उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो !!
कल्प का मतलब होता है—बदल डालना, परिवर्तन। आप अपने आपको बदल लें, परिवर्तन कर लें, तो मजा आ जाएगा, फिर तो आपका कल्प-परिवर्तन बिल्कुल सही रहेगा। आप यह ख्याल तो रखिए मत कि बुड्ढे से जवान हो जाएँगे, हम बुड्ढे को जवान भी बना देंगे, तो फिर करेंगे क्या आप? आप जवानी में क्या अच्छाई पाते हैं और बुड्ढे में क्या खराबी पाते हैं? हमको तो बुढ़ापे में शान मालूम पड़ती है। अपने सफेद बाल हो गए हैं, भारी-भरकम हमारा स्तर हो गया है, समझ का विकास हो गया है, हर आदमी हमारी इज्जत करता है। आपको क्या आफत आ गयी है जो कहते हैं—जवान बना दीजिए? जवान बनकर क्या दूसरा विवाह करेंगे? क्या सिनेमा में जाने का मन है कि नाचने का मन है? क्यों? जवानी में क्या है? और बुढ़ापे में क्या खराबी है? आप बुड्ढे को जवान बनाने वाली बात मत सोचिए। आप दूसरी बात सोचिए कि आपका मनःसंस्थान जो बुड्ढों जैसा हो गया है; हारा हुआ-सा हो गया है; गया-बीता हो गया है आप उसमें जवानी ले आइए; उसमें स्फूर्ति ले आइये; उसमें साहस ले आइए; उसमें हिम्मत ले आइए; उसमें नया दृष्टिकोण ले आइए; आप आशा और उमंग ले आइए। यह आप नहीं कर पाएँगे क्या? जरूर कर पाएँगे, कोई दिक्कत की बात नहीं है। ऐसी जवानी आपको बड़ी आसानी से मिल सकती है और अध्यात्म आपको ऐसी ही जवानी दिलाने का वायदा करता है। उस जवानी की आप उम्मीद मत कीजिए, जो कि च्यवन ऋषि को प्राप्त हो गई थी। च्यवन ऋषि बुड्ढे में जवान हो गये थे। हमारे लिए तो यह मुश्किल है। हमारे लिए मुश्किल न रहा होता, तो अपने आपको ही हम जवान बना लेते। हम तो खुद ही बुड्ढे हैं। गाँधीजी को जवान बना दिया होता। बुड्ढे जवान नहीं बन सकते। च्यवन ऋषि बन गए थे कि नहीं बन गए थे यह बात जाने दीजिए; वह उनको अभ्यन्तर की कृपा रही होगी और शरीर उनका फिर बुड्ढा रहा होगा कि जवान—यह भी एक शक है। संभव है उनके भीतर के मनःसंस्थान में जवानी आ गई हो और मनःसंस्थान में जवानी आ जाए, तो आदमी वास्तव में जवान है। शरीर बुड्ढा होने से क्या फर्क पड़ता है? कोई फर्क नहीं पड़ता। गाँधीजी जब मरे थे, तब उन्यासी वर्ष के थे। नेहरू जी भी चौहत्तर वर्ष के करीब थे। अस्सी वर्ष के लोगों का चलना-फिरना दूभर हो जाता है और कहते-फिरते हैं कि अब मरे कि तब मरे! मरने के दिन आ गए; लेकिन यह लोग बूढ़े होकर मरे थे? आप ऐसी जवानी चाहते हों, तो आपको ऐसा बनाने में हमको कोई दिक्कत नहीं है; लेकिन आप यह ख्याल लेकर आएँगे कि यहाँ से जब जाएँगे, तो बाईस साल के होकर के जाएँगे, तो फिर आपको निराश होना पड़ेगा। हम नेचर का मुकाबला नहीं कर सकते; हम प्रकृति को नहीं बदल सकते। नेचर को कैसे बदलें? कभी आप कहते हैं कि बुड्ढे को जवान बना दीजिए, फिर दूसरे दिन कहेंगे कि जवान को बच्चा बना दीजिए, फिर तीसरे दिन कहेंगे हमको माँ के पेट में बिठा दीजिए, फिर चौथे दिन कहेंगे कि हमें पिताजी के अन्दर शुक्राणु के रूप में पहुँचा दीजिए, फिर कहेंगे कि पिछले जन्म में हम जहाँ थे, वहाँ भिजवा दीजिए। प्रकृति को हम कैसे बदल देंगे! प्रकृति को कोई बदल नहीं सकता! प्रकृति अपनी जगह सही है, इसलिए बुड्ढे शरीर को जवान बनाने वाली बात तो मुमकिन नहीं है; लेकिन यह पूरी तरह संभव है कि मनःसंस्थान जवान हो जाए। जवानों की उमंगें अलग होती हैं, बुड्ढों की उमंगें अलग होती हैं। आप कुछ कर ही डालिए। आप आए हैं, तो अपने आपको बदल ही डालिए।
पहला काम आप यह कीजिए कि अपनी पार्टी बदल दीजिए। आप पार्टियाँ बदलते हैं, जैसे रोजाना लोग पार्टियाँ बदल देते हैं न, कोई काँग्रेस वाला प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में हो गया; कोई लोकदल वाला किसी में हो गया। आप देखते हैं न, रोज लोग पार्टियाँ बदल लेते हैं। आप भी कृपा करके अपनी पार्टी बदल दीजिए। आप जिस पार्टी के मेम्बर अब तक रहे हैं, वह कौन-सी पार्टी है? आपको जरा बुरा लगेगा। वह दैैत्यों की और असुरों की पार्टी रही है। अब तक आपकी जानवरों की पार्टी रही है। आप कहेंगे कि जानवरों की पार्टी कैसे रही है? इसके लिए मैं आपके सामने डार्विन की किताबें पेश कर सकता हूँ कि आप बन्दर की सन्तान हैं; बिना उद्देश्य वाले बन्दर, पेड़ के ऊपर भटकते फिरने वाले बन्दर, जिनकी न कोई दिशा है, न कोई लक्ष्य है, न जीवन का कोई स्वरूप है, न भविष्य की कोई महत्त्वाकांक्षा है। जैसे भी बने अपने टाइम-को पास करने वाले को बन्दर कहते हैं। इस मामले में मैं डार्विन महोदय से सहमत हूँ कि आदमी बंदर की औलाद है। बन्दर पेट से पैदा हुआ कि नहीं, यह तो मैं नहीं जानता; क्योंकि आदमी की फिर पूँछ कहाँ गई? बन्दरों की जब पूँछें कायम हैं, तो फिर आदमी की पूँछ कहाँ गई? आदमी की अगर पूँछ नहीं है, तो मुझे यह कहने में शक है कि आदमी बन्दर की औलाद हम लोग रहे हैं कि हमारा जीवन निरुद्देश्य है। आप उद्देश्यपूर्ण जीवन जिएँ और अपनी दिशा बदल लें। आप भूल गए हैं, जिस दिशा में आप लोग चल रहे हैं, वह दिशा आपके लिए मुनासिब नहीं है। आप छाया के पीछे दौड़ते रहे हैं। मेरी प्रार्थना है—आप छाया के पीछे दौड़ना बन्द कर दें और प्रकाश की ओर मुँह करके चलना शुरू करें। छाया के पीछे आप भागते रहेंगे, तो आपको सिवाय हैरानी और थकान से कुछ हासिल नहीं होगी। मृगतृष्णा में भटकते हुए हिरनों को और क्या मिलता है? कस्तूरी की जहाँ-तहाँ तलाश करने वाले हिरन को और क्या मिलता है? सिवाय निराश के, तो आपको क्या मिलेगा? आप छाया के पीछे, माया के पीछे बेतहाशा दौड़ रहे हैं और आपको अब तक नाउम्मीदी ही रही है; क्योंकि छाया तब तक आगे निकल जाती है। जहाँ आप छाया पकड़ना चाहते हैं, वहाँ कदम बढ़ाया और छाया आगे बढ़ गई। आपकी महत्त्वाकांक्षाएँ और कामनाएँ जिसको कि मैं छाया कहता हूँ और माया भी कहता हूँ, जितना आप उसकी तरफ चलते हैं, वह और आगे निकल जाती है। आप जो चीज चाहते थे, आपकी इच्छा उससे बड़ी हो जाती है, फिर आप कहाँ तक उसकी पूर्ति करेंगे! छाया के पीछे आप भागते रहेंगे, तो आपको हैरानी होगी और अगर आप छाया की ओर से मुँह मोड़ लें तथा प्रकाश की तरफ चलने लगें तब? तब फिर आप देखेंगे कि छाया आपके पीछे-पीछे चलनी वाली है। आपका चेहरा, जब छाया की तरफ मुँह करके चलते हैं, तब काला होता है। फोटोग्राफर ने फोटो काले रंग का बनाकर दिया था; क्योंकि आप प्रकाश की तरफ पीठ करके चल रहे थे। अब आप प्रकाश की तरफ मुँह करके चलेंगे, तो दो परिणाम होंगे। एक तो चेहरा चमकने लगेगा आपका, दूसरा, छाया, जिसके पीछे आप बेतहाशा भागते थे और जिसको आपने इष्ट मान रखा था और जो आपसे दूर रहना चाहती थी, वह छाया अपना रुख बदल लेगी और आपके पीछे-पीछे चलना शुरू कर देगी। आप ऐसा करें, तो मजा आ जाए। आपके पास एक ही बीमारी है पास का देखने की, जिसे शार्ट-साइट कहते हैं, नजदीक का देखना। बहुत-से आदमियों की आँखें खराब हो जाती है, वह वह पास का तो थोड़ा-बहुत किसी तरह देख लेते हैं; लेकिन दूर का नहीं देख पाते। लगता है आपको ऐसी ही किसी बीमारी ने शिकार करके रखा है। आज का फायदा, आज का फायदा। आज के फायदे के अलावा दूसरी कोई चीज दिखाई ही नहीं पड़ती। आप अपने नजरिये को ठीक कर पाएँ, तो आप देखेंगे आपके पास करने और देखने के लिए और भी बहुत सारी चीजें हैं, जैसे—आपको बुढ़ापा देखने लायक नहीं है क्या? बुढ़ापा देखना चाहिए, बुढ़ापा देखेंगे, तो आप जवानी को सही तरीके से प्रयोग करना सीख जाएँगे। मौत दिखायी नहीं पड़ती आपको? जरा देखिए तो सही, मौत कितनी खूबसूरत और शानदार है, जो आपको अपनी गोदी में बिठा करके भाग खड़े होने के लिए तैयार किए हुए बैठी है। आपको दिखायी नहीं पड़ती? कृपा करके हमारी आँख से देखिये, अपनी मौत को देखिये। अपनी मौत को अगर आप देखें, तो क्या करेंगे? तो राजा परीक्षित की तरह अपने रवैये को बदल लेंगे और सिकन्दर की तरह वह मौका नहीं आने देंगे, जिसमें आप फूट-फूटकर रोएँ कि हमने अपनी बेशकीमती जिन्दगी छाया के लिए खर्च कर डाली। आपकी जरूरतें ही कितनी हैं? थोड़ी-सी ही तो जरूरतें हैं। आप अपनी पार्टी को बदल दीजिए। आप अपनी जरूरतें आसानी से बदल सकते हैं; लेकिन हविश को आप किसी भी कीमत पर पूरा नहीं कर सकते। इतनी जरूरतें आप समझ लें और इसी के आधार पर अपना दृष्टिकोण अपना लें, तो मैं समझूँगा आपका कायाकल्प हो गया।
आपको विवेकशील, दूरदर्शिता अपनानी चाहिए। गायत्री माता के वाहन हंस न? हंस में क्या बात है, बताइए? हंस में दो विशेषताएँ हैं। एक विशेषता यह है कि दूध और पानी का अलग कर देता है, दूसरी विशेषता यह है कि वह मोती चुनकर खाता है, कीड़े-मकोड़े नहीं खाता। तालाब में पाये जाने वाले हंस की बात तो मैं नहीं कह सकता, यह बात उनमें होती है कि नहीं; पर मैं राजहंसों के बारे में, परमहंसों के बारे में कह सकता हूँ और यह कह सकता हूँ कि आपको उन्हीं की बिरादरी में शामिल होना चाहिए। गायत्री माता का वाहन बनने के लिए उचित और अनुचित में फर्क कीजिए। आप जो करते रहे हैं, उसमें उचित कहाँ तक था और अनुचित कहाँ तक था, आप विचार कीजिए थोड़ा-सा। आपको यही मालूम पड़ेगा कि आप अनुचित-ही करते रहे हैं। इसी प्रकार से जब आप देखेंगे कि जो आपने खाया है, अर्थात् ग्रहण किया है, अर्थात् कमाया है, वह, वह नहीं है, जो आपको ग्रहण करना चाहिए था। आपको ग्रहण करने के लिए और बहुत सारी चीजें थीं। आप प्रेय की बिरादरी में रहे हैं, विलास की बिरादरी में रहे हैं, संग्रह की बिरादरी में रहे हैं, लोभियों के बिरादरी में रहे हैं। अब कृपा करके आप अपनी बिरादरी बदल दीजिए। आप विचारशीलों की बिरादरी में शामिल हो जाइये, आप दूरद्रष्टाओं की बिरादरी में शामिल हो जाइये, आप देवताओं की बिरादरी में शामिल हो जाइये, आप यह बिलकुल कर सकते हैं। दो में से एक का चुनाव करना आपके लिए बिलकुल मुमकिन है। आप बड़प्पन चुनना चाहते हैं कि महानता? यह चुनने का समय है। दो कैण्डीडेट खड़े हुए हैं और दोनों आपसे वोट माँगते हैं। एक संपन्नता है, जो यह कहती है—आप मालदार बन जाइए; लेकिन मालदारी के साथ-साथ दूसरी शर्तें जुड़ी हुई है। आपको बेईमान बनना ही पड़ेगा। आपको जिंदगी में दूसरे काम करने के लिए किसी तरह की फुरसत पाने का हूक छोड़ना पड़ेगा। चौबीस घंटे मेहनत करने के बाद में अपव्यय, गुजारा और उसके बाद जमा करने के पश्चात् बड़े आदमी बनना शायद संभव हो जाए; लेकिन इसी कीमत पर सारी जिन्दगी खत्म करनी पड़ेगी। एक ओर यह संपन्नता है, जो आपको व्यसन पैदा करती है; जो आप में आलस्य पैदा करती है; जो कि अहंकार पैदा करती है; जो आपके समुदाय में ईर्ष्या पैदा करती है; जो आपको शराब की बोतल की तरह नशे में डुबो देती है और आपको कहीं का मारा कहीं घसीट ले जाती है। दूसरे ओर एक और चीज है आपके पास—‘सादगी’। जिसको आपको वोट देना है, वह है—महानता। महानता को आप नहीं जानते? आपने गाँधीजी का नाम सुना है? बुद्ध का नाम सुना है न? विवेकानन्द को जानते हैं न? महापुरुषों में से इन लोगों के नाम नहीं मालूम आपको? यह सभी महापुरुष थे, जिन्होंने कि महानता को चुना और महानता में अपनी सफलता को पाया और इन विभूतियों को, जो गुण, कर्म और स्वभाव की हैं—उनके बारे में यह विश्वास किया कि यह आदमी की सफलता की निशानियाँ हैं। आप सफलता की निशानियों को मानिये। आप वैसा मत कीजिए जैसा कि रावण ने किया था। आप विभीषण का रास्ता इख्तियार कीजिए। विभीषण का रास्ता कुछ बुरा था क्या? क्या बुरा था, बताइए? आरंभ में हैरानी हुई; पर संतोष तो रहा; रावण को सुविधा मिली; पर असंतोष रहा। हर समय उसकी जीवात्मा धिक्कारती रही, उसी बीबी भर्त्सना करती रही, सारे समाज ने और ऋषियों ने हाहाकार किया और भगवान ने उसके ऊपर कोप के बाण बरसाये। इतनी कीमत पर सुविधा को इकट्ठा कर लेना कोई समझदारी है? नहीं, पर विभीषण की समझदारी है। ठीक है—गालियाँ खाता रहा, तो क्या हुआ? अपने फटे-टूटे झोंपड़े में रहता रहा, तो क्या? और इस तरह सादाजीवन उच्चविचार के तरीके से अपना जीवन व्यतीत करता रहा, तो क्या? लेकिन भगवान का प्यार तो हुआ और भगवान के प्यारे आदमी अभावग्रस्त नहीं रहते—यह बात और याद रखना। रावण अभावग्रस्त पहले भी था, जीवनभर अभावग्रस्त रहा। हमेशा हविश खाती रही और आखिर में भी अभावग्रस्त हो करके चला गया, बीबियों से हाथ धो बैठा, बच्चों से हाथ धो बैठा, राजपाट से हाथ धो बैठा और विभीषण! विभीषण ने क्या खोया बताइए? विभीषण ने कुछ भी नहीं खोया। पेट भरने को रोटी बराबर मिलती रही और आखिर में जब भगवान का प्यारा हुआ था? तब जो कमाई रावण ने की थी, बेईमानी, अनीति, चोरी और चालाकी के पश्चात् वह सारी कमाई का हकदार हो गया। कौन? विभीषण। तो आप विभीषण नहीं बनना चाहेंगे? आप विभीषण बन जाइए न। विभीषण को आदर्श नहीं मानेंगे? रावण को ही आदर्श मानेंगे? सोने की लंका का ही ख्वाब देखेंगे? अपने बेटे और पोते को ही, सवा लाख पूत, सवा लाख नाती तक ही सीमित रहेंगे? आप विभीषण जी का अनुकरण नहीं कर सकेंगे क्या? ऐसा कीजिए अब आप—अब विभीषण को अपना इष्ट बनाइए और पहले जो रावण को इष्ट मानते चले आए हैं, उसका त्याग कर दीजिए। आप सुग्रीव को इष्ट बनाइए। आपने जो गँवा दिया, वह बहुत गँवा दिया; लेकिन इस गँवाने को लौट आने की फिर से उम्मीद है। सुग्रीव ने बहुत गँवा दिया था। उसने बीबी को गँवा दिया था, बच्चों को गँवा दिया, राजपाट को गँवा दिया, शांति को गँवा दी, सब कुछ गँवा दिया। शायद आप भी गँवा चुके हों। फिर उसने वरण कर लिया। किसका? राम का वरण कर लिया। राम का मतलब? उद्देश्यों का, सिद्धांतों को। सिद्धांतों और आदर्शों का वरण करने वाले आदमी को शुरू-शुरू में जरूर हैरानी होती है। इम्तहान के दिनों में किसको हैरानी नहीं होती? रही इम्तहान में पास होने की बात, तो सभी सुख से रहते हैं। बच्चे को जन्म देते समय कौन-सी माता को हैरानी नहीं होती? लेकिन बच्चे को जन्म देने के बाद में तो प्रत्येक माता को प्रसन्न देखा गया है। आप ऐसी समझदारी नहीं कर सकते? आप बीज की तरह नहीं गल सकते? आप बीज की तरह गलेंगे, तो दरख्त की तरह फलेंगे। सुग्रीव ने भी यही किया था। आपका इष्ट सुग्रीव होना चाहिए। सुग्रीव ने समझदारी दिखाई और राम का वरण कर लिया, राम के काम में लग गया। पहले राम के काम में लगना पड़ा। राम क्या पहले कृपा करेंगे? नहीं, पहले तो कृपा की ही नहीं भगवान ने। ऐसी भगवान ने ऐसी भगवान में खराबी और चालाकी है कि शुरुआत में ही यकायक किसी की पूजा और कीमत पर प्रसन्न हो जाएँ और रुपयों का थैला पटक दें—ऐसा तो कभी हुआ ही नहीं। सबसे पहला काम भगवान यह करता है कि सिद्धांत और आदर्शों के लिए आदमी निष्ठावान है कि नहीं—इस बात की परीक्षा लेता है। सुग्रीव को भी इसी परीक्षा में होकर गुजरना पड़ा। उसके पहले भगवान राम का काम करना पड़ा; अपनी सारी सेना को रीछ और वानरों सहित सीता की तलाश करने के लिए भेजना पड़ा और फिर रामचंद्र जी जब लड़ने के लिए गये, तो उनके साथ भी भेजना पड़ा। रामचंद्र जी ने भी कुछ किया? हाँ, बहुत कुछ किया। सुग्रीव को रामचंद्र जी की सहायता न मिली होती तब? तब आप क्या ख्याल करते हैं, राज्य मिल गया होता? उसकी धर्मपत्नी वापस मिल गई होती? उसका बच्चा फिर उसको मिल गया होता? नहीं, एक भी चीज वापस नहीं मिलती, ऐसे ही लुका-छिपा बैठा रहता।
आप ऐसा कीजिए, आप यहाँ कल्प-साधना शिविर में हैं, आप अपने आपको हेर-फेर करने की कोशिश कीजिए और यह कोशिश कीजिए कि हम अपनी दिशाधारा बदल दें। आप दिशा बदल दीजिए, धारा बदल दीजिए। आपका जो रुझान जिन कामों की ओर रहा है, उन कामों की ओर से अपने रुझान में हेर-फेर करके दूसरी जगह रख दीजिए। अब तक आपका महत्त्वाकांक्षी जीवन, महत्त्वाकांक्षाओं को तो मैं मना नहीं करता; पर आपका मन वित्तैषणा, पुत्रैषणा और लोकेषणा—इन्हीं में तो रहा है, तो यह महत्त्वाकांक्षा नहीं है? यह महत्त्वाकांक्षा मत रखिए। आप लोकसेवा की महत्त्वाकांक्षा रखिए, आप आत्मा को प्रसन्न करने की महत्त्वाकांक्षा रखिए, आप भगवान को प्रसन्न करने की महत्त्वाकांक्षा रखिए। लोगों को क्यों प्रसन्न रखते हैं? लोगों की आँखों में चकाचौंध करने की बात क्यों करते हैं? आप शरीर तक अपनी सुविधाओं को क्यों खत्म करते हैं? आप आगे क्यों नहीं बढ़ते? आप जब ढूँढ़ेंगे, तो आपको कुछ और चीज मिलेगी। संपन्नता की तुलना में विभूतियाँ आपको और ज्यादा शानदार मिलेंगी। विभूतियों का मतलब है—गुण, कर्म और स्वभाव की विशेषता और संपदा का मतलब है—पैसा, धन, खाने-पीने की चीजें, कपड़े और अहंकार बढ़ाने वाली चीजें। आप इनकी तुलना में विभूतियों को महत्त्व दीजिए। विभूतिवान व्यक्ति अपने आप में सम्मान पाते हैं, आत्मसंतोष पाते हैं, लोकसम्मान पाते हैं, भगवान का अनुग्रह पाते हैं और अन्ततः संपन्नता की दृष्टि से भी वह कुछ कम नहीं रहते। गाँधी जी को क्या कमी थी? आप ही बताइए? जमीन पर तो जरूर सोते थे, मामूली कपड़े तो जरूर पहनते थे; पर कमी थोड़े ही थी! नहीं पहनते थे, यह अलग बात थी। गाँधीजी जब जिंदा थे, तब उनके लिए जनता ने क्या नहीं किया? जनता ने उनके लिए सौ करोड़ रुपया स्मारक में दिया था; जनता ने उनके लिए कितनी बार अपार धन दिया; जनता ने उनको निहाल कर दिया। वह चाहते, तो खा भी सकते थे; पर संत खाते नहीं हैं, खिला देते हैं। यह हो सकता है कि आपको भगवान की कृपा से इतना मिले कि जो आपके खाने के लिए तो जरूरी न हो; लेकिन खिलाने के लिए बहुत काफी हो जाए। आप खिला सकने के लिए चाहें तो ढेरों संपदा पा सकते हैं। खाने के लिए तो बहुत मुश्किल है, आप खाना चाहेंगे, तब भी नहीं खा पाएँगे, प्रकृति आपका हाथ रोक लेगी। आपका पेट कितना छोटा-सा है? चार रोटी खाते हैं आप? छह रोटी खाकर दिखलाइए। कपड़ा, कुर्ता आप कितना पहनते हैं? चार गज का? अच्छा आप बाइस गज का कुर्ता पहनकर दिखाइए। आप कितनी लंबी चारपाई पर सोते हैं? चार फुट वाली पर? अच्छा आप अस्सी फुट वाली चार पाई पर सोकर दिखाइए। नहीं साहब! अस्सी फुट वाला तो मकान भी नहीं है। कहाँ रखेंगे? तब आप बड़े आदमी कैसे बनेंगे? ज्यादा सामान होगा, तभी तो बनेंगे न! ज्यादा कपड़े पहनेंगे तभी तो बनेंगे न! तब आप बीस किलो भारी कपड़े पहनिए न अरे साहब! बीस किलो कपड़ों में से दम घुट जाएगा। तब आप प्रकृति को नहीं समझते? प्रकृति आपको खाने नहीं देगी। जमा तो कर लीजिए आप; लेकिन खाने नहीं देगी। तब? तब आप उस चीज को इकट्ठा कीजिए न, जिसको खा सकते हैं—आप आत्मसंतोष खा सकते हैं, आप अपनी आध्यात्मिक गरिमा और महत्ता खा सकते हैं। आप इन दो में से चुनाव कीजिए। यह आपके जो दिन हैं, वह चुनाव के दिन हैं। आपके सामने दो कैण्डीडेट खड़े हुए हैं— एक है, जिसके साथ में आपकी पिछली जिन्दगी का हिस्सा रहा है। दैत्य यानि बड़प्पन। बड़प्पन तो आपकी जिंदगी में छाया रहा न? आप उसी की पार्टी में रहे, आपने उसी का कहना माना न? आप उसी के लिए मरे-खपे न? अब तक आपको वही प्यारा लगा न दैत्य?
लेकिन अब ऐसा मत कीजिए। अब यहाँ से जाते-जाते आप अपने आपको देवता की बिरादरी में शामिल कर लीजिए। देवता को इष्ट मानिए। देने की बात पर विचार करते रहिए, हर जगह ऐसी नजर मत डालिए कि हमको यहाँ से मिलेगा, वहाँ से मिलेगा। आप अपनी नजर को बदल दीजिए और आप इस तरीके से बदलिए कि आप अपने यहाँ से देना शुरू करेंगे। आपके पास पैसा नहीं है, तो कोई जरूरत नहीं है कि आप पैदा दें; आप प्यार भी दे सकते हैं; आप सेवा भी तो दे सकते हैं; आप स्नेह भी दे सकते हैं; आप दूसरों को परामर्श भी तो दे सकते हैं; आप प्रोत्साहन भी तो दे सकते हैं; आप दूसरों को दिशा भी तो दे सकते हैं। यह कितनी चीजें हैं देने के लिए आपके पास; आप गरीब है कोई; आप गरीबी को मानना छोड़ दीजिए। आप अमीर बनके जाइए। आप यहाँ से यह मानकर चलिए कि आप यहाँ से अमीर बनकर जा रहे हैं। अमीर का मतलब है वह आदमी, जो अपना गुजारा कर लेता है और दूसरों की भी मदद करता है। आप सादाजीवन और उच्चविचार के सिद्धान्त को यहाँ से लेकर जाइए। सादा जीवन जिएँगे, तो आपको सारे अभाव खत्म हो जाएँगे और जब उच्चविचार लेकर के जाएँगे, तो आपके पास जो वर्तमान साधन हैं, उन्हीं साधनों की मदद से आप लोगों की मदद और सेवा करने में समर्थ हो सकेंगे। आप किसी की सेवा न भी करें, तब भी घर बैठे ऊँची श्रेणी की कल्पनाएँ करते रहें, विचार करते रहें, योजनाएँ बनाते रहें। अपने आपको ऊँचे स्तर के विचारों में डुबोए रख सकें—यह भी तो कोई कम बात नहीं! आप ऐसा ही कीजिए। आप अपनी दुर्मति को त्याग दीजिए, आप नरक को त्याग दीजिए, आप पतन को त्याग दीजिए। आप उत्थान की ओर चलना शुरू कीजिए, आप स्वर्ग को अपना निशाना बनाइए और अपने पैर स्वर्ग और मुक्ति की तरफ उठाइए। मुक्ति का मतलब होता है—भवबंधनों से मुक्ति, लोभ-मोह से मुक्ति और स्वर्ग की ओर चलने का मतलब होता है—ऐसे आदर्श और ऐसे सिद्धांतों की तरफ कदम बढ़ाना, जहाँ कि आदमी को शांति मिलती है, जहाँ आदमी को श्रेय मिलता है, जहाँ आदमी को संतोष मिलता है। आप अपने आपमें हेर-फेर कर दीजिए, रास्ता बदल दीजिए, विचार बदल दीजिए, गुण बदल दीजिए, चिंतन बदल दीजिए। इतना आप बदल देंगे, तो सच्चे अर्थों में आपका कायाकल्प होगा और कायाकल्प के आधार पर जो आपको बुढ़ापे से जवानी में जाने की, जो सुख की आशा थी, उससे हजार गुना सुख और शांति आप साथ ले करके जाएँगे। आप यकीन रखिए ऐसा आप कर सकते हैं और ऐसा करना चाहिए। हमारे व्यक्तिगत जीवन का अनुभव यही है और आपको इस अनुभव से लाभ उठाना चाहिए। आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥