हम हवन कराते हैं, पर देवताओं को बरगलाने के लिए नहीं कराते। हमारा मकसद है कि इनसान के भीतर का जो देवता सो गया है, रूठ गया है, मूर्च्छित पड़ा हुआ है, उसको हम जगा दें। इसके लिए हम अगले दिनों एक आन्दोलन शुरू करना चाहते हैं- बलिवैश्व यज्ञ का। ....हर आदमी को बलिवैश्व करना ही चाहिए। इसे नित्यकर्म में सम्मिलित करना ही चाहिए। लोगों को नित्यकर्म का पता ही नहीं। हर मुसलमान जानता है कि नमाज किसे कहते हैं। पर आपको संध्या का अर्थ ही नहीं मालूम कि यह कैसे और किस टाइम की जाती है। ....गायत्री माता के तरीके से यज्ञ पिता भी हमारे पूजा करने के लायक है। उसका प्रतीक बलिवैश्व है। हर दिन भोजन करने से पहले उनको पाँच ग्रास अपने चौके में जो बना है, उसमें से निकालकर उसमें हवन करना पड़ता है। इससे क्या फायदा होता है? इससे यह फायदा होता है कि यह बात हमारे ध्यान में आती है कि रोटी खाने से पहले देवता का हक है। देवता भी आपके हिस्सेदार है। देना, देकर खाना देवत्व की निशानी है। इस यज्ञीय परंपरा का विस्तार होना ही चाहिए। - वांगमय-/
यज्ञ भगवान हैं, जो प्रत्यक्ष हैं और आपके हाथ का भोजन करने में समर्थ हैं। यह आपको प्रकाश देते हैं, गरमी देते हैं, ज्ञान देते हैं और आपके उज्ज्वल भविष्य की संभावना का आश्वासन देते हैं। ऐसे हैं यज्ञ भगवान, जिनको हम व्यापक बनाना चाहते हैं, जिनका हम पूजन करना चाहते हैं और जिनको हम जनमानस में प्रतिष्ठापित करना चाहते हैं। आप भी उसी का प्रचार-विस्तार करने के लिए जाइए। अपने घरों में बलिवैश्व के रूप में इन यज्ञ भगवान की प्रतिष्ठापना कीजिए और समाज में इनकी परंपरा को फैलाने के लिए प्राणपण से प्रयत्न कीजिए। - प.पू. गुरुदेव अखण्ड ज्योति, जुलाई २००८ पृ.५२