उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
रात भर भोगा अँधेरा, घुटन अन्धापन झराने।
रात भर भोगा अँधेरा, घुटन अन्धापन झराने॥
है तू ही जो पूर्व दिश में, सतत सूर्य निकल रहा है॥
रात भर भोगा अँधेरा, घुटन अन्धापन झराने।
रात भर भोगा अँधेरा, घुटन अन्धापन झराने॥
जल रही है सृष्टि सारी, आग के बादल बरसते।
गंध के अस्तित्व तो जीवन मृदुलता को तरसते॥
है तू ही वह तत्त्व जो बन, फूल नित-प्रति खिल रहा है॥
है तू ही जो पूर्व दिश में, सतत सूर्य निकल रहा है॥
रात भर भोगा अँधेरा, घुटन अन्धापन झराने।
रात भर भोगा अँधेरा॥
थे अकेले तुम हुई इच्छा, कि निज विस्तार कर लूँ।
और अपनी प्राण-सत्ता को, हृदय में आप भर लूँ॥
है तू ही क्रम सूष्टि का, जाने न कब से चल रहा है॥
है तू ही जो पूर्व दिश में, सतत सूर्य निकल रहा है॥
रात भर भोगा अँधेरा, घुटन अन्धापन झराने।
रात भर भोगा अँधेरा॥
ढूँढ़ते तुझको रहे संसार में, कब जन्म बीता।
किन्तु जीवन बन नहीं पाया, कभी भी कर्म गीता॥
है तू ही जो हृदय में कुछ, ज्योति जैसा जल रहा है॥
है तू ही जो पूर्व दिश में, सतत सूर्य निकल रहा है॥
रात भर भोगा अँधेरा, घुटन अन्धापन झराने।
रात भर भोगा अँधेरा॥
स्वप्नवत संसार लेकिन, लग रहा है सत्य जीवन।
लिप्त सबमें किन्तु सबसे, दूर होता विप्र है मन॥
है तू ही जैसे सरोवर, में कमल-दल खिल रहा है॥
है तू ही जो पूर्व दिश में, सतत सूर्य निकल रहा है॥
रात भर भोगा अँधेरा, घुटन अन्धापन झराने।
रात भर भोगा अँधेरा॥