उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
देवताओं के अनुग्रह की बात आप सबने सुनी होगी। देवता नाम ही इसलिए रखा गया है कि, वे दिया करते हैं। प्राप्त करने की इच्छा से कितने ही लोग उनकी पूजा करते हैं, उपासना करते हैं, भजन करते हैं, आइए—इस पर विचार करें।
देवता देते तो हैं, इसमें कोई शक नहीं है। अगर वे देते न होते तो उनका नाम देवता न रखा गया होता। देवता का अर्थ ही होता है—देने वाला। देने वाले से अगर माँगने वाला कुछ माँगता है तो कोई बेजा बात नहीं है। पर विचार करना पड़ेगा कि, आखिर देवता देते क्या चीजहैं? देवता वही चीज देते हैं जो उनके पास है। जिसके पास जो चीज होगी, वही तो दे पाएगा। देवता के पास सिर्फ एक चीज है और उसका नाम है—देवत्व। देवत्व कहते हैं—गुण, कर्म और स्वभाव-तीनों की अच्छाई को, श्रेष्ठता को। इतना देने के बाद में देवता निश्चिन्त होजाते हैं, निवृत्त हो जाते हैं और कहते हैं कि, जो हम आपको दे सकते थे हमने वह दे दिया। अब आपका काम है कि, जो चीज हमने दी है, उसको जहाँ भी आप मुनासिब समझें, वहाँ इस्तेमाल करें और उसी किस्म की सफलता पाएँ।
दुनिया में सफलता एक चीज के बदले में मिलती है और वह है—आदमी का उत्कृष्ट व्यक्तित्व। इससे कम में कोई चीज नहीं मिल सकती। अगर कहीं से किसी ने घटिया व्यक्तित्व की कीमत पर किसी तरीके से अपने सिक्के को भुनाए बिना, अपनी योग्यता का सबूतदिए बिना, परिश्रम के बिना, गुणों के अभाव में, कोई चीज प्राप्त कर ली है तो वह उसके पास ठहरेगी नहीं। शरीर में हजम करने की ताकत न हो तो जो खुराक आपने खाई है, वह आपको हैरान करेगी, परेशान करेगी। इसी तरह सम्पत्तियों को, सुविधाओं को हजम करने केलिए गुणों का माद्दा नहीं होगा तो वे आपको तंग करेंगी, परेशान करेंगी। अगर गुण नहीं है तो जैसे-जैसे दौलत बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे आपके अन्दर दोष-दुर्गुण बढ़ते जाएँगे, व्यसन बढ़ते जाएँगे, अहंकार बढ़ता जाएगा और आपकी जिन्दगी को तबाह कर देगा।
देवता क्या देते हैं? देवता हजम करने की ताकत देते हैं। जो दुनियाबी दौलत या जिन चीजों को आप माँगते हैं जो आपको खुशी का बायस मालूम पड़ती हैं, उन सारी चीजों को हजम करने के लिए विशेषता होनी चाहिए। इसी का नाम है—देवत्व। देवत्व अगर प्राप्त होजाता है, तो फिर आप दुनिया की हर चीज से, थोड़ी-से थोड़ी चीजों से लेकर फायदा उठा सकते हैं। अगर वे न भी हो तो काम चल सकता है। ज्यादा चीजें हो जाएँ तो भी अच्छा है, यदि न हो जाएँ तो भी कोई हर्ज नहीं है। लेकिन अगर आप इस बात के लिए उतावले हैं किजैसे भी पिछड़े हैं वैसे ही बने रहें, तो फिर कुछ कहना सम्भव नहीं है। मनुष्य के शरीर में ताकत होनी चाहिए लेकिन समझदारी का नियन्त्रण न होने से आग में घी डालने, ईंधन डालने के तरीके से वह सिर्फ दुनिया में मुसीबतें पैदा करेगी। देवता किसी को दौलत देने कीगलती नहीं कर सकते। अगर देते हैं तो इसका मतलब है कि तबाही कर रहे हैं। इनसानियत उस चीज का नाम है, जिसमें आदमी का चिन्तन, दृष्टिकोण, महत्त्वाकांक्षाएँ और गतिविधियाँ ऊँचे स्तर की हो जाती है। इनसानियत एक बड़ी चीज है।
मनोकामनाएँ पूरी करना खराब बात नहीं है, पर शर्त एक ही है कि यह किस काम के लिए, किस चीज के लिए माँगी गई हैं? अगर सांसारिकता के लिए माँगी गई हैं तो उससे पहले यह जानना जरूरी है कि उस दौलत को हजम कैसे कर सकते हैं? उसे खर्च कैसे कर सकतेहैं? मनुष्य भूल कर सकता है, पर देवता भूल नहीं कर सकते। देवता आपको चीजें नहीं दे सकते जैसा कि मेरा अपना ख्याल है। देवताओं के सम्पर्क में आने वाले को भौतिक वस्तुएँ नहीं मिलीं। क्या मिला है? आदमी को गुण मिले हैं, देवत्व मिला है। सद्गुणों के आधारपर आदमी को विकास करने का मौका मिला है। गुणों के विकसित होने के पश्चात् उन्होंने वह काम किए हैं, जिन्हें सामान्य मनुष्य सामान्य बुद्धि से काम करते हुए नहीं कर सकता। देवत्व के विकसित होने पर कोई भी उन्नति के शिखर पर जा पहुँचा सकता है, चाहेवह सांसारिक हो अथवा आध्यात्मिक। संसार और अध्यात्म में कोई फर्क नहीं पड़ता। गुणों के इस्तेमाल करने का तरीका भर है। गुण अपने आप में शक्ति के पुंज हैं, कर्म अपने आप में शक्ति के पुंज हैं और स्वभाव अपने आप में शक्ति के पुंज हैं। इन्हें कहाँ इस्तेमालकरना चाहते हैं, यह आपकी इच्छा की बात है।
सफलता साहसिकता के आधार पर मिलती है। यह एक आध्यात्मिक गुण है। इसी आधार पर योगी को भी सफलता मिलती है, तांत्रिक को भी और महापुरुष को भी। हर एक को इसी साहसिकता के आधार पर सफलता मिलती है। वह डाकू क्यों न हो। आप योगी हैं तोअपनी हिम्मत के सहारे फायदा उठायेंगे। नेता हैं, महापुरुष हैं तो भी इसी आधार पर सफलता पायेंगे। यह एक दैवी गुण है। इसे आप अपनी इच्छा के अनुसार इस्तेमाल कर सकते हैं, यह आप पर निर्भर है। इनसान के भीतर जो विशेषता है, वह गुणों की विशेषता है।देवता अगर किसी आदमी को देंगे तो गुणों की विशेषता देंगे, गुणों की सम्पदा देंगे। गायत्री माता, जिसकी आप उपासना करते हैं, अनुष्ठान करते हैं, अगर कभी कुछ देंगी तो गुणों की विशेषता देंगी। गुणों से क्या हो जाएगा? गुणों से ही होता है सब कुछ। भौतिक अथवाआध्यात्मिक जहाँ कहीं भी आदमी को उन्नति मिली है, केवल गुणों के आधार पर मिली है। श्रेष्ठ गुण न हों तो, न भौतिक उन्नति मिलने वाली है, न आध्यात्मिक उन्नति मिलने वाली है।
आदमी जितना समझदार है, नासमझ उससे भी ज्यादा है। यह भ्रान्ति न जाने क्यों आध्यात्मिक क्षेत्र में घुस पड़ी है कि देवता मनोकामना पूरी करते हैं, पैसा देते हैं, दौलत देते हैं, बेटा देते हैं, नौकरी देते हैं। इस एक भ्रान्ति ने इतना ज्यादा व्यापक नुकसान पहुँचाया हैकि आध्यात्मिकता का जितना बड़ा लाभ, जितना बड़ा उपयोग था, सम्भावनाएँ थीं, उससे जो सुख होना सम्भव था, उस सारी की सारी सम्भावना को इसने तबाह कर दिया। देवता आदमी को एक ही चीज देंगे और उनने एक ही चीज दी है, प्राचीनकाल के इतिहास मेंऔर भविष्य में भी। देवता अगर जिन्दा रहेंगे, भक्ति अगर जिन्दा रहेगी, उपासना-क्रम यदि जिन्दा रहेगा, तो एक ही चीज मिलेगी और वह है देवत्व के गुण। देवत्व के गुण अगर आएँ तब आप जितनी सफलताएँ चाहते हैं, उससे हजारों-लाखों गुनी सफलताएँ आपकेपास आ जाएँगी।
क्या आप चाहते है? आपको देवत्व के स्थान पर तीन चार सौ रुपये की नौकरी दिलवा दें। कोई देवता, सन्त या आशीर्वाद या कोई मन्त्र तो वह नाचीज हो सकती है। लेकिन अगर देवता देवत्व प्रदान करते हैं, तो वह नौकरी आपके लिए इतनी कीमत की करवा देंगे कि आपनिहाल हो जाएँगे। विवेकानन्द रामकृष्ण परमहंस के पास नौकरी माँगने गए थे, पर मिला क्या, देवत्व, भक्ति, शक्ति और शान्ति। यह क्या चीज थे—गुण। मनुष्य के ऊपर कभी सन्त कृपा करते हैं। सन्तों ने कभी किसी को दिया है तो उन्होंने एक ही चीज दी हैअन्तरंग में उमंग। एक ऐसी उमंग, जो आदमी को घसीटकर सिद्धान्तों की ओर ले जाती है। जब आदमी के ऊपर सिद्धान्तों का नशा चढ़ता है, तब उसका मैग्नेट, उसका आकर्षण, उसकी वाणी, उसकी प्रामाणिकता इस कदर सही हो जाती है कि हर आदमी खिंचता हुआचला आता है और हर कोई सहयोग करता है। विवेकानन्द को सम्मान और सहयोग दोनों मिला। यह किसने दी थी—काली ने। काली अगर किसी को कुछ देगी तो यही चीज देगी। अगर दुनिया में दुबारा कोई रामकृष्ण जिन्दा होंगे या पैदा होंगे, तो इसी प्रकार का आशीर्वाददेंगे, जिससे आदमी के व्यक्तित्व विकसित होते चले जाएँ। व्यक्तित्व अगर विकसित होगा तो जिसको आप चाहते हैं वह सहयोग बरसेगा। सहयोग माँगा नहीं जाता, बरसता है। आदमी फेंकता जाता है और सहयोग बरसता है। देवत्व जब आता है तब सहयोग बरसताहै। बाबा साहब आम्टे का उदाहरण आपके सामने है, जिन्होंने कुष्ठ रोगियों के लिए, अपंगों के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया। यह क्या है? सिद्धान्त है, आदर्श है और वरदान है। इससे कम में न किसी को वरदान मिला है और न इससे ज्यादा में किसी को मिलेगा।भीख माँगने से न किसी को मिला है और न भविष्य में मिलेगा।
देवता एक काम करते हैं। क्या कहते हैं? फूल बरसाते हैं। रामायण में कोई पचास जगह किस्से आते हैं, जब देवताओं ने फूल क्या बरसाते हैं, सहयोग बरसाते हैं। फूल किसे कहते हैं? सहयोग को कहते हैं। कौन बरसाता है? देवत्व जो इस दुनिया में अभी जिन्दा है। देवत्वही दुनिया में जिन्दा था और जिन्दा ही रहने वाला है। देवत्व मरेगा नहीं। यदि हैवान या शैतान नहीं पर सका तो भगवान् क्यों मरेगा? इनसान, इनसान को देखकर आकर्षित होता है और भगवान, भगवान को देखकर आकर्षित होता है और श्रेष्ठता को देखकर सहयोगआकर्षित करता है। पहले भी यही होता रहा था, अभी भी होता है और आगे भी होता रहेगा।
यहाँ देवता की प्रशंसा कर रहा हूँ। देवता कैसे होते हैं? देवता ऐसे होते हैं जो आदमी के ईमान में घुसे रहते हैं और उसके भीतर से एक ऐसी हूक, एक ऐसी उमंग और एक ऐसी तड़पन पैदा करते हैं जो सारे के सारे जाल-जंजालों को मकड़ी के जाले की तरीके से तोड़ती हुईसिद्धान्तों की ओर, आदर्शों की ओर बढ़ने के लिए आदमी को मजबूर कर देती है। इसे कहते हैं देवता का वरदान। इससे कम में देवता का वरदान नहीं हो सकता। आदमी के भीतर जब गुणों की, कर्मों की, स्वभाव की विशेषताएँ पैदा हो जाती हैं तो विश्वास रखिए तबउसकी उन्नति के दरवाजे खुल जाते हैं। गुणों के हिसाब से दुनिया के इतिहास में जितने भी आदमी आज तक विकसित हुए हैं, किसी भी क्षेत्र में सफल हुए हैं और जिनके सम्मान हुए हैं, वे प्रत्येक व्यक्ति गुणों के आधार पर बढ़े हैं। देवता का वरदान गुण और चिन्तन कीउत्कृष्टता है। संसार के महापुरुषों में से हर एक सफल व्यक्ति का इतिहास यही रहा है। सभी छोटे-छोटे खानदानों में पैदा हुए थे। छोटे-छोटे घरों में, परिस्थितियों में पैदा हुए थे, लेकिन उन्नति के ऊँचे शिखर पर, ऊँचे से ऊँचे स्थान पर जरूर पहुँचते चले गए ।। कौन जापहुँचे? लालबहादुर शास्त्री को लीजिए, जिनके ऊपर देवता का अनुग्रह था। एक ही अनुग्रह की पहचान है—जिम्मेदार और समझदारी का होना। भक्त और भगवान के बीच में यही सिलसिला चला है। इनसान के यहाँ और भगवान के यहाँ एक ही तरीका है।
पूजा क्यों करते हैं? पूजा का मतलब एक ही है—इनसानी गुणों का विकास, इनसानी कर्म का विकास, इनसानी स्वभाव का विकास। आपने जो समझ रखा है कि पूजा के आधार पर यह मिलेगा, वह मिलेगा, यह सारी गलतफहमी इसलिए हुई है। पूजा के आधार परवस्तुतः दयानतदारी मिलती है, शराफत मिलती है, ईमानदारी मिलती है। आदमी को ऊँचा दृष्टिकोण मिलता है। अगर आपने गलत पूजा की होगी, तब आप भटक रहे होंगे। पूजा आपको इस एक ही तरीके से करनी चाहिए कि जो पूजा के लाभ आज तक इतिहास मेंमनुष्यों को मिले हैं, हमको भी मिलने चाहिए। हमारे गुणों का विकास, कर्म का विकास, चरित्र का विकास और भावनाओं का विकास होना चाहिए। देवत्व इसी का नाम है। देवत्व अगर आपके पास आएगा तो आपके पास सफलताएँ आवेंगी। हिन्दुस्तान के इतिहास परदृष्टि डालिए, उसके पन्ने पर जो बेहतरीन आदमी दिखाई पड़ते हैं, वे अपनी योग्यता के आधार पर नहीं, अपनी विशेषता के आधार पर महान् बने हैं। महामना मालवीय जी का उदाहरण सुना है आपने, कैसे शानदार व्यक्ति थे वे। उन पर देवताओं का अनुग्रह बरसा थाऔर छोटे आदमी से वे महान हो गए।
मित्रो ! भगवान जब प्रसन्न होते हैं तो वह चीज नहीं देते जो आप माँगते हैं। फिर क्या चीज देते हैं? वह चीज देते हैं, जिससे आदमी अपने बलबूते पर खड़ा हो जाता है और चारों ओर से उसको सफलताएँ मिलती हुई चली जाती हैं। सारे के सारे महापुरुषों को आप देखतेचले जाइए, कोई भी आदमी दुनिया के पर्दे पर आज तक ऐसा नहीं हुआ है, जिसको दैवी-सहयोग न मिला हो, जिसको जनता का सहयोग न मिला हो, जिसको भगवान् का सहयोग न मिला हो। ऐसे एक भी आदमी का नाम आप बतलाइए जिसके अन्दर से विशेषताएँपैदा न हुई हों जिनसे आप दूर रहना चाहते हैं, जिनसे आप बचना चाहते हैं। जिनके प्रति आपका कोई लगाव नहीं है। वे चीजें जिनको हम आदर्शवाद कहते हैं, सिद्धान्तवाद कहते हैं, दुनिया के हिस्से का हर आदमी जिसको श्रेय भी मिला हो, धन भी मिला हो। जहाँआदमी को श्रेय मिलेगा वहीं उसे वैभव भी मिले बिना रहेगा नहीं। सन्त गरीब नहीं होते। वे उदार होते हैं और जो पाते हैं—खाते नहीं, दूसरों को खिला देते हैं। देवत्व इसी को कहते हैं।
आदमी के भीतर का माद्दा जब विकसित होता है तो बाहरी दौलत उसके नजदीक बढ़ती चली जाती है। उदाहरण क्या बताऊँ—प्रत्येक सिद्धान्तवादी का यही उदाहरण है। उन्हीं को मैं देवभक्त कहता हूँ। देवोपासक उन्हीं को मैं कहता हूँ। उन्हीं की देवभक्ति को मैं सार्थकमानता हूँ जो अपने आकर्षण में खींच सकने में समर्थ हुए। आपकी भाषा में कहूँ तो देवता जब प्रसन्न होते हैं तो आदमी को देवत्व के गुण देते हैं, देवत्व के कर्म देते हैं, देवत्व का चिन्तन देते हैं और देवत्व का स्वभाव देते हैं। यह मैंने आपकी भाषा में कहा है। हमारीपरिभाषा इससे अलग है। मैं यह कह सकता हूँ कि आदमी अपने देवत्व के गुणों के आधार पर देवता को मजबूर करता है, देवता पर दबाव डालता है, उसे विवश करता है और यह कहता है कि हमारी सहायता करनी चाहिए और सहायता करनी पड़ेगी। भक्त इतना मजबूतहोता है जो भगवान के ऊपर दबाव डालता है और कहता है कि हमारा ड्यू है। आप हमारी सहायता क्यों नहीं करते? वह भगवान से लड़ने को आमादा हो जाता है कि आपको हमारी सहायता करनी चाहिए।
कामना करने वाले भक्त नहीं हो सकते। भक्त शब्द के साथ में भगवान की इच्छाएँ पूरी करने की बात जुड़ी रहती है। कामनापूर्ति आपकी नहीं भगवान की। भक्त की रक्षा करने का भगवान व्रत लिए हैं—‘योगक्षेमं वहाम्यहम्’। यह सही है कि भगवान ने योग क्षेम कोपूरा करने का व्रत लिया हुआ है, पर हविस पूरी करने का जिम्मा नहीं लिया। आपका योग और क्षेम अर्थात् आपकी शारीरिक आवश्यकताएँ और मानसिक आवश्यकताएँ पूरी करना उनकी जिम्मेदारी है। आपकी बौद्धिक, मानसिक आवश्यकताएँ पूरी करना भगवान् कीजिम्मेदारी है, पर आपकी हविस पूरी नहीं हो सकती। हविसों के लिए, तृष्णाओं के लिए भागिए मत। यह भगवान् की शान में, भक्त की शान में, भजन की शान में गुस्ताखी है, सबकी शान में गुस्ताखी है। भक्त और भगवान का सिलसिला इसी तरह से चलता रहा हैऔर इसी तरीके से चलता रहेगा। भक्त माँगते नहीं दिया करते हैं। भगवान कोई इनसान नहीं हैं, उसे तो हमने बना लिया है। भगवान वास्तव में सिद्धान्तों का समुच्चय है, आदर्शों का नाम है, श्रेष्ठताओं के समुच्चय का नाम है। सिद्धान्तों के प्रति, आदर्शों के प्रतिआदमी के जो त्याग और बलिदान हैं, वस्तुतः यही भगवान् की भक्ति है। देवत्व इसी का नाम है।
प्रामाणिकता आदमी की इतनी बड़ी दौलत है कि जनता का उस पर सहयोग बरसता है, स्नेह बरसता है, समर्थन बरसता है। जहाँ स्नेह, समर्थन और सहयोग बरसता है, वहाँ आदमी के पास चीज की कमी नहीं रह सकती। बुद्ध की प्रामाणिकता के लिए, सद्भावना केलिए, उदारता लोकहित के लिए थी। व्यक्तिगत जीवन में श्रेष्ठता और प्रामाणिकता को लेकर चलने के बाद में वे भक्तों की श्रेणी में सम्मिलित होते चले गये। सारे समाज ने उनको सहयोग दिया, दान दिया और उनकी आज्ञा का पालन किया। लाखों लोग उनके कहनेपर जेल चले गए, लाखों लोगों ने अपने सीने पर गोलियाँ खाईं। क्या यह हो सकता है? हाँ! शर्त एक ही है कि आप प्रकाश की ओर चलें, छाया आपके पीछे-पीछे चलेगी। आप तो छाया के पीछे-पीछे भागते हैं, छाया ही आप पर हावी हो गई है। छाया का अर्थ है माया। आपप्रकाश की ओर चलिए, भगवान् की ओर चलिए, सिद्धान्तों की ओर चलिए। आदर्श और सिद्धान्त, इन्हीं का नाम हनुमान है, इन्हीं का नाम भगवान है।
मित्रो ! जो हविस आपके ऊपर हावी हो गई है उससे पीछे हटिए, तृष्णाओं से पीछे हटिए और उपासना के उस स्तर पर पहुँचने की कोशिश कीजिए जहाँ कि आपके भीतर से, व्यक्तित्व में से श्रेष्ठता का विकास होता है। भक्ति यही है। अगर आपके भीतर से श्रेष्ठता काविकास हुआ हो, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपको जनता का वरदान मिलेगा। चारों ओर से इतने वरदान मिलेंगे कि जिसको पा करके आप निहाल हो जाएँगे। भक्ति का यही इतिहास है, भक्त का यही इतिहास है। भगवान के अनुग्रह का, गायत्री माता के अनुग्रहका यही इतिहास है, यही इतिहास था और यही इतिहास रहेगा। अगर इस रहस्य को, सार को समझ लें, तो आपका यहाँ आना सार्थक हो जाए। आपका गायत्री अनुष्ठान सार्थक हो जाए, अगर आप इस सिद्धांत को समझकर जाएँ कि हमको सद्गुणों का विकास करने केलिए तपश्चर्या कराई जा रही है और अगर हमारी यह तपश्चर्या सही साबित हुई तो भगवान हमको यहाँ से विदा करते समय गुण, कर्म और स्वभाव की विशेषता देंगे और हमको चरित्रवान व्यक्ति के तरीके से विकसित करेंगे। चरित्रवान व्यक्ति जब विकसित होता है, तब उदार हो जाता है, परमार्थ-परायण हो जाता है, लोकसेवी हो जाता है, जनहितकारी हो जाता है और अपने क्षुद्र स्वार्थ को देखना शुरू कर देता है। आपकी अगर ऐसी मनःस्थिति हो जाए तो मैं कहूँगा कि आपने सच्ची उपासना की और भगवान् का वरदान पाया।
आप सच्चा वरदान पा करके निहाल हो सकते हैं, जिससे कि आज तक के सारे के सारे भक्त निहाल होते रहे हैं। मैंने इसी रास्ते पर चलने की कोशिश की और अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से भगवान के वरदानों को देखा और पाया। मैं चाहता था कि आप लोग जो इसशिविर में आए हैं, जो वसन्त के निकट जा पहुँचा है, यह प्रेरणा लेकर जाएँ कि हम पर भगवान कृपा करें कि हमको श्रेष्ठता के लिए, आदर्शों के लिए कुछ त्याग और बलिदान करने की, चरित्र को श्रेष्ठ और उज्ज्वल बनाने के लिए प्रेरणा भीतर से मिले और बाहर सेमिले। अगर ऐसी कुछ प्रेरणा आपको मिले तो उसके फलस्वरूप आप जो कुछ भी प्राप्त करेंगे, वह इतना शानदार होगा कि जिससे आप निहाल हो जाएँ, आपका देश निहाल हो जाए, गायत्री माता निहाल हो जाएँ, हम निहाल हो जाएँ और यह शिविर निहाल हो जाए अगरआप इस तरह की कुछ प्राप्ति और उपलब्धि कर सकें। आज की बात समाप्त।
ॐ शान्ति।