उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
(१७ अप्रैल १९७४ को शान्तिकुञ्ज में दिया गया उद्बोधन )
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ बोलें, ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो, भाइयो! भगवान् ने गीता में ‘विभूति योग’ वाले दसवें अध्याय में एक बात बताई है कि जो कुछ भी यहाँ श्रेष्ठ दिखाई पड़ता है, ज्यादा चमकदार दिखाई पड़ता है, वह मेरा ही विशेष अंश है। जहाँ कहीं भी चमक ज्यादा दिखाई पड़ती है, वह मेरा विशेष अंश है। उन्होंने कहा, वृक्षों में मैं पीपल हूँ। छलों में मैं जुआ हूँ। वेदों में मैं सामवेद हूँ। साँपों में वासुकी मैं हूँ। अमुक में अमुक मैं हूँ-आदि मुझ में ये सारी विशेषताएँ हैं। मित्रो! आपको जहाँ-कहीं भी चमक दिखाई पड़ती है, वो सब भगवान् की विशेष दिव्य विभूतियाँ हैं और जहाँ कहीं भी जितना अधिक विभूतियों का अंश है, यह मानकर के हमको चलना पड़ेगा कि यहाँ इस जन्म में अथवा पहले जन्मों में इन्होंने किसी प्रकार से इस संपत्ति का उपार्जन किया है। अगर यह उपार्जन इन्होंने नहीं किया है, तो सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा उनमें ये विशेषता क्यों दिखाई पड़ती हैं? जिनके अंदर कुछ विशेषताएँ दिखाई पड़ती हैं, मित्रो! उनके कुछ विशेष कर्तव्य और विशेष जिम्मेदारियाँ हैं। इसलिए उनको उद्बोधन करना चाहिए। उन लोगों को, जिनके अंदर कुछ विशेष प्रभाव और विशेष चमक दिखाई पड़ती है।
संपदा बनाम विभूति
मित्रो! विशेष प्रभाव और विशेष चमक क्या है? वह है जिनको हम विभूतियाँ कहते हैं। कुछ संपदाएँ होती हैं, कुछ विभूतियाँ होती हैं। संपदाएँ क्या होती हैं और विभूतियाँ क्या होती हैं? संपदा उसे कहते हैं जो कि बाप-दादों की हैं। वे उसे छोड़कर चले जाते हैं और हम उस कमाई को बैठकर खाया करते हैं, ये संपदाएँ हैं। ये स्त्रियों को भी मिल जाती हैं, बच्चों को भी मिल जाती हैं। ये कोढ़ियों को भी मिल जाती हैं, अंधों को मिल जाती हैं और पंगु को भी मिल जाती हैं- गूँगे-बहरे को भी मिल जाती हैं। गूँगे-बहरे भी कई बार जुआ खेलते हैं और लाटरी लगाते हैं। लाटरी लगाने के बाद में उनको रुपया भी मिल जाता है। न मालूम किसको क्या मिल जाता है बाप-दादों की कमाई से? बाप-दादों की कमाई से मिनिस्टरों के लड़के-लड़कियों को ऐसे-ऐसे काम मिल जाते हैं, ऐसे-ऐसे धंधे मिल जाते हैं, जिससे उनको घर बैठे लाखों रुपए की आमदनी होती रहती है। इसे क्या कहते हैं? इसे हम संपदा कहते हैं।
किसी के पास जमीन है। भगवान् की कृपा से उस साल अच्छी वर्षा हो गई, तो दो सौ क्विंटल अनाज पैदा हो गया। दो सौ क्विंटल अनाज बिक गया, तो ढेरों पैसा आ गया और उसे बैंक में जमा करा दिया। मकान बन गया, ये बन गया-वो बन गया। पैसे का खेल बन गया। क्या कहता हूँ मैं इनको? इनको मैं संपत्तियाँ कहता हूँ। संपत्ति जमीन में गड़ी हुई मिल सकती है, बाप-दादों की उत्तराधिकार में भी मिल सकती है और किसी बड़े आदमी की कृपा एवं आशीर्वाद से भी मिल सकती है। संपत्ति किसी भी तरीके से मिल सकती है, किंतु संपत्तियों का कोई मूल्य नहीं है, विभूतियों का मूल्य है। विभूतियाँ जहाँ कहीं भी दिखाई पड़ें, उनको आप यह मानकर चलना कि वे भगवान् का विशेष अंश हैं। विशेष अंश जो उनके भीतर है, वह जहाँ कहीं भी हो, उस अंश को जाग्रत् करना, उसको उद्बोधन करना और सोए हुओं को जगाना हमारा-आपका विशेष काम है।
साथियो! रावण के घर में ढेरों-के-ढेरों आदमी थे। सुना है एक लाख बच्चे थे और सवा लाख नाती-पोते थे, लेकिन जब रामचंद्र जी से लड़ाई हो गई और दोनों और की सेनाएँ खड़ी हो गईं, तो उसने देखा कि हमारे पास एक ही सहायक, एक ही मजबूत और जबरदस्त आदमी है, उसको जगाया जाना चाहिए और उसकी खुशामद की जानी चाहिए। उसकी खुशामद की जाने लगी, उसे जगाया जाने लगा। कौन आदमी था वह? उसका नाम था कुंभकरण। वह छह महीने जागा करता था। रावण को यह विचार आया कि कुंभकरण यदि जाग करके खड़ा हो जाए, तो सारे रीछ-बंदरों को एक ही दिन में मारकर खा जाएगा। एक ही दिन में सफाया कर देगा और लड़ना भी नहीं पड़ेगा और रामचंद्र जी की सेना का सफाया हो जाएगा। सुना है, इसीलिए उसके ऊपर बैल, घोड़े और हाथियों को चलाना पड़ा था, ताकि कुंभकरण की नींद छह महीने पहले ही खुल जाए और वह उठकर खड़ा हो जाए। अगर वह तुरंत उठकर खड़ा हो गया होता, अगर जाग गया होता, तो रामचंद्र जी की सेना के लिए मुसीबत खड़ी कर दी होती, लेकिन भगवान् की कृपा ऐसी हुई, भगवान् का जोश और प्रताप ऐसा हुआ कि वह काफी देर से जागा। तब तक रावण युद्ध हार चुका था। इसीलिए रावण मारा गया, मेघनाद मारा गया और सारी लंका तहस-नहस हो गई।
विभूतिवान जागें
मित्रो! हमको समाज में सोए हुए, गड़े हुए कुंभकरणों को जगाना चाहिए। कुंभकरणों की कमी है क्या? नहीं, इनकी कमी नहीं है, पर वे सो गए हैं। हमारा एक काम यह भी होना चाहिए कि जहाँ कहीं भी आपको विभूतिवान् मनुष्य दिखाई पड़ें, तो आपको उनके पास बार-बार चक्कर काटना चाहिए और बार-बार उनकी खुशामद करनी चाहिए।
विभूतिवान् लोगों में एक तबके के वे लोग आते हैं, जिनको हम विचारवान् कहते हैं, समझदार कहते हैं। समझदार मनुष्य इस ओर चल पड़ें, तो भी गजब ढा देते हैं और उस ओर चल पड़ें, तो भी गजब ढा देते हैं। मोहम्मद अली जिन्ना बड़े समझदार आदमी थे और बड़े अक्लमंद आदमी थे। मालबार हिल के ऊपर मुंबई में उनकी कोठी बनी हुई है। उनके यहाँ चालीस जूनियर वकील काम करते थे और केस तैयार करते थे। मोहम्मद अली जिन्ना केवल बहस करने के लिए हाईकोर्ट में जाते थे और एक-एक केस का हजारों रुपया वसूल करते थे-उस जमाने में। मोतीलाल नेहरू के मुकाबले के आदमी थे। उनमें बड़ी अक्ल थी, बड़े दिमाग वाले थे। बड़ा दिमाग वाला, अक्ल वाला मनुष्य इधर को चले, तो भी गजब और उधर को चले, तो भी गजब। सही भी कर सकता था वह तथा गलत भी। यही हुआ।
मोहम्मद अली जिन्ना एक दिन खड़े हो गए और पाकिस्तान की वकालत करने लगे, पाकिस्तान की हिमायत करने लगे। परिणाम क्या हुआ? परिणाम यह हुआ कि सारे पाकपरस्तों के अंदर उन्होंने एक ऐसी बगावत का माद्दा पैदा कर दिया, ऐसी लड़ाई पैदा कर दी, जेहाद पैदा कर दी और न जाने क्या-क्या पैदा कर दिया कि एक ही देश के लोग एक दूसरे के खूनी हो गए, बागी हो गए। खूनी और बागी होकर के जहाँ-तहाँ दंगे करने लगे। आखिर में गाँधीजी को यह बात मंजूर करनी पड़ी कि पाकिस्तान बनकर ही रहेगा। निर्णय सही था कि गलत, यह चर्चा का विषय नहीं है। वास्तविकता यह जाननी चाहिए कि यह जहर किसने बोया? यह जहर उस आदमी ने बोया, जिसको हम समझदार कहते हैं और अक्लमंद कहते हैं, मोहम्मद अली जिन्ना कहते हैं। यह तो मैं उदाहरण दे रहा हूँ। मनुष्यों का क्या उदाहरण दूँ, मैं तो समझदारी का उदाहरण दे रहा हूँ।
कीमत सही अक्ल की
समझदारी जहाँ कहीं भी होगी, न जाने क्या-से-क्या करती चली जाएगी? समझदार आदमी आर्थिक क्षेत्र में चला जाएगा, तो वो मोनार्क पैदा हो जाएगा और हेनरी फोर्ड पैदा हो जाएगा। पहले ये छोटे-छोटे आदमी थे। नवसारी गुजरात का एक नन्हा-सा आदमी, जरा-सा आदमी और समझदार आदमी अगर व्यापार क्षेत्र में चला जाएगा, तो उसका नाम जमशेद जी टाटा होता चला जाएगा। राजस्थान का एक अदना-सा आदमी जुगल किशोर बिड़ला होता चला जाएगा। अगर आदमी के अंदर गहरी समझदारी हो तब? तब एक नन्हा-सा आदमी, जरा सा आदमी, दो कौड़ी का आदमी जिधर चलेगा, अपनी समझदारी के साथ, वह गजब ढाता हुआ चला जाएगा।
मित्रो! गहरी समझदारी की बड़ी कीमत है। गहरी समझदारी वाले सुभाषचंद्र बोस गजब ढाते हुए चले गए। सरदार पटेल एक मामूली से वकील। यों तो दुनिया में एक ही नहीं, बहुत सारे वकील हुए हैं, लेकिन पटेल ने अपनी क्षमता और प्रतिभा यदि वकालत में खरच की होती, तो शायद अपनी समझदार अक्ल की कीमत एक हजार रुपया महीना वसूल कर ली होती और उन रुपयों को वसूल करने के बाद में मालदार हो गए होते और उनका बेटा शायद विलायत में पढ़कर आ जाता और वह भी वकील हो सकता था। उनकी हवेली भी हो सकती थी और घर पर मोटरें भी हो सकती थीं, लेकिन वही सरदार पटेल अपनी समझदारी को और अपनी बुद्धिमानी को लेकर खड़े हो गए। कहाँ खड़े हो गए? वकालत करने के लिए। किसकी वकालत करने के लिए? काँग्रेस की वकालत करने के लिए और आजादी की वकालत करने के लिए। जब वे वकालत करने के लिए खड़े हो गए, तो कितनी जबरदस्त बैरिस्टरी की और किस तरीके से वकालत की और किस तरीके से तर्क पेश किए और किस तरीके से उनने फिजाँ पैदा की कि हिंदुस्तान की दिशा ही मोड़ दी और न जाने क्या-से-क्या हो गया?
मित्रो! अक्ल बड़ी जबरदस्त है और आदमी का प्रभाव, जिसको मैं प्रतिभा कहता हूँ, विभूति कहता हूँ, यह विभूति बड़ी समझदारी से भरी है। अगर यह विभूति आदमी के अंदर हो, जिसको मैं आदमी का तेज कहता हूँ, चमक कहता हूँ, तो वह आदमी जहाँ कहीं भी जाएगा, वो टॉप करेगा। वह टॉप से कम कर ही नहीं सकता। सूरदास जब वेश्यागामी थे, बिल्वमंगल थे, तो उन्होंने अति कर डाली और सीमा से बाहर चले गए। वहाँ तक चले गए जहाँ तक कि अपनी धर्मपत्नी के कंधे पर बैठकर वहाँ गए, जहाँ उनके पिताजी का श्राद्ध हो रहा था। वहाँ भी पिताजी के श्राद्ध के समय भी वे वेश्यागमन के लिए चले गए। श्राद्ध करने के लिए भी नहीं आए। अति हो गई।
प्रतिभाएँ सदैव शीर्ष पर पहुँचीं
और तुलसीदास? तुलसीदास जी भी जिजीविषा के मोह में पड़े हुए थे। सारी क्षमता और सारी प्रतिभा इसी में लग रही थी। एक बार उनको अपनी पत्नी की याद आई। वह अपने मायके गई हुई थी। नदी बह रही थी। वे नदी में कूद पड़े।
नदी में कूदने पर देखा कि अब हम डूबने वाले हैं और कोई नाव भी नहीं मिल रही है। तभी कोई मुरदा बहता हुआ चला आ रहा था, बस वे उस मुरदे के ऊपर सवार हो गए और तैरकर नदी पार कर ली। उनकी बीबी छत पर सो रही थी। वहाँ जाने के लिए उन्हें सीढ़ी नहीं दिखाई पड़ी, रास्ता दिखाई नहीं पड़ा। वहाँ पतनाले के ऊपर एक साँप टँगा हुआ था। उन्होंने साँप को पकड़ा और साँप के द्वारा उछलकर छत पर जा पहुँचे। कौन जा पहुँचे? तुलसीदास। यही तुलसीदास जब हिम्मत वाले, साहस वाले तुलसीदास बन गए, प्रतिभा वाले तुलसीदास बन गए, तब वे संत हो गए।
इसी तरह सूरदास, प्रतिभा वाले और हिम्मत वाले सूरदास जब खड़े हो गए और जो भी दिशा उन्होंने पकड़ ली, उसमें उन्होंने टॉप किया। सूरदास ने जब अपने आपको सँभाल लिया और अपने आपको बदल लिया, तब उन्होंने टॉप किया। टॉप से कम में तो वे रह ही नहीं सकते। वही बिल्वमंगल जब वेश्यागामी था तो पहले नंबर का और जब संत बना तब भी पहले नंबर का। पहले नंबर का क्यों? इसलिए कि वह भगवान् का भक्त हो गया। जब वह भगवान् का भक्त हो गया, तो फिर वह ऐसा मजेदार भक्त हुआ कि उसने वह काम कर दिखाए, जिस पर हमको अचंभा होता है। हिम्मत वाला और दिलेर आदमी जो काम कर सकता है, मामूली आदमी उसे नहीं कर सकता। उसने अपनी आँखें गरम सलाखें डालकर फोड़ डालीं। हम और आप कर सकते हैं क्या? नहीं कर सकते। ऐसा कोई दिलेर आदमी ही कर सकता है। उसने दिलेरी के साथ और तन्मयता के साथ ऐसी मजबूत भक्ति की कि श्रीकृष्ण भगवान् को भागकर आना पड़ा और बच्चे के रूप में, जिनको कि वे अपना इष्टदेव मानते थे, उसी रूप में उनकी सहायता करनी पड़ी। आँखों के अंधे सूरदास की लाठी पकड़ करके टट्टी-पेशाब कराने के लिए, स्नान कराने के लिए भगवान् ले जाया करते थे और सारा इंतजाम किया करते थे। भगवान् उनकी नौकरी बजाया करते थे।
कौन से सूरदास की? उस सूरदास की, जो प्रतिभावान् था। मैं किसकी प्रशंसा कर रहा हूँ? भक्ति की? भक्ति की बाद में, सबसे पहले प्रतिभा की, समझदारी की। प्रतिभा की बात मैं कह रहा हूँ। प्रतिभा अपने आप में एक जबरदस्त वस्तु है। वह जहाँ कहीं भी चली जाएगी, जिस दिशा में भी चली जाएगी, चाहे वह जहाँ कहीं भी जाएगी, पहले नंबर का काम करेगी। तुलसीदास ने क्या काम किया? तुलसीदास ने जब अपनी दिशाएँ बदल दीं, जब उनकी बीबी ने कहा, नहीं, तुम्हारे लिए ये मुनासिब नहीं है। क्या तुम इसी तरीके से वासना में अपनी जिंदगी खत्म कर दोगे? तुमको भगवान् की भक्ति में लगा जाना चाहिए और जितना हमको प्यार करते हो, उतना ही भगवान् से करो, तो मजा आ जाए और तुम्हारी जिंदगी बदल जाए। उनको यह बात चुभ गई। हमको और आपको चुभती है क्या? नहीं चुभती। हमारी औरतें सौ गालियाँ देती रहती हैं। और फिर हम ऐसे ही हाथ-मुँह धोकर के आ बैठते हैं। वह फिर गाली सुनाती है और गुस्सा होकर के चले जाते हैं और कहते हैं कि फिर तेरे घर नहीं आएँगे और बस वह जाता है और दुकान पर बैठा बीड़ी पीता रहता है। शाम को घूम-फिरकर फिर आ जाता है। क्यों फिर आ गए? आ गए, क्योंकि उसके अंदर वह चीज नहीं है, जिसे जिंदगी कहते हैं।
जिंदगी वाले इंसान-महामानव
मित्रो! जिंदगी की बड़ी कीमत है। जिंदगी लाखों रुपये की कीमत की है, करोड़ों रुपये की है, अरबों-खरबों रुपये की कीमत की है। तुलसीदास भी जिंदगी वाला इंसान था। वासना के लिए जब व्याकुल हुआ, तो ऐसा हुआ कि बस हैरान-ही-हैरान परेशान-ही-परेशान और जब भगवान् की भक्ति में लगा, तो हमारी और आपकी जैसी भक्ति नहीं थी उसकी कि माला फिर रही है इधर और मन फिर रहा है उधर। मन के फिर रहे हैं इधर और सिर खुजा रहे हैं उधर। भजन कर रहे हैं इधर और पीठ खुजा रहे हैं उधर। भला ऐसी कोई भक्ति होती है? तुलसीदास ने भक्ति की, तो कैसी मजेदार भक्ति की कि बस पीपल के पेड़ पर से, बेल के पेड़ पर से कौन आ गया? भूत आ गया। उन्होंने कहा कि हमको भगवान् के दर्शन करा दो। उस भूत ने कहा कि भगवान् के तो नहीं करा सकते, हनुमान् जी के करा सकते हैं। अच्छा! चलो हनुमान् जी के ही करा दो।
हनुमान् जी वहाँ रामायण सुनने जाते थे। उसने उनके दर्शन करा दिए। तुलसीदास ने हनुमान् जी को पकड़ लिया और कहा कि हमको रामचंद्र जी के दर्शन करा दीजिए। आपने पढ़ा है न तुलसीदास जी का जीवन! उन्होंने क्या किया कि रामचंद्र जी का , जिनका कि वे नाम लिया करते थे, उन रामचंद्र जी को पकड़कर ही छोड़ा। उन्होंने कहा कि रामचंद्र जी का भी ठिकाना नहीं है और मेरा भी ठिकाना नहीं है। दोनों को एक होना होगा या तो मैं रहूँगा या रामचंद्र जी रहेंगे? या तो हनुमान् जी रहेंगे या रामचंद्र जी रहेंगे? मैं तो लेकर के हटूँगा। भला ऐसे कैसे हो सकता है कि मैं हनुमान् चालीसा पढ़ूँगा और हनुमान् जी भाग जाएँ और पकड़ में नहीं आएँ? पकड़ में कैसे नहीं आएँगे? हनुमान् को पकड़ में जरूर आना पड़ेगा। हनुमान् जी पकड़ में जरूरत आ गए। हनुमान् जी पकड़ में नहीं आए, हनुमान् जी के ताऊ रामचंद्र जी भी पकड़ में आ गए। दोनों को पकड़ लिया उसने। किसने पकड़ लिया? तुलसीदास ने। हम और आप पकड़ सकते हैं क्या? हम और आप नहीं पकड़ सकते। भूत तो पकड़ सकते हैं? नहीं पकड़ सकते। हनुमान् जी को पकड़ लेंगे? नहीं, हनुमान् जी भी पकड़ में नहीं आएँगे और रामचंद्र जी तो, भला कैसे पकड़ में आ सकते हैं? वे भी नहीं आएँगे।
दिशा जो बदली, तो गजब हो गया
मित्रो! क्या वजह है इसकी? हम में और तुलसीदास जी में क्या अंतर है? एक अंतर है। नाक, आँख, कान, दाँत और हाथ-पाँव सब बराबर हैं, पर एक चीज जो उनके अंदर थी, वह हमारे अंदर नहीं है। वह चीज है, जिसे मैं जिंदगी कहता हूँ, जिसको मैं प्रतिभा कहता हूँ, जिसको मैं विभूति कहता हूँ, जिसको मैं लगन कहता हूँ, तन्मयता कहता हूँ, जीवट कहता हूँ। वह जीवट मित्रो! जहाँ कहीं भी होगा, तो वह बड़ा शानदार काम कर रहा होगा और गलत दिशा पकड़ने पर गलत काम भी कर रहा होगा।
अंगुलिमाल पहले नंबर का डाकू था। उसने ये कसम खाई थी कि फोकट में किसी का पैसा नहीं लूँगा। उँगलियाँ काट-काटकर उसकी माला बनाकर वह देवी को रोज चढ़ाया करता था। अगर कोई कहता कि अरे भाई! पैसे ले ले, पर उँगली क्यों काटता है हमारी? वह कहता, वाह! फोकट में, दान में नहीं लेता हूँ। पहले तेरी उँगली काटूँगा, तो मेरी मेहनत हो जाएगी। फिर उस मेहनत का पैसा ले लूँगा। ऐसे मुफ्त में कैसे ले लूँगा किसी का पैसा? इस तरह वह रोज एक साथ उँगलियाँ कट-काटकर उसकी माला देवी को पहनाया करता था? कौन? खूँख्वार अंगुलिमाल डाकू, लेकिन जब उसने पलटा खाया, तो कैसा जबरदस्त पलटा खाया, आपको मालूम है न? अंगुलिमाल जब तक डाकू था, तो पहले नंबर का और जब संत हो गया, तो उसने हिंदुस्तान से आगे जाकर के सारे-के-सारे विदेशों में, मिडिल ईस्ट में वो काम किए कि बस, तहलका मचा दिया। वह जहाँ कहीं भी गया, अपने प्रभाव से दुनिया को बदलता हुआ चला गया।
मित्रो! क्षमताएँ जिनके अंदर हैं, प्रतिभाएँ जिनके अंदर हैं, वह कहीं-से-कहीं जा पहुँचता है। आम्रपाली जब तक वेश्या रही, तो पहले नंबर की रही। राजकुमार, राजाओं से लेकर सेठ-साहूकार तक उसकी एक निगाह के लिए, उसकी एक चितवन और एक इशारे के लिए ढेरों रुपया खरच कर डालते थे और उसके गुलाम हो जाया करते थे, लेकिन जब आम्रपाली अपनी करोड़ों की संपत्ति को लेकर भगवान् बुद्ध की ओर चली गई, तो न जाने क्या-से-क्या हो गई और सम्राट् अशोक जो था, ऐसा खूनी था कि उसने खानदान-के-खानदान समाप्त कर दिए थे। सभी शाही खानदानों को एक ओर से उसने मरवा डाला था। मुसलमानों ने एक-आध को मारा था, लेकिन उसने तो किसी को जिंदा ही नहीं छोड़ा। ऐसी खूनी था अशोक। उसने चंगेज खाँ, नादिरशाह और औरंगजेब, सबको एक किनारे रख दिया था। जहाँ कहीं भी हमले किए, वहाँ खून की नदियाँ ही बहाता चला गया।
लेकिन मित्रो! जब उसने पलटा खाया और जब अपने आप में परिवर्तन कर डाला, तो फिर वह कौन हो गया? सम्राट् अशोक हो गया, जिसने बौद्ध संघ और बौद्ध धर्म का सारे-का-सारा संचालन किया। आज जो हमारे झंडे के ऊपर और हमारे सिक्कों-नोटों के ऊपर तीन शेर वाला निशान बना हुआ है, वह सम्राट् अशोक की निशानी है। और जो हमारे राष्ट्रीय ध्वज पर चौबीस धुरी वाला और चौबीस पँखुड़ी वाला चक्र लगा हुआ है, यह क्या है? यह सम्राट् अशोक के द्वारा पारित किया और प्रतिपादित किया हुआ धर्मचक्र प्रवर्तन है, जिसको हमने राष्ट्रीय झंडे के ऊपर स्थान दिया हुआ है। ये किसकी हिम्मत, किसकी दिलेरी थी किसकी बहादुरी थी? उसकी थी, जो डाकू था और खूँखार था।
जीवंत बनाम मुरदे
मित्रो! भगवान् जहाँ कहीं भी अपना अंश देता है, विभूति देता है, उसके अंदर चमक होती है, लगन होती है, उसके अंदर तड़प होती है और मुरदे? मुरदे हमारे और आपके जैसे होते हैं। साँस लिया करते हैं। भगवान् की जब पूजा करते हैं, तो भी ऐसे-ऐसे सिर हिलाते रहते हैं और साँस लेते रहते हैं। सेवा करने जाते हैं, तो वहाँ भी निठल्ले की तरह पड़े रहते हैं। सत्संग करने, शिविर करने आते हैं, तो यहाँ भी मौसी जी-मौसा जी की याद सताती है।
मित्रो! ये क्या होता है? ये मैं किसकी कहानियाँ सुना रहा हूँ? मुरदे की। जिंदा आदमियों की भी कह रहा हूँ। आपके जिम्मे मैं एक काम सुपुर्द कर रहा हूँ कि जहाँ भी आपको जिंदा आदमी मालूम पड़ें, जिंदादिल आदमी मालूम पड़े, आप उनके पास जाना। आप उनको मेरा संदेश लेकर के जाना और खुशामद करने के लिए जाना और यह कहना कि भगवान् ने जो विशेषताएँ आपके अंदर दी हैं, आपके अंदर जो प्रतिभा है, जो क्षमता है और जो आपके अंदर विशेषता है, उसके लिए भगवान् ने निमंत्रण दिया है, समय ने निमंत्रण दिया है। युग ने निमंत्रण दिया है, मनुष्य जाति के गिरते हुए भविष्य ने और यह कहा है कि पेट भरने के लिए आपको जिंदा रहना काफी नहीं है। पेट तो मक्खी-मच्छर भी भर लेते हैं, कीड़े-मकोड़े और कुत्ते भी भर लेते हैं। किसी ने जलेबी खा ली तो क्या और मक्का की रोटी खा ली तो क्या? खाने के लिए आदमी को पैदा नहीं किया गया है। औलाद पैदा करने के लिए आदमी को पैदा नहीं किया गया है। खाने के लिए और औलाद पैदा करने के लिए सुअर को पैदा किया गया है, जो एक-एक साल में बारह-बारह बच्चे पैदा कर देता है। गंदी-संदी चीजें खाकर के भी हट्टा-कट्टा होकर मोटा पड़ा रहता है। पेट भर गया, बस खर्राटे भरता रहता है। पेट भरने के लिए इंसान को पैदा नहीं किया गया है।
हमारे संदेशवाहक बनें
मित्रो! इंसान बड़े कामों के लिए पैदा किया है। इंसान की जिंदगी कई लाख योनियों में घूमने के बाद आती है। एकाएक कहाँ आ पाती है? इसलिए मित्रो! वहाँ हमारा संदेश लेकर के जाना, युग की पुकार लेकर के जाना। वक्त की पुकार लेकर के जाना और यह कहना कि आपको समय ने पुकारा है, युग ने पुकारा है, राष्ट्र ने पुकारा है, गुरुजी ने पुकारा है। अगर आप उनकी पुकार सुन सकते हों, अगर आपके कान हैं, अगर आपके अंदर दिल है; अगर आपके पास कान नहीं है, दिल नहीं है, तो हम क्या कह सकते हैं। फिर कौन आदमी सुनेगा? रामायण की कथा हम सुन लेते हैं और जैसे ही आते हैं, पल्ला झाड़ करके आ जाते हैं। भागवत की कथा हम सुनकर के आते हैं, व्याख्यान हम सुन करके आते हैं और जैसे ही आते हैं, पल्ला झाड़ करके आते हैं। चिकने घड़े के तरीके से हमारे आपके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
मित्रो! आप वहाँ जाना और लोगों से यह कहना कि अगर कहीं आपके अंदर जिंदादिली हो, तो आपको समय की पुकार सुननी चाहिए और युग की पुकार सुननी चाहिए। समय की माँग को पूरा करना चाहिए और युग की माँग को पूरा करना चाहिए और महाकाल ने, भगवान् ने जहाँ आपको बुलाया है, वहाँ आपको चलना चाहिए। हनुमान् जी भगवान् की पुकार सुनकर चले गए थे, रीछ और बंदर चले गए थे, गिलहरी चली गई थी। आपके लिए क्या यह संभव नहीं है? क्या आप इस लोभ और मोह से, अपने वासना और तृष्णा के बंधनों को काटते हुए अंगद के तरीके से चलने के लिए तैयार हैं?
मित्रो! मैं आपको अंगद के तरीके से संदेशवाहक बनाकर के भेजता हूँ। मेरे गुरु ने मुझे संदेशवाहक बनाकर भेजा। हिंदुस्तान से बाहर कई बार अंगद की तरह से मैं केवल संदेशवाहक के रूप में गया हूँ। मैंने कोई व्याख्यान नहीं दिए और न संगठन किए। सारे-के-सारे देशों में, विदेशों में और न जाने कहाँ-से-कहाँ गया, लेकिन अपने गुरु का संदेश लेकर के गया। मैंने लोगों से कहा, देखो अपने को बदल दो। समय बदल रहा है। परिस्थितियाँ बदल रही हैं। धन किसी के पास रहने वाला नहीं है। अगले दिनों में, थोड़े दिनों में आप देखना कि धन किस तरीके से गायब हो जाता है। राजाओं के राज किस तरीके से चले गए, यह हमने और आपने देख लिया। आपने देखा कि थोड़े दिनों पहले जो लोग राजा कहलाते थे, सोने-चाँदी की तलवारें लेकर हाथी पर चला करते थे, आज वे किस तरीके से अपनी दोनों वक्त की रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं।
साथियो! जहाँ कहीं भी जाएँगे, वहाँ आप लोगों से कहना कि समय बहुत जबरदस्त है। समय सबसे बड़ा है। धन बड़ा नहीं है। जहाँ कहीं भी विभूतियाँ आपको दिखाई पड़ती हों, वहाँ आप हमारे संदेशवाहक के रूप में जाना, जैसे कि हमारे गुरुजी ने सारी दुनिया के जबरदस्त आदमियों के पास और भावनाशील आदमियों के पास हमको संदेश दे करके भेजा।
मित्रो! आपको समय से पहले बदल जाना चाहिए, नहीं तो आपको पश्चाताप ज्यादा करना पड़ेगा। जब कोई डाकू चीजें छीन ले जाता है, तो आदमी को ज्यादा अफसोस होता है, लेकिन अगर अपने हाथों से किसी भिखारी को दे देता है, स्कूल की इमारत बनाने के लिए दे देता है, तो उसको संतोष होता है। पैसा तो चला गया न, चाहे वह डाकू ले गया हो तो भी और चाहे स्कूल बनाने के लिए दे दिया तो भी। लेकिन अपने हाथ से देने पर संतोष रहता है। अतः आपको लोगों से यह कहने के लिए जाना है क अब युग बदल रहा है, समय बदला रहा है, युग की धाराएँ बदल रही हैं। धन के बारे में मूल्यांकन बदल रहा है। धन लोगों के पास रहने वाला नहीं है। धन बहुत तेजी से चला जाने वाला है। आप देख नहीं रहे हैं क्या? गवर्नमेंट क्या-क्या कर रही है? मृत्यु टैक्स लगा रही है। संपत्ति टैक्स लगा रही है और दूसरे टैक्स लगा रही है। सब अगले दिनों जो गवर्नमेंट आने वाली है, अगले दिनों जो समय आने वाला है, उसमें रशिया वाला कानून लागू हो जाएगा, चाइना वाला कानून लागू हो जाएगा। हमको और आपको बस हाथ-पाँव से मेहनत करनी पड़ेगी, परिश्रम करना पड़ेगा और उस मेहनत के बदले में जो खुराक हमको मिलनी चाहिए, जो रोटी मिलनी चाहिए, वह मिल जाएगी। खुराक की सारी-की-सारी चीजें मिल जाएँगी।
वक्त रहते बदलें
साथियो! लोगों से कहना कि आपको भगवान् ने जो विभूतियाँ दी हैं, क्षमताएँ दी हैं, उसका सवाब आप उठा सकते हैं, लाभ उठा सकते हैं, जीवात्मा को शांति दे सकते हैं। जीवात्मा की शांति के लिए, पुण्य के लिए अपने आपको तैयार कर लेना चाहिए, ताकि आपका अंतःकरण शांति में रहे और समाज को भी आपके बदले का अनुदान मिले और हमारा सिर भी गर्व से ऊँचा उठ जाए। समय से पहले हम अंगद के तरीके से इसीलिए आपके पास आए हैं, ताकि यह बता सकें कि आपको वक्त रहते बदल जाना चाहिए और लाभ उठा लेना चाहिए।
इसलिए मित्रो! जहाँ कहीं भी क्षमताएँ दिखाई पड़े, प्रतिभाएँ दिखाई पड़ें, वहाँ आप हमारे संदेश वाहक के रूप में जाना और खासतौर से उनसे प्रार्थना करना, अनुरोध करना। पूर्व में मैंने विभूतिवानों को संबोधित किया था और उनका आह्वान किया था कि आपकी जरूरत है। भगवान् ने आपको विशेषताएँ दी हैं, उसकी उसे जरूरत है, लड़ाई, युद्ध का जब वक्त आता है, तो नौजवानों की भरती कंपलसरी कर दी जाती है और जो लोग बुड्ढे होते हैं, उनको छोड़ दिया जाता है। कंपलसरी लड़ाई में सभी नौजवानों को, चौड़े सीने वालों को पकड़ लिया जाता है और फौज में भरती कर लिया जाता है। कब? जब देश पर दुश्मन का हमला होता है। मित्रो! उनसे जो नौजवान हैं, प्रतिभावान् हैं, विभूतिवान् हैं, उनसे मेरा संदेश कहना। लेकिन जो व्यक्ति मानसिक दृष्टि से बुड्ढे हो गए हैं, वे जवान हों तो क्या, सफेद बाल वाले बुड्ढे हों तो क्या, हमको उनकी जरूरत नहीं है। क्यों? क्योंकि वे मौत के शिकार हैं। वे इसी के लिए हैं कि जब मौत को चारे की जरूरत पड़े, तो वे उसकी खुराक का काम करें।
बूढ़ा कौन? कौन जवान?
मित्रो! बुड्ढा आदमी कौन? क्या वह जिसके बाल सफेद हो गए हैं? सफेद बालों वाला बुड्ढा होता है कहीं, वह जवान होता है। इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री जिसका नाम चर्चिल था, अस्सी वर्ष का हो गया था और उसकी कमर में दरद रहता था। इंग्लैंड के लोगों ने कहा कि हम अपनी हुकूमत और अपने राष्ट्र की जिम्मेदारी इस आदमी के हाथ में सुपुर्द करेंगे, और वो चर्चिल जो था, जब दिन-रात जर्मनी वाले इंग्लैण्ड के ऊपर बम बरसा रहे थे, तब सारी-की-सारी सत्ता का केन्द्र वही एक आदमी था। बड़ा जबरदस्त आदमी, नौजवान आदमी था। कितने वर्ष का था, अस्सी वर्ष का, जो सारे-के-सारे लोगों से कह रहा था, इंग्लैण्ड के लोगों! घबराने की जरूरत नहीं। भगवान् हमारा सहायक है और हम ऊँचा उठेंगे, आगे बढ़ेंगे और हम फतह करके रहेंगे। हर आदमी के अंदर उसने जिंदगी पैदा की और जोश पैदा किया। वो कौन आदमी था? जवान आदमी था।
और विनोबा कौन हैं मित्रो! जवान आदमी। और गाँधी जी अस्सी वर्ष के करीब पहुँच गए थे। वो कौन थे? जवान आदमी। जवाहरलाल नेहरू चौहत्तर-पिचहत्तर वर्ष के थे, जब उनकी मृत्यु हुई। तब वे कौन थे? जवान आदमी और राजगोपालाचार्य? राजगोपालाचार्य की जब मृत्यु हुई थी, तो वे अस्सी वर्ष को भी पार कर गए थे। वे कौन थे? जवान आदमी, और हम और आप? हम और आप बुड्ढे आदमी हैं, जर्जर आदमी हैं, टूटे हुए और लकवा के मारे हुए आदमी हैं। कंगाली के मारे हुए, दरद के मारे हुए, दुर्भाग्य के मारे हुए और हम सब देवताओं के मारे हुए आदमी हैं। हमारी नसें और हड्डियाँ गल गई हैं। हमार मन सड़ गया है और हमारी भावनाएँ सो गई हैं। हमारा जीवन समाप्त हो गया है। हम लुहार की धौंकनी के तरीके से साँस जरूर लिया करते हैं। हमारी साँस चलती तो है, पर बहुत धीरे-धीरे चलती है। हम कौन हैं? हम मुरदा आदमी हैं। हम मर गए हैं। हमारे अंदर कोई जीवट नहीं है, कोई जिंदगी नहीं है। हमारे अंदर कोई लक्ष्य नहीं है, कोई दिशा नहीं है। हमारे अंदर कोई तड़प नहीं है, कोई कसक नहीं है और हमारे अंदर कोई जोश नहीं है। हमारा खून ठंडा हो गया है।
साथियो! जिनका खून ठंडा हो गया है, उनको मैं क्या कहूँगा? उनको मैं बूढ़ा आदमी कहूँगा। पच्चीस वर्ष का हो तो क्या, अट्ठाइस वर्ष का हो तो क्या, बत्तीस वर्ष का हो तो क्या? वह बूढ़ा आदमी है और मौत का शिकार है। उसके सामने जिंदगी का कोई लक्ष्य नहीं है, उसके सामने कोई चमक नहीं है। जिसके सामने कोई चमक नहीं है, जिसके सामने कोई उम्मीद नहीं है, जिसकी हिम्मत समाप्त हो गई, जो आदमी निराश हो गया, जिसकी आँखों में निराशा और मायूसी छाई हुई है, वह बूढ़ा आदमी है। मित्रो! इन बूढ़े आदमियों का हम क्या करेंगे? इनसे हम क्या उम्मीद कर सकते हैं कि वे स्वयं के लिए क्या काम कर सकते हैं और भगवान् के लिए क्या कर सकते हैं। और समाज के लिए क्या कर सकते हैं? यह देखकर हम उनसे ना उम्मीद हो जाते हैं। हम उनसे ज्यादा-से-ज्यादा यही उम्मीद रखेंगे कि हमारा जब हवन होगा, तो उन्हें उम्मीद दिलाएँगे कि आपके बेटा-बेटी हो जाएँगे। उनके लिए बस सब से बड़ा एक ही काम है कि बेटा-बेटी हो जाएँ। पैसा हो जाए।
मृतकों से क्या अपेक्षा?
मित्रो! सारे-के-सारे ये वो लोग हैं, जो मर गए हैं, जो सड़ गए हैं। लोभ के अलावा, लालच के अलावा, ख्वाहिशों के अलावा, तमन्नाओं के अलावा इनके पास कुछ नहीं है। जो आदमी खाली हो गए हैं और जो ढोल तरीके से पोले हैं, उनका हम क्या करेंगे? इनके लिए हम कुछ नहीं करेंगे और न इनसे समाज के लिए, भगवान् के लिए ही कुछ उम्मीद रखेंगे। किसी के लिए भी इनसे उम्मीद नहीं रखेंगे। इनको हम छोड़ देंगे।
मित्रो! हमारा मिशन जो इंसान में भगवान् का अवतरण करने के लिए और जमीन पर स्वर्ग की धाराओं को बहाने के लिए बोया और खड़ा किया गया है, उसके लिए हमें जिंदा आदमियों की जरूरत है। जिंदा आदमी ही इस मिशन को आगे लेकर चलेंगे। मुरदा आदमी ज्यादा से ज्यादा माला घुमा देंगे। एक हनुमान जी की घुमा देंगे, एक लक्ष्मी जी की घुमा देंगे, एक युग-निर्माण की घुमा देंगे और एक अपने बेटे की घुमा देंगे और एक अपने मोहल्ले वाले की घुमा देंगे और कहेंगे कि गुरुजी मैं रोज नौ माला जपता हूँ। उसमें एक आपके लिए जपता हूँ और एक लक्ष्मी जी के लिए। वाह, बेटे! लक्ष्मी जी भूखी बैठी थी और भगवान् जी को तीन दिन से नाश्ता नहीं मिला था। तूने एक माला जपी थी, बस उससे भगवान् जी का कलेऊ हो जाएगा और उनको रोटी मिल जाएगी। अहा! ये हैं असली भगत और असली जादूगर। सारे जादू के पिटारे ये अपने माला में भरे हुए बैठे हैं।
मित्रो! इनसे हमारा काम चलेगा? इनसे हमारा काम नहीं चलेगा। जो व्यक्ति हर काम के लिए माला को ही काफी समझते हैं, उनसे हमारा काम नहीं चलेगा। जब कभी इनको जुंग आती है, छटपटाहट आती है, तो खट माला पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि इस पर माला को चलाऊँगा, उस पर माला को चलाऊँगा। इस तरह वे तरह-तरह की चर्खियाँ चला देते हैं। जिस तरह बंदूक में तरह-तरह के कारतूस चढ़ा देते हैं? मंत्र का। इस माला पर महामृत्युंजय मंत्र का कारतूस दनादन चढ़ा दिया, जो खट्-खट् सब बीमारियों को मार डालता है और जब इसको लक्ष्मी जी की जरूरत पड़ती है तब? अहा! ‘‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’’ मंत्र का दे दनादन-दे दनादन जप, और वो आई देवी और ये आई चंडी और ये आया पैसा। बस इसके पास तो एक ही मशीनगन है। मरने दो इन अभागे को, इसके पास न कोई जिंदगी है, न कोई दिशा है, न कोई प्रेरणा है, न कोई लक्ष्य है और न इसके पास दिल है। ये अभागा तो केवल माला को लेकर ही दफन होने वाला है और माला को लेकर ही मरेगा।
जीवट वालों को तलाशिए
इसलिए मित्रो! इन लोगों से हमारा क्या बनने वाला है? क्या करेंगे हम इन मुरदा आदमियों का? इनसे हमारा कुछ काम नहीं बनेगा। हमको जीवट वाले आदमियों को तलाश करना पड़ेगा। अतः आपको जहाँ कहीं भी जीवट वाले आदमी मिलें, आप वहाँ जाना। हमारा संदेश लेकर के जाना और कहना कि हम आपकी तलाश करते रहे हैं। हम इसलिए तलाश करते रहे हैं कि हमारा ये ख्याल था, भगवान् जाने सही था या गलत था कि आपके अंदर जीवट नाम की कोई चीज है। इस जन्म की नहीं, तो पहले जन्म की है। कभी भी हमारी इन आँखों ने चमक में धोखा नहीं खाया है। आपके बारे में हमने अपने मन में यह ख्याल बना करके रखा था कि आप जिंदा इंसानों में से हैं और आपके अंदर दरद नाम की कोई चीज है। आपके अंदर विवेक नाम की कोई चीज है और आपके अंदर तड़प नाम की कोई चीज है। अगर हमको ये चीजें न मालूम पड़ें, तो फिर मुरदे आदमियों को ढोने में क्या आनंद आता है? लाशों को ढो-ढोकर हम कहाँ डालेंगे? सड़े हुए बदबूदार आदमियों को हम कहाँ कंधे पर लिए फिरेंगे? मित्रो! इनको हम बैकुंठ का रास्ता कैसे दिखा देंगे? इनको हम स्वर्ग की कहानी कैसे कह देंगे? भगवान् से मिलने की बात हम कैसे कह देंगे?
मित्रो! हम सड़े हुए मनुष्यों और मरे हुए मनुष्यों की मनोकामना पूर्ण करने की जिम्मेदारी कैसे उठा लेंगे? हमारे लिए यह बिलकुल असंभव था, नामुमकिन था। हमारा एक ही ख्याल था कि आप लोग जिंदा आदमी हैं। अगर आप वास्तव में जिंदा आदमी हैं, तो यहाँ से जाने के बाद जिंदा आदमियों के तरीके से अपनी जिंदगी जीना। विवेकशील लोगों के तरीके से जीना, विचारशील और भावनाशील लोगों के तरीके से जीना, दिलवाले आदमियों के तरीके से जीना। अगर आप इस तरह से जिएँ, तो फिर तलाश करना और यदि कहीं कोई जिंदा आदमी दिखाई पड़े, तो आप उसके आस-पास चक्कर काटना। आप इस तरीके से चक्कर काटना, जिस तरीके से भौंरा खिले हुए फूल के पास चक्कर काटता है। खिले हुए फूल के आस-पास तितलियाँ और मधुमक्खियाँ चक्कर काटती हैं, जैसे हम बराबर आपके पास चक्कर काटते रहते हैं।
साथियो! हमको मालूम पड़ा कि शायद आप खिले हुए फूल हैं, तो हम भी रामकृष्ण परमहंस के तरीके से आपके पास आए हैं, जिस तरीके से वे विवेकानंद के पीछे लगे थे और शिवाजी के पीछे जिस तरीके से रामदास लगे थे। हम भी आपके पीछे उसी तरीके से लगे रहे हैं, जिस तरीके से चाणक्य चंद्रगुप्त के पीछे लगे रहे थे। अगर गलती हो गई हो, तो माफ करना, क्योंकि हमने समझा यही है। आप यह मत सोचना कि गुरुजी जो अपना पुण्य हिमालय पर से लेकर के आए हैं, वह हमको मालदार बनाने के लिए और संपत्ति देने के लिए हमारे पीछे लगे हुए हैं। हमको औलाद वाला बनाने के लिए, बेटा-बेटी देने के लिए पीछे लगे हुए हैं। हम इसके लिए नहीं लगे हुए हैं।
संपत्ति नहीं विभूति माँगें
मित्रो! हमारे गुरु ने और हमारे पिता ने हमको लक्ष्मी नहीं दी है, औलाद नहीं दी है, लेकिन जो चीजें हमको दी हैं, वे लक्ष्मी जी से लाख गुनी और करोड़ गुनी ज्यादा हैं। हमारी निगाह में भी और हमारी उम्मीदों में भी यही चीज जमी हुई है कि आपको कोई चीज हम दें, तो कम-से-कम ऐसी चीज दें, जिससे कि आप भी जन्म-जन्मांतरों तक याद करते रहें कि हमको कोई चीज मिली थी और कोई चीज हमको दी गई थी। अगर आपके पास जिंदादिली हो और आपके पास रखने की चीजें हों, तब। रखने की चीजें न होंगी, तब फिर बड़ा मुश्किल है। फिर स्वाति की बूँदें बरसती चली जाएँगी और वो अभागी सीप है जिसने अपना मुँह नहीं खोला। मुँह बंद करके पड़ी रही। फिर उसके लिए ये संभव नहीं है, मुमकिन नहीं है कि स्वाति की बूँदें बरसती चली जाएँ और उसके अंदर मोती पैदा हो जाए। ऐसी स्थिति में मोती पैदा नहीं हो सकते।
एक बार अमृत की वर्षा हुई। सारे मरे हुए आदमी जिंदा हो गए। केवल एक आदमी जिंदा नहीं हुआ। लोगों ने पूछा, क्या वजह है? वह आदमी क्यों नहीं जिंदा हुआ? जानने पर यह मालूम हुआ कि वह आदमी अपना मुँह जमीन में गाड़े हुए था और पीठ ऊपर किए हुआ था। लोगों ने कहा, अच्छा, तो यह वजह है कि जो मुरदे मुँह खोले हुए थे, नाक ऊपर किए हुए पड़े थे। उनमें से अमृत की बूँदें किसी की नाक में पड़ गईं, किसी के मुँह में पड़ गईं और वे सब जिंदा हो गए। लेकिन जिसने अपना मुँह पलट कर के रखा था, जमीन में गाड़कर रखा था, उसकी नाक में भी अमृत की बूँदें नहीं जा सकीं और मुँह में भी नहीं जा सकीं। इसलिए वह जिंदा नहीं हो सका। बेशक वो आदमी जिंदा नहीं हो सकते, चाहे उनका गुरु कोई भी क्यों न हो। गुरुजी! आप अपने गुरुजी के दर्शन करा दीजिए। हम दर्शन क्यों करा दें? हमारे गुरुजी का दर्शन करके तेरा कोई फायदा नहीं हो सकता। कैसे नहीं होगा? बेटे! वो जिंदगी कहाँ है़ वो सीप कहाँ है, जहाँ कि अमृत की बूँदें पड़ा करती हैं और जिंदगी पैदा हो जाती है।
मित्रो! हमारे पास अपनी विशेषताएँ होनी चाहिए। अपनी विशेषताएँ नहीं होंगी तो बाहर के आदमी, दूसरे आदमी कोई सहायता नहीं कर सकते। आज तक बाहर वाले आदमियों ने किसी की सहायता नहीं की है। केवल अपना हृदय और अपना मन आगे बढ़ा है, तब दूसरों ने सहायता की है। आदिकाल से यही सिद्धांत था और आगे भी यही रहेगा। इसलिए हम आपको विदा करते वक्त उन लोगों के पास भेजना चाहेंगे, जिनके अंदर विशेषता मालूम पड़ती है और चमक मालूम पड़ती है। आप उन सब नौजवानों को निमंत्रण देने जाना, आमंत्रण देने जाना, जिनके घर में बंदूकें हैं, भाले हैं। उनसे कहना कि गाँव जल रहे हैं, गाँव में डकैतियाँ हो रही हैं और चूँकि आपके पास बंदूकें हैं, भाला है, इसलिए आप चलिए। चूँकि आपके पास जवानी है, इसलिए आप चलिए। चूँकि आपके पास जवानी है, इसलिए आप चलिए। चूँकि आपके पास अमुक चीजें हैं, इसलिए आप चलिए। जिन लोगों को आप साधन-संपन्न देखें, उन लोगों को आप निमंत्रण देना। जिनके पास बाल्टी है, उनको आप निमंत्रण देना। जिनके पास रस्सी है, उनको आप निमंत्रण देना। उनसे कहना कि बाल्टी खींचिए। गाँव जल रहा है, उसकी आग को बुझाइए। उनको निमंत्रण देने के लिए हम आपको भेजते हैं।
साथियो! ये दावत खाने का निमंत्रण नहीं है। गुरुजी से आशीर्वाद लेने का निमंत्रण नहीं है। मालदार होने का और बीमारियों को अच्छा करने का नहीं है। औलाद प्राप्त करने का नहीं है। आप ये निमंत्रण मत देना किसी को। ये तो बिना आपके निमंत्रण दिए खुद ही चले आते हैं और उन पर मुझको झल्लाना पड़ता है और ये रोज कहना पड़ता है कि बाबा! यहाँ ठहरने की जगह नहीं है, चला जा। ये तो पहले भी आते रहे हैं और आते ही रहेंगे। उनको निमंत्रण देने की आपको जरूरत नहीं है। वे तो अपने आप बिना बुलाए आ जाएँगे और सब तरीके से आ जाएँगे।
प्रतिभाओं से है अपेक्षा
मित्रो! आप उन लोगों के पास जाना जिनके पास क्षमताएँ हैं, जिनके पास प्रतिभाएँ हैं, जिनके पास जीवन है, जिनके पास कसक है, जिनके पास विचार हैं। जिनके पास इस तरह की चीजें दिखाई पड़ें, वहाँ आप जाना और जा करके हमारा संदेश दे करके आना। जहाँ कहीं भी आपको विद्या दिखाई पड़े, जिस किसी के पास भी विद्या दिखाई पड़े कि उसके पास विद्या है, तो आप उन विद्यावानों के पास जाना और यह कहना कि आपकी विद्या की समाज को आवश्यकता है और युग को आवश्यकता है। विद्या पेट पालने के लिए नहीं होती है, पेट भरने के लिए नहीं होती है। विद्या का उद्देश्य भिन्न है। विद्या का उद्देश्य है, जो ज्ञान हमको मिला हुआ है, उससे हमको वकालत भी करनी पड़े, तो उस विद्या के द्वारा लोगों के अज्ञान के निवारण के लिए खरच करना चाहिए। आपकी सारी-की-सारी विद्या धन के लिए, पैसे के लिए खरच नहीं होनी चाहिए। अगर आप पढ़े-लिखे आदमी हैं, जीवट वाले आदमी हैं, तो आपकी विद्या का लाभ उन लोगों को मिलना चाहिए, जो पढ़े-लिखे नहीं हैं, जो निरक्षर हैं।
मित्रो! आप पढ़े-लिखे हुए लोगों से कहना कि यदि आपका गुजारा हो जाता है, तो आपको ‘नाइट स्कूल’ रात्रि पाठशाला खोलनी चाहिए। बाहर विदेशों में लोग नाइट स्कूल चलाते हैं। सारे-के-सारे लोग पढ़ाई उसी में करते हैं। वहाँ दिन भर आठ घंटे मेहनत-मजदूरी हर आदमी को करनी पड़ती है। छोटे बच्चों की बात जाने दीजिए, वे तो स्कूलों में चले जाते हैं। वे साढ़े नौ बजे चले जाते हैं और शाम को चार बजे आ जाते हैं, पर जिसको पेट पालना पड़ेगा, वो किस तरीके से स्कूल जा सकता है। और जो बड़ा आदमी हो गया, जवान आदमी हो गया, वह कैसे जा सकता है? अतः हमको समाज में विद्या का विस्तार करना है। विद्या का ऋण-कर्ज हमारे ऊपर है। इसे चुकाने के लिए हमको दूसरों को विद्यावान् बनाना चाहिए। शिक्षित बनाना चाहिए, ज्ञानवान् बनाना चाहिए, इसके लिए हममें से और आप में से हर आदमी को समाज का ऋण चुकाने के लिए वो काम करना चाहिए, जो कल मैंने आपको बताए थे और आपको बताता रहा हूँ। योरोप के तरीके से हमारे यहाँ भी रात्रि के विद्यालय चलने चाहिए, जहाँ मजदूर, धोबी आदि शाम के वक्त अपने काम से छुट्टी पाने के बाद चले जाते हैं और पढ़ाई करते हैं और जिंदगी के आखिरी वक्त तक एम.ए. हो जाते हैं, पी.एच.डी. हो जाते हैं और डी. लिट् हो जाते हैं। जिंदगी के आखिरी-से-आखिरी वक्त तक जो समय उनको पढ़ने को मिल जाता है, वे उसे पढ़ाई में लगा देते हैं।
मित्रो! हमारे देश में सिनेमाघरों में भीड़ बहुत है। हमारे समाज में गप्पें हाँकने के लिए भीड़ बहुत है, जुआघर में भीड़ बहुत, शराबखानों में भीड़ बहुत होती है, लेकिन आपको उस तरह की भीड़ कहीं भी नहीं दिखाई पड़ेगी कि अपने जातीय संगठन के नाम पर, अपने शिक्षित समुदाय के नाम पर इकट्ठे होकर के हमने सायंकाल के वक्त ‘रात्रि पाठशालाओं’ को चलाया हो। इन रात्रि पाठशालाओं में असंख्य महत्त्वपूर्ण बातें पढ़ाई जा सकती हैं। मैं यह तो नहीं कहता कि हरेक आदमी को बी.ई. पढ़ाना चाहिए, लेकिन जीवन जीने की कितनी समस्याएँ हैं, उनको हल करने के लिए विद्यावानों को आगे आना चाहिए।
स्वास्थ्य की शिक्षा अभी प्रारंभ नहीं हुई है। हम और आप वकील हों, तो मुबारक, लेकिन आपको नहीं मालूम कि पेट खराब क्यों हो गया? और पेट को खराब होने से बचाने के लिए क्या तरीका होना चाहिए। क्या आपके पास इसके लिए कोई स्कूल है? दवाखाने वाले तो वो चीज हैं कि जहाँ कहीं भी जाइए, हर चीज का इंजेक्शन लगा देंगे। उन्हें ये मालूम नहीं है कि वजह क्या है और किसकी वजह से सेहत खराब कर रहा है। उन सेहत खराब करने वाली खुराक और आदतों को जब तक ये हेर-फेर नहीं करेगा, तब तक उसकी सेहत कभी भी अच्छी नहीं हो सकेगी, चाहे वह रोज एक-एक दिन में बीस इंजेक्शन लगवाता चला जाए। व्यक्ति इंजेक्शन से कदापि अच्छा नहीं हो सकता। सेहत को अच्छा करने के लिए शिक्षण की आवश्यकता है।
शिक्षण प्रक्रिया नई जन्म ले
मित्रो! हमको शिक्षण की प्रक्रिया राष्ट्र में पैदा करनी पड़ेगी। विद्या हमारे देश में नहीं है। साक्षरता हमारे देश में नहीं है। उसको बढ़ाने के लिए हमको नाइट स्कूलों की जरूरत पड़ेगी। विद्या के लिए घनघोर आंदोलन खड़ा करना पड़ेगा और इस आंदोलन के लिए हम नौकर नहीं रख सकते, कर्मचारी नहीं रख सकते और वेतन-भोगी नहीं रख सकते। गवर्नमेंट ने इस तरह के वेतन-भोगी रख लिए हैं और आप देखिए क्या हाल हो रहा है? हर डिपार्टमेंट को बढ़ा-बढ़ाकर इतना लंबा चौड़ा कर लिया है कि अगर इतना पैसा इन डिपार्टमेंट में नहीं लगाया गया होता, तो उस बचत से शिक्षण-प्रशिक्षण की समस्या सुलझ गई होती।
मित्रो! हमको जो काम करना पड़ेगा, उन क्षमता वालों के आधार पर और प्रतिभा वालों के आधार पर करना पड़ेगा। अपना यह मिशन कितना जबरदस्त मिशन है। इसको आगे बढ़ाने के लिए हमको उन आदमियों के पास जाना पड़ेगा, जिनके पास विचारशीलता भी विद्यमान है और क्षमता भी विद्यमान है। विचारशीलता नहीं है और क्षमता है, तो हमको यह कोशिश करनी पड़ेगी कि अपने मिशन की विचारधारा को, मिशन की पुस्तिकाओं को, मिशन के ट्रैक्टों को उनको बार-बार सुनाएँ और किसी प्रकार से इस तरीके से लाएँ कि वे हमारी विचारधारा के संपर्क में आएँ। अगर कोई आदमी हमारी विचारधारा के संपर्क में आ गया, तो यह बड़ी जलती हुई विचारधारा है, यह बड़ी तीखी और प्रखर विचारधारा है। सौ फीसदी मरा हुआ आदमी हो, तब तो हम नहीं कह सकते, लेकिन कोई अगर जिंदा आदमी होगा, तो उसको एक बार तड़फड़ाए बिना, उसको एक बार हिलाए बिना नहीं रह सकती। माला वालों को तो यह शायद जगाएगी नहीं। माला वाले तो अखण्ड ज्योति का चंदा इसलिए भेज देते हैं कि गुरुजी नाराज हो जाएँगे और अगली बार मुकदमे में सहायता नहीं करेंगे। वे पत्रिका को पढ़ते थोड़े ही हैं, कोई नहीं पढ़ते, लेकिन जिन लोगों ने इन विचारों को पढ़ा है, वे आदमी काँपते हैं, हिलते हैं। उन आदमियों के अंदर एक स्पंदन पैदा होता है, फुरेरी पैदा होती है।
आप इन विचारों को लेकर सामान्य जनता तक जरूर जाना। लेकिन सामान्य जनता के अलावा कोई विशेष आदमी दिखाई पड़ते हों, जिनके अंदर आपको जीवट दिखाई पड़ती हो, प्रतिभा दिखाई पड़ती हो, उनके पास आप जरूर जाना विद्यावानों के पास, प्रतिभावानों के पास, कलाकारों के पास जाना। जहाँ कहीं भी कलाकार दिखाई पड़ते हों, उनके पास आप जरूर जाना। उनसे कहना कि भगवान् ने आपको मीठा वाला गला दिया है, आपको गाने की कला आती है। आप इस गाने की कला के द्वारा जिस तरीके से कामुकता के गीत, अंध विश्वासों का समर्थन करने वाले गीत और भक्ति के नाम पर शृंगार रस के गीत गाया करते हैं। इनके स्थान पर कहीं आप चंदवरदायी के तरीके से समय को कँपाने वाले, भूषण के तरीके से समय को कँपाने वाले, युगों में जीवन भरने वाले गीत आप इसी गले के द्वारा गाने लगें, चौराहे-चौराहे पर खड़े होकर अलख जगाने लगें-गाँव-गाँव जाकर लोगों को इकट्ठा करके गीत की कला का उपयोग करने लगें, तो आपके यही गीत आपका यही गला और गले की मिठास सैकड़ों-हजारों मनुष्यों के जीवन में हेर-फेर करने में समर्थ हो सकती है। मीरा का गला, मीरा की मिठास और मीरा का संगीत कितने आदमियों के जीवन में हेर-फेर करने में समर्थ हो गया। अतः हमको उस हर मीठे गले वाले व्यक्ति से कहना चाहिए, जिसको ये विशेषताएँ और विभूतियाँ भगवान् ने अमानत के रूप में विशेष रूप से दी हैं।
मित्रो! हमको उनके पास विशेष रूप से जाना चाहिए, जिन लोगों के पास कला है। जिन लोगों के पास लेखन की शक्ति है, जिन लोगों के पास विद्या की शक्ति है, जिन लोगों के पास बुद्धि की शक्ति है, उन लोगों के पास आप जरूर जाना। बीमारी के समय डॉक्टर के पास हमको जरूर जाना चाहिए, क्योंकि वह जानता है और उस काम को आसानी से पूरा कर सकता है। एक डॉक्टर हैजे का मुकाबला आसानी से कर सकता है, जबकि सौ गँवार मिलकर भी हैजे का मुकाबला नहीं कर सकते। इसलिए आप उनके पास चक्कर जरूर लगाना। उनकी खुशामद करने में अपमान महसूस मत करना। आप उनकी खुशामद करना, उनकी मिन्नतें करना, जिनके अंदर आपको जीवन मालूम पड़ता है और जीवट मालूम पड़ता है। अगर आपने खुशामद की है, मिन्नतें की हैं, तो आपने भीख माँगने के लिए नहीं की है, अपना पेट भरने के लिए नहीं की है। अपना उल्लू सीधा करने के लिए नहीं की है, वरन् समाज के लिए की है, देश के लिए की है, मानवता के लिए की है और मिशन के लिए की है।
मित्रो! आपको उन लोगों की खुशामद करनी चाहिए, जिनके पास बुद्धि है, क्षमता है, जिनके पास प्रभाव है, जिनके पास अक्ल है, जिनके पास कला है, जिनके पास जान है। जो आदमी कलम को पकड़ सकते हैं, जो आदमी अपनी विद्या से दूसरों को प्रभावित कर सकते हैं। जिनके पास भगवान् ने वाणी दी है, जो बोल सकते हैं, जो व्याख्यान दे सकते हैं, उनको आप यह कहना कि आपको जो विशेषताएँ मिली हुई हैं, वह भगवान् की अमानत हैं। आपको इसको इस विशेष समय पर इस्तेमाल करना चाहिए। गवर्नमेंट के पास रिजर्व फोर्स, रिजर्व पुलिस होती है और वह विशेष समय के लिए रखी जाती है, ताकि जिस समय इसकी बेहद आवश्यकता हो, उस समय विशेष रूप से काम आए। आप उनसे यही कहना कि आप भगवान् के रिजर्व फोर्स के तरीके से हैं, तभी तो दूसरे सामान्य लोगों की अपेक्षा ज्यादा बुद्धि दी गई है, ज्यादा प्रभाव दिया गया है, ज्यादा प्रतिभा दी गई है और ज्यादा समझदारी दी गई है। यदि आप प्रतिभाओं को, विभूतियों को जगाकर राष्ट्र-निर्माण के लिए लगा सकें, तो इससे बड़ा पुण्य कोई नहीं। आज की बात समाप्त।
॥ ॐ शांति