उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!
उपासना के बारे में आज हम आप लोगों को बताएँगे। नजदीक बैठने से सुगन्धि भर जाती है। फूल के नजदीक आप बैठेंगे सुगन्धि आयेगी। गन्दगी के पास आप बैठेंगे, गन्दगी की गन्ध आयेगी। आप जैसे लोगों के साथ बैठेंगे, वैसा असर पड़े बिना रह नहीं सकता। इसलिये भगवान् के साथ हमको बैठना चाहिए। उससे अच्छा शानदार व्यक्ति, उससे अच्छा मालदार व्यक्ति, ज्यादा बुद्धिमान और सामर्थ्यों से भरा हुआ और कोई नहीं हो सकता। इसलिए उसके साथ बैठना हमारे लिए बुद्धिमानी भी है और हमारे लिए फायदेमन्द भी है। मैं अपने जीवन में उन्हीं के साथ बैठता रहा हूँ। भगवान के साथ बैठने में हमने जिन्दगी निकाल दी। कैसे? भगवान की पूजा करने में? नहीं, पूजा करने में नहीं। हनुमान के तरीके से सारी जिन्दगी निकाल दी। जिस दिन से हनुमान जी की रामचन्द्र जी से मुलाकात हुई, उस दिन से लेकर लंका-दहन की मुसीबत के वक्त और रामराज्य स्थापना के अच्छे वक्त तक। फिर उन्होंने पीछे मुड़कर ही नहीं देखा कि हमारा भी कुछ है क्या? जिसको सौंप दिया, उसको सौंप दिया। बेटी जिसकी हो गई, उसकी हो गई। ऐसा थोड़े ही होता है कि सौंपे ही नहीं। नहीं, ऐसा नहीं होता है। वह तो सौंपना ही पड़ता है। हमने अपनी जिन्दगी को सौंप दिया है।
अब इसके बाद दूसरी धारा—साधना। साधना के माने? साधना के माने यह है कि अपने आप को साध लेना। अपने आप को साध लेने के माने क्या है? इसका माने यह है कि अपनी पात्रता को इस लायक बना लेना कि कोई हमको देने के योग्य समझे और हमको दे। पात्रता हमारी विकसित न हुई, तो कोई हमको देगा ही नहीं। आप पढ़े नहीं हैं, लिखे नहीं हैं, एक आँख खराब है, चला नहीं जाता है, लँगड़े-लूले हैं, शादी के लिए इच्छुक हैं। फलानी लड़की भी थी पास में, फलानी बी०ए० पास है, फलानी एम०ए० पास है, फलानी को संगीत आता है, फलानी बहुत खूबसूरत है। इसका क्या मतलब है? यही कि साहब उसके साथ शादी हो जाती, तो हमारा जीवन अच्छा होता। नहीं, उसके साथ आपकी शादी नहीं हो सकती, क्योंकि आप उसके पात्र नहीं हैं। पात्रता इस संसार में सबसे बड़ी चीज है। चाहे संसार में देख लें, चाहे भगवान के यहाँ देख लें, नियम एक-से ही लागू होते हैं। चुनाव कमीशन बैठता है, तो उसमें इण्टरव्यू होता है। जो उसमें से अच्छी डिवीजन लेकर आते हैं, उनको अफसर की पदवी दी जाती है। सरकार वजीफा केवल उनको दिया करती है, जिनकी कि डिवीजन अच्छी आती है। फोर्थ डिवीजन आती है, हम गरीब हैं, तो हम क्या करें? गरीब हैं, तो डिग्री नहीं लीजिए। कमाइए, खाइये, सरकार से क्या मतलब? आपके अन्दर योग्यता है, क्षमता है, तो आपको वजीफा मिलेगा और वजीफा के द्वारा आप ज्यादा उन्नतिशील बन सकें ,, इसीलिए आपको सहायता दी जाएगी। यही कायदा भगवान के यहाँ है। आप पात्र हैं, तो आपको सब मिलेगा। आप अगर कुपात्र हैं, तो कुपात्र के लिए बाप भी वसीयत कर जाते हैं कि हमारा बेटा बड़ा कुपात्र है। नाती जब हो जाए, तब उसको संपत्ति में हक मिलेगा, बेटे को नहीं। यह शराब पीता है, जुआ खेलता है। इसको हमारी जायदाद में से कोई हक नहीं मिले। संसार में पात्रता का रिवाज है, तो भगवान के यहाँ क्यों नहीं होगा? वर्षा हुआ करती है, तो वर्षा में पानी सिर्फ उतना ही मिलता है, जितना कि हमारे पास पात्र हो। आपके पास थाली है, तो रखिए आप खुले में। थाली आपको भरी हुई मिलेगी। रात को वर्षा हो रही है। तालाब इतना बड़ा है, तो तालाब भरा हुआ मिलेगा। आपके पास छोटी कटोरी है, तो छोटी कटोरी भरी हुई मिलेगी। आप यह नहीं कह सकते कि आपकी पात्रता से कम है और पात्रता से ज्यादा पानी की अगर आप आशा करते हैं, तो आप गलती करते हैं और गलती आपकी ऐसी है कि आपको पश्चाताप करना पड़ेगा और दूसरों से शिकायत करनी पड़ेगी कि उन लोगों ने हमारा साथ नहीं दिया; भगवान ने भी हमारी सहायता नहीं की; राम और गुरुजी ने भी सहायता नहीं की; हनुमानजी ने भी सहायता नहीं की। कोई नहीं करेगा। आप सुपात्र हैं, तो ठीक है और अगर आप सुपात्र नहीं हैं, तो आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता है।
आपको मालूम है कि खेत में बुआई से पहले जुताई करनी पड़ती है। आपको मालूम है कि कपड़े की रँगाई से पहले धुलाई करनी पड़ती है। साधना उसी का नाम है। अपने आपको हम इस तरह का बना लें, जिसमें हमको इस लायक समझा जाए कि हमको कोई कीमती वस्तुएँ दी जा सकें। अगर हम इस लायक हैं कि हमको कोई कीमती वस्तु नहीं दी जा सके, तो कोई नहीं देगा आपको। बहुत छोटा बच्चा है कहे—साहब! बैंक की और तिजोरी की चाबी हमको दीजिए। नहीं, आप चाबी को सँभाल नहीं सकते। इसलिए अभी नहीं। कहे—साहब! ब्याह कर दीजिए। अरे भाई! पाँच वर्ष के बच्चों के कहीं ब्याह होते हैं! इतना बड़ा हो जाएगा, बहू को कमाकर खिलाएगा तब तो शादी होगी, कि अभी कर दीजिये। साहब! मोहल्ले में सब बड़े लड़कों की शादियाँ हो गईं; पर आप तो अभी नहीं करेंगे। जब इसका पात्र हो जाएगा, उस समय हम जरूर करेंगे, लेकिन अभी करेगा, तो बेकार की मुसीबत आ पड़ेगी। अभी शादी का कोई प्रश्न नहीं है। आपको ध्यान भगवान के ऊपर नहीं देना चाहिए। भगवान जी सहायता करेंगे कि नहीं करेंगे। जब आप जिस लायक पात्र होते चले जायेंगे, उस लायक आपको बराबर सुविधाएँ मिलती चली जाएँगी। कन्या बड़ी हो जाती है, बाप को उसी हिसाब से चिन्ता बढ़ती चली जाती है। उसके कपड़े लेने का, उसके शादी-ब्याह का सब इन्तजाम करता है। जब वो उसकी पात्र नहीं हुई है, तब न उसकी शादी होती है, न उसको बड़ी कीमती चीज दी जाती है। कोई छीन लेगा। इससे दूसरा भगवान से कुछ प्राप्त करने का या भगवान् के नजदीक, भगवान के भक्त होने का सबूत है? नहीं। अपने आपको सही कर लेना, अपने आप को सँभाल लेना, अपने आप की गलतियों को देख लेना, अपने आपकी गलतियों को ठीक करना। इतना करते ही हमें पात्रता के अनुरूप सब कुछ मिल जाता है। भगवद् सहायता का यह सबसे बड़ा सबूत है।
एक थी माँ। उसका छोटा-सा बच्चा था। वह कहीं गई थी। आयी तो बच्चा रोया, दूध पीने के लिए और मम्मी की गोद में जाने के लिए। वह बोली—ठहर, ठहर। क्यों? उस कमबख्त ने टट्टी कर ली थी और टट्टी में अपने कपड़े भी सान लिये थे और हाथ भी सान लिये थे। उन्होंने कहा—तेरे कपड़े बदल दें, तुझे स्नान करवा दें, हाथ धो लें, तौलिए से पोंछकर साफ कर दें। जब साफ हो जाएगा, तब गोदी में उठाएँगे। नहीं, हम तो अभी आयेंगे। अभी गोदी में नहीं। चाहे रोओ, चाहे जो भी करो। जब तक तुम साफ-सुथरे नहीं हो जाते, तब तक गोदी में लेने का कोई योग नहीं है। बस, माँ ने उसको पकड़ लिया जबरदस्ती और उसको नहलाया। नहलाने के बाद उसके कपड़े बदले। उसे तौलिए से पोंछा, सुखाया, फिर छाती से लगाया, दूध पिलाया। यह बात आपकी हर जगह लागू होती है और भगवान के यहाँ तो यह खासतौर से लागू होती है। संसार में भी रिवाज यही है।
आपने देखा है सर्कस के जानवरों को? उनको सिखाने वाले मास्टर जब सिखा लेते हैं, तो एक-एक जानवर ढेरों पैसे कमाकर लाता है। सपेरे साँप को सिखा लेते हैं। मदारी, रीछ और बन्दरों को सिखा लेते हैं। सर्कस वाले शेरों को, बाघों को और हाथियों को सिखा लेते हैं। ये शेर और बाघ कैसे भयंकर और खूँखार होते हैं! फिर भी सर्कस वालों के लिए रोजाना ढेरों आमदनी के स्त्रोत साबित होते हैं। ये ही शेर, ये ही चीते, ये ही हाथी और ये ही कुत्ते, सर्कस वाली कम्पनी के जो सौ आदमी काम करते हैं, सभी को खुराक देते हैं, कपड़ा देते हैं, रोटी देते हैं, पेन्शन देते हैं, प्रोवीडेन्ट फण्ड देते देते हैं। सबके लिए इन्तजाम करते हैं—ये ही जानवर। क्यों? क्योंकि इनको सिखा लिया गया है और सिखाये न गये होते तब? तब ये खूँखार रहते और इनको देखते ही आदमी भाग खड़ा होता अथवा ये आदमी का नुकसान कर देते अथवा ये अपना नुकसान कर लेते या मारे जाते। कहीं कोई आदमी चीते को देख करके, भेड़िये को देखकर के उसको जिन्दा रहने देगा? या तो अपनी जान गँवाएगा या उसकी जान ले लेगा, लेकिन सिखा लेने के बाद में वे जान लेने वाले जो जानवर हैं, ये भी उपयोगी और काम के बन जाते हैं।
ऊसर जमीन में आप बोएँ तो खाक भी पैदा नहीं होगा; लेकिन उस पर से एक-एक फुट मिट्टी उठा ली जाए। मिट्टी उठाने के बाद में कहीं दूसरी जगह से अच्छी मिट्टी उठा करके उपजाऊ बना ली जाए, तो आप उसमें खेती कीजिए, बगीचा लगाइये, चाहे जो कुछ काम कीजिए, आपको लाभ होगा; लेकिन पहले जमीन को तो अच्छी बनाइये। नहीं साहब! उसमें कोई पैदावार नहीं है। हम क्या करें? पैदावार नहीं है? जमीन तो साफ की नहीं आपने। जमीन को साफ किये बिना इसमें कोई चीज पैदा नहीं हो सकती। माली है, कलम लगा-लगा करके कैसे बढ़िया बगीचे लगा लेता है? एक-एक पेड़ के ऊपर दस-दस तरीके के फूल आते हैं। एक-एक पेड़ के ऊपर चार-चार तरीके के फल आते हैं। उसकी टहनियों को काट करके माली यही किया करता है कि लोगों को तमाशा दिखाने के लिए और लोगों को अपनी होशियारी दिखाने के लिए एक ही कलम में, एक ही पेड़ में कई तरह की कलमें लगा देता है। उसमें से कई तरह के फूल आते हैं, कई तरह की खुशबू आती है। ये माली का किस्सा है। चलिये माली की एक बात याद आ गई मुझे। एक राजा ने दो माली रखे थे। दोनों मालियों के सुपुर्द एक-एक बगीचा किया गया। एक माली दिन और रात राजा के बगीचे में लगा रहा और एक बरस के भीतर उसे स्वर्ग जैसा बना दिया। इतना फूलों और फलों से लदा हुआ बना दिया! इतना खूबसूरत बना दिया! नये पौधे लगा दिये। देखते ही उसमें घुसने को हरेक का मन चलने लगा। एक और माली था। उस माली ने राजा साहब की भक्ति दिखाने के लिए राजा साहब का फोटो लगाया। उस पर चन्दन रोज चढ़ाया, उसकी आरती उतारी, एक सौ आठ परिक्रमा रोज की; लेकिन जो उसकी जिम्मेदारी थी, उस पर ध्यान नहीं दिया। बगीचे की ओर ध्यान नहीं दिया। बगीचा सूख गया। जिस हैसियत में बगीचा दिया गया था वह बिल्कुल भी नहीं रही। जब सारा वक्त दूसरे काम में लगा देगा, तो यह कैसे होगा?
आप माली हैं और आपको भगवान के बगीचे के लिए, सेवा करने के लिए भेजा गया है। आप हमेशा ध्यान रखिए कि माली हैं। हमने हमेशा ध्यान रखा कि हम केवल माली हैं और माली होने की वजह से अपना देश, अपना धर्म, अपनी संस्कृति और अपना समाज, अपने पड़ोसी और अपना घर, अपनी गृहस्थी और अपनी बीबी और अपने बच्चे जिन लोगों से हमारा ताल्लुक था, उन सबके साथ अपने कर्तव्य निभाने के लिए चौबीसों घण्टे हमारा ध्यान बना रहा। साधना है ये भगवान की। सब भगवान के ही तो हैं। जो कोई भी प्राणी है, सब भगवान के हैं। जो कुछ भी इस संसार में है, भगवान का है। विराट रूप की बात आपको नहीं मालूम है? भगवान का विराट रूप। अर्जुन कह रहा था—भगवान का हमको आँखों से दर्शन करना है, तो भगवान बार-बार कहते थे—बाबा! कहीं आँखों से दर्शन होते हैं क्या? हमें देख लो। नहीं साहब! आपको नहीं। हम तो भगवान को देखना चाहते हैं। तो उन्होंने ज्ञान की आँखें दीं और ये कहा कि यह विराट्, जो सारा संसार है, यही भगवान है। ठीक इसी तरह से कृष्ण की माँ कह रही थी कि तू तो हमारा लड़का मालूम पड़ता है और हमने तो पिछले जन्म में तपस्या की थी कि हमारे यहाँ भगवान पैदा होगा। तू तो भगवान नहीं मालूम पड़ता, बच्चा मालूम पड़ता है। उन्होंने कहा—माताजी! मैं तो बच्चा हूँ, पर हूँ भगवान ही अगर देखने का आपका वास्तविक मन हो तो....। उन्होंने मिट्टी खाने के बहाने अपना मुँह खोल दिया, तो माँ ने सारा विराट् ब्रह्माण्ड देखा। कौशल्या के सामने भी यही बात हुई। कौशल्या को भी यही शक था कि यह तो लड़का मालूम पड़ता है। यह तो भगवान श्री नारद जी ने कहा था—तेरे भगवान पैदा होगा, तो यह कहाँ भगवान हैं? तो उन्होंने कहा—ले देख! विश्वास कर बचपन में हँसते हुए अपना मुँह खोल के दिखाया—मैं नहीं हूँ भगवान। यह विराट स्वरूप देख। विराट् माने यह सारा विश्व है। यह ब्रह्माण्ड जो फैला हुआ है, यह वास्तव में भगवान का विराट् रूप है। कहीं आँखें हैं इसकी, कहीं कान हैं, कहीं क्या है, कहीं क्या है? विराट् रूप की तस्वीर कभी आपने कहीं देखी होगी। यह सारा संसार विराट् है। विराट् की सेवा करने के लिए त्याग और बलिदान करने के लिए, इसको अच्छा, समुन्नत और सभ्य बनाने के लिए जो भी हम प्रयत्न करते हैं, आप यह मानकर चलिए कि भगवान के लिए किया जा रहा है और सिर्फ भगवान की पूजा और सेवा की जाती है तो? तो क्या सेवा और पूजा नहीं करनी चाहिए? वो भी बता देंगे बाबा! उसमें क्या ऐसी बड़ी-सी बात है? वो कोई बड़ी-सी बात नहीं है। माँगना हो, तो हाथ जोड़कर माँगिए या झोली में माँगिए या टोपी में माँगिए अथवा कपड़े में माँगिए। अरे बाबा! इसमें क्या रखा है? असली बात देख। असलियत देख, जिसमें भगवान प्रसन्न होते हैं। भगवान का नाम एक घण्टे में कितनी बार ले लिया, माला कितनी बार घुमा ली? ये भी बता देंगे। आप जाइये, आप घबराइए नहीं। आपके ऊपर ये जल्दी पड़ी हो कि चिड़िया को पकड़ने के लिए बाजरे का दाना चाहिए कि मक्के का दाना चाहिए कि चावल का दाना चाहिए कि इधर पूरब को मुँह करके बैठें कि उधर पश्चिम को मुँह करके बैठें। ये बेकार की बातें हैं। सारे जीवन को भगवान के लिए सुपुर्द करना पड़ता है। भगवान की भक्ति घण्टे भर में नहीं होती, आधे घण्टे में नहीं होती। चौबीसों घण्टे सोते और जागते प्रत्येक समय ये करना पड़ता है और बराबर यह ध्यान रखना पड़ता है कि हम भगवान के प्रति, उसके संसार के प्रति अपने कर्तव्यों को निभा रहे हैं कि नहीं; हमारे अन्दर गलतियों में कमी हो रही है कि नहीं।
आपने सुना है? आपने देखा है कि नहीं? मिट्टियों से धातुएँ जब निकलती हैं, तो कच्ची निकलती हैं। लोहा जब निकलता है, तो जमीन में से खोदने के बाद बिल्कुल कच्चा होता है; लेकिन आग में उसको तपाते हैं; तो तपाने के बाद में उसके अन्दर जो मिट्टी मिली हुई होती है, वह जल करके खत्म हो जाती है और जो केवल लोहा होता है, बाहर आता है। तपाना पड़ता है। तपाना माने साधना करना। यह है जीवन की साधना। जो हमारे जीवन में अस्त-व्यस्तता है वो सारी अस्त-व्यस्तताओं को जब तक आप दूर नहीं करेंगे, तब तक आप साधक नहीं कहलायेंगे। साधना भगवान् की नहीं करनी पड़ती है। भगवान को कहाँ इतना टाइम है! कहाँ से इतनी फुर्सत आयी कि आपकी साधना का हिसाब लगाता फिरे और यह देखता फिरे कि आप भगवान की साधना कर रहे हैं। अपनी कीजिए। अपनी साधना करनी पड़ती है लोहे की तरह। सोने में कुछ मिला हुआ होता है; लेकिन सुनार इसको आग पर तपाने के बाद में, उसमें से जो खराब चीजें हैं; निकाल देता हैं। सोने के बढ़िया-बढ़िया जेवर बनाता है। नहीं साहब! हम सोने को तपाने नहीं देंगे, तो बाबा! इसमें से जेवर नहीं बनेंगे। जेवर बनाने के लिए तपाया जाता है, सोने को और महान् बनने के लिए इनसान को तपना पड़ता है; साधक बनना पड़ता है; अपनी साधना करनी पड़ती है; अपने गुण, कर्म, और स्वभाव—इन सबको ठीक करना पड़ता है। जब तक इनको ठीक नहीं करेंगे, तब तक किस तरीके से भगवान को प्राप्त करेंगे? तलवार को जब तक घिसा नहीं जाएगा, तब तक उस पर धार नहीं आयेगी तो बताइये, फिर कैसे चलेगी? बिल्कुल खपच्ची जैसी होगी। किसी को उससे मार देंगे तो उसको जरा-सी चोट कहीं लग जायेगी, दर्द हो जाएगा, खून निकलने लगेगा। किसी का सिर उससे नहीं काट सकते आप, जब तक धार नहीं है। इनसान के ऊपर धार चढ़ाना अथवा साधना करना—दोनों एक ही बात हैं। हीरा जब खदान से निकाला जाता है, तब इसी तरह का टेढ़ा-मेढ़ा पत्थर का टुकड़ा होता है; लेकिन जब मशीनों के द्वारा जौहरी उसके ऊपर का मैल काट देता है, उसका टेढ़ापन सीधा कर देता है, तो हीरे की कीमत बढ़ जाती है। अनगढ़ हीरे की कीमत नहीं आँकी जाती है। तराशे हुए हीरे की कीमत आँकी जाती है। गन्दा पानी किसी की आँख में डाले दें तो आँखें खराब हो जाएँगी। डिस्टिल्ड वाटर—हवा में उड़ाया हुआ वाटर—जब साफ हो जाता है, तब आँख में डाला जाता है; पीने की दवाओं में मिलाया जाता है; खराब पानी उसमें नहीं मिलाया जाता है। आप खराब पानी हैं। अपने पानी को ठीक कीजिए। ठीक नहीं करेंगे, तो फिर बात कैसे बनेगी? भगवान को अपने घर में बुलाने का मन है, तो आप सफाई नहीं करेंगे क्या? शादी जब घर में होती है, तो घर की सफाई आप करते हैं कि नहीं? या घर को ऐसे ही गन्दा पड़ा रहने देते हैं। मेहमान आयेंगे, रिश्तेदार आयेंगे, मिलने-जुलने वाले आयेंगे, बैठेंगे, तो अपने मकान को तो साफ करके रखें। दिवाली आती है, तो लक्ष्मी जी आती हैं। दिवाली पर घर की पुताई होती है कि, नहीं होती है? नहीं पोतेंगे तो लक्ष्मी जी क्या करेंगी गन्दे घर में आकर? वे गन्दे घर में नहीं आतीं। भगवान जो हैं, गन्दे घर में नहीं आते। आपने अपने मन में, अपने स्वभाव में, अपने कर्म में गन्दगियाँ भर रखी हैं तो ऐसे में भगवान क्या करेंगे? कहाँ जाएँगे? कैसे रहेंगे? भगवान के लिए जगह तो बनाइये न साफ। भगवान के लिए जगह साफ करें। जगह से मतलब कमरे से नहीं है मेरा। कुर्सी को साफ करें, सिंहासन को साफ करें, बर्तनों को साफ करें। ठीक है, मर्जी हो तो करना चाहिए आपको; लेकिन आपने जीवन-साधना की है कि नहीं? महत्त्वपूर्ण बात यह है। उपासना तभी फलती है। आपने उपासना जीवन भर की है; पर साधना के बिना वह बेकार है। आप आधे घण्टे उपासना करते हैं, यह अच्छी बात है। कर लेते हैं, तो ठीक है और नहीं करते हैं, तो भी ठीक है; लेकिन जीवन-साधना आपके लिए नितान्त आवश्यक है। इससे कम में भगवद् प्राप्ति सम्भव नहीं।
मनुष्य का जीवन एक कमण्डलु के तरीके से है। आप उसमें सुराख करे देंगे तो डूबेगा। यह नाव के तरीके से है। उसमें सुराख जहाँ कहीं भी होंगे, नाव डूबेगी। आप वासना के सुराख, तृष्णा के सुराख, अहंता के सुराख, इसी प्रकार सवारी करेंगे, तो यह नाव डूबेगी कि नहीं, बताइये आप? यही है भवसागर, जिसमें हम कहते हैं—हे भगवान! भवसागर से निकालिये। हमको बन्धन से मुक्त करिये। मुक्तियाँ आप चाहते हैं, तो मुक्ति किससे चाहते हैं, बताइये? ये ही हैं तीन। इन तीन से छुटकारा पाना आपके हाथ में है। भगवान के हाथ में मुक्ति नहीं है। आप प्राप्त कर लीजिए मुक्ति। वासना से मुक्ति प्राप्त कर लीजिए, तृष्णा से मुक्ति प्राप्त कर लीजिए, अहंता से मुक्ति प्राप्त कर लीजिए। इन तीन से मुक्ति प्राप्त कर लीजिए और फिर देखिए कि आपके इसी जीवन में मुक्ति है कि नहीं। ‘जीवन-मुक्त’ यह भी एक शब्द आता है। मुक्ति उसी को नहीं कहते हैं, जो कि यहाँ से मरने के बाद में जब भगवान के यहाँ जाएँगे, तो वहाँ आपको मुक्ति वाले कमरे में बिठा दिया जाएगा। ऐसा नहीं है। जीवन-मुक्त इसे नहीं कहते। जीवन-मुक्त वो ही है, जिन्होंने अपने आप को भव-बन्धनों से मुक्त कर लिया है और मुक्त वे हैं, जिन्होंने हथकड़ी-बेड़ी अपनी खोल दी है। लोहे की हथकड़ी खुलने की बात नहीं है, लोभ और मोह की बात है। लोभ की हथकड़ी, मोह की बेड़ी। लोभ आप किस काम में करते हैं? आदमी को कितना चाहिए? आदमी को जरा-सा चाहिए। भगवान ने उसे इस लायक बनाया है जितना कि जितना कि ढेरों-के ढेरों कमा सकता है, सोने के पहाड़ कमा सकता है और उसका खर्च इतना कम है कि किसी भी जानवर का नहीं है। गधा आपसे ज्यादा खा जाता है और घोड़ा ज्यादा खा जाता है, भैंसा ज्यादा खा जाता है, बैल ज्यादा खा जाता है। प्रत्येक जानवर आपकी बनिस्पत ज्यादा खाने वाला है; लेकिन आपका तो दो मुट्ठी में पेट भर जाता है। अन्धाधुन्ध भरें, तो दो के बजाय चार मुट्ठी भर लीजिए। आमाशय को नाप लीजिए। आपको कोई एनाटॉमी की किताब मिल जाएगी। देखिए, आमाशय की कितनी लम्बाई-चौड़ाई है। उसमें भी यह लिखा हुआ है कि आधा अनाज से भरो, थोड़ा हवा के लिए छोड़ो और थोड़ा पानी के लिए छोड़ो, तो मुश्किल से दो मुट्ठी का अनाज आता है। आदमी खुराक कितनी है! जरा-सी है और आदमी का खर्चा? खर्चा भी कम और कुटुम्ब का? कुटुम्ब पालने में हमको बाहरी शक्ति लगानी पड़ती है? कुटुम्ब तो खिलौने हैं। बच्चे हैं ये आपके। इनसे खेलिये। ये खिलौने के लिए हैं कि आपको पालन करना पड़ता है? पालन नहीं करना पड़ता। आप थके हुए आते हैं, चाबीदार खिलौनों से जैसे बच्चे खेलते हैं, आप इन बच्चों से वैसे ही खेलिये। ये आपके लिए क्या उपद्रव पैदा कर सकते हैं?। हरेक को स्वावलम्बी बनाइये, आप उन्हें संस्कारवान् बनाइये। जो भी आपके कुटुम्ब में है, अगर आप स्वावलम्बी बनाते हैं, संस्कारवान बनाते हैं, तो आपको जरा भी कोई दिक्कत नहीं आने वाली है। दिक्कत तब आयेगी, जब आप सात पीढ़ी के लिए खाने का इन्तजाम करेंगे। जो कुछ कमाया है, इस बेटे को दे जाएँ, नाती को दे जाएँ और पोते को दे जाएँ और पड़ोसी को? पड़ोसी को डलिया से दाब दीजिए। आग लगा दीजिए। क्यों? पड़ोसी ने क्या बिगाड़ा है? बेटे को क्यों दे दें? बेटा क्या है आपका? आँखों से अन्धा है? गूँगा है? लूला है? लँगड़ा है? क्या बात है? अपाहिज है? अपंग है? तो आप बच्चे को देंगे? नहीं, हमने अपनी जिंदगी में दिया ही नहीं। हमारा बाप ढेरों-के सम्पत्ति छोड़ कर मरा था। हमने सब बाँट दी। सब भगवान को दे दी। उससे हम नफे में रहे, कुछ नुकसान में नहीं। हथकड़ी और बेड़ी अगर आप चाहें, तो बड़े मजे से काट सकते हैं और जरा भी इसमें कोई दिक्कत नहीं आयेगी। आप भूलिए नहीं, आपको अपनी सफाई करनी पड़ेगी। सफाई किए बिना भगवान की भक्ति से, नाम से आपका कोई उद्धार नहीं हो सकता है किसका हुआ है? बताइये जरा साहब उनका हुआ है? बहुत-से पापी लोग थे और वे राम-नाम जपते रहे और राम-नाम जप करके उन सबकी मुक्ति हो गई। जरा उनका नाम बताइये? दो-एक का नाम बताइये मुझे? बाल्मीकि, अजामिल, सदन कसाई। अच्छा! तो इसी चक्कर में हैं आप। कसाई की दुकान भी खोले रहेंगे और बैठे-ठाले जब कभी फुर्सत का वक्त हो गया, तो कभी राम कह दिया, कभी क्या कह दिया, कभी क्या कह दिया? और सीधे मुक्ति मिलती चली जाएगी? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। आपने जितनों के नाम गिनाये हैं, जरा उनकी जिन्दगी के पन्ने उलटकर देखिए। आपका यह ख्याल है कि बाल्मीकि इतने बड़े सन्त हो गये, जिनके यहाँ राम ने अपनी धर्मपत्नी को भेज दिया और बच्चों का गार्जियन बना दिया। आपका भी बनने का मन है क्या? तो लीजिए डाकूपन बन्द कीजिए आज से और आज से सन्त की जिन्दगी व्यतीत कीजिए। डाकू था, तब डाकू था; लेकिन जिस दिन से राम का नाम लेना शुरू कर दिया, जिस दिन से भगवान का हो गया, भगवान को अपना लिया, फिर उस दिन के बाद में न उसने डाका डाला, न उसने चोरी की, न उठाईगीरी की। सीताजी जवान थीं और उनके घर में भगवान ने भेज दिया, और अकेले ही रहती थीं। क्या मजाल है, आँख उठाकर देखा हो उन्होंने! बच्चों को कितना शानदार बना दिया? क्यों? क्योंकि उन्होंने अपने आप को अच्छा बना लिया? और उन्होंने माला घुमाना सीखा होता और तरह-तरह के मंत्र-तंत्र और यंत्र—ये बनाये होते और अपनी जिन्दगी को अच्छा न किया होता, तो आपका ख्याल है, उनका उद्धार हो गया होता?
अंगुलिमाल था। जब तक डाकू था, तब तक डाकू था और जब भगवान बुद्ध की शरण में आया, तब उसने डाका डालना बन्द कर दिया; चोरी करना बन्द कर दिया। जो कुछ भी कमाया था, जो कुछ भी कर सकता था, बेचारे ने पाप का प्रायश्चित करने के लिए किया। जो कुछ भी कमा करके जमा कर रखा था, सारा भगवान को दे दिया। उसको ये तेा मालुम नहीं था कि जाने, मैंने किससे लिया था, किसका है, किसको तलाश करूँगा? आप ही जिसका हो, उसको पहुँचा देना, कह दिया और अपनी जिंदगी, भगवान बुद्ध के सुपुर्द कर दी और ये कहा—मुझको आज्ञा दीजिए, हुक्म दीजिए। भगवान बुद्ध ने उसे इण्डोनेशिया भेजा था। अंगुलिमाल सारी जिंदगी भर जब तक जिया तब तक हिन्दुस्तान से बाहर रहा और वही अंगुलिमाल सन्त बन करके और भगवान के काम में अपनी जिंदगी न्यौछावर कर दी। सूरदास का तो नाम सुना है आपने? कैसी गन्दी जिन्दगी थी! उनके पिताजी मरे हुए रखे थे और वे वेश्या के घर में पड़े हुए थे। सुना है न आपने? सुना नहीं है? सुना होगा; लेकिन जब-जब उन्होंने अपने चाल-चलन को बदल लिया, काम करने के ढंग और तरीके को बदल लिया, तो सूरदास हो गये। फिर वे सूरदास हो गए, जिन्होंने कि आँखें अपनी खराब कर ली थीं, तो भी भगवान जी आते थे और बच्चे के रूप में उनकी लाठी पकड़कर लेकर चलते थे। ऐसे सूरदास हो गए। लाठी लेकर चलते थे? हाँ, लाठी लेकर चलते थे। सूरदास धुले हुए थे, साफ थे। गन्दे जब थे, तब थे। तब, तक भगवान उनके नजदीक आए नहीं। उनकी गन्ध को सूँघ करके, दुर्गन्ध को सूँघ करके दूर भाग गये; लेकिन जब-जब उन्होंने अपना रवैया बदल दिया तब? तब भगवान ने भी अपना रवैया बदल दिया।
तुलसीदास का नाम सुना है? जब कामुक थे, कैसे थे? स्त्री जब वहाँ चली गई, पिता के घर, तो वहाँ जा पहुँचे। वह सुना है न किस्सा आपने? मैं क्या सुनाऊँगा आपको?
इसी तरीके से आम्रपाली का नाम सुना है न आपने? आम्रपाली एक वेश्या थी। वेश्या को तो सब हिकारत की निगाह से देखते हैं, उसका अपमान करते हैं, उसको बुरी मानते हैं। सब उसके लिए यही कहते हैं। नरक को जाएगी, लेकिन आम्रपाली नरक को गई थी? नहीं, नरक को नहीं गई थी। भगवान बुद्ध की शरण में आई, तो उसके पास जो कुछ भी था, पैसा था, वह सब उनके सुपुर्द कर दिया और अपने शरीर को भी सुपुर्द कर दिया। तन और मन दोनों को ही करना पड़ता है सुपुर्द। आप ध्यान रखिए। चावल नहीं करने पड़ते सुपुर्द। चावल सुपुर्द कर देंगे, फूल गेंदा का चढ़ा देंगे, फूल गुलाब का चढ़ा देंगे। आप किसी का चढ़ाएँ अथवा किसी का न चढ़ाएँ भगवान को। भगवान इस सारी सृष्टि का स्वामी है। उसको फूलों की जरूरत पड़ेगी, तो कहीं भी चला जाएगा और जहाँ कहीं ऐसे फूल पैदा होते हैं, वहीं सूँघ लेगा और उनको वहीं छोड़ देगा। भगवान की हम फूलों की जरूरत पूरी कर रहे हैं? भगवान का पेट कितना बड़ा है, आप जानते हैं? भगवान का पेट बहुत बड़ा है। उसमें समुद्र समा गया है, उसमें आप, हम और सारी सृष्टि समा गई है। उसे आप पूरा कर देंगे? कैसे कर पायेंगे? ना, सम्भव नहीं है; लेकिन ये ही करना पड़ेगा आपको। आपके पास आपका अपनापन अगर सही है, तो आप विश्वास रखिये सारी दुनिया सही हो जाएगी। आपकी आँखें सही हैं, तो आपको दुनिया में सब कुछ दीखेगा और आँखें आपने खराब कर ली हैं; तब दुनिया में घोर अन्धकार छाया हुआ प्रतीत होगा। कारण कि आपकी आँखें तो खराब हैं। आँखों का इलाज करा लीजिए, आँखें ठीक कर लीजिए, आपको अच्छा-भला दिखाई पड़ेगा। चश्मा पहन लीजिए पीले रंग का, सारी दुनिया आपको पीले रंग की दिखाई पड़ेगी। अपनी ओर गौर कीजिए, बाहर की ओर मत कीजिए गौर। ये बुरा है, वो बुरा है। हाँ, सब बुरे हैं। आप ही अच्छे हैं। जरा अपने आप को अच्छा बनाकर देखिए। फिर ये देखिए सारे लोग आपके प्रति अच्छे बनते हैं कि नहीं बनते। चाहे न भी बनें वे, तो कम-से आपको जितने समय तक उनसे सम्पर्क बनेगा, आप जितने समय तक विचार करेंगे, उतने समय तक आपके लिये वो अच्छे ही रहेंगे, चाहे वो बुरा करते हैं, तो करने दीजिए; लेकिन आप क्यों ऐसा सोचते हैं? कान अगर आपके पास सही हैं, तो आपको दूसरों के सलाह-मशविरा सुनने का मौका मिलेगा; परामर्श का मौका मिलेगा; आप अच्छी बातें सुन सकेंगे; गाना सुन सकेंगे; संगीत सुन सकेंगे; लेकिन आपने अपने आँखें—कान खराब कर लिये हैं; तब सुन लीजिए! क्या सुनेंगे? सब जगह सन्नाटा! दिखाई पड़ेगा आपको? साँय-साँय सब जगह से कुछ सुनाई नहीं पड़ेगा आपको। आपके कान तो खराब हो गये हैं। दुनिया तो जहाँ-की है। आपका दिमाग खराब हो जाए, तो पागल आप हो गए। आपको दुनिया पागल दिखाई पड़ेगी। ये भी पागल, वो भी पागल! ये सब जो दुनिया में घूम रहे हैं, सब पागल आदमी घूम रहे हैं। नहीं, ये तो ठीक हैं। आपका ही दिमाग खराब हो गया है। आप अपने आप को ठीक कीजिए। बस, मजा आ जाएगा। साहस पैदा कीजिए। बचत कीजिए। अपने लिए कम-से औसत भारतीय के बराबर, जितना जरूरत है, उसी में अपना गुजारा कीजिए। उससे बचा हुआ वक्त, बचा हुआ समय, बचा हुआ पैसा भगवान के लिए लगा दीजिए, सबके लिए लगा दीजिए। बस, साधना हो गई। इससे ज्यादा कोई आवश्यकता नहीं है। इससे कम में कोई साधना नहीं हो सकती। भाई! हम भजन करेंगे, तो हम क्या करें? बाबा भजन करेंगे, तो आप करते रहिए भजन। भजन करने वाले ढेरों-के बैठे हैं। चप्पल चुरा ले जाते हैं और दिन-भर भीख माँगते हैं और एक-से गुण्डागर्दी करते हैं। हम राम का नाम लेंगे और पार हो जाएँगे। हाँ, जरूर होंगे आप पार। बेकार की बातें करते हैं। उन लोगों ने, जिन लोगों ने आपको ये सब समझा दिया है कि राम का नाम लेने से हर आदमी का उद्धार हो जाता है, वे सौ फीसदी गलत आदमी हैं, झूठे आदमी हैं, बेईमान आदमी हैं और आपको गलत रास्ते पर चलाना चाहते हैं। हमने तो ये ही रास्ता अख्तियार किया है। अपने आपको धोया है और साफ किया है। धोकर के साफ हो गए हैं। साफ होने के बाद में हमारा भगवान हमारे घर आता है, बैठता है, पास आता है। साधना आपको भी करनी पड़ेगी। इससे कम में कोई गुजारा नहीं है। बस, इतना ही आपसे निवेदन करना था। जो हमने किया है, वही आप भी कीजिए। हमने जो पाया है, आप भी पाइये। क्या कहें और? बस।
ॐ शान्तिः