उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में (विचारों में) ढूँढ़ेगी।’’ — वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। —पूज्य गुरुदेव
भगवान् के अनुदान किन शर्तों पर मिलते हैं
(13-4-1979 को दिया गया उद्बोधन)
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्!
देवियो, भाइयो! अनुग्रह और मनुहार, इन दोनों का आपस में संबंध तो है और ये क्रम चलता भी है। इसको हम शाश्वत सिद्धांत महसूस कर सकते हैं। मनुहार, खुशामदें, मिन्नतें, प्रार्थनाएँ, आप इन्हें कीजिए, इनकी भी आवश्यकता है। यह क्रम भी इस दुनिया में चलता तो है। मैं यह तो नहीं कहता कि यह क्रम चलता नहीं है, पर क्या अनुग्रह मिलते भी हैं? हाँ, अनुग्रह भी मिलते रहते हैं। अनेक आदमी जीवित हैं, अपंग भी इसी पर जीवित हैं, अंधे भी इसी पर जीवित हैं, दुर्बल भी इसी पर जीवित हैं और सिद्धांत भी अनुग्रह के ऊपर जिंदा है। अनुग्रह दुनिया में से खत्म हो चला? नहीं बेटे! खत्म होने की बात नहीं कहता, पर मैं यह कहता हूँ कि सिद्धांत और इसके आधार पर कोई बड़ी लंबी योजना नहीं बन सकती है और कोई महत्त्वपूर्ण कार्य इसके आधार पर सिद्ध नहीं हो सकता।
मित्रो! अगर आप कहें कि अनुग्रह के आधार पर कृपा कीजिए, हमारी सहायता कीजिए, हमको ये दीजिए। लेकिन क्या ये चलेगा? चल तो सकता है, पर वहाँ तक शोभा नहीं देता, जहाँ तक आदमी स्वयं में समर्थ हो। जैसे बच्चा, बच्चा क्या करता है? बच्चा स्वयं में असमर्थ होता है, कुछ कमा नहीं सकता। इसलिए कुछ कमा सकने की स्थिति में न होने की वजह से, असमर्थ होने की वजह से माँ-बाप उसकी सहायता करते हैं। बच्चे को रोटी देनी चाहिए, कपड़े देने चाहिए, सहायता देनी चाहिए। बच्चे की मनःस्थिति माँगने की होती है, क्योंकि वह विकसित नहीं है।
बालक जैसी मनःस्थिति
अविकसित जितने भी प्राणी हैं, खासतौर से मनुष्य, उनकी पहचान एक है। क्या पहचान है? ये पहचान है कि वे माँगते रहते हैं। माँगता हो तो आप क्या कहेंगे उसको? चाहे बड़ी उम्र का भी हो जाए तो भी क्या कहेंगे? तो मैं उसको बच्चा कहूँगा। बच्चा बड़ी उम्र का? हाँ बड़ी उम्र के भी बच्चे होते हैं। मन:स्थिति की दृष्टि से वे सब आदमी बच्चे हैं जो अपने पुरुषार्थ के ऊपर निर्भर नहीं हैं, दूसरों से माँगकर अपना काम चलाने के इच्छुक हैं। इसी से वे अपना गुजारा करते हैं। ये भौतिक दृष्टि से, भावनात्मक दृष्टि से बालक हैं। बालकों को मिलता है? हाँ बालकों को भी मिलता है। बालकों को क्या-क्या मिलता है बताइए जरा? बालकों को रबड़ की गुड़िया मिलती है और क्या मिलता है? गुब्बारा मिलता है? लेमनचूस मिलता है और क्या मिलता है? टॉफी मिलती है और क्या मिलता है, झुनझुना मिलता है। नहीं साहब! बड़ी चीज बताइए। बेटे! बड़ी चीजें नहीं मिलती। माँ-बाप बच्चों को प्यार करते हैं? बहुत प्यार करते हैं, लेकिन कीमती चीजें? कीमती चीजें आपको नहीं मिल सकती, क्योंकि आप बच्चे हैं।
मित्रो! बच्चों को कभी कीमती चीजें नहीं मिलती हैं। उनका मनोविनोद करने के लिए खेल-खिलौने, उनका मन रखने के लिए, तबियत बहलाने के लिए उनको जो कुछ चीजें दी जा सकती हैं, वे टिकाऊ नहीं होती। तो क्या बड़ों को भी मिलती हैं? हाँ बड़ों को भी मिलती है। बड़ों को कब मिलती हैं? बड़ों को तब मिलती हैं जब वे मुसीबत में फँसे हुए होते हैं। जैसे मान लीजिए कि वे दुर्घटनाग्रस्त हो गये हों, अकाल से पीड़ित हो गए हों, कोई दूसरी मुसीबतें आ गई हों, रेलवे में एक्सीडेंट हो गया हो। साहब! मुसीबत में हमारी सहायता कीजिए। हम जरूर सहायता करेंगे आपकी, लेकिन कब तक? सवाल यह है कि कब तक सहायता करेंगे हमेशा, जिंदगी भर? नहीं बेटे, जिंदगी भर नहीं कर सकते।
अच्छा तो कब तक करेंगे? सिर्फ उस समय तक करेंगे, जब तक अपने पैरों पर आप खड़े नहीं हो जाते, बस। बाद में? बाद में नहीं करेंगे। अगर आप कहेंगे कि हम मुसीबत में फँसे हुए हैं और सारी जिंदगी भर के लिए आप हमारा ठेका ले लीजिए, तो ये मुश्किल है। साहब! हम पाकिस्तान से आए हैं, तो आप हमारा गुजारा कीजिए? हम तो शरणार्थी हैं। ठीक है आप शरणार्थी हैं, तो हम थोड़े दिन आपकी सहायता करेंगे। इंसान को इंसान की सहायता करनी चाहिए, पर आप इसे सिद्धांत बनाकर नहीं चल सकते। सिद्धांत मत बनाइए। सिद्धांत बना देंगे तो मुश्किल हो जाएगा।
मित्रो! बच्चा जब बड़ा हो जाता है तब माँ-बाप की त्यौरियाँ बदलती देखी हैं कि नहीं आपने? वे कहते हैं कि तुझे शरम नहीं आती है, पच्चीस साल का हो गया है, मूँछें निकल आई हैं, कमाई के लायक हो गया है। पच्चीस साल में बी.ए. पास करा दिया है, एम.ए. पास करा दिया। अब कमा कर ला। नहीं पिताजी पैंट बनवा दीजिए, नहीं पिताजी सिनेमा देखने के लिए पैसे दे दीजिए, नहीं पिताजी ये दे दीजिए। सबके माता-पिता दे भी देते हैं, पर आपने देखा नहीं ! देते समय उनका चेहरा कैसे बदल जाता है, तेवर कैसे बदल जाते हैं। क्यों बदल जाते हैं? इसलिए कि ये अपने आप में कमाने लायक हो गया है। इसको अब हमारी मदद करनी चाहिए थी, जबकि ये उलटा हम से ही माँगता है। ये स्थिति किसकी कह रहा हूँ मैं? बच्चों की कह रहा हूँ। उन व्यक्तियों की कह रहा हूँ जो अनुग्रह के ऊपर और मनुहार के ऊपर जिंदा रहना चाहते हैं।
मनुहार पर नहीं पात्रता के विकास पर टिकें
मित्रो! मनुहार किसे कहते हैं? खुशामद को कहते हैं। खुशामद भी एक सिद्धांत है। बिना माँगे किसी को क्या पता चलेगा कि आपको क्या जरूरत है? क्या आप जरूरत की बात नहीं कहेंगे? आप जरूरत की बात कहिए। जरूरत की बात कहेंगे तो चीजें मिल जाएँगी? हाँ चीजें तो मिल जाएँगी, लेकिन नुकसान हो जाएगा। क्या नुकसान हो जाएगा? जैसे ही चीज मिलेगी उससे ज्यादा कीमती चीज हाथ से चली जाएगी। क्या चला जाएगा? आपका स्वाभिमान चला जाएगा। आप किसी से बिना कीमत चुकाए, अहसान में कोई चीज ले लेते हैं, तो आपका सिर नीचे झुक जाएगा। आप नीचे हो जाएँगे और आप दूसरे दरजे के व्यक्ति हो जाएँगे और आपको दूसरे के आगे आँखें नीची करनी पड़ेंगी। अगर आप कृतज्ञ हैं तो तुरंत अपनी कृतज्ञता का इजहार कीजिए। "थैंक्यू वैरी मच' कहिए। आपने हमको पानी पिला दिया, आपने हमको बतला दिया, अहसान है।
आदमी दूसरों की सहायता पाकर के लाभ तो उठा सकता है, लेकिन दबता है। दबना? हाँ दबना। जहाँ तक मनुष्य के आध्यात्मिक स्तर का सवाल है, दबना आदमी के लिए खराब है। आदमी को दूसरों के अहसान से नहीं दबना चाहिए। दूसरों की दूसरी चीजों से दबना चाहिए जैसे प्यार से दब सकते हैं तो दबिए आप। दूसरों से प्यार करते हैं। माँ का आपसे प्यार है। माँ हम आपके बहुत अहसानमंद हैं। लेकिन आप पैसे के संबंध में और रोटी के के संबंध में मत दबिए। रोटी भगवान् ने आपको नहीं दी है? आप इज्जत वाले हैं, स्वाभिमानी हैं। आपसे कोई कहे खाना खा लें, हाँ साहब खाना खाकर आ रहे हैं। नहीं साहब रोटी खा लीजिए। नहीं खाई हो, शायद आपके घर में आजकल रोटी की तंगी हो, तो भी आपको कहना चाहिए कि नहीं साहब! कोई दिक्कत की बात नहीं है। भगवान् की कृपा है। रोटी तो देर-सबेर मिल ही जाती है, फिर आपके यहाँ क्यों खाएँगे? अच्छा जब न हो तो आप हमारे यहाँ खाइए। आपकी बड़ी कृपा है, आपने पूछ लिया यही क्या कम है। आप खा लीजिए। आपको रोटी नहीं खानी चाहिए। ठीक है कोई आपका ऐसा निजी दोस्त है, जिगरी दोस्त है, जो आपके यहाँ खा जाता है और आप उसके यहाँ खा लेते हैं। उसकी बात नहीं कहता हूँ मैं, पर ऐसे सामान्य नियम की बात कहता हूँ कि आपको दूसरों की सहायता पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
किसकी बात कह रहे हैं? लौकिक जीवन की। बेटे, सिद्धांत तो वही है। आज आप लौकिक जीवन में इसे व्यवस्थित कर लीजिए अथवा पारलौकिक जीवन में व्यवस्थित कर लीजिए। नहीं साहब! आध्यात्मिकता में तो माँगना-ही है। बेटे, माँगना नहीं है आध्यात्मिकता में, किसने कहा था आपसे? नहीं साहब, अध्यात्म में सारी प्रार्थना-ही भरी है। प्रार्थना का मतलब यह नहीं है, जो आपने समझा है कि आप माँगेंगे और मिलेगा। "माँगेंगे और मिलेगा" का सिद्धांत, ये शायद आध्यात्मिकता की व्याख्या करने में बहुत गलती हो गई। यही कारण है कि आदमी आज स्वाभिमानी और स्वावलंबी कम होते जा रहे हैं। आध्यात्मिकता ने कितना फायदा किया है वर्तमान में, यह मैं नहीं जानता, पर रूहानी दृष्टि से आज की आध्यात्मिकता ने आदमी का नुकसान किया है। क्या नुकसान किया है? आदमी को परावलम्बी बना दिया है। परावलम्बन माने दूसरों की तरफ मुँह ताकने वाला, दूसरों से अपेक्षाएँ करने वाला, दूसरों से आशाएँ रखने वाला। किसके लिए? अपनी जिंदगी की नाव ढोने के लिए। इससे आपको दूसरों के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है। इससे आपको क्या मिल गया? क्या मिला मैं नहीं जानता, लेकिन सबसे कीमती चीज जो आपकी 'शर्म' थी वह आपने गँवा दी।
इस संबंध में मुझे एक घटना याद आ गई। क्या घटना याद आ गई? एक बार संत इमरसन के पास एक आदमी आया। वह हट्टा-कट्टा था, जवान था। माँगने लगा, तो उनसे कुछ कहते तो नहीं बना, पर उन्होंने क्या किया कि एक कपड़ा उठाकर अपना मुँह ढक लिया। दूसरों ने कहा साहब आपको देना है तो दे दीजिए, नहीं देना तो इसे मना कर दीजिए। कपड़े से मुँह ढक लिया, ये क्या करते हैं आप? उन्होंने कहा, "मुझे देने में ऐतराज नहीं है, पर इस आदमी को देखने का मेरा मन नहीं। क्यों? क्योंकि इस आदमी ने इंसान की इज्जत को गँवा दिया। हट्टा-कट्टा होते हुए भी, जवान आदमी होते हुए भी, अपने हाथ-पैर से, अपने पुरुषार्थ से अपना गुजारा करने में समर्थ होते हुए भी यह यहाँ हाथ पसारने आया है। इंसानियत को कलंकित कर दिया इसने। इसीलिए मुँह ढक लिया मैंने।"
मित्रो! न जाने किसलिए, न जाने क्यों, न जाने कैसे हो गया कि आध्यात्मिकता का स्वरूप आज ऐसा बना दिया गया कि इनसे माँगना चाहिए। किससे माँगना चाहिए? देवता से माँगना चाहिए। देवता को तो देना चाहिए। "दानात् वा सा देवता।" देवताओं को सहायता करनी चाहिए। नहीं साहब, देवता से तो माँगना चाहिए। अच्छा बेटे और किससे माँगना चाहिए? संत पुरुषों से माँगना चाहिए, दिव्य पुरुषों से माँगना चाहिए, अमुक से माँगना चाहिए। नहीं बेटे ! संत पुरुषों की सेवा करनी चाहिए, सिद्ध पुरुषों की सहायता करनी चाहिए। आपको मालूम है कि मंदिर में जाने का एक नियम है। मंदिर में आप जाएँ, तो फल-फूल लेकर के जाएँ। नहीं गुरुजी! हम तो ऐसे ही दर्शन करेंगे। नहीं बेटे! ऐसे दर्शन नहीं करना, देवता नाराज हो जाएँगे। यह प्राचीनकाल की परंपरा है, आज की तो मैं नहीं कह सकता। कहीं भी आप किसी देवमंदिर में जाएँ तो पत्र-पुष्प लेकर जाना, फल लेकर के जाना, कुछ-न लेकर के जाना और चढ़ाना, तब नमस्कार करना। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि आप कुछ देकर के आइए। आप लेकर के आएँगे? लेकर नहीं बेटे, देकर के आना। यह परंपरा आध्यात्मिकता की परंपरा है।
हमें देना आना चाहिए
जिस देवपरिवार में हम शामिल होते हैं, उस देव परिवार में शामिल होने का मतलब है कि हमारे भीतर देवत्व का विकास होना चाहिए। देवत्व का विकास किस तरीके से होता है? देवत्व का विकास इस मायने में होता है कि आदमी दिल से उदार हो जाता है। उदार होकर आदमी यह सीखता है कि हमको देना आना चाहिए। किसको देना चाहिए? सबको देना चाहिए, अपने शरीर को देना चाहिए ताकि यह धन्य हो जाए और अपने दिमाग को देना चाहिए ताकि यह शांत हो जाए। हमारा मस्तिष्क बहुत अशांत रहता है, बहुत परेशान रहता है। दिमाग को कुछ ऐसी चीज देनी चाहिए, जिससे यह शांत रह सके, खुश रह सके। और क्या करना चाहिए? आपको अपने शरीर को देना चाहिए। शरीर को क्या देना चाहिए? शरीर बेचारा मुसीबत में फँसा हुआ है, रोज-रोज बीमार पड़ जाता है, रोज-रोज कमजोर हो जाता है, इसे कुछ देना चाहिए। इस शरीर के आप देवता हैं न? हाँ, देवता हैं तो आप दीजिए कुछ इसको। नहीं साहब, हम क्या कर सकते हैं? आप सब कुछ कर सकते हैं। आप मुसीबत में फँसी हुई अपनी देह को निश्चित रूप से बीमारियों से छुट्टी दिला सकते हैं। निजात दिला सकते हैं।
बीमारियों से आप कैसे सहायता कर सकते हैं? चंदगीराम पहलवान को टी.बी. की शिकायत थी। बाईस साल की उम्र में को टी.बी. इस कदर हो गई थी कि फेफड़े में से खून आने लगा था और मरने के दिन नजदीक थे। किसी ने उनको यह सलाह दी कि हकीमों का इलाज कराने के साथ आप अपना इलाज स्वयं करिए। पहला इलाज क्या है? अपनी जीभ के ऊपर और अपनी इंद्रियों के ऊपर, आदतों के ऊपर कंट्रोल कीजिए। उन्होंने अपनी आदतों पर कंट्रोल करना शुरू कर दिया। वर्जिश की और बीमारी से छुटकारा पा लिया।
साथियो! जीभ जो आसमान से पाताल तक जाती है और आपकी पिटाई कराती है। आपकी पिटाई किसने कराई है बताना जरा? आपको पिटाई जीभ ने कराई है। यह तो उलटा-सीधा कहकर लपालप मुँह में घुस जाती है और जूते आपके सिर पर पड़ती। जहाँ जाते हैं वहीं जूते पड़ जाते हैं। किस-किस के पड़े? आपकी बीबी के पड़े, बीबी के पड़े? बीबी ने जूते चप्पल तो नहीं मारे, पर आपके साथ ऐसा व्यवहार किया जो जूते से भी ज्यादा था। जीभ पर काबू नहीं है आपका। अल्लम-गल्लम बकते रहते हैं। मोहब्बत करना आता नहीं, शऊर है नहीं, तमीज है नहीं कि इंसान के साथ किन शब्दों में बात करें। इंसान की इज्जत की रखवाली करने के बाद में आदमी से सहानुभूति किस आधार पर माँगनी चाहिए, आपको मालूम ही नहीं है। हावी होते जाते हैं। जूते पड़ेंगे आपके, अभी और पड़ेंगे।
मित्रो! जीभ ने क्या कर दिया? जीभ ने आपकी सेहत खराब कर दी। सेहत को खराब करने की जिम्मेदारी एक आदमी की है। जिसने आपकी अच्छी-खासी तंदुरुस्ती को तबाह कर डाला है। ये कौन है? इसका नाम है जीभ। हकीम लुकमान सही कहते थे कि आदमी अपने मरने के लिए और दफन होने के लिए जो कब्र खोदता है, वह अपनी जीभ की नोक से खोदता है। यह सच है? हाँ यह बिल्कुल सच है कि आदमी अपनी जीभ की नोंक से अपनी कब्र खोदता है। आपने जो खाया है, जरा उसकी लिस्ट लाइए। क्या खाया है? आपने जहर खाया है और वो चीज खाई हैं, जो आपको नहीं खानी चाहिए थीं। आपने जिस तरीके से खाई हैं, उस तरीके से नहीं खानी चाहिए थीं। आपने चीजों को नहीं खाया है, वरन् चीजों ने आपको खा लिया। अब आप क्या शिकायत करते हैं? आपने बदतमीज़ी से और बेहूदगी से चीजों को खाया है। अब बेहूदे तरीके से खाने की वजह से ये बेहूदी चीजें आपका सफाया करती हैं। यह कौन करती है? जीभ करती है।
मित्रो! अब आप क्या कर सकते हैं? आप सेहत की एक तरीके से सहायता कर सकते हैं। देवपरिवार में आकर, आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करने के बाद में आपके लिए हम एक नीति तय कर देंगे। किसके लिए? जो भी हमारे नजदीक हैं उसके लिए। किस को देंगे? आप शरीर को दीजिए। आपका नजदीक घर, आपका सेवक, आपका स्वामिभक्त कुत्ता है—आपका शरीर, जो चौबीस घंटे आपके साथ रहता है। आपको उस पर दया नहीं आती, आपको करुणा नहीं आती। आप इसको दे सकते हैं। अगर दे सके तो चंदगीराम पहलवान की तरह से आप टी.बी. की बीमारी तक से निजात पा सकते हैं। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि आप सेहत पा सकते हैं, बशर्ते आप पहले जीभ पर काबू पाइए, जीभ पर अंकुश रखिए, डंडे लगाइए ऐसी जीभ पर जिसने आपको खा लिया। अगर आप जीभ पर काबू पा सकते हैं और इंद्रियों पर काबू पा सकते हैं तो चंदगीराम पहलवान के तरीके से आप अपनी सेहत फिर पा सकते हैं। निश्चित रूप से? हाँ निश्चित रूप से।
सेहत देवता व हकीम नहीं दे सकते
मित्रो ! सेहत कौन दे सकता है, देवता? देवता नहीं दे सकता। हकीम जी? हकीम जी भी नहीं दे सकते। क्यों साहब! हकीम जी के पास तो बहुत अच्छी-अच्छी दवाएँ हैं। बेटा बेकार की दवाएँ हैं। एक दिन हकीम जी से पूछा था कि क्यों साहब! आपके पास तो बहुत सारी दवाएँ हैं। क्या-क्या दवाएँ बेचते हैं? हम तो टॉनिक बेचते हैं। अहहा और क्या बेचते हैं? सब बीमारी की दवा बेचते हैं। अच्छा तो आप अपने खानदान वालों को खिलाकर दिखाइए। बीबी को क्या तकलीफ हो रही है? बीबी की साँस चल रही है। क्यों साहब! इनको आपने पहलवानी की दवा नहीं दी। पहलवानी की दवा क्या होती है? पहलवानी की प्रोटीनॉल, प्रोटिनेक्स, हॉरलिक्स और विटामिन बी कांपलेक्स, विटामिन बी-१२ आदि पच्चीसों दवाइयाँ हैं। इनको खाकर पहलवान हो जाएँगे। आपने इन बच्चों को नहीं खिलाया? अरे साहब सबको खिलाते हैं, किंतु हम जानते हैं कि ये बिल्कुल बेकार की चीजें हैं।
आप तो कह रहे थे कि इसमें इतनी ताकत है, इसमें इतनी प्रोटीन है, इसमें इतने विटामिन हैं। इसमें इतनी अधिक चीजें हैं, तो फिर आप बच्चों को क्यों नहीं खिला देते? आप तो गरीब हैं नहीं? गरीब तो नहीं हैं गुरुजी। इसमें कुछ तो है ही। ये तो प्रोटीन युक्त प्रोटीन्यूल है। दूध में मिलाकर खाते हैं और प्रोटीन मिल जाता है। ये भुना हुआ सोयाबीन का आटा है। विटामिन बी कांप्लेक्स क्या है? यह कुछ भी नहीं है, गेहूँ का छिलका है। छिलकों को पानी में भिगोकर जो मसाला निकल जाता है, उसी को बना लेते हैं। गेहूँ का छिलका जो गायों को फेंक देते हैं, भैंस को डाल देते हैं? हाँ साहब वही छिलका है। तो क्या ये सब फ्राड है? किनका फ्राड है? दवाफरोशों का फ्राड है, जो लोगों को सब्जबाग दिखा करके ये चीजें बेचते रहते हैं और कहते हैं हम आपकी सेहत अच्छी कर देंगे, आपको तन्दुरुस्त बना देंगे। अगर तन्दुरुस्त बना देते तो एक भी हकीम की घरवाली कमजोर न पाई जाती।
अच्छा, हकीम जी, आप अपनी बीबी को पेश करिए हमारे सामने। अच्छा तो यही हैं आपकी धर्मपत्नी। इनकी सेहत अच्छी होती, पर इनकी तो मिट्टी पलीद हो रही है। दवाई भी खिलाते हैं। क्या दवाई खिलाएँगे, ये तो बहकाने की दवाई हैं? हाँ बेटा! ठीक है आपका कहना। दवा वाले अपना गुजारा कर रहे हैं, कैमिस्ट अपना गुजारा कर रहे हैं, कंपाउंडर अपना गुजारा कर रहे हैं। लेकिन अच्छी सेहत पानी है तो कौन दे सकता है? आप दे सकते हैं, आपके अलावा और कोई नहीं दे सकता। आपके अलावा कोई मरीज नहीं है और न आपके अलावा दुनिया के परदे पर आपके लिए कोई हकीम है। दूसरों के लिए तो हो भी सकते हैं, पर आपके लिए आप ही हकीम हैं। कैसे हो सकते हैं? अगर आप ये निश्चय कर लें कि हमको इस शरीर को देना है। क्या देना है? इस शरीर को ख्याति देनी है, यश देना है, अजर-अमर बनाना है। लोगों की निगाहों में इज्जतदार बनाना है, जिससे कि आपकी फोटो देखकर लोग आँखें नीची कर लिया करें। यह सब आप दे सकते हैं। कब? अगर आप देने की आदत सीख लें तब।
मित्रो! अगर आप देने की आदत सीख लें तब? तब आप अपने दिमाग को ऐसी चीजें दे सकते हैं कि आपका दिमाग कहे कि हमको लंबी जिंदगी जीने का मौका इन्होंने दिया। किसको? दिमाग को! दिमाग क्या है? दिमाग बेटे वो है जो हमारी भीतरी और बाहरी जिंदगी के ऊपर पूरी तरह से कंट्रोल करता है। दिमाग को आपने गरम कर डाला है। दिमाग बेशक जलता रहता है। कैसे जलता रहता है? जैसे श्मशान जलता रहता है और उस श्मशान में भूत और पिशाच जलते रहते हैं। इस तरह से हमारा बेहतरीन कंप्यूटर जलता रहता है। चिंताओं की वजह से, फिक्र की वजह से, द्वेष की वजह से, ईर्ष्या की वजह से, अमुक की वजह से। क्यों साहब! ये बात सही है, आवश्यक है? नहीं बेटे! जरूरी नहीं है कि इन वजहों से ही आपका मस्तिष्क जलता रहता है। ये चीजें कतई जरूरी नहीं हैं।
क्यों साहब! इन परिस्थितियों में हर कोई जलेगा? नहीं, इन परिस्थितियों में हम आपको ढेरों आदमी बता देते हैं, जो आप से भी गई-बीती परिस्थितियों में थे, लेकिन प्रसन्न थे, हँस सकते थे। कैसे? दिमाग पर कंट्रोल रखते थे। जिस मशीन से जिंदगी की हर चीज का काम निकालना है, उसी को आप असंतुलित कर देते हैं। फिर बताइए कैसे काम चलाएँगे? समस्याओं को कैसे हल करेंगे? जो चीज आपके काम की थी दिमाग, उसको तो आपने गरम कर डाला, जला डाला। आप चाहें तो अपने दिमाग पर रहम कर सकते हैं। दिमाग पर क्यों? आप चाहें तो उसे जलन से बचा सकते हैं, जो चौबीसों घंटे जलता रहता है। रहम अगर हो तो आप अपने घर में जलते हुए जानवरों को निकाल सकते हैं। अगर आपको रहम नहीं हो तो कहेंगे कि मरने दीजिए। रहम हो तो दूसरों के ऊपर भी दया कर सकते हैं। अगर आपके भीतर रहम है तो फिर आपके भीतर वह ताकत है, शक्ति है, जिससे निश्चित रूप से आप अपने दिमाग को राहत दे सकते हैं। यह बेहतरीन कंप्यूटर है और यह करोड़ों रुपये कीमत का कंप्यूटर है।
अपना कंप्यूटर आप ही ठीक करें
मित्रो! आपने इसे गरम कर दिया। मशीन को ज्यादा गरम करने से तो हर चीज जल जाती है। पानी की मोटर जल जाती है, गाड़ी की मोटर जल जाती है। ज्यादा गरम कर देंगे, टेंप्रेचर बढ़ा देंगे तो वे जल जाएँगी। आपने अपने दिमाग को जला दिया और जली हुई मोटर जिस तरीके से खड़बड़-खड़बड़ करती है और धुआँ देती है, आपका दिमाग भी उसी तरह से हर वक्त धुआँ देता रहता है। आप अगर चाहते तो आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करके देवत्व ग्रहण करते और अपने दिमाग पर रहम कर सकते थे।
आप चाहते तो अपने शरीर पर रहम कर सकते थे। इसका फल जरूर मिलता, सेकण्डों में मिलता। फल? हाँ बेटे फल, अध्यात्म नकद धर्म है। आप सही तरीके से इसका इस्तेमाल तो कीजिए। आप सही तरीका ही नहीं जानते हैं, तो मैं क्या करूँगा। आपने एक ही चीज सीख रखी है, मनुहार और अनुग्रह। उसके सामने नाक रगड़ेंगे, इसके सामने मिन्नतें करेंगे, सब गोरखधंधा है। यही आध्यात्मिकता तो बताई गई है न आपको, बताइए नाक रगड़ना, मिन्नतें करना, मनुहार करना और अनुग्रह पाना।
मित्रो! आपका भगवत् भजन क्या है, आपकी संतोषी माँ की पूजा क्या है, आपका हनुमान चालीसा क्या है बताइए जरा? सारी-की धुरी का जब हम पोस्टमार्टम करते हैं, विश्लेषण करते हैं तो आज का अध्यात्म, पुरातन नहीं, पूरी तरह से इसी जंजाल में फँसा हुआ मिलता है। इसमें दो ही चीजें दिखाई पड़ती हैं, एक मिन्नतें दिखाई पड़ती हैं, मनुहार दिखाई पड़ती है और दूसरा इस मिन्नत मनुहार के बदले में अनुग्रह पाने की इच्छा मालूम पड़ती है। ये कहाँ तक सही है, बेटे मालूम नहीं, पर मैं जानता हूँ कि यह कहीं भी शोभा देने लायक नहीं है। आप इस आधार पर कोई बड़ी चीज नहीं पा सकेंगे।
कैसे बड़ी चीज नहीं प्राप्त कर सकेंगे? जैसे एक सेठ जी थे। उनके यहाँ एक पच्चीस-छब्बीस साल का लड़का आया। उसने कहा, कुछ काम-धंधा नहीं है हमारे यहाँ और आज रोटी भी नहीं मिली, सेठ जी हमारी कुछ सहायता कीजिए। मुनीम जी, देखना इसकी कुछ सहायता कर देना। मुनीम जी ने एक रुपया दिया और कहा लो भाई बाजार से रोटी खा लेना। साहब एक रुपये में रोटी कैसे मिलेगी? आप तो जानते ही हैं कि आजकल तीन रुपये में थाली मिलती है। एक रुपये में पेट नहीं भरेगा। अच्छा मुनीम जी इनको कुछ और दे दीजिए। तो फिर क्या दे दें? दो रुपये दे दो। अच्छा दो रुपये ले। भगवान् करे आपका कल्याण हो। सेठ जी बड़े उदार हैं, मुनीम जी बड़े उदार हैं, यह कहते वह चला गया। क्या ले गया? दो रुपया। कितनी बार कहा, कितना दीन बना, धन्यवाद कहा, तब जाकर के सेठ जी की कृपा से, मुनीम जी की सिफारिश से दो रुपये ले करके गया और अपना पेट भर लिया।
मित्रो ! थोड़ी देर में एक और लड़का आया। उसकी भी उम्र वही पच्चीस-छब्बीस साल थी, शकल-सूरत में भी बिल्कुल वैसा ही मिलता-जुलता था। जब वह आया तो मुनीम जी उठकर खड़े हो गए, सेठ जी भी उठकर खड़े हो गए। सेठ जी ने कहा, आइए, खैरियत तो हैं? बहुत दिन में आना हुआ। आइए, बैठिए साहब! सेठ जी ने अपना काम बंद कर दिया और नौकर से बोले, तू अख़बार ला, पंखा ला, चाय जल्दी ला, मिठाई ला। दो-तीन दिन तक ऐसी खुशामद की, ऐसी इज्जत की कि क्या कहने? जब विदा हुए तब तरह-तरह के उपहार दिए, पेंट-सूट दिया, किराये के लिए सौ रुपये दिए। टिकिट लाकर दिया। घर से गाड़ी में स्टेशन तक पहुँचाने के लिए गए। वह बार-बार कहता रहा कि आप क्यों कष्ट उठाते हैं? हमें इनकी क्या जरूरत है, रहने दीजिए। हम तो आपके बच्चे हैं। नहीं साहब! ये सब तो आपको लेकर जाना पड़ेगा। वही सेठ और वही मुनीम जोर दे रहे थे, दबाव डाल रहे थे कि नहीं साहब लेना ही पड़ेगा।
बेटे! लड़के दोनों ही थे; एक मिन्नतें कर रहा था, खुशामदें कर रहा था, तब दोनों की सिफारिशों से दो रुपये लेकर गया था और पीछे आशीर्वाद देकर गया था, लेकिन दूसरे को जो चीजें मिलीं। साहब ये क्या फर्क है? सेठ जी वही हैं, लड़के वही हैं। दोनों बाहर के थे, पर दोनों में फर्क था। क्या फर्क था? ये लड़का जो पीछे आया था, सेठ जी का जँवाई था। जँवाई क्या होता है? जँवाई उसे कहते हैं जिसके साथ लड़की की शादी कर देते हैं। तो आपने इसको क्यों दिया? इसलिए दिया जिससे ये हमारी बेटी की सहायता करे। इसकी कमाई के ऊपर हमारी बेटी की जिंदगी निर्भर है। इससे प्यार मिलता है, इसकी संपदा का वह फायदा उठाएगी। अच्छा तो आपने बेटी के पक्ष में इसकी सहायता की है। आप बिल्कुल सच कहते हैं। यह है तो एक लोकाचार, परंतु सही बात यह है कि सहायता प्राप्त करने की वजह से हमने इसको दिया है।
ये क्या कह रहे थे भिखारी और जँवाई की बात? हाँ बेटे, आपसे मैं इसलिए कह रहा हूँ कि आप शुरू से देखिए कि जिनसे आप मिन्नतें करते हैं, जिनसे आप कुछ पाना चाहते हैं, उनके दरवाजे पर आप भिखारी होकर जाते हैं कि जँवाई होकर। जामाता के लिए जँवाई शब्द बड़ा खराब है, पर आप मुझे कहने दीजिए। जब कोई और अच्छा शब्द मिल जाएगा तो मैं उसको इस्तेमाल करूँगा, अभी तो मेरे पास और कोई शब्द नहीं है। हाँ तो आप क्या चाहते हैं? बेशकीमती चीजें पाने के लिए, अच्छी चीजें पाने के लिए, इज्जत पाने के लिए आपको क्या करना चाहिए? आपको जँवाई बनना चाहिए। किनका जँवाई बनना चाहिए? भगवान् जी और किसका? साईं बाबा का और किसका आचार्य जी का। हरेक का जँवाई बनना चाहिए। चल बदमाश कहीं का, दरिद्र और भिखमंगे पहले अपनी हैसियत को ऊँची उठा। अपनी हैसियत को ऊँचा उठाए बिना, ऊँची चीजें-कीमती चीजें न कभी मिली हैं और न मिलने वाली हैं।
(क्रमश:)
यह अध्यात्म सही नहीं
मित्रो! अध्यात्म उस चीज का नाम है जो आदमी के व्यक्तित्व और स्तर को ऊँचा उठा देता है। जो अध्यात्म आदमी के व्यक्तित्व और उसके स्तर को नीचे गिराता हो, मैं उसे अध्यात्म नहीं मानता। उसके पीछे मैं बहुत नाराज हूँ। इसलिए हर क्षेत्र में हम बगावत पैदा करते हैं। हम जहाँ अनैतिकता के विरुद्ध बगावत पैदा करते हैं, जहाँ अवांछनीयता के विरुद्ध बगावत पैदा करते हैं, वहीं हम इस नकली अध्यात्म के विरुद्ध भी बगावत पैदा करते हैं। फिर तो आप कम्युनिस्ट हैं? कम्युनिस्ट तो नहीं हैं बेटे, पर हम कम्युनिस्टों की आवाज में आवाज लगाकर कह सकते हैं कि यह अवांछनीय अध्यात्म जो आज हर जगह फैल गया है, अगर यह नष्ट होता है, तो आपको दुःख है? नहीं, मुझे प्रसन्नता है। आपका ये अखण्ड कीर्तन बंद हो जाए तो आपको नाराजगी है? नहीं मुझे कोई नाराजगी नहीं है, मुझे बहुत प्रसन्नता है। ये कौन से मंदिर, भिन्न-भिन्न देवियों के मंदिर गिर पड़ें तो आपको नाराजगी है? नहीं बेटे, मुझे बहुत खुशी है। मनसा देवी, जो आपकी मनसाओं को, आपकी इच्छाओं को बिना कीमत चुकाए देना चाहती हैं, केवल पंद्रह पैसे का प्रसाद खा लीजिए और हमारी मनसा पूरी कर दीजिए। बेटे हम आपकी ऐसी मनसा देवी से बहुत नाराज हैं।
क्या कहते हैं आप? बेटे! मैं यह कहता हूँ कि आप अनैतिक आचरण पैदा करती हैं। आप लोगों को भिखमंगा बनाती हैं और आप लोगों को दरिद्र बनाती हैं और लोगों को ऐसे गंदे आश्वासन देती हैं जो आपको नहीं देने चाहिए। जो आपको शोभा नहीं देते और लेने वालों को भी शोभा नहीं देते, दोनों को शोभा नहीं देते, क्योंकि इंसानियत के लिए जो बेसिक सिद्धांत हैं, फंडामेंटल सिद्धांत हैं, आप उनको गलाती हैं, इसलिए आप भाग जाइए।
मित्रो! क्या करना चाहिए? मैं यह कह रहा था कि आध्यात्मिकता के मौलिक आधारों का प्रतिपादन होना चाहिए, ताकि उससे हम वास्तविक फायदे उठा सकें, जैसे कि हमारे पूर्वजों ने उठाए थे। हमारे पूर्वजों ने आध्यात्मिकता से हर क्षेत्र में शानदार फायदे उठाए थे। उनके व्यक्तित्व बहुत शानदार होते थे। मैं आपको एक बात बताता हूँ कि जिन चीजों को आप चाहते हैं, जिन सुविधाओं को आप चाहते हैं, जो संपदाएँ आप चाहते हैं, वे अच्छे व्यक्तित्व के पीछे-पीछे चलती हैं। रोशनी के पीछे छाया चलती है। आप रोशनी की तरफ मुँह करके चलिए, छाया आपके पीछे चलेगी और आप छाया के पीछे चलिए, छाया की तरफ मुँह करके भागिए तो रोशनी भी हाथ से चली जाएगी और छाया भी पकड़ में नहीं आएगी। आप अपने व्यक्तित्व को ऊँचा उठाइए।
वास्तविक अध्यात्म फिर क्या है?
मित्रो! आध्यात्मिकता का उद्देश्य था, आदमी उठा देना, चिंतन को सही कर देना, आदमी के दृष्टिकोण को परिष्कृत कर देना। अगर कोई आदमी यह कर सके तब? तब मैं कहूँगा कि जीवन में वास्तविक अध्यात्म आ गया। वास्तविक अध्यात्म को प्राप्त करने के बाद में आप वो चीजें पाएँगे जो आपको मिलनी चाहिए। माँगने पर भी मिलेंगी, बिना माँगे भी मिलेंगी। महापुरुषों के नाम सुने नहीं आपने? आप उन महापुरुषों की हिस्ट्री तलाश कीजिए, जनता ने जिनको निहाल कर दिया है। माँगने पर? माँगने पर नहीं, बिना माँगे निहाल कर दिया। कल मैं गाँधी जी का हवाला दे रहा था, बुद्ध का हवाला दे रहा था। जनता की बात कहूँ, हाँ जनता की बात कहूँगा और भगवान् की बात? भगवान् की बात भी कहूँगा, हरेक की बात कहूँगा। मैं कहूँगा कि अगर आपका व्यक्तित्व और आपका अंतर्मन सच्चे में, वास्तव में पात्र है, तो आपको तीनों ओर से सहायता मिलेगी। क्यों साहब, एक ओर से कि तीनों ओर से? आप एक ओर से माँगते हैं, पर मैं वायदा करता हूँ कि तीनों ओर से आपको सहायता मिलेगी और इतनी अधिक सहायता मिलेगी, जिसको पाकर के आप निहाल हो जाएँगे।
साथियो आप क्या चाहते हैं? हम ये चाहते हैं कि देवताओं की सहायता मिले। ये तो नहीं चाहते कि हमारे पड़ोसी से हमें सहायता मिले? नहीं ये नहीं चाहते वो क्या सहायता देगा। पड़ोसी से तो लड़ाई है हमारी, वो हमें सहायता नहीं देगा और किससे माँगेंगे? पिताजी से। नहीं पिताजी भी हमसे नाखुश हैं, वो नहीं देंगे। तो भाई से माँग लीजिए। नहीं भाई ने भी मना कर दिया। तो फिर अपने साले से माँग लीजिए, कहिए हम आपके बहनोई हैं। साले से भी एक बार हमने कहा था कि हम पैसे की तंगी में हैं, हमें दो हजार रुपये भेज दीजिए। साले ने कहा कि हम नहीं दे सकते, हम आपसे भी ज्यादा तंगी में हैं। हमारे पास नहीं है। किसी ने नहीं दिया। कोई और बाकी रह गया है? नहीं और कोई नहीं ।। हमें सबने इंकार कर दिया। एक भी आदमी हमारी सहायता करने के लिए रजामंद नहीं है। अब तो एक ही बाकी रह गया है और उसका नाम है 'देवता'। इसे हम ट्राई करते हैं।
ट्राई कैसे करते हैं? अनुष्ठान करते हैं। अहा....ये अनुष्ठान से पकड़ में आएँगे। सच-सच बताना, इसी का नाम अनुष्ठान है ना-देवताओं से ट्राई करना? क्या ट्राई करना? हमारा ट्रांसफर करा दीजिए। हमने वहाँ कहा-स्युपरिन्टेंडेंट से। उसने क्या कहा? उसने कहा कि ५०० रुपये दे दीजिए, तो हम आपका ट्रांसफर करा देंगे। आपने फिर कमिश्नर से भी कोशिश की होगी, पर ट्रांसफर नहीं हुआ। अब कौन बाकी रह गया है? एक ही आदमी बाकी रह गया है, देवता। देवता ट्रांसफर कराता है? हाँ साहब! देवता के हाथ में सब कुछ है। तो क्यों देवता जी आपके पास क्या ट्रांसफर कराने का कोई डिपार्टमेंट है? नहीं साहब! हमारे हाथ में नहीं है ट्रांसफर। आप क्या काम करते हैं? हम डीलिंग में नहीं जाते हैं। ट्रांसफर में हमारी डीलिंग नहीं है।
ये देवी-देवता हमें क्या देंगे? मित्रो! आप देवताओं से भी वो काम कराना चाहते हैं, जो देवता बेचारे नहीं कर सकते, जो उनके काबू में नहीं है, उनके पास भी नहीं है। क्या काबू में नहीं है? हनुमान जी से आप चाहते हैं कि हमारा ब्याह-शादी हो जाए और हमारे लड़के के बाल-बच्चे हो जाएँ। एक बार हनुमान जी से हमने पूछा कि क्यों साहब! ये आपका डिपार्टमेंट है कि जब किसी की ब्याह-शादी नहीं होती तो आप जाकर ब्याह-शादी कराते हैं। फिर हमने दूसरी बात पूछी कि किसी के बच्चा न हो तो उसको बच्चा पैदा कराने का महकमा भी आपके पास है। हनुमान जी ने जवाब दिया कि आचार्य जी! आपको तो समझ है, आप तो पढ़े-लिखे आदमी हैं और अच्छी तरह जानते हैं कि जिन कामों में हमारा कोई दखल नहीं है, कोई वश नहीं, उन्हें भला हम किस तरीके से कर सकते हैं। अगर ब्याह-शादी करने लायक हमारे अंदर शऊर होता तो हमारा भी ब्याह हो गया होता। हमारा ब्याह किसी ने नहीं कराया। नाई भी आए, पंडित भी आए। उन्होंने कहा, क्यों साहब आप हमारी लड़की के साथ शादी कर लीजिए। नहीं, हम ब्याह नहीं करते।
हनुमान जी ने कहा, "राम काज कीन्हे बिना मोहि कहाँ विश्राम।" रामकाज में लगा रहता हूँ। न कोई खेती-वेती है, न नौकरी है, न धंधा, न घर, न स्कूटर, कुछ भी नहीं है हमारे पास। अतः सब चले गए। एक ने भी ब्याह नहीं किया। गुरुजी! आपको तो मालूम ही है कि हमारा किसी ने ब्याह नहीं किया। हाँ हमको मालूम है कि आपका किसी ने ब्याह नहीं किया था। तो अब आप ही बताइए कि बिना ब्याह वालों की हम कैसे मदद कर सकते हैं? फिर हमने पूछा कि शादी-ब्याह नहीं हुआ तो बाल-बच्चों की ही मदद कीजिए, क्योंकि ये कहता है कि हमारे तीन लड़कियाँ हैं, एक-दो लड़के और हो जाएँ तो अच्छा है। आप उनकी कुछ सहायता कीजिए। हनुमान जी ने कहा कि ये हमारा काम नहीं है, आप हमें बेकार क्यों तंग करते हैं। हम लड़के इनके पास कैसे भेज सकते हैं? जब हमारे ही लड़के नहीं हैं, तो हम इनकी कैसे मदद करें, अगर हम अपने लड़के पैदा कर लेते तो आपके भी कर देते ।। भगवान् शिवजी के पास ट्राई करते हैं और कहते हैं, महादेव जी! हमारा पक्का मकान बना दें। महादेव जी तो वहाँ रहते हैं मरघट में। इनके पास अगर मकान बनाने लायक पैसे होते, तो अपने लिए क्यों नहीं बनवा लिया होता। कपड़े तो पहनने को हैं नहीं, फिर मकान कैसे बनवाएँ।
अपनी योग्यता बढ़ाइए
मित्रो ! बेसिलसिले की बातें, बेतुकी बातें आप करते रहेंगे और पीछे शिकायतें करते रहेंगे कि हमारी मनोकामना पूरी नहीं। मैं कल भी नाराज हो रहा था इसी बात पर। आपको निराशा तो होगी, पर इससे बाद में पूरे अध्यात्म विज्ञान पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। आदमी अध्यात्म विज्ञान के प्रति नफरत करते चले जाएँगे और इसके प्रति जन साधारण में जो श्रद्धा थी वो खत्म हो जाएगी। क्यों? क्योंकि आपकी मनोकामना पूरी नहीं हो सकती। आपकी मनोकामना पूरी करने की दो शर्तें हैं। क्या दो शर्तें हैं? साथियो! भगवान् ने, देवताओं ने, ऋषियों ने दुनिया में एक से एक बड़ी मनोकामनाएँ पूरी की हैं, पर उसकी दो शर्तें पूरी करनी पड़ी हैं। एक तो आदमी की योग्यता बढ़ी-चढ़ी होनी चाहिए। आपको क्या मिलता है? हम तो साहब प्राइमरी स्कूल के मास्टर हैं। तो आप कहाँ तक पढ़े हैं? हमने साहब मैट्रिक पास किया है और बी. टी. सी. पास की है। इसीलिए हमको २५० रुपये मिलते हैं ।। तो अब आप क्या चाहते हैं? हमको बड़ी नौकरी मिल जाए। अच्छा तो आप एक काम कर लीजिए-आप बी.ए. कर लीजिए, बी.एड. कर लीजिए। फिर हमारे पास आना तो हम कोशिश करेंगे, किसी से सिफारिश करेंगे और आपको नौकरी दिला देंगे। नहीं साहब, बी. ए., बी. एड. तो हम नहीं कर सकते, आप हमें ७५० रुपये की तनख्वाह दिला दीजिए। बेटे, हम कैसे दिला दें, जो कायदा-कानून नहीं है, नियम नहीं है, उसे कैसे करा देंगे।
मित्रो ! आदमी को अपनी मनोकामना पूरी करानी है तो उसे अपनी योग्यता बढ़ानी पड़ेगी। आप अपनी योग्यता बढ़ाइए। आदमी की जितनी योग्यता होती है, उतनी ही उसकी तरक्की होती, पैसा मिलता है और मिलता है मान-सम्मान। योग्यता आप बढ़ाते नहीं तो फिर किस तरह से आपकी सहायता करेंगे। दूसरी शर्त है—आप अपने में परिश्रम का माद्दा बढ़ाइए। आप में परिश्रम का माद्दा कम है। आपको जितना परिश्रम करना चाहिए, जिस स्तर का पुरुषार्थ करना चाहिए, उतना नहीं करते। मनोयोग और श्रम दोनों को मिलाकर परिश्रम की क्वालिटी बनती है। आप क्वालिटी क्यों नहीं बनाते? नहीं साहब! हम तो आठ घंटे काम करते हैं। आठ घंटे आपके ढाई घंटे के बराबर हैं। आप आठ घंटे मनोयोग के साथ काम कीजिए तो वह दस घंटे के बराबर हो जाएगा, अट्ठाइस घंटे के बराबर होगा।
मित्रो! 'इफीशिएन्सी' अर्थात् दक्षता का भी ध्यान रखिए। नहीं साहब! हम तो उसे 'सीनिऑरिटि' कहते हैं। बेटे, सीनिऑरिटि ही नहीं काम करती, 'इफीशिएन्सी' भी काम करती है। इफीशिएन्सी आप बढ़ाइए न, कुछ पुरुषार्थ बढ़ाइए न, फिर हम देखेंगे कि कौन है जो आपका रास्ता रोकता है। देखेंगे कौन आदमी आपकी तरक्की को रोकता है। आपकी तरक्की को कोई रोकता हो, तो आप इस्तीफा दे देना और हमारे पास आ जाना। हमारे पास जो लोग काम करते हैं वे पूरे श्रम और मनोयोग से करते हैं। वे जिस काम को करते हैं, पूरे मन से करते हैं। हमको कहीं लगा दीजिए। क्या मिलता है आपको? ६५० रुपये मिलते हैं। अच्छा तो हम आपको ७५० रुपये दिलाएँगे और जगह दिला देंगे, परंतु आप तो परिश्रम की क्वालिटी नहीं बढ़ाते। अपनी योग्यता बढ़ाते नहीं हैं और मनोकामनाएँ लिए फिरते हैं।
मित्रो! ये मनोकामनाएँ अवैज्ञानिक हैं। अवैज्ञानिक बातें क्या निभेंगी कभी? अवैज्ञानिक बातें न कभी निभी थीं, न कभी निभेंगी। आप क्या कह रहे थे? मैं यह कह रहा था कि आपको जो सबसे श्रेष्ठ धंधा, व्यवसाय बताया है, वह अध्यात्म है। अध्यात्म का व्यवसाय इससे ज्यादा शानदार, इससे ज्यादा फायदेमंद, इससे ज्यादा कीर्ति दिलाने वाला अर्थात् तीन तरह के फायदे दिलाने वाला धंधा और कहीं नहीं है और व्यवसायों में सिर्फ एक तरह का फायदा होता है। क्या? पैसा मिल जाता है और कोई बहुत फायदे या धंधा? और कोई धंधा नहीं है। जिसको आप व्यवसाय कहते हैं वह केवल एक ही फायदा कराता है। हम क्या कराते हैं? हम बेटे, ये धंधा जो पैसे वाला है, ये तो गौण है, बाहर वाला है। इसके अलावा हम तीन फायदे करा सकते हैं। उस अध्यात्म के बारे में बता रहे हैं जिसको सिखाने के लिए हमने आपको यहाँ बुलाया है। जिसके लिए हम आपको अनुष्ठान कराते हैं। हमारे इस अध्यात्म को आप समझ लें तो मैं फिर आपकी गाड़ी आगे बढ़ाऊँ। आप क्या सिखाना चाहते हैं? आप समझिए तो सही। आप तो नहीं रहते हैं। कहाँ? हमारी मनोकामना, भजन और माला। बेटे, ये तो गलत है।
पहले साधना तो हो
माला और मनोकामना का भी सिद्धांत है और सही होता है, तो फिर मैं एक चीज और शामिल करना चाहूँगा। क्या चाहेंगे? माला—एक। माला से व्यक्तित्व का विकास। व्यक्तित्व के विकास के फलस्वरूप साधना दो। यों है बेटे इसका चक्र। आप समझ गए, यह एक चक्र है। कौन-सा? इसमें तीन चीजें शामिल हैं, साधना एक। साधना सफल है, सही है या गलत है, इससे व्यक्तित्व का विकास जुड़ा हुआ है। व्यक्तित्व के विकास के बाद में वो करना, जिसको हम ऋद्धियाँ कहते हैं, सिद्धियाँ कहते हैं, सफलता कहते हैं। नहीं साहब! भजन करने से सिद्धियाँ मिलनी वाहिए। नहीं बेटे, आप गलत बात कहते हैं। भजन करने से सिद्धियाँ नहीं मिल जाती। नहीं साहब! हम तो यही ख्याल करते हैं। आप गलत ख्याल करते हैं। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप इस गलत ख्याल को निकाल दें। नहीं साहब हम तो नहीं निकाल सकते। जप करने से पैसा मिलता है। नहीं बेटे, जप करने से पैसा मिलता तो मंदिरों में—जो हिंदुस्तान में एक लाख से ऊपर मंदिर ऐसे हैं जहाँ पुजारी-नौकर रहते हैं, वे मालामाल हो गए होते। आप एक लाख पुजारियों का आयोग बैठा दीजिए। सर्वे कीजिए और रिपोर्ट मँगाइए इसकी। फिर देखिए क्या हाल है ! इन पुजारियों में से हर आदमी मामूली मजदूर की अपेक्षा, एल.डी.सी. क्लर्क की अपेक्षा, प्राइमरी स्कूल के मास्टर की अपेक्षा गई-बीती हैसियत में है।
मित्रो ! जो व्यक्ति सारे दिन पल्लेदारी ढोते हैं और रिक्शा चलाते हैं, उनको एक तराजू में रखिए और पुजारी जी को एक तराजू में रखिए। देखिए साहब, क्या बात है? आप सिनेमा भी देखते हैं, सिगरेट भी पीते हैं, दिन में छह कप चाय भी पी जाते हैं। आप कौन हैं? आप रिक्शे वाले हैं और आप? पुजारी जी हैं। अरे सिनेमा देखते हैं? नहीं साहब सिनेमा हमारे भाग्य में कहाँ से आया। जाने का मन होता है? मन तो होता है, पर हम कैसे जा सकते हैं। आपकी ये बात वो बात सब तराजू में तौलते हैं, तो मालूम पड़ता है न रिक्शे वाला फायदे में है और न ये पुजारी जी। क्या बात है? आप समझते नहीं क्या? गलतफहमी को क्यों दबाए बैठे हैं। गलतफहमी को आप हटा दीजिए। मैं आपसे प्रार्थना करूँगा कि अगर आपके मन में यह गलतफहमी है कि भजन और माला के फलस्वरूप सिद्धि मिल जाएगी तो आप इसे निकाल दीजिए।
तो क्या करें? इसमें एक चीज आप और शामिल कर लें तो बात सही हो जाएगी। क्या शामिल कर लें? स्कूल में पढ़ाई करें और पढ़ाई के बाद नौकरी करें। नहीं साहब पढ़ाई के साथ ही नौकरी मिल जाए तो अच्छा है। अच्छा बेटे तू स्कूल जाएगा? हाँ साहब, लेकिन पढ़ाई करनी पड़ेगी। गुरुजी ! मुझे यह नहीं पता था। अच्छा तो अब हम बता देते हैं कलम पकड़ और पी. एच. डी. हो जा। लेकिन एक कमी है। क्या? कलम पकड़ने के साथ-साथ पढ़ाई भी करनी पड़ेगी। गुरुजी! हम तो यह जानते थे कि जिसके हाथ में कलम होती है, वही पी. एच. डी. हो जाता है। बेटे, कलम से पी. एच.डी. होती है, तेरी यह बात सही है, पर हमारी भी एक बात क्यों शामिल नहीं करता कि कलम के साथ-साथ में अध्ययन भी करना और तब लिखना चाहिए। थीसिस लिखने की कीमत होती है और होनी भी चाहिए।
मात्र क्रिया से परिणाम नहीं मिलता
गुरुजी! ये तो बड़ा झमेला पड़ गया। हाँ बेटे, झगड़ा तो था ही। तू क्या समझता था? हम तो यह समझते थे कि ये सब प्रारंभिक वस्तुएँ हैं और उनसे ही सफलता मिल जाती है। मसलन आपके हाथ में छेनी और हथौड़ी दे दें और कहें कि इस पत्थर के टुकड़े को ले जाइए और इसमें से आप एक मूर्ति बना दीजिए। मूर्ति कितने रुपये की होती है? बहुत कीमती होती है। हमने जयपुर से एक मूर्ति मँगाई है, वह तीन हजार रुपये में आई है। इसमें कितने रुपये का पत्थर लगा होगा? मैं सोचता हूँ कोई पचास रुपये का पत्थर होगा। आप पचास रुपये का पत्थर ले लीजिए और छेनी, हथौड़ी ले जाइए, घिसने के लिए रेती ले जाइए और मूर्ति बनाकर लाइए। आपको तो पत्थर ही नहीं दिखाई पड़ा और ऊपर से छेनी और हथौड़ी भी तोड़ डाली और अपनी अंगुली पर भी पट्टी बाँध रहे हैं। आपने तो बताया था कि हम मूर्ति बनाएँगे तो क्या बन गई आपकी मूर्ति? कहाँ बनी गुरुजी! छेनी टूट गई, हथौड़ी टूट गई और देखिए हमारी अंगुली में चोट भी लग गई। बेटे, मूर्ति कहाँ गई? उसका क्या हुआ? तीन हजार की मूर्ति तो मिली नहीं? मिलती भी कैसे, मूर्तिकला का जो अभ्यास है, वह अलग है।
मित्रो! यह क्या है? यह एक टेक्निक है। मूर्तिकला छेनी-हथौड़े की सहायता से विकसित तो की जाती है, पर इसके पीछे अभ्यास होता है, तब कहीं मूर्ति बनाना आता है। तब आदमी हजार रुपये महीने कमाता है। इससे कम में कमाए, इससे कम में नहीं कमा सकता। चित्रकार चित्र बनाते हैं। कितने का बिका ये चित्र? बहुत दाम का बिका। हम अखण्ड ज्योति के कवरपेज की डिजाइन बनवाते हैं। उसके लिए हमें पाँच सौ रुपये देने पड़ते हैं। चित्रकार दो दिन में बना देता है। गुरुजी! यह तो अच्छा धंधा है। एक दिन में एक चित्र बनाने के ढाई सौ रुपया रोज कमाता है। इससे महीने में कितना कमा लेगा और साल भर में कितना कमा लेगा? गुरुजी! मैं तो वही धंधा करूँगा, बेटे कर ले। इसके लिए क्या-क्या चीज चाहिए? कागज, ब्रुश, रंग। लीजिए बनाइए चित्र। किसके लिए बनाएँ? हमारी अखण्ड ज्योति के लिए बनाइए। गुरुजी! आप तो पाँच सौ रुपये तो वैसे ही दे देंगे, देखिए चित्र बनाकर लाया हूँ। बेटे! ये तूने क्या बनाया? हमारा कागज भी बरबाद कर दिया और रंग भी खराब कर दिया और ऐसे ही लकीरें बना लाया। नहीं बेटे, लकीर नहीं बनानी चाहिए।
मित्रो! कागज काम तो आता है, पर यह भी ध्यान रखिए कि क्या चीज चाहिए। यहाँ एक और शब्द लगा हुआ है। 'पर' यह इसलिए लगा हुआ है कि चित्रकला का अभ्यास होना चाहिए, जो समयसाध्य और श्रमसाध्य है। नहीं साहब! हम तो इस झगड़े में नहीं पड़ेंगे। तो क्या करेंगे? हम यह करेंगे कि क्रिया के माध्यम से परिणाम पाना चाहेंगे। बेटे, यह तो संभव नहीं, असंभव बात है, जो आपने कल्पना बना रखी है। आप इस असंभव के पीछे भागेंगे तो आपको हैरानी के सिवाय, परेशानी के सिवाय, खीझने के सिवाय, निराशा के सिवाय और कुछ पल्ले नहीं पड़ेगा। अब तक आप निराश हैं तो आगे भविष्य में अगर आपका यही सिद्धांत रहा, तो मैं आपको शाप देता हूँ कि भविष्य में आपको हमेशा निराशा ही हाथ लगेगी और कभी आपको सफलता प्राप्त नहीं होगी।
साधना कोई शॉर्टकट नहीं
साहब! आप शाप क्यों देते हैं। इसलिए देते हैं कि आप उस सिद्धांत को समझते नहीं, जिस सिद्धांत पर चल करके आप वहाँ पहुँच सकते हैं। उस सिद्धांत को स्वीकार भी नहीं करते। बेटे, ये 'नेशनल हाईवे' है, राजमार्ग है। साधना कोई शॉर्टकट नहीं है। किसी भी क्षेत्र में कोई शॉर्टकट रास्ता नहीं है। आप एम.ए. पास होने का शॉर्टकट बताइए। बेटे, हमें तो मालूम नहीं है। हमने तो जिनको देखा है, वे पढ़ते हैं और नंबर बाई नंबर, कक्षा दर कक्षा फीस देते हैं। अच्छा बम्बई जाने का शॉर्टकट बताइए? बम्बई जाने का शॉर्टकट यही है बेटे कि उधर से कोटा से होकर निकल जाए या भोपाल से होकर निकल जाए। कितना किराया लगता है? यही कोई लगता होगा सौ-डेढ़ सौ रुपये का टिकट। नहीं साहब! कोई शॉर्टकट रास्ता बताइए। जिससे कि इतना सफर भी न करना पड़े और पैसा भी खरच नहीं करना पड़े और मैं बम्बई भी पहुँच जाऊँ। नहीं बेटे, ऐसा कोई शॉर्टकट रास्ता नहीं है।
मित्रो! आपने अध्यात्म माने शॉर्टकट समझ रखा है। आप चाहते हैं, "हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा आवे।" बेटे तू क्या चाहता है कि बम्बई पहुँच जाऊँ। हाँ गुरुजी। ऐसा चमत्कार दिखाइए, जादू दिखाइए कि हम पाँच मिनट में बम्बई पहुँच जाएँ और पैसा भी न खरच करना पड़े। आँखें बंद करते ही बम्बई आ जाए। बताइए आपको ऐसा चमत्कार आता है। हाँ, हमको आता है। अच्छा तो आप कितनी देर में पहुँचा देंगे? तू कितनी देर में पहुँचना चाहता है। हम तो तुझे पाँच मिनट में पहुँचा देंगे बम्बई। अच्छा पाँच मिनट में आप इतने बड़े योगी हैं? तू पहले खड़ा तो हो जा, फिर देख पहुँचता है कि नहीं पाँच मिनट में। अच्छा एक काम कर आँख पर एक पट्टी बाँध ले। अगर पट्टी नहीं तो आँख पर हाथ रख ले, ताकि रास्ते का सफर तुझे दिखाई न पड़े। और देख जब मैं कहूँ तब एक पैर उठाना, फिर दूसरा पैर उठाना ।। जब मैं कहूँ एक दो तीन—आँख खोल, आ गया बम्बई ।। गुरुजी! मैं तो यहीं खड़ा हूँ। अरे देख यह लिखा हुआ है बम्बई। गुरुजी आप तो हमारे साथ मजाक करते हैं।
मित्रो! आप भी तो अध्यात्म के साथ क्या करते हैं? मजाक और मखौल करते हैं ।। कौन-सी वाली? जो आप लिए फिरते हैं कि अमुक मंत्र का जप करेंगे और पैसा कमाएँगे। आप भगवान् के साथ मखौल करते हैं, सिद्धांतों, आदर्शों के साथ मखौल करते हैं और प्राचीनकाल की ऋषि परंपरा के साथ मखौल करते हैं। आपको किसने बताया था यह सब? साहब! एक बाबाजी ने बताया था। मारा नहीं उस बाबाजी को? नहीं साहब! अच्छा अब की बार आए तो उसके कान पकड़ लेना और कहना कि गलत बात बता रहा है। मित्रो! क्या बताना चाहिए था? वह बताना चाहिए था, जिस शानदार अध्यात्म के लिए मैंने आपको बुलाया है। जिसके लिए मैं आपको अनुष्ठान कराना चाहता हूँ। जिसके लिए मैं चाहता हूँ कि आप उन सिद्धांतों के जानकार हो जाएँ। आप सिद्धांतों के जानकार हो जाएँगे तो फिर विधि बताने में मुझे देर नहीं लगेगी। विधि तो बहुत सरल है। जिस तरह ऑपरेशन करना बहुत सरल है। मोतियाबिंद का ऑपरेशन कितने मिनट लेता है। मुश्किल से एक मिनट लेता है। एक मिनट में डॉक्टर सुन्न करके खट् झिल्ली काट करके अलग कर देता है। क्यों साहब! आप एक मिनट में ऑपरेशन करना सिखा देंगे? हाँ बेटे, हम सिखा देंगे। लेकिन पहले सात साल तक मेडिकल की पूरी पढ़ाई करने के साथ-साथ तुझे प्रैक्टिस भी करनी होगी। तब हम तुझे बताएँगे।
अगले अंक में जारी
गतांक से आगे
मित्रो ! मैं आपको उस अध्यात्म को सिखाना चाहता हूँ, जिसे मेरे गुरु ने मुझे सिखाया और जिसे ऋषियों ने अपने शिष्यों को पढ़ाया। हम उसी शानदार सिद्धांत पर विश्वास करते हैं और आपको उसी शानदार अध्यात्म को अपनाने की प्रार्थना करते हैं। इसी के लिए हमने सब इंतजाम रचाया है। अगर आप सीख सकते हों, कर सकते हों, तो कर लें, सीख लें। फायदा उठा सकते हों तो फायदा उठा लें। जो अध्यात्म हम सिखाना चाहते हैं, जिसके लिए हमने आपको इस आध्यात्मिक शिविर में है। बुलाया है, वह कैसा अध्यात्म है ! उसके तीन फायदे हैं। सिद्धियाँ कितनी होती हैं? यह आठ होती हैं, लेकिन ये अष्ट सिद्धियाँ और नौ ऋद्धियाँ मेरी समझ में नहीं आतीं। मेरी समझ में तो तीन सिद्धियाँ आती हैं और ये सुनिश्चित रूप से मिलती हैं। अष्ट सिद्धियों के बारे में तो मैं नहीं कह सकता कि इससे हवा में तैरना आ जाता है। हाँ गुरुजी! सिद्धियों से चमत्कार आते हैं। अष्ट सिद्धियाँ, नव निधियाँ होती हैं। अच्छा तो आपका मतलब हवा में तैरने से है। आप यही कह रहे थे न कि सिद्धियाँ मिल जाएँ। चलिए सिद्धि की एक घटना याद आ गई, उसे ही आपको सुनाता हूँ।
जमीन पर चलें, हवा में नहीं
हसन नाम के एक बड़े सिद्ध पुरुष थे। राबिया नाम की एक संत महिला भी बड़ी सिद्ध थी। दोनों की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। हसन के बारे में राबिया ने तारीफ सुन रखी थी और राबिया की तारीफ हसन ने सुन रखी थी। एक बार हसन ने कहा—चलो हमें ही राबिया के पास जाना चाहिए। हसन राबिया के पास पहुँच गए। राबिया बहुत खुश हुई। उसने कहा—आप आ गए, हमारा भाग्य खुल गया। हम तो कहीं जाते नहीं, आपने कृपा की और हमारे घर आ गए। उन्हें बिठाया, स्वागत-सत्कार किया।
नमाज पढ़ने का वक्त आ गया। हसन ने कहा—राबिया! आज हम साथ-साथ नमाज पढ़ेंगे। नमाज का टाइम हो गया तो पढ़नी ही चाहिए। उन्होंने अपना बिछाने का कपड़ा जिसको अरबी में 'मुसल्ला' कहते हैं, लिया और पानी में फेंक दिया। वह पानी में तैरने लगा। हसन ने कहा कि हम तो पानी पर बैठकर नमाज पढ़ेंगे और चमत्कार दिखाएँगे। राबिया तुम भी आ सकती हो। राबिया समझ गई कि हसन अपनी करामात दिखाना चाहते हैं और यह सिद्ध करना चाहते हैं कि हम पानी पर सवार हो सकते हैं और बिना डूबे बैठ सकते हैं। वे चमत्कार दिखा रहे थे कि देखो हमारे पास कितनी सिद्धियाँ हैं!
राबिया को बहुत दुःख हुआ। राबिया उनके पास तो नहीं गई, पानी के ऊपर मुसल्ला भी नहीं फेंका। उसने अपना मुसल्ला फौरन हवा में फेंक दिया। वह हवा में तैरने लगा। राबिया ने कहा—हसन ! पानी में नमाज पढ़ना ठीक नहीं। पानी में मेढक रहते हैं, पेशाब करते हैं। मछलियाँ अंडे देती हैं। इसलिए उसमें हमेशा गंदगी छाई रहती है। इसमें बहकर कूड़ा-कचरा आ जाता है, बादलों की धूल आ जाती है। ये गंदी जगह है। पानी खुदा की नमाज पढ़ने के लिए ठीक नहीं है। आइए हवा में नमाज पढ़ेंगे।
हसन पानी-पानी हो गए। पानी पर तैरने की तो उन्होंने सिद्धि प्राप्त कर ली थी, पर हवा में तैरने की सिद्धि नहीं आई थी। राबिया के सामने जब हसन शर्मिंदा हो गए, तो राबिया ने कहा—हसन आप गलती पर थे और मैं आप से भी ज्यादा गलती पर थी। जो काम एक मेढक और मछली कर सकती है, आप वह काम करने वाले थे और यह दिखाने वाले थे कि हम कोई चमत्कार दिखाने वाले हैं और मैं आपसे भी ज्यादा बेअकल थी। मैंने अपना मुसल्ला हवा में फेंक करके यह जाहिर करने की कोशिश की कि जो काम एक मच्छर कर सकता है, एक कीड़ा, एक पतंगा कर सकता है, उस कीड़े, मक्खी, मच्छर वाले काम को मैं करने जा रही थी। मैं आप से भी ज्यादा बेअकल थी और आग मुझसे भी ज्यादा बेअकल थे। आइए हम लोग जमीन पर मुसल्ला बिछाएँ और जमीन पर चलें।
अध्यात्म : एक नकद धर्म
मित्रो ! आप जमीन पर चलिए, हवा में तैरना बंद कीजिए। देवलोक जाना बंद कीजिए। सिद्धियों का ख्वाब देखना बंद कीजिए। आप जमीन पर आइए और जमीन पर चलना शुरू कीजिए, ताकि वो अध्यात्म मिल सके जो कि हमारे लिए संभव है, स्वाभाविक है, जो कि हमको मिल सकता है, जिससे आप फायदा उठा सकते हैं। ऐसा अध्यात्म लेने में आपको हर्ज क्या है ! हवाई उड़ान आपको क्या दे सकती है ! आपको हवा ही मिलनी चाहिए, इससे आपको क्या फायदा ! मरने के बाद हमको मुक्ति मिलनी चाहिए, स्वर्ग मिलना चाहिए। मरने के बाद क्यों, यदि इसी जीवन में, इसी जन्म में और अभी स्वर्ग और मुक्ति मिल जाए तो क्या हर्ज है आपको ! नहीं साहब ! कोई हर्ज नहीं। तो फिर आप क्यों कहते हैं कि भगवान् मरने के बाद मिले। अभी क्यों नहीं मिले? नहीं साहब ! भगवान तो धर्म लोक में रहता है, बैकुंठ लोक में रहता है। चलिए, हम आपको दूसरा फायदा करा दें और भगवान से आपको अभी मिला दें तो कोई हर्ज है आपको? साहब ! वो तो और भी अच्छा है, आप वही क्यों नहीं करते।
मित्रो ! आप नकद धर्म को ग्रहण कीजिए और उसकी कीमत चुकाइए। नकद धर्म कैसा होता है? जो ध्यान हम आपको सिखाना चाहते हैं, उसमें तीन सिद्धियाँ हैं। चौथी सिद्धि तो उसका ब्याज है। मूलधन वह होता है, जिसे बैंक में जमा कर देते हैं। ब्याज क्या होता है? बेटे, ब्याज वह धन होता है, जो आपके जमापूँजी पर आठ-दस प्रतिशत के हिसाब से अतिरिक्त रूप में मिलता है। अपना रुपया हमारे बैंक में जमा कर जाइए, हम आपको और भी नफा दे देंगे। क्या नफा दे देंगे? हम आपको ब्याज दे देंगे। ब्याज हमारा रुपया नहीं ! हाँ ब्याज आपका तो नहीं है, पर हम आपको दे देंगे। कौन-सी वाली ब्याज है, जो आप चाहते हैं, वह मूलधन नहीं है, ध्यान रखें। अध्यात्म नकद धर्म है, मूलधन है, ऋद्धि-सिद्धियाँ उसकी ब्याज हैं।
साथियो ! जिस तरह का अध्यात्म हम आपको सिखाना चाहते हैं, उसके लिए हम आपको तरीके बताएँगे। उसकी साधना सिखाने का ही हमारा उद्देश्य है। उसके लिए ही आपको बुलाना पड़ता है। आप न सीखें, न समझें तो फिर हम क्या कर सकते हैं ! आप पर तो गलतफहमियाँ हावी होती जा रही हैं। इन गलतफहमियों को जब तक न निकालूँ, तब तक वास्तविकता आपको कैसे बताऊँ। आप पर तो यही गलतफहमियाँ हावी हो रही हैं कि मंत्र जपो, धन आएगा। आपको वहाँ बैठे ही मूलधन चाहिए। अगर आप ऐसे ही उलझे रहेंगे तो मैं आपको सच्चा अध्यात्म कैसे बताऊँगा? नहीं गुरुजी ! आप ऐसा मंत्र बताइए जिससे पैसा मिल जाए, बेटा मिल जाए। चलो अभी बता देते हैं। क्या मंत्र है ! बस वही है जो बाबा बता गया था और आपसे मोटी दक्षिणा ले गया था। चलो हम भी वही बता देते हैं। क्या है? वही "ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डयै बिच्चैः" बेटे, इससे तो बहुत रुपया आया होगा? हाँ गुरुजी ! हमने जप किया था। अच्छा तो अभी और झक मार और 'चामुण्डयै बिच्चैः' जपता रह। दुष्ट लूट का माल मारने के लिए खड़ा है और कहता है कि मंत्र का चमत्कार दिखाइए।
चमत्कारों की जन्मस्थली अपना आपा
मित्रो ! मंत्रों के चमत्कार कहाँ से आते हैं? मंत्रों के चमत्कार आदमी के भीतर से आते हैं। पेड़ जो आपको बाहर खड़ा दिखाई पड़ता है, कहाँ से आता है? पेड़ पर फल, फूल, पत्ते कहाँ से आते हैं? अच्छा, पहले बताइए कि पत्ते कहाँ से आते हैं? पत्ते, साहब ! हवा में से भागते हुए आ जाते हैं और डाली से चिपक जाते हैं। अच्छा फूल कहाँ से आते हैं? फूल रात में तारों से ऊपर से गिरते हैं और पेड़ पर चिपक जाते हैं और ये फल कहाँ से आते हैं? फल, गुरुजी ! रात में बादल आते हैं तो बहुत से फल लाते हैं। अच्छा तो फल क्या करते हैं? टप टप टपक पड़ते हैं और पेड़ पकड़ लेते हैं। पेड़ उन सबको चिपका लेते हैं। बेटे, ये तेरा ख्याल गलत है कि फल बाहर से आते हैं। अच्छा, ये फूल भी बाहर से आते हैं और पत्ते भी बाहर से आते हैं? हाँ साहब। नहीं बेटे, तेरा यह ख्याल गलत है। तो गुरुजी ! आप ही बताइए कि सही बात क्या है? बेटे, पेड़ की जड़ें जमीन में होती हैं, जो दिखाई नहीं पड़ती। ये जड़ें जमीन से रस चूसती हैं और उसे चूसने के बाद खाने की तरह ऊपर तने में फेंक देती हैं, डालियों में फेंक देती हैं, पत्तों में फेंक देती हैं, फूलों में फेंक देती हैं और फलों में फेंक देती हैं। यह कहाँ से आता है? बाहर से नहीं, भीतर से आता है। बाहर से मतलब देवताओं से नहीं आता। आप समझते क्यों नहीं? इसी का नाम अध्यात्म है।
अध्यात्म किसे कहते हैं? 'साइंस ऑफ सोल' को अध्यात्म कहते हैं। सोल की साइंस में—आत्मा के विज्ञान में हर चीज भीतर से निकलती है। आप बाहर से ही माँगते हैं। देवताओं से माँगते हैं। मनुहार-उपहार, अनुग्रह-उपहार यही आपकी मान्यता है। मनुहार करेंगे, उपहार पाएँगे, यही ख्याल है न आपका? अच्छा बताइए कि बादलों में पानी किसने पैदा किया? नहीं साहब, मनुहार करेंगे, उपहार पाएँगे, साष्टांग दंडवत करेंगे और उपहार पाएँगे, आशीर्वाद पाएँगे। आपको यह सब किसने कहा था? साहब! वो बाबा कह रहा था। पागल है बाबा।
मित्रो! क्या करना चाहिए? आपको वास्तविकता के नजदीक आना चाहिए। वास्तविकता के फायदे बताने के बाद मैं आपको आध्यात्मिकता के तरीके बताना चाहूँगा कि आपको क्या करना चाहिए। वास्तविकता के फायदे जानने के बाद यदि आपको काफी मालूम पड़ते हों, तो आप अध्यात्म के नजदीक आइए और अगर ये कम मालूम पड़ते हों तो आप न भी आएँ तो कोई हर्ज नहीं है। हमने तो इससे तीन फायदे उठाए हैं। पहला फायदा यह आता है कि हमारा भीतर वाला हिस्सा-जिसको हम 'अंतःकरण' कहते हैं, इतना शुद्ध और पवित्र हो जाता है कि आदमी को हर समय एक वरदान मिलता रहता है, जिसको हम 'संतोष' कहते हैं।
अंदर की खुशी : एक दिव्य वरदान
मित्रो! खुशियों के तरीके दो हैं। एक खुशी बाहर से आती है—मसलन खाना खाने के समय कोई जायकेदार चीज मिल जाए तो यह एक बाह्य खुशी है। साहब क्या खाकर आए? पेड़े खाकर आए, लड्डू खाकर आए, अच्छा ठीक और एक खुशी वो होती है कि आप सिनेमा देखकर आए। ये कौन-सी खुशियाँ हैं? ये चीजें मिलने की वजह से खुशियाँ होती हैं। ये खुशियाँ होती तो हैं, पर थोड़ी देर के लिए ही ठहरती हैं, फिर गायब हो जाती हैं। सिनेमा देखकर आए-गायब, मिठाई खाकर आए, गायब। थोड़ी देर में ही ये सारी खुशियाँ गायब हो जाती हैं। ये टिकाऊ नहीं होतीं। टिकाऊ चीज क्या होती है? जो चीज भीतर से निकलती है, उसका नाम है—'शांति'। शांति का ही दूसरा नाम संतोष है। शांति के बारे में जो आपने सुन रखा है, उस चैन को शांति नहीं कहते। कोई मुसीबत न आए, हल्ला-गुल्ला न मचे, कोलाहल न हो, इसे शांति नहीं कहते। नहीं साहब ! शांति उसे भी कहते हैं कि काली कमली लेकर चले जाएँगे और कहीं गुफा में रहेंगे, जहाँ कोई झंझट, घोटाला न हो, कोई बोले-चाले नहीं। हर तरफ शांति हो। बेटे, ये मान्यता गलत है। यह शांति की परिभाषा नहीं है। शांति की प्राथमिक परिभाषा यह है कि आदमी को संतोष रहता है। संतोष किसको रहेगा? संतोष सिर्फ एक आदमी को रहेगा, जिसने अपने जीवन का क्रम ऐसा बना लिया है कि जिससे उसके अंदर अंतर्द्वन्द्व नहीं रहते।
अंतर्द्वन्द्व क्या है? अंतर्द्वन्द्व बेटे दो साँड़ों की लड़ाई की तरह है। दो साँड़ों की लड़ाई देखी है न आपने? हाँ गुरुजी! जब दो साँड़ लड़ते हैं तो खेत को, दुकान को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं। एक बार तो दो खोमचे वाले बैठे थे और दो साँड़ लड़ते हुए आ गए। फिर क्या हुआ? उन्होंने खोमचे वालों का सामान फैला दिया और मुसाफिरों को धक्के मारे। और क्या हुआ? और गुरुजी! उसने दीवार में टक्कर मारी और धकेल वाले को उछाल दिया। एक दिन हमने खेत में लड़ते हुए साँड़ देखे। वो क्या करते थे? गुरुजी! वे दोनों ऐसे लड़े कि बेचारी गेहूँ की फसल और धान की फसल को चौपट करके धर दिया। लड़ते-लड़ते वे सब चौपट कर गए।
मित्रो ! साँड़ कहाँ होते हैं? साँड़ हमारे भीतर रहते हैं। साँड़ कौन होते हैं? एक तो वे जिन्हें अवांछनीयता कहते हैं, अनैतिकता कहते हैं। बेटे, हमारे भीतर एक नैतिक पक्ष है और एक अनैतिक पक्ष है। दोनों के भीतर कोहराम मचता रहता है। दोनों के बीच लड़ाई चलती रहती है। यह लड़ाई कभी बंद नहीं होती। एक कहता है कि आप मान जाइए, दूसरा कहता है कि आप मान जाइए। दोनों ही नहीं मानते। हमारे भीतर जो शैतान बैठा हुआ है, वो भी नहीं मानता और अंदर बैठे भगवान् से कहते हैं कि आप ही चुप हो जाइए, तो वो भी नहीं मानता। दोनों के भीतर जो कोहराम मचता रहता है, अंतर्द्वन्द्व चलता रहता है, इसकी वजह से हमारे भीतर अशांति पैदा होती है। हर जगह अशांति, हर जगह नाराजगी, हर जगह असंतोष—हमारे भीतर छाया रहता है।
अध्यात्म से क्या हो जाएगा? इस शिविर में मैं उस अध्यात्म को आपको सिखाने वाला हूँ, जो मुझे मेरे गुरु ने सिखाया है और उसका परिणाम नगद धर्म है। इससे आपको क्या मिलेगा? इससे आपको भीतर से एक ऐसी चीज मिलेगी, जिसे संतोष कहते हैं। संतोष किसे कहते हैं? बेटे, संतोष उसे कहते हैं जिसके कारण आदमी मस्ती में झूमता रहता है, खुशी से झूमता रहता है। आदमी की परेशानियाँ दूर हो जाती हैं। न आदमी को ट्रैक्युलाइजर की गोलियाँ खानी पड़ती हैं, न ड्रिंक करना पड़ता है और न सिनेमा जाना पड़ता है। आदमी अपनी जिंदगी शांति से, चैन से जी लेता है। ऐसी शांति की जिंदगी, जिसमें बहुत गहरी नींद आती है। भगवान बुद्ध पूरे आठ घंटे सोया करते थे। उनकी नींद में एक और विशेषता थी कि जिस भी करवट एक बार हाथ धर कर सो जाते थे, सबेरे उधर ही उठते थे। सोते समय एक बार जिधर पैर रख लिया, सबेरे तक वह वहीं रहेगा, क्योंकि उन्हें बहुत गहरी नींद आती थी। नींद का मजा तो आपने लिया ही नहीं। आपने किसका मजा लिया—रोटी का मजा लिया। कभी आपको असली मजा लेना हो तो—नींद का होता है, उसे लेना। आज इसके बिना आदमी हैरान रहते हैं और कहते हैं कि नींद ही नहीं आती। नींद किसको आएगी? हरेक आदमी को आएगी, जिसका अंतर्द्वन्द्व बंद हो जाएगा। जिनके अंदर के साँड़ लड़ना बंद कर देंगे। जो एक रास्ते पर चलेंगे।
क्रांतिकारी अध्यात्म की ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ
मित्रो! अगर आपको यह पसंद हो कि आपको संतोष हो और संतोष की वजह से शांति मिले, तो आपको इस अध्यात्म को अपनाना होगा। इसमें फसल भीतर से उगना शुरू कर देती है, जिसको आप अतींद्रिय क्षमता कहते हैं। अतींद्रिय क्षमता क्या होती है? दूरदर्शन की क्षमता—दूर देखने की क्षमता, दूर श्रवण की क्षमता। हमारे अंदर टेलीविजन लगे हुए हैं, वायरलेस लगे हुए हैं। इतने सारे वैज्ञानिक उपकरण लगे हुए हैं, जो साधारण आदमी को नहीं मिल सकते, लेकिन आप को मिल सकते हैं। शर्त केवल यह है कि आपके भीतर जो कोहराम मचा रहता है, उसे आप बंद कर दें।
साथियो! जो अध्यात्म हम आपको सिखाएँगे, उसमें यह कोहराम बंद हो जाएगा। जब आपके अंदर का कोहराम खत्म हो जाएगा, तब हर जगह आपको जिंदगी का जायका, जिंदगी का मजा मिलेगा। जिंदगी का मजा संतोष के ऊपर टिका हुआ है, खुशी के ऊपर टिका हुआ है। आप सारे कार्य खुशी के लिए ही तो करते हैं ! खुशी के लिए सिनेमा देखते हैं। खुशी के लिए बच्चों के ब्याह में सम्मिलित होते हैं, लेकिन खुशी का बेहतरीन स्वरूप वो है, जिसको हम संतोष कहते हैं। संतोष अगर आपको मिल सकता है, तब आपके चेहरे पर हर समय खुशी दिखाई पड़ेगी। चेहरे पर आपको क्या मालूम पड़ेगा? दो बातें मालूम पड़ेंगी-एक तो आपको गहरी नींद आया करेगी और दूसरा आपके चेहरे पर गुलाब के फूल की तरह खुशी दिखाई पड़ेगी। फिर आपकी खीझ, आपकी झल्लाहट, आपकी नाराजगी सब दूर हो जाएगी।
मित्रो! वो अध्यात्म जो हम आपको सिखाने वाले हैं और जिसको हमारे गुरु ने सिखाया है, आपकी जिंदगी में से खीझ खत्म कर सकते हैं। अगर ये सिद्धि आपको मंजूर हो तो आइए हमारे साथ, हम आपको सिखाएँगे। आप उसे सीखिए और कीमत चुकाइए। आदमी का संतोष जो भीतर से निकलता है, प्रतिभा जो भीतर से निकलती है, प्रखरता जो भीतर से निकलती है—सब भीतर से निकलती हैं। भीतर' से आप क्या समझते हैं? जमीन के भीतर क्या छिपा हुआ है? बाहर तो मिट्टी है, पर जरा-सा खोद दें तो मिलेगा—पानी। और जरा गहरा खोदें तो पेट्रोल मिलेगा। जहाँ आप बैठे हैं, अगर उस पाँच फुट जगह में मशीन से खुदाई करना शुरू कर दें और जहाँ तक जमीन है, वहाँ तक गड्डा कर डालें, तो उसमें करोड़ों, अरबों, खरबों रुपए की दौलत मिल जाएगी। बेटे, बाहर तो मिट्टी है, पर भीतर संपत्ति है, बहुमूल्य संपदा है।
मित्रो! आदमी के व्यक्तित्व के भीतर जाने क्या-क्या भरा पड़ा है। आदमी के बाहर—यह जो आपको दिखाई पड़ता है, यह रोटी खाता रहता है, टट्टी-पेशाब करता रहता है। यह तो इसका लिफाफा है, जो पैसा कमाता रहता है, सिनेमा देखता रहता है, बच्चे पैदा करता रहता है—यह लिफाफा है। लिफाफा भी होता है और उसमें भी जंजाल बन जाते हैं। कैसे? अरे भाई ! जैसे हमारे जुएँ पड़ जाते हैं। जुओं के लिए कोई मकान है? कोई घर-गृहस्थी है? कोई खेती बाड़ी है? कोई भी नहीं है। वे इसी में गुजारा कर लेते हैं। इसी तरह जुएँ के तरीके से आप अपने जीवन का महत्त्व समझते हैं। सिर में से कितने जुएँ निकले? पाँच। ये पाँच जुएँ क्या होते हैं? ये पाँच बच्चे हैं। जुएँ और बच्चे की बात एक ही होती है—बिल्कुल एक ही बात। बच्चे हमारा बहिरंग जीवन है।
अंतरंग जीवन क्या है? अंतरंग जीवन को तो आपने कभी देखा भी नहीं। उसे कभी छुआ भी नहीं। अंतरंग जीवन की कभी हवा भी नहीं लगी आपको। अंतरंग जीवन की आपको कभी गंध भी नहीं आई। आपने अंतरंग जीवन का स्वरूप ही नहीं देखा। आदमी के अंतरंग का जो स्वरूप है, अगर उसे आप देख पाते, तो आपकी जिंदगी में मजा आ जाता। अगर आप अपने भीतर वाले को शानदार बना लेते, तो मैं यह कहता हूँ कि आपको दो शक्तियाँ मिलतीं। एक तो आपको गहरी नींद आती। गुरुजी! आपको गहरी नींद आती है? हाँ बेटे, हमको ऐसी गहरी नींद आती है कि हम आठ बजे यहाँ से जाते हैं और बिस्तर पर लेटते ही साढ़े आठ बजे तक गहरी नींद में चले जाते हैं, फिर साढ़े बारह बजे हमारी आँख खुल जाती है और एक बजे तक आधे घंटे में हम नहा-धोकर अपना काम चालू कर देते हैं, भजन-पूजन करते हैं। हम कितने घंटे सोते हैं? चार घंटे सोते हैं। चार घंटे में हमको इतनी गहरी नींद आती है कि चाहे जमीन फट जाए या आसमान टूट जाए, हमें सामान्य घटनाएँ प्रभावित नहीं करतीं।
संतोष धन : सबसे बड़ी पूँजी
हमें इतनी गहरी नींद क्यों आती है? क्योंकि हमें कोई चिंता नहीं है। आपके शान्तिकुञ्ज की हमें बिलकुल चिंता नहीं, गायत्री तपोभूमि की हमको बिलकुल चिंता नहीं। आपके युग निर्माण की हमको बिलकुल चिंता नहीं। क्यों? क्योंकि हम भगवान पर विश्वास करते हैं। आपको चिंता क्यों है? क्योंकि आप भगवान पर विश्वास नहीं करते। भगवान का नाम लेते हैं, पर भगवान पर विश्वास नहीं करते। हम भगवान पर विश्वास करते हैं और ये समझते हैं कि सारी दुनिया उसी के चक्र पर घूम रही है और हम भी उसी के इशारे पर कठपुतली की तरह काम करते हैं और उसको जो काम करना होगा, वह ठीक हो जाएगा। इसीलिए हमें पूरी नींद आती है और रात को जरा भी असंतोष नहीं होता और चिंता बिलकुल नहीं आती। और क्या रहता है? बेटे, हमारे चेहरे पर मुस्कराहट छाई रहती है।
मित्रो ! गाँधी जी के चेहरे पर सदैव मुस्कराहट रहती थी, वे जल्दी-जल्दी हँसते रहते थे। वे मजाक भी करते थे। गाँधी जी से एक बार पूछा कि आप तो बार-बार हँसते हैं। उन्होंने कहा—हँसेंगे नहीं तो जिएँगे कैसे। हँसने के ऊपर ही तो हमारी जिंदगी कायम है। जो आदमी हँसते नहीं, वे मनहूस होते हैं। मनहूस माने राक्षस, शैतान—जिसको देखकर बच्चे भाग जाते हैं। यह कौन आ गया? मनहूस आ गया। मनहूस कैसा होता है? जैसे—पापा। पापा किसे कहते हैं? मनहूस को। पापा जब घर में घुसेगा तो सब पर हावी होता चला जाएगा। बीबी पर हावी, बच्चों पर हावी, साइकिल पर हावी, खाने पर हावी, थाली पर हावी—सब चीजों पर हावी होता चला जाएगा। यह कौन है? मनहूस है, राक्षस है जो हँसना-हँसाना नहीं जानता।
मित्रो! अगर आपके भीतर कदाचित् अध्यात्म आ गया तो आपके चेहरे से मिठास बरसेगी। आपकी वाणी से रस बरसेगा। आपके व्यवहार में न जाने क्या-क्या शानदार चीजें आएँगी। अध्यात्म उस चीज का नाम है जो आपके भीतर संतोष लाकर के देगा। यह हुई सिद्धि नंबर एक। अगर आपको यह सिद्धि स्वीकार हो तो चलिए फिर हम आपको साधना बताएँगे। गुरुजी! साधना बताने में तो बहुत टाइम लग जाएगा? नहीं बेटे ये तो मिनटों की बात है। आपरेशन में क्या देर लगती है ! दवा खिलाने में क्या देर लगती है ! इंजेक्शन तो एक मिनट में लगा देंगे। और क्या करेंगे? खान-पान का परहेज रखते हुए मरीज ठीक हो जाएगा। असली इलाज तो बेटे परहेज है। नहीं साहब! सुई है। सुई में कितनी ताकत है? सुई में तो बेटे जरा भी ताकत नहीं है, पर परहेज में बहुत है।
अच्छा, अब आप क्या पढ़ा रहे हैं। अब बेटे हम परहेज पढ़ा रहे हैं और फिलॉसफी पढ़ा रहे हैं। और आगे क्या बताएँगे—मंत्र? मंत्र तो कभी भी बता देंगे। मंत्रों में क्या देर लगती है। यह तो सेकण्ड का काम है। जब आप कहेंगे, चलते-फिरते तभी बता देंगे। अभी असली बात तो उसकी 'फिलॉसफी' सीखिए। बेटे, हम आपको वो अध्यात्म सिखाने के इच्छुक थे, जिसको अगर आप सीखना चाहें तो आपको एक और चीज मिल सकती है। इसको सीखने पर आपको एक और सिद्धि मिलेगी। वो सिद्धि बाहर की होगी। पहली सिद्धि भीतर से मिलेगी और उसका नाम है—संतोष। संतोष की वजह से आपका स्वास्थ्य, संतोष की वजह से आपकी खुशी, संतोष की वजह से आपकी जवानी, संतोष की वजह से आपकी दबी हुई अतींद्रिय क्षमताओं का विकास ये सब के सब भीतर से मिलेंगे।
और बाहर से—दुनिया से क्या मिलेगा? दुनिया से भी बेटे आपको एक चीज मिलेगी। दुनिया आपको कैसे देगी? दुनिया कभी आपने देखी है? मोटर साइकिलें जब भागती हैं, तो उसके पीछे-पीछे पत्ते भागते हैं। आपने देखे हैं कि नहीं देखे? पत्तों को कोई बुलाता है क्या? वे अंधाधुन्ध भागते हुए चले आते हैं। अरे बाबा! तुम कहाँ जा रहे हो? हम तो कहीं नहीं जा रहे, इस दौड़ती हुई मोटर के साथ जा रहे हैं। ये मोटर कौन है, तुम्हारी मौसी है या रिश्तेदार? कोई नहीं है। जब ये मोटर भागती है तो इसकी कशिश हमें खींचती है। रेत के कण, धूल, पत्ते इसके पीछे-पीछे भागते-फिरते रहते हैं। भीतर वाली कशिश और भीतर वाली मैग्नेट जब विकसित होती है तो दुनिया बेटे, आपको एक उपहार देती है और उस उपहार का नाम है—'सम्मान'। बाहर की इस सिद्धि को पाकर आप सम्मानित व इज्जतदार आदमी बन जाएँगे।
सम्मान बरसेगा
मित्रो ! जो अध्यात्म मैं आपको सिखाने वाला हूँ, मालूम नहीं कि आप सीखेंगे कि नहीं और हम सफल होंगे कि नहीं, लेकिन यदि आपने सीख लिया तो एक चीज और आपको मिलेगी। दुनिया की दृष्टि से आपको सम्मान मिलेगा। गुरुजी! वैसे तो सम्मान किसी को मिलता नहीं, हाँ चापलूसी जरूर मिलती है। हाँ बेटे, चापलूसी तो खरीदी भी जा सकती है। पैसे दीजिए, चापलूसी खरीद लीजिए। चापलूसी आप कहीं से भी खरीद लीजिए। भाँड़ों से, रंडियों से, चमचों से—किसी से भी चापलूसी खरीद लीजिए और अपना फोटो छपवा लीजिए। लेकिन आप जो चाहते हैं, वह सम्मान नहीं है। वह तो चापलूसी है और जब आपकी खरीदने की ताकत कम हो जाएगी, तो ये नाराज हो जाएँगे। अभी रंडी आपको मदिरा पिलाती है, पान खिलाती है और कहती है कि आइए, आप बहुत दिन में आए, लेकिन जब आपके पैसे खत्म हो जाएँगे, ये लात मारेगी और कान उखाड़ देगी।
बेटे, जिसे आप इज्जत कहते हैं, वह पैसे से नहीं खरीदी जा सकती है। मैं जिस सम्मान की बात कहता हूँ, वह वो चीज है जो उन लोगों पर बरसती है, जिन्हें हम अध्यात्मवादी कहते हैं। उनके ऊपर सम्मान बरसता है, श्रद्धा बरसती है और उससे जो फायदा होता है; उसे आप नहीं समझ सकते।
मित्रो! श्रद्धा के साथ, सम्मान के साथ एक और चीज जुड़ी होती है और उसका नाम है—सहायता। श्रद्धा के साथ सहायता जुड़ी होती है। श्रद्धा आपके साथ में आएगी, अगर जन-समाज का सम्मान आपके प्रति होगा, तो आपके प्रति बेटे सहयोग जरूर आएगा। नानक के प्रति श्रद्धा थी, अत: लोगों का सहयोग आया। उनका स्वर्ण मंदिर बना हुआ है, जो इसका साक्षी है। बुद्ध के प्रति श्रद्धा पैदा हुई और उनके प्रति लोगों का सम्मान पैदा हुआ। अशोक ने तो कमाल ही कर दिया था। आम्रपाली से लेकर अंगुलिमाल तक कौन-कौन जाने कितने आदमियों का सहयोग इस कदर बरसता था कि मैं आपसे क्या कहूँ? जहाँ सम्मान होगा, वहाँ सहयोग अवश्य बरसेगा।
-क्रमश: (समापन अगले अंक में)
गतांक से आगे ..........
मित्रो! जहाँ सम्मान होता है, वहाँ सहयोग आता है। महापुरुषों पर सहयोग बरसा, गाँधी जी पर सहयोग बरसा। अरे, मैं तो ये कहता हूँ कि अनेक आदमियों पर सहयोग बरसा है। बाटा एक मोची का नाम है, जिसके माता-पिता का देहांत हो गया था। बारह-तेरह साल का यह लड़का रह गया। कुछ पढ़ा-लिखा भी नहीं था। बाप जो था, पुराने जूतों की मरम्मत करता था। वही काम बेचारा वो भी करने लगा। जो भी आता, यही पूछता कि तुम्हारे पिता जी दिखाई नहीं पड़ते? . लड़का कहता कि हमारे पिता जी का स्वर्गवास हो गया, अब आप ही हमारे पिता जी हैं। आपसे रहम तो नहीं माँगते, पर आपसे श्रम माँगते हैं। आप चाहें तो अपने जूतों की मरम्मत हम से करवा लिया कीजिए, उनकी पॉलिश हमसे करवा लिया कीजिए। इससे आपकी सहायता भी हो सकती है और हमारा गुजारा भी हो सकता है। लोगों ने अपने चप्पलों की मरम्मत करवाना शुरू किया। जूतों पर पॉलिश करने को दी। उसने इस वफादारी से मरम्मत की कि लोग बाग-बाग हो गए। सबको लाभ हो गया। उनने औरों से कह दिया कि ऑफिस में किसी को जूतों की पॉलिश करानी हो, तो उस लड़के से कराना। शानदार लड़का है। इतनी तबियत से पॉलिश करता है कि चार दिन तक जूते की पॉलिश खराब नहीं होती। मरम्मत कराना हो तो उसी से कराना।
सबने प्रशंसा करनी शुरू कर दी। क्या नाम था? बाटा। कौन-सा बाटा? जिसका आज करोड़ों रुपये का जूते का बिजनेस चलता है। जब लड़का बड़ा हुआ, तो लोगों ने कहा कि बाटा हमारे लिए अच्छे जूते बना सकते हो। हाँ साहब! हम अच्छे जूते बना देंगे, पर पैसा नहीं है हमारे पास, आप पैसा दीजिए, राहत दीजिए। राहत में लोगों ने चमड़ा ला दिया और सामान ला दिया। उसने भी तबियत से अच्छे-अच्छे जूते बना दिए।
सामाजिक जीवन का अध्यात्म
मित्रो! ईमानदारी, वफादारी और जिम्मेदारी तीनों को मिलाकर सामाजिक जीवन में अध्यात्म हो जाता है। अध्यात्म कैसा होता है ? अध्यात्म को जीवन में अप्लाइड कैसे करते हैं? अपने विकृत जीवन में संयम के रूप में हम अप्लाइ करते हैं। समाज में हम जिम्मेदारी, वफादारी और ईमानदारी के रूप में प्रयुक्त करते हैं। जीवन में इन तीनों को समाविष्ट कर लेते हैं, तो वह अध्यात्म हो जाता है। नहीं साहब, भजन और माला को अध्यात्म कहते हैं। चल....... सब बात में भजन लगा देता है, भजन भी दिमाग का एक खेल है। वह अपने अंतर्मन की एक कसरत है। कसरत कई तरह की होती है। अन्तर्चेतना के व्यायाम का एक नाम वह भी है, जिसको आप मंत्र कहते हैं। वह भी अध्यात्म का एक हिस्सा है, लेकिन केवल वही सारा अध्यात्म नहीं हो सकता। वह एक हिस्सा है। मंत्र भी एक हिस्सा है। समस्त अध्यात्म मंत्र नहीं हो सकता है।
मित्रो! बाटा ने जूतों की मरम्मत से उन्हें बनाना शुरू कर दिया और लोगों ने जूता माने बाटा, बाटा माने जूता कहना शुरू कर दिया। उसका व्यापार बढ़ता हुआ चला गया। मैं क्या कहूँ आपसे, करोड़ों रुपये का व्यापार उसने किया। जब मैं अफ्रीका गया, तो वहाँ भी बाटा की दुकानें देखीं। हरेक देश में बाटा छाया हुआ है। अफ्रीका में बिकता है, हिंदुस्तान में भी बिकता है। मैंने देखा उसकी नेट आमदनी गवर्नमेंट के टैक्स देने के बाद में दो करोड़ के करीब बच जाती है। सहयोग से इस तरह बाटा फैलता हुआ चला गया।
गुरुजी! आप अध्यात्म से अनुदान के विषय में कह रहे थे? बेटा, मैं कह रहा था कि जब सम्मान आता है, तो सहयोग भी आता है, श्रद्धा आती है। आप क्यों नहीं सुनते? हमें तो कोई जरूरत नहीं है। हमारे सब विरोधी हैं। विरोधी भी बेटे इज्जत करते हैं। क्रांतिकारियों को बेटे अँगरेजों ने फाँसी दे दी थी। उनको फाँसी देने वाले मजिस्ट्रेट ने, उनके जो रिमार्क लिखे हैं, उसे पढ़कर देखिए आप। उन्होंने क्या रिमार्क लिखे हैं ? उन्होंने ये रिमार्क लिखे हैं कि हम इनकी इज्जत करते हैं, क्योंकि उन्होंने जिस काम के लिए ये गुनाह किए, वो मकसद बहुत ऊँचे थे। इन्होंने गुनाह किए, इसलिए हमारा संविधान, हमारा कानून कहता है कि इन्हें जेल में फाँसी लगनी चाहिए, इसलिए हमने फाँसी लगवा दी, पर फाँसी लगाते हुए हम इनकी इज्जत करते हैं।
सिद्धियों के कई प्रकार—सहयोग एवं अनुदान
मित्रो! आपको इज्जत मिल सकती है। किससे? उस अध्यात्म से, जो हम आपको सिखाने वाले हैं। उससे आपको इज्जत मिलेगी, तो आप देखना आपको सहयोग भी मिलेगा। सहयोग कहाँ से मिलेगा? बेटे, हमको पहले मिली है इज्जत, फिर हमको मिली सहायता। सहायता नहीं मिलती, तो हम कहाँ से यह सब काम चला रहे हैं, बताइए? हमारे कितने जीवनदानी मुट्ठी में हैं। ब्रह्मवर्चस एक, ब्रह्मवर्चस में कितने आदमी काम करते हैं? वे क्या हैं ? आठ-दस तो वे हैं, जो पोस्ट ग्रेजुएट हैं, पी. एच.डी. हैं, मेडिकल के एम. बी. बी. एस. हैं, एम. एस. हैं, एम. डी. हैं। कितने लड़के काम करते हैं। इनको नौकरी देकर तो देखिए। एक-एक व्यक्ति कम-से पंद्रह-पंद्रह सौ रुपये की नौकरी छोड़कर आया है। कितने आदमी हैं ? बीस हैं। कितने रुपये लगेंगे? तीस हजार रुपये महीने लगेंगे। पहले नौकरी दीजिए, पीछे काम लेना। यह सब कहाँ से आता है। श्रम के रूप में सहयोग, अकल के रूप में सहयोग, भावनाओं के रूप में सहयोग। आप सहयोग का अर्थ केवल पैसा समझते हैं।
मित्रो! अगर आपका यही ख्याल है कि सहयोग का अर्थ पैसा होता है, तो चलिए मैं अभी देता हूँ। गाँधी जी पर भी पैसा आया था, दूसरों पर भी पैसा आया था, तीसरों पर भी पैसा आया था। विनोबा पर कितनी जमीन आ गई थी? करोड़ों एकड़ जमीन भूदान में आ गई थी। मैं क्या कहूँ बेटे, कोई इतनी जमीन खरीदता, तो दिवाला निकल जाता। हमने जरा-सी जमीन खरीदी है, डेढ़ लाख लग गया और उन्होंने कितनी जमीन खरीदी? करोड़ों रुपये की जमीन खरीदी विनोबा ने, भूदान यज्ञ में सहयोग दिया था। आपको सहयोग मिलता है? किसी का नहीं मिलता। धर्मपत्नी का मिलता है ? नहीं साहब, उसका भी नहीं मिलता। माता जी का मिलता है? नहीं माता जी का भी नहीं मिलता। पिता जी का? पिता जी का भी नहीं मिलता। किसी का मिला सहयोग? नहीं साहब, सब बड़े चालाक हैं और सब दुनिया बेईमान है। हाँ, आपका कहना बिल्कुल सही है। दुनिया तो है ही चालाक, लेकिन हर आदमी के भीतर एक और माद्दा है। कौन-सा वाला? जो दूसरों की सहायता करता है। आप पहले अपना सम्मान प्राप्त कीजिए।
मित्रो! लोग सम्मान नहीं देते, सम्मान लिया जाता है। कैसे? उस अध्यात्म से जो हम आपको सिखाने वाले हैं और समझाने वाले हैं। उससे आप क्या करेंगे? उससे उस अध्यात्म की कीमत पर आप जनता का सम्मान खरीदेंगे। फिर क्या होगा? फिर आप पर सहयोग बरसेगा। ये क्या हो गया? ये सिद्धि नंबर दो है। ये किसकी सिद्धि हो गई। ये बाहर की सिद्धि हुई। ईश्वर, जीव और प्रकृति तीन होते हैं। मैं पहले जीव की बात कह रहा था। जीवात्मा के भीतर से हमारे अंतर्मन से जो सिद्धियाँ निकलती हैं, अभी मैं उसका हवाला दे रहा था। अब मैं प्रकृति का हवाला दे रहा हूँ। प्रकृति के साथ समाज जुड़ा हुआ है। बहिरंग से आपको तरह-तरह के सहयोग मिलेंगे, सहायता मिलेगी, तरह तरह की प्रसन्नताएँ मिलेंगी, तरह-तरह के भाव मिलेंगे।
साथियो! जो सिद्धांत, जो अध्यात्म मैं सिखाने वाला हूँ और जिसके लिए मैंने आपको बुलाया है, उस अध्यात्म की सफलता पर मेरी उम्मीदें टिकी हुई हैं और जिस सफलता के आधार पर आपका भविष्य टिका हुआ है। आप अगर जंजाल में फँसेंगे, तो मरेंगे। नहीं साहब, मंत्र जपेंगे और पैसा कमाएँगे। यह सब झूठ है। अभी भी यही जालसाजी लिए बैठा है। जादूगरी लिए बैठा है। जादू क्या होता है ? मिट्टी में फूँका, हो गया जादू। यही है तेरा अध्यात्म? बाजीगर कहीं का, बाजीगरी सीखने आया है। क्या सिखाएँ ? बाजीगरी सिखाइए, मिट्टी में फूँक मारिए और पैसा मँगाइए। गायत्री मंत्र पढ़िए और बेटा पैदा कर दीजिए। हट मूर्ख कहीं का, ये क्या करता रहता है बेअकली की बात।
अध्यात्म बेअकली का नाम नहीं है। बेअकली अलग बात है और अध्यात्म अलग बात है। जिससे आप फायदा उठा सकते हैं, जिसको पाकर हिंदुस्तान शानदार हुआ था और आप भी शानदार हो सकते हैं। वह अध्यात्म अलग है और ये बेअकली अलग है। कौन-सी? जो मैं शुरू में ही कह रहा था मनुहार और उपहार की। मनुहार कीजिए और उपहार पाइए। बेटे, ये बच्चों का धंधा है। अगर आप बच्चे हैं, तो मैं नहीं कह सकता और छोटी चीजों तक भी मैं नहीं कह सकता, पर अगर बड़ी चीजों की बात है, तो बड़े लोगों की तरह से आप इजहार करना शुरू कीजिए।
दैवी अनुग्रह : भगवान की सिद्धि
यहाँ तक दो बातें हो गईं। एक जीव की शक्ति हो गई और एक प्रकृति की सिद्धि हो गई। एक सिद्धि और बाकी है। वह सिद्धि कौन-सी है? वह सिद्धि भगवान की सिद्धि है, तीसरी सिद्धि है। भगवान की सिद्धि किसे कहते हैं ? जिसे हम दैवी अनुग्रह कहते हैं। हाँ, दैवी अनुग्रह भी आते हैं। दैवी अनुग्रह हो सकते हैं ? हाँ बेटे, दैवी अनुग्रह भी होते हैं। दैवी अनुग्रह भी आदमी को मिलते हैं, परंतु हरेक को नहीं मिलते। गुरु जी जो माँगेगा, उसे भी नहीं? नहीं बेटा, सबको नहीं मिलते। दैवी अनुग्रह प्राप्त करने की भी शर्त है। कौन-सी शर्त है? अब हम आपको यही समझाने वाले हैं। जिसके लिए हम आपको अब मजबूर करने वाले हैं, जिसके लिए हम दबाव डालने वाले हैं, जिसके लिए हम जोर लगाते हैं, वह है पात्रता का विकास। जिस दिन आपकी पात्रता विकसित हो जाएगी, उस दिन क्या होगा? दैवी अनुग्रह बरसेंगे।
मित्रो! दैवी अनुग्रह बरसते हैं, माँगे नहीं जाते। ये हवा जो है, ऑक्सीजन लेकर आती है। इतने काम की ऑक्सीजन आपको दी जाती है कि मैं क्या कहूँ आपसे। कितने दाम की ऑक्सीजन है ? डॉक्टर साहब से पूछिए कि ऑक्सीजन का सिलेंडर कितने का मँगाया था? छह सौ पचास रुपये का। एक आदमी के लिए कब तक एक सिलेंडर चल सकता है? अगर एक आदमी सारे दिन लगाए रखे तो दो तीन दिन में खत्म हो जाएगा। हवा आपकी नाक में ऑक्सीजन की नली लेकर आती है और हर दिन लगभग तीन सौ रुपये की ऑक्सीजन आपको फोकट में दे जाती है। बेटे, आप देवता का अर्थ समझते नहीं हैं। देवता कहाँ से आते हैं ? सूरज की धूप कहाँ से आती है। सूरज की धूप का दाम निकालिए। हमारे यहाँ लाइट जलती है। सौ वाट का बल्व जलता है, यह कितनी बिजली कंज्यूम करता है? अपने मीटर को देख लें। हमारे यहाँ जो बिल आता है, हजार रुपये से ज्यादा का आता है। हमारे यहाँ हजार-डेढ़ हजार रुपये की बिजली जलती है। हम देखते हैं कि रात में कितनी देर बिजली जलती है, तो कहते हैं कि भाई बंद करो बत्ती। आपने सौ वाट का बल्ब लगा रखा है, चालीस वाट का लगाइए, पंद्रह का लगाइए। हम किफायत करते हैं। सूरज कितने हॉर्स पावर का है? कितने कैंडिल का आप समझते हैं सूरज को? वह आपके मकान पर जलता है। आप हीटर जलाते हैं, कितनी बिजली जल जाती है? ढाई रुपये की और ये हीटर कितने रुपये में आता है ?
मित्रो! आसमान से लाइट बरसती है, रोशनी बरसती है, ऑक्सीजन बरसती है, जीवन बरसता है, प्राण बरसता है, सौंदर्य बरसता है। पानी की तरह से जाने क्या-क्या बरसता है। सब कुछ बरसता है। यह सब भगवान बरसाता है, आदमी नहीं बरसाता। ये सब अनुग्रह भी बिना कीमत के मिलते हैं। सुकरात के पास एक शक्ति थी। उसका नाम उन्होंने डेमॅन रखा था। सुकरात उसके ऊपर पूरी तरह से निर्भर रहते थे। डेमॅन ऊपर से आता था और सहायता करता था। विक्रमादित्य के बारे में भी मैंने सुना है कि उनके पास भी शक्तियाँ आती थीं और उनकी मदद करती थीं। बेटे, कितने देवता होते हैं, जो आदमी की सहायता करते हैं। वे इतनी सहायता करते हैं कि मैं क्या कहूँ आपसे। उनकी सहायता के मारे आदमी धन्य हो जाता है।
देवता कौन होते हैं ? देवता अड़ोसी-पड़ोसी नहीं होते। वे संबंधी भी नहीं होते। देवता उन शक्तियों का नाम है, जो आदमी के ऊपर बरसती हैं और आदमी को धन्य करती हैं। किस-किसके ऊपर देवता बरसे? बेटे, ज्यादा तो नहीं कहता मैं, औरों का हवाला तो नहीं देता, बस अपना हवाला देता हूँ कि हमारे ऊपर कौन बरसता है। सुकरात के तरीके से एक डेमॅन हमारे भीतर भी बरसता है और सारा-का अनुग्रह उसी से काम करता है। कैसा अनुग्रह है? आपको मालूम है उसमें अकल का अनुग्रह भी है। अकल कहाँ से बरसती है ? अकल कहाँ से आती है? आप कौन से स्कूल में पढ़े हैं ? बेटे, कहीं भी नहीं पढ़े हम। ये जो सारी अकल बरसती है, वो आसमान से बरसकर हमारे दिमाग में घुस जाती है और पैसा कहाँ से बरसता है? पैसा बेटे, आसमान से बरसता है और हमारी तिजोरी में घुस जाता है। इससे हम कहते हैं कि ठहरिए अभी तिजोरी बंद है, चाबी नहीं मिल रही है। चाबी नहीं मिल रही है तो क्या हुआ, हम ऐसे ही घुस जाएँगे और पैसा तिजोरी से निकाल लाएँगे।
डेमॅन—गुरु-देवता
ये कौन घुसाता है ? डेमॅन। डेमॅन कौन-सा होता है ? डेमॅन कहते हैं भगवान को। आपके डेमॅन का क्या नाम है? अपने गुरु को हम डेमॅन कहते हैं। गुरु क्या होता है ? अरे बेटे, वह भगवान है। भगवान हमको देता है। हरेक को वह नहीं दे सकता। आपका गुरु हमको दे देगा? नहीं बेटे, आपको नहीं देगा। गुरु जी आप हमको अपने गुरु जी का साक्षात्कार करा दें। हाँ बेटे, हम दर्शन तो आपको करा देंगे, लेकिन उससे क्या फायदा होगा? जैसे ही दर्शन करेंगे, वैसे ही वे पैसा दे देंगे। चल बेहूदा कहीं का, इसीलिए तू दर्शन करेगा। देख मैं कुछ नहीं देता। उदाहरण के लिए बैंक में जाइए और कहिए कि मैनेजर साहब! हाँ, हम आपका दर्शन करेंगे, तो आप दर्शन कीजिए न। हाँ साहब, दर्शन हो गए आपके। अब जाइए आप। नहीं साहब, हम जिस काम से आए थे, जिस मनोकामना को पूरी करने के लिए आए थे, उस मनोकामना का क्या हुआ? हमको पंद्रह हजार रुपये दे दीजिए। आपका बैंक में एकाउंट है? नहीं साहब! बैंक में तो कोई एकाउंट नहीं है, तो फिर किस बात के माँगते हैं। दर्शन की फिलॉसफी नहीं समझते और आ गए दर्शन करने। तो हो गया हमारा दर्शन, जाइए। नहीं साहब, अभी तो दर्शन नहीं हुआ। हम कौन हैं ? राजेश खन्ना हैं, जो दर्शन करने को आए हैं। बेकार की बातें करता है। यही समझता है कि हम देखेंगे और देख करके निहाल हो जाएँगे। देखने से कुछ भी नहीं होगा।
आप स्वर्ग देखेंगे या नरक, चलिए हम दिखा लाते हैं। अच्छा चलिए पहले लक्ष्मी जी के दर्शन करते हैं। स्टेट बैंक में जब नोटों के बंडल आते हैं, तो खुलते हैं और रख जाते हैं। देखिए, लक्ष्मी जी के दर्शन कीजिए। दर्शन कर लिए, अब आप जाइए। फलाने जी का दर्शन करेंगे, ढिकाने जी का दर्शन करेंगे, बस दर्शन ही दिमाग में सवार हो गया है। एक तो वो वहम सवार हो गया था कि मनुहार करेंगे और उपहार पाएँगे। अब एक और वहम आ गया कि दर्शन करेंगे और निहाल हो जाएँगे। बहुत करेंगे दर्शन? दर्शन की फिलॉसफी समझते नहीं और दर्शन के लिए कहते हैं। दर्शन करने का मतलब क्या है जानते हैं आप? गाँधी जी का दर्शन जिन्होंने किया था, उनका नाम था नेहरू। गाँधी जी का दर्शन जिन्होंने किया, उनका नाम था पटेल। गाँधी जी का दर्शन जिन्होंने किया, उनका नाम था मालवीय। गाँधी जी का दर्शन जिन्होंने किया, उनका नाम था अमुक और अमुक। उनका दर्शन तो हमने भी किया था। अच्छा गाँधी जी का दर्शन किया था तो फिर क्या हुआ आपका? अरे साहब! चप्पल खो गईं और हमारी जेब कट गई, जब गाँधी का दर्शन करने गए थे। दर्शन करने गए थे या भाड़ में?
अध्यात्म है साइंस ऑफ सोल
मित्रो! क्या करना पड़ेगा? आपको आध्यात्मिक जीवन में पात्रता का विकास करना होगा। तभी आवाज की प्रतिध्वनि की भाँति भगवान के अनुग्रह बरसते हैं और आदमी अपनी सामर्थ्य से अधिक काम करने में समर्थ हो जाता है। बड़े-से काम करने के लिए, अपने लिए और पराये के लिए कुछ करने में वह समर्थ हो जाता है। मेंहदी हम पीसते हैं दूसरों के फायदे के लिए, पर हम स्वयं निहाल हो जाते हैं। ऐसा है अध्यात्म, जो मैं आपको सिखाने वाला था। इस अध्यात्म का बेस बेटे एक ही है। क्या बेस है कि आप अपने व्यक्तित्व को ठीक करें। अपने भीतर वह कशिश पैदा कीजिए। कौन-सी? जिससे जो चीज आप पाना चाहते हैं, पा सकें। इसे क्या कहते हैं ? अध्यात्म इसी का नाम है। जो अध्यात्म आपने पढ़ा है, वह अध्यात्म नहीं है। अध्यात्म माँगने की विधा का नाम नहीं है। बाहर से पाने की विधा का नाम नहीं है। अध्यात्म किसे कहते हैं ? अध्यात्म कहते हैं, साइंस ऑफ सोल को, सोल की साइंस को। सोल का हम डेवलपमेंट कैसे कर सकते हैं, सोल को परिष्कृत कैसे कर सकते हैं? सोल को हम शानदार कैसे बना सकते हैं, जिससे बाहर की चीजें खिंचती हुई चली जाएँ।
मित्रो! हमारा अपना मैग्नेट सुरक्षित करने की कला का नाम अध्यात्म है। अपना मैग्नेट जब खींचता है, तो ये बाहरी चीजें खिंचती हैं। प्लांट जब खींचते हैं, तो बादल बरसते हैं। बादलों का मैग्नेट नहीं है। पेड़ जब खत्म हो जाते हैं, तो पानी बरसना बंद हो जाता है। पेड़ों का मैग्नेट ही उन्हें खींचता है। खजाने जब पैदा होते हैं, तो इसके अंदर जो लोहा होता है, वो दूर-दूर तक खींचता रहता है और खजाने में अपने पास जमा कर लेता है। मैग्नेट खींचता रहता है। चोर चोरों को खींचते रहते हैं। आपको मालूम है कि एक जुआरी के पास ढेरों जुआरी जमा हो जाते हैं और वेश्याओं के यहाँ भँवरे जमा हो जाते हैं। कहाँ से भँवरे आ जाते हैं ? क्यों साहब, आप कहाँ से आए? हम तो साहब बहुत दूर के रहने वाले हैं। आपका ये कौन लगता है ? कोई नहीं लगता। क्यों साहब, फिर ये आपके कमरे में क्यों रहते हैं ? कशिश ने इन्हें खींच लिया। जुआरी के पास जुआरी, चोरों के पास चोर, लफंगों के पास लफंगे, विद्वानों के पास विद्वान, ज्ञानियों के पास ज्ञानी खिंचे चले आते हैं। ऐसी आदतें या आदमी के भीतर का मैग्नेट जब उछाल मारता है, कशिश उठती है, तो वह समानधर्मी को अपने पास अनायास ही खींच लेता है।
मित्रो ! जब आपका मैग्नेट भीतर से बढ़ेगा, तब आप खींचने में समर्थ हो जाएँगे। वे चीजें जिनका अनुभव मुझे व्यक्तिगत रूप से है, वही आपको बता रहा हूँ। हवा में गायब हो जाने का? बेटे, हवा में गायब हो जाने का अनुभव हमको नहीं है और क्या पेशाब से दिया जलाने का अनुभव आपको नहीं है ? बेटा, वो भी नहीं है। हमको जब दिया जलाना पड़ता है, तो मोमबत्ती जलाते हैं और तेल जलाते हैं। पेशाब से जला दीजिए। बेटे, हमको नहीं आता और कोई करामातें भी नहीं आतीं। करामातों से कोई अध्यात्मवादी नहीं हो जाता। अध्यात्म अपने आप में सबसे बड़ी करामात है। उससे आदमी महान् आत्मा हो जाता है, देवात्मा हो जाता है, ऋषि हो जाता है और नर से नारायण हो जाता है। ये अपने अपने आप में एक विधा है।
व्यक्तित्व का चुंबक
मित्रो! आध्यात्मिक शक्तियों को आदमी की कशिश खींचती है। किसको खींचती है? जो सिद्धियाँ आप चाहते हैं, उनको कशिश खींचती है। गुलाब का फूल जब खिलता है, तो भँवरों को खींचता है, तितलियों को खींचता है और शहद की मक्खियों को खींचता है। आदमी जब खिलता है, तब देवताओं को खींचता है, भगवान को खींचता है, पड़ोसियों को खींचता है, समाज को खींचता है और अपने अंतरंग में दबी हुई क्षमताओं को खींचता है। सारी-की सारी चीजें खिंचती हुई आ जाती हैं और आदमी संपन्न हो जाता है, समर्थ हो जाता है। ये किसके ऊपर टिका हुआ है अपना व्यक्तित्व, अपने आपको सुधार लेने के ऊपर। यही हैं अध्यात्म के सिद्धांत, जो मैं आपको सिखाने वाला था, पढ़ाने वाला था।
मित्रो! मैं क्या कहने वाला था? ऋषियों की उसी वाणी को दुबारा दोहराने वाला था, जिसमें यह कहा गया था कि आत्मा वा रे ज्ञातव्य ध्यातव्य निदिध्यासतव्यं। अरे मूर्खो, अपने आपको देखो, अपने आपको समझो और अपने आपको ठीक करो। यह क्या है? यह ऋषियों की वाणी है और यह वो अध्यात्म है, जिसमें भगवान ने कहा है कि यदि इंसानों से आप ऊँचा उठना चाहते हैं, आगे बढ़ना चाहते हैं, खुशी होना चाहते हैं, समृद्ध होना चाहते हैं, संपन्न होना चाहते हैं, तो उसके लिए क्या तरीका हो सकता है ? फार्मूला क्या हो सकता है ? भगवान ने कहा, उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। अर्थात् अपने
आपको उठाइए, अपने आपको गिराइए मत।
मित्रो! गिराता कौन है? इंसान। उठाता कौन है ? भगवान। इंसान के भीतर उठाने वाला जो माद्दा है, उसको कहते हैं भगवान। भगवान किसे कहते हैं? आदमी के भीतर एक ऐसी प्रेरणा है, जो आदमी को उठा देती है, वही भगवान है। जो व्यापक भगवान है, उसको तो बेटा कौन कहेगा। वह तो बहुत फैला हुआ है, उसकी तो बात ही मत कीजिए। ब्रह्म तो इतना विस्तृत है, इतना विस्तृत है कि हमारी अकल भी काम नहीं करती। हमारे भीतर वह भगवान है, जो हमें उठाता है। और वह भगवान नहीं है, जो गिराता है, उसको बेटे, शैतान कहते हैं। शैतान को रोकिए, भगवान का समर्थन कीजिए और आप स्वयं ऊँचे उठिए।
मित्रो! ये किसने कहा है ? गीताकार ने कहा है, उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। अपने आपको उठाओ, अपने आपको गिराओ मत। अपने आपको कौन गिराता है ? अरे कोई नहीं गिराता, आप स्वयं अपने आपको गिराते हो। नहीं साहब, हमको पड़ोसी तंग करता है और बीबी तंग करती है और मुहल्ले वाले तंग करते हैं, बुखार तंग करता है। कोई नहीं तंग करता। आप अपने आपको स्वयं तंग करते हैं। आपका अपने आपको तंग करने का माद्दा ही है, जो आपके सामने आ जाता है। आप अपने आपको ठीक करिए। आप एक मित्र से मित्रता बना लीजिए और एक दुश्मन से आप पीछा छुड़ा लीजिए। अध्यात्म में कौन-सा मित्र है और कौन-सा दुश्मन है? आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन: अर्थात् आप ही अपने बैरी हैं और आपने ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ा मारा है और आप ही हैरान होते हैं। आप ही उद्धरेत् अर्थात् अपने आपको सही कीजिए, अपने आपको ठीक कीजिए।
अपने आपको बदलें
मित्रो! आप अपने आपको बदल लीजिए, फिर देखिए किस तरह से दुनिया बदल जाती है। सारा-का वातावरण बदल जाता है। आप अपनी आँखों का चश्मा बदलिए, हरा चश्मा छोड़िए और लाल चश्मा पहनिए, फिर देखिए, सारी दुनिया लाल हो जाएगी। आपके पास जो निगेटिव चिंतन है, अंतर्मुखी जीवन है। स्वार्थ से घिरा हुआ चिंतन आपके ऊपर हावी है, इसको आप ठीक करना शुरू कर लें, फिर मैं आपको यकीन दिलाता हूँ, विश्वास दिलाता हूँ कि आपको तीनों तरह की सहायता मिलेगी। देने के लिए तीनों खड़े हुए हैं, पहला—आपका अंत:करण, सिद्धियाँ देने के लिए खड़ा है। हमारे भीतर दिव्य शक्तियाँ हैं, दिव्य क्षमताएँ भरी पड़ी हैं और हम आपको उछाल सकते हैं। आपके भीतर का वर्चस्व, आपके भीतर का वैभव उठे, तो वह आपको निहाल कर देगा। दूसरा—समाज के लोग आपकी आरती उतारने के लिए खड़े हैं। आप जरा प्रकाशवान तो होइए, फिर देखिए हम आपकी कितने तरीके से सहायता करते हैं। सामाजिक जीवन में लोग कितना सहयोग करते हैं और तीसरे—भगवान का, जीवन देवता का अनुदान वरदान किस तरीके से आपके ऊपर बरसते हैं। आपके लिए देवता फूलों का विमान लिए बैठे हैं। आप अपने को बदलिए तो सही, ऊँचा तो उठाइए। दैवी अनुदान सतत आप पर बरसते ही रहेंगे। आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्तिः॥