उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
किये मंत्र जप माला फेरी, पूजन आठों याम का।
रहे भाव संकीर्ण अगर तो, यह पूजन किस काम का॥
हर पूनो हर पर्व नहाये, गंगाजी के नीर में।
पर मन डूब न पाया बिल्कुल, किसी दुखी की पीर में॥
करते रहे सफर हम निष्ठुर, मन से चारों धाम का॥
रहे भाव संकीर्ण अगर तो, यह पूजन किस काम का।
किये मंत्र जप माला फेरी, पूजन आठों याम का॥
ईश्वर ने जो दिया लगाया, केवल अपने वास्ते।
स्वार्थ-पूर्ति हो जिनसे हमने, चुने वही सब रास्ते॥
किया यत्न हर पल-छिन हमने, अपने सुख-आराम का॥
रहे भाव संकीर्ण अगर तो, यह पूजन किस काम का।
किये मंत्र जप माला फेरी, पूजन आठों याम का॥
प्रगति देखकर औरों की हम, भरे द्वेष में लोभ में।
पूर्ण न हो पायी इच्छा तो, भरे तीव्र विक्षोभ में॥
ध्यान रहा हर समय हमें तो, अपने ही धन-धाम का॥
रहे भाव संकीर्ण अगर तो, यह पूजन किस काम का।
किये मंत्र जप माला फेरी, पूजन आठों याम का॥
व्यर्थ ऐंठना अहंकार में भरकर झूठी शान से।
किन्तु माँगते रहना खुद के लिये सदा भगवान से॥
द्वार-द्वार दौड़ना व्यर्थ में यहाँ सुबह औ शाम का॥
रहे भाव संकीर्ण अगर तो, यह पूजन किस काम का।
किये मंत्र जप माला फेरी, पूजन आठों याम का॥
जितना गढ्ढा किया कि उतनी, मिट्टी डालो खेत में।
प्रायश्चित का सूत्र दिया यह, गुरुवर ने संकेत में॥
ध्यान न रह पाया यदि हमको, पापों के परिणाम का॥
रहे भाव संकीर्ण अगर तो, यह पूजन किस काम का।
किये मंत्र जप माला फेरी, पूजन आठों याम का॥
रहे भाव संकीर्ण अगर तो, यह पूजन किस काम का।
किये मंत्र जप माला फेरी, पूजन आठों याम का॥