उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
अब्राहम लिंकन ने पार्लियामेण्ट की मेज पर एक बौनी-सी महिला को खड़ा कर परिचय देते हुआ कहा—‘‘यह महिला वह है, जिसने मेरे संकल्प को पूरा करके दिखा दिया।’’ अब्राह लिंकन ने अपनी आत्मा व अपने भगवान् के सामने कसम खाई थी कि हम अमेरिका पर से एक कलंक हटाकर रहेंगे। कौन-सा कलंक? कलंक यह कि अमेरिका के दक्षिणी भाग में नीग्रो-लोगों को गुलाम बनाकर उनसे जानवर के तरीके से काम लिया जाता था। कानून मात्र गोरों की हिमायत करता था। ऐसी स्थिति में एक महिला लिंकन की कसम को पूरा करने उठ खड़ी हुई। उसका नाम था हैरियट स्टो। लिंकन ने पार्लियामेंट के मेम्बरों से कहा—‘‘यही वह महिला है जिसकी लिखी किताब ने अमेरिका में तहलका मचा दिया। लाखों आदमी फूट-फूट कर रोए हैं। लोगों ने कह दिया जो लोग ऐसे कानून का चलाते हैं, इस तरह जुल्म करते हैं, हम उनसे लड़ेंगे।’’
आप क्या समझते हैं नीग्रो व नीग्रो की लड़ाई की बात लिंकन कह रहे थे? नहीं। नीग्रोज के पास न हथियार थे, न ताकत। उनके पास तो आँसू ही आँसू थे। वे तो रो भर सकते थे। लड़ाई गोरों व गोरों में हुई। उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका में गृहयुद्ध हो गया। इतना खौफनाक युद्ध हुआ कि व्यापक संहार हुआ पर इसका परिणाम यह हुआ कि कालों को उनके अधिकार मिल गए। इतना बड़ा काम, इतना बड़ा विस्फोट करा देने वाली महिला थी—हैरियट स्टो जिसने किताब लिखी थी—‘अंकल टाम्स कैबिन’ ‘टाम काका की कुटिया’।
एक छोटी-सी महिला के अन्तःकरण की पुकार से लिखी गई इस किताब ने जन-जन के मर्म को, अन्तःकरण को छुआ और अमेरिका ही नहीं, सारे विश्व में तहलका मचा दिया। हर आदमी ने इसे पढ़ा और कहा कि जहाँ ऐसे जुल्म होते हैं, इनसान, इनसान पर अत्याचार करता है, हम उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे और उसे उखाड़ फेकेंगे। लिंकन ने कसम तो खाई थी पर वे अकेले कुछ कर नहीं सकते थे, क्योंकि उनके पास गोरों का शासन तन्त्र था। कालों का कोई हिमायती नहीं था। उनका हुकुम किस पर चलता? पर उस महिला की लिखी उस किताब ने हर नागरिक के दिल में ऐसी आग पैदा कर दी, ऐसी टीस पैदा कर दी कि आदमी कानून को अपने हाथ में लेकर दूसरे आदमियों को ठीक करने पर आमादा हो गया। गृहयुद्ध तब समाप्त हुआ, जब वह कानून खत्म हो गया और सबको समान अधिकार दिला दिए गए।
क्या किताब ने यह क्रान्ति की? अरे किताब नहीं, दर्शन। किताब की बात नहीं कहता मैं आपसे। मैं कहता हूँ दर्शन। दर्शन अलग चीज है। विचार बेहूदगी का नाम है जो अखबारों में, नॉवेलों में, किताबों में छपता रहता है। विचार हमेशा आदमी के दिमाग पर छाया रहता है। कभी खाने-कमाने का, कभी खेती-बाड़ी का, कभी बदला लेने का यही विचार मन पर छाया रहता है और दर्शन, वह आदमी के अन्तरंग से ताल्लुक रखता है। जो सारे समाज को एक दिशा में कहीं घसीट ले जाने का काम करता है, उसको दर्शन कहते हैं। आदमी की जिन्दगी में, उसकी संस्कृति में सबसे मूल्यवान चीज का नाम है—दर्शन।
हिन्दुस्तान की तारीख में जो विशेषता है आदमी के भीतर का भगवान् क्या जिन्दा है, यह किसने पैदा किया? दर्शन ने। इतने ऋषि, इतने महामानव, इतने अवतार किसने पैदा कर दिए? यह है दर्शन जो आदमी को हिला देता है, ढाल देता है, गला देता है, बदल देता है। हमारी दौलत नहीं, दर्शन शानदार रहा है। हमारी आबो-हवा नहीं, शिक्षा नहीं, दर्शन बड़ा शानदार रहा है। इसी ने आदमियों को ऐसा शानदार बना दिया कि यह मुल्क देवताओं का देश कहलाया जाने लगा। दूसरी उपमा स्वर्ग से दी जाने लगी। स्वर्ग कहाँ रहेगा? जहाँ देवता रहेंगे। देवता ही स्वर्ग पैदा करते हैं। इमर्सन ने बहुत सारी किताबें लिखी हैं और प्रत्येक किताब के पहले पन्ने पर लिखा है ‘‘मुझे नरक में भेज दो मैं वहीं स्वर्ग बनाकर दिखा दूँगा।’’ यह है दर्शन। आज की स्थिति हम क्या कहें मित्रो! हम सबके दिमाग पर एक घिनौना तरीका, छोटा वाला तरीका, नामाकूल तरीका हावी हो गया है। हमारे सोचने का तरीका इतना वाहियात कि सारी जिन्दगी को हमने, हीरे-मोती जैसी जिन्दगी को हमने खत्म कर डाला। आदमी की ताकत, विचारों की ताकत को हमने तहस-नहस कर दिया। हमें कोढ़ी बना दिया। कसूर किसका है? सिर्फ एक ही कमी है, वह है आदमी का दर्शन। वह कमजोर हो गया है।
आज आदमी की सभ्यता सिर्फ एक है। उसका नाम है दर्शन की भ्रष्टता। उसके पास चीजों की कमी नहीं है। आदमी के पास जरूरत से ज्यादा चीजें हैं, पर मुझे ये लगता है कि आदमी इनको खा भी सकेगा कि नहीं, हजम भी कर सकेगा कि नहीं। आदमी का दर्शन घिनौना हो जाने की वजह से इतनी ज्यादा चीजें होते हुए भी मालूम पड़ता है कि बहुत कम है। गरीबी उसके ऊपर हावी हो गई है। परिस्थितियाँ, दरिद्रता, मुसीबतें उसके दर्शन के कारण उस पर हावी हो गई हैं। दर्शन सारे व्यक्तियों का, सारे समाज का, सारे विश्व का भ्रष्ट होता चला गया है और आदमी दुष्ट होता चला गया है। दुष्टों को पकड़ना, रोकना व मारकर ठीक करना चाहिए। मच्छरों को मारना चाहिए पर एक-एक मच्छर को मारने के पहले उस गन्दगी से निपटना चाहिए जो मच्छर पैदा करती है। हम मच्छर-मक्खी पर नहीं सकते। हम समस्याओं को कैसे मार पाएँगे? समस्याएँ आदमी के सड़े हुए दिमाग में से पैदा होती हैं, सड़े हुए दिल से पैदा होती हैं। पैसे वाले बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाते हैं कि हम गृह-उद्योग बढ़ाएँगे, नहरें खोदेंगे, बाँध बनाएँगे, ये सब ठीक है। आदमी को साक्षर बनाएँगे, हर आदमी को मालदार बनाएँगे। कोई कहता है कि आदमी को पहलवान बनाएँगे, पर इतना सब करने के बाद फिर होगा क्या? जरा विश्लेषण, पोस्टमार्टम करके देखिए कि इस सबके बावजूद विचारों की, दर्शन की भ्रष्टता यदि बनी रही तो वह करता क्या है? वह खुद जलता है, दूसरों को जलाता है। दियासलाई अपने आपको जला के खत्म कर देती है, दूसरों को जला देती है। आज हमारी आपकी जिन्दगियाँ दियासलाई के तरीके से जल रहीं हैं और अनेक को जला रही हैं।
आपने ब्याह कर लिया। बीबी आ गई। हाँ तो ठीक है, अब आप क्या करेंगे उसको जला दीजिए। नहीं साहब बीबी तो बहुत अच्छी मालूम पड़ती है। इसलिए तो कहते हैं कि फुलझड़ी बहुत अच्छी मालूम पड़ती तो आप दियासलाई लेकर के खत्म क्यों नहीं करते? हर चीज को आदमी आज जला रहा है। जिन्दगी को जला रहा है, समाज को जला रहा है। देश को जला रहा है, बच्चों को जला रहा है। भाइयो! आज सारा समाज जिस तरीके से भ्रष्ट-चिन्तन व दुष्ट आचरण करता चला जा रहा है इस सबका मूल कहीं खोजना हो तो एक ही जगह है, वह है आदमी के सोचने व ऊँचा उठाने वाली शैली, तरीका, विद्या जिसे ‘दर्शन’ कहते हैं। सुकरात ने अपने समय में अपने समाज को एक ही दिशा देना शुरू किया, जिसका ताम था ‘दर्शन’। विचार नहीं। विचार तो अखबारों में, गन्दी किताबों में रोज छपते रहते हैं। कितना भ्रामक अज्ञान फैलाने वाले अख़बार रोज निकलते रहते हैं। इनकी बाबत मैं आपसे नहीं कहता। मैं आपसे कहता हूँ—‘दर्शन’ की बाबत। सुकरात का दर्शन जिन दिनों पैदा होने लगा और विद्यार्थियों को पढ़ाया जाने लगा तो हुकूमत काँप उठी। हुकुम दिया गया कि यह आदमी बागी है। इस आदमी को जहर पिला देना चाहिए। डाकू-चोर एक या दो पूरे समाज को हिलाकर रख देता है। दार्शनिक दुनिया को उलट-पलट देता है। ईसा सन्त थे, नहीं दार्शनिक थे। सन्त तो समाज में ढेर सारे हैं, जो एक पाँव पर खड़े रहते हैं, पानी नहीं पीते, दूध नहीं पीते। बाबाजी की बात नहीं कह रहा मैं। ईसा कौन थे? दार्शनिक थे। उन्होंने अपने समय को बदलने वाला दर्शन दिया था। दर्शन वह, जो आदमी के अन्तरंग को छूने वाला दर्शन जब कभी आता है तो गजब करके रख देता है। लेखक भी, कवि भी ढेर सारे हैं, मालदार आदमी बहुत हुए हैं परन्तु दार्शनिक जब भी कभी हुए हैं तो मजा आ गया है। गजब हो गया हैं, समाज को हिला दिया गया है।
कुछ हवाले दूँ आपको। रूसो नाम का एक दार्शनिक हुआ है, जिसने सबसे पहले एक विचार दिया, अन्तरंग को छूने वाला, आदमी के मस्तिष्क को छूने वाला, समाज की व्यवस्था पर असर डालने वाला। दर्शन दिया रूसो ने जिसे डेमोक्रेसी नाम दिया गया। डेमोक्रेसी के बारे में मजाक उड़ाया गया था। जिन दिनों यह दर्शन प्रस्तुत किया गया, कहा गया कि यह पागलों की बातें हैं। लेकिन पागलों की बात आप देखते हैं? सारी दुनिया में घुमा-फिरा के डेमोक्रेसी आ गई है। यह विचार एक दार्शनिक ने दिया था और उसने सारी दुनिया को हिलाकर रख दिया और हवाले दूँ आपको। एक नाम है नीत्से। उसका वह हिस्सा तो नहीं बताऊँगा जिसमें उसने यह कहा था कि खुदा खत्म हो गया, खुदा को हमने जमीन में गाड़ दिया पर यह वह आदमी था जिसने कहा था कि आदमी को सुपरमैन बनना चाहिए। आदमी को गई-गुजरी स्थिति में नहीं रहना चाहिए। अपने आपका विकसित करना चाहिए और दूसरों को ऊँचा उठाने की अपनी सामर्थ्य एकत्रित करनी चाहिए। यह किसकी फिलॉसफी है? नीत्से की। आपको मैं इतिहास इसीलिए बता रहा हूँ कि आप समझें कि दर्शन कितनी जबर्दस्त चीज है? दर्शन उस चीज का नाम है जो कौमों को बदलकर रख देता है, बिरादरियों को, मुल्कों को, परिस्थितियों को बदल देता है। दर्शन बड़े शानदार होते हैं। वे भले हों अथवा बुरे हों, कितनी ताकत होती है उनमें, यह आपको जानना चाहिए। मैं आपको अपने जीवन की एक घटना सुना दूँ दर्शन की बाबत।
जब मैं शिलांग, डिब्रूगढ़ की तरफ अपने मिशन के लिए दौरा कर रहा था तो मेरी इच्छा हुई कि नागालैण्ड जाऊँ। नागा कैसे होते हैं? जरा देखकर आऊँ। हमारे कार्यकर्ता साथ चले, बोले हम दुभाषिए का काम करेंगे। उनकी जीप में बैठकर मैं नागालैण्ड चला गया। उन लोगों के बीच जो रेलगाड़ी पलट देते थे, तीर-कमानों से जिन्होंने सेना की नाक में दम कर रखा था। नागाओं के एक गाँव में जाकर एक चबूतरे पर मेरे मित्रों ने बिठा दिया व नागाओं से उनकी भाषा में कहा, ये हमारे गुरुजी हैं, महात्मा हैं, आशीर्वाद देते हैं। किसी का कोई दुःख हो तो इनसे कह लीजिए। ये नहीं कहा कि ये विद्वान हैं, कोई मिशन चलाते हैं। बस यही कहा कि कोई मनोकामना हो तो इनसे कहिए। कोई पचास-सौ नागा वहाँ बैठे थे। एक ने दूसरे से कहा, दूसरे ने तीसरे से कहा। सब ने आपस में पूछताछ कर ली व कहा कि हमारा तो कोई दुःख नहीं है, रोटी मिल जाती है। सोने के लिए फूस के मकान हैं, पहनने के लिए लोमड़ी के खाल है, मौज करते हैं। हमें दुःख काहे का। एक-दूसरे की ओर देखा तो बुड्ढा नागा उठा व दुभाषिए से बोला कि इन स्वामी जी से पूछिए कि इनको कोई दुःख तो नहीं है। हमसे बोले, ‘‘हमें तो कोई परेशानी नहीं किन्तु आप भूखे हों तो हमारे यहाँ चावल हैं, भूखे नहीं जाएँ हमारे दरवाजे से। पहनने के कपड़े न हों तो खालें ले जाएँ। हमारा अपना कोई कष्ट नहीं। हम तो प्रसन्न हैं। स्वामीजी को कोई दुःख हो तो हम दूर कर देंं।’’ मैं समझ गया आदमी का दर्शन यह है। नागाओं ने नागालैण्ड बना लिया। क्या वजह हो सकती है? यह उस बिरादरी का दर्शन है। जो कुछ हमारे पास है, उससे खुशी की जिन्दगी जिएँगे। उसे देखकर के खाएँगे। मस्ती का जीवन जिएँगे। यह दर्शन है। कौमें, बिरादरियाँ, समय और जातियाँ हमेशा दर्शन के आधार पर उठी हैं। यह दर्शन पैदा करना मनीषा का काम है। दर्शन को बनाने वाली माँ का नाम है ‘मनीषा’। मनीषा कैसी होती है? मनीषा ऐसी होती है जैसी कि बुद्ध के भीतर से पैदा हुई थी।
बुद्ध ने जमाने को देखा था। बड़ा वाहियात जमाना, बड़ा फूहड़ जमाना। माँस, मदिरा, मद्य, मुद्रा, मैथुन—ये पाँच चीजें ही उस समय जीवन का आधार बनी हुई थीं। यही उस समय का धर्म था। जो आज के समय का वाममार्ग है, वही उस समय का दर्शन ऐसी परिस्थितियों में एक बुद्ध नाम का आदमी उठ खड़ा हुआ। बुद्ध किसे कहते हैं? बुद्ध विचारशीलता का, भावनाशीलता का प्रतीक है। लोगों को दिशा देने वाले को बुद्ध कहते हैं। कथावाचक, धर्मोपदेशक उस जमाने में भी थे लेकिन मनीषी के रूप में अकेले बुद्ध सामने आए। उन्होंने लोगों से कहा, ‘‘बुद्धं शरणं गच्छामि’’—बुद्धि की, विवेक की, समझदारी की पकड़ में आ जाओ। क्यों और कैसे के सवाल पूछो। उन्होंने लोगों के समक्ष कसौटी रखी कि यदि आज के विचार, रीति-रिवाज, क्रिया-कलाप, गतिविधियाँ सही साबित हों तो स्वीकार कीजिए, नहीं तो मना कीजिए। लोगों ने इनकार करना शुरू कर दिया—यह नहीं हो सकता। हमारे बाप-दादा किया करते थे तो हम क्या करें? इनकारी का नशा इस कदर चढ़ता चला गया कि सारी बातें वाहियात ठहराई जाने लगीं। यज्ञों के नाम पर जानवर काटे जाते थे, अश्वमेध के नाम पर घोड़े को मारकर हवन होता था। जो भी अनर्थ होता था वह इनकार किया जाने लगा। बुद्ध ने कहा कि यदि भगवान् कहते हैं कि ऐसा गलत काम करना चाहिए तो ऐसे भगवान् को भी नहीं मानना चाहिए। उन्होंने वेदों को मानने से इनकार कर दिया, जिनका अनर्थ निकाला जाने लगा था और कहा—बुद्धं शरणं गच्छामि। बुद्ध को क्या कहेंगे? दार्शनिक-मनीषी। बाबाजी नहीं, मनीषी।
मनीषी इनसान की समस्याओं का समाधान देते हैं, व्यक्ति तैयार करते हैं, समाज बनाते हैं। सुकरात को तैयार करने वाले का नाम अरस्तू है और शिवाजी को तैयार करने वाले का नाम समर्थ गुरु रामदास है। चन्द्रगुप्त को तैयार करने वाले का नाम चाणक्य है और विवेकानन्द को तैयार करने वाले हैं रामकृष्ण परमहंस। ये कौन हैं? अरे भाई, ये मनीषी हैं। मनीषी विचार नहीं, दर्शन देते हैं, दर्शन जीकर दिखाते हैं और अनेक का जीवन बना देते हैं। आप कहेंगे दर्शन तो बद्रीनाथ का, जगन्नाथ का, सोमनाथ का किया जाता है। किराया खर्च करके जो दर्शन आप करते हैं, वह दर्शन नहीं है। दर्शन वह है, जो जमीला ने किया। जमीला ने सारी जिन्दगी भर पैसे जमा किए थे और कहती थी मैं काबा जाऊँगी और दर्शन करूँगी। जाने के वक्त पड़ गया अकाल। पानी न पड़ने से, अनाज न होने से लोग भूखों मरने लगे। जमीला ने कहा मैं काबा हज करने जाने वाली थी। अब हज नहीं जाऊँगी। बच्चे भूख मर रहे हैं। इनके खाने का, दूध का, पानी का इन्तजाम किया जाए ताकि वे जिन्दा रखे जा सकें और उसने काबा जाने से इनकार कर दिया। मेरे पास कुछ है ही नहीं मैं कैसे जाऊँगी? इसे कहते हैं दर्शन, फिलॉसफी। देखने के अर्थ में नहीं फिलॉसफी के अर्थ में। बाद में खुदाबन्द करीम के यहाँ मीटिंग हुई तो यह तय किया गया कि हज किसका कबूल किया जाए। सारे फरिश्तों की मीटिंग में तय हुआ कि सिर्फ एक आदमी ने इस साल हज खुलकर किया। खुदाबन्द ने उसका नाम बताया—जमीला। फरिश्तों ने अपने रजिस्टर दिखाए व कहा कि वह तो गई ही नहीं। खुदाबन्द ने समझाया— देखने के लिए न गई तो न सही, लेकिन उसने काबा के ईमान को, प्रेरणा को समझा और हज करके जो अन्तरंग में बिठाया जाना चाहिए था, वह यहीं बैठकर लिया। शेष सब झक मारते रहे। इसलिए सबका नामंजूर। जमीला का कबूल।
मित्रो! मैं कह रहा था दर्शन की बात। दर्शन जिसको जन्म देती है, वह है—मनीषा। मनीषा को हम ऋतम्भरा—प्रज्ञा कह सकते हैं। दूसरे शब्दों में हम इसे गायत्री कह सकते हैं। श्रेष्ठ चिन्तन करने वाले के समूह का नाम है मनीषा। इस मनीषा का हम आह्वान करते हैं, उसकी पूजा करते हैं। मनीषा माँ है। माँ क्या करती है? माँ बच्चे के लिए समय-समय पर जरूरत की चीजें बनाकर खिलाती है, उसे छाती का दूध पिलाती है? हजम कर सके, ऐसी खुराक बनाकर देती है माँ। मनीषा वह है जो युग की आवश्यकताओं, समय की आवश्यकताओं, इनसान की आवश्यकताओं की तलाशती रहती है, समझती है व वैसी ही खुराक दर्शन की देती है, जिसकी जरूरत है। युग की मनीषा ध्यान रखती है कि आज के समय की जरूरत क्या है? पुराने समय का वह ढोल नहीं बजाती। वह युग को समझती है, देश को समझती है और परिस्थितियों के अनुरूप युग को ढालने की कोशिश करती है, आस्थाओं से रहित हैवानी के गुलाम इनसान को आदमी बनाती है, उसे ऊँचा उठना सिखाती है व उसके घरों में स्वर्गीय परिस्थितियाँ पैदा करती हैं। ऐसी ही मनीषा का मैं आह्वान करता हूँ व कहता हूँ कि आप में से जो भी यह सेव कर सकें, वह स्वयं को धन्य बना लेगा, अपना जीवन सार्थक कर लेगा। आज बुद्धिवाद ही चारों ओर छाया है। ‘नो गॉड, नो सोल’ की बात कहता जमाना दीखता है। ये किसकी बात है? नास्तिकों की, वैज्ञानिकों की, बुद्धिवादों की। इन्होंने फिजाँ बिगाड़ी है? नहीं इनसे ज्यादा उन धार्मिकों ने, पण्डितों ने, बाबाजियों ने बिगाड़ी है जो उपदेश तो धर्म का देते हैं पर जीवनक्रम में उनके कहीं धर्म का राई-रत्ती भी नहीं है। पुजारी की खुराफात देवी को सुना दें तो देवी शर्मिन्दा हो जाए। धर्म को व विज्ञान को सबको ठीक करना होगा मित्रो! और वह काम करेगी मनीषा। कुम्भ नहाइए बैकुण्ठ को जाइए, यह कौन-सा धर्म है? ऐसे धर्म को बदलना होगा व विज्ञान द्वारा दिग्भ्रान्त की जा रही पीढ़ी को भी मनीषा को ही मार्गदर्शन देना होगा। आपको युग की जरूरतें पूरी करनी चाहिए। आदमी के भीतर की आस्थाएँ कमजोर हो गई हैं, उन्हें ठीक करना चाहिए। आज की भाषा में बात कीजिए व लोगों का समाधान कीजिए। विज्ञान की भाषा में, नीति की, धर्म की, सदाचार की, आस्था की बात कीजिए व सबका मार्गदर्शन करिए। बताइए सबको कि आदर्शों ने सदैव जीवन में उतारने के बाद फायदा ही पहुँचाया है, नुकसान किसी का नहीं किया।
अब्राहम लिंकन ने बीच मेज पर खड़ा करके कहा था यह स्टो है। इसने अमेरिका के माथे पर लगा कलंक हटा दिया। आप क्या करना चाहते हैं? हम भारतीय संस्कृति को मेज पर खड़ा करके यह कहना चाहते हैं कि यह वह संस्कृति है जिसने दुनिया का कायाकल्प कर दिया। आज भी यह पूरी तरह से मार्गदर्शन देने में सक्षम है। मनीषी इसने ही पैदा किए। यदि मनीषी जाग जाएँ तो देश, समाज, संस्कृति सारे विश्व का कल्याण होगा। भगवान् करे, मनीषा जगे, जागे, जगाए व जमाना बदले। हमारा यह संकल्प है व हम इसे करेंगे। आपको जुड़ने के लिए आमन्त्रित करते हैं। आज की बात समाप्त।
ॐ शान्ति।