उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
तुझे मिला कंचन सा जीवन, तूने उसे गँवाया।
बना कोयला चंदन का यूँ, भला कौन सुख पाया?
बता कौन सुख पाया?
सृष्टा का तू बहुत लाड़ला, राजकुँवर कहलाया।
नहीं पिता के कामों में पर, तूने हाथ बँटाया॥
तुझे श्रेष्ठ संतान समझकर, काम गया तो सौंपा।
वह भारी दायित्व न बिल्कुल, तूने कभी निभाया॥
हीरा सा अनमोल जनम यह, तू पहचान न पाया।
कंकड़ सा बेमोल समझकर, क्यों उसको ठुकराया?
बता कौन सुख पाया?
तुझे मिला कंचन सा जीवन॥
कभी न ऊँचे आदर्शों का, दीखा तुझे सबेरा।
कभी प्यार ममता करुणा से, भरा नहीं मन तेरा॥
अहंकार की चट्टानें, आ गईं बीज राहों में।
लाभ और लिप्सा ने तुझको, कदम-कदम पर घेरा॥
हर चमकीली लहर देखकर, मन में तू ललचाया।
पानी में बुलबुला बना तू, कौतुक मात्र दिखाया॥
बता कौन सुख पाया?
तुझे मिला कंचन सा जीवन॥
अब भी तू पहचान स्वयं को, तूने जिसे भुलाया।
तू है कौन पुत्र किसका है, और कहाँ से आया?
लक्ष्य कहाँ है राह कौन है, तू यह समझ न पाया।
और यहाँ तू सपनों में ही, अब तक है भरमाया॥
अगर नहीं अब भी विवेक से, तूने कदम बढ़ाया।
तुझे दण्ड देगी कल निश्चय, महाकाल की छाया॥
बता कौन सुख पाया?
तुझे मिला कंचन सा जीवन, तूने उसे गँवाया।
बना कोयला चंदन का यूँ, भला कौन सुख पाया?
बता कौन सुख पाया?