उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
दो दिनों से आप यह सुन रहे हैं कि कल्प क्या है और कल्प के लिए क्या-क्या करना पड़ेगा आपको? कल्प के लिए दूसरे भी आपकी सहायता करेंगे; पर यह मानकर चलिए कि कुछ तो आपको भी करना पड़ेगा। आप केवल पूजा ही नहीं करेंगे बल्कि भीतर वाले हिस्से को भी ठीक करेंगे। केवल कर्मकाण्ड तक सीमित रह जाएँगे, तो उद्देश्य कैसे पूरा होगा? यह कल्प कोई शारीरिक थोड़े ही है। यह क्रियाओं से कैसे पूरा हो जाएगा? यह आंतरिक कायाकल्प है। इसलिए आपको अपनी मनःस्थिति को, चिंतन को, अपने विचारों को, आस्थाओं को, दृष्टिकोण को भी बदलना पड़ेगा। यह कर सके, तो आप यकीन रखिये बाहर की सहायता आपको जरूर मिलेगी।
आमतौर से लोग यह समझते हैं कि देवताओं की खुशामद करके, देवताओं से कुछ प्राप्त करके हम अपना फायदा उठा लेंगे और अध्यात्म इसी का नाम है। यह उन लोगों का गलत ख्याल है। देवताओं का अनुग्रह मिलता तो है, मैं यह नहीं कहता कि नहीं मिलता; लेकिन बिना शर्त नहीं मिलता, कुपात्रों को नहीं मिला; पात्रता पहले साबित करनी पड़ती है, इसके बाद में ही ऐसा हो सकता है कि देवता सहायता करें और किसी भक्त को या साधक को लाभ देने में मदद कर सकें। आपको भी यही विचार करके चलना चाहिए। आपको देव-अनुग्रह की कामना तो अवश्य करनी चाहिए, गुरुजी के आशीर्वाद की कामना तो अवश्य करनी चाहिए, गायत्री माता की कृपा की आशा तो अवश्य करनी चाहिए; लेकिन उस आशा के साथ-साथ में एक जो शर्त है, उसी भी भूलना नहीं चाहिए। शर्त यह है कि आप अगर अपनी पात्रता साबित करेंगे, तो देवता भी आपकी जरूर सहायता करेंगे और अगर आप अपनी पात्रता नहीं साबित कर सके, तो आप यह मानकर चलिये, आपका निराश ही होना पड़ेगा। देवता से किसी ऐसी कृपा की आशा मत कीजिए, जो कि कुपात्रों को भी मिल सकती है। देवता बड़े होशियार हैं। इससे पहले कि आप कर्मकाण्ड करें, उससे पहले वह कर्मकाण्ड के पीछे छिपी साधक की भावना को देखते हैं। अगर भावना उसकी सही है, तो निश्चित रूप से फल देते हैं, जैसा कि आपने सुना है; लेकिन अगर आपने भावना का ध्यान नहीं रखा है, केवल चिन्ह-क्रिया को कर लिया है, तो छोटी-सी क्रिया के बदले में आपको लम्बी-चौड़ी आशा नहीं करना चाहिए, जो देवताओं की सहायता से मिलती है या मिल सकती है। इसी बात पर आप ध्यान दीजिए।
बादलों को आप देखते हैं न, बादल कितनी कृपा करते हैं? बादलों जितना कौन देवता हो सकता है! बिना कीमत पानी बरसाता है; चाहे कितना भी पानी बरसाता है; समुद्र से लाता है और प्यासी जमीन को पिलाने के लिए उँड़ेल देता है; लेकिन आप ध्यान दीजिए, उस पानी से कौन लाभ उठा पाता है? हर कोई फायदा उठा लेता है? नहीं, हर कोई लाभ या फायदा नहीं उठा पाता। हर जगह हरियाली बादलों से हो जाती है; लेकिन जो चट्टानें हैं, उन चट्टानों पर एक तिनका भी पैदा नहीं होता। आपने नदी में पड़े हुए पत्थरों को देखा है न! नदी के पानी से किनारे गीले हो जाते हैं, जमीन गीली हो जाती है; पर जो चट्टान या पत्थर का टुकड़ा नदी के बीच में सैकड़ों वर्षों से पड़ा हुआ है, जरा तोड़कर तो देखिये। नदी का कोई अनुग्रह नहीं हो सका, क्योंकि वह पत्थर है; बादलों का कोई अनुग्रह-लाभ नहीं ले सका; क्योंकि वह चट्टान है।
छात्रवृत्ति के बारे में जानते हैं न! जो प्रथम श्रेणी के पास होते हैं, उनको सरकार की ओर से छात्रवृत्ति दी जाती है। थर्ड डिवीजन वाले को मिलती है क्या? आप हमारे साथ उदारता कीजिए, दया कीजिए—यह मत कहिए। उदारता का दुनिया में कोई खास व्यवहार नहीं है, दया का कोई खास व्यवहार नहीं है। दुनिया में पात्रता की ही परख है। आपने देखा है न, किसी की खूबसूरत कन्या को बहुत-से आवारा पड़ोसी यह माँग सकते हैं कि अपनी कन्या को हमारे हवाले कर दीजिए, हमसे शादी कर दीजिए। आपका क्या ख्याल है, कोई अपनी जवान लड़की को, जो पढ़ी-लिखी भी है, सुन्दर भी है, किसी आवारा के सुपुर्द कर देगा क्या? नहीं करेगा; क्योंकि वह तो बेचारा प्यासा फिर रहा है कि कोई अच्छा-सा जमाई मिल जाए, तो हम पैसे भी देंगे, खुशामद भी करेंगे, कपड़े भी देंगे; कितना तलाश करता-फिरता है। क्यों तलाश करता है दामाद को, जब आपके पड़ोस में ही पचास दामाद इसके लिए तैयार हैं कि हम भी आपके जमाई बनेंगे, अपनी लड़की दे दीजिए, फिर क्यों नहीं देता है? क्यों लड़ने-झगड़ने को तैयार हो जाता है? क्यों अच्छे लड़के के पास जाता है और खुशामदें करता है, पैर पकड़ता है, मिन्नतें भी करता है, ऐसा क्यों होता है? सिर्फ एक ही वजह है कि दामाद इस लायक हो, उसके अंदर इतनी पात्रता हो कि उस लड़की का गुजारा कर सके, उस लड़की की देख−भाल कर सके, इसलिए उस लड़की का बाप ऐसे दामाद को तलाश करता है, जो कि उसके योग्य हो। ठीक इसी बात की तरह देवताओं के अनुग्रह हरेक को बाँट में नहीं आ सकते, गुरुओं के अनुग्रह हरेक की बाँट में नहीं आ सकते। रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानन्द को अनुग्रह-लाभ दिया था। माँगने वाले तो हजारों आदमी आते थे, हजारों आदमी छोटी-मोटी अपनी जरूरतें पूरी कराके भाग खड़े होते थे; लेकिन विवेकानन्द के अंदर उन्होंने पात्रता का अंश पाया, इसलिए उनको ही अनुदान दिया। देखते हैं न, माता के पेट में जब भ्रूण रहता है, तो वह माता की सहायता प्राप्त करता है, माता का दूध प्राप्त करता है। उसकी पात्रता को माता समझती है, इसलिए वह सहायता देती है। पेड़ अपनी चुम्बक शक्ति से बादलों को घसीट लेते हैं और उनको बरसने के लिए मजबूर कर देते हैं। बादल वहीं बरसते हैं, जहाँ घनी हरियाली होती है और वहाँ बरसाने से इनकार कर देते हैं, जहाँ पेड़ नहीं होते हैं। बादल रेगिस्तान में कभी नहीं बरसते हैं। जहाँ पेड़ नहीं होंगे, वहाँ पानी नहीं बरसेगा। लीबिया में कुछ दिन पहले ऐसा ही हुआ था। पेड़ काट डाले गये। उसका परिणाम यह हुआ कि पानी ने बरसना बंद कर दिया और बिलकुल सूखा पड़ गया। फिर पेड़ लगाये गये तब बादल बरसे। मतलब यह है कि बादल पेड़ों के चुम्बकत्व से खिंचकर चले आते हैं।
खदानें कैसे बनती हैं आप जानते हैं? खदानों में कहीं थोड़ा लोहा, कहीं पीतल, कहीं चाँदी होती है; अपने चुम्बकत्व से दूर-दूर तक फैले हुए छोटे कणों को घसीटती हैं और खदान बढ़ती रहती है। इस समय सौ टन लोहा है, तो अगले वर्ष में दो सौ टन लोहा हो जाएगा। उससे अगले वर्ष तीन सौ टन हो जाएगा, क्यों? क्योंकि खदान चारों ओर से खींचती रहती है, जमा करती रहती है। देवताओं की कृपा के संबंध में भी ठीक यही बात है। उसे घसीटा जा सकता है, बढ़ाया जा सकता है। देवता अपने आप थोड़े ही देंगे। आप अपने पैसे किसी को दे देंगे क्या? नहीं। बैंक वाले चाहे किसी को रुपये दे देंगे क्या? नहीं; क्योंकि वे रुपया उधार देने से पहले हजार बार यह तलाश करता है कि जिस आदमी को दिया जाने वाला है वह पैसे का ठीक इस्तेमाल करेगा कि नहीं। उसको फिर पैसा वापस मिलेगा कि नहीं अगर यह न हो, तो कोई देने को तैयार नहीं हो सकता। आपने समुद्र को देखा होगा। समुद्र के पास कितनी सारी नदियाँ अपना-अपना पानी लेकर भागती-फिरती हैं; क्योंकि वह समझती हैं कि हमारे पानी को जमा करने की शक्ति इसमें है; वही समझती हैं कि हमारा पानी एक मुनासिब जगह पर एकत्रित हो जाएगा। नदियों के तरीके से दैवी-शक्तियाँ देती तो हैं; पर हरेक को नहीं। आप सोचें कि कोई माँगेगा, उसी को दे देंगी, जो कोई नारियल चढ़ा देगा, उसी को दे देंगी, जो कोई ग्यारह रुपये का जाप कर देगा, उसी को दे देंगी, पूजा-पाठ कर देगा, उसी को दे देंगी। चापलूसी भरी क्रियाओं से आप देवताओं को प्रसन्न नहीं कर सकते। क्रियाएँ आवश्यक तो हैं, कपड़े की तरह—क्रियाएँ आवश्यक तो हैं, चाकू की तरह; लेकिन सामान तो हो आपके पास; चाकू से कैसे काटेंगे कलम को। इसलिए क्रियाएँ बहुत थोड़ा-सा काम करती हैं। कर्मकाण्ड आप कर रहे हैं, जप कर रहे हैं और काम कर रहे हैं, यह जरूरी तो है; लेकिन आप यह अनुमान मत कीजिए कि केवल जप करने से या अनाज कम खाने से आप लम्बे-चौड़े फायदे उठा सकेंगे। आपको मनःस्थिति को जरूर बदलना पड़ेगा। फूल जब खिलते हैं, तो आपने देखा होगा कितने सारे भँवरे उन पर आकर बैठ जाते हैं; आपने उनके ऊपर तितलियों को घूमते हुए देखा है न? आपने उनके ऊपर शहद की मक्खियों के गुच्छे देखे हैं न? कब आते हैं? जब फूल खिलते हैं। फूल के तरीके से आप अपने जीवन को खिला सकते हों, अपनी पात्रता को दिखा सकते हों, अपनी मनःस्थिति में हेर-फेर कर सकते हों तो आपको हम यकीन दिला सकते हैं कि देवताओं के अनुग्रह आपको जरूर मिलेंगे, जो आप यहाँ प्राप्त करने आये हैं। आप हम दोनों के आशीर्वाद छोड़िए, कोई भी और गुरु आपके पास आयेंगे और आपकी आवश्यकता को पूरा कर देंगे। आप मिन्नतें मत माँगिए; नाक मत रगड़िए, झोली को मत फैलाइए और यह उम्मीदें मत कीजिए कि कोई आदमी आपकी पात्रता को देखे बिना, केवल क्रिया-कर्मों से ही प्रभावित होकर आपका उद्धार कर जाएगा, ऐसा हो नहीं सकेगा।
आपको इतिहास मालूम है न। शिवाजी को ‘भवानी’ नाम की एक तलवार मिली थी। क्यों मिली थी? इसलिए मिली थी कि उन्होंने अपनी पात्रता साबित की थी। उनके गुरु ने परीक्षा ली थी, कहा था कि आप जाइए, सिंहनी का दूध दुहकर ले आइए। देखा कि यह इतना निष्ठावान है कि अपने कर्तव्य के लिए अपने प्राण को भी दे सकता है, तो भवानी से उन्होंने प्रार्थना की कि आप ऐसी तलवार दे दीजिए, जो अक्षय हो। अर्जुन को गाण्डीव कहाँ से मिला था? देवताओं ने दिया था, इन्द्र देवता ने। केवल अर्जुन को ही क्यों दे दिया? सबको क्यों नहीं दिया? क्योंकि उन्होंने एक बार इम्तहान लिया था कि इतनी कीमती चीज को एक सख्त और प्रामाणिक आदमी को ही दी जाए। जब अर्जुन वहाँ गये, तो उन्होंने इम्तहान लेने के लिए वहाँ की सबसे खूबसूरत अप्सरा उर्वशी को भेजा, उर्वशी अर्जुन के साथ शादी की बात करने लगी, तो अर्जुन ने उससे कहा कि आप तो हमारी माँ के बराबर हैं और हम आपके चरणों की धूल अपने सिर पर रखते हैं और आप ये जानिए कि हम आपकी संतान हैं। इस जवाब से प्रसन्न होकर इन्द्र ने समझ लिया कि यह गाण्डीव के लायक है। इसको गाण्डीव दे देना चाहिए।
आपको बापा जलाराम की बात मालूम है? भगवान आये थे और उनको एक झोली दे गये थे। उसमें से अक्षय अन्न के भण्डार निकलते थे। यह वरदान भगवान ने दिया था, जो अभी भी है। आप गुजरात में कभी गये हों और वीरपुर नाम के गाँव में कभी पहुँचे हों, तो आपको एक सिद्धपुरुष जलाराम बापू का स्थान मिलेगा। वहाँ एक अन्न की झोली अभी भी टँगी हुई है; यह भगवान ने दी थी। उनकी इच्छा थी कि हमारे दरवाजे पर से कोई खाली हाथ न जाने पाये। भगवान ने उनकी इच्छा पूरी की। क्यों पूरी की? और लोग इतने इच्छा-मनोकामना करते हैं, उनकी क्यों नहीं पूरी करते? क्योंकि जलाराम इम्तहान में पास हो गये थे। उन्होंने दो प्रतिज्ञाएँ की थीं कि जलाराम मेहनत-मजदूरी करेंगे और खेती में से अनाज उगायेंगे। उनकी स्त्री ने यह प्रतिज्ञा की थी कि पेट भरने के बाद में जो कुछ भी हमारे पास बच जाएगा, उसको दुखियारों और संतों को खिलाते रहेंगे। उनकी स्त्री खाना पकाती रहती थी सारे दिन और उनके बापा जलाराम खेती-बाड़ी करते रहते थे, सारे दिन। वह अनाज उगाते थे और स्त्री खिलाती रहती थी। बस, इसी में से जो पेट के लिए मिल गया, उसी से गुजारा कर लिया। संत की यही निशानियाँ हैं। संत का चरित्र ऊँचा होना चाहिए। भक्त का चरित्र ऊँचा नहीं हुआ, तो कीर्तन करते रहें, रात्रि जागरण करते रहें, पूजा करते रहें, उनसे कुछ होने वाला नहीं। आप अखण्ड कीर्तन करते हैं, तो मुबारक—आप जागरण करते हैं, तो मुबारक; लेकिन अपनी पात्रता को विकसित करते हैं कि नहीं, सिर्फ एक ही बात का जवाब दीजिए। भगवान तो सिर्फ एक ही बात को देखते रहते हैं। पूजा तो हमारे मन को धोने का एक तरीका है। भगवान को इससे बहलाया-फुसलाया नहीं जा सकता, भगवान के साथ में ब्लैकमेलिंग नहीं किया जा सकता। भगवान से जुड़ने का एक ही तरीका है कि अपनी पात्रता साबित करें, भगीरथ के तरीके से।
भगीरथ गंगाजी को माँगने गये थे; पानी की जरूरत थी; अपने बाप-दादाओं का उद्धार करने के लिए भी जरूरत थी; लेकिन साथ-साथ में इससे भी जरूरत थी कि हमारे संसार को पानी की आवश्यकता है और पानी मिलना चाहिए। सारे संसार के पानी के लिए निःस्वार्थ आदमी भगीरथ आज भी महान हैं। भगीरथ ने तप किया और तप के कारण जल मिला। अगर यह कारण रहा होता कि भगीरथ पानी का स्टोर इकट्ठा करेंगे और हर आदमी से पैसा वसूल करेंगे एवं अपना फायदा उठायेंगे, गंगाजी को अपने पास में बुला लेंगे तथा घटिया स्वार्थ सिद्ध करेंगे। विश्वास रखिये गंगाजी कभी भी भगीरथ के स्वार्थ में नहीं रहीं। उन्हें पता था उस आदमी के नीयत। नीयत का अर्थ है—पात्रता, चिंतन का अर्थ है—पात्रता, चरित्र का अर्थ है—पात्रता। आपको पात्रता विकसित करनी चाहिए। आपको मालूम ही नहीं, देवताओं के अनुग्रह में कोई कमी है क्या? गंगा जब हिमालय से चलीं, तो मन में एक ही बात थी—अब हम यहाँ नहीं रुकेंगे, लोगों की प्यास बुझाएँगे, खेतों की हरियाली को पूरा करेंगे, हर जगह जाएँगे, पशु और पक्षियों की प्यास बुझाएँगे और आपकी गोदी में, हिमालय में रहने का अब हमारा जरा भी मन नहीं है। जैसे ही उन्होंने अपना संकल्प प्रकट किया, पहले तो हिमालय ने मना भी किया, आपको नहीं जाना चाहिए, क्या कष्ट है आपको यहाँ? उन्होंने कहा—नहीं, इसका सवाल नहीं है। हमारी आत्मा नहीं मानती है और यह आत्मा कहती है कि हमको अपने जीवन को श्रेष्ठ बना देना चाहिए। लोगों ने यह भी कहा—आप सूख जाएँगे, आप खाली हो जाएँगी; लेकिन गंगा ने कहा—हम दिवालिया हो जाएँ, तो आपको कोई हर्ज है क्या? जिन्दगी एक अच्छे काम में लग जाए, तो कोई नुकसान है क्या? जब चल पड़ीं, तो हिमालय ने देखा—इतनी शानदार लड़की, इतने शानदार इसके कर्म, इतनी शानदार इसकी भावना कभी नहीं टूटनी चाहिए। हिमालय ने कहा, ‘‘बेटी! तुम निरंतर बहती रहना और तुम्हारे सूखने का कभी मौका नहीं आयेगा। हमारी कृपा बराबर बनी रहनी चाहिए और तुम्हारे पेट और तुम्हारी जरूरतों को पूरा करती रहेगी।’’ तब से लाखों वर्ष हो गये गंगा को बहुत हुए; पर कभी कुछ कमी पड़ा क्या? कभी कोई कमी नहीं पड़ी। यही तरीके हैं देवताओं के अनुग्रह लेने के। आप भी देवताओं का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए कल्प-साधना कर रहे होंगे और आपको विश्वास होगा कि गायत्री माता का हम जप करेंगे, तो गायत्री माता अनुग्रह करेंगी। आप विश्वास रखिए, जरूर अनुग्रह करेंगी, गायत्री माता का स्वभाव है—वह जरूर सहायता करती हैं और गुरुजी का आशीर्वाद मिलेगा, वह अपने पुण्य का एक अंश देंगे। बिल्कुल यकीन रखिए, हमने सारी जिंदगी अपने पुण्य के अंश बाँटे हैं। हमको बाँटने में बड़ी खुशी होती है। खाने में खुशी नहीं होती, खिलाने में होती है और एक और शक्ति है, जो हमारे ऊपर छायी हुई है, जिसकी वजह से ब्रह्मवर्चस बना है, शान्तिकुञ्ज बना है और जिसकी कल्पना से यह कल्प-साधना के शिविर लगाये गये हैं और जिनकी इच्छा के हिसाब से आप सबको बुलाया गया है। ये आपको खाली हाथ जाने देंगे क्या? नहीं, यह तीनों शक्तियाँ ऐसी हैं, जो बराबर आपकी सहायता करने को आमादा हैं और गाय की तरह सच्चे मन से चाहती हैं कि हम अपने बच्चे को सारे-का दूध पिला दें। जब घास खाकर के गाय आती है, तो दूध लेकर आती है और यह चाहती है कि बच्चे को पूरा दूध पिला देंगे; लेकिन बच्चा तो उसका होना चाहिए, बच्चा किसी और का हुआ तब? कुत्ते का, बिल्ली का बच्चा हुआ तब? गधे का बच्चा हुआ तब? क्यों पिलाएगी गाय। गाय का एक ही बच्चा होना चाहिए। आपको संत का बच्चा होना चाहिए, ऋषियों का बच्चा होना चाहिए, अध्यात्म का बच्चा होना चाहिए, अर्थात आपका चिंतन, आपका चरित्र, आपका व्यक्तित्व ऐसा होना चाहिए, जिससे कि देवता आपकी बराबर सहायता करते हुए चले जाएँ, इससे कम में बात बनेगी भी नहीं। इसलिए आपको त्याग करना ही चाहिए; आपको बुराइयाँ छोड़नी ही चाहिए; आपको उदार होना ही चाहिए; आपको अपने दृष्टिकोण में महानता साबित करनी ही चाहिए। भगवान भी करें, वह देते तो बहुत हैं; पर वह परीक्षा के बिना नहीं देते।
आपको याद है न! सुदामा जी एक बार श्रीकृष्ण भगवान के पास माँगने गये थे। तो श्रीकृष्ण भगवान ने यह देखा कि ये कुछ हमको भी दे पायेंगे कि नहीं। सुदामा जी की पोटली में कुछ चावल रखे हुए थे। वह गये तो थे माँगने की इच्छा से; पर श्रीकृष्ण जी ने कहा—पहले चावल हमारे हवाले कीजिए, बाद में करना कोई बात। आप चावल नहीं दे सकते, तो हम क्यों आपको कुछ देने लगें? उन्होंने चावल की पोटली को उनके हाथ से छीन लिया और छीनने के बाद में बस वही चावल बढ़ते हुए चले गये और चावलों से ही सुदामा जी को वह धन मिल गया, जिसके बारे में आपने सुना होगा कि द्वारकाधीश से सारा धन सुदामा जी के पास चला गया था। वह चावल बोये गये थे। अगर चावल लेकर द्वारका जी नहीं गये होते सुदामा जी, तब उनको खाली हाथ आना पड़ता। आप देंगे नहीं, तो ले कहाँ से लेंगे? इसलिए पहले आप देने की बात पर विचार कीजिए, परिशोधन की बात सोचिये, पवित्रता की बात सोचिये, अपने व्यक्तित्व की बात सोचिये, अपने व्यक्तित्व की बात सोचिये। इतना अगर सोच सकते हैं, तो फिर आप देखिये कि क्यों नहीं भगवान की सहायता आपको मिलती? भगवान की सहायता आपको जरूर मिलेगा। आपको देवता की सहायता भी मिलेगी, आपके मंत्र तब कितने चमत्कारी साबित होंगे, आपको व्रत और अनुष्ठान से तब कितना ज्यादा फायदा मिलेगा इसे आप तभी जान सकेंगे।
बस, आपसे भी मुझे यही कहना था। आप यहाँ देवता का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए आये हैं और आपको वरदान पाने की इच्छा है, तो आपकी इच्छा सही और मुनासिब है, आप किसी गलतफहमी में नहीं हैं, किसी अंधविश्वास में जकड़े हुए नहीं है। प्राचीनकाल के असंख्य उदाहरण ऐसे हैं, जिसमें देवताओं ने सहायता की है, याचना करने वालों की। आपको भी जरूरत सहायता मिलेगी; लेकिन शर्त को मत भूलिए। शर्त को भुला देंगे, तो घाटे में रहेंगे, आप निराश होंगे, गाली देंगे, फिर आप यह सोचेंगे कि मंत्र मिथ्या होते हैं, देवता मिथ्या होते हैं। क्या मिथ्या होते हैं? अगर आपकी पात्रता, जिसके लिए बहुत जोर दे रहे हैं, जिसके लिए अनुष्ठान करा रहे हैं, वह यदि विकसित नहीं हुई, तो आप खाली हाथ रह जाएँगे। आपके भीतर का कायाकल्प हो जाए, तो देवता आपको बहुत सहायता देंगे। आप अपने भीतर को बदलने की कोशिश कीजिए। आप अपना चिंतन बदलिए, अपना चरित्र बदलिए, अपने जीवन को ढर्रा-ढाँचा बदलिए, फिर देखिये आपको बदली हुई परिस्थितियों में जो देवता आपसे पहले नाखुश थे, जो मुँह मोड़े हुए थे, किस तरीके से आपके गुलाम हो जाते हैं! कैसी आपकी सहायता करते हैं। कैसे आपको छाती से लगाते हैं! कैसा आपको निहाल कर देते हैं! यह हमने भी किया है और इससे आपको अवश्य लाभ होना चाहिए। आप अपने आपको खाली कीजिए और निहाल होकर के जाइए।
॥ॐ शान्ति:॥