हमारे श्री विट्ठल नाथ धनी ।
भव सागर ते काढे कृपानिधी राखे शरन अपनी ॥१॥
रसना रटत रहत निशिवासर शेष सहस्त्र फनी ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल त्रिभुवन मुकुट मनी ॥२॥
धन्य श्री यमुने निधि देनहारी / छीतस्वामी
जय जय श्री सूरजा कलिन्द नन्दिनी / छीतस्वामी
सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल / छीतस्वामी
गोवर्धन की सिखर चारु पर / छीतस्वामी
आगे गाय पाछें गाय इत गाय उत गाय / छीतस्वामी
हमारे श्री विट्ठल नाथ धनी / छीतस्वामी
जा मुख तें श्री यमुने यह नाम आवे / छीतस्वामी
भोग श्रृंगार यशोदा मैया / छीतस्वामी
बादर झूम झूम बरसन लागे / छीतस्वामी
गुण अपार मुख एक कहाँ लों कहिये / छीतस्वामी
धाय के जाय जो श्री यमुना तीरे / छीतस्वामी
भई अब गिरिधर सों पैहचान / छीतस्वामी
लाल ललित ललितादिक संग लिये / छीतस्वामी
भोर भए नवकुंज सदन तें / छीतस्वामी