उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!
आज गायत्री जयंती का पुण्य पर्व है तथा गंगा दशहरा भी आज है। गायत्री को आत्मा कहते हैं तथा गंगा को काया कहते हैं। आत्मा एवं काया का जन्म एक ही दिन हुआ था। आज गायत्री जयंती का पर्व मनाने के लिए हम एकत्रित हुए हैं। आज के दिन हम इतिहास पर नजर डालते हैं तो यह पाते हैं कि आज के दिन ही गंगा का भी अवतरण हुआ था। आज के दिन गंगा इस धरती पर आई थीं। मित्रो! हमारा ख्याल है कि गंगा सर्वप्रथम भागीरथ की अंतरात्मा में कैसे आयीं होंगी? सामान्य मनुष्य बड़ा तेज एवं चालाक होता है। उसे अपने अलावा किसी की बात समझ में नहीं आती है। उसे तो केवल स्वार्थ ही दिखाई पड़ता है। ऐसे मनुष्य को कर्तव्य, समाज की सेवा, परमार्थ तथा भगवान् समझ में नहीं आते हैं। उसके मन में हमेशा शैतान हावी रहता है। उसे पेट के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता है। परन्तु भगवान जब एक इनसान के मन में आये होंगे, जिसका नाम था भगीरथ, तो उसने यह सोचा होगा कि एक मनुष्य की सुख-सुविधा से ज्यादा महत्त्व का है-समाज की संस्कृति की सेवा। उसने यही सोचा और क्या कर डाला? उसने गंगा से भक्ति का नाता जोड़ डाला। यह भक्ति का प्रतीक है।
यह भक्ति अंतरात्मा में से उमगती है। भगीरथ एक राजकुमार था। उसके राजपाट थे, परन्तु उसने आदमी की खुशहाली के लिए अपना स्वार्थ, लोभ त्याग दिया। भगवान की भक्ति आती है तो करुणा के रूप में आती है, दया के रूप में आती है। गायत्री को हम माता कहते हैं, गंगा को भी हम माता कहते हैं। माता कोई देवी या औरत का नाम नहीं है। माता एक आदर्श का नाम है, सिद्धान्त का नाम है। गायत्री माता इसलिये कहलाती है कि उनके भीतर करुणा एवं दया है। माता का अर्थ करुणा एवं दया है। माता प्यार के लिए गलने का नाम है। आज तो लोग संतोषी माता की पूजा करते हैं, पता नहीं ये कहाँ से लोगों ने गढ़ा है। कितनी रोचक कहानियाँ बनायी हैं? एक औरत थी, उसकी सास उसे तंग करती थी। संतोषी माता आयीं और उसने सास की पिटाई की। उसके बाद उसका पति तंग करता था। संतोषी माता आयीं एवं पति की पिटाई कर दी। यह मक्कार लोगों की कथा है। माता जब आती है तो एक मस्ती के रूप में, आदर्श के रूप में इनसान के पास आती है।
भगीरथ के हृदय में भी माता का उदय हुआ था। उसके सीने में, कलेजे में करुणा बही होगी। यह भावना की गंगा थी, जो विशाल होती चली गयी। हिमालय में से निकली विशाल गंगा बन गई। भगीरथ ने गंगा को मजबूर कर दिया कि आप स्वर्ग में बैठी हैं तथा धरती के लोग एक-एक बूँद पानी के लिए मजबूर हो रहे हैं, आपको शर्म आनी चाहिए। भगीरथ ने गंगा को मजबूर कर दिया। स्वर्ग की गंगा जो महलों में रहती थी, आराम का जीवन जीती थीं, वह भगीरथ के करुणा, त्याग एवं परमार्थ की भावना को देखकर मजबूर हो गई इस धरती पर आने के लिये। आज का यह ऐतिहासिक दिन महत्त्वपूर्ण है। गंगा कितनी विशाल है? क्या आपने कभी सोचा? वह हिमालय से भगीरथ के आवाज पर इस धरती पर आईं तथा इस धरती के लोग जो त्राहि-त्राहि कर रहे थे उन्हें राहत दी, उन्हें नया जीवन दिया। यह भगीरथ की त्याग-तपस्या का फल था, जिसके फलस्वरूप गंगा के अवतरण के साथ धरती धन्य हुई। आज का दिन गंगा अवतरण का महत्त्वपूर्ण दिन है। गंगा अगर स्वर्ग में रहती तो आज जो लोग गंगा के तट पर व्रत करते हैं, आरती करते हैं वह कौन करता? गंगा ने सारे समाज को धन्य कर दिया। हम किसी औरत की जयंती मनाने नहीं आये हैं, हम आज आदर्शों की, सिद्धान्तों की जयंती मनाने आये हैं। उदारता की, इनसानियत की जयंती मनाने आये हैं। आप चाहें तो इसे गायत्री माता कह सकते हैं। आज गायत्री के अवतरण का भी दिन है।
शेर खौफनाक होते हैं। उन्हें एक बार शिकार मिल जाए तो लम्बे पैर करके सोते रहते हैं। आपको ऐसा नहीं होना चाहिए। हमारा विचार है कि शेर से भी ज्यादा खौफनाक इक्कड़ व्यक्ति होते हैं, जो केवल अपने पेट, अपने बच्चे आदि को ही देखते हैं। समाज का उन्हें कुछ ध्यान नहीं होता है। अकेला हाथी इतना खतरनाक होता है कि उसका क्या कहना है? उसी प्रकार इक्कड़ आदमी होता है। ऐसे आदमी ही आज समाज को तहस-नहस कर रहे हैं। जो आदमी यह सोचते हैं कि मेरा पैसा बढ़ना चाहिए, मेरी तरक्की होनी चाहिए। मेरे परिवार का विकास होना चाहिए। उन्हें हम इनसान नहीं, शैतान कहते हैं। ऐसे खतरनाक आदमी सारे समाज को बर्बाद कर देते हैं। संत भी हैं परन्तु वह भी ‘इक्कड़’ हैं। उनको भी निरंतर यही ध्यान रहता है कि मेरी सिद्धि होनी चाहिए, मेरा ही विकास होना चाहिए। ऐसा व्यक्ति भी ‘इक्कड़’ होता है।
आज गायत्री जयंती का दिन है, जिसे विश्वामित्र ने सिद्ध किया था। अपनी तपश्चर्या का लाभ उन्होंने सारे समाज को दिया था। एक दिन उन्होंने अपने शिष्य हरिश्चन्द्र से पूछा कि क्या हम आपको मार डालें, आपको तबाह कर दें? तो उन्होंने कहा कि आपने जब इसके द्वारा ही महानता प्राप्त की है तो हम भी जलने के लिये तैयार हैं, आप सहर्ष इस कार्य को करें एवं हमारी आध्यात्मिक परीक्षा लें। गुरुवर! हम भी इस मस्ती का लाभ उठायेंगे। राजा हरिश्चन्द्र अपनी परीक्षा में सफल हो गये और इस धरती पर धन्य हो गये। राजा हरिश्चन्द्र का ड्रामा देखकर महात्मा गाँधी रो पड़े थे और उन्होंने यह निश्चय किया कि हम भी इसी प्रकार का जीवन जियेंगे। मित्रो! मुसीबतों का जीवन कुछ बिगाड़ नहीं सकता है। आदमी की जिन्दगी में से मुसीबतें निकल जाएँ तो, उसका जीवन दो कौड़ी का होता है। आदमी की जिन्दगी में इसके कारण ही निखार आता है, उसका विकास होता है। महापुरुष, संत इसी कारण से महान बने हैं और बढ़े हैं। अगर इनसान अपने लिये मुसीबत का ही नाम तप है जो हर इनसान के विकास के लिए आवश्यक है। आप इसके लिए घबराएँ नहीं, उसे बुलाएँ। इसके द्वारा आदमी में पैनापन आता है, आदमी में निखार आता है। यह आदमी को सोने का बनाती है। आदमी को प्रामाणिक बनाती है। विश्वामित्र पर गायत्री आई तो उन्हें मुसीबतों से गला-तपाकर महान बना दिया।
हम आपसे प्राचीनकाल की बात न करके आज की बात करना चाहते हैं। आज गायत्री जयंती का दिन एक ऐतिहासिक दिन है। यह भगवान का दिन है। आपको दिखलाई नहीं पड़ता है। रामचन्द्रजी जब पालने में झूल रहे थे तो तब आपको भगवान दिखलाई पड़े? आपको तो तब भगवान दिखलाई पड़े जब वे रावण को मारकर आये और राम राज्य स्थापित कर दिया था। परन्तु कुछ ऐसे आदमी भी होते हैं, जिन्हें भगवान पहले दिखाई पड़ जाते हैं। उसी प्रकार आज भी भगवान् का अवतार हो गया है। यह प्रज्ञा अवतार समय की आवश्यकता है। जब कभी-भी पृथ्वी पर अनीति, अत्याचार बढ़ता है, भगवान् का अवतार होता है। आज की ऐसी ही स्थिति है तथा इस कारण से ‘प्रज्ञा अवतार’ हो गया है। इसे भी कुछ लोगों ने राम की तरह पहचान लिया है तथा वे प्राणपण से उनके कार्यों में लगे हैं।
आज का दिन महत्त्वपूर्ण है। आज गायत्री जयंती का दिन है। अगले दिनों आज के दिन से ही इनसान के अंदर एक दिव्य हलचल होंगी। कुरीतियाँ मिटेंगी, अनीति समाप्त होगी। सभी धर्म एवं संस्कृतियाँ एक हो जाएँगी। धरती पर स्वर्ग का अवतरण होगा। जमाना एक हो जाएगा। भगवान एक हो जाएँगे। आज तरह-तरह की वेशभूषा पहने, विभिन्न भाषाओं को बोलते हुए लोग दिखाई पड़ते हैं। अगले दिनों ऐसा मालूम पड़ता है कि ये सब चीजें समाप्त होने वाली हैं। आचार, संस्कृति, भाषा सब एक हो जाएँगे। सारे के सारे धर्म, राष्ट्र, संस्कृति एक होने वाली हैं, अगले दिनों विशाल परिवर्तन होने वाला है। ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ की भावना पनपने वाली है। कमाने वाला अकेले नहीं खा सकता है, उसे समाज, परिवार, राष्ट्र को देखकर चलना होगा। हम कमाते तो जरूर हैं, लेकिन हमारे इस पैसे पर केवल हमारा ही हक नहीं है। हमारी बूढ़ी माता कमाती नहीं है, उसके लिये भी हमें देना होगा, उसकी व्यवस्था बनानी होगी। आप कमा तो सकते हैं, परन्तु खाने पर आपके ऊपर अंकुश लगा है। आप केवल अकेले खा नहीं सकते हैं। आप समाज को, परिवार को, नौकर को खिलाकर खाएँ। आने वाला दिन आपको दिखलाई पड़ता है कि नहीं, यह पता नहीं, परन्तु हमें दिखलाई पड़ता है कि ऐसा ही होने वाला है।
आज गायत्री माता का जन्मदिन है। यह बहुत ही शानदार दिन है। गायत्री माता किसी समय वेदमाता बनीं थीं, जिन्होंने सारे वेदों को जन्म दिया था। सारी संस्कृति एवं सभ्यता को जन्म दिया था। उस समय यह गायत्री माता वेदमाता बनीं थीं। उसके बाद गायत्री माता देवमाता बनीं। हिन्दुस्तान के निवासी देवता थे। वे स्वयं तो खाते कम थे, पर खिलाते अधिक थे। उन्होंने खाया कम, खिलाया ज्यादा। ब्राह्मणों ने खाया कम, खिलाया ज्यादा। ऋषियों ने खाया कम, खिलाया ज्यादा। यहाँ के नागरिकों ने खाया कम, खिलाया ज्यादा। यहाँ के नागरिकों ने सारी दुनिया में अपनी सम्पदा को बाँट दिया। वे विदेशों में चले गये, इण्डोनेशिया, अमेरिका आदि सारी दुनिया में चले गये और अपनी प्रतिभा को वह बिखेरते चले गये। वे देवमानव थे। उन्हें अकेले खाते समय मन में अप्रसन्नता होती थी तथा खिलाते समय वे प्रसन्न होते थे। अकेले खाने के समय वे शर्मिन्दा होते थे। एक बार हमें भी शर्मिन्दा होना पड़ा। माताजी ने किसी के कहने पर हमें एक गिलास मौसमी का रस दिया था। हम काम में व्यस्त थे, माताजी ने दिया तो हम उसे पी गये, परन्तु थोड़ी देर के बाद पेट में ऐसा लगा कि किसी ने हमें तेजाब पिला दिया। हमें मालूम पड़ा कि ये मौसमी का रस था। हमने अपने मुँह में अँगुलियाँ डालकर उल्टी कर दी तथा उस समय तक चैन नहीं आया जब तक कि मौसमी का रस पेट से न निकल गया। माताजी ने पूछा कि क्या मक्खी आ गई? हमने कहा कि नहीं, हम इसे कैसे पी सकते हैं?
मित्रो ! अगले दिनों लोगों को खाने से ज्यादा मजा खिलाने में आयेगा। अकेले खाने वालों को अगले दिनों लोग यह कहेंगे कि आपको शर्म नहीं आती है, आप खाते चले जाते हैं, खाते चले जाते हैं। आपको शर्म आनी चाहिए। पड़ोसी तथा पीड़ित-पतित एवं भूखे लोग आपको दिखलाई नहीं पड़ते हैं, मक्कार कहीं का। केवल अपना पेट, अपनी बीबी, अपने बच्चे ही दिखलाई पड़ते हैं। आपके भीतर से जब गायत्री माता उदय होंगी तो आपको चमकाकर रख देंगी। आपके विचारों में परिवर्तन कर देंगी। आपको सारा परिवार, समाज, देश दिखलाई पड़ेगा। आप देवता बनते चले जाएँगे। गायत्री माता हंस पर बैठकर कमण्डलु लेकर नहीं आती है, वह केवल करुणा के रूप में, दया के रूप में आपके अंदर आयेगी। यही उसका स्वरूप है जो आपको देवता बनाकर जाएगी। उस समय आपको देवता की तरह से जीना पड़ेगा। आप हैवान तथा शैतान की तरह से नहीं जी सकते हैं। आप मालदार एवं पूँजीपति की तरह से जी नहीं सकेंगे। आपके जीने एवं रहने का ढंग अजीब हो जाएगा। आप बाँटकर खायेंगे तथा दूसरों की मुसीबतों को बँटाने का काम करेंगे। आप अपनी खुशहाली को बाँट देंगे तब प्रसन्नता आपके अंदर से आ जाएगी।
आज करुणा की माता जन्म लेने वाली है। आज गायत्री माता जन्म लेने वाली है। आज प्रज्ञावतार जन्म लेने वाला है। अवतार कब जन्म लेते हैं जब—
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।
अवतार लेने के बाद भगवान केवल तीन काम करते हैं। सज्जनों की रक्षा, दुष्प्रवृत्तियों का उन्मूलन और धर्म की स्थापना करनी पड़ती है उनको। भगवान एक ही काम करता है चाहे वह बाहरी दुनिया की दुष्प्रवृत्तियाँ हों या मनुष्य के अंदर हों, उसे तोड़ता, उसे नाश करता हुआ चला जाता है। उसे हटाता चला जाता है। वह उसके साथ ही निर्माण यानि जिलाने का काम भी करता है। सज्जनों की रक्षा भी करता है। वह डबल रोल करता है। भगवान इनसान की बुरी परिस्थितियों को तोड़ता चला जाता है तथा दूसरा काम बनाता चला जाता है अर्थात् परिस्थितियाँ ठीक करता चला जाता है यह भगवान का डबल रोल है—ध्वंस एवं सृजन का। इसी का नाम गलाई एवं ढलाई है। आप टाटा नगर चले जाना वहाँ देखना बड़ी-बड़ी चिमनियाँ बनी हुई हैं। उसमें लोहे के टुकड़े आदि डाल दिये जाते हैं। वहाँ पर उनकी गलाई होती है। उसमें सब गलकर एक हो जाते हैं। उसमें गलत चीजें भी गल जाती हैं। इसका क्या नाम हैं? गलाई। उसके बाद अच्छी चीजें बन जाती हैं, उसे ढलाई करके नया रूप दे दिया जाता है। इसी प्रकार भगवान का ध्वंस एवं सृजन का काम भी चलता रहता है। भगवान अगर किसी को मुसीबत देता भी है तो कोई खास मकसद के लिये देता है।
मैं क्या कह रहा था आज गायत्री जयंती के दिन—कि अगले दिनों जो समय आने वाला है उसमें भगवान गलाई-ढलाई करेगा। आप हमारी आँखों से, हमारे दूरबीन से देखिये न। नहीं गुरुजी। अगले दिन तबाही आयेगी। बेटा तबाही आयेगी तो निर्माण के लिये आयेगी। तो क्या अगले दिन डरावने हैं? हाँ डरावने भी हो सकते हैं। इसके लिए हम क्या कह सकते हैं। बच्चे पैदा होते हैं तो मुसीबत भी आती है, परन्तु उसके बाद खुशियाँ भी मनायी जाती हैं। मिठाई भी बाँटी जाती है। अगले दिन हमको खुशहाल दिखाई पड़ रहा है। अगले दिनों में हमें खूबसूरत इनसान दिखलाई पड़ रहे हैं। खुशहाल दुनिया दिखलाई पड़ रही है।
अगले दिन हमको गायत्री माता का वह दिन दिखाई पड़ रहा है, जो आज का दिन है, जो लोगों को प्रभावित करने वाला है। इनसान के भीतर का देवता जो सो गया है, वह जगने वाला है। अगले दिनों इनसान के भीतर से देवता जगेगा। इसे मनुष्य में देवत्व का उदय कहा जा सकता है। हमने इसके साथ यह भी कहा है कि धरती पर स्वर्ग का अवतरण होगा। अगले दिन दुनिया में बहुत शानदार एवं अच्छी परिस्थितियाँ आयेंगी। जमाना बहुत सुंदर आयेगा। धर्म, संस्कृति, भगवान सब एक हो जाएँगे। अगले दिन सब भगवान एक हो जाएँगे ताकि कोई आपस में न लड़ सकें। अगले दिनों भाषाएँ भी एक हो जाएँगी। जो आपस में लड़ती-मरती हैं, वह एक हो जायेंगी। अगले दिनों आचार एवं संस्कृति एक हो जायेगी। पर्व जो आयेंगे, उसमें सब को छुट्टी मिलेगी। कोई एक व्यक्ति का पर्व नहीं होगा। संस्कृति, सभ्यता, इनसान, राष्ट्र एक होने वाला है। एक कुटुम्ब की तरह रहेगी। इसमें बूढ़ी माता तथा जो नहीं कमा रहे हैं, उनका भी हक होगा। सब मिल-बाँटकर खायेंगे। आपस में प्रेम, आत्मीयता होगी। कमाने वाला ही केवल नहीं खा सकता है। उन पर अंकुश लगा हुआ है।
आने वाले दिन हमको बहुत शानदार दिखलाई पड़ रहे हैं, आपको दिखलाई पड़ रहा है या नहीं। हम नहीं कह सकते। इस बार गायत्री माता सभी को देवता बनाना चाहती हैं। वे सभी को महान बनाना चाहती हैं। अगले बीस साल बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। इस समय आप लोगों को कुछ विशेष काम करने हैं। आप सब लोग लोभ, मोह की बेड़ियों को काट डालिये। अरे ये हथकड़ियाँ आपके हाथों में लगी हैं, उसे काटिये। ढेरों की ढेरों अकल, समय हर आदमी के पास है। आपने अभी तक इसे बेकार में खर्च किया है तथा बर्बाद किया है। अब आप समझदार आदमी बन जाएँ तथा इसका उपयोग अब आप सही ढंग से करना सीखें। आप कम में गुजारा करना सीखिये। औसत भारतीय का जीवन जीना सीखिये ताकि कुछ राष्ट्र एवं समाज के लिए भी खर्च कर सकें। आप अपने बच्चों को संस्कारवान बनाने का प्रयास करें। आपका बच्चा लुहार, बढ़ई हो जाए तो कोई हर्ज की बात नहीं है। अगर आप बड़े आदमी जैसे वकील, दरोगा, डॉक्टर, इंजीनियर न बनाकर उसे संस्कारवान बनाएँ तो बेहतर है। ये बड़े आदमी आपके लिये, अपने लिये, समाज के लिये समस्या बन जाएँगे तथा तबाही लाएँगे। आप उन्हें संस्कारवान बनाएँ। आप अपने विचारों में अगर परिवर्तन कर सकें तो बहुत मजा आयेगा। आज गायत्री का जन्मदिन है, अगर वह आपके जीवन में आ गयी तो वास्तव में आपको धन्य कर देगी।
अभी तो आपकी शक्ति, सामर्थ्य, धन, अक्ल सब बेकार कामों में खर्च हो रहा है। लेकिन जिस दिन गायत्री माता आपके जीवन में आयेगी तो सारे के सारे जीवन क्रम में उलट-फेर हो जाएगा। हमारा गुरु जिस दिन हमारे पास आया आज से पचपन वर्ष पूर्व तो उसने हमारे लोभ, मोह की बेड़ियों को काट डाला। वह दिन परम सौभाग्य का दिन था। उस दिन मेरे गुरु के रूप में भगवान आये थे और उस दिन से हम अपनी सारी चीजें अपने गुरु को, भगवान को सौंपते चले गये। हम अपनी अकल को, पैसे को, सब कुछ को भगवान को सौंपते चले गये और मालदार होते हुए चले गये। एक दिन एक व्यक्ति कह रहा था कि बच्चा जिस दिन जन्म लेवे, उसके नाम एक हजार जमा कर दीजिये तो वह 39 साल बाद एक लाख 32 हजार हो जाता है। पहले हमें विश्वास नहीं हुआ, परन्तु जब उसने बतलाया कि हर पाँच साल के बाद डबल होता चला जाता है। पता नहीं यह कहाँ तक सत्य है, परन्तु हमने भगवान के बैंक से तो न जाने कितनी चीजें प्राप्त कर लीं तथा आज हम आप सबों से ज्यादा मालदार हैं। हमारे गुरु ने, भगवान ने अपने बैंक से इतना दिया कि कोई भी बैंक या ऑफिस इतना नहीं दे सकता है।
अतः आज हम आप सबों से कहना चाहते हैं कि आप सब लोग मोह, लोभ की अपेक्षा, बेटा, पोतों को देने की अपेक्षा समाज को, राष्ट्र को खिलाना सीखें तो आपके भी मालदार होने की गुंजायश होगी। आपसे प्रार्थना है कि आप स्वयं खाने की अपेक्षा खिलाना सीखें। आप कहते हैं कि हम खायेंगे तो पहलवान हो जाएँगे। हम कहते हैं कि आप खाने से पहलवान नहीं हो सकते हैं। आप अगर अकेले खायेंगे तो आप सबों के पेट में दर्द होगा तथा डाइबिटीज होगी। आप विटामिन ‘ए’ खायेंगे, अण्डा खायेंगे तो ही पहलवान नहीं हो जाएँगे। घास या पत्ते खाने से भी आदमी ताकतवर हो सकता है। हम जब हिमालय चले जाते हैं, उस समय हमें केवल वहाँ पर घास तथा पत्ते ही मिलते हैं। परन्तु क्या हम तुमसे कम ताकतवर हैं। वहाँ कंद-मूल भी नहीं है। हम पत्ते को उबालकर खा लेते हैं। और हमारी सेहत 17 वर्ष के लड़के की तरह है। हम कितना काम करते हैं, आप जानते नहीं? हम आज 70 वर्ष के हो गये परन्तु 17 वर्ष के लगते हैं। आप वही खाएँ जो ब्राह्मण, सदाचारी, अपरिग्रही खाते रहे हैं, तो आप देखेंगे कि आपकी सेहत कैसी रहती है?
आप आज गायत्री जयंती के दिन यहाँ आये हैं तथा यहाँ पर्व मना रहे हैं। आपसे प्रार्थना है कि आप लोकहित के लिये जीवन जीना सीखें। प्रभु के चरणों में समर्पित हों तो आपका यह पर्व मनाना सार्थक होगा। यह नसीहत हम आपको इस पावन पर्व के दिन दे रहे हैं। यह नसीहत हमारे गुरु ने हमें दी थी। उसके पहले हमारी माताजी ने दी थी, जो 92 वर्ष की होकर मरी थीं। वे एकादशी का व्रत करती थीं और उस दिन वे ‘सीधा’ निकालकर कर देती थीं और कहती थीं कि हमने पेट काटकर बचाया है इसे मंदिर में देकर आओ। ‘‘पेट काट कर बचाना और लोकहित में यानि कि भगवान को देना —इसी का नाम यज्ञ है।’’ आप हवन तो करते हैं, परन्तु कुर्बानी, परोपकार, सेवा के लिये कुछ करना नहीं चाहते हैं। मित्रो, इसी का नाम अग्निहोत्र है, इसी का नाम यज्ञ है। अगर आप भी इस यज्ञ की प्रवृत्ति, लोकहित का जीवन जीने की प्रवृत्ति लेकर चले जाएँ तो आपका जीवन धन्य हो जाएगा। हम मरते-मरते, जीवन के अंतिम क्षणों में आपको एक नसीहत देकर जाना चाहते हैं कि आप एक शानदार आदमी बनें। लोकहित का जीवन जीना सीखें।
आज गायत्री जयंती के दिन हम एक बात और कहना चाहते हैं कि अगर आप आज अपने गुरु के नसीहत के मुताबिक़, गायत्री माता के नसीहत के मुताबिक़, जो करुणा और दया की प्रतीक है—लोकमंगल हेतु अपने अक्ल, धन, समय को लगा सकेंगे तो आपका जीवन धन्य हो जाएगा। अगले दिनों आप शानदार जीवन जिएँ, आप किफायतसारी जीवन जिएँ। आप अपने औलाद का, परिवार वालों का मोह न करें तो आपकी जिन्दगी तथा भविष्य शानदार बनता हुआ चला जाएगा। आपको हम जिम्मेदारी से विमुख होने को नहीं कहते हैं। हमें परिवार शब्द से बहुत प्रेम है तथा हमने संस्था का नाम गायत्री परिवार, प्रज्ञा परिवार रखा है। परन्तु हम एक बात कहना चाहते हैं कि आप उसमें लिप्त न हों, मोहग्रस्त न हों। हमने युग-निर्माण परिवार, गायत्री परिवार इसी उद्देश्य से बनाया है। आपने परिवार तो बनाया है। परन्तु आपने उसे बड़ा बना दिया है यानि कि मालदार बना दिया है। आप बड़ा मत बनाइये, आप केवल संस्कारवान बनाने का प्रयास करें। आप लोभ, मोह को कम करें तथा आप लोग कुछ समाज, देश तथा संस्कृति के लिये काम करें तो मजा आ जाएगा।
यह समय बीजारोपण का है। यह गायत्री का, प्रज्ञावतार का दिन है। यह सारे विश्व में फैलने वाली है, आप देख लेना। गायत्री महामंत्र जो विवेक, सद्विचार, सद्भावना, प्रेरणा, शालीनता, उज्ज्वल भविष्य, नये युग का मंत्र है, यह सारे विश्व में फैलने वाला है। यह मत्स्यावतार की तरह फैलने वाला है, यह हम आपको दिखा देंगे। ब्रह्माजी ने जिस मछली को कमण्डलु, तालाब, नदी, समुद्र में डाला था वह बढ़ती चली गई। आने वाले दिनों में यह गायत्री माता भी इसी प्रकार बढ़ने वाली है आप विश्वास रखें। इस प्रकार की कथा आपने सुनी है, परन्तु हमारे जैसा नाचीज आदमी यह कह रहा है, आप नोट कर लें। आगे गायत्री भी मछली के रूप में सारे विश्व में फैलने वाली है। आज भी हमारे 24 लाख व्यक्ति हमारा कहना मानते हैं, हमें गुरुजी कहते हैं। वे हमसे दीक्षा प्राप्त किये हैं। वे हमसे जुड़े हैं। एक आवाज पर हर प्रकार की कुर्बानी के लिए तैयार रहते हैं। आप समझते नहीं हैं 24 लाख किसे कहते हैं? आपने कभी सोचा है 24 लाख आँखें, 24 लाख हाथ तथा 24 लाख घण्टे कितने होते हैं? हमारी ताकत बड़ी महान है। 24 लाख घण्टे कितने होते हैं? इनसान आठ घण्टे काम करता है, परन्तु 24 लाख व्यक्तियों के एक घण्टे श्रम करने का मतलब है—4 लाख आदमियों का श्रम। 6 घण्टे प्रतिदिन के हिसाब से उन्हें औसतन 20 रुपये भी प्राप्त हो जाते हैं तो जरा मूल्यांकन कर लेना कि हम कितने बड़े तथा सामर्थ्यवान आदमी हैं। आप जरा मूल्यांकन करें कि एक दिन में, एक माह में और एक साल में यह कितना हो जाता है? यह गायत्री माता भी मत्स्यावतार की तरह से हमारे कमण्डलु में से बढ़ते-बढ़ते कहाँ तक पहुँच गयी है। हमने 24 गायत्री शक्तिपीठ बनाने का संकल्प लिया था, कसम खायी थी। परन्तु आज कितने बन गये, आपको पता नहीं है।
अब हम गायत्री माता के बारे में कहना चाहते हैं। यह विकसित होने जा रही है। इसका विकास होने जा रहा है। अगर किसी डूबते हुए को तिनके का सहारा मिल जाता है तो वह बढ़ता, फलता, फूलता चला जाता है। इसी गायत्री जयंती से हमने नया संकल्प लिया है। हिन्दुस्तान में सात लाख गाँव हैं। हिन्दुस्तान में हमने जन्म लिया, यहाँ की मिट्टी में हमने खेला है, यहाँ हमने पढ़ाई की है, जन्म हुआ है, हवा खायी है। इसी संस्कृति में हमने जीवन जीना सीखा है। इस संस्कृति का कर्ज हमारे ऊपर है। अतः विवेक की देवी, दया, करुणा, उज्ज्वल भविष्य की देवी को एक लाख व्यक्तियों के द्वारा 240 करोड़ जप गाँवों में हमें कराना है। धर्मानुष्ठान की शृंखला में हम अभूतपूर्व कार्यक्रम प्रारम्भ करने जा रहे हैं, जो आज तक के इतिहास में एक अभूतपूर्व कार्य माना जा सकता है। पुराने जमाने में नैमिषारण्य में सारे ऋषि आते थे एवं उनका भावभरा संकल्प होता था। आज गायत्री जयंती के दिन-विवेक की देवी के जन्म-दिन पर आप सब जो बैठे हैं, वे सब हमारे पूर्व जन्म के ऋषि, मुनि हैं, जो कि प्रारम्भ में भी काम किये हैं तथा आगे भी काम करेंगे। आज का यह धर्मानुष्ठान इस युग का महत्त्वपूर्ण धर्मानुष्ठान है।
आज से एक लाख व्यक्तियों द्वारा 240 करोड़ जप नित्य का प्रारम्भ हो गया। आज का दिन बड़ा शानदार दिन है। धर्मानुष्ठान की शृंखला में—अनुष्ठान की शृंखला में आज का दिन बहुत महत्त्वपूर्ण है। नैमिषारण्य में एक लाख व्यक्ति कभी इकट्ठा नहीं हुए। पहले माइक नहीं था। आज 10 हजार व्यक्ति इकट्ठे हुए हैं। आप बिना माइक के प्रवचन नहीं दे सकते है। मित्रो, एक लाख व्यक्ति मायने रखता है। यह गायत्री माता का विस्तार है। आज से एक लाख व्यक्तियों द्वारा नित्य 240 करोड़ का जप का कार्य होगा। यह वातावरण का संशोधन, धरती पर स्वर्ग एवं मनुष्य में देवत्व लाने के लिये प्रारम्भ किया गया है। इससे सारे वातावरण में परिवर्तन हो जाएगा। 1 लाख गाँव में हम गायत्री चरणपीठ बना देंगे। हमने इसकी अनुमानित लागत 250 रुपये रखी है। हम इसे उपस्थित करा देंगे। इस काम के लिए कोई भी व्यक्ति इतनी धनराशि दे देगा तथा हमारा यह काम पूरा हो जाएगा। मित्रो! यह हमारा सपना है जो पूरा होगा। हमने हमेशा सपना देखा है। यह भी हमारा एक सपना है। हमने बहुत शानदार सपना देखा है तथा उसे रंगीन बनाने की कोशिश की है। यह भी हमारा एक सपना है। क्या सपना है? 1 लाख व्यक्तियों में जनचेतना जगाना तथा 240 करोड़ जप करने की पद्धति प्रारम्भ करना। हर गाँव में नित्य हवन, चालीसा का पाठ, मंत्र-लेखन, जप तथा जन्मदिन मनाया जाएगा। हम हर गाँव में 4 घण्टे काम करने वाला एक आदमी रख करके जाएँगे जो उपरोक्त सारे कामों को पूरा करेगा तथा गाँव के अंतर्गत चेतना जाग्रत करेगा। वह 50 रुपये में भी काम कर सकता है। हर घर में दो-दो आदमी बेकार बैठे रहते हैं। उन्हें खेती तथा दूसरा काम कुछ भी नहीं है, उन्हें आप कहेंगे तो वह 4 घण्टे समय दे देगा। आप उसे 50/-दे दें। इसके अलावा उस गाँव में एक-एक मुखिया, (मैनेजर) मिल जाएगा जो कामों की देख−भाल करेगा। इस प्रकार हर गाँव के दो आदमी के हिसाब से 2 लाख आदमी हमारे हो जाएँगे जो हमारे कामों को निष्ठा के साथ पूरा करेंगे।
हमने संकल्प लिया है कि देश के अंदर से निरक्षरता को हम मिटायेंगे तथा लोगों को साक्षर बनाएँगे। सरकार यह काम नहीं कर सकती है। वह तो प्राइमरी स्कूल की व्यवस्था ही नहीं देख पाती है। जैसे स्वामी केशवानन्द जी ने शेखावटी के गाँवों में मुट्ठी फण्ड योजना के द्वारा प्राइमरी स्कूल खोला था। हम भी उस योजना को सफल करेंगे। इसके साथ ही हर आदमी की सेहत की जिम्मेदारी हम उठायेंगे जो असंयम, खानपान, रहन-सहन के कारण चौपट हो गई है। हम उसे लोगों को समझाकर परिवर्तन करेंगे। आज जो अनास्था संकट हावी हो गयी है उसे हम दूर करेंगे। हम बहुत-से काम करेंगे। आज सामाजिक कुरीतियाँ जो बढ़ रही हैं उसे हम समाप्त करेंगे।
आज गायत्री जयंती के दिन से अपने चरणपीठ तथा 1 लाख परिजनों के सहयोग से हम बड़े से बड़े कदम उठाने वाले हैं। कौन-से कदम उठाने वाले हैं? दहेजप्रथा और फिजूलखर्ची को समाप्त कर देंगे जिसने इनसान को गरीब बना दिया है। समाज को बर्बाद करके रख दिया है। एक लाख आपने फिजूलखर्ची में बर्बाद करके दिया। आपने सोचा नहीं कि एक लाख रुपये का ब्याज मासिक एक हजार आता है। आपने यह विचार ही नहीं किया। आपने अपने नाक कटने की वजह से आतिशबाजी, बाजा, गाजा तथा फैशनपरस्ती को बढ़ावा दिया। यह बेहूदापन बंद करें। अगर आपकी नाक इस कारण कटती है तो सूर्पणखा की तरह से आपकी नाक अवश्य कटनी चाहिए। हमने साहस के साथ कदम उठाया है। लानत भरे यह विवाह मुझे बिल्कुल नापसन्द है। इसे दैत्य विवाह कहते हैं। यह सभ्यता के नाम पर डकैती और बलात्कार है। हमारे संकल्प महान हैं जो शक्ति हमारे साथ है उसके माध्यम से हम यह काम अवश्य पूरा करेंगे।
आज गायत्री जयंती के दिन जो शादियाँ हो रही हैं, यह प्रतीक हैं, यह प्रारम्भ है। हमने शादियों का धंधा नहीं लिया है। आज से हमने क्रान्ति का प्रारम्भ किया है। शादियों के अवसर पर हंस की मोटर पर बैठा हुआ आदमी हमें नरपिशाच-सा नजर आता है।
मित्रो! हम इसके विरोध में बगावत शुरू करेंगे। कहाँ से करेंगे? हम देहात से शुरू करेंगे। यह शहर तो बर्बाद हो गये हैं। न जाने कितनी पार्टियाँ, कितने नेता, कितने पेपर यह सारा बर्बाद हो गया है? आज गायत्री जयंती के पुनीत पर्व पर हम देहातों में चलें। हिन्दुस्तान की आत्मा-आबादी देहातों में बसती है। उसके विकास के लिए, प्रगति के लिये हम उधर की ओर चलें। यह क्षेत्र खाली पड़ा है, जहाँ न कोई सम्प्रदायवाद है, न कोई आडम्बर है। असली हिन्दुस्तान तो वहीं है, जो खाली पड़ा हुआ है। हम उसका विकास करना चाहते हैं। गायत्री माता तथा हमारा गुरु हम पर हावी है और न जाने कैसी-कैसी बेचैनी पैदा करता है, हमें सोने भी नहीं देता है। आज गायत्री जयंती के दिन भगवान करे यह बेचैनी के लिये, राष्ट्र के लिये, पीड़ा-पतन के निवारण के लिये कुछ अपनी अकल, समय और धन दे सकें तो यह दुनिया सुंदर बन सकती है तथा धरती पर स्वर्ग एवं मनुष्य में देवत्व का उदय हो सकता है। जो वास्तव में हमारा सपना है। गायत्री माता, करुणा की माता अब अपना विस्तार चाहती है। आप उठिये तथा हमारे साथ चलने के लिये आगे आइए। हमें तथा हमारे भगवान को सहयोग कीजिये तथा यह मानव जीवन जो मिला है, उसे हमारी यह धन्य बनाने का प्रयास कीजिए।
भगवान करे आपको भी सामर्थ्यवान देवी प्राप्त हो। आपको भी ऋद्धि-सिद्धि मिले। जो हमें ऋद्धि-सिद्ध का चमत्कार मिला है, वह आपको भी मिले। हमें लाखों आदमियों के आँसुओं को पोंछना अच्छा लगता है। आप भी गायत्री माता से माँगिए। आप तो केवल अपने लिये माँगते हैं। आप समाज के लिए, राष्ट्र के लिए माँगिए तो इसके साथ आपको भी मिलेगा। हमें वर्तमान और भविष्य काल दोनों ही शानदार दिखलाई पड़ रहा है। हम गायत्री माता से यही प्रार्थना करते हैं कि हे माता! हमें दया, करुणा, क्षमा, शालीनता और ममता दीजिये। मित्रो! आपको भी यही माँगना चाहिए। यही हमारी, गायत्री माता तथा महाकाल की प्रेरणा है। अगर आप इसे समझ जाएँ तथा उस पर चलने, उसे उतारने का प्रयास करेंगे तो आज का गायत्री जयंती तथा आपका जीवन धन्य हो सकता है। आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्तिः॥