उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
आप जिस कल्प-साधना सत्र में आए हुए हैं, उसका उद्देश्य समझने की कोशिश करें। अनगढ़ और अस्त-व्यस्त जीवन को सुव्यवस्थित जीवन में बदल देने की बात इस कल्प-साधना में विशेष रूप से ध्यान रखी गई है। जीवनभर हम अनगढ़ रहे हैं, बन्दरों की तरह उचक-मचक करने वाले, लक्ष्यहीन बच्चों की तरह इधर-उधर भागने वाले और तरह-तरह की चीजों पर मन चलाने वाले हम रहे हैं; न कोई अनुशासन मन के ऊपर रहा, न कोई लक्ष्य रहा और न कोई दिशा रही। बस, यही है हमारे जीवन की संक्षिप्त कहानी और इस कहानी में अब नया अध्याय जुड़ना चाहिए। फिर आपकी अस्त-व्यस्तता को अनुशासन में बदल जाना चाहिए और आपकी लक्ष्यहीनता को अब एक दिशा पकड़ लेनी चाहिए कि अब हमारा जीवन किधर जाएगा? इसी का प्राथमिक अभ्यास कराने के लिए आपको कल्प-साधना शिविर में बुलाया गया है। आप अपनी मनःस्थिति को उसी के अनुरूप बनाइए। क्रियाएँ जो आपसे कराई जा रही हैं, ये क्रियाएँ अपने आप में भी महत्त्वपूर्ण हैं। उपवास अपने आप में भी लाभदायक होता है। पेट पर इसका असर पड़ता है; पर आप यहाँ तक सीमित मत रहिए। उपवास के लिए हम क्यों बुलाते हैं आपको? उपवास तो आप घर पर भी कर सकते हैं, बहुत-से आदमी करते भी हैं; नवरात्रि पर उपवास करते हैं, दूसरे उपवास करते हैं; पर यहाँ हमने केवल उपवास के ही लिए नहीं बुलाया आपको। यहाँ हमने आपको अनुशासन पालने करने के लिए बुलाया है—तरह-तरह के अनुशासन। शुरुआत तो आपकी जीभ से कराई है। जीभ का अनुशासन अगर आप निभा लेंगे, तो और दूसरे अनुशासन, जो जीवन के लिए और अत्यधिक उपयोगी हैं, उनको भी आप पालने में सफल हो जाएँगे। गाँधीजी ने अपनी ‘सप्त महाव्रत’ नाम की पुस्तक में पहला अध्याय अस्वाद का लिखा है। उन्होंने कहा है कि जो आदमी अपनी जीभ पर काबू कर लेगा, वह अपनी ज्ञानेन्द्रियों पर और मन पर भी काबू प्राप्त कर लेगा। उन्होंने यह भी लिखा है कोई आदमी ब्रह्मचर्य की बात विचार करता हो, तो उसको पहले अपनी जीभ पर काबू पाने की कोशिश करनी चाहिए। जिस आदमी की जीभ पर लगाम नहीं है, वह ब्रह्मचर्य का कभी पालन नहीं कर पायेगा। उच्छृंखल जीभ न केवल आहार को उच्छृंखल बनाती है, न केवल मस्तिष्क को उच्छृंखल बनाती है, बल्कि हमारी विकृतियों को भड़काने में भी काम आती है, इसलिए जीभ का अनुशासन आवश्यक माना गया है। आप इस उद्देश्य को समझिये। आप खाली दलिया खायेंगे, जौ, चावल खाएँगे, वह तो ठीक है; खाएँगे, तो अच्छी बात है; खाएँगे, तो सात्विक है। अनावश्यक वस्तुएँ न खाएँगे, तो कौन-सी हर्ज की बात है? आवश्यक वस्तुओं को एक महीने रहकर खाएँगे, यह तो बहुत अच्छी बात है। पिछला शिविर, जो आपसे पहले का गया है, उसमें ढेरों आदमी ऐसे थे, जो अपना वजन छह-छह पौण्ड बढ़ाकर ले गए; क्योंकि जो उन्होंने हल्का-सात्विक भोजन किया, वह ठीक तरीके से हजम हुआ, कम मात्रा में खाया, पेट पर दबाव कम पड़ा, हर तरह से हजम होता चला गया और रक्त बढ़ता गया तथा उनकी सेहत में आश्चर्यजनक परिवर्तन हुआ। आप भी ऐसे ही कर लेंगे, जो जायकेदार चीजें हैं, जो न केवल महँगी होती हैं, बल्कि हानिकारक भी होती हैं, उनसे आप अपना पिण्ड छुड़ा लें, तो समझना चाहिए आपने एक ऐसे भूत-प्रेत से पिण्ड छुड़ा लिया, जो देखने में तो बड़ा आकर्षक मालूम पड़ता था; पर आपको पटक-पटक के मारता था। इस दृष्टि से उपवास का भी महत्त्व तो है; लेकिन उपवास के महत्त्व से भी बढ़कर है अनुशासन का महत्त्व। अब आपको एक नई दिशा पकड़नी है, अब आपको एक नया जन्म लेना है। आप एक नया जन्म लेने की कोशिश कीजिए और यह कोशिश कीजिए कि पिछला समय हमारा जीवन सामान्य स्तर का था।
घिनौना तो मैं क्यों कहूँ? पर आप यह मान सकते हैं कि घटिया स्तर का जीवन था। घटिया ही कहना पड़ेगा, घटिया क्यों न कहें? घटिया मुझे इसलिए कहना चाहिए कि आपके अन्दर भगवान् ने जो क्षमताएँ दी हैं, अगर आपने सही तरीके से उनका विकास किया होता, तो यकीन रखें, आप दूसरे कबीर हो गए होते; आप यकीन रखें, आप दूसरे रविदास और गुरुनानक हो गए होते; आप यकीन रखें, आप दूसरे विवेकानन्द रहे होते और दयानन्द रहे होते; गाँधी हो गए होते; अब्राहम लिंकन हो गए होते। यह भी तो सब घटिया और छोटे स्तर के लोग थे; लेकिन जब उन्होंने अपने आप को समझ लिया और अपने आपकी सही दिशाधारा को ठीक पकड़ लिया और उसी रास्ते पर क्रमबद्ध रूप से चलते चले, तो कहाँ-से पहुँच गये? आपके लिए भी यह पूरे तरीके से मुमकिन था; पर आप कर नहीं पाये, क्यों? दिक्कत क्या थी? पैसा नहीं था? साधन नहीं थे? बेकार बात मत करिए! न पैसे से कोई ताल्लुक है, न साधनों से कोई ताल्लुक है, न कठिनाइयों से कोई ताल्लुक है; केवल एक ही बात से ताल्लुक है कि आपका मनःसंस्थान बहुत गया-बीता बना रहा और उसमें से यह विचार न आया कि हमको महान जीवन के अनुरूप अपनी विचारधारा बना लेनी चाहिए। बस, यही एक कारण था। अब आप उस कमी को यहाँ पूरी कर ले जाइए। यह बीच का समय मिला है आपको। बीच का समय नया जन्म लेने का समय है। आप पिछले जीवन को भूलने की कोशिश कीजिए। क्या भूलने की कोशिश करें? एक तो यह भूलने की कोशिश कीजिए कि आप सब लोगों के साथ में गुँथे हुए हैं। कर्तव्यों के साथ गुँथे तो गुँथे हुए हैं; पर मोह के साथ गुँथे हुए की बात मत सोचिए। आप मोह के साथ गुँथे हुए हैं। कर्तव्यों के साथ गुँथे हुए होते तो, मैं आपको महान् आत्मा कहता; पर आप तो थोड़े-से चन्द लोगों के साथ में बुरी तरह गुँथ गये हैं, उन्हीं को सब कुछ मान गये हैं, मसलन आप शरीर को सब कुछ मान बैठे हैं, मसलन आप दो-चार कुटुम्बी, जो कि आप के आगे-पीछे लगे रहते हैं, आप उन्हीं तक अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और उनको खुश रखने के लिए जो भी आपसे बन पड़ता है, करते रहते हैं। बन न पड़े, उसकी बात अलग; पर अगर आपके हाथ में रहा होता, तो हीरों का हार आपने अपनी औरत को दिला दिया होता और आपने हवाई जहाज अपने बेटे को सफर करने को दिलाया होता। आपकी योग्यता नहीं है इतनी, परिस्थिति नहीं है, दे कहाँ से पायेंगे; पर मनःस्थिति तो यही है न! कर्तव्यों के साथ में बँधे कहाँ हैं आप?
आप यहाँ एक महीने रह करके पुनः विचार कीजिए और अपनी स्थिति को साफ कीजिए। संसार के साथ जो आपके ताल्लुकात हैं, उसके बारे में फिर नये ढंग से विचार कीजिए। आप यह मानकर चलिये, आप एकाकी हैं, आप अकेले हैं, आपको एक गुफा में प्रवेश करा दिया गया है, आप गुफा में अकेले रहते हैं। पहले अकेले गुफा में सन्त इसलिए रहते थे कि एकाकीपन का उनको आभास हो सके। हम अकेले आए हैं भगवान के यहाँ से और अकेले ही हम जाएँगे भगवान के यहाँ। अकेले ही हम सोया करते हैं, अकेले ही हम टट्टी जाते हैं, अकेले ही में स्नान करना पड़ता है, अकेला ही तो जीवन है! अकेले के बिना कैसे बन पाएँगे कुछ! इसलिए आप अकेले को ही ठीक कर लीजिए और अकेले को ठीक करने के बाद आप समूह में बिल्कुल फिट हो जाएँगे। इसलिए एकाकीपन का यहाँ अभ्यास करना चाहिए। जिस कोठरी में आपके लिए गुफा निर्धारित की गई है और आपको इसी में कैद कर दिया गया है, आप दुनिया में अकेले हैं। अपने आपको आप अकेला कहेंगे, तो फिर आपको नये ढंग से विचार करने का मौका मिलेगा कि आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? दुनिया के दबाव जो अनावश्यक रूप से आपको हैरान करते हैं, उन दबावों को हटाने के लिए यह जरूरी है कि आप एकाकी अनुभव करें, एकान्तवास करें, गुफा प्रवेश करें। यह गुफा प्रवेश है आपका। हमको ऐसा ही करना पड़ा है, जब कभी भी हमारा मन अस्त-व्यस्त हुआ है, तो गुरुदेव ने बुलाया और एक ऐसे स्थान पर रखा, जहाँ हमारे अलावा कोई नहीं था। इससे हमको अपने बारे में विचार करने का मौका मिलता है। आदमी आमतौर से तो दूसरों पर ही विचार करता रहता है। दुकान में क्या हुआ? बेटे का क्या हुआ? बेटी का क्या हुआ? भतीजी का क्या हुआ? दुनिया के जंजाल को तो आदमी बुनता रहता है; पर अपने बारे में कभी विचार नहीं करता। हमको उस एकान्त स्थान में रह कर करके कई बार हिमालय जाना पड़ा, तब हमें कई बार अपने आप में विचार करने का मौका मिला। गुरुदेव का आदेश था कि बाहर की बात पर मत विचार करना, सिर्फ अपनी बात विचार करना और कोई बात मत विचार करना। हमने भी वैसा ही किया। आपको भी ऐसा ही करना पड़ेगा। जब आप यहाँ आए हैं, सिर्फ अपने बारे में विचार करना चाहिए और सब बातों को भूल जाना चाहिए। खासतौर से आप घर की बातों को भूल ही जाएँ।
घर की बातों को आप जरा भी स्मरण न करें। घर में क्या हो रहा होगा? फायदा हो रहा होगा कि नुकसान हो रहा होगा, बेटी का ब्याह हो रहा होगा, बेटे का ब्याह हो रहा होगा, अमुक बात हो रही होगी, अमुक बीमार पड़ा होगा, इन बातों से आप क्या कर सकते हैं? या तो आप वहाँ जाइये, विवाह-शादी कीजिए; नहीं जा सकते, तो चिन्ता को छोड़िए। आप एकान्त में भी रह रहे हों और एकान्त के फायदे को भी खत्म कर रहे हों—यह सब मत कीजिए। आप सबसे पहले अपने मन को अलग कर लीजिए और यह मानकर चलिए कि हम एक महीने के लिए कहीं अलग, विदेश चले गए हैं, बीमार हो गए हैं या कुछ और हो गए हैं। एक महीने अगर आप चिन्ता नहीं करेंगे, तो आपका मन उस दिशा में चलेगा, जहाँ आपको विचार करना चाहिए और आप अगर अपने मन को खाली नहीं करेंगे, जंजाल में ही बनाए रखेंगे, तो आप इस एकान्त साधना में, जिस उद्देश्य के लिए बुलाए गए हैं, आपके लिए पूरा कर सकना सम्भव नहीं होगा। फिर क्या करें? जैसा आपने सुना होगा कि इलाहाबाद में कल्प-साधना के शिविर चलते हैं और वह त्रिवेणी के तट पर माघ के महीने में महीने भर के होते हैं। माघ के महीने में लोग झोंपड़े लगा लेते हैं, उसी में रहते हैं, बाहर-निकलते ही नहीं, बाहर जाते ही नहीं, घर वालों को बुलाते ही नहीं। घरवाला अगर कोई आता है, तो सिर्फ खुशी के समाचार ही सुनाता है। कोई जरूरत की बात कहने आता है; पर यह नहीं कहने आता कि घर में यह आफत आ रही है कि वह आफत आ रही है। उनके चित्त में चंचलता उत्पन्न न हो, इसलिए वह लोग चिट्ठी-पत्री पर भी रोकथाम रखते हैं। हमारे पास चिट्ठी-पत्री मत भेजना, हमको एक महीने भगवान का नाम लेने देना, चिट्ठी-पत्री भेजकर, हम जो काम नहीं कर सकते हैं, उस काम के लिए हम पर दबाव मत डालना, न हम इधर के रहेंगे, न हम उधर के रहेंगे—न हम भगवान में ध्यान लगा सकेंगे, न घर की कोई सहायता कर सकेंगे। आप डावाँडोल स्थिति को मत रहने दीजिए। कल्प-साधना वालों का यह नियम है। आप भी इन नियमों का पालन कीजिए और अनुभव कीजिए कि हम एकान्तवास में हैं।
एक दिन मैंने आपसे पिछले समय में कहा भी है कि एक महीने आप यहाँ सिर्फ दो बातों का अनुभव किया कीजिए कि हम यहाँ न सिर्फ एकान्त में रहते हैं, बल्कि माताजी के पेट में निवास करते हैं। आप शान्तिकुञ्ज को यह मानकर चलिए कि यह माताजी का पेट है और पेट में जैसे बच्चा रहता है, भ्रूण रहता है, उसी तरह, भ्रूण की तरह, बच्चे की तरह आप निवास करिए। यह माताजी का आध्यात्मिक पेट है, जिसमें आप बच्चे की तरह निवास कर सकते हैं और यहाँ से जाने के बाद में आप अपने आपके एक नये जन्म का अनुभव कर सकते हैं। माताजी का बेटा—माताजी का बेटा आप नहीं बन सकते? क्या हर्ज है, आपको, बताइए? मदालसा के बेटे आप नहीं बन सकते? कुन्ती के बेटे बनने में आपको शर्म आती है, बताइए? सीता के बेटे अगर आप बन जाएँ, तो क्या हर्ज है आपको? नहीं, कुछ हर्ज नहीं होगा आपका। आप अगर ऐसी मनःस्थिति बना लें, तो आपको अपनी गौरव-गरिमा का भान होगा और गौरव-गरिमा का आपको कदाचित् भान हो जाए, तो आप यकीन रखिए, आपका कल्प-साधना में आना सार्थक हो जाएगा। फिर आप ऐसी दिशा, ऐसी प्रेरणा और ऐसा चिन्तन लेकर जाएँगे कि मजा आ जाएगा! इसलिए आप यह अनुभव करते रहिए कि एक महीने तक हम माताजी के पेट में बैठे हुए हैं।
आप एक और अनुभव कर लीजिए कि आप गुरुजी के अवे में बैठे हुए हैं। अवा क्या? कुम्हार अपने बर्तन बनाता है और बर्तन बना करके उन बर्तनों को अवे के भीतर कैद कर देता है। बस, सब बर्तन चुपचाप बैठे रहते हैं और पकते रहते हैं। आप भी चुपचाप बैठे रहिए और पकते रहिए। हम आपको प्रेरणा भेजेंगे, हम आपको विचार भेजेंगे, उसको भी तो सुनिए! बस, अपनी-अपनी ही बकते रहते हैं, हमारी नहीं सुनेंगे क्या? हमारी प्रेरणा पर आप ध्यान नहीं देंगे? हम क्या कहना चाहते हैं, उस पर गौर नहीं करेंगे? उसकी कोई उपयोगिता नहीं है? अपने आपको ही हमारे ऊपर हावी रखेंगे? हमारी मनोकामना पूरी कर दीजिए। ऐसे कौन आपकी मनोकामना पूरी कर देगा, बताइए? रावण की मनोकामना पूरी करने में कौन समर्थ हो गया? सिकन्दर की मनोकामना कही पूरी हुई? नेपोलियन बोनापोर्ट की कहीं पूरी हुई? हिरण्यकश्यपु ने अपनी मनोकामना पूरी कर पाई? न कर पाई। आप तो बेकार आदमी हो, बार-बार बच्चों की तरह मनोकामना, मनोकामना माँगते रहते हैं? यहाँ तो आप बड़ों की तरह रवैया अख्यियार कीजिए। बच्चे ही बने रहेंगे जिन्दगी भर बड़े भी होंगे! अगर यहाँ आप बड़े हो गए हैं, तो मनोकामना वाले जंजाल को छोड़ दीजिए। मनोकामना तो भगवान ने आपकी पूरी कर दी है। हाथ-पाँव दिए हैं, आप पेट भर के रोटी कमा सकते हैं। अक्ल भगवान ने दी है आपको, आप तन ढकने के लिए कपड़े या पारिवारिक जो छोटी-मोटी जिम्मेदारियाँ हैं, भली प्रकार पूरी कर सकते हैं। यह कौन-सी मनोकामना है सिवाय हविश के! बताइए? हविश के अलावा कोई मनोकामना नहीं है। हविश को आप हल्की नहीं कर सकते। हविश को जिस दिन आप हल्की कर लेंगे, आपकी कोई भी मनोकामना बाकी नहीं रह जाएगी, यह आप देखेंगे कि आप कितने खुश और प्रसन्न रह सकते हैं। इसलिए आप इस डायन को मार भगाइये न? दुनिया भर का माँगते फिरते हैं—नाक रगड़ते-फिरते हैं—वासनाओं के लिए, तृष्णाओं के लिए, अहंकार के लिए। इसके आगे पल्ला पसारना, उसके आगे पल्ला पसारना, इसके आगे नाक रगड़ना, उसके आगे नाक रगड़ना। आप अपने आप में हेर-फेर कीजिए, अपने आप में हेर-फेर करेंगे, तो आपको इस कायाकल्प-शिविर में आने का मानसिक लाभ मिल जाएगा।
आप यहाँ रहिए, हम आपको पका देते हैं। आप आये थे, तब कच्चे बर्तन के रूप में थे और आप जब जाना तब हमारे अवे में पके हुए होकर जाना। मुर्गी अपने बच्चे को छाती से लगाये हुए बैठी रहती है, कछुवी अपने अण्डे को बालू में रख देती है; लेकिन देख−भाल करती रहती है। हम आपको कछुए के अण्डे की तरह कोठरी में बिठा तो गये हैं; पर आप यह मत सोचिए कि हम आपकी तरफ गौर नहीं करते और ध्यान नहीं देते। हम बराबर आपकी तरफ ध्यान दे रहे हैं। किस बात पर ध्यान दे रहे हैं? कि आपका मनःसंस्थान ऊँचा हो जाए, आपकी भावनाओं का स्तर ऊँचा हो जाए, आपके जीवन का लक्ष्य ऊँचा हो जाए, जिससे आपके व्यक्तित्व की गरिमा आगे बढ़ती हुई चली जाए। हम केवल यही विचार करते हैं और कुछ विचार नहीं करते—आप सुन सकते हो, तो सुन लेना; नहीं सुन सकते, तो आप फिर हैं ही चिकने घड़ों की तरह; वैसे ही बने रहना, जैसे आए थे, वैसे ही चले जाना। मुर्गी अपने अण्डे को पकाने के लिए छाती से लगाये बैठी रहती है और आपको भी हम मुर्गी की तरह छाती से लगाये हुए हैं कि जब आप पकें, जब आप फूटें और जब आप फुदकना शुरू करें, चूजे की तरह, तो आपका बहुत शानदार जीवन होगा—हमारी भी महत्त्वाकांक्षा यही है। आप भी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को हमारी तरह गला पाएँ, तो मजा आ जाए! यहाँ क्या-क्या काम कराये जाते हैं? कई चीजें कराई जाती हैं—संयम करा रहे हैं, वास्तविक बात यह है। आपको हमने कितनी बार कहा है कि आप आहार के बारे में संयम कीजिए और न सिर्फ आहार के बारे में, बल्कि विचारों के भी बारे में और न सिर्फ विचारों के बारे में, बल्कि उनके व्यवहार के बारे में भी। आपसे चार तपों का जिक्र किया था न, आपको चार तप यहाँ बराबर करते रहने चाहिए। धन के बारे में रोक है—आपको बाजार जाने की, इधर-उधर घूमने की, सैर-सपाटे करने की, मनसादेवी के पहाड़ पर चढ़ने की। पैसा खराब करने पर हमने रोक लगा दी है। जो पैसा आपको, निरन्तर जीवन के लिए नितान्त आवश्यक नहीं है, उसको खर्च मत कीजिए। कंजूसी करें, जमा करें। ना बाबा! कंजूसी के लिए कौन कहता है आपसे? अच्छे काम के लिए कोई खर्च नहीं है क्या? आप फिजूलखर्च जरा भी मत कीजिए और जो कुछ भी आपके पास धन है, उसको लगा दीजिए अच्छे कामों में।
हमारा उदाहरण है आपके सामने। फिजूलखर्ची हमने कानी कौड़ी की भी नहीं की है। जो भी हमारे पास था, उसको बेहतरीन कामों में लगा दिया है, जिसका परिणाम आपने देखा न! देखा होगा। हमारे गाँव में स्कूल बना हुआ है, गायत्री तपोभूमि बनी हुई है, आप देख लीजिए। हमारे पास जमीदारियों के बॉण्ड आए थे; सब खत्म हो गए, सब लगा दिए। आप ऐसा नहीं कर सकते? पैसे को फिजूलखर्चियों में लगाएँगे, औलाद के लिए जमा करेंगे—आप ऐसी योजना नहीं बना सकते। आप यहाँ से जाने के बाद में जो साधन हैं, उन्हीं को बढ़ाते रहेंगे—ऐसा ही सोचते रहेंगे। बढ़ाने की बात मत सोचिए। पहली बात वहाँ से सोचिए कि हम ठीक तरह इनका कैसे इस्तेमाल कर पाएँ। जब ठीक तरीके से इस्तेमाल करेंगे, तब आप यकीन रखिए भगवान आपको दो हाथ से नहीं, चार हाथ से देगा। भगवान के चार हाथ भी हैं, इनसान के दो हाथ ही हैं। विष्णु भगवान के देखे हैं न? चार हाथ हैं। सहस्त्रशीर्षा पुरुषः—उसके हजारों हाथ हैं और आपको हजारों हाथों से इतना देगा, जिसे आप सँभाल भी नहीं पाएँगे। हमारा उदाहरण आप देख लीजिए, हमने अपने आपको खाली कर दिया; भगवान की चीज भगवान् को सौंप दी है और भगवान ने अपनी चीजें हमको सौंप दी हैं। क्या आप ऐसी हिम्मत नहीं कर सकते? आप ऐसी दूरदर्शिता नहीं दिखा सकते? आपको ऐसी बुद्धिमानी नहीं आती? आप ऐसी अक्ल से रिश्ता नहीं जोड़ना चाहते? अगर जोड़ना चाहते हो, तो कृपा कीजिये और आप यहाँ संयमशील बनिए। पैसे के बारे में संयमशील, समय के बारे में संयमशील। आपको समय के बारे में अनुशासित किया गया है न? जब घण्टी बजती है, तब आपको आने के बारे में कहा गया है न? सुबह जब आपको प्रज्ञापेय मिलता है, तब घण्टी बजती है और आपसे यह आशा की जाती है कि आप समय पर पहुँच जाइए। जब खाने-पीने के लिए घण्टी बजती है, तब आपसे यह आशा की जाती है कि आप बिना समय गँवाये जल्दी पहुँचेंगे। इसी तरह आपको हर टाइम-टेबिल के शिकंजे में कस दिया है। यह अभ्यास है आपका। भावी जीवन में आपको जिस शिकंजे में कसा जा रहा है, उसको आगे भी जारी रखें। केवल यहीं तक यह बातें सीमित नहीं हैं। जीभ को, आपसे संयम के लिए कहा गया है, केवल यहाँ के लिए ही नहीं, बल्कि सारे जीवन के लिए कहा गया है। आप बाहर भी जा करके रहिए। यहाँ एक कमरे में दो आदमियों को रहने की इजाजत नहीं है। अगर स्त्री-पुरुष हैं, तो भी दो कमरों में अलग-अलग रहेंगे; क्योंकि हर आदमी एकाकी बनकर रहे और दूसरी बात यह कि कभी वासनात्मक दृष्टि से एक-दूसरे को न देखें। आप वासनात्मक दृष्टि से मत देखिये। लड़कियाँ कहाँ चली जाएँगी दुनिया से? औरतें क्या मिट जाएँगी और औरतों के लिए मर्द नहीं रहेंगे क्या? मर्द रहेंगे; लेकिन उनके बीच जो जहर है, उस जहर को निकाल दीजिए। जहर निकल जाता है, तो साँप कितना सुन्दर मालूम पड़ता है! देखने में कितना अच्छा लगता है? और जहरीला होता है, तो काट खाता है।
अगर आपने नारी के बारे में विकृत विचार बना रखे हैं, तो नारी आपको काट खायेगी डाकिन की तरह और साँपिन की तरह डस लेगी; आपका स्वास्थ्य खराब कर देगी, आपकी अक्ल को खराब कर देगी, आपके चिन्तन को भ्रष्ट कर देगी और आपको लम्पट बना देगी, अगर आपका दृष्टिकोण गलत है तब। अगर आपने दृष्टिकोण सही कर लिया तब? तब वही नारी आपको देवता की तरह वरदान दिया देगी। शिवाजी को एक नारी ने ही देवता जैसा वरदान दिया था, आपको याद होगा। आप ऐसा नहीं कर सकते? आप चिन्तन को बदलिये, नहीं तो आप यहाँ किसलिए आए हैं? यहाँ भी नहीं करेंगे, तो क्या करेंगे? केवल मात्र चिन्ह-पूजा करते रहेंगे? टाइमपास करते रहेंगे? नहीं, टाइमपास मत कीजिए, चिन्ह-पूजा मत कीजिए। अपने सारे-के चिन्तन को आमूल-चूल परिवर्तन करने की कोशिश कीजिए। ब्रह्मचर्य के बारे में विचार और चिन्तन करते रहिए। बीच में जब कभी भी आपकी आँखें खुलें, फालतू समय हो और नारी का विचार आये, तो केवल बेटी की दृष्टि से विचार कीजिए, बहिन की दृष्टि से विचार कीजिए, माता की दृष्टि से विचार कीजिए, यहाँ तक कि अपनी धर्मपत्नी का भी सहकर्मी की दृष्टि से विचार कीजिए। सीताजी और राम वनवास में रहते थे—वह उनकी सहकर्मी थीं और गाँधीजी, कस्तूरबा रहते थे—वह भी सहकर्मी थीं, तो आप ऐसा क्यों नहीं कर सकेंगे? रामकृष्ण परमहंस और उनकी धर्मपत्नी शारदामणि जी साथ-साथ रहे, सारे जीवनभर रहे; लेकिन कभी उन्होंने एक-दूसरे को कामवासना की दृष्टि से नहीं देखा। आप उतना न कर पाएँ, तो कम-से इतना तो कीजिए कि नारियों के प्रति जो आपकी कुदृष्टि जीवनभर रही है, जिससे आपकी आँखों का तेजस् खत्म हो गया है, आप उस तेजस् को फिर से प्राप्त करने की कोशिश कीजिए और अपना चिन्तन बदल दीजिए। आपको यही सब बातें याद करनी हैं।
आपको यहाँ स्वाध्याय नियमित करने के लिए बताया गया है। आपको यहाँ सत्संग से जोड़कर रखा गया है। आपको कुछ सीखने के लिए और भावी योजनाओं को बनाने के लिए बताया गया है तथा उसके लिए मार्गदर्शन भी किया गया है; उसके लिए आपको तरह-तरह के कार्यक्रम भी दिए गए हैं। आपका यहाँ जो शिक्षण होता है, वह इसी दृष्टि से होता है। आपको रोटी कमाना आता है, नहाना-धोना भी आता है, व्यापार भी आता है, लेन-देन भी आता है, नौकरी करना भी आता है और जो काम नहीं आता, वह हम यहाँ सिखाते हैं। भावी जीवन की आपकी रूपरेखा क्या हो, आप केवल अपने ही लिए ही नहीं जिएँ, उसमें समाज की भी हिस्सेदारी है, लोगों की भी हिस्सेदारी है, भगवान की भी हिस्सेदारी है, आदर्शों की भी हिस्सेदारी है, धर्म और संस्कृति की भी हिस्सेदारी है—उस हिस्सेदारी को आप कैसे निभा पायेंगे? उसके बारे में शिक्षण, आपका सायंकाल का शिक्षण इस उद्देश्य के लिए है, आप इस उद्देश्य को समझिये। आप घटना को देखेंगे और यहाँ के क्रम को देखेंगे, तो ऊपर ही दृष्टि रह जाएगी। दृष्टि को भीतर ले जाइए, दर्शन समझिये यहाँ के कल्प का और यह मानकर चलिए कि यहाँ कल्प का मतलब है—बदल डालना। अब आपको यहाँ से बदलते हुए जाना है। घर जाकर आपको अपना बदला हुआ रूप दिखाना है। घर जाकर के आपके भावी जीवन में आपका क्रिया-कलाप और आपका उपक्रम ऐसा होना चाहिए, जिसमें पिछले जीवन से कोई संगति न हो। आप एक, आपका ईमान दो, आपका भगवान तीन, तीन तो आप ही के हैं सहपाठी। इन तीनों के साथ में तो आप सारे जीवन की मंजिल पूरी कर सकते हैं। जरूरी क्या है कि आप दूसरों का दबाव मानें? जरूरी क्या है कि आप दूसरों का दबाव मानें? जरूरी क्या है कि आप दूसरों के बहकावे में आएँ? जरूरी क्या है कि आप दूसरों को प्रसन्न करने की कोशिश करें? अपने ईमान को प्रसन्न कर लीजिए, बहुत है—भगवान को प्रसन्न कर लीजिए बहुत है। आत्मा और परमात्मा को जो आदमी प्रसन्न कर सकते हैं, सारी दुनिया उनसे प्रसन्न रहती है अथवा चलिए यह मान लें—सारी दुनिया प्रसन्न न भी है, नाराज बनी है, तो उस नाराजगी से कुछ बनता-बिगड़ता नहीं है। आपकी आत्मा नाराज हो, आपका परमात्मा नाराज और सारी दुनिया आपसे प्रसन्न बनी रहे और आरती उतारती रहे, तो उससे कुछ बनने वाला भी नहीं है। यही चिन्तन है, जो आपको एक महीने लगातार अपने मनःक्षेत्र में घुमाते रहना चाहिए। मन को बदलिए, सोचने के तरीके बदलिए, जीवन की कार्य-पद्धति बदलिये। बहुत कुछ बदलना है आपको। अगर बदल डालेंगे, तो मजा आ जाएगा! बस, आज तो मुझे इतना ही कहना था आपसे।
॥ॐ शान्ति:॥