उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मैं चाहती अगणित स्वरों में, विश्व को यह दूँ बता।
इन्सान मेरा देवता, इन्सान मेरा देवता॥
रवि के प्रबल तम ताप ने, श्रम को पसीना कर दिया।
हर किरण ने हर बूँद ने, जीवन धरा पर भर दिया॥
वह मूर्ति पौरुष की बने, चिर अर्चिता॥
इन्सान मेरा देवता, इन्सान मेरा देवता॥
घनघोर तप की धार से, कुविचार का लोहा कटा।
सद्भाव की शुभ ज्योति से, युग का भयानक तम कटा॥
इस साधना से भाग्य युग का बदलता॥
इन्सान मेरा देवता, इन्सान मेरा देवता॥
पुरुषार्थ अब जुड़ने लगा, शुभ कर्म से प्रकार्य से।
भगवान अब क्यों दूर होगा, लोक और समाज से॥
देवत्व का ही नाम होगा, मनुजता॥
इन्सान मेरा देवता, इन्सान मेरा देवता॥