उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!
ये जमीन जिस दिन भगवान ने बनाई उसी दिन प्राणियों को भी बनाया, उसी दिन सूरज को भी बनाया। मुद्दतें हो गईं, किसी का किसी से कोई खास सम्बन्ध नहीं हो सका। जब मनुष्य की बुद्धि का विकास हुआ तो उसने सूरज की धूप को, रोशनी को अपने कब्जे में करने की कोशिश की। सबसे पहले मिली उसे आग। जिस दिन उसे अग्नि प्राप्त हो गई, मनुष्य और जानवर के बीच फर्क पड़ना शुरू हो गया। आग ने मनुष्य का कायाकल्प कर दिया। आदमी की भौतिक जिंदगी में प्रगति की एक क्रांति खड़ी हो गई। मुद्दतों बीत गईं। मुद्दतों के बाद एक और आग मनुष्य के हाथ लगी जिस का नाम है विद्युत, बिजली। आज से चार-पाँच सौ साल पहले बिजली आदमी के हाथ में आई व इसने आदमी की दुनिया ही बदल दी। पाँच सौ साल पहले के आदमी की और आज के आदमी की तुलना आप नहीं कर सकते। आज बिजली के कारण इतनी सुविधाएँ हैं। तब की कल्पना कीजिए जब आदमी आज से पाँच सौ साल पहले बिना बिजली के अँधेरे में बिना यंत्रों के काम करता होगा। टार्च की रोशनी से लेकर अनेक कामों तक व टेलीफोन से लेकर कितने ही कामों तक बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ चलाने तक आदमी के काम बिजली ही आई व इसने मानव जीवन में एक क्रांति ला दी।
ताप की एक तीसरी और शक्ति मनुष्य के हाथ में आई। तीसरे ताप का नाम क्या है—‘एटम!’ एटम की, अणु की शक्ति हाथ न आई होती तो अब तक इतनी लड़ाइयाँ लड़ी गई होतीं कि दुनिया से तीन-चौथाई आदमी खत्म हो गए होते। फर्स्ट वर्ल्ड वार हुआ, सेकण्ड वर्ल्ड वार हुआ, लेकिन उसके बाद माहौल में गरमी इतनी अधिक बढ़ी-चढ़ी थी, स्वार्थ इतने बढ़े हुए थे कि अगर एटॉमिक हथियार हाथ में न आए होते तो आज तक न जाने कितनी लड़ाइयाँ हो चुकी होतीं और हर जगह न जाने क्या-क्या मुसीबतें आ गई होतीं? ताप ने, एटम की शक्ति ने रोक दिया मनुष्य को कि लड़ना मत। जो कोई भी लड़ेगा, मारा जाएगा। छोटे-मोटे हमले लोग कर सकते हैं, पर बड़ा युद्ध तो हमला करने वाले को भी तहस-नहस कर देगा। बड़ी तादाद में आपने कदम बढ़ाए तो यह एटॉमिक एनर्जी आपको खत्म करके रख देगी।
ताप की इन तीन शक्तियों ने मनुष्य के हाथों में साधन दिए, उसकी भौतिक उन्नति कर उसने जाने कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया, लेकिन एक शक्ति ऐसी है ताप की जो पहले से मौजूद थी व व जिसने आदमी का कायाकल्प किया है। वह है ज्ञान की शक्ति। एक ज्ञान वह है जो शिक्षा के रूप में, उसकी भौतिक शक्ति के रूप में हमारे समक्ष है। जिससे हम डॉक्टर बन जाते हैं, मास्टर, वकील बन जाते हैं, शिल्पी बन जाते हैं, कलाकार बन जाते हैं। हथियार व पैसे की तरह यह भी भौतिक शक्ति है। आदमी की खुशहाली के काम आती है, लेकिन यह वह नहीं है, जिससे आदमी, आदमी बनता है, जीवन को ऊँचा उठाना सीखता है। वह शक्ति जो आदमी को खुशी देती है, शांति देती है, उसके जीवन में संवेदना का रस पैदा करती है, मानव-मानव के मध्य सहयोग की भाषा सिखाती है, परस्पर स्नेह और दुलार पैदा करती है, सहकारिता की आधार शक्ति है, वह विद्या है। यह थी तो पहले से, लेकिन आदमी के हाथ में जब से आई, आदमी न जाने क्या से क्या होता चला गया। जानवर से आगे बढ़कर सही अर्थों में मानव बन गया। यह ज्ञान की शक्ति, विद्या की शक्ति का अवतरण कब धरती पर हुआ? यह हम देखते हैं तो पाते हैं कि सृष्टि के प्रारम्भ में आकाशवाणी हुई थी व ब्रह्माजी को यह कहा गया था कि आपको तप से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। तब उनके हाथ गायत्री मंत्र आया। ब्रह्माजी ने गायत्री मंत्र के चार चरणों को चार व्याख्यानों में विभाजित कर उसको प्रतिपादित करना आरम्भ कर दिया। इन चार व्याख्यानों का नाम पड़ गया चार वेद। कब की बात है यह? यह बड़ी पुरानी बात है। वेदों की उस सभ्यता व संस्कृति का आगमन क्या हुआ, आदमी नहीं रह गया, देवता बन गया। इस देश में रहने वाले सभी जीवधारी जिनका नर तन था, तैंतीस कोटि देवताओं में गिने जाने लगे।
वे आदमी नहीं थे। आदमी तो मामूली होते हैं, पेट भरते हैं और जिंदा रहते हैं किसी तरह, लेकिन देवता वे होते हैं जो खुश रहते हैं और खुश रखा करते हैं। खीज़ उनके पास कभी आ नहीं सकती, क्योंकि शैतान उनके पास नहीं आता। हैरानी, बीमारी, खीज़, चिंता, दुःख, क्लेश ये सब पाप की, शैतान की देन हैं। जब आदमी देवता बन गया तो ये सब संताप चले गए। देवता दिव्य होता है, खूबसूरत होता है, जवान होता है, हर आदमी की जरूरतें पूरी करता है। देवता बड़ा जबर्दस्त होता है और हर भारतीय नागरिक किसी जमाने में देवता था। कब से था? जब से वह ताप हाथ में आया, जिसे मैं ज्ञान का ताप कहता हूँ, विद्या का ताप कहता हूँ और दूसरे शब्दों में गायत्री का ताप कहता हूँ। इसके आते ही आदमी देवता बन गया, निहाल हो गया। उस समय धन-दौलत तो कम थी, पर प्रसन्नता-संतोष ज्यादा था और वही सबसे बड़ी संपत्ति है। तब अपेक्षाकृत गरीबी थी, लेकिन गरीब होते हुए भी मनुष्य कितना सुखी, कितना मोहब्बत, दुलार, सहयोग सुख से भरा था मैं आपको क्या बताऊँ मित्रो! सौ वर्ष से अधिक जिंदा रहते थे लोग, क्योंकि मजेदार जिंदगी थी। आज हमारी आत्मा इनकार करती है, कहती है हम जिंदा नहीं रहना चाहते। आत्मा जब कभी नाखुश होती है तो शरीर कहता है कि ठीक है आप जाइए जैसी आपकी मर्जी हो। आत्मा चली जाती है, जल्दी मर जाती है, शरीर किसी तरह जिंदा रहता है? आत्माविहीन जिंदगी—यह बड़ी घिनौनी जिंदगी है जो जी रहा है आज का आदमी। इसमें भीतर सब कुछ जलता रहता है, रोम-रोम, नस-नस, अन्तःकरण जलते रहते हैं। कोई भी ठंडी चीज इस आग को मिटा नहीं सकती। मित्रो! पुराने जमाने को मैं याद करता हूँ तो यह बात सही मालूम पड़ती है। ‘‘स्वर्गादपि गरीयसी’’ स्वर्ग से श्रेष्ठ यह भूमि किसी जमाने में रही होगी, मैं यह विश्वास करता हूँ। न बस थी, न टेलीफोन थे, किन्तु फिर भी स्वर्गादपि गरीयसी थी। स्वर्ग किसे कहते हैं? जहाँ आदमी रहते हैं और आदमी-आदमी के बीच वे रिश्ते होते हैं, जिन्हें देखकर आदमी की हिम्मत बँध जाती है, धीरज बँध जाता है। मेहमान को ‘‘अतिथि देवोभव’’ कहकर घर में सम्मान से बिठाया जाता था। आज तो यदि अतिथि आ जाएँ तो आप सावधान रहना। उसे ठहरने मत देना। सारी आफत मचा देगा वह। होशियार रहना उससे। कहना—‘‘भाई साहब आप होटल में ठहरिए।’’ अतिथि आपके घर ठहरने लगा तो आपकी बहिन-बेटियों का कोई ठिकाना नहीं। मित्रो! आज जीवन नरक बन गया है, क्योंकि सामान बहुत है, पैसा बहुत है पर उसका उपयोग करने की अक्ल देने वाली विद्या कहीं नहीं। वह विद्या, वह ज्ञान जिससे खुशहाली आती थी, जिसे संक्षेप में गायत्री मंत्र कहते हैं।
ब्रह्माजी का दिया हुआ यह हथियार गायत्री मंत्र जिस दिन से मनुष्य जाति को मिला, उसी समय से उसे ज्ञान, चैन, संतोष, नैतिकता, प्रेम, सहयोग मिलने का सिलसिला चालू हो गया। यह इनसान की जिंदगी में सौभाग्य का दिन था। उसी ने आपको, हमको, सबको एक धागे से जोड़ रखा है। हम सबको एक धागे में पिरो दिया है। ब्रह्माजी ने वेदों के ज्ञान के रूप में ऋषियों को यह विभूति दी और वही गायत्री अब युगशक्ति बनने जा रही है। इसी गायत्री का छोटा वाला रूप है ‘‘प्रतीक पूजा।’’ क्या होती है प्रतीक? बेटा! प्रतीक उसे कहते हैं, जिसमें किसी चीज का छोटा-सा रूप सामने रख देते हैं, यह प्रतीक कहलाता है। प्रतीक नमूने को कहते हैं। जैसे आप हमारा फोटो ले जाएँ। फोटो को आप माला चढ़ा दें। क्या है यह? यह प्रतीक पूजन है। वस्तुतः कागज में कुछ भी नहीं है। कागज के पीछे जो व्यक्ति है, उसमें आपकी गहन श्रद्धा को कायम रखने के लिए प्रतीक पूजन करते हैं। गायत्री की प्रतीक पूजा वह है जो हमने आपको आज से तीस साल पहले सिखाई थी। हमने यह बताया था आपको कि कैसे पंचपात्र हाथ में लेकर आचमन करना चाहिए, चोटी में गाँठ लगानी चाहिए। चौकी पर एक तस्वीर रखकर धूप, दीप, रोली, अक्षत चढ़ाना चाहिए। माला जपनी चाहिए। यह क्या था? यह प्रतीक था। यह आपने क्यों कराया? प्रतीक इसलिए कराया कि आपको उसकी बारीकियाँ, गहराइयाँ समझने का मौका मिले। हमें जानकारी बनी रहे कि गायत्री मंत्र क्या है, कितना महान है। घड़ी हमें अपने कर्तव्यों का भान कराने के लिए घंटे बजाती है, इसी तरह हम आप से कहते थे कि रोजाना पूजन करना चाहिए। आपकी भौतिक व आध्यात्मिक प्रगति इस पर टिकी हुई है, इसीलिए हमने आपसे नियमित गायत्री का जप करने को कहा। किन्तु यदि आपने गायत्री मंत्र की क्षमताएँ व उसके भीतर छिपे रहस्य नहीं जाने तो क्या कहेंगे? मैं उसे नित्य कर्म करूँगा। नित्य कर्म उन बहुत कामों को कहते हैं जो रोज करना जरूरी हैं। यदि आप रोज नहाएँ तो क्या बाल-बच्चे हो जाएँगे, रुपया मिल जाएगा? नहीं बेटे, हम वायदा नहीं कर सकते। आपकी मर्जी है आप रोज नहाएँ। चाहे न नहाएँ। नहीं नहाएँगे तो बीमार पड़ेंगे। पर नहाने से कोई पुण्य मिलेगा, यह भी जरूरी नहीं है। इसे नित्य कर्म कहते हैं। रोज मन पर छाने वाली धूल को, गंदगी को साफ करने के लिए गायत्री मंत्र के उस स्वरूप की जरूरत है, जिसे हम प्रतीक पूजा कहते हैं। वह काफी है और उसका महत्त्व वहीं तक है।
अगला वाला महत्त्व फिर शुरू होता है। उसी की आज सबसे बड़ी जरूरत है। ऐसा साहस देने वाला है यह गायत्री का अगला वाला स्वरूप, जो आदमी को व्यक्तित्ववान बनाता है, महापुरुष बनाता है, ज्ञानवान बनाता है, तपस्वी बनाता है। गायत्री मंत्र जिसे हम याद करते हैं, बार-बार कहते हैं, हमें बताता है कि गयः का वरण करने वाली गायत्री। गय कहते हैं प्राणों को। इसका एक ही मतलब है कि जब कभी गायत्री मनुष्य के जीवन में प्रवेश करती है, उसके अन्दर प्राण भर देती है, जीवट भर देती है। जीवट वह है जो अंदर से कुछ कर गुजरने की उमंग पैदा करती है। गायत्री व्यक्तिगत जीवन को समुन्नत बनाती है, खुशहाल बनाती है, समृद्ध बनाती है, दीर्घजीवी तथा मजबूत बनाती है। ऐसी गायत्री सिखाती है कि दौलतमंद तो बनो, पर अंदर की हिम्मत भी इकट्ठी करो तभी दौलत का सही उपयोग कर सकोगे। पैसा कभी भी ताकत नहीं बन सकता। ताकत कौन-सी? वह जो आदमी का व्यक्तित्व है, उसके भीतर का दृष्टिकोण है, वह ताकत। आज जो आदमी कमजोर होता चला जा रहा है, ज्ञान के हिसाब से, समृद्धि के हिसाब से, व्यक्तित्व के हिसाब से, तो एक ही चीज की जरूरत थी और वह थी हमारे भीतर प्राण-शक्ति की। प्राणों का विस्तार करने के लिए, अंदर की ताकत बढ़ाने के लिए हम गायत्री का विस्तार करते हैं, आपसे गायत्री का जप करने को कहते हैं।
गायत्री एक साइंस है। एटम की साइंस से भी बड़ी ताकत है। यह ऐसी शक्ति है जो सारी मनुष्य जाति ही नहीं, प्राणी मात्र ही नहीं, सारे ब्रह्माण्ड से सम्बन्ध रखती है। ऐसी ताकत है, जो आदमी के भीतर उमंगों के रूप में, आदर्शों के रूप में, श्रेष्ठताओं के रूप में आती है व जीवन का कायाकल्प करती चली जाती है। इसी गायत्री के अवतार की बात हम आपसे कह रहे थे। कह रहे थे, युगशक्ति का अवतार होने जा रहा है। कैसे होगा? यह होगा छोटे-छोटे मनुष्यों की चेतना के विकास के रूप में। चेतना का विकास अगले दिनों होकर रहेगा। मनुष्य जाति के भाग्य का फैसला होकर रहेगा। इनसान के अंदर का फिर देवता पैदा होगा, भगवान् पैदा होगा। मानव में देवत्व आएगा और धरती पर स्वर्ग आएगा। हर व्यक्ति अपने सामाजिक जीवन में हिस्सा बँटाएगा।
इनसान अपने आप तक सीमित नहीं रह सकता अब। इनसान सामाजिक प्राणी है इसलिए उसे समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। पीड़ा और पतन यह दो कसौटियाँ भगवान ने दी हैं, इनसान की परख करने के लिए। व्यवहार की पीड़ा और बौद्धिक पतन मनुष्य का कम करने में हम क्या मदद कर सकते हैं? यह भगवान हमसे पूछता है। आप कर सकते हैं तो आप अच्छे इनसान हैं और खरे सोने के समान हैं। यही खुशहाली लाने वाला, मानव मात्र को एक बनाने वाला, तीसरा वाचा चरण है, जिसके ऊपर नवयुग की आधार-शिला रखी जाने वाली है।
मित्रो! इस समय मनुष्य जाति के भाग्य का उदय होने वाला है। इनसान फिर सिर उठाकर चलेगा। इनसान का गर्दन झुकाकर चलना मुझे पसन्द है। आदमी की कमर झुकी हो तो कोई बात नहीं, किन्तु सिर झुका हुआ नहीं रहना चाहिए। आग की लौ की तरह से, अग्नि देव की लपटों के तरीके से आदमी होगा, युगशक्ति का चमत्कार होगा तो कमजोर से कमजोर आदमी में इतनी हिम्मत, इतनी ताकत आ जाएगी कि वह सिर उठाकर चलना सीख लेगा। युगशक्ति का अवतार अर्थात् एक ऐसी जीवट का पैदा होना है, जिसमें सिद्धान्तों की और आदर्शों के परिपालन की बहादुरी आदमी में पैदा हो सके। दूसरा चमत्कार होने जा रहा है धरती पर स्वर्ग के अवतरण का। धरती स्वर्ग बनने जा रही है। जिसमें आदमी, आदमी से प्यार करना सीखेगा। प्यार के साथ सहयोग भी करेगा। सहयोग और प्यार जब साथ-साथ रहें तो मैं समझता हूँ कि धरती पर स्वर्ग आ गया, खुशहाली आ गई। गरीबी रहेगी तो रहे, कोई हर्ज की बात नहीं है, किन्तु कृपणता नहीं रहनी चाहिए। संतों में से हर एक के पास गरीबी थी, पर वे कृपण नहीं थे। गरीबी से आदमी दुःखी नहीं होता। दुःखी कृपणता से होता है। कृपण कौन? तंगदिल, प्यार-मोहब्बत न बाँटकर संकीर्णता फैलाने वाला दरिद्र व्यक्ति जो बाहर से न सही, चिंतन की दृष्टि से दरिद्र है।
आप प्यार बाँटेंगे तो बदले में प्यार मिलेगा। आप बच्चों को प्यार नहीं दे सके इसीलिए आप बच्चों के प्यार से महरूम हैं, आपने बाप को प्यार दिया नहीं, इसलिए आप उनके आशीर्वाद से महरूम रह गए। आपने समाज के कर्तव्यों का पालन किया नहीं, इसलिए आपकी समाज ने उपेक्षा की, कोई सहायता नहीं की। प्यार से ही सहयोग मिलता है, सम्मान मिलता है। ऐसी धरती की कल्पना, मित्रो! मैं करता हूँ जिसमें सब एक-दूसरे के साथ प्यार व सहकार करेंगे। कब? जब जन-जन तक गायत्री का संदेश पहुँचेगा तब। लेकिन गायत्री एकाकी नहीं है। गायत्री ज्ञान-पक्ष है और यज्ञ उसका कर्म-पक्ष है। ज्ञान एकाकी नहीं हो सकता। एकाकी ज्ञान में कोई दम नहीं है। एकाकी ज्ञान पंडितों के पास होता है, फिलॉसफरों के पास होता है। ज्ञान और कर्म का समन्वय होना चाहिए। इसीलिए आपके समक्ष इस साधना स्वर्ण जयंती वर्ष में हमने एक कार्यक्रम सुपुर्द किया है कि इस तत्त्वज्ञान को घर-घर पहुँचाने का जिम्मा उठाएँ। हम आपको बदले में इनाम देंगे। दौड़ लगा कर दिखाइए, इनाम पाइए। नहीं साहब, वैसे ही दे दीजिए। नहीं मित्रो! भगवान, इस युग में जितनी भी देवात्माएँ हैं, उन्हें कुछ उपहार देना चाहता है। इतिहास की भूमिका में आपके लिए यह एक सुनहरा मौका है। इसके बाद युगों-युगों तक ऐसा मौका नहीं आने वाला। गाँधी फिल्म आई थी। उसमें नमक सत्याग्रह वालों को जाते हुए हम देखते रहे। यह महादेव भाई जा रहे हैं, यह प्यारे लाल जा रहे हैं, यह हरिभाऊ उपाध्याय जा रहे हैं। हम नाबालिग थे अतः नहीं जा पाए। हम पछताते रह गए। आए हुए समय को चूकने वाला पछताता ही रहता है। अब आप जेल जाएँगे तो स्वतंत्रता सेनानी को न पेंशन मिलेगी, न मिनिस्टर का पद। वह जो समय आया था न, वह चूक गए। अब कुछ नहीं हो सकता।
मैंने आपको इस समय इसलिए बुलाया कि यह चूकने का समय नहीं है। खाने-कमाने के लिए पूरी जिंदगी आपकी है। सारी जिंदगी थी व जो आपकी बची हुई है, वह भी उसी में लगने वाली है। यह एक महत्त्वपूर्ण समय है, युग-परिवर्तन का समय है। इसमें आपका सहयोग बन सके तो उन कार्यों को करिए जो भगवान से हमारे गुरुदेव के सुपुर्द किए और हमारे गुरुदेव ने हमें सुपुर्द किए। हम आपके सुपुर्द करना चाहते हैं ताकि सारे संसार में गायत्री मंत्र का विस्तार हो। यह मात्र हिन्दुओं तक सीमित न रहे। यह ब्राह्मणों का मंत्र मात्र बनकर न रह जाए बल्कि विश्वमानव का मंत्र बने। कभी यह गायत्री वेदमाता थी। कब थी? जब वह ज्ञान के रूप में, आग के रूप में, तप के रूप में अवतरित हुई थी। अब क्या हो गई? अब यह नाम बदल गया। अब वह देवमाता हो गईं, देवत्व जिनके रोम-रोम में उतर जाए उनकी माता और अब बनने जा रही हैं—विश्वमाता। विश्वमाता से क्या मतलब है? विश्वमाता से मतलब है सारा विश्व एक नए आधार पर एक होने जा रहा है। एक नई संस्कृति आ रही है। एक नया सार्वभौम धर्म आ रहा है। सारी दुनिया इस एक ही केन्द्र के ऊपर इकट्ठी होने जा रही है, बँधने जा रही है। एक आचार-संहिता में मातृभाव में बँधने जा रहे इस विश्व के निर्माण में आपकी भागीदारी हो, इसके लिए आपको मैं इस महापुरश्चरण में, धर्मानुष्ठान में भागीदारी करने के लिए आमंत्रित करता हूँ।
मैंने उज्ज्वल भविष्य के सपने देखे और सबको दिखाए हैं। मैं उन लोगों में से नहीं हूँ जो सतत डराते रहते हैं। सूरज की तबाही दुनिया की तबाही। नहीं मित्रो! भगवान की तबाही कभी नहीं आएगी, खुशहाली की तबाही कभी नहीं आएगी। आएगा तो अब उज्ज्वल भविष्य और धरती पर स्वर्ग व आधार बनेगा मानव में देवत्व। कैसे? गायत्री के तत्त्वज्ञान से, भारतीय संस्कृति के अनुगमन से। आप समय रहते उससे जुड़ सकें, औरों को जोड़ सकें, इससे बड़ी समझदारी और क्या हो सकती है? मेरी बात समाप्त।
॥ॐ शान्तिः॥