उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
भटक रहा है जनम-जनम से, हंसा भूखा प्यासा रे।
तुम लाये जल घाट-घाट से, फिर भी रहा उदासा रे।।
हंसा भूखा प्यासा रे।।
मोती का अभिलाषी हंसा, कैसे पत्थर खाये।
मान सरोवर का वासी यह, कीचड़ में अकुलाए।।
तुमने इसे कषाय कल्मषों में, हर समय डुबोया।
दल-दल में फिर बोलो कैसे, कर ले हंसा वासा रे।।
हंसा भूखा प्यासा रे।।
नीर-क्षीर का ज्ञान इसे है, पर कैसे समझाए।
सद्गुण की पहचान इसे है, पर कैसे बतलाये।।
काम-क्रोध मद की कारा में, बंदी इसे बनाया।
पराधीन वाणी से कैसे, सबका करे खुलासा रे।।
हंसा भूखा प्यासा रे।।
मिथ्या मीठी बात बनाना, कभी न इसको भाया।
कपट भरा व्यवहार न इसने, पलभर भी अपनाया।।
निर्मलता में पला इसी से, निर्मल दृष्टि बनाई।
समझा करता है यह केवल, निर्मल मन की भाषा रे।।
हंसा भूखा प्यासा रे।।
तन का हर आवरण रात-दिन, तुमने बहुत सजाया।
पर उसके भीतर का वासी, भूखा सदा सुलाया।।
स्वाभिमान का धनी हंस यह, कैसे भी रह लेगा।
फैलाएगा मगर न भूखा, रहकर कभी हताशा रे।।
हंसा भूखा प्यासा रे।।
तन के सुख के लिए न सारा, जीवन यहाँ गँवाओ।
अन्तर्मन की तुष्टि-पुष्टि को भी, कुछ पुण्य कमाओ।।
यह वह है अंगार राख की, परतें अगर हटा दी।
बन जायेगा यही धरा पर, स्वर्णिम सूर्य प्रभासा।।
हंसा भूखा प्यासा रे।।