उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
गज-ग्राह का आख्यान तो आपने सुना होगा; गज, ग्राह के मुँह में फँसा हुआ जब बेबस हो गया, बेहाल हो गया और कोई रास्ता उसको दिखायी नहीं पड़ा तो उसने भगवान को पुकारा, क्योंकि भगवान के सिवाय कोई और सहायता करने वाला था नहीं, उसके पास। तोभगवान को किस तरीके से पुकारा? भगवान को पुकारने के लिए अनेकों उपाय हैं। कहीं कीर्तन किये जाते हैं, कहीं यज्ञ किये जाते हैं, कहीं अनुष्ठान किये जाते हैं, कहीं जप किये जाते हैं, लेकिन बेचारा गज! यह सब नहीं कर सकता था। उसने एक फूल उस पानी में सेकहीं से उठा लिया और अपनी सूँड़ को ऊँचा करके भगवान को जोर-जोर से पुकारा। भगवान ने उसकी भावना को समझा, हृदय को समझा, मुसीबत को समझा, उसके कष्ट को समझा, अन्तरात्मा को समझा और दौड़ करके आये तथा अपने सुदर्शन-चक्र से ग्राह को मारडाला और गज को छुड़ा लिया। आपको यह कथा मालूम है न?
ठीक यही कथा, मनुष्य जाति के सामने इस समय भी उपस्थित हुई है। मनुष्य जाति को आप गज के तरीके से मान सकते हैं, जो फिलहाल अनेकों मुसीबतों में फँसी हुई है। बहुत-सी मुसीबतें तो पहले भी हमने बतायी थीं। फिर बता रहे हैं! वातावरण बिगड़ रहा है, वायुमण्डल बिगड़ रहा है, जनता की संख्या अन्धाधुन्ध पैदा होती हुई चली जा रही है। विकिरण बढ़ रहा है, युद्ध की सामग्रियाँ बढ़ रही है, जिससे कि हर आदमी की मुश्किलें बढ़ती चली जा रही हैं। यह सब बातें तो पहले भी आपको बतायी थीं, लेकिन इस साल, जिससाल कि आप सब सामने बैठे हुए हैं, इसकी कुछ विशेष मुसीबतें हैं। उन विशेष मुसीबतों की ओर आपका ध्यान जाना चाहिए, आपको उनका अनुभव करना चाहिए। अभी इस साल कितनी महँगाई है, आपको मालूम है? महँगाई के मारे सामान्य आदमी का सौ में सेनिन्यानवे आदमियों का कचूमर निकल रहा है। यह एक मुसीबत इस समय की है।
दूसरी मुसीबत इस समय की क्या है? प्रकृति हमसे नाराज हो गयी है और उसने नाराज होकर वर्षा के ऊपर अपना प्रभाव डाला है। समय पर वर्षा न होने की वजह से क्या-क्या मुसीबतें आ रही हैं, आपको मालूम है न? खेती सूख रही है, कुओं का पानी नीचा होता चलाजा रहा है, डैम और नदियों का पानी पहले की अपेक्षा घटता चला जा रहा है। पानी की कमी से बिजली पैदा होने की मुसीबत आ रही है। बिजली की कमी से बत्ती, पंखे, कल-कारखानों की पचासों समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं और गाँवों में तो बिजली के बिना ट्यूबवैल चलनहीं पाते। कोई और तरीका तो है नहीं सिंचाई का, क्योंकि नहरों, तालाबों के सूखने से पानी का कोई और इन्तजाम नहीं है। हमारे यहाँ ज्यादातर बिजली पानी से ही बनती है। पानी का अभाव हुआ तो बिजली बनाना तो दूर पीने का पानी, नहाने का पानी, खेती का पानी, और ट्यूबवैलों से जो कुछ निकल सकता था वह सब भी दैनिक आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर सकता। पानी की एक बड़ी भारी मुसीबत है।
महँगाई एक, पानी दो, इनके अतिरिक्त एक और तीसरे नम्बर की मुसीबत है जो कि आप लोगों के सामने है। वह कौन-सी है? वह यह है कि पुराने-जमाने में जब अकाल पड़ते थे और खाने-पीने की चीजों का अभाव होता था, तो लोग भीख माँगने लगते थे या कुछ औरकाम करने लगते थे, पर आजकल तो आप जानते ही हैं कि चोरी, उठाईगीरी और डकैतियों के अलावा और कोई तरीका ही नहीं रह गया है। एक ही सबसे सस्ता तरीका है कि हत्या, चोरी, और उठाईगीरी की जाए। अवांछनीय तत्त्वों की वृद्धि होने की इस साल विशेषसम्भावना है, आक्रमण बढ़ेंगे और तरह-तरह की मुसीबतें भी बढ़ेंगी। यह तीसरे तरह की मुसीबत है।
क्या साम्प्रदायिकता कुछ ठण्डी हुई है? नहीं, यह बिल्कुल ठण्डी नहीं हुई? विवाद एक जगह ठण्डा नहीं होने पाता कि कहीं और तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। यह साम्प्रदायिक उपद्रव कृष्ण जन्मभूमि से लेकर बाबरी मस्जिद तक, हर जगह इसी के लिए धुआँ निकल रहा है, हर तरफ आग लग रही है। यह आग विकराल रूप धारण कर ले तो कोई अचम्भे की बात नहीं मानी जाएगी।
आतंकवाद! आतंकवाद को आप देख रहे हैं न? कहीं बम फट रहे हैं, कहीं गोलियाँ चल रही हैं, कहीं कुछ और हो रहा है। ये सारी की सारी मुसीबतें-पाँचों मुसीबतें इस तरह की हैं जो कि आजकल हम सब लोगों के ऊपर ठीक उसी तरीके से छायी हुई हैं, जैसे गज के ऊपरमुसीबत आयी थी। अब हम लोग क्या करें? जो कोई उपाय होगा, वह किया भी जाएगा। जनता करेगी, गवर्नमेन्ट करेगी, समाज से भी किया जाएगा। जो कुछ भी उपाय सम्भव है, हम सब लोग करेंगे ही। उसके बारे में तो मुझे कुछ कहना ही नहीं है। गवर्नमेण्ट इसकेसम्बन्ध में मार्गदर्शन करती ही है। समाज के नेता भी बताते रहते हैं कि इस मुसीबत के वक्त में पानी कम खर्च करना चाहिए। बिजली भी कम खर्च करनी चाहिए। तालाब बनाना चाहिए, कुएँ खोदने चाहिए। सब अलग-अलग उपाय बताते ही हैं। ये भौतिक तरीके हैं।लेकिन इससे भी बड़ा एक आध्यात्मिक उपाय है, जो गज ने अपनाया था। वह क्या? उसने भगवान को पुकारा था। देवताओं और दैत्यों में जब भी लड़ाई हुई, देवता मुसीबत में आए, तो वे भाग करके भगवान के पास में गए और यह कहा कि हमारी मुसीबत को आप दूरकर दीजिए। तब भगवान ने कोई न कोई उपाय निकाला, चाहे दुर्गा का निर्माण किया हो, चाहे सीता का, दधीचि की अस्थियों से इन्द्रवज्र बनाया हो, चाहे स्वर्ग से गंगा को धरती पर लाया गया हो, जो भी उपाय किया गया हो, लेकिन किया जरूर गया।
ऐसे बड़े उपाय भगवान के द्वारा ही सम्भव हैं, इनसान के द्वारा यह सम्भव नहीं है। भगवान को पुकारने के लिए हमने इस समय में एक बड़ा उपयोगी और बड़ा ही आवश्यक उपाय निकाला है। यह जोश बढ़ाने वाला उपाय आपके सामने है और आपको बताया भी जाचुका है कि अब यज्ञ वैसे नहीं होने चाहिए, जिनमें कि सैकड़ों-हजारों रुपये खर्च हो जाते हैं। जनता भी देने लायक स्थिति में नहीं है और यदि देने लायक भी हो, तो जनता में से हर एक का यह ख्याल है कि यज्ञ से पानी बरसना चाहिए और यज्ञ से पानी बरसने कीसम्भावना के बारे में हम आपको कोई विश्वास नहीं दिला सकते। फिर इस साल का पूरा समय कैसे कटेगा? हम आपको इस बात की ठीक जानकारी दे करके डराना नहीं चाहते, हैरान नहीं करना चाहते, पर यह जरूर कहेंगे कि वर्षा का सम्बन्ध उससे जुड़ा हुआ है। यज्ञ केसम्पन्न होने पर—वर्षा न होने पर जनता क्या कहेगी आपको? आपका उपहास होगा और यज्ञ का अपमान होगा, हमारा अपमान—जिन्होंने स्कीम बनायी है। इसलिए यज्ञों को तो हर एक जगह जैसे पिछले साल हुए थे वैसे ही करना है। अन्तर सिर्फ इतना है कि उनकेस्थान पर नये यज्ञों की शैली प्रचलित की है, जो गरीब से गरीब व्यक्ति के यहाँ भी आसानी से सम्पन्न करा सकते हैं।
वे कौन-से यज्ञ हैं? वे दीपयज्ञ हैं। दीपयज्ञ में एक थाली में पाँच दीपक रखे जाते हैं। यह यज्ञ का सामान हुआ। थाली अपने घर से लेकर के चौक पूरकर उसे सजा लें, एक रुपये का सामान उसमें रख लें, तो बड़े मजे से यह यज्ञ हो सकता है। यज्ञ के कर्मकाण्ड तो सब वहीहैं, जो सामान्य यज्ञ में हुआ करते हैं। दो एक बातें कम कर दी हैं जैसे—घृत-अवघ्राणम्, भस्मधारणम्, वसोर्धारा आदि। बाकी यज्ञ के देव-आवाहन मन्त्र और यज्ञ का सारा स्वरूप वही है। केवल वस्तुएँ कम कर दी गयी हैं। यज्ञ की वस्तुएँ कम किये जाने में कोई बुराई है? नहीं, कोई बुराई नहीं है। यहाँ याज्ञवल्क्य-जनक का संवाद कुछ ऐसा ही है। जनक ने पूछा कि कोई खराब वस्तु हो और हम यज्ञ न कर पाएँ, तो कैसे हवन करें? तब याज्ञवल्क्य जी ने कहा—‘‘यज्ञ करना तो आवश्यक है। वह तो करना ही चाहिए। गायत्री और यज्ञ तोहमारी भारतीय संस्कृति के माता-पिता हैं। इनका पूजन तो करना ही चाहिए। इनको तो भोजन कराना ही चाहिए। वायुमण्डल, वायु-संशोधन के कार्य के लिए तो इन्हें करना ही चाहिए। वातावरण संशोधन का काम तो हाथ में लेना ही चाहिए, पर वस्तुएँ कम कर सकतेहैं।’’ तब राजा जनक ने पूछा—‘‘क्या वस्तुएँ कम कर सकते हैं?’’ उन्होंने कहा—‘‘घी अगर आपके पास न हो, तो केवल हवन-सामग्री से जो वनस्पतियों से बनती है, उससे ही आप हवन करे लें।’’ इस तरह बिना घी के आप हवन कर लें। उन्होंने फिर कहा—‘‘वर्षा नहींहोगी तो वनस्पतियाँ भी पैदा नहीं होंगी। तो फिर कैसे हवन करेंगे?’’ तो याज्ञवल्क्य जी ने कहा—‘‘आप लकड़ियों की समिधाओं से भी हवन कर सकते हैं।’’ कहने का आशय है कि कम से कम वस्तुओं से हवन कर सकते हैं। इसी तरह मुसीबत के समय मेंआपातकालीन परिस्थितियों में हमने दीपयज्ञ करने के लिए कहा है लोगों से और लोगों ने स्वीकार भी किया है। इसको आपको भी करना चाहिए। इसमें जो श्लोक बोले जाएँगे, भावनाएँ जो आपको मिलेंगी, उसके कारण से पुण्य उतना ही मिलेगा जितना कि यज्ञ-कुण्डोंको खोदकर के हजारों रुपया इकट्ठा जो किया करते थे। लगभग उतना ही पुण्य मिल जाएगा इस यज्ञ से।
यह यज्ञ का तरीका है—एक। यज्ञ का तरीका नम्बर दो—सबेरे प्रातःकाल सूर्योदय के समय पर यज्ञ प्रारम्भ हो जाना चाहिए। जब तक धूप फैलती है और ठण्डक रहती है। अपने घर के काम का वक्त होता है, दुकान खोलने का वक्त होता है। उसे समय से सबेरे काकार्यक्रम तो वैसे ही समाप्त हो जाएगा, यह भी आपको भुला नहीं देना चाहिए। सायंकाल का एक और कार्यक्रम है। सायंकाल का कार्यक्रम क्या है? वह कार्यक्रम यह है कि सायंकाल को कीर्तन किया जाए। पुराने कीर्तनों और हमारे कीर्तनों में थोड़ा फर्क है। पुराने कीर्तनोंमें तो केवल रामभज हुआ करते थे। ‘रामभज’ में हरे रामा, हरे रामा, हरे कृष्णा, हरे कृष्णा; बस केवल रामधुन होती थी। हमारे कीर्तनों में विचार और टिप्पणियाँ भी जुड़ी हुई हैं। भगवान का नाम भी है और भगवान के नाम के साथ में विचार भी जुड़े हुए हैं औरटिप्पणियाँ भी जुड़ी हुई हैं। यह आपको सौ-सौ कुण्डीय यज्ञ के समय भी बताया गया था। सौ कुण्डीय यज्ञ के लिए हमने बुलाया भी था। सौ कुण्डीय यज्ञ में आप भी उत्साहपूर्वक भाग ले करके आये थे। अब भी आप सौ कुण्डीय यज्ञ कर सकते हैं। सौ रुपये लागत आयेगीइसमें। बड़े मजे से इसे आप कर सकते हैं।
यज्ञ के बाद में, व्याख्यान के बाद में देव-दक्षिणा आवश्यक है। देव-दक्षिणा में यह आवश्यक है कि आप अपनी बुराइयों का त्याग करें और अपनी अच्छाइयों को बढ़ाएँ। ये भी वातावरण-संशोधन का एक बड़ा कार्य है। जो प्रकृति हमसे नाराज हुई है, जो मुसीबतें आयी हैं, येसब मनुष्य के स्वभाव, मनुष्य के गुण, मनुष्य के कर्म, मनुष्य की वृत्तियों में फर्क आ जाने के कारण आयी हैं। आप इसको भी ठीक कर सकते हैं। यानि की यज्ञ के बाद में जब देव-दक्षिणा दी जाए तो उसमें अपनी कोई न कोई एक बुराई छोड़ी जाए और कोई न कोई एकअच्छाई बढ़ायी जाए। ये काम करना भी आवश्यक है। यही देव-दक्षिणा है। दक्षिणा के लिए पंडित जी को एक हजार रुपये देंगे और उनको पाँच कपड़े देंगे, खाना देंगे, नहीं। ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं। ये सामूहिक यज्ञ है। देवी-देवताओं का हम आह्वान करेंगे, उनकापूजन और सम्मान करेंगे। यज्ञ में जो आदमी आयेंगे, जो भी यज्ञ में सम्मिलित होंगे, जो भी हवन के मंत्र बोलेंगे, जो भी आहुतियाँ देंगे वे सारे के सारे सहकर्मी होंगे, सहयोगी होंगे। इनमें से कोई ऐसा पण्डित नहीं होगा, जो दक्षिणा के लिए आया हो। यदि कोई पैसे कीनौकरी के लिए आता है वह देवता नहीं हो सकता, ब्राह्मण नहीं हो सकता! पैसे की, नौकरी की जरूरत नहीं है आपको! लेकिन देवी-देवताओं को दक्षिणा तो देनी ही पड़ेगी, जिनको आपने बुलाया है, जिनसे आपने उम्मीद रखी है कि इन्द्र देवता हैं, वर्षा करें तो आखिर उनकेचरणों पर हमें फूल तो रखना चाहिए। देवता आयेंगे तो कुछ पूजन-अर्चन तो करना ही चाहिए आपको। पूजन करने की विधियों में ये भी शामिल है कि आपको देव-दक्षिणा के रूप में कोई न कोई बुराई त्यागनी पड़ेगी और कोई एक अच्छाई धारण करनी पड़ेगी।
ये सौ कुण्डीय यज्ञ क्वार की पूर्णिमा यानि कि शरद पूर्णिमा को प्रारम्भ करेंगे और चैत्र की पूर्णिमा को समाप्त करेंगे। ये पूरे छह महीने हो जाते हैं। छह महीने के बीच आपको एक कार्य करना चाहिए कि अपने गाँव में, अपने नगर में, अपने मोहल्ले में प्रत्येक घर के साथसम्पर्क बढ़ाना चाहिए। यह सम्पर्क यज्ञ है। सम्पर्क यज्ञ का अर्थ है कि प्रत्येक घर में आप जाइये और प्रत्येक घर के लोगों को तैयार कीजिए। आपके कुटुम्ब को, आपके परिवार को, आपके घर के लोगों को भी हमको ये कुछ शिक्षाएँ देनी हैं और साथ-साथ में भगवान कास्मरण भी कराना है। आपके घर में सुख-शान्ति भी लानी है। अतः प्रत्येक घर में एक यज्ञ का आयोजन करने का कार्यक्रम आपको इन छह महीनों में जारी रखना चाहिए। आवश्यकता हुई तो फिर कहेंगे कि छह महीने से भी ज्यादा जारी रखिए। फिलहाल आपको छहमहीने का संकल्प तो दिला ही रहे हैं। इन छह महीनों में अपने नगर में, अपने गाँव में, अपने मोहल्ले में कोई घर ऐसा मत रहने दीजिए, जहाँ यह एक कुण्डीय यज्ञ न हुआ हो।
एक कुण्डीय यज्ञ का आप मतलब तो समझ ही गये हैं न? एक थाली में पाँच धूपबत्तियाँ और पाँच दीपक रखें। थाली को हल्दी, रोली अथवा आटे द्वारा सजा भी सकते हैं। ये दैनिक उपयोग की वस्तुएँ हर घर में रहती ही हैं। यदि आपको ये मालूम ये मालूम पड़ता हो किएक घण्टे के समय में पाँच धूपबत्तियों में खर्च ज्यादा हो जाएगा, तो आप किफायत भी कर सकते हैं। पाँच दीपक हैं पहले एक जलाइए। पहला बुझने लगे तो दूसरा जला दीजिए। दूसरा बुझने लगे तो तीसरा जला दीजिए, तीसरा बुझने लगे तो चौथा जला दीजिए, फिरपाँचवाँ जला दीजिए। इस तरीके से एक-एक दीपक से काम चल सकता है। पाँच दीपक की स्थापना तो करनी ही पड़ेगी, क्योंकि यह पाँच देवों का आह्वान है। इसमें पाँच प्राणों का आह्वान है, पाँच तत्त्वों का आह्वान है। अतः पाँच दीपकों की यह स्थापना तो करनी हीपड़ेगी। धूपबत्ती के सम्बन्ध में भी यही बात है। अगर आपको कहीं किफायत की बात मालूम पड़े और ये मालूम पड़े कि गरीबी-बहुत ज्यादा है, तो पैसे का खर्च और भी कम कर सकते हैं। तब पाँच धूपबत्तियों में से एक जला दीजिए, चार बिना जली रहने दीजिए, एकधूपबत्ती जलाकर खत्म होने को हो, तब दूसरी जला दीजिए। जब वह खत्म हो तो तीसरी फिर चौथी और पाँचवीं जलाएँ। इस तरीके से पाँच बार में पाँच धूपबत्तियों के जो आपने बण्डल बनाये और पाँच दीपक बनाये, उनको एक-एक करके पाँच हिस्से में जलाएँ तो पाँचवेंहिस्से से आपका काम चल जाएगा और किफायत भी हो जाएगी। मैं किफायत की बात इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि अगले दिनों आपको पैसे की तंगी पड़ेगी, ज्यादा खर्च करना मुसीबत लायेगा। जो आदमी ज्यादा खर्च करता है, वह ज्यादा फायदे की भी उम्मीद करता है, लेकिन जिसका थोड़ा खर्च हुआ है उस बेचारे का थोड़ा समाधान हो जाए तो भी काम चल जाता है। यज्ञ इसीलिए लोगों को अखरता है। यज्ञ के नाम पर कम से कम खर्च कराना चाहिए। जो विधियाँ आपको बतायी गयी है, उसी के हिसाब से हर घर में जाकर के यज्ञ करानाचाहिए।
घरों में जो यज्ञ आप कराएँ, उसमें ये कुछ बातें शामिल करें। वास्तव में यह हम परिवार-गोष्ठियों के रूप में पारिवारिक यज्ञ कर रहे हैं। इसमें परिवार-निर्माण का उद्देश्य छिपा हुआ है, जो कि समाज-निर्माण से भी सम्बन्धित है और यज्ञ के निर्माण से भी सम्बन्धितहै। यज्ञ के निर्माण और समाज-निर्माण के बीच की इकाई यह परिवार-निर्माण है। परिवार -निर्माण पारिवारिक यज्ञों के माध्यम से होगा। इसमें सुबह परिवार यज्ञ किया किया जाए और शाम को कीर्तन की व्यवस्था की जाए। भले ही महिलाएँ मिल-जुलकर कर लें। कोईबात नहीं है, पर करना जरूर चाहिए। लेकिन साथ में जो देव-दक्षिणा वाला प्रकरण है, उसे नहीं भूलना चाहिए। देव-दक्षिणा हर घर के यज्ञ में भी होनी चाहिए और क्या-क्या होना चाहिए? कुछ खास बातें हैं जो जरूर करनी चाहिए। प्रथम तो यह कि प्रातःकाल सुर्योदय केसमय पर भगवान का स्मरण करना। इस समय यह बहुत ही आवश्यक है। सूर्योदय काल की अपनी खास विशेषता है। चाहे सुबह कर लेंगे, दोपहर को कर लेंगे, शाम को कर लेंगे! नहीं साहब! बिल्कुल सबेरे ही सूर्योदय के समय पर ही नाम स्मरण करना होगा, चाहे आपनहाए हों या न नहाए हों। सूर्योदयकाल में एक ही तरीके से, एक ही समय में, एक ही प्रकार का कार्य करने से उसकी शक्ति सौ गुनी हो जाती है, इसलिए यह प्रातःकाल का जप आवश्यक बताया गया है। उसके बारे में आप घर-घर में जाकर हर आदमी से मिलकर कहिएकि प्रातःकाल का जप करना शुरू करें, चाहे दस मिनट का ही क्यों न हो।
इसके सिवाय एक और बात है। हमारे देश को गिराने वाली कुछ चीजें हैं। उनसे अपने आपको उबारने की कोशिश करनी चाहिए। शिक्षा की कमी इस तरह की है कि आदमी जानवर की तरह भयानक हो जाता है। न उसके ज्ञान के कपाट खुलते हैं, न उसको नयी जानकारियाँमिलती हैं, न समाज में क्या हो रहा है ये पता चलता है, न उसे, लोग किस तरीके से आगे बढ़ रहे हैं ये जानकारियाँ मिलती हैं। वह एक तरीके से कुएँ का मेढक बनकर रहता है। इसलिए आपको शिक्षा के बारे में प्रौढ़-शिक्षा आन्दोलन को इन्हीं यज्ञों के साथ में जोड़करप्रारम्भ कर देना चाहिए। आप लोगों में से जो कोई पढ़े-लिखे हों, उन्हें यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि ‘‘हम पाँच बिना पढ़े-लिखों को तो जरूर ही पढ़ा देंगे।’’ चाहे तो आप उनके घर जाइये, चाहे उन्हें अपने घर बुलाइए, चाहे दो वर्ष पढ़ाइए। आप यहाँ से एक संकल्प लेकर केजाइए कि ‘‘पाँच व्यक्तियों को तो पढ़ाएँगे ही।’’ परिवार में होने वाले यज्ञों की यह प्रमुख बात है। जो व्यक्ति पढ़ा नहीं सकते, वे पढ़ तो सकते हैं। घरों में बुड्ढे-बुढ़ियों, जवान स्त्रियाँ बिना पढ़ी होती हैं। उनको पढ़ाने का एक आन्दोलन हमें इसी यज्ञ-योजना में शामिलकरना है।
दूसरा एक और आन्दोलन है, जो इससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। वह क्या है? जो कुछ भी हम कमाते हैं वह सब पैंदे के छेद में से होकर निकल जाता है। फूटे हुए घड़े में पानी चाहे जितना डालते जाइये, पर पेंदे में बने छेद में से होकर सब निकल जाएगा और घड़ा खाली काखाली बना रहेगा। इस पेंदे का छेद है—हमारे समाज में ब्याह-शादियों में होने वाला खर्च। खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र, बेईमान बनाती हैं। यह तो हमने आपको पच्चीसों बार कहा है और कहते रहेंगे हमेशा! हमारा देश जो तबाह हुआ है, जो बर्बाद हुआ है इसमें ब्याह-शादियोंवाली बात ऐसी है इसको अगर खर्चीला बनाये रखा गया तो आप समझिये कि हम आमदनी बढ़ाने का चाहे जितना प्रयत्न करें तो भी हम गरीब के गरीब बने रहेंगे। इसके लिए क्या करना चाहिए? आप सब लोगों को इसके लिए ये प्रतिज्ञाएँ करनी चाहिए, अभिभावकोंको ये प्रतिज्ञाएँ करनी चाहिए कि ‘‘हम अपने बच्चे और बच्चियों की शादियों में धूमधाम नहीं करेंगे—एक। दिखावा नहीं करेंगे—दो। दहेज नहीं लेंगे और न देंगे—तीन और जेवर नहीं चढ़ायेंगे—चार।’’
ब्याह-शादियों में जेवर और दहेज का कितना बड़ा सम्बन्ध है, ये आपको मालूम नहीं है। लड़के वाला माँगता है-दहेज—। क्यों माँगता है? क्योंकि उससे जेवर माँगा जाएगा। लड़की वाला माँगता है जेवर और लड़के वाला माँगता है दहेज। ये दोनों ही बातें मरेंगी तो एकसाथ ही मरेंगी। अगर जिंदा रहेंगी तो दोनों ही बातें जिन्दा रहेंगी। आप अकेले दहेज को बन्द करना चाहें और ये चाहें कि हमारी लड़की पर जेवर जरूर चढ़ाये, तो बेचारा बेटे वाला कहाँ से लायेगा जेवर के लिए सोना? आज सोने का कितना मँहगा भाव है? इसमें अगर मानलो कोई आदमी पचास ग्राम का भी जेवर बनवाना चाहे तो उसको कितना रुपया चाहिए? यह कहाँ से आएगा? अतः जेवर के लिए वह दहेज माँगता है, तो क्या बुरा करता है? दहेज को बन्द करने की यदि बात करनी चाहिए, तो जेवर को बन्द करने की बात भी करनीचाहिए। अतः आप ब्याह-शादियाँ इस तरीके से कराइए जिसमें न दहेज दिया जाए, न जेवर लिए जाएँ, जिसमें न बारात चढ़ाई जाए, न धूमधाम की जाए। न बैण्ड-बाजे बजाएँ और न बेकार के काम किये जाएँ। घरेलू उत्सव होते हैं। हमारे घर में होली-दीपावली होती है, तीज-त्यौहार होते हैं, उसी तरीके से पाँच आदमी उस तरफ के आ जाएँ और पाँच यहाँ घर के हों। अपने घर में छोटा-सा हवन कर लिया जाए और शान्ति से ब्याह कर दिया जाए और दूसरे दिन विदा कर दी जाए। इस तरह के विवाह बहुत कम दाम पर होते हैं। किसी कोदहेज ही देना हो तो अपनी बेटी के लिए इन्दिरा विकास पत्र में रकम जमा कर सकता है, जो पाँच साल में दूनी हो जाएगी।
इस तरह की ब्याह-शादियों की परम्परा चलाना भी हमारा इस वक्त का कार्यक्रम है। दहेज हिन्दू समाज का कोढ़ है। यह हिन्दू समाज का कलंक है। शिक्षा का अभाव होना हमारे देश के लिए कलंक है। दहेज का, ब्याह-शादियों में फिजूलखर्चियों का होना हमारे देश काकलंक है। इसको दूर करने के लिए आप लोगों को इसी तरह के कार्यक्रम का प्रयास करना पड़ेगा और इन्हीं यज्ञों के साथ में इन दो कार्यक्रमों को भी मिलाना पड़ेगा।
ब्याह-शादियों का एक और भी तरीका है। ज्यादातर होता यह है कि मोहल्ले वाले, पड़ोसी, यार-दोस्त, मित्र और सम्बन्धी ये कहते है कि नहीं साहब, नाक कट जाएगी, बात बिगड़ जाएगी। ऐसा तो नहीं होना चाहिए। धूमधाम तो होना ही चाहिए। मोहल्ले में फलाने काइतना बड़ा ब्याह हुआ था, आपको क्यों नहीं करना चाहिए? जहाँ इस तरह की मुसीबतें हों, जहाँ इस तरह के गिद्ध-कौए चारों ओर से घेरे हों आपको और आपको यह मालूम पड़ता हो कि इस मुसीबत से निकलने का कोई उपाय नहीं है, तो हम आपको निमन्त्रित करते हैंकि आप कन्या को ले आइए, लड़के को ले आइये और पाँच-पाँच आदमी दोनों पक्षों के आ जाइये और यहाँ शान्तिकुञ्ज में आप बड़े मजे से विवाह करके ले जाइये—बिना खर्च किये। यहाँ किसी तरह का खर्च नहीं पड़ेगा। न यहाँ किसी तरह का दिखावा करना पड़ेगा, नफर्नीचर देना पड़ेगा न कोई दहेज माँगने की हिम्मत करेगा, न कोई जेवर चढ़ाने का नियम है। पाँच आदमी आएँगे। आप यहाँ खाना खाइए। यहाँ के चौके में एक हजार आदमी खाना खाते हैं। पाँच आदमी बारात के आ जाएँ; वे हमारे मेहमान की तरह खाना खा जाएँगे तोहमारा क्या बिगड़ जाएगा? इसलिए इस तरह के विवाहों का, मेरी समझ से ये ज्यादा है कि इस रिवाज को फैलाने के लिए आप स्थानीय स्तर में सफल नहीं हो पाते हैं, तो आप इसमें तो बड़ी आसानी से बड़ी आसानी से सफल हो जाएँगे कि हमारे जो विवाह होंगे वे हमारेगुरुद्वारे में होंगे और वे शान्तिकुञ्ज में होंगे। शान्तिकुञ्ज में विवाहों का यही प्रचलन चलेगा। यह तीर्थस्थान भी है। देवताओं का यहाँ निवास भी है। यहाँ यज्ञ भी होता है, ऐसे शुद्ध स्थान पर विवाह-संस्कार सम्पन्न करें। जैसे शुभ मुहूर्त की बात सोची जाती है वैसे हीआप शुद्ध स्थान की बात सोचिए। मुहूर्त की बात मत सोचिए? आप कभी भी ले आइये। यहाँ हमेशा ब्याह हो जाता है, क्योंकि यहाँ शुभ वातावरण है, शुभ भूमि है, शुभ एवं पुनीत स्थान है। इसलिए यहाँ मुहूर्त की जरूरत नहीं है, आप इस बात को जान लीजिए।
दो बातें और रह जाती हैं इसके सिवाय। पहली है नशेबाजी की बात, आप नशेबाजी को छुड़ाइए, नहीं तो अगली पीढ़ियाँ घटते-घटते, गिरते-गिरते किसी काम की न रह जाएँगी। आपको यह तो मालूम ही है कि नशे से शरीर मारा जाता है, बुद्धि भी मारी जाती है, पैसा भीबर्बाद हो जाता है। कुटुम्ब भी तबाह हो जाता है और बच्चों का भविष्य भी खराब हो जाता है। आदमी ऐसा बन जाता है जिसका न कोई विश्वास करता है, न कोई पास बैठने देता है। पीढ़ियों की यह गिरावट अगर बनी रही तो पचास-चालीस वर्ष में एक पीढ़ी के बाद दूसरीपीढ़ी कमजोर होगी। दूसरी के बाद तीसरी कमजोर होगी और हम वास्तव में फिर इस लायक हो जाएँगे कि हमको अपने शरीर को धकेलना मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए करना आपको यह चाहिए कि नशेबाजी के विरुद्ध भी जो कुछ आपके लिए सम्भव हो, उसको जरूरकरना चाहिए।
नशेबाजी के सिवाय एक और बात है। साग-भाजी उगाने की तो हम कह नहीं सकते, क्योंकि जब वर्षा का अभाव होगा तो आप साग-भाजी कहाँ से उगा पाएँगे? साग-भाजी मनुष्य के जीवन के लिए उतनी ही आवश्यक है—जितना अनाज। अनाज से कम आवश्यक नहींहै। आप साग-भाजी उगाने के लिए अपने घरों में इन्तजाम कीजिए। पानी आप पीते हैं सो ठीक है, पर जब आप कुल्ला करते हैं, नहाते हैं तो पानी बहकर बेकार चला जाता है। उस पानी को इकट्ठा कर लीजिए और अपने घरों में, गमलों में, टोकरों में, पिटारों में, किसी मेंजो आपने उगा रखा है, उसी में उस पानी को आप डाल दीजिए। जो आपके स्नान से बचा हुआ है, जो आपके पीने से बचा हुआ है, जो आपके हाथ धोने से बचा हुआ है—उस पानी को भी साग-भाजी में डाल दें, तो साग-भाजी पैदा हो सकती है। मान लीजिए कि उस साग-भाजी से आप घर का पूरा खर्चा नहीं भी चला सकते हैं, तो उससे कम से कम चटनी का काम तो चल ही सकता है। रूखी रोटी खाने के बजाय आप चटनी से तो काम चला सकते है। चटनी ही एक ऐसी चीज है कि जिससे हमारे लिए बड़ी सहूलियत मिलती है। आपकी ये—धनियाँ है, पोदीना है, पालक है, अदरक है, मिर्च है और टमाटर है। ये चीजें तो आसानी से लगा सकते हैं। कोई और साग नहीं बो सकते आप, चटनी का सामान तो आसानी से इकट्ठा कर सकते हैं।
तो साहब! साग-भाजी का लगाना एक, नशेबाजी का विरोध करना दो, ब्याह-शादियों में खर्च न होने देना-सादगी के साथ ब्याह करना तीन और प्रौढ़ शिक्षा के बारे में ज्यादा से ज्यादा प्रचार करना—चार। छोटे बच्चों का तो यह भी है कि गवर्नमेण्ट स्कूलों में पढ़ा लेते हैंलेकिन बड़ों की संख्या तो दो-तिहाई है। दो तिहाई हमारे देश के बिना पढ़े-लिखे लोग हैं। उनको शिक्षित करने की बात पर हम लोगों को ध्यान देना चाहिए, तैयारी करनी चाहिए। अब इन सभी बातों को ध्यान में रखकर के हमारे यज्ञों की पूर्णता इन बातों में जोड़नी चाहिएकि आपके यज्ञ के साथ-साथ में भावनाएँ जुड़ी हुई हों, सेवाएँ जुड़ी हों। देश को ऊँचा उठाने, आगे बढ़ाने की मनोवृत्ति भी जुड़ी हुई हो। यज्ञ भी जुड़ा हुआ हो, कीर्तन भी जुड़ा हो और भगवान का नाम स्तवन भी जुड़ा हुआ हो। साथ ही अपनी बुराइयों को छोड़ने और अच्छाइयोंको बढ़ाने का प्रयत्न भी जुड़ा हुआ हो। इन सबको मिलाकर चलेंगे तो आप यह मान लीजिए कि यज्ञ में जो भी बड़े से बड़ा कार्यक्रम होगा—इन कार्यक्रमों के आधार पर ही पूरा हो जाएगा। और वही फल मिलेगा आपको, जो बड़े यज्ञों से मिलना चाहिए। मुझे आशा है किआप इन बातों को ध्यान से सुनेंगे और उसको कार्यान्वित करने में कुछ कसर उठा नहीं रखेंगे—इतना ही निवेदन है आप सब लोगों से।
ॐ शान्तिः