उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
पावन प्रीति लुटाते चलें, प्रेम की धारा बहाते चलें।
सुरभित हो जिससे जगती, ऐसे सुमन सजाते चलें॥
मुस्कायें बन भुवन-भास्कर, ज्योति भरे जन-जन में।
मिट जाये सारा अँधियारा, विमल विभा हो मन में॥
जीवन धन्य बनाते चलें, सृजन प्रभाती सुनाते चलें॥
पावन प्रीति लुटाते चलें, प्रेम की धारा बहाते चलें॥
विमल चन्द्र की शुचि आभा ले, रजनी से टकराएँ।
तेरी दिव्य-ज्योति से ज्योतित, कण-कण को कर जाएँ॥
शीतलता बरसाते चलें, सबकी क्लान्ति मिटाते चलें॥
पावन प्रीति लुटाते चलें, प्रेम की धारा बहाते चलें॥
प्यासे अंतर में प्रभु तेरी, प्रेम-सुधा यदि सरसे।
स्नेह सिक्त घन बन जन-हित में, बन फिर सावन बरसे॥
रस की धार बहाते चलें, सेवा पुष्प चढ़ाते चलें॥
पावन प्रीति लुटाते चलें, प्रेम की धारा बहाते चलें॥
सतत साधना हो यह जीवन, हर क्षण तुझको अर्पण।
लुटा सकें सर्वस्व स्वयं का, कर हम मूक समर्पण॥
सबका दर्द बँटाते चलें, जीवन-ज्योति जलाते चलें॥
पावन प्रीति लुटाते चलें, प्रेम की धारा बहाते चलें।
सुरभित हो जिससे जगती, ऐसे सुमन सजाते चलें॥
पावन प्रीति लुटाते चलें, प्रेम की धारा बहाते चलें।
सुरभित हो जिससे जगती, ऐसे सुमन सजाते चलें॥