८) शिक्षित युवकों की बेकारी समस्या किस प्रकार हल की जा सकती है? (९) ‘युग निर्माण विद्यालय’ यह आप किस आधार पर कह सकते हैं कि यह विद्यालय व्यक्ति को रोजगार, आर्थिक उन्नति प्राप्त करने में सहयोगी है? (१०) सरकार, जनता तथा पूँजीपति इसमें कहाँ तक सहायता दे सकते हैं!
कथाएँ ——
(१) एक युवक एक साधु के पास जाकर बोला-भगवन् कोई ऐसी आशीष दीजिये जिससे मालामाल हो जाऊँ? साधु ने कहा बेटा जा कोई उद्योग से ही पैसा बढ़ता है लेकिन युवक को तो अपनी धुन लगी हुई थी वह अपनी ही जिद करता रहा। साधु ने कहा-अच्छा जा तू जिस वस्तु को छुएगा वही सोना बन जायेगी। युवक प्रसन्न होकर घर लौटा। जो भी चीज छुई सोना बन गई। ध्यान रही नहीं उसके घर के किवाड़, लोटा, और खाना तक सोना बन गया। भूख से व्याकुल युवक ने स्त्री से कुछ कहने के लिये जैसे ही उसे छुआ वह भी सोना बन गई। युवक साधु के पास जाकर आशीर्वाद वापस कर आया और परिश्रम से कमाई करने लगा।
(२) एक दिन किसान की सेवा से प्रसन्न होकर एक तान्त्रिक ने उसे एक ताबीज देकर कहा-बेटा इससे जो कुछ भी माँगोगे वही देगी पर एक बार ही देगा इसलिए पहले तो तुम उद्यम और उद्योग करना, जब बहुत गाढ़ा समय हो तभी उसका उपयोग करना। किसान ताबीज लिये घर लौट रहा था कि उसकी भेंट स्वर्णकार से हो गई। स्वर्णकार ने धोखे से ताबीज खुद ले ली और किसान को दूसरी दे दी। रात में स्वर्णकार ने ताबीज आँगन में रखकर कहा-सोना की वर्षा हो’ सोने-चाँदी की इतनी वर्षा हुई कि सोनार उसमें दबकर मर गया उधर गरीब किसान ने तान्त्रिक की बात मान कर उद्योग किया उसी में मालामाल हो गया।
(३) बलदेव प्रसाद नामक एक व्यक्ति साधु के पास गये और कहा-महात्मन् कोई आशीर्वाद दो कि आर्थिक तंगी से मुक्ति मिले। मैं तो पढ़ा लिखा भी नहीं हूँ। साधु विचारशील थे लोगों को भ्रमित करने वाले नहीं। बोले-बेटा कमाना है तो आवश्यक नहीं तुम शिक्षित ही हो जाओ परिश्रम पूर्वक उद्योग करो उसी से धन मिलेगा। लेकिन मेरे पास पूँजी नहीं है, बलदेव प्रसाद ने कहा। उद्योग ५ रुपये से भी प्रारम्भ किया जा सकता है आवश्यक नहीं उसके लिये लाख रु० ही हों। बलदेव प्रसाद ने २५) में अपने बर्तन दिल्ली में गिरवी रखकर उद्योग प्रारम्भ किया और दुनिया के सबसे बड़े धनपति हो गये बलदेव प्रसाद बिरला-बिरलाओं के पितामह।
(४) एक चीनी सज्जन जापान गये। वहाँ एक दूध वाले के यहाँ ठहरे। एक दिन दूध वाले को चिन्तित देखकर चीनी महोदय ने पूछा-क्या बात है। दूध वाले ने बताया-आज एक गाय ने नहीं दिया दूध उससे दो घरों को दूध नहीं मिल पायेगा उनके बच्चे भूखे रहे जाएँगे यही सोचकर दुःख हो रहा है। चीनी सज्जन हँसकर बोले-अरे इसमें दुःख की क्या बात है? दूध में उतनी पानी मिला दो? जापानी ने कहा-महादेव हम उद्योग करते हैं धोखा नहीं देते? चीनी बहुत घबराये और समझ गये कि उद्योगी को ईमानदार भी होना चाहिए?
(५) महात्मा गाँधी के पास जाकर एक युवक ने कहा-बापू भूख से मर रहा हूँ कोई नौकरी भी नहीं देता अपने पास कोई साधन भी नहीं है। बापू ने कहा-अच्छा यह बताओ चींटी, मकड़ी मधुमक्खी और जंगल के लाखों जीव किस कारखाने में नौकरी करते हैं तथा उनके पास क्या साधन हैं फिर क्या वे लोग भूखे है? युवक समझ गया अभाव धन का नहीं मन का है उस दिन से वह परिश्रम में जुट गया।
(६१) अन्न संकट की चुनौती का सामना कैसे करें?
प्रश्न ——
(१) हमारा देश कृषि प्रधान होते हुए की विदेशों से अन्न क्यों मँगाता है? (२) खाद्य पदार्थों के उत्पादन की वृद्धि के लिए क्या किया जाना चाहिए? (३) शाक-भाजियों के उत्पादन से क्या लाभ होगा? (४) अन्न के अपव्यय को रोकने के लिए क्या किया जाना चाहिए? (५) बड़ी दावतों से क्या हानि है? (६) जूठन छोड़ना अन्नदेव का अपमान करना है? सिद्ध कीजिए? (७) जूठन खाने से स्वाभिमान व स्वास्थ्य दोनों गिरते हैं? सिद्ध करो। (८) भोजन परोसने में क्या सावधानी रखनी चाहिए? (९) सप्ताह में एक उपवास क्यों आवश्यक है? उपवास के लाभ बताइये? (१०) चूहों व कीड़ों से अन्न की बरबादी बचाने के लिए क्या किया जाये? (११) अन्न संकट को उत्पादन वृद्धि से ही नहीं संरक्षण एवं उपयोग के विवेकपूर्ण तरीकों से भी टाला जा सकना है-सिद्ध करें।
कथाएँ ——
(१) श्री विट्ठल भाई पटेल उन दिनों बम्बई कारपोरेशन के अध्यक्ष थे। जब कोई बड़ा आदमी आता तो कारपोरेशन के अध्यक्ष को दावत देनी पड़ती उसमें शराब तो उड़ती ही मन अन्न बेकार जाता। विट्ठल भाई पटेल ने कहा-दावतें इस खाद्य की कमी वाले देश के लिये पाप है उन्हीं दिनों लार्ड रीडिंग भारत आ रहे थे पर उन्होंने तब भी दावत न दी और एक खराब परम्परा का अपने साहस से अन्त कर दिया।
(२) अन्न छत पर भी उगाया जा सकता है यह पढ़ कर महाराष्ट्र (बम्बई) के एक साधारण मजदूर लक्ष्मण मंडल ने अपनी छत पर ९ इंच मोटी मिट्टी डालकर मक्का बोई और पहली ही बार वर्ष में दो बार में ५४ किलो मक्का पैदा किया। उसके इस कार्य की राष्ट्रपति डॉ० जाकिर हुसैन ने सराहना की और उसका मक्का भी खाया।
(३) भारतीय किसानों के लिए कृषि फार्म खोलने की आवश्यकता अनुभव हुई तो प्रो० हिगिन बोटाम अमेरिका गये लोगों ने कुल ५० रु० दिये। उन्हें अपने कुछ कमी जान पड़ी अपने पास थोड़ा साधन था उससे ओहियो के कृषि कॉलेज में भरती हो गये। और कृषि पंडित बन कर जब बाहर आये और भाषण दिया तो पहली ही बार में तीस हजार रुपये मिले प्रयाग के पास २७५ एकड़ भूमि में स्थापित उनका कृषि फार्म कृषि क्षेत्र में काम करने वालों को प्रेरणा देता है कि उन्हें विशेषता का घमण्ड करने की अपेक्षा कुछ परिश्रम और रचनात्मक काम का साहस करना चाहिए।
(४) बिहार में सूखा पड़ गया, बोने के लिए बीज की कमी समस्या मुँह बायें खड़ी थी। एक गाँव के किसानों ने प्रतिज्ञा को वे गाँव में एक भी दावत न करेंगे। मृतक भोज न करेंगे और प्रति सप्ताह एक दिन उपवास रखेंगे। फसल बोने का समय आ गया। दूसरे गाँव के लोग बीज के लिये इधर-उधर मारे-मारे डोल रहे थे तब इस गाँव के लोग बचाये हुए अन्न से खेती की बोआई कर रहे थे सूखा उनका कुछ भी न बिगाड़ सका।
(५) गाँधी के आश्रम में मोटे अन्न की रोटियाँ बनतीं कुछ लोग उन्हें पसन्द नहीं करते, दैवयोग से जेल हो जाने पर जो मोटा अन्न नहीं खाते थे। उन्हें हमेशा पेट की शिकायत रहती जब कि जिन्हें पहले से ही मोटी रोटियाँ खाने का अभ्यास था, जेल में भी उनका स्वस्थ पहले जैसा बना रहा।
(६) राशन की कमी के कारण कण्ट्रोल लगा दिया गया। गेहूँ बड़ी मुश्किल से मिलता उन्हीं दिनों श्री पुरुषोत्तमदास टंडन के यहाँ कुछ मंत्री ठहरे। रसोइया हैरान था गेहूँ का आटा नहीं है अतिथियों को क्या खिलायें। टंडन जी ने कहा-बेईमानी करने की अपेक्षा मोटा अन्न खिलाने में कोई हानि नहीं जौ की रोटियाँ बनीं और मंत्रियों को वही खिलाई गईं। उन्होंने मंत्रियों से कहा-हमें मोटा अन्न खाने की आदत हो तो अन्न की कमी कभी भी महसूस न हो।
(६२) शाक हमारी खाद्य समस्या का हल करेंगे
प्रश्न ——
(१) आज राष्ट्र की प्रमुख समस्या एवं चिंता की बात क्या है? (२) खाद्य समस्याओं को हल करने में प्रत्येक परिवार क्या योगदान दे सकता है? (३) शाकों का उपयोग अन्न से अधिक गुणकारी क्यों है? (४) सरलता से उगने वाले कंद, मूल, फलों के नाम बताइये? (५) किसानों को शाक सब्जी क्यों उगाना चाहिए? (६) खाली जगहों का उपयोग शाक उगाने में कैसे किया जा सकता है? (७) हर जगह कौन-कौन से शाक उगायें जा सकते हैं? (८) फूलों-उत्पादन से क्या लाभ है? (९) पौध एवं नर्सरी लगाने से क्या लाभ है? (१०) हरित क्रांति से क्या समझते हो? (११) कम खर्च में थोड़ी भूमि में कौन सा उद्योग पनप सकता है?
कथाएँ ——
(१) स्वामी विवेकानंद आहार में शाक-भाजी अधिक लेने की बात कहते। एक बार एक व्यक्ति ने पूछा-हम आहार शक्ति के लिए खाते हैं शक्ति अन्न और माँस से अधिक मिलती है फिर शाक भाजी क्यों अधिक खायें इस पर विवेकानंद ने बताया-१ शाक खाद्यान्न की कमी पूरा करते हैं? (२) जल्दी पच जाते हैं जितनी देर में १ पाव अन्न पचता है साग उतनी देर में १ किलो पचेगा (३) शाक में खनिज व विटामिन अधिक होते हैं। (४) अनाज और माँस में जितनी शक्ति अधिक होती है उतना ही अधिक मल उत्पन्न होता है जिससे शरीर में सुस्ती, भारीपन रहता है आयु क्षीण होती है। (५) शाक में जो स्वाद है वह अन्न में या माँस में नहीं।
(२) दो किसानों में बहस छिड़ गई। एक कहता था, अन्न उपजाने में लाभ है दूसरा कहता था शाक भाजी में। विवाद में कोई बात निश्चित न हो पाई तब दो बीघे खेतों में अपने पक्ष की पुष्टि में प्रयोग का निश्चय किया गया। अन्न में लाभ बताने वाले ने ४० रुपये का ४० किलो बीज लेकर क्वार कार्तिक के दिनों में फसल बोई चैत्र में काटी बैसाख में आठ माह बाद घर आई फसल से १० मन अनाज मिला जिसका मूल्य साढ़े तीन सौ रुपया था। शाक भाजी वाले ने २ रुपये के बीज लेकर २ बीघे खेत में गोभी, बैंगन और टमाटर बोये दो माह बाद फल लगने लगे। १ माह में उसे ५० मन भाजी मिली औसत पचास पैसे किलो से उसे एक हजार रुपये की आमदनी हुई, तीन महीने में दूसरी फसल तैयार करके उसने फिर एक हजार की कमाई करके उसने तीन गुना अधिक लाभ लिया और बहस में विजयी भी हुआ।
(३) उत्तर प्रदेश के हरदौना ग्राम के निवासियों ने शाक आन्दोलन चलाया। गाँव के भीतर की कोई भी बेकार पड़ी जमीन खाली न रहने दी सब जगह सब्जी ही सब्जी बोकर पहले ही वर्ष एक हजार की आबादी वाले ग्रामवासियों ने दस हजार मन सब्जी पैदा करके हजारों मन अन्न बचाया साथ ही हरी सब्जी का पोषण भी लोगों को दिया।
(४) लकड़ी के बक्सों में विलायती टमाटर उगाने के अभियान में लखनऊ के एक ओवरसियर ने अपने मकान में ही इतना टमाटर तैयार किया कि प्रतिदिन टमाटर की सब्जी खाने के बावजूद ५ किलो प्रतिदिन के हिसाब से बिक्री करके पैसा भी कमाया।
(५) आचार्य रामानुज जहाँ रहते थे शाक भाजियाँ साल भर उगाते रहते। एक दिन लोगों ने पूछा-आपको थोड़ी सी सब्जी चाहिये इतनी क्यों उगाते हैं। उन्होंने कहा-हमारे और भाई लोग खाते हैं और हमें यहाँ हरियाली बने रहने का लाभ मिलता है।
(६) अवकाश के समय भाजी उगाने वाले किसान के एक घंटा प्रतिदिन काम करके घर के सामने पड़ी जमीन से खेती का पाँचवाँश लाभ मिला हिमाचल प्रदेश के इस किसान हेमचन्द ने अब पूरी खेती शाक भाजी की करने का निश्चय किया है।
(६३) वृक्षारोपण और संवर्धन-एक अति आवश्यक कार्य
प्रश्न ——
(१) वृक्षारोपण क्यों आवश्यक है? (२) वृक्षों के संरक्षण से मानव समाज को क्या लाभ होते हैं। (३) वृक्षों की तुलना संतों से क्यों की जाती है? (४) वृक्ष बिना कारण ही मानव समाज का हित करते हैं-सिद्ध करो। (५) वन्य प्रदेश में वर्षा अधिक क्यों होती है। (६) वनों से नेत्रों की तेजी बढ़ती है-सिद्ध करो। (७) फल-फूल एवं हरियाली के लाभ बताइये। (८) वृक्षों से भूमि संरक्षण कैसे होता है। (९) पीपल, बड़ एवं आँवलेइ की पूजा क्यों की जाती हैं। (१०) वृक्ष हमारी खाद्य समस्या को हल करने में कैसे सहायक होते हैं।
कथाएँ ——
(१) मास्टर साहब ने प्रश्न किया बताओ सहारा में जल क्यों नहीं मिलता और अफ्रीका में अमोजन नदी जितना पानी क्यों है? छात्र ने उत्तर दिया सहारा रेगिस्तान है अफ्रीका में घने जंगल हैं। अध्यापक ने समझाते हुये कहा-अफ्रीका में घने वृक्ष हैं वे बादलों को आकर्षित कर लेते हैं इसलिये वहाँ जलवृष्टि खूब होती है पर रेगिस्तान में वृक्ष न होने से वर्षा नहीं होती।
(२) वृक्षों को शंकर क्यों कहते हैं एक पुत्र ने पिता से पूछा-पिता ने वृक्ष में जल डालते हुए कहा बेटा समुद्र मंथन हुआ तब देव और दनुजों ने सब कुछ बाँट लिया पर विष कोई लेने को तैयार न हुआ। तब उसे शंकर जी ने पीकर मानवता की रक्षा की। शंकर जी ने पीकर मानवता की रक्षा की। शंकर जी ने तो ऐसा एकबार किया पर मनुष्य गन्दी साँस धुँआ और सड़ादें उत्पन्न किया करते हैं उन्हें जीवन भर यह वृक्ष ही तो पान करके वायु शुद्ध रखते हैं बोलो यह क्या हुए? महाशंकर-पुत्र ने उत्तर दिया।
(३) एक व्यक्ति को स्वर्ग में देखकर महात्मा वपुष चिल्लाए और धर्मराज से बोले-महाराज मैं इसे अच्छी तरह जानता हूँ इसने कोई पुण्य नहीं किया फिर इसे स्वर्ग क्यों मिला धर्मराज हँसकर बोले-क्योंकि इसने बहुत से वृक्ष लगाये हैं। तुम्हारे पुण्य तो नष्ट हो गये किन्तु इसके पुण्यों का लाभ आज भी धरती वाले ले रहे हैं क्या यह सबसे बड़ा पुण्य नहीं? महात्मा सोचने लगे अब की पृथ्वी में जन्मा तो मैं वृक्षारोपण खूब करूँगा।
(४) चिलांगा के किसान राल्फऐन्डर को बाग लगाने का शौक हुआ। उनके पास जितनी जमीन थी उस सब में सुन्दर बाग लगा दिए। लोगों ने कहा-खेती करो नहीं तो भूखों मर जाओगे। किन्तु आज वही राल्फ सारी दुनियाँ में ‘‘चिलोंगा के बागबां’’ के नाम से प्रसिद्ध हैं उनकी आमदनी किसी भी किसान से अधिक है।
(५) पिता ने पुत्र कहा बेटा! कृषि के साथ बाग-बानी का पुण्य शास्त्रों में दस यज्ञों के समान बताया है। पुत्र ने कहा-पिताजी यज्ञ से तो वायु-प्रदूषण दूर होने का तात्कालिक लाभ मिलता है पौधों से क्या लाभ। पिता ने कहा जितने दिन तुम जिन्दा हो तुम फल खाओ लकड़ियाँ जलाओ फिर तुम्हारे बच्चे, तुम्हारे बच्चों के भी बच्चे पेड़ जब तक जिन्दा हैं देता रहेगा मरने पर भी वह काम आता है।
(६) रिजिओ नामक एक ट्रेवलिंग जहाज पृथ्वी की परिक्रमा करने निकला। यात्रियों को सामान्य भोजन दिया गया। वापसी पर लगभग आधे व्यक्ति बीमार पाये गए। २५ तो मर भी गए। दुबारा फिर जहाज गया इस बार यात्रियों को आहार में अधिकांश फल दिये गये तो उसमें से एक दो को छोड़कर कोई बीमार नहीं हुआ।
(६४) तुलसी हमारे हर घर-घर में शोभायमान रहे
प्रश्न ——
(१) तुलसी के पत्ते का उपयोग पूजा में क्यों किया जाता है? (२) तुलसी के सेवन से क्या लाभ है? (३) हर घर में तुलसी का पौधा क्यों होना चाहिए? (४) तुलसी को औषधि के रूप में कैसे प्रयोग किया जा सकता है? (५) तुलसी की उपयोगिता पर एक लघु निबन्ध लिखें। (६) तुलसी के लाभ के ५ श्लोक सुनाओ और उनका अर्थ बताओ। (७) तुलसी चरणामृत क्यों लाभदायक है। (८) तुलसी के सम्बन्ध में किन-किन प्राचीन ग्रन्थों में वर्णन मिलता है।
कथाएँ ——
(१) भरतपुर के एक वैद्य ने अपनी तुलसी कल्प पुस्तक में लिखा है कि प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान से निवृत्त होकर पाँच तुलसी दल (पत्ते) खाने वाला व्यक्ति कभी रोगी नहीं हो सकता।
(२) यज्ञोपवीत, चोटी और तुलसी में से आप सबसे अधिक किसे महत्त्व देते हैं एक व्यक्ति ने मदन मोहन मालवीय से प्रश्न किया-मालवीय जी बोले-यह तो ऐसे ही हुआ जैसे कोई कहे तीन चाँदी के रुपयों में कौन रुपया अच्छा है? तीनों ही अच्छे हैं पर यह समझता हूँ कि यदि तुलसी को महत्त्व दिया जाये तो शेष दी की महत्ता को लोग अपने आप समझ जायेंगे क्योंकि तुलसी श्रद्धा और निर्मल बुद्धि का विकास करती है।
(३) शिष्य ने पूछा-गुरुवर तुलसी वृक्ष और तुलसी वन लगाने को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्यदायक माना जाता है ऐसा क्यों? गुरु ने अलंकारिक वर्णन का रहस्य समझाते हुए बताया-तात यज्ञ धूम्र से रोग कीटाणु नष्ट होते हैं, वायु शुद्ध होता है उसी प्रकार तुलसी में ऐसे रसायन होते हैं जिनसे वायु शुद्ध होती और रोग-कृमि नष्ट होते हैं। तुलसी के पत्ते खाने से लेकर उसके समीपवर्ती वातावरण में जाने से आरोग्य बढ़ता है इसलिए एक तुलसी वृक्ष लगाने को सौ अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य-दायक कहा जाये तो भी कम है। शिष्य ने प्रतिज्ञा की और एक बड़ा तुलसी वन लगाने में जुट गया।
(४) संत तुकड़ो जी महाराज से एक व्यक्ति ने पूछा-हिन्दू जाति तुलसी को कन्या मानती है हिन्दू धर्म तुलसी के कन्यादान को पवित्र और आवश्यक मानता है क्या यह अन्ध श्रद्धा और उपहासास्पद बात न हुई। सन्त तुकड़ों हँसे और बोले —नहीं वरन यह भारतीय आचार्यों की वैज्ञानिक बुद्धि का परिचायक है। तुलसी इतनी उपयोगी है कि उसे कन्या की तरह पालन-पोषण की बात कही गई ताकि कोई भी व्यक्ति उसके समीप होने के लाभ से वंचित न रहे।
(५) माँ ने कहा-बेटा प्रतिदिन स्नान करके तुलसी में जल चढ़ाया करो। बालक ने तर्क किया उससे क्या होगा माँ? जल ही चढ़ाना है तो किसी भी पौधे में क्यों न चढ़ाया जाये? माँ बोली-तुलसी में जल चढ़ाना धर्म कृत्य माना है क्योंकि इन देवी की जड़ से लेकर पत्ते और बीज तक मनुष्य जाति के लिये बड़े हितकारक है, लोकमंगल में रत चाहे वृक्ष ही क्यों न हो श्रद्धा रखी जानी चाहिए। उससे अपनी ही महानता विकसित होती है।
बच्चे ने तुलसी वृक्ष में नियमित जल डालना प्रारम्भ किया और सचमुच उसी श्रद्धा ने उसे महान् बना दिया। यह थे महान् बिनोवा भावे।
(६) डॉ० पार्कर से एक पत्रकार ने पूछा-भारत की किस वस्तु ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया? पार्कर बोले-तुलसी ने। मैंने देखा कि पंजाब में हर घर में लोग तुलसी लगाते हैं पूछने पर ओर प्रयोग करने के बाद मैंने पाया कि तुलसी जैसा उपयोगी दूसरा कोई पौधा नहीं।
(७) एक बार आचार्य चरक से एक शिष्य ने पूछा-मृत्यु के समय भगवान् आपके समक्ष उपस्थित हों तो आप क्या माँगेंगे। चरक ने उत्तर दिया-नया जन्म जिसमें मैं घर-घर जाकर लोगों से तुलसी वृक्ष लगवा सकूँ। इस पुण्य के बदले में कोई भी यश और वैभव अर्जित कर सकता हूँ।
(६५) गौ संरक्षण हमारी एक महती आवश्यकता
प्रश्न ——
(१) भारत में गौ पालन का क्या महत्त्व है? (२) गाय का दूध सर्वश्रेष्ठ क्यों माना जाता है। (३) सिद्ध कीजिये कि गौ रस सर्वांगपूर्ण परिपुष्ट आहार है। (४) गौ रक्षा के महत्त्व दर्शाने वाले दो पर्वों का वर्णन करो। (५) राजा दिलीप ने गौ की सेवा क्यों की थी? (६) बैल की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये (७) गोवर्धन पूजा का महत्त्व स्पष्ट कीजिये। (८) गौवंश नष्ट होने के कारण बताइये। (९) गौ पालन के लाभ पर प्रकाश डालिए। (१०) गौ दुग्ध, गौ घृत के सेवन का व्रत क्यों लेना चाहिए।
कथाएँ ——
(१) गौ हत्या के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे कुछ स्वयं सेवकों से एक अधिकारी ने पूछा-बताइये लोगों में से कितनों ने गाय पाल रखी हैं? एक भी स्वयंसेवक मुँह न उठा पा रहा था। अधिकारी ने कहा-कितने खेद की बात है कि आप लोग गाय की बात कहते हैं और पालते हैं भैंस का ही पसंद करते हैं जबकि गुणकारी गाय का ही दूध है।
कुछ लोगों ने कहा गाय का दूध सस्ता बिकता है इस लिये भैंस पालने के लिए विवश होते हैं अधिकारी ने कहा-गाय का दूध, गाय का घी उपयोगी है तो आप लोग उसका दाम बढ़ाइये न दीजिये लोगों को सस्ते दाम पर उसका लाभ स्वयं लीजिये तो लोग अपने आप उसकी महत्ता समझेंगे।
(२) अरबीकालिज लखनऊ के प्रोफेसर मौलानासैयद मुहम्मद सादिक ने मुहम्मद साहब का विस्तृत जीवन परिचय लिखा और बताया कि जो लोग कहते हैं पैगम्बर गो माँस खाते थे वे गलत कहते हैं कुरान शरीफ में कहीं भी गौ माँस खाने का समर्थन नहीं है।
(३) भू० पू० सूचना मंत्री के० के० शाह से एक बार संसद सदस्य नारायण स्वरूप शर्मा ने पूछा-आपके पास कोई ऐसे आँकड़े हैं क्या जिनसे गाय की उपयोगिता सिद्ध होती हो। श्री शाह ने बताया-हाँ कुछ दिन पूर्व रूस के वैज्ञानिकों का शिष्ट मंडल भारत आया था उसके नेता डॉ० शिरोविच बहुत बड़े वैज्ञानिक हैं उन्होंने बताया कि गाय के दूध में एटामिक रेडिटेशन से रक्षा करने की सबसे अधिक शक्ति है अगर गाय के घी को आग में डालकर धुँआ उठाया जाय अर्थात् हवन किया जाए तो उससे रेडिटे-शन का प्रभाव बहुत कम हो जायेगा।
(४) डॉ० बुचनन हैमिल्टन से एक अँगरेज पत्रकार ने पूछा-आप अँगरेज होकर भी हिन्दुओं के गौ पालन का समर्थन करते हैं (श्री बुचनन ने १८८० में भारत में हो रहे पशु धन हृास के विरुद्ध आवाज उठायी थी) इस पर उन्होंने उत्तर दिया-भारत कृषि प्रधान देश इस देश की समृद्धि का कारण गाय ही रही है गाय की उन्नति के बिना यह देश उन्नति कर भी नहीं सकता।
(५) मिस्टर राल्फ ए० हेने से एक बार एक व्यक्ति ने प्रश्न किया बच्चे कभी अस्वस्थ न हों कोई ऐसा नुस्खा बनाइये (श्री हेने ने उत्तर दिया —संतानों को शक्तिशाली और बलवान देखना हो तो उन्हें गाय का दूध और मक्खन रोज दिन में तीन-चार बार खाने को दीजिये।)
(६) शरशय्या पर पड़े भीष्म पितामह ने पाण्डवों और कौरवों को बताया कि गाय मारना ही पाप नहीं वरन् गाय को मारने के लिए बेचना भी पाप है। गाय हत्या का अनुमोदन करने वालों को गाय की देह में जितने बाल होते हैं उतने वर्षों तक नरक में रहना पड़ता है।
(७) वाणिग्राम के विजयमित्र नामक व्यापारी के संतान तो होती थी किन्तु कुछ ही दिन में मर जाती थी। एक साधु ने उसे बताया उस पर पहले जन्म की गोहत्या का पाप चढ़ा है यदि वह सौ गौ पाले पति-पत्नी दोनों गौ कल्प करें तो श्रेष्ठ संतान के भागी हो सकते हैं। विजयमित्र ने गौ कल्प किया फलस्वरूप उसे श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई।
(८) अमेरिका के पेसिंलवेनिया के एक वैज्ञानिक ने गौमूत्र की जाँच करके बताया कि भारतीयों ने गौमूत्र और गोबर को इतना महत्त्व दिया है वह निरर्थक नहीं रासायनिक विश्लेषण से पता चलता है कि गौमूत्र में भी विटामिन तत्त्व पाया जाता है।
(९) गाँधी ने एक बार सेठ जमनालाल बजाज से गायों पर विचार करने को कहा-मुझे दुःख है कि गाय का हमारे देश में सबसे अधिक महत्त्व होने पर भी यहाँ गौओं की दशा अत्यन्त गिरी हुई है जब कि नार्वे और हालैण्ड के कृषि-जीवन पर उसका सर्वाधिक प्रभाव है।
(६६) अधिकार गौण और कर्तव्य प्रधान माना जाय
प्रश्न ——
(१) उत्पादन के प्रमुख पक्ष कितने हैं और कौन-कौन हैं? (२) उत्पादन में उचित अंश श्रम जीवी को देना क्यों आवश्यक है? (३) कर्तव्य की उपेक्षा क्यों नहीं की जानी चाहिए? (४) मनुष्यता एवं देश भक्ति का सहज प्रमाण क्या है? (५) मतभेद सुलझाने का सही तरीका क्या है? (६) उदात्त भावना का क्या तात्पर्य है? (७) अधिकार से अधिक कर्तव्य का महत्त्व क्यों है? (८) जापान स्थित अमेरिकन फैक्टरियों के श्रमिकों ने काम के दो घंटा कम करने का सुझाव क्यों नहीं माना (९) श्रमिक एवं स्वामी के संघर्ष पर प्रकाश डालते हुए समस्या का यथार्थ हल सुलझाइए।
कथाएँ ——
(१) किसान तरबूज बेचने बाजार पहुँचा। एक आदमी ने एक रुपये में तरबूज लिया तभी एक सेठ पहुँचे और किसान को दो रुपये का लालच देने लगे। किसान ने कहा-श्रीमान् जी जो वस्तु एक बार बेच दी उसके लिए अब दो रुपये तो क्या हजार रुपये दो तो भी नहीं दे सकता।
(२) प्रसिद्ध वकील रामदास ने एक बार एक मुकदमा लड़ा उसमें उनके पक्ष की जीत हो गई पीछे पता चला कि उन्होंने झूठा मुकदमा लड़ा तो उन्हें हार्दिक दुःख हुआ और वकालत करना ही उस दिन से छोड़ दिया।
(३) दुकानदार अपने पैसे गिनने लगा तो देखा उसमें कई खोटे सिक्के भी लोग धोखे में दे गये। वह सिक्के नाली में फेंकने लगा तो पड़ोसी ने कहा-मूर्ख जैसे किसी ने तुझे धोखे से खोटे सिक्के दिये तू भी ऐसे ही किसी को भेड़ दे। किन्तु दुकानदार ने कहा-थोड़े से सिक्के कई लोगों को बेईमानी और धूर्तता सिखाएँ उससे अच्छा तो खोटे सिक्कों को फेंक देना ही अच्छा है। यह कहकर उसने सिक्के पानी में फेंक दिये।
(४) एक भारतीय अमेरिका गये। एक जूते वाले को अपना जूता दिखाकर बोले-भाई इसकी गठाई का क्या लोगे-एक रुपया’ ‘मोची बोली’ वह सज्जन बोले-किन्तु मेरे पास तो पैसे कम हैं। तो कोई बात नहीं लाइये आपका काम तो करूँगा ही। उन सज्जन ने जूते ठीक कराते हुए पूछा-क्यों भाई! कम पैसे लेने में तुम्हें हानि नहीं होगी? मोची बोली-होगी तो पर अपना कर्तव्य न पालन करने से जो हानि होती उससे यह हानि कम है।
(५) आजाद हिन्द सेना का एक साधारण जवान मर गया। आवश्यक काम बीच में रोककर सुभाष चन्द्र बोस अन्त्येष्टि के लिए चलने लगे तो जनरलों ने कहा-मामूली बात है आप क्या करेंगे चलकर? सुभाष बोले-जिस दिन अधिकारी अपना महत्त्व अधिक समझने लगेंगे उस दिन छोटे न ठीक अनुशासन से चलेंगे न बड़ों को आदर देंगे। वे अन्त्येष्टि में उपस्थित हुए और मृतक को सलामी दी।
(६) एक आदमी ने एक बिल्ली पाल रखी थी, उसे वह दूध पिलाता था। दूध के लालच में दूसरी बिल्लियाँ भी आ जाती थीं उन्हें भगाने के लिए एक कुत्ता भी पाल लिया। कुत्ता दूसरी बिल्लियों को देखते ही धर पटकता। एक दिन अँधेरे में उसने घर वाली बिल्ली को दबोच दी यह देखकर वह आदमी बड़ा दुःखी हुआ। उस दिन गाँव में नानक पधारे तो उसने अपना दुःख कहा। नानक बोले अपने पराये का भेद भाव रखने से यही दुःख होता है। उससे बचने के लिये सबके साथ समता का भाव रखा करो।
(६७) वोटरों की सतर्कता पर प्रजातंत्र का भविष्य निर्भर है!
प्रश्न ——
(१) प्रजातंत्र का क्या अर्थ है? इस प्रणाली में शासन तंत्र कैसे चलता है। (२) हमारे शासन में अपेक्षित कार्य कुशलता न होने का क्या कारण है? (३) प्रतिनिधि कैसा चुना जाना चाहिये? (४) आजकल नागरिक मतदान करते समय किन बातों से प्रभावित होकर मतदान करते हैं? क्यों? (५) वर्तमान परिस्थितियों से मतदान का अधिकार सीमित करना क्यों आवश्यक है। (६) शासकीय कर्मचारी अशिष्टता व भ्रष्टाचार, आचरण एवं अवरोध वृत्ति के शिकार क्यों बनते जा रहे हैं? (७) योजनाएँ समयावधि को बहकाया जाना सरल क्यों है। (९) लोकमानस का स्तर ऊँचा उठाने के लिए क्या किया जाना चाहिए। (१०) पार्टियाँ अपना गौरव क्यों खो चुकी हैं?
कथाएँ ——
(१) एक बार वन्य पशुओं ने प्रजातंत्र की स्थापना की। चुनावों भी घोषणा हुई। बाकायदा सिंह दल, श्वान दल शृंगाल दल चुनाव दंगल में उतरे और अपने-अपने पक्ष में प्रचार-प्रसार करने लगे। श्वान दल सबसे बातूनी और चालाक थे सो उनने जनता को खूब ठगा। पार्लियामेण्ट में उन्हीं का बहुमत हो गया। अब क्या था जो भी बिल रखा जाता कुत्ते भूँक-भूँक कर अपने पक्ष का तो समर्थन करते और दूसरे पक्ष का विरोध। सारे राज्य में उन्हीं की तूती बोलने लगी। पर अब क्या हो सकता था सत्ता उनके हाथ में आ गई थी अन्य जीव बिना विचारे कुत्तों के समर्थन पर घोर पश्चाताप करते रहे।
(२) चुनाव के दौरान शास्त्री जी अपनी जीप से एक गाँव जा रहे थे। रास्ते में हरे भरे खेतों में लदी मटर की फलियाँ देखकर साथियों का मन कर आया कि फलियाँ खायें। उन्होंने शास्त्री जी से कहा-शास्त्री जी ने किसान से फलियाँ तोड़ लाने को कहा-किसान गदगद होकर ढेर सारे पौधे उखाड़ लाये। यह देखते ही शास्त्री जी दुःखी हो गये और बोले-मैंने तुम्हें फलियाँ लाने को कहा था पौधे उजाड़ने को नहीं। इसके बाद वे मूल्य चुकाने लगे तो किसान मना करने लगा। शास्त्री जी बोले-मैं प्रजा की भलाई के लिए वोट लेने आया हूँ उनको उजाड़ने के लिये नहीं।
(३) त्रावणकोर के राजा गलराज वर्मा का दीवान जयनन्दन अपनी प्रजा का घोर उत्पीड़न करता। दीवान ही सख्त था तो अन्य कर्मचारियों को शोषक होना ही था। प्रजा बुरी तरह सताई जा रही थी। आखिर प्रजा ने वेलुथम्पी के नेतृत्व में विद्रोह कर सत्ता को पदच्युत कर दिया। अब दीवान थे वेलुथम्पी। एक दिन उन्हें पता चला कि कई राज कर्मचारी अभी भी गोलमाल करते हैं। वेलुथम्बी ने उसकी जाँच की और यह कहते हुए शासन कठोर, अनुशासन और दंड व्यवस्था से चलते हैं उसने उन कर्मचारियों के हाथ कटवा दिये। फलतः त्रावणकोर से शासन की सारी शिथिलता और बुराइयाँ दूर हो गई।
(४) कन्फयुशियम शिष्यों के साथ जा रहे थे जंगल में एक कुटिया में बैठी एक स्त्री रो रही थी। कन्फ्यूशियस ने रोने का कारण पूछा तो वह बोली-इस स्थान पर एक चीते ने मेरे श्वसुर को खा लिया, एक दिन मेरे पति को भी खा लिया आज तो उसने मेरे एक लड़के को भी खा लिया। कन्फ्यूशियस ने पूछा-जब ऐसी बात है तो तुम यहाँ क्यों रहती हो गाँव क्यों नहीं चली जातीं। स्त्री बोली-वहाँ का राजा बड़ा दुष्ट और स्वार्थी है। कन्फ्यूशियस ने शिष्यों से कहा-तात स्वार्थी और दुष्ट शासक चीते से भी भयंकर होते हैं।
(५) प्राचीनकाल की बात है। एक गाँव पंचायत ने न्याय व्यवस्था के लिए एक न्याय पालिका का चुनाव किया बीस सदस्य चुने गये। जब भी कोई मामला आता सब अपने डेढ़ खिचड़ी अलग पकाते। न्याय जमाना तो दूर पंचायत का सारा सुरक्षित कोष ही खा गये वे लोग। गाँव के बुजुर्गों ने तब परस्पर विचार किया कि सौ मूर्खों की अपेक्षा विचारशील पाँच नेता अच्छे। अगली बार ऐसा ही हुआ जिससे सब काम व्यवस्थित चलने लगा।
(६८) प्रबुद्ध नारी-महिला जागरण की कमान सँभालें!
प्रश्न ——
(१) वर्तमान स्त्री जाति को पददलित स्थिति में पहुँचाने का पापी-कार्य किसने किया है? (२) पद दलित स्थिति में पड़े रहने के कारण स्त्री जाति की क्या स्थिति हो गई है? (३) इस विपन्न परिस्थिति में स्त्री को निकालने के लिए क्या प्रयत्न होना चाहिए? (४) इस स्थिति से नारी जाति को निकालने के लिए स्वयं नारी को क्या प्रयत्न करना चाहिये? (५) इस समय स्त्री जाति कि तरह जीवन यापन कर रही है? (६) स्त्री जाति को उस अपमान भरे जीवन से निकाल कर ऊँचा उठाने के लिये पुरुषों को क्या करना चाहिये? (७) नारी जाति को ऊँचा उठाने में सहायक ऐसे कौन से कार्य हैं? (८) घर-घर में चलाये जा सकने योग्य ऐसे कौन से आन्दोलन हैं जिनमें स्त्री जाति की प्रतिष्ठा फिर स्थापित हो सकती है?
कथाएँ ——
(१) शिवदेवी शास्त्री जिस स्कूल में पढ़ती वहाँ की लड़कियों ने एक दिन शिकायत की कि जब वे गलियों से निकलती हैं तो दुष्ट युवक अश्लील आवाज कसी करते हैं। उनका प्रतिरोध करने की अपेक्षा दूसरे लोग भी वैसा ही करते हैं इस पर शिवदेवी ने लाठी उठाई और उस दिन लड़कियों के साथ स्वयं गई और गुण्डों ने जैसे ही आवाज कसी ही उन्होंने लाठी फटकारी, सैकड़ों लोग उनके सहायक उतर आये और गुण्डों की पिटाई की उस दिन से किसी ने भी लड़कियों को छेड़ने की हिम्मत नहीं की।
(२) पश्चिम घाट मैसौर के श्री अनन्त शास्त्री डोंगरे ब्राह्मण-को अपनी बहू-बेटियों को पढ़ाने और उन्हें भी पुरुषों के समान स्तर पर लाने का उपदेश देते तो जाति वाले बुरी तरह उनके खिलाफ हो गये यहाँ तक कि जान बचाने के लिए उन्हें घर भी छोड़ना पड़ा। उनकी यह दशा देखकर उनकी पुत्री रमाबाई सेवा क्षेत्र में आगे आई उनने स्वयं हिन्दी कन्नड़ और बँगला भाषाएँ सीखी और घर-घर जाकर स्त्रियों को शिक्षा, पर्दा-प्रथा के विरुद्ध, तैयार किया और उनमें नई चेतना पैदा की।
(३) बम्बई के सुप्रसिद्ध व्यापारी सेठ सोराबजी फ्राम जी पटेल ने अपनी पुत्री भी काजी कामा को खूब पढ़ाया-लिखाया और श्री रुस्तम जी कामा के साथ विवाह कर दिया ताकि वह सुखी जीवन बिता सकें किन्तु भीका जी कामा को विलासी जीवन पसन्द न हुआ उन्होंने सबके विरोध के बावजूद स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया और पर्दे वाली स्त्रियों को रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्ति दिलाकर उन्हें भी लोक-सेवा के क्षेत्र में अग्रसर किया। तिरंगा-झण्डा भीकाजी कामा की ही देन है।
(४) तुर्की के अमीर उमराव नमाज के बाद आपसी चर्चा कर रहे थे तभी एक युवक बुर्के वाली स्त्री वहाँ कूदी और बोली-जब तक तुम लोग स्त्रियों को अशिक्षित पर्दे वाली गुड़िया और रुढ़ियों से जकड़े रहोगे देश उन्नति नहीं कर सकेगा। मुसलमान स्त्री के साहस से क्रुद्ध हो उठे पर उस अकेली जमीला ने ही नारी जागरण को जो शंख फूँका तो सैकड़ों स्त्रियाँ घर छोड़कर मैदान में आ डटीं। पुरुषों ने हार मानी और तुर्की में भी स्त्रियों को उन्नति का समान अवसर मिला।
(५) एक व्यक्ति स्त्री शिक्षा, स्त्रियों को पर्दे से बाहर लाने और उन्हें पूजा-पाठ की इजाजत देने का सख्त विरोधी था। वह महर्षि दयानन्द के पास गया और स्त्रियों के खिलाफ न जाने क्या-क्या बकने लगा। महर्षि ने कहा-मान्यवर क्या आप अपना एक पैर रस्सी से बाँध लेने देंगे। वह बोला-पाँव बँध दूँगा तो चलूँगा कैसे, घर कैसे पहुँचूँगा? अब दयानन्द हँसे और बोले-समाज का आधा भाग एक पैर स्त्रियाँ रूढ़ियों की रस्सी से बाँध दी जायें तो भारतीय समाज प्रगति कैसे कर सकेगा? वह आदमी बहुत प्रभावित हुआ और उस दिन से स्त्रियों की समान उन्नति का समर्थक बन गया।
(६) पति की छोटी बहन ने कहा-भाभी जी स्त्रियाँ सोचती हैं हम कुछ नहीं कर सकतीं, पर यदि करना चाहें तो उन्हें भगवान् ने पुरुष से कम शक्ति नहीं दी-इन शब्दों ने श्रीमती एलिजाबेथ स्टो को शक्ति से भर दिया-वे लिखने लगीं उनने एक पुस्तक लिखी जिसने अमेरिका में गृह युद्ध करा दिया और अमेरिका सरकार को वर्णभेद समाप्त करने को विवश होना पड़ा दुनियाँ की २२ भाषाओं में अनूदित होने वाली यह पुस्तक ‘‘ टाम काका की कुटिया’’ के नाम से प्रसिद्ध है।
(७) इंग्लैण्ड में १९९० तक स्त्रियों को मताधिकार प्राप्त नहीं था। श्रीमती पैंचर्स्ट ने आन्दोलन छेड़ दिया जो शीघ्र ही सारे इंग्लैण्ड में फैल गया और सरकार को भी स्त्रियों की बात मानने को विवश होना पड़ा।
(६९) नारी उत्कर्ष के लिये विशेष प्रयत्न किये जायें
प्रश्न ——
(१) नारी का सम्मान क्यों किया जाना चाहिए। (२) विदेशियों ने हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को किस प्रकार गिराया? (३) भारत में नारियों की वर्तमान अवस्था पर प्रकाश डालिये? (४) पर्दा प्रथा से क्या हानियाँ हैं। (५) भारतीय समाज ने नारी को अबला व अपंग क्यों बना रखा है। (६) नारी जाति का नृशंस अपमान क्या है। (७) आज हमारे समाज की हालत कैसी है। (८) सिद्ध कीजिये कि अविकसित नारी एक समस्या है। (९) नारी के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है। (१०) नारी को पुरुषों की अपेक्षा अधिक सुविधाएँ क्यों मिलनी चाहिए। (११) विचारशील व्यक्ति का नारी समाज के प्रति क्या कर्तव्य है।
कथाएँ ——
(१) एक व्यक्ति महर्षि कर्वे के पास आया और उनकी नारी उत्थान अभियान की आलोचना करने लगा। महर्षि ने कहा-एक बात बताओ गाड़ी में दोनों पहिये एक से हों तो अच्छी चलेगी या पहिये छोटे बड़े हों तो? वह व्यक्ति बोला-वाह यह तो साधारण आदमी भी जानता है असमान पहिये वाली गाड़ी चलना तो दूर लुढ़क-पुढ़क और जायेगी। कर्वे बोले-मेरे भाई जब असमान पहियों वाली काठ की गाड़ी ठीक यात्रा नहीं कर सकती दलित स्त्रियों वाले परिवार ही किस तरह उन्नति कर पायेंगे। वह व्यक्ति कर्वे का मुँह ताकता रह गया।
(२) आत्म हत्या के कारणों की शोध करने वाले नाडर्मन का कहना था कि अधिकांश हत्याएँ निजी कारणों से होती हैं फारबेरो का मत था पारिवारिक कारणों से। खोज की गई तो पाया गया कि फारबेरो की बात सच थी आत्महत्या करने वाले अधिकांश पारिवारिक जीवन से ऊब पाये गये और उसका कारण स्त्रियों की अशिक्षा थी या उनकी रूढ़िवादिता।
(३) आनन्द स्वामी पंजाब के एक गाँव में लोगों को स्त्री-शिक्षा के लाभ समझा रहे थे। एक बूढ़ा आदमी बोला-महाराज शास्त्र की आज्ञा है स्त्री को घर से नहीं निकलना चाहिए नहीं तो वह दूषित हो जाती है। आनन्द स्वामी ने पूछा-अच्छा यह बताओ पानी तालाब का अच्छा होता है या नदी का। बूढ़ा बोला-महाराज घिरा रहने के कारण तालाब का पानी गन्दा हो जाता है पर नदी का जल चलता रहता है इसलिये स्वच्छ रहता है। आनन्द स्वामी बोले-अब बताओ जो स्त्री घर में कैद रहेगी वह अच्छी होगी या जो सामाजिक जीवन में भाग लेने वाली होगी वह? बुड्ढे को कोई उत्तर देते नहीं बना।
(४) आज का सबसे बड़ा पुण्य क्या हो सकता है एक सज्जन ने महर्षि दयानन्द से पूछा-ऋषि ने उत्तर दिया-नारी जब तक इस देश की स्त्रियाँ शिक्षित नहीं होंगी तब तक यह समाज समर्थ नहीं बनेगा। वह सज्जन बड़े प्रभावित हुये। सासनी का कन्या गुरुकुल इन्हीं के परिश्रम का फल था जिसमें आज सारे उत्तरी भारत से कन्यायें पढ़ने जाती हैं।
(५) एक व्यक्ति अपनी कन्या से प्यार करता था पर उसे पढ़ाता नहीं था। लड़की ने बहुत कहा-पर वह आदमी यही कहता रहा बेटी मेरे पास बहुत धन है बड़े घर में विवाह कर दूँगा सो मौज करना। विवाह किया भी बड़े घर में अनपढ़ होने और ऊँचे कायदे न जानने के कारण बेचारी को गोबर थोपने का काम मिला। उसने कहा-निरर्थक है पिता का ऐसा प्यार जो अपनी कन्या को पढ़ा तक नहीं सकता।
(६) अवन्तिका बाई गोखले के विवाह की बात आई तो पिता ने पूछा-बेटी बोल तुझे कैसा पति चाहिए। अवन्तिका ने उत्तर दिया। भले ही हम निर्धन रहें पर पति ऐसा हो जिसके साथ रहकर हम अपने देश की पिछड़ी बहनों के उत्थान का काम बराबर कर सकें।
(७) एक स्त्री के चार लड़के थे। तीन लड़कों की बहुएँ आईं पर वे सभी अनपढ़ थीं इसलिए जब भी सास लड़ती वे उससे भी अधिक तेज हो जातीं बस घर अखाड़ा बन जाता। चौथे पुत्र की बहू आई शिक्षित वह झगड़े को नहीं झगड़े के कारण को ढूँढ़ती और उसे दूर करती। फलस्वरूप उससे सास की मित्रता हो गई। अब तो दूसरी बहुओं ने भी भूल समझी ये भी घर में रहकर पढ़ने लगीं। एक समझदार स्त्री ने घर को स्वर्ग बना दिया।
(७०) ऊँच-नीच की मान्यता अन्याय मूलक है
प्रश्न ——
(१) सिद्ध कीजिये कि ‘‘मनुष्य मात्र की जाति एक है।’’ (२) प्राचीनकाल में समाज को कितने वर्ग में बाँटा गया था व क्यों? (३) ऊँच-नीच का आधार गुण होना चाहिए या वंश? क्यों? (४) क्या पूर्वजों के कारनामों के कारण उनके वंशजों को ऊँच या नीच माना जाना चाहिए? कारण सहित बताओ। (५) आज भारतीय समाज की विचित्र दशा क्यों है? क्या प्राचीनकाल में जाति भेद था? (६) वर्णभेद की संकीर्ण नीति से देश का क्या अहित हुआ है? (७) हिन्दू समाज की संख्या निरंतर कम होने का क्या कारण है? (८) हिन्दू समाज संकीर्ण, अनुदार एवं अन्यायी क्यों कहा जाता है? (९) ऊँच-नीच के मामलों में हमारा कर्तव्य क्या है?
कथाएँ ——
(१) किसी ने विनोबा जी से पूछा-आप महाराष्ट्रीय ब्राह्मण हैं, कोकाणस्थ या देशस्य? उन्होंने कहा-मैं देश में रहता हूँ इसलिये देशस्थ हूँ काया में रहता हूँ इसलिये कायस्थ हूँ, और सबसे अधिक तो मैं स्वस्थ हूँ जो कि किसी एक धर्म जाति और देश से सम्बन्ध नहीं रखता। वे सज्जन अपनी जाति-पाँति मूलक संकीर्णता पर बहुत लज्जित हुए।
(२) पेशवा की सेना की और धुँआ उड़ता देखकर तैमूर लंग ने पूछा-यह क्या हो रहा है। खुफिया अफसरों ने बताया हिन्दू एक दूसरे का छुआ भोजन नहीं खाते इसीलिये सब अपना-अपना अलग-अलग भोजन पका रहे हैं उसी का धुँआ है। तैमूर ने कहा-जो जाति इस तरह विभक्त हो उसे जीतना क्या कठिन है। उसी समय हमला बोल दिया और पेशवा की सेना जीत ली।
(३) पूना के सरकारी जज श्री मदनकृष्ण जी की धर्मपत्नी का स्वर्गवास हो गया। जज साहब जरिजन थे, तथापि सम्मानित पद में होने के कारण लोग शर्मा-शर्मी दाह-संस्कार में सम्मिलित हो गये। दैवयोग से १५ दिन पीछे जज साहब की मृत्यु की गई। अब लोगों में डर भी न रहा सो दाह-संस्कार के लिये कोई भी नहीं गया। यह बात न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानाडे ने सुनीं वे स्वयं जज थे और उसी दिन हारे थके दौरे से आये थे वह सब भुलाकर वे स्वयं गये और दाह-संस्कार का सारा प्रबन्ध खुद किया मानो वह कोई उनके घर वाले ही रहे हों।
(४) अस्पृश्यता उन्मूलन के संदर्भ में गाँधीजी बीजापुर में ठहरे थे। अभी वे मध्याह्न में विश्राम के लिए लेटे ही थे कि कई ब्राह्मण अस्पृश्यता के सम्बन्ध में शास्त्रार्थ करने आ धमके। गाँधीजी ने सोचा ये लोग देर तक खड़े रहेंगे अतएव विश्राम छोड़कर पहले उन लोगों को ही बुला लिया। वे लोग अपनी बातें शास्त्रीय श्लोक आदि सुनाकर स्पृश्यता का समर्थन करने लगे। सारी बातें चुपचाप सुन चुकने के बाद गाँधीजी बोले-भाइयों आपकी बातें सुन चुके अब एक मेरी बात सुनो-वह यह कि छुआछूत हिन्दू धर्म का कलंक है और मेरी इस निष्ठा को कोई काट नहीं सकता ब्राह्मण निरुत्तर लौट गये।
(५) हिन्दुओं की ऊँच-नीच और छुआछूत को मिटाने के लिए के सिख गुरु अमरदास ने सामूहिक चौके का प्रचलन किया। उनके लंगर में हर वर्ण का व्यक्ति सामूहिक भोजन करता था। एक दिन उनकी विद्वता से प्रभावित होकर अकबर उनसे मिलने गया। द्वार रक्षक ने गुरु को सूचना दी तो उन्होंने खबर भेजी यदि अकबर एक साधारण नागरिक की हैसियत से आना चाहते हैं तो ही आ सकते हैं। शहंशाह की दृष्टि से नहीं। अकबर उसी भाव से गया और सबके साथ लंगर में भोजन करके उनकी समतावादी नीति का समर्थन किया।
(६) गाँधीजी के आश्रम में दो साधु आये और गाँधीजी से बोले-हमें काई सेवा कार्य दो। गाँधीजी ने उन्हें रात को अतिथिशाला में विश्राम दिया। प्रातःकाल होते ही बुहारी और बाल्टी लेकर पहुँचे और बोले-यह लो आज टट्टियाँ आ लोग साफ करें। साधु बोले-यह क्या कहते हैं यह तो हरिजनों का काम है। गाँधीजी बोले-हाँ जो छोटे से छोटा काम करता हो वही सच्चा सेवक भगवान् का भक्त है। साधु चुपचाप खिसक गये उस दिन की सफाई बापू ने स्वयं की।
(७) महर्षि मातंग और उनके शिष्य जिस रास्ते से प्रातःकाल स्नान के लिए सरोवर जाते वहाँ काँटे बिखरे होने से उन्हें बड़ा कष्ट होता। यह देखकर भीलनी शबरी ने प्रतिदिन रास्ता बुहारना प्रारम्भ कर दिया। मातंग शबरी की सेवा से बहुत प्रसन्न होकर शबरी के लिये आश्रम में ही भोजन की व्यवस्था करा दी किन्तु शबरी ने उसे अस्वीकार करने हुए कहा-मैं अनाथ हूँ, हरिजन हूँ तो क्या? रोटी अपने परिश्रम की ही खाऊँगी अपना स्वाभिमान नष्ट न करूँगी। महर्षि ने नाराज होकर उसे आश्रम से निकाल दिया फिर भी शबरी ने पथ बुहारना बन्द न किया। भगवान् राम स्वयं ही शबरी से मिलने आये और उसके जूठे बैर खाये।
(७१) अश्लीलता की बाढ़ हमें पतित क्यों बना रही है!
प्रश्न ——
(१) अनेक रूपों में नर और नारी के बीच का संबंध हमारे भारतवर्ष में किस तरह का माना जाता रहा है? (२) वासना की चर्चा क्या सामाजिक जीवन में करना उपयुक्त होगा? (३) वासना की चर्चा सामाजिक जीवन में करने से हमें क्या हानियाँ हो सकती हैं? (४) मस्तिष्क में कामुकतापूर्ण विचार भरने से क्या हानियाँ होती हैं। (५) आज नारी जाति का किस प्रकार अपमान किया जा रहा है। (६) उपन्यास और चित्र तस्वीरें आज किस तरह पेश की जा रही हैं (७) पवित्र नारी को निर्लज्ज वेश्या के रूप में पेश करने में कौन-कौन से उद्योग बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं? (८) इस समय नारियों को क्या करना चाहिये पर वे क्या कर रही हैं? (९) अश्लीलता की बाढ़ से समाज को बनाये रखने के लिये हमें क्या करना चाहिये?
कथाएँ ——
(१) पाकिस्तान की बात है। एक लड़की बुर्के में कॉलेज से निकली एक मनचले युवक ने उसका पीछा किया। लड़की घूमकर देखती और हँसकर फिर चल देती महाशय ने उसका कुछ और ही अर्थ लगाया। पीछा करते चले गये पर जब देखा कि वह लड़की तो उन्हीं के घर जा रही है तो वह चौके, अब लड़की ने पर्दा उठाते हुए कहा-बरखुरदार चौंकते क्यों हैं अन्दर आइये। युवक यह देखकर स्तब्ध रह गया कि वह उसकी सगी बहन है। युवक ने उस दिन से कसम खाकर लड़कियों को छेड़ना छोड़ दिया।
(२) जोल छावनी की कुमारी अहिल्या रानाडे को एक गुण्डा धोखे से बहका ले गया। अस्पताल के पीछे पहुँचने पर लड़की को शक हो गया। गुण्डा जबर्दस्ती करने लगा तो अहिल्या को याद आया कि उसके सिलाई के बक्स में ब्लेड रखा है उसने निकाल कर गुण्डे की नाक काट ली। गुण्डा अपना मुँह छुपाकर भाग खड़ा हुआ।
(३) एक साम्प्रदायिक दंगे से पीड़ित दिल्ली की कुछ मुसलमान लड़कियाँ एक घर में घुस गईं। पर यह क्या यह तो एक सिख का घर था, कुलवन्तसिंह नामक यह सिख पाकिस्तान से लूटकर आया था लड़कियों को काटो तो खून नहीं तब तक शरारती लोग भी वहाँ आ पहुँचे। कुलवन्तसिंह ने दरवाजा खोलकर उन लोगों को यह कर भगा दिया कि यहाँ कोई नहीं आया। उनके चले जाने पर कुलवन्त ने डरी हुई लड़कियों को चाय पिलाई और टैक्सी करके उनके घर तक सुरक्षित पहुँचा दिया। अपने व्यस्त कार्यक्रमों के बीच गाँधीजी इस युवक से मिलने उसके घर गये।
(४) गाँधीजी से कुछ लोगों ने शिकायत की कि उनकी लड़कियाँ जब पढ़ने जाती हैं तो लड़के अश्लील शब्द बकते हैं। गाँधीजी ने उनसे कहा-अपनी लड़कियों से कहना कि वे कल से सिर मुड़ाकर स्कूल जायें फिर बताना लड़के क्या करते हैं। अभिभावकों ने अनुभव किया सारा दोष लड़कों का ही नहीं पश्चिम-टाइप के उच्छृंखलता भड़काने वाले वेश-विन्यास का भी है सो वे लड़कियों को सादगी से रहना सिखाने लगे।
(५) रानी बाजार के युवकों ने अश्लीलता विरोधी संगठन बनाया है। स्थान-स्थान पर यह संगठन गुण्डा तत्त्वों से संघर्ष करता है फलस्वरूप कुछ ही दिनों में वहाँ की गुण्डागर्दी दूर हो गई। चरित्रवान युवकों को ऐसे संगठन हर स्थान पर बनाना चाहिये।
(६) दिल्ली में एक बाप-बेटे दोनों में मनचलेपन की दिलचस्प होड़ लगी। लड़का सबेरे अपने घर की दीवारों में सुरैया-सुरैया लिख जाता है उसकी दृष्टि से सुरैया सबसे अच्छी है शाम को लौटने पर वह सुरैया के स्थान पर निम्मी-निम्मी लिखा पाता है। उसके पिता निम्मी के आशिक हैं। एक दिन दोनों में हाथ पाई तक की नौबत आ गई।
(७२) भिक्षा वृत्ति का व्यवसाय न रहने दें
प्रश्न ——
(१) समर्थ होते हुए भी किसी के आगे हाथ पसारने पर हमें क्या-क्या हानियाँ हैं? (२) भारत में भिक्षा व्यवसाइयों की संख्या बतलाते हुए इनके भिक्षा माँगने की शैली को बतलाइये? (३) प्राचीन काल के साधुओं की स्थिति को स्पष्ट करें? (४) सारे साधु यदि जीविका उपार्जन के लिये भिक्षा वृत्ति के साथ-साथ ही रचनात्मक कार्यक्रमों में जुट जायें तो वे देश का भला किस प्रकार कर सकते हैं? (५) भिखारियों से देश और समाज को कैसे हानि है सिद्ध कीजिये? (६) विचारशील व्यक्तियों को भिक्षा वृत्ति को समाप्त करने के लिए किस प्रकार का कार्य करना पड़ेगा? (७) हमारी सरकार तथा धर्म संस्थाएँ भिक्षा उन्मूलन में किस प्रकार सहयोग दे सकती हैं। (८) यदि भिक्षा व्यवसाय खत्म कर दिया जाय तो समाज कैसे इनके बोझ से छूटेगा?
कथाएँ ——
(१) हजरत इब्राहिम के पास एक भिखारी आया और भीख माँगने लगा। इब्राहिम ने कहा-तुम्हारे पास जो सामान हो लाओ, भिखारी सब सामान लाया कम्बल छोड़ कर इब्राहिम ने सब सामान नीलाम कर दिया और एक कुल्हाड़ी खरीदकर उसे देकर कहा-बेटा समझदारी की बात यह है कि भगवान् ने दो-दो भुजाएँ सबको दी हैं इसलिये अपना पेट अपने परिश्रम से भरो, भिखारी चला गया और मेहनत करने लगा। १५ दिन बाद वापस आकर उसने दिखाया अब उसके पास २ दिरम बचत के थे।
(२) दया-भाव दिखलाते हुए एक सज्जन ने लड़के को पाँच पैसे की भीख देनी चाही, लड़के ने कहा-श्रीमान जी मैं भीख लेने नहीं आया मैं तो निवेदन करने आया हूँ कि अपने स्कूल में भरती करा दीजिये तो मैं भी पढ़ सकूँ। बच्चे से प्रभावित सज्जन ने उसे स्कूल में भरती करा दिया। पाँवों से लगड़ा यही बालक एक दिन कुशल हवाबाजसैंडर्स के नाम से विख्यात हुआ।
(३) महाराज रविशंकर सवा मन गुड़ बाँट रहे थे, एक लड़की ने इनकार करते हुए कहा-मेरी माँ ने बताया है आदमी को अपने परिश्रम की कमाई खानी चाहिए। रविशंकर के मन में ऐसी माता के दर्शनों की इच्छा हुई वे लड़की के साथ उसके घर गये तो पता चला उसने अपनी सारी सम्पत्ति बालिका-विद्यालय को दान दे दी है और स्वयं परिश्रम करके आजीविका चलाती है।
(४) महात्मा टालस्टाय के आगे एक भिखारी गिड़गिड़ाया दो पैसे दो। टालस्टाय ने कहा-अपना एक हाथ काटकर मुझे दे दो २० हजार रुपये दिलवा दूँगा, दोनों के चालीस हजार, पाँव भी दे दो तो पचास हजार, आँख, कान और नाक दे दो तो १ लाख रुपये दिला सकता हूँ। युवक ने कहा-महोदय यह कैसे हो सकता है। टालस्टाय बोले —यह नहीं हो सकता तो १ लाख रुपये का शरीर लेकर भी दो पैसे की भीख माँगते तुम्हें लाज नहीं आती। युवक ने उस दिन से भीख माँगनी छोड़ दी।
(५) कुछ दिन पूर्व कानपुर के एक सर्वे से मालूम हुआ कि कानपुर के भिखारियों की आय सात सौ रुपये से लेकर एक हजार रुपये मासिक तक है कितने ही तो ऐसे हैं जिनके पोस्ट ऑफिस और बैंकों में खाते भी है। जिन भिखारी परिवारों की सदस्य संख्या अधिक है उनकी आय उतनी ही अधिक है।
(६) सन्त इमर्सन के सामने एक आदमी ने हाथ फैलाकर भीख माँगी तो उन्होंने कपड़े से अपना चेहरा ढक लिया। किसी ने पूछा-आपको लाज क्यों आ रही है उन्होंने कहा-भीख माँग कर इसने मनुष्य शरीर को लजाया। दुर्भाग्य कि मैं भी हूँ उसी चोले में हूँ।
(७) एक अन्धा बालक सड़क के किनारे रेवड़ी की पुड़िया बनाकर बेच रहा था। एक आदमी को दया आई उसने बच्चे को कुछ पैसे देते हुए सहानुभूति प्रकट की तो बालक ने कहा-श्रीमान् जी मुझे भीख देकर लज्जित न करें। मेरी आँखें ही तो खराब हैं और शरीर तो काम कार आमद है।
(७३) मृतक भोज भी अविवेक पूर्ण न हों
प्रश्न ——
(१) मृतक भोज के कारण एवं प्रयोजन पर प्रकाश डालिये? (२) भारतीय आदर्श क्या रहा है? (३) हराम खोरी से क्या हानि है? (४) आत्मा की सद्गति कैसे होती है? (५) मृत्यु टैक्स क्यों लगाया जाता है? (६) हिन्दू समाज की सर्वाधिक भ्रमपूर्ण मान्यता क्या है? (७) बदली हुई परिस्थितियों में मृतक भोज अनावश्यक क्यों हो गया है? (८) मृतक भोज खाना स्वाभिमानी व्यक्ति के गौरव के सर्वथा विपरीत क्यों है? (९) सत्यानाशी कुप्रथाओं का अन्त कैसे होगा? (१०) मृतक की सम्पत्ति का सर्वोत्तम सदुपयोग किन २ कामों में करना चाहिए।
कथाएँ ——
(१) पं० गजाधर शास्त्री ने एक बार पंडितों की एक सभा बुलाई और यह प्रयत्न किया कि मृतक भोजों की अमान्यता की नई प्रतिस्थापनाएँ की जायें। उन्होंने बहु-तेरा कहा कि-यह देश कभी सम्पन्न था तब मृतक भोज पुण्य रहा होगा पर आज की निर्धनता में यह बिलकुल उचित नहीं पर पण्डित अपनी टाँग अड़ाते और शास्त्र की ही दुहाई देते रहे। दुःखी होकर शास्त्री जी ने सभा भंग कर दी पर चलते-चलते यह कहने से भी न रुके जिस देश में पंडितों में इतना विवेक न हो कि उचित अनुचित का निर्णय कर सकें उनसे तो गाँव के किसान अच्छे।
(२) बिहार के एक गाँव में एक स्त्री का पति मर गया, उस बेचारी के पास जो कुछ था पति की बीमारी में ही स्वाहा हो गया था इधर मृतक भोज भी करना पड़ा उसके जेठ ने कर्ज दिया और उसमें उसके हिस्से की सारी जमीन हड़प ली। पीछे विधवा को अपने बच्चों के लिये भीख माँगने पड़ी। अपनी करुणा कथा विधवा ने पटना में भिक्षा वृत्ति उन्मूलन समिति के सदस्य को बताई।
(३) कुँवरपुर (बदायूँ) के माहेश्वरी परिवार ने मृतक-भोज को अनैतिक कहकर उसे तोड़ा तो सारे गाँव ने विरोध किया और कहा कि इससे मृतात्मा दुःखी होगी। इस पर उन्होंने मृतक भोज में खर्च होने वाले धनराशि से पक्का श्मशान घाट बनवा दिया। इस पर गाँव वाले बड़े खुश हुए। माहेश्वरी परिवार के एक सदस्य ने कहा-मृतक भोजों में मृतात्मा की खुशी नाखुशी तो क्या होगी हाँ खाने वालों की खुशी-नाखुशी अवश्य जुड़ी हुई है।
(४) मालवीयजी एक बार एक मृतक भोज में सम्मिलित हुए। इधर खाना परोसा गया उधर घर की महिलायें मृतक की याद कर रोने लगी-मालवीयजी यह कहकर उठ खड़े हुए मृतक भोज! दुःखियों को और दुःखी बनाना और उनका उपहास करना है-इसके बाद वे कभी किसी मृतक भोज में शामिल नहीं हुए।
(५) एक ग्रामीण ने गाँधीजी से पूछा-मृतक भोज के बारे में आपका क्या ख्याल है। गाँधीजी बोले-एक प्रथा जिससे हिन्दू जाति बदनाम होती है और मूर्ख समझी जाती है।
(६) राजर्षि टण्डन जी से किसी सम्बन्धी के मृतक भोज में चलने को कहा तो वे बोले-जिस देश में हजारों लोग खाद्यान्न के लिए पीड़ित हों वहाँ लोग इस तरह अन्न बर्बाद करें और मैं उसका समर्थन करूँ यह हरगिज नहीं हो सकता तो भोज में नहीं ही सम्मिलित हुए।
(७) ईश्वरचंद्र विद्यासागर कभी किसी गाँव में जाते तो लोगों को भारतीय समाज में फैली बुराइयाँ छोड़ने को भी समझाते। एक गाँव में वे मृतक भोज के बहिष्कार की बात समझा रहे थे तो एक आदमी बोला-मृतक भोज न करेंगे तो मृतात्मा की सद्गति कैसे होगी। ईश्वरचंद्र विद्यासागर बोले-पहले कितने लोगों के पास अन्न नहीं होता था तो खिलाना पुण्य माना जाता था आज लोग अशिक्षित हैं तो अशिक्षा दूर करना ही पुण्य है। उस गाँव के लोगों ने मृतक भोज ने करने का निश्चय कर गाँव में एक पाठशाला खोल दी जो कुछ ही दिन में एक बड़ी शिक्षा संस्थान बन गई।
(७४) भूत पलीत और उद्भिज देवी देवताओं का जंजाल
प्रश्न ——
(१) श्रद्धा और विश्वास किस प्रगति के लिए आवश्यक हैं? (२) अन्ध विश्वास की परिभाषा कीजिये? (३) भारतीय जनता का एक बहुत बड़ा भाग अन्ध विश्वास में उलझा हुआ है क्या कारण है? (४) हम जिन्हें भूत-प्रेत आदि कहते हैं व उनसे डरते हैं वह वास्तव में क्या हैं तथा वस्तुस्थिति क्या है? (५) यदि कोई बीमारी आदि हो जाती है तो ओझाओं द्वारा उसे किस तरह का स्वरूप दिया जाता है? (६) यदि यह मान लिया जाये कि भूत-प्रेत हैं तो शिक्षित समाज पर उसका प्रभाव न होना क्या सिद्ध करता है? (७) ईश्वर कौन है, क्या ईश्वर अनेक हैं। (८) गाँवों के पिछड़े लोग किस प्रकार के देवी देवताओं को मानते हैं। तथा उनसे उन्हें क्या हानियाँ हैं। (९) भूत पलीत और इन उद्भिज देवी-देवताओं के जंजाल से छूटने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
कथाएँ ——
(१) एक आदमी बाहर तीर्थयात्रा पर जाने लगा तो उसने अपना धन एक स्थान पर छिपा दिया और पहचान के लिए एक झंडी गाड़ दी। गाँव वाले थे अन्ध विश्वासी उन्होंने समझा कहीं जाने पर झण्डी गाड़नी चाहिए फलस्वरूप किसी को मिल दो मिल जाना होता वह भी झंडी गाड़कर जाता। पहले वाला आदमी लौट कर आया तो उसने झण्डियाँ ही झण्डियाँ गढ़ी देखी तो बड़ा हैरान हुआ, उसका धन मुश्किल से मिला। अन्धविश्वास के कारण सभी को ऐसी ही परेशानी होती है।
(२) कानपुर का समाचार है एक गृहस्थ अपनी बीमार लड़की को दवा कराने के बजाय किसी मुसलमान ओझा के पास ले गये। ओझा लड़की को एक तरफ ले गया। शाम तक बैठे प्रतीक्षा करते रहने के बाद जब खोज की गई तो पता चला ओझा लड़की को लेकर रफू-चक्कर हो गया। बाप रोने लगा तो एक पढ़े-लिखे आदमी ने कहा-अब क्यों रोते हो? देवताओं से कामना सिद्धि का का विश्वास नहीं छोड़ेंगे तो यही सब होगा।
(३) विवेकानन्द जी के पास कलकत्ते की एक स्त्री आई और बोली —महाराज मेरे लड़के को भूत आता है। विवेकानन्द बोले-बहन जाओ लड़के का इलाज कराओ कहीं तुम्हारे मन का भूत ही बच्चे का जीवन न हर ले।
(४) गाँव के बीचो-बीच पेड़ था। रात में उससे पत्थरों की वर्षा होती लोग डर जाते इसमें भूत है इसलिये लोग रात में घर से बाहर न निकलते उन दिनों उनकी खूब चोरियाँ हुईं। लोगों को विश्वास हो गया सारी करतूत पेड़ वाले भूत की है। एक दिन एक युवक ने हिम्मत की और पेड़ पर चढ़ गया तो पता चला गाँव का चमार पत्थर बरसा रहा है। उसने उसे पकड़ कर नीचे उतारा और अच्छी पिटाई की गाँव वालों ने युवक के साहस की सराहना की।
(५) एक व्यक्ति सन्त नामदेव के पास जाकर पूछने लगा-भूत होता है या नहीं। नामदेव बोले-होता भी हो तो यह जान लो कि यह मनुष्य का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मनुष्य को तो उसका भय ही बिगाड़ता है।
(६) एक राजा ने देखा शालिग्राम की मूर्ति के ऊपर तो चूहे फुदक रहे हैं उसे लगा चूहा बड़ा देवता है। अतएव वह उसे दिन से चूहों की उपासना करने लगा। एक दिन एक बिल्ली चूहे को खा गई तो उसने बिल्ली की पूजा शुरू कर दी। एक दिन एक कुत्ते ने बिल्ली को धर पटका और तब से राजा कुत्ता का उपास्य बन गया। एक दिन किसी बात पर नाराज होकर रानी ने कुत्ते की टाँग तोड़ दी फिर क्या था राजा ने रानी की पूजा प्रारम्भ कर दी एक दिन किसी भूल पर उन्होंने रानी को डाँटा तो उन्हें ऐसा लगा कि मैं ही बड़ा देवता हूँ अतः वे अपनी उपासना करने लगे। एक दिन बुखार में पड़े राजा के मुँह से अनायास निकल गया है राम! और तब उन्होंने अनुभव किया भगवान् ही सबसे बड़ा देवता है उस दिन से वे देवताओं की उपासना छोड़कर भगवान् का भजन करने लगे।
(७) कॉलेज के लड़के अमरूद तोड़कर खा जाते। उनसे बचाव के लिए मालिक ने अफवाह फैला दी। इन पेड़ों में भूत रहता है। सब लड़के डर गये पर एक लड़का सबेरे से शाम तक बैठा रहा। बगीचे का मालिक पहुँचा और बोला यहाँ क्या कर रहे हो भूत आ जायेगा तो गिरा देगा। युवक ने उत्तर दिया सबसे से प्रतीक्षा कर रहा हूँ भूत तो अभी तक तो आया नहीं। अब देखता हूँ कब तक आता है। यह साहसी बालक विवेकानन्द थे जिन्होंने बगीचे के मालिक से वचन ले लिया कि वे फिर कभी इस तरह झूठ बोलकर बच्चों को डरायेंगे नहीं।
(७५) पशुबलि भारतीय धर्म पर एक कलंक
प्रश्न ——
(१) देवता की परिभाषा कीजिये? (२) देवपूजन के समय उनके स्वागत सम्मान के लिए किन वस्तुओं का उपयोग किया जाना चाहिए? (३) बलिदान की प्रचलित प्रथा किस प्रकार अनुपयुक्त है? (४) यदि यह मान लिया जाय कि देवता पशुबलि से प्रसन्न होते होंगे तो उस ईश्वर का स्वरूप किस तरह का होगा (५) बलिदान की परिभाषा कीजिये? (६) पशुबलि के प्रचलन के क्या कारण हो सकते हैं? (७) क्या पशुबलि भारतीय देवताओं को प्रिय है? (८) पशुबलि समाप्त करने के लिये क्या प्रयत्न किये जाने चाहिए? (९) आधुनिक युग में बलि की प्रथा में कैसे संशोधन किया जावे। (१०) पशुबलि का समर्थन कौन करता है?
प्रश्न ——
(१) भगवान् बुद्ध जेतवन में ठहरे थे। कुछ लोग एक पशु को बाँधकर उसकी बलि देने जा रहे थे। बुद्ध ने उन्हें रोका-तो एक व्यक्ति ने कहा-महाराज बलि से देवता प्रसन्न होते हैं। बुद्ध बोले-देवों के नाम पर अपने सुख के लिये जो लोग पशुओं को मारते हैं वह दूसरे जन्म में घोर कष्ट पाते हैं। यह सुन कर ग्राम वासियों ने जीव हिंसा त्याग दी।
(२) एक व्यक्ति एक गधे पर इतना बोझा लादे था कि गधे का चलते न बनता था। बेचारा पिसा जा रहा था। महाप्रभु ईसा ने कहा बोझ हलका कर लो, तो वह आदमी बोला-महाराज यह तो गधा है। बोझ ही तो लदा है कोई मार तो रहे नहीं ईसा बोले पशु समझकर उस पर असह्य भार लादना भी हिंसा ही है। जिस तरह मनुष्य को अधिक बोझ से कष्ट होता है इसे भी होता है। उस मनुष्य ने बोझा हलका कर दिया।
(३) महावीर स्वामी एक गाँव से जा रहे थे। कुछ लोग एक पशु को बाँधे बलि की तैयारी कर रहे थे। महावीर स्वामी के मना करने पर ग्रामवासी बोले इससे देवता प्रसन्न होंगे, इस पर महावीर ने कहा-यदि देवता पशुबलि से प्रसन्न हो सकते हैं तो वे मनुष्य की बलि पाकर और अधिक खुश होंगे बोलो तुममें से कोई बलि के लिये तैयार है। सारे लोग एक-एक करके खिसक गये वह पशु पड़ा रह गया। महावीर ने उसके बंधन काटकर उसे मुक्त कर दिया।
(४) भावनगर की खेडियार माता के मन्दिर में चण्डी पाठ के अवसर पर बकरे की बलि दी जाती थी। एक बार जब बलि दी जाने को थी कस्तूरी नामक एक ब्राह्मण बालिका वध स्थल पर जा खड़ी हुई लोगों ने उसे हटने को कहा तो उसने कहा जो देवी बकरा खाकर प्रसन्न हो सकती है वह मनुष्य खाकर तो और भी प्रसन्न होगी। आप लोग मेरी बलि दीजिये। खबर महाराज तक पहुँची वे बालिका की इस जीव दया से बड़े प्रभावित हुए उन्होंने पशुबलि हमेशा के लिये बन्द करा दी।
(५) लोग माने नहीं प्लेटो को भी उत्सव में पकड़ ले गये पर वहाँ पशुबलि का दृश्य देखा तो उनकी आत्मा ही करा उठी। उन्होंने लोगों की पशुबलि न करने को कहा तो लोग पूछ बैठे जिन्होंने यह प्रथा चलाई क्या वे मूर्ख थे प्लेटो बोले मैं नहीं जानता वे मूर्ख थे या नहीं पर इतना अवश्य था कि उनके हृदय में दया और करुणा नहीं रही होगी लोग इस कथन से प्रभावित तो हुए पर बोले फिर बलि कैसे दें। प्लेटो ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसे काटते हुए कहा निर्जीव मूर्ति के लिए निर्जीव की ही बलि दी जा सकती है। यदि देवता को दिव्य भाव मानते हों तो फिर उसके आगे बुरे विचारों की बलि दो। उस दिन से लोगों ने पशु बलि त्याग दी।
(६) समर्थ गुरु रामदास एक गाँव में उपदेश दे रहे थे तभी पता चला। गाँव का पटेल देवी के आगे मुर्गे की बलि देने जा रहा है समर्थ उठे और पटेव व उसके साथी को जा पकड़ा। दोनों हाथों से उन्हें घसीटते हुए बोले-आज मुझे देवी ने स्वप्न दिया है कि मेरा पेट मुर्गे से नहीं दो मुस्टण्डों से भरेगा सो तुम्हारी बलि देंगे। पटेल घबड़ाया क्षमा माँगी और फिर कभी बलि न देने की शपथ ली तब कहीं समर्थ ने उन्हें छोड़ा।
(७६) प्राणियों के प्रति निर्मम और निष्ठुर न बनें
प्रश्न ——
(१) क्या यह उचित है कि जिस तरह अविकसित जीव परस्पर दुर्व्यवहार करते हैं हमें भी करना चाहिये? (२) धर्म अध्यात्म और दर्शन का प्रयोजन क्या है? (३) घोड़े, गधे तथा अन्य सवारी में काम आने वाले तथा वजन ढोने वाले पशुओं से हमें किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये? (४) निर्दयता निवारक धारा के अनुसार पुलिस को क्या अधिकार दिये गये हैं? (५) घायल, अशक्त जानवरों के साथ किस प्रकार व्यवहार किया जाता है? (६) क्या हमें पक्षियों को निर्दयता पूर्वक पिंजड़ों से बन्द करना चाहिए? क्यों? (७) क्या रेशम के कपड़े पहनना ठीक है नहीं तो क्यों? (८) कस्तूरी, चँवर, मोती, बालों वाले बच्चों के कोट, मोजे, दस्ताना, टोपी आदि किस प्रकार प्राप्त किये जाते हैं? (९) चमड़े की जगह हमें किन वस्तुओं को उपयोग में लाना चाहिए कि निरीह प्राणियों का संहार न हो? (१०) क्या माँसाहार द्वारा हम अपने शरीर को सुदृढ़ बना सकते हैं?
कथाएँ ——
(१) कंधे पर लहू लुहान कुत्ते को बैठाये एक व्यक्ति शहर की ओर जा रहे थे। कई मोटर ट्रक वालों से कहा पर किसी ने जगह न दी अन्त में वे २२ मील दूर पैदल ही शहर पहुँचे और जानवरों के अस्पताल में कुत्ते का इलाज कराया। लोग उन्हें लौह पुरुष के नाम से याद करते हैं पर सरदार वल्लभ भाई पटेल के जीवन की यह घटना बताती है कि प्राणियों के प्रति उनके हृदय में कितनी करुणा थी।
(२) आश्रम में एक कुतिया ने पिल्ले दिये पिल्ले दिन भर आश्रम में घूमते रहते और जहाँ तहाँ टट्टी कर देते। गाँधीजी से एक नजदीकी सज्जन ने कहा-बापू पिल्लों को मरवा देना चाहिए टट्टी करके फर्श खराब कर देते हैं। मरवा देने की बात सुनते ही उनकी आँखों में आँसू आ गये और बोले वह कुतिया बोल नहीं सकती तो भी माँ है उसे बच्चों के मरवाये जाने का पता चल जाये तो मालूम है उसे कितना दुःख होगा। उन सज्जन को इससे आगे कुछ बोलते नहीं बन पड़ा।
(३) इब्राहिम लिंकन कार में बैठे संसद जा रहे थे। रास्ते में देखा एक सुअर का बच्चा कीचड़ में फँसा तड़फड़ा रहा है-कपड़े खराब होने की आशंका का भी ध्यान न देकर उन्होंने पहले सुअर के बच्चे को निकाला पीछे गंदे कपड़ों में ही पार्लियामेण्ट गये।
(४) लोगों ने बहुतेरा कहा-कुत्ता पागल है इसे मत छोड़ो काट लेगा पर मदनमोहन मालवीय की दयालुता थी-कि ये माने ही नहीं कुत्ता गुर्राता रहा और वे उसका घाव धोते रहे। घाव धोकर दवा लगा दी। कुत्ते को आराम पड़ा और सो गया। जब तक पूरी तरह अच्छा नहीं हो गया मालवीयजी उसकी दवादारू करते रहे।
(५) भगवान बुद्ध समाधि में थे कभी धूप सिर को तपाती तो कभी मेह ठिठुरन पैदा करता। यह देखकर सर्पराज मुचलिन्द ने बुद्ध के शरीर में तीन फेरे डाल कर उनके सिर पर छाया कर दी। एक गाँव वाला आया उसने यह दृश्य देखा तो डर कर भाग गया। समाधि खुली तो सर्पराज वहाँ से हट कर अपने बिल की ओर चल पड़े यह देखकर ग्रामीण ने पूछा-भगवान साँप तो जहरीला और गुस्से वाला जीव है आपको काटा नहीं इसने? बुद्ध हँसकर बोले-तात जो प्राणियों को भी आत्मा और मित्र-भाव से देखता है। उसका प्राणी भी अहित नहीं करते।
(६) बाज़ कबूतर से कहा-अरे कबूतर भाग जा इस डाली से देखता नहीं मैं कितना शक्तिशाली हूँ चाहूँ तो तुझे अभी मारकर खा जाऊँ। कबूतर बोला-लेकिन श्रीमान् जी इसमें आपकी क्या विशेषता रही। हर शक्तिशाली अपने से कमजोर को मार सकता है, किसी को जिन्दा करके दिखाओ तो जानूँ कि तुम शक्तिशाली हो। बाज़ को अपना मुँह छुपाना मुश्किल पड़ गया।
(७) मित्र ने गुलेल बना दी और अपने साथ ले गया चिड़ियों का शिकार करने। जैसे ही उसने एक चिड़िया पर निशाना साधा कि उसने शोर मचा लिया, चिड़िया उड़ गई। मित्र दिन भर हैरान रहा एक भी चिड़िया न मार सका। मित्रता तोड़ने की कसम दी जीवमात्र में आत्मा देखने वाले युवक ने मित्रता तोड़ ली पर जीव-हिंसा न होने दी। कितने अच्छे थे वह अल्बर्ट स्वाहत्जर।
(७७) विवाहों के आदर्श ऊँचे रखे जायें
प्रश्न ——
(१) विवाह क्या है? आजकल विवाह सम्बन्ध किन आधारों पर तय किये जाते हैं? (२) विवाह सम्बन्ध का सच्चा आधार क्या होना चाहिए? (३) गृहस्थ के सुख शान्ति की आधार शिला क्या है? (४) विवाहोत्सव कैसा होना चाहिए? विवाहोत्सव में होने वाले अपव्यय पर प्रकाश डालिये। (५) विवाहों की रूपेरखा किस तरह की बनानी चाहिए? (६) आभूषण क्यों आवश्यक हैं? (७) विवाह में लड़के व लड़की वालों की मनोभूमि कैसे होती है? (८) कृतज्ञ किसे होना चाहिए व क्यों? (९) आज के युवकों के क्या कर्तव्य हैं? (१०) हिन्दू समाज के संगठित न होने के प्रमुख कारण क्या है?
कथाएँ ——
(१) विश्व भारती महिला कॉलेज श्री नगर के प्राध्यापक श्री माखनलाल खरे और गुजरात की नेत्रहीन युवती कु० गणेशी का विवाह दिल्ली के मॉडल टाउन में नगर निगम के प्रमुख पार्षद श्री जय प्रकाश गोयल के निवास स्थान पर सादगी पूर्वक सम्पन्न हुआ। गणेशी ने शगुन में मिला धन अंध विद्यालय को दान कर दिया इस विवाह का अभिनन्दन किया गया जिसमें नगर के गणमान्य व्यक्ति सम्मिलित हुए और श्री खरे जी को हृदय से सराहा।
(२) निजामपुर के श्री राधिकाचरण ने अपने पिता और परिवार वालों की इच्छा पर उस समय पानी फेर दिया जब युवक ने स्पष्ट कह दिया कि वह किसी काली लड़की से ही शादी करेंगे। घर वाले दहेज के लालच में सौदा कर चुके थे, वह तोड़ना पड़ा। विवाह नगर के ही वकील कमलाकान्त की काली लड़की शशिकला के साथ सानन्द सम्पन्न हुआ।
(३) शाहजहाँपुर में अनोखा विवाह हुआ शालिग्राम की बटिया का ‘तुलसी’ के पौधे के साथ धूमधाम से विवाह हुआ। खूब पैसा खर्च हुआ और चढ़ौती भी चढ़ी। पढ़े लिखे लोगों ने कहा-क्या बुरा है हिन्दुओं में विवाह का आदर्श भी तो अब फेरा मात्र रह गया है चाहे वह बटिया का हो मनुष्य शरीरों का आदर्श जो कभी थे अब कहाँ रह गये।
(४) सुकन्या के पिता ने बहुत मना किया पर उसने वृद्ध च्यवन से ही शादी की और कहा विवाह शरीरों का नहीं आत्माओं का मिलन है मैं इस दृष्टि से विवाह कर रही हूँ कि लोक सेवक को सहयोग मिलेगा और मुझे आत्मज्ञान।
(५) ३० जनवरी ७१ के ग्वालियर यज्ञ में श्री भूदेव शर्मा का विवाह प्रभा शर्मा के साथ आदर्श रीति से सम्पन्न हुआ। विवाह की विशेषता यह थी कि प्रभा के दोनों पैर कटे हैं वह काष्ठ के पैरों से चीलती है। श्री भूदेव ने कहा मैं यह विवाह इस भावना से कर रहा हूँ कि प्रभा को सहारे की आवश्यकता है। प्रभा ने अपनी पति के चरण स्पर्श किये उस समय उपस्थित सभी लोगों की आँखों पर आँसू आ गये। श्री शर्मा को सबने पूरी-पूरी बधाई दी।
ऐसा ही एक विवाह बम्बई में कुमारी प्रभावती ने एक अपंग सैनिक अधिकारी के साथ किया। सैनिक अधिकारी पंकज जोशी सेना में युद्ध के समय सुरंग फट जाने से घायल हो गये थे। प्रभावती के हृदय में विद्यमान सेवा, सहानुभूति, स्नेह और सहयोग की सबने भूरि-भूरि प्रशंसा की।
(६) मेडागास्कर में युवक फिलिप्स और युवती एनन का विवाह हुआ। विवाह के कुछ ही दिन बाद अनबन रहने लगी। कुछ दिन पीछे एनन के बाबा उनको देखने आये। वह १० दिन उनके साथ रहे। बाबा को उनकी अनबन का पता न चल पाये। इसके लिये १० दिन दोनों एक दूसरे के प्रति नाटकीय प्रेम प्रदर्शन और समर्पण का भाव दिखाते रहे। वृद्ध ने चलते समय हार्दिक सन्तोष के साथ इन्हें इसी तरह सुखी रहने का आशीर्वाद दिया। १० दिन के परस्पर समर्पण ने कुछ ऐसा आनन्द दिया कि पति-पत्नी में पुनः प्रेम पैदा हो गया जो जीवन भर कभी नहीं टूटा।
(७) बोगोता (कोलम्बिया) में विवाह प्रशिक्षण के लिये विद्यालय खोला गया है जहाँ सुखी दाम्पत्य जीवन के नियमों का प्रशिक्षण दिया जाता है। यौन सम्बन्धों और शिशु पालन की भी शिक्षा दी जाती है। यहाँ से निकले स्नातकों के अधिकांश विवाह सफल होते हैं।
(७८) बाल विवाह एक अति घातक कुप्रथा
(१) बाल विवाह के आधार पर सिद्ध कीजिए कि हम अभी तक पिछड़े हुए हैं। शारदा एक्ट तथा दूसरे बाल विवाह विरोधी कानून क्यों प्रभाव हीन हैं। बाल विवाह में मानसिक एवं शारीरिक हानियाँ क्या है? (४) बाल विवाह से उत्पन्न सन्तान किस तरह की होती है। (५) बाल विवाह लड़की के लिए किस प्रकार का घातक सिद्ध हो सकता है। (६) बाल विवाह का मनोवैज्ञानिक प्रभाव लड़कियों पर किस प्रकार बुरा पड़ता है। (७) बड़ी आयु में लड़कियाँ दाम्पत्य जीवन के अनुरूप क्यों हो जाती हैं। (८) क्या छोटी आयु में विवाह कर देने से लड़कियाँ शीलवान बनी रह सकती हैं। (९) उस कारण को समझाओ जिसके कारण लड़कियों का विवाह छोटी उम्र में ही कर दिया जाता था।
कथाएँ ——
(१) भारतीय समाज में बाल विवाह जैसी हानि कारक परम्परा देखकर श्रीहरि विलास शारदा का मन करुणा से भर उठा। उन्होंने बाल विवाह के विरुद्ध क्रान्ति खड़ी कर दी। रूढ़िवादी पंडितों ने उनका बड़ा विरोध किया पर वे अन्ततः ‘‘शारदा एक्ट’’ पास कराने में सफल हुये। इस तरह बाल विवाह पर कानूनी रोक लग सकी।
(२) गुरु नानक को पता चला कि पड़ोस के गाँव का एक धनी बूढ़ा एक १४ वर्षीय कन्या से विवाह कर रहा है जब कि उसके कई स्त्रियाँ पहले भी थीं। मजे की बात तो यह कि गाँव का कोई भी व्यक्ति विरोध नहीं कर रहा था।
नानक उस गाँव में पहुँचे और तमाम लोगों को इकट्ठा कर उस धनी बूढ़े को भी बुलाया और सबके सामने बोले-क्या यह सब लोग मर गये हैं जो अपनी अर्थी उठवाने के लिये गरीब कन्या को खरीद रहा है। गाँव वाले विरोध में खड़े हो गये और उस मनचले बूढ़े का मनसूबे सफल नहीं होने दिया।
(३) भरतपुर की घटना है एक विवाह हो रहा था, लड़की बहुत छोटी थी। जब पाणिग्रहण के समय पुरोहित ने लड़के को कहा-लड़की का हाथ पकड़ो। वर महोदय ने जैसे ही लड़की का हाथ पकड़ा लड़की ने तमाचा मारा और बोली-अब की हाथ पकड़ा तो पटककर चढ़ बैठूँगी। अबोध बालिका के इस व्यवहार पर कुछ लोग हँस पड़े कुछ भीतर ही भीतर बड़े दुःखी हुये कि यह विवाह है या भारतीय समाज की छीछालेदार।
(४) प्रसिद्ध समाज सुधारक श्री कर्वे ने एक बार पढ़ा कि दुनियाँ में सबसे अधिक बाल विधवाएँ भारतवर्ष में ही हैं। उन्हें भारतवर्ष में प्रचलित बाल विवाहों का बड़ा दुःख हुआ और उसी समय इस कुप्रथा को सुधारने की प्रतिज्ञा की अपना सारा जीवन इसी में लगाकर उन्होंने देश में विवाहों और विधवाओं का जीवन सुधारा।
(५) मद्रास की एक तेरह वर्षीय लड़की को प्रसव के लिये अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर के पूछने पर मालूम हुआ कि उसका विवाह नौ वर्ष की अवस्था में ही हो गया था। घर की दुष्टा स्त्रियों ने उसे बलात् गृहस्थ के लिये विवश किया। लड़की प्रसव पीड़ा सहन न कर पाई उसका वहीं देहान्त हो गया। ऐसी न जाने कितनी आत्म वयस्क मृत्यु भारतवर्ष में बाल विवाह के कारण होती हैं।
(७९) खर्चीली शादियाँ हमें बेईमान और दरिद्र बनाती हैं
प्रश्न ——
(१) विवाहोत्सव के परम्परा प्राचीन काम में कैसी थी? (२) आजकल विवाहोत्सव कमर तोड़ भार क्यों कहा जाता है? (३) हमारे देशवासियों की औसत आय क्या है? (४) विवाहोन्माद से दोनों पक्षों को कैसे हानि होती हैं? (५) विवाह भार का सामना करने के लिए समाज के विभिन्न अंग किस-किस प्रकार की बेईमानी करते हैं? (६) यदि विवाह में कम खर्च किया जाय तो समाज को क्या लाभ होगा? (७) बढ़ी हुई आमदनी का लाभ क्यों नहीं मिल पाता है? (८) विवेकशीलता का तकाजा क्या है? (९) विवाह प्रथा में सुधार का प्रारम्भ कैसे किया जाय। युग की माँग क्या है? (१०) विवाहोत्सव की योजना के सही आधार क्या हैं?
कथाएँ ——
(१) दिल्ली की अदालत में एक गबन की केस आया। बयान के समय लोग आश्चर्य चकित रह गये जब अभियुक्त ने बिना झूठ बोले बता दिया-मैंने गबन किया है क्योंकि मुझे अपनी कन्या के विवाह के लिए दस हजार रुपये चाहिये थे। हिन्दू समाज इतना कृतघ्न है कि बिना रुपये लिये लड़कों के विवाह नहीं करता। दो सौ रुपये मासिक से घर खर्च मुश्किल से चलता है फिर विवाह के लिए पैसे कहाँ से लाता। अदालत में उपस्थित हिन्दुओं को आँखें नीची हो गईं।
(२) ऊधमपुर के राव रईस उमराव सिंह के चार बेटियाँ थीं। उनकी शादियों के धूम धड़ाके में सारी पकी-पकाई जायदाद बिक गई। आखिरी कन्या की शादी की तब वे सारी जायदाद बेचकर २० हजार के कर्जदार हो गये। अब वे एक फर्म में चपरासी की नौकरी कर रहे हैं।
(३) सहारनपुर के एक इंजीनियर के पिता ने उसकी शादी में १० हजार का दहेज लिया। लड़की वालों को आखिर तो शादी करनी ही थी, अपना एक मात्र घर बेचकर दहेज चुका दिया लड़का समझदार था विवाह हो गया तो सारा दहेज पिता को देकर बोला-पिताजी सम्हाल लीजिये सारे रुपये ठीक मिल गये न। पिता ने कहा-हाँ मिल गये अब चलो घर तो चलें। लड़के ने कहा-अब घर किस वास्ते जायें दस हजार में बिक गये अब यहीं रहेंगे। लड़की और इनके पिता की सेवा करेंगे, आपकी तो मेरा मूल्य मिल गया। पिता सिर पटककर लौट गया पर लड़का टस से मस न हुआ। विचारशील लोगों ने लड़के की प्रशंसा की और कहा-हिन्दू धर्म का कोण ऐसे ही दूर होगा।
(४) एक उपदेशक भाषण दे रहे थे लोगों को मिलावट नहीं करनी चाहिये, रिश्वत नहीं लेनी चाहिये? एक व्यक्ति खड़े होकर बोले-महाराज विवाहों में जो लम्बी रकमें माँगी जाती हैं वह कहाँ से पूरी करें? उपदेशक ने अनुभव किया आज लोगों को विवाहोन्माद से बचाना सबसे बड़ा उपदेश है सो उस दिन से वे उपदेश करने के बजाय समाज सुधार में जुट गये।
(५) लंदन से एक सज्जन अपने पुत्र का चूड़ाकर्म संस्कार कराने भारत आये। यहाँ से लौटकर गये तो उन पर १० हजार डालर का कर्ज हो गया। एक अँगरेज ने हँसकर कहा-जो संस्कार दीन और दरिद्र बनायें उनकी उपयोगिता क्या है? वह सज्जन बहुत लज्जित हुये और सोचने लगे हमें संस्कारों के बाह्य रूप की नहीं उनके आदर्शों की रक्षा करनी चाहिये।
(८०) बेटे वाले व्यर्थ ही घाटा और बदनामी न उठाएँ
प्रश्न ——
(१) दहेज तथा शादियों का असह्य अपव्यय समाज को अधःपतन की ओर किस तरह ले जा रहा है? (२) पहले शादियों पर अपव्यय होने के क्या कारण थे? (३) अब अपव्यय करने पर समाज हमसे किस प्रकार का बर्ताव करता है? (४) विवाहोन्माद में होने वाले इस सारे अपव्यय का दोष बेटे वाले के सर पर क्यों थोपा जा रहा है? (५) हर बेटे वाला दहेज लेने के बाद भी घाटे में किस प्रकार रहता है? (६) यह आप किस तरह कह सकते हैं कि बेटे वाला दया का पात्र है? (७) इस आदर्शवादी विवाह पद्धति में बेटे वाले को किस तरह रोल अदा करना होगा? (८) बेटी वाले को किस प्रकार का बर्ताव करना चाहिए?
कथाएँ ——
(१) अमरेली (गुजरात) के भीलड़ी ग्राम में एक शादी हो रही थी। चौथी भँवर चल रही थी कि लड़के वालों ने दहेज की रकम माँगी। लड़की वालों ने असमर्थता प्रकट की तो वर के पिता तलवार लेकर हाथ पाई पर उतर आये। विवाह मंडप युद्ध अखाड़ा बन गया। विवाह किसी प्रकार हो गया पर दोनों सम्बन्धी एक दूसरे के हमदर्द बनने की अपेक्षा शत्रु बन गये।
(२) राजेन्द्रनगर में आई एक बरात में दो सौ से भी बड़ी कुमुक देखकर लड़की वाले घबरा गये किसी तरह एक दिन खिला दिया पर बराती तीन दिन ठहरने के लिए अड़ गये इस पर झगड़ा हो गया। बड़ी मुश्किल से झगड़ा शान्त हुआ था कि कुछ बराती ग्रामवासियों की लड़कियों से शरारत कर बैठे फलस्वरूप उन्हें पीटकर भगाया गया। गाँव वालों ने निश्चय किया है कि कोई विवाह हो बरात में १० आदमियों से अधिक न ले चले जायें और न ही बुलायें जायें।
(३) नई दिल्ली के बिलिंङ्गडन अस्पताल में २४ वर्षीया शान्तिदेवी का एसिड पी लेने के कारण देहान्त हो गया। शान्तिदेवी ने बयान देते हुए बताया कि उसके पति को विवाह में स्कूटर नहीं मिला था इसी कारण वह विवाह के बाद से ही उस पर अत्याचार करता आ रहा था। विवाह रजिन्दरनगर के महाराज कृष्ण से हुआ। पुलिस मामले की छानबीन कर रही थी।
इसी तरह पत्नी को जिन्दा जलाने का एक मामला आगरा सेशन जज की अदालत में फतेहाबाद से आया है। दहेज कम मिलने से जली भुनी सास ने उसे धोखे से गिरा दिये और आग लगा दी। बहू की अस्पताल में ही मृत्यु हो गई।
(४) सचेण्ठी थाना (कानपुर) के पीराजपुर ग्राम की मुन्नी देवी नामक कन्या का विवाह दहेज न दे सकने के कारण एक ऐसे परिवार में हुआ जहाँ सास उसे बहुत कष्ट देती थी। लड़की ने रस्सी बाँधकर आत्म हत्या कर ली कानपुर के ही मंडा नामक ग्राम की १९ वर्षीय जनकदुलारी ने इसलिये आत्महत्या करली क्योंकि दहेज कम मिलने के कारण उसके पति सास और ससुर उसकी पिटाई करते आ रहे थे। लड़की अपने घर वालों से बराबर शिकायत करती आ रहीं थी। बाद में उसने तेल छिड़ककर आत्महत्या कर ली। पुलिस ने अधजली लाश बरामद की।
(५) अम्बाला की एक शादी में वर महोदय के साथ रेडियो सिंगर लड़कियाँ भी आई उन्होंने लड़के को बताया कि लड़की कोई खास अच्छी नहीं। रूप के दीवाने वर भाग खड़े हुए। पिता उन्हें किसी तरह पकड़कर लाये तो लड़की ने रूप के सौदाई लड़के से विवाह करने से इनकार कर दिया। बारात वापस लौट गई।
(६) बाराबंकी से एक बारात कानपुर आई। वर का पिता १० हजार का दहेज पहले ही ले चुका था। विवाह के समय से ही वर महोदय ट्रांजिस्टर और मोटर साइकिल की माँग कर रहे थे। कलेवा के समय वे ऐसे अड़े कि भोजन ही नहीं किया। रातभर चकल्लस रही और उसका अन्त तब हुआ जब लड़की ने ऐसे लड़के के साथ जाने से ही इनकार कर दिया। अध्यापकी करके उसने अपना जीवन निर्वाह करना और आजीवन कुँआरी रहने का व्रत ले लिया।
(७) गोलावें (बिहार) में आई एक बारात में हुई आतिशबाजी ने एक युवक लड़के के प्राण ले लिये। ७-८ अन्य व्यक्ति घायल हो गये। गाँव वालों ने आतिशबाजी फिर कभी न बुलाने का निश्चय किया। आतिशबाजी लड़के वाले अपनी शान के लिये लाये थे।
(८) दरियागंज के श्री किशनलाल ने अपने पुत्र सुधारे की शादी में १० हजार दहेज लिया पर यह दहेज उस समय भारी पड़ा जब लड़की वालों ने दुगुने मूल्य के जेवर आतिशबाजी और वेश्या नृत्य की माँग की। विवाह का मजा बारातियों ने और गाँव वालों ने लूटा जब कि दोनों परिवार कर्ज ग्रस्त हो गये।
(८१) उच्च शिक्षित कन्या की विवाह समस्या का समाधान
प्रश्न ——
(१) मानव जाति का उज्ज्वल भविष्य नारी का स्तर ऊँचा उठाये जाने पर निर्भर है? सिद्ध कीजिये? (२) आजकल लड़कियों को शिक्षा दिलवाना क्यों आवश्यक है? (३) आज का युवक अपनी पत्नी को किस प्रकार धोखा दे सकता है। इसका कारण क्या है? (४) महँगाई के इस जमाने में नारी का क्या कर्तव्य हो जाता है? (५) उच्च शिक्षा कन्या के विवाह न होने के दो कारण बताइये? (६) उच्च शिक्षित कन्या को फिर किस तरह का जीवन शादी के बाद व्यतीत करना पड़ता है? (७) नारी के नेतृत्व से समाज का क्या कल्याण होगा? (८) शिक्षित नारी के विवाह की कठिनाइयों को दूर करने के लिए किन-किन धारणाओं को बदलना चाहिए? (९) शिक्षित लड़की खुद ही दहेज किस प्रकार से है?
कथाएँ ——
(१) ताजकुंडिया की एम. ए. पास कन्या ने कक्षा १० पास अध्यापक से विवाह कर लिया। अपने समकक्ष या अधिक पढ़े लिखे लड़के मिलते तो बहुत थे पर शिक्षित होने पर भी वे दहेज और विवाह की कुरीतियों से मुक्त न थे। तभी युवती ने यह निर्णय लेकर एक मिसाल कायम की कि कम पढ़े युवक खराब नहीं। कमला नामक इस लड़की ने स्वयं भी अध्यापन किया और अपने पति को अब अपने समकक्ष पढ़ा भी लिया।
(२) हजरत कलाँ के प्रिन्सिपल श्री गिरधारीलाल जी के सामने अपनी एम. ए, कन्या कृष्णा के सम्बन्ध की चिन्ता की। पढ़ाने के कारण कन्या सयानी हो गई थी यह समस्या उनके मित्र राजेश ने कम आयु के किन्तु अत्यन्त स्वस्थ लड़का ढूँढ़कर हल कर दी। वर-वधू दोनों अति सुखी है।
(३) वेमेतरा (दुर्ग) के इण्टर पास श्री प्रभाकर कृष्ण ठोके इन्टरमीडिएट ने बी. ए. पास कन्या कला से आदर्श विवाह किया। आदर्श में एक आदर्श यह भी है कि कन्या अध्यापिका थी और लड़के से अच्छा वेतन पाती थी। उन्होंने लड़के की अधिक योग्यता की मूढ़ मान्यता को ध्वस्त कर दिया।
(४) मथुरा की एक अध्यापिका ने अपने एक सम्बन्धी अनपढ़ युवक से विवाह कर लिया। विवाह में अनेक गणमान्य व्यक्ति सम्मिलित हुए और वर-वधू को आशीर्वाद देते हुये कहा-ऐसे आदर्श ही वैवाहिक कुरीतियों को तोड़ेंगे। लड़का घर की देख भाल करता है और अध्यापिका जीविकोपार्जन करती हैं। शाम को युवक को पढ़ाने का भी नियम बनाया है।
(८२) विधुर तथा विधवाएँ समान न्याय के अधिकारी
प्रश्न ——
(१) सिद्ध करो नर-नारी भगवान् की दो भुजाएँ हैं? (२) क्या नारी भी कर्तव्य तथा अधिकार में पुरुषों के समान नहीं? (३) पति-पत्नी के प्रति वफादार कैसे रह सकता है? (४) हिमालय के जानसर बाबर की प्रथा का वर्णन करो उपयोगिता बताओ? (५) नारी को हीन मानने के क्या दुष्परिणाम हुए? (६) विधवा को समान न्याय किस प्रकार मिल सकता है? (७) विधवा विवाह के लिये क्या आवश्यक है? (८) विधवाओं के साथ क्या उदारता बरती जानी चाहिए?
कथाएँ ——
(१) समाज सुधारक महर्षि कर्वे से एक व्यक्ति ने कहा-विधवा विवाह नहीं करना चाहिये क्योंकि एक बार विवाह से स्त्री अपवित्र हो जाती हैं। कर्वे ने पूछा-पुरुष में ऐसी क्या बात है जो कई बार विवाह करने पर भी अपवित्र नहीं होता? उन सज्जन को कोई उत्तर देते न बन पड़ा।
(२) महात्मा गाँधी जी से एक गाँव के कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं थे कि विधवा विवाह होने चाहिये वे गाँधीजी से मिले और तरह-तरह के शास्त्रीय प्रमाण देने लगे-गाँधीजी बोले-मेरे पास सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आज के अश्लील वातावरण में जब पुरुष संयमित नहीं रह सकता तो बेचारी स्त्रियों से ही उसकी अपेक्षा क्यों की जाये। वे दुराचारियों बने इससे अच्छा है उनका पुनः विवाह हो हो जाये।
(३) अकोला के एक डॉक्टर एल. टी. शाह ने नलिनी शाह से विधुर विवाह किया। विशेषता यह थी कि दोनों की ही पहले विवाह के तीन-तीन बच्चे हैं। सभी बच्चे हिल-मिलकर रहते हैं।
(४) एक पंडित जी बोले-विधवा विवाह अशास्त्रीय है। एक प्रगति शील युवक ने पूछा-महाराज यह तो बताओ राम कौन थे। पण्डित जी बोले-इतना भी नहीं जानते वे तो अवतारी पुरुष भगवान थे। युवक बोला-सुना है उन्होंने तारा की शादी सुग्रीव और मन्दोदरी की विभीषण से करादी थी क्या यह विधवा विवाह नहीं थे? पंडित जी को कुछ बोलते नहीं बन रहा था।
(५) एक सर्वेक्षण के अनुसार सन् १९१५ से लेकर अब तक भारतवर्ष में विधवा विवाह में १५, १८, ३५, ३५ और ९६ के अनुपात से वृद्धि हुई। इससे पता चलता है कि लोग अब इस बुराई को समझ चुके हैं और विधवाओं के विवाह का औचित्य मानने लगे हैं।
(६) धनबाद के श्री ज्वालाप्रसाद जी अग्रवाल ने जाति भाइयों का विरोध ताक में रख दिया और अपनी पुत्री सुशीला का पुनर्विवाह एक पढ़े लिखे युवक के साथ कर दिया। शिक्षित व्यक्तियों ने श्री अग्रवाल जी और युवक सुरेश कुमार को बड़ी प्रशंसा की। सुशीला २१ वर्ष की आयु में विधवा हो गई उसे कोई संतान नहीं थी।
(७) परसदेपुर (फतेहपुर) के श्री कन्हैयालाल नामक एम. ए. पास युवक को दहेज में लम्बी धनराशि मिल रही थी तिस पर भी उन्होंने यह कह दिया कि कुँवारी लड़की से तो सभी शादी कर लेते हैं मैं किसी असह्य विधवा से क्यों न शादी करूँ, उन्होंने गाँव की की एक विधवा से जाति-पाँति के बन्धन तोड़कर शादी कर ली। शिक्षित व्यक्तियों ने उनके इस साहस की बड़ी प्रशंसा की।
(८३) मनस्वी शूरवीर-विवाहोन्माद से जूझें
प्रश्न ——
(१) बदले हुए जमाने में विवाह पर अधिक खर्च करना अनुचित है-सिद्ध करें? (२) दहेज की प्रथा नले अभिभावकों को बेईमान बना दिया है क्यों? (३) विवाह की कुरीतियों पर प्रकाश डालें तथा उनसे होने वाली हानियाँ दर्शाइए? (४) समय की पुकार क्या है? (५) शौर्य एवं साहस के साथ विवाहोन्माद के विरुद्ध आन्दोलन चलाना क्यों आवश्यक है। (६) ‘‘अनीति के विरुद्ध भगवान की भी अवज्ञा की जा सकती है’’ इससे क्या समझते हो? (७) विवाह के सम्बन्ध में युवकों के क्या कर्तव्य हैं? (८) भारतीय समाज में विवाह की प्रथा में क्या-क्या संशोधन होना आवश्यक है।
प्रश्न ——
(१) धुरियावाँ (उ०प्र०) के सेठ मुकुन्दीलाल तत्परतापूर्वक लड़की की तलाश कर रहे थे लोगों ने समझा वह अपने लड़के के लिये सम्बन्ध खोज रहे हैं। जब सम्बन्ध तय हो गया और वे अपने लिये कपड़े आदि बनवाने लगे तब पता चला कि उन्हें बुढ़ापे में शादी का शौक चर्राया है। गाँव के युवकों ने मिलकर उनके पुत्र श्रीकृष्ण गुप्ता को राजी कर लिया। पिता घर में तैयारी कर रहा था तब पुत्र की भाँवरें पड़ रही थी। बुड्ढा मन मसोस कर रह गया।
(२) गणेश शंकर विद्यार्थी पार्क कानपुर में औरैया और इटावा से आई दो बरातें इसलिये बैरंग लौटी कि धन के अभाव में पिता ने १२ और १४ वर्ष की लड़कियों का विवाह ५० और ५२ वर्ष के बूढ़ों से तैयार किया था। मुहल्ले वालों ने विरोध किया उसी समय दो युवक आगे आये उनकी वैदिक रीति से कन्याओं की शादी कर दी गई।
(३) हाथरस में १२ वर्ष की एक कन्या सुरजो का विवाह एक अधेड़ बूढ़े के साथ तय हुआ। बारात आई तो मुहल्ले वालों ने झगड़ा कर दिया। लड़की ने मुहल्ले वालों का साथ दिया फलस्वरूप पुलिस ने बूढ़े वर और उसके दुष्ट बारातियों को वापस लौटा दिया।
(४) दुमका (बिहार) के एक मध्यम परिवार की कन्या ने शराबी वर से विवाह करने से इनकार कर दिया। लड़का विवाह मंडप पर आया उस समय उसके मुँह से दुर्गन्ध आ रही थी पाँव लड़खड़ा रहे थे। लड़की ने कहा-जो विवाह मंडप में भी शराब पीकर आ सकता है वह कब क्या नहीं कर सकता। यह कहकर उसने विवाह रद्द कर दिया। बारात बैरंग लौटी।
(५) रामगढ़ में एक बूढ़ा दूसरे विवाह की तैयारी कर रहा था। तीन बच्चे पहले से ही हैं बच्चों को पता चला तो उन्होंने सत्याग्रह कर दिया। खाना खाने से इनकार कर दिया। लाचार होकर बूढ़े को अपनी हविश छोड़नी पड़ी।
(६) लेडी हार्डिग्स कॉलेज दिल्ली की प्रिन्सिपल डॉ० जी. के. कैम्पवेल का बयान है कि हिन्दुओं में बाल-विवाह क ही फल है कि अधिकांश बच्चे आपरेशन होकर निकाले जाते हैं। बाल विधवाओं की संख्या भी भारत में ही सर्वाधिक है?
(७) डॉ० ई. एस. डगलस का कथन है मैंने एक १२ वर्षीय लड़की को गर्भावस्था में देखा जो प्रसव के समय पागल हो गई यह सब उसके अभिभावकों के कारण हुआ जो बाल विवाह को परम्परा मानते हैं।
(८) गाँव के पास का लड़का स्वस्थ पढ़ा लिख केवल इसलिये रद्दी कर दिया गया कि उसकी कुंडली नहीं मिलती थी फलस्वरूप जनूथर के सरपंच पं० श्रीरामगोपाल ने कुंडली मिलायी लड़के से १०० मील की दूरी पर शादी धेनुगढ़ी में की। विवाह होकर बारात लौट रही थी रास्ते में लू लग जाने से घर पहुँचते-पहुँचते लड़के की मृत्यु को गई। घर वाले अब कुंडली को कोसते हैं कभी कुंडली बनाने वाले पंडितों को।
(९) कटक के एक विवाह में पिता को भारी अपमान तब सहना पड़ा जब कि उसके लड़के श्री कृष्णधर मिश्रा ने पिता द्वारा दहेज और नेगठेग वसूल करने के हर प्रयत्न को विफल कर दिया। लड़के के हठ और तर्क के आगे लालची पिता की एक न चली।
(८४) बिना खर्च विवाहों का प्रचण्ड आन्दोलन चल पड़े
प्रश्न ——
(१) राष्ट्र में प्रतिवर्ष विवाहों पर कितना खर्च होता है? (२) कैसे कह सकते हैं कि हमारी विवेक बुद्धि का दिवाला निकल गया है? (३) श्वास लेने वाले और किसे कहा जा सकता है? (४) आदर्श विवाह किसे कहते हैं? (५) सत्याग्रही स्वयं सेवक सेना से क्या समझते हो? (६) विवाहोन्माद के प्रतिरोध के लिये नयी पीढ़ी को क्या करना चाहिए? (७) सामूहिक विवाह करने से क्या लाभ है? (८) उपजातियाँ कैसे बनीं? दहेज से बचने के लिये क्या किया जाय? (९) युग निर्माण योजना द्वारा इस सम्बन्ध में किये जाने वाले कार्यों पर प्रकरण डालिये?
कथाएँ ——
(१) कोटा में नामदेव सम्प्रदाय के लोग प्रतिवर्ष सामूहिक विवाह करते हअैं जिनमें किसी प्रकार का लेन-देन नहीं होता। नामदेव समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति इकट्ठा होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। विवाह देखने के लिये बहुत दूर तक से लोग आते हैं।
(२) विटसून त्यौहार पर बर्लिन (पूर्वी जर्मनी) में ३६४ सामूहिक विवाह गिरजाघरों में सम्पन्न हुए ऐसे विवाह ईस्टर और क्रिसमस त्यौहारों पर भी सम्पन्न होते हैं। त्यौहारों पर सम्पन्न हुए विवाह शत-प्रतिशत सफल माने जाते हैं।
(३) तराटा (उज्जैन) के गौड़ मालवीय ब्राह्मण बलराम गोवर्धन तिवारी ने चितापद (इंदौर) के श्री केशव पटेल की पौत्री राधादेवी के साथ विवाह किया जिसमें दहेज जाति भोज आदि कुछ नहीं हुआ। बारात में वर के अतिरिक्त उसके दो मित्र दो भाई पिताजी नाई और पंडित कुल ७ व्यक्ति ही सम्मिलित हुए लड़की मिडिल पास है लड़का बैंक में सर्विस करता है।
(४) गोंदा (महाराष्ट्र) की एक कीर्तन मंडली ने केवल ऐसे ही भजन बनाने और गाने का नियम बनाया है जिसमें विवाह सम्बन्धी कुरीतियों पर प्रकाश पड़ता है और लोगों को आदर्श विवाहों की प्रेरणा मिलती है इसी तरह अन्य कुरीतियों के सुधार के भी भजन गाते हैं पर और किसी तरह के गीत यह लोग नहीं गाते।
(५) मुक्तसर (पंजाब) की श्रीमती रणधीरकौर और उनके पति ने विवाह में मिला दहेज और भेंट रक्षा कोष में दान कर देने का आदर्श उपस्थित कर लोगों का हृदय जीत लिया।
(६) पटियाला के एक युवक की दिल्ली में सगाई की बात चल रही थी लड़की वाले गरीब थे उन्होंने दहेज न माँगने की विनती की पर न तो लड़के के माता-पिता माने न सम्बन्धी लोग। लड़के ने समझाया तो उससे भी बिगड़ उठे। तब लड़के ने साहस किया। खुद ही दूल्हा खुद ही बराती बनकर दिल्ली गया। और लड़की ब्याह लाया। घरवालों ने मनसूबे धरे के धरे रह गये।
(७) सौराठ (मधुवनी) में सात दिन में सात हजार विवाह तय हुए। सौराठ सभा में प्रतिवर्ष लाखों मैथिली ब्राह्मण एक आम के घने बगीचे में इकट्ठा होते हैं और वहीं विवाह वार्ता करके विवाह तय कर लेते हैं इससे लड़का ढूँढ़ने में जो भाग दौड़ करनी पड़ती है लोग उससे बच जाते हैं इच्छित वर भी मिल जाते हैं।
(८) सुमेरगढ़ के श्री रतनलाल अग्रवाल ने निर्धारित तिथि से एक सप्ताह पूर्व ही लड़के की शादी के निमन्त्रण भेजकर सबको आश्चर्य में डाल दिया। जब लोगों को मालूम हुआ कि मुहूर्त प्रथा इसीलिये तोड़ी गई कि उस दिन बाजे पालकी के दाम बहुत बढ़ जाते हैं क्योंकि अन्धाधुन्ध शादियाँ होती हैं तो लोगों ने उनकी बड़ी सराहना की।
(९) नाइजीरिया में दहेज लड़की वाले लेते हैं वह इतनी अधिक होती है कि किसी-किसी विवाह के इच्छुक को ५-५ वर्ष की कमाई भेंट करनी पड़ती है। पिछले दिनों वहाँ बीबियाँ द्वारा दहेज प्रथा के विरुद्ध आन्दोलन चलाया गया और सरकार से दहेज प्रथा रद्द करने की माँग हजारों नागरिकों ने की, उन्होंने इस प्रथा की भारतीयों से तुलना करते हुए उसे अर्थ व्यवस्था का घातक ठहराया।
(८५) आततायी उद्दंडता का डटकर मुकाबला किया जाए
प्रश्न ——
(१) अपराध की वृद्धि का दुष्परिणाम लिखो? (२) व्यक्तिगत सदाचार और सामाजिक कर्तव्य क्यों आवश्यक हैं? (३) सिद्ध करो अपराध व्यक्ति के लिये स्वयं घातक होते हैं? (४) अपने देश की उन्नति नहीं हो रही है क्यों? (५) मनुष्य को सदाचार से किस तरह प्रशिक्षित किया जाय? (६) सदाचार और समाज सुधार के रचनात्मक कार्यक्रम बताओ। (७) सिद्ध करो अनीति करने की तरह अनीति सहना भी पाप है? (८) अपराध क्यों बढ़ रहे हैं? (९) उन्हें कैसे रोका जाना चाहिए?
कथाएँ ——
(१) पाण्डव उन दिनों राजा विराट् के यहाँ छद्म वेष से रह रहे थे। विराट् के साले कीचक की कुदृष्टि द्रौपदी पर पड़ी और वह उनका शील भंग करने पर उतारू हो गया।
द्रौपदी ने अपने सभी पतियों से कहा पर सब इस बात के लिये डरते रहे कहीं ऐसा न हो कि भेद खुल जाये और फिर १४ वर्ष बन में रहना पड़े। पर जब भीम ने यह खबर पाई तो वे किसी भी संकट की चिन्ता किये बिना बोले-मृत्यु का भय हो तो भी दुष्टता सहन नहीं की जानी चाहिए। यह कह कर एक दिन उन्होंने कीचक का वध कर ही तो डाला।
(२) एक छोटी सी रियासत की राजकुमारी चंचलकुमारी पर औरंगजेब की कुदृष्टि पड़ गई। उसने चंचलकुमारी के पिता को धमकाया यदि चंचलकुमारी का विवाह नहीं किया तो कुचल कर रख दिया जायेगा।
जागीदार ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया पर वह आत्मरक्षा के लिये चिन्तित हो उठे। यह समाचार मेवाड़ के राणा राजसिंह ने सुना तो अपनी सेना जागीरदार की रक्षा के लिये भेज दी। अपनी हानि उठाकर भी निर्बल की रक्षा का जो आदर्श उन्होंने रखा उससे राजपूत शासकों को बड़ी प्रेरणा मिली।
(३) गुरु तेग बहादुर को औरंगजेब ने धोखे से मरवा डाला और उनकी लाश खुली सड़क पर फिकवादी सिख उठा ने ले जायें इसलिये वहाँ पहरा बैठा दिया गया। यह खबर गुरुगोविन्द सिंह ने सुनी तो उन्होंने लाश को किसी भी कीमत पर वापस लाने का निश्चय किया। उनकी सेना के दो सिपाही तैयार हुए एक था बूढ़ा सूबेदार दूसरा उसका पुत्र। दोनों एक गाड़ी लेकर दिल्ली पहुँचे लाश के पास पहुँचे तो पिता ने कटारी निकाली और इससे पहले कि पुत्र रोके खुद को मार ली और कहा-लाश न देखकर सैनिक पीछा करेंगे तुम मुझे गुरु की लाश के स्थान पर लिटा दो और उनका शव ले जाओ। पुत्र ने ऐसा ही किया।
(४) हंस और हंसिनी उड़ते जा रहे थे तभी उन्हें नीचे ठंड से सिकुड़ता हुआ एक सर्प दिखाई दिया। हंस को दया आ गई उसने उसकी रक्षा करनी चाहिए इस पर मादा ने समझाया अत्याचारी की रक्षा और सहयोग पाप है तुम पाप को पोषण मत दो। क्या पता वह तुम्हारा ही अन्त कर दे।
हंस ने एक न सुनी वह नीचे उतरा और सर्प को अपने पंखों से ढक लिया। हवा रुक जाने से सर्प के शरीर में थोड़ी गर्मी आ गई उसने रेंगना शुरू कर दिया पर चारों तरफ पंख देखते ही उसे गुस्सा आ गया और उसने जीवन रक्षक हंस को ही डस लिया, हंस तड़प-तड़प कर वहीं मर गया पर अपने पीछे लोगों को चेतावनी देता गया-दुष्टों पर दया करना भी पाप है।
(५) बिच्छू बोला-तुम मुझे पार पहुँचा दो डंक नहीं मारूँगा। कछुए ने कहा-अच्छा और बिच्छू को पीठ पर बैठाकर पानी में तैर चला। अभी कुछ ही दूर चला था कि बिच्छू ने डंक मार दिया कछुए ने पूछा-यह क्या किया? बिच्छू बोला-यह तो मेरा स्वभाव है। कछुए ने कहा-अच्छा हुआ मैंने अपने को सुरक्षित किया हुआ है, पर तेरे आततायी पन का दंड तो मिलना ही चाहिए यह कहकर उसने डुबकी मार ली और बिच्छू पानी में डूब कर मर गया।
(६) दो मित्रों ने ईख की खेती की। एक दिन बँटवारे की बात आई तो अंगोला ईख जिसमें कम रस पड़ता है भोले आदमी के हिस्से पड़ी। उसकी स्त्री ने समझाया-देखो तुम्हारी जैसी सिधाई से ही दूसरे लोग बुराई करने का साहस करते हैं। उस भोले आदमी ने स्त्री की सीख न मानी। दूसरे वर्ष गेहूँ की खेती हुई। चालाक मित्र ने उसमें भी गेहूँ-गेहूँ तो खुद ले लिया और भूसा उन भोले मित्र के पल्ले बाँध दिया।
(७) एक अध्यापक कुछ दिन के लिये कहीं जा रहे थे उन्होंने अपना एक लोहे का बक्सा पड़ोसी को सौंपते हुए कहा-आपके यहाँ सुरक्षित रहेगा और लौटकर आऊँगा तो ले लूँगा। पड़ोसी की नियत खराब हो गई। लौटकर अध्यापक ने अपना सामान माँगा तो पड़ोसी बोल-बक्सा चूहे खा गये। अध्यापक बिना कुछ कहे लौट आया। उसी के स्कूल में पड़ोसी का लड़का पढ़ता था। उस दिन उसने लड़के को अपने घर में बन्द कर लिया। शाम तक लड़का घर न पहुँचा तो पड़ोसी पूछने आया-मास्टर साहब ने बताया-लड़के को चील उठा ले गई। पड़ोसी बोला-चील कहीं लड़के को ले जा सकती है। अध्यापक ने उत्तर दिया-क्या जाने भाई इस जमाने में तो चूहे लोहे का बक्स खा जाते हैं। पड़ोसी हार मान गया। उसने बक्सा लौटा दिया मास्टर साहब ने लड़का।
(८६) धर्मतंत्र को प्रगतिशील बनने दिया जाय
प्रश्न ——
(१) राष्ट्रोद्धार का प्रभावकारी माध्यम क्या हो सकता है राजनीति या धर्म? कारण सहित बताइये? (२) गाँधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम में धर्म को आधार कैसे बनाया? (३) देश की वर्तमान प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये? (४) क्या राष्ट्र में विचार क्रांति की आवश्यकता है यदि है तो क्यों? (५) भारत में साधु संन्यासियों की संख्या का सदुपयोग कैसे किया जा सकता है? (६) भारत में धार्मिक कार्यों पर होने वाले व्यय पर प्रकाश डालते हुए उसके सदुपयोग की योजना प्रस्तुत करें? (७) मन्दिर मठों की सम्पत्ति का सदुपयोग कैसे किया जा सकता है? (८) धर्म के नाम पर पाखण्ड एवं शोषण से जनता को कैसे मुक्त किया जा सकता है? (९) राजनीति से अधिक महत्त्व धर्म नीति का क्यों है? (१०) धर्म के सच्चे स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
प्रश्न ——
मअद नेक और ईश्वर भक्त राजकुमार थे। ताजपोशी के समय पुरोहित ने प्रश्न किया-प्रजा का न्याय किस आधार पर करोगे मअद ने उत्तर दिया अपनी धर्म पुस्तक कुरान शरीफ के आधार पर। पुरोहित ने पूछा-पर यदि वह बात कुरान में न हो तब-तब अन्य विचारशील लोगों से पूछ कर निर्णय दूँगा। पर यदि धर्माचार्य और विचार शील लोग भी पक्षपात करें तब? तब मैं अपने विवेक से ही न्याय करूँगा मअद ने उत्तर दिया। राज पुरोहित ने ताजपोशी करते हुए कहा-राजकुमार तब तुम सच्चे धर्मनिष्ठ हो।
(२) परिव्राजक महानंद ने जितनी अधिक साधनायें की सिद्धियाँ और लोक श्रद्धा भी उतनी ही मिली पर शान्ति-शान्ति न जाने क्यों अब तक न मिल पाई। एक दिन से गाँव की ओर चल पड़े एक स्थान पर रोग से पीड़ित एक वृद्ध कराह रहा था। महानंद ने कमण्डल से जल निकाल कर उसका घाव धोया दवाई और मरहम पट्टी की। वृद्ध को आराम मिला नींद आ गई। आज की जैसी शान्ति महानंद को किसी दिन नहीं मिली इसलिये उन्होंने अनुभव किया कि सेवा ही सबसे बड़ी सिद्धि है।
(३) बोधिसत्व तालाब के किनारे बैठे पुष्पों की शोभा और उनकी सुगंध का आनन्द ले रहे थे। एक लड़की आई और बोली-तुम चोर हो?’’ बोधिसत्व चौंक कर बोले-पुत्री मैंने तो किसी का कुछ नहीं चुराया? चुराया क्यों नहीं, दुनियाँ की शान्ति और आनन्द चुराकर यहाँ बैठे हो, संसार पीड़ाओं में जल रहा है क्या तुम्हारा यह कर्तव्य नहीं कि तुम जाकर भटके लोगों को भी ज्ञान का प्रकाश दो। अभी यह वार्ता चल रही थी कि एक व्यक्ति आया और उन फूलों को बुरी तरह उजाड़ कर चला गया। बोधिसत्व ने कहा-बेटी तुमने मुझे इतना धिक्कारा पर इस व्यक्ति को कुछ न कहा। लड़की बोली-महात्मन् पाप और आसक्ति में डूबे हुए को धिक्कारना पाप को और बढ़ाना है। यह काम तुम धर्म-तंत्र वालों का है कि उन्हें ज्ञान देकर ठीक करो। बोधिसत्व को अपनी गलती मालूम पड़ी और वे समाज सेवा के लिए चल पड़े।
(४) मेरी पत्नी उस समय सो रही थी, एका-एक बच्चा चीखा तो मुझे लगा अब पत्नी जाग पड़ेगी और मेरा घर से निकलना कठिन हो जायेगा पर पत्नी ने बच्चे को छाती से लगाया बच्चा चुप हो गया। मैं चुपचाप निकल आया महात्मन् अब संसार की मोह माया में फँसना नहीं चाहता, मुझे भगवान् के दर्शन कराने का विधान बताइये। एक विरक्त ने साधु से कहा। साधु बोले-मूर्ख दो भगवान् तो तेरे घर में ही बैठे हैं जिन्हें तू छोड़ आया, जा जब तक तू उनकी सेवा नहीं करेगा, तब तक तेरा उद्धार नहीं। विरक्त ने मानव-आत्मा में विश्वात्मा के दर्शन को समझा और घर लौट आया।
(५) एक साधु अपने शिष्यों के साथ एक मेले में जा रहे थे। एक स्थान पर बैठे कुछ बाबा माला फेर रहे थे, उन्हें देखकर साधु हँस पड़े, आगे एक तपस्वी शीर्षासन लगाये खड़े थे, उन्हें देखकर साधु फिर हँसे, और आगे एक पंडित जी भागवत् कह रहे थे उनके आगे चेलों की जमात बैठी थी उन्हें भी देखकर साधु फिर खिल-खिलाकर हँसे। उससे आगे एक कैम्प में एक डॉक्टर एक रोगी की परिचर्या में लगे थे। यह देखकर साधु की आँखों में आँसू आ गये। आश्रम लौटने पर एक शिष्य ने पहले तीन स्थानों पर हँसने और चौथे में रोने का कारण पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया-बेटा आज माला, आसन, प्राणायाम और कथा-भागवत् को तो धर्म समझकर अधिकांश लोग ढोंग कर रहे हैं यह देखकर हँसी आ गई जबकि भगवान् का काम करने वाला एक ही डॉक्टर दीखा, यह देखकर दुःख हुआ कि लोग धर्म के वास्तविक अर्थ को न जाने कब समझेंगे। सच्चा धर्म संसार की सेवा और उसे सुधारना है। जप-तप नहीं।
(८७) साधु-ब्राह्मण अपना कर्तव्य और दायित्व समझें
प्रश्न ——
(१) भारतवर्ष में धर्मजीवियों की संख्या कितनी है? (२) धर्म जीवियों के कर्तव्य क्या हैं? (३) प्राचीनकाल के साधु-ब्राह्मणों की आज के साधु-ब्राह्मणों से तुलना करो? (४) लोक-अनुदान का अधिकार किसे है और क्यों? (५) साधु-ब्राह्मणों में फैली बुराइयाँ बताओ? (६) लोक-मंगल में अभिरुचि नहीं वे साधु ब्राह्मण क्या करें? (७) साधु-ब्राह्मण समाजोत्थान और देश की प्रगति में किस प्रकार सहायक हो सकते हैं।
कथाएँ ——
(१) राजकुमारी वासवदत्ता के पिता गौतम बुद्ध के पास जाकर बोले-भगवन् रूप शील और गुणों से आपके योग्य है, उसे पत्नी रूप में स्वीकार करें। भगवान् बुद्ध ने कहा-तात गिरे हुए समाज की शान्ति सुख और व्यवस्था लौटाने के लिए मैंने गृह और यशोधरा जैसी धर्मपत्नी का परित्याग किया क्या अब मुझे अपने व्रत से डिग जाना चाहिये? बुद्ध द्वारा प्रस्ताव ठुकरा दिये जाने पर वासवदत्ता बहुत रुष्ट हुई और जब कौशाम्बी नरेश उदयन की पटरानी हुई तो बुद्ध का बहुत तिरस्कार किया। अपने राज्य के नागरिकों को उनके खिलाफ भड़का दिया तो भी उन्होंने धर्म-सेवा से मुँह नहीं मोड़ा।
(२) एक बार द्रोणाचार्य से किसी ने पूछा-महाराज आप तो ब्राह्मण हैं ब्राह्मण का धर्म ज्ञान अर्जित करना, ज्ञान देकर समाज को सुव्यवस्थित रखना है सो ता आप करते ही हैं पर जो ज्ञान से नहीं मानता उसे कैसे ठीक करते हैं। द्रोणाचार्य ने उत्तर दिया ——
अग्रता चतुरो वेदा पृष्ठता सशरं धनुः।
इदं ब्राह्मण इदं क्षात्र शास्त्रादपि शराद पि।।
अर्थात् आगे से में मैं ब्राह्मण हूँ मुँह से ज्ञान देता हूँ किन्तु पीठ में मैंने धनुष कण भी धारण किया है अर्थात् जो लोग ज्ञान से मानते हैं उन्हें ज्ञान से ठीक करता हूँ जो ज्ञान से नहीं मानते उनके प्रति क्षात्र धर्म का पालन करता हूँ उन्हें फिर शस्त्र से ठिकाने लगाता हूँ।
(३) लोम मान्य तिलक ने राष्ट्रीय विचारधारा का एक स्कूल खोला उसमें कुल ३०) मासिक पर अध्यापन करने लगे। एक दिन एक सम्बन्धी ने कहा-इतने कम रुपयों में तो आप मरने के बाद दाह संस्कार के लिये भी पैसे नहीं बचा सकेंगे? तिलक ने हँसकर कहा-ब्राह्मण का काम समाज को निष्काम भाव से शिक्षित, और सदाचारी बनाने का है उसके निर्वाह की चिन्ता समाज करे। समाज चाहेगा तो शव दाह के लिये लकड़ियाँ दे देगा या फिर ऐसे ही बहा देगा तो क्या हर्ज है।
(४) पत्थर धार में लुढ़कता आ रहा था किनारों ने कहा-अरे इधर आ कुछ क्षण विश्राम कर ले किन्तु पत्थर चलता ही रहा। टकराता, संघर्ष करता पत्थर कुछ दिन पीछे घिस-घिस कर चिकना हो गया। एक दिन एक ब्राह्मण आया और उसे हृदय से लगाते हुए बोला-तात ब्राह्मण को तप की प्रेरणा देने वाले तुम साक्षात् भगवान् हो उस दिन से पत्थर की शालीग्राम रूप में पूजा होने लगी।
(५) श्री महादेव देसाई को पता चला कि गोधरा एक ऐसा गाँव है जिसके नागरिकों में झगड़ा तो क्या कभी फूट और वैमनस्य भी नहीं हुआ, उस गाँव में कोई अभावग्रस्त भी नहीं है। पूछने पर पता चला यह सब सन्त पुरुषोत्तम सेवकराम के प्रताप के कारण ही है। श्री देसाई एक दिन उनसे मिलने गये। सन्त ने देसाई का हार्दिक स्वागत किया उन्हें अपने हाथ से स्नान कराया, धोती धोई और प्रेमपूर्वक सारा गाँव दिखाया। महादेव ने कहा-आप जैसे साधु संत हर गाँव में हो जाते तो देश का भाग्य ही बदल जाता।
(६) साधु ने ब्रह्मचारी शिष्य से पूछा-बेटा जब तुम्हारा मित्र गंगाजी में डूबने वालों को बचा रहा था तब तुम क्या कर रहे थे? मैं नियम पालन कर रहा था-गुरुदेव वह समय मेरे जप का था जपकर रहा था। शिष्य की बात सुनकर साधु बड़े दुःखी हुए बोले-बेटा जिसने पीड़ितों की सेवा से जप को बड़ा माना उसने पूजा के मर्म को नहीं समझा ऐसा जानना चाहिये।
(७) साधु भगवान के ध्यान में बैठे थे तभी एक व्यक्ति ने उन पर पीछे से हथियार चलाकर घायल कर दिया और वहाँ से भाग निकला। कुछ लोगों ने दौड़कर उसे पकड़ा और मारने-पीटते साधु के पास लाये? साधु ने देखते ही कहा-अरे इसे क्यों मारते हो भाई। लोगों ने बताया-इसी ने तो आपको मारा है। साधु ने कहा ऐसे लोगों को ही प्यार करना और उन्हें सच्चा रास्ता दिखाना साधुओं का कर्तव्य है क्या तुम यह चाहते है कि मैं अपने धर्म का पालन न करूँ।
(८) राजा ने एक साधु को दरबार में आने का आग्रह किया। साधु ने सोचा कि मेरे प्रतिदिन दरबार में जाने से लोग यही सोचेंगे अब इसकी भगवान् पर श्रद्धा नहीं यह लोभी हो गया अतएव वह अपने मुँह में कालिख पोत कर राजा के पास पहुँचा। रोजा ने पूछा-आपने मुँह क्यों काला किया? साधु ने कहा-लोग मुझे कलंकित करें इससे अच्छा था मैं ही अपने आपको कलंकित कर लूँ ताकि साधु-वेष तो कलंकित होने से बच जाय। राजा साधु पर बड़ा प्रसन्न हुआ और उस दिन से उनके उपदेश सुनने कुटिया पर ही जाने लगा।
(९) महात्मा कैयट भाष्य लिखा करते उनकी पत्नी लकड़ी काट लातीं उसी से दोनों का गुजारा चलता। इस बात का पता राजा को चला तो वह बहुत सा धन लेकर कैयट के पास पहुँचे। महात्मा ने वह धन अस्वीकार करते हुए कहा-राजन्! धन पाकर हम लोग धन की उपासना में लग जायेंगे फिर ज्ञान जैसी अमूल्य सम्पत्ति का आदर कौन करेगा? राजा ने उन्हें प्रणाम किया और यह कह कर कि ‘‘तुम जैसे ब्राह्मणों से ही यह देश धन्य है—’’ वापस लौट आया।
(८८) मन्दिर, आस्तिकता और सत्प्रवृत्तियाँ जगाने में लगे
प्रश्न ——
(१) भगवान के मन्दिरों की स्थापना करने का मुख्य प्रयोजन क्या है? (२) आस्तिकता से क्या तात्पर्य होता है? (३) आस्तिक मनुष्य समाज को किस तरह लाभ पहुँचाता है? (४) मन्दिरों के निर्माण में इतनी अधिक धन सम्पत्ति लगाने का कारण क्या हो सकता है? (५) मन्दिरों में कथा प्रवचन किस हद तक सत्प्रवृत्तियों को जगाने में सहायक हैं? (६) मन्दिरों के पुजारी किस तरह के व्यक्ति होते हैं? (७) आज के मन्दिरों के रूप कार्यों पर प्रकाश डालिए? (८) हमारे मन्दिरों में लगी सम्पत्ति तथा व्यक्तियों के क्या पूजा और आरती के सिवाय भी कोई कर्तव्य हैं?
कथाएँ ——
(१) एक बार कबीर ने प्रसंग वश अपने एक अनुयायी से कहा मैं अभी एक मन्दिर से होकर आ रहा हूँ। वह सज्जन बहुत विस्मित हुए बोले-महात्मन् आप तो मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं, फिर मंदिर कैसे चले गये आप तो अभी अमुक व्यक्ति के घर से आ रहे हैं। कबीर हँसकर बोले-हाँ हाँ व घर ही मंदिर है-जहाँ नित्य ईश्वर भेजन होता हो, जिस घर के लोग स्वाध्याय सत्संग करते हों, बच्चों को अच्छा बनने की शिक्षा देते हों वह घर मंदिर ही कहे जाने योग्य हैं।
(२) एक बार गाँधी से एक सज्जन ने पूछा-बापू मंदिर की परिभाषा क्या है-बापू बोले-वह स्थान जहाँ से आस्तिकता, उपासना, श्रद्धा, अनुशासन, प्रेम, निर्भयता का पाठ पढ़ाया जाता हो-मंदिर ही है भले ही वहाँ कोई मूर्ति हो अथवा नहीं।
(३) एक बार सिकन्दर ने एक ऐसे गाँव पर चढ़ाई कर दी जहाँ के सभी आदमी युद्ध में मारे गये थे। स्त्रियाँ ही स्त्रियाँ थीं। सिकन्दर भूखा था तो उसने भोजन माँगा स्त्रियों ने उसके सामने सोना, चाँदी इकट्ठा करके पटक दिया। सिकन्दर बोला-मुझे सोना नहीं रोटी चाहिए। स्त्रियाँ बोली-रोटियाँ चाहिये थीं तो यूनान से क्यों आये तुम्हें सोना चाहिये सो ले जाओ।
(४) मूर्ति को प्रणाम करने लोग दूर-दूर से आते फलस्वरूप उसे अहंकार हो गया, उसने किसी से अच्छी तरह बात करना भी बन्द कर दिया। यह देखकर आकाश बोला-बावरी मूर्ति यह लोग तुझे नहीं अपनी श्रद्धा को प्रणाम करने यहाँ आते हैं। तुझे प्रणाम लेना है तो उठ और इन सब के अन्तःकरण में ज्ञान के दीप जला।
(५) दानवीर सेठ जुगल किशोर बिरला की मृत्यु होने लगी तो उनकी आँखों में आँसू आ गये। पास ही खड़े एक विश्वास पात्र ने पूछा-सेठ जी अपने जीवन भर धर्म किया हजारों मन्दिर बनवाये आपको तो प्रसन्न होना चाहिये दुःख क्यों कर रहे हो? बिरला जी आँसुओं के बीच बोले-मैंने मंदिर बनवाये पर उनमें जन-जागरण की प्रवृत्तियाँ न चल सकीं मुझे इसी बात का दुःख है।
(६) मदनमोहन मालवीय जी एक धनी सेठ के पास हिन्दू विश्वविद्यालय के लिये दान लेने गये सेठ जी बोले कोई मन्दिर बनवाना हो तो हम से चन्दा ले लें-मालवीय जी बोलें-मंदिर पहले ही इतने बने हैं कि वे यदि अपनी सारी ताकत लोगों का मनोबल चरित्र और नैतिक बल जगाने में लगा दें तो सारा विश्व जाग जायें। अब मंदिरों की नहीं ज्ञान मन्दिरों की आवश्यकता है। सेठ जी मालवीय जी के कथन से बहुत प्रभावित हुए और यथेष्ट चन्दा दिया।
(७) पुजारी नियत समय पूजा करने आता और आरती करते-करते भाव विह्वल हो जाता घर आते ही वह अपनी पत्नी बच्चों के प्रति कर्कश व्यवहार करने लगता। एक दिन उसका नन्हा वाला बच्चा भी साथ लगा चला आया-पुजारी स्मृति कर रहा था हे प्रभु तुम सबसे प्यार करने वाले, सब पर करुणा लुटाने वाले हो, अभी वह इतना ही कह पाया था कि बच्चा बोल उठा-पिता जिस भगवान के पास इतने दिन रहने पर भी आप करुणा और प्यार करना न सीख सकें उस भगवान के होने न होने से क्या लाभ? पुजारी को अपनी भूल मालूम पड़ गई और वह उस दिन से आत्म निरीक्षण व आत्म सुधार में लग गया।
(८९) त्यौहार और संस्कार प्रेरणा पद्धति से मनाए जायें
प्रश्न ——
(१) प्रमुख नव पर्वों के नाम बताइये? (२) प्रत्येक पर्व की विशेषता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिये? (३) प्रमुख १० संस्कारों के नाम बताइये? (४) प्रत्येक संस्कार की उपादेयता पर प्रकाश डालिए? (५) पर्व और त्यौहार मनाने के पीछे हमारा प्रयोजन क्या होता है? (६) पर्वोत्सव एक वरदान हैं सिद्ध कीजिये? (७) पर्व और त्यौहार समाज शिक्षण की आवश्यकता किस प्रकार पूरी कर सकते हैं? (८) किस प्रकार कोई चतुर वक्ता कुरीतियों एवं विकृतियों का उन्मूलन करा सकता है?
कथाएँ ——
(१) आज शस्त्र पूजा क्यों होती है? एक ग्रामीण युवक ने पुरोहित से प्रश्न किया इसलिये कि मनुष्य को शक्तिवान होना चाहिए और आवश्यकता पड़े तो असुरता के दमन के लिए शस्त्र प्रहार की क्षमता भी। युवक के मन में बात बैठ गई। शत्रुओं पर विजय की कामना रखने वाले सरदार वल्लभ भाई ही वह युवक थे जिन्होंने अपने साहस से सभी त्यौहारों के आदर्श उतारने की प्रेरणा ग्रहण कर सकें तो भारतीय विश्व में सर्वोपरि हो जाएँ।
(२) एक स्त्री का पुंसवन संस्कार कराते हुए-आचार्य ने बताया-सती मदालसा ने अपने पुत्रों को गर्भ से ही धर्म नीति और राजनीति सिखला दी थी-अर्जुन अपनी गर्भवती पत्नी सुभद्रा को चक्रव्यूह वेध सुना रहे थे जितनी देर वे जागती रहीं उतनी सारी कथा गर्भस्थ शिशु ने सुनी और चक्रव्यूह वेध सीख लिया यही बालक अभिमन्यु था जिसने १४ वर्ष की आयु में अकेले आठ महारथियों से युद्ध चक्रव्यूह भेदन किया। यदि सभी माताएँ इसी तरह श्रेष्ठ जीवन जिएँ तो सन्तान को सुयोग्य बना सकती हैं-इस संस्कार का यही उद्देश्य है।
(३) घर के सभी लोग गंगा दशहरे का व्रत कर रहे हैं। यह सुनकर महात्मा को कुछ संदेह हुआ उन्होंने पूछा-बेटा घर में आज बन क्या रहा है, हलुआ, पकौड़ी, पाग, कोफ्ता, साबूदाने की खीर, बरफी और-लड़का अभी आगे और बताता तभी महात्मा ने बीच में काटकर कहा-बस बेटा! समझ गया तुम्हारे घर त्यौहार का अर्थ क्या है? ऐसे त्यौहार से तो बिना त्यौहार अच्छा जिसमें लोग उल्टा शिक्षण ग्रहण कर रहे हों।’’
(४) घर में चहल-पहल चल रही थी। चंचल पौत्र नें लोकमान्य से पूछा-बाबा आज क्या बात है अम्माजी, दादाजी सभी पूजा कर रही हैं-आज स्त्रियों का त्यौहार है तीजा-लोकमान्य ने समझाया आज सधवा स्त्रियाँ अपने पतियों की कल्याण कामना करती हैं और कुमारियाँ अच्छे पति की प्राप्ति के लिए व्रत। लड़का बोला मैं भी तीजा व्रत करूँगा बाबा! तिलक बोले बेटा! तू कोई स्त्री है? हूँ तो लड़का पर मुझे भी तो अच्छी स्त्री चाहिए। तिलक ने बच्चे को स्नेह से गले लगाते हुए कहा-बेटा स्त्रियों को इस एक त्यौहार ने ही पवित्र कर दिया भारतीय नारी कभी खराब नहीं होती यह तो यहाँ के मनुष्य ही हैं। जो अनेक व्रत और त्यौहार मना कर भी नहीं सुधरते।
(५) श्री बीज लगाकर जप कर रहे बुद्ध शिष्य से गुरु ने पूछा-क्या कर रहे हो बेटा! शिष्य ने कहा-गुरुदेव आज दीपावली है। लक्ष्मी का पर्व है। आज के जप से लक्ष्मी दौड़ी चली आयेगी। महात्मा बोले-बेटा सो तो ठीक है पर यह दीपक जल रहे हैं यह तो कह रहे हैं पहले अपना तन, मन प्रकाशवान् बनाओ। पवित्र करो और फिर परिश्रम करो तब लक्ष्मी आयेगी। इनका भी तो मतलब समझो।
(६) एक अँगरेज ने गाँधीजी से पूछा आपके यहाँ इतने अधिक व्रत त्यौहार मनाये जाते हैं फिर भी लोग सुखी क्यों नहीं? गाँधीजी ने पूछा-लोग त्यौहार नहीं मानते लकीर पीटते हैं। हमारे पर्व या त्यौहार तो कोई एक भी अच्छी तरह मना ले तो उसका जीवन धन्य हो जाये और समाज का भी बेड़ा पार हो जाये।
(९०) जन्म दिवस और विवाह दिवस मनाए जायें
प्रश्न ——
(१) इसे आप कैसे कह सकते हैं कि एक सामान्य मनुष्य भी अवतारी पुरुष बन सकता है? (२) मनुष्य शरीर पाकर जो काम हमें करने चाहिए वे हम किस कारण नहीं कर पा रहे हैं? (३) माया किसे कहते हैं? तथा ‘माया’ के चंगुल में फँसा व्यक्ति किस प्रकार व्यतीत करता है? (५) जीवन मिला है तो उसका लाभ किस प्रकार लेना चाहिए? (६) जन्म दिन से बढ़कर और कोई त्यौहार व्यक्तिगत जीवन में क्यों नहीं है? (७) जन्म दिन किस प्रकार मनाया जाना चाहिए? (८) जन्म दिन का वास्तविक लाभ किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है? (९) युग निर्माण योजना के अनुसार विवाह दिन किस प्रकार मनाया जा सकता है?
कथाएँ ——
(१) पिता को भगवान् कृष्ण की पूजा करते देखकर बालक ने पूछा-पिताजी कृष्ण को क्यों पूजना चाहिए? पिता ने बेटे से कहा-बेटा आज कृष्ण-जन्माष्टमी अर्थात् कृष्ण का जन्म दिन है। उनका जन्म दिवस मनाने का अर्थ है उनके ज्ञान, गुण, शक्ति और ईश्वरीय प्रकाश को हम भी अपने अन्दर धारण करें? पुत्र ने पिता की बातें अच्छी तरह समझ लीं और अपने जीवन में उन गुणों को धारण करने वाला यही बालक गीता का पण्डित लोकमान्य तिलक हुआ।
(२) शरीर से दुबले शिष्य को हनुमान को पूजते और तिलक करते देखकर गुरु ने पूछा-बेटा हनुमान जी को क्यों पूज रहे हो? शिष्य बोला-भगवन् आज इनका जन्म दिन है आशीर्वाद देंगे तो स्वस्थ हो जायेंगे। गुरु बोले-बेटा स्वस्थ होने के लिये हनुमान को पूजना ही काफी नहीं हनुमान बनना और हनुमान जैसे कर्म भी करना चाहिए तभी उनका जन्म दिवस मनाना सार्थक होगा।
(३) एक दिन दुःखी मनुष्य बैठा भगवान को कोस रहा था, कह रहा था भगवान ने किसी को को इतना दिया कि रखने को जगह नहीं, किसी को इतना कम कि दो वक्त भोजन के भी लाले। महात्मा टालस्टाय उसकी बात सुन रहे थे बोले-बेटा अपना एक हाथ एक हजार में बेचेगा क्या? वह युवक कुछ न बोला, टालस्टाय बोले-दूसरा हाथ भी काटकर देदे तो बीस हजार, आँखें देदे तो चालीस हजार, पाँव भी देदे तो साथ हजार, जीभ, कान, नाक, के भी दस-दस हजार ले ले? युवक बोला-महात्मन् आप पागल हुये हैं रुपयों के लिये शरीर कटवा दूँ? टालस्टाय बोले-नहीं बेटा! में यह कब कह रहा हूँ मैं तो समझा रहा हूँ कि एक लाख का शरीर लेकर भी तुम दुर्भाग्य का रोना रो रहे हो।
(४) एक मनुष्य बोला-भगवान ने शेर को कितना साहसी और शक्तिशाली बनाया, बल सारा हाथी को दे दिया, दूध गाय को, फल पौधों को, मनुष्य को उसने क्या दिया? गुरु बोले-बेटा वह बुद्धि, वह ज्ञान, जिसके उपयोग से वह शेर और हाथी से भी बलवान है उठ अपनी बुद्धि का उपयोग कर और अपना जीवन सार्थक बना?
(५) माँ पूजन आदि की तैयारी कर रही थी। बच्चे ने पूछा-माँ क्या कर रही है। तेरे जन्म दिन के पूजन की तैयारी? जन्म दिन के पूजन का क्या मतलब है माँ बच्चे ने पूछा। माँ बोली-बेटा आज से तू एक वर्ष और बूढ़ा हो गया आज तेरा विवेक जगायेंगे कि तूने अब तक कितना समय समझदारी से बिताया कितना बेखबरी से जन्म दिन मनाने का यही उद्देश्य है।
(६) शिष्य ने शिकायत की गुरुवर आप कहते हैं इन्द्रियों की निरर्थकता याद रखें पर जब वासनाएँ प्रबल हो उठती हैं तो सारा दर्शन का ज्ञान धरा रखा रह जाता है गुरु ने कहा-हाँ वत्स! संसार का स्वरूप कुछ ऐसा ही है। आज से तू शाम को सोया कर तो यह भावना किया कर ‘‘मर रहा हूँ’’ प्रातःकाल उठाकर तो यह मान कर मेरा नया जन्म हो रहा है? मुझे इसे समझदारी और विवेक से जीना चाहिए। मृत्यु को याद रहने और उद्देश्य पूर्ण जीवन जीने से वह शिष्य विकार मुक्त-संत एकनाथ हो गया।
(७) बूढ़ा हो रहा था कह रहा था घर वाले तंग करते हैं, शरीर काम नहीं देता, भगवान भी सहायता नहीं करता? पास से एक संत गुजर रहे थे बोले-यह बातें तब याद नहीं की जब बालक था। युवक हुआ तब रंगरेलियों के आगे न बुढ़ापा याद रहा न भगवान तीसरी अवस्था में उचित था गृहस्थी के झंझट कम करके अपना परलोक सुधारना और समाज सेवा का पुण्य लूटना तब भी मायाजाल में पड़ा रहा। अब जब सब कुछ हाथ से निकल गया तब क्यों रो रहा है।
(८) महात्मा कबीर के पास एक युवक दम्पत्ति पहुँचे और बोले महात्मन् हम दोनों में परस्पर प्रेम और एकता न होने से खींचतान बनी रहती हैं? कुछ समझ में नहीं आता गृहस्थ सुख कैसे पायें। कबीर बोले विवाह के समय जो प्रतिज्ञायें लिखकर घर की दीवारों में टाँग लो ताकि कर्तव्य याद रहें अभी तुम कर्तव्य का ध्यान नहीं रखते अधिकारों तक सीमित हो। कबीर की सिखावन मानने वाले युवक दम्पत्ति का जीवन निहाल हो गया।
(९) इंग्लैण्ड के धन कुबेर डोरिस और उसकी लिली में प्रगाढ़ प्रेम था। वर्ष में एक बार उनका जन्म-दिन आता तो वे एक-दूसरे को सर्वोत्तम भेंट दिया करते? दैवयोग से व्यापार में घाटा शुरू हुआ और यहाँ तक हुआ कि डोरिस दाने-दाने को मोहताज हो गया। फिर विवाह की वर्षगाँठ आई। पति-पत्नी दिन भर उपहार की खोज करते रहे। कुछ न मिला खाली हाथ, दोनों घर लौटे तो सोच रहे थे कैसे मिलें आँखें गीली किये आमने-सामने हुये। डोरिस ने लिली को हृदय से लगाकर कहा-लिली जब तक हमारे हृदय में प्रेम है किसी और उपहार की चिन्ता क्यों करें? वे गरीबी में भी प्रेम का सुख पाते हुए जिये।
(१०) दिल्ली के युवक दम्पत्ति भरतकुमार एम. काम. और सुधा बी. ए. के पाँच वर्ष अत्यन्त कलह में बीते। एक दिन वे गायत्री तपोभूमि आये। उनका विवाह का दिवसोत्सव सम्पन्न कराया गया। भूली हुई प्रतिज्ञायें याद आईं। कर्तव्य पालन का भाव जाग गया और तब पति-पत्नी में वह प्रगाढ़ प्रेम हुआ कि मुहल्ले वाले दाँतों तले उँगली दबा गये।
(९१) गायत्री और यज्ञ भारतीय धर्म संस्कृति के माता-पिता
प्रश्न ——
(१) गायत्री और यज्ञ इन दोनों का भारतीय संस्कृति के साथ क्या नाता है? (२) शास्त्रकारों ने गायत्री जी के कितने मुख बताये हैं? तथा इनके लाभ प्राप्त करने की क्षमता किसमें है? (३) गायत्री महामन्त्र की उपासना करके मनुष्य क्या लाभ प्राप्त कर सकता है? (४) गायत्री की प्रतिमा माता के रूप में बनाकर क्या प्रतिपादित किया जाता है? (५) हमें अपने परिवार को किस प्रकार की आदत डालनी चाहिये? (६) निराकार गायत्री की उपासना करने वाले को वह किस प्रकार से करनी पड़ती है? (७) यज्ञ से मनुष्य को क्या प्रेरणाएँ ग्रहण करनी चाहिए।
कथाएँ ——
(१) महर्षि विश्वामित्र गायत्री की शोध कर रहे थे उन्होंने देखा यह सारा संसार ही सूर्य की चेतना से चेतन है सो वे सूर्य का चिन्तन-मनन करने लगे। सूर्य की शक्ति प्रदायिनी किरणों ने शरीर के मल विकार दूर कर दिये। तो उनकी प्राण बुद्धि निर्मल हो गई। एक दिन वे ध्यान में इतने लीन हो गये कि उनकी चेतना सूर्य चेतना से एकाकार हो गई। विश्वामित्र दृष्टा हो गये। गङ्गा दशहरा का शुभ दिन उस दिन-से महर्षि ने अपना सारा जीवन ही गायत्री महाविद्या के प्रसार में लगा दिया।
(२) महात्मा आनंद स्वामी से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया महात्मन् आप कहते हैं सूर्य चेतन है इसका क्या प्रमाण? गायत्री उपासना से आत्म विकास किस प्रकार होता है।
प्रमाण? आनंद स्वामी बोले सूर्य के न रहने अर्थात् रात होते ही मूर्छा अर्थात् नींद आने लगती है। वैज्ञानिक कहते हैं सूर्य समाप्त हो जाये तो सौर मण्डल से जीवन समाप्त हो जाये। चेतन से चेतन को जोड़कर आत्म विकास वैसे ही होता है जैसे कोई नहर से नाली निकालकर तालाब को भी पानी से भर ले।
(३) महर्षि पाराशर ने व्यासदेव ने पूछा भगवन्! गायत्री को आयु, प्राण, बल, बुद्धि और प्रज्ञा प्रदान करने वाली कहा जाता है सो क्यों? पाराशर ने पुत्र की जिज्ञासाएँ शांत करते हुए कहा वत्स! प्राण-प्रकाश उष्णता और विद्युत रूपी संहति है, इसी के न रहने से शरीर निष्क्रिय हो जाता है और अधिकता से बौद्धिक एवं आत्मिक विकास गायत्री उपासना से उसका देवता यही तीन वस्तुएँ देकर प्राण का विकास करता है।
(४) पाण्डवों ने मरणोन्मुख भीष्म पितामह से प्रश्न किया-वह देव कौन सा है जिसमें समस्त देवता समाहित हों? भीष्म बोले-आद्यशक्ति गायत्री! गायत्री की उपासना न कर किसी और देव को पूजता है वह ऐसा ही है जो अपने घर में छिपे खजाने को नहीं जानता और बाहर धन की खोज में भटकता फिरता है।
(५) मदनमोहन मालवीय जी के पास एक व्यक्ति आया और बोला-महाराज मेरे माता-पिता कोई नहीं हैं। अनाथ ब्राह्मण हूँ कुछ कृपा कीजिये। मालवीय जी बोले-ब्राह्मण की माता गायत्री-यज्ञ पिता, जब तक यह देव माता-पिता हैं तब उसे साँसारिक माता-पिता की चिन्ता नहीं करनी चाहिये। वह व्यक्ति गायत्री उपासना करने लगा और निहाल हो गया।
(६) प्रजापति ब्रह्माजी ने मनुष्य को उत्पन्न किया। मनुष्य ने अपना सारा जीवन दुःख कष्ट और अभावों से घिरा देखा तो उसने पितामह विधाता से शिकायत की-भगवन् इस संसार में असहाय छोड़ें गये हम मनुष्यों की रख और पोषण और करेगा-पितामह बोले यज्ञ-तात यज्ञ द्वारा तुम देवताओं को आहुतियाँ प्रदान करना संतुष्ट हुए देवता तुम्हें धन सम्पत्ति बल और ऐश्वर्य से भर देंगे। और सच ही जब तक यह देश यज्ञ करता रहा धन-धान्य की कमी कभी नहीं रही।
(७) एक परीक्षण किया गया। १२ शीशियाँ अन्न, दूध, माँस आदि से भरी गई। ६ एक कमरे में रखी गई ६ दूसरे में वहाँ से जो काफी दूर। एक कमरे को ज्यों का त्यों रखा गया दूसरे में हवन किया जाता रहा। पाया गया कि जिस कमरे में हवन नहीं होता था उसमें रखी शीशियों का खाद्य शीघ्र सड़ने लगा और जल्दी बेकार हो गया।
(८) फ्रांस के वैज्ञानिक डॉ० टिलवटी मद्रास के सेनेटरी कमिशनर डॉ० करालकिंग डॉ० टाटलिट, फ्रांस के डॉ० हेफकिन जिन्होंने चेचक के टीके का आविष्कार किया था-हवन पर प्रयोग किया और बताया कि अग्नि में विविध औषधियाँ लाने से क्षय चेचक तथा दूसरे अनेक रोगों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। (यज्ञ चिकित्सा पेज १९९५ डॉ० फुन्दनलाल एम० डी०)।
(९२) गायत्री यज्ञ आन्दोलन एक महान रचनात्मक अभियान
प्रश्न ——
(१) ‘यज्ञ’ शब्द का व्यापक प्रयोजन ‘गायत्री यज्ञ’ से किस प्रकार जुड़ा है? (२) क्या गायत्री और यज्ञ इन दोनों के समन्वय से हो परिपूर्ण मानवता का उद्भव हो सकता है? (३) गायत्री यज्ञ आन्दोलन किस तरह से पुराने और वर्तमान समय के यज्ञों में समानता ला रहा है? (४) यज्ञ की महिमा को बतलाइए? (५) यज्ञ शब्द का क्या अर्थ होता है? (६) यज्ञीय जीवन को अपनाने पर मानव महान् कैसे बन सकता है? (७) गायत्री यज्ञ आन्दोलन सामाजिक जीवन को यज्ञीय जीवन के अनुरूप ढालने में प्रयत्नशील है? किस तरह? (८) क्या गायत्री यज्ञ आन्दोलन अधिक दृष्टि से भी कम खर्चीला है? किस तरह? (९) नर और नारी समान गायत्री यज्ञ आन्दोलन से किस प्रकार लाभ प्राप्त कर सकते हैं?
कथाएँ ——
(१) अश्वमेध समाप्त कर बैठे महाराज युधिष्ठिर कुछ चिन्तित से थे। ज्ञानी शुकदेव ने चिन्ता कारण पूछा तो उन्होंने बताया-तात कुछ दिन में लोग यज्ञ करना छोड़ देंगे तब वायु मण्डल धूम्र विकारों से भर जाएगा उससे लोगों के मन दूषित होकर पाप कर्मों में लिप्त हो जायेंगे यही सोचकर दुःखी हो रहा हूँ। उससे बचाव का कोई उपाय नहीं है भगवन्। सहदेव ने पूछा-है के विस्तार से ही लोगों के मन स्वच्छ होंगे पर उस समय हम पाँच मिलकर भी वह काम पूरा न कर सकेंगे इसलिये मुझे अनेक अंशों में अवतार लेना पड़ेगा और जगह-जगह यज्ञों का आन्दोलन करना पड़ेगा।
(२) संसार के कल्याण की चिंता से भगवान कल्कि महेन्द्र पर्वत पर अपने गुरु परशुराम के पास विराजमान् थे। उन्हें चिन्तित देखकर परशुराम ने पूछा-भगवन् आप आनन्द के भी आनन्द हैं फिर चिन्ता का हेतु क्या है? निष्कलंक प्रभु ने उत्तर दिया देव! आनन्द स्वरूप होकर भी मैं संसार के हित के लिए दुःखी रहता हूँ। समझ नहीं पाता संसार का दुःखों से उद्धार कैसे करूँ? परशुराम ने हँसकर कहा-आप संसार में जाकर यज्ञ करायें यज्ञ से संस्कार शुद्ध होंगे आप बाजपेय यज्ञ करायें उससे लोगों की बुद्धि में अध्यात्म का उदय होगा तब फिर अश्वमेध करना उससे सारी दुनियाँ का कायाकल्प होगा। कल्कि बड़े प्रसन्न हुए और यज्ञ आन्दोलन की इच्छा लेकर मथुरा नगरी की ओर चल पड़े।
(३) एक बार महर्षि दयानन्द ने प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द से प्रश्न किया ऐसा कोई उपाय है जिससे संसार के सभी लोग रोग मुक्त और स्वस्थ रखे जा सकें दंडी स्वामी ने उत्तर दिया-यज्ञ यज्ञ से ही संसार में सुख-शांति आयेगी और उसी से लोग स्वस्थ होंगे यज्ञ से ही मनों का संस्कार होता है उस दिन से महर्षि गायत्री यज्ञों के प्रचार में फिर लग गये।
(४) स्वामी सत्यदेव विद्यालंकार के पास एक सज्जन आये और अख़बार दिखाते हुए बोले-देखो आज कल सारा संसार ही वायु प्रदूषण से चिन्तित है और अब तो समुद्र का जल भी प्रदूषित हो चला। स्वामी जी हँसे और बोले-आखिर अब तो लोग यज्ञ की महत्ता समझेंगे। उन्होंने उक्त सज्जन से कहा आप भी जाइये और गायत्री यज्ञों का प्रचार कीजिए।
(५) रूस के वैज्ञानिक डॉ० शिरोविच प्रयोग कर रहे हैं कि किस वस्तु के धुएँ से कौन से लाभ होते हैं।
(६) ‘‘कैमिकल प्रापरटीज’’ की सम्मति है कि जायभल, जावित्री, सूखा चंदन, इलायची आदि जलाने से उनका उपयोग भाग वायुभूत हो जाता है। उनके परमाणु ११०००० से लेकर १०००००००० सेंटीमीटर व्यास तक सूक्ष्म हो जाते हैं। यह किसी भी सूक्ष्म से सूक्ष्म वायरस को मार सकते हैं।
(७) डॉ० हैनमैन से एक व्यक्ति ने पूछा-औषधि का सबसे अधिक प्रभाव किसी विधि से होता है अपनी पुस्तक ‘‘अर्गेनिक आफ मेडिसन’’ की धारा १९० में उन्होंने इसका उत्तर लिखा हैं औषधि का सबसे अच्छा प्रभाव सूँघने और श्वाँस लेने से होता है औषधि का यह स्वरूप हवन से ही प्रदान किया जा सकता है।
(९३) शिखा भारतीय संस्कृति की धर्म ध्वजा
प्रश्न ——
(१) शिखा तथा यज्ञोपवीत हमारी संस्कृति का प्रतीक है? सिद्ध कीजिये पुराने समय के लोगों के आधार पर? (२) प्राचीनकाल में शिक्षा का क्या महत्त्व था? (३) आज कैसा व्यवहार हो रहा है शिक्षा तथा यज्ञोपवीत कैसा था हमारे यहाँ? (४) शिखा संरक्षण का वैज्ञानिक महत्त्व किस प्रकार है सिद्ध कीजिए? (५) हमारे भारतीय तत्त्ववेत्ताओं ने इसकी उपयोगिता क्या बताई थी? (६) शिखा बंधन का उद्देश्य क्या है? (७) शिखा रखवाने के लिये किस तरह का उपाय करना चाहिए!
प्रश्न ——
(१) गुरुगोविंद सिंह के पुत्रों को पकड़कर सरहिंद के किले में ले जाया गया और उनसे चोटी कटाने को कहा गया तो उन्होंने कहा-जब तक सिर है तब तक चोटी न कटेगी। उन्हें दीवार में जीवित चुन दिया गया पर उन्होंने शिखा के स्वाभिमान को गिरने न दिया।
(२) नंद वंश के राजा महानंद के दुष्कृत्यों को देख कर आचार्य चाणक्य ने अपनी शिखा खोल दी और कहा अब मैं दिखाऊँगा कि ब्राह्मण की शिखा का अपमान कितना भयंकर होता है। उन्होंने विचार शक्ति एकाग्र की अनेक राजकुमारों को एक सूत्र में संगठित कर महानंद पर आक्रमण कर उसे पराजित कर दिया और चन्द्रगुप्त को सम्राट बना दिया।
(३) एक बार गाँधी जी से एक सज्जन ने पूछा-आप हिन्दू हैं क्या इसीलिए चोटी रखते हैं? गाँधी जी ने उत्तर दिया नहीं-चोटी हिन्दू धर्म की रक्षा करती है इसलिए चोटी रखता हूँ।
(४) शिवाजी से भेंट करने आये मुसलमान सरदार ने कहा-मैं तो आपकी सक्रियता और आपका शौर्य देखकर दंग हूँ यह शौर्य और सक्रियता कहाँ से आती है। शिवाजी ने सिर पर हाथ फिरते हुए कहा-इस चोटी और यज्ञोपवीत से। जब तक मेरे शरीर में यह दो वस्तुएँ हैं तब तक मैं निश्चिंत नहीं बैठ सकता क्यों कि मेरे गुरु ने मुझे इनकी रक्षा का भार सौंपा है।
(५) रामचन्द्र नामक एक भारतीय युवक केवल इसलिये चोटी नहीं रखते थे कि लोग उनकी हँसी उड़ायेंगे एक दिन उनके गुरु चले आ रहे थे कि रामचन्द्र अपने एक मुसलमान और एक ईसाई मित्र से बात करते मिल गये। समय देखकर गुरु ने पूछा-रामचन्द्र तू शिखा क्यों नहीं रखता इससे पूर्व कि रामचन्द्र कुछ कहे ईसाई और मुसलमान युवक ने पूछा-श्रीमान जी चोटी रखने से क्या लाभ? गुरु ने पूछा अच्छा आप बतायें गला कस देने वाली टाई और गला खुजलाने वाली दाढ़ी से क्या लाभ? ईसाई बोला-टाई हमें ईसामसीह के त्याग की याद दिलाती है और मुसलमान युवक बोला-दाढ़ी हमें अल्लाह की कुदरत की? तो फिर चोटी भी तो हमें अपने भगवान की अपने सनातन आदर्शों की याद दिलाती हैं हम उसे धारण करते हैं तो इसमें क्या बुरा है। रामचन्द्र की आत्महीनता दूर हो गई उसने मुंडन संस्कार करा कर चोटी धारण कर ली।
(६) एक साधु कह रहे थे शिखा देव शक्तियों से सम्पर्क का माध्यम एरियल है इस पर एक नास्तिक सज्जन हँसे और बोले चोटी सन्देश और प्रेरणाएँ कैसे ग्रहण कर सकती हैं साधु ने कहा-निर्जीव लोहे का एरियल पकड़ सकता है तो चोटी क्यों नहीं पकड़ सकतीं? उन्होंने कहा-एरियल का सम्बन्ध तो यन्त्र से, रेडियो से होता है। साधु बोले-यह शरीर किसी रेडियो से कम है। सारी मशीनें इसी की नकल हैं, उन सज्जन को कोई प्रतिवाद करते न बना।
(९४) यज्ञोपवीत धारण नीति कर्तव्य अपनाने का व्रत करें
प्रश्न ——
(१) ‘शिक्षा’ का प्रयोजन क्या है? (२) यज्ञोपवीत धारण करने का क्या तात्पर्य है? (३) यज्ञोपवीत धारण द्विजत्व की प्रतिज्ञा किस प्रकार है (४) यज्ञोपवीत संस्कार न करवाने का कारण क्या है? (५) यज्ञोपवीत संस्कार को उसके स्थान पर पुनः प्रतिष्ठापित करने के लिये हमें क्या करना चाहिये? (६) यज्ञोपवीत के ९ धागे किन-किन सद्गुणों के प्रतीक है? (७) यज्ञोपवीत गायत्री माता का स्वरूप क्यों माना जाता है। तथा इसका तात्पर्य क्या है? (८) नर से नारायण, पुरुष से पुरुषोत्तम, लघु से महान और आत्मा से परमात्मा किस तरह बन सकता है? (९) उपनयन संस्कार करवाने की दक्षिणा के स्वरूप हमें क्या देना चाहिये। (१०) युग निर्माण योजना के उद्देश्यों की पूर्ति में बड़ी सहायता किस प्रकार मिल सकती है।
कथाएँ ——
(१) पिता ने स्वयं यज्ञोपवीत कराया। विद्वान पिता के विवेकवान् पुत्र ने पूछा-पिताजी यह कच्चे धागे गले में डालने का क्या मतलब है? पिता बोला-मनुष्य जीवन को विवेक से बाँधकर रखा जाये ताकि मनुष्य सांसारिक आकर्षणों में ही उलझ कर न रह जाये वरन् अपना पारमार्थिक लक्ष्य भी पूरा करने के लिये सजग रहे। जिसका यज्ञोपवीत धारण सार्थक हुआ यह बालक आगे चलकर जगद्गुरु शंकराचार्य के नाम से विख्यात हुआ।
(२) गुरुदेव आप तो कहते हैं द्विज ब्राह्मण को कहते हैं जब कि ‘‘द्विज’’ का अर्थ होता हैं ‘‘दूसरा जन्म’’। शिष्य ने आशंका व्यक्त की तो गुरु ने समझाया-वत्स दोनों अर्थ सही हैं। जन्म से सभी एक-सी परिस्थिति में हैं पर यज्ञोपवीत के बाद से व्रतधारी केवल साँसारिक बातें ही न सोचकर परलोक और परमार्थ की बात भी सोचता है, यह आध्यात्मिक जन्म है यह जन्म होने से ही मनुष्य द्विज होता है।
(३) श्री विष्णुयश शर्मा बोले-तात मैं अब तुम्हारा उपवीत संस्कार कराऊँगा। निष्कलंक प्रभु ने पूछा-पिताजी ‘‘यज्ञोपवीत संस्कार’’ क्या होता है? पिता बोले-वत्स जन्म से सभी शूद्र होते हैं किन्तु जब वही शूद्र कुछ संकल्प व व्रत लेकर उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने लगता और ब्रह्म की ओर उन्मुख हो जाता है तो ब्राह्मण हो जाता है ब्राह्मण बनाने का प्रतिज्ञा समारोह ही है यह यज्ञोपवीत संस्कार। कल्कि भगवान् बड़े प्रसन्न हुए और यज्ञोपवीत संस्कार के लिये तैयार हो गये।
(४) समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी से सिंहासन लेकर फिर उन्हें ही राज्य-भार सौंपा तो शिवाजी बोले-भगवान् राज्य तो अब आप कीजिये मुझे कोई और आज्ञा दीजिये। समर्थ बोले-शिवा जो काम मैं करना चाहता हूँ वह राज्य से भी कठिन है तू यह काम कर मैं हिन्दुत्व की शिखा और यज्ञोपवीत की रक्षा करूँगा अन्यथा सारा देश म्लच्छ हो जायेगा। शिवाजी ने गुरु की आज्ञा शिरोधार्य की और समर्थ गुरु रामदास वहाँ से धर्म जागृति अभियान के लिये चल पड़े।
(५) यज्ञोपवीत के साथ गायत्री उपासना की अनिवार्यता क्यों जुड़ी हुई है महात्मा आनन्द स्वामी से एक पंजाबी ने प्रश्न किया। आनन्द स्वामी बोले यज्ञोपवीत केवल परलोक की प्रेरणा नहीं देता वरन् वह इस लोक को सुखी सशक्त व समुन्नत बनाने की प्रेरणा देता है यही बात गायत्री उपासना के बारे में भी है उस महामन्त्र में परलोक के साथ लौकिक सुखों की भी कामना की गई है इसीलिये यज्ञोपवीत और गायत्री संस्कार जोड़कर रखे गये हैं।
(६) यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न हुआ तो गुरु ने शिष्य से गुरु-दक्षिणा माँगी गुरु का नियम था कि वे यज्ञोपवीत के समय एक बुराई छुड़वाया करते शिष्य बड़ा चतुर था बोला-आज से कौवा नहीं मारा करूँगा। एक छोटी-सी प्रतिज्ञा में भी सावधान रहने वाला यही बहेलिया सन्त श्रमणक के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(९५) ज्ञानयज्ञ का प्रकाश घर-घर पहुँचाया जाय
प्रश्न ——
(१) मनुष्य की महानता और निकृष्टता किस तरह उसकी मनः स्थिति पर निर्भर है? (२) विचार किस तरह मनुष्य के लिये उपयोगी हैं? (३) इस समय जो प्रगति की विविध विध चेष्टाएँ की जा रही हैं वे असफल क्यों हो रही हैं। (४) अब समाज की उन्नति के लिये किस तरह के प्रयत्न किये जायें? (५) राजनैतिक क्रान्ति के बाद सबसे पहली आवश्यकता क्या है? (६) युग निर्माण योजना द्वारा संचालित ‘‘ज्ञानयज्ञ’’ की कार्य पद्धति को समझाइए? (७) इस ज्ञान यज्ञ की प्रक्रिया को व्यापक बनाने के लिये क्या और किस तरह का सहयोग आवश्यक है? (८) झोला पुस्तकालय किस प्रयोजन की पूर्ति के लिये हैं?
कथाएँ ——
(१) लन्दन की एक सभा में स्वामी विवेकानन्द भाषण कर रहे थे मानव धर्म की प्रतिष्ठा के लिये सच्चे ज्ञान के प्रसार की आवश्यकता है ज्ञान प्रसार के लिये त्यागी और सेवाभावी आत्माएँ चाहिये। मुझे ऐसी छः आत्माएँ मिल जावे तो संसार का काया पलट हो सकता है। सभा में बैठी युवती नोबुल मार्गरेट ने सभा समाप्त होने पर स्वामी जी से कहा-मैं नहीं जानती आपको छः व्यक्ति मिलेंगे या नहीं पर सातवें की पूर्ति में करूँगी। इन्हीं मार्गरेट ने एक दिन भारत आकर लोगों के घर-घर प्रकाश पहुँचाया और सिस्टर निवेदिता के रूप में भारतवासियों से सच्चा प्यार पाया।
(२) कलकत्ता के एक अँगरेज जस्टिस की कन्या श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के घर पहुँची और उन्हें ईसाई धर्म की छोटी-छोटी पुस्तकें भेंट करती हुई बोली इनमें बड़ा ज्ञान भरा है आप इन्हें अवश्य पढ़े? श्री बनर्जी ने पूछा-मैंने सुना है आप यह पुस्तकें लेकर साधारण घरों में भी जाकर लोगों को पढ़ाती हैं इसमें आपको ग्लानि नहीं लगती। लड़की बोली-जिन्हें अपने धर्म की संस्कृति का स्वाभिमान नहीं होगा उन्हें इस कार्य से ग्लानि अनुभव होगी। ईसाई धर्म भारत जैसे देश में फैल गया वह इसी निष्ठा का प्रतिफल था।
(३) स्वामी रामतीर्थ गाँव में एक मौलवी जी से पढ़ा करते थे। मौलवी जी उन्हें ज्ञान धर्म की बातें भी बताया करते। जब पढ़ाई समाप्त हुई तो रामतीर्थ के पिताजी ने मौलवी साहब को मासिक वेतन के अतिरिक्त कुछ और भी देने की इच्छा की। रामतीर्थ पास ही खड़े थे बोले पिताजी-जीवन का सच्चा स्वास्थ्य ज्ञान है मौलवी जी ने हमें ज्ञान दिया है तो आप उन्हें गाय दीजिये जिससे मुझे दिये स्वास्थ्य के बदले इन्हें भी-स्वास्थ्य मिले। रामतीर्थ की इस श्रद्धा पर पिता और गुरु दोनों पुलकित हो उठे।
(४) बारह-तेरह वर्ष के एक लड़के ने बालक-दल की स्थापना की। इस दल का उद्देश्य लड़कों को इकट्ठा करना उन्हें दशहरा दीपावली आदि पर्वों पर रामायण व महाभारत की कहानियाँ सुनाता था। लोगों को यह कार्य बड़ा कौतूहल पूर्ण लगता पर पीछे लोगों ने देखा कि इसी बालक ने अपने छोटे से कार्य से अपने को संगठित बना लिया कि जहाँ भी गया लोगों ने हिन्दू संस्कृति की सर्वोपरिता स्वीकार की। यह बालक और कोई नहीं मदन मोहन मालवीय थे।
(५) खादरा के डिप्टी इनस्पेक्टर शिक्षा विभाग की धर्मपत्नी श्रीमती ज्ञानवती ५ वर्ष से लगातार झोला पुस्तकालय चला रही हैं इसे कस्बे का-कोई घर ऐसा नहीं जहाँ युग निर्माण साहित्य न पहुँचा हो।
(९६) ज्ञान यज्ञ नव निर्माण का महानतम अभियान
प्रश्न ——
(१) युग की अशान्ति, आशंका एवं असन्तोष का मूल कारण क्या है? (२) वर्तमान नाटकीय वातावरण को स्वर्गीय सुषमा में कैसे बदला जा सकता है? (३) मानवीय सुख-शान्ति बढ़ाने के लिये आजकल क्या किया जाता है? वास्तव में क्या किया जाना चाहिये? (४) सद्बुद्धि के संस्थापन हेतु क्या किया जाना चाहिये? (५) ‘ज्ञानयज्ञ’ अभियान से क्या समझते हो। इसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कार्य पद्धति पर प्रकाश डालें? (६) ज्ञानयज्ञ का प्रयोजन समझाइए? (७) युग निर्माण योजना द्वारा किस प्रकार के विचार प्रसारित किये जाते हैं? (८) ज्ञान यज्ञ के होता उद्गाता कैसे लोग हैं? (९) हर घर की सच्ची सम्पत्ति क्या है? (१०) झोला पुस्तकालय के महत्त्व पर प्रकाश डालिये?
कथाएँ ——
(१) राष्ट्रीय विद्यालय को चलाने के लिये योग्य संचालन की नियुक्ति के बारे में टेढ़ी बात यह थी कि उस पद के लिये ७५) मासिक दिये जा सकते थे पर जिस योग्यता वाले व्यक्ति की आवश्यकता थी वह पाँच-सौ से कम का नहीं हो सकता था तो भी हिम्मत करके विज्ञापन दिया गया। दूसरे दिन जब एक साढ़े सात सौ रुपये मासिक पाने वाला व्यक्ति उपस्थित हुआ तो लोग आश्चर्य में डूब गये और कहने लगे देश समाज की आवश्यकता को समझने वाले त्यागियों की अभी-कमी नहीं यह व्यक्ति बड़ौदा कॉलेज के अध्यक्ष श्री अरविन्द थे जिन्होंने उस सम्मान को ठुकरा कर केवल ५७ रु० तक में काम किया।
(२) चीनी यात्री ह्वेनसाँग नालंदा से पढ़कर लौटा तो अपने साथ बहुत से धर्मग्रन्थ भी लेकर चला। उसे सिन्धु नदी के मुहाने तक पहुँचाने के लिए नालंदा के कुछ छात्र भेजे गये थे वह भी साथ थे। तभी तूफान आ गया और जहाज में पानी भरने लगा। यह देखते ही नालंदा के छात्र पानी में कूद गये पर ग्रन्थों को नष्ट होने से बचा लिया। ह्वेनसाँग इन भारतीयों के ज्ञान के प्रति त्याग और बलिदान भावना से इतना प्रभावित हुआ कि देश जाकर अपना सारा जीवन ही लोगों को सद्ज्ञान बाँटने में लगाया।
(३) मनु ने समझ लिया यह मछली अवतारी है उन्होंने बहुत प्रार्थना की फिर भी उन्हें मत्स्य भगवान ने दिव्य रूप में दर्शन न दिये। एक बार मनु नाव में वेद रखे हुए जा रहे थे कि समुद्र में तूफान आ गया। तूफान शान्त हुआ तो उन्होंने देखा कि एक बड़ी मछली उनकी नाव को सहारा दिये खड़ी है मनु ने विनीत भाव से पूछा-भगवन् आपने ही मेरी रक्षा की आप कौन हैं। मत्स्य भगवान् दिव्य रूप में प्रकट होकर बोले-वत्स तू ने ज्ञान की रक्षा का व्रत लिया इसलिये तेरी सहायता के लिये मुझे आना पड़ा।
(४) स्वामी रामतीर्थ छात्र थे। आर्थिक तंगी के कारण पढ़ने के लिये तेल की कमी पड़ी तो उन्होंने कपड़ों का खर्च कम करके पढ़ना जारी रखा। स्कूल के प्रधानाध्यापक को इस बात का पता चला तो रामतीर्थ की प्रशंसा करते हुये कहा-तुम्हारी जैसी ज्ञान-निष्ठा वाले व्यक्ति ही समाज को प्रकाश देते हैं। प्रधानाचार्य की भविष्य वाणी एक दिन सच हुई और स्वामी रामतीर्थ ने सारे संसार को आध्यात्म ज्ञान दिया।
(५) कांचनी नरेश की राजकुमारी भूत बाधा से पीड़ित थीं। योग्य मन्त्रकार भी राजकुमारी को अच्छा न कर सके तब श्री रामानुज बुलाये गये। उन्होंने प्रेत से पूछा-तुम कौन हो, क्यों तुम प्रेत योनि में आये-भूत ने बताया मैं पूर्व जन्म में विद्वान था पर अपनी विद्या औरों से छिपाई किसी को विद्यादान नहीं दिया उसी से कठिन ब्रह्मराक्षस योनि में पड़ा हूँ आप मुझे स्पर्श करें तो मुक्ति मिले क्योंकि आपने केवल विद्याध्ययन ही नहीं किया समाज को ज्ञान बाँटा भी है। श्री रामानुज ने राजकुमारी के मस्तक का हाथ से स्पर्श किया जिससे प्रेत की मुक्ति हुई।
(६) बड़े लड़के का शहर में विवाह किया गया। बहू आई तो देखा शाम हो गई है घर में अन्धकार घिरा है पर दीपक नहीं जला। उसने पूछा दीपक क्यों नहीं जलाते घर वालों ने पूछा-दीपक क्या होता है? बहू अपने साथ माचिस लाई थी उसने तेल बत्ती मिलाकर दीपक जलाया। अन्धकार मिट गया तो सब बड़े प्रसन्न हुए और नई बहू को देवी मानकर पूजा करने लगे। अज्ञानान्धकार में भटकते जन जीवन को ज्ञान का प्रकाश देते हैं उन्हें बहू की तरह प्रतिष्ठा मिलती है।
(९७) व्यक्ति और समाज का निर्माण करने वाली शिक्षा पद्धति
प्रश्न ——
(१) शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य कितने व कौन-कौन से हैं? (२) प्राचीनकाल में भारत की शिक्षा प्रणाली कैसी थी? (३) सिद्ध कीजिये कि प्रगति का मूल मन्त्र शिक्षा पद्धति है? (४) वर्तमान शिक्षा प्रणाली के दोष बताइये? (५) शिक्षा में परिवर्तन जन सहयोग से कैसे संभव है? (६) युग निर्माण शिक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिये। (८) छात्रों द्वारा सीखे जाने वाले गृह उद्योगों पर प्रकाश डालिए। (९) जीवन निर्माण की कला से क्या समझते हैं? (१०) रात्रि पाठशालाओं की आवश्यकता क्यों है?
कथाएँ ——
(१) गाँधी जी से एक व्यक्ति ने पूछा-आप बुनियादी शिक्षा पर इतना जोर क्यों देते हैं। गाँधी जी बोले यदि बुनियादी शिक्षा के माध्यम से बच्चों को दस्तकारी और उद्यम उद्योग न सिखाये गये तो शिक्षा बेरोजगारी की समस्या बन जायेगी। उस समय लोगों ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया पर आज उसी गलती का फल लाखों बेरोजगारों के रूप में दिखाई पड़ रहा है।
(२) ब्रिटिश सरकार ने देखा यदि भारतीयों पर देर तक शासन करना है तो उनके मस्तिष्क बदलने चाहिये फल स्वरूप यहाँ की शिक्षा पद्धति बदली गई। यह देखकर स्वामी श्रद्धानन्द बड़े दुःखी हुए उन्होंने अथक परिश्रम करके आदर्श शिक्षा वाली संस्था की नींव डाली जो आज गुरुकुल काँगड़ी के रूप में इस देश की संस्कृति को बचाये हुए हैं।
(३) राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने वृन्दावन में प्रेम महाविद्यालय खोला जिसमें पढ़ाई के साथ दरिया और चटाई बुनना दूसरे दस्तकारी के काम सिखाये जाते और देश-सेवा के भाव भी भरे जाते। इस विद्यालय ने देश को सम्पूर्णानन्द जैसे नेता दिये और आप भी पालीटेक्निक विद्यालय के रूप में सैकड़ों लोगों को रोजगार दे रहा है।
(४) हाथ पर हाथ रखे बैठे पुत्र को देखकर पिता ने कहा बेटा तू तो इतना पढ़ा लिखा है बेकार क्यों बैठा है-लड़का बोला-पिताजी क्या करूँ कोई नौकरी नहीं मिलती पिता का हृदय धक कर के रह गया उसने कहा-जो शिक्षा हम को उद्यमी नहीं बना सकती उससे तो अनपढ़ किसान अच्छा जो सैकड़ों को पेट तो भर लेता है।
(५) कक्षा १० तक पढ़ा राजस्थान का एक छात्र नौकरी के लिए मारा-मारा घूम रहा था कहीं भी कोई सौ रुपये मासिक वेतन देने को तैयार न था तभी उसे युग निर्माण विद्यालय का पता चला। उसने एक वर्ष शिक्षण लेकर प्रेस उद्योग सीखा आज उसका निजी प्रेस है और अपने से अधिक पढ़े उसके नौकर।
(६) एक जापानी से एक हिन्दुस्तानी ने पूछा-हमारा देश खनिजों की दृष्टि से ज्यादा समृद्ध है पर उन्नति आप लोग कर रहे हैं यह क्यों? जापानी ने उत्तर दिया हम मेहनत करना जानते हैं। उद्योग करना जानते हैं आपके देश से एक रुपये का (कच्चा लोहा) खरीद कर उसका इस्पात बनाकर आपको ही तेरह रुपये में बेंच देते हैं। हिन्दुस्तानी समझ गया जब तक उद्योग विकसित नहीं होंगे तब यह देश उन्नति करेगा।
(७) दो युवकों में बड़ी मित्रता थी। कुछ दिन पीछे एक ने क्लर्क की नौकरी कर ली उसे दो सौ रुपये मासिक मिलने लगे दूसरे ने साबुन बनाना शुरू कर दिया तो उसके उत्पादन की बचत तीन सौ रुपये मासिक निकलीं। दस वर्ष बाद क्लर्क की तनख्वाह तीन सौ रुपये हो गई जब कि दूसरे ने एक साबुन-फैक्ट्री लगा ली। क्लर्क ने यह देखा तो उसके मुँह से यही निकला-उद्योगिन पुरुष सिंह मुपेति लक्ष्मी। उद्योगी व्यक्ति ही लक्ष्मी पैदा करते हैं।
(९८) कला लोकरंजन व भावनाओं का परिष्कार करे
प्रश्न ——
(१) कला एक संगीत का मुख्य प्रयोजन क्या है? (२) आजकल पैसा का दुरुपयोग अधिक हो रहा है सदुपयोग क्यों नहीं? कारण सहित समझाइए? प्राचीनकाल में कला का उपयोग किसलिए किया जाता था? (४) किन कला प्रयासों को सार्थक कहा जा सकता है? (५) मनोरंजन की सुरुचिपूर्ण योजनाएँ किस प्रकार चलाई जा सकती हैं? (६) वर्तमान फिल्मों में क्या त्रुटियाँ हैं फिल्म उद्योग का उपयोग सत्प्रवृत्तियों की प्रसन्नता हेतु कैसे किया जा सकता है? (७) न्यायालयों का मुख्य प्रयोजन क्या होना चाहिए? (८) कला का उपयोग युग निर्माण हेतु कैसे किया जा सकता है?
कथाएँ ——
(१) आचार्य धौम्य एक नृत्योत्सव में सम्मिलित हुए। उसमें उनका एक शिष्य भी था। दूसरे दिन पाठ चल रहा था उस समय शिष्य ने आचार्य पर आक्षेप किया तो आचार्य धौम्य ने बताया-तात कला और रस उपेक्षणीय नहीं उनकी विकृति की उपेक्षा की जानी चाहिए।
(२) हरिद्रुमत की कन्या निश्चला के सौन्दर्य से मोहित होकर राजकुमार कुशलाश्व ने उनसे विवाह का प्रस्ताव किया किन्तु निश्चला ने उसे ठुकराते हुए कहा-मैं राज्य भोग प्राप्त करने की अपेक्षा अपनी कला और संस्कृति को जीवन देने वाली साधना करना चाहती हूँ। उन्होंने गंधर्वराज अथर्व सेन के पुत्र से विवाह कर लिया और आजीवन शास्त्रीय संगीत का प्रसार-प्रचार करती रहीं।
(३) विष्णु दिगम्बर पुलुत्स्कर ने एक पत्रकार से पूछा-आपका शास्त्रीय संगीत प्रसार आज के सिनेमा-संगीत के सामने कहाँ टिक सकता है। इस पर पुलुत्स्कर ने कहा-मैं तब तक अपने प्रयत्नों से निराश नहीं हो जाऊँगा जब तक इस देश के लोग यह नहीं मान लेंगे कि कला का उद्देश्य लोकरंजन नहीं भावनाओं का परिष्कार है भले ही मुझे और भी जन्म क्यों न लेने पड़ें।
(४) एक विदेशी चित्रकार से एक व्यक्ति ने पूछा-आजकल कामोत्तेजक चित्र ही अधिक पसन्द किये जाते हैं वही छपते और बिकते भी अधिक हैं फिर आपके इन आदर्शवादी चित्रों को कौन खरीदेगा? सारी दुनियाँ खरीदेगी और लगायेगी चित्रकार ने उत्तर दिया आज न सही पर कामोत्तेजक चित्रों की बुराइयाँ जब पूरी तरह उभर उठेंगी तो लोगों को उन्हें जलाने और उनके स्थान पर अच्छे चित्र लगाने की उपयोगिता सूझेगी ही।
(५) अश्लील चित्रों, पोस्टरों और साहित्य की होली जलाई जा रही थी। कुछ लोग उछल-उछल कर ढेर में आग लगा रहे थे। तभी वहाँ पहुँचे बिनोवा जी और बोले-जितना उत्साह आप लोग बुरा साहित्य और बुरे चित्र जलाने में दिखाते हैं उतना ही श्रेष्ठ और नैतिक उत्थान के प्रेरक साहित्य सिनेमा और चित्रों के निर्माण में उत्साह दिखायें तो खराब साहित्य फूँकने की नौबत ही न आये।
(६) गाँधी जी सलाह पर एक नशा विरोधी प्रदर्शनी लगाई गई एक सज्जन ने पूछा-बापू इससे कितने लोग नशेबाजी छोड़ेंगे? इस पर बापू बोले यदि सिनेमा के पोस्टर लोगों को मुफ्त शिक्षा दे सकते हैं तो यह चित्र लोगों को प्रेरणाएँ क्यों नहीं देंगे। उस प्रदर्शनी के बाद सौ व्यक्तियों ने शराब ताड़ी और धूम्रपान का परित्याग किया।
(७) एक समाज सेवी नेता भाषण दे रहे थे और कह रहे थे यह बड़े दुःख की बात है कि आज के छात्र उपन्यास पढ़ते हैं अश्लील कहानियाँ पढ़ते हैं रामायण और गीता नहीं पढ़ते।
एक युवक ने खड़े होकर कहा श्रीमान् जी इसलिये कोसिए उन प्रकाशकों को जो बुरा साहित्य छापने का पाप करते हैं उन साहित्यकारों को जो अश्लील साहित्य तैयार करते हैं। उन दुकानदारों को जो ऐसा साहित्य बेचते हैं और उन समाज सेवियों को भी जो बुराइयाँ अधिक करने पर आदर्श कुछ नहीं रखते? उस दिन से वह सज्जन सभाओं में भाषण करने की अपेक्षा झोला पुस्तकालय चलाने लगे।
(९९) रचनात्मक कार्यक्रमों से ही देश समर्थ बनेगा
प्रश्न ——
(१) रचनात्मक कार्यक्रमों का क्या प्रयोजन है? (२) युग निर्माण योजना के रचनात्मक कार्य क्या हैं? (३) रचनात्मक कार्यक्रम के अन्तर्गत शिक्षा का प्रसार एवं फैलाव किस तरह किया जाना चाहिए? (४) कुटीर उद्योगों को किस प्रकार चलाना चाहिए? (५) अन्न की उपज बढ़ाने तथा खाद्य वस्तुओं में देश को आत्म निर्भर करने के लिये क्या प्रयत्न होने चाहिए? (३) स्वास्थ्य और मनोबल बढ़ाने के लिए किस तरह की कार्य प्रणाली अपनानी चाहिए? (७) लोक शिक्षण के लिए क्या-क्या कार्य किया जा सकता है? (८) सेवा दलों के संगठन का महत्त्व रचनात्मक कार्यों के अन्तर्गत क्यों है? (९) क्या पुस्तकालयों की आज के समय में अत्यन्त आवश्यकता है?
कथाएँ ——
(१) खान अब्दुल गफ्फार से एक पत्रकार ने प्रश्न किया-आप इतना कम भाषण क्यों देते हैं? सीमान्त गाँधी ने उत्तर दिया-अब भाषणों को नहीं रचनात्मक कार्यक्रमों का युग है किसी से कुछ कहने की अपेक्षा कुछ करके दिखाने से कहीं अधिक प्रेरणा मिलती है।
(२) महाराज युधिष्ठिर से कक्षा अध्यापक ने पूछा-पाठ याद कर लाये। पाठ था ‘‘सत्यंवद’’ युधिष्ठिर ने कहा अभी नहीं। दो तीन दिन तक यही उत्तर मिला तो अध्यापक ने खीझकर कहा-तुम इतना छोटा सा पाठ भी नहीं सीख सके। युधिष्ठिर बोले श्रीमान् जी पाठ तो याद हो गया है पर वह जीवन में उतरे नहीं तब तक उसकी क्या सार्थकता? अध्यापक और विद्यार्थी यह सुनकर अवाक् रह गये।
(३) ऑफिस सैनिकों को डाँटे जा रहा था फिर भी लकड़ी का लट्ठा नहीं उठ पा रहा तथा तभी उधर से निकला एक अश्वारोही। घोड़े से उतर कर उसने सिपाहियों से कहा लो हम भी हाथ लगायें आओ तो सभी एक साथ उगायें? और इस बार लट्ठा उठ गया। घोड़े पर चढ़ते हुए युवक ने अफसर से कहा-आज्ञा देना ही काफी नहीं खुद करके भी दिखाना चाहिए। अफसर ने पहचाना वह घुड़सवार और कोई नहीं विश्वविजेता नैपोलियन बोना पार्ट है।
(४) स्व० प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पार्लियामेण्ट से लौटकर आते तो घर की वाटिका में शाक-भाजी लगाते उसे पानी डालते गोड़ाई करते? नौकर ने कहा-श्रीमान् जी हम करेंगे यह काम आप क्यों करते हैं, इस पर शास्त्री ने कहा-उपदेश केवल वाणी से नहीं क्रिया से भी दिया जाता है हम परिश्रम करेंगे तो देश के किसानों में परिश्रम का भाव कैसे उत्पन्न होगा।
(५) ग्रामीणों को सफाई का महत्त्व समझाने के लिये गाँधीजी ने सफाई दल तैयार किया वे लोगों में जाते पर कोई उनकी बात नहीं सुनता। गाँधीजी ने दूसरे दिन से वर्धा के समीप गाँवों में जाना और झाड़ू लेकर सफाई करना शुरू कर दिया। देखते-देखते सारे गाँव वाले उमड़ पड़े और सफाई में जुट गये। गाँधीजी ने स्वयं सेवकों से कहा-जो कहना चाहते हो उसे करके भी दिखाओ।
(६) राजस्थान के बाड़मेर जिले में एक गाँव है पार्लू। इस गाँव के सभी लोगों ने प्रतिज्ञा करके धूम्रपान छोड़ दिया। दुकानदारों ने बीड़ी, सिगरेट बेचना बन्द कर दिया। उससे हुई बचत इकट्ठी की गई तो गाँव की सम्मिलित वार्षिक बचत ६००० रुपये की हुई। इस समाचार ने ही हजारों अन्य लोगों को प्रभावित किया और सैकड़ों अन्य लोगों ने स्वतः ही धूम्रपान छोड़ दिया।
(७) महर्षि कर्वे ने स्त्रियों की शिक्षा के लिए प्रौढ़ पाठशाला चलाई। लोगों ने उसका विरोध किया पर वे अपने प्रयत्नों में जुटे रहे और अन्त में वही विद्यालय भारत वर्ष का पहला कन्या डिग्री कॉलेज बना।
(८) स्वतंत्रता आन्दोलन चला रहा था। गाँधीजी ने कहा-जब तक अँगरेज सरकार यह नहीं समझती कि भारतीय हमारी बात नहीं मानेंगे वे अपनी व्यवस्था आप जुटा सकते हैं झुकेगी नहीं अतएव रचनात्मक कार्यक्रम प्रारम्भ करना चाहिए। नमक सत्याग्रह पहना कार्यक्रम था जिससे सारे देश में सत्याग्रह की लहर जाग पड़ी।
(१००) अनीति असुरता से प्रबुद्ध संघर्ष किया जावेगा
प्रश्न ——
(१) गीता के रहस्यवाद से क्या समझते हो? मानव के आंतरिक शत्रु कौन-कौन से हैं (२) अनीति को रोकने के लिए कठोर कदम उठाना क्यों आवश्यक है। (३) समाज की वर्तमान स्थिति में किसी भी व्यक्ति पर सहज जी विश्वास करना खतरे से खाली नहीं है? इस वाक्य का मर्म समझाइए। (४) वर्तमान समाज की प्रगति में कौन-सी कुरीतियाँ आड़े आ रही हैे? उनके उन्मूलन हेतु सुझाव देवें (५) इस युग में बहादुर किस माना जायेगा (६) हमारे समाज के प्रमुख कलंक कौन से हैं? उनसे बचने के उपाय बताओ? (७) आगामी युग में कैसे परिवारों की स्थापना करनी होगी। (८) अवांछनीय तत्त्वों का उग्र प्रतिरोध कैसे किया जायेगा? (९) ठगी एवं हरामखोरी को बन्द करने के लिए कौन से कदम उठाये जायें। (१०) संघर्ष की बहुमुखी प्रचण्ड प्रक्रिया से क्या समझते हो।
कथाएँ ——
(१) अकबर ने राणा प्रताप को संदेश भेजा कि यदि आप हमसे शत्रुता छोड़ दें और सन्धि कर लें तो आपको यों जंगल-जंगल भटकना न पड़े। आप जो भी राज्य चाहें हम दे सकते हैं।
अकबर के प्रलोभन को ठुकराते हुए महाराणा प्रताप ने लिखा-अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिये मुझे जंगल-जंगल भटकना तो क्या, प्राण देना पड़े तो भी स्वीकार पर पर किसी प्रलोभन के आगे झुकना स्वीकार नहीं।
(२) समर्थ गुरु रामदास से दीक्षा लेने के बाद शिवाजी ने कहा-गुरुदेव आदेश दीजिये आपकी गुरुदक्षिणा कैसे चुकाऊँ।
शिवा तू धर्म और संस्कृति के लिये आजीवन युद्ध कर यही मेरी गुरु दक्षिणा है। गुरु रामदास ने कहा। यह मानते हुए भी कि विदेशियों से लड़कर जीतना कठिन कार्य है शिवाजी ने गुरु का आदेश सहर्ष शिरोधार्य किया और आजीवन मुगलों से लड़ते रहे। उनके इस शौर्य से भारतीय इतिहास के पन्ने अनन्तकाल तक जगमगाते और अपनी संस्कृति की रक्षा की प्रेरणा देते रहेंगे।
(३) कुमारगुप्त मगध के राजा थे उन दिनों हूण मगध पर निरंतर आक्रमण करते प्रजा को कष्ट देते और उनका धन लूट ले जाते। कुमारगुप्त अनुभव कर रहे थे कि हूणों की संगठित-शक्ति का मुकाबला नहीं किया जा सकता तब उनके पुत्र राजकुमार स्कन्दगुप्त तैयार हुए और पिता से युद्ध की आज्ञा माँगी।
कुछ तो छोटी-आयु कुछ पुत्र स्नेह वश कुमारगुप्त आज्ञा नहीं दे रहे थे तब स्कन्द गुप्त ने कहा-पिताजी का डटकर मुकाबला करना प्रत्येक मनुष्य का धर्म है यदि उसमें प्राण भी चले जायें तो क्या होगा। पिता ने आज्ञा दे दी। समुद्र गुप्त ने अनेक कठिनाइयों के बावजूद हूणों पर आक्रमण कर दिया और उन्हें परस्त कर विजय प्राप्त की। जनता ने उनका जो स्वागत किया कहते हैं इतिहास मैं वैसा अभूत पूर्व स्वागत किसी को नहीं मिला।
(४) रावण ने एक और कूटनीतिक चाल फेंकी। बोला-अंगद जिस राम ने तेरे पिता को मारा तू उन्हीं की सहायता कर रहा है मेरे मित्र का पुत्र होकर भी तू मुझसे बैर कर रहा है।
अंगद हँसा और बोला रावण अन्यायी से लड़ना और उसे मारना ही सच्चा धर्म है चाहे वह मेरा पिता हो अथवा आप ही क्यों न हो?
अंगद के यह तेजस्वी शब्द सुनकर रावण को उत्तर देते न बना।
(५) समुद्र बाँधा जा रहा था तब तक एक गिलहरी भी अपनी पूँछ-में थोड़ी मिट्टी भरकर लाती और समुद्र में पटक देती। उसका यह श्रम देख राम ने पूछा-गिलहरी तेरे बालों में रत्तीभर मिट्टी आती हैं फिर परिश्रम से क्या लाभ। गिलहरी बोला भगवन् असुरता को मिटाने में यदि मैं थोड़ा भी सहयोग कर सकती हूँ तो उससे पीछे क्यों हटूँ। थोड़ा ही सही समुद्र कुछ तो पुरेगा।
अतिशय प्रसन्न हुए राम ने गिलहरी की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा-अनीति के विरुद्ध जहाँ तुम्हारी जैसा निष्ठा होगी वहाँ असुरता कभी ठहर न सकेगी।
(६) दुष्ट अलाउद्दीन खिलजी को संधि वार्ता के अनुसार पद्मिनी का चित्र दर्पण में देखकर लौट जाना था पर उसका असुर जाग उठा उसने राणा भीम सिंह को धोखे से बन्दी बना लिया।
राजपूत अब यह निश्चय नहीं कर पा रहे थे कि राणा को कैसे छुड़ाया जाये तब १२ वर्षीय वीर बालक बादल और गोरा ने दुश्मन से निबटने की ठानी उन्होंने खिलजी को संदेश भेजा कि महारानी पद्मिनी का डोला आ रहा है स्वयं डोले में बैठकर और साथ में कहारों के रूप में अपने सैनिक लेकर उन्होंने खिलजी पर आक्रमण कर दिया। स्वयं शहीद हो गये पर उन्होंने राणा भीमसिंह को कैद से छुड़ा लिया और अलाउद्दीन को डेरा समेट कर भाग खड़े होने का विवश कर दिया।
(७) सीता की करुण पुकार सुनते ही जटायु बाहर निकल आया और महाबली रावण पर आक्रमण कर दिया। रावण ने तलवार से उसके पंख काटते हुए कहा-तुच्छ गिद्ध! रावण से टकराने का परिणाम क्या होता है ले उसे भुगत।
धराशायी जटायु ने कहा-दुष्ट रावण मरना तो मुझे था ही कल नहीं आज ही सही पर याद रख जो भी लोग यह घटना सुनेंगे वह छोटे और मेरी तरह कम शक्ति वाले होंगे तो भी अपनी आँखों के आगे अनीति और अत्याचार होते न देखेंगे।
(८) तुर्की ने कीशूट को कैद कर दिया। जेल में पड़े कीशूट के सामने शर्त रखी गई यदि आप इस्लाम स्वीकार कर लें तो आपको मुक्त किया जा सकता है।
कीशूट ने विचार किया और हँसकर उत्तर दिया-मृत्यु और लज्जा इन दोनों से किसे स्वीकार किया जाये आज तक मेरे सामने ऐसी उलझन नहीं पड़ी। मृत्यु जीवन का अनिवार्य रुख है तो फिर उससे डरकर अपना सिर क्यों नीचा करूँ।’ जब मेरे पास सब कुछ था तब मैंने अपना धर्म न बदला, आज केवल वही मेरा साथी है तो मैं उसे कैसे छोड़ दूँ? ईश्वर की आज्ञा पूरी करो। मरने के लिये तैयार हूँ कलंक लगाने के लिये नहीं।
(९) चलते-चलते शाम हो गईं तो गुरुनानक पास के गाँव में एक निर्धन किसान के यहाँ ठहर गये। उस गाँव के सेठ ने यह सुना कि आज रात्रि को गुरु नानक यहीं विश्राम कर रहे हैं तो वह भी उनके दर्शन के लिए गया। उस समय नानक भोजन कर रहे थे।
भोजन में सूखी रोटी और दाल थी। ऐसा रूखा-सूखा भोजन करते नानक को देखा तो उस सेठ को बड़ा बुरा लगा। उसने कहा-आप ऐसा भोजन क्यों कर रहे हैं? इस गाँव मे तो जो भी कोई सन्त महात्मा आता। है वह मेरे यहाँ ही ठहरता है। नानक ने बड़ी शान्ति से उत्तर दिया-महोदय मैं तो श्रम की कमाई से उत्पन्न अमृत खा रहा हूँ।’’ निर्धन व्यक्ति के शोषण से बने पकवान मुझे पसन्द नहीं हैं।
(१०) सन् १८८५ पूना के न्यू इंग्लिश हाईस्कूल में समारोह के समय प्रमुख द्वार पर एक स्वयं सेवक को इसलिये नियुक्त किया गया कि वह आने वाले अतिथियों के निमन्त्रण पत्र देखकर सभास्थल पर यथास्थान बिठाल सके। उस समारोह के मुख्य अतिथि थे चीफ जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे। जैसे ही वह विद्यालय के फाटक पर पहुँचे वैसे ही स्वयं सेवक ने अन्दर जाने से रोक दिया और निमन्त्रण पत्र की माँग की। ‘बेटे! मेरे पास तो कोई निमन्त्रण पत्र है नहीं।’ रानाडे ने कहा। ‘तब आप अन्दर प्रवेश न कर सकेंगे।’ स्वयं सेवक ने आपत्ति की। द्वार पर रानाडे को रुका देख स्वागत समिति के कई सदस्य आ गये। और उन्हें अन्दर मंच की ओर ले जाने का प्रयास करने लगे। पर स्वयं सेवक ने आगे बढ़कर कहा-श्रीमान् मेरे कार्य में यदि स्वागत समिति के सदस्य ही रोड़ा अटकाएँगे तो फिर मैं अपना कर्तव्य कैसे निभा सकूँगा? भेदभाव की नीति मुझसे नहीं बरती जायेगी। उस स्वयं सेवक की कर्तव्य निष्ठा, साहस और निर्भीकता से रानाडे बहुत ही प्रभावित हुए। यह छात्र आगे चलकर गोपाल कृष्ण गोखले हुआ।