हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे
सहरा किया कभी कभी दरिया किया मुझे
कुछ तो इनायतें हैं मिरे कारसाज़ की
और कुछ मिरे मिज़ाज ने तन्हा किया मुझे
पथरा गई है आँख बदन बोलता नहीं
जाने किस इंतिज़ार ने ऐसा किया मुझे
तू तो सज़ा के ख़ौफ़ से आज़ाद था मगर
मेरी निगाह से कोई देखा किया मुझे
आँखों में रेत फैल गई देखता भी क्या
सोचों के इख़्तियार ने क्या क्या किया मुझे
ब-रंग-ए-ख़्वाब मैं बिखरा रहूँगा / अकरम नक़्क़ाश Akram Nakkash Ghazal
हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे / अकरम नक़्क़ाश Akram Nakkash Ghazal
टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें / अकरम नक़्क़ाश Akram Nakkash Ghazal
ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए‘तिबार फिर / अकरम नक़्क़ाश Akram Nakkash Ghazal
कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में / अकरम नक़्क़ाश Akram Nakkash Ghazal