उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
तुम्हीं हो प्राण हम सबके, हमारी चेतना हो तुम।
हृदय से दूर करें कैसे, हृदय की भावना हो तुम॥
बताओ चेतना कैसे, किसी तन से अलग होगी?
सुकोमल भावना कैसे, सरल मन से अलग होगी?
करें कैसे विदा वे स्वर, तुम्हारी प्रेरणाओं के?
थकन में जो मिले तुमसे, सुखद झोंके हवाओं के॥
बिछुड़ सकते भला कैसे, हमारी कामना हो तुम॥
हृदय से दूर करें कैसे, हृदय की भावना हो तुम।
तुम्हीं हो प्राण हम सबके, हमारी चेतना हो तुम॥
हमारी हर प्रगति हर कार्य में, तुम ही समाए हो।
कि संकट में सुरक्षा चक्र लेकर, दौड़ आये हो॥
दिखाया लक्ष्य तुमने ही, तुम्हीं ने राह बतलाई।
हमें पतवार दी तुमने, जलधि की थाह बतलाई॥
हमारे साध्य औ साधन, तुम्हीं हो साधना हो तुम॥
हृदय से दूर करें कैसे, हृदय की भावना हो तुम।
तुम्हीं हो प्राण हम सबके, हमारी चेतना हो तुम॥
कदम जब डगमगाए थे, तुम्हीं ने तब सँभाला था।
अँधेरे मोड़ पर हमको, मिला तुमसे उजाला था॥
चलें, चलते रहें यह प्रेरणा, तुमने जगाई थी।
हृदय में धार करुणा की, तुम्हीं ने तो बहाई थी॥
हमारी दृष्टि हो तुम ही, सहज संवेदना हो तुम॥
हृदय से दूर करें कैसे, हृदय की भावना हो तुम।
तुम्हीं हो प्राण हम सबके, हमारी चेतना हो तुम॥
तुम्हारे स्नेह की सिहरन, सदा अनुभव करेंगे हम।
तुम्हारी प्रेरणा-पुलकन, सदा अनुभव करेंगे हम॥
मिलेगी जब कभी उलझन, तुम्हें फिर से पुकारेंगे।
तुम्हारे कार्य पथ में हम, स्वयं सर्वस्व वारेंगे॥
हमारे हर भविष्यत की, सुखद संकल्पना हो तुम॥
हृदय से दूर करें कैसे, हृदय की भावना हो तुम।
तुम्हीं हो प्राण हम सबके, हमारी चेतना हो तुम॥
हृदय से दूर करें कैसे, हृदय की भावना हो तुम॥