उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
बात कल्प-साधना की बात चल रही थी। आप कल्प की इच्छा के लिए आये हैं न। कल्प में आपके सारे शरीर को बदलना तो मुमकिन नहीं है; पर आपका मन बदल सकता है। आपका स्तर बदल सकता है, आपका भविष्य बदल सकता है। आपका भूतकाल जो कि घिनौना भूतकाल, खाली हाथ वाला भूतकाल, चिंताजनक वाला भूतकाल रहा है, वह ऐसे उज्ज्वल भविष्य में बदल सकता है, जिसकी कि आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। भूतकाल कैसा रहा है? आपको अपनी आँख से कैसा दीखता है? क्या कहूँ मैं आपसे! आपने अपना मकान बना लिया, लड़कों के लिए धन इकट्ठे कर दिये, लड़के को वकील बना दिया, लड़कियों की शादी में ढेरों पैसा खर्च कर दिया। आप अगर इन्हीं बातों को अपनी सफलता की निशानी मानते हैं; तो मानते रहिए, मैं कब कहता हूँ कि यह आपकी सफलताएँ नहीं है; लेकिन मेरी दृष्टि में यह सफलताएँ नहीं हैं। आपकी सफलता रही होती तब, जब आप दूसरे नानक रहे होते, कबीर रहे होते, रैदास रहे होते, विवेकानन्द रहे होते, गाँधी हो गए होते, तो मैं आपके भूतकाल को शानदार मानता; लेकिन भूतकाल कैसा था? जानवरों का जैसा होता है; पेट भरते रहते हैं, बच्चे पैदा करते रहते हैं। वह भी तो आपको इतिहास है। पिछले दिनों आपने क्या किया? बताइए? एक तो आपने पेट भरा और दूसरे औलाद पैदा की है। औलाद की जिम्मेदारियाँ सिर पर आएँगी ही और आपको वहन करना ही पड़ेगा। क्यों करना पड़ेगा? जब आपने गुनाह किया है, तो उसकी सजा तो आपको ही भुगतनी पड़ेगी। आपने बच्चे पैदा किए हैं न, तब सजा भी भुगतिए। सारी जिंदगी भर उनके लिए कमाइए, कोल्हू के बैल की तरह चलिए, पीसिए अपने आपको, निचोड़िए अपने आपको, निचोड़ करके उनके खिलाइए; क्योंकि आपने गुनाह तो किया ही है। एक औरत को हैरान किया है न, बेचारी ने आपकी वजह से नौ महीने पेट में वजन रखा, कष्ट उठाया, छाती का दूध पिलाया, फिर आप क्यों कष्ट नहीं उठायेंगे? आप भी कोल्हू में चलिए, आप भी मुसीबत उठाइए। आपको भी बीस साल की कैद होती है। बीस साल का बच्चा जब तक न हो जाए, तब तक आप कैसे पीछा छुड़ा पायेंगे। यही तो भूतकाल है आपका! यही तो आपकी परिणति है। यही तो आपने पुरुषार्थ किया है। कोई ऊँचे स्तर से विचार करेंगे, तो आपके भूतकाल को कैसे प्रोत्साहित करेगा?
आप अपने भविष्य को ऐसा मत बनाइए। भविष्य को आप ऐसा बनाइए कि जब तक रहें, तब तक संतोष करते रहें और जब नहीं रहें, तब आपके पद-चिह्नों पर चलकर दूसरे आदमी भी रास्ता तलाश कर सकें। गाँधीजी ने राजकोट में राजा हरिश्चंद्र का ड्रामा देखा और ड्रामा देखकर उस छोटे बच्चे गाँधी के मन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने उसी दिन यह फैसला कर लिया कि अगर जिऊँगा तो हरिश्चंद्र होकर जिऊँगा। उज्ज्वल भविष्य और उज्ज्वल भविष्य के संकल्प ऐसे ही तो होते हैं, जैसे गाँधीजी के उज्ज्वल भविष्य के सपने थे। संकल्पों से उन्होंने क्या-से कर डाला? आपको ऐसे संकल्पों को चरितार्थ करने के लिए, उज्ज्वल भविष्य को बनाने के लिए यहाँ पूरा सहारा भी है। आप कैसे सौभाग्यशाली हैं? आपको तो सहारा भी मिल गया। आमतौर से लोग अकेले ही मंजिल पार करते हैं, अकेले ही चलते हैं; पर आपको तो अकेले चलने के साथ लाठी का सहारा भी है, आप उस सहारे का क्यों नहीं लाभ उठाते? आप लोग पैदल सफर करते हैं, आपके लिए तो यहाँ सवारी भी तैयार खड़ी है, फिर आप लाभ क्यों नहीं उठाते? शान्तिकुञ्ज के वातावरण को केवल यह आप मत मानिये कि यहाँ दीवारें ही खड़ी हुईं हैं, आप यह मत सोचिये कि यहाँ शिक्षण का कुछ क्रम ही चलता रहता है, यह मत सोचिये कि यहाँ कुछ व्यक्ति विशेष ही रहते हैं। आप यह भी मानकर चलिये कि यहाँ एक ऐसा वातावरण आपके पीछे-पीछे लगा हुआ है, जो आपकी बेहद सहायता कर सकता है। उस वातावरण से निकली प्राण की कुछ धाराओं को, जिसने खींचकर आपको यहाँ बुलाया है और आप जिसके सहारे उज्ज्वल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं, उस वातावरण, प्रेरणा और प्रकाश को चाहें तो आप एक नाम यह भी दे सकते हैं—पारस।
पारस उस चीज का नाम है, जिसको छू करके लोहा भी सोना बन जाता है। आप लोहा रहे हों, पहले से; आपके पास एक पारस है, जिसको आप छुएँ, तो देख सकते हैं किस तरीके से काया बदलती है? आप अभावग्रस्त दुनिया में भले ही रहे हों पहले से, आपको सारी जिंदगी यह कहते रहना पड़ा हो कि हमारे पास कमियाँ बहुत हैं, अभाव बहुत हैं, कठिनाइयाँ बहुत हैं; लेकिन यहाँ एक ऐसा कल्पवृक्ष विद्यमान है कि जिसका आप सच्चे अर्थों में सहारा लें, तो आपकी कमियाँ, अभावों और कठिनाइयों में से एक भी जिंदा रहने वाला नहीं हैं, उसका नाम कल्पवृक्ष है। कल्पवृक्ष कोई पेड़ होता है कि नहीं, मैं नहीं जानता। न मैंने कल्पवृक्ष देखा है और न मैं आपको कल्पवृक्ष के सपने दिखाना चाहता हूँ; लेकिन अध्यात्म के बारे में मैं यकीनन कह सकता हूँ कि वह एक कल्पवृक्ष है। अध्यात्म कर्मकाण्डों को नहीं, दर्शन को कहते हैं, चिंतन को कहते हैं। जीवन में हेर-फेर कर सके, ऐसी प्रेरणा और ऐसे प्रकाश का नाम अध्यात्म है। ऐसा अध्यात्म अगर आपको मिल रहा हो तो यहाँ मिल जाए या मिलने की जो संभावनाएँ हैं, उससे आप लाभ उठा लें, तो आप यह कह सकेंगे कि हमको कल्पवृक्ष के नीचे बैठने का मौका मिल गया है। यहाँ का वातावरण कल्पवृक्ष भी है, यहाँ का वातावरण-पारस भी है और यहाँ का वातावरण अमृत भी है।
आपको रोज मरने की चिंता होती है न, मरने वाले प्राणी जिस तरीके से अपने हविश को पूरा करने के लिए, अपना पेट भरने के लिए लालायित रहते हैं, आपको वैसा कुछ करना ही नहीं पड़ेगा। जीर्घजीवियों के तरीके से आप हमेशा जिंदा रहेंगे, आपकी मौत कभी नहीं होगी। जो कभी नहीं मरते, उनको कालजयी कहते हैं। आप भी कालजयियों में अपना नाम लिखा सकते हैं। कब? जब आप अमृत पिएँ, तब। शरीर को अमर बनाने वाला अमृत कभी रहेगा, तो दुनिया में प्रकृति के कायदे खत्म हो जाएँगे। कौन दिखाई पड़ता है, बताइए? रामचंद्र जी कहीं दिखाई पड़ते हैं? श्रीकृष्ण भगवान कहीं दिखाई पड़ते हैं? हनुमान जी की कहीं आपने शक्ल देखी है? जब इतने बड़े-बड़े महापुरुष और भगवान के अवतार दुनिया में नहीं रहे, तो और कौन रहेगा? अगर अमृत कहीं रहा होता तो इन लोगों ने जरूर पी लिया होता; पर अध्यात्म का एक अमृत है जो आपको यहाँ मिल सकता है, आप जिसके नीचे बैठकर अजर-अमर हो सकते हैं। यह अध्यात्म ज्ञान है और जिस दिन आपको यह बोध हो जाएगा कि हम जीवात्मा हैं, शरीर नहीं हैं, उसी दिन आपका मौत का भय निकल जाएगा और योजनाएँ ऐसी बनेंगी, जो आपके जन्म-जन्मान्तर की समस्याओं के समाधान करने में समर्थ होती हों। आज तो आप छोटे आदमी हैं और और छोटी समस्याओं में डूबे रहते हैं। पेट कैसे चुकायेंगे? लड़कियों की शादी कैसे होगी? हमारी नौकरी में तरक्की कैसी होगी इत्यादि छोटी चीजों में आप लगे रहते हैं, लेकिन आप अगर कभी अमर हो गये तब? तब आप अमर लोगों की तरह विचार करेंगे और यह सोचेंगे कि अपने उत्थान के साथ-साथ सारे विश्व का उत्थान करने के लिए क्या करना चाहिए और कैसे बनना चाहिए?
बस, यही है यहाँ की परिस्थितियाँ, जिनसे लाभ उठाना चाहिए। यहाँ के वातावरण का आप लाभ उठाइए। साधना-क्रम जो आप करते हैं, वह भी ठीक है, वह भी अच्छी बात है; लेकिन साधना-क्रम के अलावा जो यहाँ आपको मिल रहा है, सान्निध्य मिल रहा है, आप इसकी उपेक्षा मत कीजिए। आप यहाँ ऐसे वातावरण के सान्निध्य में हैं जो आपको मानसिक दृष्टि से कायाकल्प कर सकने में पूरी तरी से सामर्थ्य हैं। कायाकल्प शरीर का नहीं हो सकता, प्रकृति का हो सकता है। प्रकृति ही बदल सकती है आदमी की। आकृति? आकृति नहीं बदल सकती। आकृति बदल भी कैसे सकते हैं हम? आपकी नाक की जैसी बनावट है, अब किसी और तरह की नाक कैसे काट के लगा दें आपके! आपकी लंबी नाक है, आप क्या चाहते हैं, चौड़ी नाक हो जाए, यह हम कैसे कर सकते हैं? बताइये? आपके दाँत कैसे हैं? बड़े-बड़े? तो अब हम दाँतों को उखाड़ के नये दाँत कैसे लगा दें? आपका शरीर दुबला है, तो अब हम कैसे मोटा बना दें? इसलिए जो चीज संभव नहीं है, वह संभव कैसे हो सकती है? आकृतियाँ नहीं बदल सकतीं आदमी की, प्रकृति बदल सकती है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसी के बारे में रामायण में कहा है। त्रिवेणी का माहात्म्य उन्होंने बताया है, तीर्थराज का माहात्म्य बताते हुए उन्होंने कहा है कि कौए कोयल हो जाते हैं, बगुले हंस हो जाते हैं। बगुले और हंस सफेद होते हैं दोनों; लेकिन प्रकृति में अंतर होता है। आकृति में क्या फरक होता है! आप दूर से फोटो खींच लीजिए, आकृति में थोड़ा-सा ही फर्क दिखाई पड़ेगा। कौए और कोयल की प्रकृति नहीं मिल सकती। कौए और कोयल की प्रकृति तो एक जैसी ही है। आप फोटो खींच लीजिए, दोनों एक-से ही मालूम पड़ेंगे तो फिर कौआ, कोयल कैसे हो जाता है? यहाँ आकृति बदलने की बात नहीं है, प्रकृति बदलने की ओर इशारा है।
यह कायाकल्प का वर्णन है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कायाकल्प का वर्णन ऐसे ही रूप में किया है। आपको यहाँ अपना कायाकल्प करने की तैयारी करनी चाहिए। शरीर कल्प नहीं, मनःकल्प। मनःकल्प आप किस तरह करें? इस तरह कीजिए कि आपका क्षुद्रता का दायरा, महानता के दायरे में बदल जाए। आपका दाया बहुत छोटा है। कूपमण्डूक के तरीके से, कुएँ के मेढक के तरीके से पेट भरेंगे, रोटी कमाएँगे, बेटे को खिलाएँगे, बेटी को खिलाएँगे, एक छोटे-से दायरे में गूलर के भुनगे के तरीके से आप भी सारी चीजों को सीमाबद्ध किए हुए हैं। आप असीम बन जाइए। आप महान बन जाइए। आप सीमित रहने से इनकार कर दीजिए। आप पिंजड़े के पक्षी की तरह जिंदगी मत व्यतीत कीजिए और आप उड़ने की तैयारी कीजिए। कितना बड़ा आकाश है, इसमें स्वच्छन्द विचरण करने के लिए उमंगें एकत्रित कीजिए और पिंजड़े की कारा में कैद होने से इनकार कर दीजिए। आपको मालूम पड़ता है कि पिंजड़े की कीलियों में हम सुरक्षित हैं, यहाँ हमको चारा, दाना मिल जाता है; लेकिन कभी आपने खुली हवा में साँस ली नहीं है और आपने अपने पंखों के साथ उड़ाने का, आसमान में आनंद लिया नहीं है। आप ऐसा कीजिए, आप यहाँ से अपने आपको बंधन-मुक्त करने की कोशिश कीजिए। आप भव-बंधनों में जकड़े हुए आदमी मत रहिए। आप मुक्त आदमी की तरह विचार कीजिए। आप नर से नारायण बनने की महत्त्वाकांक्षा तैयार कीजिए। आप उसी क्षुद्र महत्त्वाकांक्षा में उलझे रहेंगे क्या? कौन-सी? लोकेषणा, वित्तैषणा, पुत्रैषणा। नहीं, आप कुछ और बड़ी महत्त्वाकांक्षा को लाइए। आप पुरुष से पुरुषोत्तम बनिए, आप नर से नारायण बनने की बात विचार कीजिए, आप कामनाओं की आग में जलने की अपेक्षा भावनाओं के स्वर्ग और शांति में प्रवेश कीजिए। कामनाओं में ही लगे रहेंगे क्या? आप माँगते ही रहेंगे क्या? भिखारी ही बने रहेंगे क्या? नहीं, आप भिखारी बनने से इनकार कर दीजिए। अब आप यहाँ से दानी बनकर जाइए। जिंदगी भर आपने अपेक्षाएँ की हैं, इसकी अपेक्षा उसकी अपेक्षा; गणेश जी हमको ये दे देंगे, साँई बाबा ये दे देंगे, औरत हमको यह देगी, बच्चा हमको यह कमाकर देगा; आपका सारा जीवन भिखमंगे की तरह, अपेक्षा करने वालों की तरह व्यतीत हो गया। अब आप कृपा कीजिए और अपना ढर्रा बदल दीजिए। यह मानकर चलिए कि आप दान देने में समर्थ हैं और आप देंगे, किसी-न को, कुछ-न देंगे। अपनी धर्मपत्नी को कुछ-न जरूर देंगे आप। उसकी योग्यता कम है, तो योग्यता बढ़ाइए। उसका स्वास्थ्य कमजोर है, तो स्वास्थ्य बढ़ाइए न। आप उसकी उन्नति का रास्ता नहीं खोलेंगे? उसके सम्मान को नहीं बढ़ाएँगे? उसके भविष्य को नहीं बढ़ाएँगे? आप ऐसा कीजिए फिर देखिए आप दानी हो जाते हैं कि नहीं। आप भिखारी रहेंगे, तो उससे काम-वासना की बात करते रहेंगे, मीठे वचनों की बात करते रहेंगे, सहयोग की माँग करते रहेंगे, माँगते-ही रहेंगे। फिर आप हैरान होंगे और दूसरों की नजरों में हेय कहलाएँगे। फिर माँगने से मिल ही जाएगा, इसका क्या गारण्टी? गारण्टी भी नहीं है, मिलने की संभावना भी नहीं है, फिर आप ऐसी निराशा में क्यों बेवजह पापड़ बेलें। आप ऐसा क्यों नहीं कर सकते कि देने की ही बात विचार करें। देने में आप पूरी तरह समर्थ हैं। आप सद्भावनाएँ दे सकते हैं, सेवा के लिए कहीं-न से समय निकाल सकते हैं, इसी प्रकार बहुत कुछ दे सकते हैं।
आप ऐसा कीजिए, यहाँ से दानी बनकर जाइए और अपने याचक के चोले को यहीं हमारे सिर पर पटक के चले जाइए। आप अपनी मालिकी को खत्म करके सिर्फ माली होकर ही यहाँ से जाइए। अब आप मालिक होकर मत जाना। मालिक होकर चलेंगे, तब बहुत हैरान हो जाएँगे। यकीन रखिये मालिक को इतनी हैरानी, इतनी चिन्ता रहती है, जिसका कि कोई ठिकाना नहीं; लेकिन माली? माली को सारे बगीचे में खूब मेहनत करनी पड़ती है; दिन में भी मेहनत करता है, रात में भी मेहनत करता है और हैरानी का नाम नहीं। क्यों? क्योंकि वह समझता है कि यह बगीचा किसी और का है, मालिक का है और हमारा फर्ज, हमारी ड्यूटी यह है कि इन पेड़ों को अच्छे-से रखें और वह अच्छे-से रखता है, सिंचाई करता है, गुड़ाई करता है, निराई करता है, जो भी बेचारा कर सकता है, करता है। आप सिर्फ अपने कर्तव्य और फर्ज तक अपना रिश्ता रखिए, आप इस बात के परिणामों के बारे में विचार करना बन्द कर दीजिए; क्योंकि परिणाम के बारे में कोई गारण्टी नहीं हो सकती। आप जैसा चाहते हैं, वैसी परिस्थितियाँ मिल जाएँ, इस बात की कोई गारण्टी नहीं, बिल्कुल गारण्टी नहीं। नहीं, हम मेहनत करेंगे। मेहनत पर भी कोई गारण्टी नहीं। आप इम्तहान में पास हो जाएँगे, कोई जरूरी नहीं है। आप मेहनती लड़के हैं, तो भी हो सकता है फेल हो जाएँ। आप व्यापार करने में कुशल आदमी हैं, तब भी यह हो सकता है कि कुछ महँगाई सस्ते की वजह से आपको नुकसान हो जाए। आप बहुत चौकस आदमी हैं; लेकिन फिर भी हो सकता है कि आपको बीमारी दबोच ले, चोर-उठाईगीर आपका नुकसान कर दें, आप किसी जंजाल में फँस जाएँ और अपनी अमीरी गँवा बैठें। यह सब हो सकता है। परिणामों के बारे में कोई कुछ नहीं कर सकता। जो परिणाम आपके हाथ में नहीं हैं, फिर क्यों आप ऐसा करते हैं कि उनके बारे में इतना ज्यादा लालच बनाये रखें और अपनी शान्ति को खो बैठें। आप केवल कर्तव्य की बात सोचिए, केवल माली की बात सोचिए, मालिक की बात खत्म, अधिकार की बात खत्म। कर्तव्य आपके हाथ में हैं, अधिकार दूसरों के हाथ में हैं। दूसरे देंगे तो अधिकार मिलेगा, नहीं देंगे, तो कैसे मिलेगा? आप अधिकार को लौंग मानिए और अपने कर्तव्यों को, जिम्मेदारी को उससे सुगन्धित कीजिए।
एक और बात मैं कहता हूँ, आप अपने स्वभाव में से एक और चीज को बदल सकते हैं। खीज़ बदल दीजिए, नाउम्मीदी की खीज़, अभावों की खीज़। आप खीज़ को छोड़कर एक नई चीज ग्रहण कर लें—मुसकराना। आप हर समय मुसकराने की कोशिश कीजिए, बनावटी ही मुसकराहट, फिर देखिए आपके स्वभाव में किस तरह परिवर्तन होता है? मन को हल्का-फुल्का रखें, खिलाड़ी की तरह जिन्दगी जिएँ, नाटक के तरीके से अभिनय तो आप कीजिए; पर इतने ज्यादा मशगूल मत हो जाइए, जिससे आपकी स्वाभाविक प्रसन्नता ही चली जाए। आप हँसते रह सकते हैं। ताश खेलते समय में बादशाह काट दिया, बेगम काट दी, गुलाम भी काट दिया, सब काट दिये; लेकिन तब भी चेहरे पर शिकन नहीं। आप ऐसा ही कीजिए। आपको प्रसन्नता हो, खुशी के, सफलताओं के मौके आएँ, ठीक हैं, आप अच्छे रहिए; लेकिन जब मुसीबतों के मौके आएँ, तब? तब भी आप प्रसन्न रहिए, मुसकराते रहिए। मुसीबतें जो-जो आती हैं, वह आपको मजबूत बनाने के लिए आती हैं, आपकी हिम्मत और दिलेरी जताने के लिए आती हैं, आपकी समझदारी को तीखा करने के लिए आती हैं और आपका व्यक्तित्व सोने में तपाकर खरा जैसा बना देने के लिए आती हैं। आप मुसीबतों की भी शोहबत कीजिए। यह नहीं कहता हूँ कि मुसीबतों को न्यौत बुलाइए; लेकिन मुसीबतें जब आएँ, तब घबड़ाइए मत, हिम्मत से काम लीजिए। ऐसा आप नहीं कर पायेंगे क्या? आप ऐसा ही कीजिए।
आप अपना सम्मान चाहते रहें और दूसरों के लिए अपमान का व्यवहार करते रहें, तब आप ऐसा कीजिए, अब आप यहाँ से जब कायाकल्प करके जा ही रहे हैं, तो अपने आपको नम्र बनाकर जाइए और दूसरों को सम्मान देना शुरू कीजिए। अब तक आप यह अपेक्षा करते रहे कि दूसरे आदमी आपके प्रति नम्र रहें और आपका सम्मान करें, तब मैं आपसे यह प्रार्थना करता हूँ कि आप इस रवैये को बदल दीजिए। आप जो दूसरों से नम्रता की आशा करते थे, वह नम्रता आप अपने ऊपर हावी कर लें। आप स्वयं नम्र रहें, जितने ज्यादा नम्र हो सकते हों, सुशील हो सकते हों, विनयशील हो सकते हों, सज्जन हो सकते हों, बन जाइए, दूसरों पर इस सम्बन्ध में दबाव मत डालिए और सम्मान? सम्मान आप प्राप्त करना चाहते थे न? मेरी प्रार्थना है, आप यह नियम बदल दीजिए। दूसरों को सम्मान दीजिए। दूसरों को सम्मान देंगे, तो आप देखेंगे कि यह प्राप्त कर सकना आपके लिए सम्भव था। दूसरे आपका सम्मान करें, इसमें दबाव डालने के लिए आप क्या कर सकते हैं, बताइए? नहीं दिया तब? इसलिए पाने का एक ही तरीका है—देना, सम्मान दीजिए और बदले में लीजिए।
आप उज्ज्वल भविष्य की उम्मीदें कीजिए। आप भविष्य के बारे में समय-समय पर जो बुरी आशाएँ लगाये बैठे रहते हैं, कहीं ऐसा न हो जाए, वैसा न हो जाए, ऐसा हो गया फिर क्या होगा? आप ऐसी कल्पनाएँ क्यों करते हैं? यह कल्पनाएँ क्यों नहीं करते कि भविष्य हमारा अच्छा-ही है। भविष्य अच्छा-अच्छा करते रहे और न हुआ तब? होगा कैसे नहीं? पानी के गिलास में आधा गिलास पानी आपके पास है, आप चाहें, तो यह कहिए कि आधा गिलास कम है और चाहे आप यह कहिए कि खाली गिलास की तुलना में आधा गिलास आ गया। आधा गिलास क्या कम है? पहले खाली गिलास था। अब आधा गिलास हो गया। आप यों प्रसन्न क्यों नहीं हो सकते कि आधा गिलास पानी हमारे पास है। आप यही सोचते रहेंगे कि पूरा गिलास नहीं है। बात तो वही हुई; लेकिन विचार करने के तरीके अलग-अलग हो गए। आप विचार करने के तरीके बदलिए। अपने भविष्य के बारे में हमेशा अच्छी आशाएँ कीजिए। लेकिन बुरे के लिए तैयार भी रहिए। अगर ऐसी मुसीबत आयेगी, तो हम लड़ेंगे, मुकाबला करेंगे और साहस का परिचय देंगे—यह हिम्मत भी रखिए और उम्मीदें भी अच्छी कीजिए, खराब उम्मीदें आप क्यों करेंगे? क्या खराब उम्मीद की गारण्टी है कोई? जब खराब भविष्य की गारण्टी नहीं है, फिर आप अच्छे भविष्य की कल्पना करने में क्यों संकोच करते हैं? अच्छे भविष्य की कल्पना करने के लिए आप अपने आपको तैयार कीजिए।
आप जागरूक रहिए। आप उदार तो रहें; लेकिन भलमनसाहत को उस सीमा तक मत ले जाएँ, कि आपकी जागरूकता ही चली जाए। दुनिया में बहुत अच्छे आदमी हैं; लेकिन बुरे आदमी भी कम नहीं हैं। बुरे आदमियों के प्रति आपको जागरूक रहना चाहिए, कोई आप पर हमला न कर दे, कोई आपकी भलमनसाहत का अनुचित फायदा न उठा ले—इस दृष्टि से आपके जागरूक रहने की भी जरूरत है और उदार रहने के लिए? दूसरों की सेवा करने के लिए मैं आपसे कब मना करता हूँ? दूसरों की सहायता करने के लिए मैं आपसे कब मना करता हूँ? लेकिन मैं यह कहता हूँ कि आप ऐसा मत कीजिए कि आपकी सद्भावना और उदारता का लोग अनुचित लाभ उठा जाएँ और आपको उल्लू बनाते फिरें। ऐसा मत कीजिए। जागरूक भी रहिए और उदार भी बनिए। दोनों का समन्वय कीजिए। आप सज्जन भी रहिए और शूरवीर भी रहिए। नहीं, हम तो सज्जन रहेंगे। सज्जन रहेंगे, तो क्या कायर बनेंगे? सज्जन का मतलब क्या यह होता है कि कोई आदमी आपकी बहिन-बेटी से छेड़खानी करे और आपके प्रति बुरा सलूक करे तब भी आप सब कुछ देखते-सहते रहें? यही सोचते रहेंगे कि हमें क्या करना है, भगवान की मर्जी है, ऐसा ही हमारे भाग्य में लिखा है, तब आप ऐसा ही करेंगे। नहीं, सज्जन तो बनिए; लेकिन उसके साथ में अपनी शूरवीरता को गँवाइए मत। सज्जन इसीलिए हारते रहे हैं कि उन्होंने शूरवीरता गँवा दी। सज्जन हो गये, तो कायर हो गये। सज्जनता का अर्थ कायरता नहीं होता। सज्जनता के साथ में शूरता की भी प्रमुखता रहनी चाहिए। आप समग्र जीवन जिएँ। सज्जन भी बनें और शूरवीर भी बनें, उदार भी बनें और जागरूक भी बनें, नम्र भी बनें और सम्मान भी दें। इसी तरीके से जीवन में दोनों को मिला करके जियेंगे, तो बहुत अच्छा रहेगा।
आप जा ही रहे हैं तो एक और नया दृष्टिकोण बना करके जाइए कि हमारे आप सघन मित्र और सहयोगी हैं। आप गुरु-चेले की बात मत कीजिए। गुरु-चेला उसे कहते हैं, जो दिया करता है और लिया करता है। आप ऐसा मत कीजिए। आप हमारे सहयोगी और मित्र बन जाइए। मित्र मुझे बहुत पसन्द रहे हैं। मित्रों को मैं बहुत प्यार करता हूँ। क्यों? क्योंकि मित्र कीमत चुकाकर कीमत उतार देते हैं और भिखारी, गुरु-चेले? ये ऐसे ही हैं, चावल दे दिये, माला पहना दी, बस प्रसन्न हो गये। आप ऐसा मत कीजिए। आप मित्र बन जाइए हमारे। कैसे मित्र बनें? आप हमारा सहयोग कीजिए, हम आपका सहयोग करेंगे। अन्धे और पंगे का उदाहरण पेश कीजिए। अन्धे को आँख से दिखाई नहीं पड़ता था और पंगा चल नहीं सकता था। दोनों ने आपस में मित्रता बना ली और मित्रता बना करके एक नदी पार कर ली, आपने सुना होगा, हमारे और हमारे गुरुदेव के बारे में यही हुआ। हमारे गुरुदेव पंगे हैं; क्योंकि जिस सीमा में वह काम करते हैं, वहाँ से दौड़-धूप करना उनके लिए मुमकिन नहीं और हम अन्धे हैं। हमारे पास न ज्ञान है, न विचार है। हम दोनों ने आपस का तालमेल बिठा लिया है और तालमेल बिठा करके अन्धे और पंगे की तरह नदी पार करने का फैसला कर लिया है। आप भी ऐसा ही कर लीजिए। आप शान्तिकुञ्ज के साथ वही रिश्ता बना लीजिए, जो रिश्ता अन्धे और पंगे का है। आप ज्ञान के अभाव में, विचारों के अभाव में भटकने वाले हैं और हम पंगे हैं। हम सारे संसार में किस तरीके से काम करेंगे? हम और आप दोनों ही मिलें, तो मजा आ जाए। आप पीछे के लिए क्या छोड़ जाएँगे, मुझे मालूम नहीं। दौलत नहीं छोड़ पाये, तो हर्ज नहीं है; लेकिन आप ऐसी चीज छोड़कर चले जाएँ, जिससे आपकी औलाद यह कहती रहे कि हम ऐसे शानदार आदमी की सन्तान हैं। आप शानदार के लिए पीछे वालों के लिए ऐसा रास्ता छोड़कर जाइए, जिस पर चलने वाले दूसरे लोग सराहते रहें कि हमको कोई रास्ता बता गया था, किसी ने हमको रास्ता दिखाया था, जिस पर हम चले और चलने के बाद में अपनी नाव को पार कर लिया और दूसरों की नाव को पार लगा दिया। आप ऐसा रास्ता अपनाइए। नई जिन्दगी जीइए, नया चिन्तन ग्रहण कीजिए, नया दृष्टिकोण अपनाइए, नई हिम्मत से काम लीजिए और नया जीवन जीने की तैयारी करके यहाँ से विदा होइए। बस, हमारी बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥