उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
भगवान बसो इस मन में तुम, यह मन देवालय हो जाये।
यह मानव जीवन पाने का, पूरा फिर आशय हो जाये।।
जो कुछ जीवन में पायें हम, देने का भाव जगायें हम।
ले ले कर संचय करने की, दुष्वृत्ति नहीं अपनायें हम।।
दैवी गुण से भर कर जीवन, ईश्वर का परिचय हो जाये।।
यह मानव जीवन पाने का, पूरा फिर आशय हो जाये।।
मन में न कहीं दुर्भाव भरे, सबके प्रति ही सद्भाव भरे।
हो दृष्टि हमारी विस्तृत फिर, पथ हों न कहीं भटकाव भरे।।
हर कोना आलोकित होवे, ऐसा अरुणोदय हो जाये।।
यह मानव जीवन पाने का, पूरा फिर आशय हो जाये।।
ईश्वर के सुन्दर उपवन में, कर्तव्य करें हम हर क्षण में।
उलझें न कहीं हम संशय के, अँधियारे से कंटक वन में।।
आस्था विश्वास जगे ऐसा, हर पग फिर निर्भय हो जाये।।
यह मानव जीवन पाने का, पूरा फिर आशय हो जाये।।
सीधा-सादा सा जीवन हो, अम्बर सा मन का आँगन हो।
छल सकें न हमको व्यसन कभी, जन-जन के प्रति अपनापन हो।।
संतोष सादगी का जीवन, सुख-साधन अक्षय हो जाये।।
यह मानव जीवन पाने का, पूरा फिर आशय हो जाये।।