उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
बाट जोह प्रभु! नयन थके हैं, आ न सके तो पास बुला लो।
बाट जोह प्रभु! नयन थके हैं, आ न सके तो पास बुला लो।।
हृदय पीर का नीड़ बना है, किन्तु कटे हैं पंख नीर के।
उड़कर तुम आ न सकी वह, देखा लेकिन नयन चीर के।।
पर न दिखे तुम थककर बेसुध, हुई गिरी आ मिली धूल में।
जग ने कहा अश्रु झरते हैं, उठा सको तो इन्हें उठा लो।।
बाट जोह प्रभु! नयन थके हैं, आ न सके तो पास बुला लो।।
अधिक नहीं कुछ चाहा मैंने, एक मिलन का पल माँगा था।
लिपट चरण से प्राण रो सकें, ऐसा कुछ मन में जागा था।।
लेकिन नहीं सुहाया शायद, तुमको मेरा एक तृषित क्षण।
जो पा लेता तृप्त देखकर, अब तुम ही उर व्यथित सँभालो।।
बाट जोह प्रभु! नयन थके हैं, आ न सके तो पास बुला लो।।
बहुत पुकारा भगवन्! तुमको, प्राण कण्ठ में आ आ रोये।
बहुत सँवारा भगवन्! तुमको, बेकल भाव श्रमित हो सोये।।
आ न सके दो क्षण को भी क्यों, कुछ तो बोलो हे निर्मोही।
मेरी देह सौंपकर जग को, प्राणों को निज अंग लगा लो।।
बाट जोह प्रभु! नयन थके हैं, आ न सके तो पास बुला लो।।