जौं लौं जीवै तौं लौं हरि भजु, और बात सब बादि।
दिवस चारि को हला भला, तू कहा लेइगो लादि॥
मायामद, गुनमद, जोबनमद, भूल्यो नगर बिबादि।
कहि 'हरिदास लोभ चरपट भयो, काहे की लागै फिरादि॥
प्रेम समुद्र रुप रस गहिरे / हरिदास
ज्यौंहिं ज्यौंहिं तुम रखत हौं / हरिदास
डोल झूले श्याम श्याम सहेली / हरिदास
हरि के नाम को आलस क्यों करत है रे / हरिदास
श्री वल्लभ कृपा निधान अति उदार करुनामय / हरिदास
श्री वल्लभ मधुराकृति मेरे / हरिदास
गहौ मन सब रसको रस सार / हरिदास
जौं लौं जीवै तौं लौं हरि भजु / हरिदास
काहू को बस नाहिं तुम्हारी कृपा तें / हरिदास