उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में (विचारों में) ढूँढ़ेगी।’’ — वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। —पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्!
देवियो, भाइयो! आप जिस सत्र में शामिल हुए हैं, उसका नाम परिवार सत्र है। आपको ऐसा मालूम पड़ रहा है कि आपको यहाँ किसी छोटे काम के लिए एकत्रित कर लिया है, परंतु ऐसी कोई बात नहीं है। किसी खास मकसद से आपको यहाँ बुलाया गया है। आप इस परिवार के सदस्य हैं। परिवार कोई मजाक की बात नहीं है। अरे साहब! परिवार में हम कैसे रह रहे हैं, यह तो हम स्वयं जानते हैं। परिवार हमारे लिए मुसीबत है।
मित्रो! आमतौर से परिवार माने मुसीबत, परिवार माने झंझट, यही परिवार की परिभाषा है। परिवार माने झंझट, आपत्ति, झगड़ा—आमतौर से लोग इसे ही परिवार कहते हैं। तो क्या हमने इसीलिए आपको बुलाया है? क्या नमक, तेल, हल्दी के मामलों की बात, दैनिक घरेलू कार्यों की बात बतलाने हेतु हमने आपको बुलाया है? नहीं, मित्रो! इस शिविर का बहुत महत्त्व है। यह हमारा बहुत प्यारा शिविर है।
पारिवारिकता ही होगा अगले दिनों लक्ष्य
साथियो! परिवार शब्द के साथ बहुत-सी महान् चीजें जुड़ी हुई हैं, इसलिए परिवार शब्द से हमें बहुत प्रेम है। परिवार हमें बहुत प्यारा लगता है। अगले दिनों में जब नए युग का निर्माण होने जा रहा है, तो इसके सिद्धान्त क्या होंगे, आदर्श क्या होंगे? क्रियाकलाप क्या होगा? यही बतलाने के लिए हमने यह शिविर बुलाया है। इसका मतलब कुटुँब एवं पारिवारिकता है। अगले दिनों संसार का यही लक्ष्य होगा। अगले दिनों इसके विशेष निर्धारण होने हैं। आपने देखा नहीं है कि जिस घर में आपाधापी होती है, वह घर नरक बन जाता है। बच्चे जेवर चुराकर भाग जाते हैं। लड़कियाँ अपने जेवर मायके में रख आती हैं। औरतें काम नहीं करती हैं। आपने देखा नहीं है कि बच्चे किस प्रकार गद्दी पर से, दुकान पर से रुपये चोरी करके आ जाते हैं। बहुएँ अपने पति के साथ अलग रहना चाहती हैं। इस तरह आपाधापी से परिवार के बरबाद होने से दुनिया बरबाद हो जाती है तथा समाज में तबाही आ जाती है।
आज दुनिया के सामने, जिसे हम नवयुग की समस्या कहते हैं, उसके सामने बहुत-सी समस्याएँ हैं, कठिनाइयाँ हैं। आज बहुत सारी दिक्कतें हैं, जिन्हें सुनने के बाद ऐसा लगता है कि इसका कोई समाधान ही नहीं है। मित्रो! आपको इस पर विचार करना होगा, क्योंकि आज दुनिया बहुत छोटी हो गई है। पहले जमाने में दुनिया बहुत बड़ी थी, बहुत फैली थी। एक आदमी का दूसरे से कम ताल्लुक था। अपना गाँव ही अपनी दुनिया थी। सभी जगहों से कोई मतलब नहीं था। गाँव की महिलाएँ घूँघट मारती थीं। पहले दुनिया ससुराल से घर तक सीमित थी, लेकिन आज दुनिया बहुत फैल गई है। आज सिनेमा की दुनिया से बच सकते हैं आप? बचकर दिखलाइए न। लड़के फैशन वाले पैंट पहने फिरते हैं, सिनेमा के गाने गाते फिरते हैं। उससे बचकर दिखलाइए न। उसे रोककर दिखलाइए न। घर में बगावत हो जाएगी।
मित्रो! आपका लड़का आपसे तो नहीं कहता, परंतु अपने दोस्तों से कहता फिरता है कि हम फिल्म के ऐक्टर बनेंगे। वह अपनी मम्मी का जेवर चुराकर घर से भाग जाता है। हाँ साहब! वह मुँबई चला गया था। क्यों गया था, जब आपने पूछा, तो उसने बताया था कि हम फिल्मों में काम करेंगे। फिल्मी ऐक्टर बनेंगे। लेकिन वहाँ फिल्म वालों ने इसे घुसने भी नहीं दिया, तो भागकर वापस आ गया। इसलिए कहता हूँ कि आप सिनेमा से बच्चों को बचाकर दिखाइए। साहब! हम तो रामायण पढ़ते हैं और हम अपने बच्चों को गुरुदीक्षा दिलाकर लाएँगे। अरे आप गुरुदीक्षा दिलाकर तो दिखाइए तब जानें। जमाने की हवा ने आपकी लड़की को क्या बना दिया? आप इस बारे में शर्म के मारे कुछ कहना नहीं चाहते हैं।
जमाने की हवा तो देखिए
मित्रो! जमाने की हवा से हम जुड़े हैं, उससे अलग नहीं हो सकते। आप कहते हैं कि हम अलग दुनिया बसा लेंगे। साथियों पहले कभी सौ-दो सौ, पाँच सौ साल पहले था ऐसा जमाना, लेकिन अब ऐसा बनाना तथा जीवन जीना संभव नहीं है। आज दुनिया आपके साथ जुड़ी है तथा आप दुनिया के साथ जुड़े हैं। आज की दुनिया में आपको कुटुँब के आधार पर जीना होगा। कुटुँब का एक ही सिद्धान्त है, मिल-जुलकर रहना तथा मिल-बाँटकर खाना। अरे! हम तो जमा करेंगे। नहीं, आप अपने लिए जमा नहीं कर सकते हैं। आप मिल-जुलकर काम कीजिए तथा मिल-जुलकर खाइए। हम कमाते हैं तो हम जमीन खरीदेंगे, मकान बनाएँगे, अपनी बीबी को जेवर खरीदेंगे, कपड़े बनवाएँगे। आप अभी से इसे कर लीजिए, हम कौन होते हैं आपको रास्ता बताने वाले परंतु मित्रो, इससे आपकी समस्याएँ, गुत्थियाँ बढ़ेंगी ही, उलझेंगी ही, समाप्त नहीं होंगी। उनका समाधान नहीं होगा। इसका एक ही समाधान है कि आदमी को कुटुँब के रूप में आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो अगले दिनों रहना होगा। इसके अलावा कोई समाधान नहीं हैं।
साथियो! कुटुँब का एक सिद्धान्त है। इसमें ऐसा नहीं होता कि जिसमें योग्यता, पुरुषार्थ, पराक्रम ज्यादा है और जो जितना अधिक कमाता है, वह उतना ही ज्यादा खाएगा। नहीं भाई साहब! वह ज्यादा नहीं खाएगा। उसे दूसरों को, कुटुँब को भी खिलाना होगा। यह कुटुँब का सिद्धान्त है, जिसके आधार पर हमारा कुटुँब-परिवार चलता है तथा उसका विकास होता है। आगे भी यही कुटुँब का आधार होगा। अगले वाली दुनिया का, आने वाले समय का यह एकमात्र सिद्धान्त होगा। अगले दिनों जो नियम, कानून एवं मर्यादा बनेगी, धर्म एवं संस्कृति बनेगी, जो भी आचार संहिता मनुष्य को चलाने-बढ़ाने के लिए बनेगी, उसका नाम होगा, ‘पारिवारिकता’ ‘कुटुँब’।
प्राचीनकाल में ऋषियों ने इसके लिए एक नारा दिया था, ‘वसुधैव कुटुँबकम्‘ अर्थात् सारी दुनिया को एक कुटुँब के रूप में रहना चाहिए। अतः आप मिल-बाँटकर खाइए और हिल-मिलकर रहिए। अगर इस बात को इंसान नहीं समझेगा तो उसकी ऐसी पिटाई होगी कि होश ठिकाने आ जाएँगे। आप अगर इसे अध्यात्मवादी-साम्यवाद कहें तो हमें कोई ऐतराज नहीं होगा। लेकिन हम कहेंगे कि आप कोई ऐसा फार्मूला बनाएँ जिसमें मनुष्य चैन से रहे और दूसरों को चैन से रहने दे। स्वयं खाए, प्रगति करे तथा दूसरों को भी खाने दे तथा प्रगति करने दे। आदमी हँसे तथा दूसरों को हँसने दे। वह स्वयं खिले और दूसरों को खिलने दें। आदमी जिए और दूसरों को जीने दे। यही वह सिद्धान्त है, जिसे पारिवारिकता कहते हैं। इन्हें आसानी से ग्रहण कर लें तो ठीक है, वरन् ऐसी जबरदस्त ताकतें आ रही हैं, जो आपको मजबूर करेंगी कि आपको मिल-जुलकर ही रहना पड़ेगा और मिल-जुलकर ही खाना पड़ेगा। इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है।
क्यों भाई! आप अमीर बनेंगे? हाँ साहब! अरे मिल जुलकर खाइए न। नहीं साहब! हम कमाएँगे और स्वयं खाएँगे। चुप, धूर्त कहीं का, ऐसा करेगा तो मार-मार कर दुनिया तुझे ठीक कर देगी। मित्रो! आप कमाइए तो सही परंतु दूसरों के लिए भी खरच कीजिए। नहीं, साहब! हम तो बेटे के लिए खरच करेंगे। चुप बदमाश कहीं का, अरे साहब! हम हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, भजन करते हैं, प्राणायाम करते हैं। बेटे, इससे क्या होता है। सिद्धान्त तो समझता नहीं है, भजन करता है, मक्कार कहीं का। यह पूजा-पाठ भगवान को खुश करने के लिए नहीं बनाया गया है।
यह पूजन किस काम का?
मित्रो! एक बार हमने एक भगवान् जी से पूछा कि आपका क्या ख्याल है? दुनिया वालों का तो ऐसा ख्याल है कि आप प्रसाद चढ़ाने वालों, सुपारी व नारियल चढ़ाने वालों, आरती उतारने वालों पर खुश हो जाते हैं। यह क्या मामला है। भगवान हम पर बहुत क्रोधित हो गए। गुस्सा हो गए। उन्होंने कहा गुरु जी! आप तो पढ़े-लिखे हैं और पढ़े-लिखे होकर भी इस प्रकार के बेहूदेपन को पसंद करते हैं। क्या हम इतने घटिया और छोटे हो सकते हैं, जो इस छोटे-से पूजा-पाठ से खुश हों जाएँ और आशीर्वाद दें? भगवान् जी! हम तो नहीं मानते हैं, लेकिन हमारे चेले यही मानते हैं। तो फिर आप ऐसे चेलों की पिटाई कीजिए, जो हमारे ऊपर इस प्रकार का लाँछन लगाते हैं और हमें इस प्रकार का जलील समझते हैं। दोस्तो! आपकी पूजा, आपकी उपासना आपको मुबारक हो, लेकिन अध्यात्मवाद को इससे कोई मतलब नहीं है। इन सब प्रक्रियाओं से एक ही मतलब है कि आदमी का चरित्र, आदमी का व्यवहार, आदमी का व्यक्तित्व ऊँचा उठे, परिष्कृत बने।
साथियो! देवता बहुत व्यस्त रहते हैं, हमसे भी ज्यादा व्यस्त रहते हैं। भगवान् के पास आपकी बेहूदी बातों के लिए समय नहीं है। छोटी-छोटी कंपनियाँ होती हैं, उसे सँभालने में आदमी का कचूमर निकल जाता है, फिर भगवान तो इतनी बड़ी सृष्टि की व्यवस्था को देखता है। आपको मालूम नहीं है कि हमारे पास कितना काम है। ब्रह्मवर्चस का काम हमारे पास है, लेखन का काम हमारे पास है, मिशन का काम हमारे पास है। इतना काम हमारे पास है कि हमारे पास बेकार के कामों के लिए फुर्सत नहीं है। इंदिरा गाँधी से मालूम कीजिए न, उनका सेक्रेटरी आपको डंडे मारकर भगा देगा। गुरुजी! हम तो आपको माला पहनाएँगे, चरण धोएँगे। मक्कार कहीं का, हमारा समय खराब करता है। भगवान् से ज्यादा व्यस्त समय किसी के भी पास नहीं है। आप बेकार की बातें मत करें। इस संसार में जितनी भी महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ हैं, उनके पास समय नहीं होता है। वे पूरे समय व्यस्त रहते हैं।
मित्रो! पूजा-पाठ का एक ही मतलब है, इसे चाहे एक बार सुनिए, चाहे निन्यानवे बार सुनिए। इसका तथ्य एक ही है कि इंसान के सोचने का ढंग, विचार करने का ढंग इंसान के तरीके से हो जाए यानि उनका व्यक्तित्व ऊपर उठ जाए। जैसे-जैसे आप सही इंसान बनते जाते हैं, वैसे-वैसे आप भगवान के नजदीक पहुँचते जाते हैं। उस समय आप भगवान् के सान्निध्य का लाभ एवं भगवान् की ऋद्धि एवं सिद्धियों को आप प्राप्त कर सकते हैं। स्वर्ग, चमत्कार, मुक्ति सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं। आपसे हम यह कहना चाहते हैं कि यह सारा-का-सारा अध्यात्म मनुष्य के पूजा-पाठ से संबंध नहीं रखता है, बल्कि मनुष्य के चिंतन एवं चरित्र से संबंध रखता है। आपको यह मालूम होना चाहिए कि जैसे-जैसे आपका चिंतन, चरित्र ऊँचा उठता चला जाएगा, आपके अंदर सिद्धियाँ आती चली जाएँगी। यह अध्यात्म सुभाष चंद्र बोस के अंदर आया था, नेहरू, पटेल के अंदर आया था। यह उन लोगों के अंदर आया था, जिनका चिंतन और चरित्र महान् बना।
साथियो! आप तो देवताओं की हजामत बनाने वाले हज्जाम हैं, चिड़ियों को मारने वाले चिड़ीमार हैं। इससे काम नहीं चलेगा। आप देवताओं को पकड़ना चाहते हैं। ऐसा अध्यात्म कभी हुआ है क्या? मछलीमार जैसा अध्यात्म, चिड़ीमार जैसा अध्यात्म कभी नहीं हुआ, जैसा कि आज है। अरे साहब! कोई भी देवी-देवता हमारे चंगुल में नहीं आया और हमारी मनोकामना पूर्ण नहीं हुई। इस तरह काम कैसे चलेगा? चुप रह मक्कार कहीं का, बड़ा आया भक्त बनने। ख्वाब मत देखिए, वास्तविकता के पास आइए और अपने सोचने एवं काम करने का ढंग बेहतरीन बनाइए। आप बेहूदेपन की पूजा बंद कीजिए। आपने तो पूजा के नाम पर उलटे जंजाल फैला दिया है। इससे आपको कोई लाभ होने वाला नहीं है।
नवयुग-सतयुग
मित्रो! मैं यह कहना चाहता था कि अगली दुनिया जिसमें सब लोग प्रसन्नता का जीवनयापन करेंगे, खुशहाली, शान्ति, सिद्धि, चमत्कार का जीवन जिएँगे, यह युग सतयुग होगा, धर्मयुग होगा। इसे चाहे जो भी आप नाम दें, इसमें हमें कोई नाराजगी नहीं होगी, लेकिन नवयुग का आधार एक होगा, कानून एक होगा। नवयुग की संस्कृति एक होगी। तब क्या होगा? पारिवारिकता का वातावरण होगा। वह क्या है? आप जो दायरा अभी इस्तेमाल करते हैं, वह बड़े दायरे में करना होगा। आपको आठ सौ पचास रुपया मिलता है, इससे आप क्या करते हैं? अरे साहब! खाने में, बीबी-बच्चों में खरच हो जाता है। छोटा भाई स्कूल जाता है, उसमें खरच हो जाता है। कुछ शादी में कर्ज लिया था, उसको दे देते हैं। क्यों अपने लिए ही तो खरच नहीं करते हैं? नहीं साहब! इतना पैसा हम अकेले में कैसे खरच करेंगे? हमें अपनी बहन को भेजना पड़ता है।
साथियो! जो सिद्धान्त आज आप अपने कुटुँब में लागू कर रहे हैं, उसे सारे समाज में लागू करना होगा। आपके पास धन है, आप संपन्न व्यक्ति हैं, इसका श्रेय आपको मिलेगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप स्वयं अकेले खाएँगे, मौज-मस्ती करेंगे। अगर आप ऐसा करते हैं, तो लोग आपका गला दबाकर उल्टी करा देंगे। अध्यात्म का युग आएगा, तो इसी प्रकार का आएगा। अनावश्यक चीजें आपको नहीं मिलेंगी। आपके पेट में जितनी जगह है, उतना ही खाइए, शेष बाँटिए, नहीं तो लोग आपका गला दबाएँगे तथा उल्टी करा देंगे। तो गुरुजी! क्या ऐसा जमाना आ रहा है? हाँ बेटे, बिल्कुल आ रहा है।
मित्रो! आपके चाहने से आपके लिए दुनिया तो नहीं बदलेगी। आप अपनी चाह, अपनी मरजी को अपनी जेब में रखिए। दुनिया की समस्या का हल जिस तरह से होना है वह उसी प्रकार से होगा। ऋषियों ने जो नारा लगाया था, आज हम पुनः उस नारे को लगाते हैं, ‘वसुधैव कुटुँबकम्‘ का। इसके आधार पर ही दुनिया में मोहब्बत, चलन, रिश्ते, व्यवहार एक होंगे। इसका विकास पारिवारिकता की भावना से ही होगा।
हमारा अपना गायत्री परिवार
‘परिवार’ शब्द से हमें बहुत प्यार है। हमने अगर विश्वास किया है, तो पारिवारिकता पर किया है। हमने जो संगठन बनाया है, तो उसका आधार कौटुम्बिकता है। कुटुँब पर मैं विश्वास करता हूँ। हर ईमानदार आदमी अपना सारा का सारा समय, संपदा अपने कुटुँब तथा परिवार के विकास के लिए खरच करता है। हमने भी गायत्री परिवार के नाम से जो परिवार बनाया है, उसके लिए खरच करते हैं। जब मिशन छोटा था और हम तपोभूमि में रहते थे, उस समय अखण्ड ज्योति निकलती, तो हमने ‘अखण्ड ज्योति परिवार’ शब्द का इस्तेमाल किया है। पुराने लेटर पैड पड़े होंगे, उनमें यही छपा है। जब गायत्री का प्रचार हमने शुरू किया तो ‘गायत्री परिवार’ बना दिया। उसके बाद ‘युग निर्माण परिवार’ बना दिया। अब प्रज्ञा अभियान शुरू किया तो ‘प्रज्ञा परिवार’ बना दिया।
मित्रो! यह परिवार हमारे प्राणों का अंश है। आप देखते नहीं हैं? इसको हमने सींचा है, बढ़ाया है। हमारा परिवार किस तरह से जुड़ा है, आप देखते नहीं? माताजी आपकी माताजी हैं। वे अगर आपकी माताजी हैं, तो हम भी आपके पिताजी हैं। आपने इस परिवार में यह नहीं देखा होगा कि कोई इस परिवार में छोटा है तथा कोई बड़ा है। हमारे यहाँ परिवार के अलावा अन्य कोई व्यवहार, सिद्धान्त है नहीं। इसके अलावा हम किसी चीज पर विश्वास नहीं करते हैं।
साथियो! परिवार शब्द बड़ा महान् है। इसके साथ मानवीय समस्याएँ, विश्व की समस्याएँ जुड़ी हुई हैं। आप यह कहते हैं कि घर-परिवार से निश्चित हो जाएँगे, तो उसे छोड़ देंगे। उस समय मैं खून का घूँट पीकर रह जाता हूँ तथा आपको कुछ कहता नहीं हूँ। जब आप यह कहते हैं कि गुरुजी! घर का जंजाल छूटा और हम आपके शरण में आए, तो हमें हँसी आ जाती है और मैं कहता हूँ कि जब यहाँ आएगा, तो बड़ा परिवार तेरे ऊपर हावी हो जाएगा। अभी तेरे परिवार में कितने आदमी हैं। गुरुजी! माँ, पत्नी और दो बच्चे हैं। अच्छा! तो पाँच का परिवार है। तू क्या समझता है कि यहाँ बाबा जी लोग रहते हैं, बेकार के लोग रहते हैं, जो तू निश्चिंत होकर आएगा। नहीं साहब मैं तो सब तरह से ‘फ्री’ होकर आऊँगा और यहाँ आकर माला जपूँगा। गुरुजी आपकी सेवा करूँगा। चल हट मक्कार कहीं का, ऐसा डंडा मारूँगा कि अकल ठीक हो जाएगी। परिवार को छोड़कर आएगा। अरे! हमारे पास भगोड़ों के लिए कोई जगह नहीं है।
मित्रो! जोधपुर के महाराज युद्ध में हार गए। सारे सैनिक मारे गए। राजा साहब किसी तरह जान बचाकर आ गए और उन्होंने गेट पर से, जो बंद था, आवाज लगाई। रानी ने कहा, "राजा साहब! आप अकेले कैसे आ गए? आपको सैनिकों के साथ आना चाहिए था। बिगुल बजाकर आना चाहिए था।" गेट खोलने जा रहे अपने सिपाही से रानी ने कहा कि ठहर जा। वे महल के ऊपर चढ़ गई और बोली, "आप राजा नहीं हो सकते। सेना कहाँ गई?" उन्होंने कहा कि सेना मारी गई। रानी ने कहा, "जोधपुर का महाराज ऐसा बेहूदा नहीं हो सकता। आप हमारे पति नहीं हो सकते। आप वहीं जाइए तथा युद्ध कीजिए। आप यदि मारे भी जाएँगे, तो आपके सिर को लेकर मैं प्यार करूँगी। भगोड़े को मैं प्यार नहीं करूँगी।" इसी तरह यदि आप भी भगोड़े बनकर आ जाएँगे, घर छोड़कर आ जाएँगे, तो आपके लिए शान्तिकुञ्ज का यह दरवाजा बंद मिलेगा। हम आपको घुसने नहीं देंगे। आप कहते हैं कि हम जिम्मेदारी से निवृत्त हो जाएँगे, तब आएँगे। क्या निवृत्त हो जाएँगे? क्या समाज का उत्तरदायित्व नहीं है आपके ऊपर? देश का उत्तरदायित्व नहीं है? नहीं साहब! अभी तो बेटी की शादी करनी है, उससे निवृत्त हो जाऊँगा, तब आऊँगा। तब ऐसी चपत लगेगी कि होश ठिकाने आ जाएँगे। पारिवारिकता बहुत विशाल चीज है।
समझें अध्यात्म के मर्म को
आध्यात्मिकता के बारे में भी क्या आप कुछ सोचते हैं, जानते हैं, इसके सिद्धान्तों को, आदर्शों को भी समझिए। नहीं साहब! हम जप करेंगे, प्राणायाम करेंगे तो हमें सिद्धि मिलेगी। बड़े आए सिद्धि वाले? देवताओं का साक्षात्कार करेंगे? बेटे! देवता इतने फालतू नहीं हैं कि आपने पुकारा और वे आ गए। आप शंकर भगवान् को बुलाना चाहते हैं न? वे आपसे कोसों दूर हैं। उन्हें आप ऐसे नहीं बुला सकते हैं। आप स्वामी जी को बुलाते हैं, तो उनको फर्स्ट क्लास का टिकट दिया है या नहीं? आप हमें बुलाएँगे तो दान-दक्षिणा देंगे कि नहीं? आप पेट्रोल का खरच तो देंगे ही। हाँ साहब! हम देंगे। अच्छा तो यह पक्की बात है। आप शंकर भगवान् को बुलाना चाहते हैं, तो जरा उन्हें पेट्रोल का खरच दीजिए। आप लक्ष्मी-नारायण हो बुलाना चाहते हैं, तो उन्हें पेट्रोल का खरच दीजिए। हम उन्हें फोन कर देंगे और वे आ जाएँगे। अरे साहब! लक्ष्मीनारायण जी दस हजार किलोमीटर दूर हैं। चुप रह, सारे दिन बक-बक करता रहता है कि देवता का दर्शन करा दीजिए। अज्ञानी कहीं का। पहले आध्यात्मिकता का सिद्धान्त समझिए।
आदमी अपने ऊपर तो हावी हो सकता है, किंतु देवताओं के ऊपर नहीं हो सकता और न ही उन पर हावी होने की जरूरत है। देवता के सामने नाक रगड़ने की भी आवश्यकता नहीं है। आप अपने आप अपनी नाक रगड़िए, अपने आपको सही कीजिए। आप अपने आपको ठीक करना शुरू कीजिए, फिर देखिए आपको सिद्धि मिलती है या नहीं। आप अपने को बनाने का प्रयास नहीं करते हैं। आप तो देवता की हजामत बनाने के लिए उस्तरा, कैंची लिए फिरते हैं। इसे बंद कीजिए।
मित्रो! अगले दिनों अध्यात्म का नया स्वरूप सामने होगा। तब आपकी जो भी भावना अपने परिवार की बच्ची के प्रति है, वही भावना व व्यवहार समाज की बच्ची के साथ रखना होगा। पारिवारिकता में वे सारी चीजें शामिल हैं। नारी के प्रति अभी जो दृष्टिकोण आपका है, उसे बदलना होगा। बच्चियों के प्रति आपका दृष्टिकोण कैसा हो, माँ-बाप के प्रति तथा संसार में जो इस उम्र के हैं, उनके प्रति आपका दृष्टिकोण क्या हो? इसका सही रूप से मूल्यांकन करना होगा।
घर को तपोवन, परिवार को प्रयोगशाला बनाइए
अगर आपको अध्यात्म सीखना हो, तो जंगलों में तप करने, तपोवन बनाने मत जाइए। अपने घर को ही तपोवन बनाइए, उसे ठीक कीजिए। हमने ढेर सारी पुस्तकें इस संदर्भ में लिखी हैं। उन्हें पढ़िए एवं अपने घर को स्वर्ग बनाइए। परिवार एक प्रयोगशाला है। आप अपने माता-पिता के प्रति अहसान चुकाइए। आप तो केवल अपने बीवी-बच्चों का ही ख्याल रखते हैं। बुढ़िया को दमे की शिकायत है, उसका इलाज कराइए तथा एहसान चुकाइए और भी जिनका एहसान आपके ऊपर है, उसे चुकाइए। अगर आप अपने माता-पिता का एहसान नहीं चुकाएँगे, तो कल आपके बच्चे कैसे आपकी कदर करेंगे? मित्रो! इससे अच्छी प्रयोगशाला कहीं भी नहीं है। आपके अंदर जो श्रेष्ठ गुण हैं, उसे आप कहाँ से सीखेंगे और परखेंगे? कौन-सा योगाभ्यास करेंगे? परिवार जैसी लैबोरेटरी संसार में कहीं भी नहीं। क्या आप अपनी धर्म-पत्नी से नहीं सीखते हैं कि उसने कितना बड़ा आदर्श उपस्थित किया है, जो आप नहीं कर सकते हैं। उसके आत्मसमर्पण के सिद्धान्त को आप स्वीकार नहीं करेंगे क्या? वह अपने माँ-बाप, भाई-बहन को छोड़कर आपके घर आई। उसने अपनी जवानी, अपनी सेहत, अपना पुरुषार्थ, जेवर, पैसा, सब कुछ आपको अर्पित कर दिया था। जब आपके ऊपर कर्ज हो गया था, तो उसने अपना जेवर आपके हाथ में रख दिया था।
मित्रो! आपको सिखाने वाला एक मास्टर माँ के रूप में क्या नहीं मिला, जिसने अपने कलेजे का खून सफेद दूध में परिवर्तित करके पिलाया। स्वयं गीले में सोती रही और आपका इस प्रकार निर्माण कर दिया। अभी आपने अध्यात्म को समझा नहीं। आप गुफा में जाएँगे? भाड़ में जाएँगे। आश्रम में जाएँगे? हम कहते हैं कि इससे बड़ा आश्रम कहाँ है, जिसमें आपकी माँ रहती है, बाप रहता है, बीबी, बच्चे, भाई, बहन रहते हैं। मित्रो! हम संयम सिखाने आपको कहाँ ले जाएँगे। आप यह संयम अपनी बहन से, बेटी से सीखिए न। वे आपको सिखाती हैं कि आपकी आँखों में शैतानी नहीं आनी चाहिए। इसका व्यावहारिक शिक्षण-अध्यात्म देने के लिए आपकी बहन, बेटी एक उत्तम अध्यापिका हो सकती हैं। आपको संयम सिखाने के लिए इससे बड़ी अध्यापिका हम कहाँ से लाएँगे। आपने इस अध्यात्म को सीखने-समझने का कभी प्रयास नहीं किया, फिर कौन-सा महात्मा, संत, योगी लाऊँ आपके लिए। आपकी माता, बाप, पत्नी, बच्चे, बच्चियाँ, बहन, भाई अलग-अलग तरह की नसीहतें देते हैं, जो आपको व्यावहारिक अध्यात्म बतलाते हैं। इससे बड़ा प्रशिक्षण आपके पास हम कहाँ से लाएँ? आपके लिए यह लैबोरेटरी आपको अध्यात्म के पूरे-के-पूरे प्रशिक्षण देने में सक्षम है। आपको इसे समझना चाहिए।
गुरुजी! आप परिवार से अलग हो सकते हैं? बेटे! हम परिवार से कभी भी अलग नहीं हुए हैं। वह परिवार जिसे आप वंश कहते हैं, उससे हमारा उतना मतलब नहीं है, जितना कि यह ‘गायत्री परिवार’ ‘प्रज्ञा परिवार’ ‘युग निर्माण परिवार’, आपको हम परिवार बढ़ाने के लिए कहते हैं, वंश बढ़ाने के लिए नहीं कहते। आपको इसे ज्यादा नहीं बढ़ाना चाहिए। आपके छोटे भाई हैं न, भतीजे हैं न उनको योग्य बना दीजिए। यह क्यों नहीं करते हैं आप? आपकी संतान नहीं है तो क्या हुआ, भाई के तो हैं। उनका पालन आप क्यों नहीं करते हैं? आपका वंश डूबता है, तो डूब जाए, ऐसे वंश से क्या फायदा? ऐसा स्वार्थी आदमी जो अपनी बीबी के पेट से निकले बच्चे को ही अपना बच्चा समझता है तथा बाकी बच्चों को बकरी के बच्चे समझता है, उसे मैं बेहूदा, मक्कार, नालायक कहता हूँ।
आज जनसंख्या बढ़ती जा रही है। लोग मक्खी, मच्छरों, सुअरों की तरह का वंश बढ़ाते जा रहे हैं। उनके लिए रोटी, कपड़ा, मकान की समस्या बढ़ रही है। ऐसे लोगों को इस बात की भी जानकारी नहीं है कि बच्चे खेलेंगे कहाँ? आप तो केवल वंश के पीछे पड़ गए हैं। आप यह नहीं समझना चाहते कि आपके बच्चे ही केवल अपने बच्चे नहीं हैं, आपकी बहन के बच्चे, भाई के बच्चे भी आपके बच्चे हैं। उनका लालन-पालन करिए। आप अकेले तो रह नहीं सकते हैं। कहीं-न-कहीं तो रहेंगे ही, चाहे वह जेलखाना ही क्यों न हो, घर बसाकर रहेंगे। आपको यहाँ आना हो तो अपने उत्तरदायित्व को पूरा करके आएँ। हमारे पारिवारिकता के सिद्धान्त अलग हैं। हम मिल-जुलकर रहते हैं, एक साथ रहते हैं, एक साथ खाना खाते हैं। यह है हमारा पारिवारिकता का सिद्धान्त। यह पारिवारिकता ही हमारे परिवार की समस्या, कुटुँब की समस्या, समाज की समस्या और राष्ट्र की समस्या हल करती है।
सही अर्थों में कुटुँब
साथियो! आपका कुटुँब कहाँ है? कितना बड़ा है। गुरुजी! हमारा कुटुँब बहुत बड़ा है। परिवार में अनेक सदस्य हैं। बेटे! उसे घर नहीं, जेलखाना कहिए। उसे भेड़ों का बाड़ा कहिए। एक ही बिल में से कितने चूहे निकलते हैं? आपने भेड़ों का झुँड नहीं देखा, एक ही जगह से कितनी भेड़ें निकलती हैं। आपने जेलखाना नहीं देखा है? आपने भटियारों का सराय नहीं देखा है? आपने कुटुँब का मजा कभी नहीं चखा है? आपने तो भटियारों का मजा चखा है। उनके पास मुसाफिर आते हैं। उन्हें वे रोटी बनाकर खिला देते हैं। खाट बिछाकर सोने की व्यवस्था कर देते हैं। आपका कुटुँब भी इसी प्रकार का भटियारखाना है। आप सराय में रहते हैं, भटियारखाने में रहते हैं, जहाँ न त्याग है, न सेवा है, केवल एक ही चीज है जालसाजी। आज बीबी-मरद का, मरद बीबी का, भाई-भाई का नहीं है, केवल शतरंज की बिसात बिछी हुई है सर्वत्र। कौन किसको मात देगा, कहा नहीं जा सकता कि ऊँट घोड़े को मात देगा या घोड़ा हाथी को मात देगा अथवा प्यादा बादशाह को मात देगा। सभी जगह शतरंज की चाल बिछी हुई है। क्या ऐसा ही कुटुँब होता है? ऐसे कुटुँब पर लानत है, जो किसी को देखना ही नहीं चाहता, जहाँ केवल अपना स्वार्थ ही सबको दिखाई देता है।
कुटुँब कैसे होते हैं? यही बताने के लिए हमने आपको बुलाया है। हम चाहते हैं कि सारा समाज ही अगर बने तो कुटुँब के आधार पर बने, पारिवारिकता के आधार पर बने। कोई भी कानून बने, नीति बने, मर्यादा बने, चाहे वह सामाजिक हो अथवा राजनीतिक, वह इसी आधार पर हो। अगर आध्यात्मिक, नैतिक, सामाजिक कानून बने, तो वह भी इसी आधार पर बने। प्राचीनकाल में समाज इसी आधार पर बनाया जाता था। इसी आधार पर हमने यह पारिवारिक सत्र बुलाया है। यह हमें प्राणों से भी प्यारा है। आपको व्यक्तिगत स्वार्थ प्यारा है न। चलिए आप इसी के द्वारा अपना शारीरिक स्वास्थ्य मजबूत बनाना चाहते हैं न? आप मन में शान्ति चाहते हैं न? आपके साथ जो रहते हैं, उनसे आत्मीयता, प्रेम चाहते हैं न? आप जो पैसा कमाते हैं, उसमें किफायत करके बचत करना चाहते हैं न? तो हम आपसे एक बात कहना चाहते हैं कि कुटुँब को नए सिरे से देखिए। उन पर नए सिरे से गौर करना, विचार करना शुरू कीजिए। उस पर ध्यान रखना शुरू कीजिए।
मित्रो! आपके ख्याल में कुटुँब का मतलब आपके खानदान वालों के साथ है। उन्हें ज्यादा-से-ज्यादा खुशहाल कैसे रख सकते हैं? चमकदार कैसे बना सकते हैं? अभी आप जब 1200 रुपये महीने पाते हैं, तो अपनी लड़की को खुशहाल बनाने के लिए ऐसे कपड़ा बनाना चाहते हैं, उसकी ऐसी कटिंग करना चाहते हैं कि जब वह स्कूल या कॉलेज जाए, तो वहाँ सारी-की-सारी लड़कियाँ उसे देखें तथा लड़के भी उसे देखें। लोग कहें कि बाबू जी की लड़की आई है। अभी आप तनिक-सी खुशहाली के लिए लड़के एवं लड़की को जो छूट दे रहे हैं, उसकी सजावट के लिए, प्रसन्नता के लिए जो आप कर रहे हैं, वह एक दिन आपके लिए मुसीबत लेकर आएगी, आप तबाह हो जाएँगे। ऐसी खुशहाली आपको कहीं का नहीं छोड़ेगी। आपकी लड़की मरेगी तथा उसे गुंडे तंग करेंगे। वह बार-बार जो शीशे में आँखें देखती है, काजल लगाती है, देख लेना जब वह ससुराल जाएगी तथा शादी होगी तो उसके ऊपर क्या आफत आएगी।
फैशन−परस्ती को बढ़ावा देकर आप लड़की को मार डालेंगे क्या? उसका ड्रेस बनाकर, फैशन बढ़ाकर क्या करेंगे? उसे हिप्पी बनाएँगे, सिनेमा की ऐक्ट्रेस बनाएँगे, क्या करेंगे उसका? बेदिमाग, बेहूदापन के आगे आप अपने कुटुँब को भाड़ में झोंक रहे हैं। आप कहते हैं कि समाज में मेरी लड़की, मेरे लड़कों की इज्जत होती है। आप इस भटियारखाने को समाज कहते हैं। भेड़ों को आप समाज कहते हैं। आप समझते नहीं हैं कि आज का कुटुँब कितना नालायक हो गया है। जब तक आप कमाएँगे, व्यापार करेंगे, आपके कुटुँब के लोग आपकी बात को सहते रहेंगे, परंतु आप जैसे ही अवकाश प्राप्त करेंगे, रिटायर होंगे, आपकी घर में, कुटुँब में कोई इज्जत नहीं होगी। कोई आपको एक गिलास पानी देने वाला नहीं होगा, क्योंकि आपने उसे संस्कारवान् बनाया नहीं है। सादगी का जीवन जीना सिखाया नहीं है, प्रेम, त्याग बतलाया नहीं है। आपने मूक दर्शक बने रहकर अपना तथा परिवार का कचूमर निकाल दिया है।
मित्रो! ऐसी स्थिति में आप जब कमजोर हो जाएँगे, आप जब अवकाश प्राप्त कर लेंगे, तब आपकी दुकान भी नहीं है, क्योंकि वह तो बेटे की है। आपने उसे सौंप दिया है। तब आप देख लेना कि आपके कुसंस्कारी लड़के, बहू किस तरह आपके साथ व्यवहार करते हैं। उनकी दुर्भावना भरी आदतें, व्यवहार आपको शीघ्र ही मौत की नींद सुला देंगे। आपने तो उन्हें कुछ सिखाया ही नहीं, संस्कार देने से आप मुँह मोड़ते रहे। संस्कार के नाम पर आपने केवल अपने बच्चे, लड़की और पत्नी की बातें मानी। उन पर दबाव डाला नहीं, त्याग सिखाया नहीं। अब क्यों रोते हैं? परेशान क्यों होते हैं? मित्रो! यही हालत आपकी होगी जब आप कमजोर हो जाएँगे याद रखिए। आपने जिस कुटुँब के लिए ईमानदारी, बेईमानी करके उसे इतना बड़ा किया है, जिसके लिए आपने उचित तथा अनुचित ढंग से विकास करने का प्रयास किया है, देखना आपके कमजोर होने पर वे क्या करते हैं? आपने कल को देखा नहीं? आपने समय को देखा नहीं? केवल आप अपने बीबी, बच्चे को देखते रहे और उन्होंने अब क्या हाल कर दिया आपका? कुसंस्कारी जो बनाया है आपने उन्हें? देखना वे अपने आप दुःखी होंगे, आपको दुखी करेंगे तथा अपने परिवार वालों को, बीबी-बच्चों को दुखी करेंगे।
(उत्तरार्द्ध अगले अंक में)
मित्रो ! संस्कारवान् परिवार ही आगे बढ़ते, प्रगति करते और खुशहाल रहते हैं। अत: आपको अपने बच्चों को संस्कारवान् बनाना चाहिए था, उन्हें स्नेह देना चाहिए था। आपने कुटुँब बनाया है, तो उसमें आपको संस्कार देना चाहिए था। आपको अपने कुटुँब में रंग-बिरंगे ठाठ-बाट नहीं बनाने चाहिए थे, वरन् उसे स्नेह देना चाहिए था। आपने भारी भूल की है, जिसके कारण आज परिवार टूटते चले जा रहे हैं। आपको यह समझना चाहिए कि परिवार की एक ही माँग है—मोहब्बत, स्नेह।
आत्मा को चाहिए स्नेह
मित्रो! जब आपका पेट माँगता है कि हमें भूख लगी है, हमें रोटी मिलनी चाहिए, तो आप रोटी देते हैं। उसी प्रकार आपको अपने परिवार के लिए रोटी से ज़्यादा मोहब्बत, प्यार देना चाहिए। शरीर का भीतरी हिस्सा अपने को चलाने के लिए रोटी माँगता है। बाहरी हिस्सा हमेशा ठंडक से, गरमी से बचाव चाहता है। उसके लिए कंबल तथा पंखा, कूलर की माँग करता है। उसकी आप पूर्ति करते हैं। परंतु साथियो! एक और चीज है आपके भीतर उसका नाम है, 'आत्मा'। आत्मा-अंतरात्मा की एक ही कसक है और वह एक ही चीज माँगती है। वह क्या है? वह है मोहब्बत, वह है स्नेह। आपकी बीबी क्या आपके घर में रोटी, कपड़ा के लिए आई है? क्या उसके घर में इनकी कमी थी? उसके घर में जब नौकरानी काम करती है, तो यहाँ किसलिए आई है? कामवासना की पूर्ति के लिए? नहीं, आपको नहीं मालूम, इसके लिए नहीं आई है। तो किसके लिए आई है? उसका एक ही मकसद है और वह है प्यार।
साथियो ! इंसान के भीतर चाहे वह मरद हो या औरत, उसके अंदर एक ऐसी भूख है, जिसका नाम है प्यार। वह दोनों एक ऐसा साथी, सहयोगी तथा अभिन्न अंग तलाश करते हैं, जो आपस में प्यार दे सके तथा आपस में घुल मिलकर रह सके। वह दुःख-सुख में साथी हो सके। हर कमजोरी को दोनों मिल-जुलकर दूर करते हैं। आप तो केवल बीबी की बात करते हैं, पर हम तो बच्चों की भी बात करते हैं। बच्चों को माँ का प्यार-मोहब्बत तो थोड़ा मिलता भी है, परंतु बाप का प्यार-मोहब्बत कहाँ मिलती है।
मित्रो! सभी के अंदर एक भूख होती है और वह है, प्यार-मोहब्बत की। उसके बिना इंसान की प्रगति नहीं हो सकती है। माँ का कर्तव्य तो पूरा हो जाता है। माँ ने उसके लिए खाना पका दिया, कपड़े साफ कर दिए, उसे स्नान करा दिया, परंतु बाप का क्या कोई कर्तव्य नहीं है? उसे भी सोचना होगा। माँ ने शरीर का उद्देश्य पूरा कर दिया, लेकिन आपने उसे प्यार दिया? नहीं साहब। हमने उसे नैनीताल में भर्ती करा दिया। उसके लिए ट्यूशन आने-जाने के लिए साइकिल आदि की व्यवस्था कर दी। गुरुजी! आपका प्रवचन भी सुना दिया। अच्छा तो यह बता कि नैनीताल या देहरादून के स्कूल में बच्चे को माँ-बाप का प्यार मिलता है क्या? नहीं साहब! वहाँ तो नहीं मिलता है। तो उसका विकास कैसे होगा, कभी आपने सोचा है क्या? हम तो ५०० रुपये महीना भेज देते हैं। हाँ, यह तो ठीक है कि उसने बच्चों को ऐटीकेट सिखा दिया होगा, “थैंक्यू वेरी मच" सिखा दिया होगा, परंतु इससे क्या होता है? इससे क्या वह संस्कारवान् बन जाएगा? इससे क्या उसे प्यार-मोहब्बत मिल जाएगी? नहीं साहब! यह तो हम नहीं कह सकते। मैं पूछता हूँ कि क्या वहाँ ऐसी कोई माँ है, जो उसे छाती से लगाकर प्यार दे सके? आपने देहरादून के विद्यालय में इन लावारिस बच्चों को, इन अनाथ बच्चों को क्यों भरती करा दिया? आपने उसे अनाथ बना दिया। नहीं साहब! हमने तो उसे मिलिट्री स्कूल में भरती करा दिया। हमारा बच्चा साहब बन जाएगा। हम यह नहीं जानते हैं कि आपका बच्चा साहब बनेगा या धूर्त? बनता है, तो बन जाए, लेकिन इतना अवश्य है कि वह इंसान नहीं बन सकता।
मित्रो! इंसान बनने के लिए, उसे संस्कारवान् बनाने के लिए प्यार-मोहब्बत की आवश्यकता है, जो इन पब्लिक स्कूलों में नहीं मिल सकता है। उसके लिए आपको बच्चों को प्यार-मोहब्बत देना चाहिए था, बच्चों को उसके लिए आपको समय देना चाहिए था, परंतु आपका सारा-का समय फिल्मों में, टी. वी. देखने, ताश-चौपड़ खेलने में, मटरगस्ती में एवं क्लबों में खत्म हो जाता है। फिर आप बच्चों को समय कब देंगे? इससे अच्छा है बच्चों को आप मार दीजिए। बच्चा कहता है कि हमें पापा का प्यार मिलना चाहिए और पापा है कि उधर से ही शराब की बोतलों से टुन्न होकर आ जाता है और घर में आकर खुराफात करता है। उसके पास समय कहाँ है, जो अपने बच्चों को, बीबी को प्यार एवं मोहब्बत दे सके। आज इसी के कारण समाज एवं परिवार समाप्त हो रहा है। इसे आपको सँभालना है।
मित्रो! क्या आप बच्चों को छाती से लगाएँगे? उसे छोटी-छोटी कहानियों से प्रेरणा देंगे? गुरुजी! हमने तो बच्चों के लिए नौकर रख छोड़ा है। नौकर ही बच्चों को खिला देता है, स्नान करा देता है। अच्छा तो बेटे! खाने के लिए भी नौकर रख ले न। गुरुजी! पूजा करने के लिए भी हमने एक नौकर रखा है। मंदिर में नौकर से काम चलेगा क्या? आप समझते नहीं हैं। क्या ये बच्चे आपके नौकरों के या आया के पेट में से पैदा हुए हैं, जो आपके बच्चों को ये प्यार देंगे। आपको अपने परिवार के लिए ज्यादा समय, पैसा खरच करना चाहिए था। आप आठ घंटे नौकरी करते हैं या व्यापार करते हैं, यह मैं मानता हूँ, परंतु जो सोलह घंटे आपके पास बचते हैं, उतना समय आपको घर में, परिवार में रहना चाहिए। उसे हरा-भरा बनाना चाहिए, संस्कारवान् बनाना चाहिए।
समय परिवार को दीजिए
गुरुजी ! उतने समय के लिए तो हम फिल्म देखने चले जाते हैं। क्या मिलता है इन फिल्मों से, क्लबों से आपको? इन फिल्मों या क्लबों में क्या रखा है? अरे तू अपने बीबी-बच्चों से बात करना शुरू कर, फिर देख कैसा रहेगा सिनेमा? इससे अच्छा गुड्डा क्या आपको सिनेमा में मिल सकता है। आप जब अपने बच्चे को एक चाभी वाला खिलौना लाकर देते हैं, तो खुशी के मारे उछलने लगता है और कहता है कि मेरे पापाजी मेरे लिए लाए हैं। आपके घर में जिंदा गुड़िया है, पर उससे बात करने का आपके पास समय नहीं है। उससे दो मीठी बातें करने की आपको फुर्सत नहीं है। आपको बच्चों को बिल्ली-बंदर की कहानी सुनाना नहीं आता? आपके बच्चे बिल्ली की कहानी, बंदर की कहानी सुनने में कितना आनंद अनुभव करते हैं, इसका पता आपको नहीं है। अरे आपने यह मोहब्बत देखी नहीं है और न इसे देने का आपका मन है। यह आपको पसंद नहीं है, तो फिर क्यों घर बसा लिया? आपने बच्चों को कसाईखाने में रख दिया है। आप कुटुँब बसाते हैं, तो उसे कसाईखाने में मत रखिए, उसे भूखा मत रखिए। आप उसकी आत्मा को मोहब्बत के बिना भूखा क्यों मारते हैं? क्या आप यह नौकरानी खरीद कर लाए हैं या कामवासना की मशीन खरीद कर लाए हैं? यह कौन है आपकी? आप इसे प्यार नहीं दे सकते? अरे इस प्रकार की मशीनें, विदेशों में रबर की औरतें मिलती हैं। आप उसी को खरीद लाइए। वह आप से कुछ नहीं माँगेगी। आपको खाना बनाने में कितना खरच होता है? वह तो सौ रुपये में हो जाता है। फिर आपने इसके लिए औरत को क्यों रखा है। आपने अर्थशास्त्र पढ़ा है। आपको जोड़, भाग, गुणा आता है। आप कागज निकालिए और हिसाब लगा लीजिए। इसकी अपेक्षा आप नौकर रख लेते तो आपको किफ़ायती पड़ता।
मित्रो! आप खाना बनाने के लिए, कामवासना के लिए, घर की चौकीदारी के लिए घर बसाते हैं, तो आप गलती करते हैं। शादी-विवाह का यह मकसद नहीं है। इंसान के अंदर एक आत्मा है। उसके विकास के लिए मनुष्य कुटुँब बनाता है, घर बसाता है। आपने तो आत्मा को देखा भी नहीं, आत्मा का नाम सुना भी नहीं, आत्मा को आपने छुआ भी नहीं। आत्मा का आपने कभी संपर्क भी नहीं किया। एक पंडित जी आते हैं और कहते हैं कि आत्मा का साक्षात्कार करिए। आपको भ्रम-जंजाल में फँसाकर वे लूट लेते हैं।
साथियो! 'आत्मा' आदमी के भीतर एक सत्ता का नाम है, जो प्यार पीती है और प्यार पिलाती है। यह एक ही जगह पूरी हो सकती है, जिसका नाम कुटुँब है, जिसका नाम परिवार है। आज सारी-की चीजें भौतिक मिल रही हैं अर्थात् आर्टीफीशियल। इस प्रकार के युग में आत्मीयता-प्यार कहाँ मिलेगा? यह सिर्फ एक ही फैक्ट्री, एक ही उद्यान में मिलती है और उसका नाम है, कुटुँब-परिवार। आपने जो भी कमाया, सब इसके लिए खरच किया। आपने तप किया, तो केवल इस परिवार के लिए। आपने संत की तरह से, महात्मा की तरह से, राजा कर्ण की तरह से इसके लिए त्याग किया, सहयोग किया। राजा कर्ण जो भी कमाता था, वह समाज के लिए, धर्म के लिए दान कर देता था। आप भी राजा कर्ण की तरह से हैं। आपने जो कुछ भी कमाया, जो कुछ भी पाया, उन्हीं के लिए खरच कर दिया। उन्हीं के लिए जिनका नाम कुटुँब है, परिवार है। हम कुटुँब से प्यार करते हैं, मोहब्बत करते हैं, इसलिए हमने यहाँ पर भी कुटुँब-परिवार बसा दिया है।
मित्रो! हमारी एक पुस्तक है, 'सुनसान के सहचर'। हमें हिमालय के जंगलों में, पहाड़ों में रहने का मौका मिला। वहाँ घास-पात के अलावा कुछ भी नहीं था। हमने सोचा कि इस एकांत में, सुनसान में हम कैसे रह सकते हैं। सुनसान में आदमी नहीं रह सकता है। हमने वहाँ भी अन्य प्राणियों का कुटुँब बना लिया। कुटुँब के बिना मनुष्य रह नहीं सकता? आदमी अपने गुणों का विकास कुटुँब के बिना, परिवार के बिना कहाँ कर सकता है? आदमी कहाँ सीख सकता है। धर्मपत्नी के प्यार का, एक आत्मा का दूसरे आत्मा के साथ समर्पण का, उसके प्यार का अनुभव आदमी परिवार के अतिरिक्त और कहाँ कर सकता है? आप अपनी पत्नी के बिना यह सब कहाँ से लाएँगे? कहाँ से पाएँगे? कहाँ से सीखेंगे? आप वेश्यालय जाकर वासना पूर्ति कर सकते हैं, लेकिन प्यार-मोहब्बत आप नहीं ला सकते हैं। आप माँ-बाप का प्यार कहाँ से लाएँगे? कौन से बाजार से लाएँगे?
माँ का स्नेह-वात्सल्य पीकर शिवाजी की आत्मा, लव-कुश की आत्मा न जाने कहाँ से कहाँ पहुँच गई। शकुन्तला का प्यार पीकर भरत की आत्मा क्या से क्या हो गई? आपने माँ का प्यार नहीं पिया क्या? नहीं साहब! हमारी माँ नहीं है, परंतु एक आदमी कह रहा था कि आपकी माँ जिंदा है। मित्रो ! वह आपकी माँ नहीं है, वह है आपके घर में रहने वाली एक बुढ़िया, जिसे आप फटकार भी लगाते रहते हैं। इधर से उधर भगाते भी रहते हैं। वह आपकी माँ नहीं हो सकती है। माँ का तो आपने दर्शन भी नहीं किया। आप तो संतोषी माता, शीतला माता को पूजते रहे, लानत है आपको। काश, अगर आप अपनी माँ को समझे होते, उसके प्यार का बदला चुकाया होता। उसके अनुदान का बदला चुकाया होता तो आप धन्य हो जाते ! आप अभागे हैं, जो माता के नाम पर न जाने क्या-क्या करते रहे, संतोषी माता, मनसा देवी को पूजते रहे। इसी तरह के ख्वाबों में आप भटकते रहे। आप जाइए जहन्नुम में, जिसने अपनी माँ को समझा ही नहीं।
सच्ची मित्र आपकी अपनी पत्नी
मित्रो! आप आसमान पर चलना बंद कीजिए और जमीन पर चलना शुरू कीजिए। आपकी सच्ची मित्र अपनी पत्नी को आप संस्कारवान् बनाएँ। उसे ऊँचा उठाइए। राम-भरत की तरह रहिए। अपनी बीबी की मोहब्बत को देखिए। हमने बीबी में से धर्मपत्नी को पैदा किया। औरत कामिनी नहीं है. वह धर्मपत्नी है। हमारी धर्मपत्नी हमारी सहयोगी है, साथी है। हम लोग आपस में बातचीत कर सकते हैं। कामवासना पर लानत है। हम दोनों का समर्पण, प्यार अद्वितीय है। हम एक-दूसरे के लिए जीवन जीते हैं। एक-दूसरे को देखकर हमारे चेहरे प्रसन्न हो जाते हैं। औरत सब अच्छी होती हैं, आपने सभी की तरह से उसे भी समझा है। आपने उसे मोहब्बत दी होती, सहकार दिया होता तो वह आपकी सहयोगी होती। आप वनवास में भी होते तो भी सीता की तरह साथ होती। आप राजा नल की तरह से दमयंती को वन में अकेले छोड़ जाते तो भी वह आपकी धर्मपत्नी होती, परंतु आपने उसे धर्मपत्नी कब बनाया है? धर्मपत्नी नहीं बनाया। आप अगर उसे धर्मपत्नी बनाने का प्रयास करते तो यह घर स्वर्ग बन जाता।
साथियो! हमने कुटुँब तथा परिवार के महत्त्व को बतलाने हेतु ही यह शिविर लगाया है। अगर यह सिद्धांत आप सीख लेते तो धन्य हो जाते। हमने सुना है कि वहाँ स्वर्ग होता है, जहाँ परियाँ होती हैं, लोग आनंद-विभोर जीवन जीते हैं, परंतु वह स्वर्ग तो हमने देखा नहीं। हम गए भी नहीं, अगर गए होते तो आपको बतला देते कि स्वर्ग ऐसा होता है। परंतु एक स्वर्ग हमने देखा है और वह है, गृहस्थ जीवन। यह जमीन का स्वर्ग है, जिसका नाम गृहस्थ है, अगर बनाने वाला हो तो? परंतु अगर आपने औरत को बना दिया बाघिन तथा बच्चों को बना दिया डकैत, माँ को शाप देने वाली चुड़ैल तथा भाई को बना दिया एक-दूसरे को मार-काट करने वाले, तो लानत है आपके इस कुटुँब के ऊपर। अरे साहब हम तो कमाते हैं। लानत है आपकी कमाई पर। कमाई और खरच पर दुनिया नहीं टिकी हुई है। अगर जीवन में मोहब्बत तथा प्यार नहीं है, तो कोई फायदा नहीं होगा परिवार बसाने से।
आप यहाँ से एक नई दृष्टि लेकर जाइए। कुटुँब को जंजाल मत कहना, वरन् बगीचा कहना। आप इसका उपभोग करने वाले नहीं हैं। यह बगीचा किसी और का है, आप माली की तरह रहना। यहाँ भगवान् ने आपका इम्तहान लेने, आपकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से भेजा है कि आप इस बगीचे को प्यार-मोहब्बत दे सकते हैं या नहीं? आपकी बीबी नौवीं दरजा तक पढ़कर आई थी, आपने उसे आगे पढ़ाया या नहीं? केवल यह कह दिया कि हम तो गरम खाना खाएँगे, चाहे दिन के दो बजे हों या रात ही क्यों न हो, तुम्हें उसी समय बनाना पड़ेगा।
मित्रो! मैं यह पूछता हूँ कि जे. बी. मंघाराम आपको गरम खाना खिलाता है क्या? आप जो ये बिस्कुट खाते हैं वह छह महीने पुराना है, जिसे आप बड़े चाव से खा जाते हैं और बीबी को आप कहते हैं कि हम गरम खाना खाएँगे। आपको उसने इसीलिए खसम बनाया है क्या? दिनभर उसका खून पीते हैं। आप गरम खाना खाते हैं न, ऐसा कीजिए गरम लकड़ी मुँह में रख लीजिए और रोटी खाते जाइए। बीड़ी पीते जाइए और रोटी खाते जाइए। ये सब आपकी बुरी आदतें हैं, इन्हें छोड़िए! नहीं साहब हम तो गरम खाना खाएँगे। अरे थोड़ी देर पहले का बना खा लेने पर क्या आफत आ जाएगी? गरम खाने के पीछे उसकी शिक्षा, उसका सोना, उसका चिंतन करने का सारा-का समय बरबाद हो गया। सारा-का समय खाना पकाने में खरच हो गया। मैं यह पूछता हूँ कि क्या इसे दाम्पत्य जीवन कहते हैं? क्या इसे स्नेह कहते हैं? क्या इसे सहकारिता कहते हैं? अरे मक्कारो! यह तो मालिक तथा जानवरों का व्यवहार और मालिक तथा दासी का व्यवहार है। यह समानता का व्यवहार नहीं है।
आपने उसे पढ़ाया क्यों नहीं? आपके पास वह नौवीं दरजा पास करके आई थी, फिर उसको आगे क्यों नहीं पढ़ने दिया। अरे साहब! समय नहीं मिला। आपको उसकी नींद खराब करने के लिए चार घंटे का समय मिल गया, परंतु उसके विकास के लिए एक घंटे का भी समय नहीं मिला। यदि एक घंटा पढ़ा दिया होता तो वह अभी तक बी. ए. हो जाती। आपने उसे नौकरानी बनाकर रखा ताकि वह आपकी हुकूमत में रह सके। आपने उसके पंख मुर्गी के पंख की तरह से काट दिए। उसे कभी भी उड़ने नहीं दिया, ताकि वह आगे न बढ़ सके। आपने उसे कबूतर की तरह पाल रखा है और आप कबूतर की तरह से उसके पंख काटते रहते हैं, ताकि वह कभी भी स्वावलंबी न बन सके। उसे कभी नौकरी भी नहीं करने दी।
मित्रो! यह आपका अहंकार तथा अविश्वास है। क्या शिक्षा बुरी बात है? यदि है तो आप अपने बेटे को, बेटी को, भाई को क्यों पढ़ाते हैं? आपने बीबी को ही क्यों मना कर दिया? उसको क्यों नहीं आगे बढ़ाया? क्या यही दृष्टिकोण है, आपके दाम्पत्य जीवन का? क्या यही आपकी दृष्टि है कुटुँब के, परिवार के विकास के प्रति? आप उसे दबाकर केवल शरीर का, पसीने का, श्रम का फायदा उठा सकते हैं। बस यही है कर्तव्य और उत्तरदायित्व आपका अपनी पत्नी के प्रति। इस तरह आप कभी भी उसके सहयोग-सम्मान, श्रद्धा का लाभ नहीं उठा सकते हैं, जो श्रम से लाखों गुना फायदेमंद हैं। क्या इस संबंध में आपने समझने का, ख्याल करने का कभी प्रयास नहीं किया है।
पैसे का नहीं, संस्कारों का संबंध हो
मित्रो ! मैं आप सबसे घर-परिवार की बात कहता हूँ आपसे यह कहता हूँ कि परिवार में जिनके साथ आपकी डीलिंग है, संबंध हैं, उनके साथ आप शराफत का व्यवहार कीजिए। इसका एक मतलब यह है कि उनको आप शालीनता, सज्जनता सिखाएँ। उनको आप स्वावलंबी बनाएँ, उनको गुणवान बनाएँ। आपको इससे पुण्य मिलेगा। आप जब घर में प्रवेश करेंगे, तो आपको ऐसा मालूम पड़ेगा कि आप स्वर्ग में प्रवेश कर रहे हैं। इतना ही नहीं आप इस परिवार में, कुटुँब में शांति प्राप्त करेंगे। आप सफल गृहस्थ होंगे। आपको ऐसा लगेगा कि हम देवताओं की दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं। हम शांति के सागर में प्रवेश कर रहे हैं। पैसे की दुहाई मत दीजिए। नहीं तो आपको केन्या देश के मसाई की संज्ञा दे देंगे। केन्या वाले, नंगे रहने वाले जिनके पास घर भी नहीं है, परंतु वे काफी हिम्मती होते हैं। शेर को मारकर रख लेते हैं, फिर उसकी पूँछ को पकड़कर ले आते हैं, परंतु उनकी ताकत का क्या कहना? जहाँ कहीं भी खेलकूद प्रतियोगिता होती वे वहाँ से छह-सात स्वर्ण पदक तक जीतकर ले आते। ऐसी परिस्थिति में विश्व में कानून बनाना पड़ा कि तीन से ज्यादा स्वर्णपदक इन्हें नहीं दिए जा सकते। आप पैसों के पीछे पागल हैं। उससे ताकत बटोरना चाहते हैं। आप सोचते हैं कि हम बच्चे को काजू, पिस्ता खिलाएँगे तथा उसे ताकतवर बनाएँगे। लानत है ऐसे पैसों को। हम क्रीम लाएँगे तथा पाउडर लाएँगे। अरे हम पूछते हैं कि क्या इसके बिना सेहत सही नहीं होगी। इससे बच्चों में संस्कार नहीं लाए जा सकते हैं।
मित्रो ! लव−कुश जो महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहते थे। कुशा एवं पत्तों का बना आश्रम था उनका। वहाँ न कोई मास्टर-अध्यापक था, न कोई उन्हें ट्यूशन पढ़ाने वाला था। न अच्छा भोजन था, न मोटरगाड़ी थी, परंतु जमीन पर सोने वाले बच्चे इतने महान् ताकत वाले, संस्कारवान् बन गए कि जब वे रामचंद्र जी के दरबार में गए तो उनके सद्गुणों के आगे सब लोग नतमस्तक हो गए। इतने समुन्नत बच्चे कैसे बन गए?
आज आप सोचते हैं कि पैसों से लड़कों को संस्कारवान् बना लेंगे। यह फिजूल की बातें मत कीजिए। पैसों से केवल आप घर की सजावट बढ़ा सकते हैं। आप बच्चों में प्राण जीवट नहीं भर सकते हैं। उन्हें संस्कारवान् नहीं बना सकते हैं। अगर उनमें प्राण, संस्कार आप भर सकें तो ये काले बच्चे, चेचक के दाग वाले बच्चे चमत्कार कर देंगे, फिर आपका घर चाहे फूस, मिट्टी का बना हो, वहाँ स्वर्ग होगा। अगर बाजरा और नमक की रोटी भी होगी तो भी बच्चे स्वस्थ सानंद होंगे। आपस में प्यार-मोहब्बत हो तो पैसे का अभाव विकास में बाधक नहीं होगा तथा घर में स्वर्ग का वातावरण होगा। आप संस्कार का मूल्य एवं महत्त्व समझें।
इस संदर्भ में हम आपकी अदालत में बिनोवा की माँ को पेश करते हैं। बिनोवा की माँ बहुत गरीब थीं। बहुत बार वह गेहूँ, ज्वार, बाजरा, चना पीसने को ले आती थीं। बिनोवा अपनी माँ की बगल में बैठे होते थे। अनाज पीसते समय कुछ दाने इधर-उधर जा पड़ते थे। बिनोवा उन्हें चुनकर खाते रहते थे। नाश्ते का कोई प्रबंध नहीं था। बिनोवा की तरह गरीब तथा अभावग्रस्त परिवार शायद ही कोई हो, परंतु उनकी माँ ने तीनों लड़कों को संत, महात्मा बना दिया। उनमें से एक का नाम बिनोवा, दूसरे का बाल्कोवा और तीसरे का शिबोवा था। तीनों देश के लिए समर्पित थे। मदालसा की बात तो पुरानी हो गई।
मित्रो! आप अपने बच्चे को संत, सुधारक नहीं बनाना चाहते हैं। आप तो उसे इन्कमटैक्स आफीसर, पुलिस का दरोगा बनाना चाहते हैं। वकील बनाना चाहते हैं जो सच्चे को फँसा दे तथा झूठे को जिता दे। यही चाहते हैं न आप? आप चाहते हैं कि आपका लड़का सिविल इंजीनियर हो जाए, ताकि वैगन के वैगन सीमेंट तथा लोहा खा जाए तथा एक वर्ष में ही मकान बना ले, बीबी के गहने बना ले तथा बहिन की शादी में चालीस हजार रुपए भी खरच कर दे। उसे मासिक पेमेंट तो ग्यारह सौ रुपये ही मिलते हैं, तो फिर इतना सारा पैसा वह कहाँ से लाएगा? इसके लिए क्या किया, उसको आपने देखा नहीं, उसने रेल की लाइनों को कमजोर कर दिया। देश को तबाह कर दिया आपके बेटे ने। यही चाहते थे न आप? मक्कार कहीं के, बेटे को गलत रास्ते पर चलने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। उसे सभ्य नागरिक तथा कर्तव्यनिष्ठ अध्यापक नहीं बनाएँगे?
दृष्टिकोण बदलें, तनावमुक्त हों
मित्रो! मैं आपसे फिर कहता हूँ कि आप आज से अपना दृष्टिकोण—महत्त्वाकाक्षाओं के बारे में, घर-परिवार, कुटुँब के बारे में, अध्यात्म के बारे में बदल दीजिए। आपकी उँगलियों की तरह ही आपका कुटुँब आप से जुड़ा हुआ है। आपको उन्नति, प्रगति, समृद्धि, विकास सारा-का आपके कुटुँब के साथ जुड़ा है। अतः इस संदर्भ में आप अपना विचार बदल दें। अरे नहीं साहब! हमें टेंशन की शिकायत है। टेंशन किसे कहते हैं? जिसमें दिमाग में तनाव रहता है, नींद नहीं आती, गरमी रहती है। आपके घर में स्नेह-सहयोग का वातावरण नहीं है, इसी कारण यह परिस्थिति है। यूरोप की दुनिया में यह गलती सभी ने की है। इसी कारण वहाँ लोगों ने कुटुँब, परिवार संस्था को बरबाद करके रख दिया है। केवल मियाँ-बीबी का रिश्ता रह गया है। उसमें भी टिकाऊपन नहीं है। सिद्धांत के बिना क्या टिकाऊपन होता है? उनके यहाँ छह महीने के बाद नई बीबी, नया पति होता रहता है। उन्होंने कुटुँब-परिवार का सर्वनाश कर दिया है। इसका एक ही कारण है कि उनके ऊपर एक भूत सवार हो गया है और उसका नाम है 'सेक्स'। खूबसूरती के लिए उन्होंने परिवार संस्था का सत्यानाश कर दिया। वहाँ भौरे की तरह से औरतें तथा मरद घूमते रहते हैं तथा जहाँ भी खुशबू होती है वहीं हावी हो जाते हैं। वे अभागे, दुखी, हारे हुए दिखाई पड़ते हैं। आप हैं जो हमेशा 'फॉरेन' जाना चाहते हैं। क्या करेंगे वहाँ जाकर, बरबाद हो जाएँगे। वहाँ का पैसा देखा है आपने? आप 'फॉरेनर' को ध्यान से देखना, वे बिलकुल खाली और खोखले हो गए हैं।
मित्रो ! इस दुनिया में सबसे ज्यादा सुंदर मोहब्बत-प्यार की दुनिया थी, परंतु अब आपने उसे चौपट कर दिया है तथा सब इधर-उधर मारे-मारे फिरते हैं। आदमी आज अकेला इक्कड़ की तरह हो रहा है। वह भूत की तरह हो गया है। उसे अपनी बीबी से और बीबी को खसम से डर हो गया है। वे हमेशा चिंतित रहते हैं कि कहीं दोनों एक दूसरे पर हावी न हो जाएँ। इस प्रकार से उनकी नींद हराम हो जाती है। आप देखिए न, देश-विदेशों में कितनी ट्रैन्क्युलाइजर खपत होती है, मात्र नींद लाने के लिए। इनको दिनभर थकान रहती है। वे कॉफी, बियर, रम पीते रहते हैं तथा रात में सुरा-सुंदरी में डूबे रहते हैं। लड़के से जब पूछा जाता है कि तेरे पिताजी कौन हैं, तो वह कहता है कि नंबर ८, नंबर ९। पत्नी भी उसी क्रम में नंबर ५, नंबर ६ होती है। आज कैबरे डांस, क्लबों के अलावा लोगों में शांति नहीं है। आज यूरोप अमेरिका में परिवार, कुटुँब के नाम पर क्या रहता है? सेक्स। सेक्स यानि भूत। आज लड़की की शादी में लोग 'कट' देखते हैं और कहते हैं कि शौक से शादी करेंगे। अगर यही पाश्चात्य बीमारी आपके घर में, पत्नी में आ गई तो आपका कचूमर निकल जाएगा। वह भी आपको जहर दे सकती है तथा आपका सर्वनाश कर सकती है। आप परिवार तथा कुटुँब का आधार सेक्स बनाना चाहते हैं। आप इस तरह की गृहस्थी बसाएँगे क्या? इस तरह का कुटुँब बसाएँगे क्या?
मित्रो! आप इस तरह का परिवार-कुटुँब मत बसाइए। आप प्यार-मोहब्बत का परिवार, स्नेह, सहयोग का कुटुँब बसाइए तो आपके जीवन में सुख-शांति आएगी। आपकी आत्मोन्नति होगी, विकास होगा तथा इस धरती पर स्वर्ग का अवतरण होगा, आपका जीवन देवतुल्य होगा। इसी को बताने के लिए हमने आपको इस सत्र में बुलाया। आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्तिः॥