उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!
कल्प साधना सत्र समाप्त होते-होते आज आप विदा होने जा रहे हैं। आप विदा हो के जाइये और हमारी शुभकामना लेते जाइये, हमारा वरदान लेते जाइये, हमारा आशीर्वाद लेते जाइये; इसको ठुकराइये मत। देवताओं के वरदान हमेशा सत्प्रवृत्तियों के रूप में, सत्प्रेरणा के रूप में मिलेंगे। देवताओं ने कभी किसी आदमी को पोटले बाँध के रुपयों के बण्डल नहीं दिये; न किसी को बेटी-बेटे दिये हैं; न मुकदमें में जीत कराई है; न किसी को नौकरी में उन्नति कराई है। ये काम अपने पुरुषार्थ का है; देवताओं का नहीं है, संतों-ऋषियों का नहीं है। संत और ऋषि जो अनुदान और वरदान देते हैं, उनसे आदमी के अन्तराल में उच्चस्तरीय प्रेरणा उत्पन्न होती है बस, और कुछ नहीं होता।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानन्द के अन्तराल में प्रेरणा भर दी थी। प्रेरणाएँ भर दीं, तो फिर उन्होंने अपने जीवन का स्वरूप बदल दिया और क्या-से हो गए। अस्पताल बनाने के लिए और बेलूर मठ बनाने के लिए एक करोड़ रुपया दिया था—ये बेकार बातें कहते रहते हैं। ये कोई सन्तों से माँगने की चीजें हैं। संत कहीं दिया करते हैं क्या? हमारे गुरु ने क्या दिया हमको बताइये? कोई रुपयों का बण्डल दिया है क्या? हमको पोटले भर के दिये हैं क्या? हमको औलादें दी हैं क्या? नहीं, कभी किसी ने नहीं दिया। संत, ऋषि और देवता जो किसी आदमी को कुछ दे सकते हैं और देना चाहिए, वह केवल प्रेरणा होती है, दृष्टिकोण होता है, सोचने के तरीके होते हैं। हमारा महान् गुरु जब हमसे मिला, उसने हमारा चिन्तन बदल दिया, हमारी प्रेरणाएँ बदल दीं, हमारी दिशा धाराएँ बदल दीं और सोचने के तरीके बदल दिये तथा बदलने के लिये प्रेरणाएँ दीं। बदला तो हमने ही है, मेहनत तो हमने की है और हम मेहनत न किए होते, तो उनकी प्रेरणा की क्या कीमत थी! अगर हम उसका सहयोग न करते तब? रामकृष्ण परमहंस की आज्ञा न मानते विवेकानन्द, तो क्या वे विवेकानन्द बनते? आशीर्वाद लेकर घर बैठ जाते। आपको यहाँ से जाने के बाद में बदलना है। हम आपको प्रेरणा देंगे। हमारा आशीर्वाद केवल प्रेरणा के रूप में हो सकता है। इसी तरीके से हमारे गुरु का आशीर्वाद भी प्रेरणा के रूप में था। मालदारी के रूप में किसी की आशीर्वाद न कभी मिला है और न कभी मिलने की आप उम्मीद कीजिये हमसे। हम आपको मालदार बनाएँगे, सेठ बनाएँगे—आप बेकार की बातें क्यों कहते हैं? जो हम नहीं कर सकते, उसके लिये क्यों दबाव डालते हैं? भगवान मालदार नहीं बनाते; मालदारों को गरीब बना देते हैं। आपने देखे हैं हरिश्चन्द्र से लेकर के जितने भी आदमी भगवान की भक्ति में आए, कोई मालदार बना है क्या? मनोकामना पूरी कराई—ऐसा लगा है क्या? आप उलटी-उलटी बातें मत विचार कीजिये, आप उल्टे को उलट दीजिये और सीधे उठ जाइये। सीधे हो के जाइये। यहाँ से जब जाएँ, तो क्या होते हुए जाएँ? आपका अन्तराल बदला हुआ हरेक को दिखाई पड़े। जो भी आये, हरेक को बदला दिखाई पड़े। आपकी पत्नी कहे—ये वह आदमी नहीं है। शक्ल हमारे पति जैसी अवश्य मालूम पड़ती है; पर आदमी वह नहीं है। पहले ये कड़वे वचन बोलते थे, पहले ये हर वक्त रौब गालिब करते थे, हर वक्त दबाव डालते थे। अब ये दबाव नहीं डालते, बल्कि ये मान के चलते हैं कि भगवान की ये बेटी हमारे घर में लाकर के रखी गई है और उसकी हिफाजत करना, उसको उन्नतिशील बनाना, उसको सम्मान प्रदान करना हमारा काम है।
आप अधिकार को त्याग दीजिये, आप कर्तव्यों को ग्रहण कर लीजिये। आप हरेक के प्रति कर्तव्यों को ग्रहण कीजिये। आपका धर्मपत्नी के प्रति क्या कर्तव्य है? आपका शरीर के प्रति क्या कर्तव्य है? आपका अपनी मनःसम्पदा के प्रति क्या कर्तव्य है? आपका अपने बच्चों के प्रति क्या कर्तव्य है? आपको जो धन मिला हुआ है, साधन मिले हुए हैं, उसके प्रति क्या कर्तव्य है? आपका अपने समाज के प्रति क्या कर्तव्य है? आप केवल कर्तव्यों पर विचार करें और अधिकारों की उपेक्षा करने लगें, तो मैं ये कहूँगा कि सच्चे अर्थों में आप कायाकल्प के अधिकारी हुए और हमेशा कर्तव्यों को भुलाते रहेंगे और अधिकारों की माँग करते रहोगे, तो क्या कहा जाएगा? आपसे ये कहा जाएगा, आप घिनौनी, नारकीय मनःस्थिति में पड़े हुए हैं, जिसके फलस्वरूप आदमी को अनेक विपन्नताओं का शिकार होना पड़ता है और परिस्थितियाँ जिसकी हमेशा उल्टी बनी रहती हैं। आप उसी में बने रहें, तब तो बेकार हो गया न! आप इसे बदलिये, कृपा करके बदलिये। अपनी मनःस्थिति को बदलिये। आप कर्तव्यों को ईमानदारों की तरह पालन कीजिये और अपने अधिकारों से पीछे हट जाइये। आप अब तक भिखारी के रूप में रहे हैं, अभावग्रस्त के रूप में रहे हैं; हम अभावग्रस्त हैं, हमारे पास कमियाँ हैं, कमियाँ हैं, कमियाँ हैं***। आप ने कमियों की लिस्ट बनाई है और यहाँ-वहाँ पल्ला पसारा है। कमियों का अनुभव करना और जहाँ-तहाँ जिस किसी के सामने पल्ला पसारना—यही तो नीति रहीं है। कृपा करके नीति बदल दीजिये।
तब क्या काम करें? आप ये विचार कीजिये कि आपको जो कुछ मिला हुआ है, वह कितना ज्यादा है? भगवान ने कितना ज्यादा आपको दिया है। जो किसी प्राणी को नहीं मिला है, वह सिर्फ आपको मिला हुआ है। आप इनसानी जिन्दगी की कीमत समझते हैं क्या? नहीं समझते? समझिये जरा। जो सृष्टि के किसी प्राणी को नहीं मिला है, वह आपको मिला है। आपकी जैसी वाणी, आपके जैसा मस्तिष्क, आपकी जैसी जीवन की सुनिश्चितता, आपके जैसा गृहस्थ क्या सारे विश्व भर के किसी और प्राणी को मिला हुआ है? आप क्यों प्रसन्न नहीं हो सकते? आप क्यों अपने आप को मालदार अनुभव नहीं कर सकते? क्यों आप सम्पन्न अनुभव नहीं कर सकते? आप गरीबी को छोड़ दीजिये और अमीरी यहाँ से लेकर जाइये, बदल जाइये। आप गरीबी की बात छोड़ दीजिये। उस लिस्ट को फाड़ के फेंक दीजिये, जिसमें आपने ऐसी बातों की सूची बना रखी है, जो हमारे पास नहीं है, नहीं है, नहीं है*****। आप ‘नहीं वाली’ लिस्ट को फेंक दीजिये। आप ये सोच के चलिये—आपके पास है क्या? आपके पास श्रम है, आपके पास जीवन है, आपके पास मनुष्य की काया है, आपके पास जीवन है, आपके पास परिस्थितियाँ हैं। आपके पास जीविका के माध्यम है। आपके पास क्या कमी है? जो है, उस पर संतोष व्यक्त कीजिये। आप उनसे प्रसन्न रहिये। आप उन पर गर्व कीजिये और याचना के स्थान पर देने की बात विचार कीजिये; याचक मत बनिये। भिखारी से बुरा आदमी दुनिया में क्या हो सकता ! आप बीबी से मुस्कान माँगते हैं? आप अपनी मुस्कान बीबी को क्यों नहीं दे सकते? आप बच्चों को वंश चलाने की आशा करते हैं? आप बच्चों को वंश चलाने योग्य क्यों नहीं बना देते? आप कीजिये। आप याचक मत बनिये। देने के लिये बहुत है, आपके पास। ऋषियों के पास बहुत था; पैसा नहीं था; पैसे में आग लगा दीजिये। पैसा तो मरने ही वाला है। पैसा तो मरेगा ही। पैसे को तो मरना ही चाहिए। पहले भी पैसा नहीं था और अभी भी पैसा नहीं रहेगा। आदमी की असली दौलत उसका श्रम है, समय है। हजारी किसान का नाम सुना है न आपने? आपने उस पिसनहारी का नाम सुना है न? जिसने पिसाई में से दो पैसे रोज बचा कर के एक ऐसा पक्का कुआँ बनवा दिया था, जिसमें कि पानी अमृत के बराबर है और लोग अभी भी उसका पानी पीकर के ये अनुभव करते हैं कि हमारे मर्ज अच्छे हो जाएँगे, हमको शान्ति मिलेगी। आप ऐसा नहीं कर सकते? दे नहीं सकते? आप मीठे वचन नहीं बोल सकते? आप दूसरों को प्रोत्साहन नहीं दे सकते? आप क्या अच्छे परामर्श देने की स्थिति में नहीं हैं? क्या आप मुस्कान नहीं बाँट सकते? क्या आप मुहब्बत नहीं बाँट सकते? ये चीजें कम है क्या? आप देने वाले बन जाइये। आप सेवा दीजिये, सहानुभूति दीजिये, स्नेह दीजिये, फिर देखिये आप जो चीज बाँटते हैं, वह ब्याज समेत कितनी ज्यादा उठ करके ऊँची हो जाती है।
आप यहाँ से जाइये और यहीं अपनी गरीबी को छोड़ जाइये; जिस कमरे में आये हैं, उसी में गरीबी छोड़ दीजिये; अभाव की सूची वहीं फाड़ के फेंक दें। आपके पास क्या है—इस पर खुशी मनाना सीख के जाइये और आप एक नई लिस्ट ये बना के जाइये कि माँगना क्या! देना—माँगना क्या! देना। किसको आप क्या देंगे? मित्रो को क्या देंगे? दोस्तों को क्या देंगे? धन? नहीं। अपनी भावनाएँ, विचारणाएँ और ऊँचा उछाल देने वाली सलाहें। सलाहें क्या कम होती हैं? प्रोत्साहन की कीमत नहीं समझते आप? परामर्शों की कीमत नहीं समझते? सलाह-मशवरे की कीमत नहीं समझते? आप बहुत कुछ दे सकते हैं, वही दीजिये।
यहाँ से जाने के बाद में आप अपनी खीझ को प्रसन्नता में बदल दीजिये। क्यों? कल कहा था न हमने—आप अपने कर्तव्य को जब पर्याप्त मान लें, आप ये सोच लेंगे हमने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया और फर्ज पूरे कर लिये, तो आपको खुश रहने का पूरा हक है। आपने कर्तव्य पूर कर दिया और क्या कर सकते थे आप? जो कर सकते थे, आपने पूरा कर लिया। आपको सफलता मिल गई। आप पूरे तरीके से सफल अनुभव कीजिये। अगर आप अपने फर्ज और ड्यूटी अंजाम देते रहते हैं, तब आप मुस्कुरा सकते हैं और फर्जों (कामों) पर केन्द्रित रहेंगे, तब और परिस्थितियों पर केन्द्रित रहेंगे। ये प्रतिक्रिया हुई—उसने हमारे साथ ये नहीं किया, हमारी ऐसी परिस्थिति नहीं बनी, तो आप खीझते रहेंगे, खीझते रहेंगे और आप भूत की जिन्दगी जियेंगे। भूत जलते रहते हैं। और जलाते रहते हैं—मैंने सुना है। भूत डरते रहते हैं और डराते रहते हैं—मैंने सुना है। भूत रोते रहते हैं और रुलाते रहते हैं—मैंने सुना है। मालूम नहीं, भूत की क्या स्थिति है; पर मैं आप से कहता हूँ आप भूत के तरीके से क्यों जिन्दगी जिएँ? देवता के तरीके से जिएँ। आप का पुराना ढर्रा बेहूदगियों से भरा पड़ा है। आप ऐसा करें, यहाँ से जाने के बाद में अपनी नम्रता! अपनी नम्रता को प्रदर्शन करने का स्वभाव डालिये और दूसरों को सम्मान देना सीखिये। अब तक ये होता है, हम अपना अहंकार और दूसरों का तिरस्कार—बस उसी का परिणाम है आप को कभी गुस्सा आता है, कभी आप ढीठ कहलाते हैं, कभी उद्दण्ड कहलाते हैं, कभी क्या कहलाते हैं, कभी आपके असंख्य विरोधी हो जाते हैं, लेकिन अगर आप अपना रवैया बदल सकते हों, तो अपनी नम्रता, हर चीज में अपनी नम्रता प्रदर्शित करें। शिष्टाचार इसे ही कहते हैं। शालीनता इसे ही कहते हैं, सज्जनता इसे ही कहते हैं, शराफत इसे ही कहते हैं।
आप चाहे जो शब्द रखें; लेकिन आप यहाँ से जाने के बाद में एक शरीफ आदमी के तरीके से, सज्जन आदमी के तरीके से, जिम्मेदार आदमी के तरीके से, विनयशील आदमी के तरीके से, विनम्र आदमी के तरीके से, एक श्रेष्ठ नागरिक होने के नाते, अपने आप के बोलचाल से लेकर के व्यवहार तक में सज्जनता को घोल दीजिये, मिठास को घोल दीजिये, सेवा को घोल दीजिये, आत्मीयता को घोल दीजिये। और क्या करेंं? दूसरों को सम्मान देना सीखिये हरेक की इज्जत कीजिये, छोटे बच्चों की इज्जत कीजिये, धर्मपत्नी की इज्जत कीजिये, माता जी की इज्जत कीजिये, छोटी बहिन की इज्जत कीजिये, भाइयों की इज्जत कीजिये, पड़ोसी की इज्जत कीजिये, मित्रों की इज्जत कीजिये, समाज की इज्जत कीजिये आप दूसरों की सम्मान करना सीखेंगे, तो आपका अहंकार जल जाएगा। अगर आपका अहंकार जल गया, दूसरों को सम्मान देना शुरू कर दिया, तो आप देखना उस सम्मान की प्रतिक्रिया क्या होती है? आप जितना सम्मान दूसरों को देंगे, उससे असंख्य गुना सम्मान आपके हिस्से में आएगा और फिर आप सम्मान की कमी अनुभव नहीं करेंगे। फिर क्या आप यहाँ से ऐसा नहीं बदल सकते? आप बदलिये। आप उज्ज्वल भविष्य की उम्मीदें कीजिये। आप एक अक्सर कल्पना करते रहते हैं, हमारा भविष्य ऐसा खराब हो जाएगा, अमुक आदमी ये नुकसान पहुँचा देगा, ऐसी मुसीबत आ जाएगी हमारा बच्चा कुपात्र निकल जाएगा। आप क्यों ऐसी कल्पना करते हैं? वास्तविकता यह थोड़े ही है। आपने कोई सिर्फ कल्पना कर रखी है। भय की कल्पनाएँ, आशंका की कल्पनाएँ, चिन्ता की कल्पनाएँ, हैरानी की कल्पनाएँ, बुढ़ापे की कल्पनाएँ, मौत की कल्पनाएँ आप क्यों करते रहते हैं? उज्ज्वल कल्पनाएँ आपको करना नहीं आता? आप विधेयात्मक विचार नहीं कर सकते? आपको निषेधात्मक विचारों को कटाना नहीं आता? आप विधेयात्मक विचार शुरू कीजिये और खुश से रहना सीखिये।
यहाँ से आप जाएँ और कभी आपके मन में ये विचार आये कि हमारी मौत हो जाएगी और हमारा शरीर चला जाएगा—आप ऐसे निषेधात्मक विचार मत कीजिये। आप दूसरे ढंग से विचार कीजिए। हमें नया जन्म मिलेगा और हम दूसरी माँ की गोदी में खेलेंगे और माँ का दूध पियेंगे और उछलते-कूदते फिरेंगे और फिर हम बड़े हो जाएँगे, स्कूल जाएँगे, हमारी फिर नई शादी होगी। ये कल्पना क्यों नहीं करते? सुनहरे ख्वाब देखना नहीं आता? सुनहरे सपने सजाना नहीं आता? आप सुनहरे सपनों से सजा कीजिये। निराशा के विचारों, खीझ के विचारों और चिन्ता के विचारों से अपने आप को छुड़ा लीजिये। आप अच्छी-से उम्मीदें कीजिये; लेकिन साथ में आप बुरी-से परिस्थिति के लिये तैयार रहिए। दोनों बातों के लिये समान रूप से आपको पैर बढ़ाने हैं। जहाँ उज्ज्वल भविष्य की सम्भावना है, वहाँ यह भी सम्भावना है कि आपकी परिस्थितियाँ प्रतिकूल हो जाएँ और आपको मुसीबतों में पड़ना पड़े और आपने जो सपने सँजो करके रखे हैं, वे मटियामेट हो जाएँ।
आप उसके लिये भी तैयार रहिये। दोनों तरीके से तैयार रहिये। अगर आप बुरे भविष्य के लिये तैयार नहीं रहेंगे, तो आपकी हिम्मत टूट जाएगी। यकायक कोई मुसीबत का दिन आ गया, तो आपके सब धज्जे बिखर जाएँगे। आप बुरी-से मुसीबतों के लिए तैयार रहिये और अपने आप को इतना सबल और स्वावलम्बी बनाए रखिये कि किसी भी खतरे के समय पर आप अपने पैरों पर खड़े रह सकें—इतने आप शूरवीर बनिये, इतने आप बहादुर बनिये। आप उदार तो बनिये; पर जागरूक होइये। दूसरों के साथ-साथ में उदारता बरतने के लिये तो मैं कहता रहा हूँ; पर मैंने कहा है हरेक की सेवा-शराफत कीजिये; लेकिन आप भूलना मत, आपको जागरूक भी रहना है। जागरूक नहीं रहे और आप उदार ही बनते चले गए, सेवाभावी ही बनते चले गए, तो आपकी भलमनसाहत का बुरी तरीके से लोग नाजायज फायदा उठाएँगे और आप उनके शिकार बन जाएँगे, दुष्टों के शिकार बन जाएँगे। उदारता तो कीजिये, सहायता तो कीजिये; पर इस विचार को मत भूलिये—कहाँ उदारता करनी है, कहाँ नहीं करनी है। जहाँ जरूरत हो, वहीं उदारता कीजिये। जहाँ जरूरत न हो, आप हाथ सिकोड़ सकते हैं और निष्ठुर भी बन सकते हैं। हरेक को देखिये, हर व्यक्ति को देखिये, हर परिस्थिति को देखिये। हर काम में सहयोग देना कोई जरूरी नहीं। हर आदमी की सेवा करना कतई जरूरी नहीं? जो श्रेष्ठ है, उसी की सेवा कीजिये। जो सत्प्रवृत्तियाँ हैं, उन्हीं में सहयोग दीजिये। कोई भी चन्दा माँगने आएगा, हम दे देंगे। नहीं, ऐसे नहीं, ऐसा मत कीजिये। कोई भी भिखारी आएगा, हम हरेक को देंगे। ऐसा मत कीजिये। आप की उस रोटी को पाकर के उनकी हरामखोरी और दूसरी बुराइयाँ बढ़ेंगी, इसलिये आपको जागरूक भी रहना चाहिए। आपको उदार जहाँ बनना है, सेवाभावी बनना है, वहाँ संघर्षशील भी बनना है। आप लड़ाई से इनकार मत कीजिये। आप लड़ाई से इनकार कर देंगे, तो मच्छर आपको खा जाएँगे। फिर आपको मक्खियाँ निगल जाएँगी; फिर आपको पिस्सू जिन्दा नहीं रहने देंगे; फिर आपको खटमल किस तरीके से चैन लेने देंगे? सिर में घुसे हुए जुएँ आपको किस तरीके से हैरान नहीं करेंगे? चूहे आपका सारा अनाज खा के खत्म कर देंगे; फिर पिस्सू और कीटाणु, जो आपके शरीर में घुस जाते हैं और तपेदिक जैसी बीमारियाँ कर देते हैं—इनसे लोहा नहीं लेंगे, तो कैसे बात बनेगी?
फिर आप यहाँ से जब जा ही रहे हैं, फिर आप संघर्षशील भी होकर जाइये, शूरवीर भी होकर जाइये; उदार बनिये, संयमी बनिये, सज्जन बनिये, भगवान का नाम लीजिये, अच्छे काम कीजिये; लेकिन इतना काफी नहीं है। आपकी सज्जनता काफी नहीं है। सज्जनता के साथ में शूरवीरता का भी होना जरूरी है, आपको संघर्षशील भी होना चाहिए, आपको प्यार करना आना चाहिए और लड़ना भी आना चाहिए जो आदमी लड़ नहीं सकता, वह प्यार भी नहीं कर सकता। जो प्यार कर सकता है, वो लड़ भी नहीं सकता है क्यों? वह प्यार में हित-साधन जुड़ा होता है। हित-साधन जिसमें जुड़ा हुआ नहीं है, वह कैसे प्यार हुआ? ये प्यार तो हो नहीं सकता। इसमें हित-साधन जुड़ा हुआ नहीं है। हित-साधन के लिये जरूरी नहीं है कि किसी की हाँ-में ही मिलायी जाए या दूसरे आदमी जो चाहते हैं, वही किया जाए। ये हो सकता है कि हित चाहने के लिये किसी आदमी को ठीक उल्टा करना पड़े, मसलन बच्चे के हाथ में फोड़ा हो गया है और माँ के लिये सम्भव है कि इसको डॉक्टर के यहाँ आपरेशन कराने के लिये ले जाए और बच्चा मना करता रहे—नहीं हमारा आपरेशन मत कराइए, तो भी माता उसको बहका-फुसला करके और थोड़ा दबाव देकर के फोड़े का आपरेशन करा देती है, तो ये अच्छी बात है; इससे इसका हाथ गलने से बच जाएगा। फोड़े का आपरेशन नहीं कराया होता, फिर हाथ सड़ता और सारे ही हाथ को खराब कर सकता था। इसलिये दूरदर्शिता का तकाजा ये है—आप केवल न्याय को समर्थन दीजिये, अनौचित्य को समर्थन मत दीजिये; लोगों की खुशामदें मत कीजिये; लोगों की इच्छाओं पर ध्यान कत दीजिये; लोग क्या सलाह देते हैं, आप बिल्कुल ध्यान मत दीजिये। आप यहाँ से जाने के बाद में अपने आप का एक और रवैया बदल सकते हैं। आप पास की बात मत सोचिये, दूर की बात सोचिये। आमतौर से हर आदमी की समझ में पास की बात आती है। आज क्या फायदा, आज कितना फायदा है, कल को नुकसान हो, तो? ऐसी ही आमतौर से अदूरदर्शिता हर जगह फैली हुई है। आप विवेकशील बनिये और दूरदर्शी बनिये हर मामले में ये सोचिये, इसके परिणाम क्या होंगे? आप परिणामों पर विचार करेंगे, तो बहुत-सी बुराइयों से बच जाएँगे और आप परिणामों पर विचार करेंगे, तो वह काम, जो आज छोटे मालूम पड़ते हैं, बेकार मालूम पड़ते हैं, आप उन कामों को खुशी से करने के लिये तैयार हो जाएँगे जो आपके, आपके समाज के हित में नितान्त आवश्यक हैं। दूरदर्शी आदमी नहीं बन सकते, तो बुढ़ापे को खराब कर देंगे, जवानी को बुरी तरीके से निचोड़ते रहेंगे, बुढ़ापे में इतनी शिकायतें पैदा करेंगे, कि हैरान हो जाएँगे। बच्चे स्कूल जाते हैं। इस समय का खेलना दिखाई पड़ता है, भविष्य दिखाई नहीं पड़ता। फीस के पैसे ले जाते हैं, सिनेमा में खर्च कर देते हैं, यार-दोस्तों के साथ मटरगस्ती करते हैं और सारी जिन्दगी तबाह हो जाती है।
दूरदर्शी हैं बच्चे? नहीं, दूरदर्शी नहीं हैं। जो आदमी दूरदर्शी नहीं है, वह न्यायोचित बात को विचार नहीं कर सकता; अपने सुन्दर भविष्य की, उज्ज्वल भविष्य की संरचना नहीं कर सकता। आज की परिस्थितियों में आपको कुछ हैरानी पड़ती है, कुछ दबाव डालना पड़ता है, परिवर्तन करना पड़ता है, अपनी सुविधा में कमी करनी पड़ती है। आप कर लीजिये, इससे कुछ बनता-बिगड़ता नहीं। आपको जो करना है, केवल यही करना है कि दूरगामी परिणाम क्या हो? तब बात बनेगी। इससे कम में बनेगी नहीं। आप यहाँ से जा रहे हैं, तो पारस को छूकर के लोहा सोना हो जात है; आप सोना बन जाइये। कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर के आदमी अपनी कामनाओं का समापन कर लेता है। आप में कल्पवृक्ष है। आप अपनी कामनाओं को पूरा तो नहीं करा पाएँगे; लेकिन अनावश्यक कामना को खत्म कर दें, तो आप कल्पवृक्ष का आनन्द ले पाएँगे। आपका शरीर चमड़े का है; आप को सेना तो नहीं बना सकते; लेकिन अगर आप अपने मन को बदल दें, ऊँचे आदर्शों के साथ, अर्थात् पारस के साथ जोड़ लें, तो आप सोना बन सकते हैं। ऊँचे आदर्श, ऊँचे विचारों के साथ में जिन आदमियों ने भी अपने व्यक्तिगत जीवन को जोड़ा है, वे पारस से बढ़कर रहे हैं। आप यहाँ से अमृत पीकर के जाइये। अमृत किसे कहते हैं? आत्मज्ञान को कहते हैं, आदर्शवाद को कहते हैं, उत्कृष्टता को कहते हैं, ईश्वर-विश्वास को कहते हैं। अगर आप ये कर पाएँ, तो आपको अमृत पीने वाला कहेंगे। आप यहाँ से कामधेनु लेकर जाइये। आपने यहाँ क्या दिया? मालूम नहीं। वैसे तो ये भी थी, पुराने जमाने की मान्यता, जब लोग धार्मिक अनुष्ठान करते थे, कल्प-साधना के अनुष्ठान करते थे, तो जहाँ, जिस आश्रम में रहते थे या जिसके द्वारा करते थे, उनको दान देते थे। गौ दानों का बहुत महत्त्व है। गौ दान देते ये आश्रमों को, गौ का पैसा देते थे। अब क्या गौ दान देंगे? लेकिन आप ऐसा कीजिये, हमसे गौ दान ले जाइये, एक कामधेनु ले जाइये। कामधेनु क्या है? कामधेनु आध्यात्मिकता है। आप आध्यात्मिक चिंतन ले के जाइये, आध्यात्मिक दृष्टिकोण ले के जाइये। अगर आप आध्यात्मिक दृष्टिकोण लेकर के जाएँगे, तो फिर आपको बहुत कुछ करना पड़ेगा। फिर आपको अपने व्यक्तित्व के खेत में पौधा और पानी लगाने के लिये उपासना करनी पड़ेगी, साधना करनी पड़ेगी, आराधना करनी पड़ेगी। उपासना भगवान् की करना और यहाँ का प्रज्ञायोग का जो प्रकरण है, उसको आप सीख लेना। प्रज्ञायोग 15 मिनट रोज की आराधना है; बड़ी उपयोगी है, बड़ी महत्त्वपूर्ण है। आप के दैनिक जीवन में प्रज्ञायोग का एक नियमित स्थान रहना चाहिए। आपको यहाँ से जाने के बाद में समय का निर्धारण करने की रीति बनानी चाहिए। आप समय का टाइम-टेबल बनाना और समय का एक मिनट भी बेकार मत गँवाना।
यहाँ से जाने के बाद में आप अपने परिवार में श्रमशीलता पैदा करना, सुव्यवस्था पैदा करना, शालीनता पैदा करना, मितव्ययिता करना, उदात्त सहकार पैदा करना, ये पंचशील हैं; आपको बता दिया था न। ये बार-बार लिखा है और छपा है। आप अपने घर और परिवार में पंचशील बनाइये और उन्हें पैदा करने के लिये स्वयं में ये गुण पैदा कीजिये। आप बनेंगे, तो दूसरे आदमी ढलेंगे और आप नहीं बनेंगे, तो कोई क्यों ढलेगा! इन विशेषताओं का आप जीवन में शामिल कर लेंगे, तो मजा आ जाएगा। आप यहाँ से जाइये और यहाँ के विचारों का विस्तार रहिये। जो आपने सीखा है, वह दूसरों को सिखाते रहिये। यहाँ के साहित्य का विस्तार कीजिये और छोटे-छोटे काम हमने बताये थे आपको, उनको आप भूलना मत। यहाँ से आप जा ही रहे हैं, तो आप ने समयदान में कुछ-न जरूर दिया होगा। आज बेहद जरूरत है। इनकी आपके समय की आपके बच्चों को ही जरूरत नहीं है, हमको भी जरूरत है, भगवान को भी जरूरत है। इसमें से सारी कटौती करके अपने खानदान वालों को ही मत दे दीजिये। अरे बाबा! हमको बहुत जरूरत है, आप समझते नहीं हैं! युग को बहुत जरूरत है, भगवान को बहुत जरूरत है, पीड़ित मानवता को बहुत जरूरत है। आप अपने समयदान और अंशदान में कंजूसी मत कीजिये। आप उदार बन के जाइये, कलेजे को चौड़ा करके ले जाइये, कृपण होकर के मत जाइये, माँगते मत रहिये, याचक और दानी का रिश्ता हमारे आप के बीच में मत बनने दीजिये। आप और हम अन्धे और पंगे के तरीके से दोस्त बनना चाहते हैं।
हमारे पास कुछ चीज है, हम आपको देंगे। आपके पास कुछ है, हमको दीजिये। आदान-प्रदान का सिलसिला बनाइये। अन्धे और पंगे की नसीहत ग्रहण कीजिये, नाव पार कर लेंगे। हमारे गुरु और हमारे बीच में यही रिश्ता चला था। हमारे गुरु ने हमको असीम दिया और हमने अपने गुरु को असीम दिया। वे कहते हैं—हम आपको ज्यादा देंगे, हम कहते रहे हैं—हम आपको ज्यादा देंगे। आप हमको दीजिये; हमको बहुत जरूरत है। आपका समय हमको बहुत चाहिए, हमको धन आपका बहुत चाहिए, आपका सहयोग हमको बहुत चाहिए। आप अपना घर शान्तिकुञ्ज में बना के जाइये और यहाँ के कर्मचारी के रूप में या कि यहाँ के परिवार के रूप में अपना घर सँभालिए, छत सँभालिए, दुकान सँभालिए। आप हमारे होकर रहिये, हम आपके होकर रहेंगे। कदाचित् ऐसा हो गया, तो सच्चे अर्थों में आप कायाकल्प के अधिकारी हो जाएँगे और आप धन्य हो जाएँगे। आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥