'सुंदर जौ मन थिर रहै, तो मन ही अवधूत॥
मन ही बडौ कपूत है, मन ही बडौ सपूत।
कौडी फिरै उछालतो, जो टुटपूँज्यो होइ॥
सुंदर जाके बित्त है, सो वह राखैं गोइ।
जाके तन पाँचौं बसै, ताकी कैसी आश॥
गज अलि मीन पतंग मृग, इक-इक दोष बिनाश।
SUNDARDAS दोहे / सुंदरदास
गेह तज्यो अरु नेह तज्यो / सुंदरदास
एकनि के बचन सुनत / सुंदरदास
बोलिए तौ तब जब / सुंदरदास
ब्रह्म तें पुरुष अरु / सुंदरदास
सुनत नगारे चोट / सुंदरदास
पति सूँ हीं प्रेम होय / सुंदरदास
तेल जरै बाती जरै, दीपक जरै न कोइ / सुंदरदास