उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
हो गये बहुत सुराख नाव में, मत जा तू मझधार रे।
इस हालत में डूबेगा तू, डूबेगा परिवार रे॥
मत जा तू मझधार माँझी, मत जा तू मझधार रे॥
माँझी हो...माँझी हो...
बहुत किये सूराख काम ने, और किये अभिमान ने।
किये कई सूराख स्वार्थ में, डूबी हुई थकान ने॥
तली करी छलनी लिप्सा ने, क्रोध-जनित अज्ञान ने।
भीतर भरने लगी नाव के, अब तो जल की धार रे॥
मत जा तू मझधार माँझी, मत जा तू मझधार रे॥
माँझी हो...माँझी हो...
यदि मन हो बीमार, कहो क्या होगा सुन्दर देह का।
धरती हो दलदली अगर तो, क्या होगा फिर मेह का॥
अगर दिया रिसता हो तो, क्या होगा बाती-स्नेह का।
सबल बाँह क्या कर लेगी यदि, नाव हुई बेकार रे॥
मत जा तू मझधार माँझी, मत जा तू मझधार रे॥
माँझी हो...माँझी हो...
अंतर्मन की तली अगर हो, स्वस्थ हमारी नाम में।
तूफानों के बीच सफल हम, होंगे हरेक बहाव में॥
बँधे सभी सहयात्री होंगे, एक सहज सद्भाव में।
नौका हो टूटी तो कोई, उतरे कैसे पार रे॥
मत जा तू मझधार माँझी, मत जा तू मझधार रे॥
माँझी हो...माँझी हो...
फूला-फूला फिरे व्यर्थ ही, तू अपने गुण-गान में।
बाहर की इस चमक-दमक का, क्या होगा तूफान में॥
कर्मों का फल सदा मिला है, प्रभु के दण्ड विधान में।
सत्कर्मों की इसीलिये तू, यहाँ पकड़ पतवार रे॥
मत जा तू मझधार माँझी, मत जा तू मझधार रे॥
माँझी हो...माँझी हो...