उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मन मैला ही रहा अगर तो उजला तन बेकार है।
जनहित में जो लगा न जीवन, वह जीवन बेकार है।।
शक्ति और सौंदर्य प्रदर्शन, में भी कोई शान है।
जिसने थामी बाँह दुखी की, धन्य वही इन्सान है।।
पक्ष न्याय का लिया कि जिसने, वही भुजा बलवान है।
अपने हित जो लगा रहा वह, धन-वैभव बेकार है।।
जनहित में जो लगा न जीवन, वह जीवन बेकार है।।
रूप देखते रहे मुग्ध बन, तुम दर्पण के सामने।
वृद्धावस्था आने वाली है, कब सोचा आपने।।
याद न आया कभी तुम्हें जो, काम दिया था राम ने।
दिखा सका जो मैल न मन का, वह दर्पण बेकार है।।
जनहित में जो लगा न जीवन, वह जीवन बेकार है।।
व्यर्थ परिश्रम किया, जुटाया, धन-वैभव बेकार में।
जन मंगल के लिये न कोई, अंश लगा संसार में।।
शत्रु बनाया है अपनों को, धन के इस अम्बार ने।
यह असीम सम्पदा और यह, सुख-साधन बेकार है।।
जनहित में जो लगा न जीवन, वह जीवन बेकार है।।
यह सारी सम्पत्ति-दिखावा, कहीं न जाना साथ में।
जिसे दिन जायेंगे उस दिन कुछ, नहीं रहेगा हाथ में।।
केवल पुण्य चमकते होंगे, कल की काली रात में।
जिसके लिये गँवाया जीवन, धन-कंचन बेकार है।।
जनहित में जो लगा न जीवन, वह जीवन बेकार है।।
मन मैला ही रहा अगर तो उजला तन बेकार है।
जनहित में जो लगा न जीवन, वह जीवन बेकार है।।