उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
सीख नहीं पाये चादर ओढ़ने का ढंग रे।
मैली चादर पर कैसे चढ़ पाये रंग रे॥
हमें मिली चादर उजली मैली कर डाली,
जिधर गये हमने उतनी कालिमा लगा ली।
मैली अब अंतरंग है, मैला बहिरंग रे,
मैली चादर पर कैसे चढ़ पाये रंग रे॥
आओ हर कल्मष मन का सेवा से धो लें,
सबको अपना लें मन से हम सबके हो लें।
सेवा है सच्ची पूजा सेवा सत्संग रे,
मैली चादर पर कैसे चढ़ पाये रंग रे॥
सबका दुःख-दर्द बटाएँ अपना सुख बाँटें,
हृदय-हृदय की खाईं को हँसकर हम पाटें।
किये नहीं तीरथ चाहे गये नहीं गंग रे,
मैली चादर पर कैसे चढ़ पाये रंग रे॥
परहित में अपने साधन समय हम लगायें,
मन का हर मैल घुले फिर, पुण्य हम कमाएँ।
हर कोना हो फिर उजला, उजला हर अंग रे,
मैली चादर पर कैसे चढ़ पाये रंग रे॥
निर्मल आचरण बनेगा, चमकेगा चिन्तन,
बहुत-बहुत चौड़ा होगा, भावों का आँगन।
नहीं कभी होगी मन की गली कहीं तंग रे,
मैली चादर पर कैसे चढ़ पाये रंग रे॥
जीवन में शेष रहेगी, फिर नहीं निराशा,
पल भर आलस्य न होगा फिर कहीं जरा सा।
होगा उत्साह अनोखा, नित नयी उमंग रे,
मैली चादर पर कैसे चढ़ पाये रंग रे॥