उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
जैसे कोई धेनु लवाई, शिशु की पीड़ा सही न जाई।
ऐसी विषम वेदना छाई, कैसे दें हम तुम्हें विदाई॥
तुमने कोटि पुण्य फल पाये, चलकर बहुत दूर से आये।
चेहरे थके हुए मुरझाये, फिर भी है उल्लास समाये॥
गुरुसत्ता ने टेर लगाई, तुमने मिलकर शपथ उठाई।
पथ में आयेगी कठिनाई, कैसे दे हम तुम्हें विदाई॥
जैसे कोई धेनु लवाई, शिशु की पीड़ा सही न जाई।
ऐसी विषम वेदना छाई, कैसे दें हम तुम्हें विदाई॥
जग में पीड़ा बढ़ती जाती, आँखें हैंं भर-भर कर आती।
दुनिया नहीं समझ कुछ पाती, शक्ति कहाँ से मन में आती॥
हमने सारी शक्ति लगाई, ऐसी ज्योति अखण्ड जलाई।
हाथ में त़ुम्हें मशाल थमाई, कैसे दें हम तुम्हें विदाई॥
जैसे कोई धेनु लवाई, शिशु की पीड़ा सही न जाई।
ऐसी विषम वेदना छाई, कैसे दें हम तुम्हें विदाई॥
कल का दिन ऐसा आयेगा, सूना आँगन हो जायेगा।
मन रोयेगा पछतायेगा, अंधकार सा छा जायेगा॥
हमको देने लगी दिखाई, अपनी पीड़ा की परछाई।
हैं दोनों आँखें भर आई, कैसे दें हम तुम्हें विदाई॥
जैसे कोई धेनु लवाई, शिशु की पीड़ा सही न जाई।
ऐसी विषम वेदना छाई, कैसे दें हम तुम्हें विदाई॥
साथ में हैं गुरुदेव तुम्हारे, अपनी हिम्मत कभी न हारें।
पग भी पीछे कभी न डारें, फिर से यह संसार सुधारें॥
देव संस्कृति है अकुलाई, जाये शपथ न कभी भुलाई।
है यह शुभकामना सुहाई, कैसे दें हम तुम्हें विदाई॥
जैसे कोई धेनु लवाई, शिशु की पीड़ा सही न जाई।
ऐसी विषम वेदना छाई, कैसे दें हम तुम्हें विदाई॥