उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
आप इस कल्प-साधना के शिविर में जो कार्य कर रहे हैं, उसमें से तपश्चर्या मुख्य है। आप देखते हैं न, जो कुछ भी आप क्रिया करते हैं; ये सारे-के तपश्चर्या से सम्बन्धित हैं। आपको खान-पान के बारे में तपश्चर्या, सबेरे उठने के बारे में तपश्चर्या, घर से कहीं बाहर जाने में तपश्चर्या—पूरे-के बन्धन। आप पर यहाँ ऐसा अनुशासन लगाया जाता है, जिसको आप सोच सकते हैं कि आपको तपश्चर्या कराई जा रही है। तप का बड़ा महत्त्व है। आपको इसीलिए यह नहीं कराया जा रहा है कि आपको हैरान किया जाए, बल्कि इसलिए कराया जा रहा है कि आपको मजबूत बना दिया जाए। तपश्चर्या की आग में तपे बिना आप मजबूत नहीं हो सकते। कोई भी आदमी, जिसने कठिनाइयों का सामना नहीं किया है, सिद्धान्तों के लिए—आदर्शों के लिए कष्ट नहीं सहा है, वह आदमी मजबूत कैसे हो जाएगा? बिल्कुल कच्चा रहेगा। जब कभी मुसीबत आएगी, तभी भाग खड़ा होगा और अपने संकल्पों-सिद्धान्तों को छोड़ देगा। आपको तपश्चर्या में यही कराया जा रहा है। आप जानते हैं न, कच्ची धातुओं को परिशोधित करने के लिए भट्टी में तपाते हैं। भट्टी में नहीं तपाएँ तब? तब कच्ची धातुएँ पक्की धातु नहीं बन सकतीं। जमीन में से जो लोहा निकलता है, वह मिट्टी मिला हुआ होता है। आप जैसा लोहा देखते हैं, वैसा थोड़े ही निकलता है। इसको भट्टी में डालना पड़ता है। तपाना पड़ता है, मिट्टी जल जाती है और साफ-सुथरा लोहा निकल के बाहर आ जाता है, तब उसमें से काम की और चीजें बनती हैं। अगर न तपाएँ तब? तब फिर लोहा कच्चा रहेगा, कोई चीज नहीं बन सकेगी। ईंटें आप देखते हैं न! ये ईंटें क्या हैं? मामूली मिट्टी है, जो पानी में बरसते ही बह जाती है; लेकिन जब उसको तपा देते हैं आग में, तो ईंट कैसी मजबूत बन जाती है! मुद्दतों तक टिकी रहती है। पानी यही होता है न, जो आप लोग पीते हैं; लेकिन उसको आग के ऊपर तपा दें तब? बत फिर स्टीम बन जाती है, भाप बन जाती है। भाप से प्रेशर कुकर चल जाते हैं; भाप से रेलगाड़ियाँ चल जाती हैं; भाप से क्या नहीं हो जाता! यह क्या है? ये तपाने का परिणाम। आयुर्वेद में भस्में बनती हैं। उसमें क्या करना पड़ता है? अभ्रक भस्म, लोहा भस्म, सोना भस्म, चाँदी भस्म, मकरध्वज—ये सब क्या चीज हैं? ये ऐसे भस्म और रसायन हैं कि जिसमें पदार्थों को जलाकर के, गरम करके तपाने के बाद में उनकी शक्ति को उछाला जाता है और उभारा जाता है। ये तपाने की बात हुई। सोने को तपाएँ नहीं, तब सोना कच्चा रहेगा, कोई कीमत ही नहीं मिलेगी। कोई मना करे, साहब! तपाने नहीं देंगे, तो बाजार में आप जाइये कोई लेगा ही नहीं। सोने को तपा देने के बाद में न केवल उसकी चमक बढ़ जाती है, बल्कि उसकी मलीनताएँ दूर भी हो जाती हैं; न केवल दूर हो जाती हैं, साख भी बढ़ जाती है और तपाए हुए सोने का नकद पैसा मिल जाता है। तपाए बिना यह सम्भव नहीं है।
आपका व्यक्तित्व भी ऐसा है, जो तपाने की अपेक्षा करता है। आपको तपना चाहिए और आपको तपाया जाना चाहिए। यही तप जो आपको इस कल्प-साधना शिविर में कराया जा रहा है, आगे भी कराया जाएगा। आपको संचित कुसंस्कारों के विरुद्ध बराबर लड़ाई लड़नी चाहिए। यही तो है गीता का महाभारत। महाभारत में भाई-भाई की लड़ाइयों का किस्सा नहीं है। असल में ये भीतर हमारे जो अन्तर्द्वन्द्व हैं, हमारे जो कषाय-कल्मष हैं, यही वास्तव में दुर्योधन और कौरव हैं। अपने पंचप्राणों की सहायता से इनसे लड़ाई लड़नी चाहिए और उनके सामने झुकना नहीं चाहिए; इनको भगा देना चाहिए। चाकू पर धार रखने से चाकू तेज हो जाता है न! आदमी के ऊपर तपश्चर्या की धार रखने से चाकू के तरीके से पैना और तीखा हो जाता है। धुलाई-धुनाई की बात कल कही थी। आपकी धुलाई नहीं करेंगे, कपड़े की पिटाई नहीं करेंगे, तो रँगा कहाँ से जाएगा। बुआई-जुताई की बात कही थी न! ये सब आत्मशोधन हैं। अपने आपको तपस्वी अगर बना सकते हों, तो आपको फिर ढेरों-की शक्तियाँ मिल सकती हैं। सिद्धियाँ जिनको कहते हैं, वो तपश्चर्या के बिना नही मिल सकतीं। साधना से सिद्धि मिलती है। साधना का मतलब आत्मसंयम होता है, अपने आप का परिष्कार करना होता है। संसार में कितने-कितने बड़े काम हुए हैं! से सब काम बड़ी-बड़ी विजय जिन्होंने प्राप्त की हैं, वास्तव में आत्मविजय का परिणाम है। जो अपने ऊपर जीत प्राप्त कर सकता है, आध्यात्मिक क्षेत्र में वही विश्वविजयी माना जाता है। संसार में तो चोर-डाकू भी अपने-अपने ढंग से तुक बिठा लेते हैं; पर आध्यात्मिक जीवन, महानता का जीवन, शालीनता का जीवन उन्हीं के लिए सम्भव है, जो आत्मविजय प्राप्त कर लें अर्थात् अपने दोष और दुर्गुणों पर नियंत्रण प्राप्त कर लें। जो इसको नहीं कर सकेंगे, उनके लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी।
आप भगीरथ का नाम जानते हैं? भगीरथ एक सामान्य से राजकुमार थे; लेकिन जब उन्होंने तपस्वी जीवन जिया; तब उसके चमत्कारों को देखो! गंगा जी को स्वर्ग से उतारकर जमीन पर ले आए। गंगा का नाम भागीरथी कहलाया। महान् भगीरथ! महान् भगीरथ का अर्थ है—राजकुमार भगीरथ नहीं, तपस्वी भगीरथ। तपस्वी भगीरथ बहुत शानदार था। राजकुमार भगीरथ बिल्कुल मामूली आदमी था। आपने दधीचि का नाम सुना है? मामूली संत बाबाजी थे; लेकिन जब उन्होंने अपनी तपश्चर्या से स्वयं को तपा लिया, तो उनकी हड्डियाँ इतनी मजबूत हो गईं कि उनसे इन्द्र का वज्र बनाया जा सका। वृत्तासुर किसी भी हथियार से मरने वाला नहीं था। वो उससे मरा। किससे? दधीचि की हड्डियों से। ये कैसे बात बनी? ये तपस्वी की बात कह रहा हूँ मैं। आपने शृंगी ऋषि का नाम सुना है? शृंगी ऋषि उन महात्मा का नाम है, जिनके आशीर्वाद से, राजा संतानहीन थे और उन्होंने वेदमंत्र पढ़े और यज्ञ कराया था और चार बच्चे पैदा हो गए थे। चार बच्चे किसने पैदा किए थे? यज्ञ ने? नहीं, यज्ञ ने नहीं। यज्ञ ने नहीं किए थे। मनःशक्ति ने? अरे भाई! मनःशक्ति से भी नहीं। वो ऋषि ने...शृंगी ऋषि की बन्दूक के ऊपर जो वेदमंत्रों की कारतूस रख के चलाए गए, तो ही चले। बन्दूक न हो, तब क्या कारतूस चलेगी? तपस्वी न हो, तब क्या मंत्र सिद्ध हो जाएगा? मंत्र सिद्ध होने के लिए, भगवान् की उपासना करने के लिए आदमी का तपस्वी जीवन आवश्यक है। शृंगी तपस्वी थे। उन्होंने जीवन भर में ये नहीं जाना कि जायकेदार पदार्थ क्या होते हैं। आश्रम में जो कंद-मूल बन जाते थे, उसी को खाते थे। ऐसे शृंगी ऋषि, उनकी वाणी, उनकी इन्द्रियाँ जिसका मन सबों से निगृहीत था, उनमें उद्भूत शक्ति थी। यज्ञ कराएँ और उनके बच्चे पैदा हो जाएँ! महर्षि वशिष्ठ वो काम नहीं कर सकते थे; क्योंकि उनकी शादी हो गई थी और बहुत सारे बच्चे भी हो गए थे; राजा का अन्न खाते थे। जिसने राजा का अन्न खाया और उनके ढेरों के ढेरों बच्चे पैदा हो गए, उससे क्या आशा की जाए कि उसके श्राप और वरदान सफल होंगे! श्राप और वरदान सफल होने के लिए आदमी का तपस्वी जीवन होना बहुत जरूरी है। पार्वती जी को आप जानते हैं? पार्वती जी एक साधारण-से राजा की बेटी थीं, हिमाचल राजा की; लेकिन जब उनको तीनों लोकों के स्वामी भगवान शंकर जी से ब्याह करने का मन हुआ, एक ही तरीका था—तपस्या! तपस्या से आदमी को ये सिद्ध करना होता है कि हम इस लायक हैं। लायकी आप किस तरीके से पहचानोगे? किसी आदमी को हम कैसे जान पाएँ कि अच्छा आदमी है कि नहीं, प्रामाणिक है कि नहीं। एक ही सबूत है कि उसने ऊँचे सिद्धान्तों के लिए मुसीबत उठाई है, तो हम ये कह सकते हैं कि तपस्वी है। ऊँचे सिद्धान्तों के लिए जिसने मुसीबत नहीं उठाई हैं, उसके बारे में ये नहीं कहा जा सकता कि ये प्रामाणिक हैं। इस तरीके से पार्वती जी ने अपनी तपश्चर्या के द्वारा शंकर भगवान के सामने ये साबित कर दिया कि वो इस लायक हैं कि उनकी अर्द्धांगिनी बनें। ये तपश्चर्या से सफल हुआ और आपने कितनों के नाम सुने? ध्रुव का नाम सुना है न? ध्रुव क्या हो गए थे? वो बहुत बड़े भक्त हो गये थे; तीनों लोकों के स्वामी हो गए थे; आकाश में रहते थे; भगवान के प्यारे हो गए थे। कैसे सम्भव हुआ? तपश्चर्या के द्वारा। आपने परशुराम जी की बावत सुना है? उनके पास एक ऐसा कुल्हाड़ा था...... कुल्हाड़े को लेकर उन्होंने इक्कीस बार अन्यायी लोगों का सिर काट डाला और फिर सारे संसार में नई स्थापना करने के लिए संसार को हरा-भरा बना दिया। यह कैसे बना सकता था एक छोटा-सा आदमी! इसमें तपश्चर्या की शक्ति थी।
भगवान परशुराम तपस्वी नहीं रहे होते तब? तब तो बिल्कुल मामूली जैसे बाबाजी या ब्राह्मण पंडित रहते। और यहाँ-वहाँ कथा-वार्ता करते रहते। परशुराम जी का ऐसा कुल्हाड़ा लुहार के यहाँ से नहीं खरीदा गया था। ये तपश्चर्या की शक्ति से उनको प्राप्त हुआ था और भी कितने ऋषि हैं! आप को कहाँ-कहाँ तक बताएँ। अच्छा, अगस्त्य ऋषि को आप जानते हैं? अगस्त्य ऋषि ने तीन चुल्लू में समुद्र का पानी पी लिया था। अगस्त्य ऋषि में शक्ति कहाँ से आ गई थी? ये अगस्त्य ऋषि की शक्ति तपश्चर्या की शक्ति है। तपश्चर्या आदमी न करे तब? शक्तिवान हो जाएगा? नहीं, तपश्चर्या जो नहीं कर सकता, वो सामर्थ्यवान नहीं हो सकता, शक्तिशाली नहीं हो सकता। आपको यहाँ इस कल्प-साधना शिविर में इसीलिए बुलाया गया है कि आप अपने आप को मजबूत बनाएँ और तपाएँ। तपाना न केवल शक्ति प्राप्त करने के लिए, बल्कि इसलिए भी जरूरी है कि चारों ओर से आपके ऊपर जो हमले होते हैं, उनके विरुद्ध आप लड़ाई लड़ें और अपनी बहादुरी का सबूत दें। आप देखिये, चारों ओर वातावरण कैसा बना हुआ? जब आप लड़ाई न लड़ें और हिम्मत नहीं दिखाएँ और संघर्ष न करें? तपस्वी न हों तब? तब आप कदम-कदम पर असफल होते रहेंगे।
तपस्वी का एक अर्थ लड़ने वाला भी होता है, संघर्षशील भी होता है। आपको जिन्दगी में पग-पग पर लड़ना पड़ेगा। मक्खियों से अगर आप नहीं लड़े तब? तो मक्खियाँ आपकी सब चीज को जहरीली कर देंगी और मुसीबत पैदा कर देंगी। मच्छरों को आप भगाने का इन्तजाम न करें तब? तब मच्छर आपको काट खाएँगे और सारे शरीर को मलेरिया से ग्रसित कर देंगे। खटमल देखते हैं न! पिस्सुओं को आप जानते हैं न? दीमक आप जानते हैं, घर में कितना नुकसान करती हैं? अनाज को खाने वाले घुन, शरीर को खाने वाले विषाणु, फसल को खाने वाले कीड़े, जंगली जानवर, बिच्छू, साँप, बर्र ..। आप इनका मुकाबला न करें, इनको भगाने की कोशिश न करें और इनके साथ चुप बैठे रहें तब? तब ये सब मिल करके आपका जिन्दा रहना मुश्किल कर देंगे और आप जी नहीं पाएँगे। लड़ना तो पड़ता ही है आपको। तपस्वी का एक अर्थ अपने आपको लड़ाकू बना देना भी है। चोर और उचक्के, दुराचारी और व्यभिचारी का अगर आप सामना न करें, उनका मुकाबला न करें और उनको रौंदते हुए नहीं आगे चलें, तो ये आप समझ लीजिए, ये सब मिलकर के आप के ऊपर हमला बोल देंगे और आपको जिन्दा नहीं रहने देंगे। इस दुनिया में जिन्दा रहने के लिए बहुत-सी चीजें ऐसी हैं, जिनसे हमको लड़ाई करनी पड़ती है। आलस्य और प्रमाद को ले लीजिए। आलस्य और प्रमाद से आप लड़ाई नहीं लड़ेंगे तब? जिन्दगी को बुहारेंगे नहीं तब? तब आपका शरीर, मन, कपड़ा, घर, ईमान सब गन्दगी से भर जाएँगे। ये क्या है? ये तपश्चर्या है। बुराइयों के विरुद्ध लड़ाई लड़ना तपश्चर्या है, अपने भीतर की बुराइयों से लड़ने की तपश्चर्या। इसके अलावा एक और बात भी है। क्या चीज? आपको उन्नति के लिए, आपको तरक्की करने के लिए अपनी योग्यता बढ़ानी पड़ेगी और सामर्थ्य संग्रह करनी पड़ेगी। ये कैसे हो सकता है? ये भी तपश्चर्या से होगा। अगर आप तपश्चर्या नहीं कर सकते अर्थात् अपने आप पर संयम नहीं लगा सकते, आप अपने आप को पुरुषार्थी नहीं बना सकते, अपने आप को संघर्षशील नहीं बना सकते, तो फिर आपके लिए सफलताएँ कहाँ से आएँगी? धन, बल, विद्या, कला वगैरह सम्पदाएँ क्या किसी ने बिना परिश्रम के कमा लीं? बिना पुरुषार्थ के कमाई जा सकीं? ना, कमाये नहीं जा सकेंगी! कठिन पुरुषार्थ करना पड़ता है उन्नति के लिए। उस उन्नति के लिए किये हुए पुरुषार्थ का नाम भी ‘तप’ है।
तप कई प्रकार के होते हैं। आपको अपनी उपेक्षावृत्ति से लड़ना पड़ेगा; अपने भीतर निराशा, जो बार-बार आपको दबोच लेती है, उसके विरुद्ध आपको लड़ना पड़ेगा; चिन्तन में जो चिन्ताएँ तरह-तरह की और आशंकाएँ, भय छाये रहते हैं, उनसे आपको अपने मन को सुधारना पड़ेगा; इन चीजों को खत्म करना पड़ेगा। अभ्यस्त ढर्रा! कैसा अभ्यस्त ढर्रा? जो जिन्दगी हम जीते हैं, वो ऐसी जिन्दगी है, हम क्या कहें आपसे! ऐसी जिन्दगी, ढर्रे की जिन्दगी, जिसमें न बुराइयों से नाराजगी है, न अच्छाइयों से मोहब्बत है—ऐसी घिसी-पिटी जिन्दगी, वाहियात-सी जिन्दगी, फूहड़-सी जिन्दगी हम जी रहे हैं। ये जिन्दगी की जो वर्तमान परिस्थितियाँ हैं, इनसे आपको लड़ना पड़ेगा; उनको तोड़-मरोड़ के एक ओर फेंकना पड़ेगा; इनके स्थान पर नई विचारधाराएँ, नई योजनाएँ कार्यान्वित करनी पड़ेंगी। अगर आप नहीं करेंगे? तो ढर्रे पर घूमते रहेंगे और ढर्रे पर घूमते हुए कोल्हू के बैल के तरीके से पिलते-पिसते रहेंगे। संघर्ष नहीं करेंगे, तो कैसे काम बनेगा। अनीति से लड़ने के लिए आपको प्रत्याक्रमण करना ही चाहिए। काँटे को काँटे से ही निकाला जाता है। विष को विष से ही मारा जाता है। घूँसे का जवाब घूँसा हो सकता है। इसीलिए क्या करना चाहिए? अनीति के विरुद्ध आप अगर तन के नहीं खड़े होंगे, तो अनीति दिनोंदिन बढ़ती चली जाएगी और आपको ही नहीं, बल्कि आपके सारे समाज को धीरे-धीरे करके निगलती चली जाएगी। फिर आप ऐसी परिस्थिति में आ जाएँगे कि अपने समाज को, सबको हैरानी में डाल दें। इसलिए तपश्चर्या, जिसका अर्थ होता है—अपने आप को तपाना, तपा डालना, मजबूत बना देना, लड़ाकू बना देना, संघर्षशील बना देना, साहसी बना देना—ये गुण आप अपने भीतर पैदा कीजिए।
प्राचीनकाल में तपश्चर्या को बहुत महत्त्व दिया जाता है। विद्यार्थियों के लिए गुरुकुल खुले हुए थे। गुरुकुलों में केवल पढ़ाई नहीं होती थी। आप ये सोचते हैं—केवल विद्यार्थी पढ़ते रहते थे। नहीं, वहाँ तपस्वी जीवन का आरम्भ में अभ्यास कराया जाता था; श्रमशील जीवन का, कठोर जीवन का। बच्चे गौएँ चराते थे; बच्चे लकड़ी लाद के लाते थे। बच्चे सब मिल-जुलकर के अपने गुरु के आश्रम के बगीचे और खेतों की रखवाली करते थे; अन्न-फल उगाते थे। ये क्या है? ये तपश्चर्या है। प्राचीनकाल में प्रत्येक बच्चे के लिए यही था और आध्यात्मिक जीवन में? आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करने वाले को भी यही करना पड़ता था। आरण्यक जितने बने हुए थे, वो ढलती अवस्था में अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए निवास करने के लिए आरण्यक बने हुए थे और उन आरण्यकों में क्या होता था? आरण्यकों में तपस्वी जीवन जीना पड़ता था; निग्रही जीवन, अनुशासित जीवन। अनुशासित जीवन अगर आप न जिएँ तब? आरण्यक की तप-साधना आपके लिए राम नाम, मंत्र, जप, तप सबमें काम आ सकती है; लेकिन अगर आपने तपस्वी जीवन नहीं जिया, विलासिता का जीवन जिया और ऐसा जीवन जिया, जिसमें कि बड़े आदमी और सम्पन्न और स्वार्थी और निष्ठुर जीते रहते हैं, तो फिर आप एक बात यकीन रखिये; फिर आप ये ख्याल निकाल दीजिये कि हमको पूजा करने से ये लाभ मिल जाएगा और भजन करने से ये लाभ मिल जाएगा और ध्यान करने से ये लाभ मिल जाएगा और हमारी कुंडलिनी जग जाएगी। आपको कुछ नहीं मिलेगा। आप जिन्दगी को ठीक नहीं रखते हैं, आप समझते नहीं हैं! सारे-का अध्यात्म सिर्फ इस बात पर टिका हुआ है कि साधक का पुनीत जीवन और पवित्र जीवन और साधक का जैसा जीवन आप जीना चाहते हैं कि नहीं। पुनीत जीवन जीना नहीं चाहते, पवित्र जीवन जीना नहीं चाहते और जादूगरों के तरीके-से थोड़े खेल-खिलवाड़ करने के बाद में तरह-तरह की आप चीजों को माँगने की कोशिश करते हैं। ऐसी गलत बात क्यों करते हैं? थोड़ी-सी पूजा से अगर ये सब चीजें मिल गई होतीं, फिर किसी आदमी को अपने जीवन को परिष्कृत करने की जरूरत क्या पड़ती? कोई संयमी बनता क्यों? कोई तपस्वी बनता क्यों? कोई निग्रही अपने आप को करता क्यों? अपनी इन्द्रियों को मारता क्यों? फिर तो सब अपना मनमौजी जीवन जिया करते, विलासिता का जीवन जिया करते और साथ-साथ में जप-तप करके, थोड़ा-बहुत पूजा-पाठ करके और तरह-तरह की चीजें पा लेते; भगवान को प्रसन्न कर लेते और योगी बन जाते और कुछ-न बन जाते। ये सम्भव है? नहीं भाईसाहब! सम्भव नहीं है आप क्यों नहीं मानते? आप मानने की कोशिश कीजिये। आदमी के भीतर से ये शक्ति का उदय होता है; ये केवल आदमी की तपश्चर्या की वजह से होता है। तपस्वी अगर आप हैं, फिर चाहे जो आप कीजिये। भगवान राम को तपश्चर्या करनी पड़ी थी। विश्वामित्र जी के आश्रम में गए थे, वहाँ तपस्वी जीवन जिया। इसके बाद में फिर चौदह वर्ष वनवास गए। वहाँ फिर तपस्वी जीवन जिया। इसके बाद में भगवान राम को गुरु वशिष्ठ जी ने देवप्रयाग बुला लिया था। जब तक जिए, तब तक वहीं देवप्रयाग में, हिमालय में रहे। ये भी तपस्वी जीवन हुआ। रामचन्द्र जी का सारा जीवन तपस्वी जीवन, श्रीकृष्ण भगवान का जीवन तपस्वी जीवन, भगवान बुद्ध का तपस्वी जीवन, भगवान महावीर का तपस्वी जीवन। जितने भी भगवान हुए हैं, आप समझिये। जो इतने महामानव हुए थे, यों कहिए; भगवान न सही, महामानव कहिये। भगवान और महामानव में कोई फर्क नहीं पड़ता; दोनों एक ही चीज के दो नाम हैं। इसलिए ये सब जो बने हैं, सब तपश्चर्या से बने हैं। इन्द्र से लेकर के जितने भी ऊँचे पदाधिकारी हुए हैं, अपनी तपश्चर्या के बल पर ही इतना ऊँचा उठ सकने में समर्थ हुए हैं। तितीक्षा इसीलिए कराई जाती है। उपवास करने से लेकर धूप में खड़े होने और पानी में चलने से लेकर कई तरह की आदमी तितीक्षाएँ करता रहता है। ये अभ्यास हैं कि सिद्धान्तों के लिए कठिनाई का सामना करेंगे। सिद्धान्तों के लिए आपको अनीति के सामने झुकने से इनकार कर देना चाहिए। आपको अपने आपको तपाने में जो व्यवधान अपने मन को कच्चेपन के रूप में आता है, उसको मानने से इनकार कर देना चाहिए और क्या करना चाहिए? और ये करना चाहिए कि आपको पीड़ित और पददलित मानवता के लिए, उसके उद्धार का हिमायत करने के लिए कमर कसकर आगे आना चाहिए।
आपको मानसिक तप करना चाहिए। असल में मन कभी इधर घूमता है, कभी उधर घूमता है, कभी किधर घूमता है? इन सबको रोककर के क्या करेंगे? आप मन को रोकिए। रोकने के बाद में उसको भगवान में लगा दीजिये। यही तो योगाभ्यास है। तपश्चर्या और योगाभ्यास दोनों की एक जोड़ी है। तपश्चर्या का अर्थ है—निखार देना और योग का अर्थ? योग का अर्थ है—किसी के साथ में जोड़ देना, भगवान के साथ जोड़ देना। उपासना इसी का नाम है। हम किसी के साथ में जोड़ देते है, अपने मन को। टंकी के साथ में जोड़ देते हैं नल को। अपने बल्ब को बिजलीघर के साथ में जोड़ देते हैं। जोड़ देना—इसी का नाम ‘योग’ है। अपने आपको, अपने असंयम को तपा देने का नाम, गला देने, झुका देने और मिटा देने का नाम ‘तप’ है। तप और योग—इन दोनों की जोड़ी है। आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर दोनों कदम साथ-साथ बढ़ाने पड़ते हैं, लैफ्ट-राइट के तरीके से। एक पैर से आप चलें तब? तब लम्बा सफर पूरा नहीं कर सकेंगे। एक पहिये की गाड़ी पर चलें तब? तब आप सर्कस में एक चक्कर तो काट भी सकते हैं; लेकिन आप लम्बा सफर नहीं कर पाएँगे। एक पहिये की गाड़ी किस तरीके से चलेगी! एक पहिये की गाड़ी नहीं चलती। एक हाथ से ताली भी बजती नहीं है, दोनों की जरूरत पड़ती है। आदमी की, आध्यात्मिक जीवन में उन्नति के लिए, पूजा-पाठ तो प्रारम्भिक है, बच्चों का है; लेकिन असल में योग और तप का रास्ता अंगीकार करना पड़ता है। योग को फिर आप एक बार समझिये। अपने आपको भगवान के साथ में जोड़ दीजिये। भगवान के साथ में जोड़ने का मतलब है—सिद्धान्तों के साथ जोड़ देना, आदर्शों के साथ जोड़ देना और इसके अलावा एक और काम भी करना पड़ता है आध्यात्मिक जीवन के लिए, उसका नाम है—तप। अपने आपको तपाइए, अपने आपको गलाइये, अपने आपको सोने जैसा बनाइये, अपने आपको ठीक करिये, अपने आप में मुसीबतों को सहने की आदत डालिये, सिद्धान्तों के लिए मुसीबत सहिए। अपनी योग्यताओं को ऊपर उभारने और अपनी क्षमताओं को उछालने के लिए व्यायाम जैसे बहुत सारे काम करने को तैयार रहिए। इसका, सिवाय कठिनाइयों का मुकाबला किये बिना और कोई तरीका नहीं है। आप कठिनाइयों से मुकाबला कीजिए। लड़िए कठिनाइयों से; बुलाइए, आमंत्रित कीजिए; आप तपस्वी हैं। आप अपने आपको घुला दीजिए, जोड़ दीजिए। स्त्री अपने आपको पति के साथ में मिला देती है, जोड़ देती है। बस, इसी तरीके से आप अपने आपको महान सत्ता के साथ में, समष्टि के साथ में, भगवान के साथ में, विराट् ब्रह्म के साथ में या जो कुछ भी इस दुनिया में महान् है, उसके साथ में अपने आपको जोड़ दीजिये, अपने को घुला दीजिए। फिर देखिए आप योगी होते हैं कि नहीं! और आप तपस्वी होते हैं कि नहीं! तपस्या कोई बाजीगरी नहीं है। नाक में से रस्सी निकालेंगे और एक टाँग से खड़े हो जाएँगे। भाईसाहब! ये टैक्निक नहीं है। अपने मन को और जीवन को एक ढर्रे में, एक खासतौर के ढर्रे में ढाल लेने का नाम योग भी है और तप भी है। आप योगी बनिए, तपस्वी बनिए। आप सिद्धान्तों के साथ में अपने आपका तालमेल बिठाइए। आप अनीति के विरुद्ध लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहिए। कठिनाई उठाइए, गरीबी में रहिए, मुसीबत सहिए; लेकिन ऐसे काम मत कीजिए, जो इनसान को शोभा नहीं देते। तपस्वी जीवन के यही मौलिक और मूलभूत सिद्धान्त हैं। आप इन सिद्धान्तों को समझें; तपस्वी बनें और जिस कल्प-साधना में आपको तपश्चर्या की ओर प्रेरित और उन्मुख किया जा रहा है, उसे सच्चे अर्थों में सार्थक करने की कोशिश करें। आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥