उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
दीप हूँ जलता रहूँगा ।
मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।।
पार जाऊँगा मेरा साहस, कभी हारा नहीं है।
जो मिटा अस्तित्व दे, ऐसी कोई धारा नहीं है ।।
कौन रोकेगा स्वयं तूफान, थककर रुक गये हैं ।
हर लहर मेरा किनारा, ध्येय तक बढ़ता रहूँगा।।
दीप हूँ जलता रहूँगा ।
मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।।
तोड़ दी अवरोध की सारी, शिलाएँ एक क्षण में ।
मैं धरा का प्यार मुझको, स्नेह देते सब डगर में।।
शीत वर्षा और आतप कर, न पाये क्षीण गति को।
बिजलियों की कौंध में भी, पंथ गढ़ता ही रहूँगा।।
दीप हूँ जलता रहूँगा ।
मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।।
कर लिया विषपान शिव हूँ, मृत्यु मेरा क्या करेगी।
मैं स्वयं जय हूँ, पराजय फिर मुझे क्यों कर वरेगी॥
बन स्वयं वरदान मैंने श्राप को दे दी चुनौती।
हूँ स्वयं संकल्प पथ पर सतत बढ़ता ही रहूँगा ॥
दीप हूँ जलता रहूँगा ।
मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।।