उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
देख खुला है द्वार पुजारी, देख खुला है द्वार पुजारी।
बैठ गया क्यों फेंक धूल में, फूलों का यह हार पुजारी॥
स्वर्ण कमल से खिले हुए हैं, मंदिर के वे कलश मनोहर।
मृदुल पवन के शुभ अंचल में, फहर रहा पावन ध्वज सुंदर॥
नयन मूद तू सोच रहा क्या, देख तनिक उस पार पुजारी॥
क्या सहलाता इन छालों को, तू पूजा का थाल उठा ले।
देख रहा तू क्या पथ पर ये, पर्वत ये नदिया ये नाले॥
शीतल हो जायेंगे क्षण में, ये जलते अंगार पुजारी॥
भाव प्रवाह उमड़ने दे तू, लहराने दे पावन सागर।
मिल जायेगीं नदियाँ उसमें, डूबेंगे नभचुम्बी गिरिवर॥
रुक न सकी है अब तक जग में, शुद्ध प्रेम की धार पुजारी॥
थाल सजाए आज जा रहा, तू जिसकी पूजा करने को।
आयेगा वह स्वयं दौड़कर, तुझसे पथ में ही मिलने को॥
गूँथ हृदय के पुष्प तुझे वह, पहनाएगा हार पुजारी॥