उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
सीताजी को रावण जब अपहरण कर ले गया और कुटिया में वह नहीं मिलीं, तो भगवान राम परेशान हो गए। सोचने लगे कि आखिर सीता गई कहाँ? क्या जमीन निगल गई? आसमान में चली गई? खिन्न अनुभव करने लगे, असहाय अनुभव करने लगे, अपने कोदीन-हीन अनुभव करने लगे। भगवान राम अपनी सीता को पुकारने के लिए, तलाश करने के लिए चल पड़े। पेड़ों से पूछा—सीता आपने देखी? पक्षियों से पूछा—आपने सीता देखी? जानवरों से पूछा—सीता आपने देखी? किसी ने जवाब नहीं दिया, तो चिल्ला करके हवासे पूछने लगे—सीता! सीता! कहीं सीता हों तो जवाब दें। कहाँ चली गई है सीता? कहाँ चली गई है? बेटे! तलाश करते फिरे। कौन? रामचन्द्रजी। हम आपको तलाश करने के लिए, पुकारने के लिए कहते हैं। आप अपनी सीताजी को तलाश कीजिए। हम आपको जप करातेहैं। किसका जप कराते हैं? भगवान का जप कराते हैं। क्यों कराते हैं? इसलिए कराते हैं कि आपके हाथ से भगवान चला गया है और आपने भगवान को गँवा दिया है, भगवान को खो दिया, अपनी जीवात्मा को, अपनी सीता को विस्मृत कर दिया। आत्मा भी हमारे शरीरमें है। दुःखिया, दीन, दरिद्र, चिन्ता में डुबा हुआ, व्यथा में डुबा हुआ, पीड़ा में डुबा हुआ है। देखिये! हम रामचन्द्र जी के तरीके से कलपते हुए दीन, दुःखी, असहाय मारे-मारे फिरते हैं। हम आपको जप कराते हैं। किसलिए जप कराते हैं? जप का जो आपका ख्याल है, वहगलत है। आपका क्या ख्याल है? आपका बहुत छोटा ख्याल है। जैसी आपकी तबियत, वैसा आपका भगवान, वैसा आपका विधान। आपका उद्देश्य क्या है? आपका उद्देश्य यह है कि हम भगवान जी का नाम लें, तो क्या हो जाएगा? भगवान जी समझेंगे कि हमारीबड़ी प्रशंसा कर रहा है—बड़ी प्रशंसा कर रहा है। भगवान जी प्रसन्न हो जाएँगे। प्रसन्न होकर फिर वे क्या करेंगे? आपसे कहेंगे मनोकामना माँगिए। फिर आप क्या माँगेंगे? पैसा माँगिए, रुपया माँगिए, बेटा माँगिए, औलाद माँगिए, मुकदमा में विजय माँगिए। यहीव्याख्या है न आपकी या और कुछ व्याख्या है? नहीं, और कुछ व्याख्या नहीं है। बेटे! ये बड़ी घटिया वाली बात है। ये सारे-के सिद्धान्तों का नाश कर देती है। आध्यात्मिक सिद्धान्तों के मूल सिद्धान्तों का सत्यानाश कर देती है और ये बिल्कुल उलटी मान्यता है। अगरभगवान इस तरह का है, जो अपनी खुशामद और चापलूसी करने वाले को अपना भक्त मान लेता है, तो मैं उनको ठग कहूँगा और जो आदमी ठगे जाने वाले हैं, उनको मैं एक ही नसीहत दूँगा, उनका एक ही धन्धा है। क्या धन्धा है? आदमी जो खुशामद करते हैं औरचापलूसी करते हैं, भाईसाहब! हम आपका ब्याह करा देंगे, भाईसाहब! हम आपका ये करा देंगे, हम आपका वह करा देंगे—बीस तरह की चापलूसियाँ करते हैं और चापलूसियाँ करने के बाद में कोई भोला आदमी, भला आदमी उनका विश्वास कर लेते हैं, तो जेब काट लेतेहैं, माल मार लेते हैं। ठगों का धन्धा यही है।
आप क्या करना चाहते हैं? ठगों का धन्धा करना चाहते हैं और भगवान को आप ऐसा बच्चा समझते हैं, आप राम-नाम लेंगे और भगवान आपको चेला मान लेंगे, आपको भक्त मान लेंगे और आपको अपना शिष्य मान लेंगे और आपकी मनोकामना पूरी कर देंगे, देखिये, ऐसा अगर अन्धेर दुनिया में फैलेगा, तो फिर राम, राम नहीं रह जाएगा और फिर भक्त, भक्त नहीं रह जाएँगे और उपासना, उपासना नहीं रहेगी और फिर सत्यानाश हो जाएगा दुनिया का। जैसा आपका ख्याल है—छोटा वाला ख्याल, घटिया वाला ख्याल, नामाकूल ख्याल, प्रभु का ख्याल जिसको आप समझते हैं वास्तव में वह ख्याल वैसा नहीं है। आपके राम नाम लेने का उद्देश्य अलग है और हमारे राम के नाम का उद्देश्य समझाना अलग है। आप तो खुशामद के लिए राम का नाम लेते हैं। जीभ से नाम लेते हैं औरजीभ ऐसी जालसाज है और जीभ ऐसी चालाक है, जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ये चमड़े की बनी है; ये माँस की बनी है और ऐसी गन्दी चीजों से बनी है, जिसके बारे में हम यकीन नहीं कर सकते; पर ये जीभ हमारी ऐसी बनी है कि जिस भी आदमी से हम बातकरते हैं, हमेशा जालसाजी की बात करते हैं, चालाकी की बात करते हैं! चुनाव में वोट माँगने वाला आता है। क्यों भाई! कौन-सी पार्टी के हैं आप? हम तो उस पार्टी के हैं—झोंपड़ी वाली पार्टी के हैं। अह....हा....हा....! हम भी झोंपड़ी में रहते हैं, आप भी झोंपड़ी में रहते हैं। हमआपको ही देंगे वोट। पक्का हो गया आपका वोट और आपको मिल जाएगा हमारा वोट। जा रहे हैं। नमस्कार साहब! नमस्कार! चला गया और आ गया दूसरा वाला। कहिये साहब! आप भी वोट माँगने आए हैं? हाँ, साहब! वोट माँगने तो हम भी आए हैं। कौन-सी पार्टी सेआए हैं? हम तो दीपक वाली पार्टी से आए हैं। बस, बस हो गया। सब जगह अँधेरा छाया हुआ हुआ है। अब दीपक के बिना अँधेरा दूर नहीं हो सकता। बस, दीपक को वोट देंगे और दीपक जलेगा, तभी तो काम चलेगा। अँधेरा दुनिया में फैल गया है। बताइये तो हमारा दीपकपक्का रहा। वोट पक्का है। आपको मिल जाएगा वोट। चला गया, फिर कौन आ गया? फिर लाल झण्डे वाला आ गया। कहिये साहब! नमस्कार साहब! नमस्कार साहब! नमस्कार साहब! कहिये साहब! किसको वोट मिलेगा? आप कौन-सी पार्टी से आए हैं? पहले आपबताइये? हम तो लाल झण्डे वाले हैं। अह....हा....हा....! लाल झण्डे वही तो है, जो गरीब-अमीर सबको बराबर कर देते हैं। हमको बिड़ला के बराबर तो बना ही देंगे। हाँ साहब! सबको बराबर बना देंगे, तो आपको भी क्यों नहीं बनाएँगे। सबको बराबर बनाएँगे हम। हम तोसमाजवादी हैं। बस, तो ठीक रहा। हम तो इसी चक्कर में थे कि कौन आदमी ऐसा आ जाए, जो वोट बराबर करा जाए। हम तो आपको ही वोट देंगे। चलिये साहब वह भी चला गया। फिर एक और आ गया। आप कौन-सी पार्टी के है? पहले आप पार्टी बताइये, तब बातकरेंगे आपसे? हम तो साहब गाय-बच्चा वाला पार्टी के हैं। बस, बस हो गया। ये तो हम देख रहे थे कि गौमाता की हम सेवा करते हैं। गायों की हम पूजा करते हैं। बेरोक-टोक हमारा काम चलता है, फिर किसको वोट दे सकते हैं! हम तो गाय-भैंस वाले को वोट देंगे। हमगाय-भैंस वाले हैं, बिल्कुल गाय-बैल वाले हैं। आपका वोट—आपका वोट पक्का रहा। जाइये। चुनाव का दिन आया। तब? किसको वोट देंगे? रुपया निकालिये जी। जो कोई पैसा देगा, उसी को वोट देंगे। उस दिन तो आप कह रहे थे कि गाय-बच्चा वाले को वोट देंगे। हम तोपैसा देने वाले को वोट देते हैं। जीभ, जीभ ऐसी जाहिल, ऐसी कामिनी और ऐसी दुष्ट, ऐसी चालाक और ऐसी धूर्त है कि इस पर कोई यकीन नहीं कर सकता।
क्यों राम नाम लेता है तू? राम का नाम लेता है तू? चालाक! बेईमान! सब भार सौंप दिया भगवान तुम्हारे हाथों में। क्या-क्या सौंप दिया भार? बिना बना मकान पड़ा है, अधूरा है। इसको बनवाना भगवान् तुम्हारे हाथों में है। भगवान तुम्हारे हाथों में सौंप रहा हूँ भार।जानता है किसे कहते हैं भार सौंपना? भार सौंपना उसे कहते हैं, जब सारी-की क्षमता को, सारी-की जिम्मेदारियों को भगवान के सुपुर्द किया जाता है और अपनी इच्छाओं को और अपनी आकांक्षाओं को भगवान के सुपुर्द किया जाता है। इसी को कहते हैं समर्पण महाराजजी! हमारा मतलब ये नहीं था। क्या मतलब था? हमारा मतलब ये था, सब भार का मतलब ये था कि तीन लड़कियाँ ब्याह लायक हो गई हैं। १५-१५ हजार रुपया चाहिए। ४५ हजार रुपया चाहिए तो भगवान सब भार तुम्हारे हाथों में। ये मतलब है न। हाँ, साहब! येमतलब है। आपका क्या मतलब है, हम समझते हैं। भगवान आपका क्या मतलब है, इसको समझता है। इसलिए जुबान की नोंक से बार-बार भगवान का नाम उच्चारण करने के बाद में आप ध्यान करते हैं कि हमें भगवान की प्राप्ति होने वाली है और आपका उद्देश्यपूरा होने वाला है—ये कभी नहीं हो सकता। इसका क्या मतलब है? फिर जप करने के लिए क्यों कहा आपने? २४००० हजार जप कराने के लिए क्यों कहा? जप में हमको क्यों लगा दिया? आप रोज जप क्यों कराते हैं? बेटे! इसलिए जप कराते हैं कि कोई चीज हमारी खोगई है और हम तलाश करते हैं कि हे भगवान! वह चीज हमारी कहाँ चली गई है? बिल्ली के बच्चे गुम हो गए, बिल्ली कहीं चली गई! बच्चों की भी आदत होती है कि कहीं चले जाते हैं, छिपकर बैठ जाते हैं। बिल्ली इस घर में गई, उस घर में गई, घर-घर में गई, पुकारकरती रही—हमारे बच्चे कहाँ चले गये? कहाँ खो गये? बिल्ली क्या कर रही थी? म्याऊँ-म्याऊँ। क्या कर रही थी? तलाश कर रही थी। हमारे बच्चे कहाँ चले गए? बच्चों ने अपनी माँ की आवाज सुनी। बच्चे बोलने लगे—म्याऊँ-म्याऊँ। बस, दोनों हो गए खुश और दोनोंमिल गए; दोनों का मिलाप हो गया।
हम इसलिए पुकारते हैं राम के नाम को। बच्चा खो गया था। देर हो गई। घर वाले तलाश करते फिर रहे थे—रमेश! रमेश!! रमेश!!! यहाँ-वहाँ सारी जगह तलाश कर रहे थे। नहीं मिला, तो माइक में गुँजाया—एक लड़का रमेश नाम का, सफेद कमीज पहने हुए है, नेकरपहने हुए है, पाँच वर्ष का है, किसी ने देखा हो तो, अमुक पते पर पहुँचाने की कृपा करें। रमेश! रमेश!! हम पुकारते रहते हैं भगवान को, वह भगवान बाँसुरी बजाने वाला भगवान, जो हमारे हृदय में शक्ति उत्पन्न कर सकता है; वह भगवान जो धनुष-बाण अपनी पीठ परलटकाये चलता है; वह भगवान् जिसके मस्तिष्क से ज्ञान की गंगा प्रवाहित होती रहती है, जो मुण्डों की माला अपने लिये, लिये फिरता है। बस भगवान को तलाश करते हैं—जाने शंकर कहाँ चला गया हमारा, जाने हमारे राम कहाँ चले गये, जाने हमारे कृष्ण कहाँ चलेगये, जाने हमारी देवी कहाँ चली गई, जाने हमारी शक्ति कहाँ चली गई, जाने हमारी बुद्धि कहाँ चली गई, जाने हमारी सरस्वती कहाँ चली गई, हमारा सब कुछ चला गया। हम तलाश करते फिरते हैं। जहाँ-जहाँ हम जप करते हैं और हम पुकारते और हम चिल्लाते रहतेहैं। हम आपको जप कराते हैं। पुकारिए कहीं शायद आपको मिल जाए। कौन मिल जाए? आपकी जीवात्मा और आपका परमात्मा। न आपके पास जीवात्मा बाकी बची है, न आपके पास परमात्मा बाकी बचा है। वह चीजें बाकी बची है, जो किसी काम की नहीं। आपकेरोम-रोम में जो चीजें बची और बसी हुई हैं, उसका नाम है—लोभ; उसका नाम है—मोह; उसका नाम है—वासना; उसका नाम तृष्णा; उसका नाम अहंकार—ये सब चीजें आपके पास पर्याप्त मात्रा में बची हुई हैं। आपके पास मकान मौजूद है, आपके पास तिजारत मौजूदहै, आपके पास नहीं हैं। न आपके पास आत्मा रह गई है, न आपके पास परमात्मा रह गया है। दोनों में से कोई चीज हमारे पास नहीं है। हम छूँछ हैं मित्रो! पाप से लिपटे हुए, वासनाओं से लदे हुए, हर समय हम दुःखी, हर समय क्लेश में डूबे हुए, हर समय झल्लाये हुएऔर हर समय पीड़ित, हर समय पतित मनःस्थिति है। हमने मणि गँवा दी, जैसे साँप मणि को गँवा देता है। मणि गँवाया हुआ साँप, दुःखी बैठा हुआ साँप; हाथी का मुक्ता कहीं चला गया था और मुक्ताविहीन हाथी कहीं बैठा हुआ था और साँप मणिविहीन बैठा हुआ था।मणि से विहीन साँप के तरीके से मुरझाये हुए बैठे हैं, कुम्हलाये हुए बैठे हैं, निरुत्साहित हुए बैठे हुए हैं, कुण्ठा में बैठे हुए हैं हम। हमारे जीवन का रस चला गया और हमारे जीवन का आनन्द चला गया, इसलिए हम पुकारते हैं—कहाँ है हमारे जीवन का रस! कहाँ है? मिलजाए, तो अच्छा हो।
‘रसो वै सः’—भगवान् रसमय-आनन्दमय है। आनन्द हमने छुआ भी नहीं, ज्ञान हमने जाना भी नहीं। कितनी जिन्दगी निकल गई रोते-रोते, झल्लाते-झल्लाते? अगर भगवान की एक किरण हमारे पास आ जाती, तो हमारे चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती; हमारे चेहरेपर सन्तोष आ जाता; हमारे चेहरे पर आनन्द दिखायी पड़ता; पर हमने जाना ही नहीं आनन्द किसे कहते हैं; जाना ही नहीं सन्तोष किसे कहते हैं; जाना ही शान्ति किसे कहते हैं; जानता ही नहीं हर्षोल्लास किसे कहते हैं? हमने कभी नहीं जाना ऐसी खीज में और जलनमेंं हम जलते-जलते इतने बड़े हो गए और अब मोमबत्ती के तरीके से सारी-की जलन ने हमको जला दिया और हम छूँछ रह गये हैं। भोगो न भुक्ता वयमेव भुक्ता। भोगो-भोगो। भोग भोगने के लिए हम लगे रहे; पर भोगों को हम भोग नहीं सके, भोगों ने हमको भोगलिया। वैरागी जी ने चिल्लाकर के लोगों से पूछा—अरे हाजिर लोगो! जरा बताओ तो सही तुममें से कोई एक आदमी भी ऐसा है? कैसा? जिसने वास्तविक सुख का, वास्तविक आनन्द का उपभोग किया हो। अरे अभागे लोगो! तुममें से कोई एक आदमी भी ऐसा हो, जिसने जिन्दगी में सुख देखा हो, सुख पाया हो, सुख जाना हो, तो तुम बताओ। है तुममें से कोई ऐसा? न हमने कभी सुख देखा न हमने कभी सुख पाया, न हमने कभी सुख के बारे में सुना, न हमने कभी सुख जाना। जलन, बस जलन—कुत्ते की हड्डी जैसी जलनहमारी जिन्दगी भर साथ रही। उसी को जाना कि सुख इसी का नाम है। कुत्ता एक हड्डी उठाकर ले आया और चबाने लगा। उसमें से क्या हो गया कि जबड़े में से खून टपकने लगा। जब जबड़े में से खून टपका और जब उस टपकते हुए खून को चखा, तो बड़ा जायका आया—ये खून बड़ा जायकेदार है। बेटे! जायकेदार खून को चखते-चखते हम अपने आपको जला रहे हैं, अपने आपको गला रहे हैं, सोचते हैं, इसी में सुख होता होगा। वासनाओं में हमने अपने आपको जलाया, वासनाओं में हमने अपने आपको गलाया। क्या कर रहा था तू? काम-वासनाओं का सेवन कर रहा था। क्या मिल गया? क्या कमा के लाया? कुछ भी नहीं कमा के लाया गुरुजी! प्रशिक्षण यों ही गँवाया, तो फिर मूरख काहे के लिए कह रहा था कि मैं बड़ा प्रसन्न हूँ, मैं बड़ा शेर मार के लाया हूँ। अपनी हड्डी चबा रहा था। हाँ, अपने जबड़ेमें से खून निकाल रहा था। हाँ, अपने जबड़े के खून को पी रहा था, उसी को सुख कह रहा था। अपना लोक बिगाड़ रहा था, अपना ईमान बिगाड़ रहा था और जिन्दगी को चौपट कर रहा था, उसे सत्यानाश कर रहा था। उसी की बारूद जला करके फुलझड़ी देख रहा था। उसी कोमान रहा था खुशी। हाँ, महाराज! उसी को खुशी मान रहा था। हमें देखिये, पैसे के लिए और उन चीजों के लिए, जो हमारे किसी काम की नहीं है; जो हमें न शान्ति दे सकती हैं, न सन्तोष दे सकती हैं, न चैन दे सकती हैं; उन चीजों को इकट्ठा करने के लिए हम पागलों कीतरह जिन्दगी भर भटकते रहे और समझते रहे शायद इसी में सुख हो सकता है; शायद इसी में चैन हो सकता है। इसमें चैन कहाँ से हो सकता है? मिट्टी में चैन कहाँ से आ जाएगा? पैसे में चैन कहाँ से आ जाएगा? इन चीजों में चैन कहाँ से आ जाएगा? चैन तो बेटे! आदर्शों में रहता है, सिद्धान्तों में रहता है। सिद्धान्त भी हमारे पास नहीं आ सके, आदर्श भी हमारे पास नहीं आ सके। उसकी कभी इच्छा भी उत्पन्न नहीं हो सकी। हम क्या कर सकते हैं? हमको ग्राह खाये जा रहा है। गज और ग्राह—इस लड़ाई का वृतान्त आता हैपुस्तकों में। पुस्तकों में गज और ग्राह के संघर्ष की लड़ाई का वर्णन है।
एक ग्राह था। उसने गज को पकड़ लिया और एक पाँव जो था, सामने वाला अगला वाला पाँव निगल लिया। जब पाँव निगल लिया, तो गज जो था, ताकत लगाने लगा और बाहर आने की कोशिश करने लगा और ग्राह भीतर खींचने लगा। दोनों में कुश्ती होने लगी औरलड़ाई होने लगी। गज बहुत परेशान हुआ और बहुत दुःखी हुआ। जब गज को यह दिखाई पड़ा कि मैं अपनी ताकत के भरोसे पर बाहर नहीं निकल सकता तो उसने पुकार लगानी शुरू की और विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ किया। इसमें भगवान के नाम लिये गये हैं, औरभगवान को पुकारा गया है। बार-बार भगवान को पुकारा है—आप विष्णु हैं, आप नारायण हैं, आप शिव हैं, आप कल्याणकारी हैं। बहुत-से नाम उस गज ने लिये हैं। देखिये, हम आपको वही कह रहे थे कि आप बार-बार नाम लिया कीजिये; भगवान् का जप किया कीजिए; भगवान को कहिये कि हम मर रहे हैं और हम डूबे जा रहे हैं। नरक में और पाप में हमारा अन्त हुआ जा रहा है। गज की तो एक ही टाँग पकड़ी थी और हमारे टाँगें तो हैं चार और मगर? मगर हैं छह? छह मगरों ने चार टाँगें पकड़ रखी हैं और एक-एक हमारी पूँछ पकड़ रखीहै। एक हमारी सूँड़ पकड़ रखी है। गज तो एक ही पकड़ा गया था; लेकिन हमारे छह गज पकड़ के रखे हैं छह ग्राहों ने। एक ग्राह का नाम काम, एक का नाम क्रोध, एक का नाम लोभ, एक का नाम मोह, एक का नाम मद, एक का नाम मत्सर—इन सब रिपुओं ने हमारेरोम-रोम को पकड़ लिया है, जकड़ लिया है और अब हमको मालूम पड़ता है कि अब हम डूबने ही वाले हैं; हम मरने ही वाले हैं; हम जलने ही वाले हैं और खत्म होने ही वाले हैं। इसलिए हम पुकारते हैं—हे भगवान! तुम कहाँ हो—‘धियो यो नः प्रचोदयात्’— हे भगवान! कहीं हो, तो आ जाओ। हमारा उद्धार कर दो, भगवान् बेड़ा पार लगा दो। इसीलिए हम पुकारते हैं। हमारी पुकार शायद अन्तरिक्ष में, उस वातावरण में फैल जाए और कहीं भगवान हों, तो उसकी प्रतिक्रिया हमारे भीतर आए और हमको उद्धार करने के लिए, हमकोउबारने के लिए, हमको उठाने के लिए लम्बा हाथ फैला दें।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गाया है एक बंगला का गीत। उन्होंने कहा-भगवान्! हम आपको कष्ट देने वाले नहीं हैं कि आप हमारी सम्पत्ति बढ़ा दीजिए। सम्पत्ति बढ़ाने के लिए आपने हमको अक्ल दी है, समझ दी है और हाथ दिये हैं। हम अपना प्रयास करेंगे और हमारा पुरुषार्थजहाँ तक गवाही देगा, हम सन्तोष करेंगे। हम अपने पुरुषार्थ से अपनी जरूरतें पूरी करेंगे। आपको हम क्यों कष्ट देंगे? आपने हमको सुन्दर जिन्दगी दी और साथ में हमको सारी-की योग्यताएँ दीं। हम अपनी मशक्कत करें, योग्यताएँ बढ़ाएँ, सन्तोष से काम लें, समझदारी से काम लें। हम अपनी जिन्दगी के लिए गुजर-बसर करने के लायक काफी चीजें पा सकते हैं। इसके लिए हम आपको कोई कष्ट देने वाले नहीं हैं—रवीन्द्र नाथ टैगोर ने गाया कि हम मुसीबतों से रिहाई पाने के लिए आपकी खुशामद करने वाले नहीं हैं और हमआपकी प्रार्थना भी करने वाले नहीं हैं; क्योंकि हमने कर्म किये हैं, हम उनको भोगने के लिए तैयार हैं। कर्म के बन्धनों से कोई भी छुट्टी नहीं पा सका। कर्म करने में गलतियाँ हमने कीं। अब हमें नाक रगड़ने और गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं है गलतियाँ हमने की हैं औरउसकी सजा हमको दीजिये।
देखिये, एक बार मुझे बस्तर जिले की एक घटना याद आ गई। बस्तर एक बार गया हुआ था। पुलिस के दरोगा के सामने एक भील आया। भील ने कहा—हमने हत्या कर डाली, एक आदमी मार डाला, हमको गिरफ्तार कीजिये। पुलिस के दरोगा ने पकड़ लिया और उसेबिठा लिया। कहाँ मारा है? बस, गाड़ी लेकर गए और लाश को लेकर के आ गये और उसको ऐसे ही खुली गाड़ी में बिठा ले गये। लाश भी आ गई, उसे भी लाद दिया गया। दरोगा जी से मैंने ये पूछा—ये जो हैं, आपने इसको रस्सी भी नहीं बाँधी और गिरफ्तार भी नहीं कियाऔर हथकड़ी भी नहीं पहनायी। नहीं, इसकी जरूरत नहीं है। ये भील हैं तो क्या! कम पढ़े हैं तो क्या! जाहिल हैं तो क्या! लेकिन ये बहादुर आदमी हैं। मार तो डालते हैं गुस्से में; लेकिन मार डालने के बाद में फैसला ये मंजूर करते हैं और ये कहते हैं कि हमको फाँसी लगेगी, तो लगेगी! गलती हमने की है, तो फाँसी किसको लग सकती है? जाते हैं, इल्जाम बता देते हैं, गिरफ्तार हो जाते हैं, जेलखाने चले जाते हैं और फाँसी लगती है, तो कहते हैं—हाँ साहब! मारा है हमने। सबूत भी इकट्ठे नहीं करने पड़ते। अदालत ने पूछा—आपने मारा! हाँ, साहब! हमने मारा। क्यों मारा? गुस्सा आ गया था। ये बात थी और हमने इसको मार डाला। बस, जज चाहता है, तो फाँसी दे देता है और चाहता है, तो काला पानी दे देता है। खुशी से काले पानी चले जाते हैं। खुशी से फाँसी पर चढ़ जाते हैं। देखिये, बहादुर! बहादुरी इतनीहोनी चाहिए। गलती आप करते हैं। गलती करने पर आप बहादुर! तो सजा पाने पर भी आप होइए बहादुर। नहीं साहब! तो सजा पाने पर तो पों...पों...पों करते हैं और गलत करने पर हिम्मत वाले बन जाते हैं। शेर हैं, तो बनिये शेर; और कायर हैं, तो बनिये कायर।
एक था साँड। साँड चिल्ला रहा था—फों.....फों.....फों। लोगों ने साँड से पूछा—क्यों रे! क्यों चिल्लाता है? हमार मन। हम तो लड़ेंगे। अच्छा, लड़ेगा। वह कर रहा था गोबर। एक ने पूछा—ये क्या करता है? गोबर काहे को करता है? तो बोला—डर लगता है। अरे! तो लड़ताकाहे को है। डरता है, तो लड़े मत। लड़ता है तो डर मत। पाप भी करता जाता है, डरता भी जाता है—पों.....पों.....पों बोलता जाता है। गलती करता है, तो सुना कर। इसलिए रवीन्द्रनाथ टैगोर की वह प्रार्थना याद आ गई हमको। उन्होंने ये कहा कि हम अपने पापों से, कष्टोंसे अपनी रिहाई कराने के लिए खुशामद करने वाले नहीं हैं कि आप हमारी गलतियों को सुधार दीजिये और हमारे पापों को दूर कर दीजिये और हमारी मुसीबतों को दूर कर दीजिये। मुसीबत हम सहेंगे। गलती हम करते हैं, तो मुसीबत भी हम सहेंगे। इस झगड़े में आपकोनहीं डालते हैं। हे भगवान! आपसे हम प्रार्थना करते हैं, सिर्फ एक—जब हम पाप के पथ में गिरने लगें, पतन के गड्ढे में गिरने लगें, तो आप अपनी लम्बी भुजाएँ फैलाना और हमको उसमें से बचा लेना। पाप में हमको गिरने मत देना। पतन में हमको गिरने मत देना।बस और हमको आपकी कोई सहायता की जरूरत नहीं है। न कोई आशीर्वाद चाहिए, न वरदान चाहिए, न मनोकामना चाहिए। जो मनोकामना पानी होगी, तो अपनी मर्जी से पाएँगे। अपनी योग्यता से पाएँगे। आपसे क्यों पाएँ? मित्रो! राम का नाम लेने के लिए जब हमनेआपसे कहा है, तो आप राम का नाम लिया कीजिये, भगवान का जप किया कीजिये, भगवान का ध्यान किया कीजिये, भगवान का स्मरण किया कीजिये। भगवान को इसलिए पुकारते हैं कि हे भगवान्! आप हों, तो हमको गजेन्द्र के तरीके से, गज के तरीके से पाप-पंकमें गिरने से बचा लीजिये। इतना अनुग्रह आपके लिए काफी है। पैसे वाले होकर के जिएँगे, तो क्या! औलाद वाले होकर जिएँगे तो क्या! बिना औलाद वाले होकर के जिएँगे, तो क्या! बीमार होकर के जिएँगे, तो क्या! सुस्त होकर के जिएँगे, तो क्या! ये शरीर के धर्म हैं औररोजाना के सामान्य क्रिया-कलाप हैं। इससे क्या बिगड़ता है क्या बनता है! नहीं साहब! बीमार आदमी की बड़ी हानि हो जाती है, नहीं बेटे! बीमार आदमी की कोई हानि नहीं होती। जगद्गुरु शंकराचार्य को १६ वर्ष की उम्र में भगन्दर का फोड़ा हुआ था। ३२ वर्ष की उम्र मेंउनका उनका देहान्त हो गया था। १६ वर्ष तक जिए। १६ वर्ष तक भगन्दर की शिकायत उनको बनी रही। रोजाना मवाद टपकता रहा, रोजाना पट्टी बँधती रही, रोजाना जख्म होता रहा; लेकिन उसी जख्म की हालत में पट्टी की हालत में, जगद्गुरु शंकराचार्य १६ वर्ष कीउम्र से लेकर के ३२ वर्ष की उम्र तक लगातार चारों धामों की स्थापना, शंकर दिग्विजय, उपनिषदों के भाष्य, ग्रन्थों के लेखन, अपने योगाभ्यास—सारे-के काम करते रहे और १६ वर्ष के बीच में मर करके चले गए। बीमारी से क्या आफत आती है? नहीं साहब! हम बीमारहैं, अच्छा कर दीजिये। क्यों? क्यों अच्छा कर दें? गुरु जी! आपकी शाखा बन्द हो जाएगी? क्यों? क्यों हमारी शाखा बन्द हो जाएगी? गुरुजी! हमारी मौसी को जुकाम हो जाता है। हमारी मौसी को अच्छा कर दीजिये। बेटे! तेरी मौसी को अच्छा कर दें, तब तू शाखा में कामकरेगा। हमें नहीं कराना है। हमारी शाखा बन्द पड़ी रहने दें। हमें न तेरी मौसी अच्छी करनी है, न हमें शाखा चलानी है, न हमें तुझसे काम कराना है। बहानेबाज़ी बहुत है तेरे पास। मौसी को अच्छा कर दीजिये मन नहीं लगता है। गुरुजी और आपकी शाखा बन्द हो जाएगी।शाखा को बन्द कराने का एहसान जताता है हमारे ऊपर और अपने लिए काम कराना हो तब? चल, मक्कार कहीं का। हमारे ऊपर एहसान जताता है, चालाकी की जालसाजी फैलाता है। हम तेरे सामने तेरी मौसी का जुकाम अच्छा कर दें, तब हमारी शाखा चलाएगा। हमेंनहीं कराना है, चल भाग।
मित्रो! क्या होता है लोगों को? आपका ये ख्याल है कि लोगों की सांसारिक दिक्कतें और सांसारिक कठिनाइयाँ होने की वजह से आदमी की जीवात्मा की तरक्की में रुकावट होती है? क्या रुकावट होती है? मुझे बताइये न? पैसे की वजह से रुकावट होती है। अच्छा, पैसे कीवजह से कौन-कौन काम रुका हुआ पड़ा है आध्यात्मिक दृष्टि से? अच्छा आध्यात्मिक दृष्टि से रुका हुआ पड़ा था, तो ऋषियों की आध्यात्मिक तरक्की कैसे हो गई? ऋषियों के पास तो मकान भी नहीं थे, घर भी नहीं थे, व्यापार भी नहीं थे, नौकरी भी नहीं थी, साधन भीनहीं थे, बैंक बैलेन्स भी नहीं था, फिर उनकी तरक्की हुई कि नहीं? हाँ, हुई। जितने भी सन्त हुए हैं, ऋषि हुए हैं, वे सब गरीब थे कि नहीं थे? हाँ, गरीब थे। पैसे हमको दिलवा दीजिये, तब हम भक्ति करेंगे, नहीं तो हमको नहीं भक्ति करनी। आप घर जाइये। मित्रो! शिकायतें आपकी ये हैं कि आपको ये मिलेगा और वो मिलेगा, तो हम भगवान की भक्ति करेंगे। आप भगवान की भक्ति न तब कर सकते हैं, न अब कर सकते हैं। जितनी ज्यादा चीजें आपको मिलती जाएँगी, उतना ही ज्यादा आप रस में और पाप में डूबते चले जाएँगे, इसलिए आप ये मत कहिये कि हमको भक्ति से ताल्लुक है, अतः भक्ति के लिए माँगते हैं। ये बहाना मत बनाइये। आप कहिये माया में डूबे हुए हैं, अज्ञान में डूबे हुए हैं, लोभ में डूबे हुए हैं, मोह में डूबे हुए हैं, इसलिए हमको पैसों की जरूरत है; हमको औलाद की जरूरतहै; घर की जरूरत है। ये क्यों नहीं कहते? सीधी बात क्यों नहीं कहते? जी साहब! हम भगवान की भक्ति चाहते हैं। भगवान को क्यों लपेट में लेना चाहते हैं? बेकार में भगवान को भी नरक में डालता है, भगवान को भी लोभ में डालता है, भगवान को भी मोह में डालता है, भगवान को भी पाप में डालता है अपने साथ-साथ। मित्रो! आपको अपना दृष्टिकोण नये ढंग से प्रस्तुत करना पड़ेगा। वास्तविकता को समझना पड़ेगा। भौतिकवाद अलग है। उसके साथ जीवात्मा की उन्नति का कोई सम्बन्ध नहीं है। हमारे सिद्धान्तवाद का कोईसम्बन्ध नहीं है; आदर्शवादिता का कोई सम्बन्ध नहीं है। भौतिक चीजों की अगर आपको आवश्यकता है, तो आप कमाइए। आप नहीं कमा सकते? अच्छा, हमसे उधार ले जाइये। हम आपको उधार दे सकते हैं, कर्ज दे सकते हैं। फोकट में नहीं बेटे! फोकट नाम की कोईचीज दुनिया में नहीं। फोकट में मिट्टी भी नहीं। नहीं साहब! फोकट मे वरदान दीजिये, फोकट में आशीर्वाद दीजिये। नहीं बेटे! फोकट में कोई वरदान नहीं है। आप कर्ज को, उधार को समझते है फोकट, तो आपकी मर्जी की बात है। कर्ज-उधार आपको मिल सकता है। पठानआते थे, अब तो बन्द हो गये। पहले पठान आते थे, कम्बल उधार दे जाते थे। लो भाई! कम्बल। अच्छा साहब! लाइये कितने का है? सौ रुपये का है। अरे साहब! वहाँ मिलता है चालीस रुपये का। अरे! तो चालीस रुपये में बिकता है नगद। उधार में सौ रुपये का ही है। अच्छातो साहब! लाइये। सबको उधार दे जाते थे और छह महीने बाद जब आते थे, तब? तब डण्डे लेकर बरसते थे। ला हमारा रुपया, नहीं तो मार डालेंगे, ये कर डालेंगे। कपड़े उतार ले जाते थे, सब ले जाते थे पठान। बेटे! हम वरदान दे देंगे तुझे। बस, हम तुझसे ब्याज समेतवसूल करेंगे और इस जन्म में नहीं देंगे, तो अगले जन्म में तुझे घोड़ा बनाएँगे, गधा बनाएँगे और तेरी पीठ पर लाद-लाद कर तेरा कचूमर निकाल देंगे। नहीं महाराज जी! फोकट में दे दीजिये। चल, बस चला है फोकट में लेने के लिए। फोकट में मिट्टी तो ले आ कहीं से? नहीं महाराज जी! सब कोई सन्त महात्मा फोकट में बाँटते हैं। वरदान बाँटते हैं और आशीर्वाद बाँटते हैं। नहीं बेटे! कहीं आशीर्वाद नहीं बँटता है, हर चीज कीमत देकर चुकायी जाती है। थोड़ा उधार दी जाती है। सन्त-महात्मा किसी-किसी को दिया करते हैं; इच्छा पूरी कियाकरते हैं, मनोकामना भी पूरी किया करते हैं; पर उसमें चालाकी रहती है उनकी। क्या चालाकी रहती है? ये चालाकी रहती है कि शायद मनोबल से खिंचकर हमारे पास आ जाएँ और भगवान की भक्ति के रास्ते पर लग जाएँ। चालाकियाँ रहती हैं। हम गायत्री मंदिर मेंप्रसाद बाँटते रहते हैं। लो भाई बच्चे लोगो! प्रसाद खा लो, पेड़ा खा लो। प्रसाद-पेड़ा खा करके बच्चे आ जाते हैं, प्रसाद खाने के लिए, पेड़ा माँगने के लिए, फिर राम नाम में लगाते हैं। उसमें बहुत-से बच्चे ऐसे भी होते हैं, जो भक्ति के मार्ग पर चले जाते हैं। इसलिए हमप्रसाद बाँटने और पेड़े बाँटने के लिए लोगों को बुलाते रहते हैं। बस और कोई मतलब नहीं है। मनोकामना पूरी करना और आशीर्वाद देना, बेटे! ये कोई तरीका नहीं है, कोई सिद्धान्त नहीं है। ये केवल लोगों को फँसाने का, लोगों को बुलाने का तरीका है कि इस बहाने सेलोग जाल में हमारे आ जाएँ, जाल में हमारे फँस जाएँ। फँस जाने के बाद में उन्हें अच्छे रास्ते पर लगा दें। बुरी नीयत तो नहीं होती है, हमारी नीयत तो अच्छी होती है लेकिन अच्छी नीयत होते हुए भी वास्तव में सिद्धान्त गलत हैं। गलत ये कि यहाँ जाएँगे, तो येआशीर्वाद लाएँगे, वहाँ जाएँगे, तो वो आशीर्वाद लाएँगे। ये आशीर्वाद हैं तो सही; पर चालाकी के लिए भी हो सकता है और अच्छे उद्देश्यों के लिए भी हो सकता है।
हमारे गाँव में एक मास्टर साहब थे। मास्टर साहब की औरत जो दिमाग की तो अच्छी थी; लेकिन थी बड़ी क्रोधी और कड़वे स्वभाव की। मास्टर साहब ने कहा—तू कुछ भी पढ़ना-लिखना सीख ले, तेरे बाल-बच्चे तो हैं नहीं। पढ़ लेगी तो अच्छी रहेगी। जाओ, जाओ तुम पढ़लो, हमको पढ़ाना था, तो ब्याह काहे को कर लिया। तुम्हें हमको खिलाने की गुंजाइश नहीं है? हम पढ़ें, तो नौकरी करें और तुम्हारे यहाँ सब रोटी खाएँगे! जाओ, हमको हमारे माँ-बाप के यहाँ भेज दो। हमें नहीं रहना। चुप हो गए मास्टर साहब। फिर एक दिन ये कहा मास्टरसाहब ने कि अक्ल से काम ले, तू बड़ी मूरख है, तू बड़ी बेअकल है। हम कैसे मूरख हैं? हमने मास्टरी पास कर ली है और तू एक अक्षर भी नहीं जानती है। अच्छा, तू एक अक्षर याद कर ले, तो मैं एक चवन्नी दूँगा तुझे। अच्छा, लाओ एक चवन्नी दो और देखो मैं एकअक्षर याद करती हूँ। बस, एक चवन्नी मास्टर साहब ने कपड़े में बाँधी और खूँटी से टाँग गए तथा लिख गये—देख, लिख पट्टी पर क...क। तू याद कर ले। शाम तक मैं एक चवन्नी दे दूँगा तुझे। बस, सब जगह क...क...क लिख आई। मास्टर आ गए शाम को। पूछा—क्यों भाई! याद कर लिया? देख लो क...क...क। सब घर में ‘क’ लिखा है। अच्छा बाबा! ले ले चवन्नी। चवन्नी दे दी, फिर उसने कहा—तू तो बड़ी समझदार मालूम पड़ती है। तेरी अक्ल तो बहुत अच्छी मालूम पड़ती है। हाँ साहब! हमारी अक्ल तो बहुत अच्छी है, तुमसेअच्छी है। अच्छा तो तू कितने याद कर लेगी ऐसे अक्षर, जैसे आज बता दिये हैं। ऐसे मैं कर लिया करूँगी पाँच। पाँच कर लेगी? अच्छा, तो ले कर क ख ग घ ङ—पाँच अक्षर तू लिख ले। सवा रुपया लेकर के अपनी पोटली में बाँधकर करूँगी अब। सवा रुपया मैं तुझे दूँगा।पाँच अक्षर तू याद करके दिखा दे। जल्दी से रोटी-वोटी बना करके मास्टर साहब को भगा दिया, फिर वह खा-पीकर निवृत्त हुई और क ख ग घ ङ पट्टी पर, थाली पर, बर्तन पर सब जगह क ख ग घ ङ लिख दिया एवं याद कर लिया। मास्टर साहब घर में घुसे, तो कहा देखलो, मैंने क ख ग याद कर लिये। अच्छा, जरा बोल क ख ग घ ङ। इधर से बोल ङ घ ग ख क। अच्छा ये कौन-सा है? ख। ये कौन-सा है? ङ। ये कौन-सा है? क। ये कौन-सा है? घ। पास हो गई, जाओ। अच्छा, सवा रुपया निकाल ले। सवा रुपया उस जमाने में इतना बड़ा थाकि सवा रुपया में एक धोती आती थी जनानी बढ़िया वाली। उस जमाने की बात कह रहा हूँ। सवा रुपया उसने कमा लिये।
तुम चाहो तो मुझे पाँच अक्षर रोज दे जाया करो, मैं पाँच याद करके दिखा दूँगी। कल मास्टर दे गए च छ ज झ ञ। सवा रुपया बाँधकर फिर टाँग गए। फिर दे गये ट ठ ड ढ ण। फिर सवा रुपया बाँधकर टाँग गए। रोजाना सवा रुपया बाँध जाएँ, पाँच अक्षर दे जाएँ बस, रोजानापाँच अक्षरों के हिसाब से ५२ अक्षर उसने दस दिन में याद कर लिये। देख लो। मैंने सब याद कर लिये। फिर और लाओ और बताओ और तुम्हारे पास है? और बड़ा जबरदस्त है हमारे पास। क्या है? हमारे पास हैं—मात्राएँ। मात्राएँ भी होती हैं? हाँ, मात्राएँ होती हैं, कितनीमात्राएँ होती हैं। मात्राएँ होती हैं—बारह। बारह मात्राएँ चबन्नी में थोड़े ही करूँगी तो कितने में करेगी बाबा? एक रुपया में करूँगी। एक रुपया तो बहुत ज्यादा है। नहीं, ईमानदारी से चलो। तो कितने में करूँ? तुम बताओ? चार आने में अक्षर, तो छह आने में मात्रा। छह आनेदे देंगे। नहीं, छह आने में नहीं करूँगी। अच्छा चलो अठन्नी दूँगा। करो आठ आने में एक मात्रा। बारह मात्रा तू याद कर ले और प्रत्येक अक्षर पर लगाना सीख लें। ‘च’ पर लगा दीजिये बड़ी ‘ई’ तो ‘ची’ और ‘ल’ पर छोटे ‘उ’ की मात्रा लगा दें, तो ‘लु’—ये सब सीख ले औरदेख, तू बारह मात्रा को लगाना सीख गयी तो मैं छह रुपये दूँगा। छह रुपये बाँधकर खूँटी पर टाँग दिये। अब देखो, मात्राएँ सीखती हूँ। चार-पाँच दिनों में सब मात्राएँ लगाना—छोटी ‘ई’ की मात्रा, बड़ी ‘ई’ की मात्रा—ये सब मात्राएँ सीख गईं। कोई और बताओ? अब और कुछबताओ? तुम्हारा दिवाला निकल गया। पढ़ाई खत्म? अभी और है पढ़ाई हमारे पास। क्या पढ़ाई है? हमारे पास है—गिनती। गिनती क्या होती है? गिनती होती हैं ९। तो गिनती थोड़े ही करूँगी अठन्नी में। तो क्या भाव करेगी गिनती? एक रुपये में एक करूँगी गिनती।अरे भाई! देखो, इतनी महँगाई थोड़े ही है। अच्छा, तो कितने में करेगी? बारह आने में? अच्छा साहब! तो बारह आने में तय हो गया। ९ के बारह आने के हिसाब से पैसे दिये और खूँटी पर टाँग दिये। बस, हो गई जब फ्री, तो फिर नौ अंक याद कर लिये। फिर देख, आगे-पीछे का भी चुका लूँगा। एक और एक ग्यारह। हाँ, ठीक है—ये तो उसी में आता है, नौ में ही सम्मिलित है, अलग थोड़े ही है कोई। दो और एक तीन तो उसी में सम्मिलित है, अलग थोड़े ही है। नौ ही अंकों का सब खेल है। उलटा-पलटा मात्राओं में भी किया था, इसमें भीकर लेंगे। अभी भी किया था, फिर याद कर लिया। कितने रुपये लग गये? नौ में बारह आने के हिसाब से ७ रु० बारह मात्राओं के ६ रु० और ५२ अक्षरों के चवन्नी के हिसाब से १३ रु०। १३ और ७ रु० = २० और ६ रु० = २६ रु०। २६ -२७ रु० के करीब हो गये। मास्टर साहबको ३० रुपये तनख्वाह मिलती थी। पहली तारीख को नौकरी के पैसे मिले, तो २७ रुपये तो उसे दे दिये। लो भाई! तेरे २७ रुपये की मजूरी हो गई और ३ रुपये और बचे हैं ये और ले ले और महीने भर का खर्चा? अरे! तो मैं कहाँ से लाऊँ? अरे! तो तुमने तो मुझे वैसे ही ठगाऔर मुझसे ऐसे ही मेहनत करा ली, मुझे परेशान कर दिया और मुझे ऐसे धोखे में फँसा दिया। मुझे यह मालूम पड़ता कि तुम ये चालाकी करोगे, तो मैं काहे को याद करती। खैर, याद कर लिया। उसने ये कहा—देख गिनती आ गई। अब तू एक साल मेहनत कर ले औरप्राइवेट इम्तहान दे दे। मैं तुझे पढ़ा दूँगा। मुझे भी मिलते हैं ३० रुपये, तुझे भी मिलेंगे ३० रु०। तीस और तीस कितने होते हैं? साठ। इतने में मौज करेंगे। एक महीने में भैंस खरीदेंगे और एक महीने में मकान बनवाएँगे और एक महीने में जेवर बनवाएँगे, एक महीने मेंकपड़े लाएँगे। साल भर के भीतर हम मालदार हो जाएँगे। तू पढ़ना तो शुरू कर। स्त्री दिमाग की अच्छी थी। लौ लग गई, तो उसी में फिर जुट गई। बस, थोड़े दिनों के पीछे एक साल बाद और दो साल बाद उसने मिडिल पास कर लिया और उसी गाँव में अध्यापिका हो गई।तीस उसको मिलने लगे और तीस उसको मिलने लगे।
ये किसकी कहानी है? ये बेटे! हमारी और तुम्हारी कहानी है। आपको हम बुलाते हैं, पकड़ते हैं चवन्नी के हिसाब से। लो भाई! आ जाओ, हमारे जाल में फिर काहे के लिए कहते हैं—ले जा हमसे पैसा, ले जा हमसे बेटा। बेटा बाँटने की दुकान है हमारी? क्या फायदा बेटाबाँटने से? नहीं महाराज जी! बेटा पैदा कीजिये। नहीं हम नहीं कर सकते। बेटे से कोई फायदा नहीं, बल्कि नुकसान है। ये गरीब देश है। गरीब देश में न अनाज है, न कपड़ा है, न स्कूलों में जगह बचती है, न सड़कों पर चलने को जगह मिलती है और न सरकारी दफ्तरों मेंनौकरी है। यहाँ किसी को बच्चा पैदा करने की जरूरत नहीं है। नहीं, महाराज जी! वरदान दीजिये। नहीं हम नहीं देंगे। इससे कोई फायदा नहीं है, सिवाय नुकसान के, जिसमें आपका नुकसान हो और हमारा नुकसान हो, हम ऐसा काम करेंगे नहीं—हम ऐसा काम नहींकरेंगे। अक्ल हमारे भी है और बेअकल आप भी नहीं। इसलिए मित्रो! क्या करना चाहिए? ये जो हैं सकाम उपासनाएँ, वो एक प्रकार की चवन्नियाँ हैं, आकर्षण हैं ताकि लोग इस ओर लगे रह सकें; उनका रुझान इस दिशा में बना रह सके। नाम का ये फल है, नाम का येपरिणाम है, जप करने का ये अमुक फल—यह सब मछलियों को आकर्षित करने वाली आटे की गोलियाँ हैं। जप करने का अगर कोई फल है, तो बस अधिक-से वह फल मान सकते हैं, जो चवन्नी देकर के हरफ पढ़ने का होता। बस और ज्यादा कोई फल नहीं है। राम केनाम लेने का। नहीं साहब! इससे सिद्धि मिलेगी और चमत्कार मिलेगा। न सिद्धि मिलने वाली है, न चमत्कार मिलने वाला है। क्या मिलने वाला है? वह चीज मिलने वाली है, जिसको हमने गँवा दी। हमने अपना जीवन गँवा दिया; हमने अपने सिद्धान्त गँवा दिये; आदर्श गँवा दिया; लक्ष्य गँवा दिया; अपने आपको गँवा दिया। हमारे पास अब रहा क्या है, सिवाय वासनाओं के अलावा और इच्छाओं के अलावा जीवन में क्या बचा है, जरा बतलाइए तो सही?
सिद्धान्त हमारे पास नहीं, आदर्श हमारे पास नहीं, उत्कृष्टता हमारे पास नहीं, सेवा हमारे पास नहीं, संयम हमारे पास नहीं। कोई चीज हमारे पास नहीं, हम तो केवल छूँछ-हैं। छूँछ और छूँछ हो करके बेटे दरवाजे-दरवाजे पर टक्कर मारते हैं, कलपते-कलपते अपनीजिन्दगी के दिन बिताते हैं। इसलिए मित्रो! जीवात्मा को तलाश कराने के लिए, परमात्मा को तलाश कराने के लिए आपको हम ‘राम-राम’ का नाम याद कराते हैं। राम! आप कहाँ चले गए। आ जाओ, तो मजा आ जाए हमारी जिन्दगी में। हम और भरत, राम और भरतजिस तरीके से मिले थे, हम उसी प्रकार भरत के तरीके से धन्य हो जाएँ। हे भगवान! आप कहीं से आ जाएँ, तो हम आपको छू करके, आपको स्पर्श करके पारस पत्थर को छू करके लोहा जैसे सोना हो जाता है, आपको छू करके बन्दर हों, रीछ हों, तो भी हम हनुमान होजाएँ, हम सुग्रीव हो जाएँ, नल-नील हो जाएँ। हमारे राम! आप कहाँ हैं? अगर आप मिल जाएँ, तो हमारा उद्धार हो जाए और हमारा बेड़ा पार हो जाए। शबरी के तरीके से हमारा उद्धार हो जाए। अहिल्या के तरीके से हमारी पत्थर जैसी जिन्दगी फिर नयी हो जाए औरजीवन आ जाए, आप यदि कहीं मिल जाएँ तब। राम हमको मिलते नहीं हैं। हजारों मिल दूर हैं। इसलिए हम पुकारते रहते हैं, चिल्लाते रहते हैं—‘राम-राम’। राम क्या है? राम हमारा लक्ष्य है, राम हमारा मॉडल है। हम पुकारते रहते हैं, हम तलाश करते रहते हैं राम को।
एक बार ऐसा हुआ प्रह्लाद स्कूल में भर्ती कर दिया गया। पट्टी पर लिखकर लाया—राम-राम, सब जगह राम-राम। मास्टर ने कहा—क्यों रे! एक दिन हो गया, दो दिन हो गया, तू राम नाम ही लिखता रहता है। हम आगे पढ़ाते हैं और तू पढ़ता नहीं है। साहब! हम तो एकपढ़ाई ही पढ़ेंगे और एक पढ़ाई पढ़ने के बारे में हमने सुना है; एक ही पढ़ाई पढ़ने से सारी विधाएँ आ जाती हैं। हम तो एक ही पढ़ेंगे और नहीं पढ़ेंगे। बस, उसका मास्टर उसके पिताजी के पास ले गया, कहा—देखिये साहब! ये हमारे काबू में नहीं है। हम पढ़ाते हैं, पढ़ता नहींहै और राम नाम लिखकर ले आता है। राम नाम याद कर लेने के पश्चात् प्रह्लाद, प्रह्लाद हो गया था। सिर्फ एक राम का राम याद करने के पश्चात्। आपको राम के नाम का अभ्यास हो जाए प्रह्लाद के तरीके से, इसीलिए हम आपसे कहते हैं पट्टी पर बार-बार राम कानाम लिखिये; बार-बार अपनी माला घुमाइए और गायत्री मन्त्र को याद कीजिये प्रह्लाद के तरीके से, ताकि आपके रोम-रोम में राम समा सकें। हम आपको किस तरीके से याद करने के लिए कहते हैं। राम का नाम, जैसे कि युधिष्ठिर को पाठ पढ़ाया गया। सब विद्यार्थीतो सब पाठ पढ़ने लगे—‘सत्यं वद, धर्मं चर, स्वाध्यायान्मा प्रमदितव्यम्’ इत्यादि; लेकिन वह तो एक ही पाठ पढ़ता रहा—सत्यं वद-सत्यं वद। मास्टर ने धमकाया—क्यों रे! एक ही पाठ पढ़ेगा कि और भी पढ़ेगा। नहीं, साहब! हम तो एक ही पाठ पढ़ेंगे। अगर हम एकपाठ पूरा कर लेते हैं, तो हमारी, जीवन की हर समस्या पूरी हो जाती है और हमारे जीवन का उत्कर्ष हो जाता है। पहला पाठ पढ़ लेंगे, तभी तो दूसरा पढ़ेंगे। पहला पाठ तो याद ही नहीं होता। याद हो जाएगा, तब हम दूसरा पाठ याद करेंगे—धर्मं चर-धर्मं चर। युधिष्ठिर सारेजीवन में एक ही पाठ पढ़ते रहे—सत्यं वद-सत्यं वद। मित्रो हम आपको एक वही पाठ याद कराते हैं। क्या पाठ याद कराते हैं? राम-राम, भगवान का नाम, गायत्री मंत्र। गायत्री मंत्र याद हो जाए, तो हमारा उद्धार हो जाए।
इतना याद हो जाए कि हमारा रोम-रोम क्या-से हो जाए! लेकिन हम क्या कर सकते हैं? हम तो हर बार पकड़ लेते हैं पूँछ। क्या पकड़ लेते हैं? हमको तो इसी में मजा आता है। काहे में मजा आता है? डमी (पुतला) के साथ खेलने में। ये क्या लाए हो? शेर। अच्छा! कहाँ सेलाए हो शेर? मेले में से लाए हैं। मेले में घूम रहे थे, तो दिखाई पड़ गया, उठा लाए। पत्थरों के बने हुए हैं। अगर ये सब शेर होते, तो खा जाते सबको। नहीं साहब! मेले में रखे हुए थे हम भी लाए हैं। कितने पैसे का लाए हो? हम तो साहब! चवन्नी का शेर लाए हैं। अ ह ह ह! दिखाइये जरा ये शेर लाए हैं। आप इसी शेर के बारे में कह रहे थे। ये तो डमी है। इसमें प्राण नहीं है। इसमें कोई जीवन नहीं है। ये राम का नाम है, इसलिए राम का नाम आए हमारी जिन्दगी में तो, हमारा स्वरूप जाने कैसा हो जाए! फिर हमारी आकृति कैसी हो जाए, फिरहमारी प्रकृति कैसी हो जाए, फिर हमारा शरीर कैसा हो जाए, फिर हमारे जीवन के लक्ष्य कैसे हो जाएँ, फिर हम राममय हो जाएँ अगर राम हमारे भीतर आ जाएँ, तो राम की शक्लें हमको याद आ जाती हैं; राम के शब्द हमको याद आ जाते हैं। शब्दों के साथ-साथ में, रामके नाम के साथ-साथ में हमको राम के कामों की बाबत भी ध्यान देना चाहिए। नाम, नाम का उद्देश्य है—काम; उसको इस्तेमाल कर लेना, सोख लेना, हजम कर लेना। ये क्या लाए हैं साहब? च्यवनप्राश—आँवला। इसको खाइये, हजम कीजिये ताकि आपको ताकतआ सके और आपकी खाँसी भी ठीक हो सके। नहीं साहब! हम तो खाएँगे नहीं। तो आप क्या करना चाहते हैं, च्यवनप्राश और आँवले का? च्यवनप्राश तथा आँवले का हम दो काम करेंगे, एक तो हम करेंगे इसका जप और एक करेंगे इसका पूजन। कैसे-कैसे पूजन करेंगे? दिखाइये।
देखिये साहब! च्यवनप्राश-आँवला रखा हुआ है। हाँ, रखा हुआ है। देखिये, हमने अभी इसको छुआ नहीं है। हाँ साहब! आपने छुआ नहीं है। तो आप क्या करेंगे? देखिये हमारा जादू और देखिये हमारा चमत्कार। सारे-के फायदे हो जाएँगे च्यवनप्राश आँवले से। कैसे होजाएँगे जरा बताइये? देखिये अब हम माला घुमाते हैं। क्या घुमाते हैं—च्यवनप्राश आँवलाय नमः, च्यवनप्राश आँवलाय नमः। बेटे! ऐसे कैसे काम चलेगा? नहीं साहब! हम खाएँगे तो नहीं, इसके नाम का जप करेंगे। नाम का जप करेगा और क्या करेगा? डिब्बे को? बेटे! खोल उसे। नहीं साहब! खोलूँगा तो नहीं। तब क्या करेगा? इसको चावल चढ़ाऊँगा, पुष्प चढ़ाऊँगा—पुष्पं समर्पयामि, नैवेद्यं समर्पयामि, अक्षतानि समर्पयामि, पाद्यं समर्पयामि च्यवनप्राशः नमो नमः। खाँसी अच्छी हो जाएगी। खाँसी अच्छी करने के लिए इसकोखाता जा। ब्रह्मचर्य, ब्रह्म को चर जाना। चर जाना कैसे? गाय होती है, घास को चर जाती है न? हाँ। घास चरके हजम कर लेती है, इसलिए तू क्या करेगा? ब्रह्मचर्य का उद्देश्य केवल वीर्य की रक्षा ही नहीं है। ब्रह्मचर्य का आगे जा करके जो अर्थ होता है, वह होता हैब्रह्म को चर जाना। ब्रह्म माने घास और चर्य माने गाय। गाय जैसे घास को चर जाती है, ऐसे ही तू ब्रह्म को चर जा और चर करके हजम कर, हजम करके उसका दूध और फिर बना खून, फिर देख तू ब्रह्मचारी होता है कि नहीं, फिर तुझे भगवान मिलता है कि नहीं।भगवान के नाम को, राम के नाम को अपने जीवन में घुला देना पड़ता है, अपने जीवन के रोम-रोम में समा लेना पड़ता है। जब राम हमारे जीवन में समाधिस्थ हो जाता है और घुल जाता है, तब वह फायदे मिलते हैं। कौन-से? जिनकी महत्ता गायी गई है; जिनका यशगाया गया है; जिनकी महिमा गायी है; जिनका गुण गाया गया है। राम के नाम के ये गुण हैं। देखिये, सब सही हैं; लेकिन सब सही तब हैं—
‘‘राम नाम सब कोई कहे, दशरथ कहै न कोइ।
एक बार दशरथ कहे कोटि यज्ञ फल होइ।।’’
हमारी समझ में नहीं आया। पचास साल की हमारी कामनाएँ जब राम में समन्वित हो जाती हैं, राम नाम को समर्पित हो जाती हैं, तब वह राम का नाम फल देता है—
सहज राम को नाम है, कठिन राम को काम।
करत राम को काम जब, पड़त राम को काम।।
राम का काम करने में आदमी के प्राण निकलते हैं और राम का नाम लेने में सब उस्ताद, सब होशियार। रामचन्द्रजी बेचारे आए थे, मर्यादा सिखाने के लिए, तो मर्यादा सिखाने के लिए सारी जिन्दगी भर चिल्लाते रहे—अरे लोगो! मर्यादाओं का पालन करना—मर्यादाओंका पालन करना। अरे साहब! कौन झगड़े में पड़े, मर्यादा-वर्यादा के पालन करने में। तो फिर आप क्या करना चाहते हैं? हम तो एक काम करेंगे। रामचन्द्रजी की मूर्ति बनाकर लाएँगे। काहे-की मूर्ति बनाकर लाएँगे आप? लोहे की बनाकर लाएँगे। बस, रामचन्द्रजी कोकपड़े पहनाएँगे, मुकुट पहनायेंगे, चन्दन लगायेंगे और धूप-बत्ती दिखायेंगे और ये सब पहनाने के बाद में बस रामचन्द्रजी के विश्वास के अधिकारी हो जाएँगे। रामचन्द्रजी के कैसे अधिकारी हो जाएँगे? ऐसा नहीं हो सकता—ये नहीं हो सकता। रामचन्द्रजी जिस काम केलिए दुनिया में आए थे, जो सिखाने के लिए आए थे, बात बताने के लिए आए थे, उनको आप सीखिये। नहीं साहब! वह तो हम नहीं सीखेंगे। रामचन्द्रजी की शक्ल बनाएँगे, मूर्ति बनाएँगे, नैवेद्य चढ़ाएँगे। अच्छा हुआ शिवाजी और राणा प्रताप अभी-अभी हुए हैं नहीं तोअब तक राणाप्रताप और शिवाजी के भी मन्दिर बन गए होते। लोगों ने राणा प्रताप का जप करना शुरू कर दिया होता। राणाप्रतापाय नमः राणाप्रतापाय नमः, शिवाजी नमः—शिवाजी नमः शिवाजी नमः। ये काहे के लिए जप कर रहा है? घर जाऊँगा। काहे से घर जाऊँगा? मंत्र जप के प्रताप से। और योद्धा कैसे बन जाएगा? जप करने से और महात्मा कैसे हो जाते हैं? महात्मा बेटे! हो जाते हैं —— ‘महात्मा गाँधी नमः—महात्मा गाँधी नमः’ से और रुपये वाला? रुपये वाला घनश्यामदास बिरला नमः-घनश्यामदास बिरला नमः। अ ह हह! जप करने से सब मिल जाएगा! मूरख-मूरख! हरफों के उच्चारण करने से तू ये समझता है कि तुझे ये मिलने वाला है, मुझे ये मिलने वाला है। अनुभव के पीछे हमारे उद्देश्य छिपे हुए पड़े हैं और जिनके हम अनुभवों का उच्चारण करते हैं और ये चाहते हैं कि हमउनके अनुयायी बनेंगे, उनके पीछे चलेंगे, उनका उद्धार करने के लिए शिक्षा ग्रहण करेंगे, जीवन को उस ढाँचे में ढालेंगे। बस, ये उद्देश्य है। अगर ये समझ में आ जाए, तो मजा आ जाए राम के नाम का। राम का नाम क्या है बेटे? हमारी जीवात्मा, हमारा अन्तःकरणग्यारह-ग्यारह विद्यार्थियों को पाठ पढ़ाता है। ये ग्यारह विद्यार्थी कौन हैं? ग्यारह विद्यार्थी वह हैं, जिनको हम दस इन्द्रियाँ कहते हैं और एक कहते हैं—मन।
ग्यारह विद्यार्थी बैठे रहते हैं। उनको हम सिखाते हैं—ये भूल गए, भटक गए। जैसे बच्चे को याद कराते हैं—पहले क ख ग घ ङ पढ़ो। क ख ग घ ङ पढ़ो-लिखो, हम बोलते जाते हैं। वह भी बोलते जाते हैं, दोनों बोलते जाते हैं। याद हो जाते हैं—क ख ग घ ङ ग्यारह विद्यार्थीजो बड़े ढीठ हैं, बड़े बुद्धिमान हैं, बाकी सब पढ़ने को तैयार हैं; लेकिन राम का नाम पढ़ने के लिए तैयार नहीं है।
हमारी जीवात्मा इन ग्यारह विद्यार्थियों को पढ़ाती रहती है—रट ‘राम’, कह ‘राम’। साहब! मैं ‘राम’ तो नहीं कहूँगा। राम-राम कहना पड़ेगा। राम कहने के लिए-मित्रो! हम अपनी अन्तःचेतना से अपनी क्रियाओं को, अपने मन को, अपनी भावनाओं को इन तीनों कोशिक्षण करते हैं और अगर राम का नाम हमारे जीवन में आ जाए तो मजा आ जाए! अगर वह आपकी जीभ की नोंक से भीतर चला जाए, अगर आप गले में ले जाएँ, कण्ठ में ले जाएँ, हृदय में ले जाएँ और खून में शामिल कर लें, मन में भर लें, तो बेटे! ये तो दवा है, जिसको संजीवनी बूटी कहते हैं। राम के नाम के महत्त्व के बारे में कितना लिखा है? रामायण में लिखा है, यहाँ लिखा वहाँ लिखा है; लेकिन साथ-साथ में यह भी लिखा कि इसको जीभ की नोक से उतारना पड़ेगा, श्रद्धाओं में उतारना पड़ेगा और मान्यताओं में उतारनापड़ेगा। अगर आप श्रद्धाओं में और मान्यताओं में उतारने के लिए तैयार हो जाएँ, तो बेटे! फिर तो मजा आ जाएगा तेरी जिन्दगी में! राम का नाम क्या है? राम का नाम एक शराब है, राम का नाम एक नशा है, राम का नाम एक मस्ती है। मस्ती है ऐसी जोर की मस्ती है, जिसको हम पीते तो हैं थोड़ी देर जैसे भाँग पी ली थोड़ी देर; पी लेने के बाद में १५ मिनट के बाद में—१० मिनट के बाद में—५ मिनट के बाद में नशा आ गया—राम के नाम की खुमारी होती है, मस्ती होती है, खुशी होती है, फिर आदमी झूमता रहता है। झूमने के बाद मेंउसकी दुनिया अलग हो जाती है, उसके विचार अलग हो जाते हैं, सोचने के तरीके अलग हो जाते हैं फिर वह अलग तरह का हो जाता है। सामान्य लोग तो विचार करते रहते हैं, वह तो जाने किस मस्ती में, जाने किस खुशी में, किस जोश में घूमता रहता है राम के नाम कानशा पी करके। राम का नशा पी करके—ये मार दूँगा कोई सामने आया तो। जानता नहीं है शिवोऽहम् सच्चिदानन्दोऽहम् अयमात्मा ब्रह्म—हम भगवान के बेटे हैं, भगवान के पुत्र हैं और भगवान की सम्पत्तियों के अधिकारी होकर आए हैं। हम सत्, चित् और आनन्द हैंऔर हम अपनी आन पर सारी दुनिया को डुबो सकते हैं और स्वयं डूबे हुए रह सकते हैं। ये मस्ती है।
हवाई जहाजों के सफर हमको करने पड़े हैं कई बार। हवाई जहाजों के सफर में जब कभी भी हमने चढ़कर देखा है नीचे वाली चीजें बहुत छोटी-छोटी मालूम पड़ती हैं। रेलगाड़ी चलती हुई देखी है? ऐसी मालूम पड़ती है कोई गिलहरी रेंग रही हो और जब गाय-बैलों के समूहआते हैं, तो मालूम पड़ते हैं यात्रियों को, जैसे छोटे-छोटे मच्छर घूम रहे हैं। मनुष्य ऐसे मालूम पड़ते हैं, जैसे कोई क्या बैठा हुआ है। गन्ने के खेत ऐसे मालूम पड़ते हैं, जैसे घास उगी हुई हो; छोटी मालूम पड़ती हैं। देखिये, जब हवाईजहाज में बैठकर सफर करते हैं, तो वहचीजें, जिन्हें पाने के लिए आप व्याकुल हो रहे होते हैं, जिनके लिए आप मरे जा रहे होते हैं, कि बिल्कुल वाहियात चीजें हैं, नाचीज चीजें हैं, इनमें रखा क्या है और जो चीजें अब आपको ऐसी मालूम पड़ती हैं, जिनको आप भूल गए हैं और जान नहीं पाते हैं, वह आपकोदिखाई पड़ती हैं, उस हिस्से में कब? जब आपको राम के नाम की मस्ती आती है और राम के नाम का नशा आता है तब। राम के नाम का नशा कभी आया है? नहीं, बेटे! राम के नाम का नशा कभी नहीं आया है। राम के नाम की मस्ती कभी आई है? राम के नाम की कभीमस्ती नहीं आई है आपको। राम के नाम की मस्ती आती, तो आपकी आँखों में चमक दिखाई पड़ती, खुशी दिखाई पड़ती, उत्साह दिखाई पड़ता; क्योंकि हम भगवान के अंश हैं, भगवान के पुत्र हैं। उन चीजों के लिए आप नाखुश दिखाई पड़ते हैं, जो किसी काम की नहीं हैंआपके लिए और जिनसे आप कोई फायदा नहीं उठा सकते। आप क्या फायदा उठा सकते हैं, बताइये जरा? नहीं साहब! हमको पैसा मिल जाएगा, तो बहुत फायदा होगा। अच्छा पैसा हम दिलाते हैं, पर आप उसे इस्तेमाल करके दिखाइये। भगवान ने हर आदमी के लिएकोटा मुकर्रर कर दिया है। इससे एक दाना ज्यादा नहीं खा सकता। आपका कोटा मुकर्रर है। आप चार रोटी खाइये, छठवीं रोटी खाएँगे तो आपके गाल पर ऐसा चाँटा पड़ेगा कि आपको उलटी हो जाएगी और टट्टी निकल पड़ेगी। छह रोटी खाइये, दिखाइये छह रोटी खाकर के, तब हम जानेंगे कि आप बड़े अमीर आदमी हैं। चार रोटी से पाँचवीं रोटी छुइए मत, जान ले ली जाएगी आपकी। तीन गज कपड़े का कोटा मुकर्रर है। हम तो साहब! अमीर आदमी हैं। अमीर आदमी हैं तो आप २६ गज का कुर्ता पहनकर दिखाइये। नहीं साहब! २६ गज काकुर्ता नहीं पहन सकते। क्यों? आप पहनिये न, आप अमीर हैं न! नहीं साहब! अमीर हैं, तो हम क्या कर सकते हैं। ये तीन गज का ही कुर्ता पहनेंगे। आप अमीर हैं? अमीर हैं, तो २० गज की चारपाई पर सोकर दिखाइये। अरे महाराज! २० गज की तो हमारे मकान में भीनहीं है। २० गज की चारपाई पर कैसे सोयेंगे? कितने फुट की चारपाई पर सोयेगा? छह फुट की चारपाई पर सोऊँगा। बस, छह फुट पर तो हम भी सोते हैं, गरीब भी सोते हैं। तू क्या सोता है? तू तो अमीर है! क्या अमीर है तू? मित्रो! हर आदमी के लिए मुकर्रर कोटा तय है।उतना ही इस्तेमाल कर सकता है। इससे ज्यादा छू नहीं सकता, ज्यादा कोई पा नहीं सकता। फिर जिन चीजों के लिए आप व्याकुल हो रहे हैं, पागल हो रहे हैं, वह चीजें केवल दुनिया की हैं, यहीं की हैं और यहीं रहने वाली हैं। आप इसको देख लीजिये, छुइए मत। आप इन्हेंछू नहीं सकते।
सिकन्दर जो था। सिकन्दर ने जिन्दगी भर बेहद पैसा जमा किया। मरने के वक्त जब लोगों से उसने ये पूछा कि लाइये जो पैसा हमने जिन्दगी भर कमाया है, दीजिये हम लेकर के जाएँगे। लोगों ने उसका सारा पैसा जमा कर दिया कि सोना ले जाइये, जवाहरात लेजाइये, सब कुछ ले जाइये। फिर आप भेजिए? हम कैसे भेज सकते हैं? आप ले जाइये, यह जाएगा नहीं। नहीं, यह नहीं जा सकता है। सिकन्दर को आया होश। आपको भी अगर होश पहले आ जाए, तो मजा आ जाए। सिकन्दर को होश आया, उसने कहा कि जो चीजें नहींजा सकती हैं हमारे साथ; जो दूसरे लोगों के लिए हैं; जो हमारे साले के लिए हैं, बहनोई के लिए हैं, जमाई के लिए हैं, बेटे के लिए है, पड़ोसी के लिए हैं, गवर्नमेण्ट के लिए हैं और टैक्स वसूल करने वालों के लिए हैं, उनका हम क्या करेंगे! आपके लिए नहीं हैं, छुइये मत।देखिये, छुएँगे, तो आपके पाँव जल जाएँगे। छूना मत कभी। बस इसको आप दूर से देखिये। खुशी मनाते हैं, मनाइए, आपकी मर्जी की बात है। रंज मनाते हैं, मनाइए; लेकिन आप इन्हें छू नहीं सकते। बस, सिकन्दर की वह चीजें जहाँ-की पड़ी रह गईं। सिकन्दर जो थारोया और उसने ये कहा—हमको ये मालूम होता कि ये सारी चीजें हमारे साथ नहीं जाने वाली हैं, तब फिर हमने दूसरे तरह की जिन्दगी जी होती। फिर हमने सिकन्दर की जिन्दगी नहीं जी होती, फिर हमने ईसामसीह की जिन्दगी जी होती, फिर हमने सुकरात कीजिन्दगी जी होती, फिर हमने बुद्ध की जिन्दगी जी होती। ऐसी शानदार जिन्दगी जी होती कि हमारे लिए मजा आ जाता और दुनिया के लिए मजा आ जाता। देखिये, हमारी आँखें खुलें और कोई राम नाम का अंजन हमारी आँखों में लगा दे, तो हमको अपना भाग्यदिखलायी पड़ने लगे, भविष्य दिखायी पड़ने लगे, जिन्दगी दिखायी पड़ने लगे, मौत दिखायी पड़ने लगे, नफा दिखायी पड़ने लगे, नुकसान दिखायी पड़ने लगे हमको, जो अभी बिल्कुल नहीं दिखायी पड़ता। आँखों में ऐसा कोई अंजन लगा दे कि हमको दिखायी पड़ने लगे।देखिये, अभी इस कदर अन्धे हैं कि हमको न लाभ दिखाई पड़ता है, न हानि दिखाई पड़ती है। हमको लाभ में हानि दिखाई पड़ती है और हानि में लाभ दिखाई पड़ती है। द्रौपदी का पाण्डवों ने घर बनाया था, जिसमें दुर्योधन चला गया था। पानी में उसको दिखाई पड़ता थासूखा, सूखे में पानी दिखाई पड़ता था। द्रौपदी कहने लगी—अन्धों के अन्धे होते हैं। बेटे! वह हालत हमारी है। हमको नफे में नुकसान दिखाई पड़ता है, नुकसान में नफा दिखाई पड़ता है। जिन्दगी को हम कहाँ इस्तेमाल कर सकते हैं? उस काम में हमको नुकसान दिखाईपड़ता है। जिन्दगी का फायदा क्या हो सकता है? जिन्दगी हम कहाँ इस्तेमाल कर सकते हैं? यह सारी-की बातें हमको गलत मालूम पड़ती हैं और जो चीजें, जो बातें हमारे लिए केवल नुकसान की हैं, हमारे हीरे और मोतियों जैसी जिन्दगी को तबाह कर रही हैं और छलकरके हमारे जीवन को बरबाद करती चली जा रही हैं। उनमें हमको नफा मालूम पड़ता है; उनमें हमको लाभ मालूम पड़ता है; उसके लिए हम व्याकुल मालूम पड़ते हैं; उसके लिए हम बेचैन मालूम पड़ते हैं। ये बेटे! ये क्या हो रहा है? हमारी अक्ल खराब हो रही है। अकलकी खराबी की प्रार्थना के लिए हम भगवान को पुकारते हैं—‘‘धियो यो नः प्रचोदयात्’’—धियो यो नः प्रचोदयात्’’ ये हमारी अकल ऐसी गन्दी हो गई है, हे भगवान्! हथौड़ी लाकर के इसे फोड़कर मेरी खोपड़ी में लगा दो, ताकि हमको विचार करने का तरीका मालूम हो जाए।हमको अपना नफा किसमें है, नुकसान किसमें हैं? यह मालूम हो जाए। न हम अपना नफा समझ पा रहे हैं, न हम अपना नुकसान समझ पा रहे हैं। जिन्दगी के हीरे और मोतियों की माला को हम एक-एक करके पानी में नोचते और फेंकते चले जा रहे हैं। हे भगवान! हमको क्या हो गया है! हम कैसे पागल हो गये हैं! इसलिए हम गायत्री मंत्र का जप करते हैं। गायत्री मंत्र के जप का यही उद्देश्य है। गायत्री मंत्र के जप का उद्देश्य यह नहीं है, जैसा आपने समझ रखा है। गायत्री मंत्र के जप का उद्देश्य यह है कि राम हमारे जीवन में आए।राम हमारे जीवन में जब आएँगे, तब उसका तरीका क्या हो जाएगा? रूप क्या हो जाएगा? तरीका देखिये विलक्षण हो जाएगा, असाधारण हो जाएगा। किसका? राम के नाम का। क्या तरीका हो जाएगा? उसका तरीका यह हो जाएगा कि हम गलतियाँ नहीं कर सकते।
एक था चोर और एक था उसका बेटा। चोर खेत काटने के लिए गया कहीं और अपने बेटे को वहाँ खड़ा कर दिया टीले पर। बेटे! देखना कहीं ऐसा न हो कि खेत का मालिक आ जाए। खेत का मालिक आ जाएगा, तो हमको पकड़ लेगा। पता लगाते रहना, देखते रहना। खेतका मालिक आता हो, तो चिल्ला पड़ना, हम वहाँ से भाग खड़े होंगे। बस, बेटा थोड़ी देर तो खड़ा रहा, फिर एक बार चिल्लाया—पिताजी! भागिए! पिताजी! भागिए!! वह आ गया मालिक। बस, पिताजी भागे और बच्चा भी भागा। दोनों भागे। भागने के पश्चात् जब थोड़ाथक गए, और जब कुछ दूर चले गए, तब पूछा बेटे! कहाँ था वह मालिक। उसने कहा—मालिक! सारी-की दुनिया का मालिक, जिसकी हजार आँखें हैं, उससे हम छिपाव नहीं कर सकते। वह छिपे हुए की भी तलाश करता रहता है, जानकारी की भी तलाश करता रहता है।घर-घर में उसकी आँखें काम करती हैं। उससे हम बच के कहीं छिप नहीं सकते थे, इसलिए मैं चिल्लाया, भगवान् देख रहे हैं, हमको और आप भागिए। अगर आपका मन भगवान् में हो और भगवान आपको दिखाई पड़ते हों, तो आपको इस मायने में दिखाई पड़नाचाहिए कि वह सर्वशक्तिमान रोम-रोम में समाया हुआ है और हम छिप करके भी कुछ नहीं कर सकते और खुल्लमखुल्ला भी कुछ नहीं कर सकते। यह बात समझ में आ जाए, तो हमारी जिन्दगी वैसी हो जाए, जैसी भगवान के भक्तों की होती है। भगवान के भक्तों कीजिन्दगी हो, तब मैं ये समझूँ कि आपमें भगवान की भक्ति है; पर भगवान की भक्ति तो है नहीं, जिन्दगी का वह तरीका तो आप में है नहीं। जिन्दगी का तरीका तो बस, चोर और चमारों जैसा है। आप जुबान से कहते हैं—हम भक्ति करते हैं, भजन करते हैं। आपकाकैसा भजन और कैसी भक्ति हो सकती है? बेटे! न ये भजन है, न ये भक्ति है। ये भजन का ढोंग है। और ये भजन की विडम्बना है, जो हमने और आपने पकड़ रखी है। भगवान की भक्ति आपके पास अगर है, तो उसका तरीका अलग होना चाहिए। क्या होना चाहिए? इस तरह का होना चाहिए जैसा कि नारद जी ने समझा दिया था डाकू को। अरे बेटे! तू राम का नाम ले और ये क्या करता है! गलत-सलत काम करता है! हाँ ठीक है, अब राम का नाम लूँगा। बाल्मीकि ने राम का नाम लिया, जिससे डाका डालना बन्द, चोरी करना बन्द, खून करना बन्द, कत्ल करना बन्द। राम का पल्ला पकड़ा, तो राम का नाम लूँगा, राम का काम करूँगा। रावण का पल्ला पकड़ना है, तो रावण का नाम लूँगा, रावण का काम करूँगा। राम का पल्ला पकड़ा उसने और जिन्दगी राम के ढाँचे में ढाल दी। राम के ढाँचे में ढालदेने के पश्चात् मित्रो! कैसे हो गए वाल्मीकि? मैं क्या कह सकता हूँ आपको। वाल्मीकि ऐसे हो गए कि तमाम जगह उनको राम नाम दिखाई पड़ने लगा—सियाराममय सब जग जानी। राम का नाम अगर आप लें, तो आपको सारी-की दुनिया में राम दिखाई पड़ना चाहिए—
सियाराममय सब जग जानी।
करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी।।
प्रत्येक मनुष्य के अन्दर राम, प्रत्येक लड़की के अन्दर सिया। हमारी दोनों आँखों में से सिया और राम के दर्शन होने चाहिए। अगर दोनों के दर्शन होंगे, तो हम राम के साथ में किस तरीके से बेईमानी करेंगे? चालाकी कैसे करेंगे? मक्कारी कैसे करेंगे? चीट कैसे करेंगे? धोखा कैसे करेंगे? आपके साथ में बुरा व्यवहार कैसे करेंगे? आप राम हैं—हम कैसे कर सकते हैं? हमारी एक आँख में राम बना हुआ है। हम प्रत्येक मनुष्य को राम मानते हैं। ऐसी हालत में हम आपके साथ अनीति और विश्वासघात कैसे कर सकते हैं? अगर हम रामजप को जानते होंगे, तो हमारा जीवन किस तरह का होगा? प्रत्येक कन्या के प्रति, प्रत्येक लड़की के प्रति हमारी आत्मा में हमारी आँखों में सिया की वृत्ति होगी। किसी के साथ में सीता माता आ जाएँ, पार्वती माता खड़ी हों, लक्ष्मी माता खड़ी हों, गायत्री माता खड़ी हों, तोहम सीटी बजायेंगे? गन्दे गीत गाएँगे? गन्दे इशारे करेंगे? गन्दी आँखों से देखेंगे? आँखें खराब हो जाएँगी। तेरी आँखें फूट जाएँगी। सीताजी के साथ में ऐसे गन्दे ढंग से पेश आते हैं। ये सब क्या है? इस तरह की आँखें हमारे पास आएँ, तो राम का नाम हमको फल देताहुआ चला जाए, चमत्कार दिखाता हुआ चला जाए। इसी तरह के राम को तलाश करने के लिए और ढूँढ़ने के लिए हमको राम के नाम में रम जाने की इच्छा है। हम चाहते हैं—हम राम के नाम में रंग जाएँ। क्रान्तिकारी जेलखानों में, कैदों में गाया करते थे—‘मेरा रंग देबसन्ती चोला।’ अपना चोला बसन्ती रंग में, राम के नाम के रंग में हम रंगना चाहते हैं। रँगने के लिए और रमने के लिए हम बार-बार पुकार करते हैं—हमको कहाँ जाना है? कहाँ देखना है? हमारा लक्ष्य क्या हो सकता है? राम की सुगन्ध से हम सुगन्धित बनना चाहतेहैं, इसलिए हम उसके नजदीक बैठते हैं, हम उसके पास बैठते हैं। गुलाब के फूल गिरा करते हैं मिट्टी के ऊपर। सारी मिट्टी जो है, वो महकने लगती है। चंदन के नजदीक झाड़ियाँ उगी रहती हैं और पेड़ उगे रहते हैं, वे खुशबूदार हो जाते हैं। हम राम के नाम के नजदीक उगेरहना चाहते हैं झाड़ियों के तरीके से, ताकि भगवान की जो खुशबू है, वह हमारे भीतर भी आ जाए। राम नाम के गुलाब के बगीचे के नीचे हम रोजाना प्रार्थना करते हैं—अभी और एक फूल टपकाइए और एक फूल टपकाइए, ताकि आपकी सुगन्धि हमारे मिट्टी के ढेर में भीआ जाए। हमारी जिन्दगी में राम-राम की भक्ति आ जाए तो मजा आ जाए। बेटे! हम आपको जप इसलिए कराते हैं, अनुष्ठान इसलिए कराते हैं; बार-बार करने के लिए इसलिए कहते हैं, २४००० जप करने के लिए कहते हैं, २४०० जप करने के लिए कहते हैं, २४ लाखजप करने के लिए कहते हैं यह सब हम इसलिए कहते हैं कि राम के नाम से आपकी धुलाई होनी चाहिए और राम के नाम से आपकी सफाई होनी चाहिए।
राम के नाम की धुलाई, राम के नाम की सफाई—राम का नाम क्या है? साबुन है बेटे! हम रोजाना सफाई करते हैं। काहे की सफाई करते हैं? अपने शरीर को स्नान कराते हैं। काहे से स्नान कराते हैं? पानी से धोते हैं और कपड़े साबुन से धोते हैं और दाँत मंजन से माँजते हैंऔर कमरा झाड़ू से साफ करते हैं और अपनी बुद्धि को और अपनी अक्ल को, जो सारे-के वातावरण से रोज गन्दी होती है, इसकी हम राम के नाम से सफाई करते हैं। सफाई हमारा उद्देश्य है। नहीं साहब! राम के नाम में चमत्कार होता है, जादू होता है, न जादू होता है नचमत्कार होता है। मन की सफाई एकमात्र राम का उद्देश्य है साबुन के तरीके से और पानी के तरीके से। ‘रा’ और ‘म’, ‘रा’ और ‘म’—राम नाम हम लेते हैं, इसका अर्थ साबुन और पानी—साबुन और पानी है। दाँत को मंजन से हम साफ कर लेते हैं। नहीं करेंगे तो मुँहमें से गंध आएगी और बदबू आ जाएगी। राम का नाम हम नहीं लेंगे, तो हमारे जीवन में मलीनता जा जाएगी, पाप आ जाएगा और मलीनता को अगर हम साफ कर डालें, तो अंगारे के तरीके से हमारे ऊपर से परतें हट सकती हैं और हम फिर, चमकदार अंगारा जिसतरीके से राख की परत हटा देने के बाद में चमकता है, फिर हम चमकने लगेंगे। ये हैं उद्देश्य जप करने का, भजन करने का। हम रोज धो रहे हैं, बार-बार धो रहे हैं। अरे! एक बार धो लीजिये, बार-बार नहीं। नहीं, एक बार नहीं, हमको कई बार धोना पड़ेगा। आप मिट्टी सेकितनी बार माँजते हैं हाथ? देखिये, हम पाखाना हो करके आए हैं, टट्टी होकर के आए हैं। तो क्या कर रहे हैं? माँज रहे हैं। अरे! तो एक बार माँज लीजिये न। नहीं साहब! एक बार नहीं, कई बार माँजेंगे। थोड़ी मिट्टी ले लीजिये आप, धो लीजिये। नहीं, ऐसे कैसे ले लेंगे? सारे हाथ-पाँव कई बार माँजेंगे। बार-बार माँजेंगे और ये क्या कर रहे हैं? मंजन। एक बार माँज लीजिये। देखिये, एक बार में दाँत साफ नहीं होते, इसलिए हम बार-बार रगड़ेंगे—बार-बार घिसेंगे। इसी प्रकार बार-बार राम का नाम लेने के लिए रिपिटीशन करने के लिए जपको हम बार-बार कराते हैं, ताकि हमारे दाँतों की सफाई अच्छे तरीके से हो जाए, ताकि हमारे कपड़े पर साबुन की घिसाई अच्छे तरीके से हो जाए। बार-बार हम झाडू लगाते हैं, ताकि हमारा कमरा बराबर साफ रहे। हमको अपनी मलीनता को साफ करने के लिए राम कानाम लेना है, चमत्कारों के लिए नहीं, पैसे के लिए नहीं, बेटे के लिए नहीं। अक्ल से काम कीजिये और जिन्दगी को अपने पुरुषार्थ के बलबूते पर हाँकिए। जिस उद्देश्य का नाम राम-नाम है, उसको पकड़ते नहीं हैं, दूसरे उद्देश्यों को समझते रहते हैं। राम के नाम का जपजो हमने यहाँ कराया, उसका पहला वाला पाठ हम ये पढ़ने वाले थे कि उपासना का लक्ष्य और उद्देश्य आप समझिये।
ये मैंने ज्ञान भाग बताया। अब मैं विज्ञान भाग बताता हूँ। अध्यात्म-क्षेत्र में ज्ञान और विज्ञान दोनों का समन्वय है। केवल ज्ञान ही ज्ञान नहीं है, विज्ञान का भाग भी है। विज्ञान का भाग क्या है? विज्ञान का बेटे! भाग है शब्दों की शक्ति। शब्द भी है, शक्ति भी है। जिसतरीके से बहुत सारी शक्तियाँ होती हैं, उस तरीके से शब्द की भी एक शक्ति है। शब्द की शक्ति का हम इस्तेमाल करते हैं। शब्द की शक्ति क्या है? शब्द की शक्ति बताता हूँ। किसी मिलिट्री वाले से पूछना—क्यों साहब! जब आपकी मिलिट्री पुल पर से होकर केनिकलती है, तो आपके जो सिपाही होते हैं, खटपट-खटपट, लेफ्ट-राइट, लेफ्ट-राइट ऐसे चलाते हैं? वाह! ऐसे कैसे चल सकते हैं। तो क्या करते हैं? हम ये कहते हैं पैर-से मिला करके चलिये मत। नहीं हम तो ऐसे ही चलेंगे, जैसे हमको चलना चाहिए। ऐसे नहीं चलेंगे।अगर हम ऐसे चलेंगे, तो हमारे अन्दर ताल की जो शक्ति है—ताल की एक शक्ति होती है, इतनी जबरदस्त होती है कि आप टाँग-से मिला करके चलें तो आप लोहे के पुलों में छेद कर सकते हैं और पुल गिराये जा सकते हैं। ये शब्द की शक्ति है और शब्द की शक्ति में भीताल की शक्ति है। ताल अपने आप में एक अलग चीज है। ताल क्या चीज है? क्रमबद्धता। राम के नाम का हम उच्चारण करते हैं, गायत्री मंत्र का जब हम उच्चारण करते हैं शब्द विज्ञान के आधार पर, तो ताल मिलाते हैं—एक क्रमबद्धता मिलाते हैं। आपको मैं येप्रयोग करके तो नहीं दिखा सकता; मगर आप इस बात पर यकीन कर सकते हैं। आप एक छत में सौ मन का एक गार्डर टाँग दीजिये और ऐसा कीजिये कि जो कार्क आते हैं शीशी में लगाने के एक ग्राम भारी कार्क, जरा-सा कार्क एक रस्सी में बाँध दीजिये। उस पर बिजलीके तार से ऐसा कोई कनेक्शन कर दीजिये कि वह जो कार्क है, सौ मन वजनी गार्डर के ऊपर तना हुआ, उस पर एक क्रम से चोट मारे, बिना क्रम के नहीं। कभी धीमी, कभी तेज—ऐसे नहीं। एक क्रम से चोट मारें। चोट न भारी हो, न हलकी हो, उतने ही सेकेण्ड से वैसे हीढंग से उतनी ही चोट उसमें सेकण्डों का भी फर्क न हो, बिल्कुल टाइम उसी तरह का मिला हुआ हो। अगर आप ऐसा कर सकें इन्तजाम, तो आप देखेंगे कि थोड़े समय में ही वह सौ मन का गार्डर काँपने लगा और थरथराने लगा। क्यों? वह जो कार्क है, वह तो जरा-सा है? लेकिन वह क्रमबद्धता—वह ताल—ताल की शक्ति इतनी जबरदस्त है कि वह काँपने लगता है और थरथराने लगता है। शब्दों का उच्चारण, शब्दों का जप जब तालबद्ध हो करके, क्रमबद्ध हो करके हम करते हैं, तो एक साइन्स पैदा होता है, जिसे शब्द की साइन्सकहते हैं। ये मैं आपको भौतिक-विज्ञान समझा रहा हूँ। ये मैं फिजिक्स समझा रहा हूँ। फिजिक्स हमको यह सिखाता है कि हमारे शब्दों के उच्चारण अगर क्रमबद्ध हों, तो बड़े-बड़े चमत्कार देखे जा सकते हैं।
इसी विज्ञान के अन्तर्गत जप करने की विधि भी आती है। जरा उसे ठीक से किया जाए, हम उसका क्रम बनाते हैं, हम एक गति बनाते हैं, पैनी धार बनाते हैं, तो कमाल हो जाता है। एक सूत्र आता है, जिसमें ये बताया गया है कि जप कैसे करना चाहिए—तेल की धारा कीतरह। तेल की धारा कैसे? जिसमें छिन्न-भिन्न न होने पावे धारा, खंडित नहीं होने पावे, बिना विराम दिये, बिना रोक-थाम के एक गति से चक्र घूमता रहे। इसको हम कहते हैं—गति और ये है जप करने की विधि। इस तरीके से आप जप करें, जिसमें विराम की गुंजाइशन हो, रोकने की गुंजाइश न हो, चाल-व्यतिक्रम की गुंजाइश न हो। चाल का ये नियम बनाया जाए, हमारी चाल कितनी होनी चाहिए? चाल का एक क्रम बना हुआ है, जैसे एक घण्टे में १० माला और ११ माला तो होनी ही चाहिए। इसमें विराम नहीं होना चाहिए। इसमेंइतनी तेजी होनी चाहिए कि एक गति का क्रम बना रहे। एक गति का क्रम बन जाता है, तो फिर क्या हो जाता है? क्या है पहचान की आपकी गति ठीक बन रही है कि नहीं? क्या पहचान है इसकी कि स्पीड (गति) इतनी होती है, न वह मन्द, न वह तेज की हम पहलाअक्षर और अन्तिम अक्षर का पता लगा सकें। बाल्मीकि को राम के नाम की गति का ठीक ढंग आता था। राम नाम का जप करता था। सुनने वालों की समझ में ये आया कि ये ‘राम-राम’ नहीं जप रहा है। क्या जप रहा है? ये ‘मरा-मरा’ जप रहा है। ‘राम-राम’ कैसे? और ‘मरा-मरा’ कैसे? राम-राम में और मरा-मरा में देखिये, जब चक्र बन जाएगा, सर्कल बन जाएगा, तो कुछ पता ही नहीं चलेगा कि राम-राम बोल रहा है कि मरा-मरा बोल रहा है। राम राम राम राम राम—ये क्या बोल रहा हैं गुरु जी? बेटा! तू समझ ले। चाहे मरा-मरासमझ ले, चाहे राम-राम समझ ले। ‘म’ से शुरू करेगा तो ‘रा’ पर खत्म करना पड़ेगा और ‘रा’ से शुरू करेगा तो ‘म’ पर खत्म करना पड़ेगा। बात एक ही है। राम नाम भी हो सकता है मरा-मरा भी हो सकता है। बाल्मीकि के बारे में जो ये बताया गया है कि बाल्मीकि रामनाम नहीं जपते थे—‘‘उलटा नाम जपा जग जाना’’ तू जप उलटा जैसे मैं बताता हूँ, तू उसी स्पीड (गति) से जप, तो तेरा नाम भी सीधा हो जाएगा। कैसे जपूँ गुरुजी! मरा-मरा जप? कैसे मरा-मरा जपूँ? ऐसे जप कि उसका पहिया ठीक से घूम जाए। पहिये में विराम नहींआए। विराम आ जाएगा, तो गड़बड़ फैल जाएगी, जैसे मरा मरा मरा मरा—ये तो राम-राम हो गया गुरुजी! मरा-मरा कह रहे थे। देखिये, मरा और राम में फर्क तब पड़ेगा, जब कहीं-न उसमें विराम होगा। विराम के ऊपर हो सकता है फर्क। विराम यदि नहीं होगा, तो फिरक्या हो जाएगा? एक गति बन जाएगी। गति बन जाती है, तो गति की शक्ति अलग बन जाती है हमारे शरीर में। आपने देखा होगा बच्चे फिरकनी फिरा देते हैं, घूमती भी रहती है और खड़ी भी रहती है। यदि गति बन्द कर दें, तो गिर पड़ेगी। गति से शक्ति पैदा होती है।जो ये बच्चे लट्टू फिराते हैं, लट्टू फेंक दिया, लट्टू धुरी पर खड़ा हुआ घूम रहा है—घूम रहा है, खड़ा हुआ भी है। ये बाबूजी! ये क्या हो रहा है? गिरेगा कैसे? ये गति से घूम रहा है। गति से शक्ति पैदा होती है। अक्षरों का उच्चारण, शब्दों का उच्चारण अगर हम गति के क्रमसे ठीक करें तो उसके अन्दर एक शक्ति पैदा होती है, जिसको हम कहते हैं—सेण्ट्रीफ्यूगल फोर्स (केन्द्रापसारी बल)—शब्दों की गति। गति से क्या हो जाता है—अच्छा चलिये, उसको हम आपको सेण्ट्रीफ्यूगल फोर्स के उदाहरण देकर समझाते हैं। आपने कभी देखा होगा—बगीचों की रखवाली के लिए, खेतों की रखवाली के लिए किसानों के छोकरे उठाते हैं रस्सियों की एक गोफन। उसमें एक पत्थर का टुकड़ा भर देते हैं। घुमाते हैं, घुमा करके उसे फेंक देते हैं। फेंकने के बाद में वह जो पत्थर का टुकड़ा है, मिट्टी का टुकड़ा इस तेजी के साथआता है कि तेजी के साथ जाने की वजह से अगर कोई भी उसकी चपेट में आ जाए, कोई जानवर चपेट में आ जाए, पक्षी चपेट में आ जाए, तो पक्षी की जान नहीं बच सकती। इतनी ताकत होती है उसमें। ये काहे की ताकत है? बन्दूक की। बन्दूक की तो नहीं है। बारूद की? नहीं, बारूद की भी नहीं है। ये ताकत काहे की है, जिससे सनसनाती गोली चली गई। ये है—बेटे! सेण्ट्रीफ्यूगल फोर्स जो घुमाव से पैदा होती है, गति से पैदा होती है। गति की वजह से हम फेंक देते हैं। हम जप के द्वारा साइन्स के हिसाब से अपने भीतर गति पैदा करते हैंऔर गति से शक्ति पैदा करते हैं और शक्ति से हम चीजों को फेंक सकते हैं। फेंक सकते हैं, हमारे भीतर जो अवांछनीयताएँ हैं, जिसमें हमारी बीमारियाँ भी शामिल हैं, हमारे दुःख भी शामिल हैं, हमारे दर्द भी शामिल हैं, हमारे पाप भी शामिल हैं, दुर्गुण भी शामिल हैं—इनको हम इस तरीके से फेंक सकते हैं, जिस तरह का विज्ञान सेण्ट्रीफ्यूगल फोर्स का है। आपने और भी देखे होंगे। कभी आपने देहात के मेलों में हवाईजहाज देखे हैं? हवाईजहाज आते हैं, वे तमाशे वाले। तमाशे वाले बच्चों को पाँच-पाँच पैसे में हवाईजहाज में बैठाते हैं।बच्चे सब बैठ जाते हैं। पहिया नीचे से घुमाना शुरू करते हैं। हवाईजहाज पहले यों घूमते हैं, फिर उसके बाद में कैसे घूमते हैं? हवाईजहाज फिर चौड़े होते जाते हैं। चौड़े हो जाने के बाद में बिल्कुल ऐसे हो जाते हैं। फिर बिल्कुल ऐसे हो जाने के बाद में यों घूमने लगते हैं।बच्चों को ये मालूम नहीं पड़ेगा कि हम यों चल रहे हैं कि यों चल रहे हैं। बच्चे से पूछो क्यों बेटे! तू बताना यों मालूम पड़ रहा था? नहीं, हमको तो यों सीधा मालूम पड़ रहा था। आपने मौत का कुआँ कभी देखा है? मौत के कुएँ में मोटरसाइकिल वाले मोटरसाइकिल किसतरीके से घुमाते हैं? बिल्कुल उल्टे हो जाते हैं और बीच में चलते रहते हैं और घूमते रहते हैं। उनसे पूछिये क्यों साहब! क्या मालूम पड़ता था? क्यों भाईसाहब! आप तो गिरेंगे नहीं, हमको भी बिठा लीजिए। अच्छा, आपको भी बिठा लेते हैं, आइए बैठ जाइयेमोटरसाइकिल पर पीछे। डरना मत, गिरने नहीं देंगे। अच्छा साहब! बैठ गए। बस, उसने मौत के कुएँ में मोटरसाइकिल इस तरीके से घुमायी और उलटा हो गया कि वह चिल्ला पड़ा—अरे साहब! आप गिरेंगे। नहीं, नहीं गिरेंगे। आपके अन्दर जो अवरोधक शक्ति है, उसको हम काट रहे हैं और हमारे भीतर वह शक्ति काम कर रही है, जिसको हम सेण्ट्रीफ्यूगल फोर्स कहते हैं। फोर्स (बल) काम करते हैं, गिरने नहीं देते। हमारे भीतर जो विशेषताएँ हैं, उनको हम फैला सकते हैं। जैसे हवाईजहाज फैल जाता है, इस तरीके से हमारा फैलाव, हमारा विकास—हमारा आध्यात्मिक विकास, हमारा मानसिक विकास और हमारा भावनात्मक विकास सम्भव है। ऐसा हम कर सकते हैं। ये क्या है? ये बेटे! विज्ञान है जप का। हम फैल सकते हैं, हम चौड़े हो सकते हैं, हम बड़े हो सकते हैं, हमारा विस्तार हो सकता है।काहे से? जप से, विज्ञान से। ये विज्ञान है सेण्ट्रीफ्यूगल फोर्स। आपने एक और भी चमत्कार देखा होगा। आप पानी का एक लोटा लीजिए। उसे भर लीजिये। उसके गले में रस्सी बाँध दीजिये, फिर घुमाइए। उसके अन्दर जो पानी भरा हुआ है, क्या मजाल है कि एक बूँद भीपानी गिर पड़े। जब तक वह घूमता रहेगा, तब तक पानी नहीं गिरेगा। जब आप घुमाना छोड़ देंगे तो पानी गिरेगा। आपके अन्दर जो विशेषताएँ हैं, जो आपकी महत्त्वपूर्ण प्रवृत्तियाँ हैं, आपके अन्दर जो क्षमताएँ हैं, वे सारी-की रोककर रखी जा सकती हैं। बिना गिराये; बिनाविराम दिये; बिना नष्ट किये। उसके द्वारा हम अपने आपको बचाव कर सकते हैं। मनुष्य जीवन में सेण्ट्रीफ्यूगल फोर्स बड़ा महत्त्वपूर्ण है। ये जो मशीनें हैं, उसमें बड़ा वाला पहिया देखा होगा। उसे बस एक बार घुमा देते हैं और वह लगातार घूमता रहता है। येसेण्ट्रीफ्यूगल फोर्स हम आपके भीतर पैदा करते हैं जप के द्वारा और वह शक्तियाँ हमारे अन्दर पैदा करती हैं—सामर्थ्य हम आपके भीतर सेण्ट्रीफ्यूगल फोर्स पैदा करते हैं, ताकि आपके भीतर जो विशेषताएँ हैं, वे जगें और जो आपके भीतर खींचने लायक चीजें हैं, उनकोहम खीचें; जो सँभालकर रखने लायक चीजें हैं, उनको सँभालें और जो फैलाव करने लायक चीजें हैं, उनको फैलावें। अनुष्ठान एवं जप करने के सारे-के ये लाभ हैं।
कभी आपने देखा है, जीभ से शब्दों की उत्पत्ति कैसे होती है? हमारी जो जुबान है, जिससे हम बोलते हैं, आप ये मत समझना कि जीभ के अक्षर यहाँ से हो जाते हैं। इसके अन्दर मसल्स (माँसपेशियाँ) और दूसरी चीजें आपस में मिलती रहती हैं, हिलती रहती हैं। तब कहींजाकर के अक्षरों का उच्चारण होता है। अक्षरों का उच्चारण ऐसे ही नहीं हो जाता। दाँत, होठ, तालु, मूर्धा, जीभ, कण्ठ—इन सभी के सहयोग से होता है। कौन-सा शब्द कहाँ स्टार्ट (शुरू) होगा, इसका अपना नियम है। प्रत्येक शब्द के लिए बहुत सारे कम्पन हैं और इनकम्पनों से बहुत सारी चीजें प्रभावित होती हैं। ये जो हमारे सेल्स (कोशिकाएँ) और जो नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) हैं और जो इनके नर्वस (स्नायु) हैं, वे यहीं कहीं तक नहीं हैं, ये बहुत दूर तक फैल गए हैं, जिनके ग्रन्थियों से सम्बन्ध हैं, उपत्यिकाओं से सम्बन्ध हैं, चक्रोंसे सम्बन्ध हैं, ये चक्र और उपत्यिकाएँ हमारे नर्वस सिस्टम (स्नायु तंत्र) से जुड़े हुए हैं। जिस तरीके से टाइपराइटर की कुंजी में एक टाइप हम यहाँ दबाते हैं और 'T' वहाँ छप गया, 'Y' वहाँ छप गया, 'R' यहाँ छप गया। हर अक्षर के लिए कुंजी यहाँ दबाते रहते हैं औरछपाई वहाँ होती रहती है। हमारे ये चक्र और उपत्यिकाएँ जहाँ कहीं भी शरीर में हैं, वहाँ हम उनके लिए उच्चारण करते रहते हैं और उच्चारण करने के साथ-साथ में उनके द्वारा ये बनता रहता है; उनके द्वारा सामर्थ्य उत्पन्न होती रहती है। बहुत सारी चीजें हैं, जिनकोहम विज्ञान के द्वारा बता और समझा सकते हैं। असल में इसको आप साइकलॉजी (मनोविज्ञान) के हिसाब से मेटाफिजिक्स (अध्यात्म विज्ञान) के हिसाब से और न्यूरोलॉजी (स्नायु विज्ञान) के हिसाब से अगर समझने की कोशिश करें तो समझ सकते हैं कि जप केद्वारा क्या फायदा होता है? ये हमारी चेतना जो है, उसके चार भाग हैं। जो हम पढ़ते हैं, जानते हैं, सीखते हैं, उसके लिए क्या करना होता है? चार हिस्सों में ये पढ़ाई बँटी हुई है। पहली वाली पढ़ाई का नाम है लर्निंग। लर्निंग किसे कहते हैं? लर्निंग बेटे! उसे कहते हैं, जोस्कूलों में पढ़ाई जाती है। स्कूलों की पढ़ाई की सारी-की थ्योरी (सिद्धान्त), सारे-का साइन्स और सारे-का ग्राउण्ड (आधार) इस पर टिका हुआ है कि हमको बार-बार रिपीट करना पड़ता है। बच्चो! रिपीट करो, बच्चो! रिपीट करो। क्या कर रहे हो? अरे! पहाड़े याद कर रहे हो।कैसे याद कर रहे हो पहाड़े याद? पाँच एकम पाँच, पाँच दूनी दस, पाँच तिया पन्द्रह, पाँच चौका बीस—बार-बार, बार-बार। हाँ साहब! बार-बार याद करना पड़ेगा, नहीं तो आपको याद नहीं हो सकता। संस्कृत में तो सब रटन्त विद्या है। याद कीजिये—याद कीजिये। अरे! क्या याद करें? मरे तेरे का! महाभारत याद कीजिये। लकार याद कीजिये। मरे! मरे! याद कीजिये याद के बिना कोई बात ही नहीं बनती। स्कूलों का सारा-का ग्राउण्ड इसके ऊपर है। ये क्या कर रहे हो साहब? मास्टर साहब ने ४५वाँ मंत्र पढ़ा दिया? हाँ पढ़ा दिया। अब क्याकर रहे हो? अब तो हम याद कर रहे है। कैसे याद करते हो दिखाना हमको। ऐसे याद करते हैं कि उसी को फिर फेर रहे हैं, फिर फेर रहे हैं—बार-बार, बार-बार। रिपिटीशन-रिपिटीशन। ये क्या तरीका है? इसके बिना कोई और तरीका नहीं हो सकता। अब क्या होगा? पढ़ाई कीछुट्टी हो गई। अब क्या हो रहा है? अब तो तैयारी कर रहे हैं। कैसी तैयारी कर रहे हो, जरा दिखाना हमको। ऐसी तैयारी कर रहे हैं कि जो पढ़ा है, उसको हम याद कर रहे हैं, रिपीट कर रहे हैं। रिपिटीशन के ऊपर सारा-का लर्निंग टिका हुआ है। लर्निंग जो है, यह रिपिटीशन परटिका हुआ है, जिसको हम जप कहते हैं। हम आपकी अन्तःचेतना को बार-बार रिपीट कराते हैं। राम के नाम को बार-बार याद कराते हैं, भगवान के नाम को बार-बार याद कराते हैं। ये क्या है? ये हमारे चेतना विज्ञान का, न्यूरोलॉजी का पैरासाइकोलॉजी (परामनोविज्ञान) का मेटाफिजिक्स का एक ग्राउण्ड है, जिसको हम लर्निंग कहते हैं।
इसके बाद में जो दूसरा आता है, उसको रिटेन्शन (धारण) कहते हैं। रिटेन्शन किसे कहते हैं, समझना? जो कुछ भी ज्ञान प्राप्त किया है, उसे मस्तिष्क में धारण कर लेना—यह रिटेन्शन है। शायद ये लम्बा हो जाएगा, इसलिए थोड़े में समझा दिया आपको।
इसके बाद आता है—रिकॉल (स्मरण)। रिकॉल किसे कहते हैं, समझिये इसे आपको हमने कहीं देखा है। हाँ, साहब! हमने भी आपको कहीं देखा है। कहाँ देखा है? कहाँ देखा है! वहाँ हम और आप साथ-साथ पढ़े थे। हाँ! याद आ गई। आपका नाम तो मोहन लाल है। देखिये, हम कह रहे थे हमने आपको देखा है। बीस साल पहले देखा था। हाँ, हम और आप स्कूल में पढ़े थे। हाँ! ठीक है, याद आ गई। इसे क्या कहते हैं? रिकॉल कोई एक चीज हमारे हाथ से चली गई और हम उसको भूल गए हैं। किसको भूल गए हैं? भगवान को भूल गए हैं—आत्मा को भूल गए हैं—अपने आपको भूल गए हैं। हम रिकॉल करते हैं—‘हम कौन हैं? हम क्या हैं?’ याद करते हैं—हमारा कोई रिश्तेदार था—हमारा कोई सम्बन्धी था। कौन रिश्तेदार? मालूम नहीं; कोई रिश्तेदार था। इसे क्या कहते हैं? इसको रिकॉल कहते हैं। हमारीस्मृति में से जो चीजें गायब हो जाती हैं, उनको हम फिर याद करने के लिए चेतना के स्तर पर जो प्रयास करते हैं, ये बेटे! रिकॉल कहलाता है।
और अन्तिम चीज जो हमारी निष्ठाओं में, विश्वासों में और आस्थाओं में बदल जाती है, वह हमारे छुड़ाने से छूटती नहीं है, हटाने से हटती नहीं है, मारने से मरती नहीं है, इसका नाम है रिकॉगनिशन (स्वीकरण)। रिकॉगनिशन किसे कहते हैं? मान्यताओं को, निष्ठाओंको। निष्ठाएँ ऐसी मजबूत होती चली जाती हैं कि छुड़ाये नहीं छूटतीं। कहिये साहब! सुरा पीना कैसा होता है? अच्छा होता है? अरे साहब! सुरा पीना बहुत खराब होता है। सुरा बहुत वाहियात होती है। सुरा बहुत बीमारी पैदा करती है। जब याद आती है, बस रुका नहीं जाताऔर फिर शराब पी जाते हैं। क्यों, क्या बात थी? अरे साहब! आज बुखार आ गया था, तो हमने कहा जरा शराब पी आवें, देखें तो सही कैसे क्या होता है। बस, जरा शराब पीने से सिर का दर्द बन्द हो जाता है, इसलिए हम पी आए, नहीं तो वैसे तो हम उसी दिन कह रहे थेशराब खराब होती है। इसका नाम है रिकॉगनिशन। ये मान्यताएँ, निष्ठाएँ इतनी मजबूत हो जाती हैं, कठोर हो जाती हैं कि हमारे हटाने से हटती नहीं हैं, मिटाये मिटती नहीं हैं, घटाये घटती नहीं हैं। ये हमको इतनी हैरान करती हैं कि क्या कहें! व्यासजी एक बार बोले—धर्म को मैं जानता हूँ, लेकिन मेरा मन चलता ही नहीं है उधर। मन को बहुत बताता भी हूँ, सिखाता भी हूँ, समझाता भी हूँ, सुनाता भी हूँ, पर जाने को मेरा मन करता ही नहीं, बस मैं जाता हूँ बाहर छूकर चला आता हूँ, भीतर तक नहीं जाता। अधर्म को भी मैं जानता हूँ; मेरी निवृत्ति नहीं होती। ये अधर्म है—ये पाप है—ये दुराचार है—ये झूठ है—ये बेईमानी है—मैं जानता हूँ और लोगों से कहता हूँ—लोगो! झूठ बोलना बड़ा खराब है, लोगो! बेईमानी करना बड़ा खराब है, लोगो! ये करना बड़ा खराब है और ये बड़ा खराब है—बड़ा खराब है—लेकिन मेरी निवृत्ति नहीं होती। जाने कौन शैतान बैठा हुआ है हमारे भीतर! जाने कौन पिशाच, जाने कौन दुष्ट बैठा हुआ है हमारे भीतर! जो हमारे सारे ज्ञान को बहकाकर ले जाता है। ये क्या है? इसका नाम है—रिकॉगनिशन। रिकॉगनिशन की, चेतना की परतें हैं चार।चार परतों के लिए चार प्रकार के हम आपको शिक्षण देते हैं। एक का नाम कल हमने बताया था—तप। एक का नाम आज बताते हैं—जप। एक का नाम कल बतायेंगे—ध्यान, परसों बतायेंगे—प्राणायाम। चार जो हमारी परतें हैं—इनको हम कैसे साफ कर सकते हैं औरकैसे सुधार सकते हैं और कैसे ठीक कर सकते हैं इसका ‘साइण्टिफिक वे’ वैज्ञानिक तरीका यह है, जो हमने आपको पीछे बताया, ज्ञान वाला भाग जप का। भगवान को पुकारना—याद करना, जिसको हमने भुला दिया है; जिसको हम पुकारते हैं—आप आइये और हमाराउद्धार कीजिये—यह ज्ञान वाला भाग हुआ और विज्ञान वाला भाग हुआ? हम अपने भीतर मन्थन पैदा करते हैं, गति पैदा करते हैं, शक्ति पैदा करते हैं और सेण्ट्रीफ्यूगल फोर्स पैदा करते हैं और अपनी चेतना के चारों चरणों को सही बनाते हैं, प्रशस्त बनाते हैं। ये इसकावैज्ञानिक रूप है—स्वयं का परिष्कार—आत्मा का परिष्कार—आत्मा का संशोधन। यही है एकमात्र जप का उद्देश्य—तप का उद्देश्य—भगवान की भक्ति का उद्देश्य—पूजा का उद्देश्य। अगर हम ये कर पाने में सफल हों, तो भगवान आएँगे और हमारी मदद करेंगे।भगवान हमारी सहायता करने के लिए आएँगे, हमारी सेवा करने के लिए आएँगे, हमारी मदद करने के लिए आएँगे जब हम पात्र के लायक हो जाएँ तब और हमारी पात्रता का विकास न हो सका, तो नाम के ले लेने से और पुकार करने से कैसे काम बन सकता है! नाम केलेने से, मिठाई-मिठाई जप करने से हमारा मुँह मीठा नहीं हो सकता, तो राम-नाम के जप करने से कैसे हमारा कल्याण हो सकता है? कैसे उद्धार हो सकता है? आपको यह समझना चाहिए और यह समझते हुए उसी आधार पर जप करना चाहिए। ऐसा करेंगे, तो आपमुनासिब काम कर रहे हैं और अगर अज्ञान में मरते हुए भूल में भटकते हुए कर रहे होंगे, तो आप अपना समय खराब कर रहे होंगे। मैं चाहता हूँ आप समय खराब न करें। जप की महत्ता को समझें, जप की शक्ति को समझें, जप के ज्ञान को समझें, जप के विज्ञान कोसमझें। इतना समझ लेने के बाद आप जप करेंगे, तो आपका जप आपके लिए फायदेमन्द हो सकता है और लाभदायक भी। आज की बात समाप्त।
ॐ शान्तिः