उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
युग-युग तक जग याद करे, तुम ऐसे कर्म करो।
कर्म में ऐसे मर्म भरो॥
जहाँ कहीं हों ताप वहाँ पर, सावन बन बरसो।
मरुथल मधुवन बने जहाँ पर, दिन दो चार बसो॥
जिससे मिल लो एक बार तुम कभी नहीं बिसरो।
कर्म में ऐसे मर्म भरो॥
युग-युग तक जग याद करे, तुम ऐसे कर्म करो।
कर्म में ऐसे मर्म भरो॥
पथिकों के गति भ्रमितों के तुम, बनकर दीप रहो।
सगर सुतों हित बनकर पावन, सुरसरि धार बहो॥
जग उपवन में मलयज की, शीतलता ले विचरो।
कर्म में ऐसे मर्म भरो॥
युग-युग तक जग याद करे, तुम ऐसे कर्म करो।
कर्म में ऐसे मर्म भरो॥
मानव हो तुम मानवता के, शुचि शृंगार बनो।
श्वाँसों के सागर में मन के, कर्णाधार बनो॥
तपः पूत शापों में तुम नव कंचन बन निखरो।
कर्म में ऐसे मर्म भरो॥
युग-युग तक जग याद करे, तुम ऐसे कर्म करो।
कर्म में ऐसे मर्म भरो॥
युग-युग तक जग याद करे, तुम ऐसे कर्म करो।
कर्म में ऐसे मर्म भरो॥