उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
वातावरण का परिशोधन है जरूरी
देवियो, भाइयो! रावण ने न केवल अत्याचार किया था, वरन् सारा वातावरण ही खराब कर दिया था। वातावरण खराब होने की वजह से उन दिनों जितने भी बच्चे पैदा हुए थे, एकोएक—सब-के-सब राक्षस हुए थे। पूरी की पूरी लंका में—‘‘एक लाख पूत और सवा लाख नातीं’’—सबके सब राक्षस प्रवृत्ति के थे। उनमें से किसी की भी अच्छी प्रकृति नहीं थी। यही बात द्वापर में भी हुई। कंस और दुर्योधन ने भी वातावरण में न केवल अत्याचार किया था, वरन् वातावरण को भी बिगाड़ दिया था। उस जमाने में जो भी सामंत हुए थे अथवा और भी दूसरे लोग हुए थे, सब एक से बढ़कर एक बुरे और खराब आदमी थे। उसका निवारण करने के लिए, सूक्ष्म रूप से वातावरण को ठीक करने के लिए, उसका संशोधन करने के लिए भगवान राम को दस अश्वमेध यज्ञ करने पड़े। इसी तरह कंस और दुर्योधन के द्वारा बिगाड़े गये वातावरण को ठीक करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण को राजसूय यज्ञ करना पड़ा। उन राजसूय यज्ञों की वजह से सूक्ष्म जगत सही हुआ।
मित्रो! इस तरह सूक्ष्म वातावरण को सही किया गया और वह उद्देश्य पूरा हुआ, जो भगवान राम को करना था, भगवान कृष्ण को करना था। केवल महाभारत से उद्देश्य पूरा नहीं हुआ, केवल लंका जलाने और रावण को मारने से ही वह उद्देश्य पूरा नहीं हुआ, क्योंकि दूषित सूक्ष्मजगत को ऐसे साफ नहीं किया जा सकता था। इसके लिए भगवान राम ने यज्ञ किया, भगवान कृष्ण ने यज्ञ किया। आज फिर से वैसा ही समय आ गया है, जबकि हमारा वातावरण बिगड़ रहा है और वायुमंडल भी बिगड़ रहा है। हमसे प्रकृति भी नाराज है। बार-बार अकाल पड़ते हैं, पानी की कमी पड़ती है, विग्रह खड़े हो जाते हैं, विद्वेष खड़े हो जाते हैं, मार-काट खड़ी हो जाती है। यह सब वातावरण की प्रदूषण का प्रभाव है। वातावरण का परिशोधन करने के लिए आपकी इस संस्था ने एक लाख कुण्डों के यज्ञों को करने का संकल्प किया था कि एक लाख कुण्डों के गायत्री यज्ञ हों। उसका विभाजन किया गया है। एक लाख कुण्डीय यज्ञ एक जगह करना तो संभव नहीं हो सकता था, क्योंकि इसके लिए हजारों बीघा जमीन चाहिए थी और बड़ा भारी प्रबंध करना चाहिए था।
दीपयज्ञों की शुरुआत
साथियो! हमने हजार कुण्डीय यज्ञ किया था। उसकी व्यवस्था इतनी बड़ी थी कि उसको संभालना बहुत मुश्किल हो गया था। फिर लाख कुण्डीय यज्ञ कैसे होगा? इसलिए सौ-सौ कुण्डों के हजार कुण्डों में उसके हिस्से बाँट दिये गये, ताकि वह एक ही जगह प्रभाव पैदा न करके सारे हिन्दुस्तान भर में और सारे संसार भर में पैदा करे। यह दो वर्ष का कार्यक्रम रखा गया था कि दो वर्षों में सौ-सौ कुण्डों के एक हजार यज्ञ हो जायेंगे। भगवान की बड़ी दया थी और आप सबका बड़ा सहयोग था कि वह संकल्प ठीक तरीके से पूरा हुआ। एक वर्ष में उसका अधिकांश भाग पूरा हो गया और जो भाग बचा हुआ है, उसको भी इस साल में निश्चित रूप से पूरा कर लेंगे।
मित्रो! हमारे संकल्प न कभी अधूरे रहे हैं और न कभी अधूरे रहेंगे। हमने कभी वे संकल्प नहीं किये, जिसको कि हम अपनी सामर्थ्य से, अपने भगवान की सामर्थ्य से और अपने गुरु की सामर्थ्य से पूरा नहीं कर सकते, उस संकल्प को हम करते ही नहीं हैं। इसलिए वह संकल्प जिस प्रेरणा से किया गया, भगवान की बड़ी दया, भगवान की बड़ी कृपा है कि वह संकल्प पूरा हो गया। इससे हमारे वायुमंडल का संशोधन हुआ है। इसका सबूत आप थोड़े दिनों में देखेंगे कि कैसी भयंकर दुर्घटनाएँ थीं, कैसी काली घटायें छायी हुई थीं, लेकिन वे काली घटायें धीमी हो करके धीरे-धीरे पानी की छोटी-छोटी फुहारें छोड़ती हुई अपने आप में समाप्त हो गयीं। यह एक बड़ा काम हमने कर लिया। पहले भी बड़े-बड़े काम किये हैं, लेकिन यह काम अपने आप में ऐसा था, जिसका कि करोड़ों-अरबों मनुष्यों के जीवन के साथ में सीधा संबंध था। तो यह एक काम पूरा हुआ।
अब इस गायत्री जयंती से एक नया कार्यक्रम शुरू होता है। वह क्या है? वह कार्यक्रम यह है कि चौबीस लाख यज्ञ घर-घर में करने का नया संकल्प हैं। पहले सामूहिक यज्ञ हुए थे, हजारों आदमी इकट्ठे हुए थे और उन हजारों आदमियों की व्यवस्था करनी पड़ी थीं। हजारों रुपयों की आवश्यकता पड़ी थी। तब ये सौ-सौ कुण्डीय यज्ञ हुए थे, पर अब जो नया कदम उठाया गया है, वह प्रत्येक घर में घर का वातावरण शुद्ध करने के लिए, घर-परिवार के लोगों की कलह को समाप्त करने के लिए, घर के लोगों के अंदर धार्मिक भावनाओं और वातावरण पैदा करने के लिए नया कदम उठाया गया है। ये कदम क्या हैं? इसमें चौबीस लाख घरों में, चौबीस लाख कुटुम्बों में एक-एक कुण्ड का छोटा-सा यज्ञ होगा। उसको पुरुष भी कर सकते हैं, लेकिन अगर पुरुषों को फुर्सत न हो, तो महिलाओं को थोड़ी-सी ट्रेनिंग देकर के, जो पढ़ी-लिखी एवं समझदार महिलायें हैं, वे हर घर में जाकर के इन यज्ञों को बड़ी आसानी से करा सकती हैं।
इनमें क्या करना होगा? ये दीपक यज्ञ होंगे, दीपक यज्ञ कैसी? दीपक यज्ञ इस तरीके से कि आप एक थाली लें और पाँच जगह पाँच-पाँच धूपबत्तियाँ लगा लें। पाँच खंडों में पाँच-पाँच जगह पच्चीस धूपबत्तियाँ विभाजित कर धूपदानियों में लगा दें-एक, और पाँच दीपक जला दें। इस तरह धूपबत्तियों में से हवन सामग्री निकलती है और दीपक में से घी निकलता है। दोनों को मिला देने से वही उद्देश्य पूरा हो गया, जो आप छोटे-छोटे यज्ञों से पूरा करते हैं। बड़े यज्ञों में बहुत सामान इकट्ठा करना पड़ता है, वस्तुएँ इकट्ठी करनी पड़ती हैं। चीजों के संग्रह के बिना काम नहीं बनता। बहुत भाग-दौड़ करनी पड़ती है। जब हजार कुण्डी पर यज्ञ किया करते थे, तो उसमें महीनों समय लग जाता था। सौ कुण्डीय यज्ञ करने में भी महीनों समय खर्च हो जाया करता था, लेकिन जब हमारी गाड़ियाँ सारा सामान ले करके गयीं, तो काम एक-एक दिन में ही पूरा हो गया, जो महीनों में पूरा होना था। इसी प्रकार से घरेलू यज्ञों की जो शृंखला चलने वाली है, उसमें धूपबत्तियाँ-जो कहीं भी मिल जाती हैं और दीपक के लायक घी किसी-किसी के भी घर में होता है। दीपक और धूपबत्तियाँ जला करके चौबीस बार गायत्री मंत्र बोल लीजिए और समझ लीजिए कि घी की चौबीस आहुतियाँ हो गयीं, हवन सामग्री की आहुतियाँ हो गयीं और छोटा-सा एक घरेलू-पारिवारिक यज्ञ हो गया।
२४ लाख पारिवारिक यज्ञों का संकल्प
मित्रो! इस छोटे से पारिवारिक यज्ञ को आप बड़ी आसानी से कर सकते हैं। शुरू में आप स्वस्तिवाचन बोल लीजिए, कलश स्थापना कर लीजिए। कलश स्थापन के मंत्र बोल लीजिए। इसके बाद में चौबीस गायत्री मंत्र बोलें। चौबीस गायत्री मंत्र में हमारे दो उद्देश्य निहित हैं। एक तो यह कि आप लोगों को गायत्री मंत्र का शुद्ध उच्चारण हो जाय और एक आप लोगों के बोलने के साथ-साथ में हमारी वाणी का भी समावेश हो जाय। हमारी कई वाणियाँ हैं।
आपकी तो एक ही वाणी है-बैखरी वाणी। हमारे पास मध्यमा वाणी भी है, परा वाणी भी है, पश्यन्ति वाणी भी है। इन चारों वाणियों को मिला करके हम मंत्र बोलते हैं। तो चौबीस मंत्र हम बोलेंगे और हमारे साथ-साथ ही आप भी बोलना शुरू कर दीजिए। इस तरीके से समझिये कि चौबीस मंत्र चौबीस हजार मंत्रों के बराबर होंगे, क्योंकि उसमें हमारी वाणी का समावेश है। आजकल हमारी वाणी रुकी हुई है, क्योंकि हम किसी से बोलते नहीं है। संयोगवश कोई एकाध व्यक्ति आता है तो उससे बात कर लेते हैं, वरन् हम एकान्त में रहते हैं, मौन रहते हैं। अपनी वाणी को हमने ज्यादा सामर्थ्यवान बना लिया है। हमारी अपनी वाणी के साथ-साथ में आप लोग भी बोलेंगे, तो एक यज्ञ पूरा हो जायेगा। इस तरह एक छोटा सा यज्ञ हो गया। यज्ञ के साथ-साथ में युग निर्माण सम्मेलन भी होते रहते हैं। पहले राष्ट्रीय एकता सम्मेलन भी हुए थे, तो यज्ञ के साथ में ज्ञानयज्ञ भी जुड़ा हुआ था। अतः आपको ज्ञानयज्ञ भी करना पड़ेगा। ज्ञानयज्ञ कैसे होगा? इसका भी हमने इतना सरल तरीका बना दिया है कि जिसका कोई ठिकाना नहीं है। इसमें संगीत-एक और व्याख्यान-दो, दो बातें सम्मिलित हैं। संगीत के लिए टेप तैयार किये गये हैं, जिससे माताजी एवं उनकी देवकन्याओं का स्वर है। माताजी गायेंगी, देवकन्याएँ गायेंगी। पन्द्रह मिनट तक आपको यह संगीत सुनना पड़ेगा। यह देव संगीत है, इसे सामान्य लोगों के-गाने वालों के कंठों से तुलना न कीजिए। ये विशेष हैं। इसे आप एह तरह का मंत्र संगीत बोल सकते हैं।
संगीत के साथ ही व्याख्यान की भी आवश्यकता पड़ेगी। इसकी आवश्यकता को पूरा करने के लिए आप इस टेप को—जो आप सुन रहे हैं, सुना दीजिए। यह आधे घण्टा का पहला टेप है। यह हमारा व्याख्यान है। हम कहीं व्याख्यान देने तो जाते नहीं। यहाँ शान्तिकुञ्ज में भी हम स्टेज पर नहीं जाते हैं, इसलिए हमने आपके लिए अपना व्याख्यान टेप करके आपको भेजा है, ताकि आप आसानी से हमारा नवीनतम भाषण सुन लें। यह इसी गायत्री जयंती और गुरुपूर्णिमा के बीच में दिया हुआ भाषण है। इसमें पुराने भाषणों की अपेक्षा शक्ति ज्यादा है, सामर्थ्य ज्यादा है, प्राण ज्यादा है, ओज ज्यादा है। इसलिए यदि इसे आप सुनेंगे तो आपका मन, अपनी बुद्धि, आपका चित्त, आपका अहंकार प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। आधा घंटे का यह व्याख्यान सुनकर आप जरूर प्रभावित होंगे।
इस तरीके से यह एक घंटे का कार्यक्रम है—आधा घंटे का व्याख्यान, चौबीस गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ और पन्द्रह मिनट का माताजी का संगीत। इसी बीच में यज्ञ का कार्यक्रम भी पूरा हो जायेगा। पूरे एक घंटे के अंदर यह सब कार्यक्रम समाप्त हो जायेगा। चौबीस धूपबत्तियों की कीमत थोड़ी सी होती है। पाँच दीपक जलेंगे, उनकी भी कीमत थोड़ी सी-एकाध रुपये की होती है। ज्यादा खर्च नहीं है। इस तरीके से एक पारिवारिक यज्ञ सस्ते में पूरा हो जायेगा। इस तरह से आप लोगों को चौबीस लाख यज्ञ करने हैं। गायत्री परिवार के जो भी प्रज्ञापुत्र और उत्साही महिलायें हैं, उन्हें अभी से संकल्प लेना चाहिए और ये कहना चाहिए कि एक हजार घरों में, एक हजार कुटुम्बों में एक हजार यज्ञ करके हम वहाँ के वातावरण का, वायुमंडल का संशोधन करेंगे और उसमें नवीन स्फूर्ति, नवीन चेतना, नवीन जागृति उत्पन्न करेंगे। यह आप लोगों का कर्तव्य है। गायत्री जयंती का हमारा यही संदेश है और यही हमारा गुरुपूर्णिमा का संदेश है।
पहली देव-दक्षिणा—नशा मुक्ति
मित्रो! एक काम और रह गया, बाकी सब समाप्त हो गये। वह काम यह रह गया है कि आपको देव-दक्षिणा देनी चाहिए। देव-दक्षिणा में आपको कुछ त्याग करना पड़ता है। प्राचीनकाल में इसको बलिदान कहते थे। मध्यकाल में, बुद्धकाल में बलिदानों का ऐसा रिवाज हो गया कि देव-दक्षिणा के जानवरों को काट-कूटकर देवताओं को चढ़ाने लगे। फिर ऐसा करने लगे कि नारियल चढ़ने लगे और कोई फल चढ़ाने लगे लेकिन वास्तव में देव-दक्षिणा भावनात्मक होनी चाहिए। केवल किसी वस्तु को देने से देवता क्या प्रसन्न होंगे? उनके यहाँ वस्तुएँ क्या कम हैं? स्वर्गलोक में कौन-सी चीज की कमी है कि देवता जिस चीज को प्राप्त करना चाहें, तो क्यों नहीं प्राप्त कर सकते? देवता कोई अंधे, अपाहिज, गूँगे, लूले या कोई भूखे-भिखारी थोड़े ही हैं, जो आप उन्हें सामान देंगे, मुर्गी, बकरा देंगे, नारियल देंगे, तो उससे ही उनका काम चलेगा? वस्तुतः देवताओं की दक्षिणा भावनाओं के साथ जुड़ी होती है। देवता भावनाओं को पसंद करते हैं, बुराइयों को दूर करने को पसंद करते हैं।
इस समय देव-दक्षिणा के लिए हमने तीन चीजें आपके सामने रखी हैं, जिन्हें आप चाहें तो तीन तरह के आन्दोलन भी कह सकते हैं। गायत्री के तीन चरण हैं और शरीर भी सत्, रज, तम तीनों से भरा हुआ है। तीन लोक हैं, इसलिए हमने तीन देव-दक्षिणा रखी हैं। एक देव-दक्षिणा त्यागने योग्य है। त्यागने योग्य क्या है? एक त्यागने योग्य देव-दक्षिणा यह है कि आप नशा बंद कर दीजिए। आप जो भी नशा पीते हों, भाँग पीते हों, शराब पीते हों या और कोई नशीली चीजें लेते हों, तो आप उन्हें बंद कर दीजिए। क्यों? क्योंकि इससे आपके शरीर के अंदर विषैला माद्दा भरा रहेगा। विषैले माद्दे के भरे रहने के बाद में फिर आपका शरीर इस लायक नहीं रहेगा, मन इस लायक नहीं रहेगा। शरीर भी खराब हो जायेगा, बुद्धि भी खराब हो जायेगी। आपका परिवार भी खराब हो जायेगा, पैसा भी खराब हो जायेगा और आपका व्यक्तित्व घटिया हो जायेगा।
घटिया व्यक्तित्व हो जाने की वजह से, जो नया युग आने वाला है, उसके लिए जो मूर्धन्य व्यक्तित्व चाहिए, मूर्धन्य भूमिका निभाने के लिए, वह आपके लिए संभव नहीं हो सकेगा। फिर आप कुछ कर नहीं सकेंगे। जब आपको परखा जायेगा, तो नशा आपके मनोबल को गिरा देगा। नशा आपकी आध्यात्मिक शक्ति को समाप्त कर देगा। इसलिए पहला आन्दोलन इसी चौबीस लाख यज्ञों के साथ-साथ में यह आरंभ होता है कि हमारे संपर्क में जो कोई भी नशा करने वाले लोग आयें, वे नशा पीना बंद करें। जिन लोगों ने नशा पीना बंद कर दिया है, या जो इससे आगे न पीने की प्रतिज्ञा करते हैं कि हमने न पिया है और न पियेंगे, तो वे अपना प्रतिज्ञा पत्र भर करके हमारे यहाँ भेज सकते हैं। हमें कैसे मालूम पड़ेगा कि आपने देवताओं को दिया है या नहीं, पर देवता के नुमाइंदों के रूप में, प्रतिनिधि के रूप में हम आपके सामने हैं। ऐसे प्रतिज्ञा पत्र आप यहाँ भेजते रहें, तो यह देव-दक्षिणा की बात होगी।
दूसरी देव-दक्षिणा—खर्चीली शादियाँ बंद हों
साथियो! दूसरी बात एक और करनी है आपको? वह क्या करना है? बिना दहेज और बिना जेवर के ब्याह करना है। आप लोगों में से जो अपने को हमारा कहते हैं, गायत्री परिवार का कहते हैं, अपने को प्रज्ञा मिशन का कहते हैं, जो हमारे हैं, हमसे व्यक्तिगत संबंध रखते हैं, हमको गुरु मानते हैं। हमारे लेखों को पढ़ करके हमें विद्वान मानते हैं, या जो कुछ भी मानते हैं, तो आप हमारा एक कहना यह मानिये कि ब्याह-शादियों में जो धूम-धाम होती है, इसको आप छोड़ दीजिए। ‘‘खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती हैं’’—यह बात हमने लाखों बार कही है, दीवारों पर लिखवाई है, पुस्तकों में छापी हैं, हर जगह छापी है। हिन्दुस्तान में गरीबी का मुख्य कारण विवाह-शादियाँ हैं। आप चाहे जो काम कर लें, दुकान कर लें, खेती कर लें, व्यापार कर लें, नौकरी कर लें, परन्तु सारी जिन्दगी में जो कमायेंगे, अगर परिवार में पाँच-छः ब्याह हो, तो प्रत्येक ब्याह में दोनों पक्षों को बेहद खर्च करना पड़ता है। लड़की वाले को दहेज देना पड़ता है और लड़के वालों को जेवर देना पड़ता हैं। जेवर और दहेज-दोनों को देने की वजह से दोनों ही दिवालिया हो जाते हैं, दोनों ही खोखले हो जाते हैं, कर्जदार हो जाते हैं और दोनों बेईमान हो जाते हैं।
हमारे समाज की आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए आमदनी बढ़ाना ही आवश्यक नहीं है, वरन् यह भी आवश्यक है कि जो खर्चे हैं, उनको कम किया जाय, खर्चों को घटाया जाय। सबसे बड़ा खर्च एक ही है-ब्याह का। अगर हम इस खर्चे को निकाल दें, तो फिर आप देखिये कि गरीबी मिटाओ का आन्दोलन जो सरकार ने या दूसरे लोगों ने चलाया हुआ है, उसकी तुलना में ‘खर्चीली शादियाँ हटाओ’-यह एक ही आन्दोलन ऐसा है कि हमारे देश की आर्थिक स्थिति में कायाकल्प कर सकता है। अगर आपको यह मालूम पड़ता हो कि इस काम में रुकावट डालने वाले सबसे ज्यादा आपके पड़ोसी, संबंधी या आपके मित्र होंगे, जो दकियानूसी ख्याल के होते हैं और कहते हैं कि पुराने ढंग का ही ब्याह होना चाहिए। ऐसी हालत से अपनी जान छुड़ाने के लिए यह अच्छा है कि पाँच आदमी लड़की की ओर से और पाँच आदमी लड़के वालों की ओर से अर्थात् दोनों ओर से दस आदमी यहाँ शान्तिकुञ्ज चले आयें। यहाँ ठहरें, खाना-पीना खायें। यहाँ किसी बात का कोई खर्च नहीं है। यहाँ शादी-ब्याह का संस्कार वैदिक रीति से जैसा कि शास्त्रों की विधि से होना चाहिए, उसी तरीके से करा देंगे। तीर्थस्थान में किया हुआ यज्ञ, वेदवाणी से किया हुआ यज्ञ, यहाँ माताजी के आशीर्वाद से सम्पन्न हुआ यज्ञ हर हालत में फलेगा-फूलेगा और उसकी संतानें हमेशा सुखी रहेंगी। दाम्पत्य जीवन भी प्रेमपूर्ण, सफल रहेगा और उसके सभी घर-गृहस्थी के लिए लाभदायक सिद्ध होगा। इसलिए आप लोग, जो अभिभावक हैं, उनको प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हम अपने बच्चों की शादियाँ बिना दहेज और बिना जेवर के करेंगे।
मित्रो! दहेज मिटेगा, तो जेवर मिटेगा। जेवर मिटेगा तो दहेज भी मिटेगा। अगर जेवर नहीं मिटेगा तो दहेज भी नहीं मिटेगा। इसलिए दोनों को एक साथ ही खत्म करना चाहिए। अगर आपके लड़के या लड़की वयस्क हो गये हों और बिना दहेज एवं जेवर के शादी-ब्याह करना हो, तो आप यहाँ उनको लेकर कभी भी आ सकते हैं। यहाँ बारहों महीने का तीर्थ है। यहाँ मुहूर्त छँटवाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। तीर्थ स्थान के लिए मुहूर्त की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। यहाँ कोई भी संस्कार, जिसमें विवाह संस्कार भी शामिल है, कभी भी हो सकता है, बारहों महीने हो सकता हैं। नवरात्र का अनुष्ठान क्वार और चैत्र की नवरात्रों में होता है, लेकिन शान्तिकुञ्ज की नवरात्र हमेशा जारी रहती है, तीन सौ पैंसठ दिन जारी रहती है। पहली से दस, ग्यारह से बीस एवं इक्कीस से तीस को यहाँ पर हमेशा नवरात्र है। जब कभी नवरात्र का अनुष्ठान करना हो, तो आप यहाँ बड़े मजे में बड़े आनन्द के साथ कर सकते है। यह दूसरी बात हो गई।
तीसरी देव-दक्षिणा—सबको शिक्षा
तीसरी एक और बड़ी बात है, जो इसी आन्दोलन के साथ शुरू कर रहे हैं। परिवारों का वातावरण बनाने के लिए जहाँ चौबीस लाख दीपयज्ञों का संकल्प ले रहे हैं, वहीं एक संकल्प यह भी ले रहे हैं कि प्रौढ़ शिक्षा का संचालन हमको ही करना है। हिन्दुस्तान में तीन चौथाई लोग बिना पढ़े-लिखे हैं। एक चौथाई पढ़े-लिखे हैं। पढ़े-लिखे बिना गरीबी दूर नहीं हो सकती। गरीबी और अशिक्षा-दोनों सगी बहने हैं। मिटेंगी तो दोनों मिटेंगी, रहेंगी तो दोनों रहेंगी। गरीबी रहेगी, तो अशिक्षा रहेगी और अशिक्षा रहेगी तो गरीबी रहेगी। बच्चों की बात अलग है। उनके लिए तो सरकारी स्कूल खुले हुए हैं, और वे पढ़ भी रहे हैं। लेकिन जो तीन चौथाई नर-नारी रह जाते हैं, उनको प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से पढ़ाया जा सकता है।
हममें से गायत्री परिवार का कोई भी व्यक्ति ऐसा न हो, जिसने कि अपने जीवन में कम से कम पाँच व्यक्तियों को पढ़ा न दिया हो। प्रौढ़ शिक्षा की पाठशालाएँ जगह-जगह खुल सकती हैं। अगले दिनों हमारा यह भी विचार है कि जब लोगों को वाराखड़ी, गिनती, पहाड़े वगैरह याद हो जायें, तो इसके बाद में जो किताबें पढ़ाई जायें, उनको हम यहाँ से लिखें। उसमें मनुष्य जीवन की समस्याएँ, परिवार की समस्याएँ, राष्ट्र की समस्याएँ, नैतिक समस्याएँ, धार्मिक समस्याएँ, आर्थिक समस्याएँ—इन सारी समस्याओं को मोटे-मोटे अक्षरों में और संक्षेप में ऐसी पुस्तकें अभी एक-दो महीने में ही लिखेंगे। इससे प्रौढ़ शिक्षा जो है, न केवल शिक्षा या साक्षरता रहे, वरन् साक्षरता के साथ-साथ में जीवन के, सामाजिक और जीवात्मा के, परमात्मा के, लोक और परलोक के अतिरिक्त और विषयों की शिक्षा इन छोटी-छोटी पुस्तकों में ही समाविष्ट हो जाय। इस तरीके से प्रौढ़ शिक्षा में दो भाग हो जाते हैं—एक वह, जिसको साक्षरता कहते हैं और दूसरी वह, जिसको कि नैतिक शिक्षा कहते हैं। इन दोनों को मिला करके प्रौढ़ शिक्षा बनेगी।
मित्रो! आप एक बार फिर समझ लीजिए। चौबीस लाख के दीपयज्ञों के संकल्प को पूरा करने में आप में से हरेक आदमी को योगदान देना है। हमारी पत्रिकाओं के पाँच लाख ग्राहक हैं। इनमें से प्रत्येक ग्राहक को पाँच-पाँच घरों में दीपयज्ञ करने के लिए कहा जाय, तो बड़ी आसानी से चौबीस लाख यज्ञ एक साल में हो सकते हैं। चलिए एक वर्ष में न होंगे तो दो वर्ष में भी कर सकते हैं। अभी हमारे सौ कुण्डीय यज्ञ भी तो दो वर्ष में हुए हैं। एक साल में यह संकल्प पूरा कर लें तो हमें बड़ी प्रसन्नता होगी। दो साल में हमें चौबीस लाख व्यक्तियों को साक्षर बनाना है, सुयोग्य बनाना है। इसके लिए आप में से हर व्यक्ति संकल्प ले कि हम साक्षरता बढ़ायेंगे। एक, ब्याह-शादी बिना दहेज-जेवर के करेंगे और शान्तिकुञ्ज में करेंगे-दो, और तीसरा यह कि हम नशा न पियेंगे और पीते रहे हों तो छोड़ देंगे, कभी नहीं पियेंगे। यह तीन देव-दक्षिणा हुईं। इन तीन देव-दक्षिणाओं की हमें आपसे आवश्यकता है। जो यज्ञ हों, उनमें से इन तीनों में से न सही, तो कम से कम एक देव-दक्षिणा तो हमको मिलनी ही चाहिए। यही हमारी नयी प्रेरणा, नया संकल्प, नयी शिक्षा, नयी प्रार्थना है कि आप चौबीस लाख दीपयज्ञों को पूरा करें। गायत्री परिवार की कोई भी पढ़ी-लिखी महिला और पढ़ा-लिखा पुरुष इस कार्य में पीछे न रहे। खासतौर से पढ़ी-लिखी महिलाओं से विशेष रूप से प्रार्थना है कि उनके लिए समय भी रहता है और वे इसे सम्पन्न भी कर सकती हैं। पुरुष इसमें सहयोग कर सकते हैं। यही प्रार्थना है कि आप इन सब बातों पर ध्यान देंगे और नये संकल्प को पूरा करने के लिए पूरा-पूरा प्रयत्न करेंगे।
—गायत्री जयंती, १९८७
॥समाप्त॥
ॐ तमसो मा ज्योतिर्गमय।
ॐ असतो मा सद्गमय।
ॐ मृत्योर्माऽमृतंगमय॥
॥ ॐ शान्तिः॥