दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
बहसें फ़ुजूल थीं यह खुला हाल देर से / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं देते / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
कट गई झगड़े में सारी रात वस्ल-ए-यार की / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
फिर गई आप की दो दिन में तबीयत कैसी / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
जो यूं ही लहज़ा लहज़ा दाग़-ए-हसरत की तरक़्क़ी है / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
किस किस अदा से तूने जलवा दिखा के मारा / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
शक्ल जब बस गई आँखों में तो छुपना कैसा / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
हिन्द में तो मज़हबी हालत है अब नागुफ़्ता बेह / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
दम लबों पर था दिलेज़ार के घबराने से / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
जान ही लेने की हिकमत में तरक़्क़ी देखी / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
ख़ुशी है सब को कि आप्रेशन में ख़ूब नश्तर चल रहा है / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
बिठाई जाएंगी पर्दे में बीबियाँ कब तक / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
हस्ती के शजर में जो यह चाहो कि चमक जाओ / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
चश्मे-जहाँ से हालते अस्ली छिपी नहीं / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए / अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल /रचना
अकबर इलाहाबादी विद्रोही स्वभाव के थे। वे रूढ़िवादिता एवं धार्मिक ढोंग के सख्त खिलाफ थे और अपने शेरों में ऐसी प्रवृत्तियों पर तीखा व्यंग्य (तंज) करते थे। उन्होंने 1857 का पहला स्वतंत्रता संग्राम देखा था और फिर गांधीजी के नेतृत्व में छिड़े स्वाधीनता आंदोलन के भी गवाह रहे। उनका असली नाम सैयद हुसैन था। उनका जन्म 16 नवंबर, 1846 में इलाहाबाद में हुआ था। अकबर कॆ उस्ताद् का नाम वहीद था जॊ आतिश कॆ शागिऱ्द् थॆ वह अदालत में एक छोटे मुलाजिम थे, लेकिन बाद में कानून का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया और सेशन जज के रूप में रिटायर हुए। इलाहाबाद में ही 9 सितंबर, 1921 को उनकी मृत्यु हो गई।
मयखाना-ए-रिफार्म की चिकनी जमीन पर
वाइज का खानदान भी आखिर फिसल गया
कैसी नमाज, बार में नाचो जनाब शेख
तुमको खबर नहीं जमाना बदल गया