उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
मेरे पिताजी गायत्री मंत्र की दीक्षा दिलाने के लिए मुझे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में महामना मालवीय जी के पास ले गए। महामना मालवीय जी और हमारे पिता सहपाठी थे। उनका विचार था कि लड़के का यज्ञोपवीत संस्कार और गायत्री मंत्र की दीक्षा महामना मालवीय जी से कराई जाए। पिताजी मुझे वहीं ले गए, तब मैं दस-ग्यारह वर्ष का रहा होऊँगा। मालवीय जी के मुँह से जो वाणी सुनी, वह अभी तक मेरे कानों में गूँजती है। हृदय के पटल और मस्तिष्क पर वह जैसे लोहे के अक्षरों से लिख दी गई, जो कभी मिट नहीं सकेगी। उनके शब्द मुझे ज्यों के त्यों याद हैं, जिसमें उन्होंने कहा था—‘‘भारतीय संस्कृति की जननी गायत्री है। यज्ञ भारतीय धर्म का पिता है। इन माता-पिता की हम सभी को श्रवण कुमार की तरह कंधे पर रखकर सेवा करनी चाहिए।’’
गायत्री मंत्र बीज है और इसी से वृक्ष के रूप में सारा का सारा भारतीय धर्म विकसित हुआ है। बीज छोटा-सा होता है बरगद का और उसके ऊपर वृक्ष इतना बड़ा विशाल होता हुआ चला जाता है। गायत्री मंत्र से चारों वेद बने। वेदों के व्याख्यान स्वरूप ब्रह्माजी ने, ऋषियों ने और ग्रंथ बनाए, उपनिषद् बनाए, स्मृतियाँ बनाईं, ब्राह्मण, आरण्यक बनाए। इस तरह हिन्दू धर्म का विशालकाय वाङ्मय बनता चला गया। हिन्दू धर्म की जो कुछ भी विशेषता दिखाई पड़ती हैं—साधनापरक, ज्ञानपरक अथवा विज्ञानपरक, वह सब गायत्री के बीज से ही विकसित हुई हैं। सारे का सारा विस्तार गायत्री बीज से ही हुआ है। बीज वही है, टहनियाँ बहुत सारी हैं। हिन्दू धर्म में चौबीस अवतार हैं। ये चौबीस अवतार क्या हैं? एक-एक अक्षर गायत्री का एक-एक अवतार के रूप में, उनके जीवन की विशेषताओं के रूप में, उनकी शिक्षाओं के रूप में है। हर अवतार एक अक्षर है गायत्री का, जिसमें क्रियाएँ और लीलाएँ करके दिखाई गई हैं। उनके जीवन का जो सार है वही एक-एक अक्षर गायत्री का है।
हिन्दू धर्म के दो अवतार मुख्य हैं—एक का नाम राम और दूसरे का नाम कृष्ण है। राम चरित का वर्णन करने के लिए बाल्मीकि रामायण लिखी गई, जिसमें 2400 श्लोक हैं और प्रति 1000 श्लोक के पीछे सम्पुट लगा हुआ है गायत्री मंत्र के एक अक्षर का। श्रीकृष्ण चरित भागवत् में लिखा है। श्रीमद्भागवत् में भी चौबीस हजार श्लोक हैं और एक हजार श्लोक के पीछे गायत्री मंत्र के एक अक्षर की व्याख्या एक हजार श्लोकों में। रामचरित हो अथवा कृष्णचरित—दोनों का गायत्री का वर्णन इस रूप में मालवीय जी ने किया कि मेरे मन में बैठ गया कि यदि ऐसी विशाल गायत्री है, तो मैं खोज करूँगा। उसका और अनुसंधान करके लोगों को यह बताकर रहूँगा कि ऋषियों की बातें, शास्त्रों की बातें सही हैं क्या? स्तुता मया वरदा..............कामधेनु, पारस, कल्पवृक्ष आदि जो लाभ गायत्री उपासना के बताए गए हैं, उसके लिए मुझे जिंदगी का जुआ खेलना ही पड़ेगा और खेलना ही चाहिए। मित्रो! चार-पाँच वर्ष में ही मेरी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी। मेरे गुरु मेरे पास आए और उन्होंने जो बातें बताईं उससे जिंदगी का मूल्य मेरी समझ में आ गया। जिंदगी का मूल्य और महत्त्व समझकर मैं चौंक पड़ा कि चौरासी लाख योनियों में घूमने के बाद मिलने वाली यह जिंदगी मखौल है क्या? इसके पीछे महान उद्देश्य छिपे हुए हैं। भगवान् ने यह मौका दिया है। एक, इनसानी जिंदगी हमारे हाथ में देकर के। पर क्या हम और इसका इस्तेमाल कर पाते हैं?
मालवीय जी ने मुझे सबसे कीमती एक ही बात बताई थी कि गायत्री मंत्र का संबल आप पकड़ लें तो पार हो सकते हैं। वे मेरे दीक्षा गुरु हैं और आध्यात्मिक गुरु वे हैं, जो हिमालय पर रहते हैं। उन्होंने बताया कि जिंदगी की कीमत मैंने पूरी तरीके से वसूल कर ली है। एक-एक साँस को इस तरीके से खर्च किया है कि कोई यह इल्जाम मुझ पर नहीं लगा सकता कि आपने जिंदगी के साथ मखौल किया है, दिल्लगीबाजी की है। जीवन-देवत पारस है, अमृत है और कल्पवृक्ष है। इसका ठीक से इस्तेमाल करता हुआ मैं चला गया और वहाँ से चलते चलते अभी पचपन साल की मंजिल पूरी करने में समर्थ हो गया। क्या-क्या किया? कैसे पाया? मैं चाहता हूँ कि चलते-चलते आपको अपने भेद और रहस्य बताता जाऊँ कि गायत्री मंत्र कितना सामर्थ्यवान है? यह इतना कीमती है कि मात्र माला घुमाने की कीमत पर इसके लाभ नहीं प्राप्त किए जा सकते। इसके लिए कुछ ज्यादा ही कीमत चुकानी पड़ेगी।
ऋषि, गायत्री मंत्र के बारे में क्या कहते हैं? शास्त्रकारों ने क्या कहा है? यह जानने के लिए मित्रो, मैंने पढ़ना शुरू किया और पढ़ते-पढ़ते सारी उम्र निकाल दी। पढ़ने में क्या-क्या पढ़ा? भारतीय धर्म और संस्कृति में जो कुछ भी है वह सब पढ़ा। वेद पढ़े, आरण्यक पढ़ीं, उपनिषदें पढ़ीं, दर्शन पढ़े और दूसरे ग्रन्थ पढ़ डाले-देखूँ तो सही गायत्री के बारे में ग्रंथ क्या कहते हैं। खोजते-खोजते सारे ग्रंथों में जो पाया, उसे नोट करता चला गया। पीछे मन में यह आया कि जैसे मैंने फायदा उठाया है, दूसरे भी फायदा उठाएँ। असल में मैंने ग्रंथों को, ऋषियों की मान्यताओं को जानने के लिए पढ़ा और पढ़ने के साथ-साथ मैंने यह प्रयत्न भी किया कि जो कोई गायत्री के जानकार हैं, उनसे जानूँ कि गायत्री क्या है? और प्रयत्न करूँ कि जिस तरीके से खोज और शोध उन्होंने की थी, उसी तरीके से मैं भी खोज और शोध करने का प्रयत्न करूँ।
मैंने पढ़ा है कि एक आदमी बहुत पहले हुआ था जिसने गायत्री में पी-एच.डी. और डी. लिट् किया था? कौन था? उसका नाम था—विश्वामित्र। विश्वामित्र उस व्यक्ति का नाम है, जिसको जब हम संकल्प बोलते हैं तो हाथ में जल लेकर गायत्री मंत्र से पहले विनियोग बोलना पड़ता है। आपको तो हमने नहीं बताया। जब आप आगे-आगे चलेंगे, ब्रह्मवर्चस की उपासना में चलेंगे, तब हम गायत्री के रहस्यों को भी बताएँगे। अभी तो आपको सामान्य बालबोध नियम भर बताए हैं। जो गायत्री महाविज्ञान में छपे हैं। बालबोध नियम जो सर्वसाधारण के लिए हैं, उतना ही छापा है, लेकिन जो जप हम करते हैं, उसमें एक संकल्प भी बोलते हैं, जिसका नाम है ‘विनियोग।’ प्रत्येक बीज मंत्र के पूर्व एक विनियोग लगा रहता है। विनियोग में हम तीन बातें बोलते हैं—‘गायत्री छंदः सविता देवता विश्वामित्र ऋषिः गायत्री जपे विनियोगः।’ संकल्प जल छोड़ करके तब हम जप करते हैं। यह क्या हो गया? इसमें यह बात बताई गई है कि गायत्री का पारंगत कौन आदमी था? गायत्री का अध्ययन किसने किया था, गायत्री की जानकारियाँ किसने प्राप्त कीं, गायत्री की उपासना किसने की? वह आदमी जो कि प्रामाणिक है गायत्री के सम्बन्ध में उसका नाम विश्वामित्र है। मेरे मन में आया कि क्या मेरे लिए ऐसा संभव नहीं कि विश्वामित्र के तरीके से प्रयास करूँ। मित्रो! मैं उसी काम में लग गया। पंद्रह वर्ष की उम्र से उन्तालीस तक चौबीस वर्ष बराबर एक ही काम में लगा रहा, लोग पूछते रहे कि यह आप क्या किया करते हैं हमें भी कुछ बताइए। हमने कहा—प्रयोग कर रहे हैं, रिसर्च कर रहे हैं और रिसर्च करने के बाद में कोई चीज काम की होगी तो लोगों को बताएँगे कि आप भी गायत्री की उपासना कीजिए, नहीं होगी तो मना कर देंगे।
मित्रो! 24 साल की उपासना के पश्चात्, संशोधन के पश्चात तीस साल और हो गए जब से गायत्री के प्रचार का कार्य हमने लिया और जब हमको हमारी जीवात्मा ने यह आज्ञा दी कि यह काम की चीज है, उपयोगी चीज है, लाभदायक चीज है। इसको लोगों को बताया जाना चाहिए और समझाया जाना चाहिए। जो जितना अधिकारी हो उसे उतनी ही खुराक दी जानी चाहिए। हम उपासना सिखाते रहे हैं, छोटी खुराक वालों को छोटी मात्रा देते रहे हैं, बड़ों को बड़ी मात्रा। हमने छोटे बच्चों को दूध में पानी मिले हुए से लेकर बड़ों को घी और शक्कर मिली हुई खुराक तक विभिन्न लोगों को दी है तीस सालों में। इन तीस सालों में हमारा विश्वास अटूट होता चला गया है, श्रद्धा मजबूत होती चली गई है। यह वह संबल है, वह आधार है कि अगर ठीक तरीके से कोई पकड़ सकने में समर्थ हो सकता हो तो उसके लिए नफा ही नफा है, लाभ ही लाभ है।
गायत्री के जो सात लाभ बताए गए हैं—‘‘स्तुता मया वरदा वेदमाता, प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानां, आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्..........।’’ इन्हें हमने सौ फीसदी पाया कि ये सातों के सातों लाभ एक-एक अक्षर करके इसमें सही हैं। यह हमने अपने जीवन की प्रयोगशाला में साबित किया है, अपनी जिंदगी में परीक्षण किया है कि सातों लाभ जो गायत्री के बताए गए हैं, सही हैं। इससे मनुष्य की आयु बहुत बड़ी हो जाती है। कितनी बड़ी हो जाती है? बेटे हम कुछ नहीं कह सकते, पर हमारे गुरु के बारे में अपना विश्वास है कि उनकी आयु 600 वर्ष से कम नहीं हो सकती। गायत्री मंत्र का जप करने वाले की आयु बहुत बड़ी हो सकती है। यह तो आप अपने गुरु की बता रहे हैं तो फिर आपकी उम्र कहाँ रही? बेटे, हमारी उम्र बहुत बड़ी है।
70 वर्ष उम्र होने को आई, पर सही बात यह है कि 70 साल हमारी उम्र नहीं है। हम 350 वर्ष के हैं। 70*5=350। आप 350 वर्ष के कैसे हो सकते हैं? हम इसलिए हुए कि पाँच आदमी मिलकर के जितना काम करते हैं, उतना काम हमने अपनी जिंदगी में अकेले किया। ग्रंथ हमने जितने लिखे हैं, अगर एक आदमी जिंदगी में लिखने के अलावा दूसरा कोई काम नहीं करे तो भी नहीं कर सकता और हमने क्या किया? सारी जिंदगी भर एक आदमी तप करता रहा है। जिंदगी के अधिकांश समय में हमारा 6 घंटे रोज दैनिक उपासना में चला गया। इस तरह एक आदमी ने पूरा का पूरा श्रम गायत्री उपासना में किया।
एक आदमी ने संगठन किया है। हमने देशभर का संगठन किया है। हिन्दुस्तान में और सारे संसार में जो लोग हमको गुरुजी कहते हैं और जिन्होंने हमें देखा है, जो हमारी बात को सुनते हैं, मानते हैं, जिन्होंने दीक्षा ली है, वे करोड़ों की तादाद में हो सकते हैं। एक आदमी ने इतना बड़ा संगठन 30 साल में खड़ा किया हो, मैं समझता हूँ हिस्ट्री में ऐसा उदाहरण कभी नहीं मिला होगा। मरने के बाद तो लोगों ने किए हैं। ईसा के मरने के बाद सेंटपाल ने ईसाई धर्म का विस्तार किया था तब फैला था वह धर्म। बुद्ध भगवान् का मिशन उनकी जिंदगी में नहीं फैल सका, बहुत थोड़ा-सा था। सम्राट अशोक ने अपना सारा राज्य बुद्ध मिशन के लिए लगाया, तब कहीं उसका विस्तार हुआ। 30 साल हमने विस्तार की व्यवस्था बनाई है और कोई एक आदमी रह गया है, जो हमेशा कहीं और दुनिया में रहता है। संतों के पास रहता है, ज्ञानियों के पास रहता है, तपस्वियों के पास रहता है। उनसे हम गर्मी प्राप्त करते रहते हैं, शक्ति प्राप्त करते रहते हैं, पूछताछ करते रहते हैं। एक आदमी और हमारा है जो जगह-जगह जाता रहता है। अक्सर लोग कहते हैं कि क्यों साहब हमने सुना है कि आप वहाँ के यज्ञ में गए थे और लोगों ने देखा था। यह भी हो सकता है। स्थूल ही नहीं, शरीर सूक्ष्म भी होते हैं। सूक्ष्म शरीर से हमको जगह-जगह जाना पड़ता है। जगह-जगह काम करने पड़ते हैं। पाँच व्यक्तियों की हमने बराबर जिंदगी जी और 350 वर्ष की उम्र हो गई। यह है हमारी आयु।
प्राण। प्राण माने साहस-हिम्मत। हममें बहुत हिम्मत है। कितनी हिम्मत है? सारे के सारे पंडित और पुरातनवादी लोग यह कहते थे कि महिलाओं को गायत्री का जप नहीं करना चाहिए और ब्राह्मण के अलावा किसी को नहीं करना चाहिए। हम अकेले ने कहा कि हर बिरादरी के लोग कर सकते हैं और महिलाएँ भी कर सकती हैं। पंडितों, शंकराचार्यों सभी से हमने लोहा लिया। सारी दुनिया में उल्टी हवाएँ बह रही हैं, प्रवाह बह रहे हैं उनको मोड़ देने के लिए हममें बहुत ताकत है। इतनी ताकत है हममें कि जिस तरीके से मछली बहती हुई धारा को छल-छलाती हुई चीरती हुई चली जाती है, उसी तरीके से हम अकेले निकल जाते हैं।
कहाँ से आता है प्राण? गायत्री में से आता है। गायत्री ने और क्या-क्या दिया? हमको दीर्घजीवन दिया, लम्बी आयु दी, प्राण दिया, हिम्मत दे दी, बहादुरी और साहस दे दिया, शक्ति दे दी। प्राणं, प्रजां और संतानें दे दीं। कितनी संतानें दीं, हम कह नहीं सकते? हमारी संतानें जहाँ पैदा होती हैं तो मूछों समेत पैदा होती हैं और लड़कियाँ पैदा होती हैं तो मैट्रिक पास करके पैदा होती हैं। कीर्ति-यश के बारे में हमारे मुँह से शोभा नहीं देता। पर हम एक ही बात कहते हैं कि संसार के पढ़े-लिखे लोगों में से कभी किसी से यह पूछें कि आचार्य जी नाम के कोई व्यक्ति थे, तो वह छूटते ही कहेगा हम जानते हैं उन्हें। हिन्दुस्तान ही नहीं, संसार की प्रत्येक लाईब्रेरी में जाइए और जाकर पूछिए कि चारों वेदों के भाष्य आपके यहाँ है क्या? उत्तर हाँ में मिलेगा। नास्तिक देशों की बात मैं कहता हूँ। आप पूछिए क्यों साहब इस नाम के व्यक्ति को आप जानते हैं? हमारा यश किसी सीमा में बँधा नहीं है, संप्रदाय में नहीं है, केवल हिन्दू धर्म में नहीं है, वरन् सारे विश्व में है। यह यश कहाँ से आ गया? यह बेटे गायत्री माता का दिया हुआ है।
कीर्तिम् द्रविणं। धन—यह मत पूछिए कि हमारे पास कितना है? अभी पीछे वाली जमीन खरीदी है और जब अगली बार वसंत पंचमी पर आप आवेंगे तो यहाँ नगर बसा हुआ मिलेगा, महल दिखाई पड़ेगा। महाराज जी कहाँ से लाएँगे? आप हमसे माँगेंगे। नहीं बेटे, मैं तेरे सामने हाथ नहीं फैलाऊँगा। मैंने इनसान के सामने हाथ नहीं पसारा तो तुझसे क्या मागूँगा? कहाँ से आएगा? बेटे कहीं से आएगा, जमीन फटेगी, आसमान से आएगा। कौन देगा? वही देगा जिसके बारे में अथर्ववेद ने साक्षी देते हुए कहा है कि—कीर्तिम्—द्रविणं—धन देने वाली और आखिर में क्या देती है सातवाँ फल—ब्रह्मवर्चस्। ब्रह्मवर्चस् कौन सा है? ब्रह्मवर्चस् कहते हैं तेज को। ब्रह्मतेज कैसा होता है? ब्रह्मतेज उसे कहते हैं—जब विश्वामित्र और वशिष्ठ में संघर्ष हुआ तब विश्वामित्र हार गए और अपना राज्य छोड़कर यह कहने लगे कि वशिष्ठ जितने शक्तिशाली हैं उतना ही शक्तिशाली बनकर मैं भी दिखाऊँगा। उन्होंने एक श्लोक कहा—‘‘धिक् बलं क्षत्रिय बलं ब्रह्मतेजो बलं बलम्।’’ अर्थात् ब्रह्मतेज ही बल है। ब्रह्मवर्चस् माने ब्रह्मतेज। इसे ब्राह्मणत्व का तेज कहते हैं, आध्यात्मिक तेज कहते हैं, आत्मा की शक्ति का तेज कहते हैं। गायत्री का आखिरी फल-सातवाँ फल ब्रह्मवर्चस् होता है।
गायत्री मंत्र के बारे में हम सारे जीवन भर प्रयत्न करते रहे और सफलता पा ली। आज मैं यह कहने की स्थिति में हूँ कि ऋषियों ने जो कुछ बताया था कि गायत्री भारतीय संस्कृति का बीज है, जो वह सही है। जो शास्त्रकारों ने लिखा है, अन्यान्य उपासकों ने लिखा है, हम आज यह कहने की स्थिति में हैं कि वह सही है। आप कहते हैं या कोई गवाही भी है? हाँ बेटे, हमारी जिंदगी गवाही है और प्रारंभिक पंद्रह वर्ष के बाद के 55 साल के 55 पन्ने गवाही हैं। हमारी जिंदगी के प्रत्येक पन्ने को खोलते चले जाइए वह एक गवाह के रूप में अपना बयान देगा और अपनी हिस्ट्री बताएगा। वह यह बताएगा कि गायत्री की उपासना करते हुए 55 साल में हमने यह पाया और यह किया। तो महाराज हमें भी मिल सकती है? इसलिए तो तुम्हें बुलाया है। जो हमारे लिए सम्भव है, वह आपके लिए भी है। गायत्री आपके ऊपर भी कृपा कर सकती है। सूरज के हम रिश्तेदार नहीं हैं और आपसे कोई वैर नहीं है। आप धूप में खड़े हो जाइए सूरज की रोशनी आप को भी मिल सकती है और हमको भी। चन्द्रमा की छाया में आप भी बैठ सकते हैं और हम भी।
तो आपने कौन-सी विधि से जप किया? कौन-सी विधि से उपासना की? बेटे! हम यही बताने के लिए आज आपके सामने बैठे हैं कि किस विधि से किया? विधि नहीं एक और बात पूछी जाए। क्या? विधि तो उसे कहते हैं, जो शरीर से और वस्तुओं की सहायता से, हेरा-फेरी से की जाती है। विधि में हाथ यों जोड़िए, चावल ऐसा नहीं यों रखिए। माला लकड़ी की हो या रुद्राक्ष की। दीपक कैसे रखें? यह सब क्या है? विधि है। कलेवर का नाम विधि है। जिस विधि को आप पूजते हैं वह आवरण है। आवरण की भी जरूरत पड़ती है, उसके बिना काम नहीं चलता। अगर हमारे पास कलम न हो तो हम चिट्ठी लिख नहीं सकेंगे। बंदूक और तलवार हाथ में हो, पर चलाने की विधि न आती हो तो लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। अतः विधि की भी जरूरत है। लेकिन मैं यह कहता हूँ कि विधि तक सीमित रहिए मत। विधि आपको मकसद तक नहीं पहुँचा सकेगी। विधि के सहारे आप जीवन-लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकेंगे। विधि आपको भगवान तक नहीं पहुँचा सकेगी। विधि के सहारे आप भगवान् की कृपा के अधिकारी नहीं बन सकते। तब क्या करना पड़ेगा? विधि के साथ विधा को जानना होगा। विधा अर्थात् रीति, कायदा-कानून, नियम और मर्यादा। इसके बिना सफलता नहीं मिल सकती।
ऋषियों ने गायत्री को त्रिपदा कहा है। इसके तीन आधार हैं श्रद्धा, चरित्रनिष्ठा और उदारता जैसे संकीर्णता या कृपणता का त्याग भी कहते हैं। यह तीन आधार आप पकड़ लें तो मैं यकीन दिलाता हूँ कि मेरे तरीके से आपको भी सफलता मिल सकती है। आप भी गायत्री के वैसे ही सिद्धपुरुष बन सकते हैं जैसे कि महर्षि विश्वामित्र थे और जैसा बनने के लिए मैंने छोटे बच्चे की तरह खुद को समर्पित किया। आपके लिए भी द्वार खुला है, मगर त्रिपदा की तीन शर्तें पूरी कर लें तब। इन तीनों आधारों पर हमारी जिंदगी टिकी हुई है अगर आप गायत्री मंत्र का वह चमत्कार, जो कि ऋषियों को मिला था, उपासकों, ब्राह्मणों और हमको मिला है तो इसके लिए आप अपनी श्रद्धा को विकसित कीजिए। चरित्र के बारे में ध्यान रखिए। दोष-दुर्गुणों का त्याग कीजिए और सेवावृत्ति के लिए उदारता से तैयार हो जाइए और यह देखिए कि जनमानस के परिष्कार के लिए आप क्या कर सकते हैं? समय का, श्रम का, धन का, अपनी बुद्धि का कोई हिस्सा लगाने के लिए आप तैयार हैं क्या? कोशिश कीजिए, हिम्मत कीजिए। बीज के तरीके से गलिए और वृक्ष के तरीके से फलिए।
हमने तीन शर्तों पर अपने गुरु से सारी की सारी दौलत, सारा का सारा धन पाया है—श्रद्धा की कीमत पर। पी.एम.टी. की मेडिकल परीक्षा की तरह यह तीन पर्चे हैं कि उदारता की दृष्टि से कितने पैने साबित होते हैं आप। चरित्र की दृष्टि से कितने पवित्र साबित होते हैं। जितने आप नम्बर लाते जाएँगे, उतने परीक्षा में पास होते जाएँगे। उसी हिसाब से, उसी अनुपात से, उसी मात्रा में आप के लिए सफलताएँ, सिद्धियाँ, चमत्कार, अनुदान-वरदान सुरक्षित रखे हुए हैं। टिकट लीजिए, ‘गिव एंड टेक’ दीजिए और लीजिए। मेरे जीवन के सारे के सारे निष्कर्ष और निचोड़ यही हैं। मैं चाहता हूँ कि इनसे आप भी लाभ उठाएँ और गायत्री मंत्र की महिमा को बढ़ाएँ। उपासना के बारे में ऋषियों ने, शास्त्रों ने जो कुछ कहा है, वह साबित करके दिखाएँ। हमने यही साबित करके दिखाने की कोशिश की और आपसे भी यही अपेक्षा करेंगे कि आप जब यहाँ से विदा हों तो वैसा ही साहस, हिम्मत और दृष्टिकोण लेकर जाएँ जिससे वे तीनों आधार जो गायत्री मंत्र को, त्रिपदा को सफल और सार्थक बनाने में समर्थ रहे हैं, वही आपके जीवन में भी आएँ और आप वे लाभ उठाएँ जो प्राचीनकाल के उपासकों ने उठाया था और हमने भी। आज की बात समाप्त।
ॐ शांति।