उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
जब तक है विश्वास लगन, दृढ़-क्षमता की पतवार।
माँझी भय क्या तुझे? भले ही, आँधी या मझधार॥
आज उदिध सीमा-बन्धन से, मुक्त हो रहा ले अँगड़ाई।
लहरों के विद्रोही उर में, जाग उठी सोई तरुणाई॥
जाने क्यों? विक्षुब्ध हृदय में, आया उसके ज्वार।
झूम-झूम कर खेते जाना, मत होना लाचार॥
जब तक है विश्वास लगन, दृढ़-क्षमता की पतवार।
माँझी भय क्या तुझे? भले ही, आँधी या मझधार॥
खेल खेलने ही आता है, साहस से तूफान बिचारा।
जहाँ चाह है वहाँ राह है, निकट इसी से सदा किनारा॥
मंजिल स्वयं चली आयेगी, थककर तेरे द्वार।
झुका न देना भाल कहीं तू, इस जीवन में हार॥
जब तक है विश्वास लगन, दृढ़-क्षमता की पतवार।
माँझी भय क्या तुझे? भले ही, आँधी या मझधार॥
थक जायेगी डगर एक दिन, गति में यदि आये न शिथिलता।
मिल जायेगी शान्ति सुनिश्चित, अधरों पर आये न विकलता॥
शूलों की नोकों पर खिलते, सुन्दर सुमन अपार।
भूल न जाना पंथ घिरा हो, चहुँ दिशि में अँधियार॥
जब तक है विश्वास लगन, दृढ़-क्षमता की पतवार।
माँझी भय क्या तुझे? भले ही, आँधी या मझधार॥