उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले।
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥
तिनके के पिंजरे में मुनियाँ, सुधा और विष घोले रे।
साँई का पंछी बोले॥
तिनके के पिंजरे में मुनियाँ, सुधा और विष घोले रे।
साँई का पंछी बोले॥
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥
साजन का है बाग अनूठा, सब कुछ सच्चा सब कुछ झूठा।
रीझा सो पछताता लौटा, पाया मीठा फल जो रूठा॥
खुला खेल है देखे जब तू, घूँघट का पट खोले रे॥
साँई का पंछी बोले॥
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥
चटक चाँदनी चार दिनों की, शीतल रजनी थोड़ी बाकी।
चुन ले सुमन सजा ले डाली, प्याली भर ले शेष सुधा की॥
तेरी कथा कहेंगे कल, पैरों के फूट फफोले रे॥
साँई का पंछी बोले॥
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥
आशा और पंथ का मारा, हाट-हाट घूमा बनजारा।
अब भी रहे लाज जो मनुवा मन से मन को तोल रे॥
साँई का पंछी बोले॥
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥
तिनके के पिंजरे में मुनियाँ, सुधा और विष घोले रे।
साँई का पंछी बोले॥
तिनके के पिंजरे में मुनियाँ, सुधा और विष घोले रे।
साँई का पंछी बोले॥
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले॥