उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।।
दुर्लभ हैं मूल्यवान वस्तुएँ
देवियो, भाइयो! लकड़ी का एक बड़ा सा सन्दूक है। सन्दूक के भीतर लोहे की अटैची है और उस लोहे की अटैची के भीतर कीमती जेवर हैं, जो सोने-चाँदी से बने हुए थे। कीमती चीजों को तीन तरह से सम्भालने की बात समझ गये न? चोर उठायेगा, तो सन्दूक को उठायेगा और फिर अटैची को निकालेगा। जेवर का तो बाद में पता चलेगा। इसलिए समझदार आदमी बहुमूल्य चीजें एक के भीतर एक छिपाकर रखते हैं। भगवान् भी समझदार है। उसने हर कीमती चीजों को छिपा-छिपा करके रखा है। उसने बाहरी चीजों को, कम कीमत की चीजों को बाहर रखा है। उससे ज्यादा कीमत की चीजों को और भीतर रखा है। उससे भी ज्यादा कीमती चीजों को और भी भीतर रखा है। आपने देखा नहीं है कि जमीन में मिट्टी, कूड़ा, कंकड़, पत्थर बाहर पड़ा रहता है। जमीन को जरा सा खोदिए, तो नीचे पानी मिल जायेगा। पानी कितना कीमती है? पत्थर से ज्यादा कीमती है। पानी से आदमी जिन्दा रहता है, पेड़-पौधे जिन्दा रहते हैं। पानी कितना कीमती है? मिट्टी इतनी कीमती नहीं है। पानी ज्यादा कीमती है, इसलिए नीचे है।
मित्रो! इसके बाद में फिर भगवान् ने इससे कुछ और कीमती चीजों को कुछ और नीचे रखा है। आप नीचे और गहराई में खोदते चले जाइये, तो पेट्रोल पाइयेगा। और नीचे खोदते जाइये, तो लोहा पाइयेगा, धातुएँ पाइयेगा, सोना, चाँदी पाइयेगा। यह सब चीजें गहरे में रहती हैं, ऊपर नहीं रहतीं। समुद्र के बाहर क्या रखा है? समुद्र के नजदीक बाहर वाले हिस्से में नमक फैला रहता है। आप कभी समुद्र के किनारे जाना, वहाँ आपको खाली नमक मिलेगा, खारा पानी मिलेगा, खाली जमीन मिलेगी। अगर आप और भीतर घुसने की कोशिश करेंगे, तो आपको वहाँ कीमती चीजें मिलेंगी। मोती नीचे गहराई में मिलते हैं, ऊपर नहीं मिलते। ऊपर की सतह पर क्या मिलता है? खारा पानी होता है। समुद्री फेन वगैरह तैरते फिरते हैं और बहुत सी बेकार चीजें घूमती फिरती हैं। समुद्र में कीमती चीजें नीचे रहती हैं।
मित्रो! मैं क्या कह रहा था? मैं यह कह रहा था कि इंसान की सत्ता में तीन लिफाफे हैं। उसके तीन कलेवर हैं। आपने देखा नहीं कि बीमा करने का, रजिस्ट्री करने का लिफाफा ढाई रुपये का आता है। वह मोटा होता है और उसके भीतर नोट रख देते हैं। नहीं साहब! नोट बाहर रखिये और लिफाफा भीतर रखिये। भाईसाहब! तब मुश्किल पड़ जायेगी, मोहर लगेगी तो नोट खराब हो जायेगी। और डाकखाने वाला पोस्टमैन चुरा ले जायेगा। इसलिए नोट भीतर रखते हैं। सब लोग जितनी होशियारी जानते हैं, भगवान् उतनी होशियारी तो जानता ही है। उसने क्या करके रखा है? उसने इंसान को बेशकीमती नियामतें दी हैं और एक के भीतर एक छिपा करके दी हैं।
मानवीय व्यक्तित्व के तीन तल
हमारे भीतर बहुत सारी परतें हैं। एक परत वह है, जिसको हम शरीर वाला लिफाफा कहते हैं। जिसे चमड़े का शरीर कहते हैं, जो श्रम करता रहता है और श्रम करने के बदले में साधन कमाता रहता है। वह श्रम करता है, पसीना बहाता है और वस्तुएँ कमाता है। मकान किसने बनाया? हमारी मशक्कत ने। कारखाने कौन बनाता है? हमारी मशक्कत बनाती है। मशक्कत से क्या मतलब है? शरीर से। श्रम से खेती-बाड़ी होती है। श्रम से मकान बनते हैं। श्रम से कारखाने चलते हैं। यह कौन करता है? यह आदमी का शरीर करता है। शरीर कीमती है? बेशक शरीर बहुत कीमती है।
मित्रो! स्थूल शरीर के बाद हमारा एक और शरीर है, जिसको हम ‘सूक्ष्म शरीर’ कहते हैं। स्थूल शरीर की बात मैं बता चुका हूँ। यह चमड़े का शरीर है। यह कीमती है? नहीं, कीमती नहीं है, कम कीमत का है। अगर आप इसे बेचना चाहें, तब? किराये पर उठाना चाहे तब? तब इसके बहुत कम पैसे मिलेंगे। एक मजदूर को क्या मिल सकता है, बताना। देहात में पाँच-सात रुपये मिलते हैं और शहरों में बीस-तीस रुपये मिलते होंगे। कारीगर को क्या मिलता होगा? इससे ज्यादा शायद ही मिलता हो। शरीर की कीमत कम है।
ज्ञान का शरीर, विचारों का शरीर—सूक्ष्म शरीर
इसके बाद में हमारा एक और कीमती शरीर है। कौन सा वाला? जिसको हम सूक्ष्म शरीर कहते हैं। सूक्ष्म शरीर से क्या मतलब है? सूक्ष्म शरीर से मेरा मतलब है—ज्ञान वाला शरीर, विचारों वाला शरीर। यह बहुत कीमती है। इसकी बकत-कीमत ज्यादा है और भगवान् ने इसे खुले में रखा भी नहीं है। इन्द्रियों को तो खुले में रख दिया है। हमारी आँखें बाहर रखी हुई हैं। सारी इन्द्रियाँ बाहर खुले मैदान में है। इन्हें चाहे आप जब देख लीजिये, लेकिन दूसरी चीजें इसलिए बहुत हिफाजत से रखी हुई हैं कि जिनका कहीं किसी को पता न चलने पावे, नजर न लगने पावे।
मित्रो! दूसरा वाला शरीर जिसको हम सूक्ष्म शरीर कहते हैं, यह है क्या? यह शरीर आदमी का दिमाग है। यह बहुत बेहतरीन खोपड़ी के भीतर रखा हुआ है। चमड़ी में से खून निकालिए। चमड़ी को उखाड़ने पर भी खून निकलता है। आपने देखा भी है कि दिमाग को कैसे निकालते हैं। कितना मज़बूत सन्दूक है जिसके अन्दर आदमी का दिमाग रखा है। भगवान् ने बहुत समझदारी से काम लिया है। हमारा सूक्ष्म शरीर कितना कीमती है? बहुत कीमती है। क्यों? क्योंकि दुनिया में जो कुछ भी बेहतरीन चीजें हैं, वे सब दिमाग की पैदावार हैं।
साइंस किसकी पैदावार है? दिमाग की पैदावार है। साहित्य दिमाग की पैदावार है। संगीत दिमाग की पैदावार है। दुनिया में जो कुछ भी आपको बेहतरीन दिखाई पड़ता है, वह सब दिमाग की पैदावार है। अगर आदमी के दिमाग ठप्प रहे होते और उसी तरह के से आदमी रहे होते, जिस तरीके से वे आदिमकाल में रहते थे, तो मुश्किल खड़ी हो जाती। वे बेचारे क्या कर पाते? कुछ नहीं कर सकते थे। आदिमकाल में बड़े-बड़े सरीसृप, हाथी और बड़े-बड़े गज थे। बहुत तो अस्सी-अस्सी फीट तक ऊँचे थे। एक सौ बीस फीट लम्बे-लम्बे दाँत थे। ऐसे थे वे। फिर वे कहाँ चले गए? भाईसाहब! शरीर तो उनका बहुत मजबूत था। हाथी जैसे प्राणी बेडौल थे। पर क्या कर सकते हैं? पुराने जमाने के, आदिमकाल के सारे के सारे प्राणी, सारे के सारे जानवर नेस्तनाबूद हो गए।
लेकिन मित्रो! अक्ल बहुत जबरदस्त है। अक्ल न हो, तो ट्रेन किससे चलती? अक्ल न हो तो वकील किससे वकालत करते? प्रोफेसर किससे काम करते हैं? साइंटिस्ट किससे काम करते हैं? व्यापारी किससे काम करते हैं? अक्ल से वे मालदार हो गये। शरीर से मालदार हो गए क्या? नहीं, शरीर से मशक्कत कीजिए, तो कोई पन्द्रह रुपये रोज के हिसाब से मजदूरी देगा। नहीं साहब! हमारी फैक्ट्री में तो बहुत आमदनी है। कितनी आमदनी होती है? हमारी फैक्ट्री में तो दो हजार रुपये रोज की आमदनी होती है।
शरीर से ज्यादा कीमती है बुद्धि
भाईसाहब! यह अक्ल की आमदनी है। आप में अक्ल नहीं होती तो आपसे भी ज्यादा होशियार कारीगर काम करते, जिनको आप दस-बीस रुपये रोज देते हैं, तीस से चालीस रुपये रोज देते हैं। मशक्कत आपसे ज्यादा करते हैं, योग्यता आप से ज्यादा है, लेकिन आपके पास अक्ल है। दुनिया में अक्ल बहुत कीमती है। अक्ल ने दुनिया में क्या-क्या चमत्कार दिखा दिया। शरीर ने साधन तो बना दिये, टूटी-फूटी जमीन को साफ-सुथरा तो कर दिया है, समतल तो बना दिया है। यह शरीर की ताकत है, जिसको हम हार्सपावर करते हैं। हार्सपावर यानि घोड़े की ताकत। यहाँ शरीर का मुकाबला घोड़े से किया है। हार्सपावर वह भी है जिससे बिजली की मोटरें चलती हैं और हार्सपावर यह भी है। साहब! आपका शरीर कितने हार्सपावर का है? साहब! हमारा शरीर डेढ़ हार्सपावर का है। आपका पौने दो हार्सपावर का है और आपका आधे हार्सपावर का है। इस तरह शरीर हार्सपावर है।
मित्रो! दूसरा वाला शरीर है—सूक्ष्मशरीर, जिसमें हार्स पावर नहीं रख सकते। इसमें क्या है? विचार है, अक्ल है, जिसमें बहुत ताकत है। मैं समझता हूँ कि इन दोनों शरीरों के बारे में आप सब जानते हैं। इन दोनों की बकत आप सबको मालूम है। अगर न मालूम होती, तो अपने शरीर को खूबसूरत बनाने के लिए, अच्छा बनाने के लिए, स्वस्थ बनाने के लिए आप अपनी अक्ल के मुताबिक़ कर सकते थे। आपने सब कुछ किया भी। खान-पान के बारे में जो कुछ भी आप कर सकते थे, अपनी हैसियत के मुताबिक़ आपने किया।
आपने शरीर की सेहत बनाने के लिए, शरीर को प्रसन्न रखने के लिए, शरीर को खुशहाल रखने के लिए कपड़े पहने हैं। गद्दे, लिहाफ का इंतजाम किया है। शरीर को ज्यादा खूबसूरत दिखाने के लिए जो कुछ भी आप कर सकते थे, उसमें कोई कमी नहीं रखी। सेंट लगाने से लेकर फैशनेबिल कपड़े पहनने तक, जो कुछ भी आप कर सकते थे, आपने किया, ताकि हर आदमी की निगाह में आपका शरीर अच्छा मालूम पड़े। शरीर की कीमत आपको मालूम है। मैं प्रसन्न हूँ—यह जानकर कि आपको अपने शरीर की कीमत मालूम है। जानवरों को तो शरीर की कीमत ही नहीं मालूम है। उन्हें नहाना भी नहीं आता, कुल्ला करना भी नहीं आता। दाँत भी नहीं माँजते, बालों में कंघी भी नहीं करते। रीछ है, जो बालों में कंघी भी नहीं करता।
मित्रो! हमने एक दिन पूछा—रीछ जी! आप बालों में कंघी करेंगे क्या? अरे गुरुजी! हमको तो इतनी अक्ल ही नहीं है, हम क्या करेंगे? भेड़ों से पूछा—जैसे हमारे बच्चे बाल बना लेते हैं, आप भी बना लेंगी क्या? भेड़ों ने कहा—नहीं हम नहीं बना पाएँगे। उनको अक्ल नहीं है। आपमें अक्ल है। आपने शरीर की बाबत ध्यान रखा है। हमें प्रसन्नता है कि भगवान् की दी हुई अमानत और भगवान् की दी हुई नियामत के बारे में आपका ख्याल है। हम बहुत खुश हैं।
इससे भी ज्यादा खुशी की बात यह है कि आपने अक्ल की कीमत समझी। आप स्वयं स्कूल में पढ़े हैं और दूसरों को पढ़ाया है। अगर आप स्वयं न पढ़े होते और अगर आपने पढ़ाया न होता तो आपकी कीमत एक कौड़ी की, एक छदाम की रह जाती। अगर आपको शिक्षा प्राप्त नहीं होती, संस्कृति का ज्ञान न होता, समझदारी न होती, दूरदर्शिता, अक्लमन्दी न होती, तो फिर आपकी क्या कीमत होती? फिर कुछ कीमत नहीं होती। मुझे बहुत खुशी है कि हर व्यक्ति अपनी अक्ल को पैनी करने के लिए जो कुछ भी कर सकता है, करता है। पढ़ने से लेकर अनुभव इकट्ठा करने तक, घूमने से लेकर सत्संग तक, बहुत सी बातों के आप जानकार हैं। आप स्वयं पढ़ते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं।
आध्यात्मिकता—सबसे अंदरूनी परत
मित्रो! शिक्षा के बारे में और समझदारी के बारे में आपका ख्याल अच्छा है, परन्तु एक और बात मैं आपसे कह रहा था कि इसके भीतर जो चीज है, उसकी ओर आपका ध्यान नहीं गया। आप दो चीजों तक सीमित रह गये। दो चीजों को विकसित करना तो जरूरी था, लेकिन इसके भीतर एक और परत है। वह कौन सी परत है? उसे अध्यात्म कहते हैं। आध्यात्मिकता की एक परत और बच गयी है, जिसकी आपको जानकारी भी नहीं हो पाती और जिसके बारे में आप गौर भी नहीं कर पाते। जिसके लिए आप मेहनत भी नहीं करते। शरीर के लिए आपको मेहनत करनी चाहिए और अपनी अक्ल को पैना रखने के लिए, अक्ल को ठीक रखने के लिए आपको खर्च करना भी चाहिए।
दिमाग का बैलेन्स सही रखने के लिए, दिमाग को खुशहाल रखने के लिए रोज मेहनत करनी चाहिए, पैसा खर्च करना चाहिए, ध्यान देना चाहिए। अगर आप अपने दिमाग के बैलेन्स को गड़बड़ा देंगे, तो काम कैसे चलेगा? बड़ी मुश्किल खड़ी हो जायेगी। लेकिन मैं आपसे एक बात कह रहा था कि आपका एक शरीर और है, जो दोनों शरीरों के अतिरिक्त है।
मित्रो! आपके भीतर एक और ऐसी तह है, एक ऐसी परत है, जिसकी ओर आपको गौर करना चाहिए था, परन्तु आप अभी तक गौर नहीं कर सके हैं। वह कौन सी वाली परत है? वह हमारी आध्यात्मिकता की परत है। यह तीसरी वाली परत है। मैंने पहले एक उदाहरण दिया था और कहा था कि लकड़ी की सन्दूक की कीमत कम होती है। वह पच्चीस-पचास रुपये में आ जाती है। उसके भीतर जो असली वाली अटैची है, वह ज्यादा दाम की आती है। और उसके भीतर जो चीजें रखी जाती हैं, मसलन कोई जेवर वगैरह होती है, जो ज्यादा कीमत के होते हैं। आपने ज्यादा कीमत वाली चीज पर कभी गौर नहीं किया। उसको आपने क्यों नहीं संभाला। उसको अगर संभालने की आपने कोशिश की होती, तो मैं यकीन से कहता हूँ कि आप लोगों में से हरेक की हैसियत आज की अपेक्षा बहुत ज्यादा शानदार होती। मजदूर की अपेक्षा पढ़े-लिखे समझदार व्यक्ति की हैसियत ज्यादा होती है।
मित्रो! मजिस्ट्रेट की, जज की और दूसरे पढ़े-लिखे लोगों की कीमत दुनिया में हमेशा रही है और रहेगी। आध्यात्मिक क्षेत्र, जिसकी ओर मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ कि अगर आपकी अकल गयी होती और समझ रही होती और आपने उसकी कीमत समझी होती और उसको बढ़ाने के लिए आपने कोशिश की होती, तो आप यकीन रखें की आज हमारी और आपकी जो हैसियत है, आज जो स्थिति है, आज हमारे जीवन का जो स्वरूप है, उसकी अपेक्षा कहीं बेहतरीन स्वरूप रहा होता।
निखारें और परिपुष्ट करें अपना आध्यात्मिक स्वरूप
कैसे? आध्यात्मिकता की परत, जिसको हमारे बुजुर्ग जानते थे, वे अपनी सारी की सारी अकल और समझदारी इस बात में खर्च करते थे कि आदमी की रूहानी हिस्सा—आध्यात्मिक परत किसी तरीके से मजबूत होती चली जाय। निखरती चली जाय और परिपुष्ट होती चली जाय। उसका परिणाम क्या हुआ था? उसका परिणाम आपको नहीं मालूम। परिणाम मालूम होना चाहिए। यहाँ के आदमी मालदार थे। कौन कहता है कि मालदार थे? नहीं साहब! बहुत मालदार थे। अभी तो आप मालदार हैं, किन्तु पहले जमाने में कौन मालदार था?
मित्रो! अभी आपके पास रेलगाड़ियाँ हैं, लेकिन बाप-दादों के पास बैलगाड़ियाँ थी। बैलगाड़ियों से चलकर हरिद्वार से हम आपके पास आये। इसमें एक महीना लगना चाहिए था। गधे पर बैठकर आना चाहिए था अथवा बैलगाड़ी पर बैठकर आना चाहिए। धीरे-धीरे चलना चाहिए था। और यहाँ आने में कितना टाइम लगना चाहिए था। अब हम सबेरे चलते हैं और शाम को यहाँ आ जाते हैं, दोपहर तक आ जाते हैं। यह क्या हुआ? यह हमारी मालदारी है। पहले शिक्षा कहाँ थी? किताब वालों से पूछिये, वे बतायेंगे। पहले किताब वाले कहाँ थे? कहीं कोई किताबवाला रहा होगा। पहले जमाने में सारे-के-सारे लोग बिना पढ़े थे।
हम मालदार हैं? हाँ बिल्कुल मालदार हैं। अब हमारे पास बहुत साधन है। आज से दस वर्ष पहले अगर हम आपके पास आते तो मुश्किल से पच्चीस आदमी हमारे नजदीक बैठने वाले होते, जो हमारा भाषण सुन सकते थे। आज तो हमारे पास माइक लगे हुए हैं। आप चाहें तो एक लाख, दो लाख आदमियों को और पच्चीस लाख आदमियों को हम एक आदमी की छोटी सी जीभ की नोंक से भाषण सुना सकते हैं। किस्से सुना सकते हैं। आप समझते नहीं है कि हम कितने मालदार आदमी हैं। हमारे पास पैसा नहीं है। हम बैंक से उधार ले आते हैं और बड़ी-बड़ी फैक्ट्री खड़ी कर देते हैं। पहले हम कहाँ मालदार थे, बताइये जरा? पहले के लोगों की अपेक्षा अब हमें सम्पन्न कहा जाता है।
मित्रो! अब हम बहुत सम्पन्न आदमी हैं। अक्ल की दृष्टि से भी और साधनों की दृष्टि से भी, लेकिन हमारे पूर्वज इन दोनों चीजों की दृष्टि से शायद कम थे। पढ़े-लिखे भी कम थे और मेरा ऐसा ख्याल है कि उनके पास साधन भी नहीं थे। पहले रेलगाड़ियाँ कहाँ थी, नदियों पर जो बड़े-बड़े पुल बने हैं, वे कहाँ थे। वे बेचारे कभी-कभी निकलते थे। वर्षा खतम हो जाती थी, तो नाव पर चलना शुरू करते थे। वर्षा के दिनों में रास्ता बंद हो जाता था। चातुर्मास आरम्भ हो गया, देवता सो गये। नहीं साहब देवताओं को जगाइये। अरे भाई! देवता सो गये हैं, कैसे उठायेंगे। बरसात में चार महीना देवता सोते रहते थे। कोई चलता ही नहीं था, कोई जाता नहीं था। नदियाँ इतनी उफनती थी कि आदमी एक तरीके से कैद हो जाते थे। बुजुर्गों की हालत साधनों की दृष्टि से एवं अक्ल की दृष्टि से भी कम थी, लेकिन एक परत को उन्होंने इतना ज्यादा विकसित कर लिया था कि आदमी इतने ज्यादा खुशहाल थे कि यहाँ की खुशहाली और वैभव को देख करके दुनिया वालों ने उनका नाम जगद्गुरु रखा था। चक्रवर्ती शासक नाम रखा था और देवमानव नाम रखा था। इस जमीन पर रहने वाले आदमियों को देवता कहते थे।
कौन है इनसान और कौन है देवता
मित्रो! यहाँ देवता रहते थे। नहीं साहब! इंसान रहते थे। आपके कहने से इंसान रहते होंगे, लेकिन हमारे हिसाब से देवता रहते थे। इंसान से आप क्या मतलब लगाते हैं? जिसके आँख, कान, नाक, दाँत आदि होते हैं, आप उसे इंसान कहते हैं, लेकिन मैं कुछ और कहता हूँ। जिसका चिन्तन, जिसके सोचने का तरीका हवाई होता है और जो ऊपर बैठकर विचार करता है, उसे इंसान कहते हैं। आप तो नीचे बैठकर विचार करते हैं, आप जमीन पर बैठकर विचार करते हैं, गड्ढे में बैठकर विचार करते हैं। इस तरह आप नरक में बैठ करके विचार करते हैं और किसी जमाने में पुराने आदमी के सोचने के तरीके, दृष्टिकोण, जीवनयापन करने के क्रम और सारी की सारी स्कीमें हवाई जहाज में बैठने वालों के तरीके से होती थी।
देवता कहाँ रहते हैं? स्वर्ग में रहते हैं। स्वर्ग कैसा होता है? हवाई जहाज जैसा होता है। साहब! स्वर्ग और हवाई जहाज में तो फर्क होता है। फर्क तो होता होगा, मैं यह नहीं कहता कि हवाई जहाज को ही स्वर्ग कहते हैं, पर यह एक उदाहरण मैं आपको दे सकता हूँ। हवाई जहाज में बैठ करके आदमी नीचे की चीजों को नाचीज सा समझता है। ऊपर से नीचे की चीजें छोटी दिखाई पड़ती है। बड़े-बड़े तालाब जरा सा दिखाई देते हैं। बड़ी-बड़ी चलने वाली रेलगाड़ियाँ जरा सी दिखाई पड़ती है। हर चीज छोटी मालूम पड़ती हैं।
मित्रो! आपको जिन्दगी में जो चीजें बड़ी दिखाई पड़ती है, पहाड़ जैसी दिखाई पड़ती है, पर्वत जैसी दिखाई पड़ती है, भूत जैसी दिखाई पड़ती है, वे पुराने लोगों को छोटी दिखाई पड़ती थी। और जो आपको दिखाई नहीं पड़ती, जिसको आप समझते नहीं हैं। जिस बात पर आपका ख्याल नहीं जाता है, जिनको आप गौर भी नहीं कर सकते। पुराने जमाने के बुजुर्गों की आँखों में बायस्कोप लगे हुए थे। वे छोटी-छोटी चीजों को भी देख सकते थे, जिन्हें आप नहीं देख पाते हैं। जहरीले कीड़े आपको दिखाई नहीं पड़ते और आपके ऊपर वे हावी हो जाते हैं, क्योंकि आपकी आँखों में बायस्कोप नहीं है।
पुराने आदमियों के सामने विशेषताएँ थी। काम करने का सलीका था, इसलिए उन्होंने बहुत काम किये। खुशहाली के लिए उन्होंने बहुत काम किये। साधन नहीं थे, सामान नहीं था, फिर भी सामान के बिना तब खुशहाली थी। आप समझते नहीं हैं कि सामान के बिना भी क्या खुशहाली हो सकती है। किसी जमाने में कोलम्बस हिन्दुस्तान को तलाश करने के लिए आया था। यहाँ की खुशहाली को देखकर उसने हिन्दुस्तान को सोने की चिड़िया कह दिया था। सारे संसार भर में सोने की चिड़िया एक ही है और उसका नाम है-हिन्दुस्तान। कोलम्बस भटक गया और वहाँ जा पहुँचा अमेरिका में, लेकिन वह सोने की चिड़िया को तलाश करने के लिए निकला था।
इनसान की सबसे बड़ी दौलत
मित्रो! यहाँ आदमी के पास प्रसन्नता है, खुशहाली है, सेहत, मस्ती और आपस का भाईचारा है। यह तीन बड़ी दौलत थी कि यहाँ का हर आदमी चैन की जिन्दगी काटता था, खुशहाली से दिन काटता था और इतनी ज्यादा मौज, इतनी ज्यादा खुशहाली थी कि उसे सारी दुनिया में, सारे जगत् में बिखेरता फिरता था। कहाँ-कहाँ बिखेरा? सारी दुनिया के कोने-कोने में बिखेरा। इस सम्बन्ध में आप इतिहास के पन्ने पढ़ सकते हैं और हमारी कई किताबें पढ़ सकते हैं, जिसमें यह बात बताई गयी है कि जब से इतिहास चालू हुआ है, जब से इतिहास का जिक्र है।
इतिहास से पहले की बात तो मैं नहीं करता, पर जब से इतिहास लिखा जाने लगा है, तब से हिन्दुस्तान के लोगों ने सारी दुनिया में किस तरीके से सेहत फैलाई, किस तरीके से उद्योग फैलाये। किस तरीके से शिक्षा फैलाई, किस तरीके से क्या-क्या फैलाया? अपने पास जो मालदारी थी, उसको दुनिया में बिखेरते फिरे। हमारे बुजुर्ग बहुत मालदार थे। कैसे मालदार थे? आध्यात्मिक दृष्टि से मालदार होने की वजह से दुनिया में भारत भूमि, ग्रेटर इण्डिया, बृहत्तर भारत के नाम से विख्यात हुआ, जिसमें तैंतीस करोड़ इंसान रहते थे। सारी दुनिया के जितने द्वीप हैं, वे हिन्दुस्तान में रहने वाले तैंतीस करोड़ इंसानों को एक ही शब्द से पुकारते थे-देवमानव। हिन्दुस्तान में कौन रहते हैं? देवमानव रहते हैं, देवता रहते हैं। वे देवताओं का दर्शन करने आते थे और उनको जगद्गुरु कहते थे। वे कहते थे कि आप हमारे बड़े हैं, आप हमारे बुजुर्ग हैं। आपने ही हमको दिया था। आपके पास कौन सी दौलत थी। एक ही रूहानी दौलत थी जिसको आप भूल गये। उसकी ओर गौर करना चाहिए, उसकी ओर ध्यान देना चाहिए।
क्यों साहब! इससे क्या मिल सकता है? हमने सुना है कि अध्यात्म से भगवान् मिल सकता है। अरे साहब! भगवान् के मिलने में हमें कोई खास बात नहीं दिखाई पड़ती है। इससे तो ज्यादा अच्छा है कि कोई फिल्मी एक्टर मिल जाय। भगवान् को हम क्या करेंगे। ठीक है, आपकी बात भी सही है कि आप स्वर्ग की बात तो सोचते हैं। आज का आदमी सोचता है कि स्वर्ग मालूम नहीं कितना बड़ा होगा? खाने के लिए कुछ मिलता होगा या नहीं? वहाँ जाने काफी मिलती होगी कि नहीं? आमलेट मिलती होगी की नहीं? अगर ये चीजें नहीं मिलती होंगी, तो बताइये हम क्या करेंगे? बियर पीने को न मिली तो हम क्या करेंगे स्वर्ग में? स्वर्ग के बारे में यह बातें असत्य हो सकती हैं, पर आप में से हर आदमी यह सोचता है कि हमको स्वर्ग में नहीं जाना पड़े तो न सही, लेकिन किसी तरह से कश्मीर में गुलमर्ग में सैर करने का मौका मिल जाय और वहाँ शिकारा किराये पर लेकर पन्द्रह दिन घूमें। क्या यह स्वर्ग से कम है? आज आदमी इसी तरीके से विचार करता है।
आध्यात्मिकता की सच्ची कीमत
मित्रो! मैं उस आध्यात्मिकता की बात तो गहराई से नहीं बताना चाहता, जिसकी बाबत आपकी जानकारी नहीं है। स्वर्ग कैसा होता है, आपको मालूम है? नहीं मालूम है, इसलिए मैं आपसे क्या कहूँ। मुक्ति किसे कहते हैं, आप बता सकते हैं? आप तो मुक्ति की कीमत ही नहीं समझते। अगर आपने इसकी कीमत समझी होती, अगर आपने कुछ मेहनत-मशक्कत की होती, त्याग भी किया होता, कुछ पैसा भी खर्च किया होता, कुछ पसीना भी बहाया होता। पर आपको तो पसीना भी बहाना नहीं आता। बार-बार जब एक माला लेकर बैठते हैं, तब मन नहीं लगता और टाइम नहीं मिलता, फुर्सत नहीं मिलती। आप मेहनत करने के लिए कहाँ कीमत चुका पाते हैं? सैर के लिए कीमत चुकाते हैं और दूसरी चीजों के लिए कीमत चुकाते हैं।
झूठ-मूठ में थोड़ा खेल-खिलौना बनाते हैं और उसमें भी आपका मन नहीं लगता, फिर मैं कैसे कह सकता हूँ कि आप मुक्ति की बाबत जानते हैं। इस बारे में आपको कोई जानकारी नहीं है। स्वर्ग के बाबत आपको कतई जानकारी नहीं है। और शांति की बाबत? नहीं, आपके केवल शान्ति शब्द सुना है। सिद्धियों की बाबत आपको जानकारी है? नहीं, आप तो सिद्धियों को बाजीगरी समझते हैं और बाजीगरों को सिद्धपुरुष समझते हैं।
बाजीगरी नहीं हैं सिद्धियाँ
मित्रो! बाजीगर क्या करते हैं? वे बालों में से बालू निकाल सकते हैं और पेशाब के दीये जला सकते हैं और मुँह में से बंदर निकाल सकते हैं और हवा में ऊपर हाथ तैरा करके आपको इलायची निकालकर दे सकते हैं। कान में से उल्लू निकाल सकते हैं। सिद्धियाँ कैसी होती हैं, आपको मालूम नहीं है। आपको कोई जानकारी नहीं है। सिद्धियों से आपका कोई वास्ता नहीं है। आप तो तमाशे को सिद्धियाँ कहते हैं। चमत्कारों को सिद्धि कहते हैं। खिलौनों को सिद्धि कहते हैं। आप तो बाजीगरी को सिद्धि कहते हैं।
मैं कैसे मानूँ कि आपके पास सिद्धि है। आप क्या कहना चाहते हैं? मैं यह कहना चाहता हूँ कि आध्यात्मिकता के वे अर्थ जो अभी आपको समझ में नहीं आये, उसकी बाबत तो मैं जिक्र नहीं करता, पर आध्यात्मिकता का वह अर्थ आपको समझाना चाहता हूँ, जिसको मैं इसका भौतिक पक्ष कहता हूँ। भौतिक पक्ष में आपकी जानकारी है। वास्तव में आप जो डील करते हैं, भौतिक जीवन में ही डील करते हैं। इसलिए मैं आपको आध्यात्मिकता का वह सार बताऊँगा, जो आदमी के भौतिक जीवन में कुछ फायदेमन्द हो सकता है। आदमी को आनुदानिक हो सकता है। आदमी को खुशहाल बना सकता है। मैं आपको वही हिस्सा बताऊँगा और उस हिस्से पर कोई जिक्र नहीं करूँगा। मुक्ति, सिद्धि की कोई बात नहीं करूँगा।
नहीं गुरुजी? मुक्ति की बात बताइये। मित्रो! मुक्ति की बाबत बताने से पहले मुझे मुक्ति के शब्दों का अर्थ समझाना पड़ेगा और वह उससे बिल्कुल गलत, उल्टा होगा, जो आपने अब तक सुन करके रखा है। अगर मैं स्वर्ग के बारे में बताऊँ तो स्वर्ग के पहले मुझे उसकी व्याख्या करनी पड़ेगी, परिभाषा करनी पड़ेगी, जो आपकी अब तक की जानकारी के बिल्कुल खिलाफ है। अगर मैं शान्ति की बात कहूँ, तब भी मुझे फिलअप करनी पड़ेगी। और अगर सिद्धियों की बात करूँ तब? तब मुझे आज की बनिस्बत सिद्धियों की सही व्याख्या करनी पड़ेगी। आज तो आप सिद्धियों का अर्थ बाजीगरी लगाते हैं।
बाजीगरी माने तमाशा दिखाइये। बाजीगर क्या दिखाता है? ऐसे अचम्भे की चीज दिखाता है, जो बच्चों ने पहले नहीं देखी है। उसका नाम है बाजीगरी। आप का मन बाजीगरी चाहता है। आप क्या चाहते हैं? बाजीगरी चाहते हैं। आप चाहते हैं कि इस चक्र में से चमक पैदा कर दें, कैसे? जिस तरह से ब्याह-शादियों के दिनों में रात के समय बत्तियाँ जलती हैं, बार-बार जलती हैं, बुझती हैं और रंग बदलती रहती है, ऐसे ही आप हमारे दिमाग की खोपड़ी में जला दीजिए, तो हमें चमत्कार दिख जायेगा। फिर आप कहेंगे कि हाँ साहब! हमको चमत्कार दिखा। उल्लू कहीं का।
मित्रो! यह कोई चमत्कार है क्या? नहीं है। अरे साहब! कोई तमाशा दिखाइये, कोई अजूबा दिखाइये। जब आप अजूबा दिखा देंगे, तब हम चमत्कार मानेंगे। साहब! हमारे कान में घण्टी बजा दीजिये। नादयोग सिखा दीजिए। नादयोग से आपका क्या मतलब है? कान में घण्टी बजा दीजिए, कोई शंख बजा दीजिए। कोई बच्चे जैसी आवाज आये, बंदर या चूहे जैसी आवाज आये, फिर तरह-तरह की आवाज आये।
खेल-तमाशे का नाम नहीं है आध्यात्मिकता
भाईसाहब! इस काम के लिए आप ग्रामोफोन का रिकार्ड लगा लीजिए, रेडियो से सुना कीजिए। उसमें तरह-तरह की आवाजें आयेंगी। इन बेकार की बातों से आपको क्या फायदा होगा? मुझे तब बहुत नाखुशी होती है, जब आप चमत्कारों की बात कहते हैं और कहते हैं कि हमको गणेश जी दिखाइये, हमको हनुमान जी दिखाइये, हमको लक्ष्मण जी दिखाइये, हमको राम जी दिखाइये हमको बंदर दिखाइये, हमको उल्लू दिखाइये।
जब आप इन सबको दिखाने की बात कहते हैं, तो मैं कहता हूँ कि आपको आध्यात्मिकता के बारे में कतई जानकारी नहीं है। आप सिद्धियों के बारे में जो इस तरह का अर्थ लगाते हैं कि हमको अजूबा दिखाइये। अजूबा तो भाईसाहब! बाजीगर दिखाते हैं। कोई बाजीगर इस चक्कर में आपकी ऐसी उल्टी हजामत बना देगा कि आप फिर कौवे पालते रह जाएँगे। कोई बाजीगर आपकी अक्ल को खराब कर देगा और आपको उल्लू बना देगा।
मित्रो! अध्यात्म की सिद्धियाँ कोई तमाशा नहीं है। गुरु गोविंद सिंह क्या तमाशा दिखाते थे? सड़क पर मजमा लगाते थे? कान में से बंदर निकालते थे? बेकार की बातें मत कहिए। वे सिद्धपुरुष थे कि नहीं थे? हाँ साहब! वे अपने जमाने के सिद्धपुरुष थे। नहीं साहब! तमाशा दिखाइये। क्या तमाशा दिखायें? गाँधी जी को तमाशा दिखाना चाहिए था। क्या तमाशा दिखाना चाहिए था? टट्टी के रास्ते में से साँप निकालना चाहिए था और फिर वह सिर पर सवार हो जाता। क्या कहते हैं इसे? कुण्डलिनी कहते हैं। गाँधी जी को कुण्डलिनी दिखानी थी। चुप, बेअकल आदमी, कुण्डलिनी दिखानी चाहिए थी। मित्रो! क्या करना चाहिए? बेअकली हमारे ऊपर इस कदर हावी हो गयी है जिसमें समझदार भी शामिल हैं और बिना समझ भी शामिल है। इस मामले में दोनों वर्ग एक जैसे हैं, जो तमाशा माने सिद्धि मानते हैं। जबकि तमाशे का सिद्धि से कोई मतलब नहीं है।
भौतिकवादियों के लिए आध्यात्मिकता की व्याख्या
इसलिए पुरानी बातें तो मैं नहीं कहता, पर अब मैं आपकी भाषा में बोलना शुरू करूँगा। मेरे ख्याल से तो आप हिन्दी जानते ही हैं, तो मुझे हिन्दी में बोलना शुरू करना चाहिए। गुरुजी! अंग्रेजी में मत बोलिए, हम तो अंग्रेजी पढ़े भी नहीं हैं। ठीक है, अंग्रेजी में बोलना बेकार है, तो हम आपसे मराठी में बोलेंगे। नहीं गुरुजी! हमको तो पंजाबी आती है। हाँ गुरुजी! पंजाबी बोल सकते हैं तो ठीक है, पर मराठी तो मत बोलिए, क्योंकि हम उसे नहीं जानते, समझते हैं। हाँ बेटे, मुझे वह भाषा बोलनी चाहिए जो आप समझ सकें।
क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि मुझे आध्यात्मिकता का वह अर्थ करना चाहिए, जो आपके काम का है। जिससे कि आप मोहब्बत करते हैं, जिसे आप मुनासिब समझते हैं। आप क्या मुनासिब समझते हैं? एक बात मुनासिब समझते हैं कि हमारा बाहरी वाला जीवन किसी तरीके से खुश हो जाय। आपकी आस यहीं तक सीमित है। इसलिए मैं आपको भौतिकवाद के दायरे में लेता हूँ। पुराने जमाने के आदमी रहे होते, तो आपको विशुद्ध रूप से भौतिकवादी कहते। क्या कहते कि यह जो सब तबका है, वह भौतिकवादियों का तबका है। आध्यात्मिकता का तो कोई मायने-मतलब भी ये नहीं समझते।
मित्रो! आध्यात्मिकता का क्या अर्थ होना चाहिए। इसे कोई समझता भी नहीं है। आदमी को अपना व्यक्तित्व कैसे विकसित करना चाहिए, यह किसी को मालूम ही नहीं है। इसलिए पुराने आदमी कहते हैं कि इन लोगों से आध्यात्मिकता का जिक्र करना बेकार है। नहीं साहब! हम रात्रि में देवी का जागरण करते हैं। आप रात्रि में देवी का जागरण करते हैं, तो हम क्या करें? आप आध्यात्मिकता की बात मत कहिए। आप तो देवी की पूजा-वूजा करते रहिए, लेकिन अगर आप आध्यात्मिकता का जिक्र करेंगे, तो मैं नाखुश हो जाऊँगा।
दृष्टिकोण का परिवर्तन है आध्यात्मिकता
आध्यात्मिकता से क्या मतलब है? आध्यात्मिकता जीवन जीने की शैली है, सोचने का तरीका है, दृष्टिकोण है। आपने तो इसे काम करने का एक ढंग बना लिया है। आपके लिए तो आध्यात्मिकता टेक्नीक है। मेरे लिए यह टेक्नीक नहीं है। मेरे लिए यह फिलॉसफी है, जो आदमी के जीवन में उसके खाने से लेकर सोचने तक के हर काम में इस तरह से गुँथ जाती है, जिस तरीके से दूध में घी गुँथ जाता है। यही अध्यात्म है। आपको अध्यात्म समझाना बेकार है। आपको अ, इ, उ.... पढ़ना पड़ेगा, तब कहीं जाकर के आप वहाँ तक पहुँचेंगे। इसलिए आध्यात्मिकता का जिक्र मैं बंद कर देता हूँ।
मित्रो! मैं क्या कह रहा था? आध्यात्मिकता की बात कह रहा था, पर उसका तो रूहानी पहलू है, उसको मैं नहीं कहता। आपको उसका मैं भौतिक पहलू बताना चाहता हूँ, जिसको कि आप आसानी से समझ सकें। जो आपकी भाषा है, जो आपके सोचने का तरीका है, जिसको आप प्यार करते हैं, जो आप चाहते हैं और जिसको मैं भौतिकवाद कहता हूँ। इसलिए मैं अध्यात्मवाद की भौतिकवादी व्याख्या करना शुरू करता हूँ। क्या शुरू करना चाहते हैं?
पहले मैं यह बताना चाहता हूँ कि क्या अध्यात्म भौतिक जीवन में किसी तरह से लाभदायक बन सकता है? क्या इससे हमारा कुछ लाभ होगा। लाभ से क्या मतलब है? लाभ से मतलब है पैसा और दूसरा मतलब है—हमारी ताकत। तीसरा है—हमारी शोहरत। पैसा एक, ताकत दो और शोहरत-सम्मान तीन। ये तीन चीजें हमको मिल जायँ तो आप संतुष्ट हो जाएँगे। हाँ साहब! तब तो हम संतुष्ट हो जायेंगे और मान लेंगे कि हमारे जीवन में आध्यात्मिकता के चमत्कार आ गए। गायत्री माता की सिद्धि आ गयी और उनका आशीर्वाद आ गया। इसे आप मान लेंगे ना? हाँ साहब मान लेंगे।
मित्रो! चलिए पुराने जमाने के लोगों के कुछ थोड़े से उदाहरण मैं आपके सामने पेश करना चाहता हूँ, जिससे आपके भीतर का यह वहम खत्म हो जाय कि क्या अध्यात्म सांसारिक जीवन को सुखी बनाने का माद्दा रखता है? आपका यह भ्रम मैं दूर करना चाहता हूँ। आज आपका वहम यह है कि ऐसी कोई बात नहीं है। आमतौर से जब आप यह कहते हैं कि हमारा मन भजन में नहीं लगता, तो मैं यह समझता हूँ कि आपके भीतर वाले अचेतन मत का यह विश्वास है कि यह बातें बेकार है, वाहियात है। देखें, ट्राई करें, कुछ करें, पन्द्रह दिन देखें, यदि जप करने से कुछ फायदा होगा तो देखा जायेगा। नहीं होगा तो हटा देंगे।
आमतौर से हर आदमी अचेतन से अवचेतन की ओर जाता है और जब देखता है कि इसमें दम नहीं है। यह ऐसे ही खिलवाड़ है, बात को ऐसे ही बढ़ा-चढ़ा कर कह दिया गया है। मैं इस वहम को मिटाना चाहता हूँ, ताकि आप उसकी कीमत समझ सकें, बखत समझ सकें और आप यह विश्वास कर सकें कि आध्यात्मिकता वास्तव में कुछ कीमती चीज है और वह सदी के शेयर से भी ज्यादा कीमती चीज है। वह दुनिया की समस्त दौलत से भी कीमती चीज है और दिमागी अक्ल से भी ज्यादा कीमती चीज है।
मित्रो! इन कीमती चीजों को अगर आप समझ पाएँगे, तो मेरा विश्वास है कि आप इस मार्ग पर चलने की कोशिश भी करेंगे। जब आपको उसकी कीमत ही नहीं मालूम है तो आप कोशिश क्या करेंगे। अब मैं आपको आध्यात्मिकता की कीमत समझाता हूँ। प्राचीनकाल में आध्यात्मिकता के रास्ते पर थोड़े से आदमी गये थे। दुनिया में सांसारिक जीवन में जो आप चाहते हैं, वे सब चीजें उनके पास थी। उन चीजों से वे पूरी तरह से भरे-पूरे थे। जैसे—चलिए मैं पुराने आदमियों के उदाहरण दूँगा, फिर मैं बीच के आदमियों का उदाहरण दूँगा।
आध्यात्मिक सिद्धियों के जीवन्त उदाहरण
चलिए, पहले पुराने उदाहरण बताता हूँ। पहले मैं आपके सामने हनुमान जी को पेश करना चाहता हूँ। हनुमान जी की गवाही—नम्बर एक। मान लीजिए कि आप मजिस्ट्रेट हैं आप गवाहों की इन्क्वायरी करते जाइये। उनके बयान नोट करते जाइये। कैसे? जैसे आपकी मर्जी हो। मुझे गवाह तो पेश करने दीजिए। आध्यात्मिकता की वकालत तो करने दीजिए, ताकि आप मजिस्ट्रेट साहिबान इसके बारे में किसी नतीजे पर पहुँच सकें और यह फैसला कर सकें कि अध्यात्म आपकी जिन्दगी में जरूरी है कि नहीं।
मित्रो! क्या हुआ? मैंने हनुमान जी को बुलाया और यह पूछा कि हनुमान जी! आप यह बताइये कि आपकी आध्यात्मिकता के बिना पहले जो जिन्दगी थी, क्या वह ऐसी ही ताकतवर थी या कम ताकतवर थी। अरे साहब! आपको मालूम नहीं है कि हमारे बॉस सुग्रीव को जब उसके भाई ने मारपीट कर सब कुछ छीन लिया। उसके राजपाट को छीन लिया, बीबी-बच्चों को छीन लिया और मारकर भगा दिया, तब? तब हमने देखा कि बाली का तो हम कुछ बिगाड़ नहीं सकते, इसलिए हम सुग्रीव के साथ चले आए। सुग्रीव हमारा पुराना दोस्त भी है, साथी भी है। अतः हम उसी के साथ चले आये और ऋष्यमूक पर्वत पर हम नौकरी करने लगे और बाडीगार्ड की तरीके से, खाना पकाने वाले के तरीके से, चपरासी के तरीके से जिन्दगी काटने लगे। आपकी पुरानी जिन्दगी यही है? हाँ साहब! यही है। आप तो बड़े ताकतवर मालूम पड़ते थे। अरे साहब! ताकतवर कहाँ, हम तो अव्वल दर्जे के डरपोक हैं। कैसे डरपोक? जब देखा कि कंधे पर धनुषबाण रखे हुए दो राजकुमार आ रहे हैं, तो सुग्रीव को शक हुआ कि वे मारने के लिए आये हैं और बाली ने हमारा पता लगाने के लिए किन्हीं जासूसों को भेजा है। उसने कहा—मेरे ऊपर मुसीबत आ सकती है। भाईसाहब! आप नौकर हैं। आप जाइये और जरा पता लगाकर आइये।
मित्रो! बस हनुमान जी गये। उन्होंने सोचा कि आफत हमारे ऊपर भी आ गयी तब? बस, वह नौकरी देता है और नौकरी के लिए आफत आवे तो उसके ऊपर आवे। हमें तो इससे कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने अक्ल से काम लिया। अरे भाई! मुसीबत से तो हमको भी बचना चाहिए। मरेगा तो सुग्रीव मरेगा, मारेगा तो बाली मारेगा। फायदा तो सुग्रीव का होगा, हमको तो केवल खाने को मिलता है। अपनी जान बचाने के लिए हनुमान जी ने किसका वेष बनाया था, आपको मालूम है? आपको मालूम होना चाहिए। उन्होंने ब्राह्मण की शक्ल बना ली थी। ब्राह्मण की क्यों बनाई? इसलिए बनाई कि पुराने जमाने के राजपूत ब्राह्मणों से मारपीट नहीं करते थे। उनके सामने हाथ जोड़ते थे, मारते नहीं थे।
जान बचाने के लिए हनुमान जी ने ब्राह्मण का रूप बना लिया। तिलक लगा लिया। एक सौ ग्यारह नम्बर का मोटावाला जनेऊ पहन लिया। जहाँ तक सम्भव हुआ अपने को पण्डित जी बना लिया। हनुमान जी ने मेकअप तो बना लिया, पर एटीकेट नहीं आया। पुराने जमाने में पण्डितों का एटिकेट होता था, लेकिन आज न तो कोई पण्डित है और न उनका कोई एटिकेट है। पुराने जमाने में जब कोई नमस्कार करता था तो पण्डित हाथ उठाकर आशीर्वाद देकर नमस्कार करते थे। हाथ जोड़कर नमस्कार नहीं करते थे। हनुमान जी ने क्या किया? हाथ जोड़कर नमस्कार किया। किनको? राजपूत को। ये भी कोई ब्राह्मण है, जिसे एटीकेट का पता ही नहीं है। कैसे—
विप्ररूप धरि कपि तँह गयऊ।
माथ नाई पूछत अस भयऊ॥
यदि हनुमान जी ने भगवान् के लिए नमस्कार किया, तो ढोंग किसलिए किया? ब्राह्मण क्यों बन गए? जब भगवान् को जानते थे कि वे भगवान् हैं, तो फिर ढोंग काहे को बनाया? चले जाते और कहते कि हम हनुमान हैं। हम आपके भक्त हैं और आपके पैर छूने आये हैं। फिर दुनिया भर का बहुरूपियापन क्यों बनाया? नहीं साहब! कमजोर थे। हनुमान जी कमजोर थे। हाँ बिल्कुल कमजोर थे। भाईसाहब! वह अध्यात्म, जिसकी ओर मैं आपका ध्यान आकर्षित कर रहा हूँ, यदि उस तरफ आपका ध्यान चला जाय तो आपका कायाकल्प हो सकता है। आप यकीन करें, तब आपकी हैसियत बदल जायेगी। आपकी हैसियत वह नहीं रहेगी कि आपको किसी बॉस के नीचे काम करना पड़े। उससे आपको डरना पड़े। फिर आप कुछ अजीब किस्म के हो जाएँगे। किस किस्म के हो जाएँगे? उस अध्यात्मवादी की तरह हो जाएँगे, जिस अध्यात्म की ओर मैं आपका ध्यान आकर्षित करने जा रहा हूँ।
आध्यात्मिक सिद्धि से बदल गए हनुमान
मित्रो! जब उनके जीवन में अध्यात्म आ गया, तब उनकी स्थिति अजीब सी हो गयी ।। वे ताकत के जखीरे के रूप में तब्दील हो गये। मिट्टी के जखीरे की क्या कीमत है? एक पैसे की भी कीमत नहीं है। उसके भीतर दो जर्रे भरे पड़े हैं, जो अपने आप में कीमती है। उन जर्रों के भीतर जो न्यूक्लियस रहता है, वह और भी ज्यादा कीमती है। न्यूक्लियस जब फटता है, तब नागासाकी और हिरोशिमा के ढेरों के ढेरों जखीरे को खत्म कर देता है।
आदमी का न्यूक्लियस, जिसको हम अध्यात्म कहते हैं। अगर आदमी को जगाया जा सके, उसे तेज किया जा सके, तो उसे एटामिक भट्टियों के रूप में बदला जा सकता है। और अगर फाड़ सकते हों, तब? तब आप नागासाकी और हिरोशिमा की तरीके से विस्मार करने वाले बम बना सकते हैं। और अगर आप उसे जगा सकते हों, तब? तब आप अणु भट्टियाँ बना सकते हैं और उससे दुनिया को तबाह कर सकते हैं और जो भी करना चाहें, कर सकते हैं। किसकी बात कह रहा हूँ? मैं आध्यात्मिकता की बात कह रहा हूँ।
मित्रो! आपको मालूम है कि नहीं मालूम है कि हनुमान जी का क्या हुआ? नहीं मालूम है तो चलिए मैं बताता हूँ। ताकत के हिसाब से अजीब थे। पहाड़ को ही उठाकर ले आये। स्थूल शरीर इतना भारी है कि समूचे पहाड़ को ही उठा लाये। श्रीकृष्ण भगवान् ने तो गोवर्धन पर्वत को उठाकर अंगुलि पर रख लिया था और जहाँ से उठाया था, वहीं पर रख दिया था। कहीं ले गये थे? नहीं ले गये थे। अभी तक जहाँ का तहाँ रखा हुआ है। सिर्फ उठा लिया था। हनुमान जी ने जिस पहाड़ को उठाया था और उठाने के बाद में कहाँ से लेकर कहाँ पहुँच गये और कितनी स्पीड से पहुँचे थे। भरत जी के तीर पर बैठ करके इस तेजी से गये थे कि जिस तेजी से रॉकेट जाते हैं और वह भी पहाड़ को ले करके। आप यकीन करें चाहें न करें, वे पहाड़ लेकर के गये थे। किसी का शरीर इतना ताकतवर हो सकता है? हाँ साहब! हो सकता है।
मित्रो! आदमी का दूसरा वाला हिस्सा, जिसको हम हिम्मतवाला हिस्सा कहते हैं। हिम्मतवाला आदमी समुद्र में छलांग मारते रहे और मुकाबला करते रहे। नैपोलियन ने भी पहाड़ से छलांग मारी थी और आल्पस पहाड़ से कहा था—दोस्त! जगह दीजिए, नहीं तो हम पैरों के नीचे कुचल देंगे। हनुमान जी ने कहा था—दोस्त! हमको निकलने दीजिये, नहीं तो आपकी अक्ल को जिस तरह से टिटहरी ने ठीक कर दिया था, हम भी ठीक कर सकते हैं। समुद्र को छलांग मारकर हनुमान जी चले गये और उन लोगों के साथ में मुकाबला किया था। किनके साथ में? जहाँ एक लाख पूत और सवा लाख नाती, अर्थात् सवा दो लाख आदमी रहते थे। कैसे-कैसे वैर करने वाले, विरोध करने वाले थे और उनमें से एक-एक विरोधी ऐसा था, मोटा-ताजा मजबूत था कि आप तो कल्पना भी नहीं कर सकते। आप तो जरा से विरोधी आदमी को देख करके हैरान हो जाते हैं, लेकिन हनुमान जी के सामने तो ऐसे-ऐसे लोगों से वास्ता पड़ा था कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते, एक-एक आदमी के दस-दस मुँह थे। आपके तो दस मुँह नहीं हैं? आप दुश्मन पार्टी के तो नहीं है? नहीं साहब! ऐसा नहीं है। आपका जिससे झगड़ा है, उसकी मूँछें कितनी लम्बी हैं। मूँछ तो हमारे जैसी ही हैं। हनुमान जी का जिनसे वास्ता पड़ा था, उनकी मूँछें बहुत बड़ी थी। दो-दो योजन की दाढ़ी-मूँछें थी।
दो-दो योजन मूँछें-दाढ़ी।
और योजन चार नासिका बाढ़ी॥
मित्रो! सोलह मील की तो नाक थी कुम्भकरण की और आठ मील की उसकी मूँछें थी। हनुमान जी पाँच फुट छः इंच के थे। आप जरा कैलकुलेशन कीजिए की पाँच फुट छः इंच का इंसान आठ मील लम्बी मूँछों के जंगल में कहाँ ठहर सकता है? वह तो मूँछों के जंगल में ही घूमता रहेगा। पता ही नहीं चलेगा कि हनुमान जी कहाँ गये? ऐसे जबरदस्त आदमी थे, जिनको हनुमान जी फतह करते चले गये। अच्छा तो आप हनुमान की प्रशंसा करते हैं? हनुमान की प्रशंसा मैं क्यों करूँगा? क्या मैं हनुमान जी का कोई कमीशन एजेंट हूँ? तो फिर हनुमान जी की बात क्यों कर रहे हैं? अरे भाई! मैं हनुमान जी की बात नहीं कहता, मैं तो अध्यात्म की बात कहता हूँ। अध्यात्म का वह हिस्सा, जिसके बारे में आपको मालूम नहीं है, जिसकी आपको जानकारी नहीं है। जिसकी ओर आपने कभी गौर नहीं किया। यदि आपके पास अध्यात्म की वह शक्ति आ जाये, तब आप हनुमान जी जैसे हो सकते हैं। आप यकीन मानिये, आप बिल्कुल हो सकते हैं।
आध्यात्मिकता है सच्ची ताकत
मित्रो! प्राचीन काल की परम्पराओं में मैं आपको एक से बढ़कर एक बेहतरीन उदाहरण देता हुआ चला जा सकता हूँ, जिससे मालूम पड़े कि आध्यात्मिकता की ताकत क्या है? मैं आपसे सांसारिक जीवन की, भौतिक जीवन की बात कह रहा हूँ। शांति की बात मैं नहीं कह सकता। हनुमान जी को मुक्ति मिली थी, इससे आपको क्या लेना-देना। हनुमान जी को स्वर्ग मिला होगा? आपका स्वर्ग से कुछ वास्ता है क्या? आप तो ताकत की बात पूछते हैं, दौलत की बात पूछते हैं। हनुमान जी को दौलत मिली कि नहीं मिली? रामचन्द्र जी के कितने मन्दिर हैं, जरा हिसाब लगाइये। मैं समझता हूँ कि हिन्दुस्तान में रामचन्द्र जी के बीस हजार मन्दिर हों तो बहुत है। लेकिन हनुमान जी के एक लाख मन्दिर से कम नहीं हो सकते। रामचन्द्र जी का एक भी मन्दिर इतना बड़ा नहीं है। अयोध्या में चले जाइये, जितने हनुमान जी के मंदिर, बालाजी के मंदिर मिलेंगे, वे कितने बड़े-बड़े हैं। रामचन्द्र जी के कहाँ हैं इतने मंदिर? रामचन्द्र जी के मंदिर में तो भोग कैसा भी लगे, किन्तु हनुमान जी को लड्डू का भोग लगता है। उनके खानदान वाले रोज लड्डू खाते हैं, मजे उड़ाते हैं। रामचन्द्र जी के खानदान वालों को लड्डू मिलता है कि नहीं मिलता, मुझे मालूम नहीं है। लेकिन हनुमान जी के खानदान वाले बंदरों को अभी भी गुड़ और भुने हुए गेहूँ के लड्डू, बूँदी के लड्डू बनाकर हमारे देहातों में बहुत खिलाते हैं। आपके यहाँ मालूम नहीं कि खिलाते हैं कि नहीं खिलाते, लेकिन हनुमान जी बहुत नफे में हैं। हाँ साहब! बहुत नफे में हैं।
आध्यात्मिक संपदा के सामयिक उदाहरण
मित्रो! मैं क्या कह रहा था? अध्यात्म की बात कह रहा था। अध्यात्म का वह वाला हिस्सा, जो सांसारिक है। आप में से शायद कोई यह ख्याल करे कि यह तो पुराने जमाने की बातें हैं और पुराने जमाने की बातों से हम पर कोई अच्छा असर नहीं पड़ता। हमको शक है कि पुराने जमाने की बातें सही भी है या नहीं है। अगर किसी ने बात का बतंगड़ बना दिया हो, तब आपकी बात भी सही है। मैंने गलती की जो आपको पुराना उदाहरण दे दिया। अब मैं नया उदाहरण देना चाहता हूँ, जिनके बारे में आपको यह शक न हो कि हमसे जो बातें कही जा रही है, वह गलत कही जा रही है या सही कही जा रही है। आपके पास जिनका सबूत है, अब मैं उन लोगों की बात कहूँगा और किसी की बात नहीं कहूँगा। किनकी बात कहूँ? चलिए उससे कुछ नीचे आ जाइये। अब मैं भगवान् बुद्ध की बात कहूँगा। आप अब मुझे कहने दीजिए।
मित्रो! भगवान् बुद्ध जिस देहात में पैदा हुए थे, वह यू.पी. के बस्ती जिले का एक हर्रैया नामक गाँव था। बुद्ध भगवान् वहाँ पैदा हुए थे। पहले तो इतिहासकार बहुत ढूँढ़ रहे थे कि वे कहाँ पैदा हुए? कोई कहता कि कपिलवस्तु नेपाल में थी। कोई कहाँ कहता, कोई कहाँ, पता नहीं चल पा रहा था। अब पता चल गया कि यू.पी. में एक बस्ती जिला है। बस्ती जिले में एक हर्रैया गाँव है। उस गाँव में एक छोटे से जागीरदार थे। जिनके बारे में सभी पुराने शिलालेखों से लेकर के जानकारियाँ प्राप्त कर ली गयी हैं, कि उनके पिता वहाँ रहते थे और वे एक जागीरदार थे। राजा? राजा तो भाईसाहब! पुराने जमाने में सब थे। अपने बेटे को भी हम राजा बेटा कहते हैं। उन्हें भी सब कोई राजा साहब कहते थे, उस जमाने में। वे राजा के बेटे थे? नहीं राजा के बेटे नहीं थे। बिल्कुल जागीरदार की छोटी स्थिति के आदमी थे।
आध्यात्मिक शक्ति का भौतिक उपलब्धियाँ
लेकिन जब बुद्ध के जीवन में अध्यात्म आ गया तब? अध्यात्म की ताकतवाला वह हिस्सा बताता हूँ, जिसको आप भौतिक कहते हैं। दूसरे हिस्से का तो मैं आपसे जिक्र भी नहीं करूँगा, आप यकीन रखिये। आपके कीमती समय को आध्यात्मिकता के वे हिस्से जिसको शान्ति कहते हैं, को बताने में मैं बर्बाद नहीं करना चाहता। जिसको मुक्ति कहते हैं, श्रेष्ठ कहते हैं, सिद्धि कहते हैं, उसका तो मैं जिक्र भी नहीं करूँगा आपसे। आपसे तो मैं वही कहूँगा, जिसे आप समझते हैं। जो आपने पढ़ा नहीं है, उसके बारे में मैं आपसे क्या कहूँ?
मित्रो! भगवान् बुद्ध के भौतिक वाले जीवन से आप क्या समझते हैं? मैं समझता हूँ कि आप हर चीज की सफलता की निशानी एक मानते होंगे कि धर्म के अलावा और कुछ नहीं है। हाँ साहब! आपने बिल्कुल सच कहा। हमारी और आपकी पटरियाँ बिल्कुल एक हो गयी। किसी को गुरु का वरदान मिले तो क्या मिलना चाहिए? धन मिलना चाहिए। देवता मिले तो धन चाहिए। आपको कोई मंत्र सिद्ध हो जाय, तो धन चाहिए। आपके जीवन में और तो कुछ नहीं है? नहीं साहब! धन मिल जाय, तो बाद में एकाध और चीज बता देंगे। धन तो मुख्य है। ठीक है, आपकी बात को मैं सही मानता हूँ। भगवान् बुद्ध का धन आपने देखा नहीं। एलोरा की गुफाएँ आपने नहीं देखी, अजन्ता की गुफाएँ आपने देखी नहीं। साँची के स्तूप आपने नहीं देखे और रंगून का स्वर्ण मन्दिर आपने नहीं देखा, जिसमें कितना सोना लगा हुआ है। जावा का मन्दिर, जिसमें साढ़े चार टन की सोने की मूर्ति रखी हुई है। यह दुनिया का एक मात्र मन्दिर है जहाँ साढ़े चार टन सोने की मूर्ति रखी हुई है।
अगर आपको भगवान् बुद्ध की इमारतें देखनी हो, तो अंगकोरवाट जाकर देखिये। कंबोडिया का जो प्राचीनकाल का सबसे शानदार खण्डहर है, वह इतना शानदार है, जो इस जमीन के ऊपर और कहीं नहीं पाया जा सकता। उसको बचाने के लिए राष्ट्रसंघ ने यूनेस्को ने इंतजाम कर दिया है कि पन्द्रह दिन में एक हवाई जहाज जायेगा, चाहे वह खाली जाय, चाहे भरा हुआ जाय, जिससे जो आदमी उस शानदार खण्डहर को देखकर आना चाहते हैं, वे देख करके आयें। वह करोड़ों-अरबों रुपये कि दौलत का है।
भगवान् बुद्ध की आध्यात्मिक सम्पदा
मित्रो! मैं आपसे भगवान् बुद्ध के पैसों की बात कह रहा हूँ। महाराज जी! अभी और कुछ मत कहना। इसके अतिरिक्त कुछ और बात कहिए। चमत्कार की बात कहिए। चमत्कार की बात मैं क्या कहूँ? आपको तो पैसों का चमत्कार चाहिए न? इसलिए मैं पैसे की बात कह रहा हूँ। अभी मैं इमारतों की बात बता रहा था। इमारतों की बात चलने दीजिए। नहीं साहब! यह बताइये कि कितना पैसा था? उनका एकाउण्ट है कि नहीं? बेटे, बहीखाता तो है नहीं, जो मैं बता दूँ कि कितना पैसा था। एलोरा की गुफाओं में, नालन्दा के विश्वविद्यालय में, जिसमें एक साथ तीस हजार विद्यार्थी पढ़ते थे। तीस हजार विद्यार्थियों के पढ़ने का, खाने का, पीने का, कपड़े का उस जमाने के हिसाब से हर विद्यालय को खर्च खुद उठाना पड़ता था। मनीआर्डर थे नहीं, बैंक थी नहीं, चेकबुक थी नहीं, फिर कौन भेजे और कहाँ से भेजे? सब वहीं से इंतजाम होता था। भगवान् बुद्ध उनके अध्यापकों को एक, विद्यार्थियों का दो, न केवल रहने का, वरन् खाने-पीने एवं पढ़ने का सब इंतजाम करते थे। यह किसका खर्च था? नालन्दा विश्वविद्यालय का था।
मित्रो! मैं आपको और किसकी बताऊँ? तक्षशिला विश्वविद्यालय की बात बताऊँ। वह और भी बड़ा था। वहाँ से सारे के सारे एशिया में भगवान् बुद्ध ने बौद्ध धर्म को फैलाने को जो इंतजाम किया था, हर्षवर्धन ने उसका सारा खर्च उठाया था। अपने समय में हर्षवर्धन ने इतना बड़ा खर्च उठाया था, आप जरा इतिहास में पढ़ लीजिए। अरब देशों में जहाँ तेल के कुएँ हैं, आप उन जगहों की पुरानी चीजों को देखकर आइये। उनमें से अधिकांश विस्मार हो गयी हैं। विस्मार होने के बाद भी आप यह पता चला सकते हैं कि वे सब बौद्ध विहारों से भरे हुए हैं। मक्का-मदीना से ले करके सब जगह, सारा इलाका उन हिस्सों से भरा हुआ है जिनको बौद्ध विहार कहते हैं। आप चाइना चले जाइये। अब वहाँ कम्युनिस्ट गवर्नमेण्ट आ गयी है। इससे पहले तक सारा चाइना बौद्ध था। इसके लिए कितने प्रचारक भेजने पड़े। कितना साहित्य भेजना पड़ा और कितना पैसा भेजना पड़ा। यह कौन भेजता था? हर्षवर्धन। हर्षवर्धन अरब देशों का राजा था। उसने अपनी सारी दौलत बुद्ध भगवान् को सौंप दी थी।
मित्रो! अब मैं आपको पैसे की बात कहता हूँ। उसे चाहे आप ने कमा लिया हो, या पा लिया हो, पर इससे आपको क्या मिला? आप नहीं कमायें और आपकी लॉटरी खुलवा दें, तो आपको कोई ऐतराज तो नहीं है? नहीं साहब! हमें कमाई से कुछ मतलब नहीं है। आप तो हमें पैसा दिलवा दीजिए, चाहे लॉटरी से दिलवा दीजिए। अच्छा, अगर आपकी सास आपको इतना पैसा दे दे तब? तब भी हमें कोई ऐतराज नहीं है। हाँ साहब! आपको क्या ऐतराज होना चाहिए। आम्रपाली ने बुद्ध भगवान् को कितना पैसा दिया था? आम्रपाली के पास ३०-३५ करोड़ के करीब की दौलत थी। जब वह बौद्ध भिक्षुणी बनी, तो उसने वह सारी दौलत बुद्ध भगवान् को दे दिया और भिक्षुणी हो करके सारे के सारे सिंगापुर से लेकर के इण्डोनेशिया के इलाके में पानी के जहाजों में बैठकर घूमती रही और धर्म प्रचार के बड़े-बड़े काम करती रही।
अंगुलिमाल का हृदय-परिवर्तन
मित्रो! अंगुलिमाल के पास भी लगभग उतना ही पैसा था। अंगुलिमाल के पास भी हमने पैसे का जो हिसाब फैलाया है, वह उतना ही था, जो उन्होंने बुद्ध भगवान् को एकमुश्त दिया था। पैसा? हाँ पैसा, आप सुनते नहीं है। आम्रपाली का पैसा, अंगुलिमाल का पैसा, हर्षवर्धन का पैसा, अशोक का पैसा और न जाने किस-किस का पैसा इस कदर टूटता हुआ चला आया। यह सुनकर शायद आपके मुँह में पानी बहने लगे कि इतना पैसा हमको मिल जाये, तो हम भी अध्यात्म की तरफ चल सकते हैं। मैं इसीलिए आपसे बुद्ध की बाबत कह रहा था।
बुद्ध की उस ताकत की बाबत मैं नहीं कहूँगा कि अंगुलिमाल तलवार घुमाता हुआ जब उनके पास आया और जब यह कहा कि मैं आपका सिर काटूँगा, तो उन्होंने कहा कि ले काट हमारा सिर। इसी तरह जब बन-ठन कर आम्रपाली उनके सामने इस इरादे के साथ आयी थी कि मैं इसका ब्रह्मचारीपन देखूँगी कि कैसा ब्रह्मचारी है। दोनों आये थे उन्हें अपने-अपने ढंग से परास्त करने, लेकिन उन्होंने जब आँख उठाकर देखा, तो अंगुलिमाल जमीन पर गिरा उनसे प्रार्थना कर रहा था। उसने कहा—पिताजी! मैं नरक का कीड़ा आपको हैरान करने आया था। उन्होंने उसे उठाकर छाती से लगा लिया।
बुद्ध भगवान् ने अंगुलिमाल से कहा—बच्चे तू डाकू थोड़े ही था। तू तो संत है। तूने डाकू का लिबास पहन लिया, तो इसको उतार फेंक। उसने उतार कर फेंक दिया और संत हो गया। किसकी बात कह रहा हूँ? रूहानी ताकत की बात कह रहा हूँ। जिस डाकू ने हजारों लोगों को मार काटकर फेंक दिया था और हजारों लड़कों के पैरों की अंगुलियाँ काट डाली थी, आज वह संत बन गया था। आम्रपाली, जिसने हजारों लोगों को पतन के गर्त में गिरा दिया था, आज वह बौद्ध भिक्षुणी बनकर बौद्धधर्म के प्रचार-प्रसार में लगी थी। यह बुद्ध की रूहानी ताकत थी।
भौतिक दृष्टि से भी उनका जीवन शानदार था। उनके आध्यात्मिक जीवन के बारे में मैं नहीं कह सकता और न ही मुझे कहना चाहिए, क्योंकि आप इसे समझते भी नहीं हैं। उन्होंने धर्मचक्र प्रवर्तन के माध्यम से लाखों-करोड़ों आदमियों के दिलो-दिमाग को कैसे बदल दिया था? समाज की जो प्रथाएँ चल रही थीं, उनको किस तरीके से, हवा के तरीके से बदल दिया था। इस तरह की कोई बात आपको बताऊँ, इसमें आपकी कोई दिलचस्पी नहीं है, इसलिए मैं आपसे ऐसी बातें बताना नहीं चाहता, क्योंकि आप निश्चित रूप से धनी बनना चाहते हैं, मालदार बनना चाहते हैं, समर्थ बनना चाहते हैं।
स्वामी विवेकानन्द का जीवंत उदाहरण
मित्रो! इस संदर्भ में मैं गवाह नम्बर दो प्रस्तुत करना चाहता हूँ। हाँ साहब! एक और गवाह लाइये। हाँ बेटे, मैं स्वामी विवेकानन्द को पेश करता हूँ। विवेकानन्द उस आदमी का नाम है, जो स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास नौकरी माँगने गये थे। पिताजी का देहांत हो गया। तीन भाई-बहन रह गये हैं, माताजी रह गयी हैं और हम रह गये हैं। पेट भरने का कोई तरीका नहीं है। आप कहीं नौकरी लगवा दीजिए। रामकृष्ण परमहंस ने नौकरी लगवाने से विवेकानन्द को मना कर दिया था और कहा था कि काली से माँग। जब वे काली के पास गये तो कहने लगे—‘माँ मैं तो भक्ति माँगने आया था, शान्ति-वैराग्य माँगने आया था। नौकरी माँगने थोड़े ही आया हूँ।’ देवी ने कहा—‘अच्छा, ठीक है, हमने तीनों चीजें तुझे दे दी।’ मैं क्या कह रहा हूँ? आध्यात्मिकता के बल के बारे में कह रहा हूँ। स्वामी विवेकानन्द आध्यात्मिकता के बल को लेकर गये थे और सारे संसार में तहलका मचा दिया था। आपको मैं और किस्से सुनाऊँ। अमेरिका का किस्सा सुनाऊँ? शिकागो के किस्से सुनाऊँ, जहाँ वे गये थे और हिन्दू संस्कृति के बारे में सारी दुनिया को पुनर्विचार करना पड़ा। हिन्दू सभ्यता के बारे में दुबारा विचार करना पड़ा।
मित्रो! हमारे यहाँ एक फकीर को क्या सम्मान मिल सकता है? कलकत्ता की सड़कों पर जब उनका जुलूस निकल रहा था, तो हाईकोर्ट के जज और दूसरे वकीलों ने कहा कि घोड़ों को रथ से खोल दीजिए। घोड़े वाली बग्घी में ये नहीं चलेंगे। बग्घी को हम खींचकर ले चलेंगे। विवेकानन्द इतने शानदार थे कि मैं क्या कहूँ आपसे? बेलूर मठ ही नहीं, विवेकानन्द के बनाये हुए रामकृष्ण मिशन के संस्थान जितने हिन्दुस्तान में हैं, उससे चौगुने-छः गुने विदेशों में हैं। आप विदेशों में गये नहीं हैं। आप जहाँ भी जाएँगे, पुरानी संस्थाओं में यह संस्था काम करती हुई मिलेगी, जिसका नाम है रामकृष्ण मिशन। रामकृष्ण मिशन सबसे बड़ी संस्था है। नयी तो अनेकों संस्थाएँ पैदा हुई हैं, पर पुरानी एक ही है, जो सबसे अजूबी है। अच्छा तो आप विवेकानन्द की बात कह रहे हैं? हाँ विवेकानन्द की बात कहता हूँ।
स्वामी विवेकानन्द का विलक्षण चमत्कार
विवेकानन्द का कोई चमत्कार सुनाइए। चमत्कार! हाँ साहब! चमत्कार के बिना तो हमारा मन नहीं भरेगा और चमत्कार के बिना तो जायका नहीं आयेगा। चलिए मैं आपको विवेकानन्द का चमत्कार भी बता देता हूँ। कौन सा वाला? जमशेद जी टाटा लोहे की फैक्ट्री लगाने की इजाजत माँगने के लिए इंग्लैण्ड गये हुए थे। उनको इजाजत नहीं मिल रही थी। क्वीन एलिजाबेथ से इजाजत मिली कि आप चाहें तो फैक्ट्री लगा सकते हैं। लोहे की फैक्ट्री की बात हो गयी, तो वे अब इस तलाश में जुट गये कि लोहा एक जगह मिल जाय, कोयला एक जगह मिल जाय और पानी एक जगह मिल जाय। तीनों चीजें मिलें, तभी बड़ी फैक्ट्री लग सकती है। छोटी तो कहीं भी लगा सकते हैं। बड़ी फैक्ट्री के लिए तो तीनों चीजें चाहिए।
जमशेद जी एक दिन स्वामी विवेकानन्द जी के पास जा पहुँचे। उनने उनसे अपने मन की बात कही कि हिन्दुस्तान में लोहा नहीं है। लोहे की तलाश बताइये। लोहे पर विदेशियों का आधिपत्य है। कोई आगे बढ़ेगा तो कैसे? खुशहाल होगा तो कैसे? देश की दौलत बढ़ेगी तो कैसे? हमें देश में फैक्ट्री लगानी चाहिए, इसके लिए आप कुछ मदद कर सकते हैं? उन्होंने कहा—हमने सुना है कि योगी में ऐसे चमत्कार होते हैं, जो सब कुछ जानते हैं। जरूरत होने पर ज्ञान की बात बता सकते हैं। अगर यह बात सही है, तो आप कृपा करके हमको यह बता दीजिए कि हिन्दुस्तान में ऐसी जगह कहाँ है। दूसरे दिन विवेकानन्द जी ने ध्यान में देखा और सारे हिन्दुस्तान का एक्स-रे फोटो खींचा। फोटो खींचने के बाद में उन्हें एक जगह मालूम पड़ी। शरीर के किसी भाग की फोटो खींचने पर जिस तरीके से कैविटी मालूम पड़ती है। जैसे कि लंग्स में कैविटी है। अरे साहब! यहाँ कैविटी है, यहाँ घाव है। अच्छा, ठीक उसी तरीके से उन्होंने एक जगह ढूँढ़ लिया। वह जगह थी—बिहार के सिंहभूमि जिले का एक छोटा सा गाँव। उन दिनों वह वीरान जंगल था और पचासों मील की पथरीली और झाड़ियों वाली जगह में फैला हुआ था। वहाँ कोई आदमी नहीं रहता था। विवेकानन्द जी ने कहा कि आप उस इलाके को ले लें। वहाँ पर तीनों चीजें मिल जाएँगी।
जमशेद जी ने कहा—कहीं ऐसा न हो कि हम जमीन खरीद लें, पैसा लगा दें और फिर परेशान हों। उन्होंने कहा—आप परेशान नहीं हो सकते। आपको वहाँ पर तीनों चीजें मिल जाएँगी। जमशेद जी वहाँ गये। उन्होंने जमीन को ढूँढ़ा। बड़ी मुश्किल से पता लगा। जमीन को खरीद लिया और खरीदने के बाद फैक्ट्री लगाई। अभी भी वे तीनों चीजें वहाँ पर्याप्त मात्रा में मिलती हैं। यह क्या है? यह वह बात है जिसको आप चमत्कार कहते हैं। यह भौतिक जीवन का चमत्कार है। आध्यात्मिकता के चमत्कारों की तो मैं आपसे बात ही नहीं करूँगा। आप तो केवल भौतिक बातें ही सुनें, उतनी ही आपकी समझ है। इसलिए मैं भौतिक के अलावा कोई और चमत्कार पेश नहीं करना चाहता।
स्वामी विवेकानन्द को जमशेद जी ने यह कह रखा था कि आप जो भी काम करना चाहते हों, खुले हाथ से करें। अपने गुरु के नाम पर उन्होंने बेलूर मठ संगमरमर का बनवाया। इसके लिए उन्होंने न चंदा लिया, न रसीदें छपवायी, न मीटींग्स की, न दान माँगा, न दक्षिणा माँगी। लेकिन हर दिन, हर महीने करोड़ों रुपये खर्च किया। उन्होंने सारे हिन्दुस्तान में कितनी जल्दी और कितने सारे मठ बना दिये। विवेकानन्द की उम्र ही कितनी थी। छत्तीस वर्ष में तो चले ही गये, पर इससे पहले उन्होंने इतने सारे आधार खड़े कर दिये थे। मैं सोचता हूँ कि सैकड़ों रुपया खर्च किया हो तो मेरे ख्याल से कम नहीं है।
आध्यात्मिकता का चमत्कार
मित्रो! यह पैसा कहाँ से आया? हम आपसे कह सकते हैं कि जिन लोगों को फायदा हुआ था, उन लोगों ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुबान दी थी। उन लोगों ने उनकी पूरी-पूरी मदद की। आध्यात्मिकता का चमत्कार आपको दिखाई पड़ा? पैसे वाला चमत्कार दिखाई पड़ा! नहीं दिखाई पड़ा। आप तो पैसा वाला चमत्कार देखिए और कुछ मत देखिए। आप पैसे वाला अध्यात्म देखिए, स्वार्थ वाला अध्यात्म समझिए, ताकतवाला अध्यात्म समझिए और बाकी अध्यात्म को छोड़ दीजिए। आप तो तीन अध्यात्म को समझिए जो आपको तीन तरीके से मजबूती दिला सकता है। पहला जो आपको पैसा दिला सकता है, जो आपको ख्याति दिला सकता है और जो आपका स्वागत करा सकता है। तो विवेकानन्द को करा दिया? हाँ विवेकानन्द को करा दिया। चौथा एक और गवाह पेश करके मैं अपनी बात को खत्म करूँगा या फिर आपको उठ जाने के लिए मजबूर करूँगा कि आपको कहाँ जाना चाहिए। जिस काम के लिए मैं आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूँ, वह तभी सार्थक होगा, जब आप आध्यात्मिकता का सही अर्थ समझ लेंगे और उसे अपनाने के लिए, जीवन का अंग बनाने के लिए तत्पर होंगे।
मित्रो! मैं एक और गवाह आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। हो सकता है कि इन तीन गवाहों के बारे में आपके दिमाग में शक हो कि यह जो गवाहियाँ पेश की जा रही हैं, सही हैं कि नहीं हैं। गुरुजी ने विवेकानन्द की बात कही है, सही है कि नहीं है। टाटा की बात सही है कि नहीं है, आपको शंका हो सकती है। बुद्ध के बारे में भी बात पुरानी हो गयी-ढाई हजार वर्ष पुरानी। उसको अपनाने में भी आपको कई तरह की खामियाँ हो सकती हैं। अब मैं आपको एक ऐसा उदाहरण पेश कर सकता हूँ, जिसको चाहे तो किसी मजिस्ट्रेट के सुपुर्द कर सकते हैं, आप चाहें तो सी.बी.आई. के सुपुर्द कर दीजिए और आप चाहें तो तलाश करा लीजिए कि आध्यात्मिकता के रास्ते पर चलने के बाद में आदमी की भौतिक प्रगति होती है कि नहीं होती है।
मित्रो! मैं विशुद्ध भौतिकवाद की बात कह रहा हूँ। आध्यात्मिक शब्द की तो बात ही नहीं कही है और मैं यह कहना भी नहीं चाहूँगा। वक्त आयेगा तो मैं शायद आपसे कहूँ भी। आप तो अध्यात्म का भौतिक पक्ष समझ लीजिए, बस यही आपके लिए पर्याप्त है। अगर आपने आध्यात्मिक पक्ष सुना तो आप तो महापुरुष हो जाएँगे। अगर आपने आध्यात्मिक पक्ष सुना, तो आप वह बन जाएँगे जो आप बनना पसंद नहीं करेंगे। आध्यात्मिकता का अध्यात्म पक्ष कभी आपने समझना शुरू किया, तो आप भगवान् हो जाएँगे, अवतार हो जाएँगे। जिसको कि शायद आपको बनने का कोई मन नहीं है। ऋषि बनने का आपका कोई मन नहीं है। महापुरुष होने का कोई मन नहीं है। जब मन की नहीं है तो क्यों मैं आपको बताऊँ? आपका मन जिधर है, वही आपको बताता हूँ।
पूज्य गुरुदेव का स्वयं का उदाहरण
महाराज जी! एक और गवाह पेश कीजिए। हाँ मित्रों? एक गवाह और है और उसके लिए मैं अपने आपको पेश करता हूँ, जिससे आप यह तलाश कर लें कि आध्यात्मिकता के रास्ते पर चलने के बाद में आदमी के संसार की जिन्दगी फायदेमन्द होती है कि नहीं होती है। हमारे जीवन के भी बहुत हिस्से रूहानी है। उसे आप मत सुनिये और न मैं आपको सुनाऊँगा। आपको मैं अपने जीवन की सांसारिक प्रक्रिया को सुनाना चाहता हूँ। एक हमारे सांसारिक जीवन का क्रम यह है कि हम पाँच आदमियों के बराबर जिन्दगी में काम करते रहे हैं। हमारी ७१ साल की उम्र है। ७० साल बीत गये। ७१ वाँ वर्ष चल रहा है। ७१ वें वर्ष में अभी तक सन् १९८० के समय तक आप हमारे काम को देख लीजिए। हमारे श्रम को, हमारे लेबर को, हमारे टास्क को, सबका हिसाब लगा लीजिए कि हम कोई पाँच आदमियों से कम काम नहीं करते। पाँच आदमी आठ घण्टे पूरी मुस्तैदी से, पूरे दिलो-दिमाग से काम करने वाला, आठ घण्टे जो काम करता हो, उतना हम अपने इस शरीर से काम लेते हैं। क्यों साहब! आप बतौर जिन्दगी कितनी गिनते हैं? मेरा नापने का तरीका अगल है। मैं जिन्दगी को काम के हिसाब से गिनता हूँ।
अच्छा गुरुजी! यह बताइये कि आपने क्या काम किया? मैं काम के हिसाब से गिनूँगा। नहीं साहब! वर्षों से लम्बाई गिनिए। नहीं मैं वर्षों से लम्बाई नहीं गिनता, मैं तो वजन व्यक्त करता हूँ। आप तो गज से नापना चाहते हैं कि कितने गज है। गज में मैं नहीं नापता, मैं तो वजन में नापता हूँ। हमारा मीटर अलग है और आपका मीटर अलग है। मित्रो! जिन्दगी का हमारा मीटर यह हे कि इस आदमी ने क्या काम किया। आप कितने वर्ष जिये, इसका मैं क्या करूँगा। स्वामी विवेकानन्द ने ३६ वर्ष में गजब के काम किये थे और शंकराचार्य ने ३२ वर्ष की उम्र में गजब के काम किये थे। उनकी जिन्दगी को मैं लम्बी मानता हूँ और उन लोगों की जिन्दगी को, जो मुद्दतों तक जिये, श्वास लेते रहे, रोटी खाते रहे। जगह खराब करते रहे, घरवालों की नाक में दम करते रहे और खुद की नाक में दम करते रहे, उन लोगों की जिन्दगी के लिए मैं क्या कहूँ? सेहत की दृष्टि से हमारी जिन्दगी, आउटपुट की दृष्टि से हमारी जिन्दगी बहुत शानदार है।
यह एक ऐसी जिन्दगी है, जिससे हमको ताकत मिली हुई है। कैसी ताकत मिली है? ताकत के हिसाब से आप सही माने कि अगर आप किसी आदमी से मुकाबला करवाना चाहें, तो आपको एक गलती महसूस हो सकती है। छापेखाने में टाइप करते समय अक्षर कभी इधर-उधर हो जाते हैं। अक्सर कम्पोजिटर गलती कर देते हैं। ७१ साल की उम्र है। एक बार चाहे तो कम्पोजिटर गलती भी कर सकता है। एक का अक्षर इधर रख दे और सात का अक्षर उधर रख दे, तो कितने हो जाएँगे—१७। आप इसे १७ ही कहेंगे।
मित्रो! हम कभी मरें, तो आप यह कहना कि नौजवान मरा। आप यह मत कहना कि ७१ वर्ष का बुड्ढा मर गया। मरेंगे तो जरूर। मरना तो हमको है और मरने की तैयारी भी हम कर रहे हैं। तो आप बुढ़ापे में मरेंगे? बुढ़ापे से हमको बहुत शिकायत है। बुढ़ापे से हमको बहुत नफरत है। बुढ़ापा उसे कहते हैं जिसमें आदमी जिन्दगी से हार गया। जो आदमी थक गया, जिसके आगे भविष्य के लिए कोई उम्मीदें नहीं है, जिसके आगे आशाएँ नहीं हैं, उसको मैं बुड्ढा कहता हूँ। नहीं साहब! सफेद बाल वाले को बुड्ढा कहते हैं, तो क्या आप भेड़ के बच्चे को बुड्ढा कहेंगे? भेड़ का बच्चा सफेद बाल का होता है। आपके बाल भी सफेद हैं, तो आपको भेड़ का बच्चा मानना चाहिए और बुड्ढा नहीं कहना चाहिए। जवानी है भाईसाहब! जवानी, जो हमारे भीतर से उबलती रहती है, उछलती रहती है। यह क्या है? आप सही मानिये, विशुद्ध रूप से यह हमारी अध्यात्म की ताकत है।
अध्यात्म से शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति
मित्रो! आप क्या खाते हैं? साहब! हम तो मुर्गी का अण्डा खाते हैं, प्रोटीन खाते हैं, विटामिन ए खाते हैं। हम मुर्गा खाते हैं, बकरा खाते हैं। भाड़ खाते हैं आप। आपके प्रोटीन के ऊपर लानत है। आप क्या खाते हैं, अगर खाने की चीजों की बाबत आपको पता न हो तो आप हमसे मालूम कीजिए कि क्या खाया जाता है और आदमी की सेहत, आदमी की तंदुरुस्ती, आदमी की ताकत और आदमी में सामर्थ्य कहाँ से आती है। अध्यात्म की ताकत और आदमी में सामर्थ्य कहाँ से आती है। अध्यात्म को आप समझते नहीं है, इसलिए मैं एक गवाही पेश कर रहा था।
सेहत के बारे में, शरीर के बारे में, मजबूती के बारे में, काम करने की इफिशिएन्सि के बारे में अगर आपका ख्याल हो, तो मैं आपसे प्रार्थना करूँगा कि आप अध्यात्म के बारे में गौर करना शुरू कीजिए और देखिए कि हमारे तरीके से आपकी सेहत बन सकती है कि नहीं। आप यकीन रखिए कि आपकी खोई हुई सेहत को फिर वापस लाया जा सकता है। शर्त यही है कि आप सही अध्यात्म को पकड़ें। आपने तो गलत अध्यात्म को पकड़ रखा है। आपने तो केवल अध्यात्म का नाम सुन रखा है। जाने कौन सा नाम है और उसने आपको वहम में और डाल दिया है।
मित्रो! इससे तो अच्छा होता कि आप वहम में न पड़ते। रसिया वाले वहम में हैं? नहीं हैं। चाइना वाले वहम में हैं? नहीं हैं। जर्मनी वाले वहम में हैं? वो भी नहीं हैं। दूसरे वाले भी वहम में नहीं हैं, क्योंकि वे अध्यात्म को समझते नहीं। और आप समझते भी हैं और करते भी जाते हैं और गलती भी करते हैं। अगर आपको अध्यात्म सही तरीके से आता, तो भौतिक जीवन में आप भी ऐसी सेहत पा सकते हैं। और अक्ल की फिक्र है आपको? हाँ साहब! अक्ल की फिक्र है हमें। हमारी अक्ल बहुत अच्छी है।
अध्यात्म से बौद्धिक कुशलता की प्राप्ति
महाभारत की एक किताब लिखने के लिए व्यास जी बोलते चले गए थे और स्टेनोटाइपिस्ट गणेश जी टाइप करते गये थे। गणेश जी सारे डिक्टेशन नोट करते थे। तब महाभारत लिखा गया था। दोनों की मेहनत के फलस्वरूप महाभारत लिखा गया। हमने कितना सारा लिखा है, आपको मालूम नहीं है। हमने वेदों के अनुवाद किये, उपनिषदों के अनुवाद किये, दर्शनों के अनुवाद किए। पुराणों के अनुवाद किये हैं। हिन्दू धर्म के ए टू जेड जितना भी पूर्ण साहित्य है, जिसमें कि ब्रह्माजी के चार मुखों से जो चार वेद बताये गये थे, सबका अनुवाद किया। सनक, सनन्दन आदि ने और जो अन्य लोगों ने व्यास जी ने प्राचीन साहित्य लिखे थे, वह हमने अपनी इस छोटी सी जिन्दगी में लिखकर फेंक दिया है।
क्यों साहब! ऐसा हो सकता है? हाँ हो सकता है। यह क्या बात है? अक्ल है और क्या है। आप सुनते तो हैं नहीं। अक्ल है नहीं। नहीं साहब! हमें अक्ल से कोई वास्ता नहीं है। हाँ हमें मालूम है कि आपका वास्ता किससे है। आप तो रेलवे स्टेशन पर वेट तौलने वाली मशीन में दस पैसे डालते हैं और वह खर-खर करके एक टिकट आपके हाथ में दे देती है। कितना वजन है—१२१ पौण्ड। दस पैसे डालिये और १२१ पौण्ड का वजन लीजिए। गुरुजी! वेट तौलने की मशीन से क्या मतलब है? बेटे, पैर छुइये और आशीर्वाद ले जाइये। माला चढ़ाइए और आशीर्वाद ले जाइये। आपकी दृष्टि से तो हमारी कीमत दो कौड़ी की है। आप जिस हिसाब से हमारा मूल्यांकन करते हैं, वह दो कौड़ी का मूल्यांकन है। इसी तरीके से आपका हमारा मूल्यांकन करना हमको पसंद नहीं है। आपका इस तरीके से मूल्यांकन करना कि आपने क्या चमत्कार दिखाया, क्या फायदा किया और क्या आशीर्वाद दिया, हमको नापसन्द है।
मित्रो! हमारी अक्ल बहुत पैनी है। कितनी पैनी है? हमने अध्यात्म और विज्ञान को मिलाने का निश्चय कर लिया है। दुनिया में अब तक बहुत सारे फैसले हुए हैं। डेमोक्रेसी की थ्योरी दुनिया में लाने के लिए एक आदमी ने काम किया, जिसको रूसो कहते हैं। मार्क्सवाद की थ्योरी को दुनिया के सामने पेश करने में एक आदमी ने काम किया, जिसको कार्लमार्क्स कहते हैं। दुनिया में बहुत से लोग हुए हैं, जिन्होंने होमियोपैथी की थ्योरी को पेश किया, साइंस की थ्योरियों को पेश किया। दुनिया में बहुत शानदार आदमी रहे हैं।
वैज्ञानिक अध्यात्म—गुरुदेव का उल्लेखनीय योगदान
इनमें एक आदमी आपको और भी शुमार करना पड़ेगा। अध्यात्म और विज्ञान में मुद्दतों से लड़ाई चली आ रही थी, नफरत चली आ रही थी। हमने अध्यात्म और विज्ञान की लड़ाई को और नफरत को खतम करने का फैसला कर लिया है। हमने यह निश्चय किया है कि हम साइंटिस्टों से मिलेंगे और उनसे पूछेंगे कि आप क्या चाहते हैं। आप लेबोरेट्री में गॉड को देखना चाहते हैं। आइये हम आपके सामने पेश होते हैं और आपके गॉड को आपकी लेबोरेट्री में पेश करते हैं। आप देखिए, अब हम आपको गॉड को लेबोरेट्री में पेश करेंगे। इसके लिए सौ लेबोरेट्रियों की आवश्यकता है। आप यकीन रखिये, हम सौ लेबोरेट्री लायेंगे और आप जो भाषा समझते हैं, उसी तरीके से हम पेश करेंगे, ऐसा फैसला हमने कर लिया है।
मित्रो! आध्यात्मिकता की ताकत और भौतिकता की ताकत, विज्ञान की ताकत, जो दोनों एक दूसरे से लड़ाई लड़ती रही है, अब हम इसमें मोहब्बत करा देंगे और लड़ाई को खत्म करा देंगे। हाँ भाईसाहब! हमने निश्चय कर लिया है कि हम कुत्ते और बिल्ली का ब्याह करायेंगे। बिल्ली का ब्याह कुत्ते से करायेंगे। कुत्ता और बिल्ली तो आपस में लड़ाई करते रहते हैं और मारकाट मचाते रहते हैं। दोनों मारकाट मचाते होंगे, पर हमने अपनी अक्ल की कसम खा करके यह कहा है कि हम इनमें मोहब्बत पैदा करा देंगे। किसमें? विज्ञान और अध्यात्म में।
विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय ऐसे होगा
आपका क्या मतलब है? हमारा मतलब यह है कि आग और पानी जिस तरीके से बैरी बने हुए हैं, और हमेशा से इन्होंने बैरी का काम किया है। अब हम इनको सहयोगी के रूप में साबित करेंगे। कैसे साबित करेंगे? आग और पानी छोटे स्तर पर बैरी होते हैं, किन्तु बड़े स्तर पर बैरी नहीं होते। बड़े स्तर पर जब दोनों आपस में मिल जाते हैं, तो स्टीम बनाते हैं। स्टीम से बायलर चलते हैं। स्टीम से बादल बरसते हैं। स्टीम से प्रेशर कुकर चलते हैं। स्टीम से ट्रेनें चलती हैं। अध्यात्म और विज्ञान को मिला देने वाले ज्ञाता और विशेषज्ञ अभी तक नहीं थे। जो अध्यात्म को समझते थे, विज्ञान को नहीं मानते थे और जो विज्ञान को जानते थे, वे अध्यात्म को नहीं मानते थे।
मित्रो! एक को बंगला बोलना आता है और एक को तमिल बोलना आता है। दोनों को एक भाषा बोलना आये तो दोनों में बातचीत करायें। नहीं साहब! आप बंगला में बोलते जाइये और हम तमिल में बोलते जाएँगे। आपके लिए हम गूँगे-बहरे और उसके लिए वे गूँगे-बहरे हैं। हमने दुभाषिये की कसम खाई है कि हम दुभाषियों की तरह से जिएँगे। हम अध्यात्म को विज्ञान की भाषा में समझाएँगे कि आपकी बात ये लोग कह रहे हैं।
आप यह मत कहिए कि ये आपसे लड़ाई लड़ते हैं और विज्ञान से कहेंगे कि आप जो कहना चाहते हैं, वही अध्यात्म कहता है, फिर आप झगड़ते क्यों हैं। अगर दोनों में मोहब्बत हो गयी, तब? तब तो जैसे समुद्र मथा गया था और समुद्र मथने के बाद में दो बैरियों ने, दो विरोधियों ने आपस में यह मशवरा किया था कि लड़ेंगे नहीं, वरन् आपसी मोहब्बत पैदा करेंगे। उसका परिणाम क्या हुआ था? इसी खारे वाले समुद्र में से चौदह रत्न निकाले गये थे, जो एक से बढ़कर एक अनमोल रत्न थे। ऐसा हो सकता है? हाँ, बिल्कुल ऐसा हो सकता है, आप यकीन रखिए।
मित्रो! हम यह किसकी बात कह रहे हैं। हम यह अपने अक्ल की बात कह रहे हैं। आप और किसकी बात सुनना चाहते हैं? एक और बात रह गयी है-शोहरत की। आप शोहरत की बात सुनना चाहते हैं। आप हमारे शोहरत के बारे में मत सुनिये। आप संसार के किसी कोने में चले जाइये। हिन्दुस्तान की बात जाने दीजिए, हिन्दू मजहब की बात जाने दीजिए। आप दुनिया के इंटेलिजेन्सियों के पास कहीं चले जाइये और यह पता लगाकर आइये कि इस नाम के आदमी को आप जानते हैं क्या? दुनिया के हर कोने का हर आदमी यही कहेगा कि हम इस नाम के आदमी को जानते हैं।
शोहरत के बाद और कौन सी बात है जो हमने अपनी कमाई का हिस्सा दूसरों में बाँटा है? आप चाहें तो तलाश कर लीजिए। कुछ दिन तक आप हमारे साथ-साथ रहिए और यह देख लीजिए कि गुरुजी के पास मिलने के लिए कौन-कौन आते हैं। आप उनके नाम नोट करते जाइये और हमारे पीछे टेपरिकार्डर लगा दीजिए और टेप करते जाइये कि गुरुजी इनसे क्या कहते हैं। क्या जवाब देते हैं। इन सारी की सारी चीजों की बाकायदा आप रिपोर्ट तैयार करते रहिए और यह पता चलाइये कि लोग किस काम के लिए आये थे।
गुरुदेव का पुण्य व तप, हर व्यक्ति के लिए
मित्रो! हमारे पास लोग अपनी हैरानियों की बात कहने आते हैं, मुसीबतों की बात कहने आते हैं। कठिनाइयों की बात कहने आते हैं और ऊँचा उठना चाहते हैं। ऊँचा उठने के लिए मदद माँगने के लिए आते हैं। हमने अपनी जिन्दगी में बहुत सेवाएँ की हैं। लाखों और करोड़ों आदमियों की आँखों में आँसू पोंछ दिये हैं। आप तो अपने भी आँसू बहाते हैं। और दूसरों को आँसू बहाने के लिए मजबूर करते हैं। हमने न अपने आँसू बहाये हैं और न दूसरों के आँसू बहते बर्दाश्त किये। अपने पुण्य और तप अगर हमारे पास है, तो हमने हर आदमी को दिया है। पूरा नहीं दे सके होंगे, तो कम दिया होगा। जो भूखा हो और हम उसे पूरी रोटी नहीं खिला सकते होंगे, तो नाश्ता जरूर करा दिया होगा। चाय जरूर पिला दिया होगा। पूरी नहीं खिला सके होंगे, तो न भी खिला सके होंगे, पर उसकी सहायता हमने जरूर की है। आदमी को ऊँचा उठाने के लिए, अपने नजदीक आने वालों को उनमें से हर आदमी को हमने ऊँचा उठाया है।
मित्रो! हमने सुना है कि चन्दन के दरख्त के पास उगे हुए झाड़-झंखाड़ उसी तरह के हो जाते हैं। हमारे नजदीक जो भी उगा होगा, हमारे सम्पर्क में जो कोई भी आया होगा, हमने उसे उछाला है। पारस होने का दावा तो हम नहीं करते और स्वाति की बूँद की वर्षा का दावा भी हम नहीं करते कि हम जहाँ भी बरसते हैं, वहाँ मोती पैदा कर देते हैं, पर आप यकीन रखिए हमने लोगों को उछाला है, लोगों को उठाया है। हमारे नजदीक आने वालों में से एक भी आदमी ने यह शिकायत नहीं की कि हम जैसी हैसियत में थे, वैसे ही बने रहे, हमको उठाया नहीं या हमको उठाया नहीं गया। हमको आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया गया और गुरुजी ने इस मामले में कोई सहानुभूति नहीं दिखाई। हमने सबकी मदद की है। यह हमारी जिन्दगी का वह पहलू है जिससे आप अंदाज लगा सकते हैं इनकी निजी दौलत कितनी होनी चाहिए। यह तो हमारे बाँटने का किस्सा है।
मित्रो! पहले जो शादी-ब्याह होती थी और बारात आती थी, तो बेटे का बाप थैली में से मुट्ठी भरता था और फेंक देता था। उसे लेने कौन आते थे? सब भिखारी आते थे, गरीब आते थे और पैसे बीनते थे। वह फिर फेंकता था और लोग बीनते थे। किसकी बात कह रहे हैं? यह तो हम फेंकने की बात कह रहे हैं। हमने कितने दुखियारों के लिए, कितने आगे बढ़ने के इच्छुकों के लिए जो मदद की है, यह उसका हवाला है। यह हवाला उसका नहीं है, जो हमारे पास है। हमारे पास बहुत है। हमने जो था, सारा का सारा दे दिया। दूल्हे का बाप क्या देता है, आप बताइये। आप चाय की पार्टी में सारा धन खर्च कर देते हैं क्या? नहीं साहब! नहीं खर्च करते। तो क्या लड़की की शादी में सारा धन खर्च कर देते हैं? नहीं साहब! नहीं खर्च करते। आप देने वालों में सारा खर्च करते हैं क्या? हमने भी देने वालों में सारा खर्च नहीं किया है। कम खर्च किया है और हमारे पास जो बचा हुआ है, वह अभी भी बहुत है।
संपदा से वंचित नहीं रहते आध्यात्मिक व्यक्तित्व
मित्रो! एक और बात है। क्यों साहब! आप तो यहाँ वहाँ की बात कहने लगे। असली बात बताइये। अभी असली बात कौन सी रह गयी है? हाँ साहब! असली रह गयी है। असली बताइये। आप असली क्या चाहते हैं—रुपया? हाँ साहब! असली बात है रुपया। असली बात आपने बाद में कही। असल में यह बात मुझे पहले ही कहनी चाहिए थी कि आप जिस कसौटी पर खरा-खोटा कसने वाले हैं, वह कसौटी यही है। मैं तो न जाने क्या से क्या अंदाज लगा रहा था। पैसा भी हमारे पास है।
भाईसाहब! हमारे पास पैसा बहुत है। कितना है? हमने पाँच इमारतें अपने हाथों से बनायी हैं, जिसका नाम—गायत्री तपोभूमि—एक, युग निर्माण योजना—दो, गायत्री नगर—तीन, शान्तिकुञ्ज—चार और ब्रह्मवर्चस—पाँच है। पाँच इमारतों की ईंट पत्थरों में एक करोड़ रुपया लगा है। एक करोड़ की इमारत में जो आदमी रहेगा उसमें कुछ फर्नीचर भी होगा। उस घर में कुछ खाने को भी होगा। उसका कारखाना भी होगा। कुछ खेती-बाड़ी भी होगी, कुछ उद्योग भी होगा। कुछ मशीन भी होगी। कुछ होगा कि नहीं होगा या मकान ही मकान होगा? क्या करेगा इतने मकान का? हमारा मकान है, तो हम मकान का कौन सा खर्च बतावें। आपके लिए सारा खर्च बताना मुनासिब नहीं है।
मित्रो! अगर आप में से कोई इन्कम टैक्स वाला होगा तो फिर हमको तंग कर सकता है। इसलिए हम सारे खर्च नहीं बताते हैं, परन्तु हम वह खर्च बता सकते हैं, जो हमारे बही-खाते में है। बिना बही-खाते का तो रहने दीजिए। बिना बही-खाते का तो हम आपसे बताते ही नहीं। हमारे पास और क्या है? यह जो शक्तिपीठें बन रही हैं, जैसी आपके यहाँ बन रही है। यह तो छोटी शक्तिपीठ है। मैं सोचता हूँ कि शायद यह सबसे छोटी शक्तिपीठों में से एक होगी। लेकिन जो बाकी २४०० शक्तिपीठें बनायी हैं और औसतन उसमें यह भी शामिल है। मैं सोचता हूँ कि इसमें चालीस हजार रुपये से कम तो नहीं लगना चाहिए। इतना तो लगभग लग ही जायेगा। चालीस हजार रुपये हमने औसत माना है।
अभी जो २४०० शक्तिपीठें बन रही हैं, उनमें हमने सौ करोड़ रुपया खर्च कर दिया। पौने दो, डेढ़ वर्ष हमने लोगों से प्रार्थना की कि रुपये खर्च कर दीजिए। लोगों ने खुशी से सौ करोड़ खर्च कर दिया। इन शक्तिपीठों में दो-दो आदमी रहेंगे। इस हिसाब से २४०० शक्तिपीठों में पाँच हजार के लगभग कार्यकर्ता रहेंगे। उनका कितना खर्च होगा? भाई साहब! आप खर्च की बात ही मत पूछिये। आमदनी की बात भी मत पूछिये। खर्च मैं आपको बता दूँगा। नहीं साहब! आमदनी बताइये? आमदनी नहीं बताऊँगा।
मित्रो! आमदनी होगी तो फिर आप भी वहाँ जा पहुँचेंगे। कहाँ जा पहुँचेंगे? जहाँ से हमको आमदनी मिलती है। आप दान-दक्षिणा माँगते हैं कि नहीं, लेकिन हमने कसम खा रखी है कि किसी के सामने हाथ नहीं पसारेंगे। आज तक हमने किसी आदमी के सामने हाथ नहीं पसारा और किसी इंसान से यह नहीं कहा कि हमें पैसा दे जाइये। कहीं भी नहीं कहा और अब तो हम जहाँ कहीं भी जाते हैं, जो कुछ भी पैसा मिलता है, वहीं खर्च करके चले आते हैं।
बहुमूल्य होता है आध्यात्मिक व्यक्तित्व
आपके यहाँ से जो भी पैसा आयेगा, वह सब संस्था में छोड़कर चले जाएँगे। आप क्या करेंगे? हम तो पहले ही छोड़कर चले जाते हैं। क्यों साहब? फिर तो आपका सारा पैसा चला जाता होगा। नहीं चला जाता, यही तो हम आपको बताते हैं। आप छाया की तरफ भागते हैं और छाया आपसे दूर भागती है, लेकिन हम छाया की तरफ नहीं भागते हैं। हम प्रकाश की ओर भागते हैं, तो छाया हमारे पीछे भागती है। हम पैसों को कहते हैं कि इसे भगाओ। यह बहुत तंग करेगा और चोरों को बुलाकर लायेगा। कोई चेला आ जायेगा जो हमारी गर्दन दबोच देगा, क्योंकि गुरुजी के पास बहुत पैसा है। इसको भगाओ, नहीं तो इन्कमटैक्स वाले आ जाएँगे, चंदा माँगने वाले आ जायेंगे। कोई साले-बहनोई आ जायेंगे, पड़ोसी आ जायेंगे, गरीब बनकर आ जायेंगे, ठग बनकर आ जायेंगे और फिर आफत पैदा करेंगे। इसलिए हम इसे फेंकते रहते हैं।
परन्तु मित्रो! हम क्या करें, छाया हटती ही नहीं है, पीछे से कहीं जाती ही नहीं है। जितना हम भागते हैं, उतना वह आ जाती है। जितना हम आगे जाते हैं, वह उतनी ही आती जाती है। गाँधी जी का किस्सा कुछ ऐसा ही था। उनकी भी शुरू में स्थिति दो कौड़ी की थी। जब वे पहला मुकदमा लड़ने गये थे, तो उस मुकदमें में हार गये थे। वे काँपने लगे थे। यह व्यक्तिगत गाँधी थे। लेकिन आध्यात्मिक गाँधी ने अंग्रेजों से कहा—‘‘क्विट इण्डिया’’ भारत छोड़िये और यहाँ से चले जाइये। उन्होंने लोगों से कहा था कि जेल जाइये। लोगों से कहा—गोलियाँ खाइये, फाँसी के तख्ते पर झूल जाइये। लोगों ने उनका कहना खूब माना था। अंग्रेजों ने भी माना था।
और पैसा? गाँधी जी के ऊपर पैसा बरसता रहता था। पहले सन् १९२१ में एक करोड़ रुपये चंदे की अपील की थी। फिर सर्वोदय के लिए, खादी के लिए, हरिजन के लिए, प्राकृतिक चिकित्सा के लिए जो भी माँगा, उसमें करोड़ों रुपया आया। स्वाधीनता की लड़ाई के लिए, आजादी की लड़ाई के लिए लोगों ने गाँधी जी को करोड़ों रुपया दिया। और जब मरे तो सौ करोड़ रुपये का उनका स्मारक बनाने के लिए दिया। जब उनकी धर्मपत्नी मरीं, तो जनता ने उनका स्मारक बनाने के लिए साठ करोड़ रुपये दिये। पौने दो सौ करोड़ रुपया उनके मरने के बाद लोगों ने उनकी इज्जत के लिए दिया। आप तो आध्यात्मिकता की बात समझते ही नहीं हैं।
मित्रो! आपसे मैं आध्यात्मिकता की बात कह रहा था। बार-बार मैं आपसे यह निवेदन करने वाला था कि यदि आपके लिए अध्यात्म सम्भव हो सके तो इस क्षेत्र में प्रवेश करें। यह आपकी बहुत बड़ी समझदारी होगी। आप पहले क्या काम करते थे? मजदूरी का काम करते थे। फिर आपने मजदूर का काम किया की नहीं? साहब! हमारे बाप-दादे मुनीम का काम करते थे। गाय-भैंस चराते थे, खेती-बाड़ी करते थे। फिर गुरुजी! हमने तो वकालत पास कर ली है। हम तो मास्टर साहब हो गये। बेटे, तूने यह अच्छा काम किया। शरीर की मशक्कत की वजह से आपने वकालत पास कर ली और बी.ए. पास कर लिया। बी.एड. पास कर लिया। आप प्रोफेसर हो गए। आपने बहुत समझदारी का काम किया, नहीं तो आपको सारी जिन्दगी गाय-बैल चराने पड़ते और घास खोदनी पड़ती और ईंटें ढोनी पड़ती। आप बहुत समझदार हैं। अगर आप एक और समझदारी का सबूत दे सकें तो मजा आ जायेगा।
मित्रो! कैसे मजा आ जायेगा? आपकी वह दुनिया, जिसको अक्ल की दुनिया कहते हैं, उसमें से आगे उठ करके एक कदम और बढ़ा सकें, जिसको हम अध्यात्म की दुनिया कहते हैं, तो मजा आ जायेगा। फिर मैं आपकी समझदारी के ऊपर न्यौछावर हो जाऊँगा। फिर मैं आपकी समझदारी की प्रशंसा करते हुए थकूँगा नहीं और आप तो अपनी समझदारी के लिए बाग-बाग हो जायेंगे। फिर आपके सम्पर्क के आदमी, आपके रूहानी हिस्से के आदमी आपके के बारे में सुनकर धन्य हो सकते हैं और यह कह सकते हैं कि ऐसा अध्यात्म भगवान् हर किसी को दिखाये। ऐसा अध्यात्म क्या हो सकता है? पहले तो मैं बताऊँगा नहीं, दूसरे अगर आपकी समझ में आ जाय, तो फिर आपको साधना करनी पड़ेगी।
मित्रो! आप तो भजन करते हैं, उपासना करते हैं, परन्तु साधना नहीं करते। उपासना और साधना में, दोनों में कोई विरोध तो नहीं है, परन्तु वे दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरा सफल नहीं हो सकता। खाली उपासना सफल नहीं हो सकती। आप तो खाली उपासना करते हैं, खाली भजन करते हैं। खाली उपासना आपको उत्कर्ष की ऊँचाइयों तक नहीं पहुँचा सकती। बंदूक के बिना कारतूस चल नहीं सकती, तीर—धनुष के बिना चल नहीं सकता और बीज—जमीन के बिना पैदा नहीं हो सकता। अध्यात्म जिसको आप भजन कहते हैं, उसके लिए एक चीज की जरूरत है। कौन सी वाली चीज की जरूरत है? आदमी का व्यक्तिगत जीवन, व्यक्तिगत चिन्तन, दृष्टिकोण ऊँचा उठना चाहिए और बेहतरीन होना चाहिए। साधना किसे कहते हैं? आप तो साधना भजन को कहते हैं। आप तो हर चीज को भजन कहते हैं। आपने जाने यह क्या अर्थ कर लिया है और जाने क्यों अर्थ कर लिया।
जादू नहीं है अध्यात्म
मित्रो! आप तो साधना को टेक्नीक कहते हैं। साहब! बीजमंत्र पढ़ाइए, माला घुमाना पढ़ाइए, रुद्राक्ष की माला घुमाना सिखाइए। इधर को मुख करके बैठ जाइये। अरे भाईसाहब! यह टेक्नीक है, आप सुनते क्यों नहीं हैं? यह टेक्नीक है। हाँ साहब! टेक्नीक ही काम आती है। डाक्टर टेक्नीक ही काम लेते हैं। क्या टेक्नीक काम लेते हैं? आपरेशन करने हैं। स्टेथोस्कोप काम में लाते हैं। इसके पीछे उनकी फिलॉसफी भी रहती है। उन्होंने एम.बी.बी.एस. करने में पाँच साल खर्च किए हैं। नहीं साहब! वे तो ब्लेड लेते हैं और चीर देते हैं। आप तो जाने क्यों टेक्नीक के ऊपर न्यौछावर हो गये। आपसे किसने कह दिया कि आप टेक्नीक कीजिये और मालदार हो जाइये। टेक्नीक के द्वारा जिस आधार पर मालदारी प्राप्त की जाती है, उसका नाम है—मैजिक। अध्यात्म को आप मैजिक क्यों मानते हैं। मैजिक उसे कहते हैं, जिसमें हाथ में मिट्टी लीजिए, लकड़ी घुमाइए, फूँक मारिए और पैसा आ जायेगा।
मित्रो! आप मैजिक को ही अध्यात्म मान बैठे हैं। और जाने क्या कर बैठे हैं। इसीलिए आप तलाशते फिरते हैं कि हमको टेक्नीक बताइये, विधि बताइये, विधान बताइये। आपको हम क्या विधि बतायें। बाल्मीकि को विधि नहीं आती थी, लेकिन राम नाम उलटा जप लेने पर भी वे सिद्धपुरुष हो गये थे। और आप तो तरह-तरह की बातें सीखते हैं, तरह-तरह की टेक्नीक सीखते हैं। लेकिन टेक्नीक तो आपको क्या आयेगी? टेक्नीक तो बाबाजियों को आती है। पंडितों को आती है। आपको तो सही रूप से श्लोक बोलना भी नहीं आता। यह पंडितों को आता है, बाबाजियों को आता है। ये पण्डित और बाबाजी अब तक करोड़पति हो गये होते और आपके यहाँ भीख माँगने नहीं आते, तरह-तरह के ढोंग बना करके, झोला फैला करके। उनका यह एक ही पेशा है कि किस तरह से जनता को फँसाएँ और पैसा कमायें। इधर की बात, उधर की बात, दुनिया भर की निन्यानवे चक्कर लगायेंगे, चुपचाप आप देखते रहना। आप देखते रहना कि ये महंत जी, पंडित जी, बाबाजी कहते क्या हैं? ये रामायण भी कहते हैं, भागवत् भी कहते हैं, फिर आखिर में वहीं आ जाते हैं कि हमारी हिमायत करिये।
साधना का पथ है अध्यात्म
मित्रो! इसको हम अध्यात्म कैसे कहेंगे। यह अध्यात्म नहीं हो सकता। अध्यात्म कैसे हो सकता है? अध्यात्म वह हो सकता है, जिसमें आदमी को साधना की ओर अग्रसर होना पड़ता है। इसके बारे में मैं आपको गौर कराना चाहता हूँ। अध्यात्म को मैं साधना से जोड़ना चाहता हूँ। उपासना उसका एक शृंगार है। उपासना उसकी शोभा है। उपासना उसका एक कृत्य है। उपासना फाउन्टेन पेन की तरह से है, जिससे चेक लिखा जाता है। आपके पास कलम नहीं है तो चेक पर नहीं लिख पाएँगे और बैंक से रुपया नहीं मिलेगा। यह बात सही है, पर आपको यह मालूम होना चाहिए कि बैंक में कुछ जमा है कि नहीं और आप पढ़े-लिखे हैं कि नहीं। पी-एच.डी. हो जाते हैं। परन्तु आपका गहन अध्ययन है कि नहीं। नहीं साहब! अध्ययन तो नहीं है, बस लिखना आता है। तो आप पी-एच.डी. होना चाहते हैं, यह मुश्किल है। भाईसाहब! नहीं हो सकेगा। आप पेंटर बनना चाहते हैं, चित्रकार बनना चाहते हैं। हाँ साहब! देखिये हमारे पास ब्रुश है और हमारे पास रंग है और चित्र बनाना चाहते हैं। चित्र आप बनायेंगे? पर आपने चित्रकला नहीं सीखी है, तो आप चित्र कैसे बनायेंगे।
मित्रो! आपको टेक्नीक आती है तो आप अपनी टेक्नीक को जेब में रखिये। हम मूर्तिकार हैं। तो आप क्या करना चाहते हैं। हमारे पास छैनी-हथौड़ा है तो देखिये हम मूर्ति बनाकर दिखायेंगे। तो फिर आप बनाइये न मूर्ति। पत्थर को और तोड़कर रख देंगे, साथ ही अँगुली को भी काट लेंगे। आपको मूर्तिकला आती है? नहीं मूर्तिकला तो नहीं आती। मित्रो! अध्यात्म की टेक्नीक काफी नहीं है। टेक्नीक जरूरी तो है, पर काफी नहीं है।
मात्र टेक्नीक नहीं है अध्यात्म
एक बार फिर सुनिये, आध्यात्मिकता की टेक्नीक जरूरी तो है पर काफी नहीं है। भजन जरूरी तो है, पर काफी नहीं है। भजन चमत्कार नहीं दिखा सकता। भजन ने चमत्कार दिखाये होते, तो न जाने व्यक्ति कहाँ-से-कहाँ चला गया होता। भजन को आप अनावश्यक महत्त्व मत दीजिए। राम-नाम को अनावश्यक महत्ता अगर आप दें, तो साथ ही तुलसीदास का और वाल्मीकि का उदाहरण भी याद रखिए। तुलसीदास जी ने राम के नाम के साथ अपनी जिन्दगी बदल दी थी और वाल्मीकि ने राम-नाम के साथ अपनी जिन्दगी बदल दी थी। लेकिन आप नाम राम का लेना चाहते हैं और काम रावण का करना चाहते हैं, फिर बात कैसे बन सकती है।
इसलिए मित्रो! टेक्नीक का महत्त्व मैं गिराना चाहता हूँ। आप इसे खतम कर दीजिए। इसे मैं कैसे खतम करूँगा? इस टेक्नीक के लिए मेरी जिन्दगी खतम हो गयी। इस टेक्नीक के लिए मैंने ६ घण्टे रोज चौबीस वर्षों तक जौ की रोटी और छाछ पी करके काटे हैं। टेक्नीक के लिए चार घण्टे रोज मुझे अभी भी लगाने पड़ते हैं। तो महाराज जी! आप टेक्नीक के खिलाफ हैं? आप बताइये न मुझे, भला मैं इस टेक्नीक के खिलाफ कैसे हो सकता हूँ। जो आदमी टेक्नीक के लिए अपनी जिन्दगी को तबाह कर डाले, वह उसे कैसे गलत बतायेगा? पर मैं एक बात कहता हूँ, जिसको आप सुनना नहीं चाहते। आप उस पर गौर क्यों नहीं करना चाहते? और वह यह है कि आप अपने जीवन में साधना को जोड़े रखिये। आप अगर साधना से जुड़ेंगे नहीं, तो आपको इन टेक्रिकों से ज्यादा फायदा नहीं हो सकता, जो आप चाहते हैं। देवता उन आदमियों का नाम नहीं है, जो आपकी इन टेक्निकों को काउण्ट करते रहते हों। देवताओं के पास ऐसा कोई कम्प्यूटर नहीं है। आपने ग्यारह माला जप किया, लाइये साहब! ग्यारह हजार रुपये का मनीआर्डर। आपने पाँच बार हनुमान चालीसा किया, लाइये पाँच थाल मिठाई के। ऐसा कहीं सिस्टम नहीं है और आप हैं, जो ऐसा सिस्टम बनाना चाहते हैं, जो नामुमकिन है।
स्वयं को साध लेना है साधना
मित्रो! क्या यह मुमकिन है कि आदमी का व्यक्तिगत जीवन पुनीत होना चाहिए, व्यक्तिगत जीवन पवित्र होना चाहिए। व्यक्तिगत जीवन में सफाई रहनी चाहिए, व्यक्तिगत जीवन में शान रहनी चाहिए और व्यक्तिगत जीवन में आदमी को उदार रहना चाहिए। यही साधना है। यह साधना अगर आपके पास होगी, तो आपकी उपासना चमत्कार दिखायेगी। साधना अगर आपके पास नहीं है, तो आपकी उपासना झक मारेगी, जैसे कि अभी तक मारती रही है और आपकी उपासना आगे भी झक मारेगी। फिर आपको क्या शिकायत करनी पड़ेगी कि हमारी उपासना से कोई फल नहीं मिला। अब तक न मिला है और न आगे मिलने वाला है। मिलेगा भी नहीं। आप यकीन रखिये बिल्कुल नहीं मिलेगा।
गुरुजी! आप क्या कहने जा रहे थे? मैं यह कहने जा रहा था कि आज से ही आप यह विचार करना शुरू करें कि हमारे जीवन की गंदगी जो कार्यरूप में, विचारों के रूप में, भावनाओं के रूप में, इन तीनों क्षेत्रों में जो गंदगी घुली पड़ी है, उसको तलाशने की कोशिश कीजिए और तलाश करने के बाद सफाई शुरू कर दीजिए। अपने आपको साध लेने का नाम ही साधना है। बंदर अपने आपको साध लेता है, तो मदारी के घर का खर्च चलाता है। रीछ अपने आप को साध लेता है, तो मदारी के घर का इंतजाम कर देता है। शेर अपने आपको साध लेता है, तो फिर सर्कस के घर वालों का गुजारा करता है। अगर आप अपनी जिन्दगी को साधना शुरू करेंगे, तो अपने लिए हित करेंगे, समाज के लिए हित करेंगे, भगवान् के लिए हित करेंगे और फिर आप देखेंगे कि कहाँ-से-कहाँ जा पहुँचते हैं। आप अपने को साधना शुरू कीजिए।
मित्रो! हमने अपने आपकी साधना की है। अपने आपकी धुलाई और धुनाई की है। आप बार-बार क्यों पूछते हैं कि हमने कौन सा बीज मंत्र किया? कौन सा भजन किया? बेकार की बात मत कीजिए, मैं झल्ला पड़ूँगा। आप कौन सी माला जपते हैं? रुद्राक्ष की जपते हैं, चन्दन की लकड़ी की, तुलसी की माला से जपते हैं? हमने किसी की नहीं जपी है। हमने एक ही माला जपी है और वह यह कि अपनी जिन्दगी को इस कदर धोया है धोबी की तरीके से और धुनिये की तरीके से कि हमारी जिन्दगी रुई की तरीके से फूलकर इतनी बड़ी हो गयी। धोबी की तरीके से अपने कपड़े को इस कदर धोया है कि हमारा कपड़ा साफ है। इस पर जो भी रंग चढ़ायेंगे, मजे से चढ़ जायेगा। इस पर गायत्री का रंग भी आ गया। अगर हम चाहते तो हनुमान जी का रंग भी आ जाता, खुदाबंद करीम का भी रंग आ जाता और हम सूफी हो जाते, संत हो जाते। अगर हम ईसाई होते तो भी हम सेंटपाल होते और सिख होते, तो भी भाईसाहब हम संत होते। आप तो सुनते नहीं हैं। अपने जीवन को आप स्वच्छ बनाइये।
जीवन की पवित्रता का नाम है अध्यात्म
मित्रो! आध्यात्मिकता का एक शानदार पहलू यह है कि हर आदमी जो आध्यात्मिकता के रास्ते पर चलना चाहता है, उसको अपनी सफाई के बारे में, अपनी कमजोरियों को धोने के बारे में, अपने आप को ठीक करने के बारे में जरूरत से ज्यादा ख्याल करना चाहिए। आप अपना ख्याल कीजिए, भगवान् का ख्याल मत कीजिए। भगवान् अपने आप स्नान कर सकते हैं। भगवान् से हमने पूछा कि आप स्नान कर लेंगे? उन्होंने कहा कि आप फिकर मत कीजिए। हमारे यहाँ तो फव्वारे लगे हुए हैं, शॉवर लगे हुए हैं। हम बादलों का बटन दबा देते हैं और खट्ट से पानी में नहा लेते हैं। आप चिन्ता मत कीजिए। भगवान् को स्नान करायेंगे कि नहीं करायेंगे, पर अपने आपको स्नान जरूर कराइए। अपने आपको नहलाइए, आपने आपको खिलाइए। आपकी आत्मा भूखी मरी जाती है, उसको खिलाइए। नहीं साहब! भगवान् भूखे मरे जाते हैं, हनुमान जी भूखे मरे जाते हैं। जब हनुमान जी से हमने पूछा कि क्या आप भूखे मरे जाते हैं? वे बोले—गुरुजी! हमारे पास पूरा इंतजाम है और कमी पड़ेगी तो हाथ-पाँव से कमा लेंगे और खा लेंगे। भक्त लोगों से कहना कि हमें लड्डू न खिलायें, तो हमारा कोई हर्ज नहीं है।
मित्रो! मैं क्या कह रहा था? यह कह रहा था कि आप अपने आपको खिलाइए। अपने आपको नहलाइए, अपने आपके ऊपर आरती उतारिए। अपने आपको फूलों से सजाइए। इसलिए मित्रो! साधना का वह तरीका, जो जिन्दगी से ताल्लुक रखता है, सोचने से ताल्लुक रखता है, वह पूजा की चौकी से सम्बन्धित तो है, पर पूजा की चौकी तक सीमित नहीं है। आप उसे सीमित करके बैठे हैं। आप यह क्या गलती करते हैं। भगवान् को सीमित मत रखिये। पूजा कीजिए, जैसे हम करते हैं, लेकिन जिन्दगी को भी पूजामय बनने दीजिए। अपने चिन्तन को पूजामय बनने दीजिये। अपने चरित्र को पूजामय बनने दीजिए। अपने व्यापार को पूजामय बनने दीजिए। अपने विचार को, सोचने के ढंग को पूजामय बनने दीजिए। फिर देखेंगे कि आपके जीवन में चमत्कार आता है कि नहीं आता। जब चमत्कार आयेंगे तो एक और बात का ध्यान रखिएगा। आप तैयार हो जाइये, जब आपके पास चमत्कार आयेंगे, सिद्धियाँ आयेंगी, तो आप खा नहीं सकेंगे। आप याद रखना, खा नहीं सकेंगे। आपको खिला देना पड़ेगा, आप खा नहीं सकेंगे।
मित्रो? माता की छाती में दूध आता है, तो वह स्वयं पी नहीं सकती। नहीं साहब! हम पियेंगे। आप नहीं पी सकेंगी, बच्चों को पिलाइए। क्यों साहब! हमारा दूध है, हम पियेंगे। हमारे पेट में से दूध पैदा हुआ है। हम तो अपना ही पिया करेंगे। नहीं आप नहीं पी सकेंगी, बच्चों को पिलाइए। पेड़ अपने फल को नहीं खा सकेंगे। पेड़ को अपना फल दूसरों को खिलाना पड़ेगा। भेड़ अपनी ऊन को खुद नहीं पहन सकती, दूसरों को पहनाना पड़ेगा। बादल अपने पानी को अपने लिए उपयोग नहीं करते। उन्हें दूसरों के लिए पानी को बिखेरना पड़ेगा। अगर कभी आपके पास सिद्धियाँ आयेंगी? बता नहीं सकता, मुझे मालूम नहीं। लेकिन कभी आपके पास आयेंगी, तो आप खा नहीं सकते। उसको आपको खिलाना ही पड़ेगा और खिलाने से जो जायका आता है, उसको आप पा लेंगे। खिलाने के बाद का जायका अपने आप में अजीब जायका है। आपने तो खिलाने का जायका चखा नहीं है। आपने तो खाया-ही-खाया है। सबका खाया है। लेकिन खिला करके आध्यात्मिकता की सिद्धियाँ जब आयेंगी, तो आप उसका स्वयं के लिए फायदा नहीं उठायेंगे।
लोक-कल्याण के लिए मिलती हैं सिद्धियाँ
मित्रो! आपकी लड़की बी.ए. करने के बाद में जब जवान हो जायेगी, तो आप उसको अपनी बीबी नहीं बना सकेंगे। उसको आपको किसी और के सुपुर्द करना पड़ेगा। नहीं साहब! हमारी लड़की है, हमने पढ़ाई है, हम तो अपने आप शादी-ब्याह कर लेंगे। ऐसा नहीं हो सकता। आपके पास सिद्धियाँ आयेंगी तो बेटी के रूप में आयेंगी, औरत के रूप में नहीं आयेंगी, वेश्या के रूप में नहीं आयेंगी, जिसका कि आप मनमर्जी से इस्तेमाल करें। आप तो वेश्या की सिद्धि तलाश करना चाहते हैं। सिद्धियाँ वेश्या बनकर नहीं आ सकती। सिद्धियाँ जब आयेंगी तो माँ बनकर आयेंगी। सिद्धियाँ जब आयेंगी तो बेटियाँ बनकर आयेंगी। सिद्धियाँ जब आयेंगी, तो बहन बनकर आयेंगी और आपके इस्तेमाल में नहीं आ सकेंगी। आप मोहब्बत कीजिए और मोहब्बत के बदले में न जाने क्या-से-क्या पाइये। ध्यान रखिए, आप इनका सीधा इस्तेमाल नहीं कर सकते। डायरेक्ट इस्तेमाल नहीं कर सकते। इनका इस्तेमाल इनडायरेक्ट रूप से होता है। किसका? तप का। आप तप का इस्तेमाल कीजिए और पुण्य कमाइए।
मित्रो! हम तप करते रहे हैं और उसे खर्च करते और पुण्य कमाते रहे हैं। हमने ब्राह्मण की तरीके से जिन्दगी को जिया है और ब्राह्मण की जिन्दगी जीने का परिणाम यह हुआ है कि भगवान् ने पहले जमाने में ब्राह्मण का जो सम्मान किया था, वह अभी भी किया है। भगवान् ने ब्राह्मण सुदामा के चरण धोकर पिया था और महर्षि भृगु ने भगवान् विष्णु को लात मारी थी और उन्होंने इसे सहज ही बर्दाश्त कर लिया था। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण की लात हमने खा ली, हमारा धन्य भाग्य हो गया और ब्राह्मण के चरण धोकर पीने में भगवान् धन्य हो गये। हमने कोशिश की है कि हम भगत न होकर के ब्राह्मण जीवन जियें। भगत बनने के लिए व्याकुलता मत दिखाइये। अगर आप भगत बनते होंगे, तो भगवान् के ऊपर उतना असर नहीं डाल पायेंगे, जितना कि आप संत बन करके, नेक आदमी बन करके, एक सही आदमी बन करके, शरीफ आदमी बन करके, परलोक हित के लिए, समाज सेवा के लिए, जनकल्याण के लिए अपने आपको खपा करके जो काम कर सकते हैं, वह और तरीके से नहीं हो सकता।
संतों का जीवनदर्शन—सुख बाँटें, दुःख बँटाएँ
मित्रो! अध्यात्म को यही करना पड़ेगा और आपको भी यही करना पड़ेगा। यही निवेदन करने के लिए मैं आप लोगों की सेवा में हाजिर हुआ था। आप इस विषय पर विचार करें। जब आप विचार कर लें और यह मालूम कर लें कि यह बातें सही है और मुनासिब है, तो रास्ते तो हजारों हैं। रास्ते तो हम बताते हैं फिर बता देंगे। पहले से सभी बुजुर्गों ने एक-दो रास्ते बताये हैं। वही दो रास्ते आपको फिर से काम दे सकते हैं। कौन से वाले? तो क्या करना चाहिए? टेक्नीक के बारे में मत विचार कीजिए। आप तो सिद्धान्तों के बारे में विचार कीजिए। यह नेशनल हाइवे है, शार्टकट नहीं है। अच्छी जिन्दगी जियें, शानदार जिन्दगी जियें, लोकहित की बातें सोचिये। समाज के दुःख और दर्द में शामिल होइये। अपने सुखों को बाँटने की बात सोचिये और दूसरों के दुःखों को बटाने की बात सोचिये। इसी का नाम अध्यात्म है। जब आप दूसरों के दुःखों को बँटाते हैं और जब आप अपने सुखों को बाँटने की हिम्मत इकट्ठी करते हैं, तब आप संत हो जाते हैं।
मित्रो! आप पैन्ट पहनते हैं, तो आपसे मुझे क्या शिकायत हो सकती है। हम तो साहब पैंट पहनते हैं, हम संत नहीं हो सकते। तो मैं आपसे क्यों मना करूँगा? साहब! हमारे बाल-बच्चे हैं। तो बाल-बच्चों और संत से क्या मतलब है? महादेव जी के भी तो बाल-बच्चे थे। दो बीबियाँ थी। एक मर गयी तो एक और ब्याह कर लिया। सबके बच्चे थे। घोड़ा, बैल, हाथी—पूरी-की-पूरी कंपनी लेकर के चलते थे। सारी साज-सज्जा चलती थी। एक हाथी का खुराक लाइये, बैल का खुराक लाइये, शेर का खुराक लाइये, एक मोर का खुराक लाइये। गणेश जी का खुराक लाइये, चूहे का खुराक लाइये। शंकर जी के साँपों का खुराक लाइये। मोर बैठा रहता था साँप को खाने के लिए। अरे साहब! इन साँपों को अलग रखिये और मोर को अलग रखिए। शेर को अलग रखिये और बैल को अलग रखिये, नहीं तो शेर बैल को खा जायेगा। पार्वती का वाहन शेर और शंकर जी का बैल है। गणेश जी का चूहा और कार्तिकेय का मोर है। साँप को मोर खा जाये तो? कौन किसको खा जाय, कहा नहीं जा सकता। शंकर जी पूरे का पूरा सर्कस लेकर चलते हैं और उनकी साज-संभाल भी करते हैं। कोई किसी को हानि नहीं पहुँचाता। सब मिल-जुलकर, घुल-मिलकर साथ-साथ रहते हैं।
मित्रो! आपके बीवी-बच्चे हैं, तो हम क्या करें। बीवी-बच्चों को क्या मार डालें? इन सब बच्चों को हम छोड़ देंगे, तो बाबा जी होंगे। नहीं बच्चों को छोड़ देने वाले बाबाजियों को मैं न बनाता हूँ और न किसी की हिमायत करता हूँ। मैं तो चाहता हूँ कि हर आदमी का शानदार जीवन हो। आप अपने घरों में तपोवन लाइये। मन में भगवान् को लाइये। श्रेष्ठ जीवन जियें, फिर देखिये कि आपके पास चमत्कार आते हैं कि नहीं आते। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि चमत्कार आयेंगे। हमारे प्राचीन काल के चमत्कारों में से हरेक आदमी का आधार भजन नहीं रहा। गाँधी जी डेढ़ घण्टे भजन करते थे। विवेकानन्द आधा घण्टे भजन करते थे। आप भजन के ऊपर ज्यादा ध्यान मत दीजिये। आप इस बात पर ध्यान दीजिए कि आपकी जिन्दगी शानदार कैसे बन सकती है। अगर आप शानदार जिन्दगी बनायेंगे तो मजा आ जायेगा। और आप वही चमत्कार पायेंगे, जो अभी मैं आपसे निवेदन कर रहा था।
मित्रो! लकड़ी के संदूक के भीतर अटैची है और अटैची के भीतर जेवर हैं। आपका स्थूल जीवन संदूक है और आपका सूक्ष्म शरीर अटैची है और आपका कारण शरीर जेवर है, जिसमें सारी दौलतें भरी पड़ी हैं। सारी-की-सारी सिद्धियों और चमत्कारों का आधार कारण जीवन है, जिसको हम आध्यात्मिक जीवन कहते हैं। इसको पुनीत और पवित्र बनाने के लिए आपको अपने व्यक्तिगत जीवन को शानदार बनाना पड़ेगा। यदि व्यक्तिगत जीवन को शानदार नहीं बना पायेंगे, तो फिर ज्यादा काम नहीं कर सकेंगे। फिर आप शिकायत करते रहेंगे। आपको मायूसी रहेगी और दूसरों को भी मायूस करते रहेंगे। ऐसा मेरा अपने व्यक्तिगत जीवन का अनुभव था जो कि एक बच्चे की तरीके से आप लोगों के सामने मैंने बता दिया। अब फैसला करना आपका काम है। गवाह मैंने पेश कर दिये। इसमें मैं स्वयं भी पेश हुआ। वकालत मैंने कर दी। गवाहियाँ दे दीं, अब आपको क्या करना है, यह आप मजिस्ट्रेट महानुभावों का काम है कि आप अपने बारे में यह फैसला करें कि हमको कौन सा रास्ता अख्तियार करना है। इसके लिए मैं क्या कह सकता हूँ, पर मैं चाहता जरूर हूँ कि आप आध्यात्मिकता के रास्ते पर चलें, तो जिन्दगी में मजा आय। यह कह करके मैं अपनी बात खत्म करता हूँ।
॥ ॐ शान्तिः॥