उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
(सन्-१९७२ मोम्बासा) (पूर्वार्द्ध)
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।।
एक फिलॉसफी, एक दर्शन है यज्ञ
देवियो, भाइयो! अफ्रीका में हमारे यज्ञ आयोजन का आज दूसरा दिन है। यह लाउडस्पीकर है। इसे बुद्धि के द्वारा बनाया गया है। इससे आप हमारी आवाज दूर से भी सुन सकते हैं। हमारे पास अख़बार है, चश्मा है, पेन्सिल है। हमारे पास बोलने वाली यह मशीन है और न जाने क्या-क्या चीजें हैं? ये आपकी कमाई हुई नहीं हैं और मशीन की भी कमाई हुई नहीं हैं।
अगर हमारे पास यह मशीन नहीं होती, तो अपनी आवाज हम आप लोगों को नहीं सुना सकते थे और आप मेरे भाषण नहीं सुन सकते थे। इससे आपको महरूम रहना पड़ता और आप घर चले जाते। यह श्रेय मशीन बनाने वालों को है कि आपको बेहतर विज्ञान मिला है। हमारे समाज का हर आदमी उनका कर्जदार है, ऋणी है। इस ऋण को चुकाने के लिए आदमी को कुछ काम करना चाहिए।
मित्रो! यज्ञ एक फिलॉसफी है और यज्ञ एक कर्मकाण्ड है। कर्मकाण्ड क्या है? कर्मकाण्ड यह है कि जो चीजें हमारे पास हैं, उसको हम अपने लिए ही इस्तेमाल न करें, वरन् समाज के लिए बाँट दें। दूसरे लोगों में हम उसे बाँट देते हैं। हमारे पास घी था, हमारे पास शक्कर थी, हमारे पास मेवा थी, हमारे पास पैसे थे। बच्चों ने कहा कि पिता जी! इस घी को हमारे दाल में डाल दीजिए। इससे हम पराठे बनायेंगे, पूड़ी बनायेंगे। आप तो इसका हवन करने चले हैं। बच्चे की बात सही थी या गलत थी? सही थी। बच्चा कहता है कि हम घी खायेंगे, तो स्वस्थ हो जायेंगे, मोटे हो जायेंगे। तो बच्चे की बात सही नहीं है?
हाँ, सही है और आपकी बात सही नहीं है? हाँ, आपकी बात और भी सही है। आपकी बात इसलिए सही है कि बेटे, हम अपनी सारी की सारी कमाई को अकेले खाने के हकदार नहीं हैं। हमने जो कमाया है, उसका पूरा हक स्वयं हम खा जायेंगे, यह उचित नहीं है। उसमें दूसरे भी हकदार हैं। उनका हिस्सा बाँटकर ही हमें खाना चाहिए।
सही नहीं है अकेले कमाना और अकेले खाना
मित्रो! जो आदमी अकेला ही खाता है और अकेला ही कमाता है, उस आदमी का नाम गीता की परिभाषा में चोर है—‘‘तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः।’’ जो आप ही कमाता है और आप ही खा जाता है, वह पाप को खाता है—‘‘भुञ्जते ते त्वद्यं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।’’ जो बिना दिये खाता है, वह चोर है। हम अपने बच्चे से कहते हैं कि बेटे, हमने कमाया है, तू इसे खा सकता था, लेकिन इस घी को उन लोगों में बाँट देना चाहिए जो सारे विश्व में फैले हुए हैं। सारा विश्व हमारा कुटुम्ब है, अतः हमें सारे विश्व को देना चाहिए। हमने जो घी हवन कर दिया, वह कहाँ गया? घी कहीं जलता नहीं है।
दुनिया में कोई चीज नष्ट नहीं होती है। आपको साइंस का थोड़ा ज्ञान होना चाहिए। दुनिया में जितना भी मैटर है, वह कभी नष्ट नहीं हुआ। जितना मैटर पृथ्वी में शुरू में था, उतना ही बना रहेगा। वह न तो एक रत्ती घटने वाला है और न बढ़ने वाला है। चीजों में परिवर्तन होते रहते हैं—सॉलिड, लिक्विड और गैस रूप में। इन्हीं तीन रूपों में चीजें बदलती रहती हैं। पानी जब गिलास में रखा होता है, तो वह लिक्विड होता है, पतला होता है। जब हम उसे जला देते हैं, तो भाप बन जाता है, गैस बन जाता है। जब हम जमा देते हैं, तो वह ठंडा हो जाता है और सॉलिड बन जाता है। ठोस, द्रव और गैस—इन तीन भागों में चीजें बदल जाती हैं।
बेटे, हम सारे विश्व को इसका हिस्सा बाँट कर खायेंगे। घी हमारे पास है, खूब खाना। एक दिन नहीं खायेगा, तो तेरा क्या हो जायेगा? हाँ पिताजी, एक दिन नहीं खाऊँगा, तो मेरा कुछ हर्ज नहीं होगा। बेटे, समाज के प्रति हम अपने कर्तव्य को बाँट दें, तो कुछ हर्ज है क्या? नहीं पिताजी। अगर सबको फायदा होता है, तो मुझे एक दिन बिना घी के रोटी खानी पड़े तो क्या? आप बाँट दीजिए। घी कहाँ गया? जल गया? नहीं। फिर क्या हुआ? वह हवा में फैल गया। हमने घी को जलाया नहीं है, वरन् हमने उसे हवा में फैलाया है। किस तरीके से फैलाया है?
एक दिन आप आग के ऊपर लाल मिर्च जलाइए। जैसे ही आप लाल मिर्च जलायेंगे, सबको छींक और खाँसी आयेगी। यह क्या हुआ? मिर्च तो यहाँ थी, फिर सबको खाँसी क्यों आ गयी? क्योंकि मिर्च वायुमंडल में फैल गयी। मिर्च जली नहीं। फिर उसका क्या हुआ? मिर्च सूक्ष्म हो करके फैल गयी, दूर-दूर तक फैल गयी। अगर दूर-दूर तक फैली नहीं होती, तो सबको खाँसी क्यों आती? सबको छींक क्यों आती? लाल मिर्च को जला देने से क्या हो गयी? वह सर्वत्र सूक्ष्म रूप में फैल गयी।
सामाजिक सुव्यवस्था की पद्धति है यज्ञ
मित्रो! घी का हवन करने पर क्या हुआ? फैल गया। घी कहाँ चला गया? चाहे राई-रत्ती के बराबर ही क्यों न हो, वह चहुँओर फैल गया। उसे कीड़ों-मकोड़ों ने खाया, जानवरों ने खाया। हिन्दुओं ने खाया, मुसलमानों ने खाया, सिद्ध-महात्माओं ने खाया। जिसने-जिसने हवा में साँस ली, उन सबने खाया। कोई ऐसा प्राणी है, जो हवा में साँस नहीं लेता हो? जो चीज हमने हवा में मिला दी है, वह सबके पास चली जायेगी। हमारा एक छटॉक घी—करोड़ों, अरबों, खरबों आदमियों तक चला गया। चलिए हमने मान लिया कि उनके हिस्से में वह राई के बराबर आया है, लेकिन उसमें एक फिलॉसफी काम करती थी कि हमारी चीज में और हमारी कमाई में दुनिया के हर प्राणी का और हर जीव का और हर मनुष्य का हिस्सा है, भाग है और हमको सबका कर्ज चुकाना चाहिए। हवन हमको यही सिखाता है। समाज के सुव्यवस्था की पद्धति हमको यज्ञ सिखाता है। आदमी ले और दे। आदमी को जरूर लेना चाहिए, लेकिन लेने के बाद में रोक नहीं रखना चाहिए। रोककर रखने पर मुसीबत आयेगी।
मित्रो! आपको श्वॉस लेनी चाहिए, लेकिन उसे रोकना मत। आपने अगर श्वॉस को रोककर रख लिया, तो आपका दम घुट जायेगा और आप मर जायेंगे। श्वॉस आपको छोड़ना ही चाहिए। रोटी आप खायेंगे बेशक, लेकिन रोटी को पेट में रोकिए मत। अगर आप ने रोक लिया, तो आपका पेट फूल जायेगा, दर्द हो जायेगा, उल्टी हो जायेगी। उसका निष्कासन होना ही चाहिए। खाद्य के रूप में जो अनाज आपने खाया है, उसे वापस करना ही पड़ेगा और करना ही चाहिए। अगर आप दुनिया में खाद पैदा नहीं होने देंगे और पेट में अनाज खाते हुए चले जायेंगे, तो फिर आपका पेट फूल जायेगा। श्वॉस को रोकिए मत, पेट में अनाज को रोकिए मत, चलने दीजिए, जैसे कि पहिया घूमता है। पहिये को घूमने दीजिए।
पहिये को घूमने नहीं देंगे और यह कहेंगे कि हमारी कमाई पर समाज का कोई हिस्सा नहीं है। हमने कमाया है, केवल हम ही खायेंगे। हम इसमें से किसी को कुछ भी देने वाले नहीं हैं। तब आप इंसानी फर्ज से महरूम हो जाते हैं और आप मनुष्य के कर्तव्य से च्युत हो जाते हैं। यज्ञ का यही शिक्षण था, जो हमने किसी जमाने में दुनिया को दिया था और इंसानों के भीतर देवता को जिंदा रखा था।
विश्वशान्ति का माध्यम था यज्ञ
मित्रो! अब इंसान के भीतर से देवता मरता जा रहा है। अब देवता हमारे मंदिर में रह गया है। हमारी आत्मा का देवता मिट गया। हमारे हृदय का देवता मर गया, हमारी भावनाओं का देवता मर गया। अगर कहीं देवता जिंदा रह गया है, तो पत्थर के देवता के रूप में मंदिर में बैठा हुआ है। हमारी आत्मा में से देवता क्यों निकलना चाहिए? यज्ञ हमको यही शिक्षण देता है। यह बड़ी महत्त्वपूर्ण फिलॉसफी थी यज्ञ की, जो हिन्दुओं ने पूरे विश्व के लाखों-करोड़ों लोगों को सिखाई है, जिससे दुनिया में शांति बनी रही।
यज्ञ की शिक्षाओं को मैं आपको क्या बताऊँ? इसके प्रभाव से शरीर का स्वास्थ्य अच्छा होता है, बेशक अच्छा होता है। अभी वह समय आयेगा कि यह दुनिया की सबसे बेहतरीन ‘पैथी’ मानी जायेगी। दुनिया में अनेकों पैथियाँ हैं, जैसे—एलोपैथी, होम्योपैथी, नेचरोपैथी, क्रोमोपैथी आदि अनेक पैथियाँ हैं, लेकिन एक पैथी ऐसी भी है, जो मनुष्य के भीतर चली जाती है और हजारों मनुष्यों का इलाज कर देती है। आप यज्ञ का धुँआ करते हैं। धुँआ करने के बाद में यज्ञोपैथी से इसका इंजेक्शन भी बनकर के तैयार होता है और हवा में उड़ता हुआ चला जाता है। चेचक के टीके बच्चों को लगाते हैं। बच्चे स्कूल में से भाग जाते हैं। हमारी तरफ तो ऐसा होता है, आपकी तरफ क्या होता है? मालूम नहीं। चेचक का टीका लगाने वाला आया और बच्चे भागे। सारा स्कूल खाली हो गया। अरे साहब! बुखार आ गया, सो स्कूल से जल्दी आ गया।
सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा है यज्ञ चिकित्सा
मित्रो! इस तरह यज्ञोपैथी से आपने जड़ी-बूटियों का इंजेक्शन बनाया। जो आदमी गहरी नींद में खर्राटे ले रहा था, जड़ी-बूटियों का बना आपका इंजेक्शन उसे नाक के द्वारा पिला दिया गया। नाक में से होकर वह सारे शरीर में घूम गया। बुखार कम हो गया है, बीमारियाँ कम हो गयी हैं। कैसा बढ़िया इंजेक्शन है। ऐसा बढ़िया इंजेक्शन कोई अस्पताल बना सकता है? यह बहुत ही बढ़िया अस्पताल है, जो कीड़े-मकोड़ों से लेकर जानवरों, पशुओं, पक्षियों, मनुष्यों एवं सोते हुए रोगियों तक की बीमारियों को दूर करने वाला है। अगर आपका-दो रुपया खर्च भी हो जाये, तो क्या बेजा हो गयी? गलती की क्या बात हो गयी? यह हमारी फिलॉसफी है, यह हमारी साइंस है, जो मनुष्य को देवता बनाती है और मनुष्य को ऊँचा उठाती है। यज्ञ हमारे मस्तिष्क की बीमारियों की दवा है।
मित्रो! मनुष्य की ऐसी बहुत सी बीमारियाँ हैं, जिनको हम दिमाग की बीमारी कह सकते हैं। आप और हममें से अधिकांश लोग दिमागी रूप से बीमार हैं, जिनके लिए कोई दवा बन करके तैयार नहीं आयेगी। स्त्री ने दाल में नमक कम डाल दिया तो हम गुस्से में भुन-भुनाते हुए गये और थाली को स्त्री के सिर पर दे मारा। सिर में जख्म हो गया। वह अस्पताल गयी और पट्टी बँधाना पड़ा। वह कई दिनों बाद ठीक हुई। बच्चे रोते फिरे। मोहल्ले वालों ने गालियाँ दीं। बीबी के मायके खबर पहुँची, तो उन्होंने कहा कि हमारी बेटी को तूने मार डालने के लिए शादी की थी क्या? आईंदा तूने अगर ऐसी हरकत की तो बहुत दुःख पाओगे और हम अपनी बच्ची को ले जायेंगे। दुनिया भर में क्लेश पैदा हो गयी-कलह पैदा हो गयी। गुस्सा क्यों आ गया? क्योंकि दाल में नमक कम था। अरे भाई! कम लगा तो जरा-सा और डाल लेते। यह क्या हो गया? दिमागी बीमारी है। दिमागी बीमारियाँ इस कदर फैली पड़ी हैं कि मैं आपसे क्या कहूँ?
मित्रो! आदमी एक तरह से पागल हुआ चला जाता है। बात-बात पर तुनक मिजाज, बात-बात पर गुस्सा जरा-सी बात है। गुस्सा हमारी नाक पर रखा रहता है। जरा-सी कोई भी बात हो, किसी ने कुछ कह दिया और आप आग-बबूला हो गये। स्कूल में लड़का फेल हो गया और रेल के नीचे कट गया, जहर खा लिया और अब मरे-तब मरे। यह क्या हो गया है? हमारे दिमाग में यह बुखार के रूप में आता है। इस बुखार की कोई दवाई है क्या आपके पास? शारीरिक बुखार की दवा तो है, पर दिमागी बुखार की दवा अभी तक कोई तैयार नहीं की जा सकी है। लेकिन हमारे हवन की फैक्ट्रियों में और हवन के कुण्डों में दिमागी बीमारियों की दवा तैयार की जाती है।
यज्ञ की वायु कैसी सुन्दर होती है, अगर आप इसको कभी इस्तेमाल करके देखें, तो आप पायेंगे कि दिमागी बीमारियों को दूर करने के लिए कैसा सुन्दर दवाखाना और अस्पताल है यह। आपको क्रोध आता हो, आपका मन अस्थिर रहता हो, दूसरी शिकायतें हों, मन अशांत रहता हो, उद्विग्न रहता हो, कभी चिन्ताएँ आती हों, तो हवन के धुएँ का जरा सा लाभ लीजिए। अपने घर में एक छोटा सा हवन कुण्ड रख लीजिए और पाँच आहुतियाँ गायत्री महामंत्र बोलते हुए रोज दे दिया कीजिए। फिर देखिए कि यह दवा काम की है कि नहीं। हमारा कहना मत मानिये, आप अपने आप खुद इस्तेमाल कीजिए और अपने घर में घी बनता है, तो उसका इस्तेमाल कीजिए। एक-दो रुपये का खर्च है, कौन-सी बड़ी बात है। एक छोटा-सा हवनकुण्ड लेकर के गायत्री मंत्र की आहुतियाँ देकर के आप हवन कर लीजिए और उसके लाभ से अपना और दूसरों का शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य सही रखिये।
यज्ञ का अद्भुत सामर्थ्य
मित्रो! गायत्री मंत्र में शक्ति है। यज्ञ में शक्ति है। यज्ञ की शक्ति को हम जानते हैं। मशीन की शक्ति को भी हम जानते हैं। मंत्र की शक्ति में भी एक मशीन है। इस मशीन के द्वारा किस तरीके से वाइब्रेशन पैदा किए जाते हैं। किस तरीके से ऊर्जा पैदा की जाती है, यह बात लोगों की समझ में शायद आज न आये, लेकिन कल का विज्ञान बतायेगा कि मनुष्य के भीतर की मशीन एक एटामिक भट्ठी की तरीके से है। इसके अंदर से जो ऊर्जा पैदा की जाती है, वह इतनी जबर्दस्त होती है। उस जबर्दस्त ऊर्जा का शमन किस तरह से किया जाय, यही मंत्र विद्या है। मंत्र विद्या को बलवान और ताकतवर बनाने के लिए, जिन डायनमो की जरूरत होती है, जिन बैट्रियों की जरूरत होती है, उसका नाम हवनकुण्ड है। मंत्रों में अपने आप में शक्ति है, लेकिन उसको असंख्य गुनी जोरदार बनाना हो, तो जैसे—लाउडस्पीकर आप लगा देते हैं और छोटी आवाज बहुत बड़ी हो जाती है। ठीक उसी प्रकार से वेदमंत्रों की आवाज हवनकुण्ड की बैट्रियों के द्वारा, माइक्रोफोनों के द्वारा, उनके जो एम्प्लीफायर है, उनके द्वारा, डायनमो के द्वारा मंत्रों की शक्ति आसमान में बहुत फैल सकती है। आपको पता है न कि सिनेमा के गानों की शक्ति आसमान में कितनी फैल गयी है और आदमी को सिनेमा के गंदे और फूहड़ गाने याद हैं? हमारे बच्चों को याद हैं। आदमी के दिमाग में वही खुराफात याद आती रहती है। आकाश में फैलती हुई लहरें न जाने कहाँ-से-कहाँ, क्या करती रहती हैं?
मित्रो! यदि इसी आसमान में हम वेदमंत्रों की लहरें—यज्ञों के डायनमो, बैट्रियों के माध्यम से, भट्ठियों के माध्यम से फैला दें, तो फिर हम एक नयी फिजा पैदा कर सकते हैं और नयी दुनिया बना सकते हैं। यज्ञ का अपने आप में बहुत महत्त्व है। बहुत-सी बातें आपको बता सकते हैं, परंतु अभी बहुत-सी बातें न बताकर खास बात कहता हूँ कि आप यज्ञ के साथ में पैदा किये गये हैं।
गीता कहती है—‘‘सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टा, पुरोवाच प्रजापतिः।/’’ —३/१० प्रजापति ने यज्ञ के समेत मनुष्य को पैदा किया। आप अकेले पैदा नहीं हुए। आप दो भाई पैदा हुए हैं और एक आप हैं। आप कहेंगे कि हम तो अकेले ही पैदा हुए थे। दो कब पैदा हुए? आप गलत बात कहते हैं। हम तो अपनी माँ के पेट से अकेले ही पैदा हुए थे। आप अकेले पैदा नहीं हुए है। आप दो आदमी साथ-साथ पैदा हुए हैं। यज्ञ भी आपके साथ में पैदा हुआ है। यज्ञ साथ में कैसे पैदा हुआ? आपकी माँ के पेट में एक बूँद आ गयी कहीं से। माँ अपने शरीर की जवानी का रस, हड्डियाँ, खून, मांस—सब उस छोटी सी बूँद के ऊपर टपकाती चली गयी और नौ महीने तक सारे का सारा अपनी जवानी का रस निचोड़कर, उसे पोषित करती रही। उस बेचारी को उल्टी होती रही, कराहती रही, सिर में दर्द होता रहा, लेकिन अपना खून-पसीना निचोड़-निचोड़कर बच्चे को देती रही।
मित्रो! माँ ने क्या नहीं दिया? किसी का २५ सीसी. खून इंजेक्शन द्वारा लगवाते हैं, तो उसके लिए हमको ढेरों पैसे देने पड़ते हैं? डॉक्टर भी ढेरों पैसे हमसे वसूल कर लेते हैं। हमको चोट लग जाय और किसी को खून देना पड़े तो उसका एहसान हो जाता है। आप हमको खून दे दो, तो जन्म भर एहसान रहेगा कि भाई! हमारे ऊपर मुसीबत आ गयी थी और हमारा एक्सीडेंट हो गया था, तब आपने हमें खून दिया था। आपके खून से हम जिंदा रहेंगे और आपका जीवनभर एहसान मानेंगे। जरा-सा पचास सीसी. खून के लिए आप उस व्यक्ति का एहसान मानते हैं, लेकिन जिस माँ ने अपना इतना सारा खून, हड्डियाँ, माँस बराबर नौ महीने तक दिया, तो क्या यह त्याग नहीं है? यज्ञ नहीं है?
यज्ञ माने होता है—सैक्रीफाइस। यज्ञ होता है—कुर्बानी के लिए, बलिदान के लिए, सेवा के लिए। इंसान कहाँ से पैदा होता है? माँ के प्यार में से पैदा होता है। त्याग में से पैदा होता है, बलिदान में से पैदा होता है। लाल रंग के खून को सफेद रंग के दूध में बदल करके नौ-दस महीने नाराजगी से नहीं, गुस्सा होकर के नहीं, खीझ करके नहीं, वरन् प्यार से छाती से चिपकाकर रखती है और कहती है कि बेटे, दूध पी ले। दूध क्या है? उसके चेहरे की जवानी है। लड़की दुबली होती चली जाती है। चेहरा मुरझा जाता है। लाल रंग मुरझा जाता है। आँखें गड्ढे में धँसती चली जाती हैं। चमड़ी ढीली होती चली जा रही है, तब भी वह बेटे को दूध पिलाती चली जा रही है।
मित्रो! क्या आप यज्ञ के बिना पैदा हुए थे? नहीं, आप यज्ञ के बिना पैदा नहीं हो सकते थे। अगर माँ ने इंकार कर दिया होता कि इस गंदे बच्चे के लिए, मैं अपनी जवानी का हिस्सा खर्च नहीं कर सकती, जो सब दिन गंदगी फैलाता रहता है। रात को जगाता है। मैं दुनिया में शौक-मौज करने के लिए आयी हूँ कि इस बेकार और फूहड़ लड़के को पालने के लिए जिंदा रहूँ। फेंक दो इसे। मैं इस बच्चे को पैदा नहीं करूँगी। फिर तब आप क्या पैदा हो सकते थे? नहीं, आप पैदा नहीं हो सकते थे, फिर आप जाने कहाँ होते। कहीं हवा में बैठे होते। बाप के पेट में बैठे होते। आज आप जो इस तरह से नौकरी कर रहे हैं, अपना काम कर रहे हैं। एम0ए0 पास हो गये हैं। अपनी क्षमता और वजन रखकर आप दुनिया में कुछ बन सकते थे? नहीं आप नहीं बन सकते थे। यह था सैक्रीफाइस घर वालों के लिए। यह था माँ का प्यार, जो छोटे बच्चे को लेकर के गीले में सोती रही। हमको सूखे में सुलाती रही। हम हर बार गंदगी करते रहे, हर बार हम उसको नुकसान पहुँचाते रहे।
मित्रो! हम उसकी चीजें बिगाड़ते रहे, तोड़ते रहे पर क्या मजाल कभी उसे गुस्सा आ जाय? हर वक्त वह हमें मोहब्बत करती रही। एक ओर हमारे द्वारा परेशान किया जाना और दूसरी ओर मोहब्बत किया जाना, क्या यह माँ का त्याग नहीं है? माँ का प्यार नहीं है? चिड़िया का अण्डा जिंदा रह सकता था, पर हम बिना माँ के जिन्दा नहीं रह सकते थे। अगर माँ ने पेट में से निकालकर फेंक दिया होता, तो मुर्गी का अण्डा जी सकता था। दूसरे जानवर जिंदा रह सकते थे। माँ के पेट में से निकालने के बाद कबूतर जिंदा रह सकता था, लेकिन हम जिंदा नहीं रह सकते थे। अगर माँ हमारी देख−भाल नहीं करती, दूध हमको नहीं मिलता, हमारी रखवाली नहीं करती, तो आदमी का बच्चा जीवित नहीं रह सकता था। यह किस तरीके से पैदा हुआ? यह यज्ञ के द्वारा पैदा हुआ, जिसको हम हवनकुण्डों के द्वारा याद कराते हैं कि यज्ञ इंसान का फर्ज है। यज्ञ इंसान के साथ में जुड़ा हुआ है।
जीवन का आधार है यज्ञ
मित्रो! आदमी का शरीर जिंदा है। यह किस तरीके से जिंदा है? जरा बताइये तो सही। यह यज्ञ के आधार पर जिंदा है। यज्ञ न हो तो आप जी नहीं सकते, आप मर जायेंगे। कैसे? हाथ ने कमाया। हाथ गया कमाता रहा। दस शिलिंग कमा करके लाया। हाथ ने कहा कि दस शिलिंग मेरा है। मैं तो नहीं देने वाला हूँ। फिर तो मुश्किल आ जायेगी। हाथ चला आया। अच्छा भाई! क्या होगा? चावल पकाया जायेगा, रोटी बनायी जायगी, दाल बनायी जायगी, खीर बनायी जायगी। अब दूध चढ़ाया जायगा और चाय बनायी जायगी। हाथ ने कमाया न? किसने खाया? मुँह ने खाया। हाथ ने खाया? नहीं हाथ ने नहीं खाया। कौन खा गया? मुँह खा गया। नहीं मुँह ने नहीं खाया। मुँह ने सिर्फ चबाया और चबा करके सॅलाइवा—लार निकाला और उस खुराक में सॅलाइवा को सम्मिलित कर दिया जो हाथ ने कमाया था। हाथ ने कमाया और फिर मुँह को दिया। मुँह ने चबाकर सॅलाइवा मिलाया और पेट में धकेल दिया और खुद उठा कुल्ला किया और दाँत में अनाज के जो छोटे कण लगे थे, उन्हें बाहर थूक दिया। उसने कहा कि हमें क्या करना है? हम तो पीसने के लिए पैदा हुए हैं। सॅलाइवा मिलाने के लिए हम पैदा हुए हैं। दूसरों की खुशहाली के लिए हम पैदा हुए हैं।
मित्रो! समाज रूपी शरीर की मशीन और पुर्जे की तरीके से हम पैदा हुए हैं। अगर हम अपने आपको इस समाज रूपी मशीन का पुर्जा न मानें, तो यह घड़ी बंद हो जायेगी। यह मशीन फेल हो जायेगी। इसलिए मुँह ने सिर्फ अपना फर्ज पूरा किया। फिर क्या हुआ? यज्ञ हुआ और हो रहा है। फिर क्या हुआ? मुँह का खाया हुआ अनाज पेट में चला गया। पेट ने क्या काम किया? पेट से मैंने कहा—‘‘दोस्त! तुझे खूब मजा मिला। दूसरों ने कमाया था, तुम इसको दबाकर रखो, बैंक में जमाकर दो या फिक्स डिपॉजिट कर दो। फिर किसी को मत देना, अपने पास जमा रखो। जो आ गया, सो अपना, देना मत।’’ उसने कहा—‘‘जा-जा, हमको क्या सिखाता है? ऐसा नहीं हो सकता। जो जमा करेगा, सो मरेगा।’’ इसलिए पेट ने क्या काम किया कि उसे हजम किया और उसमें कुछ चीजें मिलाईं और वह हजम होता चला गया। हजम होने के बाद जो चीजें बेकार थीं, वह हटा दी गयीं। जो काम की चीजें थीं, वे निकाल ली गयीं और उनका खून बना दिया गया। खून बना करके उसे कहाँ भेज दिया गया? दिल को भेज दिया गया। दिल से मैंने कहा—‘‘अब यह खून बहुत मजेदार है, बहुत कीमती है और फोकट में मिला है। तुम्हारी लॉटरी खुल गयी। केन्या गवर्नमेंट की लॉटरी है, दबा लो। किसी को देना मत, किसी को बताना मत। यह तुम्हारे किसी काम आ जायेगा।’’
सामाजिक चक्र है लेन-देन
मित्रो! हृदय ने कहा—चल, हमको मारने आया है-क्या? हम तेरी बात को नहीं मान सकते। हृदय का जो रक्त था, उसके लिए नन्हीं-नन्हीं नस-नाड़ियाँ मुँह फाड़े बैठी थीं। उनने कहा-पिताजी! आपके पास तो बहुत दौलत है, हमको नहीं देंगे क्या? हमारे पास तो कुछ भी नहीं है, हम सूख जाएँगी क्या? मर जाएँगी क्या? यह दौलत हमको नहीं मिलेगी क्या? बेटी! तुमको भी मिलेगी। बस, हृदय ने नाड़ियों को दिया और नसों में अपना खून फैलता चला गया। नाड़ियों ने देखा कि बाप ने सारा खून हमको दे दिया, क्या उसको वापस नहीं मिलना चाहिए? नाड़ियों ने कहा—पिताजी! आपका खून हम आपको वापस करती हैं। उन्होंने कहा—नहीं बेटा! हम आपको वापस करते हैं। हृदय नाड़ियों को देता है और नाड़ियाँ हृदय को देती हैं। हम सब इसी बात से जिंदा हैं।
डॉक्टर ने सीने पर स्टैथस्कोप लगाया और यह कहा कि अभी की स्थिति में लप-डप की आवाज हो रही है। अभी यह आदमी जिंदा है। जिस दिन नाड़ियाँ हृदय को खून देना बंद कर देंगी, फिर आप मर जाएँगे और जिस दिन हृदय ने नाड़ियों को खून नहीं दिया, उस दिन आपकी मौत आ जाएगी। जिस दिन नाड़ियाँ हृदय को वापस नहीं करेंगी, उस दिन आपकी मौत आ जाएगी। क्यों आ जाएगी? क्योंकि लेना भी आदमी का फर्ज है और देना उससे भी बड़ा फर्ज है।
यह समाज का चक्र है, जो इसी तरह से घूम रहा है। अगर आपने समाज के चक्र को पहचाना नहीं, तो आपने जीवन जीने की प्रक्रिया को समझा नहीं। आदमी के जन्म की रीति को आपने जाना नहीं। आदमी का शरीर किस तरीके से जिंदा है और किन सिद्धान्तों पर जिंदा है, यदि आपकी समझ में यह नहीं आया और इसे आप समझेंगे नहीं, तो आपका समाज मर जाएगा। आपके समाज में विग्रह उत्पन्न होंगे और खून-खराबियाँ पैदा होंगी, क्लेश उत्पन्न होंगे। हर बार लाखों आदमियों का खून-खच्चर हो जाएगा। समाज मर जाएगा और दुनिया तबाह हो जाएगी। सब नष्ट हो जाएगा। अतः आपको देना ही पड़ेगा और देना ही चाहिए। आपको लेना चाहिए, लेकिन देना और भी जरूरी है, अन्यथा अशांति आएगी।
क्या है सृष्टि का क्रम?
मित्रो! सृष्टि का क्रम किस तरीके से चलता है, जरा गौर कीजिए और देखिए कि दुनिया किस तरीके से चल रही है। समुद्र के पास बादल गए और बोले—साहब! हमको पानी की जरूरत है। आपके पास तो बहुत-सा पानी रखा हुआ है। समुद्र ने कहा—हाँ, मेरे पास पानी रखा हुआ है, तुम ले जाओ। बादल पानी भरकर ले गए। बादलों ने जमीन पर पानी को बरसाया। मिट्टी ने पानी को पिया। हरियाली पैदा हो गई। फिर क्या हुआ? जमीन ने जब पानी पिया, तो उसको ख्याल आया कि यह समुद्र का पानी है। इसे आगे चलना चाहिए, नहीं तो समुद्र खाली हो जाएगा। मिट्टी ने पानी पिया और छोटी-छोटी नालियों के द्वारा वह पानी चलने लगा। तालाबों में आया, फिर वही पानी धीरे-धीरे जमीन पीती चली गई और फिर से वही पानी नदियों में आ गया।
नदियों से मैंने कहा—देखो अब यह तुम्हारा पानी है, देना मत। अगर दे दोगी तो बेवकूफ कहलाओगी। जो चीज अपने हाथ में आ जाए, उसका इस्तेमाल करना चाहिए। खुद खाना चाहिए। किसी को हिस्सा नहीं बँटाने देना चाहिए। उन्होंने कहा—आचार्य जी! आप कहते तो सही हैं, लेकिन हमारा समुद्र सूख जाएगा। फिर हमारा क्या होगा। बादल हमको पानी कहाँ से देंगे। मैंने कहा—ठीक है! आप अपना पानी समुद्र को जरूर दीजिए। उसके बिना आपकी हस्ती दुनिया में कायम नहीं रह सकती।
मित्रो! बादलों से भी मैंने एक दिन कहा—बादलो! किसी को बिना कीमत के पानी मत दिया करो, दुनिया वाले बहुत चालाक हैं। आप एक एकड़ जमीन की सिंचाई का एक शिलिंग लेना। एक एकड़ जमीन पर जो कोई बादल पानी बरसाएगा, वह एक शिलिंग लेगा, तब पानी बरसाएगा। बादलों ने कहा—नहीं, साहब, हम आपकी बात नहीं मानते। अगर हम इस तरह एक शिलिंग के हिसाब से पानी बेचने लगेंगे, तो हमारी हस्ती दुनिया में से खतम हो जाएगी। पानी का हम क्या करेंगे? जब लोग नहीं खरीदेंगे, तो हम पानी भरे-भरे आसमान में कहाँ टँगे रहेंगे। हमको देना ही चाहिए।
मित्रो! बादल जमीन पर पानी बरसाते हैं, जमीन को पानी देत हैं। जमीन पेड़ों को देती है, मिट्टी को देती है। मिट्टी फिर नदियों को देती है। यह सृष्टि का चक्र चल रहा है। जो कोई भी इनमें से बदमाशी करेगा, दुनिया को तबाह करेगा और खुद तबाह होगा। अगर बादलों ने बदमाशी की, कि हम खुद जमा करेंगे और पानी बरसाएँगे, तो बादल मर जाएँगे। अकेले बादल ही नहीं मरेंगे, सारी दुनिया भी मरेगी। जमीन ने अगर यह किया कि हमने पानी पिया है और फोकट में बादलों से लिया है। हम तो जमा करके रखेंगे, हम नहीं देंगे, तो क्या हो जाएगा? जमीन मर जाएगी, गीली हो जाएगी, कीचड़ हो जाएगा, दलदल हो जाएगा और वहाँ कोई पौधा पैदा नहीं होगा। सब जमीन तबाह हो जाएगी और कोई फसल पैदा नहीं होगी। अगर जमीन ने पानी को नहीं दिया, इस चक्र को जारी नहीं रखा, तब सब जगह आफत आ जाएगी।
सृष्टि-चक्र का मूल सिद्धान्त है—यज्ञ
मित्रो! पैसे का सरक्युलेशन जारी रखना पड़ेगा। बुद्धि का सरक्युलेशन जारी रखना ही पड़ेगा। पृथ्वी को परिक्रमा जारी रखनी ही पड़ेगी। प्रेम की परिक्रमा जारी रखनी ही पड़ेगी। सहयोग-सहकार की भावना जारी रखनी ही पड़ेगी। एक दूसरे को सहायता की परिक्रमा जारी रखनी ही पड़ेगी। यह सृष्टि केवल एक ही सिद्धान्त पर टिकी हुई पड़ी है, जिसका नाम ‘यज्ञ’ है। यज्ञ के सिद्धांतों को हम सिखाते हैं। इसके द्वारा हमें क्या-क्या शिक्षाएँ मिलती हैं।
अग्नि हमारा पुरोहित है—‘‘अग्निमीले पुरोहितः।’’ यह अग्नि हमारा पुरोहित है। हम पुरोहित नहीं हैं। यह न बोलते हुए भी कितनी शिक्षाएँ देता है, आप जानते हैं क्या? अग्नि का सिर ऊँचा है, आप अग्नि-सा मजबूत बनिए। अपना सिर नीचे नहीं, ऊपर करो। आपका सिर हमेशा आसमान की तरफ रहना चाहिए। मोमबत्ती को जलाइए, उसकी लौ ऊपर की ओर रहेगी। दियासलाई जलाइए और उसका मुँह नीचे की ओर कर दीजिए, पर उसकी लौ सदा ऊपर की ओर ही रहेगी। लकड़ी जलाइए और उसे नीचे की ओर कर दीजिए, लौ ऊपर की ओर ही चलेगी।
मित्रो! आदमी का दिमाग हर मजबूरी में, हर परेशानी में गंदा और फूहड़ नहीं होना चाहिए। कमीना और नीच नहीं होना चाहिए। कुचक्री और चालाक नहीं होना चाहिए। हर मजबूरी में भी आदमी का दिमाग और आदमी की समझ ऊँची रहनी चाहिए। यही हमारी अग्नि की शिक्षा है। वह बोलती नहीं है, तो क्या हुआ? बोलने के लिए हम और आप काफी हैं। मैं कहूँगा कि वे बकवासी लोग हैं, जबान के फूहड़ लोग हैं, आप उनको उपदेश दीजिए। लेकिन आपको दिखाने लायक न तो मैं काम करता हूँ और न मुझे दिखाने लायक आप काम करते हैं।
अग्नि की सच्ची शिक्षा
आदमी बकवास करते हैं और अपनी क्रिया के द्वारा किसी को कोई शिक्षण नहीं देते हैं, लेकिन अग्नि अपनी क्रिया के द्वारा शिक्षण देती है कि हम अपना सिर ऊँचा रखें। अग्नि हमें और क्या शिक्षा देती है? यही शिक्षा देती है कि जो कोई भी चीज अपने भीतर डाली जाए, वह गरम रहनी चाहिए और उसे अपने समान बना लेना चाहिए।
मित्रो! आप हिन्दुस्तान से आए थे, फिर आपने इतने लोगों को यहाँ तक क्यों नहीं बना लिया। जब भगवान बुद्ध ने अपने ढाई लाख शिष्य विदेशों में भेजे थे, तब शिष्यों को शिक्षा दी और कहा—बेटा! भगवान की पूजा यही है कि तुम हिंदुस्तान से बाहर चले जाओ। उस जमाने में लकड़ी के जहाजों में भर करके लोग इंडोनेशिया को भेजे गए, मलाया को भेजे गए, जावा को भेजे गए, सुमात्रा को भेजे गए। बोर्निया को भेजे गए, सीलोन को भेजे गए, मेडागास्कर को भेजे गए। अपनी खुराक उन्होंने वहीं कमाई, रोटी उन्होंने वहीं कमाई, लेकिन अपनी संस्कृति और सभ्यता से ओत-प्रोत होकर उन देशों को किसी जमाने में ज्ञान दिया, बुद्ध का संदेश सुनाया। आप एक हजार वर्ष का इतिहास उठाकर देखिए, खुदाई देखिए, तो आपको मालूम पड़ेगा कि हिंदू सभ्यता और हिंदू संस्कृति सारे एशिया में छा गई थी। एशिया ही नहीं, अमेरिका तक जा पहुँची थी। क्यों? क्योंकि इन ढाई लाख आदमियों ने काम किया था।
मित्रो आप हिंदुस्तान के व्यक्ति यहाँ अफ्रीका में किस काम के लिए आए थे? जवाब दीजिए। आपको इन्हीं उद्देश्यों के लिए यहाँ आना चाहिए था। आपको यहाँ के लोगों को सभ्यता और शिक्षा सिखाने के लिए, यहाँ के लोगों को कर्मनिष्ठ बनाने के लिए, अपने समान शिक्षित और सुयोग्य बनाने के लिए आना चाहिए था। क्या हमने वह काम किया? अगर हमने वह काम किया होता, तो हम यज्ञ को, अग्नि को बहुत मानने वाले व्यक्ति होते।
आग में जो चीज डाल दीजिए, वह उसे अपने समान बना लेगी। लकड़ी डाल दीजिए, वह आग हो जाएगी। लोहा डाल दीजिए, लोहा आग में गरम होने के बाद आग जैसा लाल हो जाएगा। मिट्टी डाल दीजिए, थोड़ी देर में मिट्टी आग हो जाएगी। यहाँ तक कि आप गोबर, मैला और गंदगी डाल दीजिए, थोड़ी देर में सब आग हो जाएँगे। गंदी चीजों को आप अपने समान योग्य नहीं बना सके, तो यह बड़े शरम की बात है आपके लिए भी और हमारे लिए भी। हमारी सभ्यता और संस्कृति के लिए भी, हमारे पुरोहित और हमारे यज्ञीय आदर्शों के लिए भी, जिनको जिंदा करने के लिए हम फिर दोबारा यहाँ आए हैं।
जीवित करें अपने यज्ञीय आदर्श
मित्रो! यज्ञीय आदर्श हमारे अंदर जिंदा रहे तो हम अग्नि के समान जैसे श्रेष्ठ आर्य हैं, उच्चकोटि के हिंदू हैं। हम जहाँ कहीं भी रहेंगे, सबको अपने समान बना करके रहेंगे, चाहे कोई भी क्यों न हो? यह शिक्षा यज्ञ की है।
मित्रो! यज्ञीय शिक्षण आपको बताता है कि अग्नि आपका पुरोहित है, गुरु है। अग्नि का मतलब यह है कि आप जहाँ कहीं भी जाएँ, वहाँ के लोगों को अपने समान बना लें। यह बात अगर आपकी समझ में नहीं आती, तो यज्ञ आपको सिखाता है कि आपको ऐसा करना चाहिए, जैसा मैं करता हूँ, मुझको देख लें। मैं खाली बकवास नहीं करता, मुझे व्याख्यान देना नहीं आता। व्याख्यान देना तो आचार्य जी को आता है और दूसरे पंडितों को गाल बजाना आता है, लेकिन अग्नि का पुरोहित गाल नहीं बजाता, वह अपना कर्म करके दिखाता है कि देखो हमारे पास जो आता है, उसे हम अपना बना लेते हैं। तुम्हारे पास भी जो आए, उसे अपना बना लो।
कार्य करें, बकवास नहीं
यज्ञ का शिक्षण यही है कि आदमी को गरम रहना चाहिए और प्रकाशवान होना चाहिए। आग गरम रहती है और प्रकाशवान रहती है। बुझ जाएगी, लेकिन जब तक जिंदा रहेगी, तब तक गरम रहेगी और प्रकाशवान रहेगी। गरम से क्या मतलब है और प्रकाशवान से क्या मतलब है? गरम से यह मतलब है कि हमारी नसों में गरमागरम खून चलना चाहिए। हमारे क्रिया और कर्म मरने के वक्त तक सतत चलने चाहिए। बूढ़ा आदमी हो तब क्या और जवान आदमी हो तब क्या? बूढ़े आदमी के काम करने के तरीके अलग हैं और जवान आदमी के तरीके अलग हैं।
मित्रो! विनोबा भावे अस्सी वर्ष के हो गए। उनके काम करने का तरीका अलग है। वे लेखन का काम करते हैं, लेकिन अलग तरीके से करते हैं। वे अपने तरीके से करते हैं। उनका अलग तरीका है, पर काम करते हैं। गाँधी जी अस्सी वर्ष के करीब हो गए थे। बराबर काम-काज करते रहते थे। पंडित नेहरू पचहत्तर-छिहत्तर वर्ष के थे, लेकिन जवान आदमी के तरीके से करते थे।
आदमी को बूढ़ा नहीं होना चाहिए। मर जाना कोई खराबी की बात नहीं है, लेकिन बूढ़ा होना आदमी के बेइज्जती की बात है। बूढ़े मत होना चाहे मर जाएँ, लेकिन हरदम जवान रहना। लोग कहते हैं कि साहब! बुढ़ापा आएगा तो कैसे जवान रहेंगे? बुढ़ापे में तो आदमी और भी अच्छा हो जाता है। सफेद बाल हो गए तो क्या हो गया? सफेद बाल होना क्या खराब बात है? सफेद बाल होना तो बहुत अच्छी बात है। अच्छा बताओ लड़कियों, तुम्हारे लिए दूल्हा ढूँढ़ें तो सफेद वाला ढूँढ़ें या काले वाला? हमको सफेद चाहिए, हमको काला नहीं चाहिए। अच्छा बच्चो! तुम बताओ जिसकी शादी नहीं हुई है। तुम्हें सफेद बहू चाहिए या काली बहू चाहिए। गुरुजी काली नहीं, सफेद चाहिए। अच्छा बताओ कि सफेद बाल अच्छा होता है या काला अच्छा होता है? हमारे बाल अच्छे हैं या तुम्हारे बाल अच्छे हैं? काले बाल अच्छे हैं।
मित्रो! हमारे बाल सफेद हो गए हैं। हम बढ़िया हैं या आप बढ़िया हैं? हम खूबसूरत हैं या आप खूबसूरत हैं। जो आम कड़ा होता है, वह महँगा बिकता है या पिलपिला और पका हुआ आम महँगा बिकता है? जो पीला पड़ जाता है, पक जाता है, उसके दाम ज्यादा होते हैं या कच्चे आम के दाम ज्यादा होते हैं? पके आम के दाम ज्यादा होते हैं न? अब देखो हम कैसे हैं? हम पिलपिले हैं। हमारे गाल पिलपिले हो गए हैं और आपके अभी कड़े हैं। आप सब बेकार आदमी हैं, हम यह सब जानते हैं। हम बढ़िया आदमी हैं। बूढ़ा होने से बहुत फायदा रहता है। हमारी अग्नि यही कहती है कि आदमी को जब तक जीना हो, तब तक जवान हो करके जीना चाहिए, बूढ़ा हो करके नहीं जीना चाहिए। आदमी को रोशनी देने वाला जीना चाहिए। दीपक की तरह से रोशनी देते हुए जिएँ।
दीपावली की रात अन्धकार छाया हुआ था। लोगों ने कहा कि चारों ओर अँधेरा छाया हुआ है, सूर्यनारायण चलिए, निकालिए और रोशनी दीजिए। सूर्यनारायण ने कहा—भाई! अब तो हमको फुरसत नहीं है, हम नहीं जाते। अँधेरा है तो तुम भुगतते रहना। लोग-बाग चन्द्रमा के पास गए और कहा—चंद्र महाराज! रात घना अँधियारा है। आप चलिए, निकलिए। उन्होंने कहा—नहीं भाई, हमको ओवरटाइम नहीं करना है। आज छुट्टी का दिन है, हम नहीं जाएँगे। लोगों ने कहा—दीपावली की रात, कार्तिक का महीना, क्या किया जाए? मिट्टी के दीपक उठे। जरा-सी रूई और जरा-सा तेल लेकर दीपक जलने लगे। सब जगह अँधेरा छाया हुआ था। दीपकों ने कहा—हम रोशनी पैदा करेंगे और हम जलेंगे और उजाला करेंगे। दीपावली दीयों का—दीपकों का त्यौहार है। इस दिन अंधकार के ऊपर दीपकों की विजय हुई। हम हर साल अमावस्या को दीपावली मनाते हैं और यह कहते हैं कि ‘रोशनी की जय, अँधेरे का क्षय’। ‘अंधकार मिटाओ और दीपक जलाओ’। आप लंबे-लंबे मनुष्य हो तो क्या, छोटे हो तो क्या, आप अपने-अपने कार्यक्षेत्र में रोशनी पैदा कर सकते हैं।
परमात्मा की संतान है मनुष्य
मित्रो! जिस तरह अग्नि प्रकाशवान है, उसी तरह हर आदमी भगवान का बेटा है। हर आदमी शक्ति का पुंज है। हर आदमी के अंदर वह शक्ति विद्यमान है, जिससे वह जहाँ कहीं भी रहे, रोशनी पैदा कर सकता है। धर्मपरायण बन सकता है। धर्म में रुचि पैदा कर सकता है। कुछ दिशाएँ पैदा कर सकता है। सब कुछ पैदा कर सकता है। हमारे दीपक की अग्नि हमको यही सिखाती है। वह सिखाती है कि अग्नि की पूजा की उपासना करने वालो, आप हमारी उपासना करो, पर साथ-साथ गरमी और रोशनी पैदा करना भी सीखो।
यह शिक्षण किसका है? हमारे पुरोहित का। हमारा पुरोहित कमाता तो बहुत है, पर जमा नहीं करता; जबकि हम जमा करने में होशियार हैं। अग्नि में आप घी डाल दीजिए। कहाँ गया? बाँट दिया। मिठाई डाली। कहाँ गई? अरे! बाँट दिया। हमारे पास जमा है। इधर से कमाते हैं, उधर खरच कर देते हैं। आप कमाइए बहुत, पर खरच कर दीजिए। इससे पहिया घूमता रहेगा। अमेरिका की आर्थिक पॉलिसी इसी पर टिकी हुई है। वे कहते हैं कि कमाओ बहुत, पर खरच करो। जमा मत करो। जो कोई जमा करेगा, वह देश की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ डालेगा। खरीदी गई हर मोटर को नीलाम कर दीजिए, बेच दीजिए, समुद्र में फेंक दीजिए, फिर नई मोटर लीजिए। पैसे को रोकिए मत, खरच कीजिए। भले ही खा जाइए, लेकिन जमा मत कीजिए। खरच करने से पैसे का सर्कुलेशन बना रहेगा और अर्थव्यवस्था बनी रहेगी।
मित्रो! हमको जमाखोरी आती है और हमको जेवर पहनना आता है। हमको कमर में सोने की रस्सी बाँधना आता है। हमको जमीन में धन गाड़ना आता है। हमको मकान बनाना आता है और न जाने हमको क्या-क्या आता है? हम धनाढ्य बनना चाहते हैं, जमाखोर बनना चाहते हैं, परिग्रही बनना चाहते हैं। यह गलत तरीका है। यह मधुमक्खी वाला तरीका है। यह दूसरे लोगों के लिए फायदेमन्द हो सकता है, पर शहद की मक्खी के लिए कोई फायदेमन्द नहीं है। युगांडा में जमाखोरी के कारण सारे मिल वाले भाग गए। जितने भी थे, सब मिल छोड़कर भाग गए। आप दूसरे तरीके से काम कीजिए।
अध्यात्मवाद और साम्यवाद पैसे के संबंध में एक हैं। इनकी बातों में फरक है। जैसे हम भगवान को मानते हैं और कम्युनिस्ट नहीं मानते हैं। हम पूजा करते हैं और वे पूजा नहीं करते। हम सदाचार को मानते हैं, वे नहीं मानते। बहुत-सी बातों में फरक है। लेकिन जहाँ तक पैसे का संबंध है, वह अध्यात्मवाद और साम्यवाद में कोई खास फरक नहीं है। एक रत्ती भर का फरक है। वे इतना कहते हैं कि जबरदस्ती ले लो और हम कहते हैं कि इच्छापूर्वक दे दो। अपने पास रखो मत। हम अपरिग्रह के अनुगामी हैं और यह कहते हैं कि परिग्रह मत करो।
पंचमहाव्रत
मित्रो! शास्त्रों में पाँच तरह के व्रत एवं तप बताए गए हैं—अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह। उसके साथ ही पाँच पाप बताए गए हैं—हिंसा, चोरी, झूठ बोलना और संग्रह करना आदि पाँच पाप हैं। पाँच पाप हम भी बताते हैं और लेनिन भी बताता है। इस मामले में लेनिन और ऋषि एक हैं। दोनों का मत एक है। हमारा यज्ञ यह बताता है कि जो भी आपके पास है, उसको बाँट दीजिए और समाज में वितरण कर दीजिए। यह समाज-व्यवस्थाएँ हैं। यह मानवीय नीति के सिद्धांत हैं। दुनिया में शांति लाने के लिए ये सिद्धांत हैं। विश्वशान्ति के ये सिद्धांत हैं। इस फिलॉसफी के लिए हमारे यज्ञ हो रहे हैं। यह शांति के लिए यज्ञ होगा। भगवान आएँगे, देवता आएँगे। देवता प्रसन्न होंगे। देवता किस मायने में आएँगे? श्रेष्ठ विचारों के रूप में, ऊँचे ख्यालों के रूप में आएँगे।
मित्रो! देवता कोई मनुष्य नहीं हैं, जो भाग करके आपकी मिठाई खाने के लिए आते हैं। आपकी मिठाई खाने के लिए देवताओं को आने की फुरसत नहीं है। आपके तीन चावल और दो फूल लेने के लिए देवताओं के पास टाइम नहीं है। देवता बहुत बिजी थे और घड़ी देख रहे थे कि यज्ञ में कितना टाइम लगेगा? पाँच दिन का समय लगना चाहिए। गुरुजी! हमको पाँच दिन की फुरसत नहीं है। ब्रह्मा जी आप चलो, विष्णु भगवान आप चलो, बृहस्पति जी आप चलो, शुक्र देवता आप चलो। सब देवता चले और यहाँ पर कितने दिन बैठे? पाँच दिन बैठे। खिलाओगे क्या? चावल, रोली, धूप, दीप और शक्कर की गोली।
चले जाओ हमारे पास फालतू वक्त नहीं है। क्यों? कोई देवता नहीं आएगा। फिर कौन से देवता आएँगे? ऊँचे ख्याल आएँगे, ऊँची भावनाएँ आएँगी। देवता इन्हीं का नाम है। ऊँचे विचारों का नाम देवता है। ऊँचे सिद्धांतों का नाम देवता है। ऊँची क्रियाओं का नाम देवता है। यही देवता हैं। इनकी प्रतीक मूर्तियाँ हमने बना ली हैं, ताकि हम मनुष्यों को, बच्चों को ठीक तरीके से समझा सकें और हम समझते भी हैं कि देवता यही हैं। इन देवताओं का आह्वान करने के लिए, देवताओं को बुलाने के लिए हम यज्ञ की व्याख्या कर रहे हैं और ब्राह्मण को करनी चाहिए।
यज्ञीय परंपराओं की रक्षा
मित्रो! किसी जमाने में ब्राह्मण इन्हीं यज्ञीय परंपराओं के आधार पर भगवान से भी बड़ा रहा है। एक बार ऐसा हुआ कि भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा के चरण धोए। ब्राह्मण के चरण धोएगा भगवान? हाँ, ब्राह्मण के चरण धोएगा भगवान। महाभारत में एक कथा आती है। एक बार ऐसा हुआ कि विष्णु भगवान शेषशैय्या पर सोए हुए थे। पहरेदार वहाँ किसी को जाने नहीं दे रहे थे। ब्राह्मण भृगु गए और भगवान से शिकायत की—महाराज जी! दुनिया में क्या हो रहा है? आप सुनते नहीं हैं और पहरेदारों ने कह दिया कि भगवान सो गए हैं। अभी तो लंच टाइम है और भगवान नहीं आने वाले हैं।
भृगु गए और उन्होंने भगवान के सीने पर लात मारी। लात खाकर के भगवान तिलमिलाकर उठ बैठे और उन्होंने कहा—आप कहाँ से पधारे हो? उन्होंने कहा—हम ब्राह्मण हैं और हम उद्बोधन करते हैं। भगवान कहाँ सो गया? उन्होंने भगवान विष्णु के सीने पर लात मारी। विष्णु भगवान उठे और उनके पावों को धोया। कहा—गुरुदेव! आपके पैर में मेरे कठोर हृदय का कोई निशान तो नहीं बना? उन्होंने कहा—निशान तो नहीं बना, लेकिन विष्णु भगवान के सीने पर ब्राह्मण की लात का निशान बन गया।
मित्रो! विष्णु भगवान की फोटो में अभी भी ब्राह्मण के पैर का निशान बना हुआ देख सकते हैं। जहाँ भगवान की प्रशंसा की जाती है, वहाँ भृगु की लात की बात भी बताई जाती है। विष्णु भगवान के सीने पर बैजयन्ती माला है, मुकुट धारण किए हुए हैं, पर भृगु की लात का चिन्ह भी सीने पर बना हुआ है। ऐसा विष्णु भगवान की कथा में आता है। तो लात खाकर के विष्णु भगवान भी ठीक हो सकते हैं। कौन-सा ब्राह्मण? वह ब्राह्मण, जो यज्ञ के द्वारा पकाया गया है। जिसने यज्ञ के सिद्धांतों को समझा। यज्ञ के आधार पर जीवन का निर्माण किया। यज्ञ की गतिविधियों को विश्व में संव्याप्त करने के लिए अपने समय, श्रम, पसीने और बुद्धि का इस्तेमाल किया। आपको ऐसा ही यज्ञ करना चाहिए। ऐसे ही यज्ञ की प्रतिध्वनि बनानी चाहिए। भगवान करे आपका सौ कुंडीय यज्ञ इसी प्रकार का हो, जो जनजाग्रति को उत्पन्न करने वाला और आपके जीवन को दिशा देने वाला और आपके जीवन की गतिविधियों में श्रेष्ठता, उत्कृष्टता और आदर्शवादिता का समावेश करने वाला बने। भगवान करे आपका यज्ञ ऐसा ही बने।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात्॥
आपका कल्याण हो। भगवान यज्ञ के द्वारा आप ब्रह्म समाज वालों का कल्याण हो। जिन्होंने आयोजन किया है, उनका कल्याण हो एवं सारे मानव समाज का कल्याण हो।
॥ ॐ शांतिः॥