उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
गायत्री को हमने त्रिपदा कहा है, ऋषियों ने त्रिपदा कहा है। अगर आप गायत्री मंत्र से उपासना में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको एक महत्त्वपूर्ण शर्त पूरी करनी होगी, कुछ खास अवलम्बन लेकर चलना होगा, यही मेरे जीवन का निचोड़ है, सार है, निष्कर्ष है। गायत्री को जिसने सफल बनाया आप उस आधार को समझने की कोशिश करें।
यह प्रमुख आधार है—श्रद्धा। श्रद्धाविहीन, विश्वासविहीन किसी तरीके से लोग चिन्ह-पूजा करते हुए चले जाते हैं। जरा सफलता मिल गई तो बाँट दिया गया गायत्री माता का प्रसाद सवा रुपए का और असफलता मिली तो, गायत्री माता को फेंक दिया और कह दिया कि मेरा गायत्री पर कोई विश्वास नहीं है। गायत्री मेरी कौन लगती है? श्रद्धा का अर्थ यह नहीं है। माँ प्यार करती है, मिठाई भी खिलाती है और जब नाराज होती है तो गाल पर चपत भी लगाती है। बच्चे को फोड़ा हो जाता है तो डॉक्टर के पास चीरा लगवाने को भी ले जाती है। हर स्थिति में वह साथ रहती है। श्रद्धा वह जो लाभ में और हानि में, सफलता और असफलता में अविचल-अटूट बनी रहे, अडिग बनी रहे। अटूट विश्वास, अटूट श्रद्धा की शक्ति असीम है। मीरा ने जब एक पत्थर पर श्रद्धा जमाई तो वह गिरिधर गोपाल हो गया। रामकृष्ण परमहंस ने जब एक टुकड़े में श्रद्धा जमाई तो वह भगवान् हो गया। एकलव्य ने एक मिट्टी के टुकड़े में श्रद्धा जमाई तो श्रद्धा से वह द्रोणाचार्य हो गया। यह सब श्रद्धा का चमत्कार है। नहीं साहब, गिरिधर ने बड़ी कृपा की थी मीरा पर। गिरिधर गोपाल ने कोई कृपा नहीं की थी, वरन् मीरा की श्रद्धा ने पत्थर से टक्कर खाई और उसने एक नया भगवान बनाकर खड़ा कर लिया, छाया पुरुष के तरीके से जो मीरा के साथ-साथ चला करता था। रामकृष्ण परमहंस की श्रद्धा ने काली से टक्कर मारी और उनका विश्वास काली के रूप में श्रद्धा की छाया बनकर खड़ा हो गया। वही सहायता करता था। विश्वास बड़ी चीज है।
मैं आपको श्रद्धा की सामर्थ्य की बात कह रहा था। विचारणा भी एक शक्ति है, धन भी एक शक्ति है, बल भी एक शक्ति है, किन्तु दुनिया में सबसे बड़ी एक ही शक्ति और सामर्थ्य है, खासतौर से आध्यात्मिक क्षेत्र में और वह है—श्रद्धा की शक्ति। श्रद्धा की शक्ति का विकास करते हैं हम गुरु के माध्यम से। हमने अपने गुरु के माध्यम से अपनी श्रद्धा को परिपक्व किया है। अब हमारी उपासना में केवल हमारा गुरु ही रह गया है। हमने भगवान की अलग शक्ल बना दी है। वह वंशी बजाता हुआ नहीं है, वरन् बाल बिखेरे हुए नंग-धड़ंग है, जिसके पास कपड़े भी नहीं हैं, उसी रूप का भगवान। वह बहुत सामर्थ्यवान है। हमारा गुरु हमारे पास बैठा रहता है। बेटे, हमने श्रद्धा की दृष्टि से बना लिया। श्रद्धा की शक्ति असीम है। श्रद्धा भगवान के समान है। हमने अपनी उपासना में श्रद्धा की शक्ति को महत्त्व दिया है और उसे इतना अटूट मन में बनाकर रखा है कि हमारी श्रद्धा कोई डगमग नहीं कर सकता। हम सब चीज गँवा देंगे, पर श्रद्धा नहीं गँवा सकते। श्रद्धा हमारा संबल है, हमारी शक्ति है। श्रद्धा के आधार पर ही हमने गायत्री माता को पाया है। यदि आपको उपासना करनी है तो उपासना के पीछे एक ही शक्ति का समावेश करना, उसका नाम है-श्रद्धा। श्रद्धा में शक्ति है, चाहे मंत्र में करो, चाहे गुरु में करो, चाहे उपासना में करो, चाहे भगवान में करो, श्रद्धा जिसमें जोड़ दी जाएगी उसी में चमत्कार खड़े हो जाएँगे। यदि माला के साथ में आपने श्रद्धा का समावेश किया है तो मैं विश्वास दिलाता हूँ कि आप सफल होंगे। मेरे जीवन का अनुभव और निचोड़ नंबर एक, जिसके सहारे मैंने आध्यात्मिक प्रगति की, गायत्री माता को अपनी मुट्ठी में लिया और खरीद लिया, श्रद्धा की कीमत पर।
श्रद्धा के साथ ही जरूरी है—चरित्र। चरित्र किसे कहते हैं? चरित्र कहते हैं—कपड़े को रँगने से पहले धोने की जरूरत पड़ती है। धोएँगे नहीं अगर तो उस पर रंग नहीं चढ़ेगा। राम का नाम बीज है। बीज में बड़ी शक्ति है लेकिन उसके लिए जमीन चाहिए। हर जगह बीज काम नहीं दे सकता। प्रत्येक व्यक्ति का मंत्र सार्थक नहीं हो सकता। मंत्र को सार्थक करने के लिए, भगवान को अवतरित करने के लिए स्वच्छ मन की जरूरत है। मन आपका साफ नहीं तो भगवान आपको दिखाई नहीं देगा। मैला मन, गलीज मन, दुष्ट मन, स्वार्थी चरित्र, भ्रष्ट चरित्र यदि आपका है, तो मैं कहता हूँ कि भगवान आपके पास आएँगे तो सही, पर टक्कर मारकर वापस चले जाएँगे। उनकी नाक सड़ जाएगी और बदबू के मारे भाग खड़े होंगे। भगवान इस मामले में बहुत संवेदनशील हैं। वह एक बात परखते हैं—आदमी का ईमान, आदमी का चरित्र, आदमी की वृत्ति, आदमी के गुण, आदमी के कर्म और स्वभाव क्या है? अगर आप साफ हैं अगर अपने आपको साफ बनाने की कोशिश की है तो मैं यह कहता हूँ कि भगवान् आपके पास भागते हुए आएँगे। रँगाई से पहले धुलाई जरूरी है। कारतूस की अपनी कीमत है, पर बंदूक की भी कीमत है, उसके बिना कारतूस चल नहीं सकता।
मंत्र सार्थक होते हैं लेकिन हर एक के मंत्र सार्थक नहीं होते। चरित्रवान के मंत्र सार्थक होते हैं। शृंगी ऋषि का प्रसंग आता है। उनके पिता ने ब्राह्मणत्व पैदा करने के लिए उनको जंगल में रखा। खान-पान के बारे में, स्त्रियों के बारे में, सारी लोकभावनाओं के बारे में, तृष्णा और वासना के बारे में उनको दूर रखा। जब राजा दशरथ के यहाँ पुत्रेष्टि यज्ञ हुआ तो जरूरत इस बात की हुई कि कोई ऐसा ऋषि, कोई ऐसा संत तलाश किया जाए जिसके बोले हुए मंत्र सार्थक होते हुए चले जाएँ। गुरु वशिष्ठ से कहा गया। उन्होंने कहा—हम आपका पुत्रेष्टि यज्ञ करा तो दें, पर हमारी वाणी के उच्चारण से आपके संतान नहीं हो सकती। क्यों नहीं हो सकती? हमारी वाणी जल गई, क्योंकि हम विवाहित हैं और हमारे सौ बच्चे हैं। सौ बच्चे होने से हमारा ब्रह्मचर्य समाप्त हो गया। मंत्र तो हमें आते हैं, पर हमारे वेदमंत्रों में कोई शक्ति नहीं है, इसलिए वे फलित नहीं हो सकते। फिर उन्होंने किसे ढूँढ़ा? एक ही आदमी है—शृंगी ऋषि, जिसने जीवन भर में यह नहीं जाना कि स्त्रियाँ कैसी होती हैं? वासना किसे कहते हैं? तृष्णा किसे कहते हैं? उन्होंने अपना व्यक्तित्व और चरित्र उच्चकोटि का बनाकर रखा था। उसी के फलस्वरूप उनके मंत्र सार्थक होते चले गये। पुत्रेष्टि यज्ञ कराया और राजा दशरथ के राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न—चार भगवान पैदा हुए। किससे हुए? यज्ञ से। नहीं, यज्ञ तो वशिष्ठ भी करा सकते थे, यज्ञ से नहीं, वे ब्राह्मण के मुख में से पैदा हुए थे। ‘ब्राह्मणोस्य मुखमासीत्’—ब्राह्मण के मुख में भगवान रहता है। उसके रहता है जो ब्राह्मण होता है, चरित्रवान होता है। भगवान् के लिए सबसे बड़ी परख यही है कि हमारा भक्त हमारे ऊपर विश्वास करता है कि नहीं। विश्वास करने वाले व्यक्ति का नाम चरित्रवान है।
साधक को चरित्रवान होना चाहिए। आप यह मत समझिए कि हर आदमी भगवान को बहला सकता है। वह हर आदमी के चंगुल में आने वाले नहीं हैं। अगर यह बात रही होती तो चोर, उचक्के, बेईमान और दुष्ट-दुराचारी भी भगवान को पकड़ करके और चाहे जिस तरीके से अपना उल्लू सीधा करते और देवी को बकरी भेंट करके चाहे जो काम करा लेते। भगवान को पाने के लिए मनुष्य को चरित्रवान होना चाहिए। शृंगी ऋषि तब बच्चे ही थे। एक बार राजा परीक्षित ने ध्यानमग्न उनके पिता लोमश ऋषि के गले में साँप डालकर अपमानित कर दिया। शृंगी ऋषि खेलने चले गए थे। लौटकर आए तो देखा कि हमारे पिता का अपमान किया गया है। क्रोध से वे काँपने लगे। उन्होंने जल हाथ में लिया, मंत्र पढ़ा और कहा कि जो मरा हुआ साँप हमारे बाप के गले में पड़ा हुआ है, वह जिंदा हो जाए। साँप जिंदा हो गया। साँप से उन्होंने कहा—साँप तू वहाँ चला जा जहाँ कहीं भी दुनिया में कोई भी व्यक्ति क्यों न हो, जिसने हमारे पिताजी का अपमान किया है उसे तू काट खा, जिंदा मत छोड़ना। यही हुआ, तक्षक राजा परीक्षित की ओर चल पड़ा। लोमश ऋषि की आँखें खुलीं तो उन्होंने कहा—बेटे, तूने यह क्या कर डाला? राजा ने गलती कर दी तो हमें तो नहीं करनी चाहिए। पर अब क्या कर सकते थे, तीर तो निकल चुका था, मुँह से मंत्र के रूप में। लोमश ऋषि ने एक विद्यार्थी को भेजकर परीक्षित को संदेश दिया कि सातवें दिन तुझे साँप काट ही खाएगा, इसीलिए तुझे सात दिन में जो करना हो सो कर ले। राजा ने भागवत् कथा सुननी आरंभ कर दी। सातवाँ दिन आया और तक्षक ने काट खाया।
मैं कह रहा हूँ—मंत्रों की शक्ति, भगवान की शक्ति, उपासना की शक्ति के बारे में, जिसमें एक चीज जुड़ी ही रहनी चाहिए और उसका नाम हैं—चरित्र। दुश्चरित्र आदमी, दुष्ट आदमी, दुराचारी आदमी यह ख्याल करे कि हम यह मंत्र जप करके, माला घुमा करके, पूजा करके किसी देवी-देवता को प्रसन्न करके काबू में ला सकते हैं, तो यह बिल्कुल असंभव है। मेरी जिन्दगी का सार यही है। चरित्र वाला पक्ष जिसमें मैंने अपने आपको धोबी के तरीके से धोया और धुनिए के तरीके से धुना। धुनिया जैसे थोड़ी-सी रूई को धुन-धुन करके इतनी मोटी बना देता है और धोबी कपड़े को पीट-पीट करके सफेद झक बना देता है, हमने भी अपने चरित्र को उसी प्रकार धोया और भगवान् का अनुग्रह पाया। यह उसी का परिणाम है, जो आपके सामने है। अगर आप उपासना का, मंत्र का लाभ देखना चाहते हैं, कोई आध्यात्मिक चमत्कार देखना चाहते हैं तो श्रद्धा उगाइए और चरित्र को धोइए। विधि आपको नहीं आती है तो इससे कोई नुकसान नहीं। बाल्मीकि को विधि नहीं आती थी।
‘उलटा नाम जपा जग जाना।
बाल्मीकि भये ब्रह्म समाना।।’
उलटा नाम जप करके भी आप भगवान को पा सकते हैं, आप गलत मंत्र बोलिए, गलत उच्चारण से भी उद्धार हो जाता है। जो स्त्रियाँ नहीं बोल पातीं, उन्हें हम ‘ॐ भूर्भुवः स्वः’ सिखा देते हैं। जिन्हें ॐ भूर्भुवः स्वः भी नहीं आता तो उन्हें केवल ॐ सिखा देते हैं। जब हम अफ्रीका गए तो बहुत-से नीग्रो लोगों को गायत्री मंत्र सिखाया। बहुत कोशिश करने पर भी उन्हें सही बोलना नहीं आया। वे बोले—‘‘गुरुजी! हमें गलत गायत्री मंत्र आता है, उससे कोई नुकसान तो नहीं होगा?’’ नहीं, कोई नुकसान नहीं होगा। गायत्री ऐसी नहीं है कि आपके मंत्र गलत हो जाएँ तो उसके लिए जान की ग्राहक बन जाए। आपके अक्षर गलत हो जाते हैं तो हो जाने दीजिए। विधि में आप कहीं भूल करते हैं तो हमारी जिम्मेदारी। नवरात्रि अनुष्ठान में हम कहा करते हैं कि विधि आपकी गलत हो जाए, तो उसका पाप हम पर लगा दीजिए। विधि की कोई कीमत नहीं है, जैसी विधि आती हो, कर लीजिए, पर विधा के बारे में ध्यान रखिए।
श्रद्धा व चरित्र के बाद अगला जो उद्देश्य गायत्री मंत्र के साथ जुड़ा हुआ है, वह हमारे जीवन का सार और निचोड़ है—ऊँचा उद्देश्य रखिए। छोटे उद्देश्यों के लिए, घटिया कामों के लिए नहीं, भगवान के सामने किसी बड़े काम के लिए पल्ला पसारिए। भगवान को जिंदगी में साझीदार के तरीके से बनाइए, हिस्सेदार बनाइए। हिस्सेदार बनाना सबसे कीमती चीज है। कुछ चीज पाना चाहते हैं तो पाने के तरीके तीन हैं—एक माँगिए, भाईसाहब, कुछ दे दीजिए, कुछ नहीं है हमारे पास। दूसरा तरीका है, कर्ज लेने का और तीसरा तरीका है, अपना हक माँगने का कि हमने महीने भर मेहनत और मशक्कत की है पैसा लाइए हमारा। यह हमारा ड्यू है। फोकट में भी क्या कुछ मिल सकता है? जहाँ तक मैंने समझा है कि फोकट नाम की चीज दुनिया में कोई नहीं है। नहीं साहब, हमने तो यही सुना है कि देवताओं से और गुरु से फोकट में आशीर्वाद मिल सकता है। बेटे, आशीर्वाद मिल भी सकता है, पर अगले जन्म में तुझे कर्ज के रूप में देना पड़ेगा। फोकट में लेना और फोकट में खाना अपने आपको दीन बनाना, दरिद्र बनाना, नीच बनाना और जलील बनाना एक बराबर है। भगवान के सामने हमको जलील नहीं बनना चाहिए। जलालत हमको नामंजूर है। आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की रक्षा हमको हर हालत में करनी चाहिए। हमें किसी के आगे पल्ला नहीं पसारना चाहिए। पल्ला पसारने का कोई नियम दुनिया में नहीं है। हर चीज कीमत देकर पाई जाती है।
आपको जिस आदमी ने यह बात सिखा दी है कि अध्यात्म देवी-देवताओं की खुशामद को कहते हैं, गुरु की खुशामद को कहते हैं, सिद्धपुरुषों की खुशामद को कहते हैं और कमाई किए बिना, मेहनत किए बिना चापलूसी से जीभ की नोंक की हेरा-फेरी करके, माला पहना करके, सवा रुपया दक्षिणा दे करके यह चीजें पाई जा सकती हैं, वह गलत आदमी था और आप उससे भी गलत आदमी हैं, जो ऐसी बातों पर विश्वास करते हैं। दुनिया कायदे पर टिकी हुई है, नियम पर टिकी हुई है।
मित्रो! आप उच्च उद्देश्यों के लिए गल जाना। हमने अपने गुरु के साथ में वायदा किया हुआ है कि हम आपकी आज्ञानुसार चलेंगे और अपनी जिंदगी में स्वयं के लिए, व्यक्तिगत फायदे के लिए कुछ काम नहीं करेंगे। हम आपके लिए काम करेंगे। गुरु ने कहा—जब तुम सब कुछ हमको दे रहे हो तो हमारी चीज तुम्हारी है। भगवान की हर चीज हमारे गुरु की है और गुरु की हर चीज हमारी है। आपको मालूम नहीं है, हमने वसीयत की हुई है। हमारे पास जो कुछ बाप-दादे छोड़ गए थे, उसका चप्पा-चप्पा हमने समाज के हित में खर्च कर डाला। हमने अपनी हर चीज भगवान को सौंप दी और संकीर्णता को पैरों तले रौंदकर फेंक दिया है। इसके बदले में जो पाया, आप देख रहे हैं। इससे कम कीमत पर ऊँची चीजें नहीं मिल सकतीं। स्वार्थी और संकीर्ण आदमी, मक्खी और मच्छर जैसे दिल वाले कृपण और कंजूस भगवान से नहीं पा सकते। किससे पाएँगे? बेटे, हम आपको दे देंगे, क्योंकि आप हमारे बच्चे हैं। हम आपको मुहब्बत और प्यार करते हैं। हम जानते हैं कि प्यार की कीमत क्या चुकानी चाहिए? आपके दुःख, दर्द, कठिनाई, मुसीबत के बारे में अगर हमने अपनी कुछ दौलत जमा की होगी तो आपकी सहायता करेंगे और आपको सुखी बनाने के लिए हरदम कोशिश करेंगे। हम यह वायदा तो नहीं करते कि आपकी हर मनोकामना को पूरी कर सकते हैं, पर भगवान ने जिसे साधक बनाया होगा, जो कुछ भी हमारे पास होगा, हम आपकी मुसीबत को हल करने के लिए निश्चित रूप से कोशिश करेंगे। यह हमारी और आपके बीच की बात है।
दूसरे संत और ऋषि आप पर दया करके, करुणा करके आपकी सहायता कर सकते हैं, लेकिन आपको बच्चे समझते रहेंगे। जब तक आप माँगते रहेंगे, आपकी हैसियत बच्चों जैसी बनी रहेगी। भगवान से, गायत्री माता से ऊँची चीजें, कीमती चीजें, पाने के लिए आपको जो काम करना है वह है कि आप एक चीज को छोड़ जाइए। कार्लमार्क्स कहते थे कि मजदूरो! तुम हमारी कंपनी में साम्यवाद में भर्ती हो जाओ, इसमें तुम्हारा बस एक ही नुकसान होगा कि तुम गरीबी खो बैठोगे। इसके अलावा फायदे ही फायदे हैं और मैं कहता हूँ कि एक चीज छोड़नी पड़ेगी आपको बाकी सब नफा ही नफा है। क्या छोड़नी पड़ेगी? कृपणता। कृपणता आप पर हावी हो गई है। न पैसे की कमी है, न रोटी की कमी है। कृपणता को छोड़कर थोड़ा दिल बड़ा कीजिए, यह आज के समय की आवश्यकता है।
हमारे गुरु की आवश्यकता थी, उनके इशारे पर हम कठपुतली के तरीके से नाचते रहे। उनके इशारे का हमको ध्यान है। आज युगदेवता का, महाकाल का इशारा यह है कि हमको जन-जाग्रति के लिए काम करना चाहिए। हमको नवयुग लाने के लिए घर-घर में संदेश पहुँचाना चाहिए। विचारक्रान्ति अभियान आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है, क्योंकि इस युग की सभी समस्याएँ इसलिए पैदा हुई हैं कि आदमी की अक्ल खराब हो गई है। न पैसा कम है, न कोई चीज कम है। अक्ल खराब है। अक्ल ठीक करने के लिए हमको विचार-क्रान्ति में हिस्सा लेना चाहिए। व्यक्ति और समाज, देश और धर्म-संस्कृति के लिए, मानवीय भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए हमको एक काम करना चाहिए कि ज्ञानयज्ञ के विस्तार के लिए पूरी कोशिश करें, प्रयास करें। घर-घर में जाएँ, जन-जन के पास जाएँ, अलख जगाएँ, नवयुग का संदेश सुनाएँ और यह कहें कि आदमी को कृपणता छोड़नी चाहिए। अपनी मनःस्थिति को ऊँचा बनाना चाहिए। चिंतन और चरित्र में ऊँचाइयों का, उत्कृष्टता का समावेश करना चाहिए। क्रियाकलापों में आदर्शवादिता का समन्वय करना चाहिए। यही हमारा विचार-क्रान्ति अभियान है।
इसी के लिए इस पुनर्गठन वर्ष में हमने हर आदमी पर जोर दिया है और यह कहा है कि आपको अपनी कृपणता छोड़नी चाहिए और श्रेष्ठ विचार यदि आपके पास हैं तो क्रियारूप में परिणत करने चाहिए। खाने का सामान आपके पास है तो पकाना आना चाहिए। खाना पकाएँगे नहीं तो कैसे काम करेंगे? विचार आपके पास हैं, मन बहुत अच्छा है, श्रद्धा बहुत है तो सक्रियता के रूप में परिणत कीजिए। तो सक्रियता के रूप में विचारों को परिणत करने के लिए क्या करना चाहिए? हमारे पास एक ही काम है, जिसको ऋषि और ब्राह्मण करते रहे हैं और ऋषि और ब्राह्मण करते रहेंगे। उसका नाम है—जनमानस का परिष्कार। इसके लिए प्राचीनकाल के ब्राह्मण, प्राचीनकाल के ऋषि, प्राचीनकाल के साधु-संत और वानप्रस्थ इस कार्य को किया करते थे। आज इसकी सबसे बड़ी आवश्यकता है। इस युग की सबसे बड़ी कोई आवश्यकता नहीं। योग्यता की कमी नहीं। अनाज, कपड़ा, रोटी, विद्या, साहस आदि किसी चीज की कमी नहीं है। कमी है तो अक्ल की। मित्रो! अक्ल को बढ़ाने के लिए, जनमानस के परिष्कार के लिए युगदेवता ने, महाकाल ने पुकार लगाई है। अगर आप कृपणता को त्यागने के लिए तैयार हों, सेवावृत्ति के लिए उदारता से तैयार हों, तो मैं आप से वायदा करता हूँ कि गायत्री माता का वह चमत्कार जो ऋषियों को मिला था, ब्राह्मणों को मिला था और हमको मिला है, उसका लाभ आप भी उठा सकेंगे। आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्तिः॥