राम, तुम्हारे इसी धाम में
नाम-रूप-गुण-लीला-लाभ,
इसी देश में हमें जन्म दो,
लो, प्रणाम हे नीरजनाभ ।
धन्य हमारा भूमि-भार भी,
जिससे तुम अवतार धरो,
भुक्ति-मुक्ति माँगें क्या तुमसे,
हमें भक्ति दो, ओ अमिताभ !
1
वह नवनीत कहां जाता है, रह जाता है तक्र ।
पिसो, पड़े हो इसमें जब तक,
क्या अन्तर आया है अब तक ?
सहें अन्ततोगत्वा कब तक-
हम इसकी गति वक्र ?
घूम रहा है कैसा चक्र !
कैसे परित्राण हम पावें ?
किन देवों को रोवें-गावें ?
पहले अपना कुशल मनावें
वे सारे सुर-शक्र !
घूम रहा है कैसा चक्र !
बाहर से क्या जोड़ूँ-जाड़ूँ ?
मैं अपना ही पल्ला झाड़ूँ ।
तब है, जब वे दाँत उखाड़ूँ,
रह भवसागर-नक्र !
घूम रहा है कैसा चक्र !
2
हो जावेगी क्या ऐसी ही मेरी यशोधरा?
हाय ! मिलेगा मिट्टी में यह वर्ण-सुवर्ण खरा?
सूख जायगा मेरा उपवन, जो है आज हरा?
सौ-सौ रोग खड़े हों सन्मुख, पशु ज्यों बाँध परा,
धिक्! जो मेरे रहते, मेरा चेतन जाय चरा!
रिक्त मात्र है क्या सब भीतर, बाहर भरा-भरा?
कुछ न किया, यह सूना भव भी यदि मैंने न तरा ।
3
रिसता है जो रन्ध्र-पूर्ण घट,
भरा हुआ भी रीता है ।
यह भी पता नहीं, कब, किसका
समय कहाँ आ बीता है ?
विष का ही परिणाम निकलता,
कोई रस क्या पीता है ?
कहाँ चला जाता है चेतन,
जो मेरा मनचीता है?
खोजूंगा मैं उसको, जिसके
बिना यहाँ सब तीता है ।
भुवन-भावने, आ पहुंचा मैं,
अब क्यों तू यों भीता है ?
अपने से पहले अपनों की
सुगति गौतमी गीता है ।
4
यही परम पुरुषार्थ हाय !
खाय-पिये, बस जिये-मरे तू,
यों ही फिर फिर आय-जाय ?
अरे योग के अधिकारी, कह,
यही तुझे क्या योग्य हाय !
भोग-भोग कर मरे रोग में,
बस वियोग ही हाथ आय ?
सोच हिमालय के अधिवासी,
यह लज्जा की बात हाय !
अपने आप तपे तापों से
तू न तनिक भी शान्ति पाय ?
बोल युवक, क्या इसी लिए है
यह यौवन अनमोल हाय !
आकर इसके दाँत तोड़ दे,
जरा भंग कर अंग-काय ?
बता जीव, क्या इसीलिए है
यह जीवन का फूल हाय !
पक्का और कच्चा फल इसका
तोड़-तोड़ कर काल खाय ?
एक बार तो किसी जन्म के
साथ मरण अनिवार हाय !
बार-बार धिक्कार, किन्तु यदि
रहे मृत्यु का शेष दाय !
अमृतपुत्र, उठ, कुछ उपाय कर,
चल, चुप हार न बैठ हाय !
खोज रहा है क्या सहाय तू?
मेट आप ही अन्तराय ।
5
मुक्ति हेतु जाता हूँ यह मैं, मुक्ति, मुक्ति, बस मुक्ति !
मेरा मानस-हंस सुनेगा और कौन सी युक्ति हैं
मुक्ताफल निर्द्वन्द चुनेगा, चुन ले कोई शुक्ति ।
महाभिनिष्क्रमण
आज्ञा लूँ या दूं मैं अकाम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
रख अब अपना यह स्वप्न-जाल,
निष्फल मेरे ऊपर न डाल ।
मैं जागरुक हूं, ले संभाल-
निज राज-पाट, धन, धरणि, धाम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
रहने दे वैभव यश:शोभ,
जब हमीं नहीं, क्या कीर्तिलोभ?
तू क्षम्य, करूं क्यों हाय क्षोभ,
थम, थम अपने को आप थाम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
क्या भाग रहा हूँ भार देख ?
तू मेरी और नेहार देख !
मैं त्याग चला निस्सार देख,
अटकेगा मेरा कौन काम ?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
रूपाश्रय तेरा तरुण गात्र,
कह, वह कब तक है प्राण-पात्र?
भीतर भीषण कंकाल मात्र,
बाहर बाहर है टीम-टाम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
प्रच्छन्न रोग हैं, प्रकट भोग
संयोग मात्र भावी वियोग !
हा लोभ-मोह में लीन लोग,
भूले हैं अपना अपरिणाम !
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
यह आर्द्र-शुष्क, यह उष्ण शीत,
यह वर्तमान, यह तू व्यतीत है !
तेरा भविष्य क्या मृत्यु-भीत ?
पाया क्या तूने घूम-घाम ?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
मैं सूंघ चुका वे फुल्ल-फूल,
झड़ने को हैं सब झटित झूल ।
चख देख चुका हूं मैं, समूल-
सड़ने को हैं वे अखिल आम !
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
सुन-सुन कर, छू-धू कर अशेष,
मैं निरख चुका हूँ निर्निमेष,
यदि राग नहीं, तो हाय ! द्वेष,
चिर-निद्रा की सब झूम-झाम !
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
उन विषयों में परितृप्त? हाय !
करते है हम उल्टे उपाय ।
खुजलाऊँ मैं क्या बैठ काय ?
हो जाय और भी प्रबल पाम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
सब दे कर भी क्या आज दीन,
अपने या तेरे निकट हीन?
मैं हूँ अब अपने ही अधीन,
पर मेरा श्रम है अविश्राम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
इस मध्य निशा में ओ अभाग,
तुझको तेरे ही अर्थ त्याग,
जाता हूँ मैं यह वीतराग ।
दयनीय, ठहर तू क्षीण-क्षाम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
तू दे सकता था विपुल वित्त,
पर भूलें उसमें भ्रान्त चित्त ।
जाने दे चिर जीवन निमित्त,
दूं क्या मैं तुझको हाड़-चाम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
रह काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह,
लेता हूँ मैं कुछ और टोह ।
कब तक देखूँ चुपचाप ओह !
आने-जाने की धूमधाम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
हे ओक, न कर तू रोक-टोक,
पथ देख रहा है आर्त्त लोक,
मेटूं मैं उसका दुख-शोक,
बस, लक्ष्य यही मेरा ललाम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
मैं त्रिविध-दु:ख-विनिवृत्ति हेतु
बाँधूं अपना पुरुषार्थ-सेतु,
सर्वत्र उड़े कल्याण-केतु,
तब है मेरा सिद्धार्थ नाम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
वह कर्म-काण्ड-तांडव-विकास,
वेदी पर हिंसा-हास-रास,
लोलुप-रसना का लोल-लास,
तुम देखो ॠग्, यजु और साम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
आ मित्र-चक्षु के दृष्टि-लाभ,
ला, हृदय-विजय-रस-वृष्टि-लाभ ।
पा, हे स्वराज्य, बढ़ सृष्टि-लाभ
जा दण्ड-भेद, जा साम-दाम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
तब जन्मभूमि, तेरा महत्त्व,
जब मैं ले आऊँ अमर-तत्त्व ।
यदि पा न सके तू सत्य-सत्व,
तो सत्य कहां? भ्रम और भ्राम !
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
हे पूज्य पिता, माता, महान्,
क्या माँगूँ तुमसे क्षमा दान ?
क्रन्दन क्यों ? गायो भद्र-गान,
उत्सव हो पुर-पुर, ग्राम-ग्राम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
हे मेरे प्रतिभू, तात नन्द,
पाऊँ यदि मैं आनन्द-कन्द
तो क्यों न उसे खाऊँ अमन्द?
तू तो है मेरे ठौर-ठाम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
अयि गोपे, तेरी गोद पूर्ण,
तू हास-विलास-विनोद पूर्ण !
अब गौतम भी हो मोद पूर्ण,
क्या अपना विधि है आज वाम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
क्या तुझे जगाऊँ एक बार?
पर है अब भी अप्राप्त सार,
सो, अभी स्वप्न ही तू निहार,
हे शुभे, श्वेत के साथ श्याम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
राहुल, मेरे ॠण-मोक्ष, माप !
लाऊँ मैं जब तक अमृत आप,
माँ ही तेरी माँ और बाप,
दुल, मातृ-हृदय के मृदुल दाम !
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
यह घन तम, सन-सन पवन जाल,
भन-भन करता यह काल-व्याल,
मूर्च्छित विषाक्त वसुधा विशाल !
भय, कह, किस पर यह भूरिभाम?
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
छन्दक, उठ, ला निज वाजिराज,
तज भय-विस्मय, सज शीघ्र साज ।
सुन, मृत्यु-विजय-अभियान आज !
मेरा प्रभात यह रात्रि-याम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
वह जन्म-मरण का भ्रमण-भाण,
में देख चुका हूँ अपरिमाण ।
निर्वाण-हेतु मेरा प्रयाण,
क्या वात-वृष्टि, क्या शीत-घाम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
हे राम, तुम्हारा वंशजात,
सिद्धार्थ, तुम्हारी भांति, तात,
घर छोड़ चला यह आज रात,
आशीष उसे दो, लो प्रणाम ।
ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !