उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
वसन्त पर्व पर हमें हमेशा नए संदेश मिलते रहे हैं। जिस सत्ता के साथ हमारा बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है और जिसकी आज्ञा से हमारा सारा जीवन व्यतीत हुआ है, जिसको हमने अपने आप का समर्पण किया है, उस समर्पण वाली शक्ति ने हमसे यह वायदा किया था कि वसन्त पंचमी के समय पर हर साल का एक कार्यक्रम बनाकर भेजा करेंगे। वह सुबह हमको मिल गया है। आपमें से कई आदमी वसन्त पंचमी पर यहाँ आए होंगे, पर भावावेश का समय था। दो वर्ष बाद हम आपको क्या करना है और हमें क्या करना है, इसके सम्बन्ध में एक छपा हुआ इश्तहार बाँट दिया। मालूम नहीं आपने ध्यान दिया अथवा नहीं। गुरुजी के साक्षात्कार हो गए, दर्शन कर लिए बहुत हो गया।
पिछले दिनों किसी ने यह अफवाह फैला दी कि गुरुजी बीमार पड़े हैं, उन लोगों को यह बताने के लिए कि हमारे शरीर में कोई खराबी नहीं है और न कभी कोई खराबी नहीं है और न कभी कोई खराबी होगी हमारे शरीर में। अगर कभी हमारी मृत्यु हुई तो आप यह समझना कि गुरुजी का ट्रांसफर हुआ है। किसी महत्त्वपूर्ण काम के लिए उनको भेज दिया गया है और जो काम अभी हम स्थूल शरीर से करते हैं, उसकी अपेक्षा सौ गुना अधिक काम कर रहें होंगे, क्योंकि शरीर का बन्धन ही ऐसा है कि हमको बहुत दूर तक नहीं चलने देता। इसलिए जो काम अभी हम इस शरीर से नहीं कर सकते, उसकी अगर आवश्यकता पड़ी, गुरुदेव को आवश्यकता पड़ी तो स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर में बदल जाने के लिए भले हम कुछ समय बाद ऐसा करें, लेकिन फिलहाल अभी कुछ ऐसी योजना नहीं है। न हम बीमार हैं और न हमें कोई कष्ट है और न कोई बात है। हम ठीक तरीके से अपनी यह साधना-उपासना कर रहे हैं। हमें सूक्ष्मीकरण के लिए कहा गया था, उसी साधना में हम मुस्तैदी से लगे हुए हैं। इस बारे में इतना ही कहना काफी है कि हमारे बारे में आपको कोई चिन्ता करने की बात नहीं है। चिन्ता तो आपकी हमको करनी है। आप क्यों करेंगे? बच्चे माँ-बाप की चिन्ता क्यों करेंगे कि पिताजी का यह काम कैसे होगा? वह काम कैसे होगा? पिताजी का कर्ज कैसे चुकेगा? बच्चों को क्या पता? पिता को ही यह ध्यान रखना पड़ता है कि अगर हम नहीं रहे या आगे चलकर बच्चे बड़े होंगे तो उनको खिलाने-पिलाने का क्या इन्तजाम करना पड़ेगा? इनके रहने के लिए मकान का, इनके ब्याह-शादी का क्या इन्तजाम करना पड़ेगा? इनके काम-धन्धे का क्या इन्तजाम करना पड़ेगा? यह चिन्ता करना बड़ों का काम है। हम बड़े हैं। आपसे उम्र में भी बड़े हैं, विद्या में भी बड़े हैं, ज्ञान में भी बड़े हैं, तप में भी बड़े हैं, भावनाओं में भी बड़े हैं। हम बड़े हैं तो यह हमारा काम है कि आप सब लोगों का ध्यान रखें।
विगत वर्ष जब वसन्त पंचमी का उत्सव हुआ था, तब हमने बहुत-सी बातें कही थीं, पर उनमें से विशेष रूप से ध्यान देने लायक दो बातें कही थीं। एक बात यह है कि यह युगसन्धि का समय है, जिसमें अभी पन्द्रह वर्ष बाकी है सन् २००० आने में। यह खराब समय अभी खत्म नहीं हुआ है। पहले सभी समझते थे कि यह खत्म हो गया है, पर अभी न तो प्रकृति-प्रकोप खत्म हुए हैं न हरी-बीमारी। हारी-बीमारी के ऐसे-ऐसे चक्कर हैं कि एक दिन में एक-एक गाँव में २२-२३ बच्चों की मृत्यु हो जाती है। कभी-कभी चौपायों में ऐसी बीमारी फैलती है कि वे सारे के सारे ढेर हो जाते हैं। कभी-कभी भूकम्प आ जाते हैं। अभी-अभी हिन्दुस्तान में इस तरीके से तूफान आए कि लाखों आदमियों को तबाह करके रख दिया। इस तरीके से चीजें पैदा हो जाती हैं। नेचर-प्रकृति हमसे नाराज हो गई है। इनसानों का चाल-चलन देखकर प्रकृति ने नाराजगी से अपना बदला चुकाने का निश्चय किया है और वह बराबर बदला चुका रही है और हैरानी पैदा कर रही है।
एक बात हमने यह कही और आप सबको सावधान किया था कि आप लोग सावधान रहना। तो क्यों साहब! हमारे सावधान रहने से क्या हो जाएगा? मान लीजिए कोई ऐसी बीमारी आ जाए, मुसीबत आ जाए या बाढ़ आ जाए या कोई ऐसा उपद्रव खड़ा हो जाए तो हम क्या करेंगे? इसीलिए हमने कहा था कि अभी हम आपसे अलग नहीं हुए हैं। अभी हम आपसे ज्यों के त्यों जुड़े हुए हैं। हमारी शक्ति के दो हिस्से हुए हैं। अभी तक जो शक्ति सीमित थी और गायत्री परिवार की शाखाओं में ही भरती जाती थी, संगठन करने या आयोजन करने या सम्मेलन बुलाने में, शिविर लगाने में खर्च हो जाती थी, अब दो साल की सूक्ष्मीकृत साधना में अपनी शक्ति से हमारे पास जो अभी थोड़े-से २४ लाख व्यक्ति हैं, उनकी हम सुरक्षा कर लेंगे। पचास फीसदी शक्ति हम सुरक्षा में लगाएँगे। आपकी हारी-बीमारी में, घाटे में, दुःख में, मुसीबत में, हैरानी में हमारी आधी शक्ति बराबर काम करती रहेगी। इसमें भी आप कमी नहीं पाएँगे, चाहे आप कैसी भी मुसीबत में क्यों न फँसे हों, और लोगों से आप हर हालत में नफे में रहेंगे—यह हमारा वायदा है और यह हमारा आपसे कहना है। एक और बात हमने यह कही भी कि अब आपको बार-बार हरिद्वार आने और बार-बार हमसे मिलने की आवश्यकता नहीं है। इसका बहुत सीधा-सरल रास्ता हमने निकाल लिया है। वह यह कि यदि हमसे मिलने की आवश्यकता हो तो आप दस बार लम्बे-लम्बे प्राणायाम करना और प्राणायाम करने के बाद में सिर के ऊपर दाहिना हाथ फिराना। हाथ फिराने के बाद में देखना कि जो कुछ भी आपके मन में विचार थे, वह सबके सब बाहर निकल गए और हमारे विचारों का भीतर आना शुरू हो गया। उस वक्त जो विचार उठें उसको मान लेना कि यह गुरुजी की बात है, विचार है। यह रविवार के दिन करना चाहिए। हो सके तो नित्य करना चाहिए।
एक बात हमने यह कही थी कि आपके देख−भाल की, आपकी सुख-शान्ति की, आपको आगे बढ़ाने की, ऊँचा उठाने की, आपके दुःख-दर्दों को कम करने की जिम्मेदारी हमारी है। आपको कोई मुसीबत हो, हैरानी की बात हो तो माताजी से कह देना अथवा जो कोई भी हो यहाँ हमने सात सदस्यों की एक कमेटी बनाई, ट्रस्ट बनाए हैं। ये ऐसे हैं जो अपने घर से ही अपना खर्च चलाते हैं, ऊँची योग्यता के हैं। यहाँ के कामों को बड़ी ईमानदारी और जिम्मेदारी से सँभालते हैं और हमको यकीन हो गया है कि ये आदमी हमेशा अपनी जिम्मेदारियों को सँभालते रहेंगे। उनके सुपुर्द हमने यह कर दिया है कि जो कोई भी यहाँ आया करें, इनके हाथों लिखकर दे दिया करें वह हम तक पहुँच जाएगा और हम आपका काम कर देंगे। यह हम आपसे वायदा करते हैं और आपको वचन देते हैं। हमने आपके लिए अपने व्यक्ति, अपने नुमाइन्दे नियुक्त किये हैं, जो आपसे सम्बन्धित बातों को ठीक से समझा सकें। जो बातें आपसे, आपके बाल-बच्चों से सम्बन्धित हैं, आपके पैसे से सम्बन्धित हैं, उसके बारे में हमारा जो वायदा है, जो दायित्व है, उसके बारे में ये आदमी आपको ठीक से समझा देंगे। अपने इन नुमाइन्दों को हम आपकी सेवा में भेजा रहे हैं।
एक बहुत बड़ा काम हमने किया है—यज्ञीय परम्परा का पुनर्जीवन। वैसे तो सारी जिन्दगी भर हमने बड़े काम किए हैं। हमारा जीवन बड़ा है। हमारे ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारियाँ डाली गई हैं। इतना कलेजा है कि हाथी का या तो होगा या व्हेल का। उससे कम भारी कलेजा हमारा नहीं है। हमें वजनदार काम सौंपा गए हैं। हाथी के ऊपर जब वजन रखा जाता है, तब भारी वजन रखा है। शेर को छलाँग मारनी पड़ती है तो बड़ी छलाँग मानता है। इसीलिए हमारे कन्धों पर बड़े काम डाले गए हैं। यह जो युगसन्धि के दिन हैं, इसमें अनेक काम पूरे करने के लिए हमें सौंपे गये हैं और उन सौंपे गए कामों को क्या हम अकेले पूरा कर लेंगे? यह कहना जरा मुश्किल है क्योंकि रामचन्द्र जी ने रावण को मारा था, तब अकेले उन्होंने मारा हो तो बात कहाँ थी? उनके साथ में नल-नील थे, जामवन्त थे, हनुमान थे, अंगद थे और कितने ही रीछ-वानर थे। सबने मिलकर मारा था। इसी तरीके से सबको मिलाकर हमको एक ऐसा अनुष्ठान करना है जैसा कि पहले दिन से ब्रह्माजी ने जब धरती बनाई थी, उस वक्त से लेकर न कभी हुआ था और न कभी होगा।
एक संकल्प हमारा यह है कि एक लाख यज्ञ करें। एक लाख गायत्री यज्ञ कहाँ होंगे? हमारी इच्छा है कि एक लाख अलग-अलग स्थानों पर करें ताकि हर गाँव का वातावरण, हर गाँव की सुरक्षा, हर गाँव में हमारा और हमारे गुरुदेव का प्राण इस यज्ञ के माध्यम से जा पहुँचे। यज्ञ एक माध्यम है। जिस तरीके से लाउडस्पीकर हमारी आवाज को पकड़कर उसे बाहर फैलाने का एक माध्यम है, इसी तरीके से यज्ञ एक माध्यम है, जो हमारी आवाज को पकड़ रहा है, हमारे गुरुदेव की आवाज को पकड़ रहा है, गायत्री माता की आवाज को पकड़कर रहा है तो गुरुजी आजकल तो पैसे की तंगी है, सूखा पड़ गया है, अकाल पड़ गया है, तूफान आ गया है, कैसे होगा यज्ञ? बेटे, हमने उस हिसाब से इन यज्ञों को रखा ही नहीं है। जो यज्ञ रखे हैं वे ऐसे हैं कि ज्यादा से ज्यादा स्थानों में हो और उनमें गरीब से गरीब लोग भी भाग लें। यह यज्ञ भलों में भी हो, अछूतों में भी हों—सब जगह हो जाएँ। इस यज्ञ में यह बात रखी है कि गुड़, जो सब घरों में होता है, उस गुड़ में जरा-सा घी मिला दीजिए और उनकी बेर जैसी छोटी-छोटी गोलियाँ बना लीजिए। यहाँ से हम अभिमन्त्रित की हुई जो हवन सामग्री भेजेंगे, उसे उन सबके ऊपर रख दीजिए और उनसे हवन कर लीजिए गुरुजी! वेदियाँ कौन बनाएगा? हमको तो बनाना नहीं आता। जमीन पर चौरस वेदियाँ बनेंगी और उन्हीं पर हवन होगा। यज्ञशाला का सारा सामान हम अपनी जीप गाड़ियों में रखकर भेजेंगे, आपको कुछ नहीं करना पड़ेगा। गुड़ और घी मिलाकर के मुश्किल से एक रुपये लागत आएगी और उसी से यज्ञ पूरा हो जाएगा। इसमें गरीब आदमी भी एक रुपया खर्च कर सकता है। इसके लिए आप यह भी कर सकते हैं कि पाँच कुण्डीय, नौ कुण्डीय, ५१ कुण्डीय यज्ञ के स्थान पर एक कुण्डीय यज्ञ से काम चला सकते हैं। इसमें यह भी हो सकता है कि आप पाँच कन्याओं को पीले कपड़े पहनाकर भेज दीजिए। वे पाँच कन्याएँ आपके नुमाइन्दे के रूप में, पाँच देवियों के रूप में, गायत्री के पाँच मुख के रूप में बैठ जाएँगी और वही हवन कर लेंगी। यह छोटा-सा हवन है। इसमें आपको कोई सामान इकट्ठा नहीं करना है, केवल गुड़ की एक ढेली और थोड़ा-सा घी लाएँ जिससे बेर के बराबर गोलियाँ बन जाएँगी और उसी से हवन हो जाएगा। इसमें एक रुपए की लागत आएगी। इस तरीके से हम एक लाख स्थानों पर यज्ञ करेंगे और यह यज्ञ आपको कराने हैं।
इसके लिए आपको पाँच नई जगह बनानी हैं। आपको हम पाँच-पाँच गाँवों का सरपंच बना रहे हैं, पाँच-पाँच गाँव सुपुर्द कर रहे हैं। आप एक ही जगह नहीं रहेंगे, वरन् पाँच जगहों पर काम करेंगे। इस मिशन को पाँच स्थान पर पाँच जगहों पर फैलाने की कोशिश करेंगे। आपके समीपवर्ती जो गाँव हैं, नगर हैं, उनमें एक-एक मिशन की शाखा स्थापित कीजिए। शाखा स्थापित करने में हमारे दो काम तो पहले से ही चल रहे थे—एक यह कि एक माला गायत्री का जप सबको करना चाहिए। गायत्री चालीसा पाठ और एक माला का गायत्री जप—यह दोनों काम तो पहले से ही हमने आपके सुपुर्द कर दिए थे। अब इस नए वसन्त पंचमी से दो काम और सुपुर्द करते है। पहला यह कि आपको नए स्थानों पर पाँच यज्ञ करने हैं। हमको नए स्थानों की जरूरत है। इस बार हमने ५१ कुण्डीय या सौ कुण्डीय यज्ञों को कराने की स्पष्ट मनाही कर दी है और कहा है कि अभी मात्र एक कुण्ड का यज्ञ होगा। उसी से हमारा सन्तोष होगा, सौ कुण्डीय यज्ञों से नहीं। बड़े यज्ञों की आवश्यकता अभी नहीं, बाद में होगी। तब हम बता देंगे। इससे न उद्देश्य की पूर्ति होगी, न लक्ष्य पूरा होगा और न एक लाख की संख्या पूरी होगी। इसलिए जो भी आप लोग हमारी आवाज सुन रहे हैं, उन सबका काम व उद्देश्य है कि वे सभी अपने-अपने समीपवर्ती गाँवों में जाकर के यह देखें कि एक-एक कुण्ड का हवन कहाँ-कहाँ होना सम्भव है? यह बात नम्बर एक हो गई।
बात नम्बर दो यह है कि आपके पास एक प्रचार मण्डली होनी चाहिए। प्रचार मण्डली का अर्थ यह है कि अब हमने इसके लिए संगीत को माध्यम बनाया है। नारद जी के पास भी संगीत था, शंकर जी के पास भी संगीत था। सरस्वती जी के पास संगीत था, विष्णुजी के पास संगीत था। सबने संगीत के माध्यम से प्रचार किया था। हमको अब जो भी व्याख्यान करना है, संगीत के माध्यम से करेंगे, व्याख्यानों से नहीं। व्याख्यानों से वक्ता का प्राण काम नहीं करता, लेकिन जो संगीत हमारे बनाए हुए हैं, हमारे मिशन के बनाए हुए हैं और देव-कन्याओं ने गाए हैं, उन्हीं संगीतों से यह प्रभाव होगा कि लोगों को हिला करके रख देंगे और उनके हृदय के भीतरी हिस्सों को छुएँगे। यह संगीत यहीं से जाएगा और व्याख्यान भी हमारा यहीं से जाएगा। एक-एक यज्ञ में हम अपना वीडियो बनाकर भेजेंगे। वीडियो उसे कहते हैं जो आदमी की तरह आवाज भी सुनाता है और शक्ल भी दिखाता है। वह हमारी और माताजी की शक्ल भी दिखाएगा और आवाज भी सुनाएगा और देवकन्याओं का गीत भी सुनाएगा। कुँवारी कन्याओं की वाणी में ओजस्विता भी ज्यादा होती है और उसमें प्रभाव भी अच्छा होता है। उनका भी टेप भेजेंगे और अपना तथा माताजी का भी टेप भेजेंगे—जहाँ कहीं भी आप एक कुण्ड का हवन करेंगे। सामान्यतया हमने य आशा की है कि आप पाँच कुण्ड का हवन करेंगे। पाँच नए स्थानों पर। हर एक जिम्मेदार आदमी को जिसको हमने शक्तिपीठें कहा है, समर्थ शाखा कहा है, उपशाखा और स्वाध्याय मण्डल कहा है, उनमें से हर एक आदमी जो हमारा प्रज्ञापुत्र है, जो हमसे घनिष्ठ है, हम चाहते हैं कि वह सौ नए गाँवों में हमको बिठा दे। हजारों गाँव ऐसे हैं जो हमने देखे नहीं शहरों में हम गए हैं, बड़े कस्बों में गए हैं, गाँवों में तो गए ही नहीं। इस बार गाँवों में जाने का हमारा मन है।
यह प्रबन्ध आप कीजिए। अभी हम जो अपने आदमी आपके पास भेज रहे हैं, सिर्फ इस काम के लिए कि आप सब मिलकर के इस तरह संकल्प लें और सब मिल-जुलकर काम करें। एक लाख कुण्ड का, एक लाख वेदियों का हवन हमें करना है, जिसमें हमारा भी व्याख्यान होगा, माताजी का भी व्याख्यान होगा और हमारे गुरू का संरक्षण भी होगा और लागत क्या है—एक रुपया। इस तरह का व्यापक स्तर पर आयोजन करने का हमारा मन है। इसके लिए आप जी-जान से कोशिश करें।
यह वर्ष समयदान का वर्ष है। हमने आप लोगों से समयदान माँगा है। लोगों ने कहा था कि हम गुरुजी की हीरक जयन्ती मनाएँगे तो आप क्या करेंगे हीरक जयन्ती में? हवन करेंगे, जुलूस निकालेंगे? नहीं जो हम कहें सो कीजिए और हमारा कहना यह है कि एक गाँव पीछे एक यज्ञ हो एक कुण्ड का या पाँच कुण्ड का हो और उसमें पाँच कन्याएँ बैठें और उसी में हमारा वीडियो दिखाया जाए। इस तरह एक काम तो हमारा यही है—एक लाख यज्ञों को पूरा करना। हमारा यह संकल्प अधूरा नहीं रह जाए। बाकी संकल्प तो हमारे अधूरे रहे नहीं है। चारों वेदों के भाष्य का संकल्प अधूरा नहीं रहा, हजार कुण्डीय यज्ञ का अधूरा नहीं रहा—तब नहीं रहा जब हम वहाँ थे, पर इस समय हम नहीं हैं। इस समय हमारी जगह पर हैं आप, तब पाँचों यज्ञों की जिम्मेदारी भी आप सँभालिए और उन यज्ञों को अपने समीपवर्ती गाँवों में कीजिए। वहाँ शाखा स्थापित कीजिए ताकि हमारी शाखाएँ जितनी भी हों—पाँच गुणी अधिक बढ़ जाएँ। अभी २४०० शाखाएँ हैं। उसमें पाँच का गुणा कर दीजिए तो एक लाख से अधिक हो जाएँगी। कम से कम एक लाख स्थानों पर इस तरह गायत्री परिवार का प्रचार करने के लिए शाखाएँ स्थापित करने की हमारी इच्छा है और इसलिए आप हमारे काम में मदद कीजिए।
नम्बर दो—इसके लिए प्रचारक मण्डलियों की आवश्यकता पड़ेगी, ताकि आप प्रत्येक घर में जा करके हमारा सन्देश सुना सकें। इसके लिए आपको अपना तथा प्रत्येक प्रज्ञापुत्र का, परिवार के हर सदस्य का जन्मदिन मनाना पड़ेगा। जन्मदिन मनाने के केवल एक कुण्डीय हवन कर लेने भर से काम नहीं चलेगा, वरन् कुछ धूम-धड़ाका भी होना चाहिए। इसके लिए संगीत प्रचारकों की जरूरत पड़ेगी। संगीत प्रचारकों के लिए आपको यह करना है कि यहाँ शान्तिकुञ्ज में जो युगशिल्पी सत्र चलते हैं, उनमें एक आदमी आप भेज दीजिए, वे यहाँ से प्रशिक्षण लेकर जाने के बाद में वहाँ के लोगों को प्रवचन करना, हवन करना सिखा देगा, संगीत सिखा देगा। पहले भी युगशिल्पी सत्र में आ चुके हैं लोग, पर तब संगीत पर इतना जोर नहीं दिया गया था। अब नए शिक्षण में हमारा ध्यान संगीत पर है। मध्यकालीन जितने भी सन्त हुए हैं, उन्होंने संगीत के माध्यम से अपना प्रचार किया था। मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु आदि ने संगीत के प्रचार से अपना काम किया था। मध्यकालीन सभी सन्तों ने वाणी के व्याख्यान द्वारा नहीं, बल्कि संगीत के द्वारा प्रचार किया था तो आपके यहाँ से भी एक मण्डली ऐसी होनी चाहिए जो यहाँ से संगीत सीखकर के जाए। इसका नाम हमने वक्ता विश्वविद्यालय रखा है। संगीत और यज्ञ कराना हम सिखा देंगे। इसके लिए आप लोग अपने-अपने यहाँ से एक-एक आदमी ऐसा भेजिए जो जीवन्त हो, जिसमें जान हो, जिसको हम आपके क्षेत्र का अध्यापक बनाकर भेज सकें। मण्डली आपको तैयार करनी है, प्रचार आपको करना है, मिशन के विचार आपको फैलाने हैं। इसके लिए गाँव में जन्मदिन के समय तथा त्यौहारों के अवसर पर मीटिंग बुला लीजिए, काम के लोगों को बुला लीजिए। अबकी बार जो भी यज्ञ होंगे, उसमें हमने यह इन्तजाम किया है कि ढाई सौ से ज्यादा आदमी न आएँ, क्योंकि हम जो वीडियो भेजेंगे उसमें दो सौ-ढाई सौ आदमी ही आ सकेंगे।
एक बात और जो करनी है, वह यह है कि अब हमारा विश्वविद्यालय चलने वाला है। इसमें हम एक लाख व्यक्तियों को पढ़ाने वाले हैं। लेकिन हमारे इस मिशन के लिए हर एक आदमी को शान्तिकुञ्ज आना तो मुश्किल है। अतः वह एक नया प्रशिक्षण अध्यापक जो यहाँ से जाएगा वही अपने स्थानीय लोगों को बुलाकर के वहीं शिक्षण देगा जो हम यहाँ युगशिल्पी सत्र में बुलाकर देते हैं। इस तरीके से देश भर में जितनी शाखाएँ हैं यदि उनमें से दस-दस आदमी भी आ जाएँ तो एक लाख आदमी हो जाते हैं। इस तरह के अब तक जितने भी विश्वविद्यालय चले हैं, उनमें से किसी में भी एक लाख विद्यार्थी नहीं थे। न किसी आन्दोलन में एक लाख व्यक्ति शामिल थे। घुमा-फिरा कर वही चले जाते थे, इसलिए उनके नाम और संख्याएँ बढ़ जाती थीं, लेकिन लाख व्यक्ति कभी नहीं रहे। हमारा विचार है कि एक लाख व्यक्तियों को हम पढ़ाकर जाएँ जिससे वे यों कहें कि गुरुजी ने हमको पढ़ाया था। गुरुजी के हाथ का सर्टीफिकेट देंगे कि तुमको अध्यापक नियुक्त किया है। इस तरह से एक लाख अध्यापक नियुक्त करने का हमारा संकल्प है। आप लोग इन दो कामों में हमारी मदद करेंगे। अब शान्तिकुञ्ज से हम अपने आदमी इसलिए भेज रहे हैं कि जो भी जीवन्त आदमी हैं, प्राणवान आदमी हैं, वे इस बात का संकल्प लें कि हीरक जयन्ती वर्ष में इस कार्य को हम करेंगे ही। जो भी काम आम करें, उसका पानी लेकर संकल्प दीजिए, वह संकल्प हमारे पास आ जाएगा और तब समाधान होगा।
दो-तीन काम और है जो आपको करने हैं। हरीतिमा संवर्द्धन के लिए जो आपको करने हैं। हरीतिमा संवर्द्धन के लिए कुछ पेड़ भी लगाए जाने चाहिए। जड़ी-बूटी औषधालय हमारे यहाँ है, हम चाहते हैं कि वह भी आपके यहाँ हो जाए। अभी जो हवन-सामग्री बाहर से मँगाते हैं, उसके पेड़-पौधे आप अपने खेतों में खुद पैदा कर लें और उसी को कूट-पीसकर प्रयुक्त कर लिया करें।
इस तरह के कई काम हैं, जो आप कर सकते हैं। आपके पास कमरे हों तो छोटे बच्चों के स्कूल चला सकते हैं। जगह न हो तो आप किराए पर ले लीजिए। किसी से एक कमरा माँग लीजिए और कह दीजिए कि जितने समय तक हमारे काम आएगा, उतने समय तक मिशन का है, शेष सारे समय आपका, चाहे जैसा उपयोग कीजिए या फिर कोई धर्मशाला में एक कमरा ले लीजिए। कोई मन्दिर टूटा-फूटा हो उसकी मरम्मत करा लीजिए, तो उसका जीर्णोद्धार भी हो जाएगा। अब तक २४०० शक्तिपीठें बनाई हैं, जिनमें से किसी-किसी में लाखों रुपए लगे हैं। वे हैं तो सही, पर उन्हें अपने स्थान पर रहने दीजिए। अब कुछ ऐसी नयी शक्तिपीठें भी हो सकती हैं, जो छप्पर की छाई हुई हों, जिन्हें हर साल नए सिरे से बदल दिया जाए। कुछ ऐसी भी शक्तिपीठें हो सकती हैं, जो खपरैल से छाई गई हों जिन्हें बरसात में ठीक कर लें और उसी से काम चला लिया करें। जब जरूरत हो तो उसी में बच्चों के संस्कार कर लें, जन्म-दिन मना लें, उसी में अपनी पाठशाला चला लें या कहीं किसी का एक कमरा माँग लें, इसके लिए हम आपको यकीन दिलाते हैं कि अच्छे उद्देश्यों के लिए वह आपको मिल जाएगा।
इन सब कार्यों के लिए हम अपने कार्यकर्ता भेज रहे हैं कि आप सब वहाँ इकट्ठा होकर यह विचार करें कि गुरुजी ने नए वर्ष के लिए संकल्प लिए हैं, उस संकल्प के कई उद्देश्य हैं। उसमें से एक तो यह है कि इन दिनों का जो वातावरण है, उसमें प्रलय होने जैसी दुर्घटनाएँ होना सम्भव है। दूसरा यह है कि इन बीस सालों में आप लोग किसी मुसीबत में फँस सकते हैं। आपको तो दिखाई नहीं पड़ता, परन्तु मुझे दिखाई पड़ता है कि आप किसी मुकदमे में पड़ सकते हैं या कोई और बात हो सकती है। कोई अकाल की चपेट में आ सकते है या कोई कठिनाई उठा सकते हैं, जिन्हें देखना हमारा काम है और इसीलिए हम यह आयोजन कर रहे हैं। यह आयोजन हम इसीलिए भी कर रहे हैं कि सारे संसार में जो दुर्घटनाएँ घट रही हैं—चाहे वह ईरान-ईराक का युद्ध हो, फिलिस्तीन और इस्राइल का युद्ध हो या अमेरिका की नक्षत्र युद्ध-योजना हो या परमाणु युद्ध विभीषिका। हमने पचास फीसदी अपनी शक्ति ऐसे कामों के लिए तुले हुए बैठे हैं, आमादा बैठे हैं जिन्होंने अरबों-खरबों डालर खर्च करके वह साधन बनाए हैं, उनकी भी हम रोकथाम करेंगे। अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए, संसार में शान्ति स्थापित करने के लिए और आप लोगों की व्यक्तिगत समस्याओं के लिए इन तीनों उद्देश्य के लिए यह कार्यक्रम हमने बनाए हैं। हम आशा करते हैं कि आप सब मिलकर संकल्प लेंगे कि यह काम गुरुजी का तो हम कर ही डालेंगे।
मित्रो ! हम चाहते हैं कि जो वजनदार काम हमारे गुरुजी ने हमारे जिम्मे सौंपा है, उस वजनदार काम को पूरा करने में हम समर्थ हो सकें। समर्थ बनने के लिए ‘बैकिंग शक्ति’ भी होनी चाहिए और वह ‘बैकिंग शक्ति’ आप होंगे। हमारी पीठ पीछे वाली शक्ति आप होंगे। इसलिए इस वर्ष के सौंप हुए जो काम हैं, उनको आप किस सीमा तक पूरा कर सकेंगे और किस सीमा तक पूरा नहीं कर सकेंगे, यह ध्यान रखना है। हमने हर वर्ष वसन्त पंचमी पर संकल्प लिए हैं। अबकी बार यह आपसे संकल्प करने के लिए कहते हैं कि आप क्या करेंगे? अब जो यज्ञ होंगे, उनमें आप लोगों को एकत्रित होकर के सामूहिक रूप से संकल्प लेने की उम्मीद और अपेक्षा कर रहे हैं। बस, यही कहना था आप लोगों से।
आज की बात समाप्त।
ॐ शान्ति।