उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
आप हिमनग हैं, हमें सुरसरि बना दो।
आपके उर की द्रवित, करुणा बहा दो।।
दुष्ट चिंतन से मनुजता, जल रही है।
रिक्तता संवेदना की, खल रही है।।
आस्था के सगर सुत, अभिशप्त से हैं।
आस्था, विश्वास का अमृत पिला दो।।
आप हिमनग हैं . . . . .
जो पराभव में पतन में, जी रहे हैं।
और जो दुर्भावना विष, पी रहे हैं।।
पतित-पावन श्रेष्ठ चिंतन, आप का है।
लोक-मंगल की हमें, अंजुलि बना दो।।
आप हिमनग हैं . . . . .
ज्ञान-गंगा सा उछलने, बढ़ सकें हम।
लोक मंगल साध्य शिव पर, चढ़ सकें हम।।
आज जन मानस घिरा, अज्ञान तम में।
ज्ञान से अभिषेक युग-शिव का करा दो।।
आप हिमनग हैं . . . . .
हर सकें युग-पीर, वह क्षमता हमें दो।
पी सकें युग-वेदना, ममता हमें दो।।
धार फूटें हृदय से, संवेदना की।
भावना भागीरथी को, छल-छला दो।।
आप हिमनग हैं . . . . .